मसीह और अम्बिया साबिक़ीन

नूरअफ़्शां मत्बूआ 3, सितंबर में मुसन्निफ़ तक़्दीस-उल-अम्बिया की इस ग़लतफ़हमी पर, कि ख़ुदावंद मसीह ने अम्बिया-ए-साबक़ीन को (नऊज़-बिल्लाह) चोर और डाकू बतलाया। हमने लिखा था कि “हम समझते थे कि ज़माने की इल्मी तरक़्क़ी के साथ मुसलमानों के मज़्हबी ख़यालात भी पच्चीस तीस साल गुज़श्ता की बनिस्बत अब किसी क़द्र मुबद्दल हो गए होंगे। लेकिन

Christ and the prophets who came before Him

मसीह और अम्बिया साबिक़ीन

By

One Disciple

एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan Sep 24, 1891

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 24 सितंबर 1891 ई॰

नूरअफ़्शां मत्बूआ 3, सितंबर में मुसन्निफ़ तक़्दीस-उल-अम्बिया की इस ग़लतफ़हमी पर, कि ख़ुदावंद मसीह ने अम्बिया-ए-साबक़ीन को (नऊज़-बिल्लाह) चोर और डाकू बतलाया। हमने लिखा था कि “हम समझते थे कि ज़माने की इल्मी तरक़्क़ी के साथ मुसलमानों के मज़्हबी ख़यालात भी पच्चीस तीस साल गुज़श्ता की बनिस्बत अब किसी क़द्र मुबद्दल हो गए होंगे। लेकिन वक़्त ब-वक़्त उनके रिसालों और अख़बारों में ऐसी बातें पढ़ने में आती हैं कि ब-अफ़सोस वही ढाक के तीन पत्ते वाली याद आ जाती है। “जिस पर एक मुस्लिम भाई… ने इलाहाबाद से एक रिसाला मौसूम बह “इब्ताल सलीब” बड़े फ़ख़्र के साथ हमारे पास भेजा है। जिसको हमने बनज़र सरसरी देखा जिससे हमारा ख़याल यक़ीन से बदल गया कि हमारे इस़्माईली भाई बेशक बदस्तूर गिर्दाब (चक्कर) तास्सुब व मुख़ालफ़त हक़ में मुब्तला हैं। और “बाअज़ उनमें हैं जो मसीह की इन्जील उलट देने चाहते हैं।” पतरस रसूल ने बेशक ऐसे ही लोगों के हक़ में लिखा है कि “वो जो जाहिल और बे-क़याम हैं उनके (यानी मुक़द्दस नविश्तों) माअनों को दूसरी किताबों के मज़्मूनों की तरह अपनी हलाकत के लिए फेरते हैं।”

इब्ताल सलीब पर बहुत लोगों ने ख़ामा-फ़रसाई (लिखना) और क़िस्मत आज़माई रिसाला मज़्कूर के मुसन्निफ़ से पेशतर कर ली है। लेकिन चूँकि ये “माजरा कोने में नहीं हुआ था।” और कुतुबे मुक़द्दसा में इस का बयान ऐसा मुफ़स्सिल और मुशर्रेह लिखा गया है कि किसी ख़िलाफ़ नवीस की जद्दो जहद इस को झुटलाने में उन्नीस सौ बरस से आज तक पेश ना आई। पस आजकल के ऐसे नीम मुल्लाओं की लचर (गंदी) और फ़ुज़ूल तस्नीफ़ात इस मुस्तहकम व मोअतबर तवारीख़ी माजरे की सेहत व सदाक़त में ज़रा भर भी ख़लल-अंदाज़ और मोअस्सर नहीं हो सकतीं। इस क़िस्म के रिसालों और किताबों के जवाब लिखने में मसीही मुबश्शिरों और मुसन्निफ़ों को हरगिज़ अपना क़ीमती वक़्त सर्फ़ करना लाज़िम नहीं है।