ये कलिमात नजात-ए-आयात मसीह ख़ुदावंद ने इस क़ाबिल यादगार शाम को, जब कि वो अपने बारह शागिर्दों के साथ रस्म फ़सह अदा करता था फ़रमाए। जो उस की कफ़्फ़ारा आमेज़ मौत पर साफ़ व सरीह (वाज़ेह) दलालत (दलील देना) करते हैं। और किसी शरह व तफ़्सीर के मुहताज नहीं हैं। पौलुस रसूल ने इसी माजरे की निस्बत कुरिन्थुस की मसीही कलीसिया को
My Blood
मेरा लहू
By
One Disciple
एक शागिर्द
Published in Nur-i-Afshan Oct 19, 1894
नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 19 अक्तूबर 1894 ई॰
ये मेरा लहू है। यानी नए अहद का लहू, जो बहुतों के गुनाहों की माफ़ी के लिए बहाया जाता है। मत्ती 26:28
ये कलिमात नजात-ए-आयात मसीह ख़ुदावंद ने इस क़ाबिल यादगार शाम को, जब कि वो अपने बारह शागिर्दों के साथ रस्म फ़सह अदा करता था फ़रमाए। जो उस की कफ़्फ़ारा आमेज़ मौत पर साफ़ व सरीह (वाज़ेह) दलालत (दलील देना) करते हैं। और किसी शरह व तफ़्सीर के मुहताज नहीं हैं। पौलुस रसूल ने इसी माजरे की निस्बत कुरिन्थुस की मसीही कलीसिया को अपने ख़त में यूं लिखा है, कि “मैंने ये बात ख़ुदावंद से पाई, और तुम्हें भी सौंपी, कि ख़ुदावंद येसू ने जिस रात कि पकड़वाया गया रोटी ली, और शुक्र कर के तोड़ी। और कहा कि लो, खाओ, ये मेरा बदन है, जो तुम्हारे लिए तोड़ा जाता है। तुम मेरी यादगारी के लिए ये किया करो। और इसी तरह उसने खाने के बाद पियाला भी लिया। और खा कर कहा कि ये पियाला वो नया अहद है, जो मेरे लहू से है। जब जब तुम पीओ मेरी यादगारी के लिए यूं करो। क्योंकि जब जब तुम तुम ये रोटी खाते, और ये पियाला पीते हो। तुम ख़ुदावंद की मौत को, जब तक कि वो आए जताते रहते हो। (1 कुरिन्थियों 11:23 से 26 तक) पुराना अहद और नया अहद कुतुब मुक़द्दसा के मशहूर व मारूफ़ मुहावरात से हैं। और अहले-किताब इन हर दो उहूद (अहद की जमा) मज़्कूर से बख़ूबी तमाम वाक़िफ़ हैं। लेकिन ये निहायत क़ाबिल-ए-ग़ौर अम्र है। कि ये दोनों अहद जो ख़ुदा और इन्सान के दर्मियान क़ायम व मुक़र्रर किए गए। इनकी उस्तिवारी व मज़बूती के मह्ज़र (हाज़िर होने की जगह) पर लहू से मुहर की गई। चुनान्चे जिस वक़्त मूसा कोह-ए-सिना पर से इलाही अहकाम व हिदायात ले उतरा, और ख़ुदावंद की सारी बातों और अदालतों का बयान इस्राईली लोगों से किया। और उन्होंने मुत्तफ़िक़-उल-लफ़्ज़ (अल्फ़ाज़ पर मुत्तफ़िक़ होना) जवाब दिया, कि जो कुछ ख़ुदावंद ने फ़रमाया है हम करेंगे, तो मूसा ने ज़बीहे ख़ुदावंद के लिए ज़ब्ह किए, और लहू लेकर लोगों पर छिड़का, और कहा, ये लहू उस अहद का है, जो कि ख़ुदावंद ने इन बातों की बाबत तुम्हारे साथ बाँधा है। इसी वाक़िये का ज़िक्र पौलुस रसूल ने यूं किया है, कि जब मूसा ने तमाम क़ौम को शरीअत का हर एक हुक्म कह सुनाया, तब बछड़ों और बकरों का लहू पानी और लाल ऊन ज़ोफ़ा (एक क़िस्म का पौदा) के