उस के चाल चलन की बाबत लिखा है कि वो ख़ुदा से डरता और बदी से बाज़ रहता था। ख़ुदा ने भी उस को बहुत बढ़ाया। उस के सात बेटे और तीन बेटियां थीं। और उस के माल की बाबत ज़िक्र है कि उस के पास सात हज़ार भेड़ें और तीन हज़ार ऊंट, पाँच सौ जोड़ी बेल और पाँच सौ गधीयाँ थीं। उस के बहुत से नौकर-चाकर भी थे। और अहले मशरिक़ में उस की मानिंद कोई मक़्बूल (मशहूर)
Our Life and Life of Job
हमारी ज़िंदगी और अय्यूब की ज़िंदगी
By
One Disciple
एक शागिर्द
Published in Nur-i-Afshan Jan 5, 1891
नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 5 जनवरी 1894 ई॰
अय्यूब का वतन
औज़ की सर-ज़मीन में एक शख़्स अय्यूब नामी था। उस की बाबत लिखा है कि वो कामिल और सादिक़ था।
उस का चलन
उस के चाल चलन की बाबत लिखा है कि वो ख़ुदा से डरता और बदी से बाज़ रहता था। ख़ुदा ने भी उस को बहुत बढ़ाया। उस के सात बेटे और तीन बेटियां थीं। और उस के माल की बाबत ज़िक्र है कि उस के पास सात हज़ार भेड़ें और तीन हज़ार ऊंट, पाँच सौ जोड़ी बेल और पाँच सौ गधीयाँ थीं। उस के बहुत से नौकर-चाकर भी थे। और अहले मशरिक़ में उस की मानिंद कोई मक़्बूल (मशहूर) ना था। उस का ईमान ख़ुदा पर था। वो सादिक़ और मर्द-ए-ख़ुदा था। ख़ुदा भी उस को अपना “बंदा” कहता है। देखो (किताब अय्यूब 1:8)
अय्यूब ख़ुशी से अपने ख़ानदान में रहता था। ज़िंदगी का सामान ख़ातिर-ख़्वाह उस को मुहय्या था। जिस्मानी नेअमतों से भी वो माला-माल था और रुहानी बरकतें भी उस के शामिल-ए-हाल थीं। किसी चीज़ की मोहताजी उस को ना थी। कामिल और सादिक़ होने के सबब से वो और भी ख़ुश व ख़ुर्रम था। और ख़ुदा में मसरूर रहता था। जब कि अय्यूब के चारों तरफ़ अमन और चेन था।
अय्यूब की आज़माईश
और किसी क़िस्म का फ़िक्र व ग़म उस के दिल में ना था। इत्तिफ़ाक़न उस का ईमान आज़माया गया। और उस के प्यारे लड़के और लड़कीयां एक दम मर गए सिर्फ़ वो और उस की औरत अकेले रह गए। और ना सिर्फ ये ही हुआ। बल्कि यके बाद दीगरे उस का माल और अस्बाब सब रफ़्ता-रफ़्ता बर्बाद हो गया। और आख़िरकार उस के पास कुछ ना रहा और वो ख़ाली हाथ रह गया। वो जो एक बड़ा मालदार था बिल्कुल कंगाल (तंगहाल) हो गया। और अगरचे इस तरह वो बेऔलाद और बे-घर व बेज़र (बग़ैर रुपया) हो गया। और उस की ज़िंदगी तल्ख़ (ना-गवार) हो गई। लेकिन इस सादिक़ और कामिल शख़्स ने इन तमाम तक्लीफ़ात और आफ़ात में ज़रा भी घबराहट और दिल में तंगी ज़ाहिर ना की बल्कि ऐसे मौक़े पर जब कि उस को ग़म पर ग़म, और रंज पर रंज हो रहा था, उसने कहा “अपनी माँ के पेट से मैं नंगा निकल आया और फिर नंगा वहां जाऊँगा।” और ये सब कुछ जाता देखकर उसने कहा, “ख़ुदावंद ने दिया, ख़ुदावंद ने ले लिया। ख़ुदावंद का नाम- मुबारक है।” पर इतने ही पर इक्तिफ़ा (काफ़ी होना) ना हुआ बल्कि अय्यूब को सख़्त और बुरी तरह