ऐ बोझ से दबे हुए

अगर कोई शख़्स हक़ का तालिब हो कर सवाल करे, कि किस तरह नजात पाऊँगा उस के लिए ये अच्छा और तसल्ली का जवाब है, कि अगर तू सच-मुच फ़ज़्ल का मुहताज और दिल के आराम और हयात-ए-अबदी का आर्ज़ूमंद है, तो जो तू चाहता है सो पा सकता है। मसीह की तरफ़ रुजू कर कि वो बचाने को दुनिया में आया और अपने

O Burdened ones

ऐ बोझ से दबे हुए

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One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan October 18, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 18 अक्तूबर 1895 ई॰

ऐ मेहनत उठाने वालो और बोझ से दबे हुए लोगो मेरे पास आओ। मैं तुम को आराम दूंगा। मत्ती 11 बाब 28 आयत

अगर कोई शख़्स हक़ का तालिब हो कर सवाल करे, कि किस तरह नजात पाऊँगा उस के लिए ये अच्छा और तसल्ली का जवाब है, कि अगर तू सच-मुच फ़ज़्ल का मुहताज और दिल के आराम और हयात-ए-अबदी का आर्ज़ूमंद है, तो जो तू चाहता है सो पा सकता है। मसीह की तरफ़ रुजू कर कि वो बचाने को दुनिया में आया और अपने कलाम के साबिक़-उल-ज़िक्र आयत में तुझे अपने पास बुलाता तुझसे मुहब्बत रखता और बहुत बहुत चाहता है कि तुझे बचाए और ख़ुदा से मिलाए सो हम इस वक़्त उस के फ़ज़्ल से इस मतलब का बयान करेंगे कि ख़ुदावन्द येसू मसीह हमें नजात देने का बहुत आर्ज़ूमंद है।

इस बड़ी बात के बयान करने में चाहिए कि सबसे पेश्तर उस पर नज़र करें जो इस नसीहत की आयतों में आदमीयों को अपने पास बुलाता और उन्हें आराम देने का वाअदा करता है वो कौन है येसू मसीह ही हयात का सूरज नजात का तारा सच्चाई का चशमा जिसे ख़ुदा ने हमारे लिए हिक्मत और रास्ती और पाकीज़गी ठहराया है। उसने हमारा सच्चा सरदार काहिन हो के अपना ही लहू बहाया और अपनी ही जान दी है ताकि गुनेहगारों के लिए ऐसा कफ़्फ़ारा जो ख़ुदा को मक़्बूल व मंज़ूर हो और हमेशा क़ायम रहे हासिल करे पस ये इस आस्मानी बादशाह से मुराद है जो अपने सब ईमानदार मोअतक़िदों (एतिक़ाद रखने वालों) को बादशाहत ज़ूल-जलाल और ताज लाज़वाल देगा। क्योंकि वो सब चीज़ों का मालिक और सब ख़ूबीयों का बानी और देने वाला है सुनो यह बड़ा बादशाह ये दौलतमंद मालिक ये करीम अल-रहमान ख़ुदावन्द लाचार ख़ाकसार आदमीयों के पास आया कि उन्हें अपने नज़्दीक करे क्योंकि बहुत चाहता है कि उन्हें बचाए और आस्मान का वारिस ठहराए।

