اِنَّ الدِّیۡنَ عِنۡدَ اللّٰہِ الۡاِسۡلَامُ

(दीन नज़्दीक अल्लाह के इस्लाम है)

(सूरह इमरान आयत 19)

जिल्द अव़्वल

अल-फ़ुरक़ान

रिसाला
हतमी

मज़ाहिब इस्लाम

हिस्सा अव़्वल

जिसमें साबित किया गया है कि क़ुरआन की तहरीर में मसीही मज़्हब का नाम दीन-ए-इस्लाम है।
मसीही मज़्हब की पैरवी और इताअत मुसन्निफ़ क़ुरआन की तरफ़ से हज़रत मुहम्मद साहब ने कलमबंद किया है।

The Religion before Allah is Islam

(Sura Imran Verse19)

AL-Furqan

The Quran

Vol:1

By

Allama Ghulam Masih

The author attempts to prove that present day
Islam is not the religion of Muhammad, which was Christianity; corruption took place under his immediate succerssors.
1904
दीबाचा

अर्सा गुज़र चुका जब से हमने रिसाला हज़ा की तहरीर का क़सद किया था पर फ़ुर्सत की क़िल्लत (कमी) और फ़राइज़ मन्सबी की बजा आवरी (तक्मील हुक्म) इस के वजूद में बार-बार भारी नुक़्स (ख़राबी, कमी) बन कर नमूद (ज़ाहिर) होती रही जिसकी जिहत (कोशिश) से हमको बार-बार नज़र-ए-सानी करनी पड़ी और सख़्त मेहनत उठा ने के बाद अब उस की ऐसी सूरत व शक्ल क़ुद्रत ईज़ादी (ख़ुदाई) ने बना दी कि हम अब इसे दुनिया के रूबरू पेश किए बग़ैर रह नहीं सकते।

जब ये मुहम्मदी क़ौम का राहनुमा सफ़ा हस्ती में वजूद पाने को तैयार हो गया तो हमको एक और मुश्किल ने मुँह आ दीखाया वो इस की इशाअत (शाएअ करना, शौहरत देना) का ख़र्च था। इस मुश्किल को हल करने के लिए हमने रिसाला मज़्कूर रिलीजियस बुक सोसाइटी की कमेटी के सपुर्द किया। पर दो साल तक जब हमें कुछ नतीजा निकलता हुआ दिखाई ना दिया तो कमेटी मज़्कूर से उस की राय समेत रिसाला वापिस मंगा लिया गया। कमेटी की हिदायत से हमने इस की नज़र-ए-सानी की और जो एतराज़ कमेटी का था हमने उसे रफ़ा (दूर) किया ये सब कुछ कर के हमने मुहम्मदी इस्लाम के हम्दर्दों से चंदे की दरख़्वास्त की चुनान्चे ख़ुदा की मेहरबानी और उन दोस्तों की दरिया-दिली से ये रिसाला तैयार किया गया। हम उन मेहरबान मसीहियों का तह-ए-दिल से एहसान मानते हैं। उम्मीद करते हैं कि उन की सख़ावत (फ़य्याज़ी) मुहम्मदी क़ौम के लिए हमेशा तक बरकत होगी। आमीन

ये अम्र याद रखना चाहिए कि इस रिसाले में हमारे मुख़ातिब बजाए मसीहियों के मुहम्मदी साहिबान की वजह से हमने आयात क़ुरआनी को बजाए दलील इस्तिमाल किया है और उन मुक़ामात की बिना पर ज़ोफ़ और कमज़ोरी क़ुरआन और उस के इल्हाम और उस के ज़ाती मज़्हब की ज़ाहिर करनी थी वो एक दूसरे हिस्से में जिसका नाम “मज़्हब हनफ़ी” है ज़ाहिर की है। पहले हिस्से में जिसका नाम “मज़्हब इस्लाम” की क़द्र ज़ोर और ताक़त क़ुरआन के बयान से मसीही मज़्हब को हासिल हो सकती है बतौर पेशबंदी ने ज़ाहिर कर दी है। और यही बाइस है कि हमने पहले हिस्से में मुहम्मदी मज़्हब की निस्बत गिला (शिकवे-शिकायत) नहीं किया और बाक़ायदा दलील व बुरहान (दलील जिसमें शक व शुब्हा ना हो) से काम नहीं लिया और अगर लिया है तो बहुत कम पर हमने पहले हिस्से में मसीहियों के मुतालबों की मुहम्मदी क़ौम से बुनियाद डाली है। और मुहम्मदी क़ौम पर ज़ाहिर कर दिया है कि तुम्हारा क़ुरआन तुमको मसीही मज़्हब की पैरवी का हुक्म करता है और बस।

ये रिसाला निहायत इख़्तिसार (मुख़्तसर तौर पर) के साथ लिखा गया है। तफ़्सील और दलील व बुरहान (दलील जिसमें शक व शुब्हा ना हो) इस के शक में मौजूद की गई है। मुहम्मदी क़ौम में काम करने वाले मसीही मुनादों (मुबल्लिगों) का फ़र्ज़ है कि मुक़ामात क़ुरआनी के तर्जुमे का ख़ूब मतलब समझ कर मुनासिब वक़्त पर दलील काम में लाएं। और नताइज हस्ब मंशा (आरज़ू) के हर एक मुहम्मदी के रूबरू रखें सिर्फ हमारे ही मुख़्तसर बयान पर तकिया ना करें क्योंकि हम बख़ुद तवालत पूरे नताइज ज़ब्त (क़ाबू) तहरीर नहीं ला सके हैं।

नाज़रीन रिसाला हज़ा की ख़िदमत में ये भी इल्तिमास (दरख्वास्त) है कि रुपये की कमी की वजह से हम जिल्द अव़्वल को पूरा नहीं छाप सके इस के दो हिस्से कर दिए गए हैं। हिस्सा पहला आपकी ख़िदमत में है और पहले हिस्से का दूसरा हिस्सा जो इस से भी गिरांक़द्र है बाक़ी है। सो अगर आपके हाथ हिस्सा अव़्वल हो तो दूसरे के हासिल करने की कोशिश करें। और दूसरे हिस्से की इशाअत अव़्वल की बिक्री पर मुन्हसिर है। सो अगर आप मुहम्मदी क़ौम को ख़ुदावन्द की शागिर्दी में लाना चाहते तो कपड़े बेच कर मज़्हब इस्लाम को खरीदें।

इस के सिवा ये अम्र भी याद लाना ज़रूर है कि हमने अल्फ़ाज़ मुहम्मदी क़ौम और मुहम्मदी वग़ैरह इस्तिमाल किए हैं कि हज़रत मुहम्मद साहब के पैराओं (पैरवी करने वालों) और इस्लाम के ताबेदारों में फ़र्क़ ज़ाहिर हो। ना हिक़ारत और तौहीन की राह से। पर सिर्फ इम्तियाज़ की ग़र्ज़ से।

आख़िर में ख़ुदा से और ख़ुदावन्द येसू मसीह से हमारी दुआ है कि वो मुहम्मदी क़ौम के लिए और अपने जलाल और बुजु़र्गी के लिए इस रिसाले को इस्तिमाल फ़रमाए और अपने लोगों को तौफ़ीक़ दे कि इस के वसीले से उस का जलाल होता रहे। आमीन

ग़ुलाम मसीह
पहला बाब
क़ुरआन के मुवाफ़िक़ अहले यहूद का बयान

क़ुरआन को पढ़ने वाला इस बात से इन्कार नहीं कर सकता है, कि एक मुसन्निफ़ क़ुरआन की आँखें सच्चाई के आफ़्ताब के तुलूअ होने की जगह पर ज़रूर पढ़ें। उस के ख़यालात ने अरब के रेगिस्तानों से बलंद परवाज़ हो कर अपने अड़ोस पड़ोस के ममालिक की ज़रूर सैर की। उस ने अपने ज़माने की अक़्वाम के हालचाल पर किसी क़द्र ज़रूर सोचा। लेकिन जब उस की तसल्ली किसी क़ौम की मज़्हबी ज़िंदगी से ना हुई तो उसने यहूदी क़ौम में आफ़्ताब सदाक़त को चमकते देखा। लिहाज़ा उस के ख़यालात के जासूसों ने उसे इस बात से क़ाइल कर दिया कि अगर दुनिया में कोई क़ौम क़ाबिल लिहाज़ है और अगर दुनिया में कहीं सच्चाई का आफ़्ताब सरबलंद है तो वो क़ौम यहूद और उस के नविश्तों में है। तौरात और ज़बूर और सहाइफ़ अम्बिया और इन्जील हक़ और सच्चाई का दर्जा रखती हैं। उन्हें किताबों में एक इलाही चलन और रफ़्तार का ज़िंदा और अमली नमूना पाया जाता है। पस इन्हीं बुनियादों पर मुसन्निफ़ क़ुरआन ने अहले-यहूद और उनके इलाही मज़्हब का शैदा (आशिक़) हो कर उन की ख़ोशाचीनी (वो शख़्स जो खेत कटने के बाद गिरे हुए ख़ोशे चुन लेता है) को अपना फ़ख़्र तसव्वुर कर के जो कुछ उसे हासिल हो उसी से क़ुरआन की तस्नीफ़ का इरादा कर लिया ताकि अहले-अरब को जहालत और बुत-परस्ती की दलदल से निकाल कर सच्चाई के ताबेदार बनाए। पर ये कोशिश सिर्फ एक ही मुसन्निफ़ की थी। ज़ेल के सफ़हात में हम इसी मुसन्निफ़ की दीनी एतिक़ाद के नतीजे पेश किया चाहते हैं और दिखलाया चाहते हैं कि दीन की निस्बत इस का क्या फ़ैसला है? और वो दीन जो हज़रत और उस की उम्मत के लिए चुना गया किस नाम व निशान का नहीं किया हो हज़ा।

पहली फ़स्ल
अहले-यहूद के आबाओ का बयान
दफ़ाअ (1)
हज़रत इब्राहिम के वालदैन का बयान

وَ اِذۡ قَالَ اِبۡرٰہِیۡمُ لِاَبِیۡہِ اٰزَرَ اَتَتَّخِذُ اَصۡنَامًا اٰلِہَۃً ۚ؟

तर्जुमा : जब कहा इब्राहिम ने वास्ते बाप अपने आज़र के क्या पकड़ता है तू बुतों को माबूद? (सूरह अनआम 9 रुकूअ आयत 74)

इस आयत में हज़रत इब्राहिम के वालदैन का मज़्हब बुत-परस्ती बतलाया जाता है। और ये दुरुस्त बात है। लेकिन हज़रत इब्राहिम के वालिद का नाम आज़र क़रार देना ये मुसन्निफ़ क़ुरआन की लाइल्मी है। हज़रत इब्राहिम के बाप का नाम ताराह था देखो (पैदाइश बाब 11) में। बाक़ी बयान जो कुछ क़ुरआन में हज़रत इब्राहिम के वालदैन का और उनके मज़्हब का किया गया है वो बे बेसनद बात है। पर हज़रत इब्राहिम के वालदैन जब ऊर में थे तब उनका मज़्हब बुत-परस्ती था। लेकिन क़ुरआन का ये बयान कि इब्राहिम के वालदैन बुत-परस्ती ही में मर गए इल्ज़ाम और बेसनद बात है।

दफ़ाअ (2)
हज़रत इब्राहिम और आपके मज़्हब का तज़्किरा

मालूम हो कि हज़रत इब्राहिम की निस्बत बहुत बेसनद बातें क़ुरआन में लिखी गई हैं। मसलन बुतों को तोड़ना और इब्राहिम का आग में डाला जाना। (सूरह साफ़्फ़ात 81 आयत से 97 तक, सूरह शूराअ 69-89 आयत तक, सूरह अम्बिया 52-72 आयत, सूरह मर्यम 42-49 आयत तक) हज़रत इब्राहिम का अपनी क़ौम और बाप को बुत-परस्ती पर मलामत करना जैसा कि सूरह अनआम 74-82 तक मर्क़ूम है। और फिर ख़ुदा का इब्राहिम को मुर्दे जानवर जिला कर दिखाना (सूरह बक़रह आयत 262) के मुवाफ़िक़ और काअबा को तामीर करने और काअबा से एक नबी के ज़ाहिर होने की दुआ करने वग़ैरह जैसा कि (सूरह बक़रह आयत 123-129) तक से और (सूरह हज आयत 27-34) तक से ज़ाहिर है।

ऐसे तमाम बयानात की सेहत को साबित करना मुहम्मदी साहिबान का ही फ़र्ज़ है ना कि हमारा। वो ही सबूत दें। लेकिन जो बात हज़रत इब्राहिम की निस्बत क़ुरआन से हमने चुनी है और जिसे हम मुहम्मदी क़ौम के रूबरू लाना चाहते हैं। वो आपका दीन और इस दीन का नाम है जो दीन हज़रत इब्राहिम का दीन था और हम इसी की निस्बत देखना चाहते हैं कि हज़रत इब्राहिम का दीन-ए-मोहम्मद साहब की विरासत में कैसे आता है क़ुरआन की ताअलीम है।

(1)

وَ مَنۡ یَّرۡغَبُ عَنۡ مِّلَّۃِ اِبۡرٰہٖمَ اِلَّا مَنۡ سَفِہَ نَفۡسَہٗ ؕ وَ لَقَدِ اصۡطَفَیۡنٰہُ فِی الدُّنۡیَا ۚ وَ اِنَّہٗ فِی الۡاٰخِرَۃِ لَمِنَ الصّٰلِحِیۡنَ اِذۡ قَالَ لَہٗ رَبُّہٗۤ اَسۡلِمۡ ۙ قَالَ اَسۡلَمۡتُ لِرَبِّ الۡعٰلَمِیۡنَ (۱۳۱)

तर्जुमा : और कौन फिर जाता है दीन इब्राहिम के से मगर जिसने बेवक़ूफ़ किया जान अपनी को और तहक़ीक़ पसंद किया हमने उस को बीच दुनिया के और वो तहक़ीक़ बीच आख़िरत के सालिहों में से है। जब कहा उस को रब उस के ने कि मुतीअ हो (या मुसलमान हो) कहा उस ने मुतीअ हुआ में वास्ते परवरदिगार आलमों के। (सूरह बक़रह 16 रुकूअ आयत 130-131)

(2)

وَ اِذِ ابۡتَلٰۤی اِبۡرٰہٖمَ رَبُّہٗ بِکَلِمٰتٍ فَاَتَمَّہُنَّ ؕ قَالَ اِنِّیۡ جَاعِلُکَ لِلنَّاسِ اِمَامًا ؕ قَالَ وَ مِنۡ ذُرِّیَّتِیۡ ؕ قَالَ لَا یَنَالُ عَہۡدِی الظّٰلِمِیۡنَ (۱۲۴)

तर्जुमा : और जिस वक़्त आज़माया इब्राहिम को रब उस के ने साथ अपने कलाम के पस पूरा किया उन को। कहा तहक़ीक़ मैं करने वाला हूँ तुझको वास्ते लोगों के इमाम। कहा और औलाद मेरी से? कहा नहीं पहुँचेगा अहद मेरा ज़ालिमों को। (सूरह बक़रह 15 रुकूअ आयत 124)

अब इन दोनों आयात से अव़्वल, तो ये रोशन है कि इब्राहिम जिस दीन की पैरवी करता था क़ुरआन अपनी इस्तिलाह में इस दीन का नाम इस्लाम रखता है।

दुवम, इब्राहिम के दीन का मक़्सद व मुद्दआ ख़ुदा की इताअत और फ़रमांबर्दारी है।

सोइम, कि इब्राहिम ख़ुदा की इताअत व फ़रमांबर्दारी की जिहत से तमाम लोगों के लिए इमाम मुक़र्रर किया गया और दुनिया और आख़िरत में वो सालिहों से ठहरा।

चहारुम, कि दीने इब्राहीम की पैरवी से इन्कार करना बेदीनों की सिफ़त मुक़र्रर हुई।

पंजुम, कि इब्राहिम की नाफ़र्मान औलाद भी इब्राहिम के दीन की बरकात से ख़ारिज गरदानी गई। पस मतलब ये निकला कि क़ुरआन की इस्लाह में इस्लाम नाम उस दीन का है जिसके उसूलों की पैरवी इब्राहिम ने की। और बस जो शख़्स दीन-ए-इस्लाम का पैरों होगा। गोया इब्राहीमी दीन की बरकात से दीन की बरकात से ख़ारिज किया जाएगा पर मुतीअ वारिस गिरदाना जाएगा। लीजिए नाज़रीन हमारे मुतालिबे की पहली राह ये निकली की कि इब्राहिम का दीन ताम आलमों (दुनिया के लोगों) के लिए क़ाबिल अमल ठहर चुका है। इस दीन का नाम इस्लाम है। जिसकी इताअत से बरकत और बग़ावत से लानत इन्सान के हिस्से में आती है। इब्राहीमी दीन का हम कहीं आगे चल कर मुसन्निफ़ क़ुरआन और हज़रत मुहम्मद साहब और आपकी उम्मत से मुतालिबा करेंगे। इंशाअल्लाह

दफ़ाअ (3)
मुसन्निफ़ क़ुरआन ने इस्लाम की फ़रमांबर्दारी की साफ़ ताअलीम दी और इस्लाम क़ुरआन फ़र्ज़ ठहराया

اِنَّ الدِّیۡنَ عِنۡدَ اللّٰہِ الۡاِسۡلَامُ

तर्जुमा : तहक़ीक़ दीन नज़्दीक अल्लाह के इस्लाम है। (सूरह इमरान आयत 19)

وَ مَنۡ یَّبۡتَغِ غَیۡرَ الۡاِسۡلَامِ دِیۡنًا فَلَنۡ یُّقۡبَلَ مِنۡہُ ۚ وَ ہُوَ فِی الۡاٰخِرَۃِ مِنَ الۡخٰسِرِیۡنَ (۸۵)

तर्जुमा : जो कोई चाहे सिवा इस्लाम के दीन पस हरगिज़ क़ुबूल ना किया जाएगा उस से और वो बीच आख़िरत के टोटा पाएगा। (सूरह इमरान 8 रुकूअ आयत 85)

اَلۡیَوۡمَ اَکۡمَلۡتُ لَکُمۡ دِیۡنَکُمۡ وَ اَتۡمَمۡتُ عَلَیۡکُمۡ نِعۡمَتِیۡ وَ رَضِیۡتُ لَکُمُ الۡاِسۡلَامَ دِیۡنًا

इन आयात में हम मसीहियों के लिए एक ये सहूलत क़ायम की गई है कि क़ुरआन के मुसन्निफ़ ने इस्लाम है को एक मुस्तनद दीन क़रार दिया है। और इस्लाम के ग़ैर को बेदीनी ठहराया है। और दूसरी सहूलत इन आयात में ये क़ायम की जाती है कि मुहम्मद साहब और आपकी उम्मत पर दीन-ए-इस्लाम की इताअत व फ़रमांबर्दारी क़ायम की गई है गोया मुहम्मदी क़ौम से इस्लाम ही लाना तलब किया गया है। और दूसरा दीन मोहम्मद साहब और क़ौम अरब के लिए मर्दूद (रद्द) ठहराया गया है। अब हमको याद करना है कि इब्राहिम का दीन जो कुछ कि था क़ुरआन ने सच्च मान लिया। फिर कि मुसन्निफ़ क़ुरआन ने इस दीन का नाम इस्लाम रखा। फिर कि वही दीन मोहम्मद साहब और क़ौम अरब के लिए पसंद फ़रमाया। फिर कि इस्लाम के ग़ैर को मर्दूद ठहराया। अब अगर मुहम्मद साहब और क़ौम मुहम्मदी दीने इस्लाम की पैरौ साबित हो जाये तो दीन-ए-ईस्वी और मूसवी के वारिसों के साथ आप वारिस हैं और बराबर के हक़दार हैं वर्ना ख़ारिज हैं। इस का मुफ़स्सिल (तफ़्सील साथ) बयान हम आगे चल कर करेंगे। फ़िलहाल मुसन्निफ़ क़ुरआन ने इब्राहिम की ख़ुदा-परस्ती और उस के दीन को हक़ मान कर मुहम्मद साहब के चलन वग़ैरह के लिए तज्वीज़ कर दिया है जिससे हमको एक दीन हक़ की ताईद मिल जाती। जिस पर तीन अक़्वाम मुत्तफ़िक़ हैं।

दफ़ाअ (4)
दीने इस्लाम या दीने इब्राहीमी की ख़ुसूसियात का बयान

क़ुरआन के बयान के मुताबिक़ जैसा कि हम देख चुके दीन का फ़ैसला इब्राहिम के ही वक़्त में हो चुका और वो भी हमेशा के लिए। ख़्वाह वो दीन कुछ ही था और उस के क़वाइद और उसूल कैसे ही थे इस का शुरू इब्राहिम के वक़्त से हो चुका। और अब गोया क़ुरआन के मुताल्लिक़ इस का तबादला मुहाल। अब तो ये बात जाननी ज़रूर है कि इब्राहीमी दीन जो हमेशा के लिए हर एक क़ौम की नजात के वास्ते ख़ुदा से चुन लिया गया और पसंद फ़रमाया गया इस की ख़ुसूसियात क्या हैं और कि दुनिया की तमाम अक़्वाम में से कौनसी अक़्वाम इस दीन की पैरौ कार हैं। क्योंकि इस्लाम के सिवा कोई मिल्लत या मज़्हब माना नहीं जा सकता है। चुनान्चे क़ुरआन हमको ख़ुसूसियात की ताअलीम भी देता है।

(اَمۡ یَحۡسُدُوۡنَ النَّاسَ عَلٰی مَاۤ اٰتٰہُمُ اللّٰہُ مِنۡ فَضۡلِہٖ ۚ فَقَدۡ اٰتَیۡنَاۤ اٰلَ اِبۡرٰہِیۡمَ الۡکِتٰبَ وَ الۡحِکۡمَۃَ وَ اٰتَیۡنٰہُمۡ مُّلۡکًا عَظِیۡمًا (۵۴)

तर्जुमा : क्या हसद करते हैं लोगों का ऊपर उस चीज़ के कि दिया है उन को अल्लाह ने अपने फ़ज़्ल से। पस तहक़ीक़ दी हमने औलाद इब्राहिम की को किताब और हिक्मत और दी हमने उन को बादशाही अज़ीम। (सूरह निसा 8 रुकूअ आयत 54)

اِنَّ اللّٰہَ اصۡطَفٰۤی اٰدَمَ وَ نُوۡحًا وَّ اٰلَ اِبۡرٰہِیۡمَ وَ اٰلَ عِمۡرٰنَ عَلَی الۡعٰلَمِیۡنَ (ۙ۳۳)

तर्जुमा : तहक़ीक़ अल्लाह ने बर्गुज़ीदा किया आदम को और नूह को और इब्राहिम की औलाद को....ऊपर तमाम आलमों के (सूरह इमरान 4 रुकूअ आयत 33) इन दोनों आयतों से इब्राहीमी इस्लाम की ख़ुसूसीयत में ये उमूर दिखाए गए हैं :-

(1) कि इब्राहिम की औलाद को किताब मिली है।

(2) कि इब्राहिम की औलाद को किताब की हिक्मत व दानाई मिली है।

(3) कि इब्राहिम के दीन को और औलाद को अज़ीम बादशाही मिली है।

(4) कि इब्राहीमी दीन को और इब्राहिम की औलाद को तमाम आलमों पर बुजु़र्गी और फ़ज़ीलत मिली है।

ऊपर के बयान से दीने इस्लाम यानी दीन-ए-इब्राहीमी मख़्सूस और महदूद हो चुका है। और ये ख़ुसूसियात क़ुरआन की और मुसन्निफ़ क़ुरआन की मुक़र्रर शूदा हैं। और हम फ़र्ज़न इनको हक़ तस्लीम करके मान लेते हैं कि दीने इस्लाम की ये तख़्सीस दुरुस्त है। इस से हम ये बात क़ायम करते हैं कि अब देखा जाये कि किताब और हिक्मत और दीनी सल्तनत और सच्चाई कहाँ पर पाई जाती है। क़ुरआन शरीफ़ के मुसन्निफ़ का रुतबा एक मुख़्बिर (ख़बर देने वाले) से ज़्यादा नहीं हो सकता है वो हमको सिर्फ एक हक़ीक़ी दीन और इस दीन की शनाख़्त के पते बतलाता है और ख़ुद भी इसी दीन पर फ़रेफ़्ता और शैदा ज़ाहिर होता है जो इब्राहिम का दीन है। पस इब्राहिम का दीन क़ुरआन नहीं हो सकता है क़ुरआन और क़ुरआन के पैरोकारों का दीन और इब्राहिम का दीन बतलाया जाता है। पस इस्लाम क़ुरआन में नहीं बल्कि क़ुरआन से बाहर है जिसकी इताअत व पैरवी क़ुरआन में फ़र्ज़ ठहराई गई है। क़ौम यहूद और नसारा और मुहम्मदी का यहां तक इत्तिफ़ाक़ चला आया है। और अब जुदाई हुई।

दफ़ाअ (5)
इब्राहीमी दीन की बरकतों के दाअवेदार

नाज़रीन, इब्राहीमी दीन के हक़ होने पर और उस दीन की बुजु़र्गी पर अब तक यानी बयान मज़्कूर बाला तक इब्राहिम की औलाद में इत्तिफ़ाक़ चला आया है। लेकिन नाइत्तिफ़ाक़ी इस बात से शुरू होती है कि इब्राहिम के दो मशहूर फ़र्ज़न्द थे। और उन के आगे औलाद हुई। जिस औलाद में एक क़ौम मुहम्मदी इस्माईल की नस्ल से हुई और दूसरी क़ौम यहूद और नसारा इज़्हाक़ और याक़ूब की औलाद से निकली। और हर दो अक़्वाम एक एक मज़्हब मानती चली आई हैं जो एक दूसरे से निहायत ख़िलाफ़ और मुख़्तलिफ़ है। और ज़ाहिर है इनमें से एक क़ौम बातिल की पैरौ हो कर हक़ीक़ी इस्लाम से ख़ारिज है और जैसा कि हम ऊपर ज़िक्र कर चुके कि इब्राहिम की नाफ़र्मान औलाद से ख़ुदा का कोई अहद नहीं है। वैसा ही तसव्वुर किया चाहिए हर दो अक़्वाम में से एक क़ौम अहद इब्राहीमी से ख़ारिज और दीनी बरकात से महरूम है। लिहाज़ा इस बात का फ़ैसला करना कि कौनसी क़ौम नारास्ती पर है मुश्किल अम्र है। अगर हम क़ौम यहूद के नविश्तों से मुहम्मदी क़ौम का इन्साफ़ करते हैं तो क़ौम मुहम्मदी नारास्ती का शिकार साबित होती है और अगर हम क़ुरआन से क़ौम यहूद वग़ैरह की निस्बत फ़ैसला करते हैं तो क़ौम यहूद नारास्ती पर ज़ाहिर की जाती है। इसलिए हमने ठहराया है कि क़ुरआन से ही मुहम्मदी क़ौम की नारास्ती और क़ौम यहूद की रास्ती को ज़ाहिर कर दें तो दोनों भाईयों में मिलाप की उम्मीद है। अब हम इस्माईल का ज़िक्र करते हैं जिसकी बिना पर क़ौम मुहम्मदी इब्राहिम की बरकात की दाअवेदार बन जाती है। आपका ज़िक्र है :-

कि इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने जब अपने मुक़ाम से हिज्रत की सारा को कि उन की मन्कूहा (बीवी) थी संदूक़ में बंद कर के साथ ले चले। राह में तलाश करने वालों ने रोका कि इस संदूक़ को बग़ैर देखे ना छोड़ेंगे। आख़िर खोला तो देखा कि एक औरत बा-कमाल हुस्न व जमाल बैठी है। ग़र्ज़ बीबी सारा को बादशाह के पास ले गए। बादशाह देखते ही हुस्न उस का हैरान रह गया। हाथ दराज़ किया उस का हाथ ख़ुश्क हो गया। फिर सारा से कहा कि जानता हूँ कि तेरा परवरदिगार है उस की तू इबादत करती है उस से तू मेरे हाथ की वास्ते दुआ कर कि अच्छा हो जाये फिर मैं तुझे छोड़ूँगा। उस ने दुआ की हाथ अच्छा हो गया। तीसरी बार उन को छोड़ दिया और एक लौंडी दी और कहा हाजरक।

जब इस लौंडी को अपने घर में लाई तो इस का नाम हाजिरा रखा। फिर हज़रत इब्राहिम अलैहि इस्लाम जो आए तो उनको वही या कश्फ से मालूम हो गया कि ख़ुदा तआला ने सारा को सलामत रखा है उस काफिर ने उन पर दस्तरस (रसाई) नहीं पाई। फिर सारा ने जो मेल हज़रत इब्राहिम का हाजिरा की तरफ़ देखा तो हाजिरा को उन्हीं को बख़्श दिया जब हाजिरा हामिला हुई तो सारा को ग़ैरत आई चाहा कि घर से निकाल दूँ। हज़रत इब्राहिम हाजिरा को लेकर मक्का में आए जहां चाह ज़मज़म है। वहीं उतरे ये हज़रत इब्राहिम हाजिरा को ख़ुदा के सपुर्द कर शाम (मुल्क-ए-शाम) को सारा के पास गए। हाजिरा से यहां इस्माईल अलैहिस्सलाम पैदा हुए इस मुक़ाम पर पानी ना था। हाजिरा ने पानी की तलब में सई की। हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम ने पांव मारा वहां एक चशमा जारी हो गया हाजिरा ने कितने पत्थर गिर्द उस के रख दिए कि पानी बह ना जाये। पैग़म्बर ख़ुदा ने फ़रमाया है कि अगर इस्माईल की माँ पानी को ना बंद करती तो अब तक वो जारी रहता। चाह ज़मज़म जिसे कहते हैं ये वही चशमा है कि हाजिरा के बंद करने से नहर से कुँआं हो गया। ग़र्ज़ वहां वीराने में हाजिरा थी और चशमा पानी का जारी था दूर से बाअज़ लोगों ने देखा कि जानवर उधर मुतवज्जोह होते हैं मालूम किया कि पानी है जब नज़्दीक आकर देखा तो मुतसव्वर चशमा पाया। सबने वहीं वतन मुक़र्रर किया। हाजिरा वहीं वीराने में पड़ी थी आबादी में हो गईं। जब हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम बड़े हुए उनका ब्याह कर दिया वग़ैरह (हुसैनी जिल्द अव़्वल सफ़ा 139-140 तक) हज़रत इब्राहिम की इस्माईल से कभी मुलाक़ात ना हुई।

हमारे मुहम्मदी भाई ऐसे ऐसे बयानों की बुनियाद पर बुज़ुर्ग इस्माईल की नबुव्वत और दीन-ए-इब्राहीमी की बरकतों के दाअवेदार हो कर कहते हैं कि हम इस्लाम के वारिस हैं। पर इन्साफ़ करने के लिए हमको दूसरों की भी सुननी चाहिए अहले-किताब के नविश्तों में इस्माईल की निस्बत ये बयान पाया जाता है :-

और वो हाजिरा के पास गया और वो हामिला हुई। और जब उस ने मालूम किया कि मैं हामिला हुई तो अपनी बीबी को हक़ीर जाना। तब सारा ने इब्राहिम से कहा कि नाइंसाफ़ी जो मुझ पर हुई तेरे ज़िम्मे है। मैंने अपनी लौंडी तुझे दी। और अब जो उस ने (अपने) आपको हामिला देखा तो मैं उस की नज़रों में हक़ीर हो गई। मेरा और तेरा इन्साफ़ ख़ुदावन्द करे। अब्राम ने सारा से कहा कि तेरी लौंडी तेरे हाथ में है जो तेरी निगाह में अच्छा हो सो उस के साथ कर। तब सारा ने उस पर सख़्ती की और वो उस के सामने से भाग गई। और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे मैदान में पानी के एक चशमे के पास पाया। यानी उस चशमें के पास जो सूर की राह पर है। और उस ने कहा कि ऐ सारा की लौंडी हाजिरा तू कहाँ से आई और किधर जाती है। वो बोली कि मैं अपनी बीबी सारा के सामने से भागी हूँ। और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे कहा कि तू अपनी बीबी के पास फिर जा और उसके ताबे रह। फिर ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे कहा कि मैं तेरी औलाद को बहुत बढ़ाऊँगा कि वो कस्रत से गिनी ना जाये और ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने उसे कहा कि तू हामिला है। और एक बेटा जीनेगी। उस का नाम इस्माईल रखना कि खुदावंद ने तेरा दुख सुन लिया वो वहशी आदमी होगा। उस का हाथ सब के और सब के हाथ उस के बरख़िलाफ़ होंगे। और वो अपने भाईयों के सामने बूद व बाश करेगा। (पैदाइश 16:4-13)

हमने नाज़रीन के लिए हर दो अक़्वाम के बयानात इस्माईल की निस्बत बदीं ग़र्ज़ पेश किए ताकि इस्माईल का हिस्सा इब्राहीमी इस्लाम से ख़ारिज शूदा दिखला कर ये अम्र मुहम्मदी क़ौम पर साबित कर दें, कि इस्माईल और उस की औलाद इब्राहिम के दीन और उस दीन की बरकतों से हर दो अक़्वाम के बयान के मुवाफ़िक़ ख़ारिज है कोई दीनी ख़ूबी ना तो थी और ना उस से किसी क़ौम को कोई दीनी ख़ूबी हासिल हुई और ना क़ुरआन इस्माईल और उस की औलाद की दीनी ख़ूबीयों का कुछ ज़िक्र करता है अब ऊपर के बयान में :-

1. ये देखो कि मुहम्मदियों का बयान इस्माईल के बारे में बेसनद है। लेकिन अहले किताब का बयान सच्चाई का दर्जा रखता है।

2. मुहम्मदियों का बयान सरासर एक कहानी की हक़ीक़त से ज़्यादा कुछ नहीं है क्योंकि तमाम बे-ठिकाने है और किताब-ए-मुक़द्दस का बयान मुसलसल और वाक़ियात से पुर है।

3. हर दो फ़रीक़ इस्माईल को लौंडी का बेटा क़रार देते हैं।

4. हाजिरा की हिज्रत के दोनों फ़रीक़ क़ाइल हैं।

5. सबब हिज्रत में इख़्तिलाफ़ है। मुहम्मदी इल्ज़ाम सारा पर देते हैं। पर अहले-किताब हाजरा पर।

6. इस्माईल की तौलीद की जगह और मुल्क और वक़्त में इख़्तिलाफ़ है। मुख़्तलिफ़ मुहम्मदी हुए हैं क्योंकि किताब-ए-मुक़द्दस मुक़द्दम (पहले) है और मुहम्मदी मोअख़र (बाद में)।

7. किताब-ए-मुक़द्दस की सेहत क़ुरआन ने तस्लीम की है। लिहाज़ा अहले-किताब का बयान दुरुस्त और मुहम्मदियों का इस्माईल की निस्बत बयान अज़रूए क़ुरआन है।

हमने फ़र्ज़ किया

कि मुहम्मदियों का बयान इस्माईल की निस्बत दुरुस्त है। तो अब इस से ज़ेल के उमूर क़ायम होते हैं

1. कि इस्माईल की पैदाइश इब्राहिम के घर में नहीं हुई बल्कि अरब के रेगिस्तान में।

2. इस्माईल की परवरिश इब्राहिम के घर में हुई बल्कि अरब के रेगिस्तान में।

3. इस्माईल की ताअलीम इब्राहिम के घर में नहीं हुई। और ना इस्माईल ने इस्लाम की ताअलीम पाई।

4. इस्माईल को इब्राहिम ने कुछ विरसा भी ना दिया। और इब्राहिम कभी इस्माईल से ना मिला। क्योंकि अगर इब्राहिम इस्माईल को मुहब्बत पिदरी के तक़ाज़े से मिलने जाता तो वो कभी पसंद ना करता कि उस का लख्ते जिगर रेगिस्तान में जलता रहे और भूका मरता रहे। अगर मिलता तो ज़रूर इस्माईल को अपने साथ लाता।

5. अगर इब्राहिम कभी इस्माईल को मिला होता और इस्माईल इब्राहिम के साथ ना आया होता तो इस हालत में इस्माईल की बाप से अदावत का और नफ़रत का सबूत मिल जाता पर वो मुहम्मदी बयान के मुवाफ़िक़ कभी ना मिले थे। पस अगर ये बयान दुरुस्त होतो इस्माईल का और उस की औलाद का इस्लाम की बरकात से ख़ारिज होना बख़ूबी साबित है। और हम तो ये भी अफ़्सोस से कहते हैं कि क़ुरआन ने तो इस्माईल को इब्राहिम का बेटा तक क़रार ना दिया फिर इस्माईल को नबी और इब्राहिम का वारिस ठहराना क्या ज़्यादती नहीं है?

