उन्वान मुन्दरिजा बाला पढ़ कर कोई शख़्स ख़याल करेगा, कि ये किताब कौन सी होगी। किस मज़्हब की होगी। और क्या इस का मज़्मून होगा। नाज़रीन को मालूम हो, कि ये किताब ना किसी मज़्हब से इलाक़ा रखती है, और किसी बानी मज़्हब की तरफ़ से है। और ना इस के वर्क़ काग़ज़ के हैं। और ना वो शुमार में ही आ सकते हैं।
One Book
एक किताब
By
One Disciple
एक शागिर्द
Published in Nur-i-Afshan Oct 12, 1894
नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 12 अक्तूबर 1894 ई॰
उन्वान मुन्दरिजा बाला पढ़ कर कोई शख़्स ख़याल करेगा, कि ये किताब कौन सी होगी। किस मज़्हब की होगी। और क्या इस का मज़्मून होगा। नाज़रीन को मालूम हो, कि ये किताब ना किसी मज़्हब से इलाक़ा रखती है, और किसी बानी मज़्हब की तरफ़ से है। और ना इस के वर्क़ काग़ज़ के हैं। और ना वो शुमार में ही आ सकते हैं। बल्कि ये किताब दुनिया की तमाम किताबों से बड़ी और बेशुमार मज़ामीन से भरी हुई है। वो किताब ना तो अंग्रेज़ी ज़बान में है। और ना इब्रानी और अरबी या और किसी ज़बान में। बल्कि वो दुनिया की तमाम ज़बानों में तहरीर है। वो क़लम और स्याही से नहीं लिखी तो भी ऐसी ख़ोशख़त और सहल-उल-क़रा (पढ़ने में आसान) है कि ज़रा सा भी अक़्ल व होश वाला आदमी उस को पढ़ सकता है। शायद नाज़रीन में से बहुत इस किताब का नाम बता सकते हैं और इस से उम्दा नसहीत के सबक़ सीख चुके हैं। इस किताब का नाम नेचर है। यानी मौजूदात इस आलम मौजूदात की हर शैय एक सोच और फ़िक्र का मज़्मून है। एक एक शेय इस किताब नेचर का वर्क़ समझो, और अब शुमार करो, कि बेशुमार अन्वा व अक़्साम (तरह तरह) की अश्या जो हमारे चहार तरफ़ देखने में आती हैं ये उस के कितने वर्क़ हैं? इस किताब के तीन बड़े हिस्से हैं। या यूं कहो, कि ये किताब तीन फसलों पर मुनक़सिम (तक़्सीम) है।
फ़स्ल अव़्वल, में इस मौजूदात की वो ज़ी अक़्ल और अफ़्ज़ल मख़्लूक़ात है जिसको हैवानात कहते हैं। इस की दो किस्में हैं, अव़्वल, नातिक़ (बोलने वाला, साहिब-ए- अक़्ल) दोम, मुतलक़ (आज़ाद, बेक़ैद) अव़्वल क़िस्म में इन्सान हैं। और दोम में चौपाए चरिंदे, और परिंदे, और कीड़े मकोड़े वग़ैरह।
दूसरी फ़स्ल, में इस मौजूदात की वह रोईदगी (शादाबी) शामिल है। जिसको नबातात कहते हैं। इस में हर क़िस्म की सब्ज़ी, फल और फूल और घास और साग पात शामिल है जिससे ज़मीन का तख़्ता पुर रौनक और शानदार हो रहा है।
फ़स्ल सोइम, में धातें शामिल हैं यानी वो चीज़ें जो ज़मीन के अंदर कानों से दस्तयाब होती हैं। जिसमें ख़ुद ज़मीन और पहाड़ वग़ैरह भी शामिल हैं। इन तीनों फस्लों के बयान में इस किताब के बेशुमार वर्क़ भरते हुए अहले-इल्म के रूबरू उनके सोच और फ़िक्र के लिए हर वक़्त मौजूद हैं।
