Haqiqi Irfan

The True Knowledge of God

The Rev. Mawlawi Dr. Imad ud-Din Lahiz
Contains Twelve Essays in which Christ and Christ’s Religion are unfolded; and it is a guide for inquirers after Truth.

हक़ीक़ी इर्फ़ान

अल्लामा मौलवी पादरी इमाद-उद्दीन लाहिज़ साहब
1869

1830-1900

रिसाला अव़्वल (1)
आदम-ए-सानी

जब हमारे मुनज्जी ने अपनी इस मुफ़व्विज़ा (सुप्रद की हुई) ख़िदमत को जिसके अंजाम देने के लिए आप मबऊस (नबी का भेजा जाना) हुए थे। पूरा किया तो अपने सऊद (आस्मान पर जाना) से पहले अपने शागिर्दों को ये हुक्म दिया कि:-

“आस्मान और ज़मीन का कुल इख्तियार मुझे दिया गया है। पस तुम जा कर सब क़ौमों को शागिर्द बनाओ और उन्हें बाप और बेटे और रूह-उल-क़ुद्स के नाम पर बपतिस्मा दो। और उन्हें ये ताअलीम दो कि उन सब बातों पर अमल करें जिनका मैंने तुमको हुक्म दिया है। और देखो मैं दुनिया के आख़िर तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती 28:18-20)

इस हुक्म को सुनते ही आपके शागिर्द जो ख़ुदा के सच्चे और बर्गुज़ीदा (चुने हुए) रसूल थे। मसीहिय्यत की तब्लीग़ (ख़ुदा का हुक्म पहुंचाना) के लिए अतराफ़ व इकनाफ़ आलम (दुनिया के किनारे) में जा पहुंचे। और इस हुक्म की तामील में इस क़द्र सरगर्म थे, कि क़रीबन सब के सब इसी राह में शहीद हुए लेकिन तब्लीग़ का काम कभी बंद ना रहा बल्कि ताबईन (रसूलों के शागिर्द) और तबा ताबईन (रसूलों की फ़ित्रत वाले शागिर्द) ने इस ख़िदमत को अपना अव्वलीन फ़र्ज़ समझा और इन्जील जलील की बशारत सुनाते सुनाते हिंदुस्तान तक आ पहुंचे। यूं तो जिस मुल्क में उनका क़दम पहुंचा वहीं ख़ैरो बरकत उनकी हम-रकाब (हमसफ़र) है लेकिन हिन्दुस्तान में उनकी बशारत से जो असर हुआ। इस का अंदाज़ा इस से सच्च हो सकता है, कि सैंकड़ों नहीं बल्कि हज़ारों ख़ानदान मसीहिय्यत के हल्क़ा-ब-गोश (फरमाबरदार) हो चुके हैं।

ताहम हमारे हिंदुस्तान में बकस्रत ऐसे अश्ख़ास मौजूद हैं जो इस दौलत-ए-लाज़वाल से अभी तक महरूम हैं इसलिए मैं चाहता हूँ कि उन अहबाब (दोस्तों) के लिए जवाब तक इस नेअमते अज़्मा (बड़ी नेअमत) से महरूम हैं एक ऐसा रिसाला लिखूँ जो बिल-ख़ुसूस रब्बना अल-मसीह की तक़दीम (फ़ज़ीलत) का ख़ुलासा और बाईस मुक़द्दस मुतालिब के समझने का आला हो। और नीज़ सब नाज़रीन पर बात वाज़ेह हो जाये कि हम ईसाई जो ख़ुदा का कलाम सुना रहे हैं तरह तरह की तकलीफ़ें और अज़ीयतें उठाते हैं और मुतअस्सिबों (मज़्हब की बेजा हिमायत करने वाले) के लान व तान हर वक़्त रहते हैं आख़िर क्यों और किस लिए? हम नाज़रीन की ख़िदमत में इन्किसारी के साथ अर्ज़ करते हैं कि हमारे मद्दुआ (मक़्सद) समझने में उज्लत (जल्दबाजी) ना करें। हम ये नहीं कहते हैं, कि बिला सोचे समझे आप हमारी बात मान लें बल्कि हमारा मुद्दआ ये है कि जो कुछ हम अर्ज़ कर रहे हैं आप उस पर ग़ौर करें अगर माक़ूल (मुनासिब) हो और क़ुबूल करने के लायक़ हो तो आप उस को तस्लीम करें वर्ना आप मुख्तार हैं।

भाइयो हम सब ब-हैसियत इन्सान उस आदम के फ़र्ज़न्द हैं जिससे गुनाह सरज़द हुआ इसलिए हम सब विरासतन (बाप दादा से) गुनेहगार हैं और कसबन (ख़ूद अमल करके) हमने बहुत कुछ इस पर इज़ाफ़ा किया है पस हम बिल्कुल नालायक़ और गुनेहगार और क़ाबिल-ए-सज़ा हैं। हमारी इबादत, बंदगी, नमाज़, रोज़ा, ख़ैरात, वग़ैरह भी इस लायक़ नहीं कि ख़ुदा की दरगाह में मक़्बूल हो सके हमारे तमाम काम निकम्मे और गंदे हैं कोई अक़्लमंद इन पर भरोसा नहीं रख सकता है। बल्कि हमारा ही दिल उन पर भरोसा कर के इत्मीनान हासिल नहीं कर सकता। अगरचे शर्त अबूदियत (इबादत) ये ही है कि इस की इताअत हत्त-उल-मक़्दूर (जहां तक हो सके) की जाये तो भी हमारी इबादत इस लायक़ नहीं जिस पर भरोसा कर के उस क़ुद्दूस की अदालत में जा खड़े हों चुनान्चे हज़रत दाऊद फ़र्माते हैं कि “ख़ुदावन्द आस्मान पर से बनी-आदम पर निगाह करता है ताकि देखे कि इनमें कोई दानिशमंद ख़ुदा का तालिब है या नहीं वो सब के सब गुमराह हैं और सब के सब बिगड़ गए हैं कोई नेको कार नहीं एक भी नहीं।” (ज़बूर 14:2-3)

चुनान्चे हज़रत पौलुस रसूल भी यही फ़र्माते हैं कि “क्या हुआ क्या हम कुछ फ़ज़ीलत रखते हैं बिल्कुल नहीं क्योंकि हम यहूदीयों और यूनानियों दोनों पर पेश्तर ही ये इल्ज़ाम लगा चुके हैं कि वो सब के सब गुनाह के मातहत (नीचे, ताबे) हैं। चुनान्चे लिखा है कि कोई रास्तबाज़ नहीं एक भी नहीं कोई समझदार नहीं कोई ख़ुदा का तालिब नहीं सब गुमराह हैं सब के सब निकम्मे बन गए कोई नेको कार नहीं एक भी नहीं उनका गला खुली हुई क़ब्रे हैं। उन्होंने अपनी ज़बानों से फ़रेब दिया उन के होंटों में साँपो का ज़हर है। उनका मुँह लानत और कड़वाहट से भरा है उन के क़दम ख़ून बहाने के लिए तेज़-रौ हैं। उन की राहों में तबाही और बदहाली है। और वो सलामती की राह से वाक़िफ़ ना हुए उन की आँखों में ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं।” (रोमीयों 3:9, 18)

अल-ग़र्ज़ जिन पर लफ़्ज़ इन्सान का इतलाक़ हो सकता है उन पर गुनाह का भी इतलाक़ हो सकता है ख़्वाह नबी हो या वली (ख़ुदा के क़रीब) ऋषि (ख़ुदा-परस्त, दरवेश) हो या मुनी (ज़ाहिद, परहेज़गार) सब के सब गुनेहगार हैं। अब सवाल ये है कि हमारी क्या हालत होगी, जब ख़ुदा की ज़ात पर ग़ौर करते हैं तो वो सरासर पाक है और गुनाहों से बेहद नफ़रत करता है। और जब अपनी तरफ़ देखते हैं तो हमारी ये कैफ़ीयत है कि हम सरासर नापाक हैं और गुनाहों की तरफ़ माइल। पस हम में और ख़ुदा में किस तरह रब्त और इत्तिहाद, मुवाफ़िक़त और मुवासलत (पैवस्ता होना) पैदा हो।

और ये भी ख़ूब साबित हो चुका है कि इन्सान अपनी ताक़त से नजात हासिल नहीं कर सकता है अगरचे ख़ुदा बेशक रहीम भी है लेकिन सिर्फ रहमत पर भरोसा कर के बैठे रहना और उस की अदालत का लिहाज़ ना रखना भी बड़ी जहालत है पस इस मुश्किल को जो हमारे सामने आ पड़ी है हम किसी सूरत से दफ़ाअ नहीं कर सकते हैं बजुज़ इस के कि तमाम मज़ाहिब की किताबों को पढ़ें और तमाम हादियान दीन (दीन के रहनुमा) की हिदायात पर ग़ौर करें और देखें कि वो क्या कहते हैं और जिस मज़्हब की किताब में नजात का मुकम्मल बंदो-बस्त हो और रहम व अदालत को मुताबिक़ कर दिखाए और जिसकी ताअलीम भी मुहक़्क़िक़ाना (तहक़ीक़ शूदा) हो और रूह के तक़ाज़े को भी पूरा करे। और मिन्जानिब अल्लाह होने की दलाईल रखती हो हम उस को बसदक़ दिल इंतिख़ाब करें और उस की पाबंदी में अपनी बाक़ी उम्र सर्फ कर डालें।

पस जहां तक हमारी तहक़ीक़ात का ताल्लुक़ है। हमने सिर्फ बाइबल मुक़द्दस ही को इन सिफ़ात के साथ मौसूफ़ (क़ाबिल-ए-तारीफ़) पाया। और बिला तास्सुब (बग़ैर मज़्हब की बेजा हमायत) और बरमला ये कह सकते हैं कि सिर्फ बाइबल मुक़द्दस ही ख़ुदा का सच्चा कलाम है। लिहाज़ा अब हम इस की पाक ताअलीम का ख़ुलासा लिखना शुरू करते हैं और नाज़रीन से दरख़्वास्त करते हैं कि वो ठंडे दिल से इस पर ग़ौर करें क्योंकि हक़ीक़ी इर्फ़ान यही है। अब ख़ुदा का फ़ज़्ल हम सब के शामिल-ए-हाल हो।

आदमे अव़्वल आदम सानी

हक़ सज्जाद तआला जो अज़ली और अबदी ख़ुदा है इरादा किया कि अपनी अज़मत और क़ुद्रत का इज़्हार करे पस उस ने ज़मीन और आस्मान को और सब कुछ जो उन में है अपने अज़ली कलमे की वसातत (वसीले) से पैदा किया और आदम का पुतला मिट्टी से बना कर ज़िंदगी की रूह इस में फूंक दी और उस को फ़ाइल मुख़्तार होने का हक़ देकर बागे अदन में रखा और उस की पसली में से एक औरत पैदा कर के उस के साथ कर दी ता कि उस की अनीसा (मुहब्बत रखने वाली) हो और हुक्म दिया कि उस दरख़्त से जिसका खाना मना है। ना खाना वर्ना मर जाओगे।

शैतान लईन (लानती) ने जो रांदा दरगाह एज़दी (ख़ुदा के हुज़ूरी से निकाला हुआ) और फ़ाइल मुख़्तार फ़रिश्ता था वक़्त को ग़नीमत समझ कर हव्वा के पास आकर उस को फ़रेब देना चाहा चुनान्चे हव्वा उस के फ़रेब में आ गई और शजरे मम्नूआ में से ख़ुद भी खाया और अपने शौहर को भी खिलाया। लिहाज़ा मौत का उन पर तारी होना लाज़िमी अम्र था पस ख़ुदा ने नाराज़ हो कर दोनों बल्कि तीनों को बाग़-ए-अदन से निकल जाने का हुक्म दिया यूं तमाम रुए-ज़मीन पर नस्ल इन्सानी फैलती गई और शैतान की शैतानियत (बदी) में भी इज़ाफ़ा होता गया यहां तक कि हर एक इन्सान के रग व रेशा में इस के ख़ून के साथ साथ दौरा करने लगा। (मिश्कात किताब-उल-ईमान फ़ील-वस्वसा) इस पर ख़ुदा की रहमत जोश पर आई और अम्बिया का एक वसीअ सिलसिला जारी किया जिन्हों ने ना सिर्फ ये ताअलीम कि ख़ुदा की इताअत और फ़रमांबर्दारी ऐन सआदत मंदी और फ़लाहदारीन है। बल्कि नजात के इस वाअदे को जो ख़ुदा ने आदम और हव्वा से बहिश्त से निकल जाने वक़्त किया था कि “औरत की नस्ल शैतान के सर को कुचलेगी।” (पैदाइश 3:15) लोगों के ज़हन नशीन करने में कोई कसर उठा ना रखी। लेकिन अफ़्सोस है कि बहुत कम लोगों ने इनका यक़ीन किया। और अक्सर बुत-परस्ती और नफ़्स परस्ती में मुब्तला हो कर शैतान के हलाकत आफ़रीन पंजे में फंस गए। इसलिए ख़ुदा ने भी कई बार आफ़ात-ए-अर्ज़ी व समावी (ज़मीनी व आस्मानी) के ज़रीये अपने क़हर और ग़ज़ब का इज़्हार किया जो सईद (ख़ुशनसीब) हुए और मुतनब्बाह (तंबीया हासिल करना) हुए और जो शक्की थे वो हमेशा के लिए हलाक हुए। चुनान्चे यसअयाह नबी फ़र्माते हैं कि “हम सब भेड़ों की मानिंद भटक गए हम में से हर एक ने अपनी राह ली।”

इन्सान की इस क़द्र सरकशी के बावजूद ख़ुदावन्द तआला ने एक शरीअत भी मूसा की मार्फ़त इस जहान में भेज दी जिसका मतलब ये था कि इन्सान अपनी कमज़ोरी और गुनाह आलूदगी से वाक़िफ़ हो ताकि आइंदा फ़ज़्ल की क़द्र व मंजिलत मालूम कर सके। और वो शरीअत इस तरह पर थी, कि ग़ौर व ख़ौज़ के बाद अच्छी तरह मालूम हो सके कि वो आइंदा फ़ज़्ल का अक्स और नमूना है।

इस के बाद ख़ुदा ने इस आदम को ज़मीन पर भेजा जिसकी बशारत तमाम अम्बिया देते आए थे। और ये नया आदम इस ग़र्ज़ से दुनिया में आया ताकि पहले आदम के फ़रज़न्दों को जो शैतान के क़ब्ज़े में गिरफ़्तार हुए थे। अपनी ज़ात पाक के साथ पैवस्त (जोड़ना) कर के मौत के क़ब्ज़े से निकाल ले और जितने बोझ इनकी गर्दन पर हैं सब आप उठाए और उन सबको जो इस पर ईमान लाए नजात दे ये ख़ुदा का बड़ा रहम था जो अपने बंदों पर किया। वर्ना सब दोज़ख़ के वारिस हो चुके थे। इस नए आदम की पैदाइश भी उस आदमे अव़्वल की मानिंद हुई फ़र्क़ इतना रहा कि पहला आदम शैतान से मग्लुब (हारना) हुआ दूसरा आदम इस पर ग़ालिब आया और इस को शिकस्त देकर बिल्कुल मग़्लूब कर लिया चूँकि मह्ज़ इन्सान की ताक़त से ये बईद (दूर, फ़ासले पर) था कि कि शैतान पर फ़त्हयाब हो सके। इसलिए इस आदम-ए-सानी में उलूहियत (ख़ुदाई) भी थी। और इन्सानियत भी जिसका सबूत कलामे इलाही में बवज़ाहत मौजूद है।

जिस तरह एक मेहरबान बाप मुसीबत के वक़्त अपने बच्चों को गले से लगा लेता है। उसी तरह ख़ुदा ने बशक्ल इन्सान इस जहान में आकर हमें अपने गले से लगा लिया है। और हमारे दुख दर्द को हमसे दूर कर डाला और हमारी रूहों को आराम बख़्शा और हमें अपनी रास्त बाज़ी से रास्त बाज़ बनाया। ये दूसरा आदम जिसका ज़िक्र सुतूरे-बाला में हुआ रब्बना अल-मसीह है।

चुनान्चे लिखा है कि क्योंकि जब आदमी के सबब से मौत आई तो आदमी ही के सबब से मुर्दों की क़ियामत भी आई और जैसे आदम में सब मरते हैं। वैसे ही मसीह में ज़िंदा किए जाऐंगे। लेकिन हर एक अपनी अपनी बारी से पहला फल मसीह फिर मसीह के आने पर उस के लोग उस के बाद आख़िरत होगी। उस वक़्त वो सारी हुकूमत और सारा इख़्तियार और क़ुद्रत नेस्त कर के बादशाहत को ख़ुदा यानी बाप के हवाले कर देगा। (1 कुरिन्थियों 15:21-24)

चुनान्चे इस्लाम भी इस का क़ाइल है कि मसीह दूसरा आदम है चुनान्चे आले-इमरान के 5 रुकूअ में कि ان مثل عیسیٰ عند اللہ لمتل آدم आदम यानी ख़ुदा के नज़्दीक ईसा मसीह मिस्ल आदम के है।

अब हमारी अर्ज़ ये है कि ये नया आदम जो मौत पर फ़त्हयाब हो गया है और जिसके इख़्तियार में सब कुछ है और जिसने ईमान लाने वालों के लिए नजात तैयार कर ली है इस के पास आओ और नजात हासिल करो पहले आदम की फ़र्ज़ंदी से जो मौत का सबब है निकल कर इस आदम-ए-सानी की फ़र्ज़ंदी में आकर नई पैदाइश हासिल करो ता कि इस मौत के क़ब्ज़े से जो आदमे अव़्वल की फ़र्ज़ंदी की वजह से तुम पर तारी है निकल कर हमेशा की ज़िंदगी में दाख़िल हो जाओ। जैसे मुक़द्दस यूहन्ना फ़र्माते हैं कि येसू ने जवाब में उस से कहा, मैं तुझसे सच्च सच्च कहता हूँ कि जब तक कोई नए सिरे से पैदा ना हो वो ख़ुदा की बादशाहत को देख नहीं सकता।” (यूहन्ना 3:3)

शायद कोई ये कहे कि हम उस की फ़र्ज़ंदी में क्योंकर शामिल हो सकते हैं? जवाब ये है कि सिदक़ दिल और नेक नीयती से अपने किए हुए से पछताओ और उसे पुकार कर कहो, कि ऐ हर गुनेहगार को नजात बख़्शने वाले हमें भी बचा और हम पर रहम कर हमें अपनी तरफ़ खींच कि हम ग़ारे असयां (गुनाहों की ग़ार) में डूबे जाते हैं। ऐ करीम ख़ुदा हमारे दिलों को अपनी तरफ़ माइल कर हम किसी ख़ास दीन या मज़्हब को आप पसंद नहीं करते हैं हमें सिर्फ तेरी तलाश है जिधर तू है हमारे दिलों को इधर मुतवज्जोह कर। अगर ख़ुलूस के साथ तुम ऐसी दुआ करो तो यक़ीनन ख़ुदा तुम्हें भी अपनी तरफ़ खींच लेगा और तुम्हारी सारी मुश्किलें आसान हो जाएगी। और तमाम मवाक़े दूर किए जाऐंगे।

इन रोज़ मर्राह दुआओं के सिवा तालिबे हक़ को ये भी लाज़िम है कि हर मज़्हब की किताब को बिला-तास्सुब ग़ौर से पढ़े और शक व शुब्हा को उस के समझने वालों से तहक़ीक़ाना तौर पर दर्याफ़्त करे ना कि मुताअस्सुबाना (मज़्हब की बेजा हिमायत) तौर पर।

नाज़रीन आप जो अपने मज़्हब की किताबों को ग़ौर से पढ़ते हैं ज़रा हमारी किताबों को भी ग़ौर से मुतालआ फ़रमाएं अगर आपको इत्मीनान हो जाये तो ठीक वर्ना आप मुख्तार हैं।

बाअज़ लोग ये कहते हैं कि इन किताबों के पढ़ने से अपने दीन के मुताल्लिक़ शक पैदा हो जाता है। लेकिन याद रखना चाहिए कि जो मज़्हब ऐसा ज़ईफ़ (कमज़ोर) हो कि दूसरे मज़ाहिब की किताबों के देखने से इस में शक पड़ जाये तो इसके बातिल (झूटा) होने में क्या शक है? वो ही सच्चा मज़्हब है कि हर मज़्हब की किताब पढ़ कर इस में क़ायम रह सकें और इस में तरक़्क़ी कर सकें।

अल-ग़र्ज़ रब्बना अल-मसीह ने इस ज़मीन पर तशरीफ़ ला कर इस जुदाई को जो इन्सान और ख़ुदा में वाक़ेअ हुई थी दूर कर के सुलह करा दी। इस तरह पर कि हम बदकारों के मुआवज़े में अपनी जान देकर ख़ुदा की अदालत पूरी कर दी। और हमारी कमज़ोरीयों को ज़ोर से बदल कर हम में नई इन्सानियत पैदा कर दी। और इस दुनिया को फिर उस की असली हालत पर ला कर रश्क फ़िर्दोस बना दिया। चुनान्चे उस के ईमानदार बंदे बजुज़ गुनाह करने के हर तरह से आज़ाद हैं। और इस दुनिया से इसी तरह फ़ायदा उठाने हैं जिस तरह हज़रत आदम बागे अदन से उठाते थे। अलबत्ता जिस तरह शैतान बाग-ए-अदन में आदम की ताक में लगा रहता था इसी तरह मसीह के ईमानदार बंदों की ताक में भी लगा रहता है लेकिन इनको कुछ नुक़्सान नहीं पहुंचा सकता है क्योंकि ख़ुद मसीह उन के मुहाफ़िज़ और हैं।

चुनान्चे मुक़द्दस पौलुस ने इसी मज़्मून को बदीं अल्फ़ाज़ बयान किया है कि, “रात बहुत गुज़र गई और दिन निकलने वाला है पस हम तारीकी के कामों को तर्क कर के रोशनी के हथियार बांध लें जैसा दिन को दस्तूर है शाइस्तगी से चलें ना कि नाच रंग और नशे बाज़ी से ना ज़िनाकारी और शहवत परस्ती से और ना झगड़े और हसद से बल्कि ख़ुदावन्द येसू मसीह को पहन लो और जिस्म की ख़्वाहिशों के लिए तदबीर ना करो।” (रोमीयों 13:13-14)

फिर इस रोशनी के हथियार की तफ़्सील जिनके ज़रीये से हम शैतान को शिकस्त दे सकते हैं बयान करते हैं कि “पस सच्चाई से अपनी कमर कस कर और रास्त बाज़ी का बक्तर लगा कर और पांव में सुलह की ख़ुशख़बरी की तैयारी के जूते पहन कर और इन सब के साथ ईमान की सिपर लगा कर क़ायम रह। जिससे तुम इस शरीर के सारे जलते हुए तीरों को बुझा सको। और नजात का ख़ुद और रूह की तल्वार जो ख़ुदा का कलाम है ले लो और हर वक़्त और हर तरह से रूह में दुआ और मिन्नत करते हो।” (इफ़िसियों 6:14-18)

भाईयों ख़ुदावन्द येसू मसीह ने उन लोगों को जिनको उस ने अपनी रास्तबाज़ी के ज़रीये असली शक्ल पर फेरा है शैतान से महफ़ूज़ रहने के लिए सात हथियार दीए हैं ताकि उस शरीर का मुक़ाबला कर के उस फ़ज़्ल को जो उस की तरफ़ से इंसानों को दिया गया है खो ना दें।

सच्चाई का कमरबंद, रास्तबाज़ी का बक्तर, ख़ुशख़बरी की तैयारी के जूते, ईमान की सिपर, नजात का ख़ुद, कलाम-ए-इलाही की तल्वार, रूह में दुआ की मदद। पस जो कोई ख़ुदावन्द येसू मसीह में पैवस्त हुआ है। और जिस ने आदमे अव़्वल की फ़र्ज़ंदी छोड़कर ख़ुदा की फ़र्ज़ंदी का मर्तबा हासिल किया है। वो शख़्स इन सात हथियारों से हर वक़्त शैतान का मुक़ाबला करता रहता है। और इन ख़ुदा के फ़रज़न्दों का दुनिया में और आस्मान पर एक झुंड तैयार हो गया है। पस हम उन लोगों को जो इन ख़ुदा के सिपाहीयों के झुंड का बे-ख़बरी से मुक़ाबला करते हैं। या मुख़ालिफ़ की फ़ौज के साथ मिलकर हलाक हो रहे हैं इत्तिला देते हैं कि भाईयों ! इस दुश्मन का साथ मत दो जो मग़्लूब हो चुका है बल्कि ख़ुदा के लोगों में शामिल हो जाओ।

और अपनी रास्तबाज़ी पर भरोसा ना रखो बल्कि ख़ुदा की उस रास्तबाज़ी को जो आदम-ए-सानी में पैवस्त होने से मिलती है हासिल करो। ख़ुदा के सामने वही रास्तबाज़ी जो उसने ख़ुद इनायत की है कार-आमद है। हमारी रास्तबाज़ी वहां कार-आमद नहीं हो सकती है।

ये ख़ुदा का फ़ज़्ल है कि दूसरा आदम ज़ाहिर हुआ जो पाक और क़ुद्दूस है और वो अपने साथ आदमीयों को पैवस्त करता है। इसलिए वो पहले आदम की नजासत (गंदगी) और अपनी शरारत की नजासत से पाक होते हैं और आदम-ए-सानी की ख़ूबी में से हिस्सा पाते हैं इसलिए वो ख़ुदा के मक़्बूल फ़र्ज़न्द बन जाते हैं। जो कुछ हम कह रहे हैं वो सरसरी नहीं बल्कि गहरी और हक़ीक़ी बातें हैं।

रिसाला दोम
आदम-ए-सानी से पैवस्त होना

रिसाला अव़्वल में आदम-ए-अव़्वल और आदम-ए-सानी का ज़िक्र किया गया और ये बयान हुआ कि आदमे अव़्वल के सबब से सब आदमी ख़ुदा की रहमत से महरूम हुए और मौरिद-ए-ग़ज़बे इलाही (जिस पर ख़ुदा का ग़ज़ब हो) बन गए लेकिन दूसरे आदम यानी हज़रत ईसा के साथ पैवंद (लगाया जाना) होने की वजह से फिर हालत-ए-असली पर आ जाते हैं। इस रिसाले में इस बात का सबूत देना ज़रूर है कि हम उस की रास्तबाज़ी से क्योंकर रास्तबाज़ बन जाते हैं और क्यों उस के साथ पैवस्त हो सकते हैं।

वाज़ेह रहे कि हम लोग जो आदमे अव़्वल के सबब से गुनेहगार ठहरते हैं इस का क्या सबब है? बादियुन्नज़र (सरसरी नज़र) में ये बात बईद अज़ क़ियास (वो बात जो ख़याल में भी ना आ सके) मालूम होती है कि एक शख़्स की ख़ता से दूसरा शख़्स ख़ताकार ठहरे। मगर ग़ौर व ख़ौज़ के बाद ऐसा मालूम होता है कि यक़ीनन ये बात लायक़ तस्लीम और बरहक़ है कि आदमे अव़्वल के सबब से सब लोग बिगड़ गए और उस की ख़ता की वजह से सब मुजरिम बन गए। दलील इस दावे की ये है कि आदमे अव़्वल सब आदमीयों का मब्दा (इब्तिदा) था या वो हक़ीक़ी तुख़्म (बीज) था कि जिस पर हर फ़र्द बशर का सिलसिला जा कर ख़त्म होता है। या यूं समझना चाहे कि आदमे अव़्वल कुल इन्सानियत का मजमूआ था हर आदम की इन्सानियत इस में मौजूद थी। मसलन एक आम की गुठली में उस के तमाम शाख़ व बार बा-क़वाह (क़ुव्वत) मौजूद होते हैं। इसी तरह जब आदमे अव़्वल बाग़-ए-अदन में था तो ये सब आदमी जो अब ज़मीन पर चलते फिरते हैं या वो जो मर गए हैं या वो जो पैदा होंगे। सब के सब बा-क़वाह (क़ुव्वत) उस में मौजूद थे। उस का जिस्म सब के जिस्मों का साँचा था उस की रूह सबकी रूहों का मख़ज़न (ज़ख़ीरा, स्टोर) था चुनान्चे तौरेत में लफ़्ज़ फलो और बढ़ो का ख़िताब इस की दलील है। पस जब उसने ख़ता की तो उस के साथ सब ने ख़ता की और जब उस पर ख़ुदा का क़हर नाज़िल हुआ तो उन सभों पर भी हुआ जो उस में बा-क़वाह (क़ुव्वत) मौजूद थे। ज़ाहिर में आदम की ख़ता है हक़ीक़त में हम सबकी ख़ता है क्योंकि वो हम सभों का मजमूआ था जो ग़ज़ब का सज़ावार हुआ। पस हर फ़र्द इस मजमूए का मफ़ज़ूब अलैह ठहरा। इसलिए ये कहना कि एक की ख़ता से हम सब क्यों ख़ाती (ख़ताकार) हुए। मह्ज़ नादानी है। अब अगर कोई शख़्स कोई क़सूर करता है, तो इस से वही ख़ुद क़सूरवार ठहरता है कि ये शख़्स बज़ात-ए-ख़ुद दूसरे क़सूरवारों का मजमूआ नहीं है। बरअक्स इस के आदम तमाम नस्ल-ए-इन्सानी का मजमूआ था। चुनान्चे तौरात मुक़द्दस में लिखा है कि ‘तू उनके आगे अपने तईं मत झुका और ना उनकी इबादत कर क्योंकि मैं ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा ग़य्यूर ख़ुदा हूँ और बाप दादों की बदकारीयाँ उन की औलाद पर जो मुझसे अदावत रखते हैं तीसरी और चौथी पुश्त तक पहुँचाता हूँ। उन में से हज़ारों पर जो मुझे प्यार करते हैं और मेरे हुक्मों को हिफ़्ज़ करते हैं रहम करता हूँ।” (ख़ुरूज 20:6-5)

शायद कोई ये कहे कि इस ज़माने का शख़्स अगरचे कुल इन्सानियत का मजमूआ नहीं तो भी अपनी औलाद का मजमूआ तो है लिहाज़ा लाज़िम है कि इस की बदी उस की औलाद में भी असर करे। जवाब ये कि बेशक अगर कोई ऐसा शख़्स हो जो बदकार और ना ख़ुदातरस हो तो उस की औलाद भी जो बाक़वाह (क़ुव्वत) इस में मौजूद है तीसरी चौथी पुश्त तक सज़ावार ठहरती है। उस वक़्त तक जब तक कि इस बदकार बाप की रूह का असर औलाद से मुंदफ़ा (दफ़ाअ दूर) नहीं हो जाता। अब साफ़ ज़ाहिर है कि अगर बदकार बाप का असर औलाद में सरायत करे तो वो भी ग़ज़ब के मातहत (नीचे) रहते हैं। और जब वो बद असर जाता रहे तो ख़ुदा भी मेहरबानी करता है। इसी तरह अगर आदमे अव़्वल की बिगड़ी हुई तबीयत का असर हम में रहे तो हम ग़ज़ब में रहते हैं अगर वो असर जाता रहे तो रहमत के साये में आ जाते हैं पस ये बात वाज़ेह हो गई कि आदमे अव़्वल के सबब से हम सब गुनेहगार हो चुके हैं। इसी तरह आदम-ए-सानी की रास्तबाज़ी से हम रास्तबाज़ ठहरते हैं और उस के ज़रीये से पाक हो जाते हैं क्योंकि हक़ तआला ने जब देखा कि “आदमे अव़्वल बिगड़ गया और इस के सबब से उस की तमाम औलाद ग़ज़ब की सज़ावार हुई और जब आदम ने इस मंशा इलाही (ख़ुदा की मर्ज़ी) के बरख़िलाफ़ कि आदम उस का ख़लीफ़ा हो कर अबदुल-आबाद तक ज़मीन पर हुकूमत करे और ज़िंदा रहे।” काम किया तब ख़ुदा ने एक दूसरे आदम को जिसमें पहले आदम की तबीयत का कुछ भी नहीं था। बल्कि ज़ाते इलाही से मुत्तसिफ़ (सिफ़त रखने वाला) और उस की ऐन ज़ात का अक्स और परतू था भेजा ताकि अबद-उल-आबाद तक ज़मीन पर हुकूमत करे और उस के रूहानी फ़र्ज़न्द हमेशा उस के साथ हयात-ए-अबदी के वारिस बन जाएं और सनदे ख़िलाफ़त पर हुक्मरान रहें।

अगर ये आदम-ए-सानी भी आदमे अव़्वल की तरह अपनी औलाद का सिलसिला जिस्मानी तौर पर अलेहदा (अलग) जारी करता तो आदमे अव़्वल की तमाम ज़ुर्रियत (तुख़्म) दोज़ख़ी हो कर हमेशा के अज़ाब में गिरफ़्तार रहती और ख़ुदा की रहमत में उनका हिस्सा ना रहता बल्कि हम सब के सब दोज़ख़ में जाते इसलिए ख़ुदा ने हम पर ये फ़ज़्ल किया कि आदमे अव़्वल की औलाद को उस की फ़र्ज़ंदी से निकाल कर आदम-ए-सानी की फ़र्ज़न्दी में इस तरह शामिल किया कि उस पर ईमान लाने की वजह से उस की फ़र्ज़ंदी में उनका शुमार हो ना कि आदमे अव़्वल की में।

और जैसे आदमे अव़्वल ने अपनी औलाद के ज़हूर से पेश्तर तमाम और को ज़िमनन (इशारतन) और बा-क़वाह अपने और (तरफ़) लेकर मौत के साये में कर दिया था इसी तरह इस आदम-ए-सानी ने अपने तमाम फ़रज़न्दों को यानी अपनी तमाम कलीसिया को ज़िमनन और बा-क़वाह अपने अंदर लेकर सब रास्तबाज़ियां पूरी कर दीं। और अपने तमाम कलीसिया के लोगों के गुनाहों को आप उठा कर सज़ायाब हुआ ताकि वो लोग मौत के साये से निकल कर और आदमे अव़्वल की फ़र्ज़ंदी से छुट कर उस के फ़र्ज़न्द हो जाएं और हमेशा उस के साथ रहें।

शायद कोई ये कहे कि आदमे अव़्वल अगर ख़ुदा का गुनाह ना करता तो हरगिज़ ना मरता ना तो जिस्म की निस्बत से और ना रूह की निस्बत बल्कि हमेशा वो और उस की औलाद ज़िंदा रहते लेकिन अब गुनाह की वजह से वो और उस के फ़र्ज़न्द दोनों मर गए। लेकिन इस आदम-ए-सानी के फ़र्ज़न्द भी तो जिस्म के एतबार से मरते हैं पस उनके मरने का क्या सबब है?

इस का जवाब ये है कि आदमे अव़्वल के सबब से हर इन्सान का जिस्म और रूह दोनों बिगड़ गए और दोनों पर मौत का फ़तवा लग गया लेकिन आदम-ए-सानी ने सिर्फ रूह को जो बेशक़ीमत जोहर है अपने साथ पैवस्त कर के बचा लिया और इस हक़ीर जिस्म को जो आदमे अव़्वल के साँचे में ढला हुआ और ख़ाली पुतला है इस क़ाबिल ना समझा कि इस पुराने चीथड़े को धो कर फिर उस पाक रूह को पहना दे इसलिए इस को क़ाबिले इल्तफ़ात (तवज्जोह के लायक़) ना समझा क्योंकि उस का मंशा (मर्ज़ी) ये है कि मैं उन रूहों को जिन्हें मैंने बचाया है नया लिबास यानी और ही बदन इनायत करूँ बल्कि इस ज़मीन को भी जो आदम के सबब से लानती हुई है और जिससे ये ख़ाकी जिस्म बनाए गए हैं और इस आस्मान को भी तब्दील कर के नई ज़मीन और नया आस्मान बनाऊँ और अपने मुक़द्दसों को इस में रखूं। चुनांचे लिखा है कि “वो अपनी इस क़ुव्वत की तासीर के मुवाफ़िक़ जिससे सब चीज़ें अपने ताबे कर सकता है हमारी पस्त हाली के बदन की शक्ल बदल कर अपने जलाल की सूरत पर बनाएगा।” (फिलिप्पियों 3:21)

मुक़द्दस पतरस लिखते हैं कि “लेकिन उस के वाअदे के मुवाफ़िक़ हम नए आस्मान और नई ज़मीन का इंतिज़ार कर रहे हैं जिनमें रास्तबाज़ बसी रहेगी।” (2 पतरस 13)

यसअयाह नबी लिखते हैं कि “देखो मैं नए आस्मान और नई ज़मीन पैदा करता हूँ और जो आगे थे उनका फिर ज़िक्र ना होगा।” (यसअयाह 65:17)

फिर लिखते हैं कि क्योंकि जिस तरह से नए आस्मान और नई ज़मीन जो मैं बनाऊँगा, मेरे हुज़ूर क़ायम रहेंगे इसी तरह तुम्हारी नस्ल और तुम्हारा नाम बाक़ी रहेगा। ख़ुदावन्द फ़रमाता है।” (यसअयाह 66:22) पस हमारा ख़ुदावन्द इस ज़मीन को जो सरासर फ़ानी है नेस्त (ख़त्म) करना चाहता है इसलिए वो बदन जो इस से बना है ज़रूर है कि नेस्त हो मगर रूह जो बेशक़ीमत शैय है और जो इस ज़मीन से नहीं बनी है सिर्फ उसी की हिफ़ाज़त दरकार है। बशर्ते के उस के फ़र्ज़न्द बन जाएं इसलिए अब इस अम्र का बयान मुनासिब मालूम होता है कि हम लोग आदम-ए-सानी यानी हज़रत मसीह के फ़र्ज़न्द क्योंकर बन जाते हैं और अलाइक़ (ताल्लुक़ात) फ़र्ज़ंदी किस तरह मुतहक़्क़िक़ (दुरुस्त) हो जाते हैं। यूहन्ना 3:3, में है कि हज़रत ईसा निकुदेमुस से जो एक यहूदी आलिम था यूं फ़र्माते हैं कि, “मैं तुझसे सच्च सच्च कहता हूँ कि जब तक कोई नए सिरे से पैदा ना हो वो ख़ुदा की बादशाहत को देख नहीं सकता। निकुदेमुस ने उस से कहा आदमी जब बूढ़ा हो गया तो क्योंकर पैदा हो सकता है? क्या वो दुबारा अपनी माँ के पेट में दाख़िल हो कर पैदा हो सकता है? येसू ने जवाब दिया मैं तुझसे सच्च सच्च कहता हूँ कि जब तक कोई आदमी पानी और रूह से पैदा ना हो ख़ुदा की बादशाहत में दाख़िल नहीं हो सकता।” (यूहन्ना 3:3-5)

इन आयतों से साफ़ ज़ाहिर है कि ख़ुदा के फ़र्ज़न्द बनने और बहिश्त में दाख़िल होने के लिए नया जन्म लेना ज़रूर है पस जो कोई नया जन्म लेता है वो आदम-ए-सानी का फ़र्ज़न्द बन जाता है लेकिन इस नए जन्म के मअनी हमारे ख़ुदावन्द ने ये बतलाए हैं कि पानी और रूह से पैदा होना यानी पानी से इस्तिबाग़ (बपतिस्मा) लेना जो ज़ाहिरी इक़रार का नमूना है और ख़ुदा की रूह का दिल में आ जाना।

मगर ये जब ही हो सकता है कि आदम-ए-सानी की रूह से हमारी रूह को ताक़त मिले यानी रूह-उल-क़ुद्स या ख़ुदा की रूह जो बाप और बेटे से निकलती है हमारे अंदर आ जाए तो ज़रूर हम उस के फ़र्ज़न्द ठहरते हैं गोया कि हम बातिनी तौर पर ख़ुदा से पैदा हो गए और इसी लिए हम ख़ुदा के बेटे कहलाते हैं। मुक़द्दस यूहन्ना लिखते हैं कि “जितनों ने उसे क़ूबूल किया उसने उन्हें ख़ुदा के फरजंद बनने का हक़ बख़्शा यानी उन्हें जो उस के नाम पर ईमान लाते हैं।” (यूहन्ना 1:12)

इस आयत का लुत्फ़ उस वक़्त-ए-मालूम होता है जब कि हम ख़ुदा की रूह से रूहानी तौर पर पैदा हो कर उस के फ़र्ज़न्द बन जाते हैं।

अब ये मालूम करना बाक़ी है कि मसीह की रूह उस के लोगों में क्योंकर आ जाती है जिसके सबब से ख़ुदा के फ़र्ज़न्द बन कर आदमे अव़्वल की फ़र्ज़ंदी से निकल जाते हैं और हमेशा की ज़िंदगी में दाख़िल हो जाते हैं।

वाज़ेह रहे कि जब कोई शख़्स अपने गुनाहों से शर्मिंदा और बेज़ार हो कर ख़ुदा की तरफ़ रुजू करता है और रूहानी तौर पर मुज़्तरिब (परेशान) रहता है और ख़ुदावन्द येसू मसीह से इमदाद तलब करता है तब ख़ुदावन्द तआला इस पर फ़ज़्ल करता है और इस की तौबा क़ुबूल फ़रमाता है। इस सूरत में ख़ुदावन्द येसू मसीह की रूह इस शख़्स की तरफ़ तवज्जोह फ़रमाती है। और जिस क़द्र ये शख़्स ख़ालिस नीयत से अपनी रूह में दुरुस्त तौर पर दुआ करता है और मुनाजात के ज़रीये ख़ुदा की तरफ़ तक़र्रुब (नज़दीकी) ढूंढता है और कलामे इलाही में ग़ौर करता है।

उसी क़द्र रूह-उल-क़ुद्स का फ़ैज़ान (बड़ी बख़्शिश) और इस का नुज़ूल इस के दिल पर ज़्यादा होता रहता है। और ये शख़्स अपने दिल में आराम और तसल्ली पाता है ख़ुदा की मुहब्बत और दुआ का शौक़ और नेकी में सरगर्मी और तहम्मुल व बर्दाश्त। सब्र व क़नाअत उस के दिल में पैदा होना शुरू हो जाता है और घमंड, ग़ुरूर, हीला-साज़ी, हसद, लालच, तमल्लुक (ख़ुशामद) नफ़्स पर्वरी, शहवत परस्ती वग़ैरह उयूब (ऐब की जमा) जो हर आदमी में पाए जाते हैं रफ़ा होने शुरू हो जाते हैं यहां तक कि इस की रूह मुहब्बत मौरिद अनवारे इलाही (ख़ुदा का नूर उतरने की जगह) बन जाती है इस वक़्त इस की बातिनी आँखें टिमटिमा (जगमगा) उठती हैं फिर ये शख़्स कलाम-ए-इलाही के ज़रीये से अपने बातिनी उयूब और ख़ुदा की क़ुद्दुसियत और इस जहां की नापाइदारी और आइंदा जहां की क़द्रो मंजिलत रूहानी आँखों से देखने लगता है और इस का ज़मीर रोशन होता जाता है। ये सब कुछ ख़ुदा की रूह की बरकत से होता है उस के रूह के बग़ैर हरगिज़ कोई आदमी राह-ए-रास्त पर नहीं आ सकता। जब मैं ख़ुदावन्द येसू मसीह के पास हाज़िर ना हुआ था और उस की रूहानी बरकतों से वाक़िफ़ ना था तो उस वक़्त कई एक दुनियावी आलिम लाहौर में रूह-उल-क़ुद्स की बाबत गुफ़्तगु करते थे, कि रूह-उल-क़ुद्स क्या चीज़ है? में भी चुप-चाप सुनता था मगर उनकी बातों को मेरी तमीज़ क़ुबूल नहीं करती थी वो कहते थे कि ईसाई लोग जो रूह-उल-क़ुद्स का फ़ैज़ान (फ़ायदा, बड़ी बख़्शिश) और इस का नुज़ूल आदमीयों के दिलों में तस्लीम करते हैं। शायद इन्किशाफ़-ए-ज़हनी या फैज़ान-ए-इल्मी का तबीयत पर असर करना मुराद लेते हैं और उनका ये भी ख़याल था कि ये फैज़ान-ए-इल्मी अक्सर ज़हीन लोगों में होता है कुछ ईसाईयों को ख़ुसूसीयत नहीं अगरचे इस की बाबत उस वक़्त में कुछ ना कह सका लेकिन अब मैं कहता हूँ कि रूह-उल-क़ुद्स तो और ही चीज़ है और इस के कुछ और ही ख़ास्से हैं तमाम जहान के ज़हन इस के बग़ैर नादान हैं वो लोग सरासर ग़लती पर थे रूह-उल-क़ुद्स का लुत्फ़ जब तक कि वो हासिल ना हो कोई नहीं जानता जब किसी के अन्दर वो रूह आती है तो वह आदमी अपने अंदर हमेशा की ज़िंदगी बैयाना (पूरी रक़म की अदायगी से पहले पहली क़िस्त) देखकर बहुत बड़ी ख़ुशी और आराम और एक ऐसी अलवा लाज़मी (साबित क़दमी) जो अक़्ल से बालातर है पाता है तमाम मसाइब और तकालीफ़ को बड़ी ख़ुशी के साथ बर्दाश्त करता है वो अपनी मौत में ऐन ज़िंदगी पाता है अपने और ख़ुदा में एक ख़ास ताल्लुक़ देखता है दक़ाइक़ (बारीक निकात) और रमूज़ इलाहिया (ख़ुदा के भेद) इस पर मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) होते हैं एक अजीब क़िस्म की रोशनी जो ज़हन की रोशनी से बालातर है इस में पैदा हो जाती है। दीनदारी में सरगर्म और गुनाहों के बोझ से (अपने) आपको सुबुक (हल्का) पाता है तेज़ी ज़हन और फ़ैज़ाने इल्मी से ये बातें हरगिज़ नसीब नहीं होतीं पस ज़रूर रूह-उल-क़ुद्स और चीज़ है और ज़हीन होना और चीज़ है। एक मुहम्मदी आलिम ने मुझ से कहा कि मैं भी इन्जील को तहक़ीक़ात की नीयत से आजकल देख रहा हूँ मेरी ज़बान से निकला कि ख़ुदा करे कि आपकी समझ में आजाए वो साहब ख़फ़ा हो कर कहने लगे क्या मैं ऐसा ग़बी (कुंद ज़हन) हूँ कि इन्जील के तर्जुमे को ना समझ सकूँगा। मुद्दत के बाद मुझको मालूम हुआ कि हर ज़हन रूह-उल-क़ुद्स के बग़ैर ज़रूर ग़बी होता है कोई शख़्स रूह-उल-क़ुद्स के बग़ैर कलामे इलाही को नहीं समझ सकता है अगरचे वो कैसा ही बड़ा आलिम क्यों ना हो रूह-उल-क़ुद्स दुआ और तिलावत-ए-बाइबल और फ़ज़ल-ए-इलाही से मिलती है। मैं ये भी कहता हूँ कि अशरफ़-उल-मख़्लूक़ात का इतलाक़ हर एक इन्सान पर दुरुस्त नहीं है क्योंकि इन्सान कैसा ही बड़ा अक़्लमंद क्यों ना हो जब तक इस में रूह-उल-क़ुद्स नहीं है ज़रूर वो शराफ़त इंसानी से गिरा हुआ होता है। आदमे अव़्वल उस वक़्त तक अशरफ़ था जब तक उसने ख़ुदा की इस रूह को जो उसे मिली थी ना बुझाया जब बुझाया तो शराफ़त से गिर गया।

पस रूह-उल-क़ुद्स क्या है आदम-ए-सानी की रूह है जो मुक़द्दसों में आ बस्ती है इस के सबब हम लोग ख़ुदावन्द येसू मसीह के फ़र्ज़न्द और उस के उज़ू बन जाते हैं इस इज्माल (इख़्तिसार) की तफ़्सील ये है कि आदमे अव़्वल जिसने हर फ़र्द इन्सान को ज़िमनन और बाक़वाह अपने अंदर लेकर लानत उठाई तो जिस क़द्र इन्सान इस से पैदा हुए ख़्वाह वो मरे हों या ज़िंदा या जो पैदा होंगे। वो सब के सब आदमे अव़्वल के हुक्म में हैं क्योंकि आदमे अव़्वल इन सब का एक मजमूआ है लिहाज़ा उस की लानत में वो सब हैं।