6. अगर इब्राहिम का इस्माईल वारिस था दरहालिका वो लौंडी से था। तो क़ुरआन ने लौंडी के बेटों को क्यों मीरास से ख़ारिज गिरदाना है? पस हर तरह से रोशन है कि इस्माईल की कुछ ताईद ना कर सका। सिवा नबी और नेक मर्द कहने के।

दफ़ाअ (6)
इस सबूत में कि दीन-ए-इस्लाम के वारिस इस्हाक़ और याक़ूब हैं

1. एक बशारती लड़का

وَ لَقَدۡ جَآءَتۡ رُسُلُنَاۤ اِبۡرٰہِیۡمَ بِالۡبُشۡرٰی قَالُوۡا سَلٰمًا ؕ قَالَ سَلٰمٌ فَمَا لَبِثَ اَنۡ جَآءَ بِعِجۡلٍ حَنِیۡذٍ (۶۹)فَلَمَّا رَاٰۤ اَیۡدِیَہُمۡ لَا تَصِلُ اِلَیۡہِ نَکِرَہُمۡ وَ اَوۡجَسَ مِنۡہُمۡ خِیۡفَۃً ؕ قَالُوۡا لَا تَخَفۡ اِنَّاۤ اُرۡسِلۡنَاۤ اِلٰی قَوۡمِ لُوۡطٍ (ؕ۷۰(وَ امۡرَاَتُہٗ قَآئِمَۃٌ فَضَحِکَتۡ فَبَشَّرۡنٰہَا بِاِسۡحٰقَ ۙ وَ مِنۡ وَّرَآءِ اِسۡحٰقَ یَعۡقُوۡبَ (۷۱)

तर्जुमा : और अलबत्ता तहक़ीक़ आए भेजे हुए हमारे इब्राहिम के पास साथ ख़ुशख़बरी के। कहने लगे कि सलाम भेजते हैं हम कहा सलाम है। पस न देर की कि ले आया गाए का बच्चा तला हुआ। पस जब देखते हाथ उनके कि नहीं पहुँचते तरफ़ उस के अंजान हुआ उनसे। और जी में छुपाया उनसे डरा। कहा उन्होंने मत डर। तहक़ीक़ हम भेजे गए हैं तरफ़ क़ौम लूत के। और बीबी उस की खड़ी थी पस हंसी। पस बशारत दी हमने उस को इस्हाक़ की और सिवा इस्हाक़ के याक़ूब की। (सूरह हूद 7 रुकूअ आयत 69-71) (पैदाइश 18 बाब) को देखो।

ہَلۡ اَتٰىکَ حَدِیۡثُ ضَیۡفِ اِبۡرٰہِیۡمَ الۡمُکۡرَمِیۡنَ (ۘ۲۴(اِذۡ دَخَلُوۡا عَلَیۡہِ فَقَالُوۡا سَلٰمًا ؕ قَالَ سَلٰمٌ ۚ قَوۡمٌ مُّنۡکَرُوۡنَ (ۚ۲۵)فَرَاغَ اِلٰۤی اَہۡلِہٖ فَجَآءَ بِعِجۡلٍ سَمِیۡنٍ (ۙ۲۶)فَقَرَّبَہٗۤ اِلَیۡہِمۡ قَالَ اَلَا تَاۡکُلُوۡنَ (۲۷)فَاَوۡجَسَ مِنۡہُمۡ خِیۡفَۃً ؕ قَالُوۡا لَا تَخَفۡ ؕ وَ بَشَّرُوۡہُ بِغُلٰمٍ عَلِیۡمٍ (۲۸)فَاَقۡبَلَتِ امۡرَاَتُہٗ فِیۡ صَرَّۃٍ فَصَکَّتۡ وَجۡہَہَا وَ قَالَتۡ عَجُوۡزٌ عَقِیۡمٌ (۲۹)

तर्जुमा : क्या आई है तेरे पास बात मेहमानों इब्राहिम हुर्मत किए गीयों? जिस वक़्त कि दाख़िल हुए ऊपर उस के। पस कहा उन्हों ने सलाम है। कहा सलाम है। तुम क़ौम होना पहचान। पस फिर आया तरफ़ लोगों अपने की पस ले आया गाय का बच्चा घी में तला हुआ। पस नज़्दीक किया इसको तरफ़ उन के कहा कि क्या नहीं खाते तुम? पस छुपाया उनसे जी में डर कहा उन्हों ने मत डर। और ख़ुशख़बरी दी उस को साथ एक लड़के इल्म वाले के पस आई बीबी उस की बीच हैरत के। पस हाथ मारा मुँह अपने को और कहा मैं बूढ़ी हूँ बाँझ। (सूरह ज़ारियात 2 रुकूअ आयत 24-29) पैदाइश।

رَبِّ ہَبۡ لِیۡ مِنَ الصّٰلِحِیۡنَ (۱۰۰)فَبَشَّرۡنٰہُ بِغُلٰمٍ حَلِیۡمٍ (۱۰۱)فَلَمَّا بَلَغَ مَعَہُ السَّعۡیَ قَالَ یٰبُنَیَّ اِنِّیۡۤ اَرٰی فِی الۡمَنَامِ اَنِّیۡۤ اَذۡبَحُکَ فَانۡظُرۡ مَاذَا تَرٰی ؕ قَالَ یٰۤاَبَتِ افۡعَلۡ مَا تُؤۡمَرُ ۫ سَتَجِدُنِیۡۤ اِنۡ شَآءَ اللّٰہُ مِنَ الصّٰبِرِیۡنَ (۱۰۲)فَلَمَّاۤ اَسۡلَمَا وَ تَلَّہٗ لِلۡجَبِیۡنِ (۱۰۳)ۚوَ نَادَیۡنٰہُ اَنۡ یّٰۤاِبۡرٰہِیۡمُ (۱۰۴)ۙقَدۡ صَدَّقۡتَ الرُّءۡیَا ۚ اِنَّا کَذٰلِکَ نَجۡزِی الۡمُحۡسِنِیۡنَ (۱۰۵)اِنَّ ہٰذَا لَہُوَ الۡبَلٰٓـؤُا الۡمُبِیۡنُ (۱۰۶)وَ فَدَیۡنٰہُ بِذِبۡحٍ عَظِیۡمٍ (۱۰۷)وَ تَرَکۡنَا عَلَیۡہِ فِی الۡاٰخِرِیۡنَ (۱۰۸)ۖسَلٰمٌ عَلٰۤی اِبۡرٰہِیۡمَ (۱۰۹)کَذٰلِکَ نَجۡزِی الۡمُحۡسِنِیۡنَ (۱۱۰)اِنَّہٗ مِنۡ عِبَادِنَا الۡمُؤۡمِنِیۡنَ (۱۱۱)وَ بَشَّرۡنٰہُ بِاِسۡحٰقَ نَبِیًّا مِّنَ الصّٰلِحِیۡنَ (۱۱۲)

तर्जुमा : ऐ रब मेरे बख़्श मुझको औलाद सालिहों से। पस बशारत दी हमने हलीम लड़के की उस को पस जिस वक़्त पहुंचा उस के साथ दौड़ने को कहा, ऐ मेरे (छोटे) बेटे में देखता हूँ ख्व़ाब में कि तुझको ज़ब्ह करता हूँ। फिर देख तू तो क्या देखता है। बोला ऐ बाप कर डाल जो तुझको हुक्म होता है तू मुझको पाएगा। अगर अल्लाह ने चाहा सहारने वाला। फिर जब दोनों ने हुक्म माना पिछाड़ उस को माथे के बल और हमने उस को पुकारा कि ऐ इब्राहिम तू ने सच्च कर दीखाया ख्व़ाब हम यूं देते हैं बदला नेकी करने वालों को। बेशक यही है सरीह जाँचना और इस का बदला दिया हमने एक जानवर ज़ब्ह कर बड़ा और बाक़ी रखा हमने इस पर पिछली ख़ल्क़ में, कि सलाम है इब्राहिम पर। यूं हम देते हैं बदला नेकी करने वालों को। वो ही हमारे बंदों में ईमानदार और ख़ुशख़बरी दी हमने उस को इस्हाक़ की जो नबी था नेक बख़्तों में। (सूरह साफ़्फ़ात 3 रुकूअ आयत 100-112)

2. क़ुरआन में इस्हाक़ और याक़ूब ही इब्राहिम के बेटे गर्दाने गए हैं और कोई नहीं।

وَ وَہَبۡنَا لَہٗۤ اِسۡحٰقَ وَ یَعۡقُوۡبَ

तर्जुमा : और दिए हमने इब्राहिम को इस्हाक़ और याक़ूब (सूरह अनआम 10 रुकूअ आयत 84)

وَ وَہَبۡنَا لَہٗۤ اِسۡحٰقَ ؕ وَ یَعۡقُوۡبَ نَافِلَۃً

तर्जुमा : और दिए हमने इब्राहिम को इस्हाक़ और याक़ूब ज़्यादती में। (सूरह मर्यम 3 रुकूअ आयत 72)

(وَ وَہَبۡنَا لَہٗۤ اِسۡحٰقَ وَ یَعۡقُوۡبَ) (सूरह अन्कबूत आयत 27)

हम अफ़्सोस से कहते हैं कि क़ुरआन में क़ुरआन के मुसन्निफ़ ने कहीं ना लिखा कि (وَ وَہَبۡنَا لَہٗۤ اسمٰعیل و اِسۡحٰقَ وَ یَعۡقُوۡبَ) (1)

3. इस्हाक़ और याक़ूब और उस की औलाद इस्लाम की बरकात की वारिस ठहराई गई है।

وَ وَہَبۡنَا لَہٗۤ اِسۡحٰقَ ؕ وَ یَعۡقُوۡبَ نَافِلَۃً ؕ وَ کُلًّا جَعَلۡنَا صٰلِحِیۡنَ (۷۲)وَ جَعَلۡنٰہُمۡ اَئِمَّۃً یَّہۡدُوۡنَ بِاَمۡرِنَا وَ اَوۡحَیۡنَاۤ اِلَیۡہِمۡ فِعۡلَ الۡخَیۡرٰتِ وَ اِقَامَ الصَّلٰوۃِ وَ اِیۡتَآءَ الزَّکٰوۃِ ۚ وَ کَانُوۡا لَنَا عٰبِدِیۡنَ ۔

तर्जुमा : और दिया हमने उस को इस्हाक़ और याक़ूब ज़्यादती (में) और हर एक को किया हमने नेक-बख़्त। और किया हमने उन को पेशवा हिदायत करते थे साथ हुक्म हमारे के और वही की हमने तरफ़ उन की करना भलाइयों का और क़ायम रखना नमाज़ का और देना ज़कात और थे वास्ते हमारे वो इबादत करने वाले। (सूरह अम्बिया 5 रुकूअ आयत 72-73)

فَلَمَّا اعۡتَزَلَہُمۡ وَ مَا یَعۡبُدُوۡنَ مِنۡ دُوۡنِ اللّٰہِ ۙ وَہَبۡنَا لَہٗۤ اِسۡحٰقَ وَ یَعۡقُوۡبَ ؕ وَ کُلًّا جَعَلۡنَا نَبِیًّا (۴۹)وَ وَہَبۡنَا لَہُمۡ مِّنۡ رَّحۡمَتِنَا وَ جَعَلۡنَا لَہُمۡ لِسَانَ صِدۡقٍ عَلِیًّا (۵۰)


(1) यह तो लिखा है, (وَہَبَ لِیۡ عَلَی الۡکِبَرِ اِسۡمٰعِیۡلَ وَ اِسۡحٰقَ) यानी बुढ़ापे में दिए मुझको इस्माईल और इस्हाक़ (सूरह इब्राहिम आयत 39) पर यह दुआ इब्राहिम की है मुसन्निफ़ क़ुरआन ख़ुदा का पैगाम नहीं लाता है इब्राहिम का शुक्रिया। अगर इस्माईल की मक्का में तोलीद (पैदाइश) पर इब्राहिम यह कहे तो कह दो।

तर्जुमा : पस जब छोड़ दिया (इब्राहिम ने) उन को (अपने वालदैन) को और उस चीज़ को कि इबादत करते थे। सिवाए अल्लाह के (बुतों को) और दिया हमने उस को इब्राहिम को इस्हाक़ और याक़ूब। और हर एक को किया हमने नबी बतौर जमा के तीनों को और दी हमने उनको रहमत अपनी से (मसीह का जो क़ुरआन में रहमत ख़ुदा के नाम से मौसूम है उन की औलाद से आना मुक़र्रर किया) और की हमने वास्ते उन के ज़बान रास्ती की बुलंद। (सूरह मर्यम 3 रुकूअ आयत 49-50)

وَ وَہَبۡنَا لَہٗۤ اِسۡحٰقَ وَ یَعۡقُوۡبَ وَ جَعَلۡنَا فِیۡ ذُرِّیَّتِہِ النُّبُوَّۃَ وَ الۡکِتٰبَ وَ اٰتَیۡنٰہُ اَجۡرَہٗ فِی الدُّنۡیَا ۚ وَ اِنَّہٗ فِی الۡاٰخِرَۃِ لَمِنَ الصّٰلِحِیۡنَ (۲۷)

तर्जुमा : और दिया हमने उस को (इब्राहिम को) इस्हाक़ और याक़ूब और की हमने बीच औलाद उनकी के नबुव्वत और किताब और दिया हमने उस को सवाब उस का बीच दुनिया के और तहक़ीक़ वो बीच आख़िरत के नेक बख़्तों से हैं। (सूरह अन्कबूत 3 रुकूअ आयत 27)

इस फ़स्ल के कुल बयान से अज़रूए क़ुरआन मुनादों के लिए जो मुहम्मदी क़ौम में काम करते हैं ये बातें मुफ़ीद मतलब क़ायम होती हैं जिनको ख़ूब याद करना चाहिए :-


है इब्राहिम का शुक्रिया। अगर इस्माईल की मक्का में तोलीद (पैदाइश) पर इब्राहिम यह कहे तो कह दो।

1. कि क़ुरआन के मुसन्निफ़ ने दीने इब्राहिमी को हक़ और दुरुस्त और मंज़ूरे ख़ुदा तस्लीम कर लिया है। जैसा कि (दफ़ाअ 3, 2) के मुक़ामात से साबित है।

2. कि मुसन्निफ़ क़ुरआन ने हज़रत इब्राहिम के दीन का नाम दीन-ए-इस्लाम रखा है। और दीन-ए-इस्लाम के सिवा दूसरा मज़्हब मर्दूद ठहराया गया है।

3. कि दीन-ए-इस्लाम की बरकात की वारिस हज़रत इब्राहिम की नस्ल क़रार दी गई है। और वो बरकात दीनी हैं यानी रिसालत, नबुव्वत, किताबत और हिक्मत और सच्चाई की हुकूमत वग़ैरह।

4. कि मुसन्निफ़ क़ुरआन ने दीने इब्राहीमी यानी इस्लाम मुहम्मद साहब पर और आपकी उम्मत पर फ़र्ज़ ठहराया है कि ये क़ौम उस की पैरवी करे।

5. कि मुसन्निफ़ क़ुरआन ने इस्माईल को हज़रत इब्राहिम की नस्ल और इस्लाम का वारिस नहीं माना है बल्कि इस्हाक़ और याक़ूब को। पस इब्राहिम का दीन और उस की बरकात इस्हाक़ और याक़ूब और उस की नस्ल की विरासत गरदानी गई हैं। इस्माईल इस्लाम से ख़ारिज समझा गया है।

6. क़ुर्बानी मुसन्निफ़ क़ुरआन के नज़्दीक इस्हाक़ की हुई है इस्माईल का ज़िक्र तक नहीं तमाम मुहम्मदी ज़िद से इस्माईल की क़ुर्बानी मानते हैं (सूरह अल-साफ़्फ़ात आयत 112) में दो सबूत इस्हाक़ की क़ुर्बानी के हैं यानी लफ़्ज़ (یٰنبیَّ) और (وَ بَشَّرۡنٰہُ بِاِسۡحٰقَ) बाक़ी आयात मनक़ूला में सिर्फ इस्हाक़ की बशारत का सबूत है। पस मुनासिब है कि आप लोग मुहम्मदियों से इस दीन की पैरवी का मुतालिबा करें जो दीन-ए-इस्लाम उन पर फ़र्ज़ ठहराया गया। और इस बात को ख़ूब याद रखो कि क़ुरआन में दीने इस्लाम नहीं पाया जाता है पर दीने इस्लाम का वजूब (ज़रूरी होना) पस दीने इस्लाम क़ुरआन से ज़रूर बाहर है। और वो दीन इस्हाक़ और याक़ूब की नस्ल के सिलसिले में बताया गया है जिसे दूसरे लफ़्ज़ों में बाइबल का दीन कहते हैं।

मुहम्मदी साहिबान के फ़राइज़

1. इस फ़स्ल के मज़ामीन की निस्बत मुहम्मदी साहिबान का ये फ़र्ज़ है कि वो साबित करें कि वो मुसलमान या साहिब-ए-इस्लाम हैं। इस्लाम से गुमराह नहीं हैं।

2. मुहम्मदियों का फ़र्ज़ है कि साबित करें कि इस्माईल इस्लाम की बरकात का वारिस हो सकता है जिस हाल कि वो लौंडी का बेटा जिसकी तौलीद मक्का में हुई और साबित करें कि इस्माईल क़ुर्बानी चढ़ाया गया। जब कि क़ुरआन से साबित नहीं है।

3. मुहम्मदियों का फ़र्ज़ है कि वो साबित करें कि इस्लाम और उस की बरकात के वारिस हज़रत इस्हाक़ और याक़ूब और उन की औलाद ना थी बल्कि कोई ग़ैर शख़्स था।

4. क्या कोई मुहम्मदी क़ुरआन में लिखा दिखा सकता है कि (وَ وَہَبۡنَا لَہٗۤ اسمٰعیل) वग़ैरह क्या ये ताज्जुब की बात नहीं कि मुसन्निफ़ क़ुरआन इस्माईल को ख़ुदा की बख़्शिश क़रार ही नहीं देता है। दरहालिका इस्हाक़ और याक़ूब तक को ख़ुदा की बख़्शिश बतलाता है।

ऐ मुहम्मदी साहिबान हम आपको मफ़रूज़ा मज़्हब से हज़ारों कोस दूर साबित करने को तैयार हैं और हम ख़ुदा की मदद से कर दिखाएंगे। और वो भी क़ुरआन से और अब आप अपने को इस्लाम इब्राहीमी के पैरौ साबित करने के लिए तैयार हो जाएं हमने इस फ़स्ल में सिर्फ एक मोरचा सर किया है वो इस्लाम इब्राहीमी और उस की बरकात का इस्हाक़ और याक़ूब और उस की और औलाद के हिस्से में आना है। आगे को हम लफ़्ज़ इस्लाम अहले-किताब के दीन पर इस्तिमाल करेंगे। और आप देखते जाएं कि हम क्या सबूत रखते हैं।

दूसरी फ़स्ल
कि जिसमें वो आयात क़ुरआनी वारिद हुई हैं जो इस्हाक़ की औलाद का मज़्हब इस्लाम बयान करती हैं

وَ وَصّٰی بِہَاۤ اِبۡرٰہٖمُ بَنِیۡہِ وَ یَعۡقُوۡبُ ؕ یٰبَنِیَّ اِنَّ اللّٰہَ اصۡطَفٰی لَکُمُ الدِّیۡنَ فَلَا تَمُوۡتُنَّ اِلَّا وَ اَنۡتُمۡ مُّسۡلِمُوۡنَ (۱۳۲)ؕ اَمۡ کُنۡتُمۡ شُہَدَآءَ اِذۡ حَضَرَ یَعۡقُوۡبَ الۡمَوۡتُ ۙ اِذۡ قَالَ لِبَنِیۡہِ مَا تَعۡبُدُوۡنَ مِنۡۢ بَعۡدِیۡ ؕ قَالُوۡا نَعۡبُدُ اِلٰہَکَ وَ اِلٰـہَ اٰبَآئِکَ اِبۡرٰہٖمَ وَ اِسۡمٰعِیۡلَ وَ اِسۡحٰقَ اِلٰـہًا وَّاحِدًا ۚۖ وَّ نَحۡنُ لَہٗ مُسۡلِمُوۡنَ (۱۳۳)

तर्जुमा : और वसीयत के साथ इस के, इब्राहिम ने बेटों और याक़ूब से कहा, ऐ बेटो मेरे तहक़ीक़ अल्लाह ने पसंद किया है वास्ते तुम्हारे दीन। पस न मरो तुम मगर मुसलमान हो कर। क्या तुम हाज़िर थे जिस वक़्त आई याक़ूब को मौत? जिस वक़्त कहा उसने अपने बेटों से किस की इबादत करोगे तुम? पीछे मेरे कहा उन्होंने इबादत करेंगे, हम माबूद तेरे को माबूद बापों तेरे इब्राहिम और इस्माईल और इस्हाक़ के माबूद एक को और हम वास्ते इस मुसलमान हैं। (सूरह बक़रह 16 रुकूअ आयत 132-133)

وَ لَقَدۡ اَخَذَ اللّٰہُ مِیۡثَاقَ بَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ ۚ وَ بَعَثۡنَا مِنۡہُمُ اثۡنَیۡ عَشَرَ نَقِیۡبًا ؕ وَ قَالَ اللّٰہُ اِنِّیۡ مَعَکُمۡ ؕ لَئِنۡ اَقَمۡتُمُ الصَّلٰوۃَ وَ اٰتَیۡتُمُ الزَّکٰوۃَ وَ اٰمَنۡتُمۡ بِرُسُلِیۡ وَ عَزَّرۡتُمُوۡہُمۡ وَ اَقۡرَضۡتُمُ اللّٰہَ قَرۡضًا حَسَنًا لَّاُکَفِّرَنَّ عَنۡکُمۡ سَیِّاٰتِکُمۡ وَ لَاُدۡخِلَنَّکُمۡ جَنّٰتٍ تَجۡرِیۡ مِنۡ تَحۡتِہَا الۡاَنۡہٰرُ ۚ فَمَنۡ کَفَرَ بَعۡدَ ذٰلِکَ مِنۡکُمۡ فَقَدۡ ضَلَّ سَوَآءَ السَّبِیۡلِ

तर्जुमा : और अलबत्ता तहक़ीक़ लिया अल्लाह ने अहद बनी-इस्राईल का और खड़े किए हमने उन में से बारह (12) सरदार। और कहा अल्लाह ने तहक़ीक़ में साथ तुम्हारे हूँ अगर क़ायम रखू तुम नमाज़ को और दो तुम ज़कात को। और ईमान लाओ तुम साथ पैग़म्बरों मेरे के और क़ुव्वत दो उनको और क़र्ज़ दो तुम अल्लाह को क़र्ज़ अच्छा। अलबत्ता दूर करूँगा मैं तुमसे बुराईयां तुम्हारी और दाख़िल करूँगा। मैं तुम को बहिश्तों में कि चलती हैं नीचे उन के नहरें। पस जो कोई काफिर हो, पीछे तुम में से पस तहक़ीक़ गुमराह हुआ राह सीधी सेइ (सूरह माइदा 3 रुकूअ आयत 12)

وَ قَالَ مُوۡسٰی یٰقَوۡمِ اِنۡ کُنۡتُمۡ اٰمَنۡتُمۡ بِاللّٰہِ فَعَلَیۡہِ تَوَکَّلُوۡۤا اِنۡ کُنۡتُمۡ مُّسۡلِمِیۡنَ (۸۴) فَقَالُوۡا عَلَی اللّٰہِ تَوَکَّلۡنَا ۚ

तर्जुमा : और कहा मूसा ने ऐ क़ौम मेरी अगर हो तुम ईमान लाए साथ अल्लाह के पस ऊपर उस के तवक्कुल करो तुम अगर हो तुम मुसलमान पस कहा उन्हों ने ऊपर अल्लाह के तवक्कुल किया हमने। (सूरह यूनुस 9 रुकूअ आयत 84-85)

اِنَّہٗ مِنۡ سُلَیۡمٰنَ وَ اِنَّہٗ بِسۡمِ اللّٰہِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِیۡمِ (ۙ۳۰) اَلَّا تَعۡلُوۡا عَلَیَّ وَ اۡتُوۡنِیۡ مُسۡلِمِیۡنَ (۳۱)پھر (اَنۡ یَّاۡتُوۡنِیۡ مُسۡلِمِیۡنَ (۳۸)پھر(قَالَتۡ رَبِّ اِنِّیۡ ظَلَمۡتُ نَفۡسِیۡ وَ اَسۡلَمۡتُ مَعَ سُلَیۡمٰنَ لِلّٰہِ رَبِّ الۡعٰلَمِیۡنَ (۴۴)

तर्जुमा : तहक़ीक़ वो सुलेमान की तरफ़ से है.....मत सरकशी करो ऊपर मेरे और चले आओ मेरे पास मुसलमान हो कर वग़ैरह (सूरह नम्ल 3,4 रुकूअ आयत 30-31, 38,44)

وَ اِذۡ اَوۡحَیۡتُ اِلَی الۡحَوَارِیّٖنَ اَنۡ اٰمِنُوۡا بِیۡ وَ بِرَسُوۡلِیۡ ۚ قَالُوۡۤا اٰمَنَّا وَ اشۡہَدۡ بِاَنَّنَا مُسۡلِمُوۡنَ (۱۱۱)

तर्जुमा : और जिस वक़्त वही भेजी हम ने तरफ़ हवारियों के ये कि ईमान लाओ साथ मेरे रसूल के। कहा उन्हों ने ईमान लाए हम और गवाह रह तू साथ इस के कि हम मुसलमान हैं। (सूरह माइदा 15 रुकूअ आयत 111)

इन आयात के सिवा अहले-किताब का एक ये भी दाअवा था, कि हम क़ुरआन से पेश्तर ही इस्लाम के ताबे थे। चुनान्चे मुसन्निफ़ क़ुरआन की तस्दीक़ ये है :-

اِنَّہُ الۡحَقُّ مِنۡ رَّبِّنَاۤ اِنَّا کُنَّا مِنۡ قَبۡلِہٖ مُسۡلِمِیۡنَ (۵۳)

तर्जुमा : तहक़ीक़ ये (क़ुरआन) सच्च है रब हमारे की तरफ़ से तहक़ीक़ थे हम पहले इस (क़ुरआन) से मुसलमान। (सूरह क़िसस 6 रुकूअ आयत 53)

नाज़रीन मज़्मून ज़ेर बह्स के फ़ैसले के लिए ऊपर के मुक़ामात काफ़ी हैं। अब हम आपसे अर्ज़ करते हैं कि आप ज़ेल की बातों पर ग़ौर कर के करें :-

1. कि आयत अव़्वल में इस्माईल के ख़ुदा का हवाला फ़ुज़ूल और बेसनद और बे मौक़ा दिया गया है कि जिसमें मुसन्निफ़ क़ुरआन ख़्वाह-मख़्वाह इस्माईल की बुजु़र्गी को क़ायम करना चाहता है। हम कहते हैं कि इब्राहिम और इस्हाक़ और याक़ूब के ख़ुदा की इताअत का इक़रार करना सच्चे इस्लाम की इताअत के इज़्हार में काफ़ी इक़रार था। इसलिए इस्माईल के ख़ुदा का हवाला फ़ुज़ूल है।

2. दुवम, आयत मनक़ूला में इक़रार याक़ूब के बेटों का नक़्ल किया गया है। जिसमें एतबार और यक़ीन को जगह नहीं हो सकती है। इसलिए कि याक़ूब के बेटे कोई मुलहम (वो शख़्स जिसके दिल में ग़ैब से कोई बात पड़े) ना थे लिहाज़ा ये उनकी ग़लती हो सकती है कि इस्माईल के ख़ुदा का हवाला दिया।

3. इस्माईल की ख़ुदा-परस्ती का बाइबल में कोई सबूत नहीं है। लिहाज़ा ये क़ौल ग़लत है।

4. इब्राहिम और इस्हाक़ और याक़ूब का कोई क़ौल इस्माईल की ख़ुदा-परस्ती पर क़ुरआन में नक़्ल नहीं किया गया। बल्कि एक क़ौल में याक़ूब इस्माईल का ज़िक्र तक नहीं करता है दरहालिका मुसन्निफ़ क़ुरआन को इब्राहिम या इस्हाक़ या याक़ूब के क़ौल से इस्माईल की ख़ुदा-परस्ती साबित करनी थी पर भूल गया। इस्माईल की ख़ुदा-परस्ती इन बुज़ुर्गों के क़ौल से साबित ना की। पर ख़िलाफ़ इस के, यूं लिखा है :-

وَ کَذٰلِکَ یَجۡتَبِیۡکَ رَبُّکَ وَ یُعَلِّمُکَ مِنۡ تَاۡوِیۡلِ الۡاَحَادِیۡثِ وَ یُتِمُّ نِعۡمَتَہٗ عَلَیۡکَ وَ عَلٰۤی اٰلِ یَعۡقُوۡبَ کَمَاۤ اَتَمَّہَا عَلٰۤی اَبَوَیۡکَ مِنۡ قَبۡلُ اِبۡرٰہِیۡمَ وَ اِسۡحٰقَ ؕ اِنَّ رَبَّکَ عَلِیۡمٌ حَکِیۡمٌ (۶)

तर्जुमा : और इसी तरह बर्गुज़ीदा करेगा तुझको परवरदिगार तेरा और सिखलाएगा तुझको ताबीर करनी बातों की। और पूरी करेगा नेअमत अपनी ऊपर तेरे और ऊपर याक़ूब की औलाद के। जैसा पूरा किया था। उस को ऊपर दो बाप तेरे के पहले इस से इब्राहिम और इस्हाक़ के। तहक़ीक़ रब तेरा जानने वाला हिक्मत वाला है। (सूरह यूसुफ़ 1 रुकूअ आयत 6) अब ग़ौर फर्माइये कि याक़ूब तो अपनी औलाद को दादा और परदादा का नाम सिखलाए और इस्माईल को ख़ारिज गिर्दाने और औलाद अपने बाप का बाप इस्माईल को क़रार दे? ये बात अजीब है। और फिर यूसुफ़ का बयान सुनिए (2) :-

