He was raised on the third day
वह तीसरे दिन मुर्दों में से फिर जी उठा
By
Rev,K.C.Chatterji
पादरी के॰ सी॰ चटर्जी,
Published in Nur-i-Afshan May 30, 1889
मत्बूआ 30, मई 1889 ई॰v
बाअज़-बाअज़ मसीह कलीसिया में चंद रोज़ हुए इस्टर की नमाज़ हुई और अब भी इतवार की नमाज़ में इस्टर के ऊपर इशारा होता है ये नमाज़ मसीह के मुर्दों में से जी उठने के यादगार की नमाज़ है। सो मैं नूर-अफ़शाँ के पढ़ने वालों की ख़िदमत में चंद बातें मसीह के जी उठने की बाबत पेश करता हूँ।
इस माजरा का बयाँ चारों इंजील में पाया जाता है। मत्ती रसूल बयान करता है कि ख़ुदावंद यसूअ मसीह मुर्दों में से जी उठ कर पहले ईमानदार औरतों को दिखाई दिया और कहा तुम सब ख़ुश हो। लूक़ा और यूहन्ना बयान करता है कि जब वो जी उठने के बाद ईमानदार मर्दों से पहले मिला तब फ़रमाया तुम पर सलाम इस फ़र्क़ का सबब एक मशहूर मसीही के मुअल्लिम यूं बयान करता है :-
“औरतों का ईमान मज़्बूत था वो सिर्फ़ मसीह के दुख और मौत के सबब से ग़मगीं थीं। और इस वास्ते ख़ुदावंद ने उन को कहा तुम सब ख़ुश हो। मर्दों का ईमान सुत हो गया था वो सोचते थे कि मसीह बनी-इस्राईल को मख़लिसी बख़्शेगा इस वास्ते उस के मर जाने से ना उम्मीद हो कर हैरान होते थे उनका दिल शक व शुब्हा से भर गया था इस वास्ते मसीह ने उन को देखकर कहा तुम्हें सलाम यानी तुम्हारे दिल में सलामती हो मत घबराओ।”
शक शुब्हा को दिल से दूर करो। देखो मैं जीता हूँ ये कलाम सलामती का हमारे लिए भी ज़रूर है। नेचर के क़ाईदों की पाएदारी पर एतिक़ाद इस क़द्र बढ़ गया है और मुख़ालिफ़-ए-दीन मसीही के एतराज़ मसीह के जी उठने पर इस क़द्र ज़ाहिर हो रहा है कि ख़्वाम-ख़्वाह उस की निस्बत दिल में घबराहट पैदा होती है। और उस को मान लेना निहायत मुश्किल मालूम होता है। सलामती तब ही दिल में पैदा हो सकती है। जब उस के जी उठने पर पूरा यक़ीन हो और ये यक़ीन तब ही पूरा हो सकता है जब हम पूरा एतिक़ाद मुंदरजा ज़ैल बातों पर रखें।
अव्वल मसीह की अजीब शख़्सियत पर दोम इन्सान की गवाही की मोअ्तबरी पर।
पहला मसीह के जी उठने के माजरे पर यक़ीन करने के लिए ज़रूरी है कि हम मसीह की अजीब शख़्सियत पर यक़ीन करें कि मसीह की शख़्सियत अजीब थी वो ऐसा एक शख़्स था जिसमें इन्सानियत और उलूहियत इकट्ठी सुकूनत करती थीं वो बेगुनाह इन्सान था और अपने काम-काज से और गुफ़्तगु से और इक़रार से अपनी बेगुनाही ज़ाहिर की उस में उलूहियत का कमाल मौजूद था। उस ने अपने काम और कलाम से ख़ुदा के बराबर होना ज़ाहिर किया। सिवाए उस के हमको याद रखना चाहीए कि मसीह का जी उठना ऐसे एक आदमी का जी उठना है जिसकी मौत फ़ौक़ुल-आदत है उस ने कांटों का ताज पहन लिया लेकिन वो ताज दुनिया का क़हर था जो उस के सर पर रखा गया। वो सलीब पर लटक गया ताकि वो ज़मीन और आस्मान के बीच खड़ा हो वो दो चोरों के बीच में रखा गया ताकि आख़िरी अदालत का निशान हो। उस दिन उस के दाहिने हाथ पर भीड़ होंगी और बाएं हाथ पर बकरीयां जैसे कि ताइब और बे ताइब चोर खड़े किए गए थे आस्मान की हवा उस के मत्थे पर लगी और उस ने आस्मान का दरवाज़ा मग़फ़ूर गुनाहगारों के लिए खोला।
