सहीफ़ा क़ुद्दुसी दिल्ली

The Holy Scripture

सहीफ़ा क़ुद्दुसी दिल्ली

By

One Disciple

एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan September 12, 1889

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 12, सितंबर 1889 ई॰

क़तअ़ तारीख़-ए-वफ़ात में (304 हि॰) ओला माद्दा सू-ए-जन्नत बरफ़त्त वाले हकीम तो दुरुस्त है। मगर तारीख़ तैयारी मर्क़द में दो गलतीयां में अगर हसत जाये फ़िदा मुहम्मद ख़ां के लफ़्ज़ हसत को राजू नीज़ तारीख़ तर बतीश की ख़बर है उस के मुबतदआ के साथ पैवंद करें तो वो तारीख़ से 465 अदद जाते रहेंगे और बजाय (130) के (842) रह जाऐंगे और अगर लफ़्ज़ नेस्त को जाये फ़िदा मुहम्मद ख़ां से मिला कर बढें तो इस माद्दा तारीख़ का मिसरा अव़्वल यूं होना चाहीए कि गुफ़्त तारीख़ तर बत्श क़ुद्दुसी। हसत जाये फ़िदा मुहम्मद ख़ां और तारीख़ वफ़ात का माद्दा पहले है और ख़बर उस के बाद इस में भी कलाम है यक़ीन कि हमारे हम-अस्र मौलवी क़ुद्दुसी साहब हमको हमारी इस गुस्ताख़ी से जो उन की शान में सादिर हुई माफ़ फ़रमाएँगे।

कहते हैं कि जब दो मुसीबतों में से एक का बर्दाश्त करना लाज़िमी हो तो वाजिब है कि अक़्लमंद इन्सान इन दोनों में से हल्की मुसीबत को इख़्तियार कर ले। जैसा कि दाऊद नबी ने तीन मुसीबतों में से एक मुसीबत तीन दिन की ख़ुदा की तल्वार मंज़ूर कर ली थी चुनान्चे आजकल भी मुत्ला`अ (बाख़बर) श्यान-ए-दीन-ए-हक़ को दो मुसीबतों का मुक़ाबला आ पड़ा है।

(अव़्वल)

ये कि तौरेत व ज़बूर व इंजील अगरचे इल्हामी हैं मगर शहादत अहमदियह वो मुहर्रिफ़ हैं।

(दोम)

ये कि क़ुरआन इल्हाम रब्बानी और महफ़ूज़ है बग़ैर शहादत अम्बिया अम्र सलीन साबक़ीन। चूँकि कुतुब साबिक़ा की निस्बत हज़ार-हा अम्बिया शहादत दे गए और ख़ुद ख़ुदावंद मसीह ने उनकी सेहत और इल्हामी होने की गवाही दी है। और क़ुरआन की बाबत सिर्फ मुहम्मद साहब है मुद्दई हैं कि वह इल्हामी है दरां हाल ये कि आप दायरा नबुव्वत से भी ख़ारिज हैं। पस अक़्लमंद मुतलाशी दीन-ए-हक़ को मुनासिब है कि जिन किताबों के इल्हामी होने पर ख़ुद मुहम्मद साहब भी। शाहिद हैं उन्हें को इल्हामी जाने और तहरीफ़ का इत्तिहाम (तोहमत, इल्ज़ाम) सिर्फ़ हम्द साहब के ज़िम्में माने क्योंकि हज़ार-हा अम्बिया को ना सुनने से ये बेहतर है कि एक मुहम्मद साहब ही को ना माना जाये।

रिव्यू

हमने रिसाले ज़मर मह इस्लाम को आग़ाज़ से अंजाम तक देखा ख़ूब लिखा है वाज़ेह हो कर ये रिसाला हमारे मसीही भाई मुंशी मौलवी हसन अली साहब बह मुक़ाबला मौलवी अब्दुल्लाह रिसाला मसकलता अल-मुस्लिमीन (مصقلتہ المسلمین) तस्नीफ़ ख़ुद का जवाब-उल-जवाब तहरीर फ़रमाया है हमने मसक़लता अल-मुस्लिमीन (مصقلتہ المسلمین) का भी मुआनिया किया दरहक़ीक़त दोनों रिसाला लाजूब हैं ग़रज़ इस तालीफ़ व तसनीफ़ की ये है कि जिस हाल में ये कि मुहम्मदी भाई क़ुरआन को बाऐतबार इबादत मोअजिज़ा फ़साहत गरदानते हैं। पस ज़रूर है कि ऐसी किताब में ग़लती ना हो।