5. याक़ूब के बेटों के जवाब में जो इस्माईल को याक़ूब का बाप गिरदाना है हम बतलाए देते हैं कि इस जवाब में याक़ूब की सख़्त बेइज़्ज़ती बेटों ने (इस्माईल को याक़ूब का बाप कहने से) की। क्योंकि इस्माईल एक लौंडी का बेटा था जिसकी पैदाइश मुहम्मदी मज़्हब के मुवाफ़िक़ मक्का में हुई और इब्राहिम के घर में नहीं हुई। इस्माईल मीरास से ख़ारिज था। भला एक लौंडी के बेटे को एक आज़ाद के बेटे का बाप कहना उस की सरासर बेइज़्ज़ती नहीं है? बिलाशक है। पस हम कहते हैं कि मुसन्निफ़ क़ुरआन ने याक़ूब के बेटों के नाम से हज़रत याक़ूब की सख़्त बेइज़्ज़ती की जो हरगिज़ क़ुबूल नहीं हो सकती है।

6. अस्ल मतलब जो हम देखना चाहते हैं। वो याक़ूब के बेटों का इस्लाम को क़ुबूल करना और उस की पैरवी करना है। पस इब्राहिम मुसलमान था। इस्हाक़ और याक़ूब और याक़ूब की औलाद का मज़्हब इस्लाम था। पस इब्राहिम और इस्हाक़ और याक़ूब और याक़ूब की औलाद के मज़्हब का नाम क़ुरआन के मुसन्निफ़ ने इस्लाम रखा है।

7. हज़रत मूसा और मूसा की क़ौम का मज़्हब इस्लाम था।

8. हज़रत सुलेमान और उस की क़ौम का मज़्हब इस्लाम था।

9. ख़ुदावन्द येसू मसीह और उस के शागिर्दों का मज़्हब भी इस्लाम था।

10. मुहम्मद साहब के वक़्त के अहले-किताब का मज़्हब भी इस्लाम था। क्योंकि मुसन्निफ़ क़ुरआन मुहम्मद साहब को इस बात की ख़बर देता है कि अहले-किताब कहते हैं कि हम तो क़ुरआन से पेश्तर (पहले) ही मुसलमान हैं। पस साबित है कि दीन इस्लाम क़ुरआन की इस्लाह में अहले-किताब के मज़्हब का नाम है और यही इस्लाम मुहम्मद साहब पर और मुहम्मद साहब की उम्मत पर फ़र्ज़ ठहराया गया जिसका मुतालिबा हम आगे चल कर करेंगे।

हर एक मुहम्मदी पर जिसकी आँखों पर तास्सुब का पर्दा नहीं। जो हक़ के एवज़ गुमराही पसंद नहीं करता ये अम्र हैरतख़ेज़ है कि मुसन्निफ़ क़ुरआन इस्माईल की औलाद का कोई मज़्हब नहीं बतलाया है। वो इस्माईल की औलाद में से किसी एक को हमारे रूबरू नहीं लाता है। गोया कि इस्माईल और उस की औलाद में उस ने एक भी ख़ूबी ना देखकर उसे ऐसा छोड़ा कि गोया इस्माईल और उस की औलाद को जानता तक नहीं। दरहालिका इस्माईल की औलाद थी और इस्माईल और उस की औलाद के मज़्हब का मुताल्लिक़ (बिल्कुल) ला कुछ ज़िक्र नहीं करता। हम मुहम्मदी साहिबान से पूछते हैं कि इस में क्या राज़ मख़्फ़ी (छिपी) था? कि मुसन्निफ़ क़ुरआन इस्माईल को सिर्फ नेक और नबी का ख़िताब देकर फिर हमेशा के लिए इस को और इस की औलाद को भूल जाता है और क्यों अहले किताब और उन के मज़्हब पर फ़रेफ़्ता हो कर इस्हाक़ की नस्ल के मज़्हब का आशिक़ हो जाता है। और मुहम्मदी क़ौम पर इसी मज़्हब की इताअत फ़र्ज़ ठहराता है? आप साहिबान ख़ुदा के ख़ौफ़ को मद्द-ए-नज़र रखकर ऊपर के मज़ामीन पर ग़ौर फ़रमाएं और हम एक दूसरे मज़्मून की तलाश में जाते हैं। अस्सलामु अलैकुम।


(2) (وَ اتَّبَعۡتُ مِلَّۃَ اٰبَآءِیۡۤ اِبۡرٰہِیۡمَ وَ اِسۡحٰقَ وَ یَعۡقُوۡبَ) यानी पैरवी की मैंने दीन बापों अपनी की इब्राहिम और इस्हाक़ और याक़ूब के (सूरह युसूफ 5 रुकूअ आयत 38)
तीसरी फ़स्ल
जिसमें वो आयात क़ुरआन आई हैं जिनमें बनी-इस्राईल की फ़ज़ीलत और फ़ज़ीलत के अस्बाब बयान हुए हैं

(1)

وَ لَقَدۡ اٰتَیۡنَا بَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ الۡکِتٰبَ وَ الۡحُکۡمَ وَ النُّبُوَّۃَ وَ رَزَقۡنٰہُمۡ مِّنَ الطَّیِّبٰتِ وَ فَضَّلۡنٰہُمۡ عَلَی الۡعٰلَمِیۡنَ (ۚ۱۶)

तर्जुमा : और अलबत्ता तहक़ीक़ दी हमने बनी-इस्राईल को किताब और हुक्म और नबुव्वत और रिज़्क़ दिया हमने उन को पाकीज़ा चीज़ों से और बुजु़र्गी दी हमने उन को ऊपर आलमों के। (सूरह जासिया 2 रुकूअ आयत 16)

(2)

وَ لَقَدۡ نَجَّیۡنَا بَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ مِنَ الۡعَذَابِ الۡمُہِیۡنِ (ۙ۳۰)۔۔۔وَ لَقَدِ اخۡتَرۡنٰہُمۡ عَلٰی عِلۡمٍ عَلَی الۡعٰلَمِیۡنَ (ۚ۳۲)

तर्जुमा : और अलबत्ता तहक़ीक़ नजात दी हमने बनी-इस्राईल को अज़ाब रुस्वा करने वाले से। और अलबत्ता तहक़ीक़ पसंद कर लिया है, हमने उन को साथ इल्म के ऊपर आलमों के। (सूरह दुख़ान 2 रुकूअ आयत 30, 32)

(3)

یٰبَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ اذۡکُرُوۡا نِعۡمَتِیَ الَّتِیۡۤ اَنۡعَمۡتُ عَلَیۡکُمۡ وَ اَنِّیۡ فَضَّلۡتُکُمۡ عَلَی الۡعٰلَمِیۡنَ (۴۷)

तर्जुमा : ऐ बनी-इस्राईल मेरी नेअमत को याद करो वो जो इनाम की है मैंने ऊपर तुम्हारे और ये कि मैंने बुजु़र्गी दी तुमको ऊपर आलमों के। (सूरह बक़रह 6 रुकूअ आयत 47)

(4)

قَالَ اَغَیۡرَ اللّٰہِ اَبۡغِیۡکُمۡ اِلٰـہًا وَّ ہُوَ فَضَّلَکُمۡ عَلَی الۡعٰلَمِیۡنَ (۱۴۰)

तर्जुमा : कहा मूसा ने क्या सिवाए ख़ुदा के चाहूँ मैं वास्ते तुम्हारे माबूद। और उस ने बुजु़र्गी दी तुमको ऊपर आलमों के। (सूरह आराफ़ 16 रुकूअ आयत 140)

(5)

وَ اِذۡ قَالَ مُوۡسٰی لِقَوۡمِہٖ یٰقَوۡمِ اذۡکُرُوۡا نِعۡمَۃَ اللّٰہِ عَلَیۡکُمۡ اِذۡ جَعَلَ فِیۡکُمۡ اَنۡۢبِیَآءَ وَ جَعَلَکُمۡ مُّلُوۡکًا وَّ اٰتٰىکُمۡ مَّا لَمۡ یُؤۡتِ اَحَدًا مِّنَ الۡعٰلَمِیۡنَ (۲۰)

तर्जुमा : और जब मूसा ने अपनी क़ौम को कहा ऐ मेरी क़ौम याद करो नेअमत अल्लाह की ऊपर अपने जिस वक़्त किए बीच तुम्हारे पैग़म्बर और किया तुमको बादशाह और दिया तुमको वो कुछ जो ना दिया किसी को सारे आलमों से। (सूरह माइदा 4 रुकूअ आयत 20)

(6)

وَ لَقَدۡ بَوَّاۡنَا بَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ مُبَوَّاَ صِدۡقٍ وَّ رَزَقۡنٰہُمۡ مِّنَ الطَّیِّبٰتِ ۚ

तर्जुमा : और अलबत्ता तहक़ीक़ जगह दी हमने बनी-इस्राईल को सदाक़त की जगह और रिज़्क़ दिया हमने उन को पाकीज़ा चीज़ों से। (सूरह यूनुस 10 रुकूअ आयत 93)

(7)

وَ نَجَّیۡنٰہُ وَ لُوۡطًا اِلَی الۡاَرۡضِ الَّتِیۡ بٰرَکۡنَا فِیۡہَا لِلۡعٰلَمِیۡنَ (۷۱)

तर्जुमा : और नजात दी हमने उस को (इब्राहिम को) और लूत को तरफ़ उस ज़मीन के कि बरकत रखी हमने बीच के वास्ते आलमों के। (सूरह अम्बिया 5 रुकूअ आयत 71)

(8)

وَ وَہَبۡنَا لَہٗۤ اِسۡحٰقَ وَ یَعۡقُوۡبَ وَ جَعَلۡنَا فِیۡ ذُرِّیَّتِہِ النُّبُوَّۃَ وَ الۡکِتٰبَ وَ اٰتَیۡنٰہُ اَجۡرَہٗ فِی الدُّنۡیَا ۚ وَ اِنَّہٗ فِی الۡاٰخِرَۃِ لَمِنَ الصّٰلِحِیۡنَ (۲۷)

तर्जुमा : और दिया हमने उस को इस्हाक़ और याक़ूब और की हमने बीच औलाद उन की रिसालत और किताब और दिया हमने उस को (इब्राहिम को) सवाब उस का बीच दुनिया के और बीच आख़िरत के और तहक़ीक़ वो बीच आख़िरत के अलबत्ता नेक हैं। (सूरह अन्कबूत 3 रुकूअ आयत 27)

(9)

وَ لَقَدۡ اٰتَیۡنَا مُوۡسَی الۡہُدٰی وَ اَوۡرَثۡنَا بَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ الۡکِتٰبَ (ۙ۵۳)ہُدًی وَّ ذِکۡرٰی لِاُولِی الۡاَلۡبَابِ (۵۴)

तर्जुमा : और अलबत्ता हमने दी मूसा को हिदायत और वारिस किया हमने बनी-इस्राईल को किताब का। हिदायत और नसीहत वास्ते साहिबाने अक़्ल के। (सूरह अल-मोमिन 6 रुकूअ आयत 53-54)

(10)

وَ لَقَدۡ اَرۡسَلۡنَا نُوۡحًا وَّ اِبۡرٰہِیۡمَ وَ جَعَلۡنَا فِیۡ ذُرِّیَّتِہِمَا النُّبُوَّۃَ وَ الۡکِتٰبَ فَمِنۡہُمۡ مُّہۡتَدٍ ۚ وَ کَثِیۡرٌ مِّنۡہُمۡ فٰسِقُوۡنَ (۲۶)

तर्जुमा : [जालंधरी] और हमने नूह और इब्राहिम को (पैग़म्बर) बना कर भेजा और उनकी औलाद में पैग़म्बरी और किताब (के सिलसिले को (वक़्तन-फ़-वक़्तन जारी) रखा तो बाअज़ तो इनमें से हिदायत पर हैं और अक्सर इनमें से ख़ारिज अज़ इताअत हैं। (सूरह हदीद 4 रुकूअ आयत 26)

इस फ़स्ल की आयात में से हमको ज़ेल की हक़ीक़तें मिलती हैं। जिनसे आने वाले बहुत से अक़दे (मुश्किल गिरह) हल हो जाऐंगे।

1. कि इब्राहिम और इस्हाक़ और याक़ूब की नस्ल की निहायत ही ख़ास ख़ुसूसीयत और ख़ास बयान जिससे ये क़ौम दीगर अक़्वाम से इम्तियाज़ की जाये क़ुरआन में किया गया है।

2. कि हज़रत इस्हाक़ और याक़ूब और और उस की औलाद की ख़ास नेअमतें ज़िक्र की जाती हैं जिनसे बनी-इस्राईल की दीगर अक़्वाम की निस्बत ख़ुसूसीयत ज़ाहिर व साबित है। और वो नेअमतें भी ऐसी कि तमाम आलमों से किसी को ना दी गईं। और ना दी जा सकीं जैसा कि (आयत नम्बर 5 से ज़ाहिर है)

3. तमाम इस्राईल का तमाम आलमों से ख़ुदा की पसंदीदा क़ौम होना साबित है जैसा कि आयत नम्बर (2) से साबित है और इसी आयत से ये भी ज़ाहिर किया गया है कि ख़ुदा ने अपने इल्म व दानाई और दाइमी पेश-बीनी से जान कर और पहचान कर बनी-इस्राईल को आलमों से पसंद किया और चुन लिया।

4. बनी-इस्राईल के हक़ में ये भी क़ुरआन से साबित है कि बनी-इस्राईल किताब और शरीअत और नबुव्वत और रिसालत के लिए मख़्सूस हैं। बमूजब बयान क़ुरआनी ये बरकात दीनी ख़ुदा बनी-इस्राईल को दे चुका। और उन्हीं के लिए मख़्सूस कर चुका। (आयात नम्बर 1, 5, 8, 10, 11 को देखो) और दीनी हुकूमत और बादशाही और इल्हामी सच्चाई की बुलंद आवाज़ ख़ुदा बनी-इस्राईल को सौंप चूका। देखो (फ़स्ल अव़्वल दफ़ाअ 6 सूरह मर्यम 3 रुकूअ की आयत मनक़ूला को।)

5. ना सिर्फ यही बल्कि सदाक़त और रास्ती और बरकात दीनी की जगह भी ख़ुदा क़ुरआन के बयान के मुवाफ़िक़ बनी-इस्राईल की मीरास कर चुका (यानी मुल्क कनआन) जिसमें बरकात दीनी ख़ुदा ने तमाम आलमों के लिए ठहराईं और मुक़र्रर कीं, ताकि तमाम आलम मुल्क कनआन से बरकत दीनी हासिल करें। ये बयान (आयत नम्बर 6, 7) से निकाला जाता है।

6. बनी-इस्राईल को जो विरासत और किताब मिली है वो दुनिया के तमाम अक़्लमंदों और दीन के तालिबों के लिए है सिर्फ बनी-इस्राईल ही के लिए नहीं है। तमाम जाहिल और बेवक़ूफ़ इस विरासत से महरूम रहेंगे। ये मज़्मून (नम्बर 9) की आयत से निकलता है।

7. तमाम आलमों पर बनी-इस्राईल की फ़ज़ीलत का एक और सबक़ हमको पढ़ाया जाता है। क़ुरआन का मुसन्निफ़ बनी-इस्राईल को तमाम आलमों पर फ़ज़ीलत दे चुका है और फ़ज़ीलत के अस्बाब भी बयान कर चुका है। अब देखना चाहिए कि ऊपर के बयानात से और कौन सी हक़ीक़तें क़ायम हो जाती हैं।

मसीही मुनाद याद करें

1. कि क़ुरआन फ़ैसला कर चुका है कि बनी-इस्राईल रिसालत और किताबत दीनी और नबुव्वत वग़ैरह के वारिस हैं लिहाज़ा बनी-इस्राईल के रसूलों और नबियों और किताबों और नबुव्वत के मुक़ाबिल किसी क़ौम या फ़िर्क़े के किसी आदमी को नबी नहीं माना जा सकता जब तक कि वो बनी-इस्राईल से ना हो और उस की नबुव्वत बनी-इस्राईल की किताबों से साबित ना हो। और ना कोई किताब इल्हामी मानी जा सकती है जब तक कि साबित ना हो कि ये बनी-इस्राईल के किसी नबी की है। दूसरे लफ़्ज़ों में नबुव्वत और रिसालत बनी-इस्राईल में महदूद की गई है। बनी-इस्राईल से बाहर कोई नबी नहीं। कोई किताब नहीं। कोई रिसालत नहीं।

2. बनी-इस्राईल की तख़्सीस (ख़ुसूसीयत, गुण, हक़ मख़्सूस) नबुव्वत और किताब और रिसालत से की गई है। मुहम्मदी कोशिश करेंगे कि इस ख़ुसूसीयत से इन्कार करके मुहम्मद साहब की रिसालत के लिए राह निकालें। पर हमको ख़बरदार होना चाहिए कि क़ुरआन की आयात मज़्कूर बाला में हर एक ग़ैर बनी-इस्राईल के नबी होने का रास्ता बंद है ऐसे मौक़े पर मुहम्मदियों से कहो कि मुहम्मद साहब को पेश्तर बनी-इस्राईल साबित करें।

3. मुहम्मदी साहिबान बनी-इस्राईल की फ़ज़ीलत के बाब में भी तकरार करेंगे। क्योंकि फ़ज़ीलत बनी-इस्राईल जैसा कि क़ुरआन में हमने दिखाया मान कर किसी तौर और जिहत से मुहम्मद साहब और आपकी अरबी क़ौम की बुजु़र्गी का मसअला माना नहीं जा सकता है। लिहाज़ा हमारे मुहम्मदी साहिबान और क़ुरआन के मुफ़स्सिरीन फ़ज़ीलत के बाब में सख़्त उलट पुलट तावीलात करेंगे और ख़ासकर लफ़्ज़ आलमीन के माअनों में तख़फ़ीफ़ (कमी) करेंगे। पर ख़बरदार उन की तूल तवील तावीलों में न फँसना।

जानना चाहिए कि लफ़्ज़ आलमीन इल्म से मुश्तक़ (वो लफ़्ज़ जो किसी दूसरे लफ़्ज़ से बनाया गया हो) है। जिसके माने निशान या झंडे के हैं। और चूँकि जहां पर इल्म नसब होता है। वहां पर लश्कर की मौजूदगी ज़ाहिर होती है इसलिए लफ़्ज़ इल्म से आलम बिना या गया जो एक ज़माने की तमाम ख़ल्क़त की मौजूदगी पर दलालत करता है। पस अगर क़ुरआन में लफ़्ज़ आलम बजाए आलमीन इस्तिमाल किया जाता तो बनी-इस्राईल की फ़ज़ीलत एक आलम पर महदूद होती लेकिन आलमीन आलम की जमा इस्तिमाल कर के मुसन्निफ़ क़ुरआन ने बनी-इस्राईल को तमाम ज़मानों की ख़ल्क़त पर फ़ज़ीलत दी है जिससे मुराद क़ियामत तक पैदा होने वाली ख़ल्क़त पर फ़ज़ीलत है और लुत्फ़ ये है कि ख़ुदा ने ये फ़ज़ीलत अपनी इल्म व दानाई से जान कर दी है जो किसी तरह से जा नहीं सकती है कम नहीं हो सकती है और ना बनी-इस्राईल तमाम आलमों की नसलों में दीन के बाब में ज़लील हो सकते हैं। पस इस फ़स्ल के मज़ामीन मुहम्मदी नबुव्वत और रिसालत और क़ुरआन के इल्हामी किताब होने के ख़िलाफ़ सद सिकंदरी हैं जिनको बातिल कर के मुहम्मदी नबुव्वत को साबित करना आसान बात नहीं है।

अब हम मुहम्मदियों से मुख़ातिब हो कर गुज़ारिश करते हैं, कि क़ुरआन से साबित है कि नबुव्वत और रिसालत और इल्हाम और किताब क़ुरआन के बयान के मुताबिक़ बनी-इस्राईल में महदूद हो चुकी है। अब ग़ैर-बनी-इस्राईल को इल्हाम और नबुव्वत और रिसालत का हिस्सेदार माना नहीं जा सकता है। मुहम्मद साहब को बनी-इस्राईल की इन बरकात की ख़बर दी गई ताकि हज़रत जान लें कि आप नबुव्वत का दावा नहीं कर सकते हैं क्योंकि आप बनी-इस्राईल नहीं हैं।

आप बनी-इस्राईल की फ़ज़ीलत में साझी (हिस्सेदार) नहीं बन सकते हैं इस से हज़रत पर बनी-इस्राईल की फ़ज़ीलत साबित हो चुकी। पस अब आप लोग हज़रत के नबी होने और क़ुरआन के इल्हामी होने के उसूलों की तलाश फ़रमाइये। ये मोरचा हमारे हाथ आ चुका है, कि तमाम दीनी बरकात बनी-इस्राईल की मीरास हैं ग़ैर की नहीं। पस इस फ़स्ल में हमने दीने इब्राहीमी की फ़ज़ीलत जिसे इस्लाम कहते हैं और जो दीने इस्हाक़ की नस्ल का दीन ही दिखाई है जिसके साथ ही बनी-इस्राईल की फ़ज़ीलत का मसअला भी फ़ैसल हो गया ज़्यादा हम फिर अर्ज़ करेंगे।

चौथी फ़स्ल
जिसमें वो आयात क़ुरआनी नक़्ल की गई हैं जिनसे जनाबे मसीह को रद्द करने से बनी-इस्राईल इस्लाम की बरकात से ख़ारिज किए गए साबित हैं

इस फ़स्ल के मज़्मून से हमारा मुद्दआ और मतलब ये है कि बनी-इस्राईल ख़ुदावन्द येसू मसीह को क़ुबूल ना करने की वजह से सज़ा की हालत में हैं। पर सिर्फ वो इस्राईली जिन्हों ने ख़ुदावन्द को क़ुबूल ना किया वो ही सज़ा में हैं पर उन की फ़ज़ीलत और ख़ुसूसीयत जाती नहीं रही। क्योंकि ख़ुदावन्द येसू मसीह और उस के शागिर्द भी इस्राईली थे। लिहाज़ा वो फ़ज़ीलत और ख़ुसूसीयत बहाल रही जो ख़ुदा बनी-इस्राईल को दे चुका था और जिन्हों ने ख़ुदावन्द येसू को ना माना वो ख़ारिज किए गए और क़ुरआन से साबित है कि जिन्हों ने ख़ुदावन्द येसू को ना माना वो ख़ारिज किए गए हैं। पर इस फ़स्ल के मज़्मून का मतलब ये हरगिज़ नहीं कि बेईमान इस्राईली ख़ारिज किए गए और ग़ैर-इस्राईली इस फ़ज़ीलत दीनी के वारिस हो गए। इस्लाम इस्राईली से जुदा नहीं हुआ। बाअज़ की बेईमानी से कुल बनी-इस्राईल की फ़ज़ीलत ज़ाए नहीं हो सकती है। मुक़ामात ये हैं।

لُعِنَ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا مِنۡۢ بَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ عَلٰی لِسَانِ دَاوٗدَ وَ عِیۡسَی ابۡنِ مَرۡیَمَ ؕ ذٰلِکَ بِمَا عَصَوۡا وَّ کَانُوۡا یَعۡتَدُوۡنَ (۷۸)

तर्जुमा : लानत किए गए वो लोग कि काफ़िर हुऐ बनी-इस्राईल से ऊपर ज़बान दाऊद के और ईसा बेटे मर्यम की कि ये बेसबब के कि ना-फ़र्मानी करते थे और थे हद से निकल जाते। (सूरह माइदा 11 रुकूअ आयत 78)

اِذۡ قَالَ اللّٰہُ یٰعِیۡسٰۤی اِنِّیۡ مُتَوَفِّیۡکَ وَ رَافِعُکَ اِلَیَّ وَ مُطَہِّرُکَ مِنَ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا وَ جَاعِلُ الَّذِیۡنَ اتَّبَعُوۡکَ فَوۡقَ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡۤا اِلٰی یَوۡمِ الۡقِیٰمَۃِ ۚ ثُمَّ اِلَیَّ مَرۡجِعُکُمۡ فَاَحۡکُمُ بَیۡنَکُمۡ فِیۡمَا کُنۡتُمۡ فِیۡہِ تَخۡتَلِفُوۡنَ (۵۵)فَاَمَّا الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا فَاُعَذِّبُہُمۡ عَذَابًا شَدِیۡدًا فِی الدُّنۡیَا وَ الۡاٰخِرَۃِ ۫ وَ مَا لَہُمۡ مِّنۡ نّٰصِرِیۡنَ (۵۶)

तर्जुमा : जिस वक़्त कहा अल्लाह ने ऐ ईसा मैं मारने वाला हूँ तुझको और उठा ने वाला हूँ तुझको तरफ़ अपनी और पाक करने वाला हूँ तुझको उन लोगों से कि काफ़िर हुए (तुझसे) और करने वाला हूँ उन लोगों को कि पैरवी करते हैं तेरी फ़त्ह मंद ऊपर उन लोगों के कि काफ़िर हुए (तुझसे) क़ियामत के दिन तक। पस जो लोग कि काफ़िर हुए (ईसा की पैरवी से) पस अज़ाब करूँगा उन को अज़ाब सख़्त बीच दुनिया के और बीच आख़िरत के। और नहीं वास्ते उन के कोई मददगार (क़ियामत के दिन तक) (सूरह इमरान 5 रुकूअ आयत 55-56)

قَالَ اللّٰہُ اِنِّیۡ مُنَزِّلُہَا عَلَیۡکُمۡ ۚ فَمَنۡ یَّکۡفُرۡ بَعۡدُ مِنۡکُمۡ فَاِنِّیۡۤ اُعَذِّبُہٗ عَذَابًا لَّاۤ اُعَذِّبُہٗۤ اَحَدًا مِّنَ الۡعٰلَمِیۡنَ (۱۱۵)

तर्जुमा : कहा अल्लाह ने (ईसा को) तहक़ीक़ मैं उतार ने वाला हूँ उस को (ख़वान को) ऊपर तुम्हारे पस जो कोई कुफ़्र करे ईसा की पैरवी से पीछे उस के (नुज़ूल ख़वाँ के) तुम में से पस तहक़ीक़ मैं अज़ाब करूँगा उस को वो अज़ाब कि ना अज़ाब करूँगा वो किसी को आलमों में से। (सूरह माइदा 16 रुकूअ आयत 115)

فَبِمَا نَقۡضِہِمۡ مِّیۡثَاقَہُمۡ وَ کُفۡرِہِمۡ بِاٰیٰتِ اللّٰہِ وَ قَتۡلِہِمُ الۡاَنۡۢبِیَآءَ بِغَیۡرِ حَقٍّ وَّ قَوۡلِہِمۡ قُلُوۡبُنَا غُلۡفٌ ؕ بَلۡ طَبَعَ اللّٰہُ عَلَیۡہَا بِکُفۡرِہِمۡ فَلَا یُؤۡمِنُوۡنَ اِلَّا قَلِیۡلًا (۱۵۵)وَّ بِکُفۡرِہِمۡ وَ قَوۡلِہِمۡ عَلٰی مَرۡیَمَ بُہۡتَانًا عَظِیۡمًا (۱۵۶ۙ)

तर्जुमा : पस अपने क़ौल व अहद को तोड़ने के सबब से और बसबब कुफ़्र उनके के साथ अल्लाह की निशानीयों के और नबियों को नाहक़ क़त्ल करने के सबब और ये बात कहने के बाइस कि हमारे दिलों पर पर्दे हैं बल्कि मुहर की है अल्लाह ने ऊपर उन के कुफ़्र के सबब से। पस नहीं ईमान लाते मगर थोड़े और उन के कुफ़्र के सबब से और मर्यम पर बोहतान लगाने की जिहत से (अल्लाह ने मुहर की) (सूरह निसा 22 रुकूअ आयत 155-156)

ऊपर के मुक़ामात से ज़ेल की बातें क़ायम होती हैं :-

1. कि बनी-इस्राईल क़ुरआन में इसलिए मलऊन गिर्दाने जाते हैं कि वो ईसा पर ईमान नहीं लाए और अम्बिया की पैरवी ना की और उन को नाहक़ क़त्ल किया और हज़रत मर्यम पर बड़ा इल्ज़ाम लगाया।

2. और बनी-इस्राईल कुल के कुल मलऊन क़रार नहीं दिए गए मगर वो ही जो ख़ुदावन्द येसू पर ईमान ना ला कर उस की पैरवी से बाज़ रहे।

3. वो फ़रीक़ जो बनी-इस्राईल में से ख़ुदावन्द येसू मसीह पर ईमान लाया तमाम बरकात का वारिस ठहराया गया जो बरकात बनी-इस्राईल को ख़ुदा की तरफ़ से दी गई थीं।

4. जो लोग ख़ुदावन्द येसू पर ईमान ना लाए उन के लिए अज़ाब शदीद का जब तक वो ईमान ना लाएं फ़त्वा दिया गया।

5. कि वो जो ख़ुदावन्द येसू पर ईमान ना लाए उन के लिए और उन की बेईमान औलाद के लिए क़ियामत तक मददगार और रिहाई दहिंदा का वाअदा और उम्मीद बातिल ठहराई गई गोया कि बनी-इस्राईल के नाफ़रमानों के लिए हर एक मददगार और नजातदिहंदा का आना मौक़ूफ़ किया गया मगर येसू मसीह क़ियामत तक बनी-इस्राईल के नाफ़रमानों से ईमान का मुतालिबा करने के लिए क़ायम किया गया जिसके सिवा कोई बनी-इस्राईल के नाफ़रमानों को नजात नहीं दे सकता दूसरे लफ़्ज़ों में येसू मसीह के सिवा और बाद हर एक नबी का आना मौक़ूफ़ किया गया।

6. जो इस्राईल ख़ुदावन्द येसू पर ईमान लाया क़ियामत तक उस को अपने दुश्मनों पर और ख़ुदावन्द येसू मसीह के मुख़ालिफ़ों पर फ़ज़ीलत और सर्फ़राज़ी इनायत हो चुकी जो कभी जाती ना रहेगी। पस ख़ुदावन्द येसू मसीह के बाद ख़ुदावन्द येसू के पैरों (मानने वालों) के लिए और मुख़ालिफ़ों के लिए बिल्कुल नबुव्वत और नबी का सिलसिला ख़त्म हो गया अब सिर्फ नजात के लिए येसू मसीह ही क़ियामत तक दुनिया के रूबरू है और कोई नबी नहीं हो सकता है।

नाज़रीन पर आफ़्ताब नयम रोज़ की तरफ़ रोशन हो गया कि हर एक नाफ़र्मान इस्राईली ख़ुदावन्द येसू मसीह पर ईमान ना लाने की जिहत से सज़ा का मुस्तूजिब क़रार दिया गया। पर इस्लाम और इस्लाम की फ़ज़ीलत और मीरास का हर एक फ़रमांबर्दार इस्राईली वारिस ठहरा हाँ जो इस्राईली ख़ुदावन्द येसू मसीह पर ईमान लाया वही इस्राईली इस्लाम का और फ़ज़ीलत का वारिस रहा पर हर एक बेईमान इस्राईली ख़ारिज किया गया। पस साबित है कि दीन-ए-ईस्वी इस्लाम है।

पांचवीं फ़स्ल
जिसमें वो आयात क़ुरआनी आई हैं जिससे साबित किया गया है कि मसीही मज़्हब इब्राहीमी इस्लाम है और उस की बरकतों का वारिस है

हमने गुज़री फ़स्ल में बयान किया कि बनी-इस्राईल के बेईमान लोग खुदावंद येसू मसीह पर ईमान ना लाने की जिहत से मसीही मज़्हब की दौलत से महरूम हुए या इस्लाम की बरकात से अलग किए गए पर जो बनी-इस्राईल ख़ुदावन्द येसू पर ईमान लाए वो इस्लाम की दौलत के वारिस हुए। अब हम बयान करते हैं कि दीनी फ़ज़ीलत और इस्लाम की सर-बुलंदी मसीही मज़्हब की मीरास हो गई है। क़ुरआन इस पर भी रोशनी डालता है। मुक़ामात ये हैं :-

اِنَّ اللّٰہَ اصۡطَفٰۤی اٰدَمَ وَ نُوۡحًا وَّ اٰلَ اِبۡرٰہِیۡمَ وَ اٰلَ عِمۡرٰنَ عَلَی الۡعٰلَمِیۡنَ (ۙ۳۳)

तर्जुमा : और तहक़ीक़ अल्लाह ने बर्गुज़ीदा किया आदम को और नूह को और आले इब्राहिम को और आले-इमरान को ऊपर आलमों के। (इमरान क़ुरआन के मुताबिक़ ख़ुदावन्द येसू का नाना था) (सूरह इमरान 4 रुकूअ आयत 33)

وَ جَعَلۡنٰہَا وَ ابۡنَہَاۤ اٰیَۃً لِّلۡعٰلَمِیۡنَ (۹۱)

तर्जुमा : और क्या हमने उस को (मर्यम को) और बेटे उस के को मोअजिज़ा वास्ते आलमों के। (सूरह अम्बिया 6 रुकूअ आयत 91)

وَ یُعَلِّمُہُ الۡکِتٰبَ وَ الۡحِکۡمَۃَ وَ التَّوۡرٰىۃَ وَ الۡاِنۡجِیۡلَ (ۚ۴۸)وَ رَسُوۡلًا اِلٰی بَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ

तर्जुमा : और सिखा देगा उस को यानी ईसा को किताब और हिक्मत और तौरात और इन्जील और करेगा उस को रसूल तरफ़ बनी-इस्राईल के। (सूरह इमरान 5 रुकूअ आयत 48-49)

وَ قَفَّیۡنَا عَلٰۤی اٰثَارِہِمۡ بِعِیۡسَی ابۡنِ مَرۡیَمَ مُصَدِّقًا لِّمَا بَیۡنَ یَدَیۡہِ مِنَ التَّوۡرٰىۃِ ۪ وَ اٰتَیۡنٰہُ الۡاِنۡجِیۡلَ فِیۡہِ ہُدًی وَّ نُوۡرٌ ۙ وَّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَیۡنَ یَدَیۡہِ مِنَ التَّوۡرٰىۃِ وَ ہُدًی وَّ مَوۡعِظَۃً لِّلۡمُتَّقِیۡنَ (ؕ۴۶)

