हज़रत मूसा का जानशीन

जब बनी-इस्राईल मुल्क कन्आन में पहुंच गए। तो वो मन जो वो ब्याबान में खाया करते थे आस्मान से बरसना बंद हो गया। और वो इस मुल्क के उम्दा और नफ़ीस फल और हासिलात (पैदावार) खाने लगे। और आगे बढ़ते बढ़ते यरीहू शहर तक पहुंचे। ये एक बड़ा आलीशान शहर था, जिसकी शहर-पनाह निहायत मज़्बूत […]

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हमारी ज़िन्दगी

इंसान की ज़िंदगी में ख़ास तीन हालतें हैं या यूं कहो कि इंसान के आयाम-ए-ज़िंदगी तीन बड़े हिस्सों में मुनक़सिम (तक़्सीम) हैं। बचपन, जवानी, बुढ़ापा। इनमें से उम्र का पहला हिस्सा वालदैन की निगरानी और उस्तादों की सुपुर्दगी (तहवील) में गुज़रता है। और नाबालिग़ होने की सूरत में दूसरों की मर्ज़ी और ख़्वाहिश के मुवाफ़िक़ […]

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फ़ुर्सत पाकर तुझे फिर बुलाऊंगा

कुछ अर्से बाद हमें फिर फ़ुर्सत हुई है, कि बमईय्यत नाज़रीन (देखने वालों के साथ) नूर-ए-अफ़्शां फेलिक्स बहादुर के इस जवाब पर, जो एक रूमी हाकिम, तजुर्बेकार और बहुत बरसों से केसरिया की अदालत पर मुतमक्किन (जगह पर क़ायम) था और रूमी मज़्हबी व मुल्की क़वानीन के इलावा क़ौमे यहूद के तरीक़ की बातों से […]

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अस्बाब-ए-इत्तिहाद

मसीह ख़ुदावंद की बाबत बहुत सी ग़ैर-इंजीली रिवायत में से एक ये भी है जो मुझको बहुत प्यारी मालूम होती है याद नहीं कि इस का ज़िक्र कहाँ है कहते हैं कि रास्ते पर एक कुत्ता मरा पड़ा था राहगीर बच कर निकल जाते। और तरह तरह से उस पर अपनी नफ़रत ज़ाहिर करते थे […]

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आज ये नविश्ता तुम्हारे सामने पूरा हुआ

उन्नीस सौ बरस के क़रीब गुज़रते हैं कि फ़िक़्रह मुन्दरिजा उन्वान शहर नासरत के इबादतखाने में बरोज़ सबत येसू नासरी की ज़बान-ए-मुबारक से यहूदी जमाअत परस्तारान (परस्तिश करने वाले) के रूबरू निकला था। जिसके हक़ में राक़िम ज़बूर (ज़बूर लिखने वाला) ने लिखा कि “तू हुस्न में बनी-आदम से कहीं ज़्यादा है। तेरे होंटों में […]

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मिर्ज़ा की पैशन गोई और अब्दुल्लाह आथम

लो एडीटर साहब। यारों का भी टोटख़ा-ए-क़ियाफ़ा ज़रा गोश-ए-दिल (बड़ी तवज्जोह) से से सुन लीजिए। नऊज़-बिल्लाह (अल्लाह की पनाह) ! मिर्ज़ा साहब को सूली की तो क्या सूझी होगी और मुरम्मत व तज्दीद (दुरुस्ती व नयापन) इस्लाम अगर सूझेगी, तो अपने बेटरे और अपने अंसार की ज़रूर सूझेगी कि अब कौनसी करवट हिक्मत की बदलें। […]

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एक बड़ा बख़्शिंदा

किसी शख़्स को उस की मेहनत की उज्रत देना बख़्शिश नहीं है। पर बिला मेहनत और काम के किसी को कुछ देना बख़्शिश है। दुनिया में लोगों को उन की मुलाज़मत, ख़िदमत और मज़दूरी का हक़ मिलता है। लेकिन बाअज़ साहिबे दौलत किसी अपने होशियार और मेहनती कारिंदे (मज़दूर, काम करने वाले) को कभी-कभी कुछ […]

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बाअज़ ख़यालात मुहम्मदी पर सरसरी रिमार्क्स

हिंदूओं में भी कई एक तीर्थ मशहूर हैं। मसलन बदरी नाथ, किदार नाथ, द्वार का, बनारस, व प्राग वग़ैरह जहां बाअज़ हिंदू जाना और मूरतों के दर्शन करना और बाअज़ रस्मी बातों का अदा करना ज़रूरी और मूजिब सवाब ख़याल करते हैं। Short Remarks on some thoughts of Muhammad बाअज़ ख़यालात मुहम्मदी पर सरसरी रिमार्क्स […]

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जंग मुक़द्दस का ख़ातिमा और अमृतसर में मसीहीयों का इज्लास

नाज़रीन में से हर एक पर वो मशहूर-ए-आलम पेशीनगोई रोशन है, जो मिर्ज़ा क़ादियानी ने मुबाहिसा अमृतसर के इख़्तताम पर की थी कि “डिप्टी अब्दुल्लाह आथम साहब फ़रीक़ सानी 15 माह तक यानी 5 सितम्बर 1894 ई॰ तक बह सराय मौत हाविया (जहन्नम) में डाले जाऐंगे। The End of Holy War and Procession of Christians […]

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इब्ने आदम बचाने आया

ये एक मशहूर आलम मक़ूला है, कि “कहने और करने में बड़ा फ़र्क़ है।” और ये किसी हद तक सच्च भी है कि हौसलामंद अश्ख़ास जैसा कहते हैं, वैसा कर नहीं सकते और यूं उन के अक़्वाल व अफ़आल में एक फ़र्क़ अज़ीम वाक़ेअ हो जाता है। मगर हम इस अजीब शख़्स येसू नासरी के […]

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मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी की पैशनगोई

हमारे नाज़रीन मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी के नाम-ए-नामी से बख़ूबी वाक़िफ़ होंगे आप इस ज़माने आज़ादी के मसीह मौऊद मह्दी आख़िर-उज़्ज़मान और ख़ुदा जाने क्या क्या हैं और अपने दाअवों के सबूत में इल्हामी पेशीनगोईयां फ़रमाया करते हैं और ये तरीक़ा अवाम और जहां के फांसने के लिए अब तक बहुत कुछ मुफ़ीद साबित हुआ […]

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मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी का इल्हाम

बड़ी धूम, बड़ी धाम, बड़ी शौहरत, बड़ा एहतिमाम, मिर्ज़ा क़ादियानी का इल्हाम, लेना लेना, जाने ना पाए, वो मारा चारों शाने चित्त। (کجامیروی باش باش کہ رسیدم ۔ این خیر ماشد) ये आपको क्या हो गया जो लगे बे-तुकी हाँकने। कहीं शैतान ने तो आपको उंगली नहीं दिखाई। लाहौल पढ़ के ज़मीन पर थूक दीजिए। […]

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