हयात-ए-जावेदानी

की

इलाही पेशकश

अज़

हमरान अम्बर

1. ख़ुदा का मुझसे शख़्सी तौर पर हम-कलाम होना

मेरी पिछली ज़िंदगी एक सरगर्म मुस्लिम की ज़िंदगी थी। मैं “तहरीक मुहम्मदिया का एक मुंतज़िम और इस्लाम का मुबल्लिग़ था 1947 ई॰ में जनाब अदहुम ख़ालिद के साथ में कालिमंतान (Kalimantan) मुस्लिम कांग्रेस अमुन्ताई (Amuntai) का सदर चुना गया था।

1950 ई॰ से 1951 ई॰ तक मुझे शहर बन्जर-मासीन (Banjarmasin) में फ़ौज में मुस्लिम पेशवा मुक़र्रर किया गया और सैकिण्ड लैफ़्टीनैंट के ओहदे से नवाज़ा गया।

मेरे मज़ामीन “सोलो (Solo) के मुस्लिम रिसाला “Mingguan Adil”, शहर जकार्ता के अहम मुक़ामी रिसाला “Mingguan Risalah Jihad” में और शहर बांडूइंग के रिसाले “Mingguan Anti Komunis” में शाएअ हो रहे थे। मैंने 1936 ई॰ से मवारअतोइयह (बारीतो) में मसीहियों के ख़िलाफ़ एक तशद्दुद पसंद गिरोह के साथ तआवुन किया और 1962 ई॰ तक मेरी हम्दर्दीयां ऐसी जमाअतों के साथ रहीं जो इंडोनेशिया में इस्लामी हुकूमत क़ायम करना चाहती थीं जो कि ख़ुदबख़ुद मसीहियों के ख़िलाफ़ सरगर्म हो जाती।

अगरचे बाइबल मुक़द्दस की एक जिल्द 1936 ई॰ ही में मेरे हाथों में आ चुकी थी लेकिन मैंने उसका मुतालआ सच्चाई जानने की ख़ातिर नहीं किया था, बल्कि मैं उल्टा बाइबल मुक़द्दस में ऐसे मुक़ामात की तलाश में रहता था जो मसीही मुख़ालिफ़ रवैय्ये के हामिल मेरे इस्लामी नुक्ता-नज़र की हम-नवाई कर सकते ताकि मैं मसीही अक़ीदे पर ज़्यादा मोअस्सर तरीक़े से हमला करने के क़ाबिल होता। चालीस साल की उम्र तक मैं येसू मसीह की रास्त ज़िंदगी पर नुक्ता-चीनी करता रहा जिसमें उस की उलूहियत को भी मुकम्मल तौर पर रद्द करना शामिल था। मैंने जान-बूझ कर सच्चाई का मज़ाक़ उड़ाया और उसे रद्द किया। लेकिन ख़ुदा की मुहब्बत इतनी अज़ीम थी कि उस ने मुझे ढ़ूंडा, पाया और बचा लिया।

मुझे 1962 ई॰ में मस्जिद में पेश करने के लिए एक ख़ुत्बे की तैयारी के दौरान सूरह अल-माइदा 5:68 पर काफ़ी ग़ौर करने का मौक़ा मिला।

قُلْ يَا أَهْلَ ٱلْكِتَابِ لَسْتُمْ عَلَى شَيْءٍ حَتَّى تُقِيمُوا ٱلتَّوْرَاةَ وَٱلإِنْجِيلَ وَمَا أُنْزِلَ إِلَيْكُمْ مِنْ رَبِّكُمْ

“कहो कि ऐ अहले-किताब जब तक तुम तौरात और इन्जील को और जो (और किताबें) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम लोगों पर नाज़िल हुईं उन को क़ायम ना रखोगे कुछ भी राह पर नहीं हो सकते।”

मैंने ये क़ुरआनी आयत वैसे तो सैंकड़ों बार पढ़ी थी, लेकिन इस बार तो ख़ुदा ने मेरे दिल में सरगोशी की कि “तौरेत और इन्जील जिनके बारे में क़ुरआन में बयान मज़्कूर है, सिर्फ बाइबल मुक़द्दस में पाई जाती हैं। हालाँकि मैंने हमेशा ये सोचा था कि क़ुरआन में मज़्कूर तौरेत और इन्जील का अब कहीं माद्दी तौर पर वजूद नहीं है, और उन के मज़ामीन का क़ुरआन में ख़ुलासा बयान किया गया है। मैं इस बारे में क़ाइल था कि तौरेत और इन्जील जो अब बाइबल मुक़द्दस में हैं ग़लत थीं और उन का असली मवाद लोगों के हाथों ग़लत तर्तीब दिया गया, तहरीफ़ किया गया या उस में कमी बेशी की गई थी।

अब मेरा जी यही कहने लगा था कि तौरेत और इन्जील जो बाइबल मुक़द्दस में मौजूद हैं बिल्कुल सही हैं। मगर अक़्लन में अपने ज़मीर की इस अंदरूनी आवाज़ को क़ुबूल करने के लिए तैयार नहीं था, और अजीब कश्मकश मेरी ज़ात में चल रही थी और मैं बे-यक़ीनी और शक की हालत का शिकार हो गया कि क्या सही था। ज़मीर में इस हलचल से तस्कीन की ख़ातिर मैंने ये मुआमला नमाज़-ए-तहज्जुद में ख़ुदा के सुपुर्द किया ताकि वो सच्चाई जानने के लिए वाज़ेह निशान अता करे। मैंने ख़ुदा से इल्तिजा की कि वो ये पहचानने में मेरी मदद करे कि मसीहिय्यत व मुहम्मदियत, इन दोनों अक़ीदों में से कौन सा सच्चा है और मेरी दुआ यूं थी :-

“आस्मान व ज़मीन के ख़ालिक़ ख़ुदा, तू ही मुसलमानों, मसीहियों और बुध मत के मानने वालों का ख़ुदा है। तू ही चांद सितारों, वादीयों और पहाड़ों बल्कि सारी कायनात का ख़ुदा है, क़ुरआन में जो कुछ तौरेत और इन्जील की बाबत लिखा है उस के बारे में मुझ पर सच्चाई को मेहरबानी से वाज़ेह कर। क्या इस का मतलब ये है कि अस्ल तौरेत और इन्जील जिनका अब वजूद नहीं उनका क़ुरआन में ख़ुलासा मौजूद है? अगर ये सच्च है तो ऐ ख़ुदा मैं तुझसे मिन्नत करता हूँ कि तू मेरे दिल में ये मज़बूती बख़्श कि मैं बाइबल को कभी भी ना पढ़ूं। लेकिन “तौरेत और इन्जील की सच्चाई” जिसका ज़िक्र क़ुरआन में है अगर इस का मतलब वो सच्चाई है जो अब बाइबल में मौजूद है, तो मेरी फ़र्याद है कि तू मेरे दिल को खोल दे ताकि मैं ज़्यादा शौक़, तजस्सुस और दियानतदारी से बाइबल का मुतालआ कर सकूँ।”

मैंने इस अम्र में फ़ैसला करने के लिए ना तो किसी मुत्तक़ी मुस्लिम, मौलवी या ख़तीब और ना ही अपने दाना और ज़हीन दोस्तों से मदद ली, बल्कि मैंने बराह-ए-रास्त सब कुछ जानने वाले ख़ुदा से दुआ की कि व ही मेरी सही राहनुमाई फ़रमाए ताकि मैं उस की इलाही मर्ज़ी के मुताबिक़ सही फ़ैसला कर सकूँ। मैंने ख़ुदा की राहनुमाई की उम्मीद में बड़े ख़ुशू व ख़ुज़ू से दुआ की ताकि वो मेरे लिए हक़ को मुक़र्रर करे और मेरी मदद करे कि मैं दीन-ए-हक़ीक़ी को जान और मान सकूँ।