तर्जुमा : और पछाड़ी भेजा हमने ऊपर पेरुं उनके ईसा बेटे मर्यम के को सच्चा करने वाला उस चीज़ का कि आगे उस के थी तौरात से और दी हमने उस को इन्जील बीच उस के है हिदायत और रोशनी और सच्चा करती है उस चीज़ को कि आगे उस के थी तौरात से और हिदायत और नसीहत वास्ते परहेज़गारों के। (सूरह माइदा 7 रुकूअ आयत 46)

فَلَمَّاۤ اَحَسَّ عِیۡسٰی مِنۡہُمُ الۡکُفۡرَ قَالَ مَنۡ اَنۡصَارِیۡۤ اِلَی اللّٰہِ ؕ قَالَ الۡحَوَارِیُّوۡنَ نَحۡنُ اَنۡصَارُ اللّٰہِ ۚ اٰمَنَّا بِاللّٰہِ ۚ وَ اشۡہَدۡ بِاَنَّا مُسۡلِمُوۡنَ (۵۲)

तर्जुमा : पस जब देखा ईसा ने कुफ़्र। कहा कौन हैं मदद देने वाले मुझको तरफ़ अल्लाह की? कहा हवारियों ने कि हम हैं मदद देने वाले अल्लाह के ईमान लाए हम साथ अल्लाह के और तू गवाह रह साथ इस के कि हम मुसलमान हैं। (सूरह इमरान 5 रुकूअ आयत 52)

وَ وَہَبۡنَا لَہٗۤ اِسۡحٰقَ وَ یَعۡقُوۡبَ ؕ کُلًّا ہَدَیۡنَا ۚ وَ نُوۡحًا ہَدَیۡنَا مِنۡ قَبۡلُ وَ مِنۡ ذُرِّیَّتِہٖ دَاوٗدَ وَ سُلَیۡمٰنَ وَ اَیُّوۡبَ وَ یُوۡسُفَ وَ مُوۡسٰی وَ ہٰرُوۡنَ ؕ وَ کَذٰلِکَ نَجۡزِی الۡمُحۡسِنِیۡنَ (ۙ۸۴)وَ زَکَرِیَّا وَ یَحۡیٰی وَ عِیۡسٰی وَ اِلۡیَاسَ ؕ کُلٌّ مِّنَ الصّٰلِحِیۡنَ (ۙ۸۵)وَ اِسۡمٰعِیۡلَ وَ الۡیَسَعَ وَ یُوۡنُسَ وَ لُوۡطًا ؕ وَ کُلًّا فَضَّلۡنَا عَلَی الۡعٰلَمِیۡنَ (ۙ۸۶)وَ مِنۡ اٰبَآئِہِمۡ وَ ذُرِّیّٰتِہِمۡ وَ اِخۡوَانِہِمۡ ۚ وَ اجۡتَبَیۡنٰہُمۡ وَ ہَدَیۡنٰہُمۡ اِلٰی صِرَاطٍ مُّسۡتَقِیۡمٍ (۸۷)ذٰلِکَ ہُدَی اللّٰہِ یَہۡدِیۡ بِہٖ مَنۡ یَّشَآءُ مِنۡ عِبَادِہٖ ؕ وَ لَوۡ اَشۡرَکُوۡا لَحَبِطَ عَنۡہُمۡ مَّا کَانُوۡا یَعۡمَلُوۡنَ (۸۸)اُولٰٓئِکَ الَّذِیۡنَ اٰتَیۡنٰہُمُ الۡکِتٰبَ وَ الۡحُکۡمَ وَ النُّبُوَّۃَ ۚ فَاِنۡ یَّکۡفُرۡ بِہَا ہٰۤؤُلَآءِ فَقَدۡ وَکَّلۡنَا بِہَا قَوۡمًا لَّیۡسُوۡا بِہَا بِکٰفِرِیۡنَ (۸۹)اُولٰٓئِکَ الَّذِیۡنَ ہَدَی اللّٰہُ فَبِہُدٰىہُمُ اقۡتَدِہۡ

तर्जुमा : और दिए हमने वास्ते उस के (इब्राहिम) के इस्हाक़ और याक़ूब हर एक को हिदायत की हमने और नूह को हिदायत की हमने पहले इस से। और औलाद उस की में से दाऊद को और सुलेमान को और अय्यूब को और यूसुफ़ को और मूसा को और हारून को और इसी तरह जज़ा देते हैं हम एहसान करने वालों को। और ज़करीयाह को और यहया को और ईसा को और इल्यास को हर एक सालिहों से था। और इस्माईल और अल-यसीअ और यूनुस और लूत को और हर एक को बुजु़र्गी दी हमने ऊपर आलमों के और बापों उन की से और औलाद उन की से और भाईयों उन के से और पसंद किया हमने उन को और हिदायत की हमने उन को तरफ़ राह सीधी के। ये है हिदायत अल्लाह की दिखाता है साथ उस के जिसे चाहता है बंदों अपने से। और अगर शरीक करते हो अलबत्ता खोए जाते हो जो कुछ थे वो अमल करते। ये लोग हैं वो जो दी हमने उनको किताब और हुक्म और नबुव्वत। पस अगर कुफ़्र करें साथ इस के (ऊपर के बयान के) ये (अहले मक्का और अरब) पस तहक़ीक़ मुक़र्रर किया है हमने साथ इस के इस क़ौम को कि नहीं हैं साथ इस के (इस बयान के) कुफ़्र करने वाले (कि अहले किताब हैं) ये लोग हैं जिनको हिदायत की अल्लाह ने पस साथ हिदायत इनकी के (अहले किताब की के) पैरवी कर तू (ऐ मुहम्मद) (सूरह अनआम 10 रुकूअ आयत 84-90)

ऊपर के मुक़ामात हमने अपने इस दाअवे की ताईद में नक़्ल किए हैं कि इस्लाम इब्राहीमी मसीही मज़्हब है। और इस बयान से हम ये दलाईल निकालते हैं। इंसाफ़ पसंद मुहम्मदी साहिबान ग़ौर फ़रमाएं।

1. इस्माईल की नबुव्वत साबित नहीं है। इसलिए कि इस्माईल की औलाद को ख़ुदा ने हिदायत नहीं की और उस की औलाद की हिदायत सिरात-ए-मुस्तक़ीम (सीधी राह) की तरफ़ की ना गई मुहम्मद साहब के वक़्त तक इस्माईल की कुल औलाद गुमराह थी। और किताब-ए-मुक़द्दस से साबित नहीं कि इस्माईल नबी था।

2. कि इब्राहिम की नस्ल में और इमरान के ख़ानदान का इंतिख़ाब सानी हुआ। क़ुरआन का मुसन्निफ़ कहता है कि ख़ुदा ने इमरान के ख़ानदान को आलमों पर पसंद फ़रमाया ख़ासकर आले-इमरान को आलमों पर पसंद करके बर्गुज़ीदा किया। और ये आल-ए-इमरान हज़रत मर्यम और उस का बेटा ईसा मसीह है। जिसे ख़ुदा ने आलमों पर फ़ज़ीलत बख़्शी और आलमों के लिए मोअजिज़ा मुक़र्रर किया।

3. क़ुरआन से ख़ुदावन्द येसू मसीह की रिसालत और नबुव्वत साबित है। जिसे बनी-इस्राईल के बेईमानों ने ना मान कर रद्द किया और इस बाइस से ये नाफ़र्मान मलऊन (लानती) हो कर इस्लाम से ख़ारिज हुए और मसीह को मानने वाले इस्लाम के वारिस ठहरे जिससे जायज़ तौर से मसीह का मज़्हब इस्लाम मुक़र्रर हुआ।

4. कि मसीह बनी-इस्राईल का नबी हो कर तौरात और ज़बूर और सहाइफ़ अम्बिया का मुसद्दिक़ ठहरा और क़ुरआन के मुसन्निफ़ ने ये तस्दीक़ जायज़ ठहराई और जिसे किताब और हिक्मत वग़ैरह मिली जिसमें हिदायत और नूर और नसीहत पाई जाती है। पस येसू मसीह मुकम्मल और मुसद्दिक़ कुतुब-ए-रब्बानी हो कर इस्लाम को मज़्बूत और क़ायम करने वाला और इस्लाम की बरकात का वारिस।

5. कि ख़ुदावन्द येसू मसीह ने इस्लाम की ताअलीम दी और येसू मसीह के शागिर्दों ने मज़्हबे इस्लाम क़ुबूल किया। जिससे साबित हुआ कि हम जिसे दीन-ए-ईस्वी कहते और क़ुरआन जिसे इस्लाम कहता है मसीही मज़्हब है जिसकी इताअत व फ़रमांबर्दारी हर फ़र्द बशर पर वाजिब है क्योंकि इस्लाम ही दीन है जिसकी पैरवी ख़ुदा को मंज़ूर है।

6. ये भी याद रखना ज़रूर है कि इस्लाम की पैरवी तौरात को ही क़ुबूल करने से नहीं हो सकती है क्योंकि तौरात बग़ैर इन्जील बे-तस्दीक़ और ना-मुकम्मल है। सिर्फ इन्जील ही की पैरवी इस्लाम की पैरवी साबित हुई। पस जो कोई इन्जील की इताअत ना करे वो इस्लाम से ख़ारिज है।

अब ऊपर की वजूहात से जो बात बहस तलब क़ायम होती है वो ये है कि मसीह के दुनिया में आने के बाद इस्लाम की बरकतों का वारिस होना या तो मसीही वालदैन के घर पैदा हो कर मसीही होने पर मुन्हसिर हुआ और या ईमान व यक़ीन से ईसाई होने पर और कोई तरीक़ा मुसलमान होने का नहीं रहा।

मसीही मुनाद (मुबल्लिग़) ये बात ना भूलें

कि हज़रत मुहम्मद साहब और मुहम्मदी क़ौम ने दुनिया के रूबरू मुसलमान होने का दाअवा कर रखा है। अब उन से पूछा जाये कि हज़रत मुहम्मद साहब कब ईसाई हुए और मुहम्मदी क़ौम का हर एक शख़्स कब मसीही हुआ जो वो मुसलमान होने का दावा करते हैं? वो किसी क़ाएदे से मुसलमान साबित नहीं हो सकते हैं इसलिए कि वो कभी मसीही ना हुए। मसीही मज़्हब तुम्हारे रूबरू क़ुरआन से इस्लाम साबित है। अब मुहम्मदी क़ौम अपने मुसलमान होने का सबूत दे कि क्या है? वर्ना आज से मुसलमान कहलाना छोड़ा जाये। क्योंकि ये सरीह (साफ़ वाज़ेह) फ़रेब है।

7. क़ुरआन में मुहम्मद साहब को साफ़ हुक्म आया है कि ईसाईयों या अहले-किताब की हिदायत की पैरवी की जाये जैसा कि (सूरह इनआम) की मनक़ूला बाला आयात से ज़ाहिर है। जिस पर या जिन मअनी पर मुफ़स्सिरीन क़ुरआन ने आज तक पर्दे डालते हैं हम पूछते हैं कि कब मसीहियों की हिदायत पर अमल किया गया? मुहम्मदी साहिबान इन तमाम बातों के जवाब आप लोगों से तलब किए जाऐंगे। हम हक़ को ज़ाहिर करेंगे देखेंगे, कि आप लोग कब तक सच्चाई को रद्द करते जाऐंगे। बेहतर है कि अभी इस्लाम को क़ुबूल करो। देखो अब भी क़बूलीयत का वक़्त है।

क़ुरआन शरीफ़ में यही मसीही मज़्हब इस्लाम के नाम से आप लोगों के लिए पसंद किया गया था। लेकिन देखो आप लोग आज तक इस्लाम से हज़ारों मील दूर हैं। सच्चाई के तालिबो और इब्राहीमी मज़्हब की बरकतों के आशिक़ो अब उठो ख़ुदावन्द येसू के शागिर्द हो कर मुसलमान हो क्योंकि मसीही मज़्हब ही इस्लाम है।

जब कि बग़ैर मसीही होने के ख़ास मुसलमान जो इस्लाम के हक़दार थे मलऊन किए जा कर इस्लाम से ख़ारिज किए गए तो तू ऐ मुहम्मदी क़ौम जो इस्लाम में हिस्सा ही ना रखती थी बग़ैर मसीही होने के क्योंकर वारिस हो सकती है? क्या तुझे लानत का डर नहीं है? हम तेरी सलामती के लिए दुआ करते हैं। और दिल से चाहते हैं कि तू इस्लाम की वारिस हो जाये पर बग़ैर मसीही होने के नहीं हो सकती है। हम दिखा चुके कि तू इस्लाम की पैरौ नहीं है और इस्लाम मसीही मज़्हब है जिसकी बरकत बग़ैर ईमान बाअमल के हासिल नहीं हो सकती है। अब हम इस्लामी हक़ीक़ी के उसूल की किताब का ज़िक्र करेंगे और क़ुरआन की ज़बान से मुन्किरीने दीने ईस्वी इस्लाम का मुँह-बंद कर देंगे। ताकि मुहम्मदी क़ौम पर रोशन हो कि ख़ुदा ईस्वी इस्लाम के मुख़ालिफ़ों के मुँह से तारीफ़ करवा सकता है। ज़्यादा सलाम अलैकुम।

दूसरा बाब
इस्लाम इब्राहीमी के उसूल की किताब का बयान

इस बाब में साबित किया जाएगा कि ज़माना-ए-मुहम्मदी में किताब-ए-मुक़द्दस मौजूद थी और कि वो बिला तहरीफ़ (यानी बदली नहीं गई) मौजूद थी और कि क़ुरआन ने किताब-ए-मुक़द्दस की तस्दीक़ की और कि इस के अहकाम के अजज़ा की ताकीद की। और कि क़ुरआन ने किताब-ए-मुक़द्दस की बाअज़ ख़ूबीयों का बयान किया। और कि मुहम्मदियों को किताब-ए-मुक़द्दस पर ईमान लाने की ताकीद की। और मुन्किरीने किताब-ए-मुक़द्दस के लिए सज़ा तज्वीज़ की गई। और किताब-ए-मुक़द्दस की शहादत (गवाही) सनद ठहराई गई वग़ैरह।

पहली फ़स्ल
इस बयान में कि मुहम्मद साहब के ज़माने में किताब-ए-मुक़द्दस मौजूद थी
अव़्वल : इक़तिबासों से साबित है।

وَ لَقَدۡ کَتَبۡنَا فِی الزَّبُوۡرِ مِنۡۢ بَعۡدِ الذِّکۡرِ اَنَّ الۡاَرۡضَ یَرِثُہَا عِبَادِیَ الصّٰلِحُوۡنَ (۱۰۵)

तर्जुमा : और तहक़ीक़ हमने (बाद ज़िक्र यानी तौरेत) के ज़बूर में लिखा है कि मेरे नेक बंदे ज़मीन के वारिस होंगे। (सूरह अम्बिया आयत 105)

देखो ज़बूर 29:37 को कि सालहीन ज़मीन के वारिस होंगे और हमेशा इस पर रहा करेंगे।

وَ کَتَبۡنَا عَلَیۡہِمۡ فِیۡہَاۤ اَنَّ النَّفۡسَ بِالنَّفۡسِ ۙ وَ الۡعَیۡنَ بِالۡعَیۡنِ

तर्जुमा : और लिख दिया हमने उन पर इसी (किताब तौरेत) में और इन्जील में कि जी के बदले जी। आँख के बदले आँख…. अलीख (सूरह माइदा आयत 45)

तुम सुन चुके हो कि कहा गया अगलों से कि आँख के बदले आँख और दाँत के बदलेदाँत (मत्ती 5:38, ख़ुरूज 21:24, अहबार 24:20) वग़ैरह।

जामेअ तिर्मिज़ी, जिल्द दोम, इल्म का बयान, हदीस 57

عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ بَلِّغُوا عَنِّي وَلَوْ آيَةً وَحَدِّثُوا عَنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَلَا حَرَجَ

तर्जुमा : बुख़ारी में अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत है कि हज़रत ने फ़रमाया कि पहुँचाओ लोगों को मेरी तरफ़ से अगरचे एक ही आयत हो और बनी-इस्राईल से बातें सुन कर नक़्ल करो इस में कुछ मज़ाइक़ा नहीं। (मशारिक़-उल-अनवार हदीस 11897)

सही मुस्लिम, जिल्द सोम, सिला रहमी का बयान, हदीस 205

रावी मुहम्मद बिन हातिम बन मैमून बहज़ हम्माद बिन सलमा साबित अबी राफ़े अबू हुरैरा

حَدَّثَنِي مُحَمَّدُ بْنُ حَاتِمِ بْنِ مَيْمُونٍ ، حَدَّثَنَا بَهْزٌ ، حَدَّثَنَا حَمَّادُ بْنُ سَلَمَةَ ، عَنْ ثَابِتٍ ، عَنْ أَبِي رَافِعٍ ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ ، قَالَ : قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : إِنَّ اللَّهَ عَزَّ وَجَلَّ يَقُولُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ : يَا ابْنَ آدَمَ مَرِضْتُ فَلَمْ تَعُدْنِي ، قَالَ : يَا رَبِّ كَيْفَ أَعُودُكَ ؟ وَأَنْتَ رَبُّ الْعَالَمِينَ ، قَالَ: أَمَا عَلِمْتَ أَنَّ عَبْدِي فُلاَنًا مَرِضَ فَلَمْ تَعُدْهُ ، أَمَا عَلِمْتَ أَنَّكَ لَوْ عُدْتَهُ لَوَجَدْتَنِي عِنْدَهُ ؟ يَا ابْنَ آدَمَ اسْتَطْعَمْتُكَ فَلَمْ تُطْعِمْنِي ، قَالَ : يَا رَبِّ وَكَيْفَ أُطْعِمُكَ ؟ وَأَنْتَ رَبُّ الْعَالَمِينَ ، قَالَ : أَمَا عَلِمْتَ أَنَّهُ اسْتَطْعَمَكَ عَبْدِي فُلاَنٌ ، فَلَمْ تُطْعِمْهُ ؟ أَمَا عَلِمْتَ أَنَّكَ لَوْ أَطْعَمْتَهُ لَوَجَدْتَ ذَلِكَ عِنْدِي ، يَا ابْنَ آدَمَ اسْتَسْقَيْتُكَ ، فَلَمْ تَسْقِنِي ، قَالَ : يَا رَبِّ كَيْفَ أَسْقِيكَ ؟ وَأَنْتَ رَبُّ الْعَالَمِينَ ، قَالَ : اسْتَسْقَاكَ عَبْدِي فُلاَنٌ فَلَمْ تَسْقِهِ ، أَمَا إِنَّكَ لَوْ سَقَيْتَهُ وَجَدْتَ ذَلِكَ عِنْدِي.

तर्जुमा : मुस्लिम में अबू हुरैरा से रिवायत है कि हज़रत ने फ़रमाया ख़ुदा फ़र्माएगा क़ियामत में कि ऐ आदम के बेटे मैं बीमार हुआ था सो तू ने मुझको ना पूछा बंदा कहेगा कि ऐ मेरे रब मैं क्यूँ-कर तुझको पूछता और तू तो सारे जहान का मालिक पालने वाला है। ख़ुदा फ़रमाएगा क्या तुझको मालूम नहीं कि मेरा फ़ुलां बंदा बीमार हुआ था? सो तू ने उस की बीमार पुर्सी ना की क्या तुझको मालूम नहीं कि अगर तू उस की बीमार पुर्सी करता तो मुझको उस के पास पाता। ऐ आदम के बेटे मैंने तुझ खाना मांगा सो तू ने मुझको ना खिलाया। बंदा कहेगा ऐ मेरे रब मैं क्यूँ-कर तुझको खाना खिलाता और तू तो सारे जहान का पालने वाला मालिक है। ख़ुदा फ़रमाएगा, क्या तुझको नहीं मालूम कि फ़ुला ने मेरे बंदे ने तुझसे खाना मांगा था सो तू ने उस को ना खिलाया। तुझको मालूम ना था कि अगर तू उस को खाना खिलाता तो इस का सवाब मेरे पास पाता। ऐ आदम के बेटे मैंने तुझसे पानी मांगा था। सो तू ने पानी ना पिलाया। हाँ जान रख अगर तू उस को पानी पिलाता तो इस का सवाब मेरे पास पाता।

(मत्ती की इन्जील 25:31-46)

जब इब्ने आदम अपने जलाल से आएगा और सब पाक फ़रिश्ते उस के साथ तब वो अपने जलाल के तख़्त पर बैठेगा। और सब क़ौम उस के आगे हाज़िर की जाएगी और जिस तरह गडरिया या भेड़ों को बकरीयों से जुदा करता है वो एक को दूसरे से जुदा करेगा और भेड़ों को दहने और बकरीयों को बाएं खड़ा करेगा। तब वो बाएं तरफ़ वालों से भी कहेगा ऐ मलऊनों मेरे सामने से इस हमेशा की आग में जाओ जो शैतान और उस के फ़रिश्तों के लिए तैयार की गई है। क्योंकि मैं भूका था पर तुमने मुझे खाने को ना दिया। प्यासा था तुमने मुझे पानी ना पिलाया। परदेसी था तुमने मुझे अपने घर में ना उतारा। नंगा था तुमने मुझे कपड़ा ना पहनाया बीमार और क़ैद में था तुमने मेरी ख़बर ना ली। तब वो भी जवाब में उसे कहेंगे ऐ ख़ुदावन्द कब हमने तुझको भूका प्यासा या परदेसी या नंगा या बीमार क़ैदी देखा और तेरी ख़िदमत ना की। तब वो जवाब में उन्हें कहेगा मैं तुमसे सच्च कहता हूँ कि जब तुमने मेरे इन सबसे छोटे भाईयों में से एक के साथ ना किया तो मेरे साथ भी ना किया और वो हमेशा के अज़ाब में जाऐंगे। पर रास्तबाज़ हमेशा की में।

सही बुख़ारी, किताब-उल-तौहीद, हदीस 7469

حَدَّثَنَا الْحَكَمُ بْنُ نَافِعٍ، أَخْبَرَنَا شُعَيْبٌ، عَنِ الزُّهْرِيِّ، أَخْبَرَنِي سَالِمُ بْنُ عَبْدِ اللَّهِ، أَنَّ عَبْدَ اللَّهِ بْنَ عُمَرَ ـ رضى الله عنهما ـ قَالَ سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم وَهْوَ قَائِمٌ عَلَى الْمِنْبَرِ ‏"‏ إِنَّمَا بَقَاؤُكُمْ فِيمَا سَلَفَ قَبْلَكُمْ مِنَ الأُمَمِ، كَمَا بَيْنَ صَلاَةِ الْعَصْرِ إِلَى غُرُوبِ الشَّمْسِ، أُعْطِيَ أَهْلُ التَّوْرَاةِ التَّوْرَاةَ، فَعَمِلُوا بِهَا حَتَّى انْتَصَفَ النَّهَارُ، ثُمَّ عَجَزُوا، فَأُعْطُوا قِيرَاطًا قِيرَاطًا، ثُمَّ أُعْطِيَ أَهْلُ الإِنْجِيلِ الإِنْجِيلَ، فَعَمِلُوا بِهِ حَتَّى صَلاَةِ الْعَصْرِ، ثُمَّ عَجَزُوا، فَأُعْطُوا قِيرَاطًا قِيرَاطًا، ثُمَّ أُعْطِيتُمُ الْقُرْآنَ فَعَمِلْتُمْ بِهِ حَتَّى غُرُوبِ الشَّمْسِ، فَأُعْطِيتُمْ قِيرَاطَيْنِ قِيرَاطَيْنِ، قَالَ أَهْلُ التَّوْرَاةِ رَبَّنَا هَؤُلاَءِ أَقَلُّ عَمَلاً وَأَكْثَرُ أَجْرًا‏.‏ قَالَ هَلْ ظَلَمْتُكُمْ مِنْ أَجْرِكُمْ مِنْ شَىْءٍ قَالُوا لاَ‏.‏ فَقَالَ فَذَلِكَ فَضْلِي أُوتِيهِ مَنْ أَشَاءُ ‏"

तर्जुमा : बुख़ारी और मुस्लिम में अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत है कि हज़रत ने फ़रमाया सिवाए इस के कोई मिस्ल नहीं हो सकती कि उम्र और मुद्दत तुम्हारी ऐ मुसलमानों अगली उम्मतों की उमर और मुद्दत के मुक़ाबले में ऐसी है जैसी अस्र की नमाज़ से शाम तक यानी अगली उम्मतों की ज़िंदगी ज़्यादा थी जैसे सुबह से अस्र तक और मुसलमानों की उम्र कम। जैसे अस्र से शाम तक और नहीं है मिस्ल तुम्हारी ऐ मुसलमानों और मिस्ल यहूद और नसारी की मगर जैसे मिस्ल उस मर्द की जिसने काम करवाया कारिंदों से सो उस ने कहा कि जो मेरा काम करे सुबह से दोपहर तक उस को एक एक मिलेगा सो का क्या यहूद ने दोपहर तक एक एक क़ीरात (दिरहम के बारहवें हिस्से के बराबर एक वज़न) पर फिर कहा इस मर्द ने जो मेरा काम करे दोपहर से अस्र की नमाज़ तक उस को एक एक क़ीरात मज़दूरी मिलेगी। तो नसारा ने दोपहर से अस्र तक एक एक क़ीरात पर मज़दूरी की। फिर उस मर्द ने कहा कि जो मेरा काम करे अस्र की नमाज़ से शाम तक उस को दो-दो क़ीरात पर मज़दूरी मिलेगी। जानों ऐ मुसलमानो सो वो लोग तुम हो। जिन्हों ने अस्र से शाम तक काम किया। दो दो क़ीरात पर। जान रखो कि तुम्हारी मज़दूरी दूगनी है सो गु़स्सा होंगे, यहूद और नसारा क़ियामत में। फिर कहेंगे कि हम काम में ज़्यादा हैं और मज़दूरी में कम यानी अजब ये है कि काम बहुत और मेहनत कम। ख़ुदा फ़रमाएगा कि मैंने तुम पर कुछ ज़ुल्म किया? यानी जो मज़दूरी ठहर गई थी उस से कुछ कम दिया। कहेंगे जो ठहरा था उस से कम नहीं मिला। ख़ुदा फ़रमाएगा सो ये तो यानी दूगनी मज़दूरी देना मेरा फ़ज़्ल है जिसको चाहूँ उस को दूँ।

(मत्ती 20:1-16) को देखो

क्योंकि आस्मान की बादशाहत उस साहब ख़ाना की मानिंद है जो तड़के के बाहर निकलाता कि अपनी अंगूर स्तान में मज़दूर लगाए और उस ने मज़दूरों का एक एक दीनार रोजाना मुक़र्रर कर के उन्हें अपने अंगूर स्तान में भेजा। और उस ने फिर दिन चढ़े बाहर जा के और दिन को बाज़ार में बेकार खड़े देखा और उन से कहा कि तुम भी अंगूर स्तान में जाओ और जो कुछ वाजिबी है तुम्हें दूंगा सो वो गए। फिर उस ने दोपहर और तीसरे पहर को बाहर जा के वैसा ही किया। एक घंटा दिन रहते फिर बाहर जा के औरों को बेकार खड़े पाया और उन से कहा तुम क्यों यहां तमाम दिन बेकार खड़े रहते हो। उन्हों ने उस से कहा इसलिए कि किसी ने हमको मज़दूरी पर नहीं रखा। उसने उन्हें कहा तुम भी अंगूर स्तान में जाओ और जो कुछ वाजिबी है सो पाओगे।

जब शाम हुई अंगूर स्तान के मालिक ने अपने कारिंदे से कहा मज़दूरों को बुला और पिछलों से ले के पहलों तक उन की मज़दूरी दे। जब वो जिन्हों ने घंटा भर काम किया था आए तो एक एक दीनार पाया। जब अगले आए उन्हें ये गुमान था कि हम ज़्यादा पाएँगे पर उन्हों ने भी एक एक दीनार पाया। जब उन्हों ने ये पाया तो घर के मालिक पर कुड़कुड़ाए (बुरा-भला कहना) और कहा पिछलों ने एक ही घंटे का काम किया और तू ने उन्हें हमारे बराबर कर दिया जिन्हों ने तमाम दिन की मेहनत और धूप सही। उसने उनमें से एक को जवाब में कहा, ऐ मियां मैं तेरी बे इंसाफ़ी नहीं करता क्या तू ने एक दीनार पर मुझसे इक़रार नहीं किया। तू अपना ले और चला जा पर मैं जितना तुझे देता हूँ पिछले को भी दूंगा। क्या मुझे रवा नहीं कि अपने माल से जो चाहूँ सो करूँ। क्या तू इसलिए बुरी नज़र से देखता है कि मैं नेक हूँ। इसी तरह पिछले पहले होंगे और पहले पिछले। क्योंकि बहुत से बुलाए गए पर बर्गज़ीदे थोड़े हैं।

दुवम, बजिन्सा (जूं का तूं, हूबहू) कुतुब-ए-मुक़द्दसा की मौजूदगी की मिसालें।

(1)

قُلۡ مَنۡ اَنۡزَلَ الۡـكِتٰبَ الَّذِىۡ جَآءَ بِهٖ مُوۡسٰى نُوۡرًا وَّ هُدًى لِّلنَّاسِ تَجۡعَلُوۡنَهٗ قَرَاطِيۡسَ

तर्जुमा : कह किस ने उतारा था इस किताब को जो लाया था मूसा रोशनी और हिदायत वास्ते लोगों के करते हो तुम ज़ाहिर उस को वरक़-वरक़ (अनआम 11 रुकूअ आयत 91)

(2)

۔ عَنْ زِيَادِ بْنِ لَبِيدٍ , قَالَ : ذَكَرَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ شَيْئًا , فَقَالَ : " ذَاكَ عِنْدَ أَوَانِ ذَهَابِ الْعِلْمِ " , قُلْتُ : يَا رَسُولَ اللَّهِ , وَكَيْفَ يَذْهَبُ الْعِلْمُ ؟ وَنَحْنُ نَقْرَأُ الْقُرْآنَ , وَنُقْرِئُهُ أَبْنَاءَنَا , وَيُقْرِئُهُ أَبْنَاؤُنَا أَبْنَاءَهُمْ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ , قَالَ : " ثَكِلَتْكَ أُمُّكَ زِيَادُ , إِنْ كُنْتُ لَأَرَاكَ مِنْ أَفْقَهِ رَجُلٍ بِالْمَدِينَةِ , أَوَلَيْسَ هَذِهِ الْيَهُودُ وَالنَّصَارَى يَقْرَءُونَ التَّوْرَاةَ , وَالْإِنْجِيلَ , لَا يَعْمَلُونَ بِشَيْءٍ مِمَّا فِيهِمَا "

तर्जुमा : और रिवायत है ज़ियाद बिन लबीद से कहा ज़िक्र किया हज़रत नबी ﷺ ने….. नहीं ये यहूद और नसारा पढ़ते तौरेत और इन्जील को? नहीं अमल करते कुछ इस चीज़ से कि बीच उनके है।

रिवायत की ये अहमद ने और इब्ने माजा ने और रिवायत की तिर्मिज़ी ने ज़ियाद से मानिंद इसी के और इसी तरह दारमी ने अमामा से। (मज़ाहिर-उल-हक़ जिल्द अव़्वल छापा नोलकशूरी सफ़ा 81)

सही बुख़ारी, जिल्द दोम, तफ़ासीर का बयान, हदीस 166

रावी मुहम्मद बिन बशार उस्मान बिन उमर अली बिन मुबारक याह्या बिन अबी कसीर अबी सलमा अबू हुरैरा

(3)

۳۔حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ بَشَّارٍ حَدَّثَنَا عُثْمَانُ بْنُ عُمَرَ أَخْبَرَنَا عَلِيُّ بْنُ الْمُبَارَکِ عَنْ يَحْيَی بْنِ أَبِي کَثِيرٍ عَنْ أَبِي سَلَمَةَ عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ کَانَ أَهْلُ الْکِتَابِ يَقْرَئُونَ التَّوْرَاةَ بِالْعِبْرَانِيَّةِ وَيُفَسِّرُونَهَا بِالْعَرَبِيَّةِ لِأَهْلِ الْإِسْلَامِ فَقَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ لَا تُصَدِّقُوا أَهْلَ الْکِتَابِ وَلَا تُکَذِّبُوهُمْ وَقُولُوا آمَنَّا بِاللَّهِ وَمَا أُنْزِلَ إِلَيْنَا الْآيَةَ

तर्जुमा : बुख़ारी में अबू हुरैरा से रिवायत है कि हज़रत ने फ़रमाया कि मुहम्मद बिन बशार, उस्मान बिन उम्र, अली बिन मुबारक, याह्या बिन अबी कसीर, अबी सलमा, हज़रत अबू हुरैरा रज़ीयल्लाह तआला अन्हो से रिवायत करते हैं उन्होंने कहा कि अहले-किताब यानी यहूदी तौरात को इब्रानी ज़बान में पढ़ते थे और फिर मुसलमानों को अरबी ज़बान में इस का तर्जुमा करके समझाते थे तो आँहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मुसलमानों से इर्शाद फ़रमाया कि तुम उनको ना सच्चा कहो और ना झूटा कहो बल्कि तुम इस तरह कहा करो कि हम ईमान लाए हैं अल्लाह तआला पर और उस पर जो उसने नाज़िल फ़रमाया हमारी तरफ़। (मुशारिक़ अनवार हदीस 572)

सुनन दारमी, जिल्द अव्वल, मुक़द्दमा दारमी, हदीस 43

(4)

۴۔ أَخْبَرَنَا مُحَمَّدُ بْنُ الْعَلَاءِ حَدَّثَنَا ابْنُ نُمَيْرٍ عَنْ مُجَالِدٍ عَنْ عَامِرٍ عَنْ جَابِرٍ أَنَّ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ أَتَى رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ بِنُسْخَةٍ مِنْ التَّوْرَاةِ فَقَالَ يَا رَسُولَ اللَّهِ هَذِهِ نُسْخَةٌ مِنْ التَّوْرَاةِ فَسَكَتَ فَجَعَلَ يَقْرَأُ وَوَجْهُ رَسُولِ اللَّهِ يَتَغَيَّرُ فَقَالَ أَبُو بَكْرٍ ثَكِلَتْكَ الثَّوَاكِلُ مَا تَرَى مَا بِوَجْهِ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَنَظَرَ عُمَرُ إِلَى وَجْهِ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَقَالَ أَعُوذُ بِاللَّهِ مِنْ غَضَبِ اللَّهِ وَغَضَبِ رَسُولِهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ رَضِينَا بِاللَّهِ رَبًّا وَبِالْإِسْلَامِ دِينًا وَبِمُحَمَّدٍ نَبِيًّا فَقَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَالَّذِي نَفْسُ مُحَمَّدٍ بِيَدِهِ لَوْ بَدَا لَكُمْ مُوسَى فَاتَّبَعْتُمُوهُ وَتَرَكْتُمُونِي لَضَلَلْتُمْ عَنْ سَوَاءِ السَّبِيلِ وَلَوْ كَانَ حَيًّا وَأَدْرَكَ نُبُوَّتِي لَاتَّبَعَنِي

तर्जुमा : हज़रत जाबिर बयान करते हैं एक मर्तबा हज़रत उमर बिन खत्ताब नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में तौरात का एक नुस्ख़ा लेकर हाज़िर हुए और अर्ज़ की ऐ अल्लाह के रसूल ये तौरात का एक नुस्ख़ा है नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ख़ामोश रहे हज़रत उमर ने उसे पढ़ना शुरू कर दिया नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के चेहरा मुबारक का रंग तब्दील होने लगा। हज़रत अबू बक्र रज़ीयल्लाहु अन्हो ने कहा तुम्हें औरतें रोएँ क्या तुम नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के चेहरा मुबारक की तरफ़ देख नहीं रहे? हज़रत उमर ने नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के चेहरा मुबारक की तरफ़ देखा तो अर्ज़ की मैं अल्लाह और उस के रसूल की नाराज़गी से अल्लाह की पनाह मांगता हूँ हम अल्लाह के परवरदिगार होने इस्लाम के दीन हक़ होने और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के नबी होने पर ईमान रखते हैं। नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया उस ज़ात की क़सम जिसके दस्त-ए-क़ुद्रत में मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की जान है अब अगर मूसा तुम्हारे सामने आ जाऐं और तुम उनकी पैरवी करो और मुझे छोड़ दो तो तुम सीधे रास्ते से भटक जाओगे और अगर आज मूसा ज़िंदा होते और मेरी नबुव्वत का ज़माना पा लेते तो वो भी मेरी पैरवी करते। (मज़ाहिर-उल-हक़ जिल्द अव़्वल छापा नोलकशूर ईज़न सफ़ा 94)

सही बुख़ारी, जिल्द दोम, अम्बिया अलैहिम अस्सलाम का बयान, हदीस 883

(5)

۵۔ حَدَّثَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ يُوسُفَ أَخْبَرَنَا مَالِکُ بْنُ أَنَسٍ عَنْ نَافِعٍ عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا أَنَّ الْيَهُودَ جَائُوا إِلَی رَسُولِ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَذَکَرُوا لَهُ أَنَّ رَجُلًا مِنْهُمْ وَامْرَأَةً زَنَيَا فَقَالَ لَهُمْ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مَا تَجِدُونَ فِي التَّوْرَاةِ فِي شَأْنِ الرَّجْمِ فَقَالُوا نَفْضَحُهُمْ وَيُجْلَدُونَ فَقَالَ عَبْدُ اللَّهِ بْنُ سَلَامٍ کَذَبْتُمْ إِنَّ فِيهَا الرَّجْمَ فَأَتَوْا بِالتَّوْرَاةِ فَنَشَرُوهَا فَوَضَعَ أَحَدُهُمْ يَدَهُ عَلَی آيَةِ الرَّجْمِ فَقَرَأَ مَا قَبْلَهَا وَمَا بَعْدَهَا فَقَالَ لَهُ عَبْدُ اللَّهِ بْنُ سَلَامٍ ارْفَعْ يَدَکَ فَرَفَعَ يَدَهُ فَإِذَا فِيهَا آيَةُ الرَّجْمِ فَقَالُوا صَدَقَ يَا مُحَمَّدُ فِيهَا آيَةُ الرَّجْمِ فَأَمَرَ بِهِمَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَرُجِمَا قَالَ عَبْدُ اللَّهِ فَرَأَيْتُ الرَّجُلَ يَجْنَأُ عَلَی الْمَرْأَةِ يَقِيهَا الْحِجَارَةَ

तर्जुमा : अब्दुल्लाह मालिक नाफ़े हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ी अल्लाह अन्हुमा से रिवायत करते हैं कि यहूद की एक जमाअत ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में (एक दिन) हाज़िर हो कर अर्ज़ किया कि उनकी क़ौम में से एक मर्द और एक औरत ने ज़िना किया है रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने उनसे फ़रमाया तौरात में रज्म की बाबत तुम क्या (हुक्म) पाते हो उन्होंने कहा हम ज़िना करने वाले को ज़लील व रुस्वा करते हैं और उनके दूर्रे लगाए जाते हैं अब्दुल्लाह बिन सलाम ने कहा तुम झूटे हो। तौरात में रज्म का हुक्म है। तौरात लाओ। चुनान्चे उन्होंने तौरात को खोला उनमें से एक शख़्स ने तौरात की आयत रज्म पर हाथ रखकर उस को छुपा लिया और आगे पीछे का मज़्मून पढ़ता रहा। अब्दुल्लाह बिन सलाम ने कहा ज़रा अपना हाथ हटा। चुनान्चे उसने अपना हाथ हटाया तो वहां रज्म की आयत मौजूद थी रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इन दोनों ज़ानियों को रज्म का हुक्म दिया वो दोनों संगसार कर दिए गए। अब्दुल्लाह बिन उमर फ़र्माते हैं मैंने मर्द को देखा वो औरत पर झुका पड़ता था और उस को पत्थरों से बचाना चाहता था। अलीख (मज़ाहिर-उल-हक़ जिल्द दुवम छापा मुजतबाई के सफ़ा 283)

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ أَنَّهُ قَالَ خَرَجْتُ إِلَی الطُّورِ فَلَقِيتُ کَعْبَ الْأَحْبَارِ فَجَلَسْتُ مَعَهُ فَحَدَّثَنِي عَنْ التَّوْرَاةِ

तर्जुमा : अबू हुरैरा रज़ीयल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि मैं गया कोह-ए-तूर पर तो मिला मैं कअब बिन अल-अहबार से और बैठा में उनके पास पस बयान कीं कअब अल-अहबार ने मुझसे बातें तौरात की। आख़िर तक (देखो मज़ाहिर-उल-हक़ जिल्द अव़्वल छापा नोलकूशोर सफ़ा 471, और इस के इलावा ये हदीस मौवता इमाम मालिक, जिल्द अव्वल, किताब-उल-जमा, हदीस 220)

सोइम : जो अहले-किताब मुहम्मद साहब के अय्याम में दीनदार थे उन की चलन की तस्दीक़ से साबित है कि किताब-ए-मुक़द्दस अय्यामे मुहम्मदी में मौजूद थी।

وَ مِنۡ قَوۡمِ مُوۡسٰۤی اُمَّۃٌ یَّہۡدُوۡنَ بِالۡحَقِّ وَ بِہٖ یَعۡدِلُوۡنَ (۱۵۹)

तर्जुमा : और मूसा की क़ौम में एक उम्मत है जो हक़ की हिदायत करते हैं और इसी पर इन्साफ़ करते हैं। (सूरह आराफ़ आयत 159)

ऊपर के कुल बयानात से बख़ूबी रोशन हो चुका कि किताब-ए-मुक़द्दस मुहम्मद साहब के अय्याम में मौजूद थी। हज़रत जिब्राईल किताब-ए-मुक़द्दस को ज़रूरत के वक़्त ख़ुद पढ़ा करते थे और हवाले नक़्ल करके हज़रत के क़ुरआन में दाख़िल किया करते थे। लेकिन कुछ तग़य्युर (तब्दीली) के साथ हज़रत के अस्हाब किताब-ए-मुक़द्दस का मुतालआ फ़रमाया करते थे। और हज़रत ख़ुद बाअज़ अहले किताब से किताब-ए-मुक़द्दस सुना करतेथे। और सिर्फ यही नहीं बल्कि आपके अस्हाब को साफ़ कुतुब-ए-मुक़द्दसा से हवाले नक़्ल करने का हुक्म था। ये कुतुब-ए-मुक़द्दसा ना सिर्फ अहले-किताब के पास थी बल्कि मुहम्मदी साहिबान के पास भी थी जैसा कि ऊपर बयान हुआ और कुतुब-ए-मुक़द्दसा की सनद पर लोगों को सज़ा दी जाती थी और नेकों की नेको कारी कुतुब-ए-मुक़द्दसा के मुवाफ़िक़ साबित की जाती थी जैसा कि ऊपर बयान हुआ। पस जिस हाल कि इलावा अहले-किताब के जिब्राईल और मुहम्मद साहब और मुहम्मदी साहिबान कुतुब-ए-मुक़द्दसा के बयानात को पढ़ते और सुनते और नक़्ल करते और नक़्ल करने की इजाज़त देते थे। तो क्या ये नामाक़ूल बात नहीं कि कुतुब-ए-मुक़द्दसा सेहत की हालत में मुहम्मदी अय्याम में मौजूद थी? नाज़रीन इस से बढ़कर सेहत का क्या सबूत हो सकता है कि जिब्राईल उनसे कुछ तग़य्युर के साथ हवाले नक़्ल करता और मुहम्मद साहब अपनी शागिर्दों को हवाले नक़्ल करने की इजाज़त देते। हज़रत कुतुब-ए-मुक़द्दसा के मुवाफ़िक़ लोगों को सज़ा-ए-मौत देते। और उनकी दीनदारी का कुतुब-ए-मुक़द्दसा को सबूत ठहराते। पस कुतुब-ए-मुक़द्दसा सेहत की हालत में अय्याम मुहम्मदी में मौजूद थी वर्ना मुहम्मद साहब और जिब्राईल किसी तरह एतराज़ से बच नहीं सकते हैं। अगर आप एतराज़ से बच सकते हैं। तो इसी तौर से कि आप लोग तस्लीम करें कि कुतुब-ए-मुक़द्दसा मुहम्मदी अय्याम में सही और दुरुस्ती की हालत में मौजूद थी। वर्ना मुहम्मद साहब और जिब्राईल फ़रिश्ते ने धोका खाया और लोगों को धोका दिया। क्योंकि उन्होंने ऊपर के मुक़ामात से तस्लीम किया कि कुतुब-ए-मुक़द्दसा दुरुस्त हैं। ऐ पढ़ने वाले आप ख़ुद फ़ैसला करें। हमारे नज़्दीक सच्चाई हमारी तरफ है।

रही ये बात कि अहले-किताब को ना सच्चा जानो और ना झूटा तसव्वुर करो। तो नाज़रीन आप ही फ़ैसला करें कि अहले किताब को मुहम्मदी क्या कहें? ये एक निहायत अजीब बात है कि अहले-किताब ना सच्चे और ना झूटे हज़रत के इस इर्शाद के मअनी ज़ाहिर हैं कि अहले-किताब कुतुब-ए-मुक़द्दसा को इब्रानी वग़ैरह ज़बान में मुतालआ किया करते थे। और अरबों के लिए अरबी में इस का तर्जुमा किया करते थे। इस वजह से कि मुहम्मद साहब को उनके तर्जुमे पर एतबार ना था आपने ये फ़र्मा दिया कि ना उनको सच्चा जानो और ना झूटा पर ये भी अहले किताब की निस्बत कहा गया कुतुब-ए-मुक़द्दसा की निस्बत आप खामोश हैं।

बिलाशक मुहम्मद साहब अहले किताब की निस्बत ये सबक़ अपने शागिर्दों को सिखला कर उन तहरीफ़ी बयानात की सेहत को क़ायम करते थे। जो जिब्राईल कुतुब-ए-मुक़द्दसा से नक़्ल करके और कुछ तग़य्युर कर के हज़रत के गोश गुज़ार किया करते थे। और आम मुहम्मदियों को भी ये इजाज़त दे रखी थी कि कुतुब-ए-मुक़द्दसा के बयानात को नक़्ल करके मुहम्मदी मंशा के मुवाफ़िक़ सुनाया करें। पर अहले-किताब की किसी बात का एतबार करना मना किया गया। ख़ैर ये बह्स दीगर है मतलब ये है कि मुहम्मद साहब के अय्याम में किताब-ए-मुक़द्दस मुरव्वजा (राइज किया गया) सूरत में मौजूद थी। जिसकी सेहत मुसल्लम थी और जो क़ाबिले अमल थी जिस पर मुहम्मद साहब को कभी एतराज़ ना हुआ।

दूसरी फ़स्ल
कुतब-ए-मुक़द्दसा की चंद क़ुरआनी खूबियों का बयान

जो इस फ़स्ल में बयान होता है वो इस अम्र का शाहिद है कि किताब-ए-मुक़द्दस तमाम इल्ज़ामात से पाक हो कर सही और दुरुस्त मानी जाए क्योंकि इन्सान के दीन और ईमान का क़ानून है। इलावा अज़ीं जो खूबियां इस फ़स्ल में ज़िक्र की जाती हैं पढ़ने वाले पर ये अम्र ज़ाहिर व साबित करने को काफ़ी सबूत हैं कि मुसन्निफ़ क़ुरआन कुतुब-ए-मुक़द्दसा का अंदरूनी ख़ूबीयों से कुछ वाक़िफ़ था। चुनान्चे ज़ेल की आयात इस का सबूत हैं।

وَ اَنۡزَلَ التَّوۡرٰىۃَ وَ الۡاِنۡجِیۡلَ ۙمِنۡ قَبۡلُ ہُدًی لِّلنَّاسِ وَ اَنۡزَلَ الۡفُرۡقَانَ

तर्जुमा : और उतारी तौरात और इन्जील पहले इस से राह दिखाने वाली वास्ते लोगों के और उतारा इन्साफ़। (सूरह इमरान पहला रुकूअ आयत 3-4)

اِنَّاۤ اَنۡزَلۡنَا التَّوۡرٰىۃَ فِیۡہَا ہُدًی وَّ نُوۡرٌ ۚ یَحۡکُمُ بِہَا النَّبِیُّوۡنَ الَّذِیۡنَ اَسۡلَمُوۡا لِلَّذِیۡنَ ہَادُوۡا وَ الرَّبّٰنِیُّوۡنَ وَ الۡاَحۡبَارُ بِمَا اسۡتُحۡفِظُوۡا مِنۡ کِتٰبِ اللّٰہِ وَ کَانُوۡا عَلَیۡہِ شُہَدَآءَ

तर्जुमा : तहक़ीक़ उतारी हमने तौरात पीछे इस के हिदायत है और रोशनी है हुक्म करते थे साथ उस के पैग़म्बर वो जो मुतीअ थे ख़ुदा के वास्ते इन लोगों के कि यहूदी हुए। और हुक्म करते थे। ख़ुदा के लोग और आलिम साथ इस चीज़ के कि याद रखवाए गए थे किताब अल्लाह की से और थे ऊपर उस के गवाह। (सूरह माइदा 7 रुकूअ आयत 44)

وَ اٰتَیۡنٰہُ الۡاِنۡجِیۡلَ فِیۡہِ ہُدًی وَّ نُوۡرٌ ۙ وَّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَیۡنَ یَدَیۡہِ مِنَ التَّوۡرٰىۃِ وَ ہُدًی وَّ مَوۡعِظَۃً لِّلۡمُتَّقِیۡنَ

तर्जुमा : और दी हमने उस को इन्जील बीच उस के हिदायत और रोशनी है। और सच्चा करने वाली इस चीज़ को कि उस से पेश्तर है तौरात से और है हिदायत और नसीहत वास्ते परहेज़गारों के। (सूरह माइदा 7 रुकूअ आयत 46)

وَ لَقَدۡ اٰتَیۡنَا مُوۡسَی الۡہُدٰی وَ اَوۡرَثۡنَا بَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ الۡکِتٰبَ ہُدًی وَّ ذِکۡرٰی لِاُولِی الۡاَلۡبَابِ

तर्जुमा : और अलबत्ता तहक़ीक़ दी हमने मूसा को हिदायत और वारिस किया हमने बनी-इस्राईल को किताब का हिदायत और नसीहत अक़्लमंदों के वास्ते। (सूरह मोमिन 6 रुकूअ आयत 53-54)

وَ مِنۡ قَبۡلِہٖ کِتٰبُ مُوۡسٰۤی اِمَامًا وَّ رَحۡمَۃً

तर्जुमा : और पहले इस से किताब है मूसा की पेशवा और रहमत। (सूरह हूद 2 रुकूअ आयत 17)

قُلۡ مَنۡ اَنۡزَلَ الۡکِتٰبَ الَّذِیۡ جَآءَ بِہٖ مُوۡسٰی نُوۡرًا وَّ ہُدًی لِّلنَّاسِ تَجۡعَلُوۡنَہٗ قَرَاطِیۡسَ تُبۡدُوۡنَہَا وَ تُخۡفُوۡنَ کَثِیۡرًا ۚ وَ عُلِّمۡتُمۡ مَّا لَمۡ تَعۡلَمُوۡۤا اَنۡتُمۡ وَ لَاۤ اٰبَآؤُکُمۡ

तर्जुमा : कि किस ने उतारा है इस किताब को जो लाया था मूसा रोशनी और हिदायत वास्ते लोगों के करते हो ज़ाहिर तुम उस को वरक़-वरक़ और छुपाते हो बहुत और सिखाए गए हो वो जो कि ना जानते थे तुम और ना तुम्हारे बाप दादे। (सूरह अनआम 11 रुकूअ आयत 91)

ثُمَّ اٰتَیۡنَا مُوۡسَی الۡکِتٰبَ تَمَامًا عَلَی الَّذِیۡۤ اَحۡسَنَ وَ تَفۡصِیۡلًا لِّکُلِّ شَیۡءٍ وَّ ہُدًی وَّ رَحۡمَۃً لَّعَلَّہُمۡ بِلِقَآءِ رَبِّہِمۡ یُؤۡمِنُوۡنَ

तर्जुमा : फिर दी हमने मूसा को किताब पूरा फ़ज़्ल नेकी वाले पर और बयान हर चीज़ का और हिदायत और रहमत। शायद वो लोग अपने रब का मिलना यक़ीन करें। (सूरह अनआम 19 रुकूअ आयत 154)

وَ لَقَدۡ اٰتَیۡنَا مُوۡسَی الۡکِتٰبَ مِنۡۢ بَعۡدِ مَاۤ اَہۡلَکۡنَا الۡقُرُوۡنَ الۡاُوۡلٰی بَصَآئِرَ لِلنَّاسِ وَ ہُدًی وَّ رَحۡمَۃً

तर्जुमा : और अलबत्ता तहक़ीक़ दी हमने मूसा को किताब पीछे इस के कि हलाक किए हमने संगतें (क़ौमें) पहले बसीरतें (देखने की क़ुव्वत) वास्ते लोगों के और हिदायत और मेहरबानी (सूरह क़िसस 5 रुकूअ आयत 43)

وَ لَوۡ اَنَّ اَہۡلَ الۡکِتٰبِ اٰمَنُوۡا وَ اتَّقَوۡا لَکَفَّرۡنَا عَنۡہُمۡ سَیِّاٰتِہِمۡ وَ لَاَدۡخَلۡنٰہُمۡ جَنّٰتِ النَّعِیۡمِ وَ لَوۡ اَنَّہُمۡ اَقَامُوا التَّوۡرٰىۃَ وَ الۡاِنۡجِیۡلَ وَ مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَیۡہِمۡ مِّنۡ رَّبِّہِمۡ لَاَکَلُوۡا مِنۡ فَوۡقِہِمۡ وَ مِنۡ تَحۡتِ اَرۡجُلِہِمۡ

तर्जुमा : और अगर किताब वाले ईमान लाते और डरते तो हम उतार देते उन की बुराईयां और उन को दाख़िल करते नेअमत के बाग़ों में और अगर वो क़ायम रखें। तौरात और इन्जील को और जो उतरा उन को उन के रब की तरफ़ से तो खाएं अपने ऊपर और पांव के नीचे से। कुछ लोग उनके सीधे हैं और बहुत उन के बुरे काम कर रहे हैं। (सूरह माइदा 9 रुकूअ आयत 65-66)

وَ لَقَدۡ کَتَبۡنَا فِی الزَّبُوۡرِ مِنۡۢ بَعۡدِ الذِّکۡرِ اَنَّ الۡاَرۡضَ یَرِثُہَا عِبَادِیَ الصّٰلِحُوۡنَ

तर्जुमा : और अलबत्ता तहक़ीक़ लिख दिया हमने बीच ज़बूर के पीछे नसीहत की (कि) आख़िर ज़मीन पर मालिक होंगे मेरे नेक बंदे। (सूरह अम्बिया 7 रुकूअ आयत 105)

नाज़रीन हम इख़्तिसार (मुख़्तसर तौर पर) के साथ क़ुरआन की गवाही कुतुब समावी की ताअलीम पर आपके रूबरू पेश कर चुके। हमने जो कुछ क़ुरआन से सीखा आपकी नज़र है अब आप हैं और ख़ुदा है जिसके रूबरू आपने जवाब देना है लेकिन हम अपने फ़र्ज़ से सबकदोश (आज़ाद) हुए। अब हमारा सिर्फ इस क़द्र फ़र्ज़ बाक़ी रहा कि आपके रूबरू मज़्कूर बाला आयात से वो बातें निकाल कर रख दें जो इन आयात में दुहराई गई हैं वो ज़ेल में पेश की हैं।

1. क़ुरआन शाहिद है कि तौरात और इन्जील हिदायत है

और ये बात किसी मुहम्मदी पर मख़्फ़ी (छिपी, पोशीदा) नहीं कि हिदायत की ज़रूरत गुमराह लोगों को हुआ करती है हाँ उन लोगों को जिन्हें सीधे रास्ते का इल्म नहीं होता या गुनेहगारों को जिनको ज़िंदगी की राह की ज़रूरत होती है। पस क़ुरआन, तौरात और इन्जील वग़ैरह को हिदायत क़रार देकर ऐसे ही लोगों की उम्मीद को ताज़ा करता है जिनको हिदायत की ज़रूरत है। और मुसन्निफ़ क़ुरआन का ये फ़ैसला तौरात और इन्जील वग़ैरह कुतुब रब्बानी की निस्बत बिल्कुल दुरुस्त है कि बाइबल ख़ुदा की हिदायत है। और ये हिदायात ख़ासकर उन के लिए है जिनको ये बात सुनाई गई।

2. क़ुरआन तस्लीम करता है कि बाइबल नूर है।

नाज़रीन पर मख़्फ़ी (छिपी) नहीं कि नूर की हाजत उन के लिए है जो तारीकी में ज़िंदगी काटते हैं। बाइबल बिला-शक ऐसे लोगों के लिए इलाही नूर है और इस नूर की आगाही मुहम्मद साहब को दी गई ताकि आप और आपकी क़ौम इस नूर से मुनव्वर हो बल्कि कुल जहान इस नूर से रोशन हुए। पस तौरात और इन्जील ऐसा नूर है जो तारीकी को दूर करता है। नाज़रीन ये औसाफ़ ऐसी किताब के नहीं हो सकते जो मुहर्रिफ़ (बदला हुआ, तहरीफ़ किया गया) और काबिले अमल ना हो।

3. क़ुरआन तस्लीम करता है कि किताब-ए-मुक़द्दस नसीहत है

क़ुरआन ख़ुदा को एक बड़े मैंबर पर खड़ा हुआ देख रहा है। ख़ुदा को लोगों से कलाम करता हुआ सुनता है ख़ुदा अपनी जमाअत में वाअज़ सुना रहा है वो अपनी जमाअत को नसीहत कर रहा है। वो अपने बंदों को ताकीद करता है कि हिदायत के मुवाफ़िक़ चलें वो उन को उभार रहा है कि नूर में ख़िरामां (आहिस्ता-आहिस्ता चलते हुए) हों। ऐ नाज़रीन अगर आदमी की नसीहत व पंद तेरे नज़्दीक ज़्यादा एतबार के क़ाबिल ख़याल की जाती है अगर इन्सान की बातें तेरे दिल को लुभाने वाली मालूम होती हैं। अगर इन्सानी तजुर्बा तेरे नज़्दीक क़ाबिल-ए-क़द्र है तो कितना ज़्यादा ख़ुदा का कलाम ख़ुदा की हिदायत ख़ुदा का नूर और ख़ुदा की नसीहत तेरे मुफ़ीद मतलब होगी। ऐ बुज़ुर्गाने दीन मुहम्मदी आओ ख़ुदा आज नसीहत करता है सुनो। वो आज हिदायत देता है ले लो। वो आज अंधेरे से रोशनी में लाना चाहता है क़ुबूल करलो वर्ना वक़्त आता है कि फिर ये ना होगा।

4. क़ुरआन शाहिद है कि किताब-ए-मुक़द्दस इमाम है।

लफ़्ज़ इमाम के मअनी पेशवा के हैं। पेशवा आगे-आगे चलने वाले को कहा जाता है। किताब-ए-मुक़द्दस इमाम है। राहनुमा है। आगे चलने के क़ाबिल है। ख़ुदा ने ये इमाम कुल बनी-आदम के लिए बनाया है। तमाम मुसलमान जिनका ज़िक्र ऊपर हो चुका इस इमाम के पीछे चलते थे और वो सादिक़ लोग थे। किताब-ए-मुक़द्दस उन सादिक़ों का इमाम है। ये इमाम हमेशा के लिए ख़ुदा की तरफ़ से मुक़र्रर हुआ है। और कोई मोमिन क़रार ना पाया जो इस इमाम के पीछे पीछे ना चलता था। और ज़ाहिर है कि हर एक जो मोमिन हुआ चाहे इस इलाही इमाम की पैरवी करे। क्या तू ऐ नाज़िर बग़ैर इस इमाम की पैरवी के मोमिन बन जाएगा?

इस बात का तुझे ख़ुद फ़ैसला करना है। ऐ भाई ये फ़ैसला आक़िबत की ख़ैर व शर से मुताल्लिक़ है बल्कि तेरी ही भलाई और बुराई से इस का इलाक़ा है।

5. क़ुरआन मुक़िर (इक़रार करने वाला) है कि किताब-ए-मुक़द्दस रहमत ख़ुदा है

ख़ुदा की रहमत। ये रहमत उन के लिए मुहय्या की गई है जो रहमत के मुहताज हैं। कौन कह सकता है कि मुझे रहमत इलाही की हाजत नहीं। कौन बग़ैर रहमत के आक़िबत की ख़ैर और सलामती का मुंतज़िर हो सकता है? इस दुनिया में हर फ़र्द बशर को ख़ुदा की रहमत की ज़रूरत है। हर एक रूह शब व रोज़ रहमत की मुंतज़िर रहती है। देखो ख़ुदा ने हमारे लिए रहमत भेजी है। वो रहमत किताब-ए-मुक़द्दस में पाई जाती है क़ुरआन इस का गवाह है। क्या तू रहमते इलाही को क़ुबूल ना करेगा? क्या तेरा भला बग़ैर रहमत ख़ुदा के हो सकेगा? अगर नहीं तो आ और किताब-ए-मुक़द्दस को क़ुबूल कर वो रहमत ख़ुदा का ख़ज़ाना है। तेरा इस से ज़रूर भला होगा।

6. क़ुरआन तस्लीम करता है कि किताब-ए-मुक़द्दस में हर एक अम्र की तफ़्सील है।

ये किताब मुजम्मल बयान नहीं। बल्कि हर एक मुआमले की तफ़्सील और तौज़ीह (वज़ाहत) है। हर एक शक और शुब्हा का ईलाज है। हर एक अम्र में उम्मीद को क़ायम करती है। नाज़रीन ये मुआमला आँखों से देखने का है और तजुर्बे पर मौक़ूफ़ है बेहतर है कि अगर आप को क़ुरआन की इस शहादत पर शुब्हा हो तो बाइबल का मुतालआ आज ही शुरू करें। तो आपको क़ुरआन से ज़्यादा नहीं तो क़ुरआन के बराबर तजुर्बा तो ज़रूर हासिल हो जाएगा।

7. क़ुरआन गवाह है कि किताब-ए-मुक़द्दस में नई बातें पाई जाती हैं।

वो बातें जिसको अहले-किताब के बाप दादे और हमारे परदादे भी ना जानते थे। वो बातें किताब-ए-मुक़द्दस ही में पाई जाती हैं। और लुत्फ़ ये कि वो बातें हिदायत और नूर और नसीहते ख़ुदा हैं।

8. क़ुरआन तस्लीम करता है कि किताब-ए-मुक़द्दस बसीरत है।

बसीरत के मअनी निगाह या नज़र के हैं। किताब-ए-मुक़द्दस बसीरतें यानी नज़ीरें है। ये अंधे लोगों के लिए बल्कि जन्म के तमाम अँधों के लिए तमाम जहान के अँधों और कोर-चश्मों के लिए ख़ुदा की तरफ़ से बसीरतें है। ताकि अंधे किताब-ए-मुक़द्दस की निगाह से हर एक अम्र को देखें किताब-ए-मुक़द्दस की निगाह से हर एक शेय का इल्म हासिल करें। ये अँधों के ऐनक है क्या हमारे मुहम्मदी नाज़रीन इस ऐनक को फेंक देंगे? ऐ भाईयो ऐसा मत करो। देखो इस से आपका ही नुक़्सान होगा। आप लोग ही ठोकरें खाओगे।

आप लोग ही ख़तरे में पड़ोगे आप अगर सलामती से चलना चाहते हो तो इस ऐनक को आज ही आँखों पर लगा लो। तो आपको ख़तरनाक और होलनाक अस्बाब फ़ौरन सूझ पड़ेंगे। छोटे से छोटा ख़तरा आपकी आगाही में आ जाएगा। काश कि ख़ुदा आप को ऐसी बरकत बख़्शे।

9. क़ुरआन तस्लीम करता है कि किताब-ए-मुक़द्दस नबियों और आलिमों और फ़ाज़िलों की हिफ़ाज़त में वही है।

वो किताब-ए-मुक़द्दस के मुवाफ़िक़ हुक्म करते आए हैं।

नाज़रीन को ये भी मालूम हो कि अब भी किताब-ए-मुक़द्दस आलिमों और फ़ाज़िलों की हिफ़ाज़त में मौजूद है। जल्द इस नेअमत बेशक़ीमत को ले लो वो मिल सकती हैं।

10. क़ुरआन तस्लीम करता है कि किताब-ए-मुक़द्दस की पैरवी जन्नत के हुसूल और ज़मीन के वारिस होने का ज़रीया है

ऊपर के कुल बयान के सिवा आयात मज़्कूर बाला से दलाईल और नताइज का एक और सिलसिला इनसे निकलता है और वो ये है कि कुतुब-ए-मुक़द्दसा की निस्बत जो कुछ इन आयात में बयान हुआ है वो कुतुब-ए-मुक़द्दसा की सेहत और दुरुस्ती की मज़्बूत बुनियाद है। क्योंकि जो कुछ इन आयात-ए-क़ुरआनी में मुसन्निफ़ क़ुरआन कुतुब-ए-मुक़द्दसा की निस्बत बयान करता है इसी किताबे समावी की निस्बत बयान करता है जो मुहम्मद साहब के अय्याम में अहले-किताब के हाथों में थी। अगर इन क़ुरआनी मुक़ामात के नुज़ूल से पेश्तर कुतुब-ए-समावी तब्दील हो जाती तो अव़्वल मुसन्निफ़ क़ुरआन कुतुब-ए-समावी की निस्बत ऐसा बयान ही ना करता जैसा कि ऊपर की आयात में आया है। दुवम, अगर बयान करता भी तो ये मुसन्निफ़-ए-क़ुरआन के फ़रेब खाने और फ़रेब देने की बड़ी दलील होती। पर हम तो मुसन्निफ़-ए-क़ुरआन पर ऐसा इल्ज़ाम लगाना नहीं चाहते हमारे नज़्दीक सही से सही किताब की निस्बत ऐसा बयान नहीं हो सकता जैसा कि मुसन्निफ़-ए-क़ुरआन कुतुब-ए-समावी का करता है तो कितना मुश्किल मुतबद्दल किताब की निस्बत ऐसा बयान ना होगा।

इस के सिवा ये अम्र भी गौरतलब है कि कुल क़ुरआन का बयान मुहम्मद साहब को सुनाया गया। इस का मक़्सद और मुद्दआ सिर्फ यही हो सकता है कि मुहम्मद साहब और तमाम आपके पैरों इस किताब की तरफ़ रुजू लाएं जिसकी ख़ूबीयों का क़ुरआन ख़ाका खींचता है। अगर मज़्कूर बाला आयात क़ुरआनी के क़ुरआन में दाख़िल करने का ये मक़्सद नहीं जो हमने बयान किया तो नाज़रीन और क्या मक़्सद हो सकता है?

