फ़ुर्सत पाकर तुझे फिर बुलाऊंगा

कुछ अर्से बाद हमें फिर फ़ुर्सत हुई है, कि बमईय्यत नाज़रीन (देखने वालों के साथ) नूर-ए-अफ़्शां फेलिक्स बहादुर के इस जवाब पर, जो एक रूमी हाकिम, तजुर्बेकार और बहुत बरसों से केसरिया की अदालत पर मुतमक्किन (जगह पर क़ायम) था और रूमी मज़्हबी व मुल्की क़वानीन के इलावा क़ौमे यहूद के तरीक़ की बातों से भी

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फ़ुर्सत पाकर तुझे फिर बुलाऊंगा

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One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan June 8,1894

मत्बूआ 8 जून 1894 ई॰ बरोज़ जुमा

“पर जब वो रास्तबाज़ी, और परहेज़गारी और आईंदा अदालत की बाबत बातें करता था। तो फ़ेलिक्स ने ख़ौफ़ खा के जवाब दिया, इस वक़्त जा, फ़ुर्सत पाकर तुझे फिर बुलाऊंगा।” (आमाल 24:25)

कुछ अर्से बाद हमें फिर फ़ुर्सत हुई है, कि बमईय्यत नाज़रीन (देखने वालों के साथ) नूर-ए-अफ़्शां फेलिक्स बहादुर के इस जवाब पर, जो एक रूमी हाकिम, तजुर्बेकार और बहुत बरसों से केसरिया की अदालत पर मुतमक्किन (जगह पर क़ायम) था और रूमी मज़्हबी व मुल्की क़वानीन के इलावा क़ौमे यहूद के तरीक़ की बातों से भी बख़ूबी वाक़िफ़ था ग़ौर करें। कि क्योंकर ऐसा शख़्स अपने ज़मीर की आवाज़ को यही जवाब देकर रुख्सत कर देखता, और फिर उस को कभी फ़ुर्सत ना मिलती, कि वो रास्तबाज़ी, परहेज़गारी और आइंदा अदालत की बाबत मुत्मइन व मसरूर हो। और यूं अबदी हलाकत के सिवा उस को और कुछ उम्मीद बाक़ी नहीं रहती। आजकल कितने लोग इस दुनिया में मौजूद हैं। जिन्हों ने नई रोशनी पाकर सिदक़ व बतलान (सच्च और झूट) में इम्तियाज़ (फ़र्क़ करने की तबइयत) को हासिल किया है और क़ाइले सदाक़त (सच्चाई को मानना) हो कर आमिल (अमल करने वाला) होने की ज़रूरत को पहचाना है तो भी, वो फेलिक्स की जैसी क़ाबिल-ए-अफ़्सोस व रहम हालत में क़ायम रह कर इस इल्म और रोशनी को जो ख़ुदा की तरफ़ से उन्हें बख़्शी गई। गोया ये जवाब देकर हटा देते हैं, “अब जा फ़ुर्सत पा कर तुझे फिर बुलाऊँगा।” ये बात तजुर्बे से पाया सबूत को पहुंची है, कि जिसने बख़ूबी जान बूझ कर ख़ुदा के फ़ज़्ल को जो मसीह में ज़ाहिर हुआ रद्द कर दिया। वो हमेशा मर्दूद (रद्द किया हुआ रहता) है। और ख़ौफ़-ए-अदालत में मुब्तला रह कर रास्ती व पाकीज़गी से महरूम इस दुनिया से गुज़र कर अबदी हलाकत में अपनी आँखें खौलता है। फेलिक्स का पौलूस को ये कह कर हँका देना, कि “अब जा” ना सिर्फ एक फ़ज़्ल व नजात के मुबश्शिर को हँका देना था और बस, बल्कि उस ने हमेशा के लिए ख़ुदा को फ़ुर्सत के बहाने से अपने पास से हँका दिया।

इस मुक़ाम पर भी वही अजीब कैफ़ीयत। और एक ही कलाम का दो इन्सानी तबाए (तबइयत की जमा) पर मुख़्तलिफ़ तासीरात पैदा करना साफ़ ज़ाहिर है फेलिक्स जो एक बुत परस्त क़ौम का आदमी था। आईंदा अदालत की बातें सुन कर काँप उठा। मगर दुरूसला ने जो एक यहूदी ज़िनाकार औरत थी। और नाजायज़ तौर पर फेलिक्स के साथ रहती थी इन बातों की मुतलक (बिल्कुल) पर्वा ना की और ये दोनों अपने गुनाहों में मर गए। अगरचे फेलिक्स ने तौबा ना की। तो भी अपस की ये तवारीख़ बहुतों के लिए इबरत हुई। और उस का तौबा ना करना। बहुतों के ताइब (तौबा करना) होने का बाइस हुआ ख़ौफ़-ए-अदालत से मुत्मइन होने। और अबदी नजात हासिल करने के मुआमले में लफ़्ज़ “फिर” कैसा ख़तरनाक और हमेशा कफ-ए-अफ़्सोस (पछताना) मलने का बाइस है।