मसीह इब्ने-अल्लाह ख़ुदा, कफ़्फ़ारा, ख़ातिम-उन-नबिय्यीन है

ये चारों बातें ईसाईयों के अक़ीदे का एक जुज़्व हैं। और बड़ी मुश्किल हैं और इसलिए हिंदू व मुसलमान वग़ैरह इस में लग़्ज़िश (ख़ता, लर्ज़िश) खाते हैं। और इस पर मोअतरिज़ (एतराज़ करने वाले) होते हैं। चंद रोज़ हुए कि अख़्बार मंशूर मुहम्मदी में भी एक मज़्मून इसी बिना पर एक शख़्स मुसम्मा मलिक शाह […]

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मसीह ख़ातिम-उन्नबीय्यीन नहीं

ये कलाम जो पेशानी (काग़ज़ का बालाई हिस्सा जो इबारत से ऊपर ख़ाली छोड़ दिया जाये) पर लिखी गई। आख़िरी हिस्सा मज़्मून मलिक शाह साहब में दर्ज है। और इस की निस्बत उन्होंने ज़ोर व शोर किया है। अगर इस से उनका ये मतलब है कि मसीह आख़िरी नबी नहीं है। यानी नबुव्वत उस पर […]

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मसीह पर ईमान रखने का बयान

ईमान की ख़ासियत और उस की हद पाक कलाम के हर एक वर्क़ में उम्दा अलामात ईमान की बयान की गई हैं। और जो तासीरात उस की गुरु हागर वह ख़ल्क़त ने बयान की हैं वो सब बजा हैं। लेकिन जब बयान बाइबल के मुताबिक़ जब तक मसीह पर ईमान ना हो तब तक फ़िल-हक़ीक़त […]

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दीन-ए-ईस्वी सब के लिए है

चंद रोज़ हुए एक तर्बीयत याफ्ताह हिंदू रईस ने हमसे बयान किया। मसीह अख़्लाक़ी मुअल्लिमों में से सबसे अच्छा था और हर एक बात जो उसने फ़रमाई आपके लिए सच्च व रास्त (दुरुस्त, ठीक) है। लेकिन ये ताअलीम हमारे लिए ना थी। बाइबल में कहीं नहीं लिखा कि वो हमारे लिए थी। ख़ैर देखा जाएगा […]

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मज़्हब का अस्ल काम क्या है?

जैसा हम लोग मज़्हब के नाम से कुछ काम करते या करना चाहते हैं। वैसा ही मज़्हब ख़ुद हमारे लिए कुछ काम करता है। और जहां जानबीन (दोनों जानिब से, फ़रीक़ैन) के काम बराबर हो जाएं वहां कहा जाएगा कि मज़्हब की तक्मील हुई। What is the Purpose of Religion? मज़्हब का अस्ल काम क्या […]

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मुहम्मद साहब ने मोअजिज़े किए हैं या नहीं?

अब हम इस बात पर कई एक सवाल करते हैं। सवाल अव़्वल क्या सब मुहम्मदी लोग हदीसों को मानते हैं? नहीं। हर शख़्स को मालूम है कि शीया सब हदीसों को नहीं मानते। सवाल दुवम किया सुन्नी तमाम हदीसों को क़ाबिल-ए-एतिबार समझते हैं कभी नहीं। ये बात साफ़ ज़ाहिर है कि सुन्नी हदीसों को दर्जा […]

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मुहम्मद साहब या ख़ुदावन्द मसीह

दुवम, ये अल्फ़ाज़ ऐसो और बनी कतूरह की निस्बत इस्तिमाल नहीं हो सकते। क्योंकि बनी ऐसो और बनी कतूरह बरकत के मालिक नहीं हुए हैं। बनी इस्माईल और बनी-इस्राईल इन दोनों में से अल्फ़ाज़ मज़कूर इस मुक़ाम में बनी-इस्राईल के हक़ में वारिद नहीं हो सकता। क्योंकि यहां हज़रत मूसा बनी-इस्राईल को इकट्ठा कर के […]

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मुहम्मद साहब की बशारत का होना तौरेत व इन्जील में?

दूसरी बशारत (ख़ुशी) फ़ारक़लीत (فارقلیط) (हज़रत मुहम्मद का वो नाम जो इन्जील में आया है) की कि ये भी उन्हीं के हक़ में है। और इस की ताईद (हिमायत) में क़ौल डाक्टर गाद फ़्री हेगनस साहब का नक़्ल किया इस मसअले के तहक़ीक़ में लंबे चौड़े मज़्मून की तहरीर इसी अख़्बार में साल गुज़श्ता में […]

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मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब का नतीजा

दुनिया में बेशुमार मुख़्तलिफ़ अदयान (दीन की जमा) के राइज होने से है। फ़र्द बशर बख़ूबी वाक़िफ़ है ना सिर्फ वाक़िफ़ बल्कि हर अहले मज़्हब के दिली तास्सुब आपस की अदावत (दुश्मनी), ज़िद, बुग़्ज़ (नफ़रत), हसद, एक दूसरे की ऐब-जोई और नुक़्स गेरी और अपने अपने फ़ख़्र और बड़ाई जताने का क़ाइल (तस्लीम करने वाला, […]

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ज़बूर 119:37

इस आलम में जिधर नज़र डालो आँख के लिए एक दिलकश नज़ारा दिखलाई देता है। इस दुनिया की हर एक शैय इन्सान की नज़र में पसंदीदा मालूम होती है। और इंसान के दिल को फ़रेफ़्ता (आशिक़, दिलदादा) कर देती है। अगरचे ख़ल्क़त की किसी चीज़ को पायदारी नहीं। और जिस शैय को आँख देखकर एक […]

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सच्ची दोस्ती

सच्ची दोस्ती का एक बड़ा ख़ास्सा ये है, कि जब कोई अपने दोस्त की निस्बत कोई नामुनासिब बात उस की ग़ैर-हाज़िरी में सुने तो इस मौक़े पर वफ़ादारी ज़ाहिर करे। अक्सर देखा जाता है, कि इन्सान इस क़द्र अपनी तारीक दिली और कमज़ोरी ज़ाहिर करता है, कि अपने ही दोस्तों की निस्बत जिनकी दोस्ती का […]

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अपनी तक़्लीफों पर ग़ौर करो

मज़्मून हज़ा इरसाल-ए-ख़िदमत है। उम्मीद वासिक़ (मज़्बूत, पक्का यक़ीन) है कि अपने अख़्बार गो हर बार के किसी गोशा (हिस्सा, कोना) में दर्ज फ़र्मा कर राक़िम को ममनून व मशकूर (एहसानमंद व शुक्रगुज़ार) फ़रमाएँगे। Look at you sufferings अपनी तक़्लीफों पर ग़ौर करो By One Disciple एक शागिर्द Published in Nur-i-Afshan July 15, 1895 नूर-अफ़्शाँ […]

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