अगर कोई कहे कि इस का क्या सबब है कि तमाम शरीर आदमे अव़्वल के आज़ा हैं? जवाब ये है कि आदमे अव़्वल की रूह उनमें बस्ती है मसलन ज़ैद एक आदमी है कि जिसकी रूह उस के हर उज़ू पर यानी हाथ, कान, नाक वग़ैरह पर सल्तनत करती है अगर वो किसी को क़त्ल करे तो उस का सारा बदन ख़ूनी ठहरता है क्योंकि उसी की रूह से उस का सारा बदन है।

शनाख़्त इस की यूं है कि आदमे अव़्वल लालची था पस अगर हमारे अंदर लालच है तो उसी की रूह हम में बस्ती है। वो हीला-साज़ था उसने ख़ुदा से कहा कि “इस औरत ने जिसे तू ने मेरे साथ कर दिया है मुझसे गुनाह कराया।” अगर हम भी हीला-साज़ हैं और गुनाह कर के उस के उज़्र पेश करते हैं तो उसी आदम की रूह हम में है। वो आक़िबत अंदेश (दुर की सोचने वाला) ना था उसने बेताम्मुल (बग़ैर सोचे समझे) उस दरख़्त में से जिससे ख़ुदा ने मना किया था ख़ा लिया अगर हम भी आक़िबत अंदेशी नहीं करते और बेताम्मुल हर एक बात मान लेते हैं तो हम में उस की रूह बस्ती है। वो ख़ुदा के हुक्म को छोड़ कर दूसरों की बात मान गया अगर हम भी ख़ुदा के हुक्म को छोड़कर दुनिया के लोगों की बातें मान लेते हैं तो बेशक उस की रूह हम में है। और हम में से हर एक अपने दर्जे पर उस का उज़ू है। इसी तरह अगर इस दूसरे आदम की रूह हम में बसे तो हम उस के आज़ा बन जाते हैं क्योंकि जैसे तमाम शरीरों (बेदीनों) के मजमूए का सर आदमे अव़्वल है इसी तरह तमाम मुक़द्दसों के मजमूए का सर ईसा मसीह है।

चुनान्चे कुरिन्थियों में लिखा है कि “मैं चाहता हूँ कि तुम जानों कि हर मर्द का सर मसीह और औरत का सर मर्द और मसीह का सर ख़ुदा है।” (1 कुरिन्थियों 11:2)

“क्योंकि शौहर बीवी का सर है जैसे कि मसीह कलीसिया का है और वो ख़ुद बदन का बचाने वाला है।” (इफ़िसियों 5:23)

यानी तमाम मुक़द्दसों की जमाअत गोया यक बदन है जिसका सर हज़रत ईसा मसीह है।

इस का सबूत कि सब आदमी जो मसीह के हैं हर एक उस का उज़ू है ये है कि “इसी तरह तुम मिलकर मसीह का बदन हो और फ़र्दन फ़र्दन आज़ा।” (कुरिन्थियों 12:27) रोमीयों में है कि “इसी तरह हम भी बहुत से हैं। मसीह में शामिल हो कर एक बदन हैं और आपस में एक दूसरे के आज़ा।” (रोमीयों 12:5)

इफ़िसियों में लिखा है कि “और सब कुछ उस के पांव तले कर दिया और उस को सब चीज़ों का सरदार बना कर कलीसिया को दे दिया।” (1:22, 23) ग़रज़ कि ये मज़्मून इन्जील शरीफ़ में हर एक जगह पर मज़्कूर है कि हम सब मसीह के आज़ा और वो हमारा सर है इसलिए मसीह की रूह उस के सब आज़ा में सल्तनत करती है और ये वजह है कि उस के सज़ा उठाने से हम सब बच गए क्योंकि अगर सर ने बोझ उठा कर फेंक दिया तो पैर जो उस के मुताल्लिक़ थे ख़ुद बख़ुद सुबुक (हल्के) होगे पस जाहिलों का वो एतराज़ कि एक की सज़ा से दूसरा क्यों पाक हो जाता है रफ़ा हुआ क्योंकि वो एक दूसरों से जुदा नहीं है और इस का ताल्लुक़ इस तरह साबित है कि किसी को शक की गुंजाइश बाक़ी नहीं यानी ये कि उसी की रूह हम में आ गई लेकिन जो उस से जुदा हैं वो इस लुत्फ़ से महरूम हैं।

और ये सबब है कि ईसा मसीह की रास्तबाज़ी से हम रास्तबाज़ हुए क्योंकि जब सर पर ताज रखा जाता है तो तमाम बदन की ज़ीनत हो जाती है यानी जब उसने शरीअत के तमाम अहकाम और सब सदाक़तें पाक और बेगुनाह हो कर पूरी कर दीं और आदमे अव़्वल के फ़रज़न्दों को अपनी रूह देकर उस की फ़र्ज़ंदी से निकाल लिया और अपना उज़ू बना लिया तो जिस क़द्र लोग उस के उज़ू बन गए वो सब उस की रास्तबाज़ी से रास्तबाज़ ठहर गए।

और ये भी जानना चाहिए कि आदमे अव़्वल के फ़र्ज़न्द जिन पर मौत का फ़त्वा हो चुका था और अब उस की फ़र्ज़ंदी से भाग कर आदम-ए-सानी की फ़र्ज़ंदी की पनाह में आ गए हैं तो क्या ख़ुदा का वो हुक्म यानी मौत का फ़त्वा उन पर पूरा हुए बग़ैर टल गया? हरगिज़ नहीं क्योंकि ख़ुदा का हुक्म पूरा हुए बग़ैर टल नहीं सकता कि वो जलती आग की मानिंद है पस ख़ुदावन्द येसू मसीह ने सबकी मौत अपने ऊपर उठा ली यानी सब के बदला में फिद्या हुआ।

ये ऐसी बात है जैसे पांव हाथ ने ख़ता की लेकिन सज़ा सर पर आ पड़ी इसी के सज़ा उठाए से हम अच्छे हो गए।

लेकिन चूँकि वो ख़ुद बेगुनाह और पाक था और उस की रूह जैसी कि ख़ुदा में से निकली थी वैसी ही मुबर्रा और बेऐब थी इसलिए अगरचे मौत ने हमारे गुनाहों के सबब से थोड़ी देर के लिए उस को दबा लिया लेकिन हमेशा तक उस को अपने क़ब्ज़े में ना रख सकी क्योंकि एक पाक रूह उस के क़ब्ज़े में हरगिज़ नहीं रह सकती इसलिए वो उस के क़ब्ज़े से निकल आया। लिहाज़ा हम भी उस के आज़ा होने के बाइस से मौत के पंजे से छुट गए इस से ज़ाहिर है कि मसीह की रास्तबाज़ी की वजह से हम किस तरह रास्तबाज़ ठहरते हैं।

मगर ये नेअमत उस वक़्त हासिल होती है जब कि उस की रूह हम में हो अगर उस की रूह हम में नहीं है तो हम लाख इक़रार करें कि हम मसीह के हैं हमें कुछ फ़ायदा नहीं बल्कि हम मौत के साये में रहते हैं।

अब ये बयान करना ज़रूरी है कि आया ख़ुदा की रूह आदमीयों को भी मिलती है या नहीं जिसके सबब से उस के उज़ू बन सकते हैं।

सो जानना चाहिए कि मसीह की रूह ज़रूर उस के सच्चे ईसाईयों को मर्हमत होती है बग़ैर उस के कोई शख़्स ईसाई नहीं हो सकता और वो रूह हर ज़माने में मुक़द्दसों को मिलती रही है। उस के वसीले से वो भी मसीह का उज़ू हो कर नजात पाते रहे हैं और जिन्हें नहीं मिली है वो जहन्नुमी हुए और होते हैं।

यूहन्ना के पहले ख़त में लिखा है कि “चूँकि उसने अपने रूह में से हमें दिया है उसी से हम जानते हैं कि हम उस में क़ायम रहते हैं और वो हम में।” (4:13)

इसी ख़त के 2:24 में है “और जो उस के हुक्मों पर अमल करता है वो इस में और ये उस में क़ायम रहता है और इसी से यानी उस रूह से जो उसने हमें दी है हम जानते हैं कि वो हम में क़ायम रहता है।”

नीज़ यूहन्ना की इन्जील में लिखा है कि “उस रोज़ तुम जानोगे कि मैं अपने बाप में हूँ और तुम मुझमें और मैं तुम में।” (14:20)

इसी तरह रोमीयों में लिखा है कि “लेकिन तुम जिस्मानी नहीं बल्कि रूहानी हो बशर्ते के ख़ुदा का रूह तुम में बसा हुआ है मगर जिसमें मसीह का रूह नहीं वो उस का नहीं और अगर मसीह तुम में है। तो जान गुनाह के सबब से मुर्दा है मगर रूह रास्त बाज़ी के सबब से ज़िंदा है।” (रोमीयों 8:9)

पहला कुरिन्थियों में लिखा है, “क्या तुम नहीं जानते कि तुम ख़ुदा का मुक़द्दस हो और ख़ुदा का रूह तुम में बसा हुआ है अगर कोई ख़ुदा के मुक़द्दस को बर्बाद करेगा ख़ुदा उस को बर्बाद करेगा क्योंकि ख़ुदा का मुक़द्दस पाक है और वो तुम हो।” (3:16)

आमाल में लिखा है कि “पतरस ने उनसे कहा कि तौबा करो और तुम में से हर एक अपने गुनाहों की माफ़ी के लिए येसू मसीह के नाम पर बपतिस्मा ले तो तुम रूह-उल-क़ुद्स इनाम में पाओगा।” (2:38) देखो इन आयतों से साफ़ ज़ाहिर है कि ख़ुदा का रूह उन आदमीयों को जो मसीह पर ईमान लाते हैं ज़रूर मिलता है और ये बात ना सिर्फ इन्जील से बल्कि तमाम नबियों के पाक नविश्तों से बहुत ही अच्छी तरह साबित है।

शायद कोई ना-समझ ये कहे कि अगर तुम में ईसा मसीह का रूह रहता है, तो तुम मोअजज़ात क्यों नहीं दिखला सकते। इस का जवाब ये है कि मोअतरिज़ को कुरिन्थियों का पहला ख़त 12 बाब देखना चाहिए कि रूह के क्या-क्या काम हैं वहां लिखा है कि “नेअमतें तो तरह तरह की हैं रूह एक ही है और ख़िदमतें भी तरह तरह की हैं मगर ख़ुदावन्द एक ही है। और तासीरें भी तरह तरह की हैं मगर ख़ुदा एक ही है जो सब में हर तरह का असर पैदा करता है लेकिन हर शख़्स में रूह का ज़हूर फ़ायदा पहुंचाने के लिए होता है क्योंकि एक को रूह के वसीले से हिक्मत का कलाम इनायत होता है और दूसरे को इस रूह की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ इल्मीयत का कलाम। किसी को इसी रूह से ईमान और किसी को इसी से रूह का इम्तियाज़ किसी को तरह तरह की ज़बानें। किसी को ज़बानों का तर्जुमा। लेकिन ये सब तासीरें वही एक रूह करता है और जिसको चाहता है बाटता है।

पस इस बात के देखने और इस पर ग़ौर करने से भी साफ़ ज़ाहिर होता है कि हर रूहानी आदमी को मोअजज़ात करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि जब तमाम कलीसिया एक बदन ठहरा जिसका सर ख़ुद हज़रत मसीह है और जिसकी ज़िंदगी मसीह की रूह है तो अब एक शख़्स जो इस बदन का एक नाख़ुन या इस से भी छोटा एक उज़ू हो और अगरचे इसी रूह से जिसके सबब से तमाम बदन ज़िंदा है वो भी जीता हो तो भी जो उस का काम है वही कर सकता है कोई नाख़ुन से ये नहीं कह सकता कि तू ज़बान का काम या आँख या नाक का काम क्यों नहीं करता क्योंकि ज़रूर है कि हर उज़ू अपना अपना काम करे बईं-हमा इस शख़्स में भी वही रूह है जो बदन पर हुकूमत करता है। फ़क़त

अब ग़ौर कीजिए कलाम-ए-इलाही की ये कैसी साफ़ ताअलीम है जिस पर तमाम कुतुबे अम्बिया गवाही देती हैं और जिससे हम अपने बदनों में ज़िंदगी महसूस करते हैं लेकिन दुनियावी मज़्हब जो आदमीयों ने बनाए हैं क्या सिखलाते हैं ज़रा ग़ौर तो कीजिए मसीह के पास आओ ताकि हमेशा की ज़िंदगी का रूह तुम्हें भी मिल जाये वर्ना मुफ़्त आपकी रूह बर्बाद हो जाएगी ख़ुदावन्द आप सब पर अपना फ़ज़्ल करे।

रिसाला सोम
आदम-ए-सानी यानी मसीह ख़ुदावन्द के फ़ज़ाइल में

अगरचे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के फ़ज़ाइल में से कुछ पहले ज़िमनन (इशारतन) मज़्कूर हो चुका है ताहम ज़रूर है कि एक रिसाला मुस्तक़िल तौर पर उनके फ़ज़ाइल में लिखा जाये ता कि उन लोगों को जो उनके हाल से नावाक़िफ़ हो कर दोज़ख़ की तरफ़ चले जाते हैं और उनको भी मिस्ल और हादियों (रहनुमाओं) के एक हादी ख़याल कर के गुमराही के जंगल में भटकते फिरते हैं फ़ायदा पहुंचे। वाज़ेह रहे कि हमारे ख़ुदावन्द येसू मसीह के ख़साइस (आदात) और फ़ज़ाइल (खूबियां) इस क़द्र हैं कि इस मुख़्तसर रिसाले में इनकी गुंजाइश नहीं है मगर में उन ख़साइस को जो निहायत रोशन और वाज़ेह हैं बयान करता हूँ जिनका जानना उन तालिबाने हक़ के लिए जो उनका उज़ू (हिस्सा) बनना चाहते हैं वाजिब और लाज़िम है पोशीदा ना रहे कि बीस फ़ज़ीलतें ख़ुदावन्द येसू मसीह में ऐसी हैं जो किसी दूसरे हादी और मुर्शिद में नहीं पाई जाती हैं।

(1) फ़ज़ीलत अव़्वल : कि वो बाइस ईजादे आलम हैं यानी उसी के वसीले से तमाम कायनात और सब चीज़ें पैदा हुईं। चुनान्चे लिखा है, कि “ख़ुदा ने कहा कि उजाला हो और उजाला हो गया।” (पैदाइश 1:3) “ख़ुदावन्द के कलाम से आस्मान बने और उन के सारे लश्कर उस के मुँह के दम से।” (ज़बूर 6:33) इन आयतों से ज़ाहिर होता है कि ख़ुदा के हुक्म या कलाम से सब चीज़ें उस के वसीले से पैदा हुई हैं। मगर यूहन्ना की इन्जील में लिखा है कि “इब्तिदा में कलाम था और कलाम ख़ुदा के साथ था और कलाम ख़ुदा था यही इब्तिदा में ख़ुदा के साथ था। सारी चीज़ें उस के वसीले से पैदा हुईं और जो कुछ पैदा हुआ है इस में से कोई चीज़ भी उस के बग़ैर नहीं हुई उस में ज़िंदगी थी और वो ज़िंदगी आदमीयों का नूर था।” (यूहन्ना 1:1-4) फिर आयत 13 में है कि “कलाम मुजस्सम हुआ और फ़ज़्ल और सच्चाई से मामूर हो कर हमारे दर्मियान रहा और हमने उस का ऐसा जलाल देखा जैसा बाप के इकलौते का जलाला।” (1:14)

कुलस्सियों में लिखा है कि “क्योंकि उसी में सारी चीज़ें पैदा की गईं आस्मान की हों या ज़मीन की देखी हों या अनदेखी। तख़्त हों या रियासतें या हुकूमतें या इख्तियारात सारी चीज़ें उसी के वसीले से और उसी के वास्ते पैदा हुई हैं।” (1:16)

अगर आप इन आयतों पर और उन दीगर आयात पर जिनको हमने पेश नहीं किया है इन्साफ़ के साथ ग़ौर करें तो ब-वज़ाहत साबित होता है कि हज़रत मसीह बाइस ईजादे आलम हैं। और हमारे लिए कैसी ख़ुशी का मुक़ाम है कि हमने उनको जो बाइसे ईजादे आलम हैं पा लिया है। मुसलमानों का गुमान (ख़याल) है कि सारा जहान मुहम्मद साहब के सबब से पैदा हुआ है मगर इस दावे का सबूत उनके पास कुछ नहीं है। और ना वो ख़ुदा के कलाम से इस का सबूत दे सकते हैं। अलबत्ता एक अरबी फिक़्रह यानी لو لاک لما خلقت لا فلا ک सुनाते हैं, जिसका तर्जुमा ये है कि “ऐ मुहम्मद तू ना होता तो मैं आसमानों को पैदा ना करता” हालाँकि ये फ़िक़्रह बिल्कुल बे-बुनियाद है। ये क़ुरआन की आयत है और ना ये कोई मोअतबर हदीस है बल्कि सूफ़ियों ने घड़ कर मशहूर कर दिया है। मौलवी रहमत-उल्लाह साहब जो मुसलमानों में बड़े मौलवी हैं। उनको भी तस्लीम (क़ुबूल करना) है कि ये फ़िक़्रह किसी हदीस की मोअतबर किताब में पाया नहीं जाता है। चुनान्चे उन्होंने कई बार अपने वाअज़ में बमुक़ाम कराना इस का ज़िक्र किया है। अलबत्ता फ़ारसी की उन ग़ैर-मोअतबर किताबों में जो शाइरों की बनाई हुई हैं। मौजूद है पस ऐसी किताबों का क्या एतबार है। हम तो ख़ुदा के कलाम से ख़ुदावन्द येसू मसीह की निस्बत इस का सबूत देते हैं बल्कि क़ुरआन में भी मसीह ख़ुदा का कलमा कहलाता है। ग़र्ज़ की ये दावा मुहम्मद साहब की निस्बत हरगिज़ दुरुस्त नहीं हो सकता क्योंकि कलामे इलाही तो अलग रहा क़ुरआन से भी ये दावा उन की निस्बत साबित नहीं है। इस के सिवा ख़ुदा का कलाम क़दीम है और मसीह भी क़दीम हैं मगर मुहम्मद साहब मिस्ल और आदमीयों के हादिस (फ़ानी) हैं ना उन्होंने क़दामत का दावा किया है। और ना क़ुरआन में इस का ज़िक्र है। कलाम अक़ानीम सलासा (तस्लीस के तीन अक़ानीम) में से एक उक़नूम है। मुहम्मद साहब कोई उक़नूम ना थे बल्कि वो अक़ानीम ही के मुन्किर थे। यही सबब है कि मसीह ब-इख़्तयार ख़ुद क़ुद्रत दिखलाता रहा। बहर-हाल मसीह के सिवा और किसी की निस्बत ये दावा पाया सबूत को नहीं पहुंच सकता है।

(2) फ़ज़ीलत दोम : वो रूह-उल-क़ुद्स की क़ुद्रत से बग़ैर बाप के पैदा हुए चुनान्चे लिखा है कि “उन के इकट्ठे होने से पहले वो रूह-उल-क़ुद्स से हामिला पाई गई।” (मत्ती 1:18)

यसअयाह नबी इस की ख़बर मसीह से 742 बरस पेश्तर दे गया था चुनान्चे उस के 7 बाब आयत 14 में मर्क़ूम है कि “ख़ुदा आप तुमको एक निशान देगा। देखो कुँवारी हामिला होगी। और बेटा जनेगी और उस का नाम इम्मानूएल रखेगी।” अगर वो किसी आदमी के नुत्फे से होता तो वो भी और इन्सानों की तरह मौरूसी गुनेहगार होता और शफ़ी (शफ़ाअत करने वाला) भी नहीं हो सकता था इसलिए वो बिला-तवस्त ग़ैरी ख़ुदा से सादिर (निकलने वाला) हुआ चुनान्चे यूहन्ना की इन्जील में मर्क़ूम है कि, “और उन्होंने उस को क़ुबूल किया और सच्च सच्च जान लिया कि मैं तेरी तरफ़ से निकला हूँ और वो ईमान लाए कि तू ही ने मुझे भेजा।” (17:8) मसीह सिर्फ़ औरत से बग़ैर बाप के इसलिए पैदा हुआ कि अव़्वल शैतान ने औरत ही को ज़ईफ़ (कमज़ोर) जान कर बहकाया था। ख़ुदा ने उसी के वसीले से इस का सर कुचलवाना चाहा जैसे (पैदाइश 3:15) में पहले से ख़बर दी थी, कि वो तेरे सर को कुचलेगा। पस हज़रत मसीह के सिवा किसी ने शैतान पर फ़त्ह नहीं पाई।

(3) फ़ज़ीलत सोइम : कि वो ख़ुदा का बेटा ना जिस्मानी तौर पर बल्कि रूहानी तौर पर वो बाप से निकला और दुनिया में आया और सब लोग ख़ुदा के हुक्म से पैदा हुए लेकिन वो ज़ात पाक से अज़ल से है। चुनान्चे यूहन्ना की इन्जील में मज़्कूर है कि “और अब ऐ बाप तू उस जलाल से जो मैं दुनिया की पैदाइश से पेश्तर तेरे साथ रखता था मुझे अपने साथ जलाली बना दे।” (17:5) और चूँकि वो ख़ुदा से निकला है इसी लिए ख़ुदा का बेटा कहलाता है मगर इस मज़्मून को बग़ैर इमदाद ग़ैबी (ग़ायब) के कोई नहीं समझ सकता है। चुनान्चे (मत्ती 16:13) तक का यही मतलब है कि ऐ पतरस तू जो मुझे ज़िंदा ख़ुदा का बेटा कहता है ये बात जिस्म और ख़ून से नहीं बल्कि मेरे बाप ने तुझ पर ज़ाहिर की है।” और (1 कुरिन्थियों 2:11) में है कि “इसी तरह ख़ुदा की रूह के सिवा कोई ख़ुदा की बातें नहीं जानता इस भेद को रूहानी आदमी ही अच्छी तरह समझ जाते हैं मगर मसीह की निस्बत साफ़ लिखा हुआ है कि “आस्मान से ये आवाज़ आई कि ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे मैं ख़ुश हूँ।” (मत्ती 3:17)

फिर पतरस के दूसरे ख़त में लिखा है कि “उस ने ख़ुदा बाप से उस वक़्त इज़्ज़त और जलाल पाया जब इस अफ़्ज़ल जलाल में से उसे ये आवाज़ आई कि ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे मैं ख़ुश हूँ और जब हम उस के साथ मुक़द्दस पहाड़ पर थे तो आस्मान से यही आवाज़ आती सुनी।” (मत्ती 17:5) और दाऊद नबी 520 बरस पेश्तर कहता है कि “मैं हुक्म को आश्कारा करूँगा, कि ख़ुदावन्द ने मेरे हक़ में फ़रमाया तू मेरा बेटा है मैं आज के दिन तेरा बाप हुआ।” (ज़बूर 3:7) इस ज़बूर की आयत 12 में है कि “बेटे को चूमो ऐसा ना हो कि वो बेज़ार हो और तुम राह में हलाक हो जाओ जब उस का क़हर यकायक भड़के।” नीज़ आयत 3, 4 में है कि “आओ हम उनके बंद खोल डालें और उनकी रस्सियाँ अपने से तोड़ फेंकें वो जो आस्मान पर तख़्त नशीन है हँसेगा।” यानी जो लोग उस के बेटे को क़ुबूल नहीं करते और उस के बरख़िलाफ़ बातें करते हैं ख़ुदा उनसे इस क़द्र नाराज़ है फिर ये कि मसीह ने ख़ुद कहा है कि “मैं ख़ुदा का बेटा हूँ।” चुनांचे यूहन्ना 9:35, 36 का यही मतलब है कि मसीह ने उसे कहा कि “तू ख़ुदा के बेटे पर ईमान लाता है उसने जवाब दिया कि ऐ ख़ुदावन्द वो कौन है ईसा ने कहा जो तुझसे बोलता है वही है।” भाइयो जब ख़ुदा का बेटा हमें मिल गया और हमारा हादी हुआ तो अब हमें और क्या चाहिए। अफ़्सोस है कि अगर मसीह पर ग़ौर नहीं करते और ये जो इन्जील शरीफ़ में कहीं इब्ने आदम या नबी या रसूल या सरदार काहिन या इब्ने दाऊद वग़ैरह उनके नाम मज़्कूर हैं ये नाम उनके एक एक काम और ख़ासियत ज़ाहिर करते हैं सिर्फ ग़ौर करने की ज़रूरत है।

(4) फ़ज़ीलत चहारुम : वो क़ादिर-ए-मुतलक़ था यानी एतबारे उलूहियत वो हर तरह साहिबे क़ुद्रत था अपने इख़्तियार से सब कुछ करता था क्योंकि उसने ब-इख़्तयार ख़ुद हर तरह के अजीब व ग़रीब काम दिखलाए और कहा कि “मेरा बाप अब तक काम करता है मैं भी करता हूँ।” चुनान्चे यूहन्ना 5:18 में है कि उसने अपने आपको ख़ुदा के बराबर कहा। यही सबब था कि यहूदी उस के ज़्यादा दुश्मन बन गए। (मुकाशफ़ा 1:17, 18) में है कि जब मैंने उसे देखा तो उस के पांव पर मुर्दा सा गिर पड़ा और उसने ये कह कर मुझ पर अपना दहिना हाथ रखा कि ख़ौफ़ ना कर मैं अव़्वल और आख़िर और ज़िंदा हूँ मैं मर गया था और देख मैं अबद-उल-आबाद ज़िंदा रहूँगा।

(5) फ़ज़ीलत पंजुम : कि वो आलिमुल-गै़ब भी था चुनान्चे इन्जील के बहुत से वाक़ियात हैं फ़ज़ीलत पर दलालत करते हैं मसलन, “उसने उनके ख़यालों को जान कर उनसे कहा।” (मत्ती 12:25)

“येसू ने उनके ख़याल मालूम करके कहा कि तुम क्यों अपने दिलों में बुरे ख़याल लाते हो।” (मत्ती 9:4) “और इस की हाजत ना रखता था कि कोई इन्सान के हक़ में गवाही दे क्योंकि वो आप जानता था कि इन्सान के दिल में क्या-क्या है।” (यूहन्ना 2:25) और उस के फ़रज़न्दों को जान से मारूंगा और सारी कलीसियाओं को मालूम होगा कि गुर्दों और दिलों का जांचने वाला मैं ही हूँ। (मुकाशफ़ा 2:23) अब हम जान गए कि तू सब कुछ जानता है और इस का मुहताज नहीं कि कोई तुझसे पूछे इस सबब से हम ईमान लाते हैं कि तू ख़ुदा से निकला है। (यूहन्ना 16:30) पस अब ग़ौर कीजिए कि कोई नबी ग़ैब दान नहीं होता है नबियों को इसी क़द्र ग़ैब की बात मालूम होती है, जिस क़द्र ख़ुदा-ए-तआला उनको बतलाता है मगर हमारा ख़ुदावन्द येसू मसीह जो ख़ुदा से निकला है आलिमुल-गै़ब भी है।

(6) फ़ज़ीलत शश्म : कि उस की ताअलीम तमाम जहान के मुअल्लिमों की ताअलीम से अफ़्ज़ल और आला बल्कि अक़्ल से बुलंद और बाला है ख़ुदा के बग़ैर कोई शख़्स ऐसी ताअलीम नहीं दे सकता है जो लोग अह्दे-अतीक़ व जदीद से वाक़िफ़ हैं और कुशादा-दिल हैं वो इस फ़ज़ीलत से ख़ूब वाक़िफ़ हैं और कोई अक़्लमंद इस फ़ज़ीलत से इन्कार नहीं कर सकता है। मुसलमान जो ये कहते हैं कि हमारा क़ुरआन बहुत फ़सीह (शिरीं) कलाम है वो सिर्फ़ लफ़्ज़ी फ़साहत पर नाज़ाँ हैं इस के मुताल्लिक़ हमने हिदायत-उल-मुस्लिमीन के बाब हफ़्तुम व हश्तम के आठ फसलों में लिखा है। हम लोग तौरेत व इन्जील की लफ़्ज़ी फ़साहत पर नाज़ाँ नहीं बल्कि उस के मज़ामीन आलीया पर नाज़ और फ़ख़्र करते हैं लफ़्ज़ी फ़साहत ख़ुद कितनी ही आला हो इस क़ाबिल नहीं कि इस पर फ़ख़्र किया जाये।

(7) फ़ज़ीलत हफ़्तुम : कि वो पाक और बेऐब और मासूम था। ख़ुदा के कलाम से ज़ाहिर है, कि सब जहां के लोग ख़्वाह नबी हों या रसूल ख़्वाह आम हों या ख़ास सब के सब गुनेहगार हैं सिवाए ख़ुदावन्द ईसा मसीह के मसलन, “क्योंकि उसने किसी तरह का ज़ुल्म ना किया और उस के मुँह में हरगिज़ छल ना था।” (यसअयाह 53:9)

“कि उसने गुनाह किया और ना उस के मुँह से कोई मक्र की बात निकली।” (1 पतरस 2:22)

“तुम जानते हो कि वो इसलिए ज़ाहिर हुआ था ता कि गुनाहों को उठा ले जाये। और उस की ज़ात में गुनाह नहीं।” (1 यूहन्ना 3:5) “तुम में कौन मुझ पर गुनाह साबित करता है अगर मैं सच्च बोलता हूँ तो मेरा यक़ीन क्यों नहीं करते।” (यूहन्ना 8:46) “जो गुनाह से वाक़िफ़ ना था उसी को उसने हमारे वास्ते गुनाह ठहराया ता कि हम उस में हो कर खुदा की रास्तबाज़ी हो जाएं।” (2 कुरिन्थियों 5:21) “सारी बातों में हमारी तरह आज़माया गया ताहम बेगुनाह रहा।” (इब्रानियों 4:5) ख़ुद हाकिम उस के बेगुनाह होने का इक़रार करता है। चुनान्चे मत्ती 27:24 में मज़्कूर है, “जब पीलातूस ने देखा कि मुझसे कुछ बन नहीं पड़ता बल्कि हंगामा और ज़्यादा होता जाता है। तो पानी ले के लोगों के सामने अपने हाथ धोए और कहा कि मैं इस रास्तबाज़ के ख़ून से पाक हूँ।” एक चोर जो उस के साथ मस्लूब हुआ था यूं कहता है, कि “हमारी सज़ा तो वाजिबी है क्योंकि अपने कामों का बदला पा रहे हैं लेकिन उसने कोई बेजा काम नहीं किया।” (लूक़ा 23:41) नीज़ दाऊद नबी ज़बूर 16 की आयत 10 में मसीह को “क़ुद्दूस” कहता है। जिसके माअने बिल्कुल बेऐब और निहायत पाक के हैं उस के सिवा यूहन्ना से सब लोग गुनाहों का इक़रार कर के इस्तिबाग़ (बपतिस्मा) लेते थे। लेकिन जब हज़रत मसीह इस्तिबाग़ लेने गया तो यूहन्ना ने कहा मैं ख़ुद तुझसे इस्तिबाग़ लेने का मुहताज हूँ तू मेरे पास क्यों आया उस वक़्त मसीह ने गुनाह का इक़रार नहीं किया बल्कि ये कहा कि तमाम रास्तबाज़ीयों को पूरा करने की ग़र्ज़ से इस्तिबाग़ लेता हूँ। मुसलमान अगरचे आँहज़रत को मासूम मानते हैं लेकिन उनके पास इसकी कोई दलील नहीं बल्कि क़ुरआन में आपके गुनाहों का ज़िक्र है।

(8) फ़ज़ीलत हश्तम : कि वो सब आदमीयों और फ़रिश्तों का मब्दा (अस्ल, बुनियाद) है। ताकि येसू के नाम पर हर एक घुटना ख़्वाह आसमानियों का हो। ख़्वाह ज़मीनियों का ख़्वाह उनका का जो ज़मीन के नीचे हैं। (फिलिप्पियों 2:10)

“और जब पहलौठे को दुनिया में फिर लाता है तो कहता है कि ख़ुदा के सब फ़रिश्ते उसे सज्दा करें।” (इब्रानियों 1:6) क़ुरआन में जो ये है कि आदमे अव़्वल को फ़रिश्तों ने सज्दा किया इस का सबूत ख़ुदा के कलाम से नहीं मिलता है। अलबत्ता आदम-ए-सानी यानी ख़ुदावन्द मसीह को बेशक फ़रिश्ते सज्दा करते हैं जो बाप के साथ तख़्त है।

(9) फ़ज़ीलत नह्म : हमारा ख़ुदावन्द येसू मसीह हर वक़्त हाज़िर नाज़िर है। ज़ेल की आयात मुलाहिज़ा हों, “और देखो मैं ज़माने के आख़िर तक हर रोज़ तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती 28:28) “मैं तेरे काम और तेरी मशक़्क़त और तेरा सब्र तो जानता हूँ और ये भी कि तू बदों को देख नहीं सकता।” (मुकाशफ़ा 2:2)

(10) फ़ज़ीलत दहुम : कि वो शफ़ाअत करने वाला है। चुनान्चे वो ख़ुद फ़रमाता है कि “मुझे गुनाह बख़्शने का इख़्तियार है।” और इस दावे को उसने अच्छी तरह साबित भी किया है। “लेकिन इसलिए कि तुम जान लो कि इब्ने-आदम को ज़मीन पर गुनाहों के माफ़ करने का इख़्तियार है।” (मत्ती 9:6) “और ऐ मेहनत उठाने वालो और बोझ से दबे हुए लोगो सब मेरे पास आओ मैं तुम्हें आराम दूंगा। मेरा जूवा अपने ऊपर उठा लो। और मुझसे सीखो क्योंकि मैं हलीम हूँ और दिल का फ़रोतन। तो तुम्हारी जानें आराम पाएँगी। क्योंकि मेरा जुआ (बोझ) मुलायम है। और मेरा बोझ हल्का है। (मत्ती 11:28, 30) ख़ुदावन्द मसीह के सिवा किसी ने दावा नहीं किया है कि मैं तुम्हारी शफ़ाअत करूँगा सब मुर्शिदों ने आदमीयों के सर पर बोझ डाला है मगर हज़रत मसीह ने ख़ुद हमारा बोझ अपने सर पर उठा लिया है। जिसके लिए हम उस के शुक्र गुज़ार हैं।

(11) फ़ज़ीलत याज़ दहुम : कि उसने गुनेहगारों के एवज़ अपनी जान दी और सब ईमानदारों को बचा लिया वो दोस्त जिसको हम हक़ीक़ी माअनों में दोस्त कह सकें मसीह के सिवा कोई और नज़र नहीं आता मगर इस कफ़्फ़ारे का लुत्फ़ और इस के अज़मत और जलाल और ये कि वो ज़रूर ही अम्र था उस वक़्त समझ में आता है, कि जब कोई शख़्स तौरात और इन्जील को समझ पढ़ता है।

(12) फ़ज़ीलत दवाज़दहुम : रहम, हुलुम, फ़िरोतनी, तवक्कुल, सब्र व कनाअत वग़ैरह तमाम औसाफ़-ए-हमीदा (क़ाबिल-ए-तारीफ़ ख़ूबियां) जैसे उस की ज़ात में पाए जाते हैं। दूसरों में नज़र नहीं आते। चुनान्चे इन्जील के पढ़ने वाले इस बयान के गवाह हैं।

(13) फ़ज़ीलत सेज़दहुम : तमाम नबियों और रसूलों और सब मुक़द्दसों और सारे जहां के अक़्लमंदों ने यूं कहा है, कि हम ख़ुदा तआला को जैसा जानना चाहिए हरगिज़ नहीं जान सकते क्योंकि वो एक राज़ है और बुज़ुर्गों का ये क़ौल भी मशहूर है कि صاعر فناک حق معرفتک यानी जो पहचानने का हक़ है हमने इस तरह ख़ुदा को नहीं पहचाना। इस का सबब ये है कि मुम्किन नहीं कि कोई इन्सान उस ज़ात को जो लामहदूद और ग़ैर-मुद्रिक (समझ ना आने वाला) कमा-हक़्क़ा (जैसा उस का हक़ है) मालूम कर सके इसलिए तमाम अक़ला (अक़्ल-मंद) इस पर मुत्तफ़िक़ हैं कि कोई शख़्स उस का इदराक (समझ) नहीं कर सकता है लेकिन हमारा मुनज्जी जो कामिल इन्सान और कामिल ख़ुदा है यूं फ़रमाता है कि “ऐ आदिल बाप दुनिया ने तुझे नहीं जाना मगर मैंने तुझे जाना और उन्होंने भी जाना है कि तू ने मुझे भेजा है।” (यूहन्ना 17:25) में है पर “मैं उसे जानता हूँ इसलिए कि मैं उस की तरफ़ से हूँ। और उसी ने मुझे भेजा है।” (7:29) “तुमने उसे नहीं जाना लेकिन मैं उसे जानता हूँ।” (8:5) “जिस तरह बाप मुझे जानता है और मैं बाप को जानता हूँ।” (10:15) देखो ये वो बड़ी फ़ज़ीलत है जो किसी नबी और रसूल को भी मर्हमत (मेहरबानी, अता) नहीं हुई।

(14) फ़ज़ीलत चारदहुम : ये कि हज़रत ईसा के वसीले के बग़ैर हम ख़ुदा को राज़ी नहीं कर सकते और ख़ुदा की मर्ज़ी उस के हाथ के वसीले बर आएगी। “क्योंकि मुझसे जुदा हो कर तुम कुछ नहीं कर सकते।” (यूहन्ना 15:5) “राह और हक़ और ज़िंदगी मैं हूँ कोई मेरे वसीले के बग़ैर बाप के पास नहीं आता।” (14:6)

(15) फ़ज़ीलत पांज़दहुम : ये कि क़ियामत के दिन सब मुर्दों को वही जिलाएगा सबकी ज़िंदगी उसी के हाथ में है। चुनान्चे लिखा है कि “बल्कि उसे आख़िरी दिन फिर ज़िंदा करूँगा।” (यूहन्ना 6:39) “और मैं उसे आख़िरी दिन फिर ज़िंदा करूँगा।” आयत 20 आयत 53 में है कि “जो मेरा गोश्त खाता और मेरा ख़ून पीता है। हमेशा की ज़िंदगी उस की है और मैं उसे आख़िरी दिन फिर ज़िंदा करूँगा।” (मुकाशफ़ा 2:18) में है कि “आलम-ए-अर्वाह और मौत की कुंजियाँ मेरे पास हैं। ऐ भाइयो जो हमें क़ब्रों से उठाए क्या हम उस की फ़रमांबर्दारी ना करें? लाज़िम है कि उस की रज़ा जोई (मर्ज़ी पूरी करने) के दरपे हों।”

(16) फ़ज़ीलत शानज़दहुम : कि वो क़ियामत का पहला फल है। चुनान्चे कुरिन्थियों में लिखा है, “लेकिन फ़िल-वाक़ेअ मसीह मुर्दों में से जी उठा और जो सो गए हैं उनमें पहला फल हुआ।” (कुरिन्थियों 15:20)

(17) फ़ज़ीलत हफ़्तदहुम : कि क़ियामत के दिन वही सबकी अदालत करेगा। ख़ुदा ने अदालत उसी के सपुर्द की है। दुश्मन और दोस्त उस के आगे हाज़िर होंगे और वही इन्साफ़ करेगा। “क्योंकि इब्ने-आदम अपने बाप के जलाल में अपने फ़रिश्तों के साथ आएगा उस वक़्त हर एक को उस के कामों के मुवाफ़िक़ बदला देगा।” (मत्ती 16:27) “जब इब्ने-आदम नई पैदाइश में अपने जलाल के तख़्त पर बैठेगा तो तुम भी जो मेरे पीछे हुए हो। बारह तख़्तों पर बैठ कर इस्राईल के बारह क़बीलों का इन्साफ़ करोगे।” (मत्ती 19:28)

“और वो एक को दूसरे से जुदा करेगा। जैसे चरवाहा भेड़ों को बकरीयों से जुदा करता है।” (मत्ती 25:31) “क्योंकि बाप किसी की अदालत भी नहीं करता है बल्कि उसने अदालत का सारा काम बेटे के सपुर्द किया है ताकि सब लोग बेटे की इज़्ज़त करें जिस तरह बाप की इज़्ज़त करते हैं।” (यूहन्ना 5:22, 23)

(18) फ़ज़ीलत यज़दहुम : ये कि वो शरीअत का पूरा करने वाला है यानी उसने शरीअत के अहकाम बेऐब हो कर कमा-हक़्क़ा (जैसा उस का हक़ हो) अदा कर दिए। इसलिए उस के सब फ़र्ज़न्द ज़ाहिरी शरीअत से आज़ाद हुए चुनान्चे लिखा है कि “क्योंकि हमें इस तरह सारी रास्तबाज़ी पूरी करनी मुनासिब है।” (मत्ती 3:15) “जब येसू ने वो सिरका पिया तो कहा तमाम हुआ और सर झुका कर जान दे दी।” (यूहन्ना 9:30) मत्ती 5:17 में है कि “मैं मन्सूख़ करने नहीं बल्कि पूरा करने आया हों।”

(19) फ़ज़ीलत नज़दहम : ये कि हमारा ख़ुदावन्द येसू मसीह अबद-उल-आबाद (हमेशा) ज़िंदा है उस की उम्र का इंतिहा नहीं वह आस्मान पर ज़िंदा है और ख़ुदा के दहने हाथ बैठा है। यसअयाह 53:10 में है कि “उस की उम्र दारज़ होगी।” हालाँकि आयत 9 में कह चुका है कि “उस की क़ब्र दौलत मंदों के साथ हुई।” मगर अब कहता है कि “उस की उम्र दराज़ होगी” साफ़ ज़ाहिर है कि वो मर के जी उठेगा। चुनान्चे इंजीलों से ख़ूब साबित है कि वो तीसरे दिन जी उठा और चालीस दिन तक दिखाई दिया और बहुतों ने देखा और बहुतों के साथ रहा। फिर आस्मान पर चला गया।

इब्रानियों 1:3 कि “वो गुनाहों को धो कर आलम-ए-बाला पर किबरिया (ख़ुदा) की दाहिनी तरफ़ जा बैठा।”

हज़रत दाऊद फ़र्माते हैं कि “ख़ुदावंद ने मेरे ख़ुदावन्द को फ़रमाया तू मेरे दहने हाथ बैठ जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पांव की चौकी बनाऊँ।” (ज़बूर 110:1)

ख़ुद मसीह ने कहा है कि “इस के बाद तुम इब्ने-आदम को क़ादिर-ए-मुतलक़ की दाहिनी तरफ़ बैठे और आस्मान के बादलों पर आते देखोगे।” (मत्ती 26:26) “देखो मैं आस्मान को खुला हुआ और इब्ने-आदम को ख़ुदा की दाहिनी तरफ़ खड़ा देखता हूँ।” (आमाल 7:56)

(20) फ़ज़ीलत बीसतम : हमारे ख़ुदावन्द की ये है कि कुतब-ए-अह्दे-अतीक़ में सैंकड़ों बशारतें और पेशीन-गोईयाँ उस की निस्बत लिखी हैं जिनसे ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर होता है। और जिन पर ग़ौर करने से मसीह की सदाक़त और नीज़ ये मालूम होता है, कि अव्वलीन व आख़िरी का वसीला-ए-नजात सिर्फ़ ख़ुदावन्द ईसा मसीह है। इस के सिवा एक और क़िस्म की पेशीन गोईयाँ भी हैं जिनको इशारात कहते हैं जो अव़्वल क़िस्म की पेशीन गोइयों से ज़्यादातर उस का जलाल ज़ाहिर करती हैं। जिनको अहले-इल्म और रूहानी आदमीयों के सिवा अवाम नहीं समझ सकते हैं और इस कस्रत से पाई जाती हैं कि आज तक मुहक़्क़िक़ीन (तहक़ीक़ करने वाले) की अक़्ल ने उनका अहाता (हदबंदी) नहीं किया है। बल्कि रोज़ बरोज़ नए नए मज़ामीन मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) होते जाते हैं। मगर ये इशारात उन लोगों को मालूम होते हैं, जो रात-दिन कलाम-ए-इलाही में ग़ौर करते रहते हैं। पस अब हम नाज़रीन से ये इल्तिमास करते हैं कि ख़ुदावन्द येसू मसीह की तरफ़ आप ग़ौर करें और उस के फ़ज़ाइल पर लिहाज़ कर के तमाम जहान के हादियों को इस के साथ मुक़ाबला कर के देखें अगर वो सारे जहान के हादियों से हर बात में अफ़्ज़ल साबित हो तो इस की ख़िदमत में हाज़िर हो और इस से ताअलीम पाना निहायत मुनासिब है वर्ना मुफ़्त उम्र बर्बाद कर के ख़ुदा को नाराज़ करना अच्छा नहीं है। और ये भी याद रखना कि क़ियामत का दिन अचानक आने वाला है यका-य़क मसीह आस्मान से ज़ाहिर होगा फिर उस वक़्त बजुज़ कफ़-ए-अफ़्सोस मलने (अफ़्सोस से हाथ मलना) के और कोई चारा ना होगा। ख़ुदा आपको तहक़ीक़ का शौक़ और दूर अंदेशी (दूर की सोचना) की तौफ़ीक़ इनायत करे। आमीन

रिसाला चहारुम
54 पेशीन गोइयों के ज़िक्र में

माह गुज़श्ता के रिसाले में हमारे ख़ुदावन्द येसू मसीह के बाअज़ फ़ज़ाइल का ज़िक्र हुआ अब जानना चाहिए कि ख़ुदावन्द येसू मसीह जो आदम-ए-सानी है जिसके साथ पैवंद होने से ख़ुदा की फ़र्ज़ंदी का हक़ मिलता है निहायत दर्जे का मोअतबर (क़ाबिल-ए-एतबार) और यक़ीनन ख़ुदा की तरफ़ से है और ये इसलिए बयान किया जाता है कि बहुत से लोग जो नए मज़ाहिब से नाराज़ हैं ईसाई मज़्हब से भी इसलिए ख़ुश नहीं हैं कि इस के बरहक़ होने की दलाईल पर उन्होंने ग़ौर नहीं किया और ना कलाम-ए-इलाही को तहक़ीक़ की निगाह से देखा बल्कि और झूटे मज़ाहिब के क़ियास पर इस को भी झूटा कहा। लिहाज़ा ज़रूरत है कि सच्चे मज़्हब की चंद दलाईल पेश की जाएं ताकि इस रिसाले के समझने में दिक़्क़त ना हो। वाज़ेह रहे कि पहली दलील जिसको सब दलीलों से अव़्वल जानना ज़रूर है ये है कि कलाम-ए-इलाही की किताबें जो मुख़्तलिफ़ ज़माने में अलेहदा अलेहदा (अलग-अलग) मुतअद्दिद पैग़म्बरों की मार्फ़त इल्हाम से लिखी गई हैं और जो आज तक इसी तरह सही सालिम चले आए हैं जिनका सबूत कुछ-कुछ हिदायत-उल-मुस्लिमीन में भी हो चुका है। वो सब के सब इस बात पर गवाही देते हैं कि ख़ुदावन्द ईसा मसीह वही नजातदिहंदा है जो ख़ुदा की तरफ़ से सारे जहान की नजात के लिए मुक़र्रर हुआ है। और ये इल्हामी किताबें मसीह की निस्बत ये ज़ाहिर करती हैं कि ईसा मसीह तमाम अम्बिया-ए-अव्वलीन व आख़रीन और तमाम बनी-नूअ इन्सान का एक ही शफ़ी (शफ़ाअत करने वाला) और उम्मीद गाह है क्योंकि इन किताबों में उस की निस्बत ब-कसरत पेशीन गोईयाँ मौजूद हैं।

1. पेशीनगोई ख़ुदा का बेटा दुनिया में आएगा। “मैं हुक्म को आश्कारा करूँगा कि ख़ुदा ने मेरे हक़ में फ़रमाया तू मेरा बेटा है मैं आज के दिन तेरा बाप हुआ।” (ज़बूर 2:7) “वो बुज़ुर्ग होगा और ख़ुदा तआला का बेटा कहलाएगा और ख़ुदावन्द ख़ुदा उस के बाप दाऊद का तख़्त उसे देगा।” (लूक़ा 2:32)