मरना उस के लिए एक फ़ौक़ुल-आदत काम था मशहूद दहरयारोहो ने ठट्ठे से मसीह की मौत की बाबत यूं बयान किया है, कि उस की मौत ख़ुदा की मौत है। अगरचे ये बात उस ने ठट्ठे से कही है तो भी ईसाईयों का अक़ीदा पहले तीन इंजीलों में बयान हुआ है कि मसीह मरने के वक़्त ऊंची आवाज़ से चिल्लाया उस को सुनकर रोमी सूबेदार ने कहा कि ये शख़्स सच-मुच ख़ुदा का बेटा है। इलावा बरीं याद रखना चाहीए कि मसीह ने अपनी जान ख़ुशी से दी उस ने ख़ुद फ़रमाया मैं अपनी जान भेड़ों के लिए देता हूँ मुझे इख़्तियार है कि मैं उसे दे दूं और मुझे इख़्तियार है कि मैं फिर उसे उठा लूं। ये तो सच है कि लोगों ने उसे पकड़ा और रस्सी से बाँधा लेकिन वो बंधा हुआ ज़्यादा अपनी मर्ज़ी और ख़ुशी से था। ख़ुदा की मर्ज़ी और दुनिया की मुहब्बत की डोर उस पर आमादा मज़्बूत थी और उन्हीं के सबब से जैसे भेड़ अपने बाल कतरने वालों के सामने चुप-चाप रहती है इस तरह वो अपने पकड़ने और सताने वालों के सामने चुप-चाप रहा उस की अक़्ल और समझ आख़िर तक क़ायम रही वह मरते वक़्त मग़्लूब ना हुआ बल्कि मौत पर ग़ालिब रहा ये भी याद रखना मुनासिब है कि मसीह का जी उठना पैशन गोइयों की कलाम के मुताबिक़ था। पोलुस रसूल कहता है कि वो गाढ़ा गया, और तीसरे दिन किताबों के मुवाफ़िक़ जी उठा फिर दूसरी जगह इस वाअदे को जो बाप दादों से किया गया था ख़ुदा ने हमारे लिए जो उन की औलाद हैं बिल्कुल पूरा किया कि यसूअ को फिर जिलाया अगर हम ग़ौर से नबुव्वत की किताबें पढ़ें तो अक्सर हम ये देखेंगे कि यसूअ की मौत और दुख का बयान है और बाद उस का जलाल का जिसमें वह जी उठ कर दाख़िल हुआ। पतरस का बयान कि उस को ख़ुदा ने मौत के बंद खोल कर उठाया क्योंकि मुम्किन ना था कि वो उस के क़ब्ज़े में रहे।
दूसरा मसीह के जी उठने का यक़ीन मोअतबर गवाही पर मौक़ूफ़ है। पेशतर कि हम इस गवाही की तरफ़ मुतवज्जा हों हम उन ख़यालों का बयान करेंगे जो मसीह के ज़िंदा होने और आस्मान के चढ़ जाने की बाबत मुम्किन है। पहला ये कि ख़ुदावंद यसूअ मसीह हक़ीक़त में नहीं मरा बल्कि जब सलीब पर उतारा गया था तो हालत ग़शी में था और उस के शागिर्दों ने मुर्दा समझ के यहूदीयों की रस्म के बमूजब उस के बदन पर निकोस बोएँ मलीं और उस को दफ़न किया बाअज़ लोग सोचते हैं कि इन खुशबुओं के मलने और ठंडी हुवा के लगने से जब शागिर्द उस को क़ब्र में रखकर चले गए तो उसी की बे-होशी