वाक़ियात तौरेत व क़ुरआन में सरीह मुख़ालिफ़त

The Contradictory Events of Torah and Quran

वाक़ियात तौरेत व क़ुरआन में सरीह मुख़ालिफ़त

By

One Disciple

एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan Jan 8, 1891

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 8 जनवरी 1891 ई॰

तफ़्सीर क़ादरी तर्जुमा तफ़्सीर हुसैनी में लिखा है, कि हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के क़िस्से में और उर्याह की औरत के साथ आपके निकाह करने में बहुत इख़्तिलाफ़ है। बाअज़ मुफ़स्सिरों ने ये क़िस्सा इस तरह बयान किया है कि शराअ और अक़्ल इसे क़ुबूल करने से इन्कार करती है। जो कुछ सेहत के साथ मालूम हो वो ये है कि उर्याह ने एक औरत के साथ अपने निकाह का पयाम दिया और क़रीब था कि उस का निकाह हो जाये। औरत के वलीयों (मालिक, शौहर) को इस के साथ कुछ ख़रख़शा (झगड़ा) पड़ा था, इसलिए निकाह ना होने दिया। हज़रत दाऊद ने अपने साथ निकाह का पयाम भेजा और हज़रत दाऊद के निनान्वें (99) बीबीयां थीं। अ़ताब ईलाही दाऊद पर इसलिए हुआ, कि उर्याह के पयाम देने के बाद हज़रत दाऊद ने पयाम दिया और उस से निकाह कर लिया। जिब्राईल और मीकाईल दो मतख़ासीन (मुख़ालिफ़) की सूरत पर अपने-अपने साथ फ़रिश्तों का एक-एक गिरोह बशक्ल इन्सान ले के दाऊद के पास आए और बयान किया, कि मेरे इस भाई के पास निनान्वें (99) भेड़ें हैं और मेरी एक ही भेड़ है उसने ग़लबा कर के वो भी ले ली। दाऊद ने कहा कि अगर ये कैफ़ीयत वाक़ई है तो उसने ज़ुल्म किया। जब हज़रत दाऊद ने ये बात कही तो वो खड़े हुए और नज़र से ग़ायब हो गए। पस हज़रत दाऊद सोच में पड़ गए और मग़फ़िरत मांगी। देखो तफ़्सीर सूरह (ص) स्वाद।

अब इस बयान का (जिसको मुफ़स्सिर सेहत के साथ मालूम किया हुआ बताता है) मुक़ाबला 2 समुएल 11, 12 बाब से करें, तो मालूम हो जाएगा कि मुसन्निफ़ और मुफ़स्सिर क़ुरआन सही वाक़ियात अम्बिया-ए-साबक़ीन मालूम करने में किस क़द्र क़ासिर हैं।

وَ یَعۡبُدُوۡنَ مِنۡ دُوۡنِ اللّٰہِ مَا لَا یَضُرُّہُمۡ وَ لَا یَنۡفَعُہُمۡ وَ یَقُوۡلُوۡنَ ہٰۤؤُلَآءِ شُفَعَآؤُنَا عِنۡدَ اللّٰہِ

तर्जुमा : यानी पूजते हैं अल्लाह के सिवा उस चीज़ को जो ना उनका बुरा करे और ना भला करे और कहते हैं ये हमारे सिफ़ारशी हैं अल्लाह के पास। (सूरह यूनुस आयत 18)