2. पेशीनगोई वो औरत की नस्ल से पैदा होगा यानी मर्द के नुत्फे से ना होगा। “वो यानी औरत की नस्ल तेरे सर को कुचलेगा और तू उस की एड़ी को काटेगा।” (पैदाइश 3:15) “लेकिन जब वक़्त पूरा हो गया तो ख़ुदा ने अपने बेटे को भेजा जो औरत से पैदा हुआ और शरीअत के मातहत पैदा हुआ।” (ग़लतीयों 4:4)

3. पेशीनगोई वो अबराहाम की नस्ल से होगा। (पैदाइश 22:18) “और तेरी नस्ल से ज़मीन की सारी कौमें बरकत पाएँगी क्योंकि तू ने मेरी मानी।” (पैदाइश 22:18) “पस इब्राहिम और उस की नस्ल से वाअदे किए गए वो नहीं कहता कि नसलों से जैसा कि बहुतों के वास्ते कहा जाता है बल्कि एक के वास्ते कि तेरी नस्ल को और वो मसीह है।” (ग़लतीयों 3:16)

4. पेशीनगोई वो इज़्हाक़ की नस्ल से होगा ना इस्माईल की। (पैदाइश 21:12) “क्योंकि तेरी नस्ल इज़्हाक़ से कहलाएगी।” (पैदाइश 21:12) “यानी इस्माईल को घर से निकाल दे क्योंकि वो वाअदे का फ़र्ज़न्द नहीं है।” इब्रानियों 11:17 से 19 तक लिखा है कि “ईमान ही से अबराहाम ने आज़माईश के वक़्त इज़्हाक़ को नज्र गुज़राना और जिसने वादों को सच्च मान लिया था वो इस इकलौते को नज्र करने लगा।” और मत्ती 1:1 से ज़ाहिर है कि मसीह इज़्हाक़ की नस्ल से पैदा हुआ।

5. पांचवीं पेशीनगोई वो दाऊद की नस्ल से होगा। “ख़ुदावन्द ने सच्चाई से दाऊद के लिए क़सम खाई जिससे वो ना फिरेगा कि मैं तेरे पेट के फल में से किसी को तेरे लिए तेरे तख़्त पर बिठाऊंगा।” (ज़बूर 132:11) यर्मियाह 23:5 में है कि, “देख वो दिन आते हैं ख़ुदावन्द कहता है कि मैं दाऊद के लिए सदाक़त की एक शाख़ लगाऊंगा और एक बादशाह बादशाही करेगा और इक़बालमंद होगा और अदालत सदाक़त ज़मीन पर करेगा।” यहां से ज़ाहिर होता है कि सुलेमान के सिवा कोई और शख़्स दाऊद के लिए उठने वाला है क्योंकि यर्मियाह बहुत पीछे बड़ा है। आमाल 13:23 में है कि “उसी की नस्ल में से यानी दाऊद की ख़ुदा ने अपने वाअदे के मुवाफ़िक़ इस्राईल के पास एक मुनज्जी यानी येसू को भेज दिया।”

6. पेशीनगोई वो वक़्त मुक़र्ररा पर पैदा होगा यहूदाह से रियासत नहीं छुटेगी और ना उस की नस्ल से हुकूमत का असा जुदा ना होगा और ना हाकिम उस के पांव के दरम्यान से जाता रहेगा। जब तक कि शैल्वा ना आए और कौमें उस के पास इकट्ठी होंगी।” (पैदाइश 49:10)

सत्तर (70) हफ़्ते तेरे लोगों और तेरे शहर मुक़द्दस के लिए मुक़र्रर किए गए हैं ताकि इस मुद्दत में शरारत ख़त्म हो और ख़ता-कारीयां आख़िर हो जाएं और बदकारी की बाबत कफ़्फ़ारा किया जाये और अबदी रास्तबाज़ी पेश की जाये और इस रुयत (रोया) पर और नबुव्वत पर मुहर हो और इस पर जो सबसे ज़्यादा क़ुद्दूस है मसह किया जाये। सो तू बुझ और समझ कि जिस वक़्त से यरूशलेम का दुबारा तामीर करने का हुक्म निकले मसीह बादशाहज़ादा तक सात हफ़्ते हैं और बासठ हफ़्ते उस वक़्त बाज़ार फिर तामीर किए जाऐंगे और दीवार बनाई जाएगी मगर तंगी के दिनों में।” (दानीएल 9:24)

लूक़ा की इन्जील में लिखा है कि “इन दिनों में ऐसा हुआ कि क़ैसर ओगस्तस की तरफ़ से ये हुक्म-जारी हुआ कि सारी दुनिया के लोगों के नाम लिखे जाएं।” (2:1)

7. पेशीनगोई वो कुँवारी से पैदा होगा। “देखो कुँवारी हामिला होगी और बेटा जनेगी।” (यसअयाह 7:14) मत्ती में है “उनके इकट्ठा होने से पहले वो रूह-उल-क़ुद्स की क़ुद्रत से हामिला पाई गई।” (मत्ती 1:18)

8. पेशीनगोई वो इम्मानुएल कहलाएगा यानी ख़ुदा हमारे साथ। “और उस का नाम इम्मानुएल रखेगी।” (यसअयाह 7:14) ये भी मसीह में पूरी हुई चुनान्चे इस का ज़िक्र मत्ती 1:22, 23 में है और सब जहान के ईसाई उसे अपना इम्मानुएल कहते हैं।

9. पेशीनगोई वो बैत-अल-लहम की बस्ती में पैदा होगा। “ऐ बैत-अल-लहम अफराता हर चंद कि तू यहूदा ह के हज़ारों में शामिल होने के लिए छोटा है तो भी तुझमें से एक शख़्स निकल के मेरे पास आएगा। जो इस्राईल में हाकिम होगा और उस का निकलना क़दीम-उल-अय्याम-उल-अज़ल से है।” (मीकाह 5:2) चुनान्चे मत्ती 2:1 में है कि “जब येसू हेरोदेस बादशाह के ज़माने में यहूदिया के बैत-अल-लहम में पैदा हुआ।”

10. पेशीनगोई वो बुज़ुर्गों से इज़्ज़त पाएगा। “और तर्सुस और जज़ीरों के सलातीन नज़्रे लाएँगे। और सीबा और सबा के बादशाह हदीए गुजारेंगे।” (ज़बूर 72:10)

चुनान्चे मत्ती 2:1 से 11 तक इस इज़्ज़त का ज़िक्र मौजूद है।

11. पेशीनगोई उस वक़्त बच्चे क़त्ल किए जाऐंगे। चुनान्चे यर्मियाह के सहीफे में है कि, “ख़ुदावन्द यूं कहता है कि रामा में एक आवाज़ सुनी गई है। नोहा और ज़ार ज़ार रोने की। राखिल अपने लड़कों पर रोती है। और अपने लड़कों की बाबत तसल्ली नहीं पाती क्योंकि वो नहीं हैं।” (यर्मियाह 3:15) मत्ती 2:16 से 18 तक में लिखा है कि, “जब हेरोदेस ने देखा कि मजूसियों ने मेरे साथ हंसी की तो निहायत ग़ुस्सा हुआ और आदमी भेज कर बैत-लहम और उस की सारी सरहदों के अंदर के सब लड़कों को क़त्ल करवा दिया जो दो बरस के या उस से छोटे थे। उस वक़्त के हिसाब से जो उसने मजूसियों से तहक़ीक़ किया था। मख़्फ़ी (छुपा) ना रहे कि राखिल जो याक़ूब की ज़ौजा (बीवी) और यूसुफ़ की माँ थी उस का मज़ार बैत-लहम में है।

12. पेशीनगोई वो मिस्र से बुलाया जाएगा। चुनान्चे होसेअ 11:1 में है कि “जब इस्राईल लड़का था मैंने उस को अज़ीज़ रखा और अपने बेटे को मिस्र से बुलाया।” मत्ती 2:15 में है कि “हेरोदेस मरने तक वहीं रहा ताकि जो ख़ुदावन्द ने नबी की मार्फ़त कहा था पूरा हो कि मिस्र में से मैंने अपने बेटे को बुलाया।”

13. पेशीनगोई उस के आगे यहया (यूहन्ना) पैग़म्बर मुनादी करेगा। चुनान्चे यसअयाह 40:3 में है कि “ब्याबान में एक मुनादी करने वाले की आवाज़ तुम ख़ुदावन्द की राह तैयार करो सहरा में हमारे ख़ुदा के लिए एक सीधी शाराह तैयार करो।” और देखो मैं अपना रसूल भेजता हूँ। और वो मेरी आगे मेरी राह को दुरुस्त करेगा। और वो ख़ुदावन्द जिसकी तलाश में तुम हो हाँ अहद का रसूल जिससे तुम ख़ुश हो और अपनी हैकल में नागहां आएगा। देखो वो यक़ीनन आएगा। रब-उल-अफ़्वाज फ़रमाता है।” मलाकी 3:1) मत्ती 3:1,2 में है कि, “उन दिनों में यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला आया और यहूदिया के ब्याबान में ये मुनादी करने लगा कि तौबा करो क्योंकि आस्मान की बादशाहत नज़्दीक आ गई है।”

14. पेशीनगोई वो रूह-उल-क़ुद्स से मसह किया जाये। चुनान्चे 45 ज़बूर 7 में है कि “तू सदाक़त का दोस्त और शरारत का दुश्मन है इसलिए ख़ुदा तेरे ख़ुदा ने तुझको ख़ुशी के तेल से तेरे हम-सरों से ज़्यादा मसह किया।” यसअयाह 5:4 में है कि “और ख़ुदावन्द की रूह उस पर ठहरेगी हिक्मत और ख़िर्द (अक़्ल) की रूह मस्लिहत और क़ुद्रत की रूह मार्फ़त और ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ की रूह। नीज़ यसअयाह 61:1 में है “ख़ुदावन्द ख़ुदा की रूह मुझ पर है क्योंकि ख़ुदावन्द ने मुझे मसह किया ताकि मुसीबत ज़दों को ख़ुशख़बरीयाँ दूँ। उसने मुझे भेजा है, कि मैं टूटे दिलों को दुरुस्त करूँ और क़ैदीयों के लिए रिहाई और बन्धूओं के लिए क़ैद से निकलने की मुनादी करूँ।” मत्ती 3:16 में है कि “देखो उस के लिए आस्मान खुल गया और उसने ख़ुदा की रूह को कबूतर की मानिंद उतरते और अपने ऊपर आते देखा।” आमाल 10:38 में है कि “येसू नासरी को किस तरह ख़ुदा ने रूह-उल-क़ुद्स और क़ुद्रत से ममसूह किया।”

15. पेशीनगोई वो ख़ुदा का बेटा और मूसा की मानिंद पैग़म्बर भी होगा। “ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे लिए तेरे ही दर्मियान से तेरे ही भाईयों में से मेरी मानिंद एक नबी बरपा करेगा। तुम उस की तरफ़ कान धरो।” (इस्तिस्ना 18:15) “और इस मसीह को जो तुम्हारे वास्ते मुक़र्रर हुआ है। यानी येसू को भेजना ज़रूर है कि वो आस्मान में उस वक़्त तक रहे जब तक कि वो सब चीज़ें बहाल ना की जाएं जिनका ज़िक्र ख़ुदा ने अपने पाक नबियों की ज़बानी किया है जो दुनिया के शुरू से होते आए हैं। चुनान्चे मूसा ने कहा कि ख़ुदावन्द ख़ुदा तुम्हारे भाईयों में से तुम्हारे लिए मुझसा एक नबी पैदा करेगा। जो कुछ वो तुमसे कहे उस की सुनना।” (आमाल 3:20-22)

16. पेशीनगोई वो मलक-ए-सिदक़ की तरह काहिन अबद तक काहिन है। (ज़बूर 110:4) नीज़ इब्रानियों 5:5, 6 में है कि “इसी तरह मसीह ने भी सरदार काहिन होने की बुजु़र्गी अपने तईं नहीं दी बल्कि उसी ने दी जिसने उसे कहा कि तू मेरा बेटा है आज तू मुझसे पैदा हुआ।” चुनान्चे दूसरे मुक़ाम में भी लिखा है कि तू मलक-ए-सिदक़ की तौर पर अबद तक काहिन है।

17. पेशीनगोई वो मुनादी करेगा। “ख़ुदावन्द ख़ुदा की रूह मुझ पर है क्योंकि ख़ुदावन्द ने मुझे मसह किया ताकि मुसीबत ज़दों को ख़ुशख़बरीयाँ दूँ उसने मुझे भेजा है कि मैं टूटे दिलों को तंदुरुस्त करूँ और क़ैदीयों के लिए छूटने और बंधों के लिए क़ैद से निकलने की मुनादी करूँ कि ख़ुदावन्द के साल-ए-मक़्बूल का और हमारे ख़ुदा के इंतिक़ाम के रोज़ का इश्तिहार दूँ।” (यसअयाह 61:1, 2) चुनान्चे लूक़ा की इन्जील में 4:16 से 21 तक लिखा है कि “मसीह नासरी में जहां उसने परवरिश पाई थी और आया और अपने दस्तूर के मुवाफ़िक़ सबत के दिन इबादतख़ाने में गया और यसअयाह नबी की किताब खोल कर वह मुक़ाम पढ़ कर सुनाया जहां लिखा है कि और ख़ुदावन्द का रूह मुझ पर है इसलिए कि उसने मुझे ग़रीबों को ख़ुशख़बरी देने के लिए मसह किया उसने मुझे भेजा है कि क़ैदीयों को रिहाई और अँधों को बीनाई पाने की ख़बर सुनाऊँ कुचले हुओं को आज़ाद करूँ और ख़ुदावन्द के साल मक़्बूल की मुनादी करूँ। फिर वो किताब बंद कर के और ख़ादिम को वापिस देकर बैठ गया और जितने इबादत ख़ाने में थे सबकी आँखें उस पर लगी थीं वो उनसे कहने लगा कि आज ये नविश्ता तुम्हारे सामने पूरा हुआ है।” और 42 आयत में कि “उसने उनको कहा मुझे और शहरों में भी ख़ुदा की बादशाहत की ख़ुशख़बरी सुनानी ज़रूर है कि मसीह शब व रोज़ मुनादी में मशग़ूल रहा करता था।”

18. पेशीनगोई उस की मुनादी का शुरू गलील से होगा। “लेकिन तीरगी (अंधेरा) वहां ना रहेगी। जहां आगे को उस पर पस्त (नीचा) पड़ी थी कि उसने पहले ज़बूलोन की सर-ज़मीन को और नफ़ताली की सर-ज़मीन को ज़िल्लत दी पर आख़िरी ज़माने में ग़ैर क़ौमों के गलील में दरिया की सिम्त यर्दन के पार बुजु़र्गी देगा।” ये भी मसीह के हक़ में पूरी हुई चुनान्चे मत्ती 4:12 से 16 तक में है कि, “जब उसने कहा कि यूहन्ना पकड़वा दिया गया तो गलील को रवाना हुआ और नासरत को छोड़कर कफ़र्नहूम में जा बसा जो झील के कुंए ज़बूलोन और नफ़ताली की सरहद पर है ताकि जो यसअयाह नबी की मार्फ़त कहा गया था वो पूरा हो।”

19. पेशीनगोई वो यरूशलेम में आएगा। “ऐ सिय्यून की बेटी तू निहायत ख़ुशी कर। ऐ यरूशलेम की बेटी तू ख़ूब ललकार कि देख तेरा बादशाह तुझ पास आता है वो सादिक़ है और नजात देना उस के ज़िम्मे में है वो फ़रोतन है और गधे पर बल्कि जवान गधे पर हाँ गधी के बच्चे पर सवार है।”

ये पेशीनगोई भी मसीह में पूरी हुई। चुनान्चे मत्ती 21:1 से 5 तक में है कि “और जब वो यरूशलेम के नज़्दीक पहुंचे और ज़ैतून के पहाड़ पर बैत फुगे के पास आए तो येसू ने दो शागिर्दों को ये कह कर भेजा कि अपने सामने के गांव में जाओ वहाँ पहुंचते ही एक गधी बंधी और उस के साथ बच्चा तुम्हें मिलेगा उन्हें खोल कर मेरे पास ले आओ और अगर कोई तुमसे कुछ कहे तो कहना कि ये ख़ुदावन्द को दरकार हैं वो फ़ील-फ़ौर उन्हें भेजेगा। और ये इसलिए हुआ कि नबी की मार्फ़त कहा गया था वो पूरा हो।”

20. पेशीनगोई वो हैकल में आएगा। हज्जी 2:7 में है कि “बल्कि मैं सारी क़ौमों को हिला दूंगा। और सारी क़ौमों की मर्ग़ूब (पसंदीदा) चीज़ें हाथ में आयेंगी और मैं घर को जलाल से भर दूंगा।” चुनान्चे मत्ती 21:12 में है कि और येसू ने ख़ुदा की हैकल में दाख़िल हो कर उन सबको निकाल दिया जो हैकल में ख़रीद व फ़रोख़्त कर रहे थे। और सर्राफों (मालदार, साहूकार) के तख़्त और कबूतर फ़रोशों की चौकियां उलट दीं और उनसे कहा, लिखा है कि मेरा घर दुआ का घर कहलाएगा तुम उसे डाकूओं की खोह बनाते हो।”

21. पेशनगोई यसअयाह 53:2 में है कि “वो उस के आगे कोन्पल की तरह फूट निकला है और उस जड़ की मानिंद जो ख़ुश्क ज़मीन से पनपती हो उस की डीलडौल की कुछ ख़ूबी ना थी और ना कुछ रौनक कि हम उस पर निगाह करें और कोई नुमाइश भी नहीं कि हम उस के मुश्ताक़ हों।” चुनान्चे मर्क़ुस 6:3 में है, “क्या ये वही बढ़हई नहीं जो मर्यम का बेटा है।”

लूक़ा 9:58 में है कि “येसू ने उस से कहा कि लोमड़ियों के भट्ट होते हैं मगर इब्ने-आदम के लिए सर धरने की भी जगह नहीं।” और लूक़ा 2:7 में है कि “उस को कपड़े में लपेट कर चरनी में रखा क्योंकि उनके वास्ते सराय में जगह ना थी।”

ये सब आयतें उस के इफ़्लास (ग़रीबी) (ग़ुर्बत के गवाह हैं।

22. पेशीनगोई वो हलीम और फ़रोतन होगा। यसअयाह 42:3 में है कि “वो मसले हुए सरकंडे को ना तोड़ेगा।” चुनान्चे मत्ती 12:16 में है कि “और उन्हें ताकीद की कि मुझे ज़ाहिर ना करना।”

23. पेशीनगोई वो रहीम और शफ़ीक़ होगा। यसअयाह 40:5 में है कि वो चौपान की मानिंद अपना गल्ला चराएगा वो बर्रों को अपने हाथ से फ़राहम करेगा और अपनी गोद में उठा कर ले चलेगा और उनको जो दूध पिलाती हैं आहिस्ता ले जाएगा। चुनान्चे मत्ती 14:14 में है कि “उसने निकल कर बड़ी भीड़ देखी और उसे उन पर तरस आया।” तमाम इन्जील में मसीह की रहमत और शफ़क़त का इस कस्रत से ज़िक्र है कि इस मुख़्तसर बयान में उनकी गुंजाइश नहीं है।

24. पेशीनगोई वो बे ज़िया (नुक़्सान ना पहुंचाने वाला) होगा। यसअयाह 53:9 में है कि “क्योंकि उसने किसी तरह का ज़ुल्म ना किया और उस के मुँह में हरगिज़ छल ना था।” मुक़ाबला करो। 1 पतरस 1:22 से जहाँ मर्क़ूम है कि, “ना उसने गुनाह किया और ना उस के मुँह से कोई मक्र की बात निकली।”

25. पेशीनगोई वो ग़ैरत-मंद होगा। 69 ज़बूर 9 में है कि “तेरे घर की ग़ैरत ने मुझको खा लिया और उनकी मलामतें जो तुझको मलामत करते हैं मुझ पर पड़ीं।” मुक़ाबला करो, यूहन्ना 2:17 में है कि “और उस के शागिर्दों को याद आया कि लिखा है कि तेरे घर की ग़ैरत मुझको खा जाएगी।”

26. पेशीनगोई वो तम्सीलों में मुनादी करेगा। 78 ज़बूर 2 में है कि “मैं अपना मुँह खोल के एक तम्सील कहूँगा और मैं राज़ की बातों को जो क़दीम से हैं ज़ाहिर करूँगा।” मुक़ाबला करो, मत्ती 13:34 में है कि “ये सब बातें येसू ने भीड़ से तम्सीलों में कहीं और बग़ैर तम्सील के उनसे कुछ ना कहता था।” चुनान्चे इन्जील मुक़द्दस में बहुत सी तम्सीलें ख़ुदा की मज़्कूर हैं।

27. पेशीनगोई वो मोअजिज़ा भी दिखलाएगा। यसअयाह 35:5, 6 में है कि “उस वक़्त अँधों की आँखें खोली जाएगी और बहरों के कान खोले जाएं तब लंगड़े हिरन की मानिंद चौकड़ीयां भरेंगे और गूँगे की ज़बान गाएगी क्योंकि ब्याबान में पानी और दश्त में नदियाँ फूट निकलेगी।” मुक़ाबला करो मत्ती 11:2 में है कि “और येसू ने जवाब में उनसे कहा कि जो कुछ तुम सुनते और देखते हो जा कर यूहन्ना से बयान करो कि अंधे देखते और चलते फिरते हैं कोड़ी पाक साफ़ किए जाते और बहरे सुनते हैं और मुर्दे ज़िंदा किए जाते हैं और ग़रीबों को ख़ुशख़बरी सुनाई जाती है।” और यूहन्ना 11:47 में है कि “पस सरदार काहिनों और फ़रीसियों ने सदर-ए-अदालत से लोगों को जमा कर के कहा हम करते क्या हैं ये आदमी तो बहुत मोअजिज़े दिखाता है।”

28. पेशीनगोई वो मलामत उठाएगा। 22 ज़बूर 6 में है कि “पर मैं कीड़ा हूँ ना इन्सान, आदमीयों का नंग हूँ और क़ौम की आर।” और 69 ज़बूर 7 में है कि “तेरे लिए मैंने मलामत उठाई और शर्मिंदगी ने मेरे मुँह को ढाँपा।” आयत 20 में है कि “मलामत ने मेरा दिल तोड़ा मैं बीमारी में गिरफ़्तार हूँ मैंने देखा कि कोई मुझसे हम्दर्द हो पर कोई नहीं और कोई मुझे तसल्ली दे पर ना मिला।” यसअयाह 53:3 में है कि “वो आदमीयों में निहायत ज़लील और हक़ीर था वो मर्द-ए-ग़मनाक और रंज का आश्ना हुआ लोग उस से गोया रूपोश थे उस की तहक़ीर की गई और हम ने उस की कुछ क़द्र ना जानी।” मुक़ाबला करो, रोमीयों 15:3 से “क्योंकि मसीह ने भी अपनी ख़ुशी ना की बल्कि यूं लिखा है कि तेरे लाअन तअन करने वालों के लाअन तअन मुझ पर आ पड़े।” इन्जील से ज़ाहिर है कि मसीह ने बड़ी सख़्त मलामत उठाई और जिसमें उस की शौकत और जलाल का राज़ था, कि ज़िल्लत का मगर इस के समझने के लिए मग़ज़ (दिमाग़, अक़्ल) दर कार है।

29. पेशीनगोई भाई भी इस को तर्क करेंगे। 69 ज़बूर 8 में है कि “मैं अपने भाईयों के नज़्दीक परदेसी बना और अपनी माँ के फ़रज़न्दों के बीच अजनबी ठहरा।” मुक़ाबला करो, यूहन्ना 1:11 से “और वो अपने घर आया और उस के अपनों ने उसे क़ुबूल ना किया। इसी इन्जील के 7:5 में है, “क्योंकि उस के भाई भी उस पर ईमान ना लाए थे।

30. पेशीनगोई वो ठोकर का पत्थर होगा। यसअयाह 8:14 में है कि “वो तुम्हारे लिए एक मुक़द्दस होगा पर इस्राईल के घरानों के लिए निकर (कोने) का पत्थर और ठोकर खाने की चट्टान और यरूशलेम के बाशिंदों के लिए फंदा और दाम होगा।” मुक़ाबला करो, रोमीयों 9:32 में है, “उन्होंने इस ठोकर खाने के पत्थर से ठोकर खाई।” 1 पतरस 2:8 में है, “और ठेस लगने का पत्थर और ठोकर खाने की चट्टान हुआ क्योंकि वो नाफ़र्मान हो कर कलाम से ठोकर खाते हैं और इसी के लिए मुक़र्रर भी हुए थे।”

31. पेशीनगोई वो इस से अदावत करेंगे। 69 ज़बूर 4 में है कि “वो जो बेसबब मेरा कीना रखते हैं शुमार में मेरे सर के बालों से ज़्यादा हैं वो जो मुझे हलाक करना चाहते हैं और नाहक़ मेरे दुश्मन हैं ज़बरदस्त हैं जो कुछ कि मैंने नहीं छीना सो मैं फेरदूंगा। मुक़ाबला करो, यूहन्ना 15:24, 25 से, “अगर मैं उनमें वो काम ना करता जो किसी दूसरे ने नहीं किए तो वो गुनेहगार ना ठहरते मगर अब तो उन्होंने मुझे और मेरे बाप दोनों को देखा और दोनों से अदावत की लेकिन ये इसलिए हुआ कि वो क़ौल पूरा हो जो उनकी शरीअत में लिखा है कि उन्होंने मुझसे मुफ़्त अदावत की।”

32. पेशीनगोई उस को यहूदीयों के बुज़ुर्ग रद्द करेंगे। 118 ज़बूर 22 में है कि “वो पत्थर जिसे मुअम्मारों ने रद्द किया कोने का सिरा हुआ। चुनान्चे चुनान्चे मत्ती 20 में है कि “येसू ने उन से कहा क्या तुमने किताब-ए-मुक़द्दस में कभी नहीं पढ़ा कि जिस पत्थर को मुअम्मारों ने रद्द किया वही कोने का पत्थर हो गया।”

33. पेशीनगोई यहूदी और ग़ैर-क़ौम भी उस के बरख़िलाफ़ इत्तिफ़ाक़ करेंगे। 2 ज़बूर 2 आयत में है कि “ज़मीन के बादशाह सामना करते हैं और सरदार आपस में ख़ुदावन्द के और उस के मसीह के मुख़ालिफ़ मंसूबे बाँधते हैं।” चुनान्चे लूक़ा 23:2 में है कि और “इसी दिन हेरोदेस और पिलातूस आपस में दोस्त हो गए क्योंकि पहले उनमें दुश्मनी थी। और आमाल 4:27 में है कि “क्योंकि वाक़ई तेरे पाक ख़ादिम येसू के बरख़िलाफ़ जिसे तू ने मसह किया हेरोदेस और पिंतुस पीलातूस ग़ैर क़ौमों और इस्राईलियों के साथ इसी शहर में जमा हुए।”

34. पेशीनगोई उस का एक दोस्त उस को फ़रेब देगा। 41 ज़बूर में है कि “मेरे हम दम ने भी जिस पर मुझे भरोसा था और जो मेरे साथ रोटी खाता था मुझ पर लात उठाई।” मुक़ाबला करो, यूहन्ना 13:21 “से तुम में एक शख़्स मुझ पकड़वाएगा।” यहूदा ने उसे पकड़वा दिया।

35. पेशीनगोई उस के शागिर्द भी उसे छोड़ देंगे। ज़करीयाह 13:7 में है कि गल्ला परागंदा हो जाये। मुक़ाबला करो, मत्ती 26:31 से “तुम सब इसी रात मेरी बाबत ठोकर खाओगे।”

36. पेशीनगोई वो तीस रूपयों की क़ीमत पर फ़रोख़्त होगा। ज़करीयाह 11:12 में है कि “और उन्होंने मेरे मोल की बाबत तीस रूपये तौल कर दिए।” मुक़ाबला करो मत्ती 26:15 से “उन्होंने उसे तीस रूपये तौल कर दिए।”

37. पेशीनगोई इन रूपयों से कुम्हार का खेत मोल लिया जाएगा। ज़करीयाह 11:13 में है कि “और ख़ुदावन्द ने मुझे हुक्म दिया कि उसे कुम्हार पास फेंक दे उस अच्छी क़ीमत को जो उन्होंने मेरी ठहराई थी।” मुक़ाबला करो मत्ती 27:6, 7 से “तब उन्होंने सलाह कर के इन रूपयों से कुम्हार का खेत परदेसीयों के दफ़न करने के लिए ख़रीदा।”

38. पेशीनगोई वो औरों के दुख आप उठाएगा। यसअयाह 53:4 “यक़ीनन उसने हमारी मशक़्क़तें उठालीं और हमारे ग़मों का बोझ अपने ऊपर चढ़ाया।” दानयाल 9:26 में है कि मसीह औरों के लिए मारा जाएगा ना अपने लिए। चुनान्चे मत्ती 20:28, में है कि “और अपनी जान बहुतेरों के फ़िद्या में दे।”

39. पेशीनगोई वो बड़ा साबिर होगा। यसअयाह 53:7 “वो तो निहायत सताया गया और ग़म-ज़दा हुआ तो भी उसने अपना मुँह ना खोला।” चुनान्चे मत्ती 27:12 में है कि “उसने कुछ जवाब ना दिया।” आयत 14 में है कि “एक बात का जवाब ना दिया।”

40. पेशीनगोई उस के मुँह पर छड़ी मारेंगे। मीकाह 5:1 में है कि “उन्होंने इस्राईल के हाकिम के गाल पर छड़ी मारी है।” चुनान्चे मत्ती 27:30 में है कि “उस पर थूका और वही सरकंडा ले कर उस के सर पर मारने लगे।”

41. पेशीनगोई उस की शक्ल बिगाड़ी जाएगी। यसअयाह 52:14 में है कि “उस की पैकर (शक्ल) बनी-आदम से ज़्यादा बिगड़ गई।” चुनान्चे यूहन्ना 19:5 में है कि “येसू कांटों का ताज रखे और अर्ग़वानी पोशाक पहने बाहर आया और पीलातूस ने उनसे कहा देखो ये आदमी।”

42. पेशीनगोई उस के हाथ पांव में मेख़ें (कील) गाड़ी जाएँगी। 22 ज़बूर 16 में है कि “उन्होंने मेरे हाथ और पांव छेदे।” चुनान्चे यूहन्ना 20:27 में है कि “अपनी उंगली पास ला कर मेरे हाथों को देख।”

43. पेशीनगोई उस को ख़ुदा थोड़ी देर के लिए अदालत पूरी करने की ख़ातिर छोड़ देगा। 22 ज़बूर में है, कि “मसीह ने चिल्ला के कहा ऐ मेरे ख़ुदा ऐ मेरे ख़ुदा तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया है।”

44. पेशीनगोई उस को सिरका पिलाया जाएगा। 69 ज़बूर 21 में है कि “उन्होंने मुझे खाने के एवज़ पित दिया और मेरी प्यास बुझाने को सिरका पिलाया।” मत्ती 27:34 में है कि “पित मिला हुआ सिरका उसे पीने को दिया।”

45. पेशीनगोई उस के कपड़े बाँटे जाऐंगे। 22 ज़बूर 18 में है कि “वो मेरे कपड़े आपस में बाँटते हैं और मेरे लिबास पर क़ुरआ डालते हैं।” मत्ती 27:35 में है कि “और उस के कपड़े क़ुरआ डाल कर बांट लिए।”

46. पेशीनगोई वो गुनेहगारों में शुमार होगा। यसअयाह 53:12 में है कि “वो गुनेहगारों के दर्मियान शुमार किया गया।” मर्क़ुस 15:27 में है कि “और उन्होंने उस के साथ दो डाकू एक उस की दाहिनी और एक उस की बाएं तरफ़ सलीब पर चढ़ाए।”

47. पेशीनगोई वो अपने क़ातिलों की सिफ़ारिश करेगा। यसअयाह 53:12 में है कि “उसने गुनेहगारों की शफ़ाअत की।” लूक़ा 22:34 में है कि “येसू ने कहा ऐ बाप इनको माफ़ कर क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या करते हैं।”

48. पेशीनगोई उस की हड्डी तोड़ी ना जाएगी। ख़ुरूज 12:46 में है कि “उस की हड्डी ना तोड़ी जाये।” 34 ज़बूर 20 में है कि “वो उस की सारी हड्डीयों का निगहबान है।” यूहन्ना 19:33 में है कि “उस की पिसली छेदी और फ़ील-फ़ौर उस से ख़ून और पानी बह निकला।” ये एक ऐसी अजीब बात है जिसकी तश्रीह के लिए ये किताब काफ़ी नहीं है आयत 36 में है कि “ये बातें इसलिए हुईं कि नविश्ता पूरा हो कि उस की कोई हड्डी ना तोड़ी जाएगी।”

49. पेशीनगोई कि “वो दौलतमंदों शुमार किया जाएगा। यसअयाह 53:9 में है कि “पर अपने मरने के बाद दौलतमंदों के साथ वो हुआ।” मत्ती 27:60 में है कि “और अपनी नई क़ब्र में रख दिया जो उसने चट्टानों में खुदवाई थी।”

50. पेशीनगोई वो फिर जी उठेगा। 16 ज़बूर 10 में है कि “तू अपने क़ुद्दूस को सड़ने ना देगा।” लूक़ा 24:6 में है कि “वो यहां नहीं है बल्कि जी उठा है।”

51. पेशीनगोई वो आस्मान पर चढ़ जाएगा। 68 ज़बूर 18 में है कि “तू ऊँचे पर चढ़ा।” लूक़ा 24:51 में है कि “उनसे जुदा हुआ और आस्मान पर उठाया गया।”

52. पेशीनगोई वो ख़ुदा के दहने जा बैठेगा। 110 ज़बूर में है कि “तू मेरे दहने हाथ बैठ।” इब्रानियों 1:3 में है कि “और ख़ुदा तआला के दहने जा बैठा।”

53. पेशीनगोई आस्मान पर जा कर कहानत करेगा। ज़क्रयाह 6:13 में है कि “वो अपनी कुर्सी पर काहिन होगा।” रोमियों 8:24 में है कि “ख़ुदा की दाहिनी तरफ़ है और हमारी शफ़ाअत भी करता है।”

54. पेशीनगोई ग़ैर-अक़्वाम उस की तरफ़ रुजू करेंगे। यसअयाह 11:1 में है कि “जो क़ौमों के लिए झंडे की तरह खड़ी होगी।” मत्ती 12:21 में है कि “और उस के नाम से ग़ैर कौमें उम्मीद रखेंगी।” इस तरह की दूसरी आमद के मुताल्लिक़ भी बहुत सी पेशीन गोईयाँ हैं जिनको बख़ोफ़ तवालत हम-नज़र अंदाज़ करते हैं। जब कि इस क़द्र पेशीन गोईयाँ आप पर सादिक़ आ गई हैं तो और वाक़ियात भी जो आपके मुताल्लिक़ हैं बिल-ज़रूर आप पर सादिक़ आयेंगी। हमने इस बयान में निहायत इख्तिसार (ख़ुलासा) से काम लिया है ताहम मुसलमानों को इस मुक़ाम पर बहुत ग़ौर व ख़ौज़ करना लाज़िमी अम्र है ता कि जिस धोके में वो मुब्तला हैं उस से रिहाई हासिल करें।

रिसाला पंजुम (5)
ख़ुदावन्द मसीह के मोअजज़ात के बयान में

दूसरी दलील (वजह, सबूत) ख़ुदावन्द की सदाक़त (सच्चाई) पर ये है कि आपने ऐसे ऐसे मोअजज़ात दिखलाए कि तावक़्ते के कोई शख़्स मिन-जानिब अल्लाह ना हो हरगिज़ नहीं दिखा सकता है। अगरचे दीगर अदयान (दीन की जमा) में भी बकस्रत ऐसे लोग मौजूद हैं जो अपने अपने हादियों के मुताल्लिक़ कुछ इस क़िस्म का दावा करते हैं और कहते हैं कि हमारे बुज़ुर्गों ने भी ये कुछ किया मगर उनके बयानात मेयार-ए-सदाक़त से कोसों दूर हैं। इसलिए कि मोअजज़ात की सदाक़त या वक़ूअ के लिए जिन शराइत की ज़रूरत है वो शराइत उनमें बिल्कुल मफ़्क़ूद (ग़ायब) हैं चुनान्चे हम इन शराइत में से चंद बतौर इख़्तिसार ज़ेल में लिखते हैं ताकि हर एक शख़्स को सच्चे व झूटे मोअजज़ात के पहचानने में सहूलत हो।

शर्त अव़्वल : ये कि वक़ूअ मोअजज़ात पर गवाही देने वाले अश्ख़ास मोअतबर हों यानी दीनदार ख़ुदा परस्त, ख़ुदा-तरस बेतास्सुब दीन के लिए जान पर खेलने वाले हों। ज़र दोस्त ख़ुशामदी ऐश व इशरत के तालिब, ग़र्ज़मंद ना हों। अगर आप ख़ुदावन्द के मोअजज़ात पर गवाही देने वाले अश्ख़ास की ज़िंदगी पर ग़ौर करें। तो आप पर ज़ाहिर हो जाएगा कि दीनदारी परहेज़गारी, रास्त-गोई और ख़ुदा तरसी में वो अपनी नज़ीर (मिसाल) आप ही थे। दीन के मुआमले में वो जान पर खेलने वाले और दुनियावी अग़राज़ की तरफ़ से बिल्कुल बेनियाज़ (लापर्वाह) थे।

शर्त दोम : ये कि चश्मदीद गवाह हों ना मुसलमान मुहद्दिसीन (हदीस के जानने वाले) की तरह जो दूसरी तीसरी पुश्त में सुनी सुनाई बे-ठिकाना बातों का ज़िक्र करें।

शर्त सोइम : ये कि वो मोअजज़ात जो चश्मदीद शख्सों के ज़रीये बयान हों उनकी शौहरत उसी वक़्त हुई हो जब कि उन वाक़ियात के देखने वाले बहुत लोग मौजूद हों। चुनान्चे हमारे ख़ुदावन्द के मोअजज़ात जो इंजीलों में मज़्कूर हैं उसी वक़्त मुश्तहिर (मशहूरी करना) हुए जब कि सदहा मर्द व ज़न मसीह के देखने वाले मौजूद थे। और किसी ने भी उनका इन्कार नहीं किया। मुख़ालिफ़ीन में से किसी ने कुछ एतराज़ किया तो ये कि बाअल ज़बूल के ज़रीये से करता है। जिनसे इक़रार साबित होता है। आँहज़रत के मोअजज़ात उस वक़्त मशहूर हुए जब कि मुस्लिम व बुख़ारी वग़ैरह मुहद्दिस (हदीस लिखने वाले) पैदा हुए या मौलवी जामी ने पैदा हो के मुल्क फ़ारस में शवाहिद-उल-नबुवह लिखी ख़ुद आँहज़रत के अहद में कोई मोअजिज़ा क़ुरआन में मज़्कूर हो कर मशहूर नहीं हुआ अलबत्ता आँहज़रत के अहद में फ़साहत के मोअजिज़ा कामिल मजानिसा सूरह ग़लतफ़हमी पर मबनी था क्योंकि अगर क़ुरआन फ़सीह भी हो तो भी फ़साहत मोअजिज़ा नहीं हो सकता क्योंकि ख़ुद आँहज़रत ने क़ुरआन में मोअजिज़ों का इन्कार किया है लिहाज़ा वो सब मोअजज़ात भी जो हदीस में मज़्कूर हैं ग़लत साबित होते हैं क्योंकि उनका तवातर (सिलसिला, तसलसुल) ना रहा। बख़िलाफ़ बाइबल के मोअजिज़ों के कि उनकी मानिंद कोई अहले मज़्हब अपने मज़्हब के मोअजज़ात का तवात्तुर नहीं दे सकता।

शर्त चहारुम : ये कि इन गवाहों की तक़ारीर मुबालग़ा (बढ़ा चढ़ा कर) और रंग आमेज़ी (ज़ाहिरी ख़ूबसूरती) से बिल्कुल ख़ाली हों बल्कि उनके बयानात वाक़ियात पर मबनी हों जैसा कि मुसलमान मुहद्दिसीन के मुबालग़े और हवारियों (शागिर्दों) की बेरिया (मुख्लिसाना) गुफ़्तगु से ज़ाहिर है।

शर्त पंजुम : ये कि जिस शख़्स की निस्बत मोअजज़ात का दावा है वो शख़्स अपने चाल चलन और अपनी ताअलीम से भी मिन-जानिब अल्लाह होना साबित करे तब तो उस के मोअजज़ात ख़ुदा की तरफ़ से ख़याल किए जा सकते हैं वर्ना शोबदे-बाज़ी (जादू के मुताल्लिक़ हुनर) और फ़रेब होगा। पस शराइत बाला को मद्द-ए-नज़र रखकर अगर आप बाइबल के मोअजज़ात की जांच पड़ताल कर लें तो आप पर रोज़े रोशन की तरह ज़ाहिर होगा कि बाइबल का हर एक मोअजिज़ा ख़ुदा की तरफ़ से है। अब देखना ये है कि मसीह के मोअजज़ात वो इस मज़्हब की सदाक़त के सबूत दूसरी दलील हैं। किस क़द्र और क्या-क्या हैं। पहले अम्र की निस्बत कि मसीह ने किस क़द्र मोअजज़ात दिखलाएइ यूहन्ना 20:3 में है कि “और येसू ने और बहुत से मोअजिज़े शागिर्दों के सामने दिखाए जो इस किताब में लिखे नहीं गए।” इस आयत से कस्रत-ए-मोअजज़ात ज़ाहिर है लेकिन हम उन बाअज़ मोअजज़ात की फ़ेहरिस्त जिनका ज़िक्र कलाम-अल्लाह में है बयान करते हैं। ताकि नाज़रीन उन पर ग़ौर करें।

(1) पहला मोअजिज़ा मसीह ने पानी को मेय बना दिया। यूहन्ना 2:6 से 11 वहां पत्थर के छः मटके यहूदीयों की तहारत (सफ़ाई) के लिए रखे हुए थे। और हर एक में दो या तीन मन की गुंजाइश थी येसू ने उनसे कहा मटकों में पानी भर दो उन्हों ने उन को लबालब भर दिया। और फिर येसू ने कहा अब निकालो और मीर मज्लिस (महफ़िल का सरबराह) के पास ले जाओ और वो ले गए जब मीर मज्लिस ने वो पानी जो अंगूरी मेय बन गया था चखा तब दुल्हे को बुलाया और कहा हर आदमी पहले अच्छी मेय देता है और नाक़िस उस वक़्त जब पी चुकते हैं लेकिन तू ने अच्छी मेय अब तक रख छोड़ी है ये इसलिए कहा कि उस को मालूम ना था कि ये मसीह के मोअजिज़े का असर है।

(2) दूसरा मोअजिज़ा (यूहन्ना 4:46 से 53) येसू फिर काना-ए-गलील में जहां उसने पानी को अंगूरी मेय बना दिया था आया और बादशाह का कोई मुलाज़िम जिसका बेटा कफरनहूम में बीमार था सुनकर कि येसू यहूदिया से गलील में आया है उस के पास गया और उस की मिन्नत की कि आकर उस के बेटे को अच्छा करे क्योंकि वो क़रीब उल-मर्ग (मरने को) था तब येसू ने उस कहा जा तेरा बेटा जीता है। चुनान्चे उसी वक़्त उस लड़के को आराम हो गया।

(3) तीसरा मोअजिज़ा (मत्ती 8:5 से 13) जब येसू कफरनहूम में दाख़िल हुआ तो एक सूबेदार उस के पास आया और उस की मिन्नत करके कहा, ऐ ख़ुदावन्द मेरा लड़का फ़ालिज का मारा घर में पड़ा है और निहायत तक्लीफ़ में है। येसू ने उसे कहा मैं आके उसे अच्छा करूँगा चुनान्चे उसी घड़ी उस का लड़का चंगा हो गया।

(4) चौथा मोअजिज़ा (लूक़ा 5:4 से 6) जब मसीह कलाम करने से फ़ारिग़ हुआ तो शमऊन को कहा गहरे में जाल डाल दो। शमऊन ने कहा, ऐ उस्ताद हमने सारी रात मेहनत की लेकिन कुछ ना पकड़ सके लेकिन तेरे कहने से जाल डालता हूँ और जब उन्होंने ये किया तो मछलीयों का बड़ा ग़ोल उनके जाल में फंस गया। यूहन्ना 21:6 में है कि उस ने उन्हें कहा कश्ती की दाहिनी तरफ़ जाल डालो तो पकड़ोगे। पस उन्होंने डाला और मछलीयों की कस्रत से फिर खींच ना सके।

(5) पांचवां मोअजिज़ा (मत्ती 8:28 से 34) और जब मसीह उस पार गदरीनियों के मुल्क में आया दो दीवाने उसे मिले जो क़ब्रों से निकलते थे। और चिल्ला के कहा ऐ येसू ख़ुदा के बेटे हमें तुझसे क्या काम क्या तू यहां इसलिए आया है, कि वक़्त से पहले हमें हलाक करे तू हमें सूअरों के ग़ोल में भेज उसने उन्हें कहा जाओ और वो निकल के सूअरों के ग़ोल में दाख़िल हो गए और सूअरों का ग़ोल कड़ाड़े पर से दरिया में कूदा और पानी में हलाक हुआ और चराने वाले भागे और शहर में जा के सब माजरा और दीवानों का अहवाल बयान किया। और 9:22, 33 में है कि लोग इस माजरे को देखकर एक गूँगा दीवाना उस के पास लाए और जब बदरूह निकाली गई तो गूँगा बोलने लगा और लोगों ने ताज्जुब कर के कहा ऐसा कभी इस्राईल में ना हुआ था। और 15:22 से 28 में है कि एक कनआनी औरत की लड़की को अच्छा किया। मुहम्मद साहब ने कभी नापाक रूहों को नहीं निकाला बल्कि नापाक रूहों ने बइकरार क़ुरआन उन पर असर किया जैसा कि मऊज़तैन (सूरह फलक़ और नास) में ज़िक्र है।

(6) छटा मोअजिज़ा (मत्ती 8:14-15) येसू ने पतरस के घर में आ के देखा कि उस की सास तप में पड़ी है उसने उस का हाथ छुआ तप उतर गई और वो उठ के उस की ख़िदमत करने लगी।

(7) सातवां मोअजिज़ा (मत्ती 8:2) में है कि येसू ने एक कौड़ी को अच्छा किया।

(8) आठवां मोअजिज़ा (लूक़ा 5:17, 26) एक मफ़लूज को चार आदमी उठा कर उस के पास लाए लेकिन भीड़ के सबब नज़्दीक ना आ सकते थे तब छत को तोड़ कर मफ़लूज को उस के सामने लटकाया ईसा ने उनका ईमान देखकर कहा ऐ फ़र्ज़न्द तेरे गुनाह माफ़ हुए मैं तुझे कहता हूँ उठ अपना खटोला उठा और अपने घर चला जा वो फ़ौरन उठा और अपना खटोला उठा कर सब के सामने निकल गया।

(9) नौवां मोअजिज़ा (मत्ती 12:10 से 13) वहां एक आदमी था जिसका हाथ सूख गया था और मसीह ने उस के हाथ को अच्छा किया।

(10) दसवां मोअजिज़ा (यूहन्ना 5:5 से 9) वहां एक आदमी था जो अड़तीस बरस बीमार था जब येसू ने उस को पड़ा हुआ देखा तो उसे कहा, क्या तू चाहता है कि अच्छा हो जाये बीमार ने जवाब दिया, ऐ ख़ुदावन्द मेरे पास कोई आदमी नहीं है कि जब पानी हिले मुझे हौज़ में डाल दे और जब तक मैं आऊँ दूसरा मुझसे पहले उतरता है ईसा ने उसे कहा, उठ अपना खटोला उठा कर चला जा उसी वक़्त वो आदमी अच्छा हुआ और अपना खटोला उठा कर चला गया। और वो सबत का दिन था।