इस किताब का मुसन्निफ़ ख़ुदा है। और जिस तरह पर मुसन्निफ़ अपनी किताब में अपने ख़यालात और लियाक़त (क़ाबिलीयत) की खूबियां ज़ाहिर करता है। उसी तरह पर इस किताब नेचर का मुसन्निफ़ भी अपनी इस अजीब व ग़रीब सनअत (कारीगरी) के हर ज़र्रे में अपनी क़ुद्रत, अज़मत, जलाल और बुजु़र्गी और हिक्मत व दानाई को ज़ाहिर व आश्कारा करता है। इस आलम मौजूदात में से कोई शैय ले लो, और उस की साख़त और बनावट को देखो। अव़्वल तो इस की हिक्मत की तह तक पहुंचना ही मुश्किल है। और अगर ज़रा सा पता लग भी गया, तो भी कोई ना कोई अम्र हल तलब रह ही जाएगा। किसी आलिम ने एक शैय की बाबत बयान करते वक़्त कभी नहीं लिखा कि बस इस से बढ़कर और इस का बयान नहीं हो सकता। बल्कि एक से एक बढ़कर बयान करता है, और तो भी कुछ रह जाता है। क्योंकि ये किताब एक सबसे बड़े मुसन्निफ़ की तस्नीफ़ है। इसलिए ये बहुत दकी़क़ (गहिरी) और पुर मतलब और बेश-क़ीमत है। और इसके मुतालआ से ज़ी अक़्ल (अक़्ल रखने वाला) इन्सान को नसीहत और दानाई हासिल हो सकती है इस किताब के मुतालआ से इन्सान को बहुत सबक़ मिलते हैं। जिनमें से चंद एक का ज़िक्र करना नाज़रीन नूर-अफ़्शाँ के लिए ख़ाली अज़ फ़ायदा ना होगा।
किताब नेचर का पहला सबक़
आलम मौजूदात पर नज़र डालते ही पहला ख़याल जो ज़ी अक़्ल (अक़्ल रखने वाला) इन्सान के दिल में आता है वो एक ऐसे वजूद का ख़याल है, जो इस आलम का बनाने वाला, और क़ायम रखने वाला है और ये ख़याल आम है। अक़्वामे दुनिया के आलिम और फ़ाज़िल बाशिंदों से लेकर वहशियों के जाहिल और नाख़्वान्दा (ग़ैर पढ़े लिखे) फ़िर्क़ों तक ये ख़याल कम व बेश पाया जाता है। अगरचे इस ख़याल में आमेज़िश (मिलावट) कर के अपने ना फ़हम दिल (बेअक़्ल) और कोताह अंदेशी (कम अक़्ली) के सबब से बहुतों ने ग़लती की है। लेकिन ताहम ये ख़याल एक धुँदली रोशनी में दिखलाई देता है। और अगर बारीक बीन से मौजूदात के तीन बड़े हिस्सों की तमाम अश्या पर नज़र डाल कर ग़ौर किया जाये तो किसी सूरत से किसी को एक आला हस्ती से इन्कार करने का कोई सबब मालूम ना होगा। बनी-आदम के बनाने और उस के ऊपर एक तौर से आला ताक़त की कार्रवाई के ज़ाहिर होने से, जिसने हर एक को बतौर हाथ की उंगलीयों के दर्जा बदर्जा बना दिया। और ऐसा इंतिज़ाम और सिलसिला क़ायम और जारी कर दिया जो दुनिया के शुरू से बदस्तूर चला आता है। इस हस्ती का आला सबूत पाया जाता है। और उमूमन तमाम सनअत हम-आवाज़ हो कर एक सानेअ (कारीगर) की तरफ़ इशारा कर रही है। जिसकी हस्ती का इन्कार इन्सान जैसे ज़ी अक़्ल मख़्लूक़ से होना नहीं चाहिए। लेकिन अफ़्सोस, कि बावजूद इस के बाअज़ ना-आक़िबत-अँदेश (अंजाम पर ग़ौर ना करने वाला) और नादान लोग इस हस्ती का इन्कार करते, और बेहूदा बकवास कर के कहते हैं, कि इस दुनिया का कोई बनाने वाला नहीं। पर ये आपसे आप बन गई है। ऐसे लोग हक़ीक़तन अंधे हैं। और इस दुनिया पर उनका अदम वजूद बराबर (होना ना होना बराबर) है। बल्कि उनका पैदा होना ही अबस (बेकार) है। ऐसे लोगों ने किताब नेचर को मुतलक़ (बिल्कुल) नहीं पढ़ा। और इस दुनिया में आँखें बंद कर के रहते हैं। वो सच-मुच के अंधे हैं। क्योंकि देखते हुए नहीं देखते।
