ये मज़्मून इस सबब से तहरीर किया गया है कि जब बाज़ारों में वाज़ किया जाता है तो अक्सर सामईन (सुनने वालों) ने ये एतराज़ किया है, कि अजी ईसाईयों के वास्ते तो हज़रत ईसा ने अपनी जान दे दी। कफ़्फ़ारा हो गए। पस अब ये जो जी चाहे सो करें। चंद रोज़ हुए कि एक साहब ने जिनकी रुहानी आँखों में शायद मोतिया हो रहा था।
The kingdom of heaven
आस्मान की बादशाहत (मत्ती 7:21)
By
John Emmanuel
जान इम्मानुएल
Published in Nur-i-Afshan October 4, 1895
नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 4 अक्तूबर 1895 ई॰
मक़्सद तहरीर मज़्मून
ये मज़्मून इस सबब से तहरीर किया गया है कि जब बाज़ारों में वाज़ किया जाता है तो अक्सर सामईन (सुनने वालों) ने ये एतराज़ किया है, कि अजी ईसाईयों के वास्ते तो हज़रत ईसा ने अपनी जान दे दी। कफ़्फ़ारा हो गए। पस अब ये जो जी चाहे सो करें। चंद रोज़ हुए कि एक साहब ने जिनकी रुहानी आँखों में शायद मोतिया हो रहा था। अपने लब हाय क़हर बार से यही रतूबत छांटी। अब चूँकि हमारा अख़्बार सदाक़त आसार मनावां व मुबश्शरां मसीही की तरफ़ से डायरेक्टर है यानी अख़्बार फ़र्हत आसार अफ़शा-ए-अनवार मौसूम ब नूर-अफ़्शां, हर हफ़्ता चहारदांग बर्र-ए-आज़म एशीया में मिस्ल आफ़्ताब आलमताब (सूरज की तरह दुनिया को रोशन करने वाला) दवां (भागना, दौड़ना) है। शहर शहर गली गली कूचा कूचा इस का नक़्क़ारा बज रहा (ऐलान होना) है। इस के सपुर्द, ये पुड़ीया सुरमे की, की जाती है ताकि मए इन अनवार-ए-रुहानी के जिनको लेकर ये हज़ारों रुहानी अँधों, चंदाओं, कानों और मोतिया और बग़लगनद (बग़ल की बू जो एक बीमारी है) वालों को बीना करता फिरता है। और सैंकड़ों इस की उम्र दारज़ी के दुआ गो हैं। बाअज़ इन अँधों पर इस को भी आज़माऐ।
शायद कि इस के हाथ से इस नुस्खे के वसीले भी सबको आराम हो जाये आमीन। क्योंकि इस के अक्सर मुरक्कबात-उल-क़ादिर, हकीम-उल-हकमा, शाहज़ादा इम्मानुएल के दारा-अल-शिफ़ा हामराह से लिए गए हैं। शाहज़ादा इम्मानुएल हकीम हाज़िक़ का इश्तिहार रुहानी अँधों के वास्ते ये है। मैं जहां में नूर हो कर आया हूँ ताकि जो कोई मुझ पर ईमान लाए अंधेरे में ना रहे। जो साहिबान मुतबर्रिक (पाक) और लासानी (बेमिस्ल) और ला-जवाब (जिसका जवाब न हो) किताब से जो बाइबल मुक़द्दस कहलाता है, जो कि फ़क़त अकेला और सच्चा कलाम ख़ुदावन्द करीम लातब्दील का है, ना कि अल्लाह माकीरीन का वो ख़ूब वाक़िफ़ हैं कि जब उम्मीद अम्बिया, ज़ात किबरिया (ख़ुदाए तआला का एक सिफ़ाती नाम) ख़ुदावन्द दो-जहाँ मालिके अर्ज़ व समा (ज़मीन व आस्मान का मालिक) सुल्तान शाहाँ नबी आख़िर उल्ज़मान मुनज्जी बनी-नूअ इन्सान इस दारेना पायदार में आफताब-ए-सदाक़त (सच्चाई का सूरज) हो कर जलवागर हुए। ताकि इस की ज़ुल्मत (अंधेरा) और तारीकी को और लश्कर कुफ़्फ़ार और शैतान उनके सरदार को। बरसरदार नाबकार कफ़्फ़ारा हो कर और पाँच ज़रब-ए-शदीद बराए निशान