इन आयतों में एक ही मज़्मून है। यानी अपना इन्कार करना। अय्यूब की इब्तिदाई हालत और शैतान के एतराज़ से ज़ाहिर होता है कि बसा औक़ात ख़ुदा से हर क़िस्म की दुनियावी बरकतों को हासिल करते हुए दीनदार की दीन-दारी वो दर्जा नहीं रखती, जो तक्लीफ़ और मुसीबत में वक़अत (क़द्र, हैसियत) पाती है। हाँ सोना सोना तो है मगर आग में तापाया जा कर कुंदन बनता है।

Job Chapter 42
अय्यूब 42
By
Kidarnath
कैदार-नाथ
Published in Nur-i-Afshan Jan 11, 1894
नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 11 जनवरी 1894 ई॰
बिल-इत्तिफ़ाक़ मूसा की किताब तौरेत से क़दीम तर कोई किताब दुनिया में पाई नहीं जाती। लेकिन ये अजीब बात है कि अय्यूब की किताब इस से भी ज़्यादा क़दीम है। एक निहायत मशहूर मुनज्जम डाक्टर हलीज़ साहब ने अय्यूब 9:9, 38:31,32 के मुताबिक़ हिसाब कर के बताया है कि अय्यूब की किताब क़ब्ल अज़ मसीह 2130 और अब्राहम से 184 बरस पेश्तर तस्नीफ़ हुई। लेकिन अक्सरों का गुमान है कि अय्यूब की किताब को मूसा ने उस वक़्त तस्नीफ़ किया। जब कि वो मिस्र से भाग कर मिद्यान में औक़ात-ए-बसरी करता था। बहर-ए-हाल इस का तौरेत से क़दीम होना दोनों सूरतों में ज़ाहिर है। हमारी सनद की आयतें इसी किताब के 42 बाब में मुन्दरज हैं। चूँकि आदमी की बा-तबेअ (फ़ित्रत के लिहाज़ से) ये ख़ासीयत है कि वो क़दीम से क़दीम किताब का पढ़ना और उस पर ग़ौर करना चाहता है। और गुज़रे ज़मानों के हालात का मौजूदा हालत से मुक़ाबला कर के दर्याफ़्त करना चाहता है कि ज़माने के रोज़ाना इन्क़िलाब ने क़दीम बात की आज क्या हालत पैदा कर दी है। इसी तरह मज़्हबी बातों में जब ऐसा सिलसिला हाथ आ जाता है। तो नाज़रीन के दिल पर कैसी तासीर पड़ती है। ईसाई मज़्हब की ताअलीमात का यही हाल है वो एक ज़ंजीर है। जो मुख़्तलिफ़ ज़मानों में मुख़्तलिफ़ कारीगरों के हाथ से बनाई गई और जिस में 66 कड़ियाँ हैं। मगर जब उन की यकसानियत पर ग़ौर किया जाता है तो साफ़ मालूम होता है, कि दर-हक़ीक़त इन 66 कड़ीयों का बनाने वाला एक ही लोहार है। जब ये हाल है तो हम देखें कि इस पुरानी ताअलीम से आज हमारे वास्ते क्या फ़ायदा हासिल होता है। और ख़ुदा जो अगले ज़मानों में नबियों के वसीले बाप दादों से बार-बार और ख़ासकर अय्यूब से बगोले और गर्द बाद में कलाम करता रहा। इस आख़िरी ज़माने में बेटे के वसीले हमसे क्या बोलता है।
इन आयतों में एक ही मज़्मून है। यानी अपना इन्कार करना। अय्यूब की इब्तिदाई हालत और शैतान के एतराज़ से ज़ाहिर होता है कि बसा औक़ात ख़ुदा से हर क़िस्म की दुनियावी बरकतों को हासिल करते हुए दीनदार की दीन-दारी वो दर्जा नहीं रखती, जो तक्लीफ़ और मुसीबत में वक़अत (क़द्र, हैसियत) पाती है। हाँ सोना सोना तो है मगर आग में तापाया जा कर कुंदन बनता है। और यही एक कसौटी है जिस पर हम ईमान के सोने को कस (परख) कर देख सकते हैं। किताब के आख़िरी हिस्से से ज़ाहिर होता है कि ख़ुदा को भी यही मंज़ूर था, कि अय्यूब की आज़माईश हो। सच्च है कि वो जो अपने ही फ़र्ज़न्द को रूह के वसीले ब्याबान में आज़माने को ले जाता है। वो अय्यूब को कब बग़ैर आज़माऐ हुए छोड़ देता। मत्ती 4:1 जब हरे दरख़्त के साथ ऐसा करते हैं तो सूखे के साथ क्या ना किया जाएगा। लूक़ा 23:31 क्योंकि ख़ुदा के हुज़ूर किसी की तरफ़-दारी नहीं होती। रोमीयों 2:11 लेकिन शैतान की आज़माईश की ग़र्ज़ हलाकत और बर्बादी है। मगर ख़ुदा की ग़र्ज़ आज़माईश में दीनदार की रुहानी तरक़्क़ी और बरकतों का सबब है। अय्यूब के इस इक़रार कि मैंने तेरी ख़बर कानों से सुनी थी। पर अब मेरी आँखें तुझे देखती हैं। मालूम होता है कि अगरचे वो कामिल सादिक़ ख़ुदातरस था। तो भी उस में एक चीज़ की कमी थी जैसा हमारे ख़ुदावंद ने उस दौलतमंद से फ़रमाया कि तो भी तुझमें एक चीज़ बाक़ी है। जा और जो कुछ तेरा हो बेच डाल। और ग़रीबों को दे। मर्क़ुस 10:21 और वो भी चीज़ थी कि जब उस ने किसी ना किसी सूरत से ख़ुदा को आँखों से देखा तो इक़रार किया कि मैं अपने ही से बेज़ार हूँ। अगरचे हम जानते हैं कि ख़ुदा को किसी ने कभी ना देखा। यूहन्ना 1:18 पर तो भी इब्रानियों 10:2 और यूहन्ना 1:18 और यशूअ 5:14 के मुक़ाबले से वाज़ेह होता है कि बाइबल में जहां कहीं ख़ुदा के ज़हूर का बयान है वहां हमारे ख़ुदावंद येसू मसीह से मुराद है। और उस का देखना ख़ुदा का देखना है। जैसा कि उसने आप ही फ़रमाया कि जिसने मुझे देखा है उस ने बाप को देखा है। यूहन्ना 14:9 और ख़ुद अय्यूब ही उस ख़ुदा की बाबत जिसके आइंदा देखने की भी उम्मीद रखता है। एक ऐसा लक़ब इस्तिमाल करता है कि हमको कुछ शुब्हा नहीं रहता कि वो मसीह ही है। वो कहता है क्योंकि मुझको यक़ीन है कि मेरा फ़िद्या देने वाला ज़िंदा है। और वो रोज़ आख़िर ज़मीन पर उठ खड़ा होगा। और हर चंद मेरी पोस्त (जिल्द) के बाद मेरा जिस्म क्रम ख़ूर्दा (बोसीदा) होगा। लेकिन मैं अपने गोश्त में से ख़ुदा को देखूँगा। अय्यूब 19-26:25 साथ ही उस के हमको याद रखना है कि मसीही ख़ुद इंकारी और ग़ैर-क़ौम की ख़ुद इंकारी में फ़र्क़ है। हिंदू मज़्हब का वेदांती फ़िर्क़ा (ज़ात-ए-इलाही पर बह्स करने वाला) इस बात पर बहुत ज़ोर देता है कि हम कुछ नहीं और ख़ल्क़त कुछ नहीं। जो कुछ है सो ख़ुदा है इसी बेहूदा ख़याल से हमा ओसती (हर चीज़ ख़ुदा है) की तारीकी ने हमारे हिंदू भाईयों को अंधेरे में डाल दिया है। चाहीए कि हम इस तारीकी से दूर रहें और बाइबल की सच्ची ख़ुद इंकारी का सबक़ सीखें। वहां इस से बेहतर ताअलीम हमको ये मिलती है, कि हमारी हस्ती तो क़ायम रहती है और हमारे हवास-ए-ख़मसा (पाँच हवास) गवाही देते हैं कि हम मौजूद हैं मगर साफ़ ज़ाहिर होता है कि जो कुछ अच्छा हो सकता या अच्छा कहा जा सकता वो हमसे नहीं बल्कि ख़ुदा से है। जैसा रसूल फ़रमाता है कि “मसीह के साथ सलीब पर खींचा गया लेकिन ज़िंदा हूँ पर तो भी मैं नहीं बल्कि मसीह मुझमें ज़िंदा है।” ग़लतियों 2:20 ग़र्ज़ कि इंजीली ताअलीम सच्ची ख़ूद इंकारी सिखाती है। आप जानते हैं कि ख़ुदा की बाबत हमने और और लोगों ने बहुत कुछ सुना और सुनते हैं। दुनिया के मुअल्लिम यही करते रहे और करते हैं यहां तक कि लोग सुनते सुनते सुन हो गए। और नतीजा ये हुआ कि अपनी ख़ूबीयों को देखते देखते ख़ूदी ने यहां तक लोगों के दिलों में घर कर लिया कि ख़ुदा कोसों