साथ लेकर इस किताब (अहदनामा) पर और सारे लोगों पर छिड़क कर कहा, कि ये उस अहद का लहू हो, जिसका हुक्म-ए-ख़ुदा ने तुम्हें दिया है। (इब्रानियों 9:19, 20) और अगरचे पुराना अहद बकरों और बछड़ों के लहू के साथ क़ायम किया गया था। क्योंकि वो ख़ुदा के बेऐब बर्रे का निशान व अलामत थे। और उनके लहू और इस के लहू में साया और ऐन, तरीक़त व हक़ीक़त, पर अमेसरी नोट (वाअदा की तहरीर) और ज़र नक़द (नक़द रुपया) की मुनासबत थी। ताहम उस अहद के मोमिनीन की नजात और माफ़ी गुनाहों के लिए वो एक इलाही मुक़र्रर कर्दा ज़रीया उस वक़्त तक बना रहा, जब कि यूहन्ना इस्तिबाग़ी ने क़ौम इस्राईल को मुख़ातिब कर के साफ़ अल्फ़ाज़ में ज़बीह मौऊद (क़ुर्बान होने वाला) को दिखला कर कह दिया, कि “ख़ुदा का बर्रा जो जहान का गुनाह उठाए जाता है।” (यूहन्ना 1:29) और जब पुराना अहद ख़त्म, और नया अहद, जिनको बतरीक़ ऊला अहद शरीअत, और अहद फ़ज़्ल कह सकते हैं। शुरू हुआ, तो अम्बिया-ए-साबक़ीन (पहले आने वाले नबी) की वो नबुव्वतें जो इस अह्दे-जदीद की निस्बत मर्क़ूम थीं पूरी हो गईं। यर्मियाह नबी ने मसीह से 606 बरस पहले की निस्बत यूं पैशन गोई की थी, कि “देख वो दिन आते हैं ख़ुदावंद कहता है कि मैं इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने के साथ नया अहद बांधूंगा। उस अहद के मुवाफ़िक़ जो मैंने उनके बाप दादों से किया जिस दिन मैंने इनकी की दस्तगीरी की, ताकि ज़मीन-ए-मिस्र से उन्हें निकाल लाऊँ और उन्हों ने मेरे इस अहद को तोड़ा और मैंने उन्हें तर्क कर दिया ख़ुदावंद कहता है, बल्कि ये वो अहद है जो मैं इस्राईल के घराने से करूँगा। इन दिनों के बाद ख़ुदावंद फ़रमाता है, मैं अपनी शरीअत को उनके अंदर रखूँगा। और उनके दिल पर उसे लिखूँगा। और मैं उनका ख़ुदा हूँगा। और वो मेरे लोग होंगे और वो फिर अपने अपने पड़ोसी और अपने अपने भाई को ये कह के ना सिखाएँगे कि ख़ुदावंद को पहचानो क्योंकि छोटे से बड़े तक वो सब मुझे जानेंगे। ख़ुदावंद कहता है कि मैं उनकी बदकारी को बख़्श दूंगा। और उनके गुनाह को याद ना करूँगा। (यर्मियाह 31:31 से 34 तक) और हिज़्क़ीएल नबी ने मसीह से 587 बरस क़ब्ल रूह के इल्हाम से यूं लिखा कि :-
“मैं उनके साथ सलामती का अहद बाँधूंगा। सो वो उनके साथ अबदी अहद होगा। और मैं उन्हें बसाऊँगा। और उन्हें अफ़ज़श बख्शूंगा। और उनके दर्मियान अपने मुक़द्दस को हमेशा तक क़ायम रखूँगा। मेरा ख़ेमा भी उनके साथ होगा। हाँ मैं उनका ख़ुदा हूँगा। और वो मेरे लोग होंगे।” (हिज़्क़ीएल 38:36, 37)