व अलामत आशिक़ सादिक़ लेकर। दाख़िल कुर्रा-ए-नार कर के, अपने बर्गज़ीदों ख़ूँ खरीदों को लूओ लोय आबदार, फ़र्ज़ंद-ए-परवरदिगार (ख़ुदा के बेटे) बल्कि एक उरूस ख़ुश अतवार, नेक किरदार, रश्क-ए-परी व हूर बना कर, आस्मान पर मान फ़िरदौस-ए-बरीं पर उठा ले। एक दफ़ाअ जब अपने हवारियान-ए-मुक़द्दस (जिन पर सिलसिला कश्फ़ वही, व इल्हाम रिसालत व नबुव्वत ता-अबद मौक़ूफ़ हुआ) साथ था। बहुत भीड़, जिनमें बहुत से ख़ूनी ज़ानी अय्यारों (फ़रेबी) का। जो उस के ख़ून-ए-मुक़द्दस के प्यासे थे भी मौजूद थे देखकर एक कोह वाला शिकवा पर चढ़ गए। और ऐसा मालूम होता है कि उनमें ऐसे अहमक़ (बेवक़ूफ़) भी थे कि ये तौरेत और नबियों की किताबों को मन्सूख़ (रद्द) करने आया है। इस मुक़ाम पर ख़ुदावन्द मसीह ने अपनी ज़बाने निजात व हयात व शिफ़ा बख़्श से वो नादिर व लासानी (नायाब व बेमिसाल) वाज़ फ़रमाया। जो अबद तक बर्गज़ीदों (चुने हुए) की नजात के वास्ते काफ़ी व वाफ़ी है। इस में उन्होंने नासिख़ (कातिब, मिटाने वाला) और मन्सूख़ ख़ुदा वालों से यूं फ़रमाया कि ये गुमान मत करो कि मैं तौरेत या नबियों की किताबों को मन्सूख़ (रद्द) करने आया हूँ। मैं मन्सूख़ करने नहीं बल्कि पूरी करने आया हूँ। ग़र्ज़ ईसाई होने से शरीअत मन्सूख़ नहीं होती और ना उदूल (इन्कार) बल्कि कामिल (मुकम्मल) होती है। अब बादब मलमतस (अदब से इल्तिमास) करना हूँ कि नाज़रीन पर तमकीन ब नज़र-ए-इनायत ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से बेदार (जागना, होशियार) हो कर तास्सुब (तरफ़-दारी) की रतूबत अपनी चश्म हाय इन्साफ़ बीन में से साफ़ कर के इन्जील मत्ती बाब 7:21, 23 को बग़ौर पढ़ें। और गोश-ए-होश (होशयारी) से इन आयात पर जो बतौर तश्रीह आयात मज़्कूर गोश हाय सदफ़ वार में गोश गुज़ार हैं मिस्ल लूलूए बे-बहा पिनहां (छिपे हुए मोती) कीजिए। और दरिया-ए-इन्साफ़ में ग़ोता-ज़न हो कर दर सदाक़त (सच्चाई का दरवाज़ा) को हासिल करें उम्मीद है कि साहिबान फ़हम व ज़का (समझदार, अक़्लमंद हज़रात) जो हर हक़ीक़त से बहरावर (ख़ूश क़िस्मत) हों लेकिन वो जिनके ख़ुदा ने उनके दिल पर मुहर कर दी है कि अंधे, बहरे, गूँगे रहें। और अज़ाब दर्द-नाक उनका हिस्सा उनके ख़ुदा ने मुक़र्रर किया है। उनके वास्ते सिवाए अफ़्सोस के चारा नहीं है।
पर हक़ीक़त शनासों को मालूम हो जाएगा, कि मसीही होना ये नहीं कि शरीअत से रिहा हो गए। और गुनाह की इजाज़त दुनिया में और हूर परस्ती जन्नत में जायज़ हो गई। बल्कि तबीयत नफ़्सानी, रुहानी हो जाती, और मसीह में हो कर शरीअत ईमानदार की तबीयत बन जाती है।
आग़ाज़ मज़्मून, मत्ती 7:21 जो मुझसे ऐ ख़ुदावन्द ऐ ख़ुदावन्द कहते हैं उन में से हर एक आस्मान की बादशाही में दाख़िल ना होगा मगर वही जो मेरे आस्मानी बाप की मर्ज़ी पर चलता है।