एक और बात गौरतलब है कि जो कुछ कुतुब समावी की ताअलीम की ख़ूबी का क़ुरआन बयान करता है जब हमने इस को हक़ मान लिया तो और कौन सी बात की बनी-आदम को ज़रूरत रही? मसअला हम ने मान लिया कि बाइबल हिदायत कामिल है। बाइबल नूर-ए-ख़ुदा है। बाइबल नसीहत है। बाइबल इमाम है। बाइबल रहमते ख़ुदा है। बाइबल हर एक अम्र की तफ़्सील है। बाइबल में नई बातें जिसे इन्सान नहीं जानता पाई जाती हैं। बाइबल बसीरत है। बाइबल की पैरवी से जन्नत हासिल हो सकती है। वग़ैरह पस जब कि क़ुरआन के बमूजब बाइबल बनी-आदम की कुल ज़रूरीयात की मराफ़ात (अपील, निगरानी) का ज़ख़ीरा है तो बाइबल के सिवा ज़रूरत क्या है? क़ुरआन शरीफ़ क्या लाया जो बाइबल में नहीं है ताकि वो माना जाये। अगर कहो कि क़ुरआन वही लाया जो बाइबल में है तो हम कहते हैं कि क़ुरआन की कुछ ज़रूरत ना रही क्योंकि वो सब कुछ बाइबल में है। अगर कहो कि क़ुरआन कोई ऐसी ताअलीम या ख़ूबी लाया जो बाइबल में नहीं है और इस की इन्सान को ज़रूरत है तो हम कहते हैं कि क़ुरआन की वो ख़ूबी हमको दिखाई जाये। अगर कहो कि क़ुरआन बाइबल की सच्चाई के ख़िलाफ़ एक सच्चाई लाया है। तो पहले जो कुछ बाइबल की निस्बत कहा गया है इस को बातिल साबित कर के दिखाओ और फिर बाइबल के ख़िलाफ़ सच्चा साबित कर के दिखा दो। ग़र्ज़ हमारे नज़्दीक क़ुरआन की ताअलीम मज़्कूर को मान कर क़ुरआन की किसी तरह ज़रूरत नहीं रहती है और बाइबल का हक़ होना क़ुरआन तस्लीम है।

तीसरी फ़स्ल
इस बयान में कि क़ुरआन उस किताब-ए-मुक़द्दस की तस्दीक़ करता है जो अहले-किताब के हाथों में मौजूद थी। और मुहम्मद साहब के अय्याम में थी

लफ़्ज़ तस्दीक़ के मअनी सच्चा ठहराने के हैं। क़ुरआन बाइबल शरीफ़ को सच्चा ठहराता है। अब आप इन्ही माअनों को याद रखकर ज़ेल के मुक़ामात पर ग़ौर फ़रमाएं ताकि आप रास्ती का फ़ैसला कर सकें।

وَ اٰمِنُوۡا بِمَاۤ اَنۡزَلۡتُ مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَکُمۡ وَ لَا تَکُوۡنُوۡۤا اَوَّلَ کَافِرٍۭ بِہٖ

तर्जुमा : और ईमान लाओ साथ इस चीज़ के जो उतारी मैंने। सच्चा करने वाली है इस चीज़ को जो साथ तुम्हारे और मत हो पहले काफ़िर साथ इस के। (सूरह बक़रह 5 रुकूअ आयत 41)

وَ لَمَّا جَآءَہُمۡ کِتٰبٌ مِّنۡ عِنۡدِ اللّٰہِ مُصَدِّقٌ لِّمَا مَعَہُمۡ ۙ

तर्जुमा : और जब आई उन के पास किताब नज़्दीक अल्लाह के से सच्चा करने वाली उस चीज़ को कि साथ उन के है। (सूरह बक़रह 10 रुकूअ आयत 89)

وَ ہُوَ الۡحَقُّ مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَہُمۡ

तर्जुमा : और वो सच्च ही सच्च करने वाला उस को जो साथ इन के है। (सूरह बक़रह 10 रुकूअ आयत 91)

قُلۡ مَنۡ کَانَ عَدُوًّا لِّجِبۡرِیۡلَ فَاِنَّہٗ نَزَّلَہٗ عَلٰی قَلۡبِکَ بِاِذۡنِ اللّٰہِ مُصَدِّقًا لِّمَا بَیۡنَ یَدَیۡہِ

तर्जुमा : कह जो कोई दुश्मन है वास्ते जिब्राईल के पस तहक़ीक़ उसने उतारा है इस को ऊपर दिल तेरे के साथ हुक्म अल्लाह के सच्चा करने वाला है उस चीज़ को जो उन के हाथों में है। (सूरह बक़रह 12 रुकूअ आयत 97)

وَ لَمَّا جَآءَہُمۡ رَسُوۡلٌ مِّنۡ عِنۡدِ اللّٰہِ مُصَدِّقٌ لِّمَا مَعَہُمۡ

तर्जुमा : और जब आया उनके पास रसूल नज़्दीक अल्लाह के से सच्चा करने वाला उस चीज़ को जो उन के साथ है। (सूरह बक़रह 12 रुकूअ आयत 101)

نَزَّلَ عَلَیۡکَ الۡکِتٰبَ بِالۡحَقِّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَیۡنَ یَدَیۡہِ

तर्जुमा : उतारी ऊपर तेरे किताब साथ हक़ के सच्चा करने वाली उस चीज़ को जो उन के हाथों में है। (सूरह इमरान 1 रुकूअ आयत 3)

وَ اِذۡ اَخَذَ اللّٰہُ مِیۡثَاقَ النَّبِیّٖنَ لَمَاۤ اٰتَیۡتُکُمۡ مِّنۡ کِتٰبٍ وَّ حِکۡمَۃٍ ثُمَّ جَآءَکُمۡ رَسُوۡلٌ مُّصَدِّقٌ لِّمَا مَعَکُمۡ لَتُؤۡمِنُنَّ بِہٖ

तर्जुमा : और जिस वक़्त लिया अल्लाह ने अहद रसूलों का अलबत्ता जो कुछ दूँ मैं तुमको किताब से और हिक्मत से फिर आए तुम्हारे पास पैग़म्बर सच्चा करने वाला उस चीज़ को कि साथ तुम्हारे। (तो) अलबत्ता ईमान लाओ साथ उस के। (सूरह इमरान 19 रुकूअ आयत 81)

یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اُوۡتُوا الۡکِتٰبَ اٰمِنُوۡا بِمَا نَزَّلۡنَا مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَکُمۡ

तर्जुमा : ऐ लोगो जो दिए गए (हो) किताब ईमान लाओ साथ उस चीज़ के कि उतारी हमने सच्चा करने वाली इस चीज़ को कि साथ तुम्हारे है। (सूरह निसा 7 रुकूअ आयत 47)

وَ اَنۡزَلۡنَاۤ اِلَیۡکَ الۡکِتٰبَ بِالۡحَقِّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَیۡنَ یَدَیۡہِ

तर्जुमा : और उतारी हमने तरफ़ तेरी किताब साथ हक़ के सच्चा करने वाली उस चीज़ को जो उन के हाथों में है। (सूरह माइदा 7 रुकूअ आयत 48)

وَ ہٰذَا کِتٰبٌ اَنۡزَلۡنٰہُ مُبٰرَکٌ مُّصَدِّقُ الَّذِیۡ بَیۡنَ یَدَیۡہِ

तर्जुमा : और ये किताब है उतारी है हमने उस को बरकत वाली सच्चा करने वाली उस चीज़ को कि आगे उस के है। (सूरह अनआम 11 रुकूअ आयत 92)

وَ مَا کَانَ ہٰذَا الۡقُرۡاٰنُ اَنۡ یُّفۡتَرٰی مِنۡ دُوۡنِ اللّٰہِ وَ لٰکِنۡ تَصۡدِیۡقَ الَّذِیۡ بَیۡنَ یَدَیۡہِ

तर्जुमा : और नहीं है ये क़ुरआन कि बांध लिया जाये सिवाए अल्लाह के लेकिन सच्चा करने वाला है उस चीज़ का कि आगे उस के है। (सूरह यूनुस 4 रुकूअ आयत 37 इंतिहा)

हमारे मुहम्मदी नाज़रीन के लिए शायद मुक़ामात मुतज़क्किरा बाला काफ़ी होंगे इसलिए हम इन्हीं पर इक्तिफ़ा करके अपने मतलब को पेश करते हैं। ताकि हमारे मुख़ातबीन हक़ और नाहक़ में फ़ैसला करने की तरफ़ रुजू करें।

1. कि क़ुरआन की तस्दीक़ सिर्फ़ किताब-ए-मुक़द्दस से निस्बत रखती है और किसी किताब से नहीं।

2. कि क़ुरआन की तस्दीक़ उस किताब को सादिक़ ठहराती है जो क़ुरआन के अय्याम में अहले-किताब के हाथों में थी।

3. बमूजब इक़रार मुहम्मदियान ख़ुदा का क़ुरआन नाज़िल करने का मक़्सद ये था कि किताब-ए-मुक़द्दस की तस्दीक़ करे ना तक़्ज़ीब (झुटलाये)

4. बमूजब इक़रार मुहम्मदियान जो क़ुरआन जिब्राईल लाया और मुहम्मद साहब को दिया वो क़ुरआन किताब-ए-मुक़द्दस की तस्दीक़ करने वाला था।

5. बमूजब क़ुरआन मुहम्मद साहब के नबी होने का ये मक़्सद बयान किया जाता है कि वो किताब-ए-मुक़द्दस की तस्दीक़ करे।

कि क़ुरआन किताब-ए-मुक़द्दस की ज़ेल की बातों को सच्चा ठहराता है :-

1. कि किताब-ए-मुक़द्दस बिला तब्दील लफ़्ज़ी उस के ज़माने तक मौजूद थी।

2. क़ुरआन किताब-ए-मुक़द्दस के लफ़्ज़ लफ़्ज़ को इल्हामी क़रार देता है।

3. कि कुतुब-ए-समावी की ताअलीम क़ुरआन के मुसन्निफ़ के नज़्दीक हिदायते इलाही और नूर ख़ुदा वग़ैरह है। इस के सिवा क़ुरआन कुतुब-ए-मुक़द्दसा की तस्दीक़ के दाअवे पर अपने इल्हामी होने की बुनियाद भी रखता हुआ नज़र आता है जिस पर ग़ौर करना ज़रूरीयात से है। गोया क़ुरआन तस्दीक़ की आड़ में हो कर अपनी इलाही किताब होने का क़ज़ीया (बहस, तकरार) यूं पेश करता है कि चूँकि मैं ख़ुदा से इल्हाम किया गया हूँ इसलिए मैं तस्दीक़ पहली कुतुब-ए-रब्बानी की करता हूँ या यूं कि चूँकि में पहली कुतुबे समावी की तस्दीक़ करता हूँ इसलिए इल्हामी किताब हूँ ये क़ुरआनी दाअवा जो दर-पर्दा किया जाता है सच्चाई से हज़ारों मील दूर है जिसे कोई सलीम-उल-अक़्ल (दानिशमंद) मान नहीं सकता है। क्योंकि :-

1. कुतुब-ए-मुक़द्दसा की सच्चाई पर जो शहादत क़ुरआन में पाई जाती है वो ज़रूर अम्र-ए-हक़ का इज़्हार है लेकिन अगर क़ुरआन कुतुब-ए-समावी के ख़िलाफ़ गवाही देता तो कुतुब-ए-मुक़द्दसा की सच्चाई पर तो भी हर्फ़ नहीं आ सकता था। इसलिए कि हक़ को हक़ कहना तो ज़रूर सच्चाई है पर ये ज़रूर नहीं कि हक़ कहने के लिए हर एक शख़्स को इल्हाम दिया जाये और उस की गवाही को इल्हामी माना जाये।

2. हमको ये बात बख़ूबी मालूम है कि क़ुरआन के अपने हक़ में दाअवा दुरुस्त नहीं हैं। इस बात का सबूत हम इंशाअल्लाह तआला आगे चल कर देंगे।

ग़र्ज़ ये कि फ़िल-हक़ीक़त ये अम्र फ़ैसला करना ज़रूर है कि क़ुरआन का किताब-ए-मुक़द्दस की निस्बत क्या फ़ैसला है। क़ुरआन जो कुछ अपने हक़ में कहता है इस का बादा (इस के बाद) फ़ैसला होगा।

अव़्वल, वह शेय जो मुसद्दिक़ क़रार दी जाती है इब्राहीमी इस्लाम के उसूल की किताब है जिसे बाइबल कहते हैं। क़ुरआन इस की सच्चाई की तस्दीक़ करता है।

दुवम, वो इब्राहीमी इस्लाम के उसूल की किताब जिसकी क़ुरआन तस्दीक़ करता है हज़रत मुहम्मद साहब के अय्याम में मुसलमानों के हाथों में और मुहम्मदी साहिबान के रूबरू थी।

सोइम, जिस किताब की क़ुरआन तस्दीक़ करता है उस के लफ़्ज़ लफ़्ज़ को सच्चा क़रार देता है। क्योंकि लफ़्ज़ तस्दीक़ के मअनी यही हैं कि किसी शैय के ग़ैर मुतबद्दल होने और उस की असली सूरत में पाए जाने पर गवाही देना।

चहारुम, अगर क़ुरआन ने मुतबद्दल और मुनहरिफ़ किताब की तस्दीक़ की है तो क़ुरआन के बातिल होने पर यही काफ़ी सबूत समझना चाहिए। ये काम मुसद्दिक़ का था, कि अगर किताब-ए-मुक़द्दस में तब्दीली हुई थी तो इस की तस्दीक़ ना करता। पर ये बात कौन मुहम्मदी मान सकता है? पस बमूजब क़ुरआन किताब-ए-मुक़द्दस लफ़्ज़ बलफ़्ज़ बे-तब्दील और हक़ है। (पर कुतुब-ए-मुक़द्दसा का बमूजब क़ुरआन बिला तब्दील होना मुहम्मद साहब के अय्याम (दिनों) तक साबित होता है। बाद की क़ुरआन कुछ ख़बर नहीं देता है)

इस के सिवा बाअज़ मुहम्मदी साहिबान आजकल कोशिश करते है ताकि कुतुब-ए-मुक़द्दसा का तब्दील होना मुहम्मद साहब से पहली सदीयों में साबित करें। पर वो ऐसा करने से क़ुरआन की सदाक़त पर ख़ुद ही हर्फ़ लाते हैं। क्योंकि अगर ये बात साबित भी हो जाये कि कुतुब-ए-मुक़द्दसा अय्यामे मुहम्मदी से पेश्तर तब्दील हो गई, तो हम नहीं जानते कि वो इस मुसद्दिक़ की निस्बत क्या फ़ैसला करेंगे। जिसने अय्यामे मुहम्मद में कुतुब-ए-मुक़द्दसा की तस्दीक़ की पर हम जानते हैं कि इब्राहीमी इस्लाम की बुनियाद तब्दील नहीं हुई क़ुरआन ने अच्छा किया कि इस की तस्दीक़ की क्योंकि वो दीन और वो किताब सच-मुच तस्दीक़ के लायक़ है। नाज़रीन इस को ज़रुर देखें।

चौथी फ़स्ल
किताब-ए-मुक़द्दस के अहकाम के इज्रा की क़ुरआनी ताकीद

हम अपने मुख़ातबों पर क़ुरआन की तस्दीक़ जो किताब-ए-मुक़द्दस के हक़ में है। मुख़्तसर तौर से पेश कर चुके और अब हम उम्मीद करते हैं कि इस तस्दीक़ की निस्बत हमारे नाज़रीन फ़ैसला कर चुके होंगे। और क़ुबूल कर चुके होंगे कि किताब-ए-मुक़द्दस हक़ है। इस की सच्चाई ज़िंदगी के चलन ही से क़ायम हो सकती है और कि हम पर भी फ़र्ज़ है कि इस की सच्चाई की शहादत दें। अब हम नाज़रीन की ख़िदमत में एक और अर्ज़ करते हैं और उम्मीद है कि हक़ के मुतलाशी इस को ज़रूर क़द्र की निगाह से मुलाहिज़ा फ़रमाएँगे वो गुज़ारिश ये है कि किताब-ए-मुक़द्दस के अहकाम की इजरा पर क़ुरआनी ताकीद। इस का मतलब ये है कि क़ुरआन किताब-ए-मुक़द्दस और उस के अहकाम को जारी रखने की अहले किताब को ताकीद करता है। क़ुरआन ये नहीं ठहराता कि किताब-ए-मुक़द्दस की ज़रूरत मुनक़तेअ (ख़त्म) हो गई क़ुरआन ये तहरीक नहीं देता कि किताब-ए-मुक़द्दस का काम में दे सकता हूँ। अब किताब-ए-मुक़द्दस की ज़रूरत नहीं। बल्कि वो बड़े ज़ोर से अहले-किताब को किताब-ए-मुक़द्दस के क़ायम करने और जारी करने और उस के अहकाम की ज़िंदगी में मश्क़ करने की ताकीद करता है। हक़ीक़त में ये बड़ा काम था कि किताब-ए-मुक़द्दस की ज़िंदगी में मश्क़ की जाये। और ज़िंदगी के चलन से क़ायम की जाये। और उस वक़्त से लेकर आज तक इस बात की बड़ी ज़रूरत हमको महसूस होती है, कि किताब-ए-मुक़द्दस ईसाईयों की ज़िंदगी का चलन बन जाये। ताकि दुनिया जाने कि अहले-किताब राह पर हैं। क़ुरआन की तर्ग़ीब ना सिर्फ अहले किताब के लिए मुफ़ीद है पर नाज़रीन हर एक के लिए जो राह पुराना चाहे फ़ाइदेमंद है। वो तर्ग़ीब और तहरीक ज़ेल की आयात का मौज़ू है।

قُلۡ یٰۤاَہۡلَ الۡکِتٰبِ لَسۡتُمۡ عَلٰی شَیۡءٍ حَتّٰی تُقِیۡمُوا التَّوۡرٰىۃَ وَ الۡاِنۡجِیۡلَ وَ مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَیۡکُمۡ مِّنۡ رَّبِّکُمۡ ؕ

तर्जुमा : कह ऐ अहले-किताब नहीं तुम ऊपर किसी चीज़ के जब तक कि क़ायम (ना) करो तौरेत को और इन्जील को और जो कुछ उतारा जाता है तरफ़ तुम्हारे परवरदिगार तुम्हारे से। (सूरह माइदा 10 रुकूअ आयत 68)

اِنَّاۤ اَنۡزَلۡنَا التَّوۡرٰىۃَ فِیۡہَا ہُدًی وَّ نُوۡرٌ ۚ یَحۡکُمُ بِہَا النَّبِیُّوۡنَ الَّذِیۡنَ اَسۡلَمُوۡا لِلَّذِیۡنَ ہَادُوۡا وَ الرَّبّٰنِیُّوۡنَ وَ الۡاَحۡبَارُ بِمَا اسۡتُحۡفِظُوۡا مِنۡ کِتٰبِ اللّٰہِ وَ کَانُوۡا عَلَیۡہِ شُہَدَآءَ ۚ فَلَا تَخۡشَوُا النَّاسَ وَ اخۡشَوۡنِ وَ لَا تَشۡتَرُوۡا بِاٰیٰتِیۡ ثَمَنًا قَلِیۡلًا ؕ وَ مَنۡ لَّمۡ یَحۡکُمۡ بِمَاۤ اَنۡزَلَ اللّٰہُ فَاُولٰٓئِکَ ہُمُ الۡکٰفِرُوۡنَ

तर्जुमा : तहक़ीक़ उतारी हमने तौरेत बीच इस के हिदायत और नूर है हुक्म करते थे साथ उस के पैग़म्बर वो जो मुतीअ थे ख़ुदा के वास्ते उन लोगों के कि यहूदी हुए और हुक्म करते थे ख़ुदा के लोग और आलिम साथ इसी चीज़ के जो उन की हिफ़ाज़त में थी। किताब-उल्लाह की से। और थे ऊपर इस के गवाह। पस मत डरो लोगों से और डरो मुझसे और मत मोल लो बदले निशानीयों मेरी के मोल थोड़ा। और जो कोई हुक्म ना करे साथ इस चीज़ के कि उतारी है अल्लाह ने पस ये लोग वो हैं काफ़िर। (सूरह माइदा आयत 44)

وَ کَتَبۡنَا عَلَیۡہِمۡ فِیۡہَاۤ اَنَّ النَّفۡسَ بِالنَّفۡسِ ۙ وَ الۡعَیۡنَ بِالۡعَیۡنِ وَ الۡاَنۡفَ بِالۡاَنۡفِ وَ الۡاُذُنَ بِالۡاُذُنِ وَ السِّنَّ بِالسِّنِّ ۙ وَ الۡجُرُوۡحَ قِصَاصٌ ؕ فَمَنۡ تَصَدَّقَ بِہٖ فَہُوَ کَفَّارَۃٌ لَّہٗ ؕ وَ مَنۡ لَّمۡ یَحۡکُمۡ بِمَاۤ اَنۡزَلَ اللّٰہُ فَاُولٰٓئِکَ ہُمُ الظّٰلِمُوۡنَ

तर्जुमा : और लिखा है हमने ऊपर इनके (यहूद के) बीच इस के (तौरेत के) ये कि जान बदले जान के, आँख बदले आँख के और नाक बदले नाक के और कान बदले कान के और दाँत बदले दाँत के और ज़ख़्मों का बदला है। पस जो कोई ख़ैरात कर डाले साथ उस के पस कफ़्फ़ारा है। वास्ते उस के और जो कोई हुक्म ना करे साथ इस चीज़ के (यानी के) कि उतारी है अल्लाह ने पस ये लोग वो हैं ज़ालिम। (सूरह माइदा आयत 45)

وَ لۡیَحۡکُمۡ اَہۡلُ الۡاِنۡجِیۡلِ بِمَاۤ اَنۡزَلَ اللّٰہُ فِیۡہِ ؕ وَ مَنۡ لَّمۡ یَحۡکُمۡ بِمَاۤ اَنۡزَلَ اللّٰہُ فَاُولٰٓئِکَ ہُمُ الۡفٰسِقُوۡنَ

तर्जुमा : और चाहिए कि हुक्म करें अहले-इन्जील साथ इस चीज़ के कि उतारी है अल्लाह ने बीच इस के और जो कोई ना हुक्म करे साथ उस चीज़ के कि उतारी है अल्लाह ने पस ये लोग वही हैं फ़ासिक़। (सूरह माइदा 7 रुकूअ आयत 47)

नाज़रीन मुक़ामात मुतज़क्किरा बाला हमारे आज के मज़्मून की सुरख़ी के सबूत में काफ़ी हैं। क्या इस वक़्त आपको फ़ुर्सत है क्या आप इस वक़्त क़ुरआन की इस ताकीद पर ग़ौर करेंगे अगर फ़ुर्सत हो तो आओ हम पहले इस अम्र पर ग़ौर करें।

1. कि क़ुरआन का साफ़ फ़ैसला है कि किताब-ए-मुक़द्दस को क़ायम किए बग़ैर अहले-किताब किसी शैय पर या राह पर नहीं हो सकते।

लफ़्ज़ क़ायम के मअनी खड़ा करने या बनाने के हैं। या खड़ा करने वाले और बनाने वाले के हो सकते हैं। और ये लफ़्ज़ गिराने और ढाने के मुक़ाबिल है। मुताबिक़ इन माअनों के बमूजब क़ुरआन ख़ुदा अहले-किताब को ताकीद करता है कि वो किताब-ए-मुक़द्दस को क़ायम करें। और जब तक वो किताब-ए-मुक़द्दस को क़ायम ना करें तब तक वो किसी शैय या किसी राह पर नहीं हो सकते। और ये बात हमारे नज़्दीक हक़ है।

पर नाज़रीन अहले-किताब किस तौर से किताब-ए-मुक़द्दस को क़ायम कर सकते थे। आपके नज़्दीक किताब-ए-मुक़द्दस को क़ायम करने का कौन सा तरीक़ा बेहतर है। क्या सिर्फ किताब-ए-मुक़द्दस का अमल नहीं। क्या किताब-ए-मुक़द्दस को अपनी ज़िंदगी का क़ानून बनाना नहीं है? हमारे नज़्दीक यही एक तरीक़ा था जिसे अहले-किताब अमल में ला कर ख़ुदा की किताब को क़ायम कर सकते थे। वर्ना किताब-ए-मुक़द्दस के ख़िलाफ़ को क़ुबूल करना किताब-ए-मुक़द्दस को ज़रूर पामाल करना ठहरता। पस क़ुरआन इस तरीक़ से किताब-ए-मुक़द्दस को क़ायम करने की ताकीद करता है।

2. कि क़ुरआन किताब-ए-मुक़द्दस के क़ायम करने की सनद बयान करता है।

क्यों किताब-ए-मुक़द्दस क़ायम की जाये। क्यों क़ुरआन के इस हुक्म की अहले-किताब से तामील की जाये। किताब-ए-मुक़द्दस के क़ायम करने की क्या ज़रूरत है। ये कि किताब-ए-मुक़द्दस ख़ुदा की किताब है। ये ख़ुदा की मालूमात का दफ़्तर है। ये ख़ुदा के इन्सान के हक़ में सही फ़ैसले हैं। इस वजह से किताब-ए-मुक़द्दस के क़ायम करने की ज़रूरत है। ख़ुदा किताब-ए-मुक़द्दस के क़ायम करने की ज़रूरत देखता है इसलिए कि वो हिदायत और नूर है। पस किताब-ए-मुक़द्दस की सनद ख़ुदा है। क्या इसी लिए इस बाबरकत किताब को क़ायम करना लाज़िमी है? नाज़रीन आप की क्या राय है।

3. क़ुरआन से ये अम्र भी ज़ाहिर है कि किताब-ए-मुक़द्दस का ख़िलाफ़ कोई शैय या रास्ता नहीं है।

अगर कोई चीज़ या कोई रास्ता हिदायत है तो किताब-ए-मुक़द्दस का क़ायम करना है। अगर कोई अहले-किताब के लिए काम है तो किताब-ए-मुक़द्दस का क़ायम करना है अगर उनकी तमाम ज़िंदगी की ख़िदमत है तो किताब-ए-मुक़द्दस का क़ायम करना है। वर्ना और अहले-किताब का कोई काम नहीं है। और अगर वो किताब-ए-मुक़द्दस को क़ायम ना करें तो वो किसी राह पर नहीं हैं। इसलिए कि किताब-ए-मुक़द्दस का क़ायम करना उनके लिए बमूजब क़ुरआन ख़ुदा की तरफ़ से फ़र्ज़ ठहराया गया है वर्ना अगर वो ऐसा ना करें तो वो किसी चीज़ पर नहीं हैं। मासिवा इस के ज़ाहिर है कि किताब-ए-मुक़द्दस का ख़िलाफ़ अहले किताब के लिए गुमराही और तबाही है किताब-ए-मुक़द्दस का ख़िलाफ़ क़ुरआन के लिए बमंज़िला कुफ़्र है जैसा कि ऊपर ज़िक्र हो चुका। तो ऐ नाज़िर किताब-ए-मुक़द्दस का ख़िलाफ़ क्या तेरे लिए इस्लाम हो सकता है?

4. क़ुरआन में अहले-किताब के लिए ये हुक्म है कि किताब-ए-मुक़द्दस क़ायम की जाये। और ये हुक्म क़ुरआन में आया है। क्या क़ुरआन इस से बुरी है। क्या कहें क़ुरआन में हुक्म है कि क़ुरआन और मुहम्मदी किताब-ए-मुक़द्दस के ख़िलाफ़ चलें? अगर नहीं तो ये हुक्म मुहम्मदियों से क्यों इलाक़ा नहीं रखता? क्या ये फ़र्ज़ ग़ैर मुल्हमों का ही हो सकता है। और मुलहम इस से बरी हो सकते हैं? हमारे नज़्दीक ये हुक्म पहले साहिब इल्हाम को पूरा करना है। पस जैसे इस हुक्म की तामील अहले-किताब पर फ़र्ज़ है वैसे ही क़ुरआन और मुहम्मद साहब और तमाम मुहम्मदी साहिबान पर वाजिब है। अगर आप को इस में उज़्र है तो क्यों?

5. क़ुरआन साफ़ हुक्म देता है कि अहले-किताब अहकामे इलाही को जारी रखें। इसलिए कि किताब-ए-मुक़द्दस हिदायत और नूर है वो ख़ुदा का फ़ज़्ल और रहमत है। जैसी कि ऊपर हम क़ुरआन से किताब-ए-मुक़द्दस की निस्बत कैफ़ीयत दिखला चुके। वो वैसी ही किताब है इसलिए लाज़िम है कि अहले-किताब किताब-ए-मुक़द्दस के अहकाम जारी करें। किताब के मुवाफ़िक़ हुक्म करें।

आख़िर में काफ़िरों और ज़ालिमों और फ़ासिक़ों के क़ुरआनी अहवाल पर ग़ौर करें जिसका क़ुरआन बयान करता है :-

1. दुनिया में बमूजब क़ुरआन अल्लाह ज़ालिमों की हिदायत नहीं करता।

اِنَّ اللّٰہَ لَا یَہۡدِی الۡقَوۡمَ الظّٰلِمِیۡنَ

तर्जुमा : तहक़ीक़ अल्लाह नहीं हिदायत करता ज़ालिमों की क़ौम को। (सूरह माइदा 7 रुकूअ आयत 51)

2. अल्लाह दुनिया में इन को गुमराह करता है।

وَ یُضِلُّ اللّٰہُ الظّٰلِمِیۡنَ ۟ۙ وَ یَفۡعَلُ اللّٰہُ مَا یَشَآءُ

तर्जुमा : और गुमराह करता है अल्लाह ज़ालिमों को और करता है अल्लाह जो चाहता है। (सूरह इब्राहिम 4 रुकूअ आयत 27)

3. ज़ालिमों को ख़ुदा दोज़ख़ में डालता है।

وَ مَنۡ یَّفۡعَلۡ ذٰلِکَ عُدۡوَانًا وَّ ظُلۡمًا فَسَوۡفَ نُصۡلِیۡہِ نَارًا

तर्जुमा : और जो कोई करे ये तअद्दी या ज़ुल्म से पस अलबत्ता दाख़िल करेंगे हम उस को आग में। (सूरह निसा 5 रुकूअ आयत 30)

फ़ासिक़ों (झूटों) की निस्बत ये बयान पाया जाता है :-

1. कि बमूजब क़ुरआन अल्लाह फ़ासिक़ों को हिदायत नहीं करता।

وَ اللّٰہُ لَا یَہۡدِی الۡقَوۡمَ الۡفٰسِقِیۡنَ

तर्जुमा : और अल्लाह नहीं हिदायत करता फ़ासिक़ों की क़ौम को। (सूरह माइदा आयत 108)

2. कि अल्लाह उन को गुमराह करता है।

وَ مَا یُضِلُّ بِہٖۤ اِلَّا الۡفٰسِقِیۡنَ

तर्जुमा : और नहीं गुमराह करता साथ उसके मगर फ़ासिक़ों को। (सूरह बक़रह 3 रुकूअ आयत 26)

3. फ़ासिक़ों का हद्या ख़ुदा क़ुबूल नहीं करता।

قُلۡ اَنۡفِقُوۡا طَوۡعًا اَوۡ کَرۡہًا لَّنۡ یُّتَقَبَّلَ مِنۡکُمۡ ؕ اِنَّکُمۡ کُنۡتُمۡ قَوۡمًا فٰسِقِیۡنَ

तर्जुमा : कह ख़र्च करो ख़ुशी से या ना ख़ुशी से हरगिज़ ना क़ुबूल किया जाएगा। तुमसे (कुछ) तहक़ीक़ हो तुम क़ौम फ़ासिक़। (सूरह तौबा 7 रुकूअ आयत 53)

4. उनकी बख़्शिश मुहाल और अज़ाब दोज़ख़ उनके लिए लाज़िमी है।

سَوَآءٌ عَلَیۡہِمۡ اَسۡتَغۡفَرۡتَ لَہُمۡ اَمۡ لَمۡ تَسۡتَغۡفِرۡ لَہُمۡ ؕ لَنۡ یَّغۡفِرَ اللّٰہُ لَہُمۡ ؕ اِنَّ اللّٰہَ لَا یَہۡدِی الۡقَوۡمَ الۡفٰسِقِیۡنَ

तर्जुमा : बराबर है ऊपर उनके क्या बख़्शिश मांगे तू वास्ते उनके या ना बख़्शिश मांगे तू वास्ते इनके हरगिज़ ना बख़्शेगा अल्लाह वास्ते इनके। तहक़ीक़ अल्लाह नहीं राह दिखाता फ़ासिक़ों की क़ौम को। (सूरह मुनाफ़िक़ों 1 रुकूअ आयत 6)

क़ुरआन में काफ़िरों के अज़ाब की निस्बत इस तौर से बयान पाया जाता है :-

1. कि क़ुरआन के मुताबिक़ काफ़िरों को ख़ुदा हिदायत नहीं करता।

اِنَّ اللّٰہَ لَا یَہۡدِی الۡقَوۡمَ الظّٰلِمِیۡنَ

तर्जुमा : तहक़ीक़ अल्लाह नहीं हिदायत करता काफ़िरों की क़ौम की। (सूरह माइदा 10 रुकूअ आयत 51)

2. कि ख़ुदा काफ़िरों को गुमराह करता है।

کَذٰلِکَ یُضِلُّ اللّٰہُ الۡکٰفِرِیۡنَ

तर्जुमा : इसी तरह गुमराह करता है अल्लाह काफ़िरों को। (सूरह मोमिन, 8 रुकूअ आयत 74)

3. काफ़िरों का ठिकाना दोज़ख़ है।

وَ جَعَلۡنَا جَہَنَّمَ لِلۡکٰفِرِیۡنَ حَصِیۡرًا

तर्जुमा : और किया हमने दोज़ख़ को वास्ते काफ़िरों के क़ैदख़ाना (सूरह बनी-इस्राईल 1 रुकूअ आयत 8)

ऊपर के बयान से ये अम्र बख़ूबी रोशन हो गया, कि कुतुब-ए-मुक़द्दसा के अहकाम अहले किताब पर जारी रखने फ़र्ज़ थे। और अहले-किताब को क़ुरआन से ये ताकीद थी कि वो अपने अमल से और अपनी ज़िंदगी से किताब-ए-मुक़द्दस को क़ायम करें और अगर वह ऐसा ना करें तो ज़ालिम और फ़ासिक़ और काफ़िर हो कर और सब क़िस्म की हिदायत से महरूम हो कर जहन्नम रसीद होंगे। इस हाल में वो क़ुरआनी हो कर सज़ा से नहीं छूट सकते थे। क्योंकि उनका किताब-ए-मुक़द्दस को क़ायम करना ज़रूरी अम्र था। और ना क़ुरआन उनके लिए मुफ़ीद हो सकता था। पस अहले-किताब में से किसी का मुहम्मदी होना गुमराही मोल लेना था। इसलिए कि जिस हाल वो किताबी हो कर किताब-ए-मुक़द्दस को क़ायम ना कर सकते थे, तो मुहम्मदी हो कर किताब-ए-मुक़द्दस को क़ायम करना उनके के लिए मुहाल-ए-मुत्लक़ था। पर अहले-किताब में एक उम्मत किताब-ए-मुक़द्दस को क़ायम रखती थी। देखो चौथा बाब उस की तीसरी फस्ल को।

इस के सिवा मुहम्मदी साहिबान की निस्बत ऊपर के बयान से ये अम्र दर्याफ़्त तलब बाक़ी रहा कि आया ये लोग किताब-ए-मुक़द्दस के ख़िलाफ़ चलने वाले ठहरे या किताब-ए-मुक़द्दस के मुवाफ़िक़ अमल करने वाले? सो इस का ज़िक्र आगे आने वाला है।

पांचवीं फ़स्ल
बमूजब क़ुरआन किताब-ए-मुक़द्दस के बिला तहरीफ़ होने का बयान

وَ اِنَّ مِنۡہُمۡ لَفَرِیۡقًا یَّلۡوٗنَ اَلۡسِنَتَہُمۡ بِالۡکِتٰبِ لِتَحۡسَبُوۡہُ مِنَ الۡکِتٰبِ وَ مَا ہُوَ مِنَ الۡکِتٰبِ ۚ وَ یَقُوۡلُوۡنَ ہُوَ مِنۡ عِنۡدِ اللّٰہِ وَ مَا ہُوَ مِنۡ عِنۡدِ اللّٰہِ

तर्जुमा : और उनमें एक फ़रीक़ है कि ज़बान मरोड़ कर पढ़ते हैं किताब तो कि तुम जानो वो किताब में है। और वो नहीं किताब में…. अलीख (सूरह इमरान 8 रुकूअ आयत 78 इस पर (तफ़्सीर राज़ी)

क्यूँ-कर मुम्किन है दाख़िल करना तहरीफ़ का तौरेत में, बावजूद उस की निहायत शौहरत के लोगों में?