जाती रही तब वो रफ़्ता-रफ़्ता क़ुव्वत हासिल कर के क़ब्र में से निकल आया और किसी पोशीदा मकान में जाकर छिपा रहा होगा कभी-कभी इस मकान से निकल कर चालीस रोज़ तक शागिर्दों पर ज़ाहिर होता रहा और बाद चालीस रोज़ के बिल्कुल ग़ायब हो गया और शागिर्दों को नज़र ना आया शागिर्द भी समझते रहे कि हमारा ख़ुदावंद जी उठा। आस्मान पर चला गया। इस ख़्याल की निस्बत मेरा जवाब ये है कि ये सिर्फ़ ख़याल ही है कि जिसका कुछ सबूत नहीं। इंजील नवीसों की शहादत के ख़िलाफ़ है कि वह सच-मुच मर गया था इस को क़ुबूल नहीं कर सकते सिवाए उस के ये ख़्याल मेरी नज़र में बिल्कुल नामुम्किन मालूम देता है क्योंकि मसीह ना सिर्फ मस्लूब किया गया था बल्कि भाले से उस का पहलू छेदा गया था। अगर वो ग़शी की हालत में हो कर क़ब्र में ज़िंदा हुआ तो निहायत कमज़ोर होगा। ये मुम्किन नहीं मालूम देता कि ऐसे भारी पत्थर को कि जिसकी निस्बत औरतें ख़्याल करती थीं कि इसे हमारे लिए कौन ढलकाएगा ख़ुद ढलकाकर निकल गया हो। पहरे वालों की आँख बचा कर भाग गया हो और भाग कर कहाँ गया इस ख़्याल के बमूजब शागिर्दों के पास नहीं गया अगर दुश्मनों के पास गया था तो मुम्किन नहीं मालूम देता कि उन्हों ने उस को छुपा रखा हुआ बीच-बीच में चालीस रोज़ तक उस को शागिर्दों पर ज़ाहिर किया हो और बाद उस को इस तरह छिपा लिया हो कि उस की कुछ ख़बर किसी ना मिली और ये सब कुछ इस नीयत से किया हो कि शागिर्दों को ये ख़्याल हो कि हमारा ख़ुदावंद जो मर गया था फिर जी उठा है बल्कि आस्मान पर चढ़ गया मेरी अक़्ल में ये ख़्याल मुहाल है और क़रीन-ए-क़ियास ये है कि अगर दुश्मनों के पास वो जाता तो गिरफ़्तार कर के फिर उसे सलीब पर दुबारा चढ़वाते।
सिवाए इस के ये ख़्याल अख़्लाक़ी क़ायदे से नामुम्किन नज़र आता है क्योंकि इस में मसीह के ज़िम्में में अव्वल दर्जे का दग़ा और फ़रेब समझा जाता है कि वो जब पत्थर ढलका कर अपने शागिर्दों के पास ना गया बल्कि किसी मकान में छिपा रहा। और वक़्तन-फ़-वक़्तन अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर होता रहा और बाद चालीस दिन किसी मकान में छिप गया। कि उन को नज़र ना आया और ये सब कुछ इस ख़्याल से करें कि शागिर्दों को फ़रेब देकर समझा दें कि मैं मुर्दों में से जी उठ कर आस्मान पर चढ़ गया। मेरी समझ में ऐसा काम मसीह के ज़िम्में लगाना निहायत नामुम्किन है ख़सूसुन जब हम सोचते हैं और उस की पिछली ज़िंदगी और ताअलीम पर नज़र डालते।