हर मज़्हबी शख़्स का उमूमन ये अक़ीदा होता है कि मौत के बाद एक हक़ीक़ी ज़िंदगी है। और मैं भी यही मानता था और मैंने ख़ुदा पर अपनी उम्मीद रखी। मैं मानता था कि मौत के बाद दो ही जगहें हैं जिनमें से हम किसी एक में जा सकते हैं जहन्नम में जहां अबदी आग की हमेशा की सज़ा है, या फिर फ़िर्दोस में ख़ुदा के साथ अबदी जलाल में। मैं अपने अबदी मुस्तक़बिल के बारे में ग़ैर-संजीदा अंदाज़ में सोच नहीं सकता था। अगर हम एक लम्हे के लिए फ़र्ज़ करें कि हमने दस ग्राम ख़ालिस सोना ख़रीदा है तो हमें उसे निहायत एहतियात से परखना पड़ेगा, और इस बात का इत्मीनान करना पड़ेगा कि किसी ने हमें धोका तो नहीं दिया ताकि बाद में हमें पछताना ना पड़े। जब आम ज़िंदगी में ऐसा है तो कितना ज़्यादा हमें अपनी रूह के मुस्तक़बिल के बारे में संजीदगी से फ़िक्र करने की ज़रूरत है।

हमें अपनी इबादत व रियाज़त को परखना और इस का जायज़ा लेना चाहीए कि आया वो ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ है या नहीं जो उस आस्मानी ज़िंदगी का मालिक है। बसूरत-ए-दीगर, हमें अपनी लापरवाही पर अबदी पशेमानी होगी। अब मेरा हमेशा से ये यक़ीन था कि जन्नत व दोज़ख़ ख़ुदा के बनाए हुए हैं। इसलिए मैंने किसी भी आदमी से, ना किसी मुस्लिम मुबल्लिग़ से और ना ही किसी मसीही मुबश्शर से मश्वरा लिया। क्योंकि वो भी तो मेरी ही तरह इंसान थे, और सच्चाई की हक़ीक़त जो ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ हो, सिवाए ख़ुदा के किसी और से नहीं मिल सकती। मैंने बराह-ए-रास्त ख़ुदा को जो तमाम सच्चाई का मंबा है पुकारा, इस उम्मीद और भरोसे के साथ उस के सामने गिड़गिड़ाया कि वो मुझे सच्ची राहनुमाई बख़्शेगा।

ख़ुदा का शुक्र हो कि मेरी तमाम दुआओं का जवाब मिला यूं ये साबित होता है कि वो हर उस फ़र्द पर अपनी सच्चाई अयाँ करता है जो उस को संजीदगी से जानना चाहता है।

ये बात भी क़ाबिल-ए-ज़िक्र है कि सूरह अल-माइदा की आयत 68 के इलावा और भी कई क़ुरआनी आयात थीं जिन्हों ने मुझे उस वक़्त मुतास्सिर किया। मसलन

सूरह अल-सजदा 32:23 में दर्ज है :-

وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى ٱلْكِتَابَ فَلاَ تَكُنْ فِي مِرْيَةٍ مِنْ لِقَائِهِ

“और हमने मूसा को किताब दी तो तुम उन के मिलने से शक में ना होना।”

और सूरह अल-माइदा 5:46,47 में लिखा है :-

وَقَفَّيْنَا عَلَىٰ آثَارِهِم بِعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ وَآتَيْنَاهُ الْإِنجِيلَ فِيهِ هُدًى وَنُورٌ وَمُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ وَهُدًى وَمَوْعِظَةً لِّلْمُتَّقِينَ. وَلْيَحْكُمْ أَهْلُ الْإِنجِيلِ بِمَا أَنزَلَ اللَّـهُ فِيهِ ۚ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللَّـهُ فَأُولَـٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ

“और उन पैग़म्बरों के बाद उन्ही के क़दमों पर हमने ईसा इब्ने-मर्यम को भेजा जो अपने से पहले की किताब तौरात की तस्दीक़ करते थे और उनको इन्जील इनायत की जिसमें हिदायत और नूर है और तौरात की जो इस से पहली (किताब) है तस्दीक़ करती है और परहेज़गारों को राह बताती और नसीहत करती है। और अहले-इन्जील को चाहीए कि जो अहकाम ख़ुदा ने इस में नाज़िल फ़रमाए हैं उस के मुताबिक़ हुक्म दिया करें और जो ख़ुदा के नाज़िल किए हुए अहकाम के मुताबिक़ हुक्म ना देगा तो ऐसे लोग नाफ़र्मान हैं।”

और सूरह अल-बक़रह 2:62 में लिखा है :-

إِنَّ ٱلَّذِينَ آمَنُوا وَٱلَّذِينَ هَادُوا وَٱلصَّابِئُونَ وَٱلنَّصَارَى مَنْ آمَنَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلآخِرِ وَعَمِلَ صَالِحاً فَلاَ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ يَحْزَنُونَ

“जो लोग मुसलमान हैं या यहूदी या ईसाई या सितारा परस्त (यानी कोई शख़्स किसी क़ौम व मज़्हब का हो) जो ख़ुदा और रोज़ क़ियामत पर ईमान लाएगा और अमल नेक करेगा तो ऐसे लोगों को उन (के आमाल) का सिला ख़ुदा के हाँ मिलेगा और (क़ियामत के दिन) उन को ना किसी तरह का ख़ौफ़ होगा और ना वो ग़मनाक होंगे।”

इन के इलावा भी क़ुरआन में ऐसी आयात हैं जो ये बताती हैं कि तौरेत और इन्जील ही ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ सच्चाई का हक़ीक़ी रास्ता हैं। इन क़ुरआनी आयात ने मेरी अक़्ल व शऊर को जगा दिया और मुझ में ज़्यादा गहराई से बाइबल मुक़द्दस का मुतालआ करने का शौक़ पैदा किया क्योंकि ख़ुदा ने मेरी रूह से इस की सच्चाई की बाबत सरगोशी की थी। नमाज़-ए-तहज्जुद के वक़्त जब मैंने ख़ुदा से राहनुमाई की दुआ की तो उस से अगले दिन मैंने अपने आप में एक वाज़ेह तब्दीली देखी। तब से मैंने बाइबल मुक़द्दस को अपना दुश्मन नहीं बल्कि अपना अज़ीज़ तरीन दोस्त बना लिया। उस सुबह मैंने बड़ी आस के साथ बाइबल मुक़द्दस को लिया और उसे पढ़ते हुए हर लफ़्ज़ पर बहुत ग़ौर किया क्योंकि मैं उस की सच्चाई का मुतलाशी था।

मैंने बस الرَّحِيمِ بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَ [शुरू ख़ुदा का नाम लेकर जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है] के अल्फ़ाज़ के साथ बाइबल मुक़द्दस को खोला। उस वक़्त मेरा इरादा तौरेत में से इस्तिस्ना 15:18 पढ़ने का था। इस हिस्से को पढ़ने की वजह ये थी कि मैं उसे पहले मसीही वाइज़ीन और मुनादों के ईमान पर हमला करने के लिए इस नीयत से इस्तिमाल करता था कि वो मुहम्मद को उस नबी के तौर पर तस्लीम करें और उस पर ईमान लाएं जिसके बारे में नबुव्वत बाइबल के इस बाब में की गई थी। मैं इन आयात से पहले से वाक़िफ़ था, मगर अब इन के माअने मेरे लिए मुकम्मल तौर पर मुख़्तलिफ़ हो गए। ये सच्च है कि जो बाइबल मुक़द्दस की सदाक़त पर ईमान नहीं रखते उन के लिए ये एक बंद किताब है जिसका समझना मुश्किल है, मगर इस के बरअक्स जो इस की सदाक़त पर ईमान रखते हैं और जिनके दिल ख़ुदा के रूह से मामूर हैं वो इसे वाज़ेह तौर पर समझ सकते हैं।