कलाम में यूं लिखा है कि बग़ैर रूह-उल-क़ुद्स की मदद के कोई ख़ुदावन्द मसीह को ख़ुदावन्द नहीं कह सकता है। पस साफ़ ज़ाहिर है कि ख़ुदावन्द मसीह का ये फ़र्मान उमूमन तमाम बनी-आदम के वास्ते जो ज़बानी या लकड़ी के दानों के वसीले उस के नाम को बेफ़ाइदा लेते हैं। पर दिल दूर हैं। और ख़ुसूसुन अपने शागिर्दों को यानी उन देरीना शागिर्दों को जिनके नाम बर्रे की हयात की किताब में दर्ज हैं। और जिन्हों ने आख़िरी इल्हामी तस्नीफ़ात से जहान पर इल्हाम और वही के दफ़्तर को बंद किया। और सिलसिला नबुव्वत का ख़ुदावन्द मसीह की दूसरी आमद तक बंद हुआ सिवाए जहां के सरदार के यानी शैतान के जिसने शहवत और नफ़्स परस्ती और ख़ूने ग़लाम (लौंडे बाज़ी) को जायज़ फ़रमाया। जो उस के लासानी जमाल (बेमिसाल हुस्न) का जलवा (नज़ारा) हासिल कर रहे थे। ताकि यहूदाह जैसे बवालहूस शागिर्द (लालची, हरीस) और हर ज़माने के मौलवियान ग़ुलाम तास्सुब और पिंड तान हट धरम पर शाद पर वाज़ेह हो जाये, कि मसीहिय्यत का घर दूर है। साएँ का घर दूर है जैसे :-
लंबी खजूर चढ़े तो चाखे प्रेम रस। और गिरे तो चकना-चुर
इस आयत का मज़्मून, हर एक रियाकार ईसाई, और हर एक मुतलाशी (तलाश करने वाला) दीने इलाही यानी मसीही, और नौ मुरीदों, और मुतारज़ां को ताह अंदेश (कम फ़ह्म) एतराज़ करने वाले बद-केश (बेदीन) को हिला हिला कर जगाता, और ख़ौफ़नाक और दर्द-नाक आवाज़ से यूं फ़रमाता है, कि धोका मत खाओ। ख़ुदा ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता।
हरगिज़ हरगिज़ ग़फ़लत (लापरवाही) में मत रहो। और जल्दी से किसी को बहिश्त का वारिस मत जान लो। अगर तुम किसी को देखो कि उसने सरकारी डिग्रियां हासिल कर ली हैं कि वो फ़साहत (ख़ुश-कलामी) और बलाग़त (हसब-ए-मौक़ा गुफ़्तगु) में बाँग दहल ब चर्ख़-ए-बरीं रसीदा है। और उस की ज़ाहिर परस्ती पर बड़े बड़े ख़ुदा तरसों ने धोका खाया है, तो ये आयत यूं फ़रमाती है, ہر پیشہ گمان سرکہ خالیست شاید کہ پلنگ خفتہ باشد इस वक़्त मुनासिब है कि रसूल-ए-मक़्बूल पौलुस का ख़त अव़्वल कुरिन्थियों का बाब 13 का विर्द करें। वो फ़रमाता है अगर मैं आदमी या फ़रिश्तों की ज़बानें बोलूँ और मुहब्बत ना रखूं। तो मैं ठंठनाता पीतल या झनझनाती झांज हूँ और अगर मैं नबुव्वत करूँ और अगर मैं ग़ैब की सब बातें जानू। और सारे इल्म जानू और मेरा ईमान कामिल हो यहां तक कि मैं पहाड़ों को हटा दूं पर मुहब्बत ना रखूं तो मैं कुछ नहीं हूँ। और अगर मैं अपना सारा माल ख़ैरात में दूँ या अगर मैं अपना बदन दूँ, कि जलाया जाये पर मुहब्बत ना रखूं तो मुझे कुछ फ़ायदा नहीं। यही तमाम चीज़ें हैं जो इस दुनिया में दीनदारों और बेदीनों में इम्तियाज़ (फ़र्क़) होने नहीं देती हैं सो रसूल ने एक एक का नाम लेकर उनको बातिल (झूटा) ठहराया।
फिर वो ख़त रोमीयों को बाब 8:1, 10