दूसरा ख़्याल ये हो सकता है कि मसीह के शागिर्दों ने उस की लाश को चूरा लिया और झूट से ये मशहूर कर दिया वो मुर्दों में से जी उठा है, बल्कि उस को चालीस दिन तक उन्हों ने वक़्त ब-वक़्त देखा है आख़िर को उन्हीं के सामने वो आस्मान पर चढ़ गया। ये ख़्याल ऐसा ही नामुम्किन है जैसा पहला क्योंकि मसीह की क़ब्र पर ना सिर्फ पत्थर रखा हुआ था बल्कि उस पर मुहर भी कर दी थी और फिर अपने सिपाहीयों को तैनात (मुक़र्रर) कर दिया था। रोमी सिपाहीयों का पहरा उस की निगहबानी कर रहा था मसीह के शागिर्द क़रीब तमाम के कमज़ोर कम हेसीयत और कमक़दर लोग थे वह यहूदीयों के ख़ौफ़ से मसीह के पास से भाग गए थे सिवाए पतरस, यूहन्ना और कई औरतों के और किसी का ज़िक्र उस की मौत के वक़्त नहीं मिलता ये बिल्कुल ना-मुम्किन मालूम देता है। कि ऐसे लोग उस की लाश चूराने के क़ाबिल हों ये बात भी हमारे क़ियास से बाहर है कि सारे शागिर्द मुत्तफ़िक़ हो कर इस झूट को बांध सकें। क्योंकि ये बयान हुआ है कि ग्यारह रसूलों ने उस को देखा और कई औरतों ने और एक मर्तबा जब वो आस्मान पर चढ़ गया बड़ी जमाअत शागिर्दों की वहां मौजूद थी। अख़्लाक़ी क़ायदे से भी ये ख़्याल मुहाल नज़र आता है। क्योंकि शागिर्दों की ख़ासकर रसूलों की ज़िंदगी और ताअलीम पर ग़ौर करने से बख़ूबी ज़ाहिर होता कि ये लोग सच्चे थे और सच्चाई के सिखाने वाले थे और अपनी कलाम और ताअलीम को सच्चाई के वास्ते बड़े दुख और तक्लीफ़ उठाई बल्कि अपनी जान तक भी दरेग़ ना की हम यक़ीन नहीं कर सकते ऐसे लोगों ने ये सब कुछ जान-बूझ कर किया कि उन के पैग़ाम की बुनियाद बिल्कुल झूटी है, उनका पैग़ाम सच्चा हो या झूटा लेकिन वो बेशक उसे सच्चा समझते थे।
बाअज़ लोगों ने नवीसों के बयान में फ़र्क़ और इख़्तिलाफ़ दिखलाया है अगर इख़्तिलाफ़ भी साबित हो तो उन के बयान की सच्चाई पर दाग़ नहीं लगा सकता सिर्फ उन के लफ़्ज़ी इल्हाम पर शक पैदा हो सकता है।
तीसरे ख़्याल को रोया का ख़्याल कहा जाता है और ये ख़्याल आजकल पहले दो ख़यालों से आलिमों के दर्मियान ज़्यादा मशहूर है। क्योंकि एक नामी और आलिम शख़्स रेनान साहब ने इस को दिलचस्प इबारत के साथ बयान किया है वो ख़्याल ये है कि :-
“गुडफ्राईडे के माजरे से मसीह के शागिर्द बहुत दिल-गीर और रंजीदा ख़ातिर हो गये थे यकायक उन में से एक औरत मर्यम मग्दिली जो पुर जोश और गर्म तबीयत की थी। अपने ख़्याल के बस में आकर चिल्ला उठी कि ख़ुदावंद जी उठा है। बिजली की मुवाफ़िक़ ये कलाम शागिर्दों की जमाअत में, फिर कई थी जमाअत उस के असर में आ गई और कहने लगी ख़ुदावंद जी उठा है चंद रोज़ बाद उनमें से एक ने कहा आओ हम गलील को जाएं वहां हमको ख़ुदावंद दिखलाई देगा। जब वो गलील में पहुंच गए और उस झील और उस मकान को देखा, जहां मसीह उन को मिलता था। और उन को ताअलीम देता था और मुहब्बत का कलाम कहता था। तब मसीह की सारी सरगुज़िश्त उन को ताज़ा हो गई और वो ख़्याल करने लगे कि हम ख़ुदावंद को देख रहे हैं। आख़िर को गलील के पहाड़ पर कई शागिर्द मसीह के इकट्ठे हो गए। हवा उस पहाड़ की निहायत लतीफ़ है और तरह-तरह के धोके से भरी हुई है। इस क़िस्म का एक धोका उस के सामने पेश हुआ। वो सोचने लगे कि मसीह की सूरत उन के सामने खड़ी है बल्कि आस्मान की तरफ़ उठ रही है उन्हों ने चिल्ला कर कहा कि ख़ुदावंद आस्मान पर चढ़ गया। और ख़ुदा के दहने हाथ जा बैठा।”