इस्तिस्ना 15:18 में यूं लिखा है “ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे लिए तेरे ही दर्मियान से यानी तेरे ही भाईयों में से मेरी मानिंद एक नबी बरपा करेगा। तुम उस की सुनना।”

पहले मैं ये समझता था कि ये पेशीनगोई मुहम्मद-ए-अरबी के बारे में है। मेरे नज़्दीक अल्फ़ाज़ “मेरी (मूसा) मानिंद एक नबी मुहम्मद की शख़्सियत को वाअदा शूदा नबी के तौर पर पेश करते थे क्योंकि :-

(अ) मूसा इन्सानी वालदैन के ज़रीये इस दुनिया में पैदा हुआ और मुहम्मद ने भी मूसा ही की तरह इन्सानी वालदैन के ज़रीये इस दुनिया में जन्म लिया। वो जनाब ईसा (येसू मसीह) की तरह ना था जो सिर्फ अपनी माँ के वसीले बग़ैर वालिद के पैदा हुआ।

(ब) मूसा नबी ने जवान होने पर शादी की। इसी तरह मुहम्मद साहब ने भी शादी की जब कि इस के बरअक्स येसू मसीह ने हरगिज़ कोई शादी ना की।

(ज) मूसा और मुहम्मद दोनों ही साहिब-ए-औलाद थे, जबकि येसू मसीह की औलाद ना थी क्योंकि उन्हों ने शादी ना की थी।

(द) मूसा ने सन रसीदा हो कर वफ़ात पाई और दफ़न हुए, इसी तरह जनाब मुहम्मद के साथ भी हुआ लेकिन येसू मसीह कभी नहीं मरे और वो ज़िंदा आस्मान पर उठा लिए गए और कहीं दफ़न नहीं।

पहले मैं सोचता था कि इस्तिस्ना 15:18 ने मुहम्मद के उस नबी होने की तरफ़ इशारा किया है जिस का वाअदा मूसा ने किया था, और ये हवाला येसू मसीह के बतौर नबी होने के बारे में पेशीनगोई नहीं थी, और इस में हरगिज़ उसे ख़ुदा के बेटे के तौर पर जैसा कि मसीही ईमान में है बयान नहीं किया गया।

लेकिन उस दिन मैंने इन अल्फ़ाज़ का आहिस्तगी से ख़ुलूस के साथ मुतालआ किया ताकि इनके हक़ीक़ी माअने को समझ सकूँ। जब मैं इन अल्फ़ाज़ तक पहुंचा कि “...मेरी (मूसा) मानिंद एक नबी तो रूह-उल-क़ुद्स ने मेरी रूह में सरगोशी की कि अगर तू मूसा और मुहम्मद के दर्मियान मुशाबहत ढूंढता ही है कि दोनों के वालदैन थे तो ये कोई नई बात नहीं वर्ना वो तो हम तमाम इन्सानों की तरह आम हो गए कि सब के वालदैन होते हैं। इसलिए ये ख़ुसूसीयत पेशीनगोई में पाई जाने वाली सच्चाई की निशानदेही करने के लिए इस्तिमाल नहीं की जा सकती।

मज़ीद बरआँ, अगर मुहम्मद, मूसा के साथ शादी शुदा होने की वजह से मुशाबेह थे तो दोनों दुनिया के अक्सर लोगों की तरह थे। सो इस से भी ये बात साबित नहीं होती कि मुहम्मद ही वो नबी था।

अगर मुहम्मद को मूसा के मुशाबेह इस हैसियत से मानें कि दोनों के हाँ औलाद थी तो ये हक़ीक़त भी इस नबुव्वत के तअय्युन के लिए इस्तिमाल नहीं हो सकती क्योंकि इस दुनिया के अक्सर लोगों के हाँ औलाद होती है।

जनाब मुहम्मद ने मूसा की तरह सन रसीदा हो कर वफ़ात पाई और दफ़न हुए। अब अगर इस हक़ीक़त को नबुव्वत के तनाज़ुर में समझने की कोशिश की जाये तो मुशाबहत साबित करने के लिए ये नुक्ता इस्तिमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि इस दुनिया में उम्र रसीदा हो कर मरना और दफ़न होना भी एक आम सी बात है जो कि हर इन्सान के लिए मुक़र्रर है, सब मरते और दफ़न होते हैं।

यूं मुझ पर ये बात ज़्यादा वाज़ेह हो गई कि जनाब मूसा की पेशीनगोई इस हक़ीक़त की निशानदेही करती है कि सिर्फ और सिर्फ येसू मसीह ही वो वाअदा शूदा हस्ती हैं। इसलिए मैंने मूसा और येसू मसीह में लासानी और ग़ैर-मामूली मुशाबहतों को देखना शुरू किया और मुझे इन दो शख़्सियतों में बहुत अहम मुशाबहतें मिलीं जो किसी और से ना मिलती थीं।

(अ) मूसा को बचपन में मिस्र के बादशाह फ़िरऔन ने क़त्ल करने की कोशिश की, जबकि येसू को बचपन में हेरोदेस बादशाह ने क़त्ल करने की कोशिश की। ये आम मुमासिलत नहीं थी। हर बच्चे को आम तौर पर उस की शीरख़्वारगी में क़त्ल किए जाने का ख़तरा नहीं होता। मूसा की पैदाईश के वक़्त फ़िरऔन बादशाह ने ग़ज़बनाक हो कर दो साल से कम उम्र के सारे बच्चे क़त्ल करने का हुक्म दिया। मसीह येसू की पैदाईश पर हेरोदेस बादशाह ने ग़ज़बनाक हो कर शीर-ख्वार बच्चों के क़त्ल का हुक्म दिया। सारी दुनिया में यही दो हस्तियाँ ऐसी थीं जिन्हों ने ऐसी सख़्त इन्सानी हिक़ारत और एज़ा रसानी का सामना किया।

(ब) मूसा के बचपन में उस की हिफ़ाज़त फ़िरऔन बादशाह की बेटी ने की। इसी तरह बचपन में येसू की हिफ़ाज़त उस के क़ानूनी बाप यूसुफ़ ने की। दुनिया के तमाम इन्सानों की उन के बचपन में हिफ़ाज़त, इस तरह ख़ुदा के चुने हुए वसीले से नहीं होती।

(ज) बचपन में मूसा अपने आबाई मुल्क से दूर मिस्र में रहा। इसी तरह येसू मसीह ने भी मिस्र में बचपन में जिलावतनी काटी। अब हर बच्चे को बचपन में जान बचाने की ख़ातिर मिस्र जैसे दूर दराज़ मुल्क में तो नहीं ले जाया जाता।

(द) जब मूसा ने ख़ुदा के पैग़म्बर के तौर पर ख़िदमत की तो ख़ुदा तआला ने मूसा को मोअजिज़ा करने की क़ुद्रत दी। इसी तरह मसीह येसू ने बतौर कलिमतुल्लाह (کلمتہ اللہ), ख़ुदा और रूह-उल-क़ुद्स का इलाही इख़्तियार रखते हुए बीमारों को शिफ़ा दी और मुर्दों को ज़िंदा किया।

(ह) मूसा ने बनी-इस्राईल को मिस्र की गु़लामी से छुटकारा दिलाया। मगर येसू ने अपने लोगों को गुनाह और मौत की ज़ंजीरों से छुटकारा दिया।

