मुक़द्दस तस्लीस

और बेशक यही दोनों बातें मसीही मज़्हब की ख़ास व ज़रूरी बातें, बल्कि आला उसूल हैं। जिन पर इन्सान की नजात का दारो मदार है। और चूँकि वो इसरारे इलाही हैं। इसलिए उनका पूरे तौर पर समझ में आना भी दायरा महदूद अक़्ल-ए-इंसानी से बिल्कुल बाहर और नामुम्किन अम्र है। जब कि हम इन्सान अपनी ही माहीयत (हक़ीक़त को पूरे तौर पर समझने

Holy Trinity

मुक़द्दस तस्लीस

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan July 15, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 15 जुलाई 1895 ई॰

ये अम्र तो पोशीदा (छिपा हुआ) नहीं है, कि मुहम्मदी साहिबान हम मसीहियों से गुफ़्तगु व बह्स के वक़्त ज़्यादा तर इन्हीं दो बातों यानी :-

अव़्वल : मसअला पाक तस्लीस और

दोम : उलूहियत ख़ुदावन्द येसू मसीह पर अक्सर तकरार किया करते हैं।

और बेशक यही दोनों बातें मसीही मज़्हब की ख़ास व ज़रूरी बातें, बल्कि आला उसूल हैं। जिन पर इन्सान की नजात का दारो मदार है। और चूँकि वो इसरारे इलाही हैं। इसलिए उनका पूरे तौर पर समझ में आना भी दायरा महदूद अक़्ल-ए-इंसानी से बिल्कुल बाहर और नामुम्किन अम्र है। जब कि हम इन्सान अपनी ही माहीयत (हक़ीक़त को पूरे तौर पर समझने में क़ासिर (मजबूर, आजिज़) हैं। तो उस क़ादिर ख़ालिक़, ला-इंतिहा व लामहदूद ख़ुदा की माहीयत (असलियत) को भला क्योंकर समझ सकते हैं। तो भी जहां तक या जिस क़द्र ख़ुदा ने अपने पाक कलाम में इनकी बाबत हमारी ताअलीम के लिए ज़ाहिर कर दिया। अक्सर उलमा मसीही ने इस को अपनी तसानीफ़ (तहरीर की हुई किताबें) में साफ़ व सरीह (वाज़ेह) तौर पर बयान भी कर दिया है। जो चाहे उनका मुतालआ कर के मालूम कर सकता और तसल्ली पा सकता है।

मगर मुसन्निफ़ क़ुरआन ने जिस तस्लीस का तस्लीस इलाही ख़याल कर के इन्कार किया। हम मसीही भी उस के मुन्किर (इन्कार करने वाले) हैं। बल्कि इस को कुफ्र (बेदीनी, ख़ुदा को ना मानना, नाशुक्री) समझते हैं। चुनान्चे क़ुरआन में मज़्कूर है, ऐ ईसा बेटे मर्यम के क्या तू ने कहा था लोगों को कि पकड़ो मुझको और माँ मेरी को “माबूद सिवाए अल्लाह के” सूरह अल-मायदा रुकूअ 16

वाह क़ुरआनी ख़ुदा की आलिम-उल-ग़ैबी जिसको इस क़द्र भी ख़बर नहीं कि किस इन्जील में ईसा ने ये कहा, किस में नहीं। सरीह बोहतान (वाज़ेह इल्ज़ाम) है। सिर्फ रोमन कैथोलिक ईसाईयों को मर्यम की ज़्यादातर ताज़ीम (इज़्ज़त) करते हुए देखकर मुसन्निफ़ क़ुरआन ने मर्यम को तस्लीस अक़्दस का उक़नूम सालिस (तीसरा) क़रार दे दिया। और जिनकी इब्ताल (झूट) में दलील (गवाही) भी फ़ौरन पेश कर दी कि “ईसा और मर्यम दोनों खाना खाया करते थे।” देखो कैसी उम्दा दलीलें इन दोनों के इब्ताले उलूहियत पर बयान करते हैं। पर देखो वो नहीं मानते।” सूरह ईज़न (ऊपर वाली) रुकूअ 10