सो वो यूं पुकार कर हमें बुलाता है कि इधर मेरे पास आओ उस की मीठी आवाज़ और करीम बुलाहट है वो बेशक हमारी बेहतरी चाहता और हमारी नजात का मुश्ताक़ (मुंतज़िर) है और गोया हाथ फैला कर इस का आर्ज़ूमंद है कि जिस तरह मुर्ग़ी अपने बच्चों को अपने परों तले जमा करती है उसी तरह हमें अपने फ़ज़्ल के साये में पनाह दे। जब मसीह ने पुकार के मज़्कूर बातें कहीं उस वक़्त बहुत बहुत और तरह-तरह के आदमी उस के आगे खड़े थे। उनमें से बाअज़ दौलत मंद बाअज़ ग़रीब कई बुज़ुर्ग कई हक़ीर थे। बल्कि फटे और मैले कपड़े पहने हुए आदमी भी हाज़िर थे। उन सबको पुकार कर कहा, ऐ सब लोगो मेरे पास आओ उसने इस्राईल की सब खोई हुई भेड़ों को अपने पास बुलाया कि उन्हें नजात दे हाँ जहां के सब बाशिंदों पर करम की नज़र कर के उन्हें बुलाया और आज तक बुलाता है और कहता है कि ऐ सब लोगो इधर मेरे कहने पर आओ फिर आइन्दा ज़माने के लोगों को जो आगे पैदा होंगे अपने दाइमी कलाम से पुकार के फ़रमाता है कि आओ सब मेरे पास आओ वो हरगिज़ किसी को अपने फ़ज़्ल से महरूम नहीं करना बल्कि चाहता है कि सब के सब ख़्वाह दौलतमंद ख़्वाह कंगाल चाहे इज़्ज़तदार हों चाहे ख़ाकसार उस के शरीक और शामिल हों। हाँ उनको भी जो सबसे ग़रीब सबसे हक़ीर व फ़क़ीर हैं। अपने पास बुलाता है और उनमें से जो आते हैं कभी किसी को नामंज़ूर नहीं करता बल्कि उन्हें ख़ुशी से क़ुबूल करता है। तुझे भी ऐ पढ़ने वाले बुलाता है। तू भी उसकी पसंद और उस का महबूब व मक़्बूल है किस मर्तबे और दर्जे का आदमी तू क्यों ना हो अगर मसीह की आवाज़ सुन के और मान के उस के पास आए मक़्बूल होगा क्योंकि ख़ुदावन्द उनको जो थके-माँदे और बोझ से दबे हैं बुलाता और वाअदा करता है कि जो कोई आजिज़ हो के मेरे पास आए मैं उसे हरगिज़ नहीं निकालूँगा। यूहन्ना 6 बाब 37 आयत।

फिर येसू मसीह थके-माँदे और बोझ से दबे लोगों का ज़िक्र इस लिए करता और उन्हें पुकारता है, कि इन लफ़्ज़ों से हमारी तक़्लीफों और ग़मों और दुख दर्दों को ख़्वाह जिस्मानी हों ख़्वाह रुहानी ज़ाहिर करे और शौक़ दिलाए कि सच्चे और हक़ीक़ी ग़रीब परवर यानी ख़ुदा-ए-परवरदिगार के पास आएं और उस की मदद के मुंतज़िर रहें और जो हम लोग अपनी अपनी हालत को ग़ौर से सोचें तो यक़ीनन ये मालूम होता है कि सभों के ऊपर किसी तरह का बोझ है कोई नहीं कह सकता कि मुझ पर बोझ नहीं बल्कि हर एक आदमी अपना ख़ास बूझ रखता है हर एक को किसी ना किसी तरह का ग़म या रंज या दुख है और जो बोझ सबसे भारी और सख़्त है सो गुनाह का है जिससे हम सब लोग दबे हैं। मगर तू ऐ दोस्त इस भारी बात से वाक़िफ़ ना हो या वाक़िफ़ हो, चाहे तू मत कह कि मुझ पर गुनाह का बोझ नहीं बल्कि अपने ख़यालों और बातों और कामों को परख कि उनकी हक़ीक़त को ख़ूब सोच और उस आदिल मुंसिफ़ के हुज़ूर जो दिल के अंदर देखता और पोशीदा (छिपी हुई) बातों से भी वाक़िफ़ है दर्याफ़्त कर कि तू लड़काई (लड़कपन) से अब तक क्या-क्या काम अमल में लाया। तो तू जान जाएगा कि गुनाह का बोझ तुझ पर भी लदा और तुझे भी दबा देता है। और अगरचे शायद इस का दबाना तुझे मालूम ना होए तो भी तुझे दबा लेता है। क्योंकि तेरी नाख़ुशी और बे-आरामी तेरा वो ख़ौफ़ जो कभी-कभी तेरे दिल में मालूम होता है। कहाँ और किस सबब से है क्या ये उस बोझ का जो तेरी गर्दन पर लदा है निशान नहीं। यक़ीनन इसी से है अगर तू माने या ना माने पर गुनाह का बोझ तुझ पर हो के तुझे यहां तक दबाता है, कि तू अपनी आँखें ख़ुदा और आस्मान की तरफ़ नहीं उठा सकता। इलावा इस के और तरह की दुश्वारियां (मुश्किलात) और तकलीफ़ें और आफ़तें हमें कभी ज़ाहिर कभी बातिन (पोशीदा, अंदरूनी हिस्सा) में दबाती हैं। यानी इस दुनिया के सब रोक-टोक, दुख-दर्द वग़ैरह जिनका हर एक आदमजा़द हिस्सेदार है। ग़र्ज़ इस दुनिया की सारी ज़िंदगी एक बोझ है जो सिर्फ मरते वक़्त उतारा जाता है। पस ज़ाहिर और बातिन में ज़ेर-ए-बार (बोझ के नीचे) और बारिदार (फलदार, साहब-ए-औलाद) हो कर आदमी ज़िंदगी गुज़ारते और लाचार (मुहताज, मजबूर) हो कर क़ब्र की तरफ़ जो ख़ुदा की दरगाह और अदालत का दरवाज़ा है चले जाते हैं।