ये मुशरिकान अरब की निस्बत कहा गया और इस आयत क़ुरआनी से चार बातें साबित होती हैं। अव़्वल ये कि वो अपने बुतों को ना अपना और ना ग़ैर का ख़ालिक़ व मालिक बताते थे। और ना उनको ज़ात ईलाही के बराबर जानते थे। सोम ये कि वो ज़ात ईलाही की उलूहियत के मुन्किर भी ना थे और चौथे ये कि वो लोग उन अस्नाम मुअ़तक़िदा (बुतों पर ईमान) को अपना शाफ़े-इंद अल्लाह (सिफ़ारशी شافع عند اللہ) बताने के बाइस मुशरिक कहलाए। अब नाज़रीन ग़ौर करें कि हज़रत मुहम्मद साहब हजरे अस्वद मक्की में वो सिफ़त साबित करते जो मख़्सूस बज़ात ईलाही है, यानी इल्म-ए-ग़ैब। मिश्कात-उल-मसाबिह में दरबाब व ख़ौल मक्का व तवाफ़ सफ़ा 220 में लिखा है :-

قال رایت عمر یقبل الحجر ویقولون انی لا علم انک حجرالا تنفع ولا تضر ولولا انی رایت رسواللہ صلی اللہ علیہ واسلم یقبل ماقبلتک متفق علیہ

यानी आबस बिन रबीया से रिवायत है, कि कहा उसने कि देखा मैंने उमर को हज्र-ए-असवद चूमते हुए और कहता था कि मैं ख़ूब जानता हूँ कि तू पत्थर है, ना तो नफ़ा पहुँचाता है और ना नुक़्सान और अगर ना देखता मैं रसूल-अल्लाह को चूमते हुए तो ना चूमता मैं तुझे।

इस हदीस पर सब का इत्तिफ़ाक़ है। अब देखिए ये काला पत्थर (जिसको बाअज़ हिंदू मुकेश्वर महादेव कहते हैं) बक़ौल ख़लीफ़ा उमर के अपने चूमने वालों को कुछ नफ़ा नुक़्सान नहीं पहुंचा सकता, जैसा कि मुशरिकान अरब के बुत नफ़ा नुक़्सान अपने पर सितारों का नहीं पहुंचा सकते थे। तो भी ख़लीफ़ा उमर ने इस को चूमा और सब मुसलमान जो हज के लिए जाते इस को ज़रूर चूमते हैं और सुन्नत मुहम्मदिया क़रार देते हैं। अगरचे क़ुरआन में इस पत्थर का कुछ ज़िक्र नहीं है। लेकिन हमारी समझ में ख़लीफ़ा उमर का ये कहना कि हज्रुल-अस्वद अपने चूमने वालों को ना नफ़ा पहुंचा सकता है और ना नुक़्सान पहुंचा सकता है, दुरुस्त नहीं ठहरता। क्योंकि इसी किताब मिश्कात-उल-मसाबिह सफ़ा 219 में एक और हदीस पाई जाती है, जिस का तर्जुमा ये है कि इब्ने अब्बास ने कहा, कि फ़रमाया रसूल सलअम ने हज्रुल-अस्वद की शान में कि क़सम है अल्लाह की, कि देगा इस को ख़ुदा क़ियामत के दिन दो आँखें कि देखेगा वो उनसे और ज़बान देगा उस को कि बोलेगा वो इस से और गवाही देगा, इस पर जिसने इस को चूमा सच्चे इरादे से। रिवायत किया इस हदीस को तिर्मिज़ी और इब्ने माजा और दारमी ने। ख़लीफ़ा उमर फ़रमाते हैं कि इस पत्थर के चूमने वाले को कुछ नफ़ा और नुक़्सान हरगिज़ नहीं पहुंचता और मुहम्मद साहब फ़रमाते हैं कि हज्रुल-अस्वद अपने चूमने वालों के लिए बरोज़ क़ियामत ख़ुदा के रूबरू गवाह ख़ैर होगा। और बाएतिक़ाद चूमने वालों के लिए उस की गवाही बड़ी नफ़ा बख़्श होगी। और रियाकारी के साथ चूमने वालों के हक़ में इस की शहादत (गवाही) बाइस ज़रर ठहरेगी। पस कोई मुहम्मदी साहब बतलाएं कि इन दोनों साहिबों में से किस का क़ौल सही है।