ये ख़्याल ऐसा ही ख़ाम है जैसे पहले दो ये इस्म-बा-मुसम्मा है। यानी रेनान साहब की रोया का नतीजा है क्योंकि इस तरह का रोया सिर्फ तब ही नज़र आता है जब आदमी सारे दिल से इस का मिस्तर और उम्मीदवार हो लेकिन हमको मालूम है कि मर्यम मग्दिली और औरतें जो उस के साथ जाती थीं इस रोया की उम्मीदवार नहीं थीं वो ख़ुशबू तैयार कर के मसीह की लाश पर मलने को गई थीं सिवाए उस के रोया एक तन्हा औरत या मर्द को नज़र आ सकता है। लेकिन इंजील नवीसों का बयान हम पढ़ते हैं कि मसीह कम से कम दस दफ़ाअ अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर हुआ। ना सिर्फ तन्हा आदमी को ग़म और अफ़्सोस की हालत में बल्कि एक दफ़ाअ वो दो शागिर्दों को नज़र आया जो अमाउस की बस्ती में जा रहे थे एक दफ़ाअ दस रसूलों फिर ग्यारह को फिर सात शागिर्दों को जब वो दरिया में मछली पकड़ रहे थे और पिछले दिन जब कि वो आस्मान पर सऊद कर गया पाँच सौ आदमी से ज़्यादा शागिर्दों को नज़र आया। इसलिए हम इस को रोया मंज़ूर नहीं कर सकते पर ये भी ग़ौर के लायक़ है कि ये नुमाइश ख्व़ाब के मुवाफ़िक़ नहीं था। मसीह ने अपने हाथ और पहलू शागिर्दों को दिखलाए उन्हों ने भूनी मछली का एक टुकड़ा और शहद का छत्ता उस को दिया उस ने लेकर उन के सामने खाया।
मसीह की नुमाइश बे-माअनी नहीं थीं जैसा उस की ज़िंदगी के सारे काम रुहानी मतलब से भरे हुए थे। इस तरह जी उठने के बाद जो कुछ किया वो भी नसीहत से भरा हुआ है। मसअला उस ने शागिर्दों के साथ दरिया-ए-गलील के किनारे पर रोटी खाई इस से ये ज़ाहिर है कि मेहनत तमाम हुई आस्मानी दरिया के किनारे पर आराम है। कामिल कलीसिया हमेशा की ज़याफ़त में शामिल होती है। इन नुमाइशों में मसीह ने जो कलाम कहा वो अभी तक शागिर्दों के दिलों में जागता है। वो ज़िंदा कलाम है रोशनी और क़ुव्वत से भरा हुआ जो अब तक मसीही मुल्कों में बल्कि कुल दुनिया पर असर कर रहा है। मर्यम मगदलेन के रूबरू मसीह ने रोटी नहीं खाई ना तोमा को पाक नविश्तों की ताअलीम दी जैसे उन शागिर्दों को दी जो अमाउस की बस्ती में जा रहे थे। तोमा की बेईमानी का सबब और था और अमाउस के जाने वालों के बेईमानी का बाइस और था। सिर्फ एक ही नुमाइश में मसीह ने मोअजिज़ा दिखलाया।
और मसीह आस्मान पर चढ़ गया