ये ख़ास सबूत मेरे लिए बहुत मददगार हुए कि नतीजा निकालूं कि इस्तिस्ना 18 बाब में दर्ज ये बेनज़ीर पेशीनगोई मुहम्मद के नबी होने के बारे में नबुव्वत नहीं करती बल्कि ये मूसा की मुशाबहत येसू मसीह यानी ख़ुदा के कलमे से मुताल्लिक़ है, जो वक़्त आने पर मुजस्सम हुआ।

यहां ये बताना ज़रूरी है कि गो ख़ुदा की मुहब्बत इतनी ज़्यादा थी कि उस ने मेरे ज़हन को रोशन कर दिया कि मैं वाज़ेह तौर पर देख सकूँ कि बाइबल मुक़द्दस ही ख़ुदा का सच्चा कलाम है मगर फिर भी मैं मसीही हो जाने के लिए तैयार ना था। अब इस की वजह ये थी कि मसीही अक़ीदे की कुछ बातें मैं क़ुबूल नहीं कर सकता था, ख़ासकर ये कि येसू मसीह ख़ुदा का बेटा था। बचपन ही से मैंने ये सीखा था और दूसरों को भी सिखाया था कि “لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ” “ना (अल्लाह ने) किसी को जना और ना (अल्लाह) किसी से जना गया।”

मेरे लिए ये दुश्वार था कि मैं येसू को ख़ुदावन्द मान सकता क्योंकि बचपन से सीखा और सिखाया था कि “لا إله إلا الله” (कोई माबूद नहीं सिवाए अल्लाह के)

तस्लीस के माअने को भी समझना मेरे लिए दुशवार था। मुझे सिखाया गया था :-

“لَّقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَالُوا إِنَّ اللَّـهَ ثَالِثُ ثَلَاثَةٍ” (सूरह अल-माइदा 5:73)

“वो लोग (भी) काफ़िर हैं जो इस बात के क़ाइल हैं कि ख़ुदा तीन में का तीसरा है।”

मैं उस वक़्त इस मसीही अक़ीदे को भी क़ुबूल ना कर सकता था कि येसू मसीह वाक़ई सलीब पर मर गया था। अगर येसू जिन्हें ईसा अल-मसीह भी कहा जाता है नबी, ख़ुदा के महबूब और वफ़ादार पैग़म्बर या ख़ुदा के बेटे थे जैसे मसीही उन्हें पुकारते हैं तो क्योंकर यहूदीयों ने इतनी आसानी के साथ उन्हें अज़ीयतें देकर सलीब पर लटकाया जब तक वो मर ना गए? क्यों ख़ुदा ने उन्हें ना बचाया और सलीब पर मरने दिया? मैं सोचता था कि अगर मैं अपने बेटे को ज़ुल्म सहते हुए या सलीब पर लटके हुए देखता तो यक़ीनन उसे बचाने के लिए उन लोगों से ज़रूर लड़ता जो उस पर तशद्दुद कर रहे होते, चाहे नतीजा कुछ ही क्यों ना निकलता? कैसे ख़ुदा तआला यहूदीयों पर अपने इख़्तियार को खो सकता था? उस वक़्त मैं वाक़ई इस हक़ीक़त को क़ुबूल ना कर सका।

इस मुआमले को हल करने और इस की तह तक पहुंचने की ग़र्ज़ से मैं कई मसीही वाइज़ीन और मुबश्शिरों से मिला और उन से पूछा कि येसू को ख़ुदा का बेटा और ख़ुदावन्द (इंडोनेशियाई ज़बान में तोहान) क्यों कहा जाता था और ख़ुदा की तस्लीस के क्या माअने थे? मैंने इस बात की भी तहक़ीक़ की कि क्यों येसू ख़ुदा का बेटा यहूदीयों के हाथों मस्लूब हुआ और सलीब पर मर गया? मैंने उन से मौरूसी गुनाह यानी वालदैन से औलाद में मुंतक़िल होने वाले गुनाह के बारे में भी पूछा जिसे मैं ख़ुदा की नाइंसाफ़ी पर मबनी सज़ा समझता था।

तमाम मसीही मुबल्लिग़ों ने मेरे पूछे गए सवालात के जवाबात बड़ी एहतियात से दिए लेकिन वो उस वक़्त मेरी समझ में ना आए। वजह ये थी कि हम मुख़्तलिफ़ पस-ए-मंज़र के लोग थे और हमारी समझ और ख़यालात के दर्मियान एक वसीअ ख़लीज हाइल थी। मज़ाहिब के दर्मियान फ़र्क़ का मुतालआ इस नुक्ता-नज़र से नहीं किया गया था कि कुछ ऐसे निकात को तलाश किया जाये जिनमें इत्तिफ़ाक़ पाया जाता है।

यक़ीनन हमें मज़ाहिब के माबैन पाए जाने वाले फ़र्क़ का मुतालआ करना है ताकि मन्तिक़ी मिलते-जुलते पहलूओं की तलाश की जाये जो ग़लत-फ़हमियों को दूर करने में एक पुल का काम कर सकें।

उस वक़्त मैं एक रेडीयो रीसीवर और वाइज़ उन सिगनल्ज़ को भेजने वाले की मानिंद था। दोनों अच्छी हालत में थे, मगर चूँकि आवाज़ की लहरों में फ़र्क़ था इसलिए उस की ट्रांसमिशन और मेरी रेसेप्शन मुकम्मल तौर पर मुख़्तलिफ़ थी। रीसीवर, अनाउंसर की आवाज़ को पकड़ने के क़ाबिल ना था।

वाइज़ीन और मसीही मुबश्शिरों की बातों को मैं एक कान से सुनता जो कि दूसरे कान से निकल जातीं। वो मेरे दिल की गहराई में ना उतरीं क्योंकि जो अल्फ़ाज़ वो इस्तिमाल कर रहे थे मैं उन के माअने को समझ ना सका।

मसीही मुबल्लिग़ मेरे पस-ए-मंज़र को ठीक-ठीक ना समझ सका था, इसलिए उस की वज़ाहतें मेरी तवक़्क़ो के बरअक्स थीं। ऐसा इसलिए ना हुआ था कि उस की वज़ाहत ग़लत थी, बल्कि इस की वजह हमारे दर्मियान सोचने और वज़ाहत करने के मुख़्तलिफ़ अंदाज़ का पाया जाना था, यूं हम एक दूसरे को समझ नहीं पा रहे थे। इस सब के बावजूद मैं पुर-उम्मीद था। मुझे पूरा यक़ीन था कि अब जब ख़ुदा ने मेरी राहनुमाई की है कि मैं सच्चाई का इंतिख़ाब कर सकूँ, तो वो यक़ीनन कोई दरवाज़ा खोलेगा और मेरी राहनुमाई करेगा कि मैं उन बातों को जो मेरे लिए रुकावट का बाइस हैं समझ सकूँ।

मेरी मुस्तक़िल दुआ ये थी “या रब मैं तेरे हुज़ूर मिन्नत करता हूँ कि तो अल्फ़ाज़ “ख़ुदा का बेटा” और येसू अल-मसीह के लिए “ख़ुदावन्द” (तोहान) के लफ़्ज़ के बारे में सच्चाई मुझ पर ज़ाहिर कर। मैं तुझसे ये इल्तिजा भी करता हूँ कि पाक तस्लीस के माअना और सलीब के भेद को मुझ पर अयाँ कर। ख़ुदा तआला तू ने मुझे ये समझ बख़्शी है कि बाइबल मुक़द्दस इलाही किताब है, इसलिए यक़ीनन तू ही मुझ पर इस में से तमाम मुश्किल बातों को वाज़ेह करेगा जो कि तेरा सच्चा कलाम है जिसका किसी भी ज़माने में बदला जाना मुम्किन नहीं बल्कि ये अबद तक यकसाँ और क़ायम व दाइम है।”