सर से लेकर पांव तक जलते फोड़े निकले। और वो खुजाते खुजाते लहूलुहान हो गया। और उस का तमाम बदन लहू से भर गया। उस की ज़िंदगी ना सिर्फ बैरूनी तक्लीफ़ात से ही रंजीदा और ग़मगीं हो कर अज़-हद दुख में थी, बल्कि ख़ुद उस को ऐसी तक्लीफ़ थी कि जिसका बयान नहीं हो सकता। इस पर और भी ज़्यादती ये हुई कि ऐसे दुख के वक़्त में तमाम उस के दोस्त भी उस के दुश्मन हो गए। यहां तक कि ख़ुद उस की औरत भी उस के साथ हम्दर्द ना रही। वो भी उस के ज़ख्मी दिल को गाह बगाह ज़्यादातर रंजीदा कर देती थी।
अय्यूब का सब्र
लेकिन ये मर्द-ए-ख़ुदा ऐसा साबिर रहा। और हर एक दुख और तक्लीफ़ को उसने तन्हा ऐसा बर्दाश्त किया कि वो साबिर कहलाया। और अय्यूब का सब्र दुनिया में ज़रब-उल-मसल (मशहूर मिसाल) ठहर गया। अगरचे अय्यूब ने अपने रंज व ग़म का अंदाज़ा यहां तक किया कि उसने ख़ुद कहा, कि “ऐ काश कि मेरा ग़म तोला जाता और मेरा ग़म तराज़ू में एक साथ धरा जाता। क्योंकि वो अब समुंद्र की रेत से भारी ठहरता।” तो भी उसने अपनी ज़बान से कोई बुरा कलिमा ना निकाला। अक्सर देखने में आता है, कि जब आदमी किसी सख़्त तक्लीफ़ या दुख में गिरफ़्तार होता है। तो वो कुड़ कुड़ाता है। और अपने मुंह से बुरी बातें बोलता है। और ख़ुदा पर इल्ज़ाम लगाता है। लेकिन अय्यूब ने ऐसा ना किया। बल्कि सब्र के साथ इस सबको कमाल बर्दाश्त से सह लिया। और ख़ुदा की मर्ज़ी पर राज़ी रहा। इसलिए अय्यूब का सब्र हक़ीक़तन एक अजीब सब्र है। और वो साबिर कहलाने के लायक़ है। वो इन मुतज़क्किरा बाला तक्लीफ़ात को बर्दाश्त करते वक़्त यूं कहता है, “अगरचे मैं सादिक़ होता, तब भी उसे जवाब ना देता। बल्कि अपने अदालत करने वाले से मिन्नत करता।”
अय्यूब ने अपनी तक्लीफ़ और दुख के वक़्त जो बातें ज़बान से निकालीं। वो निहायत नसीहत-आमेज़ हैं। बाअज़ जगहों में उसने इन्सान की ज़िंदगी की कोताही पर ऐसे कलिमात कहे हैं कि जिनसे इस फ़ानी ज़िंदगी का नक़्शा खींच कर दिखला दिया है। और बाअज़ जगह रुहानी ज़िंदगी की बेश-क़ीमत नेअमतों का बयान करते-करते बहिश्त का उम्दा नक़्शा खींच कर दिखाया है। बाअज़ जगह ख़ुदा की अदालत का और बाअज़ जगह उस की रहमत का अजीब इज़्हार किया है। दुख की हालत में गोया उस का दिल बेपर्वाई से खुल गया। और उसने दिल की सदाक़त से हक़ बातों का इज़्हार किया। अय्यूब की हालत वो ना रही, बल्कि पेश्तर के मुवाफ़िक़ ख़ुदा ने उस को हर एक चीज़ से माला-माल किया। इतने ही लड़के लड़कीयां फिर उस के घर में पैदा हो गए। और उतना ही माल व अस्बाब।
अय्यूब की हालत का बदलना
बल्कि इस से भी ज़्यादा फिर हो गया। उस के सब्र का फल मीठा निकला। और इस तरह से ख़ुदा का बंदा अय्यूब आज़माईश में पूरा निकला। वो आज तक ख़ुदा के बंदों के लिए एक नमूना है ताकि वो भी उस की मानिंद सादिक़ और कामिल हों। और उस का सा सब्र सीखें। (बाक़ी आइन्दा)