मरक़ुस की इंजील के सोलहवें बाब और उन्नीसवीं आयत में ये माजरा यूँ मर्क़ूम हुआ है कि ख़ुदावंद आस्मान पर उठाया गया। लूक़ा इस का ज़िक्र इंजील के 24 बाब 51 आयत में यूं करता है तब वो उन्हें वहां से बाहर बैत-अन्याह तक ले गया और अपने हाथ उठा कर उन्हें बरकत दी और ऐसा हुआ कि जब वो उन्हें बरकत दे रहा था उनसे जुदा हुआ और आस्मान पर उठाया गया। मसीह की सऊद का मुफ़स्सिल बयान आमाल के पहले बाब में मिलता है वहां मसीह के शागिर्दों के साथ पिछली गुफ़्तगु के बयान के बाद ये लिखा है। वो ये कह कर उनके देखते हुए ऊपर उठाया गया और बदली ने उसे उनकी नज़रों से छिपा लिया। और उस के जाते हुए जब वो आस्मान की तरफ़, तक रहे थे देखो दो मर्द सफ़ैद पोशाक पहने उनके पास खड़े थे और कहने लगे “ऐ गलीली मर्दों तुम क्यों खड़े आस्मान की तरफ़ देखते हो यही यसूअ जो तुम्हारे पास से आस्मान पर उठाया गया है जिस तरह तुमने उसे आस्मान की तरफ़ जाते देखा फिर आएगा।” इन बयानों से मुंदरजा ज़ैल मतलबों का सबूत है।
(1) मसीह का सऊद उस की कुल शख़्सियत का था यानी ख़ुदावंद यसूअ मसीह ख़ुदा-ए-मुजस्सम का ख़ुदा बेटा साफ़ हक़ीक़ी जिस्म और अक़्ली रूह के साथ आस्मान पर चढ़ गया।
(2) मसीह का सऊद अलानिया था शागिर्दों ने कुल माजरा देखा उन्होंने देखा कि मसीह ज़मीन से आहिस्ता-आहिस्ता ऊपर उठाया गया। ता वक़्त ये कि बदली ने उनकी नज़रों से छिपा लिया।
(3) मसीह का सऊद मकान की तब्दीली है यानी ज़मीन से आस्मान पर उठाया गया इस से मालूम देता है कि आस्मान पर मकान है ख़ल्क़त के कौन से हिस्से में ये मकान मौजूद है मैं बता नहीं सकता। लेकिन बाइबल की ताअलीम से साफ़ मालूम होता है कि ये मकान महदूद है। जहां ख़ुदा का हुज़ूर और जलाल खासतौर पर ज़ाहिर है। और जहां ख़ुदा के फ़रिश्ते जो ग़ैर महदूद नहीं हैं। और मुक़द्दसों की रूहें मौजूद हैं। हम इक़रार करते हैं कि बाइबल में लफ़्ज़ आस्मान और मअनी में भी मुस्तअमल हुआ है। मसलन सबसे नीचे का आस्मान जहां चिड़िया उड़ती बादल फिरते या जहां से पानी बरसता है पोलार के इस हिस्से को भी आस्मान कहा गया है। जिसमें सय्यारे और सितारे चमक रहे हैं। बाइबल में सय्यारों को आस्मानी फ़ौज कहा गया है। तीसरे आस्मान के मअनी वो रुहानी हालत है जिसमें ईमानदार, मसीह पर ईमान लाने के सबब से दाख़िल होते हैं इस मअने में लफ़्ज़ आस्मान ख़ुदा की बादशाहत का मुसावी है। इफ़िसियों के ख़त के दूसरे बाब की 6 आयत में यूं लिखा है “उसने हमको उस के साथ उठाया और आस्मानी मकानों पर बैठाया।” और फिलिप्पियों के तीसरे बाब की 20 आयत में बयान हुआ है, “हमारी ममलकत आस्मान पर है।” और सबसे पिछले मअनी जिस्मानी में बयान हुआ है कि मसीह आस्मान पर चढ़ गया। आस्मान उस जगह का नाम है जहां ख़ुदा बस्ता है। और जहां उस के फ़रिश्ते और मुक़द्दसों की अर्वाह इकट्ठी हैं जहां से ख़ुदावंद यसूअ मसीह आया था और फिर लौट गया है उसने अपने शागिर्दों को फ़रमाया मैं तुम्हारे लिए एक मकान तैयार करने के लिए जाता हूँ। यही मअनी इस लफ़्ज़ के हैं जब हम ख़ुदा को कहते हैं कि हमारा बाप जो आस्मान पर है या आस्मान ख़ुदा का तख़्त है उस की हैकल है उसके रहने की जगह है अगर मसीह के सऊद का बदन है तो ज़रूर उस के लिए एक महदूद जगह की हाजत है और जहां मसीह का बदन है वही ईसाईयों का आस्मान है।