बेशक, कई बार ख़ुदा ने अपनी पाक रूह की मार्फ़त मेरी मदद की और मेरे दिल में काम किया। इसलिए मैं ये ज़रूर बयान करूंगा कि कैसे ख़ुदा ने इन रुकावटों के हटाने में मेरी मदद की।

2. येसू मसीह ख़ुदा का बेटा

“यूहन्ना की मार्फ़त लिखी गई इन्जील के पहले बाब की पहली और चौधवीं आयत में यूं लिखा है, “इब्तिदा में कलाम था और कलाम ख़ुदा के साथ था और कलाम ख़ुदा था।.... और कलाम मुजस्सम हुआ और फ़ज़्ल और सच्चाई से मामूर हो कर हमारे दर्मियान रहा और हमने उस का ऐसा जलाल देखा जैसा बाप के इकलौते का जलाल।”

इन आयात में “ख़ुदा के बेटे” की इस्तिलाह के रूहानी माअने का मुकाशफ़ा दिया गया है। ख़ुदा का कलाम येसू मसीह की पैदाईश में इन्सान बन गया। इसी लिए येसू को यूहन्ना 1:1 में ज़िंदा कलाम के तौर पर बयान किया गया है।

ये यक़ीनी है कि येसू को ख़ुदा का बेटा इसलिए नहीं कहा गया कि ख़ुदा ने तबई और जिस्मानी तौर पर पैदा किया जैसा कि अक्सर लोग ग़लती से सोचते हैं, बल्कि ख़ुदा का बेटा इसलिए कहा गया है कि ख़ुदा का कलाम रूह-उल-क़ुद्स की इलाही क़ुद्रत के वसीले से कुँवारी मर्यम के पाक बतन में ज़ाहिर हुआ।

मुहम्मद अरबी ने ख़ूद कई मर्तबा मसीह की इस इलाही सदाक़त की बाबत तस्दीक़ की है :-

“عِیسیَ فَاِنَّہُ رُوح الُلَّہِ وَ کَلِمَتُہُ” (बेशक ईसा अल्लाह की रूह और उस का कलिमा हैं।) हदीस, अनस इब्ने-मालिक, मतयारा हदीस, सफ़ा नम्बर 353

नीज़ सूरह अल—निसा 4:171 में हम यूं पढ़ते हैं कि :-

إِنَّمَا الْمَسِيحُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ رَسُولُ اللَّـهِ وَكَلِمَتُهُ أَلْقَاهَا إِلَىٰ مَرْيَمَ وَرُوحٌ مِّنْهُ

“बेशक मसीह (यानी) मर्यम के बेटे ईसा ख़ुदा के रसूल और उस का कलिमा थे जो उस ने मर्यम की तरफ़ भेजा था और उस की तरफ़ से एक रूह थे।”

“उस का कलमा” या “ख़ुदा का कलाम” के इज़्हार की बाबत जो कि येसू मसीह का जिस्म बन गया, डाक्टर हसब-उल्लाह बकरी ने अपनी तस्नीफ़ “क़ुरआन में ईसा नबी” के सफ़ा नम्बर 109 पर यूं लिखा है कि :-

“ईसा नबी को कलिमतुल्लाह (کلمتہ اللہ) इसलिए कहा जाता है क्योंकि वो ख़ुदा के कलाम का तजस्सुम है जो कुँवारी मर्यम की तरफ़ भेजा गया ताकि वो नबी ईसा को जन्म दे सके।”

जब ये हक़ीक़त मुझ पर वाज़ेह हो गई तो फिर येसू को ख़ुदा का बेटा कहने में मुझे कोई झिजक ना रही क्योंकि वो ख़ुदा-ए-क़ादिर-ए-मुतलक़ का ज़िंदा मुजस्सम कलमा है। लेकिन इस से पेश्तर में इस बात को मानने से इन्कार करता था कि येसू ख़ुदा का बेटा था क्योंकि मैं बेटे के तसव्वुर को मह्ज़ हयातयाती और इन्सानी समझता था।

क़ुरआन की सूर इख़्लास 112 में हम यूं पढ़ते हैं कि :-

اللَّـهُ أَحَدٌ ... لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أَحَدٌ

“अल्लाह एक है .. ना उस से कोई जना गया है और ना ही वो जना गया है। और कोई उस का हम-सर नहीं।”

अक्सर मुस्लिम उलमा “ईमान की इस सूरह” को बयान करते हैं और मैं भी इसे मद्द-ए-नज़र रखते हुए माज़ी में इस बात का इन्कार करता था कि ख़ुदा का कोई बेटा है। ये मसीही ईमान से तज़ाद रखती है जो बयान करता है कि येसू ख़ुदा का बेटा है। बहरहाल एक मसीही इन क़ुरआनी आयात को क़ुबूल कर सकता है क्योंकि मसीहिय्यत का हरगिज़ ये दावा नहीं कि ख़ुदा का तबई तौर पर कोई बेटा है जिसका इज़्हार क़ुरआनी इस्तिलाह “वलद” में किया गया है, जिससे मुराद तबई तौर पर पैदा होने वाला बेटा है। अरब के मसीही येसू को ख़ुदा का बेटा कहते हुए जो लफ़्ज़ इस्तिमाल करते हैं वो “इब्न” है। इस इस्तिलाह के मुताबिक़ इसे तबई तौर पर पैदा होने वाला बेटा नहीं कहा जाता जिस के लिए क़ुरआनी इस्तिलाह “वलद” इस्तिमाल हुई है।

इसलिए मैं ये कहना चाहता हूँ कि क़ुरआन में कोई आयत ऐसी नहीं है जो बाइबल मुक़द्दस की ताअलीम “इब्ने-अल्लाह” को रद्द करती हो जिसके मुताबिक़ येसू मसीह रूहानी और क़ानूनी लिहाज़ से ख़ुदा का बेटा है। क़ुरआन सिर्फ इस बात का इन्कार करता है कि ईसा अल-मसीह “वलद” के जिस्मानी मफ़्हूम में ख़ुदा का बेटा है यानी ऐसा बेटा जो मर्यम और ख़ुदा के दर्मियान (नऊज़बिल्लाह) किसी क़िस्म के इज़्दवाजी रिश्ते का नतीजा था। हम सब किसी भी ऐसे इन्सानी ख़याल को रद्द करते हैं।

3. येसू मसीह ख़ुदावन्द है

येसू मसीह को “ख़ुदावन्द” क्यों कहा जाता है? जैसा कि पहले बयान हो चुका है कि मैं एक अर्से तक ये ना कह सका कि “येसू ख़ुदावन्द है।” मैं ये भी ना कह सकता था कि “येसू मसीह ख़ुदावन्द” क्योंकि बचपन से यही सीखा था और मैं दूसरों को भी यही सिखाता रहा कि “لا إله إلا الله” (कोई माबूद नहीं सिवाए अल्लाह के)

शायद येसू को “ख़ुदावन्द” इसलिए कहा गया कि वो बग़ैर इन्सानी बाप के पैदा हुए थे? नहीं हज़रत आदम भी तो बग़ैर बाप, हत्ता कि बग़ैर माँ के पैदा हुए लेकिन उन्हें तो कभी ख़ुदावन्द नहीं कहा गया। या क्या फिर इस वजह से कहा गया कि हज़रत मसीह ने बहुत से मोअजज़ात किए? नहीं ये भी जवाब नहीं हो सकता है। मूसा नबी ने भी तो कई मोअजज़ात किए थे लेकिन उन्हें कभी भी ख़ुदावन्द नहीं कहा गया। तो क्या फिर इस वजह से कहा गया कि येसू मसीह कोढ़ीयों को शिफ़ा दे सकते और मुर्दों को ज़िंदा कर सकते थे? ये भी माक़ूल जवाब ना हुआ क्योंकि इलीशा नबी ने भी कौड़ी अच्छे किए और एक मुर्दे को ज़िंदा किया था लेकिन उसे भी कभी ख़ुदावन्द नहीं कहा गया। तो क्या फिर येसू मसीह इसलिए ख़ुदावन्द है कि वो आस्मान पर ज़िंदा उठा लिया गया था? नहीं क्योंकि एलियाह का भी तो यही तजुर्बा था मगर फिर भी वो कभी ख़ुदावन्द नहीं कहलाया। तो फिर क्यों कहा जाता है कि येसू मसीह ख़ुदावन्द हैं?