(11) ग्यारवाँ मोअजिज़ा (मत्ती 9:18, 19, 23, 25) मसीह ने एक सरदार की मरी हुई लड़की को ज़िंदा किया।

और लूक़ा 7:12 से 15 में लिखा है कि मसीह ने नाईन शहर के फाटक पर एक बेवा औरत के बेटे का जनाज़ा देखा और रहम कर के कहा ऐ जवान मैं तुझे कहता हूँ उठ और वो मुर्दा उठ बैठा और बोलने लगा। और यूहन्ना 11:11 से 44 में लिखा है कि एक शख़्स लाज़र नाम का जो चार दिन तक मर कर गुर (क़ब्र) में रहा था ज़िंदा किया।

(12) बाहरवां मोअजिज़ा (मत्ती 9:27 से 30) जब मसीह घर में पहुंचा तो दो अंधे उस के पास आए और येसू ने कहा क्या तुम्हें एतिक़ाद है कि मैं ये कर सकता हूँ वो बोले हाँ ऐ ख़ुदावन्द तब उसने उनकी आँखों को छुवा और कहा कि तुम्हारे ईमान के मुवाफ़िक़ तुम्हारे लिए हो और उनकी आँखें खुल गईं। और मर्क़ुस 8:22 से 25 में लिखा है कि उसने एक अंधे को आँखें दीं। और यूहन्ना 9:1 से 7 में लिखा है कि उसने एक जन्म के अंधे को आँखें दी।

(13) इस के सिवा बहरे गूंगों को भी अच्छा किया जिनका ज़िक्र मर्क़ुस 7:22 से 35 तक मौजूद है।

(14) चौहदवां मोअजिज़ा (मत्ती 14:15 से 21) में लिखा है कि उसने पाँच रोटी और दो मछलीयों से औरतों और बच्चों के सिवा पाँच हज़ार मर्दों का पेट भर दिया और टुकड़ों की बारह टोकरीयां बच रहीं। और 15:32 से 38 में लिखा है कि सात रोटियों और कई छोटी मछलीयों से औरतों और बच्चों के सिवा चार हज़ार मर्दों का पेट भर दिया। और बचे हुए टुकड़ों की सात टोकरीयां भरी उठाई।

(15) मोअजिज़ा (मत्ती 14:25 से 27) और रात के चौथे पहर येसू दरिया पर चलता हुआ उनके पास आया।

(16) मोअजिज़ा (मत्ती 14:29) मसीह ने उसे कहा और पतरस नाव (कश्ती) से उतर कर पानी पर चलने लगा कि येसू के पास आए।

(17) मोअजिज़ा (मत्ती 8:23 से 26) दरिया में एक ऐसी आंधी आई कि नाव लहरों में छिप गई और मसीह सोता था तब उस ने उठ के हवा और दरिया को डाँटा और बड़ा चैन हो गया और लोगों ने ताज्जुब किया और कहा ये कैसा आदमी है कि हवा और दरिया भी इस की मानते हैं।

(18) मोअजिज़ा (मत्ती 17:27) मसीह ने पतरस से कहा तू दरिया पर जा के बंसी डाल जो मछली पहले निकले उसे ले और उस का मुँह खोल तो एक सिक्का पाएगा। उसे लेकर मेरे और अपने वास्ते उन्हें दे।

(19) मोअजिज़ा (लूक़ा 12:11 से 13) एक कुबड़ी औरत को जो अठारह बरस से कुबड़ी थी अच्छा किया।

(20) मोअजिज़ा (लूक़ा 14:2 से 4) एक जलिन्द्र (पेट में पानी पड़ने का मर्ज़) के मरीज़ को अच्छा किया।

(21) मोअजिज़ा (मत्ती 21:19) एक इंजीर के दरख़्त को जो बज़ाहिर सरसब्ज़ था लेकिन दरहक़ीक़त उस में एक भी इंजीर ना था। सूखा दिया ताकि रियाकारों और धोके बाज़ों को इबरत (सबक़) हासिल हो।

(22) मोअजिज़ा (लूक़ा 22 बाब 50-51 आयत) सरदार काहिन के मुलाज़िम के कान को जिसको पतरस ने काट दिया था दुबारा अच्छा किया।

(23) मोअजिज़ा (मत्ती 4:23, 24) येसू तमाम गलील में फिरता और लोगों के सारे दुख दर्दों को दफ़ाअ करता था। जिससे उस की शौहरत तमाम एतराफ़ में फैल गई और सब बीमारों को जो तरह-तरह की बीमारीयों में गिरफ़्तार थे। और बद-रूहों और मिर्ग़ीयों और मफ़लूजों को जो उस के पास लाए गए थे। अच्छा किया और 15-30, में है कि और बड़ी भीड़ लंगड़ों अँधों गूंगों टून्डों और बहुत औरों को अपने साथ लेकर उस के पास आई और उन्हें येसू के पांव पर डाला और उसने अच्छा किया।

(24) मोअजिज़ा (यूहन्ना 20:19) शाम के वक़्त जब दरवाज़े चारों तरफ़ से बंद थे। मसीह उनके बीच में ज़ाहिर हुआ और कहा अस्सलामु अलैकुम यानी तुम पर सलाम हो।

(25) मोअजिज़ा (लूक़ा 23:6) मसीह मर कर दफ़न हुआ। और फिर ज़िंदा बाहर निकला।

(26) मोअजिज़ा (आमाल 1:9) और वो कह के उनके देखते हुए आस्मान पर उठा लिया और बदली ने उस को उनकी नज़रों से छिपा लिया।

इनके इलावा और बहुत से ऐसे मोअजज़ात हैं जिनसे ख़ुदा की क़ुद्रत अज़मत और शान ज़ाहिर होती है मगर बख़ोफ़ तवालत हम उनकी नक़्ल करने से माज़ूर हैं।

अनाजील के मुतालआ करने से जो अजीब बात मालूम होती है, वो ये है कि मोअजज़ात का सिलसिला ख़ुद ख़ुदावन्द की ज़ात पर ख़त्म नहीं होता है बल्कि आपके शागिर्द और शागिर्दों के शागिर्दों से ऐसे मोअजज़ात सरज़द हुए हैं जिनको पढ़ कर इस अम्र का यक़ीन हो जाता है, कि हज़रत मसीह ना सिर्फ मोअजिज़ा करने वाले थे। बल्कि मोअजिज़ों की क़ुव्वत और इक़्तिदार बख़्शने वाले थे। चुनान्चे मसीह के शागिर्दों की निस्बत मत्ती 10:1 में है कि और उसने अपने बारह शागिर्दों को पास बुला कर उन्हें नापाक रूहों पर इख़्तियार बख़्शा ताकि उनको निकालें। और हर तरह की बीमारी और दुख दर्द को दूर करें। फिर आयत 8 में है मसीह ने शागिर्दों को कहा बीमारों को अच्छा करो मुर्दों को ज़िंदा करो कोढ़ीयों को साफ़ करो बद-रूहों को निकालो तुमने मुफ़्त पाया मुफ़्त दो। चुनान्चे मर्क़ुस 16:20 में है कि और वो बाहर जाके हर जगह मुनादी करने लगे। और ख़ुदावन्द उनकी मदद करता और कलाम को मोअजिज़ों के वसीले जो उस के हमराह थे। साबित करता था। आमाल 2:43 में है कि और बहुत सी करामातें और निशानीयां रसूलों से ज़ाहिर हुईं। आमाल 2:4 में है कि वो सब रूह-उल-क़ुद्स से भर गए और ग़ैर-ज़बानें बोलने लगे। ये मसीह का कैसा बड़ा मोअजिज़ा है जो हवारियों के वसीले से ज़ाहिर हुआ कि अनपढ़ लोग आनन फ़ानन हर ज़बान बोलने लगे और ये इशारा था इस अम्र की तरफ़ कि ख़ुदा का कलाम हर मुल्क के लोगों को सुनाया जाये और हर वो शख़्स जो ईमान लाए नजात पाए आँहज़रत अपने आपको सब जहान की तरफ़ एक आख़िरी रसूल बतलाते थे। मगर उनको फ़ारसी ज़बान भी बोलनी ना आई और सलमान फ़ारसी से ख़त वग़ैरह का तर्जुमा करवाया कर करते थे।

आमाल 3:1 से 11 तक लिखा है कि पत्रस और यूहन्ना जब हैकल में गए तो उन्होंने एक जन्म के लंगड़े को कहा कि येसू मसीह नासरी के नाम से उठ और चल और उस का दहना हाथ पकड़ कर उठाया फ़ौरन उस के टख़ने मज़्बूत हुए और वो कूद के खड़ा हुआ और चलने लगा। (आमाल 5:1 से 12) में लिखा है कि एक शख़्स हननियाह और उस की जोरु सफ़ीरा ने रसूलों से झूट बोला और पतरस की बददुआ से फ़ौरन मर गए और आयत 10 से 20 लिखा है, कि मर्द और औरतें गिरोह के गिरोह ख़ुदावन्द पर ईमान ला के उनमें शामिल होते थे। यहां तक कि लोग बीमारों को सड़कों में चार पाइयों और खटोलों पर रखते थे, ताकि जब पतरस आए उस का साया ही उनमें से किसी पर पड़ जाये इसलिए सरदार काहिन और उसके साथी ग़ज़ब से भर गए। और रसूलों को क़ैद ख़ाने आम में डाल दिया लेकिन ख़ुदा के फ़रिश्ते ने रात को क़ैदख़ाने का दरवाज़ा खोला और उन्हें बाहर ला के कहा जाओ और हैकल में खड़े हो के इस ज़िंदगी की कलाम की बातें सुनाओ और ये कितना बड़ा मोअजिज़ा है कि वही हवारी जो बुज़दिली में ज़रब-उल-मसल (कहावत की तरह मशहूर होना) थे। और जिन्हों ने जान के ख़ौफ़ से मसीह का इन्कार किया अब मसीह से ताक़त पा कर उलमा और यहूद और हाकिमों के सामने जाँनिसारी के साथ बह्स कर रहे हैं और सारी मुसीबतों की बर्दाश्त करने में बेहद मज़्बूत हो गए हैं और आमाल 8:4 से 13 में लिखा है, फिलिप्पुस ने सामरिया के एक शहर में बहुत से मोअजिज़े दिखलाए और बहुत लोग मसीही हो गए और 9 बाब से ज़ाहिर है कि पौलुस रसूल पर किस तरह ख़ुदावन्द दमिश्क़ के नज़्दीक ज़ाहिर हुआ और क्योंकर उस का दिल तब्दील हुआ। फिर आमाल 12:11 में है कि पौलुस के मोअजिज़े से एलीमास जादू-गर फ़ौरन अंधा हो गया और 14:10 में है कि उसने लंगड़े को चलने की ताक़त दी आमाल 16:18 में है कि उसने मसीह के नाम से नापाक रूह को निकाला आमाल 19:1 में है कि ख़ुदा पौलुस के हाथ से बड़े मोअजिज़े दिखलाता था। 20:10 में है कि उसने मसीही क़ुद्रत से युतिखुस मुर्दा को जिलाया। (जिंदा किया) आमाल 28:5 में है कि उस को काले साँप ने ज़रर ना पहुंचाया। और आयत 8 में है कि पब्लेस का बाप उस के हाथ रखने से दुरुस्त हो गया। और 3:7 में है कि पतरस की मार्फ़त एक लंगड़े की टांगें दुरुस्त हो गईं। इस के सिवा रसूलों के और बहुत से मोअजज़ात आमाल की किताब में मज़्कूर हैं जिससे मसीह की फ़ैज़ सानी साबित है पस अब अगर आप मसीह के मोअजज़ात को आँहज़रत के मोअजज़ात के साथ दियानतदारी के साथ मुक़ाबला करें तो आप पर वाज़ेह हो जाएगा, कि मसीह के जितने मोअजिज़े हैं वो सब हक़ीक़ी और मबनी बर सदाक़त हैं। बरअक्स इस के आँहज़रत के जितने मोअजिज़े हैं वो सब मन घड़त और दूर अज़ हैं।

रिसाला शश्म (6)
हज़रत मसीह की बहुत सी पेशीन गोइयों में से 14 पेशीन गोइयों को ज़िक्र

तीसरी दलील उस की सदाक़त पर ये है कि हमारा ख़ुदावन्द येसू मसीह सादिक़ुल-क़ौल और अपने बयान में हर तरह से सच्चा है। अगरचे वो वाक़ियात जो उस की सादिक़ुल-क़ौली को मुख़्तलिफ़ सूरतों में ज़ाहिर करते हैं इन्जील शरीफ़ में बकस्रत पाए जाते हैं लेकिन हम सिर्फ उन वाक़ियात को हद्या नाज़रीन करते हैँ जिनका ताल्लुक़ पेशीन गोइयों के साथ है। जिनमें से कुछ पूरे हो गए हैं और कुछ पूरे हो रहे हैं जिससे उनका आलिमुल-गै़ब होना साबित होता है। इन पेशीन गोइयों के देखने से साफ़ तौर पर ये नतीजा निकल सकता है कि जिस तरह वो पूरी शूदा पेशीन गोइयों में सच्चा निकला है तो ज़रूर जो जो बातें उसने अपनी आमद सानी के मुताल्लिक़ बयान की हैं ज़रूर रास्त और दुरुस्त होंगी। और उसने जो वाअदे और वहीद मोमिनीन व काफ़िरीन से किए हैं बेशक उसी तरह वक़ूअ में आएँगे, जिस तरह और बातें वाक़ेअ हुईं पस जब कि ये मज़ामीन ईमान की तरक़्क़ी करने वाले हैं। और मज़्हब की हक़ीक़त पर एक कामिल दलील हैं इसलिए कुछ इनमें से हम अपने हिन्दुस्तानी भाईयों को सुनाना चाहते हैं। ताकि वो भी इन पर ग़ौर कर के हक़ीक़ी ईमान की तरफ़ रुजू करें यूं तो मसीह की पेशीन गोईयाँ बकस्रत हैं लेकिन हम सिर्फ चौदह (14) पेशीन गोईयाँ हद्या नाज़रीन करते हैं। पहली पेशीनगोई उसने अपने मर के जी उठने की ख़बर पहले से दी थी। मत्ती 16:21 उस वक़्त से येसू अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर करने लगा कि “मुझे ज़रूर है कि यरूशलेम को जाऊं और बुज़ुर्गों और सरदार काहिनों और फ़िक़ीहियों की तरफ़ से बहुत दुख उठाऊं और क़त्ल किया जाऊं और तीसरे दिन जी उठूँ।” मसीह ने कई बार यही बयान किया और इस के मुवाफ़िक़ ज़हूर में आया। चुनान्चे मत्ती 29 से 28 बाब तक अगर कोई पढ़े तो उस को अच्छी तरह मालूम हो जाएगा, कि उसने कैसे-कैसे दुख यहूदीयों के हाथ से उठाए और बिल-आख़िर वो मारा भी गया और तीसरे दिन जी भी उठा। इस मुक़ाम पर कई बातें ग़ौर तलब हैं। अव़्वल ये कि अहले इस्लाम कहते हैं कि मसीह मारा नहीं गया जो बिल्कुल ग़लत है। हम मुसलमान भाईयों की ख़िदमत में अर्ज़ करते हैं कि वो इस मुआमले में ग़फ़लत (लापर्वाही) से काम ना लें। क्योंकि सिर्फ इसी पर नजात उख़रूई मुन्हसिर है। इसलिए हमारी मुख़्तसर गुज़ारिशात पर ज़रा देर के लिए ध्यान दें।

अव़्वल हम मुसलमानों के इस बयान को कि मसीह नहीं मारा गया इसलिए ग़लत कहते हैं कि उनके पास अपने दावे के सबूत में कोई दलील मौजूद नहीं है सिर्फ आँहज़रत की हदीस है जो अपने सबूत में पेश करते हैं चूँकि वो हदीस तारीख़ और वाक़ियात के बरख़िलाफ़ और क़ुरआन शरीफ़ के मुतज़ाद है लिहाज़ा क़ाबिल-ए-एतिबार नहीं है।

दुवम ये कि अगले नबी गवाही दे गए हैं कि मसीह जब आएगा तो वो ईमानदारों के वास्ते अपनी जान देगा और मारा जाएगा। चुनान्चे दानीएल नबी ने मसीह से 538 बरस पेश्तर बतौर पैशन गोई के ये कहा था, कि 62 हफ़्तों के बाद मसीह क़त्ल किया जाएगा। (दानीएल 9:26) और यसअयाह नबी ने मसीह से 712 बरस पेश्तर ये कहा था कि वो ज़ुल्म करके और फ़त्वा लगा कर उसे ले गए पर कौन उस के ज़माने का बयान करेगा कि वो ज़िंदों की ज़मीन से काट डाला गया मेरे गिरोह के गुनाहों के सबब उस पर मार पड़ी। (यसअयाह 53:8)

सोइम, ये कि यहूदी लोग जिन्हों ने मसीह को क़त्ल किया वो इक़रार करते हैं कि हमने बेशक उसे मारा है आज तक कोई यहूदी इस बात का क़ाइल नहीं हुआ कि हमने मसीह को क़त्ल नहीं किया ख़ुद मुहम्मद साहब भी यहूदीयों से सुनकर इक़रार करते हैं कि यहूदी लोग मसीह को क़त्ल करने के क़ाइल हैं। चुनान्चे क़ुरआन की सूरह निसा में लिखा है قلنا المسیح عیسیٰ ابن مریم यानी यहूद कहते हैं कि हमने ईसा मसीह मर्यम के बेटे को क़त्ल किया है।

चहारुम, ये कि ख़ुद हज़रत ईसा इन्जील में ज़िक्र करते हैं कि मुझे मारा जाना ज़रूर है।

पंजुम, ये कि मसीह के शागिर्द जो साहिबे मोअजिज़ात और सच्चे रसूल थे। वो गवाही देते हैं कि वो ज़रूर हमारे सामने मारा गया और जी उठा। चुनान्चे आमाल 5:30, 31 में है, कि हमारे बाप दादों के ख़ुदा ने येसू को जिलाया जिसे तुमने सलीब पर लटका के मार डाला था उसी को ख़ुदा ने मालिक और मुनज्जी ठहरा के अपने दहने हाथ से सरबुलंद किया ताकि इस्राईल को तौबा की तौफ़ीक़ और गुनाहों की माफ़ी बख़्शे और हम इन बातों के गवाह हैं।

शश्म, ये कि यहूदीयों के दर्मियान जो खेत ख़ून का खेत कहलाता है और जो कि परदेसीयों के गाड़ने के लिए ख़रीदा गया था वो उन तीस रूपयों से ख़रीदा गया था जो मसीह की पकड़वाई की उज्रत के तौर पर यहूदा इस्करियोती ने लिया था और उसी वक़्त से ये वाक़िया तमाम यहूदीयों में मुश्तहिर हो चुका था। और सभों ने इस माजरे को क़ुबूल किया था। अब इन्साफ़ कीजिए इतने गवाहों और ऐसे मोअतबर रसूलों को हम किस दलील से रद्द करें और सिर्फ एक ही शख़्स की बात को जो छः सौ बरस बाद एक दुर ग़ैर मुल्क में पैदा हुआ और जिसकी रिसालत ही किसी तरह साबित नहीं हो सकती और जो कुतुब-ए-इलाही के बरख़िलाफ़ और जहान की तवारीख़ों के बरअक्स है तस्लीम करें? पस ज़रूर मसीह मारा गया और जी उठा और आस्मान पर चढ़ गया। दूसरी बात ग़ौर के लायक़ ये है कि हमारे ख़ुदावन्द येसू मसीह की ईज़ा कुशी और मुसीबत और बेईज़्ज़ती की बर्दाश्त और जाहिलों के हाथ से ठट्ठा में उड़ाए जाने का अहवाल सुनकर नादान बे समझ लोग जिन्हों ने ख़ुदा के मदरिसा में ताअलीम नहीं पाई यानी जिन्हों ने कलाम-ए-इलाही के नूर से मुनव्वर हो कर अपनी इन्सानी अक़्ल की ग़लतीयों से वाक़फ़ीयत हासिल नहीं की वो ये समझते हैं कि इन बयानों से मसीह पर ऐब लगता है और एक पैग़म्बर की बेइज़्ज़ती होती है। इसलिए ये लोग हयाते अबदी से महरूम रहते हैं ऐसे लोगों को मालूम रहना चाहिए कि इन बयानों से मसीह और ख़ुदा पर कुछ ऐब नहीं लगता बल्कि उस की कुद्दूसी और मुहब्बत और उस का जलाल और अदालत रहम और इल्म हद दर्जा ज़ाहिर होता है।

अगर ये बयान मुफ़स्सिल लिखा जाये तो एक बड़ी किताब हो जाती है। इसलिए यहां पर हम सिर्फ एक इशारे पर किफ़ायत करते हैं कि मसीह की दुनियावी बेइज़्ज़ती उस का जलाल ज़ाहिर करती है ना कि उस की हिक़ारत। मेरी बात लायक़ ग़ौर ये है, कि इस पेशीनगोई पर बाअज़ अहले इस्लाम एतराज़ करते हैं। जो मत्ती 12:40 में है कि जैसे यूनुस तीन रात-दिन मछली के पेट में रहा वैसा ही इब्ने-आदम तीन रात-दिन ज़मीन के अंदर रहेगा। वो कहते हैं कि इस बयान के मुवाफ़िक़ तीन रात-दिन क़ब्र में पूरे करने ज़रूर थे हालाँकि वो जुमे को तीसरे पहर दफ़न हुआ इतवार को अलस्सुबाह जी उठा। इस का जवाब कई तौर पर दिया जा सकता है। मगर हम तहक़ीक़ी जवाब देना चाहते हैं और वो ये है कि ये इबारत आम बोल-चाल के तौर पर इस्तिमाल हुई है जैसे कोई शख़्स जुमे को शाम के वक़्त अमृतसर में आए और इतवार की सुबह को कहे कि मैं तीन दिन से अमृतसर में आया हूँ और वो ज़रूर इस क़ौल में सच्चा है क्योंकि ऐसा बोलना आम मुहावरा है इसी तरह मसीह ने कहा उस की ये मुराद नहीं थी कि तुम घड़ी के तीन रात-दिन के घंटे मिनट पूरे कर लेना बल्कि ये मतलब था कि रोज़ दफ़न से तीसरे दिन उठूंगा। हमारे पास क़ौल की ताईद उमूर ज़ेल से होती है :-

अव़्वल, ख़ुद मसीह ने बार-बार हमें इस फ़िक़्रह के मअनी बतलाए हैं कि रोज़ दफ़न से तीसरे दिन जी उठूंगा। चुनान्चे मत्ती 20:19 में कि वो तीसरे दिन जी उठेगा। और मर्क़ुस 8:31 में है कि वो तीन रोज़ बाद जी उठे। और 9:21 में है कि वो मस्लूब जो कि तीसरे दिन फिर जी उठेगा। और 10:34 में है कि वो तीसरे दिन जी उठेगा। और लूक़ा 9:22 में है कि वो तीसरे दिन फिर उठाया जाये। और 18:33 में है कि तीसरे दिन जी उठेगा। इन फ़िक़्रों से साफ़ ज़ाहिर है कि उस की मुराद सिर्फ तीसरे दिन जी उठने की है ना वो मुराद जो मोअतरिज़ समझा है।

दुवम, ये कि मसीह के शागिर्द इस फ़िक़्रह के मअनी मुहावरे के तौर पर ये है समझे थे जो मसीह ने बार-बार बयान किए और जो हम बयान करते हैं। चुनान्चे लूक़ा 24:6, 7 में है कि याद करो कि जब वो गलील में था तो उसने तुमसे कहा था ज़रूर है कि इब्ने-आदम गुनेह्गारों के हाथ में हवाले किया जाए। और सलीब दिया जाये और तीसरे दिन जी उठे। इस का ये मक़्सद नहीं है कि तुम घड़ी हाथ में लेकर तीन रात-दिन के तमाम घंटे और मिनट गिनते जाओ बल्कि सिर्फ ये मतलब था कि दफ़न होने के दिन से तीसरे दिन जी उठूंगा।

सोइम, ये कि मसीह के दुश्मनों ने भी इस फ़िक़्रे के मअनी वही समझे थे जो हम कह रहे हैं। चुनान्चे मत्ती 27:63 में है कि ख़ुदावन्द हमें याद है कि इस धोके-बाज़ ने जीते-जी कहा था, कि मैं तीन दिन के बाद जी उठूंगा। पस हुक्म दे कि तीसरे दिन तक क़ब्र हिफ़ाज़त की जाये। ना ये कि तीन रात-दिन के घंटे गिने जाएं।

चहारुम, ये कि मसीह का जुमे को मस्लूब होना और इतवार को जी उठना ये साबित करता है कि उस का मतलब तीसरे दिन जी उठने से था और अल्फ़ाज़ मुहावरे के आम बोल-चाल के तौर पर इस्तिमाल हुए हैं।

पंजुम, ये कि मत्ती की इन्जील में मसीह का तीन दिन रात युनुस (यूनाह) की मानिंद ज़मीन में रहना मज़्कूर हुआ है पहले मोअतरिज़ को चाहिए कि यूनुस का तीन दिन रात घड़ी के हिसाब के बमूजब मछली के पेट में रहना साबित करे बाद उस के फिर इस तश्बीह पर गुफ़्तगु करे हम कहते हैं कि यूनुस का तीन रात-दिन मछली के पेट में रहना इसी तौर पर था जिस तौर पर मसीह तीन रात-दिन क़ब्र में रहा। पस अक़्ल-ए-सलीम के नज़्दीक ये एतराज़ बिल्कुल बातिल (झूट) है और मसीह की पेशीनगोई ज़रूर पूरी हुई।

(2) पेशीनगोई यहूदाह के हक़ में है। यूहन्ना 13:21 ये बातें कह कर येसू अपने दिल में घबराया और ये गवाही दी कि मैं तुमसे सच्च सच्च कहता हूँ कि तुम में से एक शख़्स मुझे पकड़वाएगा। मत्ती 26:25 उस के पकड़वाने वाले यहूदाह ने जवाब में कहा कि ऐ रब्बी क्या मैं हूँ? उसने इस कहा तूने ख़ुद कह दिया। उस का ये कहना भी पूरा हुआ। चुनान्चे मत्ती 26:47 वो ये कह ही रहा था, कि यहूदाह जो उन बारह में से एक था आया और उस के साथ एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठीयां लिए सरदार काहिनों और बुज़ुर्गों की तरफ़ से आ पहुंची और उस के पकड़वाने वाले ने उन्हें ये पता दिया था, कि जिसका मैं बोसा लूँ वही है उसे पकड़ लेना। और फ़ौरन येसू के पास आकर कहा कि ऐ रब्बी सलाम और उस के बोसे लिए।

(3) पेशीनगोई सब शागिर्दों के हक़ में है। मत्ती 26:31 उस वक़्त येसू ने उन से कहा कि तुम सब इसी रात मेरी बाबत ठोकर खाओगे। क्योंकि लिखा है कि मैं चरवाहे को मारूंगा और गल्ले की भेड़ें परागंदा हो जाएँगी। नीज़ देखो मर्क़ुस 14:27, यूहन्ना 16:32 चुनान्चे मत्ती 26:56 में है कि तब सब शागिर्द उसे छोड़ के भाग गए।

(4) पेशीनगोई गलील के जाने के हक़ में है। मत्ती 26:32 में है कि मैं अपने जी उठने के बाद तुमसे पहले गलील को जाऊँगा। ये भी पूरी हुई। चुनान्चे मत्ती 28:6 वो यहां नहीं है क्योंकि अपने कहने के मुवाफ़िक़ जी उठा है आओ ये जगह देखो जहान ख़ुदावन्द पड़ा था।... और देखो वो तुमसे पहले गलील को जाता है। और ग्यारह शागिर्द गलील के उस पहाड़ पर गए जो येसू ने उनके लिए मुक़र्रर किया था।

(5) पेशीनगोई पतरस के हक़ में है। मत्ती 26:33 में है पतरस ने जवाब देके उसे कहा गो सब तेरी बाबत ठोकर खाएं लेकिन मैं कभी ठोकर ना खाऊंगा। येसू ने उसे कहा मैं तुझसे सच्च कहता हूँ कि इसी रात मुर्ग़ के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा। ये भी पूरी हुई चुनान्चे आयत 69 में है कि पतरस बाहर सेहन में बैठा हुआ था कि एक लौंडी उस के पास आकर बोली तू भी येसू गलीली के साथ था उसने सब के सामने ये कह के इन्कार किया कि मैं नहीं जानता हूँ कि तू क्या कहती है। और जब वो डेयुढ़ी में चला गया तो दूसरी ने उसे देखा और जो वहां थे उनसे कहा ये भी येसू नासरी के साथ था उसने क़सम खा कर फिर इन्कार किया कि मैं इस आदमी को नहीं जानता। थोड़ी देर के बाद जो वहां खड़े थे। उन्होंने पतरस के पास आके कहा बेशक तू भी उनमें से है क्योंकि तेरी बोली से भी ज़ाहिर होता है। इस पर वो लानत करने और क़सम खाने लगा कि मैं इस आदमी को नहीं जानता और फ़ील-फ़ौर मुर्ग़ ने बाँग दी पतरस को येसू की वो बात याद आई जो उसने कही थी कि मुर्ग़ के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा और वो बाहर जा के ज़ार ज़ार रोया।

(6) पेशीनगोई मसीह की सलीबी मौत के हक़ में है। यूहन्ना 3:14 में है कि और जिस तरह मूसा ने साँप को ब्याबान में ऊंचे पर चढ़ाया उसी तरह ज़रूर है कि इब्ने-आदम भी ऊँचे पर चढ़ाया जाये ताकि जो कोई ईमान लाए उस में हमेशा की ज़िन्दगी पाए।

अगर आप इस वाक़िया का बयान पढ़ना चाहते हैं कि किस तरह और किस लिए मूसा ने पीतल का साँप बना कर अपने असा पर लटकाया? तो आप गिनती 21:5-9 तक का मुतालआ करें।

हमारे मुनज्जी की पेशीनगोई भी हर्फ़ ब हर्फ़ पूरी हुई। चुनान्चे यूहन्ना 19:18 में लिखा है कि उन्होंने उस को और उस के साथ और दो शख्सों को सलीब दी एक को इधर एक को उधर और येसू को बीच में।

(7) पेशीनगोई रूह-उल-क़ुद्स के हक़ में है। यूहन्ना 14:26 में है कि लेकिन मददगार यानी रूह-उल-क़ुद्स जिसे बाप मेरे नाम से भेजेगा वही तुम्हें सब बातें सिखलाएगा। और जो कुछ मैंने तुम से कहा है वो सब तुम्हें याद दिलाएगा। चुनान्चे ये भी पूरा हुआ जैसा कि आमाल 2:1 से 4 तक मज़्कूर है कि जब ईद पंतीकोस्त का दिन आया तो वो सब एक जगह जमा थे कि यका-य़क आस्मान से ऐसी आवाज़ आई जैसे रोज़ की आंधी का सन्नाटा होता है और इस से सारा घर जहां वह बैठे थे। गूंज गया और उन्हें आग के शोले की सी फटती हुई ज़बानें दिखाई दीं और उनमें से हर एक पर आ ठहरीं और वो सब रूह-उल-क़ुद्स से भर गए और ग़ैर ज़बानें बोलने लगे जिस तरह रूह-उल-क़ुद्स ने उन्हें बोलने की ताक़त बख़्शी।

सब अहले-इल्म साहिबे शऊर अच्छी तरह जानते हैं कि ये पेशीनगोई मसीह ने रूह-उल-क़ुद्स के हक़ में बयान की थी और जब ख़ुदावन्द की रूह हवारियों पर नाज़िल हुई तो ये पेशीनगोई पूरी हो गई। मगर बाअज़ अहले-इस्लाम यूं कहते हैं कि ये पेशीनगोई मसीह ने मुहम्मद साहब के हक़ में कही है और इस के मुताल्लिक़ कुछ चूं व चरा करते रहते हैं। लिहाज़ा ज़रूर है कि इस की निस्बत भी कुछ लिख डालें। हम कहते हैं कि ये पेशीनगोई मुहम्मद साहब के हक़ में हरगिज़ नहीं है बल्कि सिर्फ़ रूह-उल-क़ुद्स के हक़ में है जिसकी दलील ये है कि तमाम कलाम-ए-इलाही में कोई लफ़्ज़ और कोई क़रीना (बहमी ताल्लुक़) ऐसा नहीं है जिससे मुसलमानों का दावा साबित हो सके मुसलमान कहते हैं कि जिस लफ़्ज़ का तर्जुमा “मददगार” किया गया है। वो लफ़्ज़ फ़ारक़लीत (فارقلیط) है और इस के सही मअनी मुहम्मद या अहमद के हैं। इन बेचारों को अगर यूनानी ज़बान से वाक़फ़ीयत होती तो वो हरगिज़ इस क़िस्म का बेहुदा दावा ना करते बहर-हाल ये बार-ए-सुबूत उन पर है कि वो किसी मुस्तनद यूनानी लुग़त से साबित करें, कि फ़ारक़लीत (فارقلیط) के मअनी मुहम्मद या अहमद के हैं। इस के सिवा आयत बाला में मसीह ने फ़रमाया है कि वो मददगार हवारियों को मसीह की सब बातें याद दिलाएगा। मुहम्मद साहब ने हवारियों को मसीह की बातें याद नहीं दिलाईं बल्कि ख़ुद छः सौ (600) बरस के बाद ज़ाहिर हुआ। फिर इसी के 14:16 में है कि वो मददगार तुम्हारे साथ अबद तक रहेगा। मुहम्मद साहब ना कभी हवारियों और ईसाईयों के साथ रहे और ना अब साथ हैं बल्कि ख़ुदा की रूह हमेशा उनके (शागिर्दों के) साथ रही और अब तक मसीही ईमानदारों के साथ है। आयत 17 में मसीह ने तीसरी सिफ़त उस की ये बयान की कि उसे दुनिया नहीं पा सकती क्योंकि उसे नहीं देखती और ना उसे जानती है। लेकिन तुम तो उसे जानते हो क्योंकि वो तुम्हारे साथ रहती है और तुम में मौजूद है यहाँ से ज़ाहिर होता है कि वो मददगार ग़ैर मुरई (यानी जिसका वजूद हो लेकिन दिखाई ना दे) यानी नादीदनी है। मगर मुहम्मद साहब को अरब के लोगों ने देखा वो ग़ैर मुरई नादीदनी (अन्देखी) शैय ना थे। बल्कि ख़ुदा की रूह ये सिफ़त रखती है।

चौथी दलील ये है कि मसीह ने शागिर्दों से कहा जब तक वो मददगार ना आए तुम को यरूशलेम के शहर से बाहर ना जाना चाहिए। चुनान्चे लूक़ा 24:49 और आमाल 1:4, 5 में भी इस का मुफ़स्सिल ज़िक्र मौजूद है पस इन आयतों की रु से लाज़िम था कि जब तक आँहज़रत ज़ाहिर ना हुए तब तक हवारी 6 सौ बर्स तक यरूशलेम में ज़िंदा मौजूद रहते हालाँकि आँहज़रत से बहुत पहले हवारी फ़ौत हुए। इस के सिवा अक़्लमंद आदमी के लिए सिर्फ इतनी बात काफ़ी है कि इस आने वाले का नाम मसीह ने मददगार बयान किया है मुहम्मद साहब क्योंकि हो सकते हैं क्या ताअलीम के एतबार से हरगिज़ नहीं पस इन्सान की मदद करना सिर्फ रूह-उल-क़ुद्स का काम है। और वो हर लम्हा कर रहा है। पस ये पेशीनगोई भी पूरी हुई।

(8) पेशीनगोई अपने लोगों को ताक़त बख़्शने के हक़ में है। लूक़ा 21 में है कि मैं तुम्हें ऐसी ज़बान और हिक्मत दूंगा, कि तुम्हारा कोई मुख़ालिफ़ सामना करने या ख़िलाफ़ कहने का मक़्दूर (ताक़त) ना रखेगा। ये भी पूरा हुआ चुनान्चे रसूलों का हाल देखने से ज़ाहिर है कि वो लोग बिल्कुल जाहिल और बेपढ़े लोग थे। लेकिन मसीह ने उन को ऐसी ज़बान और हिक्मत इनायत की कि तमाम जहान के आलिम उनकी ताअलीम से दंग हैं और सब अव्वलीन व आख़रीन के भेद और इलाही रमूज़ जो इब्तिदा आलम से पोशीदा थे उनके दिल और ज़बान पर जारी हैं और आज तक मसीही लोगों को ख़ुदा की तरफ़ से वो ज़बान और हिक्मत इनायत हुई है कि कोई मुख़ालिफ़ उनका मुक़ाबला तहरीर और तक़रीर में नहीं कर सकता। पस ये पेशीनगोई भी हम अच्छी तरह पूरी हुई देखते हैं।

(9) पेशीनगोई उस की बातें ना टलने के हक़ में है। मत्ती 24:35 में है कि “आस्मान और ज़मीन टल जाऐंगे। पर मेरी बातें ना टलेंगी।” मुराद ये है कि आस्मान और ज़मीन को भी इस क़द्र पायदारी नसीब नहीं है जिस क़द्र मेरी बातों को हासिल है वो हरगिज़ ना टलेंगी। अब हम देखते हैं कि मसीह की बातें हरगिज़ टलने वाली नहीं हैं। देखो झूटे मज़्हबों की बातें कैसी टल गईं और टलती जाती हैं लेकिन मसीह की बातें जो हक़ीक़त में सच्ची हैं आज तक नहीं टली और आइन्दा को हरगिज़ टलती नज़र नहीं आतीं। इब्तिदा में यहूदीयों ने मसीह की ताअलीम को नेस्त व नाबूद करना चाहा और अपनी तमाम ताक़त इस में सर्फ की जिस क़द्र वो लोग बर्बादी चाहते थे, उस से ज़्यादा यहां तरक़्क़ी होती जाती थी। उनके बाद बिदअतियों और गुमराहों ने बावजूद दावा ईसाईयत उस की पाक ताअलीम को छोड़कर अपनी गंदी रस्में मानना शुरू की मगर उन की मुर्दा ताअलीम से मसीह की ज़िंदा ताअलीम दब ना गई बल्कि उनकी इन्सानी ताअलीम को दबा कर ख़ुदा का ज़िंदा कलाम ऐसा उभरा कि हमेशा से इस वक़्त तक मसीही ताअलीम बेतास्सुब हक़-परस्तों के सामने आईना की तरह मौजूद है। इस के बाद मुल्हिदों (काफ़िरों) ने ख़ुदा के मुन्किरों ने अक़्ल परस्तों ने मसीही कलाम पर अपनी बड़ी ताक़त ख़र्च की और चाहा कि ये ताअलीम जहां से उठ जाये और उनकी ताअलीम जारी हो मगर वो ख़ुद बर्बाद हुए उन की किताबों को कीड़ा खा गया लेकिन मसीह की बातें अब तक क़ायम हैं। इस के सिवा मुहम्मद साहब ने मसीही ताअलीम के बर्बाद करने में और ही तरह से कोशिश की लोगों से कहा कि वह कलाम तो बरहक़ है लेकिन अब वो मन्सूख़ हुआ उस पर अमल ना करो लो ये मेरा क़ुरआन है इस को मान लो। मुहम्मदी आलिमों ने अपने पेशवा की ताईद में बड़े अगर मगर मिला कर किताबें तस्नीफ़ कीं पर कलाम-ए-इलाही को वो लोग हरगिज़ रद्द ना कर सके उनकी तमाम गलतीयां ज़ाहिर हो गईं चुनान्चे कोई सच्चाई से तहक़ीक़ करता है अपने ख़यालों से तौबा कर के इन्जील पर ईमान ले आता है पस ये मसीह का क़ौल कि मेरी बातें हरगिज़ ना टलेंगी कैसी दुरुस्ती से पूरा हुआ और होता है।

(10) पेशीनगोई इन्जील की मुनादी के हक़ में है। मत्ती 24:14 में है कि “और बादशाहत की इस ख़ुशख़बरी की मुनादी तमाम दुनिया में होगी ताकि सब क़ौमों के लिए गवाही तब ख़ातिमा होगा।” अगर कोई उस वक़्त पर ग़ौर करे जिस वक़्त ये पेशीनगोई मसीह ने सुनाई थी और आज के दिन को देखे तो उसे मालूम हो जाएगा कि उस वक़्त आस्मान की बादशाहत राई के दाना की मानिंद कैसी कमज़ोर नज़र आती थी। और अब कैसे बड़े दरख़्त की सूरत में जहान में ज़ाहिर हुई है। और कहाँ से कहाँ तक इस की मुनादी हो गई इस पेशगोई की इस हालत को देखकर यक़ीन-ए-कामिल हो जाता है कि ज़रूर क़ियामत तक सारी दुनिया में इन्जील की मुनादी हो जाएगी।

(11) पेशीनगोई ग़ैर क़ौमों के ईमान के हक़ में है। मत्ती 8:11 में है कि “कि मैं तुमसे कहता हूँ कि बहुतेरे पूरब और पक्षिम से आकर इब्राहिम और इज़्हाक़ और याक़ूब के साथ आस्मान की बादशाहत की ज़ियाफ़त में शरीक होंगे पर बादशाहत के फ़र्ज़न्द बाहर अंधेरे में डाले जाऐंगे वहां रोना और दाँतों का पीसना होगा। ये भी पूरा हो गया कि हज़ार-हा आदमी पूरब पक्षिम जुनूब शुमाल के रहने वाले ईमान ला कर मसीही जमाअत में दाख़िल हो गए और हज़ार-हा आदमी ईसाई होते जाते हैं और इन ईमान लाने वालों में से सदहा हरदम ऐसे अच्छे ईसाई हुए हैं कि हम उनसे अच्छे लोग किसी क़ौम के बुज़ुर्गों में नहीं देखते और मसीह की ये पेश ख़बरी और ग़ैर क़ौमों में से बाअज़ का ये हाल देखकर ख़ुदा की सताइश करते हैं।

(12) पेशीनगोई ईसाईयों की मुसीबत के हक़ में है। मत्ती 24:9 में है कि वो तुम्हें दुख में हवाले करेंगे और मार डालेंगे और मेरे नाम के सबब सब कौमें तुम से कीना (दुश्मनी) रखेंगी। ये भी पूरा हुआ क्योंकि दुनिया-दारों ने हमेशा से इन लोगों के साथ अदावत की और अब ख़ास इस क़ौम से हर शख़्स अदावत रखता है।

(13) पेशीनगोई झूटे नबियों के हक़ में है। मत्ती 24:11 में है कि बहुत से झूटे नबी उठ खड़े होंगे। और बहुतेरों को गुमराह करेंगे और बेदीनी के बढ़ जाने के सबब बहुतेरों की मुहब्बत ठंडी पड़ जाएगी। मगर जो आख़िर तक बर्दाश्त करेगा नजात पाएगा। ये भी पूरा हुआ और होता जाता है। बहुत से झूटे मुअल्लिम (उस्ताद) ज़ाहिर हो गए और होते जाते हैं और आइन्दा को भी शायद हो जाएं।

(14) पेशीनगोई यरूशलेम के हक़ में है। मत्ती 24:2 में है कि “मैं तुमसे सच्च कहता हूँ कि यहां किसी पत्थर पर पत्थर बाक़ी ना रहेगा, जो गिराया ना जाएगा।” ये भी पूरा हुआ और यरूशलेम की बर्बादी मसीह के फ़र्मान के मुवाफ़िक़ हुई। इस के सिवा ख़ुदावंद येसू मसीह की और बहुत सी पेशीन गोईयाँ हैं ख़ुसूसुन मुकाशफ़ा की किताब में जिसमें हमारे ख़ुदावंद ने तमाम अहवाल अपने अहद से क़ियामत तक का लिखवा दिया है जिसमें से बहुत कुछ तर्तीबवार पूरा हो गया। और रोज़ बरोज़ पूरा होता जाता है। जिस के लिखने की गुंजाइश इस मुख़्तसर रिसाले में नहीं है। उन सबको छोड़कर सिर्फ इस अर्ज़ पर इक्तिफ़ा करते हैं कि ऐसा सादिक़ुल-क़ौल दुनिया में मसीह के सिवा कौन ज़ाहिर हुआ ज़रूर वो ख़ुदा-ए-मुजस्सम था जो सब ईमानदारों की नजात के वास्ते आया उस पर इन्जील के मुवाफ़िक़ ईमान लाओ और तास्सुब (मज़्हब की बेजा हिमायत) को छोड़कर इन बातों पर फ़िक्र करो जानवर की तरह बेफ़िक्र दुनिया में रहना अच्छा नहीं आख़िर एक दिन अदालत का मुक़र्रर है ख़ुदा से डरो और उस के इकलौते प्यारे बेटे को क़ुबूल करो और उस के शुक्रगुज़ार बनो जिस ने अपना बेटा तुम्हें बख़्श दिया ताकि हमेशा की ज़िंदगी उस के वसीले से हासिल करो आइंदा मुख़्तार हो। وما علی الرسول الا البلاغ

रिसाला हफ़्तुम (7)
मसीह की तक़रीर का ग़लबा

गुज़श्ता तीन रिसालों में दीने ईस्वी की हक़ीक़त पर ऐसी तीन कामिल दलीलें मज़्कूर हुईं कि एक दयानतदार शख़्स के लिए काफ़ी से ज़्यादा हैं और हक़ीक़त ये कि इस क़िस्म के कामिल दलाईल कोई अहले मज़्हब सिवाए ईसाईयों के अपने मज़्हब पर पेश नहीं कर सकता ताहम हम बहुत सी और दलीलों में से एक और दलील बयान कर के इस बह्स को चार दलीलों पर ख़त्म करना चाहते हैं ताकि दीगर मज़ामीन को बहुत जल्द नाज़रीन की ख़िदमत में पेश कर सकें।

चौथी दलील ईसाई मज़्हब की हक़ीक़त पर ये है कि ख़ुदावन्द येसू मसीह की तक़रीर में ऐसा ज़ोर और ऐसी ताक़त और कशिश थी जिसकी मिस्ल दुनिया के और मुक़र्ररों और हादियों (रहनुमाओं) की तक़रीर में नहीं मिल सकती है यानी उस की ताअलीम हर ताअलीम पर ग़ालिब आती है। इस की तफ़्सील और कैफ़ीयत उस वक़्त मालूम होती है जब कोई शख़्स कलाम-ए-इलाही को अव़्वल से आख़िर तक उस के वाक़िफ़ों से और इस की मोअतबर (क़ाबिल-एतबार) तफ़्सीरों से दर्याफ़्त कर के ग़ौर से पढ़े इन मुख़्तसर रिसालों में इस की कैफ़ीयत का कमा-हक़्क़ा (जैसा उस का हक़ है) बयान करना दुशवार है। हाँ मत्ती रसूल की इन्जील की तफ्सीर में जो लिखी जा रही है इस के मुताल्लिक़ क़द्रे तफ़्सील के साथ बयान करेंगे। यहां पर सिर्फ इस क़द्र बयान कर देना काफ़ी है कि मसीह की ताअलीम में कई क़िस्म की खूबियां हैं जिसको हर शख़्स बशर्ते के सलीम-उल-अक़्ल (अक़्लमंद) और बेतास्सुब हो क़ुबूल कर सकता है। पहली बात वो अपनी ताअलीम में अपने उन मुख़ालिफ़ों पर जो उस वक़्त उस का मुक़ाबला करते थे। बड़ी क़वी (मज़्बूत) दलीलों से ग़ालिब आया। इस की तौज़ीह (वज़ाहत) यूं है कि दुनिया में जितने रहबर ख़्वाह झूटे या सच्चे ज़ाहिर हुए हैं उनके अहद में उनके मुख़ालिफ़ और उनके रद्द करने वाले उनसे मुक़ाबला और बह्स करने को उठे हैं और उनसे हक़ीक़त की दलीलें भी तलब की हैं और उन पर एतराज़ कर के उनको रद्द करना चाहा और ये बात तालिबाने हक़ के लिए निहायत मुफ़ीद साबित हुई है। जिससे सही अक़्ल अच्छा नतीजा निकालती है। मसलन जब मुहम्मद साहब ज़ाहिर हुए और दावा-ए-नुबूव्वत का किया तो उनके मुक़ाबले पर अरब के बुत-परस्त और बाअज़ जाहिल यहूदी और बिद्अती ईसाई उठे और मुहम्मद साहब से बह्स की जिसका ज़िक्र कहीं कहीं क़ुरआन में भी मिलता है इस के देखने से मालूम होता है कि मुहम्मद साहब अरब के बुत-परस्तों पर बह्स में कभी-कभी ग़ालिब भी आते थे। लेकिन मोअजिज़ा ना होने के सबब ग़लबे का कमाल उन पर भी ज़ाहिर ना हो सका हालाँकि बुत-परस्ती ऐसी बातिल है कि हर शख़्स जो इस को रद्द करना चाहे बाआसानी इस को बातिल कह सकता है मगर यहूद और ईसाईयों पर बावजूद सल्तनत और इक़्तिदार के आप कभी ग़ालिब ना सके। (सूरह अल-हिज्र के पहले रुकूअ में है, कि قالوایا ایتھا الذی نزل علیہ الذکر انک مجنون لو ماتا تنا بالملکتہ ان کنت من الصا دقین लोग कहते ऐ शख़्स जिस पर क़ुरआन उतरा है तू बेशक दीवाना है क्यों नहीं लाता हमारे पास फ़रिश्तों को अगर तू सच्चा है इस एतराज़ का जवाब ये दिया गया, ماننزل المحکتہ الا بالحق وما کا نو منظرین انا نحن لا لنا الذکرو انا لا حافظوں