दूर हो गया और तमाम इन्सान उस ऊंट की मानिंद शुत्र बे मुहार (बेलगाम ऊंट) हो गए। जो अपने आपको तमाम मौजूदात से ऊंचा और बुलंद समझता है। लेकिन पहाड़ के नीचे जा कर उसे मालूम होता है कि मैं तो बिल्कुल छोटा और नाटा हूँ। इसी तरह घमंडी आदमी जब रूह की मदद से ख़ुदा के पहाड़ तले आकर साफ़ जानता है कि मुझमें यानी मेरे जिस्म में कोई अच्छी चीज़ नहीं बस्ती। रोमीयों 7:18 और क्या रोज़ाना तजुर्बा नहीं बता देता कि सब के सब गुनाह के तले दबे हैं। “कोई रास्तबाज़ नहीं एक भी नहीं। कोई समझने वाला नहीं, कोई ख़ुदा का तालिब नहीं। सब के सब गुमराह हैं, सब के सब निकम्मे हैं, कोई नेकोकार नहीं एक भी नहीं।” जब ये हाल हो तो क्या अय्यूब के दोस्तों की मानिंद ख़ुदा हमसे नहीं कहता कि अपने लिए सोख़्तनी क़ुर्बानी गुज़रानो। पर ख़ुदा का शुक्र है कि ख़ुदा ने अपना बर्रा भेज दिया जो जहान का गुनाह उठा ले जाता है। आओ आज हम उसे अपना कफ़्फ़ारा समझ कर ख़ुदा के हुज़ूर गुनाहों की माफ़ी हासिल करें। और देखें कि ख़ुद इंकारी में कौन कौन सी बातें शामिल हैं। क्योंकि ये अम्र इसलिए ज़रूरी है कि ख़ुदावंद मसीह ने साफ़ लफ़्ज़ों में फ़रमाया कि जो कोई मेरे पीछे आना चाहे चाहिए कि वो अपने से इन्कार करे। मर्क़ुस 9:34
1. ज़ात से इन्कार। बहुतेरे मसीही ख़ासकर इन्जील के ख़ादिम भी कोई कोई इस फंदे में फँसते हैं वो ग़ैर क़ौमों से कहते कि ज़ात पात कुछ नहीं। मगर आप ही ग़ैर क़ौमों की मानिंद अपने को ऊंची ज़ात और दूसरों को नीच ज़ात समझ कर बहुतेरों के वास्ते ठोकर का सबब हैं चाहिए कि हम इस से इन्कार करें।
2. ख़ानदान से इन्कार। ये भी एक ख़ुदा से दूरी और कमाल मग़रूरी का बाइस है कि हम तो आला ख़ानदान से ताल्लुक़ रखते लेकिन नासरत से कोई अच्छी चीज़ नहीं निकल सकती है इस से भी इन्कार करना चाहिए।
3. दुनिया के ऐश व इशरत से इन्कार। जब मसीह ने साफ़ फ़र्मा दिया कि इन्जील और मेरे वास्ते हर तरह के दुख-दर्द में मुब्तला होना ज़रुरी है। तो क्या हम ख़याल कर सकते हैं कि वो जो रात-दिन दुनियावी ऐश व इशरत में पड़ कर इन्जील और मसीह की सलीब से कोसों भागता है। ख़ुदावंद का शागिर्द या मुनाद है? नहीं। पस ऐसे आराम से भी हमको इन्कार …….. करना चाहिए।
4. नेक कामों से इन्कार। इस से ये मुराद नहीं कि हम नेक काम ना करें। जिस हाल में कि हम मसीह में इसी लिए सर-ए-नौ पैदा हुई कि नेकी करें लेकिन ग़र्ज़ ये है कि उन कामों को नेक समझ कर अपने आपको नेक ना जानें। क्योंकि हमारे ख़ुदावंद का फ़र्मान है कि नेक कोई नहीं मगर एक यानी ख़ुदा। पस ऐसी नेकी से भी इन्कार करना ज़रूर है।
हासिल कलाम। आज के वाज़ से हमको कई बातें मालूम हुईं
1. ईमानदार की ज़िंदगी जो इस दुनिया में बसर होती है आज़माईश है।
2. दीनदारी जो दौलतमंदी में है वो मुसीबत और तंगी में रहे तो दीनदारी है वर्ना मक्कारी।
3. ख़ुदा जब दीनदारों को आज़माईश में डालता है तो उन को ज़्यादा रुतबा और दौलत भी इनायत करता है।
4. अगर कोई ईमानदार तक्लीफ़ में मुब्तला हो जाये तो हमसे ज़्यादा गुनेहगार नहीं साबित होता।
5. जब तक ख़ुदा को देखते नहीं तब तक अपना इन्कार नहीं हो सकता।