जो अब शायद कि ये काम थोड़े से आदमीयों ने कि जिनका तहरीफ़ पर इकट्ठा हो जाना मुम्किन हो गया हो तो इस सूरत में ऐसी तहरीफ़ होनी मुम्किन है। मगर मेरे नज़्दीक इस आयत की बेहतर तफ़्सीर ये है कि जो आयतें तौरेत की मुहम्मद ﷺ पर दलालत करती हैं उनमें ग़ौर व फ़िक्र की एहतियाज (हाजत, ज़रूरत) थी। और वो लोग उन पर सवालात और बेजा एतराज़ात करते थे। फिर वो दलीलें सुनने वालों पर मुश्तहबा (मानिंद हो जाना) हो जाती थीं और यहूदी कहते थे कि इन आययों से अल्लाह तआला की मुराद वो है जो हम कहते हैं ना वो जो तुम कहते हो। पस यही मुराद है तहरीफ़ से और ज़बान बदलने से या फेरने से इस की ऐसी मिसाल है जैसे कि हमारे ज़माने में जब कोई मुहक्क़िक़ किसी आयत कलाम-उल्लाह से इस्तिदलाल करता है तो गुमराह लोग उस पर सवालात और शुब्हात करते हैं और कहते हैं कि अल्लाह की मुराद ये नहीं है। जो तुम कहते हो। इसी तरह इस तहरीफ़ की सूरत है।

قولہ ویلسون السنتھم معناہ یعمدون الیٰ الفظہ فیحر فونھافی حرکات الاعراب تحریفا یتغیربہ المعنی

इमाम फ़ख़्रउद्दीन ये भी फ़र्माते हैं, अल्लाह तआला ने जो ये फ़रमाया कि किताब पढ़ने में ज़बान मरोड़ कर पढ़ते हैं इस के ये मअनी हैं कि वो लोग (यहूद मदीना) ख़राब करते हैं लफ़्ज़ को और बदल देते हैं (पढ़ने में) इस के एराब को कि इस तब्दील से इस लफ़्ज़ के मअनी बिगड़ जाते हैं।

मुवाफ़िक़ तफ़्सीर हुसैनी के ये इल्ज़ाम यहूद मदीना के इन नामवर लोगों को दिया गया यानी कअब वग़ैरह को। (सूरह निसा रुकूअ आयत 46) में आया है :-

مِنَ الَّذِیۡنَ ہَادُوۡا یُحَرِّفُوۡنَ الۡکَلِمَ عَنۡ مَّوَاضِعِہٖ

तर्जुमा : वो यहूदी हैं बेडहब (बदल) करते हैं बात को उस के ठिकाने से।

राज़ी इस पर ये बयान फ़र्माते हैं :-

فان قیل کیف یمکن ہذا نی الکتب الدین بلغت احادحروفہ و کلمہ مبلغ التواتر المشہور فی الشرق والغرب قلنا لعلہ یقال القوم کا نواقلیلین والعلماء بالکتب کانوافی غایتہ القلہ فقد رواعلیٰ ھذالتحریف الثانی ان المرادبالتحریف القاء الشبھۃ الباطلتہ والتا ویلا الفاسد ۃ الخ

तर्जुमा : पस किस तरह मुम्किन है तहरीफ़ ऐसी किताब में जिसके हर हर्फ़ और कलिमे तवात्तिर को पहुंच गए हैं पहला जवाब शायद यूं कहा जा सके कि वो लोग थोड़े थे और आलिम किताब-ए-इलाही के बहुत कम थे। पस ऐसी तहरीफ़ कर सके। दूसरा जवाब तहरीफ़ से मुराद है झूटे शुब्हाओं का डालना और ग़लत तावीलों का करना और लफ़्ज़ को सही माअनों से झूटे माअनों की तरफ़ खींचना लफ़्ज़ी हियलों से। जैसे कि इस ज़माने की बिद्अतीं अपने मज़्हब की मुख़ालिफ़ आयतों के साथ करते हैं। इस को समझा और यही मुराद तहरीफ़ की बहुत सही है।

یُحَرِّفُوۡنَ الۡکَلِمَ مِنۡۢ بَعۡدِ مَوَاضِعِہٖ

तर्जुमा : बदलते हैं कलाम को अपने ठिकाने से। (सूरह माइदा आयत 41)

इब्ने अब्बास से रिवायत है :-

واخرج ابن جزیر عن ابن عباس فی قولہ یحرفون الکلم عن مواضعہ یعنی حدود اللہ فی التوراتہ

तर्जुमा : ये जो फ़रमाया अल्लाह तआला ने कि बदलते हैं कलाम को अपने ठिकाने से इस के ये मअनी हैं कि जो हदें अल्लाह तआला ने अहकाम की मुक़र्रर की हैं तग़य्युर व तब्दील करते हैं।

राज़ी बयान करता है :-

التحریف یحتمل التویل الباطل ومحیتمل تغیر اللفظہ وقد بنیانی تقدم ان الاول اولیٰ لان الکتب المنقول باالتواترلا یتا تی فیہ تغیر اللفظ

तर्जुमा : तहरीफ़ से या तो ग़लत तावील मुराद है। या लफ़्ज़ का बदलना मुराद है। और हमने ऊपर बयान किया है कि पहली मुराद बेहतर है क्योंकि जो किताब मुतवातिर हो उस में तग़य्युर लफ़्ज़ी नहीं हो सकता। और यही हुसैनी का बयान है।

फ़त्ह-उल-बारी सही बुख़ारी में ये बयान आया है :-

قدسئل ابن یتمیمۃ عن ہذا لمسئلۃ فاجاب فی فتاداۃ للعلماء فی ہذا قولین احد ھماوقوع التدیل فی الالفاظ ۔ایضاًتاینھمالاتبدیل الافی المعنی واجتح للثانی

तर्जुमा : इब्ने कीमिया से मसअला तहरीफ़ का पूछा गया। पस उन्हों ने जवाब दिया कि उलमा के इस में दो क़ौल हैं एक ये कि तहरीफ़ लफ़्ज़ों में भी हुई थी। दुवम ये कि तब्दील लफ़्ज़ी नहीं हुई मगर सिर्फ माअनों में और इस दूसरी बात पर बहुत दलीलें बयान की हैं। मुहम्मद इस्माईल बुख़ारी लिखते हैं :-

قولہ تعالیٰ ۔یحرفون الکلم عن مواضعہ ۔یحرفون یزیلون ولیس احد یزمل لفظ کتاب من کتب اللہ ولکنتھم یحرفونہ یتاولونہ علیٰ غیر تاویلہ

तर्जुमा : ख़ुदा तआला का ये क़ौल कि तहरीफ़ करते हैं कलमों को उनकी जगह से। सो तहरीफ़ के मअनी हैं बिगाड़ देने के। और कोई शख़्स नहीं है जो बिगाड़े अल्लाह तआला की किताबों से एक लफ़्ज़ किसी किताब का लेकिन यहूदी ख़ुदा की किताब को उस के असली और सच्चे माअनों से ग़ैर तावील पर फेर कर तहरीफ़ करते थे।

शाह वली अल्लाह साहब फ़र्माते हैं :-

“’मेरे नज़्दीक यही तहक़ीक़ हुआ है कि अहले किताब तौरेत वग़ैरह के तर्जुमे में तहरीफ़ करते थे, ना कि अस्ल तौरेत में”

और यही क़ौल इब्ने अब्बास का है। फ़ौज़-उल-कबीर

(तफ़्सीर दुर्रे-मंसूर) के मुंसिफ़ ने इब्ने मंज़र व इब्ने अबी हातिम की ज़बानी ये बयान रिवायत किया है :-

و اخرج ابن المنزر وابن ابی حاتم عن وہب ابن مبنہ قال ان التورتہ والانجیل مکاانزل ھما اللہ لم تغیر منھما حرف ولکنھم یضلون بالتحریف والتاویل والکتب کانوایکتبو نھامن عند انفسھم ویقولون ھو من عند اللہ وماھو من عند اللہ فاماکتب اللہ فانھامحفوظتہ لامحول

तर्जुमा : तौरेत व इन्जील जिस तरह कि इन दोनों को अल्लाह ने उतारा था उसी तरह हैं इनमें कोई हर्फ़ बदला नहीं गया। लेकिन यहूदी बहकाते थे। लोगों को माअनों के बदलने और ग़लत तावीलात से और हालाँकि किताबें थीं वो जिनको उन्हों ने अपने हाथ से लिखा था और कहते थे, कि वो अल्लाह की तरफ़ से हैं और वो अल्लाह की तरफ़ से ना थीं। मगर जो अल्लाह की तरफ़ से किताबें थीं, वो महफ़ूज़ थीं उनमें कुछ तब्दील नहीं हुआ।

ऊपर के बयानात से साबित हुआ कि किताब-ए-मुक़द्दस तहरीफ़ नहीं हुई कि अनक़रीब कुल मुफ़स्सिर और मुहद्दिस और रावी इस पर मुत्तफ़िक़ हैं। कि किताब-ए-मुक़द्दस अय्यामे मुहम्मदी में बिला तहरीफ़ रही और आज तक बिला तहरीफ़ हैं।

इस के सिवा अगर किताब-ए-मुक़द्दस का तहरीफ़ होना माना भी जाये तो पहले इस का नतीजा क़ुरआन को भुगतना पड़ेगा। कि जिसने मुहर्रिफ़ किताब को रोशनी और हिदायत वग़ैरह क़रार दिया। कि क़ुरआन बातिल है क्योंकि वो बातिल का मुसद्दिक़ है। दूसरा नतीजा मुहम्मद साहब को भुगतना होगा जिसने मुहर्रिफ़ किताब की तस्दीक़ का बीड़ा उठाया। तीसरे किताब-ए-मुक़द्दस फिर भी बिला तहरीफ़ साबित होगी। क्योंकि अहले-किताब में से एक बड़ी गिरोह ईमानदारों की मौजूद थी जिस पर क़ुरआन शहादत दे चुका है। पस उन पर किसी तरफ़ से इल्ज़ाम तहरीफ़ का क़ायम नहीं हो सकता। ग़रज़ कि सब तरह से साबित है कि किताब-ए-मुक़द्दस मुहम्मद साहब के अय्याम में बिला तहरीफ़ मौजूद रही जैसा कि ऊपर के बयानात से साबित है।

पस जब कि किताब-ए-मुक़द्दस बिला तहरीफ़ मौजूद थी तो आने वाले मुआमलात में किताब-ए-मुक़द्दस की गवाही सनद है और पढ़ने वाले इस बात का ख़याल फ़रमाएं कि क़ुरआनी बयान के मुक़ाबिल किताब-ए-मुक़द्दस का क्या बयान है? और किताब-ए-मुक़द्दस का बयान सनद होगा क़ुरआन का नहीं। इसलिए कि क़ुरआन की सच्चाई मुश्तबा (शुब्हा में होना, शक में होना) है। लिहाज़ा सिर्फ़ क़ुरआनी बयान किसी अम्र में सनद नहीं होगा। तावक़्त ये कि किताब-ए-मुक़द्दस का बयान इस बयान के मुवाफ़िक़ ना हो। पस अब अगले बाबों से किसी बात की निस्बत मह्ज़ क़ुरआनी शहादत को मद्द-ए-नज़र रखना बे इंसाफ़ी होगा। क्योंकि मह्ज़ क़ुरआन की सच्चाई मुश्तबा है।

छटवीं फ़स्ल
इस बयान में कि मुहम्मदी अय्याम में बमूजब क़ुरआन किताब-ए-मुक़द्दस सनद ठहराई गई

1. उन इल्ज़ामों से जो क़ुरआन के मुसन्निफ़ ने अहले किताब पर लगाए हैं साबित है कि किताब-ए-मुक़द्दस सनद थी।

ये अम्र साबित हो चुका कि किताब-ए-मुक़द्दस अहले-किताब के हाथ में बिला तहरीफ़ मौजूद थी और कि अहले किताब ने कुतुब-ए-मुक़द्दसा में कुछ ख़ियानत ना की थी। ताहम अहले किताब में से बाअज़ लोग बमूजब क़ुरआन ऐसे थे जो इस पर अमल नहीं करते थे। लिहाज़ा मुसन्निफ़ क़ुरआन ने उन पर बार-बार इल्ज़ाम लगा कर और उनको मुजरिम साबित करके ये अम्र हम पर रोशन किया कि किताब-ए-मुक़द्दस चाल चलन के क़ानून के लिए सनदी किताब है जिससे रुगिरदानी गुनाह-ए-अज़ीम है। इस के सबूत के लिए ज़ेल की आयात मुंतख़ब की हैं।

(1)

और रिवायत है ज़ियाद बिन लबीद से कहा ज़िक्र किया हज़रत नबी ﷺ ने…. क्या नहीं यहूद और नसारा पढ़ते तौरेत और इन्जील को? नहीं अमल करते कुछ इस चीज़ से कि बीच उनके है अस्ल इबारत और हवाला देखो पहले बाब की पहली फ़स्ल में।

फिर (सूरह माइदा आयत 77) के शान नुज़ूल में इब्ने इस्हाक़ ने ये रिवायत बयान की है :-

(2)

ومن عدو انھم قال واتی رسول اللہ رافع بن حارثیہ وسلابن مشکم ومالک بن الضیف ورافع بن حرملہ فقالو ایا محمد الست تزعم انک علیک ملۃ ابراھیم ودینہ وتو من بما عند نامن التورتہ وتشھد انھا من اللہ حق ۔قال بلیٰ ولکنکم احد ثتم وججد تم مافیھا مما اخذ علیکم من لمیثاق وکنتم منھا ما امرتم ان تبیسنوہ الناس فبریت من احد اءلکم ۔قالو افاناناخذ بما فی اید ینا فاناعلی الحق والھدی ولائو من بک ولا نتبعک فانزل اللہ عزوجل فیھم قل یاھل الکتب

तर्जुमा : यहूदीयों की अदावत के बयान में इब्ने इस्हाक़ रिवायत करता है, कि रसूल अल्लाह राफ़े इब्ने हारिस और सलाम इब्ने मुश्कम और मालिक इब्ने अल-ज़ीफ़ और राफ़े इब्ने हरमिला के पास गए तो वो कहने लगे कि ऐ मुहम्मद क्या ये तेरा ख़याल नहीं है कि तू इब्राहिम के दीन व मिल्लत पर है और क्या तू उस पर जो हमारे पास है यानी तौरेत पर ईमान नहीं रखता है और क्या तू इस बात की शहादत नहीं देता है कि वो हक़ है ख़ुदा की तरफ़ से? मुहम्मद साहब ने जवाब दिया कि हाँ बेशक लेकिन तुमने नए नए अक़ीदे निकाले और जो कुछ कि इस में मौजूद है जिसका तुमसे वाअदा लिया गया उस से तुमने इन्कार किया और इस में से जिसके वास्ते तुम्हें हुक्म है कि लोगों से बयान करो उसे तुमने छिपाया पस में बरी हूँ तुम्हारे अहदास से। उन्होंने जवाब दिया कि हम लोग इस को (किताब को) पकड़ते हैं जो हमारे हाथ में है पस हम हक़ और राह-ए-रास्त पर हैं और तुझ पर ईमान नहीं लाते और तेरी पैरवी नहीं करते। पस उनकी बनिस्बत अल्लाह अज़्ज़ व जल ने ये आयत उतारी। अलीख :-

(3)

مَا کَانَ لِبَشَرٍ اَنۡ یُّؤۡتِیَہُ اللّٰہُ الۡکِتٰبَ وَ الۡحُکۡمَ وَ النُّبُوَّۃَ ثُمَّ یَقُوۡلَ لِلنَّاسِ کُوۡنُوۡا عِبَادًا لِّیۡ مِنۡ دُوۡنِ اللّٰہِ وَ لٰکِنۡ کُوۡنُوۡا رَبّٰنِیّٖنَ بِمَا کُنۡتُمۡ تُعَلِّمُوۡنَ الۡکِتٰبَ وَ بِمَا کُنۡتُمۡ تَدۡرُسُوۡنَ (ۙ۷۹)

तर्जुमा : आदमज़ाद को मुनासिब नहीं कि ख़ुदा उस को किताब और हुक्म और नबुव्वत दे और फिर वो लोगों को कहे कि ख़ुदा के सिवा तुम मेरी इबादत करो। लेकिन (ऐ अहले किताब) हो जाओ तुम कामिल इस सबब से कि तुम किताब का इल्म रखते हो और इस सबब से कि तुम उसे मुतालआ करते हो। (सूरह इमरान 79 आयत)

اِنَّ الَّذِیۡنَ یَکۡتُمُوۡنَ مَاۤ اَنۡزَلَ اللّٰہُ مِنَ الۡکِتٰبِ وَ یَشۡتَرُوۡنَ بِہٖ ثَمَنًا قَلِیۡلًا ۙ اُولٰٓئِکَ مَا یَاۡکُلُوۡنَ فِیۡ بُطُوۡنِہِمۡ اِلَّا النَّارَ

तर्जुमा : जो लोग छुपाते हैं इस किताब को जो अल्लाह ने नाज़िल की और बेचते हैं उसे थोड़े से मोल पर वो आग खाएँगे, अपने पेट में। (सूरह बक़रह 74 आयत)

पस ऊपर के बयान से ये अम्र रोशन हुआ कि अहले-किताब में से बाअज़ किताब-ए-मुक़द्दस को छिपाने और इस पर अमल ना करने की जिहत से क़ुरआन की निगाह में मुजरिम ठहरे। जिससे साबित हुआ उन को किताब-ए-मुक़द्दस पर अमल करना चाहिए था और किताब-ए-मुक़द्दस को लोगों पर बयान करना चाहिए था। पस ये अम्र किताब-ए-मुक़द्दस के सनद होने की काफ़ी दलील है।

मज़ीद ये कि अहले-किताब की गवाही को फ़ैसला कामिल क़रार देने से साबित है कि किताब-ए-मुक़द्दस सनद मानी गई।

وَ یَقُوۡلُ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا لَسۡتَ مُرۡسَلًا ؕ قُلۡ کَفٰی بِاللّٰہِ شَہِیۡدًۢا بَیۡنِیۡ وَ بَیۡنَکُمۡ ۙ وَ مَنۡ عِنۡدَہٗ عِلۡمُ الۡکِتٰبِ (۴۳)

तर्जुमा : और जो कुफ़्र करते हैं कहते हैं कि तू अल्लाह का भेजा हुआ नहीं है। तू कह कि अल्लाह काफ़ी है गवाह दर्मियान मेरे और तुम्हारे और वो भी जिसको इल्म है किताब का। (सूरह रअद आयत 43)

जलाल उद्दीन लिखता है :-

ومن عندہ علم الکتب من مومن الیہود والنصاریٰ

तर्जुमा : और जिसको कि इल्म है किताब का यानी मोमिनाने यहूद और नसारा।

पस ऊपर के बयान से ये अम्र रोशन हुआ कि अहले-किताब में से बाअज़ किताब-ए-मुक़द्दस को छिपाने और इस पर अमल ना करने की जिहत से क़ुरआन की निगाह में मुजरिम ठहरे। जिससे साबित हुआ उन को किताब-ए-मुक़द्दस पर अमल करना चाहिए था और किताब-ए-मुक़द्दस को लोगों पर बयान करना चाहिए था। पस ये अम्र किताब-ए-मुक़द्दस के सनद होने की काफ़ी दलील है।

मज़ीद ये कि अहले-किताब की गवाही को फ़ैसला कामिल क़रार देने से साबित है कि किताब-ए-मुक़द्दस सनद मानी गई।

وَ یَقُوۡلُ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا لَسۡتَ مُرۡسَلًا ؕ قُلۡ کَفٰی بِاللّٰہِ شَہِیۡدًۢا بَیۡنِیۡ وَ بَیۡنَکُمۡ ۙ وَ مَنۡ عِنۡدَہٗ عِلۡمُ الۡکِتٰبِ (۴۳)

तर्जुमा : और जो कुफ़्र करते हैं कहते हैं कि तू अल्लाह का भेजा हुआ नहीं है। तू कह कि अल्लाह काफ़ी है गवाह दर्मियान मेरे और तुम्हारे और वो भी जिसको इल्म है किताब का। (सूरह रअद आयत 43)

जलाल उद्दीन लिखता है :-

ومن عندہ علم الکتب من مومن الیہود والنصاریٰ

तर्जुमा : और जिसको कि इल्म है किताब का यानी मोमिनाने यहूद और नसारा।

وَ مَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ قَبۡلِکَ اِلَّا رِجَالًا نُّوۡحِیۡۤ اِلَیۡہِمۡ فَسۡـَٔلُوۡۤا اَہۡلَ الذِّکۡرِ اِنۡ کُنۡتُمۡ لَا تَعۡلَمُوۡنَ

तर्जुमा : और तुझसे पहले हमने किसी को रसूल नहीं भेजा सिवा आदमज़ाद के और उन को हमने वही दी है। पस पूछ अहले ज़िक्र (अहले किताब) से अगर तुम नहीं जानते। (सूरह नहल आयत 43)

وَ لَقَدۡ اٰتَیۡنَا مُوۡسٰی تِسۡعَ اٰیٰتٍۭ بَیِّنٰتٍ فَسۡـَٔلۡ بَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ

तर्जुमा : और अलबत्ता तहक़ीक़ हमने मूसा को नौ (9) साफ़ निशानीयां दीं पस पूछ बनी-इस्राईल से। (सूरह बनी-इस्राईल आयत 101)

जलाल उद्दीन, فاسال یا محم पस पूछिऐ मुहम्मद।

فَاِنۡ کُنۡتَ فِیۡ شَکٍّ مِّمَّاۤ اَنۡزَلۡنَاۤ اِلَیۡکَ فَسۡـَٔلِ الَّذِیۡنَ یَقۡرَءُوۡنَ الۡکِتٰبَ مِنۡ قَبۡلِکَ

तर्जुमा : पस अगर तू (ऐ मुहम्मद) है शक में इस से जो उतारी हमने तेरी तरफ़ तू पूछ उन से जो पढ़ते हैं किताब पहले तुझसे। (सूरह यूनुस आयत 94)

وَاسْأَلْ مَنْ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ مِن رُّسُلِنَا أَجَعَلْنَا مِن دُونِ الرَّحْمَٰنِ آلِهَةً يُعْبَدُونَ

तर्जुमा : पूछ उन रसूलों से जिन्हें हमने तुझसे पहले भेजा क्या हमने बनाए सिवाए रहमान के और ख़ुदा कि जो पूजे जाएं। (सूरह ज़ुखरूफ आयत 45)

बैज़ावी लिखता है (اے اممھم وعلماء دینھم) और जलाल उद्दीन लिखता है (امم من اہل الکتابین) यानी यहूदीयों और ईसाईयों से पूछ। पस ऊपर के बयान से साबित हुआ कि अहले-किताब की शहादत पर बनाए कुतुब रब्बानी मुहम्मद साहब के लिए क़तई फ़ैसला थी और इसलिए किताब-ए-मुक़द्दस सनद ठहरी क्योंकि क़ुरआनी बयानात की सेहत के लिए किताब-ए-मुक़द्दस और अहले किताब की शहादत सबूत क़तई है जिनके फ़ैसले पर क़ुरआन की सेहत मौक़ूफ़ रखी गई है।

क़ुरआन का अपने बाअज़ दाअवों की ताईद में कुतुब-ए-मुक़द्दसा को पेश करने से किताब-ए-मुक़द्दस का सनद ठहराया जाना साबित है।

وَ اِنَّہٗ لَفِیۡ زُبُرِ الۡاَوَّلِیۡنَ (۱۹۶) اَوَ لَمۡ یَکُنۡ لَّہُمۡ اٰیَۃً اَنۡ یَّعۡلَمَہٗ عُلَمٰٓؤُا بَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ

तर्जुमा : और तहक़ीक़ ये (क़ुरआन) है पहलों के सहीफ़ों में और क्या उनके वास्ते ये निशानी नहीं हुई कि बनी-इस्राईल के उलमा (क़ुरआन) को जानते हैं? (सूरह शूराअ आयत 196-197)

ये अम्र दीगर है कि क़ुरआन दुरुस्त है या नहीं लेकिन ये अम्र साबित है कि कुतुब-ए-मुक़द्दसा में क़ुरआन का पाया जाना और उलमाए इस्राईल का इसी से वाक़िफ़ होना क़ुरआन की अपनी सेहत पर सनद व दलील है।

किताब-ए-मुक़द्दस की बाअज़ उमूर में शहादत तलब करने से और कुतुब-ए-मुक़द्दसा की शहादत पर अमल भी करने से किताब-ए-मुक़द्दस का सनद होना क़ुरआन से साबित है।

کُلُّ الطَّعَامِ کَانَ حِلًّا لِّبَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ اِلَّا مَا حَرَّمَ اِسۡرَآءِیۡلُ عَلٰی نَفۡسِہٖ مِنۡ قَبۡلِ اَنۡ تُنَزَّلَ التَّوۡرٰىۃُ ؕ قُلۡ فَاۡتُوۡا بِالتَّوۡرٰىۃِ فَاتۡلُوۡہَاۤ اِنۡ کُنۡتُمۡ صٰدِقِیۡنَ (۹۳)

तर्जुमा : सब खाने की चीज़ें हलाल थीं बनी-इस्राईल को मगर वो जो इस्राईल ने अपने नफ़्स पर तौरेत नाज़िल होने से पहले हराम कर ली थीं तू कह लाओ तौरेत और पढ़ो अगर हो तुम सच्चे। (सूरह इमरान आयत 93)

حَدَّثَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ يُوسُفَ أَخْبَرَنَا مَالِکُ بْنُ أَنَسٍ عَنْ نَافِعٍ عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا أَنَّ الْيَهُودَ جَائُوا إِلَی رَسُولِ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَذَکَرُوا لَهُ أَنَّ رَجُلًا مِنْهُمْ وَامْرَأَةً زَنَيَا فَقَالَ لَهُمْ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مَا تَجِدُونَ فِي التَّوْرَاةِ فِي شَأْنِ الرَّجْمِ فَقَالُوا نَفْضَحُهُمْ وَيُجْلَدُونَ فَقَالَ عَبْدُ اللَّهِ بْنُ سَلَامٍ کَذَبْتُمْ إِنَّ فِيهَا الرَّجْمَ فَأَتَوْا بِالتَّوْرَاةِ فَنَشَرُوهَا فَوَضَعَ أَحَدُهُمْ يَدَهُ عَلَی آيَةِ الرَّجْمِ فَقَرَأَ مَا قَبْلَهَا وَمَا بَعْدَهَا فَقَالَ لَهُ عَبْدُ اللَّهِ بْنُ سَلَامٍ ارْفَعْ يَدَکَ فَرَفَعَ يَدَهُ فَإِذَا فِيهَا آيَةُ الرَّجْمِ فَقَالُوا صَدَقَ يَا مُحَمَّدُ فِيهَا آيَةُ الرَّجْمِ فَأَمَرَ بِهِمَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَرُجِمَا قَالَ عَبْدُ اللَّهِ فَرَأَيْتُ الرَّجُلَ يَجْنَأُ عَلَی الْمَرْأَةِ يَقِيهَا الْحِجَارَةَ

रिवायत है अब्दुल्लाह बिन उमर से ये कि यहूदी यानी एक जमाअत उनमें से आई तरफ़ रसूल ख़ुदा की और ज़िक्र किया उन्होंने रूबरू हज़रत के ये कि एक मर्द ने उनमें से और एक औरत ने ज़िना किया। यानी और थे वो दोनों मुहसिन, पस फ़रमाया उनको रसूल ख़ुदा ﷺ ने कि क्या पाते हो तुम तौरेत में नीच मुक़द्दमा रज्म के कहा यहूदीयों ने फ़ज़ीहत करते हैं, हम ज़िना करने वालों को और दुर्रे मारे जाते हैं। वो कहा अब्दुल्लाह बिन सलाम ने झूट बोलते हो तुम तहक़ीक़ तौरेत में भी रज्म है पस लाओ तौरेत पस खोला उस को और रख दिया एक ने उनमें से हाथ अपना रज्म की आयत पर यानी छिपा लिया हाथ के नीचे और पढ़ गया उस के पहले से और उस के पीछे से। पस कहा अब्दुल्लाह बिन सलाम ने उठा हाथ अपना फिर उठा या हाथ पस नागहां इस में थी आयत रज्म की। पस कहा यहूदीयों ने कि सच्च कहा अब्दुल्लाह ने ऐ मुहम्मद! इस में है आयत रज्म की फिर हुक्म फ़रमाया इन दोनों के संगसार करने नबी ﷺ ने पस संगसार किए गए दोनों। अलीख (मज़ाहिर-उल-हक़ जिल्द सोइम छापा मुजतबाई सफ़ा 284, 283)

पस ऊपर के कुल बयान से साबित है कि किताब-ए-मुक़द्दस बिला तहरीफ़ मौजूद हो कर सनदी किताब थी इस की ख़िलाफ़ रवी कुफ़्र अज़ीम इस की शहादत पर क़ुरआन की सच्चाई का इन्हिसार। क़ुरआन और मुहम्मद साहब की हिदायत और तसल्ली का सोता जिससे अगर मुहम्मद साहब दर्याफ़्त व तहक़ीक़ करता तो हिदायत पाता। इस की गवाही पर ज़िंदगी और मौत के फ़ैसले किए गए। पस ऐ मुहम्मदी तू कौनसे मुँह से कुतुब-ए-रब्बानी की सेहत का मुन्किर होता है? पस तू इन्साफ़ करके और ख़ुदा के ख़ौफ़ से किताब-ए-मुक़द्दस की सेहत को क़ुबूल कर और इस पर ईमान ला कर नजात की उम्मीद रख वर्ना तू ग़ज़बे इलाही का निशाना होने से डर। 

सातवीं फ़स्ल
जिसमें कुतुब-ए-मुक़द्दसा पर ईमान लाने के हुक्म अहकामात से कुतुब-ए-मुक़द्दसा की सेहत का क़ुरआन से सबूत दिया गया है
1. मुक़ामात क़ुरआनी

یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡۤا اٰمِنُوۡا بِاللّٰہِ وَ رَسُوۡلِہٖ وَ الۡکِتٰبِ الَّذِیۡ نَزَّلَ عَلٰی رَسُوۡلِہٖ وَ الۡکِتٰبِ الَّذِیۡۤ اَنۡزَلَ مِنۡ قَبۡلُ ؕ وَ مَنۡ یَّکۡفُرۡ بِاللّٰہِ وَ مَلٰٓئِکَتِہٖ وَ کُتُبِہٖ وَ رُسُلِہٖ وَ الۡیَوۡمِ الۡاٰخِرِ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلٰلًۢا بَعِیۡدًا (۱۳۶)