यूहन्ना की इन्जील के पहले बाब की पहली और चौधवीं आयत के मुताबिक़ येसू ख़ुदावन्द है क्योंकि ख़ुदा का कलाम मुजस्सम हुआ। इसी वजह से बाइबल मुक़द्दस में यूहन्ना के पहले ख़त के पहले बाब की पहली आयत में येसू को “ज़िंदगी का कलाम” कहा गया है। और कई दीगर आयात में बयान किया गया है कि ख़ुदा ने मसीह में इंसानी बदन इख़्तियार किया।

लफ़्ज़ “तजस्सुम” (ख़ुदा का इंसानी शक्ल में ज़ाहिर होना) और ख़ुदा से मुताल्लिक़ इसी क़िस्म के दूसरे अल्फ़ाज़ के रूहानी मतलब और उन की तश्रीह को आम इंसानी माअनों में हरगिज़ नहीं परखना चाहीए। मसलन, ख़ुदा वजूद रखता है, इंसान भी वजूद रखता है। जब वजूद का लफ़्ज़ ख़ुदा के लिए इस्तिमाल होता है तो ये इस “वजूद” से जो हर बनी-नूअ इंसान रखता है बहुत ही अलग माअना रखता है। ख़ुदा अपनी ज़ात में ख़ुद वजूद रखता है यानी वो ज़ात वाजिब-उल-वजूद है। उस का वजूद अज़ल से है जबकि इंसान का वजूद ख़ुदा के हाथों तख़्लीक़ किया गया है।

इसलिए ख़ुदा के लिए “तजस्सुम” के लफ़्ज़ का आम इन्सानी मतलब निकाल लेना हरगिज़ जायज़ नहीं। डिक्शनरी के मुताबिक़ अगर बिल्ली एक हाथी का जिस्म इख़्तियार कर ले तो बिल्ली ग़ायब हो जाएगी और एक हाथी ज़ाहिर हो जाएगा। अगर पत्थर सोने की सूरत इख़्तियार कर ले तो पत्थर का अपना वजूद ख़त्म हो जाएगा और सिर्फ सोना ही रह जाएगा। मगर ख़ुदा के कलाम का इंसानी बदन इख़्तियार करना एक अलग ही मतलब का हामिल है। तजस्सुम जो ख़ुदा से मुताल्लिक़ है, इस का मतलब ये नहीं कि ख़ुदा के वजूद में कोई फ़र्क़ आ गया है क्योंकि ख़ुदा मलाकी नबी की मार्फ़त अपनी बाबत फ़रमाता है “मैं ख़ुदावन्द ला तब्दील हूँ।” (मलाकी 3:6)

ख़ुदा ने इंसानी जिस्म इख़्तियार किया। इस का मतलब ये नहीं कि ख़ुदा की अपनी ज़ात मादूम (नेस्त) हो गई और सिर्फ इंसान मौजूद रहा। ऐसा ख़याल सरासर ग़लत है। ख़ुदा की ज़ात व फ़ित्रत में हरगिज़ तब्दीली वाक़ेअ नहीं होती। ख़ुदा का इंसानी जिस्म इख़्तियार करने का मतलब ये है कि ख़ुदा की अपनी इलाही ज़ात भी क़ायम रही और उस में कामिल इंसान भी क़ायम रहा। सो लफ़्ज़ “तजस्सुम” मन्तिक़ से मुतजाविज़ एक अमल और हक़ीक़त के लिए बतौर तश्बीह इस्तिमाल हुआ है, ताहम इस के माअने वैसे नहीं हैं जैसे इंसानी ज़बान में हैं।

ख़ुदा का इंसानी सूरत इख़्तियार करने का मतलब ये है कि ख़ुदा ने कामिल तौर पर अपनी ज़ात को इंसान यानी येसू मसीह की बेनज़ीर शख़्सियत में ज़ाहिर किया जो कि ख़ुदा की पाक इलाही मर्ज़ी, क़ुद्रत और मुहब्बत का वाज़ेह इज़्हार है। यूं हम मसीह के मुन्दरिजा ज़ैल बयानात को बेहतर तौर पर समझ सकते हैं :-

“---बाप मुझमें है और मैं बाप में।” (यूहन्ना 10:38)

“मैं और बाप एक हैं” (यूहन्ना 10:30)

“जिस ने मुझे देखा उस ने बाप को देखा।” (यूहन्ना 14:9)

इस ज़िमन में पौलुस रसूल का बयान यूं है “क्योंकि उलुहिय्यत की सारी मामूरी उसी में मुजस्सम हो कर सुकूनत करती है।” (कुलस्सियों 2:9)

एक और आयत जो बताती है कि येसू वाक़ई ख़ुदा है मत्ती 28:18 है जहां येसू ने कहा कि “आस्मान और ज़मीन का कुल इख्तियार मुझे दिया गया है।” यानी येसू मसीह क़ादिर-ए-मुतलक़ है हर शैय उस के इख़्तियार में है।

पौलुस रसूल इसी बयान की फिर यूं तस्दीक़ करता है “मसीह सारी हुकूमत और इख़्तियार का सर है।” (कुलस्सियों 2:10)

क़ुरआन में हम पढ़ते हैं कि ख़ुदा ही ख़ुदावन्द है, “अल़्लाह रब-उल-आलमीन” (ख़ुदा ही ख़ुदावन्द-ए-आलम है।)

इन्जील मुक़द्दस में हम पढ़ते हैं कि “ख़ुदा ने येसू को ख़ुदावन्द भी किया और मसीह भी।” (आमाल 2:36)

हम, लफ़्ज़ ख़ुदा और ख़ुदावन्द के फ़र्क़ में तमीज़ कर सकते हैं। ख़ुदा के लिए यूनानी ज़बान में लफ़्ज़ “थियुस” (Theos) और अरबी ज़बान में लफ़्ज़ “अल्लाह” इस्तिमाल होता है, लेकिन ख़ुदावन्द के लिए यूनानी ज़बान में “कैरियोस” (Kyrios) और अरबी ज़बान में लफ़्ज़ “रब” इस्तिमाल होता है। लफ़्ज़ “रब” हमेशा हर तरह की क़ानूनसाज़ी और उसे नाफ़िज़ करने के इख़्तियार का इज़्हार करता है। ख़ुदा की क़ुद्रत और इख़्तियार येसू मसीह के वसीले से कई तरह से ज़ाहिर होता है। मसलन :-

(1) तख़्लीक़ में, (2) शरीअत के देने और अहकाम में, (3) मदद और मुहय्या करने के साथ राहनुमाई में, (4) माफ़ करने और बचाने में, (5) अपनी रूह से नया बनाने में, (6) अदालत में, (7) जलाल में।