हम नहीं भेजे फ़रिश्ते मगर काम फिराकर और उस वक़्त फ़ुर्सत ना मिलेगी। हमने आप क़ुरआन उतारा है और हम इस के निगहबान हैं। ज़ाहिर है कि इस एतराज़ का जवाब ऐसा है कि एक झूटा शख़्स भी जवाब दे सकता है। इस से मोअतरिज़ का मुँह-बंद नहीं हो सकता। मत्ती 12:24-26 से ज़ाहिर है कि जब यहूदीयों ने मसीह के मोअजज़ात पर एतराज़ किया कि जो कुछ तू करता है बाल-ज़बुल (बद रूहों के सरदार) के ज़रीये से करता है तो मसीह ने उनको ऐसा दंदाँशिकन (मुंहतोड़) जवाब दिया कि वो बिल्कुल ख़ामोश हो गए वो जवाब ये कि जिसकी बादशाहत में फूट पड़ती है वो वीरान हो जाती है। और जिस किसी शहर या घर में फूट पड़ेगी वो क़ायम ना रहेगा। और अगर शैतान ही ने शैतान को निकाला तो अपना मुख़ालिफ़ आप हो गया फिर उस की बादशाहत क्योंकर क़ायम रहेगी। देखो ये कैसा माक़ूल जवाब है जिसको हर मुंसिफ़ शख़्स फ़ौरन क़ुबूल करेगा। दूसरा जवाब मसीह ने ये दिया कि अगर मैं बाल-ज़बूल की मदद से देवों को निकालता हूँ तो तुम्हारे बेटे किस की मदद से निकालते हैं? इसलिए वो ही तुम्हारे मुंसिफ़ होंगे। तीसरा ये जवाब दिया कि ज़ोर-आवर का घर लूटने को कोई बड़ा और चाहीए ताकि पहले ज़ोर-आवर को वो बाँधे फिर उस का घर लूटे पस शैतान जो ऐसा ज़ोर-आवर है कि कोई आदमी उस पर फ़त्हयाब नहीं हो सकता वो बग़ैर इलाही ताक़त के क्योंकर मग़्लूब है कि कोई आदमी इस पर फ़त्हयाब नहीं हो सकता वो बग़ैर इलाही ताक़त के क्योंकर मग़्लूब होगा और तुम देखते हो कि मैं शैतान पर ग़ालिब हूँ पस ज़रूर मैं ख़ुदाई ताक़त से काम करता हूँ। सूरह अम्बिया के पहले रुकूअ में है, قالو اضغاف الحلام ہل افتراہ بل ھو شاعر فلیا یتہ کمادسل لا ولون लोग कहते हैं ये क़ुरआन के झूटे ख्व़ाब ख़याल हैं और मुहम्मद शायर है उसने ये बातें बनाई हैं अगर चाहे तो अगले पैग़म्बरों की मानिंद कोई निशानी लाए। इस का जवाब ये दिया गया, ماامت تبتہم من قریتہ اھلکنا ھا افہم یومنون इनसे पहले भी किसी बस्ती ने नहीं माना जिन को हम ने मारा पस ये क्या मानने वाले हैं। ये ऐसा जवाब है कि हर झूटा मुद्दई नबुव्वत (नबुव्वत का दावा करने वाला) भी ये जवाब दे सकता है और इस से ये भी ज़ाहिर है, कि अगर मुहम्मद साहब ने कोई मोअजिज़ा दिखला या होता तो वो लोग ऐसा एतराज़ ना करते और ना मुहम्मद साहब ऐसा सुस्त जवाब देते। उनके सवाल से तीन बातें ज़ाहिर हैं, अव्वल ये कि क़ुरआन के मज़ामीन उनके सामने झूटे ख्व़ाब ख़याल की तरह हैं चुनान्चे अब भी कोई अक़्लमंद शख़्स इन मज़ामीन को जो सिर्फ क़ुरआन के हैं उम्दा नहीं कह सकता है अलबत्ता कुतुब-ए-मुक़द्दसा से जितने मज़ामीन माखज़ (अख़ज़) हैं वो बिलाशक निहायत अच्छे हैं। इन्जील के मज़ामीन की बरतरी की निस्बत ख़ुद यहूदीयों ने जो मसीह के जानी दुश्मन थे गवाही दी है, जिसका ज़िक्र मत्ती 13:54 में है कि अपने वतन में आकर उनके इबादत ख़ाने में उन्हें ऐसी ताअलीम देने लगा कि वो हैरान हो कर बोले कि इस को ये हिक्मत और मोअजिज़े कहाँ से मिल गए और आज तक किसी आदमी ने इन्जील से बेहतर कोई ताअलीम नहीं दिखलाई।

दोम ये कि मुहम्मदी लोग क़ुरआन की इबारत मोअजिज़ा जानते हैं। और कहते हैं कि अरब को इस मोअजिज़े की ज़रूरत थी क्योंकि वो सब लोग फ़सीह (ख़ुश-बयान) थे मगर इस सवाल से मालूम होता है कि उन्होंने इस इबारत आराई और फ़साहत (ख़ुश-बयानी) से मुहम्मद साहब को शायर कहा या नबी उन्होंने इस को मोअजिज़ा भी ना जाना और क़ुरआन से कहीं साबित नहीं होता कि अहले अरब ने इस फ़साहत से ताज्जुब कर के उनको नबी जाना हो बरख़िलाफ़ इस के वो इस की फ़साहते लफ्ज़ी की लफ़्ज़ी हंसी उड़ा कर उनको शायर बतलाते थे।

सोम यह कि अहले-अरब उनसे कहते थे, कि अगर तू नबी है तो अगले नबियों की मानिंद कोई निशानी दिखला इस से ज़ाहिर है कि कोई निशानी उनके पास ना थी। और आँहज़रत का जवाब ऐसा ज़ईफ़ (कमज़ोर) है कि इन तीनों बातों में से एक बात को भी रद्द नहीं कर सकता ना कोई माक़ूल उज़्र पेश करता है। सूरह बक़रह के 23 रुकूअ में है, یسلونک عن الا ھلہ नए चाँद का हाल तुझसे पूछते हैं लोग ऐ मुहम्मद। जलालेन में है कि सवाल ये था, कि क्या सबब है कि चांद छोटा निकलता है और बढ़ते बढ़ते बड़ा हो जाता है। फिर घट जाता है सूरज की मानिंद एक हालत पर क्यों नहीं रहता है? ये एक इल्मी और माक़ूल सवाल था अब जवाब मुलाहिज़ा हो, قل ھی مواقیت الناس والحج कह दे ये वक़्त ठहरे हैं लोगों के लिए और हज के। इस को कहते हैं सवाल अज़ आस्मान जवाब अज़ रेसियान। ये जवाब बईना ऐसा है कि किसी हिंदू के जवाब में कहा जाये कि सड़कें बनी हैं गंगा नहाने वालों के वास्ते। सूरह ज़ारियात में है, یشلوند ایان یوم الدین लोग पूछते हैं इन्साफ़ का दिन कब आएगा। जवाब ये दिया गया, یوم ہم علی النگر یقفون जिस दिन आग में डाले जाऐंगे। ये सवाल मसीह से भी किया गया था कि क़ियामत कब आएगी मसीह ने ऐसा माक़ूल जवाब दिया जिससे लोग साकित चुप (दम-ब-ख़ुद) हो गए और कि उस दिन की बाबत कोई नहीं जानता बल्कि फ़रिश्ते भी नहीं जानते मगर तो भी उसने उस की ऐसी अलामतें बतलाएं कि वाज़ेह हो गया चुनान्चे सबसे बड़ी अलामत ये बतलाई कि जब इन्जील की मुनादी ज़मीन की इंतिहा तक हो जाये उस वक़्त क़ियामत होगी ये एक ऐसा जवाब है जो क़ियामत का यक़ीन और उस के क़रीब व बाद का हाल निहायत तसल्ली के साथ दिलों पर नक़्श कर देता है इसलिए इस सवाल के जवाब में मसीह ग़ालिब और मुहम्मद साहब मग़्लूब (हारे हुए) है। इसी तरह क़ुरआन में बहुत से सवाल व जवाब मज़्कूर हैं कहीं औरतों की बाबत कहीं यतीमों की बाबत कहीं हैज़ की बाबत। कहीं ख़ैरात की बाबत कहीं शराब और क़िमारबाज़ी (जूवा बाज़ी) की बाबत और कहीं विरासत की बाबत मगर उनके जवाब या तो ऐसे हैं कि अदना अक़्ल का आदमी भी दे सकता है। या मुहम्मल (निकम्मा, बेकार) हैं। कोई जवाब उनका ताक़त ग़ैबी ज़ाहिर नहीं करता। बरख़िलाफ़ मसीह के जो अपने मोअतरिज़ों पर अपने जवाबों में ना सिर्फ अक़्ली ग़लबा बल्कि अक़्ल से बाला ग़ैबी इलाही ग़लबा ज़ाहिर करता है। हज़रत ईसा जब ज़ाहिर हुए बावजूद ये कि उनका दावा ना सिर्फ नबुव्वत व रिसालत का था बल्कि ये था कि मैं ख़ुदा का बेटा हूँ इन्सान और ख़ुदा दोनों हूँ। अव्वलीन और आख़िरीन का मैं नजातदिहंदा हूँ। क़ियामत और ज़िंदगी मैं ही हूँ। मैं जहान का नूर हूँ। बग़ैर मेरे वसीले कोई ख़ुदा से मेल (मिलना) नहीं कर सकता। मैं ज़िंदगी की रोटी हूँ जो आस्मान से उतरी है। और मुख़ालिफ़ उस के ना सिर्फ बुत-परस्त और जंगी आदमी थे बल्कि बड़े-बड़े यहूदी फ़ाज़िल आलिम और फ़क़ीह और मुहद्दिस, मुअल्लिम उस्ताद और मशाइख कुब्बार (उलमा, बुज़ुर्ग) थे। और बयान उस का ये था कि ये कलाम इलाही जो तुम्हारे हाथ में है उसी को तुम नहीं समझते ये सब बयानात मेरे हक़ में हैं और वो लोग उस से बह्स करने को उठे लेकिन वो उन पर ऐसा ग़ालिब आया कि हक़ीक़त में सब मग़्लूब हो गए अगरचे बाअज़ ने शरारत से ना माना तो भी उस के मुबाहिसे से ज़ाहिर है कि हक़ीक़त में उस के ना मानने वाले मुतअस्सिब (तंग-नज़र) और पाजी (ज़लील, बदमाश) थे। जिस क़द्र अक़्ली मुबाहिसे इस जहान में हुए हैं उनके गालिबी और मग़्लूबी में हमेशा मुताख्खिरीन (बाद में आने वाले) को सुकम (ख़राबी, दुख) मालूम होते हैं लेकिन मसीही ग़लबा जो सिर्फ क़ुद्रते इलाही से नमूदार हुआ है। वो हमेशा अपने मुख़ालिफ़ों पर ग़ालिब रहा है मसीह का ये दावा सुनकर कि मैं ख़ुदा का बेटा हूँ उलमा यहूद सख़्त नाराज़ थे। और आज तक दुनियावी लोग जो ख़ुदा की क़ुद्रत से नावाक़िफ़ और कलाम-ए-इलाही से बेख़बर हैं इस दावे से कि मसीह खुदा का बेटा है। निहायत ख़फ़ा होते हैं पर उसने अपने दावे को जो नजात की बुनियाद है बहुत ही अच्छी तरह साबित कर दिया।

अव़्वल क़ुदरत-ए-इख्तियारी के ज़रीये से दोम तबीअत-ए-इलाही या मिज़ाज-ए-इलाही के ज़रीये से मगर वो दिल के अंधे इन भेदों को ना समझे तब उस ने उन पाक नविश्तों की रु से जो अगले पैग़म्बरों ने इल्हाम से लिखवा कर उन्हें दिए थे अपनी उलूहियत को ज़ाहिर कर दिया ऐसा कि वो आलिम ला-जवाब हो गए और अब तक लाजवाब हैं। चुनान्चे मत्ती 22:21 से 46 कि और जब फ़रीसी जमा हुए तो येसू ने उनसे ये पूछा कि तुम मसीह के हक़ में क्या समझते हो वो किस का बेटा है? उन्होंने उस से कहा दाऊद का। उसने उनसे कहा पस दाऊद रूह की हिदायत से क्योंकर उसे ख़ुदावन्द कहता है कि ख़ुदावन्द ने मेरे ख़ुदावन्द से कहा मेरी दाहिनी तरफ़ बैठ जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पांव के नीचे ना कर दूं। उस के इस जवाब की बाबत कोई एक बात ना कह सका और ना उस दिन से किसी ने उस से फिर सवाल करने की जुर्आत की। देखो ख़ुदावन्द येसू ने अपनी उलूहियत के मुन्किरों का मुँह कैसी कामिल दलील से बंद कर दिया कि उलमा-ए-यहूद कुछ ना कह सके। और ना आज तक कुछ कह सकते हैं। और जो मतलब उसने इस 110 ज़बूर की पहली आयत का बयान किया इस के सिवा कोई और मतलब इस आयत का हो ही नहीं सकता है। मुहम्मद साहब ने क़ुरआन में एक जगह ज़िक्र किया है कि मेरी निस्बत हज़रत ईसा ने ख़बर दी है कि मेरे बाद एक नबी आएगा उस का नाम अहमद होगा। मगर इस दावे को ना तो उन्होंने और ना ही उलमा-ए-मुहम्मदिया ने आज तक साबित किया और ना ये मज़्मून इन्जील शरीफ़ में कहीं मज़्कूर है पस अब हम किस तरह कह सकते हैं कि वो अपने बयान में सच्चे और ग़ालिब हैं इसी तरह एक दफ़ाअ उलमा-ए-यहूद ज़ाहिरी शरीअत से बातिनी और रूहानी शरीअत का मुक़ाबला करने को और मसीह का इम्तिहान लेने को आए। यूहन्ना 8:3 से 11 और एक औरत को जो ज़िना में ऐन फ़ेअल के वक़्त पकड़ी गई थी लेकर उस के पास आए और कहा कि मूसा ने ऐसों को संगसार करने का हुक्म दिया है। तू इस की निस्बत क्या हुक्म देता है उसने जवाब दिया जो तुम में बेगुनाह है वो ही पहले इस को पत्थर मारे वो लोग दिल में क़ाइल हो कर छोटे बड़े सब के सब चलते बने। तब हज़रत मसीह ने इस औरत से कहा जा फिर गुनाह मत कर। मसीह का ये मतलब था कि शरीअत बेशक दुरुस्त और ख़ुदा की तरफ़ से है लेकिन तुम इस का मतलब नहीं समझे हो जिस शरीअत के रु से ये औरत गुनेहगार हुई है उसी शरीअत के रु से तुम भी गुनेहगार हुए कोई तुम में बेगुनाह नहीं है जब तक इलाही कफ़्फ़ारा ना हो शरीअत बचा नहीं सकती शरीअत एक आईना है जो तुम्हारे मुँह की स्याही तुम्हें दिखाता है पर स्याही को दूर नहीं कर सकता तुम आईने में अपने मुँह की स्याही देखकर पानी से मुँह धो लो यानी कफ़्फ़ारे के ख़ून के बग़ैर पाक नहीं हो सकते तुम सब के सब गुनेहगार हो एक गुनेहगार दूसरे गुनेहगार को क्यों मारे बल्कि सब के सब मार खाने के लायक़ हैं। देखो इन्सानी सवाल का ज़इफ़ (कमज़ोरी) और इलाही जवाब की ताक़त और इसी तरह मसीह की सारी ताअलीम में इलाही ग़लबा ज़ाहिर है। जब कि ऐसे-ऐसे हक़ीक़ी और सही मज़्मून जो अक़्ल इंसानी से बाला हैं उस की ताअलीम में मिलते हैं तो फिर मुहम्मदी शरीअत के मुतालिब जो ज़ाहिरी और जिस्मानी हैं अक़्ल पर क्योंकर ग़ालिब हो सकते हैं और ऐसी ज़ोर-आवर बातें जो मसीह की ताअलीम में हम पाते हैं सारे क़ुरआन में कहीं नहीं पाते हैं। एक दफ़ाअ उलमा-ए-यहूद ने सलाह कि किसी तरह मसीह को गुफ़्तगु में फाँस लें। मत्ती 22:15 से 21 चुनान्चे वो हेरोदियों को लेकर उस के पास आए और मक्कारी से कहा कि ऐ उस्ताद हम जानते हैं कि तू सच्चा है सच्चाई से ख़ुदा की राह की ताअलीम देता है हमें बतला कि शहनशाह क़ैसर को जज़्या देना जायज़ है या नहीं उनका मतलब ये था कि वो या तो ये कहेगा कि जायज़ है और या ये कहेगा कि जायज़ नहीं है। अगर जायज़ कहेगा तो हम अहले शराअ में इस को बदनाम करेंगे कि वो काफ़िर को जज़्या देना जायज़ बतलाता है। और अगर नाजायज़ कहा तो अदालत में इस का मुवाख़िज़ा (बाज़पुर्स) करा देंगे, कि वो बादशाह रोम को जज़्या (टैक्स) देने से मना करता है लेकिन उसने जो दिल और गुर्दों का जांचने वाला है और जो तमाम दीनी और दुनियावी इंतिज़ाम का अलक है जिस पर कोई इन्सान ना फ़रिश्ते ग़ालिब आ सकते हैं यूं जवाब दिया कि ऐ रियाकारो मुझे क्यों आज़माते हो जज़्या का सिक्का मुझे दिखाओ वो एक दीनार उस के पास लाए उसने उन्हें कहा ये सूरत और ये तहरीर किस की है वो बोले क़ैसर की तब उसने कहा जो क़ैसर का है क़ैसर को और जो ख़ुदा का है ख़ुदा को दो उन्होंने ये सुनकर ताज्जुब किया और उसे छोड़कर चले गए। एक दफ़ाअ उस के पास सदूक़ी लोग आए जो क़ियामत के मुन्किर थे उन्होंने उस के सामने वो सवाल किया जिसका जवाब कोई अहले शराअ ना दे सकता था और जिसके जवाब से अहले इस्लाम तो निहायत ही लाचार हैं वो सवाल वो है जिसका ज़िक्र मत्ती 22:24 से 23 में है उन्हों ने उसे कहा कि ऐ उस्ताद मूसा ने कहा है अगर कोई आदमी अपनी जोरु छोड़ के बेऔलाद मर जाये तो उस का भाई उस की जोरु से शादी कर लेता कि अपने मुतवफ़्फ़ी (फ़ौत हुआ) भाई के लिए औलाद जारी करे। अब हमारे दर्मियान सात भाई थे। पहला औरत छोड़कर मर गया दूसरे ने उस के साथ शादी की दूसरा भी मर गया तीसरे ने शादी की इसी तरह सातों की जोरु बन कर वो औरत भी मर गई पस क़ियामत में वो किस की जोरु होगी। उनकी ग़र्ज़ ये थी कि इन सातों का इस्तिहक़ाक़ (हक़) उस औरत की निस्बत यकसाँ है कोई बात ऐसी नज़र नहीं आती जिससे एक दूसरे पर तर्जीह पा कर क़ियामत में इस को अपनी जोरु बनाए और इस क़बाहत (दुशवारी) के सबब उनको गुमान था कि क़ियामत भी ना होगी। मसीह ने उनको यूं जवाब दिया कि क़ियामत में ना ब्याह करते ना ब्याहे जाते हैं बल्कि आस्मान पर ख़ुदा के फ़रिश्तों की मानिंद रहते हैं। ये ऐसा जवाब है जिसको अक़्ल भी क़ुबूल करती है क्योंकि वो जहान तनासुल जारी करने का नहीं है जो वहां औरत की ज़रूरत हो बल्कि वो जगह हक़ीक़ी आसाइश और तस्बीह व तहमीद की है। फिर मसीह ने ये भी कहा कि तुम ख़ुदा के नविश्तों से नावाक़िफ़ हो इसलिए तुमको ये गुमान हुआ है कि वहां जोरु शौहर भी होंगे। देखिए कैसा आला जवाब है। फिर मसीह ने ये भी कहा कि तुमने नविश्ते में क्या ये नहीं पढ़ा जो ख़ुदा तआला फ़रमाता है कि मैं अबराहाम का ख़ुदा इज़्हाक़ का ख़ुदा याक़ूब का ख़ुदा हूँ हालाँकि मुद्दत गुज़री कि अबराहाम और इज़्हाक़ और याक़ूब सो गए हैं अगर क़ियामत नहीं है और रूहें मर कर मादूम (ख़त्म) हो जाती हैं तो ये अस्नाद (सबूत) कि मैं अबराहाम वग़ैरह का ख़ुदा हूँ बातिल (झूट) हो जाता है। और तुम तौरेत को कलाम-उल्लाह मान कर उस को बातिल करते हो पस तुम ख़ुदा के कलाम को नहीं समझते इसलिए क़ियामत के मुन्किर हो। लोग ये सुनकर उस की ताअलीम से दंग (हैरान) हुए और हक़ीक़त में दंग होने की बात थी। कि उसने ऐसे उम्दा इलाही मज़्मून का बयान किया। फिर लिखा है कि मसीह ने सबत के दिन कई एक काम किए जिस पर उलमा-ए-यहूद कुड़कुड़ाए (बुरा भला कहना) और कहने लगे कि ये आदमी सबत की इज़्ज़त नहीं करता तौरेत के हुक्म को नहीं मानता मगर मसीह ने जवाब दिया कि तुम इस हुक्म का मतलब नहीं समझते हो इस का मतलब ये है कि तुम कोई दुनियावी काम सबत में नहीं कर सकते मगर नेक काम जो इबादत में शामिल है तुम कर सकते हो। दूसरी बात उस की उम्दा ताअलीम में ये है कि फ़ज़ाइल हमीदा (क़ाबिल-ए-तारीफ़ खूबियां) यानी तवक्कुल क़नाअत सब्र, बर्दाश्त, मुहब्बत ख़ैर ख़्वाही, रज़ा व तस्लीम वग़ैरह को जिनको सब लोग अक़लन व नक़लन अच्छा जानते हैं। और अक्सर मुअल्लिमों ने इनकी ताअलीम भी दी है इस ख़ूबसूरती के साथ बयान किया है कि इनके दक़ायक खु़फ़ीया (छुपे नुक्ते) और निकाते दकीका (गहरे मुआमले) और कैफ़ीयत ग़ैर मफ़हूमा साफ़ तौर पर समझी जाती हैं जिससे मालूम होता है कि दूसरे मुअल्लिम इस गुलशन के इर्द-गिर्द फिरने वाले हैं उन्होंने इन मदारिज को अच्छी तरह दर्याफ़्त भी नहीं किया और ना इनकी तश्रीह कमा-हक़्क़ा उनसे हो सकी लेकिन मसीह ने ना सिर्फ इनकी तफ़्सीर बतलाई बल्कि अमलन दिखला दिया और अपना ऐसा नमूना ज़ाहिर किया कि तमाम सालकीन (वो शख़्स जो ख़ुदा का क़ुर्ब भी चाहे और शुग़्ल मआश भी रखता हो) उस का मुँह तकते रह गए अहले तसव्वुफ़ (सूफ़ी) जो इन उमूर में कामिलियत का दावा रखते हैं मसीह की तफ़्सीर व तामील से दर्याफ़्त हुआ कि वो उनको समझते ही नहीं उसने सालकों (सालिक की जमा) को उनके सुलूक में आबिदों (इबादत करने वाले) को उनकी इबारत में ज़ाहिदों को उनके ज़ोहद में परहेज़गारों को उनके परहेज़ में। मुख़य्यरों (ख़ैरात करने वालो) को उनकी ख़ैरात में। दुनियादारों को उनकी दुनियादारी में। ख़ानादारों को उनकी ख़ाना-दारी में ऐसी उम्दा हिदायत की है कि सब इन्सानी व इलाही वाजिबात व फ़राइज़ ऐसे तौर पर अदा हो सकते हैं कि किसी का हक़ भी तलफ़ ना हो और इन्सान मक़्बूल इलाही हो जाये। दूसरों की ताअलीम ऐसी जामेअ और मानेअ नहीं है। तीसरी बात ये है कि उस की ताअलीम जिस्म और रूह दोनों के वास्ते मुफ़ीद है इस तरह पर कि वो तमाम रूहानी अमराज़ मोहलिका की तश्रीह और दवा बतलाता हुआ इस तरह हिदायत करता है कि जिस्म भी तबअन बच जाये और ग़र्ज़ असली भी फ़ौत ना होने पाए जिससे मालूम होता है कि वो आलिमु-लगै़ब (ग़ैब का इल्म रखने वाले) की ताअलीम है जो हर बशर के हाल से वाक़िफ़ हो कर उस का मुआलिजा (इलाज़) बताता है। यही वजह है कि उस के बयान को पाक रूहें ज़्यादा पसंद करती हैं और वो रूहें भी जो नफ़्सानी ख़्वाहिशों में दब कर मुर्दा सी हो गई हैं उस के कलाम से दर्जा बदर्जा ज़िंदगी हासिल करती हैं। चौथी बात ये है कि इन्सान जो बदी का ख़मीर आदम के सबब से अपने अंदर रखता है और बावजूद सख़्त कोशिश और ऐसी उम्दा ताअलीम के फिर भी ख़ता और ग़लती में गिर कर सज़ा का सज़ावार हो जाता है इस का तदारुक (ईलाज) भी उस की ताअलीम में ऐसा पाया जाता है कि किसी मुअल्लिम की ताअलीम में नज़र नहीं आता वो ये है कि वो हमारा कफ़्फ़ारा और गुनाहों का बदला भी है ग़र्ज़ कि हम उस की ताअलीम को और उस का दामन पकड़ कर किसी तरह डूब जाने का ख़ौफ़ नहीं रखते हैं। पाँचवीं बात ये है कि उस की ताअलीम में तमाम अम्बिया-ए-साबक़ीन का नतीजा मुज़म्मिर (छिपा) है जिससे उस की सदाक़त और हक़ीक़त ज़ाहिर होती है और बहुत सी ख़ुसूसीयतें हैं जो आम-फहम नहीं बल्कि गौरतलब हैं जिनकी गुंजाइश इन रिसालों में नहीं है इसलिए उन सबको इन्जील के पढ़ने पर मौक़ूफ़ रखकर हम यूं कहते हैं कि ऐ भाईयों दीने मसीही ज़रूर ख़ुदा की तरफ़ से है हम आप साहिबान की ख़िदमत में अर्ज़ करते हैं कि आप ग़ाफ़िल (लापर्वाह) ना रहें और इन सारी बातों की तहक़ीक़ कर लें वर्ना ख़ुदा की हुज्जत (दलील) तुम सब साहिबों पर तमाम हो चुकी है ऐसा ना हो कि मुफ़्त तुम्हारी जानें बर्बाद हो जाएं।

पाँच बातें हैं जो इन्सान को ख़ुदा से नहीं मिलने देतीं। दुनिया की मुहब्बत, बेवक़ूफ़ी, सुस्ती, ग़ुरूर, और तास्सुब। आओ हम इन गंदी बातों को छोड़कर सच्चाई को तलाश करें झूटे मज़्हबों और बातिल ख़यालों को तर्क कर के ख़ुदा के दीन पर ग़ौर करें। ख़ुदा करे इस रिसाले के पढ़ने वाले और सब आदमी अपनी नजात का फ़िक्र कर के मज़्हबों का मुक़ाबला करें और उन बातों पर जो इस रिसाला में हैं ग़ौर कर के मक़्सद असली को हासिल करें मसीह के वासिले से।

रिसाला हश्तम (8)
मौत के बयान में

रिसालेजात गुज़श्ता में ख़ुदावन्द ईसा मसीह के फ़ज़ाइल और उस की हक़ीक़त पर कुछ इशारा किया गया है। अब हम उस की उम्दा ताअलीम में से बाअज़ ख़ास मज़्मून बयान करना चाहते हैं ताकि नाज़रीन बनज़र इन्साफ़ देखें और ग़ौर करें कि ये मज़ामीन जिनको ख़ुदावन्द येसू मसीह ने अपनी ताअलीम में बयान फ़रमाया है इस बात पर साफ़ दलालत करते हैं कि उनका मुअल्लिम ज़रूर ख़ुदा-ए-बरतर है और ये मज़ामिन एक ऐसी ख़ुसूसीयत अपने अंदर रखते हैं कि तालिब-ए-हक़ की रूह उनकी सदाक़त पर बेताम्मुल (बिला सोचे समझे) गवाही देती है। लेकिन वो शख़्स जिसने दीने मुहम्मदी यादें-हनूद वग़ैरह को ग़ौर से देखा हो और उनके दक़ायाक़ व निकात (पेचीदा निकात) में बख़ूबी ग़ौर की हो और दीनयात में फ़िक्र कर के तजुर्बेकार हो गया हो इन मज़ामीन मज़्कूर बाइबल की बुलंदी और पाकीज़गी का हाल जल्द दर्याफ़्त कर के लुत्फ़ उठा सकता है। नाज़रीन के लिए बतौर नमूना चंद मज़्मून कलाम-ए-इलाही के दीन-ए-मुहम्मदी से मुक़ाबला कर के दिखलाना चाहता हूँ।

पहला मज़्मून
मौत के बयान में

हर एक आदमी जानता है कि ज़रूर एक रोज़ मौत आने वाली है और इस के बाद का अहवाल अक़्ल से कोई दर्याफ़्त नहीं कर सकता कि क्या होगा और इस में तो शक नहीं है कि कुछ ना कुछ ज़रूर होगा अज़ाब या सवाब या कुछ नहीं मगर अक़्ल-ए-इंसानी इन तीनों शक्क़ों (हिस्सों) में से किसी एक शक़ (हिस्सा) पर कामिल गवाही नहीं दे सकती अलबत्ता मज़्हब की किताबों में इस का ज़िक्र पाया जाता है और अपने-अपने गुमान में हर एक आदमी ने मौत के तदारुक (ईलाज) के वास्ते किसी ना किसी मज़्हब को इख़्तियार किया है ताकि अंजाम बख़ैर हो जाये। हम ईसाई लोग तमाम अहले-मज़्हब की ख़िदमत में अर्ज़ करते हैं कि हम सब लोगों की नीयत बख़ैर है इस बात से ग़र्ज़ नहीं कि किस मज़्हब और किस आदमी और कौन सी बातों के वसीले से हमारा अंजाम बख़ैर हो सकता है। मक़्सद ये है कि अंजाम बख़ैर हो। तो अब आओ हम सब के सब बहुत प्यार और उल्फ़त से अपने अपने ख़यालों का मुक़ाबला करें और सब मिलकर सोचें कि कौन से वसाइल अंजाम बख़ैर कर सकते हैं और कौन-कौन ख़याल दुरुस्त और वाजिब मालूम होते हैं। अगर सब के सब बिला तरफ़-दारी मकसूद-ए-असली को नज़र के सामने रखकर ये काम करें तो ज़रूर है कि हिदायत पाएं दुनिया के लोग तहक़ीक़ात के वक़्त मकसूद-ए-असली को छोड़कर और ग़ैर-मक़्सूद को पेश-ए-नज़र कर के गुमराही के गिर्दाब (पानी का चक्कर, भंवर) में जा हैं।

मौत का बयान जो मुहम्मद साहब ने किया है हम इस को क़ाज़ी सना-उल्लाह साहब मर्हूम की किताब तज़किर-तुल-मौत से नक़्ल करते हैं जो मुसलमानों में एक मोअतबर (क़ाबिल-ए-एतबार) किताब समझी जाती है। और वो ये है, अहमद ने मुजाहिद से रिवायत की कि जब ख़ुदा ने आदम को पैदा किया तो कहा ابن الخراب دولد الموت आबाद हो, ख़राब होने के वास्ते, बच्चे जने मौत के वास्ते। ये बिल्कुल ग़लत है क्योंकि ख़ुदा किसी आदमी की मौत नहीं चाहता क्योंकि वो आदिल और मुंसिफ़ है ना उसने आदम को इसलिए पैदा किया कि वो मर जाये बल्कि आदम आप ख़ताकार हो के मौत का सज़ावार हुआ।

ये हदीस का मज़्मून कलामे इलाही के बरख़िलाफ़ है। एक हदीस में है कि जब गुर (क़ब्र) में दफ़न किया जाता है। तो ज़मीन चार तरफ़ से सिरक कर उसे ख़ूब ज़ोर से दबाती है। और उसे दुख देती है जिसको ज़फ़ता कहते हैं। साद बिन मुआज़ को जो बड़ा मुसलमान था और ज़ैनब वर्क़ा और मुहम्मद साहब की लड़कीयों को ज़मीन ने दुख दिया था। क्योंकि हर मोमिन व काफ़िर को ये अज़ाब होता है ये बयान भी ग़लत है। क्योंकि जो लोग आग में जलाए जाते हैं या डूब मरते हैं या जिनको शेर खा जाता है उनकी निस्बत ये बयान सरीह ग़लत है। अता बिन यसार से रिवायत है कि मुहम्मद साहब ने कहा जब आदमी क़ब्र में जाता है तो उस के आमाल बशक्ल इन्सान आकर उस से मुलाक़ात करते हैं और क़ब्र में उस के हम-नशीन हो कर उस के साथ रहते हैं। और उस से बातें किया करते हैं। मैं कहता हूँ कि गो आमाल इन्सान की रूह के लिए मुफ़ीद या मुज़िर हों लेकिन ये बयान कि वो आदमी बन कर क़ब्र में मुलाक़ात करें अक़्लन व नक़लन तर्ग़ीबन बातिल (झूट) है। अबु सईद मुहम्मद साहब से रिवायत करता है कि जब नेक आदमी दफ़न होता है तो क़ब्र कहती है। शाबाश मर्हबा ख़ूब आया कल तक तू मुझ पर चला करता था आज मैं तुझ पर हूँ। देख मैं तेरे साथ क्या सुलूक करती हूँ। फिर ख़ुद बख़ुद बड़ी चौड़ी हो जाती है और बहिश्त का एक दरवाज़ा खुल जाता है और वहां से इस को हवा आती है।

जब काफिर दफ़न होता है तो कहती है बुरा आया तो फिर इस पर तंग हो कर उसे दबाती है। ऐसा कि उस की सब हड्डियां टूट जाती हैं और सत्तर साँप ऐसे ज़हरीले कि अगर एक साँप फूँकार मारे तो सारी ज़मीन पर कभी कुछ सब्ज़ी पैदा ना हो उस के काटने को बैठ जाते हैं। भला कोई पूछे तो कि जब रूह बदन से निकल गई और आलम-ए-अर्वाह में जा पहुंची फिर बदन को जो बिल्कुल ख़ाक है साँप के काटने से क्या ज़रर (नुक़्सान) है। कोई दाना आदमी इस मज़्मून को कभी क़ुबूल ना करेगा और साफ़ जान लेगा कि झूटा ख़ौफ़ दिलाया जाता है। बरा इब्ने आज़िब की एक बड़ी सी रिवायत में ये भी लिखा है कि क़ब्र में फ़रिश्ते आकर मुर्दे को बिठाते हैं और कहते हैं, कि तेरा ख़ुदा कौन है अगर सही जवाब दिया तो बहुत वर्ना लोहे की मोगरी (कूटने का आला) से मारते हैं। फिर कहते हैं तेरा रसूल कौन है अगर मुहम्मद साहब का नाम लिया तो बेहतर वर्ना उसी मोगरी से उस का सर तोड़ डालते हैं। फिर कहते हैं तेरा ईमान किस किताब पर है अगर क़ुरआन का नाम लिया तो बेहतर वर्ना वही मार पड़ती है जब मुर्दा दफ़न किया जाता है। उ’सी वक़्त ये धींगा मुश्ती (हाथा पाई) शुरू हो जाती है।

यही वजह है कि अक्सर देखने में आता है कि जब एक शख़्स को दफ़न कर के चले जाते हैं। तो एक शख़्स क़ब्र पर अकेला बाक़ी रह जाता है ताकि चंद बार अज़ान देने से शख़्स मदफ़ून की मदद करे। भला कौन अक़्लमंद इन बातों को बावर (यक़ीन, एतिमाद) कर सकता है। अम्मार बिन हरम कहता है कि मुहम्मद साहब ने फ़रमाया कि क़ब्र से नीचे उतर क्योंकि मुर्दे को तक्लीफ़ होती है। बाअज़ हदीसों से ज़ाहिर है कि मक़बरों में बोल व बराज़ ना करना चाहिए क्योंकि मुर्दे तक्लीफ़ पाते हैं। ऐसी ऐसी सदहा बातें हैं जो मुहम्मद साहब की ताअलीम से अहले इस्लाम में जारी हैं। लेकिन इन पर ग़ौर करने से मालूम होता है, कि मुहम्मद साहब ने लोगों को जिस्मानी मौत के बातिल ख़ौफ़ से डराया है। अगर वो मौत की कैफ़ीयत से वाक़िफ़ होते तो ऐसे मज़्मून जो सरीह बातिल (साफ़ झूट) हैं। जिनको हरगिज़ कोई दाना आदमी क़ुबूल नहीं कर सकता बयान ना करते। और ये भी ज़ाहिर है कि जिस शख़्स ने ऐसे-ऐसे ग़लत मज़्मून अपनी उम्मत को सिखाए ज़रूर उसने और मज़्मून भी जो बाइबल के बरख़िलाफ़ सिखलाए हैं सही ना होंगे। अब देखना चाहिए कि कलामे इलाही मौत का हाल क्या कुछ बयान करता है।

जिस्मानी मौत का बयान

पैदाइश 3:19 में है तू ख़ाक है और फिर ख़ाक में जाएगा। मगर पैदाइश 2:17 से ज़ाहिर है कि ये मौत उस गुनाह का नतीजा है जो आदम से सरज़द हुआ। ये मौत हर आदमी पर इसी आदम की ग़लती के बाइस वारिद हो गई है। वाइज़ 8:8 में है किसी आदमी को रूह पर इक़्तिदार नहीं कि उसे पकड़ रखे और मरने के दिन उस का कुछ बस नहीं। ये मौत ख़ुदा के हुक्म और क़ब्ज़े क़ुद्रत में है। इस्तिस्ना 22:29 में है कि मैं ही मारता हूँ और मैं ही जिलाता (ज़िंदा करता) हूँ। जब ये मौत आती है तो तमाम दुनियावी मंसूबे बातिल हो जाते हैं। वाइज़ 9:10 में है कि जो काम तेरे हाथ करने पाए उसी को अपने मक़्दूर (ताक़त) भर कर क्योंकि वहां गुर (क़ब्र) में जहां तू जाता है ना काम ना मन्सूबा ना आगाही ना हिक्मत है। अय्यूब 1:21 में है कि अपनी माँ के पेट से मैं नंगा निकल आया और फिर नंगा वहां जाऊँगा। ख़ुदावन्द ने दिया और ख़ुदावन्द ने लिया ख़ुदा का नाम मुबारक हो। ये मौत सबको बराबर कर है।

अय्यूब 3:19 में है कि छोटे बड़े वहां एक साथ हैं और ग़ुलाम अपने आक़ा से आज़ाद है एक दिन ऐसा आएगा। कि इस मौत से सब के सब मख़लिसी (छुटकारा) पाएँगे। और फिर कभी इस मौत से ना मरेंगे। अगरचे बाअज़ के लिए एक मौत तैयार है लेकिन ये आमाल 24:15 में है कि और ख़ुदा से उसी बात की उम्मीद रखता हूँ जिसके वो ख़ुद भी मुंतज़िर हैं कि रास्तबाज़ों और नारास्तों दोनों की क़ियामत होगी। और इस मौत से हम जब मख़लिसी (छुटकारा) पाएँगे। तो फिर कभी ना मरेंगे। लूक़ा 20:36 में है, क्योंकि वो फिर मरने के भी नहीं इसलिए कि फ़रिश्तों के बराबर होंगे। और क़ियामत के फ़र्ज़न्द हो कर ख़ुदा के भी फ़र्ज़न्द होंगे। इस जिस्मानी मौत को भी ख़ुदावन्द येसू मसीह ने मग़्लूब (हराया) कर के दिखलाया। क्योंकि वो मुर्दों में जी उठा और मौत के क़ब्ज़े में ना रहा और आख़िरुल-अम्र हमें भी वही उस के पंजे से मख़लिसी (छुटकारा) देगा।

होसेअ 13:14 में है कि पाताल के क़ाबू से फ़िद्या मैं लूंगा। मैं उन्हें मौत से छुड़ाऊंगा। ऐ मौत तेरी मरी (वबा) कहाँ है ऐ पाताल तेरी हलाकत कहाँ। इन पाक बयानों से ये बात ज़ाहिर है, कि ये जिस्मानी मौत जिसका आना ज़रूरी है कुछ ख़ौफ़ और अंदेशे की मौत नहीं क्योंकि ये एक तरह का इंतिक़ाल मकान है। अगरचे इस के बाइस हम बदन को छोड़कर एक पर्दे में हो जाते हैं तो भी ख़्वाह हम भले हों या बुरे इस के नीचे से ज़रूर मख्लिसी (रिहाई) पा कर उठ खड़े होंगे और ये भी ज़ाहिर है कि इन बयानों में ना झूटी तर्ग़ीब (आमादा करना, लालच दिलाना) है ना बनावट ना मुबालग़ा (बढ़ा-चढ़ा) कर बयान करना बल्कि वाक़ई अम्र है।

अलबत्ता ये ज़रूर है कि इस मौत को याद कर के अपने फ़राइज़ और वाजिबात को अदा कर के कुच (रवानगी) के मुंतज़िर रहें। ख़ुदावन्द ईसा मसीह जो मौत पर ग़ालिब आया है। उस के वसीले से बाअज़ आदमी इस मौत से भी मख़लिसी पाएँगे। यानी उस को भी ना देखेंगे। यानी वो लोग कि जिनके ज़माने में वो आस्मान से आ जाएगा। सिर्फ उनके जिस्म तब्दील हो जाऐंगे। क्योंकि फ़ानी और गुनेहगार जिस्म का बर्बाद होना ज़रूर है। इसलिए ये तब्दीली भी एक तरह का इंतिक़ाल है और इसी इंतिक़ाल (एक जगह से दूसरी जगह मुंतक़िल होना) का नाम जिस्मानी मौत है। ये जवाब है उन लोगों के लिए जो कहते हैं कि इल्यास (एलियाह) और हनोक क्यों ना मरे और क्यों वो ज़िंदा आस्मान पर उठाए गए।

पस जानना चाहिए कि वो लोग अगरचे मौत मुतआरिफ़ा (ज़ाहिरी मौत) से बच गए पर तब्दील जिस्म उनके लिए भी ज़रूर है। क्योंकि नापाक और ख़ाकी जिस्म ख़ुदा के सामने खड़ा होने के लायक़ नहीं है। यसअयाह 6:5 में लिखा है कि तब मैं बोल उठा कि हाय (अफ़्सोस) मुझ पर मैं तो बर्बाद हुआ कि मैं नापाक होंट वाला आदमी हूँ। और नजिस लब (नापाक होंट) लोगों के दर्मियान बस्ता हूँ। क्योंकि मेरी आँखों ने रब-उल-अफ़्वाज को देखा। उस दम एक उन सराफ़ीम (फ़रिश्ते) में से एक सुलगता हुआ कोयला जो उसने दस्त पनाह से मज़बह पर से उठा लिया अपने हाथ में ले के मेरे पास उड़ा। और उसने मेरे मुँह को छुवा और कहा कि देख उसने तेरे लबों को छुवा सो तेरा गुनाह दफ़ाअ हुआ। कि मज़बह की आग से जो मसीह की क़ुर्बानी का निशान है। यसअयाह को पाक कर के सामने खड़े रहने के लायक़ बनाया।

ऐसे बयानों से ज़ाहिर है कि जब तक इन्सान के गुनाह दफ़ाअ ना हों और जब तक वो अपने गुनाहों को धो ना डाले दरगाह (बारगाहे) इलाही में रसाई नहीं हो सकती। अब अगरचे इल्यास (एलियाह) व हनोक ने जिस्मानी मौत को ना देखा तो क्या हुआ मौत की ग़र्ज़ और मुराद पूरी हो गई। जैसे कि अब मसीह की आमद सानी में उन ईसाईयों से जो उस वक़्त ज़िंदा होंगे। मौत की मुराद पूरी की जाएगी। यानी मौत के सबब को दूर करना या गुनाह के ज़हर को धो डालना और जब किसी के जिस्म से गुनाह दफ़ाअ हुए तो अब वो शख़्स नए जिस्म में है। पस उसने बड़े आराम के साथ इंतिक़ाल मकान किया। या मआनन जिस्मानी मौत को देखा यहां से साबित है कि हर आदमी जिस्मानी मौत को देखेगा। उस का आना ज़रूर है और जो ज़रूरी अम्र है इस से डरना और डराना नादानी है। क्योंकि इस का दफ़ाअ करना मुम्किन नहीं। हाँ एक और मौत है। जिससे ख़ौफ़ करना निहायत ज़रूर है और जिस्मानी आदमी इस को नहीं जानते हम लोग जो ईसाई हो जाते हैं। और जाहिलों की तरह तरह की लअन तअन सह लेते हैं। इसी मौत से डर कर ईसा मसीह के पास पनाह लेते हैं क्योंकि उस के सिवा कोई नहीं। जो हमें इस बड़ी मौत से बचाए। बहुत से लोग इस मौत से नावाक़िफ़ जिस्मानी मौत पर आह किया करते हैं। और क़ब्रों और जनाज़ों और वीरान मकानों और क़दीम आसारों को देखकर अफ़्सोस करते हैं। और कहते हैं कि एक दिन हमें भी इस जहान को छोड़ना है उनको ख़याल करना चाहिए, कि इस तरह के अफ़्सोस जो दीन-ए-मोहम्मदी वग़ैरह में आदात-ए-महमूदा (क़ाबिले तारीफ़ आदतें) ख़याल किए गए हैं, निहायत मकरूह बात है। क्योंकि ये जहान जिस पर ख़ुदा की लानत पड़ी जो शैतान का घर है जिसकी हर चीज़ फ़ानी और बेवफ़ा जिसमें हर तरह के दुख हमारे लिए तैयार हैं। अगर हम इस को छोड़ दें तो ख़ुशी की बात है। ना अफ़्सोस की अलबत्ता उनके लिए अफ़्सोस की बात है जिनके दिलों में इस जहान की मुहब्बत ज़ोर मार रही है। पस इस मौत से जो जिस्मानी है हरगिज़ ख़ौफ़ ना करना चाहिए। बल्कि इस मौत को जो जी उठने के बाद आने वाली है और जिसका तदारुक (इंतिज़ाम, दुरुस्ती) भी मुम्किन है। क्योंकि वो बला जिसका दफ़ाअ करना मुम्किन था अगर हमारी ग़फ़लत से हम पर आ जाए तो बड़े अफ़्सोस की बात है। ख़ासकर ऐसी बला जिसका अंजाम नहीं यानी ना तमाम है।