लेकिन सारे ईसाई लोग सऊद की इस तशरीह को क़ुबूल नहीं करते। मसलन लूथरन कलीसिया समझते हैं कि मसीह का सऊद नक़ल-ए-मकान नहीं है। बल्कि तब्दीली हालत की है और इस सऊद में फ़र्क़ है। बाअज़ मसीही मुअल्लिमों ने उस का मुजस्सम हुआ और आस्मान पर चढ़ जाना यूं बयान किया है कि जब मसीह मुजस्सम हुआ तब उसने उस ख़ुदा की सूरत को जो अज़ल से रखता था उतार फेंका और अपने आपको महदूद बना कर इन्सान की शक्ल को इख़्तियार किया ये लोग सऊद की निस्बत यूं कहते हैं कि ज़रूर उस के वसीले से नक़ल-ए-मकान करके दुनिया से आस्मान में दाख़िल हुआ हम ये भी इक़रार करते हैं कि हमारा ख़ुदावंद इन्सानियत की हैसियत में सिर्फ एक ही जगह में मौजूद है। लेकिन उस की हस्ती की सूरत सिर्फ़ इन्सानी है ना कि ईलाही। मशहूर मुफ़स्सिर अब्रॉड साहब ने कहा कि,
“ख़ुदा का इकलौता बेटा इन्सानी रूह बना और अपने वास्ते मर्यम के शिकम में एक जिस्म पैदा किया और उसके शिकम से इन्सान पैदा हुआ इस इन्सानी ज़ात में दो हिस्से थे। पहले वो चीज़ें जो इन्सानियत के लिए ज़रूरी हैं यानी बदन (बग़ैर) उनके इन्सान इन्सान नहीं है। दूसरे वो चीज़ें जो इन्सान में आरिज़ी और मुतग़य्यर (बदला हुआ) हैं मसलन कमज़ोरी मौत और दुख में मुब्तला ये दूसरी ख़ुसूसीयत मसीह ने सऊद के वक़्त बिल्कुल उतार फेंकी और अब आस्मान में मौजूद है बहैसीयत जलाल वाली इन्सानियत के।”
वो कहते हैं कि मसीह ने हमेशा के लिए ख़ुदा की सूरत को उतार फेंका और इन्सान की सूरत इख़्तियार की और इसी इन्सान की सूरत में अब वह आस्मान पर है। और अपनी रूह के वसीले कलीसिया और दुनिया पर हुकूमत करता है मकान की निस्बत वो दुनिया से गैर-हाज़िर है लेकिन क़ुव्वत के वसीले से वो अपने लोगों के नज़्दीक और दर्मियान मौजूद है। मसीह की इन्सानियत की क़ुव्वत से हाज़िरी को हम मानते हैं लेकिन इस बात को नहीं मानते कि उसने ख़ुदा की सूरत को बिल्कुल उतार फेंका और इन्सानी रूह बना और हमेशा को इन्सानियत की हालत में रहेगा। अगर ये सच हो तो मसीह फ़क़त आदमी है और ख़ुदा नहीं। मसलन अगर एक जवान आदमी अपने आपको महदूद और छोटा करता हुआ लड़के की सूरत तक पहुंच जाये और इसी सूरत में हमेशा को क़ायम रहे तो लड़का ही समझा जाएगा ना कि जवान, इसी तरह अगर कोई आदमी अपनी अक़्ल खो बैठे और अक़्ल बे जाये तो वो बेअक़्ल ही कहलाएगा या हैवान बन जाये और फ़क़त हैवान की ताक़त और क़ुव्वत रखे तो उस को हैवान कहेंगे, ना इन्सान इसी तरह अगर ख़ुदा का बेटा इन्सान बन गया है और इन्सानियत में हमेशा को रहता है तो वो इन्सान है ना ख़ुदा।