ख़ुदा का हुक्म देने, राहनुमाई करने और बचाने का इख़्तियार येसू की शख़्सियत में पाया जाता है। इसी वजह से येसू मसीह को “ख़ुदा का ज़िंदा कलाम” और “हमारा वाहिद नजातदिहंदा” कह कर पुकारा जाता है। “ख़ुदा का ज़िंदा कलाम” होते हुए येसू ने ख़ुदा की उलूहिय्यत का इज़्हार मुनादी करने और गुनाहों की माफ़ी देने से किया। इसी लिए ख़ुदा ने येसू को ख़ुदावंद भी किया और मसीह भी (आमाल 2:36, कुलस्सियों 2:10) सिर्फ उसी के पास नजात देने का मुकम्मल इख़्तियार है। वो ज़िंदा कलाम हम सब का नजातदिहंदा है और उस के अल्फ़ाज़ हमें उस के दाअवे की याद दिलाते हैं “राह और हक़ और ज़िंदगी मैं हूँ।” (यूहन्ना 14:6)

ये याद रहे कि येसू को ख़ुदावन्द कहने में मुझे जो रुकावट पेश आ रही थी, वो इस्लामी शहादत थी जो मुझे सिखाई गई थी और मैंने दूसरों को भी सिखाई थी यानी, (لا الہ الا اللہ) “ ला-इलाहा इल-लल्लाह (कोई माबूद नहीं सिवाए अल्लाह के)

उस वक़्त तक मुझे समझ आ गई थी कि ये इस्लामी अक़ीदा बाइबल मुक़द्दस की ताअलीम के बरअक्स नहीं है। तौरेत में लिखा है, “मेरे हुज़ूर तू ग़ैर-माबूदों को ना मानना (ख़ुरूज 20:3) फिर मैंने देखा कि येसू मसीह की ख़ुदावंदियत और इलाही शख़्सियत को मुहम्मद अरबी ने भी रूह-उल्लाह (अल्लाह की रूह) और कलिमतुल्लाह (अल्लाह का कलमा) के तौर पर बयान कर के तस्लीम किया हुआ है।

عِیسیَ فَاِنَّہُ رُوح الُلَّہِ وَ کَلِمَتُہُ"

“बेशक ईसा अल्लाह की रूह और उस का कलमा हैं।”

4. मसीहिय्यत में तौहीद

मसीही ईमानदारों के लिए “तौहीद” का लफ़्ज़ इतना मानूस नहीं है क्योंकि मसीही इल्म इलाही में लफ़्ज़ तौहीद का इस्तिमाल शाज़ व नादिर ही होता है। मसीहिय्यत में तौहीद ख़ुदा की ज़ात में पाई जाने वाली तस्लीस में वहदानियत की वज़ाहत करती है। तस्लीस-फ़ील-तौहीद का मौज़ू जो मसीही ईमान का अहम जुज़्व है अक्सर बह्स का सबब बना रहा है, जो कि हमारे बहुत से ऐसे भाईयों की समझ में नहीं आता जो मुस्लिम ताअलीम और पस-ए-मंज़र के हामिल हैं।

(अ) बरहक़ ख़ुदा-ए-वाहिद

हर मुसलमान बरहक़ वाहिद ख़ुदा पर ईमान रखता है। इस्लामी तालीमात में ये एक जानी-पहचानी हक़ीक़त है कि जिसे ना तो तब्दील किया जा सकता है और ना ही रद्द। ये अक़ीदा कि एक ही बरहक़ और सच्चा ख़ुदा है मसीही मज़्हब का भी बुनियादी जुज़्व है, और हर मसीही भी इस अक़ीदे का क़ाइल है। लेकिन क्या मुसलमानों और मसीहियों के नज़रियात “बरहक़ वाहिद ख़ुदा” के इस अहम नुक्ते पर यकसाँ हैं?

इस्लामी तालीमात में तौहीद की वज़ाहत क़ुरआन में सूरह 112:1; सूरह अल-बक़रह 2:136; सूरह अल-माइदा 5:73, और दीगर कई हवालों में की गई है।

बाइबल मुक़द्दस में तौहीद का बयान मुन्दरिजा ज़ैल हवालों में मिलता है :-

“मैं ही ख़ुदावन्द हूँ और कोई नहीं।” (यसअयाह 45:5)

“और हमेशा की ज़िंदगी ये है कि वो तुझ ख़ुदा-ए-वाहिद और बरहक़ को और येसू मसीह को जिसे तू ने भेजा है जानें।” (यूहन्ना 17:3)

“हम जानते हैं कि--सिवा एक के और कोई ख़ुदा नहीं।” (1-कुरिन्थियों 4:8)

“लेकिन हमारे नज़्दीक तो एक ही ख़ुदा है यानी बाप जिस की तरफ़ से सब चीज़ें हैं और हम उसी के लिए हैं और एक ही ख़ुदावन्द है यानी येसू मसीह जिस के वसीले से सब चीज़ें मौजूद हुईं और हम भी उसी के वसीले से हैं।” (1-कुरिन्थियों 8:6)

बाइबल मुक़द्दस की इन आयात को पढ़ने के बाद मुझमें कोई शक व शुब्हा बाक़ी ना रहा। मुझे यक़ीन हो गया कि ख़ुदा-ए-वाहिद की बाबत मेरा ईमान जो पहले मुसलमान होते हुए था और अब बतौर मसीही इसे मुझे बिल्कुल तब्दील करने की ज़रूरत ना थी। बाअल्फ़ाज़-ए-दीगर, गो मैं मसीहिय्यत का पैरोकार हो गया हूँ मगर मैंने ख़ुदा की वहदानियत से मुताल्लिक़ सच्चाई को ना तो छोड़ा है और ना रद्द किया है। मैं महसूस करता हूँ कि मसीही होने के बाद इस बारे में मेरी समझ मज़ीद ख़ालिस और वाज़ेह हो गई है। अब मैं सिर्फ मुहम्मद अरबी के नबी होने के दाअवे को तस्लीम नहीं करता।

ख़ुदा की वहदानियत के बारे में येसू मसीह की तालीमात ख़ालिस और आला तरीन हैं। हम तौहीद के नुक्ता-ए-नज़र को मुन्दरिजा ज़ैल बयान किए गए उन्वान यानी शिर्क के मसअले से परख सकते हैं।

(ब) शिर्क का मसअला

मज़्हब इस्लाम, एक से ज़ाइद ख़ुदाओं को मानने के मसअले को निहायत संजीदा तसव्वुर करता है। हमें निहायत मुहतात अंदाज़ से इस का जायज़ा लेने की ज़रूरत है ताकि मसीहिय्यत के ख़ुदा-ए-वाहिद के तसव्वुर को ग़ैर-अक़वाम के शिर्क के तसव्वुर के साथ मुंसलक ना कर दिया जाये।

इस्लाम में एक से ज़ाइद ख़ुदाओं को मानना तीन नाक़ाबिल-ए-माफ़ी गुनाहों में से एक है। इसलिए जब मैंने इन दोनों मज़ाहिब का मुवाज़ना किया तो ऐसा बहुत मुहतात हो कर किया और हमेशा इस बात का संजीदगी से जायज़ा लिया कि क्या मसीही ताअलीम में शिर्क का पहलू मौजूद है या नहीं।

सबसे पहले मुझे बाइबल मुक़द्दस में ये नुमायां आयात मिलीं :-

“मेरे हुज़ूर तू ग़ैर-माबूदों को ना मानना। तू अपने लिए कोई तराशी हुई मूर्त ना बनाना। ना किसी की सूरत बनाना जो ऊपर आस्मान में या नीचे ज़मीन पर या ज़मीन के नीचे पानी में है। तू उनके आगे सज्दा ना करना और ना उनकी इबादत करना क्योंकि मैं ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा गय्यूर ख़ुदा हूँ और जो मुझसे अदावत रखते हैं उनकी औलाद को तीसरी और चौथी पुश्त तक बाप दादा की बदकारी की सज़ा देता हूँ।” (ख़ुरूज 20:3-5)