पस ऐ भाइयो। आओ और ख़ुदा के कलाम में इस मौत का हाल और तदारुक दर्याफ़्त कर के सई (कोशिश) करें कि वो मौत हम पर ना आ पड़े।

दूसरी मौत

इस के बहुत से नाम कलाम-उल्लाह में मुन्दरज हैं। और शरह बयान इस का ख़ुदा ने अपने कलाम में इसलिए किया है कि उस रोज़ लोग यूं ना कहें, कि हम इस से नावाक़िफ़ थे।

पहला नाम : ख़ुदा के चेहरे की सज़ा। (2 थिस्सलुनीकियों 1:9) में है कि वो ख़ुदावन्द के चेहरे और उस की क़ुद्रत के जलाल से दूर हो कर अबदी हलाकत की सज़ा पाएँगे।

दूसरा नाम : शैतानी मुसाहबत (साथ रहना) मत्ती 25:41 में है कि फिर वो बाएं तरफ़ वालों से कहेगा, ऐ लानतियों ! मेरे सामने से इस हमेशा की आग में चले जाओ जो इब्लीस और उस के फ़रिश्तों के लिए तैयार की है।

तीसरा नाम : आग की झील। (मुकाशफ़ा 19:20) में है कि और वो हैवान और उस के साथ वो झूटा नबी पकड़ा गया। जिसने उस के साथ ऐसे निशान दिखाए थे। जिससे उसने हैवान की छाप लेने वालों और उस के बुत की परस्तिश करने वालों को गुमराह किया था। वो दोनों आग की उस झील में ज़िंदा डाले गए जो गंधक से जलती है। और 21:8 में है कि ये दूसरी मौत है।

चौथा नाम : हमेशा का कीड़ा। (मर्क़ुस 9:44) में है कि जहां उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।

पांचवां नाम : बाहर का अंधेरा। (मत्ती 25:30) में है कि इस निकम्मे नौकर को बाहर अंधेरे में डाल दो।

छटा नाम : हमेशा का अंधेरा। (2 पतरस 2:17) में है कि उनके लिए हमेशा की तारीकी की स्याही धरी है। क़हर ग़ज़ब मुसीबत और तंगी भी इसी का नाम है। रोमीयों 2:9) में है कि और मुसीबत और तंगी हर एक बदकारी जान पर आएगी। आने वाला ग़ज़ब भी इसी का नाम है।

(1 थिस्सलुनीकियों 1:10) में है कि येसू ने जो हमें आने वाले ग़ज़ब से छुड़ाया है।

सज़ा की क़ियामत। (यूहन्ना 29) में है कि जिन्हों ने बदी की है सज़ा की क़ियामत के लिए निकलेंगे।

शर्मिंदगी की क़ियामत। (दानीएल 12:2) में है कि जाग उठेंगे बाअज़ हयात-ए-अबदी के लिए और बाज़ अबदी रुस्वाई यानी ज़िल्लते अबदी के लिए यानी जहन्नम के अज़ाब के लिए।

(मत्ती 23:33) में है कि ऐ साँप के बच्चो तुम जहन्नम के अज़ाब से क्योंकर बचोगे? ऐसे ऐसे बहुत से नाम इस मौत के हैं जो उस की सिफ़तों को ज़ाहिर करते हैं। इस अम्र में मुहम्मदी बयान बेजा, तहरीफ़ (तब्दीली) और दहश्त ज़ाहिर करता है मगर कलाम इलाही इस का हक़ीक़ी बयान कर के नफ़्स-उल-अम्र (हक़ीक़त) पर रहनुमाई करता है।

अब कई अम्र दर्याफ़्त के लायक़ हैं।

अव़्वल ये कि इस मौत का यक़ीन हमें क्योंकर हुआ कि ज़रूर आने वाली है? वाज़ेह हो कि जब आदमी इस बात पर ख़याल करे कि ख़ुदा ज़रूर आदिल और मुंसिफ़ है। तो अक़्ल चाहती है कि जो लोग उस की रहमत से दूर जा पड़े अलबत्ता उनके लिए ऐसी सज़ा चाहिए।

दूसरी ये बात है कि कलामे इलाही जो अपनी सदाक़त (सच्चाई) बहुत बातों में ज़ाहिर कर चुका है। इसलिए ये बयान भी इस का ज़रूर सच्चा है। देखो कलाम-उल्लाह में सदहा पेशीन गोईयाँ मज़्कूर हैं। जो अपने मौक़े पर पूरी हो गईं और होती जाती हैं। जिससे कलाम की मोअतबरी (क़ाबिल-ए-एतबार) साबित हो गई। इस के सिवा जिनके ज़रीये से वो कलाम हमें इनायत हुआ है। वो लोग भी उसी ख़ालिक़ की क़ुद्रत से साहिबे एतबार साबित हो गए हैं इसलिए ज़रूर ये बयान उनके रास्त और दुरुस्त हैं। और ये बात भी याद रखना चाहिए कि इस दूसरी मौत का मुक़ाबला इन्सान के अंजाम से इलाक़ा रखता है और अंजाम आदमी के सिवा ख़ुदा-ए-क़ादिर के कोई नहीं जान सकता।

इस की कैफ़ीयत दर्याफ़्त करना अक़्ल से बाहर है पस इस की तहक़ीक़ अक़्ल से बल्कि उसी के कलाम से करनी ज़रूर है। हाँ अक़्ल ये कहती है कि कुछ ना कुछ इन्सान का अंजाम होना चाहिए। और ये भी कहती है कि बदी का अंजाम बद होना चाहिए। पस जहां तक अक़्ल की रसाई हुई वहां तक अक़्ल से और जहां अक़्ल लाचार हो वहां पर कलामे इलाही की हिदायत से इस मौत का यक़ीन हमारे दिलों में पैदा हुआ है। देखो दुनिया में हम हर एक आने वाली मुसीबत का यक़ीन मोअजिज़ों और अलामात से दर्याफ़्त करते हैं। इसी तरह इस मौते सानी (दूसरी मौत) का हाल हमने निहायत बड़े मोअतबर मोअजिज़ों से जिनके बराबर कोई भी सच्चा और मोअतबर जहान में ज़ाहिर नहीं हुआ। सुना है और इस के आने की अलामात भी हमने अक़्ल की आँख से देखी हैं। इसलिए हम यक़ीन रखते हैं कि बेशक ये मौत बदकारों पर आएगी।

दुवम ये कि इस के आने का क्या सबब है कलाम-उल्लाह से ज़ाहिर है, कि ये मौत गुनाह का नतीजा है। रोमीयों 6:23 में है कि गुनाह की मज़दूरी मौत है। याक़ूब 1:15 में है कि ख़्वाहिश हामिला हो के गुनाह पैदा करती है। और गुनाह जब इंतिहा तक पहुंचता है तो मौत को जनता है। हम सब आदमी मौरूसी गुनाह में फंसे हुए हैं। आदम की खता (ग़लती) के बाइस सब गुनेहगार हैं। और गुनाह इक्तिसाबी (ज़ाती मेहनत से हासिल) करना भी हम में भरे हुए हैं। इसलिए हम बड़े ख़ौफ़ के मुक़ाम में हैं। क्योंकि इस आइन्दा मौत का सबब हम में मौजूद है। इस के सिवा ये बात है कि अगर हम अपने आमाल पर तकिया कर के इस मौत से बचना चाहें तो बादियुन्नज़र (सरसरी नज़र) में ये राह मख़लिसी (छुटकारे) की दिखाई देती है।

मगर अम्साल 14:13 में यूं मज़्कूर है कि एक राह है जो इन्सान को सीधी दिखलाई देती है। पर उस के इंतिहा में मौत की राहें हैं। रोमी 6:21 में है कि पस तुमने उन कामों से जिनसे अब शर्मिंदा हो क्या फल पाया। क्योंकि इनका अंजाम मौत है। देखो भाइयो आदमी कैसी ग़लती में फंसे हुए हैं अपने आमाल पर भरोसा कर के ख़ुदा के ग़ज़ब से बचना चाहते हैं। अगरचे हम कैसे ही अच्छे काम करें तो भी हमारे ज़ईफ़ (कमज़ोर) काम ख़ुदा के क़वी (ज़ोर-आवर) काम का मुबादला व मुक़ाबला नहीं कर सकते। यहां से ज़ाहिर है आने वाली मौत के दो सबब हैं गुनाह और आमाल पर भरोसा रखना सो दोनों सबब इन्सान में मौजूद हैं।

सोइम ये कि ये मौत किस के वसीले और किस के हाथ से दी जाएगी। ख़ुदा के कलाम में लिखा है कि ख़ुदावन्द ईसा मसीह जिसका इख़्तियार कुल आस्मान व ज़मीन पर है। जो हर ईमानदार को नजात बख़्शता है उसी के हाथ से ये मौत गुनेहगार बदकारों बेईमानों को दी जाएगी। मत्ती 25:3 है कि जब इब्ने आदम अपने जलाल में आएगा और सब फ़रिश्ते उस के साथ आएँगे। तो उस वक़्त वो अपने जलाल के तख़्त पर बैठेगा। आयत 41 में है कि फिर वो बाएं तरफ़ वालों से कहेगा, ऐ मलऊनो (लानतियों) मेरे सामने से इस हमेशा की आग में चले जाओ। जो इब्लीस और उस के फ़रिश्तों के लिए तैयार की गई है। 2 थिसलिनिकियो 1:6 में है कि उस वक़्त जब कि ख़ुदावन्द येसू अपने क़वी फ़रिश्तों के साथ भड़कती हुई आग में आस्मान से ज़ाहिर होगा। और जो ख़ुदा को नहीं पहचानते और हमारे ख़ुदावन्द येसू की खुशख़बरी को नहीं मानते उनसे बदला लेगा। कि वो ख़ुदावन्द के चेहरे से और उस की क़ुद्रत के जलाल से दूर हो के अबदी हलाकत की सज़ा पाएँगे।

बात ये है कि हम क्योंकर इस मौत से मख़लिसी पाएँगे। अगर आदमी इस मौत से बचना चाहे तो उस को लाज़िम है कि ख़ुदावन्द ईसा मसीह पर ईमान लाए। बग़ैर इस ईमान के किसी तरह ख़लासी (रिहाई) नहीं हो सकती। यूहन्ना 3:16 में है कि ख़ुदा ने जहान को ऐसा प्यार किया कि उसने अपना इकलौता बेटा बख़्शा। ताकि जो कोई उस पर ईमान लाए हलाक ना हो बल्कि हमेशा की ज़िंदगी पाए। यूहन्ना 4:9 में है कि ख़ुदा की मुहब्बत जो हमसे है इस से ज़ाहिर हुई कि ख़ुदा ने अपने इकलौते बेटे को दुनिया में भेजा ताकि हम उस के वसीले से ज़िंदगी पाएं। यूहन्ना 11:25 में है कि येसू ने उस से कहा कि क़ियामत और ज़िंदगी तो मैं हूँ जो मुझ पर ईमान लाता है। गो वो मर जाये तो भी ज़िंदा रहेगा।

अगले रसूलों के नविश्ते अगर कोई आदमी गौर से पढ़े तो उसे मालूम हो जाएगा, कि यही ख़ुदावन्द येसू मसीह नजातदिहंदा और भरोसे के लायक़ है। उसी पर ईमान लाकर सब मुक़द्दस जन्नत के वारिस हुए हैं। पस उसी पर ईमान लाना इस मौत से बचाता है।

आइंदा रिसाले में ईमान का कुछ अहवाल नाज़रीन पर रोशन हो जाएगा, कि ये ईमान कैसा क़वी और पाक हक़ीक़ी ईमान है। और सिर्फ यही नजात की जड़ है। आमाले हसना (नेक काम) इस का समरा (फल, फ़ायदा) है ना नजात का सबब बल्कि बाइसे ज़ीनत (ख़ूबसूरती, सजावट) है। यानी आमाल नेक से हमारी ख़ूबसूरती और ख़ुदा की बुजु़र्गी ज़ाहिर होती है अगर वह मसीही ईमान का समरा (फल) हो वर्ना सब हीच (नाकारा) हैं। मौते अव़्वल और मौते दोम का मुख़्तसर ज़िक्र सुनने से कई बातें ग़ौर व तलब हैं।

अव़्वल ये कि जिस्मानी मौत अबदी नहीं है इस के अंजाम में सज़ा या जज़ा के लिए फिर ज़िंदगी है। इतनी तक्लीफ़ है कि इस ख़ाकी ख़ेमे को छोड़ना पड़ेगा। लेकिन हक़ीक़त में तक्लीफ़ नहीं बल्कि राहत (आराम) है। क्योंकि तरह तरह की तकालीफ़ और मसाइब से इस मौत के वसीले से हम रिहाई पाते हैं। पस दुनिया के मदरिसे से जिसमें ताअलीम और इम्तिहान के लिए भेजे गए हैं वही रुख़्सत का वक़्त है इस मौत को याद करके हमें शौक़ और चुसती पैदा होना चाहिए, कि हम बहुत जल्द इस मदरिसे में ताअलीम पा कर और फ़ज़ीलत हासिल कर के वो नेक-नामी का सर्टीफ़िकेट हासिल करें। जिससे हम अपने हक़ीक़ी वतन में जा कर अच्छा ओहदा पाएं। लेकिन छुट्टी के वक़्त के मुंतज़िर रहें ऐसा ना हो कि रुख़्सत का वक़्त आ जाए और हम वही जाहिल के जाहिल बदनामी की छुट्टी लेकर यहां से निकलेन। और छुट्टी में तमाम-तर ठोकर खाते दुख उठातें फिरें।

पस जो कोई इस जिस्मानी मौत में सिवाए ऐसे फ़ाइदों और नुक़्सान के और तरह की तकालीफ़ बयान करे और क़ब्र के बिच्छू साँप वग़ैरह से डराए वो मुअल्लिम ख़ुदा के भेदों से नावाक़िफ़ और ख़ुद ताअलीम पाने के लायक़ है। दूसरी मौत पर फ़िक्र करने से ये नताइज निकलते हैं कि बेशक वो ख़ौफ़ के लायक़ है। इसलिए कि अबदी है और इस में इन्सान मादूम (नाबूद, नेस्त) किया गया नहीं बल्कि मौजूद रह कर बराबर दुख में फंसा रहता है। और वहां जा कर फिर कोई शख़्स इस से छूट नहीं सकता है।

इस के सिवा वो ऐसी मौत है कि इस का तदारुक (ईलाज) भी हम कर सकते हैं। अगर हमारी ग़फ़लत (ग़लती, लापरवाही) से वो मौत हम पर आ जाए। तो इलावा इस की तक्लीफ़ के कितनी पशेमानी (शर्मिंदगी) हमको उठानी पड़ेगी। फिर हम अपनी तदबीर और सारी अक़्ल और होशयारी को लेकर क्या ख़ुश होंगे। दुनियावी इल्म और सारे शान व शौक़त और माल व मताअ (पूँजी, असासा) औलाद और रिश्तेदार और दुनिया की इज़्ज़त हमारे किस काम आयेंगी। हमारा इल्म जहल और हमारी अक़्ल बेवक़ूफ़ी से तब्दील हो जाएँगी। दुनिया पर फ़रेफ़्ता (फ़िदा, आशिक़) हो कर लड़कों कैसी तार गा रहे हैं ख़ुदा की हिक्मत उन्हें पुकारती है और वो नहीं सुनते नूह पैग़म्बर ने दुनिया के लोगों को बहुत समझाया लेकिन इस मेय मदमस्ती (शहवत परस्ती) में उसकी ना सुनी आख़िर सब बर्बाद हो गए। लूत ने सदोम और अमोरह के लोगों को बदी से कैसे मना किया लेकिन उन्होंने नहीं माना और तबाह हुए।

ये कैसे नमूने हमारे सामने मौजूद हैं। इब्तदा-ए-दुनिया से इस मौत का चर्चा रसूलों ने दुनिया में किया है। इसी तरह ये भी एक दिन आ जाएगी क्या हम इस का बंदो बस्त बहुत जल्द इसी जहान में ना करें। और ये भी याद रखना चाहिए, कि जीते-जी जिसकी तसल्ली इस जहान में इस मौत से नहीं हुई उस का अंजाम हरगिज़ भला ना होगा सब झूटे मज़्हब वालों की रूह या तो फ़रेब खा कर या सिर्फ इस उम्मीद से कि शायद बख़्शा जाऊँगा। बे तसल्ली इस जहान से निकल जाती है। हमारा ख़ुदावन्द येसू मसीह और मुर्शिदों के मानिंद सिर्फ़ झूटी तसल्ली नहीं देता है। बल्कि सच्ची और आस्मानी तसल्ली जिस की कैफ़ीयत हम बयान नहीं कर सकते रूह को इनायत (अता करना, बख़्शना) फरमाता है।

हाँ इस की बाबत इतना कह सकते हैं कि वो पाक आराम और वो हक़ीक़ी ख़ुशी ख़ास मुनासबत से एक पाक रूह को देकर रहमते इलाही के साये में कर देता है। इस वक़्त ख़ौफ़ और तरद्दुद (सोच, फ़िक्र) गम और सुस्ती रूह से यकलख्त दूर हो जाती हैं। और रूह देखती है कि पहले मैं किसी बोझ के तले दबी हुई थी। और मुर्दा पड़ी थी। लेकिन अब ज़िंदा और बहाल हो कर हक़ीक़ी हिमायती के साथ राहत की सवारी में उड़ती हुई आस्मान की तरफ़ चली जाती हूँ। और अपने हिमायती की दस्त-गीरी (मदद, हिमायत) से मैदान में कूद कर मुश्किलात के पहाड़ों को हँसती हुई ठोकर से उड़ाती है अगरचे मुहालिफ़ों के मुहासिरे में (अपने) आपको देखती है पर नहीं घबराती बल्कि बड़ी भारी फ़त्ह की उम्मीद में शुक्रगुज़ारी और सताइश के मज़्मून दुआओं में लपेटे हुए आस्मान को उड़ाती है और जब पीछे मुड़ कर देखती है कि मसीह मुझे कहाँ से निकाल लाया तो अपनी पहली हालत को देखकर काँप उठती है पास ऐ मेरे भाइयो हम तुम्हें भी इत्तिला देते हैं कि ख़ुदावन्द ईसा मसीह के पास जीने आओ तुम्हें उस हमेशा की मौत से कामिल मख़लिसी (छुटकारा) इनायत करता है आइंदा तुम्हें इख़्तियार है फ़क़त।

रिसाला नह्म (9)
ईमान के बयान में

गुज़श्ता रसाइल में ख़ुदावन्द येसू मसीह का कुछ हाल बयान हुआ और इस बात का भी ज़िक्र हुआ कि येसू मसीह पर जब तक कोई शख़्स ईमान ना लाए। उस वक़्त तक हरगिज़ नजात नहीं पा सकता है। अब इस अम्र का ज़िक्र ज़रूर है कि ईमान क्या चीज़ है और क्योंकर हो सकता है। इस से पहले ये जानना चाहीए कि ईमान ख़ुदा और इन्सान के दर्मियान सुलह का बाइस है। यानी बग़ैर ईमान के ख़ुदा के साथ सुलह नहीं हो सकती। इस की तौज़ीह (वाज़ेह करना) यूं है कि जिस शख़्स में ईमान नहीं वो बेशक ख़ुदा का दुश्मन और उस के क़हर के मातहत (नीचे) है। क्योंकि अदम ईमान ऐन मुख़ालिफ़त है और गोया ख़ुदा की ख़ुदाई और उस का बंदा होने का सरीह (साफ़) इन्कार है। और जो शख़्स अपनी अबूदीयत (बंदगी) और उस की उलूहियत (ख़ुदाई) का मुन्किर है। ख़्वाह उम्दन (जानबूझ कर) ख़्वाह जहालतन किसी सूरत से हो वो हर तरह ख़ुदा का मुख़ालिफ़ और दुश्मन है।

इस के सिवा आदमे अव़्वल की ख़ता के सबब हर इन्सान ख़ुदा के ग़ज़ब के मातहत है। जिसका ज़िक्र हो चुका इसलिए ज़रूर है कि हम किसी तरह अपने ख़ालिक़ व मालिक से मेल और सुलह पैदा कर लें। क्योंकि ये बात बग़ैर ईमान के दूसरी चीज़ से हासिल नहीं हो सकती। इसलिए ईमान की तलाश हर फ़र्द बशर पर वाजिब और लाज़िम है। ईमान के आम मअनी ये हैं कि किसी ख़ास मज़्मून या ख़ास अक़ीदे का दिल में यक़ीन और ज़बान में इक़रार करना। मगर ईमान हक़ीक़ी के ये मअनी नहीं हैं उस के कुछ और ही मअनी हैं जो ज़ेल में आए हैं। ईमान के आम मअनी की रु से इस जहान में देखो। कि किस क़द्र अलैहदा-अलैहदा (अलग-अलग) ईमान हैं जो मुरव्वज (रिवाज) हो रहे हैं। चुनान्चे हिंदूओं का एक जुदा ईमान है जिसका एक बड़ा हिस्सा इस वक़्त ये भी है कि ग़ैर-अक़्वाम के हाथ से ना खाना और अपनी ज़ात की हिफ़ाज़त ज़्यादातर करना मुसलमानों का ये ईमान है, कि मुहम्मद साहब की नबुव्वत का यक़ीन और इक़रार करना और ख़ुदा को वाहिद जानना।

इसी तरह हर एक मज़्हब का जुदा-जुदा ईमान है और अह्ल-ए-अक़्ल के सदहा क़िस्म के अक़ाइद मुख़्तलिफ़ गोया उनके मुख़्तलिफ़ ईमान हैं। इनके सिवा बाअज़ लोग इस मुल्क में ऐसे ही हैं कि कुछ तो इल्म की रोशनी के सबब से और दीने हनूद और दीने इस्लाम के बे-बुनियाद होने के बाइस अपने-अपने दीन से नाराज़ हैं। लेकिन ईसाई मज़्हब को तो शर्म के मारे या दुनियावी तकालीफ़ के बाइस क़ुबूल करने की जुर्आत नहीं करते। या इसलिए कि मज़्हब ईस्वी पर भी उनके कुछ एतराज़ात हैं और तुनदही (तंग-नज़री) से इस का तस्फ़ीया (फ़ैसला, सुलह) नहीं कर सकते हैं। और अपने ज़हन में दबाए बैठे हैं ऐसे लोगों ने भी जुदा-जुदा ख़यालात पैदा कर के उनको अपना अपना ईमान क़रार दे लिया है।

यही वजह है कि इन तरह-तरह ईमान और अक़ाइद को देखकर इन्सान घबरा जाता है। लाज़िम ये है कि इन तमाम मुरवज्जह अक़ाइद की छानबीन करे। और जो ईमान बाइस-ए-नजात हो उस को क़ुबूल करे। इसलिए अब मैं ईमाने हक़ीक़ी की बाबत कुछ अर्ज़ करना चाहता हूँ वाज़ेह हो कि ये बात तो साबित हो चुकी है कि ख़ुदा तआला ने इस ज़मीन पर लोगों को ज़रूर इल्हाम दिया है यानी कुतुबे इल्हामियाह ज़मीन पर मौजूद हैं। जिसका ज़िक्र मुख़्तसर बंदे ने हिदायत-उल-मुस्लिमीन के बाब अव़्वल में भी लिखा है।

पस जब कि कलामे इलाही ज़मीन पर आ चुका तो अब हमें क्या हाजत (ज़रूरत) है, कि आदमीयों के बताए हुए ईमान को क़ुबूल कर के हमेशा के अज़ाब में गिरफ़्तार हों। हमें ज़रूर है कि उस ईमान को जो ख़ुदा-ए-क़ादिर के कलाम में मज़्कूर है हासिल करें। क्योंकि इस ईमान के सामने जहान के ईमान और इन अक़ाइद के सामने तमाम जहान के अक़ाइद हीच और नाक़ाबिले इल्तिफ़ात (बेकार और तवज्जोह के क़ाबिल ना होना) हैं। मख़्फ़ी (छिपी) ना रहे, कि कलाम-ए-इलाही में ईमान का ज़िक्र यूं आया है कि ईमान मुतलाशी है। रोमीयों 12:3 में है कि एक तालिबे हक़ को ख़ुदा की तरफ़ से बतौर बख़्शिश के मिलता है बल्कि जैसा ख़ुदा ने हर एक को अंदाज़े के मुवाफ़िक़ ईमान तक़्सीम किया है एतिदाल (दरमियाना दर्जा) के साथ रहे अपने आपको वैसा समझे।

इस से ज़ाहिर है कि ईमान सिर्फ़ ख़ुदा की तरफ़ से इनायत होता है शायद कोई कहे कि ईमान जब कि एक बख्शीश-ए-इलाही है। तो हर इन्सान उस के हासिल करने या ना करने में माज़ूर है। जवाब ये है, कि ईमान जो मूजिबे नजात है, वह तो बेशक ख़ुदा की बख़्शिश है मगर इन्सान की तरफ़ से इस की तलाश और तलब शर्त है। अगर उस की तरफ़ से तहरीक ना हो तो वो ईमान हासिल ना होगा। यानी ईमान तो ज़रूर बख़्शिशे इलाही है पर इस बख़्शिश का तलब करना और इस की तलब में जान बल्ब (मरने के क़रीब) होना इंसानों पर फ़र्ज़ है इसलिए ऐसा शख़्स जो अपने फ़र्ज़ को तर्क करता है। माज़ूर नहीं हो सकता बल्कि बेईमान मर जाता है। और ये जो कहा करते हैं कि ख़ुदा पर ईमान ला इस के ये मअनी हैं कि तू उस की जुस्तजू कर कि वो बख्शिश-ए-इलाही यानी ईमान ख़ुदा की तरफ़ से तुझे इनायत हो। ईमान ख़ुदा की तरफ़ रुजू करने का वसीला है।

(आमाल 11:2) में है कि और बहुत से लोग ईमान ला के ख़ुदावन्द की तरफ़ रुजू होते। यहां से ज़ाहिर है कि बग़ैर ईमान के ख़ुदा की तरफ़ फिर ना मुश्किल है पस ईमान रूह का वसीला भी है। या यूं कहें कि ईमान एक सही यक़ीन है जो रूह-उल-क़ुद्स के वसीले से दिल पर इलक़ा (वो बात जो ख़ुदा दिल में डाले) होता है। चुनान्चे (1 कुरंथियों 2:9) में है कि किसी को इसी रूह से ईमान अलीख (आख़िर का मुख़फ़्फ़फ़) यानी रूह-उल-क़ुद्स का ये भी काम है कि उस के वसीले से आदमीयों को ईमान इनायत होता है। और चूँकि हम देखते हैं कि कलाम-ए-इलाही में जगह-जगह ईमान लाने के वास्ते सबको हुक्म होता है और हमारी तरफ़ से ज़्यादातर कोशिश व सई (जद्दो जहद) तलब करता है फिर उन आयात को भी हम देखते हैं जिनसे ज़ाहिर होता है कि ये ईमान सिर्फ़ ख़ुदा की बख़्शिश और इनायत से हासिल होता है तो हमारे दिल में ख़्वाह-मख़्वाह ये ख़याल पैदा हो जाता है कि शायद इन दोनों बयानात में कुछ इख़्तिलाफ़ है। हालाँकि इस के मअनी यही नहीं, कि इन्सान पर जुस्तजू करना और सई (कोशिश) करना फ़र्ज़ है। और इस कोशिश और सई और इल्तिजा के बाइस जो सच्चा रूहानी यक़ीन ख़ुदा तआला दिल पर इलक़ा करता है। वही बख्शिश-ए-एज़दी (ख़ुदा की बख़्शिश) है। और ये सच्चा यक़ीन उन मुक़द्दमात से मुरक्कब (दो चीज़ों का मिलाप) नहीं है, जो आदमीयों की अक़्ल ने पसंद कर के तर्कीब दी है। बल्कि उन सही मुक़द्दमात से मुरक्कब है, जो क़ादिरे मुतलक़ ने आस्मान से इन्सान की बेहतरी के लिए नाज़िल फ़रमाए।

और यही सबब है कि इस ईमान के मुक़द्दमात ना अक़्ली हैं और ना अक़्ल के बरख़िलाफ़ बल्कि अक़्ल से बाला और बरतर जिनके नीचे अक़्ले इन्सानी खड़ी हुई अपनी नारसाई (इस तक पहुंच ना पाना) का इक़रार कर के इन मज़ामीन को अपने सर का ताज बयान करती है। अब इस अम्र का जानना ज़रूरी है कि इस ईमान के कितने अरकान हैं। यानी सही ईमान में किस-किस चीज़ का यक़ीन लाज़िम है, कि अव़्वल ख़ुदा की ज़ात पर ईमान लाना लाज़िम है। मर्क़ुस 11:42 में है और येसू ने जवाब में उनसे कहा कि ख़ुदा पर भरोसा रखो। यानी ख़ुदा को पहचानो यहां शनाख़्त से मुराद इन्सान की शनाख़्त नहीं है बल्कि वो शनाख़्त मुराद है, कि जिस तरह ख़ुदा ने (अपने) आपको अपने कलाम में बयान किया है।

दोम मसीह पर ईमान लाना वाजिब है। यूहन्ना 14:1 में है कि तुम्हारा दिल ना घबराए तुम ख़ुदा पर ईमान रखते हो मुझ पर भी ईमान रखो। मुझ पर ईमान लाने के ये मअनी हैं जिस तरह मैं ज़ाहिर हुआ हूँ, उसी तरह मुझ पर यक़ीन लाओगे। ख़ुदा का बेटा और गुनाहों का कफ़्फ़ारा और बाइस-ए-ईजादे आलम और कामिल इन्सान और ख़ुदा भी जानो। और मेरे मरने और जी उठने और आस्मान पर जाने का इक़रार करो। और जानो कि क़ियामत और ज़िंदगी मैं ही हूँ। ख़ैर जो जो बयान मसीह के मुताल्लिक़ इन्जील में मज़्कूर हैं उन सबको मानना मसीह पर ईमान लाना है ना सिर्फ ये यक़ीन करना कि वो एक रसूल था, और बस ये उस पर ईमान लाना नहीं कहलाता है।

सोम इन्जील पर ईमान लाना वाजिब है। मर्क़ुस 1:15 में है कि वक़्त पूरा हो गया है ख़ुदा की बादशाहत नज़्दीक आ गई है। तौबा करो और इन्जील को मानो। इन्जील पर ईमान लाने के ये मअनी हैं कि वो ख़ुशख़बरी जो गुनाहों की माफ़ी की बाबत मसीह के कफ़्फ़ारे के वसीले आस्मान से नाज़िल हुई क़ुबूल करो। न ये कि इन्जील सिर्फ एक किताब है जो हज़रत ईसा पर आस्मान से नाज़िल हुई है। और चुप कर रहो जैसे मुसलमानों का अक़ीदा है। ये इन्जील पर ईमान नहीं हो सकता है।

चहारुम ख़ुदा के वादों पर ईमान लाओ। रोमीयों 4:21 में है कि जो कुछ उसने वाअदा किया है वो उस के पूरा करने पर भी क़ादिर है यानी ख़ुदा तआला के सब वाअदे जो कलामे इलाही में मज़्कूर हैं बहुत सच्चे और दुरुस्त हैं जो शख़्स उस के वादों में से एक वाअदे का मुन्किर या दिल में शक रखता है वो काफ़िर है।

पंजुम मूसा के नविश्ते पर ईमान लाना वाजिब है। आमाल 18:4 में है कि लेकिन तेरे सामने ये इक़रार करता हूँ कि जिस तरीक़ को वो बिद्अत (मज़्हब में नई बात निकालना) कहते हैं उसी के मुताबिक़ में अपने बाप दादों के ख़ुदा की इबादत करता हूँ और जो कुछ तौरेत और नबियों के सहीफ़ों में लिखा है उस सब पर मेरा ईमान है।

शश्म पैग़म्बरों के सहीफ़ों पर ईमान वाजिब है। तवारीख़ 20:2 में है कि उस के नबियों पर ईमान लाओ तो तुम कामयाब होगे। और आमाल 26:27 में है कि ऐ अग्रपा बादशाह क्या तू नबियों का यक़ीन करता है मैं जानता हूँ कि तू यक़ीन करता है। ग़रज़ कि इन सब बातों के यक़ीन का मजमूआ जो मुख़्तसर फ़िक़्रह में शामिल है कि तू ख़ुदावन्द येसू मसीह पर ईमान ला इन्सान की नजात का मौक़ूफ़ अलैहि (वो शख़्स जिस पर किसी काम का फ़ैसला मुन्हसिर किया गया हो) है। और जब किसी इन्सान के दिल में ख़ुदा की तरफ़ से ये ईमान ना सिर्फ अक़्ल की मदद से बल्कि रूह-उल-क़ुद्स की मार्फ़त नाज़िल हो कर मुक़ाम पज़ीर होता है तो उस के सबब से वो आदमी फ़वाइद ज़ेल का मुस्तहिक़ (हक़दार) हो जाता है क्योंकि इन फ़वाइद मुन्दरिजा ज़ैल का मुबिना इसी हक़ीक़ी ईमान में मुन्दरज है। इस ईमान को हम ईमान मुदल्लिल कहते हैं यानी वो ईमान जो अपनी सदाक़त पर आप ही दलील भी है क्योंकि इस की बुनियाद मसीह के कफ़्फ़ारे पर है और वह ये बात बतलाता है कि जो कोई इस ईमान को अपने आप में रखे ज़रूर गुनाहों की मुआफी पाएगा क्योंकि इस का रुक्न-ए-अज़ीम कफ़्फ़ारा है जो गुनाहों के एवज़ वक़ूअ में आया और कोई दुनियावी ईमान अपनी ज़ात में कोई ऐसा रुक्न नहीं रखता जिससे वो मूजिबे नजात हो मुहम्मदी ईमान भी दो जुज़ (हिस्से) रखता है चुनान्चे मुहम्मदियों का क़ौल है कि अल्लाह एक है और मुहम्मद उस का रसूल है और इस ईमान को वो लोग मूजिब नजात जानते हैं पर इस में कौन सा जुज़ (हिस्सा) है जो मूजिबे नजात हो सकता है पहला जो अल्लाह एक है। बहुत अच्छा जुज़ (हिस्सा) है मगर बग़ैर किसी और जुज़ (हिस्से) के लायक़ नजात नहीं क्योंकि शैतान भी इस बात का क़ाइल है हालाँकि ये अकेला जुज़ (हिस्सा) उस की नजात को मुफ़ीद नहीं है। दूसरा ये कि मुहम्मद उस का रसूल है अव़्वल तो इस का सबूत कहीं से नहीं मिलता। दूसरा गुनाहों की माफ़ी के लिए इस में कौन सी मुहब्बत क़ायम हो सकती है बरख़िलाफ़ इस के कि मसीह गुनाहों का कफ़्फ़ारा है ये रुक्न नजात की कामिल उम्मीद रखता है इसी तरह मसीही मज़्हब के अरकान-ए-ईमान कामिल अरकाने नजात हैं।

दूसरा फ़ायदा इस ईमान से ये है कि इन्सान इस ईमान के सबब से ख़ुदा के हुज़ूर रास्तबाज़ ठहरता है यानी वो रास्तबाज़ी जो नजात के लिए मुफ़ीद हो जिसको इन्सान अपने आमाल से हासिल नहीं कर सकता सिर्फ इस हक़ीक़ी ईमान से इन्सान को हासिल हो जाती है क्योंकि इस ईमान का ये भी एक रुक्न है कि मसीह ने शरीअत की तमाम रास्तबाज़ीयों को पूरा कर दिया पस इस ईमान का लाने वाला मसीह की रास्तबाज़ी के बाइस रास्तबाज़ हो जाता है क्योंकि उसने ईमान लाके मसीह को पहन लिया। आमाल 12:9-2 में है, कि और मूसा की शरीअत के बाइस जिन बातों से तुम बरी नहीं हो सकते थे उन सबसे हर एक ईमान लाने वाला इस के बाइस बरी होता है और रोमीयों 3:21, 22 में है कि मगर अब शरीअत के बग़ैर ख़ुदा की एक रास्तबाज़ी ज़ाहिर होती है जिसकी गवाही शरीअत और नबियों से होती है यानी ख़ुदा की वो रास्तबाज़ी जो येसू मसीह पर ईमान लाने से सब ईमान लाने वालों को हासिल होती है क्योंकि कुछ फ़र्क़ नहीं। अब देखो तमाम दुनियावी ईमान आदमी को रास्तबाज़ नहीं बना सकते मुहम्मदी ईमान से कोई रास्तबाज़ नहीं हो सकता क्योंकि जिस पर ईमान लाते हैं ख़ुद उसने भी तमाम रास्तबाज़ियां पूरी नहीं कीं।

तीसरा ख़ास्सा इस ईमान का ये है कि जिसमें ये ईमान आता है उस को ख़ुदा की फ़र्ज़ंदी का हक़ मिल जाता है यानी इस ईमान से इन्सान ख़ुदा का बेटा हो जाता है यूहन्ना 1:12 में है कि लेकिन जितनों ने उसे क़ुबूल किया उसने उन्हें ख़ुदा के फ़र्ज़न्द बनने का हक़ बख़्शा यानी उन्हें जो उस के नाम पर ईमान लाते हैं। और ग़लतियों 3:26, 27 में है कि क्योंकि तुम सब इस ईमान के वसीले से जो मसीह येसू में है ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हो और तुम सब जितनों ने मसीह में शामिल होने का बपतिस्मा लिया मसीह को पहन लिया। मतलब ये है कि इस ईमान का एक ये भी बड़ा रुक्न है कि मसीह ख़ुदा का बेटा है पस जब हम मसीह पर ईमान लाए जो ख़ुदा का बेटा है। और वो हमारा लिबास और हमारी रूह का ताज हुआ तो हम भी उस के बाइस ख़ुदा के बेटे हो गए चुनान्चे यूहन्ना 17:23 में है कि मैं उनमें और तू मुझमें ताकि वो कामिल हो कर एक हो जाएं पस सब ईमानदार जो मसीह में हो के ख़ुदा से मेल करते हैं सब ख़ुदा के फ़र्ज़न्द होते हैं फ़र्क़ इतना रहता है कि मसीह ख़ुदा का इकलौता बेटा है पर ये लोग उस में हो के और उस के सबब से ख़ुदा के ले पालक फ़र्ज़न्द होते हैं। देखो जो फ़ायदा इस ईमान से निकलता है उसी फ़ायदे का एक रुक्न इस ईमान में शामिल है बल्कि सारी मसीही ताअलीम इस ईमान में मुन्दरज है।

चौथा फ़ायदा इस ईमान से ये है कि जिस किसी में ये ईमान आता है उस में एक रूहानी रोशनी और बातिनी बसीरत ऐसी पैदा हो जाती है जिसके सबब से उस की रूहानी और बातिनी आँखें खुल जाती हैं और वो शख़्स कलाम-ए-इलाही से मुस्तफ़ीद (फ़ायदा उठाना) और अपने बातिनी उयूब (ऐब की जमा) से जो ख़फ़ी (छिपे) होते हैं ख़बरदार होने लगता है और हर वक़्त चौकन्ना रहता है। यूहन्ना 12:26 में है कि जब तक नूर तुम्हारे साथ है नूर पर ईमान लाओ ताकि नूर के फ़र्ज़न्द हो। और आयत 46 में है कि मैं नूर होके दुनिया में आया हूँ ताकि जो कोई मुझ पर ईमान लाए अंधेरे में ना रहे। चूँकि वो ख़ुद नूर है सिर्फ उस पर ईमान लाने से इन्सान तारीकी में नहीं रहता बल्कि एक रूहानी रोशनी अपने चाल चलन में पाता है जिस किसी ने ये रोशनी नहीं पाई वो याद रखे कि अब तक मसीह पर ईमान नहीं लाया।

पांचवां फ़ायदा ये है कि इस आस्मानी ईमान से रूहानी ज़िंदगी हासिल होती है यानी हर इन्सान जो मौरूसी (बाप दादा की तरफ़ से) और किसी गुनाहों के बाइस मुर्दा दिल और मुर्दा रूह रखता है उस ईमान के सबब उस की रूह और उस का दिल जी उठता है। यूहन्ना 20:21 में है कि लेकिन ये इसलिए लिखे गए यानी मोअजज़ात कि तुम ईमान लाओ कि येसू ही ख़ुदा का बेटा मसीह है और ईमान ला के उस के नाम से ज़िंदगी पाओ। यानी मसीह पर ईमान लाने से रूहानी ज़िंदगी मिलती है। ग़लतीयों 2:20 में है कि मैं मसीह के साथ मस्लूब हुआ हूँ और अब मैं ज़िंदा ना रहा बल्कि मसीह मुझमें ज़िंदा है अब मैं जो जिस्म में ज़िंदगी गुज़ारता हूँ तो ख़ुदा के बेटे पर ईमान लाने से गुज़ारता हूँ जिसने मुझसे मुहब्बत रखी और अपने आपको मेरे लिए मौत के हवाले कर दिया। यानी वो रूहानी ज़िंदगी उस पर ईमान लाने से मुझे मिल गई है।

छटा फ़ायदा इस ईमान से ये है कि ना सिर्फ रूहानी ज़िंदगी बल्कि हमेशा की ज़िंदगी भी इसी ईमान से मिलती है जो कोई हक़ीक़ी या आस्मानी ईमान रखता है वह अबद-उल-आबाद ज़िंदा रहेगा। यूहन्ना 2:15 में है कि जो कोई उस पर ईमान लाए हलाक ना हो बल्कि हमेशा की ज़िंदगी पाए।

सातवाँ फ़ायदा इस हक़ीक़ी ईमान से ये है कि ईमान मुहब्बत की राह से असर करता है। बुग्ज़ और अदावत और लड़ाई झगड़े से मुहम्मदी ईमान ज़बरदस्ती और ज़ुल्म से है। इस सबब से वो कुछ असर भी नहीं रखता ये मसीही ईमान है जो मोअस्सर है ग़लतियों 5:6 में है कि मगर ईमान जो मुहब्बत की राह से असर करता है। 1 तमथीस 1:5 में है कि हुक्म का मक़्सद ये है कि पाक दिल और नेक नीयत और बेरिया (खालिस) ईमान से मुहब्बत पैदा हो।

आठवां फ़ायदा ये है कि इस ईमान के बाइस तसल्ली और शैतान पर ग़लबा और शैतान का मुक़ाबला करने की ताक़त हासिल होती है। 1 तिमुथियुस 4:10 में है कि क्योंकि हम मेहनत और जाँ-फ़िशानी इसी लिए करते हैं कि हमारी उम्मीद उस ज़िंदा ख़ुदा पर लगी हुई है जो सब आदमीयों का ख़ासकर ईमानदारों का मुनज्जी (नजात देने वाला) है यानी ईमान के सबब तसल्ली और बर्दाश्त की ताक़त हमें मिली है। यूहन्ना 1 ख़त 5:4, 5 में है कि जो कोई ख़ुदा से पैदा हुआ है वो दुनिया पर ग़ालिब आता है। और वो ग़लबा जिससे दुनिया मग्लुब (हारना) हुई है हमारा ईमान है दुनिया का मग़्लूब करने वाला कौन है। सिवा उस शख़्स के जिसका ये ईमान है कि येसू ख़ुदा का बेटा है। यानी ईमान से हम लोग दुनिया पर फ़त्हयाब हो सकते हैं। इफिसियों 6:16 में है कि और इन सब के साथ ईमान की सिपर लगा कर क़ायम रहो जिससे तुम इस शरीर के सारे जलते हुए तीरों को बुझा सको। यानी ईमान के सबब शैतान के हर हमले पर फ़त्हयाब हो सकते हैं। इस के सिवा और बहुत से फ़ायदे इस हक़ीक़ी ईमान से हासिल होते हैं जो किसी दुनियावी ईमान से हासिल नहीं होते दुनियावी ईमान की बड़ी ख़ूबी अगर कहीं हो तो ये हो सकती है कि वो अक़्ल के मुवाफ़िक़ बनाया जाये। लेकिन ये ईमान जो आस्मान से आया है ऐसे ऐसे उम्दा फ़ायदे बख़्शता है जिसका बयान नहीं हो सकता है इसलिए अब हम अपने हिन्दुस्तानी भाईयों की ख़िदमत में अर्ज़ करते हैं कि इस हक़ीक़ी ईमान की तलाश से बे-ख़बर ना रहें। इस की शनाख़्त यूं है कि हर एक आदमी फ़िक्र करे कि हमने ये ईमान हासिल किया है या नहीं अगर नहीं किया तो उस ख़ुदा-ए-रहीम की मिन्नत और समाजत करें और सज्दा कर के आजिज़ी से अपनी सब दुआओं में शौक़ के साथ ये ईमान तलब करते रहें यहां तक कि उस की तलब में जान बल्ब (मरने के क़रीब) हो जाएं यक़ीन है कि वो रहीम ख़ुदा अपने सच्चे तालिबों को इनायत करेगा। और अगर किसी को ये ईमान इनायत हो चुका है तो वो आदमी ख़ुदा का लाख लाख शुक्र करे और हमेशा उस की हिफ़ाज़त और तरक़्क़ी की दुआएं किया करे। ना सिर्फ दुआएं बल्कि रोज़ रोज़ अपने आप को जांचे कि मेरी दुआओं के मुवाफ़िक़ मेरे ईमान की तरक़्क़ी रोज़ बरोज़ हुई है या नहीं अगर होती है तो शुक्र के साथ हमेशा इसी तरह सरगर्म रहें और अगर बावजूद दुआओं के ईमान में तरक़्क़ी नहीं होती तो निहायत मुज़्तरिब (परेशान) और बेचैन हो जाये। यहां तक कि उस का फ़ज़्ल जोश मारे और हम अपने ईमान में तरक़्क़ी देखें यानी अपने चाल चलन में फ़र्क़ पाएं और वो ज़िंदा व मोअस्सर ईमान जो हमारे अंदर है इसका फल और इस की तासीर अपनी रोज़ मर्राह की हरकात व सकनात में नमूदार देखें क्योंकि मसीही ईमान मिस्ल दुनियावी ईमानों के मुर्दा ईमान नहीं है बल्कि जहां ये ईमान होता है वहां उस के आसार भी होते हैं वर्ना झूटा दावा होगा।

आयत 7 में है कि ईमान ही के सबब नूह ने उन चीजों की बाबत जो उस वक़्त नज़र ना आई थीं इल्हाम पाकर ख़ौफ़ से कश्ती घराने के बचाओ के लिए बनाई इसी से उसने दुनिया को मुजरिम ठहराया और उस रास्तबाज़ी का जो ईमान से मिलती है वारिस हुआ। आयत 8 में है ईमान से अबराहम जब बुलाया गया फ़रमांबर्दार हुआ कि उस जगह चला गया जिसे वो मीरास में लेने वाला था और बावजूद ये कि ना जाना कि किधर जाता है। आयत 17 में है अबराहाम जब ईमान से आज़माया गया इज़्हाक़ को क़ुर्बानी के लिए गुज़राना। हाँ इकलौते को उसने छुड़ाया जिसने वादों को पाया था। आयत 20 में है ईमान से इज़्हाक़ ने आने वाली चीज़ों की बाबत याक़ूब और एसाओ को बरकत दी। आयत 21 में है ईमान से याक़ूब ने मरते वक़्त यूसुफ़ के दोनों बेटों को बरकत दी और अपने असा का सर थाम कर सजदा किया।

आयत 22 में है, ईमान से यूसुफ़ ने जब वो मरने पर था बनी-इस्राईल के ख़ुरूज का ज़िक्र किया और अपनी हड्डीयों की बाबत हुक्म दिया। आयत 24 में है। ईमान से मूसा ने सियाना हो के फ़िरऔन की बेटी का बेटा कहलाने से इन्कार किया कि उसने ख़ुदा के लोगों के साथ दुख उठाना इस से ज़्यादा पसंद किया कि गुनाह के मज़ा को जो चंद रोज़ा है हासिल करे कि उसने मसीह की लान तान को मिस्र के ख़ज़ानों से ज़्यादा क़ीमती दौलत जाना क्योंकि उस की निगाह बदले पर थी। ईमान से उसने बादशाह के ग़ुस्से से ख़ौफ़ ना खा कर मिस्र को छोड़ दिया कि वो गोया अनदेखे को देखकर क़ायम रहा। उसने ईमान से फ़सह करने और ख़ून छिड़कने पर अमल किया ऐसा ना हो कि पहलोठों का हलाक करने वाला उन्हें छूए। ईमान से वो लाल समुंद्र से यूं गुज़रे जैसे ख़ुश्की पर से लेकिन जब मिस्रियों ने इस राह का क़सद किया तो वो डूब गए।

ईमान से यरीहू की शहर-ए-पनाह जब उसे सात दिन तक घेर रखा था गिर पड़ी। ईमान से राहिब फ़ाहिशा बेईमानों के साथ हलाक ना हुई उसने जासूसों को सलामत अपने घर में उतारा इसी ईमान से कालिब ने कहा कि हम लोग चढ़ेंगे, और मुल्क ले लेंगे। मत्ती 13:31 अय्यूब के ईमान का ज़िक्र किताब अय्यूब 19:25 में है लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरा बचाने वाला जीता है। सदरक, मिसक, व अब्दनजो के ईमान का ज़िक्र दानीएल 3:13 से 30 तक यूं लिखा है कि नबूकद-नज़र ने उनको आग की जलती भट्टी में डाल दिया और फिर देखा कि ये चारों शख़्स आग में सही सलामत फिरते हैं जिनमें से एक की सूरत खुदा के बेटे की सी है। देखो उनके ईमान के सबब ख़ुद ख़ुदावन्द मसीह उनकी मदद को आग में आया और उनको बचाया।

पतरस ने ईमान से मसीह को खुदा का बेटा कहा जिसके बाइस वो बड़े दर्जे का मुस्तहिक़ हुआ जिसका ज़िक्र मत्ती 16:16 में है। ईमान से एक गुनेहगार औरत ने इत्र ला कर मसीह के पांव पर मला और अज्र पाया। तेरे ईमान ने तुझे बचाया सलामत चली जा। इब्रानियों 11:33 से 40 तक लिखा है, क्या कहूं फ़ुर्सत नहीं कि जिदहोन और बर्क़ व सेमसोन और अफ़ताह और दाऊद और समुएल और नबियों का अहवाल बयान करूँ कि उन्होंने ईमान के वसीले से बादशाहों को जीत लिया रास्ती के काम किए वादों को पहुंचे शेर बब्बर के मुँह-बंद किए। आग की तेज़ी को बुझाया। तलवारों की धारों से बच निकले। कमज़ोरी में ज़ोर-आवर हुए। लड़ाई में बहादुरी के साथ ग़ैरों की फ़ौजों को हटा दिया। औरतों ने अपने मर्दों को जी उठे पाया। पर बाअज़ मार खाते खाते मर गए और छुटकारा क़ुबूल ना किया ताकि अफ़्ज़ल क़ियामत तक पहुँचें और बाअज़ ठट्ठों में उड़ाए गए। उन्होंने कोड़े खाए और ज़ंजीरों और क़ैद में भी फंसे संगसार किए गए। आरे से चीरे गए। शिकंजे में खींचे गए। तल्वार से मारे गए भेड़ों और बकरों की खाल ओढ़े हुए तंगी। मुसीबत और दुख में मारे मारे फिरे। दुनिया उनके लायक़ ना रही। जंगलों, पहाड़ों ग़ारों और ज़मीन के गढ़ों में आवारा फिरा किये। ऐ भाइयो देखो, ये जफ़ाकशी और बर्दाश्त सिर्फ उस आस्मानी ईमान की ताक़त से हुई जिसकी मुनादी हम लोग मुल्क-ए-हिन्दुस्तान में कर रहे हैं। क्या कोई ईमान जहान में ऐसी तदबीरें रखता है हरगिज़ नहीं मुहम्मदी लोग जान बचाने के लिए झूट बोलना दुरुस्त बतलाते हैं। इस से उनके ईमान की बातिनी तासीर ज़ाहिर हुई है और आस्मानी ईमान की तासीर ईसाईयों की जफ़ा कुशी से हुवैदा (ज़ाहिर) है। ईमानदारों को लाज़िम है कि अपने ईमान में मज़बूती तलाश करें और गुज़रे हुए नमूनों से अपनी ताक़त देखें और ईमानदारों का ज़िक्र ख़ुदा के कलाम में मुन्दरज है इस का अक्सर मुतालआ किया करें। मैं यहां पर चंद मुक़ामों की फ़ेहरिस्त लिख देता हूँ ताकि नाज़रीन कलामे इलाही में ख़ुद देख लें। दानीएल 6:10, 23 गुनेहगार औरत (लूक़ा 7:50) नथनीएल (यूहन्ना 1:41) सामरिया के लोग (यूहन्ना 4:39) मार्था (यूहन्ना 11:27) शागिर्द (यूहन्ना 16:30) तोमा (यूहन्ना 20:28) स्तिफ़नुस (आमाल 6:25) काहिन (6:7) हब्शी (आमाल 8:27) बर्नबास (आमाल 11:24) सिर्गियोसपूस (आमाल 13:12) फिलिप्पी का दारोगा (आमाल 16:31,34) दिक्सी के लोग (कुलस्सियों 1:4) रूमी (रोमीयों 1:8) थिस्सलुनीकियों (थिस्सलुनीकियों 1:3) लूईस (2 तिमुथियुस 1:5) पौलुस (2 तिमुथियुस 4:7) वग़ैरह मुक़ामात ईमानदारों और बेईमानों के मज़्कूर हैं। ख़ुदावन्द हम सभों पर अपना फ़ज़्ल करे कि सबको हक़ीक़ी ईमान नसीब हो और सब लोग झूटे ईमान से मख़लिसी (छुटकारा) पाएं मसीह के वसीले से।

रिसाला दहुम (10)
इस अम्र के बयान में कि नजात क्या चीज़ है?