सुब्हान-अल्लाह बहुत-बहुत उम्दा दलीलें हैं। मगर मानें क्योंकर मर्यम तो इन्सान थी। जिसको कभी किसी ईसाई ने आज तक पाक तस्लीस का उक़नूम सालिस क़रार नहीं दिया। मगर हाँ ख़ुदावन्द येसू मसीह इन्जीले मुक़द्दस के मुवाफ़िक़ कामिल ख़ुदा और कामिल इन्सान दोनों ज़ाहिर है। (फिलिप्पियों 2:5-11 तीमुथियुस 3:16 व कुलस्सियों 2:9) जिसको उलूहियत की दलीलों से उलूहियत का सबूत और इन्सानियत के कामों से इन्सानियत का सबूत है। मगर खाना खाना अगर ख़ुदा के नज़्दीक नापसंद व मकरूह है तो ताज्जुब है कि बक़ौल मुहम्मदियों ख़ुदावन्द येसू मसीह का वही खाना खाने वाला जिस्म क्योंकर ख़ुदा के पास आस्मान पर ज़िंदा चला गया? ज़रूर तो ये था कि उस की उलूहियत की दलीलों को रद्द कर के उस का इब्ताल (गलत साबित करना) ज़ाहिर करते। मगर ये नामुम्किन अम्र था क्योंकर हो सकता। चुनान्चे कलाम-ए-मुक़द्दस बाइबल के मुवाफ़िक़ उस की उलूहियत (ख़ुदाई) की दलीलों में से बाअज़ ये हैं :-

1. नबुव्वत का कलाम। यसअयाह 9:6, यर्मियाह 23:6 मीकाह 5:2-6

2. ख़ुदा बाप की गवाही। मत्ती 3:17, 17:5

3. यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की गवाही। यूहन्ना 1:15-27

4. ख़ुद मसीह का क़ौल। यूहन्ना 8:42,58, 14:11,16 17:5

5. उस का ज़िंदा होना। मत्ती 28:5-8

6. रसूलों की गवाही। यूहन्ना 1:14 रोमीयों 1:3-4

7. रूह-उल-क़ुद्स की गवाही। (बमूजब क़ौल मसीह, यूहन्ना 16:13-14) 1 कुरिन्थियों 12:3)

मासिवा इनके क़ुरआन में भी दर्ज है, कि ईसा बेटा मर्यम का रसूल अल्लाह का है और कलमा है उस का डाल दिया उस को तरफ़ मर्यम के और रूह है उस की तरफ़ से अलीख। सूरह अल-निसा रुकूअ 23

(भला क्या ये अजीब ख़िताब किसी और नबी की तरफ़ भी मन्सूब हुए? हरगिज़ नहीं)

पस ज़ाहिर है कि मुसन्निफ़ क़ुरआन ने मर्यम को पाक तस्लीस का उक़नूम सालिस ख़याल किया। जिस पर कुल मुफ़स्सिर क़ुरआन (तफ़्सीर करने वाले) भी मुत्तफ़िक़ हैं। कि मुहम्मद साहब ज़रूर मर्यम को तस्लीस का उक़नूम सालिस समझते थे। जिसको हम मसीही भी कुफ़्र समझते हैं। मगर बाअज़ मुहम्मदी साहिबान ने मसीह और रूह-उल-क़ुद्स का जो इन्कार किया। वो पीछे का ख़याल है, जो उन्होंने ईसाईयों से सुना है।