तर्जुमा : ऐ ईमान वालो ईमान लाओ अल्लाह पर और उस के रसूल पर और उस किताब पर जो उसने उतारी अपने रसूल पर। और इस किताब पर जो उसने उतारी पहले इस से और जो कोई मुन्किर हो अल्लाह से और उस के फ़रिश्तों से और उस की किताबों से और उस के रसूलों से और आख़िरी रोज़ से पस तहक़ीक़ वो दूर की गुमराही में पड़ा। (सूरह निसा आयत 136)

قُلۡ اٰمَنَّا بِاللّٰہِ وَ مَاۤ اُنۡزِلَ عَلَیۡنَا وَ مَاۤ اُنۡزِلَ عَلٰۤی اِبۡرٰہِیۡمَ وَ اِسۡمٰعِیۡلَ وَ اِسۡحٰقَ وَ یَعۡقُوۡبَ وَ الۡاَسۡبَاطِ وَ مَاۤ اُوۡتِیَ مُوۡسٰی وَ عِیۡسٰی وَ النَّبِیُّوۡنَ مِنۡ رَّبِّہِمۡ ۪ لَا نُفَرِّقُ بَیۡنَ اَحَدٍ مِّنۡہُمۡ ۫ وَ نَحۡنُ لَہٗ مُسۡلِمُوۡنَ (۸۴)

तर्जुमा : कहो कि हम ईमान लाते हैं साथ अल्लाह के और जो नाज़िल हुआ हम पर और इब्राहिम और इस्माईल और इस्हाक़ और याक़ूब और इस्राईली फ़िर्क़ों पर और जो मिला मूसा और ईसा को और नबियों को अपने रब से। हम इनमें किसी के दर्मियान फ़र्क़ नहीं करते और हम वास्ते उस के फ़रमांबर्दार हैं। (सूरह इमरान 9 रुकूअ आयत 84)

اٰمَنَ الرَّسُوۡلُ بِمَاۤ اُنۡزِلَ اِلَیۡہِ مِنۡ رَّبِّہٖ وَ الۡمُؤۡمِنُوۡنَ ؕ کُلٌّ اٰمَنَ بِاللّٰہِ وَ مَلٰٓئِکَتِہٖ وَ کُتُبِہٖ وَ رُسُلِہٖ

तर्जुमा : ईमान लाया रसूल साथ उस चीज़ के कि उतारी गई है तरफ़ उस की रब उस के से और ईमान लाए ईमानदार हर एक ईमान लाया साथ अल्लाह के और फ़रिश्तों उस के और किताबों उस की के और रसूलों उस के। (सूरह बक़रह आयत 285)

وَ قُوۡلُوۡۤا اٰمَنَّا بِالَّذِیۡۤ اُنۡزِلَ اِلَیۡنَا وَ اُنۡزِلَ اِلَیۡکُمۡ وَ اِلٰـہُنَا وَ اِلٰـہُکُمۡ وَاحِدٌ وَّ نَحۡنُ لَہٗ مُسۡلِمُوۡنَ (۴۶)

तर्जुमा : और कहो ऐ मुहम्मदियों ईमान लाए हम साथ इस चीज़ के कि उतारी गई है तरफ़ हमारी और उतारी गई है तरफ़ तुम्हारी और माबूद हमारा और माबूद तुम्हारा एक है और हम वास्ते उस के मुतीअ हैं। (सूरह अन्कबूत 5 रुकूअ आयत 46)

الَّذِیۡنَ کَذَّبُوۡا بِالۡکِتٰبِ وَ بِمَاۤ اَرۡسَلۡنَا بِہٖ رُسُلَنَا ۟ۛ فَسَوۡفَ یَعۡلَمُوۡنَ (ۙ۷۰) اِذِ الۡاَغۡلٰلُ فِیۡۤ اَعۡنَاقِہِمۡ وَ السَّلٰسِلُ ؕ یُسۡحَبُوۡنَ (ۙ۷۱)

तर्जुमा : वो लोग कि झुटलाते हैं किताब को और उस चीज़ को कि भेजा हमने साथ उस के पैग़म्बरों अपनों को पस अलबत्ता जाऐंगे, जिस वक़्त कि तौक़ होंगे बीच गर्दनों उनकी और ज़ंजीरें घसीटे जाऐंगे। बीच पानी गर्म के फिर बीच आग के झोंके जाऐंगे। (सूरह मोमिन 8 रुकूअ आयत 70-71)

اِنَّ الَّذِیۡنَ یَکۡفُرُوۡنَ بِاللّٰہِ وَ رُسُلِہٖ وَ یُرِیۡدُوۡنَ اَنۡ یُّفَرِّقُوۡا بَیۡنَ اللّٰہِ وَ رُسُلِہٖ وَ یَقُوۡلُوۡنَ نُؤۡمِنُ بِبَعۡضٍ وَّ نَکۡفُرُ بِبَعۡضٍ ۙ وَّ یُرِیۡدُوۡنَ اَنۡ یَّتَّخِذُوۡا بَیۡنَ ذٰلِکَ سَبِیۡلًا (۱۵۰)ۙ اُولٰٓئِکَ ہُمُ الۡکٰفِرُوۡنَ حَقًّا ۚ وَ اَعۡتَدۡنَا لِلۡکٰفِرِیۡنَ عَذَابًا مُّہِیۡنًا (۱۵۱)

तर्जुमा : तहक़ीक़ जो लोग मुन्किर हैं अल्लाह से और उस के रसूलों से चाहते हैं कि अल्लाह और उस के रसूलों में फ़र्क़ डालें और कहते हैं। कि हम बाज़ों को मानते हैं और बाज़ों को नहीं मानते और चाहते हैं कि निकालें एक बीच की राह यही लोग सच-मुच काफ़िर हैं और हमने तैयार कर रखा है वास्ते काफ़िरों के अज़ाब रुस्वा करने वाला (सूरह निसा आयत 150-151)

2. ईमान की तारीफ़ सुनिए

وَ بَشِّرِ الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ

तर्जुमा : और ख़ुशख़बरी दे उन लोगों को कि ईमान लाए और काम किए नेक (सूरह बक़रह 3 रुकूअ आयत 25)

قول النبی صلی االلہ علیہ وسلم بنی الاسلام علیٰ خمس۔۔۔۔وھوقول وفعل

तर्जुमा : फ़रमाया नबी ﷺ ने फ़रमाया कि बिना किया गया इस्लाम (की बुनियाद) पाँच चीज़ पर और (ईमान) इक़रार है और अमल है। (ज़फ़र-उल-मुबीन बहवाला सही बुख़ारी छापा अहमदी सफ़ा 5)

الایمان قول وعمل یزید ونیقص

तर्जुमा : ईमान इक़रार है और अमल है ज़्यादा भी होता है और कम भी। (शरह सफ़र अल-सआदत छापा नुलकिशूर का सफ़ा 506)

शेख़ सय्यद मुही उद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी की तारीफ़ :-

ولعتقدان الایمان قول باللسان ومعرفۃ بالجنان عمل بالارکان الخ

तर्जुमा : यानी एतिक़ाद करते हैं हम कि तहक़ीक़ ईमान ज़बान से इक़रार करता है और एतिक़ाद करना है इस के माअनों का दिल के साथ और अमल करना है साथ ईमान के रुक्नों के। ईमान के रुक्न वो हैं जिन पर ईमान रखा जाता है। देखो (गुनियुत्तु-तालिबिन छापा लाहौर के सफ़ा 148 को)

3. वो उसूल ईमानी जो ऊपर के बयान से निकलते हैं :-

1. ऊपर के बयान में मुहम्मद साहब और मुहम्मदी साहिबान को ईमान लाने का ताकीदी हुक्म है।

2. कि मुहम्मद साहब और मुहम्मदियों को कुल क़ुरआन पर और कुल तौरात पर और कुल ज़बूर पर और कुल सहाइफ़ अम्बिया पर और कुल इन्जील पर ईमान लाने का साफ़ हुक्म है।

3. बाअज़ किताब पर ईमान लाना और बाअज़ का इन्कार करना कुफ़्र क़रार दिया गया है।

4. कुतुब समावी पर ईमान ना लाना कुफ़्र और बेदीनी जहन्नम की आग की सज़ावारी की हालत ठहराई गई है।

5. मुहम्मद साहब और मुहम्मदी साहिबान के कुतुब समावी पर ईमान लाने के इक़रारात भी मौजूद हैं।

6. ईमान इक़रार बाअमल का नाम है वर्ना बेईमानी की हालत है। लीजिए साहिबान। हम आपके रूबरू सीधे सादे तौर से मसाइल ईमानी भी पेश कर चुके। अब मुहम्मद साहिबान से जो हक़पसंद हैं इन्साफ़ के तलबगार हो कर अर्ज़ करते हैं कि आप लोग अब फ़रमाएं कि किताब-ए-मुक़द्दस मुहम्मद साहब के ऐन वक़्त में और या आपके दावा-ए-नुबूव्वत से पेश्तर तब्दील हो चुकी थी या कि सेहत की हालत में थी? अगर बाइबल में तहरीफ़ हो चुकी थी। तो क़ुरआन के बयान के मुवाफ़िक़ क्या तहरीफ़ शूदा बाइबल पर ईमान लाने का हज़रत को और मुहम्मदियों को हुक्म हुआ था? क्या तहरीफ़ शूदा किताब पर अमल करने का हुक्म दिया गया। किया फिर बमूजब क़ुरआन ख़ुदा ने इन किताबों की ग़लती से ताईद की? और आपके हज़रत और अस्हाब कबाइर ने ऐसी ग़लत ताअलीम को माना था? क्या क़ुरआन ऐसी मकरूह हिदायात से भरपूर है? पर ये हम नहीं कहते हैं। और क्या क़ुरआन एक तहरीफ़ शूदा किताब का मुसद्दिक़ (सच्चा बताने वाला) है? अगर किताब-ए-मुक़द्दस तहरीफ़ हो गई तो इंसाफ़न क़ुरआन शरीफ़ को भी सलाम रुख़्सत करना होगा। पर क़ुरआन से जिस शद व मद (शानोशौकत) से किताब-ए-मुक़द्दस की सेहत ईमान लाने के हुक्मों से साबित हो गई है हम साबित कर चुके और क़ुरआन से और क़ुरआन के हुक्मों के साथ किताब-ए-मुक़द्दस की सेहत का डंका बजा चुके अगर कोई सुम्मुन-बुकमुन (बहरे गूँगे صم بکم ) उम्मियुन (अंधापन اندھاپن ) का मुसद्दिक़ ना होगा। वो हमारी सुनेगा और हम दूसरों से कुछ इन्साफ़ की उम्मीद नहीं रख सकते हैं। पस इस्लाम ईस्वी का उसूल सही और दुरुस्त है।

इस के इलावा अब मुहम्मदी साहिबान अपना दामन छुड़ाएं

नाज़रीन हम आप को दिखा चुके कि हज़रत को और आपकी उम्मत को कुतुब-ए-मुक़द्दसा पर ईमान लाने का बार-बार हुक्म हुआ और हम बतला चुके कि मुहम्मदी ईमान क्या है। अब मुहम्मदी साहिबान हम पर और दुनिया पर साबित कर दें, कि मुहम्मद साहब कभी किताब-ए-मुक़द्दस पर ईमान लाए और बाइबल के आमिल बने और मुहम्मदी साहिबान पर भी हमारा यही एतराज़ है? हम साफ़ कहते हैं कि हज़रत मुहम्मद साहब और आपकी उम्मत ऊपर के हुक्मों के बिल्कुल ख़िलाफ़ चलती और मानती और करती आई है। जिससे हज़रत और आपकी उम्मत (सूरह निसा की मनक़ूला आयत) के फ़त्वे के नीचे है जिससे रिहाई नहीं हो सकती है। क्योंकि साफ़ साबित है कि हज़रत और आपकी उम्मत ने बाअज़ कलाम और नबी को माना और बाअज़ यानी तमाम बाइबल को अपनी अमल से ख़ारिज किया। पस हम क़ुरआन के मुवाफ़िक़ हज़रत और आपकी उम्मत की निस्बत सख़्त फ़ैसला रखते हैं। इस के सिवा हज़रत और आपकी उम्मत को कुतुब समावी पर ईमान लाने के हुक्म तो पहुंच ही चुके। इस पर एक और मुश्किल ये है कि मुहम्मदी क़ौम और मुहम्मद साहब क़ुरआन पर ईमान रखते हुए कुतुब-ए-समावी पर ईमान बाअमल लाही नहीं सकते हैं। अगर कुतुब-ए-समावी पर ईमान लाना चाहें तो क़ुरआन की ज़रूरत रहती ही नहीं है क़ुरआन पर ईमान तो दर-किनार। पस बाइबल और क़ुरआन पर ईमान बाअमल का मुतालिबा क़ुरआन में इज्तिमा-ए-ज़िद्दैन हैं और ये सख़्त मुतालिबा है जिसे कोई मुहम्मदी पूरा नहीं कर सकता है। लिहाज़ा हर एक मुहम्मदी का ख़ातिमा......नहीं होता है। ऐ मुहम्मदी साहिबान हम भी कहते हैं कि बाइबल पर ईमान लाओ वर्ना हलाक होगे।

एक और बात याद करने के क़ाबिल ये है कि कोई मुहम्मदी सिर्फ क़ुरआन पर ईमान रखने और उस पर अमल करने से नहीं बच सकता और ना नजात पा सकता है। पर ऊपर की आयात के मुवाफ़िक़ वही नजात पाएगा जो मुहम्मदी बाइबल पर ईमान ला कर अमल करेगा। वर्ना सीधा दोज़ख़ का शिकार होगा। अब मुहम्मदी साहिबान का फ़र्ज़ हम बतला चुके और हक़ीक़ी इस्लाम के उसूल की सेहत का सबूत दे चुके ख़ुदा करे कि मुहम्मदी क़ौम हिदायत पा कर इस्लाम की ताबे हो आमीन।

आठवीं फस्ल
हिस्सा अव़्वल का ज़मीमा

हमने अब तक बाइबल को क़ुरआन के इस इल्ज़ाम से बरी नहीं किया कि क़ुरआन कहता है कि बाइबल तहरीफ़ हो गई अगरचे हमने ऊपर की फसलों में बाइबल की सेहत का काफ़ी सबूत दिया पर अब तक तहरीफ़ की इल्ज़ाम देही में बाइबल की सेहत की गुंजाइश नहीं दिखाई। लिहाज़ा अब हम उन मुक़ामात को पेश कर के जिनमें तहरीफ़ का इल्ज़ाम दिया गया है उन्हीं से बाइबल की सेहत का सबूत भी दिए देते हैं नाज़रीन मुलाहिज़ा फ़रमाएं।

یُحَرِّفُوۡنَ الۡکَلِمَ عَنۡ مَّوَاضِعِہٖ

तर्जुमा : बदल डालते हैं बातों को जगह उनकी से (सूरह माइदा 3 रुकूअ आयत 13) इसी आयत पर ये जुम्ला जो अब ये पाया जाता है الاقلیلاً منھم “ यानी मगर थोड़े उनमें से” यानी बातों को बदलने वालों में से थोड़े ऐसे भी हैं जो नहीं बदलते।

फिर तहरीफ़ के इल्ज़ाम की निस्बत अहले-यहूद से है मसीहियों से नहीं है।

مِنَ الَّذِیۡنَ ہَادُوۡا یُحَرِّفُوۡنَ الۡکَلِمَ عَنۡ مَّوَاضِعِہٖ

यहूदीयों में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कलाम को उस के ठिकाने से हटाते हैं। (सूरह अल-निसा 7 रुकूअ आयत 46) यहां पर भी बाअज़ यहूद तहरीफ़ का इल्ज़ाम है सब पर नहीं है और मसीही तो बिल्कुल इस इल्ज़ाम से पाक हैं।

फिर देखो कि तहरीफ़ क्या करते थे। और मुसन्निफ़ क़ुरआन के इल्ज़ाम का क्या मतलब था। और तहरीफ़ की सूरत क्या थी? इस की तश्रीह भी सुनिए :-

وَ اِنَّ مِنۡہُمۡ لَفَرِیۡقًا یَّلۡوٗنَ اَلۡسِنَتَہُمۡ بِالۡکِتٰبِ لِتَحۡسَبُوۡہُ مِنَ الۡکِتٰبِ وَ مَا ہُوَ مِنَ الۡکِتٰبِ

तर्जुमा : और उनमें एक फ़रीक़ है जो किताब पढ़ते वक़्त ज़बान को मरोड़ते हैं ताकि तुम समझो कि वो किताब में है और नहीं वो किताब में। (सूरह इमरान 8 रुकूअ आयत 78)

اَفَتَطۡمَعُوۡنَ اَنۡ یُّؤۡمِنُوۡا لَکُمۡ وَ قَدۡ کَانَ فَرِیۡقٌ مِّنۡہُمۡ یَسۡمَعُوۡنَ کَلٰمَ اللّٰہِ ثُمَّ یُحَرِّفُوۡنَہٗ مِنۡۢ بَعۡدِ مَا عَقَلُوۡہُ وَ ہُمۡ یَعۡلَمُوۡنَ (۷۵)

तर्जुमा : पस क्या तमअ (लालच) रखते हो तुम ये कि ईमान लाएं वास्ते तुम्हारे (यहूद) और तहक़ीक़ था एक फ़िर्क़ा उनमें से सुनता कलाम-उल्लाह का फिर बदल डालते थे। इस को पीछे इस से कि समझ लेते थे उस को और वो जानते हैं। (सूरह बक़रह 9 रुकूअ आयत 75)

पस इन मुक़ामात में तहरीफ़ की तश्रीह की गई है। और मुसन्निफ़ क़ुरआन ने अपने इल्ज़ाम का मतलब खोल दिया है। जो ये है, कि यहूदी मुहम्मद साहब के रूबरू किताब पढ़ते वक़्त मतन किताब में सिर्फ क़िरआत में अल्फ़ाज़ बढ़ा दिया करते थे और चूँकि हज़रत के अस्हाब इब्रानी से नावाक़िफ़ थे। इस वजह से वो धोका खाते थे। और यहूदी लोग मखौल और तम्सख़र की राह से ऐसा किया करते थे। इसलिए कि हज़रत को पढ़ना नहीं आता था मुसन्निफ़ क़ुरआन जो उन की चालों से वाक़िफ़ था उनके ऐसा करने का नाम तहरीफ़ रखता है और हज़रत को आगाह करता है कि जो कुछ वो ज़बान से तुझे सुनाते हैं वो बाअज़ बातें उनकी किताब में नहीं हैं। वो पढ़ते वक़्त ज़बानी क़िरआत में मिला देते हैं। और यही मअनी लफ़्ज़ तहरीफ़ के आयत मनक़ूला बाला बक़रह के हैं कि कलाम को सुनकर और समझ कर उस की ऐसी तावील करते थे। जिससे मुहम्मदियों के ख़िलाफ़ मतलब निकले (یَسۡمَعُوۡنَ کَلٰامَ اللّٰہِ ) का मतलब सुनकर कलाम के मअनी को बदल डालने पर दलालत करता है ना कि कलाम-उल्लाह के मतन पर। पस मुहम्मदियों को ख़ुदा के ख़ौफ़ के साथ इन्साफ़ करना चाहिए कि वो क़ुरआन के नाम से कुतुब-ए-मुक़द्दसा पर तहरीफ़ का इल्ज़ाम अपनी तरफ़ से ना दें। क़ुरआन से कहीं साबित नहीं है कि कुतुब-ए-मुक़द्दसा का मतन तहरीफ़ हो गया बल्कि क़ुरआन के इल्ज़ाम में सिर्फ बाअज़ बेदीन ठट्ठा करने वाले लोगों के फ़ेअल पर तहरीफ़ का नाम है कि वो पढ़ते वक़्त इबारत क़िरआत में बढ़ा दिया करते थे। और ये भी सब लोग नहीं करते थे। मगर सिर्फ हज़रत से खेलने वाले लोग। पस हमने हर तरह से दिखा दिया कि हज़रत के वक़्त तक कुतुब-ए-मुक़द्दसा सही और दुरुस्त सूरत में थी जिसकी सनद हम क़ुरआन के हर एक फ़ैसले के वक़्त पकड़ेंगे। और अब हमको इस बात से कोई रोक नहीं है।

अब हम को एक और बात का जवाब देना बाक़ी रहा वो बात ये है कि हमने क्यों और किस इख़्तियार से क़ुरआन की बाअज़ आयात को जो हमारे लिए मुफ़ीद मतलब थीं बतौर दलील व बुरहान के इस्तिमाल किया और क्यों हमने बाअज़ क़ुरआन को दलील व बुरहान से ख़ारिज गिर्दाना है?

अगरचे हर एक नाज़िर हमारे रिसाले को पढ़ते वक़्त इस वजह को बख़ूबी समझ सकता है लेकिन तो भी फ़ायदा आम की ख़ातिर हम इन वजूहात को भी यहां पर तहरीर कर के अपनी हक़-पसंदी का इज़्हार किए दिए हैं। ताकि आइन्दा को कोई ग़लती में मुब्तला हो कर ये ना समझे कि हमने हक़ से रुगिरदानी की है। इस वजह से जिस वजूहात से हमने ये काम किया है उनका ख़ुलासा ज़ेल में दर्ज किया जाता है पढ़ कर हर एक नाज़िर हक़ का फैसला करे। व हुवा हज़ा (और वो यूं है) :-

जवाब

1. ये अम्र हक़ है कि हमने अपने मुफ़ीद मतलब क़ुरआन से आयात मुंतख़ब कर ली हैं पर हैं तो क़ुरआन में। हमारे मुफ़ीद मतलब तुम्हारा ही क़ुरआन है। और हम क्यों अपने मुफ़ीद मतलब को तर्क करें?

2. बाअज़ क़ुरआन को रद्द करना और बाअज़ को तर्क करने के जुर्म में तो आप लोग भी मुब्तला हो। क्योंकि क़ुरआन की बाअज़ आयात को मन्सूख़ ख़याल कर के आप ख़ुद भी रद्द करते हो और बाअज़ को नासिख़ (मन्सूख़ करने वाला) जान कर आप लोग भी अपने मतलब के मुवाफ़िक़ क़ुबूल करते हो तो अगर हमने बाअज़ आयात क़ुरआन को अपने मुफ़ीद मतलब पा कर क़ुबूल किया और बाअज़ को क़ुबूल ना किया तो हमारा कौन सा ख़ास गुनाह हुआ जिससे मुहम्मदी क़ौम बरी है?

3. ना सिर्फ यही बल्कि अज़रूए क़ुरआन ख़ुदा भी बाअज़ क़ुरआन की आयात को रद्द करता है और बाअज़ आयात मुफ़ीद मतलब को क़ुबूल करता है क्योंकि वो आयात नासिख़ को नाज़िल करता है और नाज़िल शूदा आयात को मन्सूख़ करता है। फिर हमने अगर क़ुरआन की बाअज़ आयात के साथ ऐसा सुलूक किया तो ख़ुदा की ना-फ़र्मानी नहीं है।

4. ख़ुद क़ुरआन ही को देख लो कि बाअज़ क़ुरआन ख़ुद क़ुरआन के बाअज़ को रद्द करता है क्योंकि इस में नासिख़ मन्सूख़ कलाम जमा है। फिर हम पर किस का एतराज़ है?

हमने क़ुरआन की बाअज़ आयात की सच्चाई और बाअज़ की ग़ैर-सच्चाई का मसअला इसी बिना और दलील पर सही माना है जिस बिना और दलील पर क़ुरआन ने अपनी सेहत का मसअला क़ायम किया है जो सबूत क़ुरआन ने अपनी सेहत में दिया है उस का ख़ुलासा ये है :-

کَذٰلِکَ نَقُصُّ عَلَیۡکَ مِنۡ اَنۡۢبَآءِ مَا قَدۡ سَبَقَ

तर्जुमा : यानी इसी तरह बयान करते हैं हम ऊपर तेरे उन चीज़ों (या क़िस्सों को) जो तुझसे पहले गुज़रीं (सूरह ताहा 5 रुकूअ आयत 99)

وَ اِنَّہٗ لَفِیۡ زُبُرِ الۡاَوَّلِیۡنَ (۱۹۶)

तर्जुमा : और तहक़ीक़ ये (क़ुरआन) अलबत्ता मज़्कूर है बीच पहले पैग़म्बरों की किताबों के। (सूरह अल-शूराअ 11 रुकूअ आयत 196)

اِنَّ ہٰذَا لَفِی الصُّحُفِ الۡاُوۡلٰی (ۙ۱۸) صُحُفِ اِبۡرٰہِیۡمَ وَ مُوۡسٰی (۱۹)

तर्जुमा : तहक़ीक़ ये (क़ुरआन) अलबत्ता बीच सहीफ़ों पहलों के (पाया जाता) है, सहीफ़े इब्राहिम और मूसा के। (सूरह आला 18-19 आयत)

اَوَ لَمۡ یَکُنۡ لَّہُمۡ اٰیَۃً اَنۡ یَّعۡلَمَہٗ عُلَمٰٓؤُا بَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ

तर्जुमा : क्या नहीं है वास्ते इस के निशानी (अहले मक्का के वास्ते) ये कि जानते हैं क़ुरआन को बनी-इस्राईल के उलमा (सूरह अल-शूराअ 11 रुकूअ आयत 197)

مَا یُقَالُ لَکَ اِلَّا مَا قَدۡ قِیۡلَ لِلرُّسُلِ مِنۡ قَبۡلِکَ

तर्जुमा : (ऐ मुहम्मद) नहीं कहा जाता वास्ते तेरे मगर जो कुछ कि तहक़ीक़ कहा गया तुझसे पहले पैग़म्बरों से। (सूरह अल-सज्दा 5 रुकूअ आयत 43)

ख़ुलासा मतलब

(सूरह ताहा) की आयत में क़ुरआन की ये तारीफ़ बयान की गई है, कि ये क़ुरआन गुज़रे हुए क़िस्सों का जो क़ुरआन की जिल्द में जमा किए गए मजमूआ है।

और (सूरह शूराअ) की आयत अव़्वल में क़ुरआन की ये तारीफ़ बयान की गई है कि ये क़ुरआन मए उन क़िस्सों के जो इस में क़लम-बंद किए गए, पहले अम्बिया की किताबों में मस्तूर है। और सूरह आला में इन सहाइफ़ अम्बिया में से जिनमें क़ुरआन मज़्कूर है। बाअज़ का हवाला भी दर्ज है कि जिससे अयाँ किया गया है कि जिन अम्बिया के सहाइफ़ में क़ुरआन लिखा है वो अम्बिया और सहीफ़े बनी-इस्राईल के हैं किसी और क़ौम के नहीं।

और (सूरह शूराअ) आयत दुवम में क़ुरआन की ये तारीफ़ मिलती है कि क़ुरआन ना सिर्फ बनी-इस्राईल के अम्बिया की किताबों में मज़्कूर है बल्कि क़ुरआन को उलमा बनी-इस्राईल ख़ूब जानते हैं।

और (सूरह हज अल-सजदह) की आयत मनक़ूला में क़ुरआन की ये तारीफ़ आई है कि बनी-इस्राईल के अम्बिया-ए-साबक़ीन की किताबों के बयान के सिवाए और कुछ क़ुरआन में हज़रत को सिखलाया है नहीं गया, मगर सिर्फ कुतुब-ए-मुक़द्दसा का बयान। और इस मतलब पस नाज़रीन क़ुरआन अपने मुँह से अपनी आप तारीफ़ कर चुका मेरे और आपके ढकोसलों की कुछ हाजत ना रही। मगर ये कि हम क़ुरआन और बाइबल की तत्बीक़ (मुताबिक़ करना, मुवाफ़िक़त) कर देखें और बस।

पस क़ुरआन की आयात मज़्कूर बाला के मुताबिक़ हमने तस्लीम कर लिया कि क़ुरआन हक़ीक़त में क़ुरआन का वो हिस्सा है जो कुतुब-ए-मुक़द्दसा के ऐन मुवाफ़िक़ और मुताबिक़ है और जो कुतुब-ए-मुक़द्दसा में पाया जाता है और जिसे उलमा बनी-इस्राईल जानते हैं। और क़ुरआन का जो हिस्सा कुतुब-ए-मुक़द्दसा से ख़ारिज और कुतुब-ए-मुक़द्दसा के बाएतबार ताअलीम और तल्क़ीन के ख़िलाफ़ है वो सच्चा क़ुरआन नहीं। इसलिए हमने बाअज़ क़ुरआन को जो कुतुब-ए-मुक़द्दसा से नक़्ल किया गया है क़ुबूल कर लिया क़ुबूल कर लेंगे। और बाअज़ को हमने रद्द कर दिया है। और इसी वजह से हमने क़ुरआन की उन आयात को जो कुतुब-ए-मुक़द्दसा के किसी मुक़ाम का मतलब अदा करते हैं बजाए दलील इस्तिमाल किया है और अगर कोई मुहम्मदी इस पर भी शोर मचाए तो हम कहेंगे, कि तुम वो क़ुरआन हमारे पास ले आओ जो कुतुब-ए-मुक़द्दसा से ठीक मुवाफ़िक़त रखता हो तो हम तुम्हारा कुल क़ुरआन भी मान लेंगे। क्योंकि मौजूदा क़ुरआन किताब-ए-मुक़द्दस से पूरी पूरी मुवाफ़िक़त नहीं रखता है इसलिऐ मुहम्मदियों ने क़ुरआन को सख़्त बदल डाला है जिसकी जिहत से हमें बाअज़ क़ुबूल और क़ुरआन का बाअज़ तर्क करना पड़ा है। ऐ मुहम्मदियो तुम हमको अब इस बात पर मज्बूर नहीं कर सकते हैं कि हम तुम्हारा तमाम क़ुरआन दुरुस्त मानें। पर हम वही क़ुरआन दुरुस्त मानेंगे और वो भी अगर तुम मौजूद कर दो जो क़ुरआन लफ़्ज़न और माअनन कुतुब-ए-मुक़द्दसा में मिलता हो। बाक़ी मतरूक (तर्क किया गया)।

अब हमारी मुहम्मदी क़ौम से और उस के उलमा व फुज़ला से अपील है कि हमने जो कुछ किया वो क़ुरआन के ऐन मुवाफ़िक़ किया फिर हम पर क्यों अवाम ज़ुल्म कर के ये कहने को तैयार हैं कि हमने बाअज़ क़ुरआन को क़ुबूल करके बाअज़ को रद्द कर दिया। क्या क़ुरआन हमको ऐसा करने का हुक्म देता है या नहीं? और हमने जो तर्ज़ रिसाला हज़ा में इख़्तियार की वो ठीक ठीक क़ुरआन के मुवाफ़िक़ है या नहीं? अगर हमने रिसाला हज़ा में क़ुरआन के हाँ सही और दुरुस्त क़ुरआन के नक़्श पाके पैरवी की है तो बस क़ुरआन के और हदीस के ताबेदारों का फ़र्ज़ मुक़र्रर हो चुका कि बाइबल और उस के मज़्हब की इताअत व फ़रमांबर्दारी क़ुबूल फ़रमाएं और मौजूदा क़ुरआनी और हदीसी मज़्हब का मुहम्मदी साहिबान फ़ौरन इन्कार करें। और अगर ये ना किया जाए तो बतलाओ कि मुहम्मदी क़ौम क़ुरआन का इन्कार करती है या नहीं करती?

हमने साबित कर दिया कि मसीही मज़्हब क़ुरआन की इस्तिलाह में लफ़्ज़ इस्लाम का मौज़ू है और ये इब्राहीमी इस्लाम है हमने दिखा दिया कि बाइबल जो इस्लाम क़दीम का उसूल है सही और दुरुस्त है और हमने दिखा दिया कि हर एक मुहम्मदी पर क़ुरआन बाइबल पर ईमान बाअमल की बड़ी शद व मद (धूम-धाम) से ताकीद करता है और इस के मुनकिरों को अज़ाब जहन्नम का सज़ावार ठहराता है। और हमने दिखाया कि क़ुरआन की इताअत व फ़रमांबरदारी की बाइबल से जुदा कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि क़ुरआन अपने दाअवे के मुवाफ़िक़ बाइबल में मौजूद है। और ये कि क़ुरआन हक़ीक़ी क़ुरआन अपने दाअवे के मुवाफ़िक़ बाइबल में मौजूद है। और ये कि क़ुरआन हक़ीक़ी क़ुरआन का वही हिस्सा है जो लफ़्ज़न व माअनन बाइबल से मुवाफ़िक़त रखता है। पस यही वजूहात हैं कि जिनकी वजह से हमने बाअज़ क़ुरआन को क़ुबूल कर के बाअज़ को दायरा सनद से ख़ारिज कर दिया और ये भी क़ुरआन की हिदायत के मुवाफ़िक़। पस इन्हीं वजूहात से क़ुरआन की हुक्मबरदारी ये साबित हुई कि लोग मसीही हो जाएं और इन्हीं दलाईल से हम आगे को बाइबल की गवाही सनद रखकर हर एक अम्र का फ़ैसला करेंगे। और क़ुरआन को इसी क़द्र दुरुस्त मान कर जो बाइबल के मुवाफ़िक़ होगा। क़ुबूल करते जाऐंगे। और बाक़ी को तर्क करते रहेंगे कहो अब समझे कि क्यों बाअज़ क़ुरआन को क़ुबूल और बाअज़ को ना मक़्बूल ठहराया? अब आगे हम इस्लाम के हीरो ख़ुदावन्द येसू मसीह का बयान करेंगे। ज़्यादा हद्द-ए-अदब