फिर ख़ुदावन्द रहीम हो कर इसलिए इन सब कम्बख़्त मुसाफ़िरों को बुला बुला कर कहता है, कि ऐ सब लोगो जो थके-माँदे और ज़ेर-ए-बार (बोझ के नीचे) हो। मेरे पास आओ कि मैं तुम्हें ताज़ा-दम और आराम बख्शूंगा। और इसलिए ये रुहानी खूबियां और नेअमतें उन्हें दिखलाता और पेश करता है, कि उनके देखने और चखने से उन लाचारों (मजबूरों) के दिलों में मसीह के पास आने का शौक़ पैदा हो। सो ऐ दोस्त कान धर और सुन ले कि तू भी जिसका दिल बे आरामी और ग़म से भरा है। और तू भी जिस पर शरीअत की लानत और सज़ा का हुक्म है। और तू भी जो अपने राहों और तरीक़ों में अबस (फ़ुज़ूल) मदद और रिहाई ढूंढ कर दुनियावी चीज़ों से तसल्ली नहीं पा सकता। और तू भी जिसको उस की ज़िंदगी की आंधीयां और मुख़ालिफ़ों और शैतान के मुक़ाबलों में पनाह नहीं मिलती। और ख़ासकर तू भी जिसके गुनाह का बोझ भारी मालूम देता बुलाया जाता है। हाँ तुम सबको ऐ गुनेहगार और लाचार आदमीयों ख़ुदावन्द येसू मसीह बुलाता तुम्हें ताज़ा करना और चेन देना चाहता है। जैसे कि ओस आस्मान से और मीना बादल से सूखी ज़मीन पर पढ़के उसे तर व ताज़ा करते। और जिस तरह मीठे पानी का कंडावर हरे दरख़्तों का झुण्ड थके और मांदे मुसाफ़िर को ताज़गी देते हैं। वैसे ही रुहानी रिहाई और जानी ताज़गी और दिली आराम येसू मसीह से है।

वो हमें अपनी सलीब और लहू और दुख-दर्द और जाँ-कनी जिनसे हम लोगों के लिए सुलह और ज़िंदगी और ख़ुशी हासिल हुई दिखाता और गोया यूं कहते हुए तसल्ली देता है, कि मैंने तुम्हारे क़र्ज़ अदा किए तुम्हारी सज़ा अपने ज़िम्मे ली सो तुम ख़ुदा से मिल गए और उस के ले पालक बेटे और बेटियां हुए। और अगर मुझ पर सच्चा ईमान लाओ और भरोसा रखो तो तुमको ना दुनिया में ना आख़िरत में ख़ौफ़ व ख़तरा होगा। मैं तरह आदमी का बोझ हल्का, जुआ मुलायम, दिल ताज़ा और ख़ातिरजमा होती है। और ऐसा शख़्स कह सकता है कि मैं तसल्ली का मुहताज था पर तू ने ऐ ख़ुदावन्द मेरी जान फिर ला कर हलाकत से बचाई। क्योंकि तू ने मेरे सारे गुनाह अपनी नज़र से दूर किए ख़ुदा तू मेरी रोशनी और मख़लिसी (नजात) है। पस किस से डरूं वो मेरी ज़िंदगी की क़ुव्वत है किस से ख़ौफ़ करूँ।