इलावा इस के आयत क़ुरआनी मज़्कूर बाला के आख़िर में जो ये अल्फ़ाज़ मज़्कूर हुए कि “मत कहो तीन ख़ुदा हैं” सरीह बोहतान (साफ़ झूट) है क्योंकि ईसाईयों के अक़ीदे में तीन ख़ुदा कहना या मानना बिल्कुल कुफ़्र है। बल्कि वो सिर्फ एक वाहिद ख़ुदा के क़ाइल हैं। (इस्तिस्ना 6:4, रोमीयों 16:27, 1 तमीथीसि 1:17, यहूदाह 1:25) मगर एक ख़ुदा में अक़ानीम सलासा यानी अब्ब, इब्न और रूह-उल-क़ुद्स (बाप, बेटा और रूह-उल-क़ुद्स) के भी क़ाइल हैं। जिनसे तीन ख़ुदा लाज़िम हरगिज़ नहीं आते। बल्कि तीन उसूल जो फ़िल-हक़ीक़त शख़्सियत में अलग अलग मगर ज़ात व सिफ़ात और जलाल में वाहिद (मत्ती 28:19, 1 कुरिन्थियों 13:14) उस इलाही अज़ली व हक़ीक़ी वहदानियत में जो सर इलाही है। कलाम इलाही के मुवाफ़िक़ क़ुबूल करना मुनाफ़ी (खिलाफ) उस वहदत (एक होना, यकताई) के नहीं जो अल्लाह की वहदत है। मगर हाँ वहदत मुजर्रिद (तन्हा) या उस वहदत के ज़रूर ख़िलाफ़ है जो अक़्ली वहदत है। क्योंकि अल्लाह की वहदत में अक़्ली वहदत का क़ाइल होना ही कुफ़्र है। जिसके इक़रार व ईमान से मुतलक़ कोई फ़ायदा नहीं है। (याक़ूब 2:19) क्योंकि ख़ुदा की वहदत वो वहदत है जो क़ियास व गुमान इन्सानी (समझ इन्सानी) से बालातर है। उस में ना वहदत वजूद हे ना अक़्ली ना वहदत अददी है। बल्कि वो ग़ैर मुद्रिक (ना समझने वाला।) है जो मुतशाबिहात (जिस तरह क़ुरआन शरीफ़ की वो आयतें जिनके मअनी सिवाए ख़ुदा तआला के कोई नहीं जानता। जिनके एक से ज़्यादा मअनी हो सकते हैं) में से है। जिसका मतलब आज तक कोई नहीं समझ सका। और ना इन्सान की ताक़त है कि उस को समझ सके।

पस इस तस्लीस-ए-इलाही को क़ुबूल करना कलाम-उल्लाह के मुवाफ़िक़ हर इन्सान का फ़र्ज़-ए-ऐन (दुरुस्त, हक़ीक़त) है। मगर वो सिर्फ़ ईमान ही के ज़रीये क़ुबूल की जाती है। क्योंकि “नफ़्सानी आदमी ख़ुदा की रूह की बातें क़ुबूल नहीं करता, कि वो उस के आगे बेवकूफियां हैं और ना उन्हें जान सकता। क्योंकि वो रुहानी तौर पर बूझी जाती हैं।” (1 कुरिन्थियों 2:15)

पस इसलिए हर फ़र्द बशर पर कमाल ज़रूरी है कि इन बातों पर दिल की ग़रीबी से गौर व फ़िक्र कर के उस के ख़ालिस व पाक कलाम की सच्चाई व रास्ती का ख़्वाहां हो। ताकि वो रोज़े अदालत सुर्ख़रु हो कि ख़ुदा के हुज़ूर हमेशा की अबदी व लासानी ख़ुशी को हासिल करे।

नबी का फ़र्मान, “आओ कहो जिएँ और अपनी राहों को जांचें और ख़ुदावन्द की तरफ़ फिरें।” यर्मियाह का नोहा 13:4

रसूल पौलुस का क़ौल “सारी बातों को आज़माओ। बेहतर को इख़्तियार करो” 1 थिस्सलुनीकियों 5:21