किताब नेचर का दूसरा सबक़
जमीअ (गिरोह) मौजूदात में एक इंतिज़ाम और क़ायदा पाया जाता है। और वो क़ायदा मुस्तक़िल और मज़्बूत है। इस क़ायदे में एक का हिस्र (इन्हिसार होना) दूसरे पर है। अगरचे हर एक शेय अपने में बहुत उम्दा और बेनुक़्स है। ताहम इस का ताल्लुक़ ज़रूर दूसरी शेय से बना हुआ होगा। जिसके बग़ैर इस का मुफ़ीद होना मुम्किन है। और इस ताल्लुक़ का सिलसिला उमूमन हर एक शेय का बिलमुक़ाबिल दूसरी शेय के है। मसलन आस्मान बिल-मुक़ाबिल ज़मीन के, सूरज बिलमुक़ाबिल चांद के, वग़ैरह-वग़ैरह ज़मीन का हिस्र (इन्हिसार होना) बहुत कुछ आस्मान के साथ है। बहुत कुछ मदद इस को उस से मिलती है, जिसके बग़ैर इस का काम चलना मुश्किल बल्कि नामुम्किन है। ऐसा ही चांद सूरज से मदद पाता है। और मौजूदात की एक एक चीज़ को ग़ौर से देखो तो मालूम होगा, कि एक शेय दूसरी शेय को मदद का हाथ देती है। और बज़ात-ए-ख़ुद कोई शेय ऐसी नहीं जो बिला किसी दूसरी की इमदाद के क़ायम और बरक़रार रह सके। एक का मदार ज़रूर दूसरे पर है। और कोई काम बग़ैर वसीले के अंजाम नहीं पाता हर एक काम में एक वसीला पाया जाता है। इस से दूसरा सबक़ साफ़ तौर से हमको ये मिलता है, कि बनी-आदम की नजात के भारी काम के लिए भी एक वसीले की ज़रूरत है। और बग़ैर वसीले के नजात का होना ना-मुम्किन है। वो वसीला ख़ुदावंद येसू मसीह है जिसके नाम के सिवा और कोई दूसरा नाम बख़्शा नहीं गया, कि जिससे कोई नजात पाए। अफ़्सोस कि बाअज़ कोताह अंदेश (कम-अक़्ल) इस ख़याल में भूले हुए बैठे हैं कि कोई वसीला नहीं। अगर आदमी बचेगा, तो सिर्फ अपने ही नेक कामों से बचेगा। ये सरासर ख़ामख़याली है। क्योंकि जिस हाल में कि अपने नेक आमाल ही नहीं, तो उनसे बचाओ क्योंकर होगा? ये तो एक साफ़ बात है। इस में कोई पेचीदगी नहीं, कि जब कि एक शख़्स के पास एक चीज़ नहीं है जिसकी उस को ज़रूरत है, तो वो सिवा इस के कि दूसरे के पास जा कर मांगे और पाए। किस तरह पा सकता है? इन्जील मुक़द्दस में साफ़ और सरीह (वाज़ेह) तौर से इसी लिए फ़रमाया गया है, कि तुम्हारे पास नहीं है, माँगो तो तुमको दिया जाएगा। ढूंढ़ो तो तुम पाओगे। और खटखटाओ तो तुम्हारे वास्ते खोला जाएगा। पस अब जो मांगता है सो पाता है। और जो नहीं मांगता बिल्कुल महरूम और तही-दस्त (खाली हाथ) रहेगा नेचर का मालिक जो बड़ा दाना और मेहरबान भी है। हर सूरत से चाहता है, कि बनी-आदम इस बात को बख़ूबी जानें, और समझें। कि बज़ात-ए-ख़ुद वो कुछ नहीं कर सकते। बल्कि इस बात की बड़ी ज़रूरत है, कि वो इस ही पर मुन्हसिर रहें। और जो वसीला और तरीक़ उसने ठहराया है, जिसको वो हरगिज़ तोड़ नहीं सकते। शुक्रगुज़ारी के साथ इस को क़ुबूल व मंज़ूर कर लें। क्योंकि सिर्फ इसी से नजात हासिल हो सकती है और बस।