क्योंकि इसी मतलब के लिए तमाम दीनी तक्लीफ़ात और सब झगड़े और मुबाहिसे जहान में जारी हुए हैं। हर अहले-मज़्हब को लाज़िम है कि अपने-अपने मज़्हब में भी नजात के मुताल्लिक़ ग़ौर करें। और इस बयान पर जो इस रिसाले में कलामे इलाही से लिखा जाता है फ़िक्र करें, कि कौन सा बयान क़रीन-ए-क़ियास (वो बात जिसे अक़्ल क़ुबूल करे) है। और एक मुज़्तरिब (बेचैन, बेक़रार) रूह को तसल्ली देने वाला और मिंजानिब अल्लाह मालूम होता है। मुहम्मदी मज़्हब में नजात का ये हाल है कि क़ुरआन में अव़्वल से आख़िर तक ख़ूब ग़ौर से देखा। कहीं नजात का पता नहीं लगता। क्योंकि इस में सिवाए नेक-आमाल के और कोई सूरत नजात की नहीं लिखी है। मगर इस में ये लिखा है कि ख़ुदा सादिक़ुल-क़ौल और आदिल है। और ये भी लिखा है कि बदकार को सज़ा और नेकोकार को जो मुतीअ शराअ हो जज़ा (अज्र) भी देता है। और ये बात तो सब पर ज़ाहिर है कि कोई आदमी बेगुनाह नहीं है। अगर कोई मुतकब्बिर (मग़ुरूर) शैतान का पैरौ ये कहे, कि मैं बेगुनाह हूँ तो भी ज़रूर उस का दिल अंदर से गवाही देगा कि वो भी गुनेहगार है और चूँकि हर गुनेहगार को अगर ख़ुदा सच्चा है सज़ा तो ज़रूर होगी।

पस नतीजा ये निकला है कि हर मुसलमान को और हर एक उस शख़्स को जो आमाल पर भरोसा रखता है ज़रूर सज़ा मिले। अगर कहो कि ख़ुदा रहीम है मुम्किन है कि रहम करे तो इस का जवाब ये है कि फिर अदल (इन्साफ़) कहाँ जाएगा? क्योंकि वो आदिल भी है पस आमाल से हम किसी तरह बच नहीं सकते। जब तक कोई हमारी शफ़ाअत (गुनाहों की माफ़ी की सिफ़ारिश) ना करे ताकि रहम भी हो जाये। और अदालत व सादिक़ुल-क़ौल भी बहाल रहे। और इस का नाम नजात है जो बग़ैर इस क़िस्म की शफ़ाअत के हासिल नहीं हो सकती।

अब क़ुरआन में देखता हूँ कि कहीं मुहम्मद साहब ने इस का ज़िक्र किया है, या नहीं। बक़रह 34 रुकूअ में है, یایھا لذین امنوا النفقو ممتاداقنا من قبل ان یاتی یوم لا بیع فیہ ولا خلقہ و لا شفا عہ ऐ मुसलमानो हमारा दिया ख़र्च करो उस दिन से पहले जिसमें ना कुछ ज़ोर चलता है ना दोस्ती काम आती है ना शफ़ाअत चलती है। (2:254) इस मुक़ाम पर मुसलमानों से ख़िताब है और शफ़ाअत से इन्कार। इसी रुकूअ में है, من ذالذی یشفع عند ہ الا باذیہ ख़ुदा के सामने कौन है जो शफ़ाअत कर सके। मगर उस के हुक्म से। इस आयत से शफ़ाअत साबित की जा सकती है मगर ज़ोफ़ (कमज़ोरी) के साथ क्योंकि मुहम्मद साहब ने जो अहले-ए-इस्लाम के गडरीए (चरवाहे) हैं कहीं क़ुरआन में ये इक़रार नहीं किया कि मैं शफ़ाअत करूँगा। या वो कौन है जो अदालत को पूरा कर के शफ़ाअत करेगा। हालाँकि ये मज़्मून क़ुरआन में कस्रत से आना चाहिए था इस पर (الا باذنہ) की क़ैद से कौन सा क़रीना (अंदाज़) है, कि मुहम्मद साहब को शफ़ी (शफ़ाअत करने वाला) समझें। एक और क़ुरआन में आयत है जिस पर मुसलमानों ने भरोसा कर रखा है, ولسوف یعطیک ایلث فنرحسنی ख़ुदा तुझे देगा तू राज़ी होगा। क़ुरआन में कहीं इस बात का ज़िक्र नहीं मिलता कि वो क्या चीज़ है जो देगा। जिससे मुहम्मद साहब राज़ी हो जाऐंगे।

जलालैन में है कि आख़िरत में बहुत सी अच्छी चीज़ें देगा। बैज़ावी में है कमाल नफ़्स और ग़लबा-ए-दीन और बुलंदी अद्दीन देगा। हुसैनी में है कि देगा तुझे रुतबा शफ़ाअत। मदारिक में है देगा तुझे सवाब व मकामे शफ़ाअत वग़ैरह। अब देखना चाहिए कि ये सब मुफ़स्सिरीन की बातें हैं। इस आयत में किसी ख़ास बात का ज़िक्र नहीं और अगर कोई आदमी ग़ौर से देखे तो सारी सूरत में कोई ऐसा क़रीना (बहमी ताल्लुक़) पा ना सकेगा जिससे शफ़ाअत मुराद हो सके। सारी सूरत का तर्जुमा ये है। चढ़ती धूप की क़सम काली रात की तो ख़ुदा ने तुझे छोड़ा ना, तुझसे बेज़ार हुआ ज़रूर पिछली पहली से तेरे लिए बेहतर है। तेरा ख़ुदा तुझे देगा तू राज़ी होगा। तू यतीम था तुझे जगह दी। तू गुमराह था तुझे हिदायत की। तू फ़क़ीर था तुझे मालदार किया यानी ख़दीजा मालदार औरत से तेरी शादी हो गई। पस यतीम को ना दबा साइल (मांगने वाला) को ना झिड़क। ख़ुदा की नेअमत का बयान करना कि देखो यहां शफ़ाअत का कोई ज़िक्र नहीं है।

ज़बरदस्ती मुफ़स्सिरीन ने बे-एतिबार हदीसों की बिना पर शफ़ाअत का ख़याल कर लिया है यहां दुनिया की नेअमत का ज़िक्र है। हदीसों में लिखा है कि चंद रोज़ मुहम्मद साहब को इल्हाम ना हुआ ऐसे परेशान हुए कि रात की तहज्जुद की नमाज़ पढ़ने को भी ना उठे काफ़िरों ने चर्चा किया कि अब मुहम्मद को उस के ख़ुदा ने छोड़ दिया। और इस से नाराज़ हो गया क्योंकि कई दिन से कोई आयत नहीं उतरी यहां से ज़ाहिर है, कि मुहम्मद साहब इस मुक़ाम पर अपने दुनियावी ग़लबे के ज़िक्र से जिसके उम्मीदवार थे मुसलमानों की तसल्ली की है। यहां शफ़ाअत के ज़िक्र का कहीं नाम व निशान नहीं है सिर्फ वहम (शक) है।

क़ुरआन में एक और आयत है जिस पर अहले-इस्लाम बड़ा फ़ख़्र करते हैं और हत्ता कि शायर अपने शेयरों में इस का ज़िक्र करते। और सब मुसलमानों का इस पर भरोसा है। नाज़रीन ज़रा इन्साफ़ से इस पर ग़ौर करें कि भरोसे के लायक़ है या नहीं बनी-इस्राईल के 9 रुकूअ में लिखा है, ومن للیل فتھجد بہ نا فلا لک کے عیسیٰ ان یتعثک ربک مقاماً محمود وقل موب ادخلنبی مدخل صدق و کخرجنی محرج سدق و جعل بی ندنک سلطانا نصیراً तर्जुमा, ऐ मुहम्मद ख़ासकर तू कुछ रात को उठ कर नमाज़ पढ़ शायद तेरा ख़ुदा तुझे तारीफ़ के मक़ासिद में खड़ा करे और कह ऐ ख़ुदा मुझे दाख़िल कर सच्चा दाख़िल होना। और मुझे निकाल अच्छा निकालना। और दे मुझे अपने पास से एक हुकूमत की मदद। तारीफ़ के मुक़ाम से जिसको मुक़ाम-ए-महमूद (तारीफ़ किया गया) कहते हैं।

लोगों ने ये ख़याल कर लिया है कि वो शफ़ाअत का मुक़ाम है हालाँकि क़ुरआन में कोई आयत इस की ताईद (हिमायत) में नहीं है। तफ़्सीर बैज़ावी में लिखा है कि, وھو مطلق فی کل مقامیضھر کرامۃ यानी मुक़ामे महमूद आम है हर मुक़ाम को जिसमें इज़्ज़त हो। والمشھو انہ مقام الشفاعد لماروی ابوھریرہ और मशहूर ये है कि वो मुक़ाम शफ़ाअत है। जैसा कि अबू हुरैरा ने रिवायत की है देखो एक बड़े आलिम ने मान लिया कि वो लफ़्ज़ आम है ना ख़ास और ये भी कह दिया, कि हदीस की वजह से लोगों ने उस को मुक़ामे शफ़ाइत मान लिया है। पस जिसे हदीसों पर एतबार हो वो इस को मान ले हालाँकि जो हदीस क़ुरआन के बरख़िलाफ़ हो वो क़ाबिले तस्लीम नहीं हो सकती है।

चुनान्चे इस तफ़्सीर में इस के मअनी यूं लिखे हैं कि रात को तहज्जुद की नमाज़ पढ़ा कर उम्मत के सिवा तुझ पर ख़ास ये नमाज़ फ़र्ज़ है शायद ख़ुदा तुझे शफ़ाअत के मुक़ाम में खड़ा करे। और कह ऐ रब दाख़िल कर मुझे मदीना में अच्छा दाख़िल होना और निकाल मुझे मक्का से अच्छा निकालना और मुझे मेरे दुश्मनों पर क़ुव्वत दे।

पस इस से मुराद ये है कि मुझे वहां जा कर इज़्ज़त का मर्तबा मिले। इसी को मुक़ाम-ए-महमूद कहा है यानी रात को ख़ुदा से दुआएं मांगा कर। ताकि ये ज़िल्लत जो मक्का में है ना रहे। मदीना में जा कर हुकूमत मिल जाये। और बैज़ावी भी इस मतलब की ताईद करता है। पस अब इन्साफ़ करो कि शफ़ाअत का यहां क्या ज़िक्र है? अब देखना चाहिए कि ईसाई मज़्हब में नजात की बाबत क्या लिखा है? कलाम-ए-इलाही में नजात के कई एक नाम हैं :-

1. फ़त्ह (1 कुरिन्थियों 15:57) में है, पर शुक्र ख़ुदा का जो हमें हमारे ख़ुदावन्द येसू मसीह के वसीले फ़त्ह बख़्शता है।

2. शहर-पनाह और क़िला (यसअयाह 26:1) में है कि हमारा तो एक मुहक्कम शहर है उस की दीवारों और बुरुजों के बदले वो नजात ही को मुक़र्रर करेगा।

3. चश्मे (यसअयाह 12:3) में है कि सो तुम ख़ुश हो के नजात के चश्मों से पानी भरोगे।

4. पियाला (116 ज़बूर आयत 13) में है कि नजात का पियाला उठाऊंगा और ख़ुदावन्द का नाम पुकारंगा।

5. चिराग़ (यसअयाह 62:1) में है कि दम ना लूंगा जब तक कि उस की सदाक़त नूर के मानिंद ना चमके। और उस की नजात चराग़-ए-रौशन की तरफ़ जलवागर ना हो।

6. ढाल (समूएल 22:36) में है कि तू ही ने मुझे नजात की सिपर बख़्शी है।

7. सींग (लूक़ा 1:69) में है कि और अपने ख़ादिम दाऊद के घराने में हमारे लिए नजात का सींग निकाला।

8. पहाड़ (इस्तिस्ना 32:15) में है कि अपनी नजात के पहाड़ को हक़ीर जाना। और बहुत से नाम इस के मज़्कूर हैं। नीज़ इस नजात के बयान के सारे पहलू कलामे इलाही में मुफ़स्सिल (तफ़्सील) से मिलते हैं।

मसीही नजात का बयान

ये बेश-क़ीमत चीज़ जिसकी मानिंद जहां में कोई चीज़ हमारे लिए अच्छी नहीं हो सकती है अपने सब पहलू हमें यूं दिखलाती है। पहली बात कोई आदमी इस नजात को अपनी ताक़त से हासिल नहीं कर सकता जब तक कि खुदा की तरफ़ से मर्हमत (करम, मेहरबानी) ना हो।

इफ़िसियों 2:8 में है कि क्योंकि तुमको ईमान के वसीले फ़ज़्ल ही से नजात मिली है और ये तुम्हारी तरफ़ से नहीं। तीतुस 3:5 में है कि :-

तो उस ने हम को नजात दी मगर रास्तबाज़ी के कामों के सबब नहीं जो हमने ख़ुद किए बल्कि अपनी रहमत के मुवाफ़िक़ नई पैदाइश के ग़ुस्ल और रूह-उल-क़ुद्स के तईं नया बनाने के वसीले।

दूसरी बात ये है कि खुदा ने ये काम क्यों किया कि हमें दोज़ख़ से बचा लिया क्या हम कुछ इस के हक़दार थे? हरगिज़ नहीं बल्कि इस के पाँच सबब हैं अव़्वल ये कि ख़ुदा में जो एक नफ़्स की सिफ़त है ये उस का ज़हूर है। तीतुस 2:11 में है कि क्योंकि ख़ुदा का फ़ज़्ल जिससे सब आदमीयों के लिए नजात है ज़ाहिर हुआ है।

दूसरा सबब ये कि उस के रहम का ज़हूर हुआ है। 6 ज़बूर 4 में है कि ऐ ख़ुदावन्द फिर आ मेरी जान को मख़लिसी दे अपनी रहमत के सबब मुझे नजात बख़्श।

तीसरा सबब ये कि ख़ुदा को हमसे मुहब्बत है अगरचे हम गुनेहगार और बदकार हैं और उसे भूल गए हैं पर वो नहीं भुला वो सच्चा दोस्त है। रोमीयों 5:8 में है कि :-

लेकिन ख़ुदा अपनी मुहब्बत की ख़ूबी हम पर यूं ज़ाहिर करता है कि जब हम गुनेहगार ही थे तो मसीह हमारी ख़ातिर मुआ। यूहन्ना का पहला ख़त 4:9, 10 में है कि जो मुहब्बत ख़ुदा को हमसे है वो इस से ज़ाहिर हुई कि ख़ुदा ने अपने इकलौते बेटे को दुनिया में भेजा है ताकि हम उस के सबब से ज़िंदा रहें। मुहब्बत इस में नहीं कि हमने ख़ुदा से मुहब्बत की। बल्कि इस में है कि उस ने हम से मुहब्बत की। और हमारे गुनाहों के कफ़्फ़ारे के लिए अपने बेटे को भेजा। यानी नजात जो ज़ाहिर हुई है वो ख़ुदा की मुहब्बत के सबब से है।

चौथा सबब ये है कि उसने अपनी क़ुद्रत ज़ाहिर करने के लिए ये काम किया है यानी इन्सान जो मौरूसी (बाप दादा से) गुनाह और इक्तिसाबी (ख़ुद अमल करने के) गुनाह की वजह से नजात से दूर जा पड़ा था और अपने आमाल से इस को हासिल ना कर सकता था। और इन्सान के सामने नजात हासिल करना ग़ैर-मुम्किन था तब ख़ुदा ने अपनी क़ुद्रत से मुम्किन कर दिखलाया। चुनान्चे यसअयाह 50:2 में है कि क्या मेरा हाथ ऐसा कोताह (छोटा) हो गया है कि छुड़ा ना सकता या नजात देने का मेरा ज़ोर नहीं देखो में अपनी एक घुरकी (झड़की) से समुंद्र को सुखा देता हूँ और नहरों को सहरा कर डालता हूँ।

पांचवां सबब ये है कि उसने हमारी बर्दाश्त की यानी उस सिफ़त के बाइस हम बच गए। 2 पतरस 3:15 में है कि और हमारे ख़ुदावन्द की बर्दाश्त को अपनी नजात जानो।

2 बात ख़ुदावन्द का इरादा इस नजात की निस्बत क्या है? आया वो लोगों को देना चाहता है या नहीं। 1 तिमुथियुस 2:4 में है कि वो चाहता है कि सारे आदमी नजात और सच्चाई की पहचान तक पहुंचें। यहां से ज़ाहिर है कि नजात देने में उस की रजामंदी है मगर चूँकि इन्सान फ़ाइल मुख़्तार (वो काम करने वाला जिसको कामिल इख़्तियार हासिल हो) है। इसलिए ज़बरदस्ती से गले डाली नहीं जा सकती अगर कोई लेता है तो हमारा ख़ुदावन्द बहुत ख़ुशी से उसे देता है।

चौथी बात ये है कि आदमी नजात किस तरह हासिल कर सकता है। अगर कोई शख़्स अम्बिया-ए-साबक़ीन के नविश्ते को पढ़े तो उसे अच्छी तरह मालूम हो सकता है कि सिर्फ ख़ुदावन्द येसू मसीह पर ईमान लाने से नजात हासिल होती है इस के सिवा और कोई ज़रीया दुनिया में नजात हासिल करने का नहीं है। और ना आइंदा को होगा। एक ही नाम है जिससे हर कोई जो ईमान लाए नजात पाता है। मर्क़ुस 16:16 में है कि जो कोई ईमान लाए और बपतिस्मा ले वो नजात पाएगा और जो ईमान ना लाए वो मुजरिम ठहराया जाएगा। रोमीयों 10:9 में है कि अगर तू अपनी ज़बान से येसू के ख़ुदावन्द होने का इक़रार करे और अपने दिल से ईमान लाए कि ख़ुदा ने उसे मुर्दों में से जिलाया (जिंदा किया) तो नजात पाएगा।

इन्जील मुक़द्दस में इस क़िस्म की बहुत सी आयात मौजूद हैं जो इस वाक़ई (हक़ीक़त) पर गवाही देती हैं। यसअयाह 35:4 में कहता है कि उनको जो कम दिले हैं कहो कि हिम्मत बाँधो मत डरो देखो तुम्हारा ख़ुदा सज़ा और जज़ा साथ लिए हुए आता है। और ख़ुदा ही आएगा और तुम्हें बचाएगा।

ज़करयाह 9:16 में कहता है कि और ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा अपनी क़ौम को नजात देगा। वो उन्हें भेड़ों की तरह उसी दिन बचाएगा।

पांचवीं बात ये है कि दुनिया में जितने मज़्हब जारी हैं किसी मज़्हब में सिवाए मसीही मज़्हब के अव़्वल तो शफ़ाअत का दावा नहीं किया गया। और किसी ने ब-गुमान उस के मोअतक़िदों (एतिक़ाद रखने वाले) के कुछ ज़ईफ़ (कमज़ोर) सा दावा किया भी हो तो अपनी शफ़ाअत का इस्तिहक़ाक़ (कानूनी हक़) दावा नहीं दिखला सकता मसलन मसीह ने दावा किया कि मैं शफ़ाअत करूँगा तो उसने ये भी कहा देखो इस दावे का इम्कान बल्कि जवाब इस बात से ज़ाहिर है कि मैंने तुम्हारे लिए अपना ख़ून दे दिया है।

आमाल 20:8 में है कि ताकि ख़ुदा की कलीसिया की गल्लाबानी करो जिसे उसने अपने ख़ास ख़ून से मोल लिया। इब्रानियों 9:12 में है कि वो बकरों और बछड़ों का ख़ून लेकर नहीं बल्कि अपना ही ख़ून लेकर पाक मकान में एक ही बार दाख़िल हो गया और अबदी ख़लासी कराई। क्या ऐसा किसी मुद्दई शफ़ाअत ने किया है? हरगिज़ नहीं।

छठी बात ये है कि ये नजात जो मसीह ने हमारे लिए तैयार की है। ये उर्फ़ी (रस्मी, मशहूर) नजात नहीं है जैसा कि मुसलमानों और और मज़्हब वालों में मशहूर है। बल्कि इस का मतलब सिर्फ ये नहीं है कि क़ियामत के रोज़ छुटकारा मिल जाएगा बल्कि मसीही नजात चूँकि हक़ीक़ी नजात है। इसलिए इस का शुरू इसी जहां से होता है जिससे उस आइंदा नजात को जो बमंज़िला इस शुरू के इंतिहाई है ऐनुलयक़ीन के साथ देखते हैं मतलब ये है कि जो जो चीज़ें इस दुनिया में मूजिब सज़ा हैं जिनके सबब आदमी दोज़ख़ के लायक़ हो गया है जिसके क़ब्ज़े में रहना दोज़ख़ में जाने की कामिल अलामत है उन्हीं के क़ब्ज़े से इसी जहान में हमारा ख़ुदावन्द येसू मसीह इन्सान को नजात देता है और उस के तमाम बोझों को उस के सर पर से इस तरह उतार फेंकता है कि फिर इनका तर्क करना हमारे लिए बाइस तक्लीफ़ नहीं रहता है।

इस की मिसाल यूं है कि अगर कोई ग़रीब आदमी किसी ज़बरदस्त का कर्ज़दार हो और रुपया अदा करने की ताक़त ना रखता हो तो ये कर्ज़ख़्वाह उसे पकड़ कर अपना ग़ुलाम बनाए और उस को तरह तरह की तक्लीफ़ दे और कहे कि तेरे लिए इस क़द्र मीयाद मुक़र्रर है इस के अंदर या तो क़र्ज़ अदा करो, वर्ना आख़िर को तुझे ख़ूब कोड़े मार कर क़ैदख़ाने में बंद करूँगा और हरगिज़ ना छोड़ूँगा। इस अस्ना में कोई बड़ा दौलतमंद इस ग़रीब के हाल पर रहम कर के इस का ज़िम्मेदार हो जाये और कहे कि जाएं उसने अपनी तरफ़ से तुझ पर रहम कर के तेरा क़र्ज़ अदा कर दिया है तेरा क़र्ज़ख़्वाह अब तुझे सज़ा ना देगा। अब बतलाओ कि ये ग़रीब उस की बात का क्योंकर यक़ीन करे कि उसने मेरा क़र्ज़ अदा कर दिया है और वो मुझे अब दुख ना देगा क्योंकि उस के सामने क़र्ज़ अदा नहीं हुआ और ना क़र्ज़ख़्वाह ने उस को रूबरु बुला कर कुछ कहा? उस का यक़ीन यूं होगा कि उस पर से क़र्ज़ख़्वाह की तक्लीफ़ उठ जाये और क़ैद से आज़ादगी हो जाये और फिर उस की गु़लामी ना रहे ख़ुशी ख़ुशी अपने वतन और अपने घर की तरफ़ और अपने अक़ारिब (रिश्तेदारों) से मुलाक़ात करने की इजाज़त हासिल करे। अगर ऐसा ना हो तो इस दौलतमंद का ये क़ौल कि मैंने तेरा क़र्ज़ अदा कर दिया है उस के हक़ में यक़ीन के लायक़ ना होगा।

पस जब कि हमारे ख़ुदावन्द ने हमारे लिए नजात को हासिल कर लिया हमें ख़ुदा के ग़ज़ब से बचा लिया हमारा क़र्ज़ अदा कर दिया। तो अब हम उस की नजात के सबब आज़ाद हो गए हैं हमारे जिस्म और हमारी जानों ने कई तरह की मुसीबतों से मख़लिसी (नजात) पाई। अव़्वल शरीअत की क़ैद से। (ग़लतियों 4:4, 5) में है कि लेकिन जब वक़्त पूरा हो गया तो ख़ुदा ने अपने बेटे को भेजा जो औरत से पैदा हुआ और शरीअत के मातहत पैदा हुआ ताकि शरीअत के मातहतों को मोल लेकर छुड़ाए और हमको ले-पालक होने का दर्जा मिले। यहां से ज़ाहिर है कि शरीअत की क़ैद से हमारी मख़लिसी (रिहाई) इस तरह से नहीं हुई जिस तरह शरीर (बुरे) लोग अपने फ़र्ज़ को छोड़कर गुमराह हुए हैं। बल्कि हमारा ख़ुदावन्द आप शरीअत के ताबे हुआ ताकि उस के हुक़ूक़ अदा कर के इस से हमें मख़लिसी (छुटकारा) दे। इस सूरत में शरीअत के अहकाम भी पूरे हो कर अपनी मीयाद को जा पहुंचे और हमने मख़लिसी भी पाई। अब उस के तर्क से हम गुनेहगार नहीं हो सकते। 1 पतरस 1:8, 9 में है कि क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारा निकम्मा चाल चलन जो बाप दादों से चला आता था इस से तुम्हारी ख़लासी फ़ानी चीज़ों यानी सोने चांदी के ज़रीये से नहीं होती बल्कि एक बेऐब और बेदाग बर्रे यानी मसीह के बेशक़ीमत ख़ून से। 3, गुनाह की हुकूमत से अगरचे इन्सान क़ादिर-ए-मुतलक़ नहीं हो सकता तो भी इस मसीही नजात के सबब से गुनाह का मन्सूबा हरगिज़ नहीं रह सकता। शायद किसी वक़्त मौक़ा पा कर गुनाह इस पर हमला करे मगर वो शख़्स मुक़ाबले से पेश आता है और मज़्हब वालों की तरह गुनाह का ग़ुलाम नहीं रहता। रोमीयों 6:22 पर अब गुनाह से छूट कर और ख़ुदा के बंदे हो कर पाकीज़गी का फल लाते हो। 4, शैतान से इस नजात के सबब मख़लिसी होती है।

इस से ये मुराद नहीं कि अब हमें शैतान फ़रेब नहीं दे सकता बल्कि ये मतलब है कि मसीह ने बहुतों को शैतान के हाथ से बचा लिया। और उस की आम सल्तनत में ख़लल डाल दिया और हम भी मसीह के वसीले से शैतान पर ग़ालिब आते हैं। इब्रानियों 2:14 में है कि वो भी इसी तरह उनमें शरीक हुआ ताकि मौत के वसीले उस को जिसे मौत पर क़ुद्रत हासिल थी यानी इब्लीस को तबाह करे। 5, हमारे दुश्मनों से उसने हमें मख़लिसी दी है। और ये मख़लिसी दो तरह पर है :-

अव़्वल उन चीज़ों और उन आदमीयों वग़ैरह से जो हमारे जान के दुश्मन थे जो हमको दोज़ख़ के लायक़ बनाते थे। ख़लासी (रिहाई) दी है।

दुवम, ये कि आमदे सानी में ज़मीन पर से हमारे सारे दुश्मन और मुख़ालिफ़ नाबूद किए जाऐंगे। लूक़ा 1:71 में है कि हमको हमारे दुश्मनों से और सब कीना रखने वालों के हाथ से नजात बख़्शी। ये सब बातें उस आने वाली नजात के आसार हैं जो हम पर ज़ाहिर हुए हैं मसीह ने हमें आज़ाद करा दिया।

अब हम अपने हक़ीक़ी वतन की तरफ़ और घर की सिम्त अपने अहबाब के शौक़ में ख़ुशी ख़ुशी अपनी रूह में सफ़र करते हुए चले जाते हैं। और अपने मुहसिन (एहसान करने वाले) के शुक्रगुज़ार हैं। ग़र्ज़ कि नजात के आसार बचश्म रूह (रुहानी आँख) हमने दुनिया में देखे और आइंदा जहां में बहुत बहुत कुछ देखेंगे। पस ज़ाहिर है कि मसीह की नजात ऐसी बड़ी भारी नजात है कि जिसकी शाख़ें हर चहार तरफ़ शामिल-ए-हाल हो जाती हैं जिनसे हम कामिल उम्मीद रखते हैं, कि हक़ीक़ी कामयाबी यक़ीनन हमको मिल जाएगी।

6. छटी बात ये है कि इस मसीही नजात के लिए चंद ख़ुसूसीयतें भी हैं जो उस के अहल में पैदा हो हैं :-

1. ये कि वो शख़्स इस के सबब इलाही रास्तबाज़ी से मुलब्बस (लिबास पहनना) हो जाता है। मगर उस के फ़ज़्ल के सबब इस में मख़लिसी के वसीले से जो मसीह येसू में है। मुफ़्त रास्तबाज़ ठहराए जाते हैं।

2. ये कि तमाम गुनाहों की माफ़ी हो जाती है। इफ़िसियों 1:7 हमको इस में उस के ख़ून के वसीले से मख़लिसी (नजात) यानी क़ुसूरों की माफ़ी उस के उस फ़ज़्ल की दौलत के मुवाफ़िक़ हासिल है।

3. ये कि इसी नजात के सबब हम ख़ुदा के ले-पालक भी हो जाते हैं। इफ़िसियों 1:5 में है कि और उसने अपनी मर्ज़ी को नेक इरादे के मुवाफ़िक़ हमें अपने लिए पेश्तर से मुक़र्रर किया कि येसू मसीह के वसीले उस के ले-पालक बेटे हों।

4. ये है कि इसी नजात के सबब हम लोग एक नई पैदाइश हासिल करते हैं 1 पतरस 1:3 में है कि हमारे ख़ुदावन्द येसू मसीह के ख़ुदा और बाप की हम्द हो। जिसने येसू मसीह के मुर्दों में से जी उठने के बाइस अपनी बड़ी रहमत से हमें ज़िंदा उम्मीद के लिए अज सर-ए-नौ पैदा किया।

5. ये कि इसी नजात के सबब इन्सान का ख़ुदा से मेल हो जाता है। मत्ती 5 में है कि क्योंकि जब बावजूद दुश्मन होने के ख़ुदा से उस के बेटे की मौत के वसीले से हमारा मेल हो गया। तो मेल होने के बाद तो हम उस की ज़िंदगी के सबब से ज़रूरी जियेंगे।

6. ये है कि इस के सबब पाकीज़गी की चाल चलते हैं। शरीरों की चाल नहीं चल सकते। हिज़्क़ीएल 36:29 में है मैं तुम्हें तुम्हारी नापाकियों से बचाऊंगा।

7. ये कि इन्सान के दिल में ये नजात सताइश और मदह-सराई (हम्द) का शौक़ पैदा करती है। 71 ज़बूर 23 में है, कि मेरे होंट जिस वक़्त कि मैं तेरी मदह-सराई (हम्द) करूँगा निहायत ख़ुश होंगे। और ऐसे मेरा जी जिसे तू ने ख़लासी बख़्शी। ये हाल इस जहान में नजात याफ्ताह लोगों का है और इस जहान में ज़्यादातर इस का इन्किशाफ़ होगा।

8 वो कि जो लोग इस नजात को पाते हैं उनको लाज़िम है कि दूसरे की जान बचाने का एक बड़ा शौक़ दिल में पैदा हो जाये।

देखो हमारे भाई इसी सबब से कैसी कैसी तकलीफ़ें उठाते हैं और कलाम-ए-इलाही और मसीह की नजात का चर्चा करते फिरते हैं कि किसी दूसरे से ऐसा काम नहीं होता। रोमीयों 11:14 में है कि ताकि किसी तरह से अपने क़ौम वालों को ग़ैरत दिला कर उनमें से बाज़ों को नजात दिलाऊँ। नाज़रीन किराम मुत्लाअ (बाखबर) रहें कि नजाते इलाही का हाल आपके भी गोश गुज़ार (आगाह करना) हो चुका है ग़फ़लत को दूर करें क्योंकि अब कोई उज़्र (बहाना) बाक़ी नहीं रहा है। पस सबकी ख़िदमत में अर्ज़ है कि हमारे ख़ुदावन्द येसू मसीह के पास चले आओ कि उस की नजात आम है जो कोई ईमान लाता है नजात पाता है आइंदा इख्तियार है।

रिसाला याज़दहुम (11)
आस्मानी मुहब्बत के बयान में

हमारे ख़ुदावन्द के कलाम-ए-मुक़द्दस में से एक ताअलीम मुहब्बत की भी है। जो इन्सान के लिए दो जहान में निहायत फ़ाइदाबख्श है। और मुहब्बत की ये ताअलीम जो ख़ुदावंद मसीह ने दी है अपनी ख़ुसूसियात के बाइस कुछ और ही कैफ़ीयत दिखलाती है। जिससे ये मालूम होता है, कि ये इलाही ताअलीम है। जिन अश्ख़ास ने इल्म-ए-अख़्लाक़ की किताबों में मुहब्बत का बयान देखा है। और जिन लोगों ने अहले तसव्वुफ़ (सूफ़ियों का अक़ीदा) और तअश्शुक़ (इश्क़, मुहब्बत) की सोहबत (दोस्ती) में मुहब्बत का जाम पी कर उस का दावा किया है। और जिन लोगों ने हिंदू मुसलमानों के मज़्हब के उस्तादों और उनकी किताबों से मुहब्बत की ताअलीम पाई है उन सबकी ख़िदमत में अर्ज़ है, कि इन्साफ़ की आँख और तजुर्बे के दिमाग़ से इस मसीही मुहब्बत को अपने अपने ख़यालों की मुहब्बत से मुक़ाबला कर के देखें। और जो सच्चा हो इस को क़ुबूल करें।

अगर कोई शख़्स मुहब्बत का पूरा बयान कलामे इलाही से निकाल कर सुनाए तो बहुत मुश्किल है क्योंकि ये एक ऐसा बड़ा बयान है कि जिसके लिखने को दफ़्तर दरकार है लेकिन इस रिसाले में इस के बाअज़ मज़ामीन की तरफ़ इशारा किया जाता है। ताकि इस की कैफ़ीयत दर्याफ़्त कर के इस में बसें। मुहब्बत की दो किस्में हैं :-

अव़्वल वो कि जिससे ख़ुदा का जलाल और उस की बुजु़र्गी ज़ाहिर होती है। मसलन ख़ुदा की हमसे मुहब्बत जिससे ख़ुदा का जलाल और बुजु़र्गी ज़ाहिर हो। दूसरी मुहब्बत दुनियावी जिसमें दुनिया के सरदार यानी शैतान का जलाल और उस की बुजु़र्गी ज़ाहिर होती है। ये मुहब्बत मुर्दूद और लानत के लायक़ है पस जहां कहीं इस मुहब्बत का जुज़्व (हिस्सा) पाया जाये इस से नफ़रत करना वाजिब होता है। ताकि पहली मुहब्बत हाथ से जाती ना रहे और हम शैतान के दोस्त हो कर ख़ुदा के दुश्मन ना हो जाएं।

यहां से ज़ाहिर है कि अगर कोई आदमी ख़ुदा की इबादत और उस से मुहब्बत इस सबब से करता है, कि मुझे मी जन्नत में हूर और फ़ुलां और शराब और अच्छे अच्छे लिबास मिलेंगे। और मैं मज़े उड़ाऊँगा। उस में ख़ुदा की मुहब्बत नहीं। उस के काम नफ़रती हैं ये दूसरी मुहब्बत नफ़्सानी आदमीयों में और झूटे मज़्हब वालों में बकस्रत पाई जाती है। लेकिन इस नालायक़ मुहब्बत को जो मर्दूद है और जिसे शहवत-परस्तों ने मुहब्बत इलाही समझा है छोड़कर हम सिर्फ हक़ीक़ी मुहब्बत का बयान करना चाहते हैं। जिसमें ख़ुदा की बुजु़र्गी ज़ाहिर होती है।

इस में चंद ज़िक्र हैं। पहला ज़िक्र ख़ुदा उस मुहब्बत के बयान में जो उस की तरफ़ से हमारे हक़ में है। 2 कुरिन्थियों 13:11 में है कि ख़ुदा मुहब्बत और मेल मिलाप का चश्मा तुम्हारे साथ होगा। यूहन्ना 1 ख़त 4:8 में है कि जो मुहब्बत नहीं रखता वो ख़ुदा को नहीं जानता क्योंकि ख़ुदा मुहब्बत है। इन आयात से ज़ाहिर है कि मुहब्बत एक सिफ़त है और इस सिफ़त का अहवाल कलामे इलाही में यूं मिलता है।

अव़्वल कि ये निहायत बड़ी मुहब्बत है। इफ़िसियों 2:4 में है कि मगर ख़ुदा ने अपने रहम की दौलत से उस बड़ी मुहब्बत के सबब जो उसने हमसे की।

2. मुहब्बत दाइमी (हमेशा के लिए) है। सफ़नियाह 3:17 में है कि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा जो तेरे दर्मियान है क़ादिर है वही बचा लेगा। वो तेरे सबब से शादमान हो कर ख़ुशी करेगा। अपनी मुहब्बत के बाइस वो इल्ज़ाम देने के बदले ख़ामोश रहेगा। यसअयाह 49:16 में है कि देख मैंने तेरी तस्वीर अपनी हथेलियों पर खोदी है और तेरी शहर-पनाह हमेशा तक मेरे सामने है।

3. ये कि मुहब्बत इलाही बे-लुत्फ़ नहीं बल्कि इस में दिलकशी और फ़र्हत भी है। होसीअ 11:4 में है कि मैंने उन्हें इन्सान की तरह रस्सियों से और मुहब्बत की डोरियों से खींचा।

4. कोई चीज़ हमें उस की मुहब्बत से जुदा नहीं कर सकती। रोमीयों 8:39 में है कि ना बुलंदी ना पस्ती ना कोई और मख़्लूक़ हमको ख़ुदा की मुहब्बत से जो हमारे ख़ुदावंद येसू मसीह में है जुदा कर सकेगा।

5. ये कि बग़ैर हमारी लियाक़त (क़ाबिलीयत) के ये मुहब्बत उस को हमसे है। यर्मियाह 31:3 में है कि ख़ुदावन्द क़दीम से मुझ पर ज़ाहिर हुआ और कहा कि मैंने बड़े अबदी इश्क़ से तुझे प्यार क्या इसलिए मैंने अपनी शफ़क़त तुझ पर बढ़ाई।

6 ये कि इस सिफ़ते इलाही का ज़हूर ख़ास हज़रत मसीह में है वही उस का मज़हर (ज़ाहिर करने वाला) भी है। यूहन्ना 15:9 में है कि जैसा बाप ने मुझसे मुहब्बत की वैसा ही मैंने तुमसे मुहब्बत रखी तुम मेरी मुहब्बत में क़ायम रहो। 19:26 और मैंने उन्हें तेरे नाम से वाक़िफ़ किया और करता रहूँगा। ताकि जो मुहब्बत तुझको मुझसे थी वो उनमें हो और मैं उन में हूँ।

7. ये कि इस मुहब्बत में ख़ुदावन्द येसू मसीह क़ायम रहता है यानी वो उस का मस्कन है। यूहन्ना 15:10 में है कि अगर तुम मेरे हुक्मों पर अमल करोगे तो मेरी मुहब्बत में क़ायम रहोगे। जैसा मैंने अपने बाप के हुक्मों पर अमल किया है और उस की मुहब्बत में क़ायम हूँ। शायद कोई कहे कि ये मुहब्बत इलाही जिसमें ऐसी ऐसी सिफ़ात हैं तुम पर क्योंकर ज़ाहिर हुई? जानना चाहिए कि चंद ऐसी बातें हैं जिनसे दर्याफ़्त होता है कि ज़रूर ख़ुदा की मुहब्बत हमारी निस्बत इसी तरह जोश मार रही है।

1. अव़्वल ये कि उसने मसीह को भेज दिया। यूहन्ना पहला ख़त 4:9 में है कि जो मुहब्बत ख़ुदा को हमसे है वो इस से ज़ाहिर हुई कि ख़ुदा ने अपने इकलौते बेटे को ना सिर्फ भेज दिया बल्कि हमारे वास्ते सलीब पर खींच दिया।

2. यूहन्ना पहला ख़त 4:10 में है कि मुहब्बत इस में नहीं कि हमने ख़ुदा से मुहब्बत की बल्कि इस में है कि उसने हमसे मुहब्बत की और हमारे गुनाहों के कफ़्फ़ारे के लिए अपने बेटे को भेजा।

3. ये कि उसने जो हमें मुफ़्त नजात इनायत फ़रमाई इस से उस की मुहब्बत ज़ाहिर होती है। तीतुस 3:4, 5 में है कि मगर जब हमारे मुनज्जी ख़ुदा की मेहरबानी और इन्सान के साथ उस की उल्फ़त ज़ाहिर हुई तो उसने हमको नजात दी। मगर रास्तबाज़ी के कामों के सबब नहीं जो हमने ख़ुद किए बल्कि अपनी रहमत के मुताबिक़ नई पैदाइश के ग़ुस्ल और रूह-उल-क़ुद्स के हमें नया बनाने के वसीले से।

4. ये कि इसी जहान में उसने हमें एक ऐसी रूहानी ज़िंदगी मर्हमत (बख़्शिश) की है जिससे हम जानते हैं कि ख़ुदा हमें प्यार करता है। क्योंकि हम पहले मुर्दा थे अब अपनी रूहों में उस के कलाम से एक नई ज़िंदगी देखते हैं। जो हमने पहले देखी और हम देखते हैं कि हमारे चारों तरफ़ बहुत से मुर्दे फिरते हैं अगर कोई आदमी इस का यक़ीन ना करे तो हम सिवा इस के और कुछ इस का सबूत नहीं दे सकते कि वो ख़ुद मसीह के पास आकर देख ले।

5. ये कि उसने हमें मोअस्सर बुलाहट से बुलाया यानी जिस आवाज़ से उसने हमें पुकारा है वो आवाज़ ऐसी मोअस्सर है, कि हक़ीक़ी तालिब इस का असर दिल पर देखता है और ग़ैर-क़ौमों के भी दिल छिद जाते हैं। इसी वास्ते मसीह ने फ़रमाया कि मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ पहचानती हैं।

6. ये कि ख़ुदावन्द अपने लोगों को उनकी ग़फ़लत में उन्हें तंबीया देता है। इस से उस की मुहब्बत ज़ाहिर होती है। इब्रानियों 12:6 में है कि क्योंकि जिससे ख़ुदावन्द मुहब्बत रखता है उसे तंबीया भी करता है और जिसको बेटा बना लेता है इस के कोड़े भी लगाता है। शायद कोई कहे काफ़िरों पर भी दुख और मुसीबत आती है तो क्या ख़ुदा उनको भी प्यार करता है जवाब ये है कि बेशक ख़ुदा उनको भी प्यार करता है लेकिन वो महसूस नहीं करते ताकि तौबा करके ईमान लाएं। अगर उनकी ये ग़फ़लत देर तक रहे और बार-बार तंबीया पर होशियार ना हो जाएं तब उन्हें छोड़ देता है फिर वो अपने किए की सज़ा भुगतेंगे। ये उमूर और इनके सिवा और दीनी और दुनियावी नेअमतें और मददगारियाँ और ख़बरगीरीयाँ और हिफ़ाज़त वग़ैरह भी उस की आम मुहब्बत का इक़रार करते हैं।