में यूं फ़रमाता है, पस अब उन पर जो मसीह येसू में हैं और जिस्म के तौर पर नहीं बल्कि रूह के तौर पर चलते सज़ा का हुक्म नहीं। क्योंकि इस रूह-ए-ज़िन्दगी की शरीअत ने जो मसीह येसू में है। मुझे गुनाह और मौत की शरीअत से छुड़ाया। इसलिए कि जो शरीअत से जिस्म की कमज़ोरी के सबब ना हो सका सो ख़ुदा से हुआ, कि उसने अपने बेटे को गुनेहगार जिस्म की सूरत में गुनाह के सबब भेज कर गुनाह पर जिस्म में सज़ा का हुक्म किया। ताकि शरीअत की रास्ती हम में जो जिस्म के तौर पर नहीं बल्कि रूह के तौर पर चलते हैं पूरी हो। क्योंकि वो जो जिस्म के तौर पर हैं उनका मिज़ाज जिस्मानी है। पर वो जो रूह के तौर पर हैं उनका मिज़ाज रुहानी है। जिस्मानी मिज़ाज मौत है पर रुहानी मिज़ाज ज़िंदगानी और सलामती है। इसलिए कि जिस्मानी मिज़ाज ख़ुदा का दुश्मन है क्योंकि ख़ुदा की शरीअत के ताबे नहीं और ना हो सकता है और जो जिस्मानी हैं ख़ुदा को पसंद नहीं आ सकते।
इन आयात में रसूल साफ़ फ़रमाता है कि जिस्मानी मिज़ाज में और रुहानी मिज़ाज में बड़ी मुख़ालिफ़त है। वो यानी जिस्मानी मिज़ाज शरीअत के ताबे नहीं। वो ख़ुदा का दुश्मन है। वो मौत है। जिस्मानी मिज़ाज ख़ुदा की बादशाहत को देख भी नहीं सकता है। पर रूहानी मिज़ाज ज़िंदगानी और सलामती है। और वो ख़ुदावंद मसीह पर सच्चा ईमान लाने से हासिल होता है जब मसीही ख़ुदावन्द मसीह पर ईमान लाता है। अपनी बदियों से वाक़िफ़ और नादिम और पशेमान (शर्मिंदा) और पछताना हो कर तौबा करता तब ख़ुदावन्द मसीह की रूह उसे मिलती है यानी रूह ज़िंदगी।
वो ईमानदार में नई पैदाइश को शुरू करती है। वो ईमानदार को ख़ुदावन्द मसीह में पैवंद (जोड़ना, लगाना) करती है। वो ख़ुदावन्द मसीह में परवरिश पाता है वो नया मख़्लूक़ है वो मर्द-ए-नौ ज़ाद है। वो शरीअत से आज़ाद है। पर शरीअत की आज़ादी को जिस्म के लिए फ़ुर्सत नहीं जानता है। हाँ भाई मोअतरिज़ (एतराज़ करने वाला) अगर कोई मसीही, तुम्हारी मद्द-ए-नज़र हो, जो इस आज़ादगी को जिस्म के वास्ते फ़ुर्सत जानता हो। और अब तक जिस्म हराम की पैरवी करता है। और जराइम संगीन अब तक इस से सरज़द होते हैं, मैं और तुम नहीं बल्कि अगर सारी दुनिया इस से वाक़िफ़ नहीं। पर वो जिसकी आँख ने एकिन का गुनाह देखा, देखती है। वो कहता है कि वो शख़्स मलऊन (लानती) है। देखो ख़त इब्रानियों 10:26 क्योंकि अगर बाद इस के कि हमने सच्चाई की पहचान हासिल की है। जान-बूझ के गुनाह करें तो फिर गुनाहों के लिए कोई क़ुर्बानी बाक़ी नहीं। मगर अदालत का एक होलनाक इंतिज़ार और आतिश ग़ज़ब (ग़ज़ब की आग) जो मुख़ालिफ़ों को खाएगी बाक़ी है।
पर भाई मोअतरिज़ इन बातों से ठोकर ना खाना चाहिए क्या तुम नहीं जानते हो कि سلح دار خار ست بادشاہ گل शमादान के नीचे हमेशा अंधेरा होता है बादशाही बाग़ में। जंगली पौदे भी होते हैं। गेहूँ के साथ कड़वा दाना भी तो होता है ख़ुदावन्द का हुक्म है दोनों को साथ बढ़ने दो। दरोके वक़्त (फ़स्ल की कटाई) गेहूँ खलियान में। और कड़वा दाना भट्टी में। प्यारे बारे में एक मलऊन (लानती) था।