पस वो इब्ने-अल्लाह (मसीह) बसूरत इब्ने आदम ज़ाहिर हुआ जो इस नए अहद फ़ज़्ल व नजात का दर्मियानी था। और जिसने अपने ज़हूर पुर नूर से क़रीब एक हज़ार बरस पहले दाऊद नबी की मार्फ़त इल्हाम से यूं कलमबंद कराया था, कि “ज़बीहा और हद्या को तू ने नहीं चाहा। तू ने मेरे कान खोले। सोख़्तनी, क़ुर्बानी, और ख़ता की क़ुर्बानी का तू तालिब नहीं। तब मैंने कहा, देख मैं आता हूँ। किताब के दफ़्तर में मेरे हक़ में लिखा है, “ऐ मेरे ख़ुदा मैं तेरी मर्ज़ी बजा लाने पर ख़ुश हूँ।” (ज़बूर 40:6,7) उसने शरीअते इलाही को जिसे आदम ने तोड़ डाला। और उस की उदूली कर के उस को बेइज़्ज़त कर दिया था। कामिल इन्सानियत इख़्तियार कर के कामिल पूरा किया। और उस के ऐसा करने से इलाही शरीअत को वो इज़्ज़त व शर्फ हासिल हुआ। जो आदम अव़्वल के पूरा करने से भी उस को कभी हासिल ना हो सकता। और यही नहीं, कि उसने आदम के बदले आदम बन कर इलाही शरीअत को पूरा किया हो और बस। बल्कि आदम के क़सूर व उदूल हुक्मी इलाही (ख़ुदा के हुक्म को ना मानना) के लिए अपने बेशक़ीमत लहू को कफ़्फ़ारे में गुज़राना, ताकि वो कामिल माफ़ी हासिल कर के ख़ुदा-ए-आदिल व क़ुद्दूस के साथ सुलह और रजामंदी हासिल करे। पस वो बनी-आदम जो इस नए अहद फ़ज़्ल में शामिल हो कर अपने गुनाहों की माफ़ी हासिल करना चाहते हैं। इस सादिक़ कामिल के इस कलाम-ए-सदाक़त अल-तियाम पर ईमान लाते, और नजात व हयात-ए-अबदी को ना बतौर मज़ व अमल बल्कि बतौर इनाम व इकराम हासिल करते हैं।
“ये मेरा लहू है। यानी नए अहद का लहू। जो बहुतों के गुनाहों की माफ़ी के लिए बहाया जाता है” पौलुस रसूल इस हक़ीक़त की निस्बत इब्रानियों की याद-दहानी और तवज्जोह के लिए यूं लिखता है, जब मसीह आने वाली नेअमतों का सरदार काहिन हो आया, तो बुज़ुर्ग तर और कामिल तर खे़मे की राह से, जो हाथों का बना नहीं। यानी इस ख़ल्क़त (दुनिया) का नहीं। ना बकरों ना बछड़ों का लहू लेकर। बल्कि अपना ही लहू लेकर पाक तरीन मकान में एक-बार दाख़िल हुआ, कि उसने हमारे लिए हमेशा की ख़लासी हासिल की। क्योंकि अगर बैलों और बकरों का लहू। और कलूर (गाय) की राख जब नापाकों पर छिड़ की जाये, बदन की सफ़ाई की बाबत उनको पाक कर सकती है। तो कितना ज़्यादा मसीह का लहू जिसने बेऐब हो कर अबदी रूह के वसीले अपने आपको ख़ुदा के सामने क़ुर्बानी गुज़राना। तुम्हारे दिलों को मुर्दा कामों से पाक करेगा। ताकि तुम ज़िंदा ख़ुदा की इबादत करो। (इब्रानियों 9:11 से 14 तक) ये मख़लिसी-ए-अज़ीम जो ईमानदार को इस बेशक़ीमत लहू के बाइस हासिल होती पतरस उस का यूं बयान करता है, “तुम जानते हो, कि वो ख़लासी जो तुमने पाई उन बेहूदा दस्तूरों से जो तुम्हारे बाप दादों की तरफ़ से चले आए थे। सो फ़ानी चीज़ों, यानी सोने रूपये के सबब नहीं बल्कि मसीह के बेशक़ीमत लहू के सबब हुई। जो बेदाग़ और बेऐब बर्रे की मानिंद है। जो दुनिया की पैदाइश से पेश्तर (पहले) मुक़र्रर हुआ था। लेकिन इस आख़िरी ज़माने में तुम्हारे लिए ज़ाहिर हुआ। जो उस के सबब ख़ुदा पर ईमान लाए। जिसने उस को ममुर्दों में से जिलाया, और जलाल बख़्शा ताकि तुम्हारा ईमान और भरोसा ख़ुदा पर होए। (1 पतरस 1:8 से 21 तक)