पस इसलिए हम कहते हैं कि हमारा ख़ुदा-ए-बरतर ज़रूर हमसे मुहब्बत रखता है। यहां तीन बातें ज़ाहिर होती हैं :-

अव़्वल ख़ुदा को हमसे मुहब्बत है।

दुवम वो मुहब्बत मसीह में ज़ाहिर होती है।

सोइम हम अपने आपको और इस जहान को उस की मुहब्बत में घिरा हुआ देखते हैं।

दूसरा ज़िक्र मसीह की हमसे मुहब्बत के बयान हैं। अगरचे वही मुहब्बत है जो ख़ुदा बाप से बयान में ज़ाहिर होती तो भी इस का ज़हूर चूँकि ख़ास तौर पर हुआ है और ताल्लुक़ इस का उक़नूम सानी यानी बेटे से है। जो इन्सान बन कर हमारे दर्मियान रहा। और हमें प्यार किया ज़रूर है कि इस का भी मुख़्तसर बयान करें ऊपर के बयान से ज़ाहिर है कि ख़ुदा की मुहब्बत का मौज़ूं ख़ास ख़ुदावन्द येसू मसीह है और उस की ज़ात में इस मुहब्बत ने ज़हूर (ज़ाहिर होना) पाया है।

अगरचे इस की शाख़ें चारों तरफ़ फैल गई हैं लेकिन सब कुछ उसी के वसीले से है क्योंकि अज़ल से उस के साथ है और इसी से सब कुछ पैदा हुआ। पर हम मसीह की मुहब्बत में ख़ासकर चार बातें देखते हैं :-

1. ये कि उस को ख़ुदा से मुहब्बत है। यूहन्ना 14:21 में है कि लेकिन ये इसलिए होता है कि दुनिया जाने कि मैं बाप से मुहब्बत रखता हूँ और जिस तरह बाप ने मुझे हुक्म दिया मैं ऐसा ही करता हूँ।

2. ये कि उस को तमाम कलीसिया यानी अपनी उम्मत के सब लोगों से मुहब्बत है। यूहन्ना 15:9 में है कि जैसे बाप ने मुझसे मुहब्बत रखी वैसे ही मैंने तुमसे मुहब्बत रखी। इफ़िसियों 5:25 में है कि मसीह ने कलीसिया को प्यार किया।

3. ये कि वो ख़ास लोगों को जो सच्चे ईसाई हैं ख़ास मुहब्बत रखता है। और ना सिर्फ मुहब्बत बल्कि अपने आपको उन पर ज़ाहिर भी करता है। यूहन्ना 14:21 में है कि जिसके पास मेरे हुक्म हैं और वो उन पर अमल करता है वही मुझसे मुहब्बत रखता है और जो मुझसे मुहब्बत रखता है। वो मेरे बाप का प्यारा होगा। और मैं उस से मुहब्बत रखूँगा और अपने आपको उस पर ज़ाहिर करूँगा।

4. ये है कि वो अपने दुश्मनों से भी मुहब्बत रखता है तौबा की मोहलत देता है। लूक़ा 23:34 में है कि ऐ बाप इनको माफ़ कर क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या करते हैं। ये चार बातें मसीह की मुहब्बत में ख़ूब ज़ाहिर हैं जिस क़द्र उसने ख़ुदा को प्यार किया और उस के हुक्मों से ज़रा इधर-उधर ना मुड़ा और उस की मर्ज़ी का मुतलाशी (तलाश करने वाला) रहा। जैसा ख़ुशी के वक़्त वैसा ही मुसीबत और दुख के वक़्त ख़ुदा से मुहब्बत और प्यार करता रहा। ऐसा कोई आदमी दुनिया की चारों हदों में नज़र नहीं आता, कि ख़ुदा को इस तरह प्यार करे और अपनी जमाअत को उसने ऐसा प्यार किया। कि कोई सच्चा रसूल भी बमुश्किल करता है। ख़ास लोगों को उस ने ऐसा प्यार किया कि आस्मान पर उनका आला मन्सब और ज़मीन पर उनका मददगार होकर आख़िरी ज़माने तक उनके साथ रहने का वाअदा किया दुश्मनों को ऐसा प्यार किया कि किसी ने ऐसा कर के ना दिखलाया। अब ये जानना चाहिए कि ये क्योंकर हुआ कि मसीह ने हमें ऐसा प्यार किया।

अव़्वल, ये कि वो गुमशुदों (खोए हुओं) को ढूंढता फिरा। लूक़ा 19:10 में है कि क्योंकि इब्ने-आदम खोए हुओं को ढ़ूढ़ने और नजात देने आया है।

दोम, ये कि उसने अपनी जान हमारी ख़ातिर दे दी। यूहन्ना 15:13 में है कि इस से ज़्यादा मुहब्बत कोई शख़्स नहीं करता कि अपनी जान अपने दोस्तों के लिए दे।

सोम, ये कि हमारे गुनाहों को अपने ख़ून से धोता है। मुकाशफ़ा 1:5 में है कि जो हमसे मुहब्बत रखता है और जिसने अपने ख़ून के वसीले से हमको गुनाहों से ख़लासी (रिहाई) बख़्शी।

चहारुम, ये कि वो हमारे लिए जो बेकस और बेबस थे आस्मान पर सिफ़ारिश करता है। इब्रानियों 7:25 में है कि इसी लिए जो उस के वसीले से ख़ुदा के पास आते हैं वो उन्हें पूरी पूरी नजात दे सकता है क्योंकि वो उनकी शफ़ाअत के लिए हमेशा ज़िन्दा है।

पंजुम, ये कि अगरचे ख़ुद आस्मान पर चला गया लेकिन हमारी तसल्ली के लिए एक तसल्ली देने वाले यानी रूह-उल-क़ुद्स का वाअदा किया। यूहन्ना 15:26 में है कि लेकिन जब वो मददगार आएगा। जिसको मैं तुम्हारे पास बाप की तरफ़ भेजूँगा। यानी सच्चाई का रूह जो बाप की तरफ़ से निकलता है तो वो मेरी गवाही देगा। मगर इस मसीही मुहब्बत की भी चंद सिफ़तें हैं।

अव़्वल, ये कि ये मुहब्बत दिलों को खींचती है। 2 कुरिन्थियों 5:14 में है कि क्योंकि मसीह की मुहब्बत हमको मज्बूर कर देती है। इसलिए कि हम ये समझते हैं कि जब एक सब के वास्ते मुआ तो सब मरेंगे।

दोम, ये कि ये मुहब्बत बे-तब्दील है। यूहन्ना 13:1 में है कि तू अपने उन लोगों से जो दुनिया में थे जैसी मुहब्बत रखता था आख़िर तक मुहब्बत रखता रहा।

सोइम, ये कि ये मुहब्बत जुदा होने वाली नहीं है। रोमीयों 8:35 कौन हमको मसीह की मुहब्बत से जुदा करेगा। मुसीबत या तंगी या ज़ुल्म या काल या नंगा-पन या ख़तरा या तल्वार।

चहारुम, ये कि मुहब्बत मुक़द्दसों की निस्बत रोज़ बरोज़ तरक़्क़ी पर है। यहां तक कि अबद-उल-आबाद उस के साये में रहें लेकिन बेईमानों की निस्बत अगरचे इस जहान में ये मुहब्बत हाथ पसारे हुए है कि मुझमें आओ लेकिन एक ऐसा वक़्त आएगा कि अगर वो इस मुहब्बत को क़ुबूल ना करें। तो ये मुहब्बत उन की तरफ़ से मुँह मोड़ कर फिर उनकी तरफ़ तवज्जह ना करेगी। और यही मसीह जो इस वक़्त मुहब्बत से बुलाता है उस वक़्त उनके हक़ में जो क़ुबूल नहीं करते क़हरे इलाही हो कर उनके सामने हो जाएगा। यहां तक ख़ुदा की मुहब्बत और मसीह की मुहब्बत मुख़्तसर तौर पर बयान हुई। इन बातों से ये नतीजा निकलता है कि अव़्वल ख़ुदा से मुहब्बत निकली ना हमारे किसी इस्तिहक़ाक़ (हक़) के बाइस बल्कि मुफ़्त उस से सादिर हुई। और मसीह में उसने ज़हूर पकड़ कर चारों तरफ़ अपना ज़हूर दिखला दिया। अब अगर हम मसीह पर ईमान लाते हैं और उस के वसीले ख़ुदा की मुहब्बत से हमने कुछ हिस्सा पाया है तो ज़रूर है कि हमारे अंदर भी ये मुहब्बत उसी तरह ज़हूर पाए जैसी मसीह में ज़ाहिर हुई है। यूहन्ना 13:33 में है, कि मैं तुम्हें एक नया हुक्म देता हूँ कि एक दूसरे से मुहब्बत रखो। अगले पैग़म्बरों की किताबों में भी मुहब्बत करने का हुक्म लिखा है। मगर मसीह ने फ़रमाया कि मैं नया हुक्म देता हूँ और बेशक ये नया हुक्म है क्योंकि अगलों पर इस तरह की मुहब्बत करना ज़ाहिर भी ना हुआ था। क्या इस मुहब्बत की सूरत और अगलों की मुहब्बत की शक्ल यकसाँ है हरगिज़ नहीं बल्कि ये बड़ा हुक्म बड़ी तरक़्क़ी के साथ ज़ाहिर है।

अगले लोग दुश्मनों से दुश्मनी करते थे। और इन्सान की तबीयत का मीलान (रुझान) भी यही है। लेकिन इस आस्मानी मुहब्बत में दुश्मनों से दोस्ती करने का हुक्म है अगरचे अगले ज़माने के लोग भी इन्सानियत के इक़्तिदार से बाहम कुछ ना कुछ मुहब्बत करते थे। लेकिन एक मुकम्मल सूरत में ये आस्मानी मुहब्बत आस्मानी ताक़त से हज़रत मसीह के वसीले हमारे अंदर आई है। इसलिए अगली मुहब्बत और इस में बहुत बड़ा फ़र्क़ है वो एक तरह का मुबादला (अदला बदली) था ये मुफ़्त की जाती है। वो इन्सानी इक़तिज़ा (तक़ाज़ा, ख़्वाहिश) का नतीजा था और ये इलाही मंशा का समरा (हासिल, फल) है। मगर कोई आदमी इस नए हुक्म पर अमल करना चाहे तो ख़याल करे कि मैं मसीह की मानिंद चारों तरफ़ प्यार के दरवाज़े खोले रखता हूँ या नहीं यानी ख़ुदा से कलीसिया से ख़वास से अवाम से मेरी मुहब्बत है या नहीं पर ये मुहब्बत इसी ग़र्ज़ से ख़ुदा बाप ने इस का ज़हूर किया या कोई और ग़र्ज़ है। अगर वही ग़र्ज़ और उसी तौर पर ये है तो नए हुक्म पर अमल है। वर्ना वही अक़्ली और दुनियावी इन्सानी मुहब्बत है जो पुराने चीथड़े हैं। और किसी काम की नहीं है।

पस ख़ुदा-ए-बरतर से हम किस तरह मुहब्बत रखें। मत्ती 22:7 में है कि येसू ने उसे कहा कि ख़ुदावंद अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल और अपनी सारी जान और अपनी सारी अक़्ल से मुहब्बत रख पहला और बड़ा हुक्म यही है। इस जहान में बहुत से लोग ऐसे हैं जो ये समझते हैं कि हम ख़ुदा से मुहब्बत रखते हैं हालाँकि उनमें मुहब्बते इलाही नहीं होती वो अपने दिल से फ़रेब-ख़ुर्दा होते हैं। पस जानना चाहिए, कि जिसमें ख़ुदा की मुहब्बत है उस में ये अलामात होते हैं :-

अव़्वल ख़ुशी। 5 ज़बूर 11 में है कि तब वो सब जो तुझ पर भरोसा रखते हैं ख़ुश रहेंगे। क्या ख़ुदा के कलाम के सुनने और पढ़ने और दुआ करने में हम ख़ुशहाल रहते हैं या तंगदिल?

दूसरी अलामत, दिलेरी है जो कोई ख़ुदा की मुहब्बत अपने दिल में रखता है वो दिलेर होता है। किसी आदमी और चीज़ से और किसी नुक़्सान से नहीं डरता क्योंकि वो क़ादिर-ए-मुतलक़ का दोस्त है। 1 यूहन्ना 4:18 में है कि मुहब्बत ख़ौफ़ को दूर कर देती है क्योंकि ख़ौफ़ से अज़ाब (मुसीबत) होता है और कोई ख़ौफ़ करने वाला मुहब्बत में कामिल नहीं हुआ। देखो इस मुल्क के लोग जाहिलों के लान तान से डरते हैं। क्योंकि इनमें ख़ुदा की मुहब्बत नहीं है।

सोम अलामत, गुनाह से नफ़रत। चूँकि ख़ुदा क़ुद्दूस है इसलिए गुनाह से नफ़रत रखता है। पस अगर कोई उस का दोस्त बनना चाहे तो पहले गुनाह को छोड़ दे वर्ना उस की दरगाह (बारगाह) में दाख़िल ना होने पाएगा। 97 ज़बूर 10 में है कि तुम जो ख़ुदा के चाहने वाले हो बदी से कीना (दुश्मनी) रखो वो अपने मुक़द्दसों की जानों का निगहबान है वही उनको शरीरों (बेदीनों) के हाथ से छुड़ाता है।

चहारुम अलामत, ख़ुदा की फ़रमांबर्दारी है क्योंकि मुहब्बत के मअनी ये नहीं हैं कि मैं अपने दोस्त का हुक्म ना मानूँ। यूहन्ना 1 ख़त 5:30 में है कि ख़ुदा की मुहब्बत ये है कि हम उस के हुक्मों पर अमल करें और उस के हुक्म सख़्त नहीं। हर एक आदमी जब तक इन चार बातों को अपने अंदर ना देखे हरगिज़ ख़याल ना करे कि मुझमें ख़ुदा की मुहब्बत है।

दूसरी हज़रत मसीह की मुहब्बत है जैसी ख़ुदा की मुहब्बत हम पर फ़र्ज़ है वैसी ही मसीह की मुहब्बत भी हर फ़र्द बशर को वाजिब और फ़र्ज़ है। क्योंकि वो मुहब्बत-ए-इलाही का महबत (उतरने की जगह) है। कोई आदमी उस से जुदा हो के ख़ुदा से मुहब्बत हरगिज़ नहीं कर सकता। उसने हमसे मुहब्बत की हम भी उस से मुहब्बत करें जैसी ख़ुदा ने उस से मुहब्बत की। ऐसी उसने ख़ुदा से मुहब्बत की। बाअज़ लोग उस से बिल्कुल मुहब्बत नहीं रखते वो लोग हक़ीक़त में ख़ुदा से मुहब्बत नहीं रखते ना ख़ुदा उनसे राज़ी होगा। बाअज़ लोग उस के साथ जिस्मानी तौर पर मुहब्बत रखते हैं मसलन उस की तस्वीर का इश्क़ या उस के नाम की तस्बीह या उस की सलीब की तस्वीर गले में या उस के बाअज़ बरकात को ग़ैर-मुनासिब प्यार करते है। मगर ये सब बुत परस्ती के अजज़ा (हिस्से) हैं और मसीह ने भी इन बातों को ना पसंद फ़रमाया है। लूक़ा 11:27 में से कि एक औरत ने कहा मुबारक है वो पेट जिसमें तू रहा और वो छाती जिससे तूने दूध पिया। ईसा ने जवाब दिया हाँ मगर ज़्यादा मुबारक वह हैं जो ख़ुदा का कलाम सुनते और उस पर अमल करते हैं। मसीह की मुहब्बत के ये निशान हैं :-

1. निशान, मसीह को रूह में तलाश करना क्योंकि अगर हम उस के हैं तो वो हम में बस्ता है। ग़ज़ल-उल-ग़ज़ालात के 3:2 में इस मज़्मून का ज़िक्र है।

2. निशान, अपनी सलीब उठा के उस की पैरवी करना यानी ऐसी पैरवी करना कि अगर उस के लिए जान भी जाये तो मंज़ूर हो। मत्ती 10:38 में है कि और जो कोई अपनी सलीब ना उठाए और मेरे पीछे ना चले वो मेरे लायक़ नहीं।

3. निशान, तमाम चीज़ों से ज़्यादा उस को प्यार करना। मत्ती 10:37 में है कि जो कोई माँ या बाप को मुझसे ज़्यादा अज़ीज़ रखता है, वो मेरे लायक़ नहीं। और जो कोई बेटे या बेटी को मुझसे ज़्यादा अज़ीज़ रखता है वो मेरे लायक़ नहीं।

4. निशान, मसीह की ख़िदमत करना और उस की ख़िदमत यूं है कि उस के लोगों की ख़िदमत की जाये। मत्ती 25:20 में है कि तुमने मेरे इन सबसे छोटे भाईयों में से किसी एक के साथ ये किया उसने मेरे ही साथ किया।

5. निशान, उस के हुक्म को बे-कम व कासित (बग़ैर कमी बेशी) के बजा लाना। यूहन्ना 14:15 में है कि अगर तुम मुझसे मुहब्बत रखते हो तो मेरे हुक्मों पर अमल करो।

पस ये पाँच निशान मसीह की मुहब्बत के हैं जिसमें ये नहीं हैं उस में मसीह की मुहब्बत नहीं और जिसमें मसीह की मुहब्बत नहीं उस में ख़ुदा की मुहब्बत नहीं। फिर देखो मसीह ने दुनिया के लोगों से तीन तरह की मुहब्बत की है आम कलीसिया से और ख़ास मुक़द्दसों से और अपने दुश्मनों से भी इसी तरह मगर वो आस्मानी मुहब्बत हम में है तो हम भी इसी तरह करें और मसीह और ख़ुदा ने हमसे इसलिए मुहब्बत की है, कि हमारी जान बच जाये पस इस रिआयत से हम पर भी मुहब्बत करना फ़र्ज़ है।

अव़्वल, तमाम जमाअत से। ग़लतीयों 6:10 में है कि सब के साथ नेकी करें ख़ासकर अहले ईमान के साथ।

दुवम, ख़ादिमाने दीन से जो मसीह की तरफ़ से जमाअतों का बंदो-बस्त और कलाम की ख़िदमत और भाईयों की ख़िदमत के लिए मुक़र्रर हैं जिनको ख़ुदा की रूह ने इस ओहदे के लिए चुन लिया है। जिन्हों ने ख़ुदा के लोगों से इस मन्सब की इज़्ज़त पाई है, कि रसूलों और नबियों के ताइब हो कर ख़ुदा का कलाम सुनाएँ। और दुनिया के सब कारोबार करके इसी में अपनी उम्र तमाम करें तुम उनसे मुहब्बत करो देखो ख़ुदा ने और मसीह ने उनसे मुहब्बत की है कि ये ओहदा बख़्शा है। 1 थिस्सलुनीकियों 5:13 में है कि और उनके काम के सबब मुहब्बत से उन की बड़ी इज़्ज़त करो और आपस में मेल मिलाप रखो।

सोइम, मुक़द्दसों से मुहब्बत रखो यानी उन आदमीयों से जो ख़ुदा की जमाअत में ईमानदार हैं और नेकी के काम किया करते हैं और कलाम के मुतीअ (ताबे) और फ़रमांबर्दार रहते हैं। 1 पतरस 3:17 में है कि सबकी इज़्ज़त करो बिरादरी से मुहब्बत रखो, ख़ुदा से डरो बादशाह की इज़्ज़त करो।

चहारुम, हर किसी से मुहब्बत रखो और दुश्मनों को भी प्यार करो क्योंकि हम ख़ुदा के दुश्मन थे उसने हमको प्यार किया और मुफ़्त हमारे लिए हज़रत मसीह को भेज दिया। मत्ती 5:44 में है कि अपने दुश्मनों से मुहब्बत रखो और अपने सताने वालों के लिए दुआ माँगो। ये उस आस्मानी मुहब्बत की तासीर है जिसको मसीह ने ज़ाहिर किया। अब ये जान लेना चाहिए कि प्यार किस तरह किया जाता है। प्यार सिर्फ ज़बानी नहीं होता बल्कि अमल और ख़िदमत से ज़ाहिर होता है मसलन किसी के दुख दर्द के शरीक होना और उस की ख़ुशी में ख़ुश और ग़म में गम-ज़दा होना।

उनकी ख़ताओं को बख़्शना। कमाल ख़ाकसारी और फ़िरोतनी से उनकी ईज़ा को सब्र के साथ बर्दाश्त करना और हम्दर्दी के साथ मलामत (नसीहत) भी करना, भूकों को खाना देना, नंगों को कपड़े पहनाना, प्यासों को पानी पिलाना, बीमारों की ख़बर लेना, मुसाफ़िरों का मकान में उतारना, मीठी ज़बान से बातें करना लेकिन ना अपनी तारीफ़ और शौहरत की ग़र्ज़ से बल्कि सब कुछ मह्ज़ ख़ुदा की ख़ातिर और ख़ुशनुदी के लिए करना। क्योंकि ख़ुदा ने हमसे बेरिया (खालिस) मुहब्बत की है और हम भी ये सब कुछ उसी के जलाल और बुजु़र्गी के लिए करें। तब हम इस आस्मानी मुहब्बत से हिस्सा पाएँगे, वर्ना हरगिज़ नहीं। ख़ुदावन्द तआला हम पर और सब नाज़रीन पर अपना फ़ज़्ल करे कि इस मुहब्बत में हिस्सा लेकर अपने अंदर इस का असर देखें ख़ुदावन्द मसीह के फ़ज़्ल से आमीन।

रिसाला दवाज़दहुम (12)
ख़ुदा की बुजु़र्गी और जलाल के बयान में

अगर इन्सान ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से ज़रा बैदार हो कर देखे तो उसे मालूम हो जाएगा कि हमारे ख़ुदावन्द येसू मसीह से और उस के लोगों से और उस के कलाम-ए-मुक़द्दस से जिस क़द्र ख़ुदा-ए-बरतर का जलाल और उस की बुजु़र्गी ज़ाहिर होती है। किसी और के कलाम से हरगिज़ ज़ाहिर नहीं होती है और ना कोई शख़्स और मज़्हब इस को ज़ाहिर कर सकता है। और ये भी एक कामिल रूहानी दलील है इस बात पर कि ज़रूर ये दीन ख़ुदा ही की तरफ़ से है। इलावा कलाम-ए-इलाही के क्या अक़्ल भी इस बात पर गवाही नहीं देती कि हम सब उस के बंदे हैं लिहाज़ा अपने ख़ालिक़ और मालिक की ताज़ीम और बुजु़र्गी ज़ाहिर करना हम पर फ़र्ज़ है जिसकी हिक्मत के आगे तमाम हुकमा की हिक्मत हीच (निकम्मा, नाकारा) है और जो अपनी क़ुद्रते कामिला से तमाम दुनिया और माफिहा को अदम से ख़ैर वजूद में लाया।

और जिसने अपने फ़ज़्ल व करम से अन्वा व अक़्साम की चीज़ें हमारे क़ियाम और बक़ा (ज़िंदा रहना) के लिए पैदा कीं। और जिसने इतनी बड़ी ज़मीन को बग़ैर सहारे के खड़ा कर दिया है और अज्रामे समावी को बाहमा शान व शौकत बिखेर दिया है और जिसका इल्म इतना वसीअ है कि ज़र्रे से लेकर आफ़्ताब तक और तमाम जहान की हर चीज़ को अहाता (घेरा) किया हुआ है। क्या हम ऐसे बड़े ख़ालिक़ और मालिक की ताज़ीम और बुजु़र्गी बयान ना करें और उस की हम्द व सना का तज़्किरा करते हुए उस का जलाल ज़ाहिर ना करें। ज़रूर हमारा फ़र्ज़ है कि हमेशा जब तक जीते हैं इस जहान में शुक्र गुज़ारी के साथ उस के कामों को देखकर उस के फ़ज़्ल और हिक्मत और क़ुद्रत की तारीफ़ से अपनी नापाक ज़बान को पाकीज़गी दिया करें और अपनी बेहतरी के लिए ये सच्चा क़ायदा पेश-ए-नज़र रखें कि जो ताअलीम और जो मुअल्लिम हमारे ऐसे ख़ालिक़ और मालिक की बुजु़र्गी और जलाल को कमा-हक़्क़ा (जैसा उस का हक़ है) तस्लीम ना करे उस से नफ़रत और परहेज़ करें। जो कलाम और ताअलीम और जो मुअल्लिम सबसे ज़्यादा और अक़्ल से भी बाला बुजु़र्गी और जलाल के साथ उस की क़ुद्रत और शौकत का इज़्हार करे उस को तलाश कर के अपनी आख़िरत का ज़ख़ीरा पैदा करें।

देखो इस नेक और ज़रूरी क़ायदे के मुताबिक़ तमाम झूटे मज़्हब और बातिल तालीमें रद्द हो जाती हैं क्योंकि अगर इन्सान सही अक़्ल और साफ़-दिल से और उस की बुजु़र्गी की रिआयत से दुनिया के सब मज़्हबों को मुलाहिज़ा करे तो सिवाए कलाम-ए-इलाही के यानी बाइबल के, दूसरी ताअलीम ऐसी ना पाएगा। जिससे ख़ुदा का जलाल और उस की बुजु़र्गी ज़ाहिर होती हो। अहले हनूद के मज़्हब की तरफ़ देखो कि उन्होंने गुनेहगार आदमीयों को जिनके चाल-चलन भी अच्छे ना थे। ख़ुदा के अवतार (ख़ुदा का इन्सान की शक्ल में आना) मान लिया और वो बदीयाँ जो उन्होंने दुनिया में कीं उनको ख़ुदा पर जायज़ रखा। बुरे हुक्म और असनाम-परस्ती (पत्थर वग़ैरह के बुत की पूजा) और अश्जार परस्ती (दरख़्तों की पूजा) और पाती परस्ती और ज़र परस्ती (दौलत की पूजा) से उस के नाम की इज़्ज़त दूसरों को दी। और उस के कलाम से दूर जा कर अपने शाइरों और राजाओं की तसानीफ़ (तहरीरों) को कलाम-ए-इलाही बना लिया। और उनकी ताज़ीम की और तरह तरह की बदकारीयाँ करना उस के हुक्म से बतलाया। और उस के नाम की हिक़ारत की। बाअज़ ने उस की सिफ़ात का इन्कार किया। और बाअज़ ने बावजूद इक़रार के मख़्लूक़ात को अपना ख़ालिक़ समझ लिया। और सज़ा के लायक़ हुए अहले-इस्लाम की तरफ़ देखो जो कहते हैं नेकी और बड़ी ख़ुदा की तरफ़ से है उस की बुजु़र्गी और जलाल को दाग़ लगाते और उस को बदी का बानी बतलाते वो जो नेकी का मम्बा है उसी को मुआविन शर (शरारत का मददगार) कहते हैं। और आप पाक बनते हैं।

हालाँकि पाकीज़गी सिर्फ उसी की ज़ात का ख़ास्सा है ना उनके इमामों और नबियों की लेकिन वो लोग बिला दलील (सबूत के बग़ैर) ख़ुदा को बानी शर और अपने बुज़ुर्गों को इस से मासूम जान कर उस मुबारक ख़ुदा-ए-बरतर की क़ुद्दुसियत पर ऐब लगाते हैं। हक़ीक़त ये है कि जब इन्सान से इस क़िस्म के नाकर्दनी (नाजायज़) और नाशाइस्ता (बुरे अफ़आल) सरज़द होते हैं। जिनकी माक़ूल वजह वो नहीं बतला सकता है तब वो ये कहता है कि ये सब कुछ ख़ुदा की तरफ़ से है। और इस तरह ख़ुदा को वो बानी शर बतलाता है।

इलावा बरीं ये दोनों फ़िर्क़े यानी हिंदू मुसलमान और इनके सिवा और वो सब फ़िर्क़े जो इन्सान की नजात उस के अफ़आल पर मौक़ूफ़ रखते हैं। वो भी उस की ताज़ीम में बंद लगाते हैं। और अपने गंदे और नापाक कामों को जो हक़ीक़त में नाक़िस हैं लायक़ जानते हैं। कि उस की पाक व कामिल नजात को इस के मुबादले (बदले) में हासिल करेंगे। और मज़्हबों को देखो कि वो हक़ीक़त ही के मुन्किर (इंकारी) हैं। उन के नज़्दीक कुछ हक़ और दुरुस्त हे ही नहीं। और ख़ुदा के कामों को लगू (फ़ुज़ूल) और बेहिक्मत जानते हैं। ये भी उस की ज़ात पर ऐब लगाते हैं। हमा औसत (हर चीज़ ख़ुदा है) वालों को देखो कि कैसे सरकश और बाग़ी हो गए, कि ख़ुदा की इज़्ज़त और जलाल को ना जाना बल्कि हर एक चीज़ को वो इज़्ज़त और बुजु़र्गी जो उसी के लायक़ है दे बैठे।

अक़्ल परस्तों को देखो कि इल्हाम के मुन्किर हो कर उस की हिदायत और रहनुमाई को नाचीज़ जाना अपनी नाक़िस अक़्ल को जो नापाक और बद-दिल के साथ उनके अंदर है ऐसी इज़्ज़त और बुजु़र्गी दी, कि गोया वो आप अपने ख़ालिक़ की हिदायत की हाजत (ज़रूरत) ही नहीं रखते। इसी तरह तमाम बातिल मज़्हब और बुरी चाल के चलने वाले उस की ज़ात-ए-पाक पर ऐब (नुक़्स) लगाते हैं। अगरचे वो उम्दन (जानबूझ कर) और ब-गुमान ख़ुद ऐसा काम ना करें। पर उनकी ताअलीम ऐसी ऐसी बातों से ये नुक़्सान पैदा कर रही है और वो इन पर ग़ौर नहीं करते और ये भी बड़ी दलील (वजह) है। इस बात पर कि उनका तरीक़ा ख़ुदा की तरफ़ से नहीं है।

अब बाइबल की तरफ़ देखो कि इस से ख़ुदा का कैसा आलीशान जलाल ज़ाहिर होता है। यसअयाह 6:4 में लिखा है कि, कि और एक ने दूसरे को पुकारा और कहा क़ुद्दूस क़ुद्दूस क़ुद्दूस रब-उल-अफ़्वाज है और सारी ज़मीन उस के जलाल के बरख़िलाफ़ और उस के सामने गुस्ताख़ी करते हैं। तो भी उस का हुलुम और बुर्दबारी (बर्दाश्त, तहम्मुल) और तौबा की मोहलत देने के लिए उस का चुप-चाप रहना उस का जलाल ज़ाहिर करता है। पाँच बातों का ज़िक्र कलाम-उल्लाह में पाया जाता है जिनसे उस की बुजु़र्गी और जलाल ज़ाहिर है :-

अव़्वल, उस के नाम से उस का जलाल ज़ाहिर है क्योंकि उस का नाम दबदबा और शौकत वाला और ख़ौफ़ और उम्मीद वाला है। और वो इन सब सिफ़तों को दिखलाता है। इस्तिस्ना 28:58 में है, कि अगर तू ध्यान रख के उस की शरीअत की सब बातों पर जो इस किताब में लिखी हैं अमल ना करेगा कि उस के जलाली और होलनाक नाम यहोवा अपने ख़ुदा से ना डरे। तब ख़ुदावन्द तेरी आफ़तें और तेरी औलाद की आफ़तें अजीब तरह से बढ़ा देगा।

पस ऐ भाइयो ख़ुदावन्द का नाम बड़ा बुज़ुर्ग और जलाल का नाम है मुनासिब ये है कि जब हम उस का नाम लें तो उसी वक़्त उस के रोब दाब से हमारे दिल लर्ज़ां (काँप जाएं) हो जाएं। क्योंकि वो सारे नामों से बुलंद और बाला और क़वी तर (निहायत ताक़तवर) है। लोगों ने कस्रत इस्तिमाल के सबब इस पाक नाम की ताअलीम छोड़ दी है। हर वक़्त का तकिया कलाम कर के कुछ उस का ख़ौफ़ और दबदबा दिलों में नहीं देखते। बाअज़ लोग अक्सर उस के नाम की क़समें खाया करते हैं और नहीं जानते कि किस के नाम की बेइज़्ज़ती करते हैं।

राक़िम ने जब ख़ुदावन्द मसीह की ख़िदमत में हाज़िर नहीं हुआ था। उस वक़्त एक मुहम्मदी आलिम से सुना था कि ख़ुदावन्द के नाम की ताज़ीम जैसी ईसाई लोग करते हैं ऐसी दुनिया में कोई नहीं करता। लेकिन अब मुझ पर इस आलिम की बात का भेद ज़ाहिर हुआ कि उसने सच्च कहा था। नहमियाह 9:5 में है कि खड़े हो जाओ और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को अबद-उल-आबाद (हमेशा से हमेशा तक) मुबारक कहो। बल्कि तेरा जलाली नाम मुबारक हो जो सारी मुबारकबादी और हम्द पर बाला है। चूँकि उस का नाम जलाली है। इसलिए ख़ुरूज 20:7 में हमें हुक्म दिया है कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का नाम बेफ़ाइदा मत ले क्योंकि जो उस का नाम बेफ़ाइदा लेता है। ख़ुदावन्द उसे बेगुनाह ना ठहराएगा।

चंद आयतों से ज़ाहिर है कि ख़ुदा ने अपने पाक नाम को रोब के तौर पर कई जगह बयान किया है। ख़ुरूज 6:2 में है कि फिर ख़ुदा ने मूसा को फ़रमाया और कहा मैं ख़ुदावन्द हूँ। और यही हक़ीक़ी तफ़ाख़ुर (फ़ख़्र) ख़ुरूज 3:14 में है कि मैं वो हूँ जो मैं हूँ और उसने कहा तूम बनी-इस्राईल से यूं कहो कि वो जो है उसने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। देखो कलाम-उल्लाह में ये नाम रोब के साथ मज़्कूर हुआ है चाहिए जहां ये नाम मज़्कूर हो फ़ौरन ख़ौफ़ और दहश्त और उम्मीद के साथ इस पर तवज्जोह करें। वर्ना नाम की बेइज़्ज़ती के बाइस सज़ा क़े लायक़ हो जाऐंगे। जो लोग ऐसा नहीं करते बग़ावत और शैतान का तुख़्म (बीज) उनके दिलों में मौजूद रहता है। बाअज़ मुहम्मदी हदीसों में लिखा है कि मुहम्मद साहब का नाम पाक जगह में लेना मगर ख़ुदा का नाम जहां चाहो लो कुछ डर नहीं है। देखो ये कैसी बड़ी बात है।

दोम, उस की अज़मत से उस का जलाल ज़ाहिर है। अय्यूब 37:22 में है कि और सिम्त शुमाल से सोने की सी तजल्ली (रोशनी) आती है ख़ुदा का हैबतनाक जलाल है क़ादिर-ए-मुतलक़ जो है हम उस के भेद तक पहुंच नहीं सकते उस की क़ुद्रत और अदालत अज़ीम हैं और उस का इन्साफ़ भी फ़िरावाँ है। यानी उस की बड़ाई जो उस की ज़ात का ख़ास्सा है उस की बुजु़र्गी और जलाल को ज़ाहिर करती है। 93 ज़बूर 1 में है कि ख़ुदावन्द सल्तनत करता है। वो शौकत का ख़िलअत (लिबास) पहने हुए है उसने अपनी कमर क़ुव्वत से कसी (बाँधी) इसलिए जहां क़ायम है कि वो टलता नहीं। 104 ज़बूर 1 में है कि ऐ मेरी जान ख़ुदावन्द को मुबारक कह ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा तू निहायत बुज़ुर्ग है तो हश्मत और जलाल का लिबास पहने हुए है।

सोइम, ख़ुदावन्द का जलाल उस के कामों से ज़ाहिर है यानी जो काम उसने किए या जो काम लोगों ने किए और ख़ुदा ने उनके कामों की निस्बत उनसे कोई मुआमला बरता उन सबसे उस की अज़मत और बुजु़र्गी ज़ाहिर है। 19 ज़बूर 1 में है कि आस्मान ख़ुदा का जलाल बयान करते हैं और फ़िज़ा उस की दस्तकारी दिखलाती है। 111 ज़बूर 3 में है कि उस का काम जाह व जलाल है उस की सदाक़त अबद तक क़ायम है उस की क़ुद्रत उस का जलाल ज़ाहिर करती है। ख़ुरूज 15:1 में है कि मैं ख़ुदावन्द की हम्द व सना गाऊँगा कि उसने बड़े जलाल से अपने तईं ज़ाहिर किया कि उसने घोड़े को उस के सवार समेत दरिया में डाल दिया। आयत 6 में है कि ऐ ख़ुदावन्द तेरा दहना हाथ ज़ोर में मशहूर हुआ है ऐ ख़ुदावन्द तेरे दहने हाथ ने बैरियों (दुश्मनों) को चूर चार किया।

चहारुम, उस की सिफ़तों से उनकी तासीरों से उस का जलाल ज़ाहिर है रसूलों से और नबियों और मुक़द्दसों से और पेश गोइयों से और मोअजज़ात से उस की बंदगी ज़ाहिर होती है।

पंजुम, ख़ुदावन्द ईसा मसीह से उस के जलाल ने ज़हूर पाया। यूहन्ना रसूल ने अपनी इन्जील के 1:14 में यूं ज़िक्र किया है। और मसीह की निस्बत यूं लिखा है कि कलाम यानी (ख़ुदावन्द येसू जो अज़ल से बाप के साथ था) मुजस्सम हुआ और फ़ज़्ल और सच्चाई से मामूर हो कर हमारे दर्मियान रहा और हमने उस का ऐसा जलाल देखा जैसे बाप के इकलौते बेटे का जलाल। 2 कुरिन्थियों 4:6 में है कि इसलिए कि ख़ुदा ही है जिस ने फ़रमाया कि तारीकी में से नूर चमके और वही हमारे दिलों में चमकाता कि ख़ुदा के जलाल की पहचान का नूर येसू मसीह के चेहरे से जलवा गर हो। इब्रानियों 1:3 में है, कि वो उस के जलाल का परतो (अक्स) और उस की ज़ात का नक़्श हो कर सब चीज़ों को अपनी क़ुद्रत के कलाम से संभालता है। वो गुनाहों को धो कर आलम-ए-बाला पर किबरिया (ख़ुदा) की दाहिनी तरफ़ जा बैठा।

पस ये पाँच बातें हैं जिनसे उस का जलाल ज़ाहिर है और कोई बात इनसे बाहर नहीं है यानी उस का नाम उस का कलाम उस की अज़मत और क़ुद्रत उस की सिफ़ात और ख़ुदावन्द येसू मसीह। चंद मज़्मून इस इलाही जलाल के मुत्तफ़िक़ हैं।

अव़्वल, ये कि उस का ये जलाल अबदी और अज़ली है। 104 ज़बूर 3 में है कि ख़ुदावन्द का जलाल अबदी है ख़ुदावन्द अपनी सुनअतों से ख़ुश है।

दोम, ये कि जलाल मुस्तग़नी (आज़ाद) और बे-परवाह है। इफ़िसियों 3:16 में है कि वो अपने जलाल की दौलत के मुवाफ़िक़ तुम्हें ये इनायत करे कि तुम उस की रूह से अपनी बातिनी इन्सानियत में बहुत ही ज़ोर-आवर हो जाओ यानी तुम्हारे कामों के सबब और ना किसी इस्तिहक़ाक़ (हक़) के बाइस बल्कि सिर्फ अपने जलाल के मुवाफ़िक़ ये बख़्शी।

सोइम, ये कि ख़ुदावन्द अपने जलाल में ग़य्यूर है वो नहीं चाहता कि ये जलाल जो उस की ज़ात-ए-पाक का ख़ास्सा है कोई दूसरा इस में दस्त अंदाज़ी करे इसी जलाल में शैतान ने दस्त अंदाज़ी की वो मलऊन (लानत किया गया) हो गया। इसी जलाल में बुत परस्तों और बे-ईमानों ने ख़लल डाला है कि वो जहन्नम के सज़ावार हुए इस दीनदारी का यही भेद है। और दुनिया इस से नावाक़िफ़ है जिस पर ये जलाल का भेद खुल जाता है वही दीनदार होता है। यसअयाह 42:8 में है कि यहोवा मैं हूँ ये मेरा नाम है और अपनी शौकत किसी दूसरे को ना दूंगा। और वो सताइश जो मेरे लिए होती है खोदी हुई मूरतों के लिए होने ना दूंगा।

यहां से ज़ाहिर है कि ख़ुदा अपना जलाल किसी दूसरे को देना नहीं चाहता पस जो लोग उस का जलाल दूसरी चीज़ों के लिए उम्दन (जानबूझ कर) या ग़लती में पड़ कर या किसी के बहकाने से देते हैं वही सब के सब ख़ुदा के दुश्मन और बाग़ी हैं। मसलन माबूद होना उसी साहिब-ए-जलाल को लायक़ है। अगर कोई आदमी बुत-परस्ती या क़ब्र परस्ती करे ख़्वाह मुराक़बा (सब चीज़ों को छोड़ कर ख़ुदा का ध्यान करना) से या ताज़ीम बेजा से या कोई शख़्स फ़नानी शेख़ या फ़नानी अल-रसूल (फ़क़्र का वो मर्तबा जिसमें मुरीद अपने मुर्शिद या रसूल के ख़याल में डूबा रहे) होने बैठे वो ख़ुदा का जलाल दूसरों को देता है वो ख़ुदा की दरगाह से बाग़ी हो कर भागा है ज़रूर वो ग़ारत हो जाएगा। जब तक वो तौबा करे और हाज़िर हो कर अपने गुनाह का इक़रार ना करे। दूसरे ये कि वही क़ादिर-ए-मुतलक़ क़ाबिल-ए-भरोसा है जिस का ऐसा जलाल है कि अगर कोई आदमी अपनी ताक़त या अपनी बुजु़र्गी की ताक़त या रिश्तेदार भाईयों की ताक़त या किसी पीर फ़क़ीर की ताक़त और झूटे मज़्हब पर भरोसा रखे या अमीरों का भरोसा दिल में आने दे ज़रूर ख़ुदा का ग़ुस्सा उस पर होगा उसने ख़ुदा का जलाल दूसरों को दिया।

3. ये कि उसी ख़ुदा की मुहब्बत और प्यार सबसे ज़्यादा दिल में रखना लायक़ है। क्योंकि वो साहिब-ए-जलाल है और अगर कोई आदमी दुनिया की चीज़ों को ज़्यादा प्यार करे और दुनिया के ख़ौफ़ से उस की ख़िदमत में हाज़िर हो तो उसने भी ख़ुदा का जलाल दूसरी चीज़ों को दिया अला हाज़ा-उल-क़यास इसी जलाल से इन्हिराफ (मुख़ालिफ़त) करने के बाइस हर एक गुनाह मौजूद होता है और सब तरह की बरकतें और नेअमतें इसी जलाल से इनायत होती हैं तमाम मुक़द्दस इसी के शौक़ में सो गए और इसी पौड़ी (सीढ़ी) से फ़ज़्ल की बुलंदी पर जा चढ़े। 63 ज़बूर में है कि ऐ ख़ुदा तू मेरा ख़ुदा है। मैं तड़के तुझे ढूँडूँगा मेरी जान तेरी प्यासी है। और मेरा जिस्म ख़ुश्क और धूप की जली हुई ज़मीन में जहान पानी नहीं तेरा मश्शाक़ी (ख़्वाहिशमंद) है ताकि तेरी क़ुद्रत और तेरी हश्मत को देखे जैसा कि मैंने बैत क़ुद्दुस में देखा है। 90 ज़बूर 16 में है कि अपने काम अपने बंदों को और अपनी शौकत उनके फ़रज़न्दों को दिखला।

चहारुम, ये कि कलीसिया ईसा ख़ुदा के लोगों की जमाअत इसी इलाही जलाल से रोशन है। यसअयाह 60:1, 2 में है कि उठ रोशन हो कि तेरी रोशनी आई ख़ुदावन्द तुझ पर तुलु होगा और उस का जलाल तुझ पर नमूदार होगा।

पंजुम, ये कि यही जलाल एक वक़्त में ख़ास तौर पर ज़ाहिर होने वाला है कि तमाम ज़मीन उस से भर जाएगी। जब ख़ुदावन्द ईसा मसीह आए। हबक़्क़ूक़ 2:14 में है कि क्योंकि जिस तरह पानी से समुंद्र भरा हुआ है इसी तरह ज़मीन ख़ुदावन्द के जलाल की शनासाई (वाक़फ़ीयत) से मामूर होगी।

शश्म, ये कि ये इलाही जलाल बाअज़ वक़्त इसी जहान में बाअज़ बंदों पर ज़ाहिर हुआ है मसलन मूसा पर और बाअज़ अम्बिया पर और मसीह के अहद में हवारियों पर और एक बड़ी भीड़ पर कोई शख़्स ऐसा नहीं है कि उस का हक़ीक़ी जलाल देख सके हाँ उस की तजल्ली (रोशनी) देख सकते हैं लेकिन आख़िरी वक़्त में जब मसीह आएगा। और इस जलाल के देखने के लायक़ बनाए तो देखेंगे। हमारे ख़ुदावन्द येसू मसीह का जलाल इस जहान में ज़ाहिर हुआ है। और हम उस के बंदे और उस के लोग ऐसे जलाल के ज़ाहिर करने को मामूर हैं अगर कोई आदमी अपनी नजात चाहे वो हमारे ख़ुदावन्द का जलाल ज़ाहिर करने में सई (कोशिश) करे और जनाबे मसीह के जलाल को हर वक़्त पेश-ए-नज़र रखे। देखो जनाबे मसीह का जलाल इस से ज़ाहिर है कि वो ख़ुदा का बेटा भी था जो अज़ल में बाप से मौलूद है फिर वो बाप के साथ एक ख़ुदा भी है ख़ुदावंदो का ख़ुदावन्द वो है। ख़ुदा की माहीयत (असलियत) का नक़्श वो ही है। ख़ालिक़ है और वो ही मुबारक है हर नेकी का वसीला वो ही है पैग़म्बर और सरदार काहिन भी वही है बादशाहों का बादशाह और हाकिमों का हाकिम और उम्मत का चौपान और कलीसिया का सरदार और इस की बुनियाद भी वो ही है सच्चाई और सच्चा नूर और सच्ची राह और हक़ीक़ी ज़िंदगी भी वही है। ये सब सिफ़तें उस के कलाम में मज़्कूर हैं जिनसे उस का जलाल ज़ाहिर है और ये ज़मीन आस्मान और तमाम अम्बिया और रसूल और सब इबादात और सब दीन के मुआमलात और आदमी उस के नाक़िस नमूने थे। उसी का ज़हूर अव़्वल से आख़िर तक है ये सब मज़ामीन भी उस का जलाल दिखलाते हैं इस के सिवा उस की पाक गुफ़्तगु और उस के सब काम और इस जहान की ज़िंदगी सब के सब उस का जलाल ज़ाहिर करते हैं। उस की जफ़ाकशी और ईज़ा की बर्दाश्त और मर के जी उठना और आदमीयों को बचाना उस का कामिल जलाल दिखलाते हैं। उस की रहमत और मेहरबानी जो उसने हम पर की है। और हम जो ग़ैर क़ौमों में से हैं। और ख़ुदा की रहमत से दूर थे उसी ने अपने इस आली जलाल से हमें बुलाया। ये जहान उसी का है पस ऐ भाइयो आओ हम सब ख़ुदा को जलाल दें ताकि उस के हक़ीक़ी बंदे और दोस्त बन जाएं मगर ये जलाल इलाही सिवाए कलाम इलाही के दूसरी ताअलीम से इन्सान पर ज़ाहिर नहीं हो सकता इसलिए सबकी ख़िदमत में अर्ज़ है कि मसीह के पास आओ ताकि इस इलाही जलाल से जो उस के ज़रीये ज़ाहिर हुआ है, ख़ुदा को जलाल दें। ये आख़िरी रिसाला हक़ीक़ी इर्फ़ान का जो फ़िल-हक़ीक़त सच्ची शनासाई बतलाता है ख़ुदावन्द के जलाल और उस के नाम की अज़मत पर तमाम किया जाता है उसी का जलाल अबद-उल-आबाद हो। आमीन।