दोस्त ख़ुदावन्द ने हमको तुमको मुंसिफ़ नहीं ठहराया इन्साफ़ करना उसी का काम है वो ख़ुद फ़रमाता है। उस दिन बहुतेरे मुझे कहेंगे ऐ ख़ुदावन्द, ऐ ख़ुदावन्द क्या हमने तेरे नाम से नबुव्वत नहीं की। और तेरे नाम से बद रूहों को नहीं निकाला। और तेरे नाम से बहुत सी करामात (मोअजिज़े) ज़ाहिर नहीं की उस वक़्त मैं उनसे साफ़ कहूँगा, कि मैं कभी तुमसे वाक़िफ़ ना था। ऐ बदकारो मेरे पास से दूर हो।
पस प्यारे, अब तुमको ख़ूब मालूम हुआ कि ईसा के कफ़्फ़ारे पर ईमान लाना। ये नहीं है ज़िंदगी-भर नफ़्सानियत में कटे ख़ूब दिल के अरमान निकाले और मरते दम कलिमा पढ़ा और जन्नत ले ली। रात-भर ख़ूब पी। सुबह हुई तो तौबा कर ली। रिंद के रिंद रहे जन्नत हाथ से ना दी। देखो मुक़ाम और कलाम इलाही के निहायत क़ाबिल-ए-ग़ौर हैं। देखो ख़त ग़लतीयों 5:19 और जिस्म के काम तो ज़ाहिर हैं यही, ज़िना, हरामकारी, नापाकी, शहवत, बुत-परस्ती, जादूगरी, दुश्मनीयां, कीज़ रश्क, ग़ज़ब, जुदाइयाँ, बिद्दतें (मज़्हब में नई बात निकालना) डाह, (दुश्मनी, हसद) ख़ून, मस्तियाँ, ओबाशीयाँ और जो काम इनकी मानिंद हैं। और इनकी बाबत मैं तुम्हें आगे से जताता हूँ जैसा मैंने उस वक़्त भी आगे से जताया, कि ऐसे काम करने वाले ख़ुदा की बादशाहत के वारिस ना होंगे।
अब मेरी मिन्नत आपसे ये है। आपके उस्ताद ने आपके वास्ते कफ़्फ़ारा दिया। क्या आप गुनाहों से छूट गए? क्या आपके दिल में आस्मानी तसल्ली है? क्या आपके उस्ताद ने कहीं फ़रमाया है, कि ऐ थके और बड़े बोझ के तले दबे हुओ मेरे पास आओ मैं तुम्हें आराम दूंगा। क्या उसने मौत को फ़त्ह किया है कि तुमको भी उठाएगा। क्या वो गुनाह से बरी (आज़ाद) था।
क्या तुम्हारे उस्ताद ने कभी गुनाह की माफ़ी नहीं मांगी। क्या उस का ताल्लुक़ और रिश्ता ख़ुदा से वही था। जो इन्जील येसू नासरी का बताती है। अगर है तो मुबारक हो। अगर नहीं तो रात बहुत गुज़र गई। आफ़्ताब सदाक़त (सच्चाई का सूरज) तुम पर तुलूअ हो चुका है। इस प्यारे की आवाज़ सुनो। अगरचे आज तक तुम उस के मुख़ालिफ़ रहे उस का ठट्ठा किया। उस के नाम पर कुफ़्र बका। उस के एलचियों को हंसी में उड़ाया ख़ैर ग़लती से किया जो कुछ किया। आज नजात का दिन है आज मक़बूलियत का अय्याम (दिन) है बख़्शिश का दरवाज़ा खुला है। वो कहता है दरवाज़ा मैं हूँ। कोई बग़ैर मेरे वसीले बाप के पास जा नहीं सकता। मैं सच्चे अंगूर का दरख़्त हूँ। जो मुझमें क़ायम रहता है वही बहुत मेवा लाता है। मैं ज़िंदा पानी हूँ जो मुझको पीता है कभी प्यासा ना होगा। मैं आस्मानी रोटी हूँ। जो मुझको खाता है कभी भूका ना होगा। और मैं जहां का नूर हूँ। जो मेरी पैरवी करता है अंधेरे में नहीं चलता है जो मेरे पास आता है मैं कभी उस को निकाल ना दूँगा। प्यारे रो-रो कर ख़ुदावन्द से दुआ मांग। इन्जील मुक़द्दस को ले। इस को खोल कर पढ़ दुआ पर दुआ कर ख़ुदावन्द ज़रूर तुझ पर फ़ज़्ल करेगा। सैंकड़ों हज़ारों शहीद और ज़िंदा उस के गवाह में जो तुम्हारे वास्ते दुआ-गो हैं मैं भी और हर एक मसीही नाज़रीन ऐसे किसी के वास्ते दुआ करे।