इंजील के मुताबिक़ मसीह का सऊद एक ज़रूरी अम्र था।
(1) ज़रूर इस वास्ते था कि मसीह आस्मान से आया आस्मान उस का घर था और आस्मान उस की सुकूनत के लायक़ है। इसलिए जब तक ये दुनिया गुनाहों से पाक ना हो जाएगी जब तक नया आस्मान और नई ज़मीन ना बने ये दुनिया उस के रहने के लायक़ नहीं है।
(2) मसीह का सऊद सरदार काहिन के काम के तमाम करने को ज़रूर था कि इस क़ुर्बानी के लहू के साथ आस्मान से गुज़र के ख़ुदा की हुज़ूर हाज़िर हो। ज़रूर था कि वो आस्मान पर जा कर अपनी उम्मतों के वास्ते ख़ुदा के हुज़ूर सिफ़ारिश करे। जैसा वो हमारे गुनाहों के वास्ते मुआ क़ब्र में वैसा हमें रास्तबाज़ ठहराने के लिए फिर जी उठा। ये सब बातें यहूदीयों के बीच में क़ुर्बानी की रस्म से ज़ाहिर थीं उनके बीच में दस्तूर था कि क़ुर्बानी का जानवर हैकल के बाहर ज़ब्ह किया जाता था। सरदार काहिन क़ुर्बानी का लहू और ख़ुशबू लेकर पर्दे के अंदर पाकतरीन जगह पर्दे में दाख़िल होता था और वहां कफ़्फ़ार-गाह में अह्द के संदूक़ पर छिड़क देना था जो काम सरदार काहिन भी इस काम को आस्मानी हैकल में पूरा करे इस मज़्मून का पूरा बयान इब्रानियों के ख़त में किया गया है।
(3) ख़ुदावंद अपने शागिर्दों को फ़रमाता है तुम्हारे लिए मेरा जाना ही फ़ायदा है क्योंकि अगर मैं ना जाऊं तो तसल्ली देने वाला तुम्हारे पास ना आएगा पर अगर मैं जाऊं तो मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा। इस वास्ते मसीह का जाना शागिर्दों के लिए ज़रूर था मसीह ने नजात का काम पूरा किया। लेकिन शागिर्दों को इस काम से फ़ायदा तब ही हुआ जब रूहुल-क़ुद्दुस के वसीले से उस पर ईमान लाए ये रूहुल-क़ुद्दुस ही की मदद से है। कि आदमी गुनाहों से मुकर होते हैं अपनी लाचारी को पहचानते हैं और मसीह के पास नजात की तलाश करते हैं मासिवा उस के नबियों ने रूहुल-क़ुद्दुस के नुज़ूल की नबुव्वत की थी उन्होंने बयान किया था कि मसीह के ज़माने की एक ख़ास ख़ुसूसीयत ये होगी। ज़रूर था कि ये नबुव्वतें पूरी हों। रूहुल-क़ुद्दुस की नेअमत हासिल करने के लिए मसीह का आस्मान पर चढ़ जाना ज़रूर था। वो उठाया गया, ताकि रूहुल-क़ुद्दुस के वसीले से लोगों को तौबा और गुनाह की माफ़ी बख़्शे हर ज़माने से और हर कौम से उनको इकट्ठा करे इस काम को पूरा करने के लिए आस्मान का तख़्त सबसे अच्छा था।
(4) मसीह ने अपने ग़मगीं शागिर्दों को फ़रमाया मैं जाता हूँ ताकि तुम्हारे लिए जगह तैयार करूँ और जिस हाल कि मैं जाता और तुम्हारे लिए जगह तैयार करता हूँ तो फिर आऊँगा और तुम्हें अपने साथ लूँगा ताकि जहां मैं हूँ तुम भी हो इस काम को पूरा करने के लिए ज़रूर था कि मसीह आस्मान पर जाये।