यूहन्ना इन्जील नवीस हमें आगाह करता है कि “ऐ बच्चों अपने आपको बुतों से बचाए रखो (1-यूहन्ना 5:21) इन बुतों की वाज़ेह तारीफ़ होनी चाहीए कि कब और किसे “बुत: कहा जाये? क्योंकि हर मुजस्समा बुत नहीं हर इमारत के सुतून को बुत नहीं कहा जा सकता और ना ही हर क़ब्र के पत्थर को या हर तारीख़ी इमारत को बुत कहा जा सकता है क्योंकि ऐसी तमाम इमारतें बुत बन सकती थीं अगर लोग उन के लिए मज़्हबी रसूमात करते या उन की इबादत करते और उन से दुआ करते।

साहिर, क़िस्मत का हाल बताने वाले और जादूगरनियां अपने तमाम मंत्रों और साज़ व सामान के साथ जैसे ख़ुशबू जला कर जिन भूत निकालना, मुर्दों की रूहों को बुलाना वग़ैरह, सब इस बात की निशानदेही हैं कि लोग शिर्क में शरीक हैं। लेकिन बाइबल मुक़द्दस में हमें पुर ज़ोर ताकीद मिलती है कि हम कभी भी ऐसी सरगर्मीयों में शामिल ना हूँ बल्कि ऐसे लोगों से किनारा-कशी करें और इस की ताईद तौरेत में इस्तिस्ना 18:10-13 से भी होती है “तुझ में हरगिज़ कोई ऐसा ना हो जो अपने बेटे या बेटी को आग में चलवाए या फ़ालगीर या शुगून निकालने वाला या अफ़्सून गर या जादूगर या मंत्री या जिन्नात का आश्ना यार माइल या साहिर हो क्योंकि वो सब जो ऐसे काम करते हैं ख़ुदावन्द के नज़्दीक मकरूह हैं और उन ही मकरूहात के सबब से ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उनको तेरे सामने से निकालने पर है। तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुज़ूर कामिल रहना।”

एक से ज़ाइद ख़ुदाओं की पैरवी करने के बारे में मेरे अख़ज़ कर्दा नताइज ये हैं :-

(1) सच्चा मसीही दीन ये दाअवा और इक़रार करता है कि ख़ुदा सिर्फ एक है और बरहक़ ख़ुदा-ए-वाहिद की परस्तिश व इबादत हर इन्सान पर लाज़िम है। किसी दूसरे माबूद की तरफ़ झुकाओ एक बहुत बड़ा गुनाह है। (देखिए लूक़ा 4:8; मत्ती 4:10; इस्तिस्ना 6:13; यशूअ 24:14-15)

(2) ख़ुदा की वहदानियत को मद्द-ए-नज़र रखते हुए, मसीहिय्यत एक सच्चे ख़ुदा के इलावा किसी भी दूसरे माबूद की किसी भी शक्ल में हरगिज़ परस्तिश की इजाज़त नहीं देती ख़्वाह वो बुत, किसी इमारत या फ़ित्रत की नुमाइंदगी करने वाले मुजस्समे की सूरत में हो जिनको इन्सानी हाथ ने बनाया हो, उस में तस्वीरों या जाए-नमाज़ पर ख़ाना काअबा यानी बैतुल्लाह की सूरत भी शामिल है जो अक्सर सफ़ैद, सुर्ख या स्याह रंगों में होती है। इबादत के एक अंदाज़ के तौर पर ऐसी तसावीर के सामने घुटने टेकने की कोई भी माक़ूल वजह नहीं। (देखिए ख़ुरूज 20:3-5)

(3) बाइबल मुक़द्दस की तालीमात के मुताबिक़ एक सच्चा मसीही फ़ालगिरी, जादू व मंत्र, ख़ुशबख़ती की अलामतों (ख़्वाह वो बाइबल मुक़द्दस की आयात से बनाई जाएं), मुर्दों की रूहों को बुलाने या भगाने के लिए ख़ुशबुओं के इस्तिमाल से गुरेज़ करता है। ज़रूर है कि वो हर तरह की तोहम परस्ती और बदरूहों के ख़ौफ़ से आज़ाद हो। (देखिए इस्तिस्ना 18:10-13)

(4) एक सच्चा और हक़ीक़ी मसीही बद अर्वाह, जादूओ या तारीकी की कुव्वतों से कभी भी ख़ौफ़-ज़दा नहीं होगा। बाइबल मुक़द्दस में कई मुक़ामात पर इस बात का ज़िक्र है कि मसीह तमाम शैतानी कुव्वतों को शिकस्त देकर फ़त्हमंद हुआ है। और आख़िरकार तमाम तारीकी की कुव्वतों और बुरी रूहों ने ख़ुदावन्द येसू मसीह और उस के पैरोकारों के क़दमों में झुकना है। (मुतालआ के लिए देखिए यूहन्ना 14:12; मर्क़ुस 16:17)

(5) हक़ीक़ी मसीही किसी अँगूठी में जड़े क़ीमती पत्थर, जादू व तावीज़ और ना ही किसी ऐसी और चीज़ को माफ़ौक़-उल-फ़ित्रत क़ुव्वत का हामिल समझता है। मसीही मज़्हब में वाहिद ताक़त ख़ुदा के रूह की ताक़त है जिसे रूह-उल-क़ुद्स कहा जाता है। (देखिए रोमीयों 8:14-17)

(6) एक मसीही की ज़िंदगी में ख़ौफ़, बेचैनी, फ़िक्रें और दीगर मसाइल वो मुआमलात हैं जो सिर्फ ख़ुदा के हुज़ूर दुआओं में पेश करने चाहिऐं, क्योंकि सिर्फ़ ख़ुदा ही हमारी तमाम ज़रूरीयात से वाक़िफ़ है और हमारी दुआओं का जवाब देता है। (देखिए ज़बूर 5:3; मत्ती 6:25-34; 7:7-8) इसलिए मज़ारों पर ना जाएं, जिसमें नबियों के मज़ार भी शामिल हैं ख़्वाह उनका कोई भी नाम क्यों ना हो।

आख़िर में, मैं पूरी दियानतदारी से इस बात की तस्दीक़ करता और ईमान रखता हूँ कि मसीही तसव्वुर तौहीद सबसे आला व अफ़्ज़ल और ख़ालिस तरीन है जिसमें अर्वाह, इंसानी हाथों से बनाए हुए बुतों और देवी देवताओं के लिए हरगिज़ कोई भी जगह नहीं है। एक ही ख़ुदा है जो आस्मानी ख़ुदा बाप है और उस का सरगर्म ज़िंदा कलाम येसू मसीह ख़ुदावन्द है।

5. मसीही अक़ीदा तस्लीस-फ़ील-तौहीद

येसू मसीह को अपना शख़्सी नजातदिहंदा क़ुबूल करने से पहले तस्लीस-फ़ील-तौहीद का अक़ीदा मेरे लिए एक बड़ी रुकावट था। ये बहुत से लोगों के लिए रुकावट का बाइस बना है और इस की वजह ये है कि मसीही अक़ीदे को दुरुस्ती से समझा नहीं गया।

मगर मैंने समझ लिया कि ख़ुदा की ज़ात में पाई जाने वाली तस्लीस-फ़ील-तौहीद किसी भी तरह से ख़ुदा के एक होने की ताअलीम की नफ़ी नहीं करती। सूरह अल-माइदा 5:73 में लिखा है :-

لَّقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَالُوا إِنَّ اللَّـهَ ثَالِثُ ثَلَاثَةٍ

“वो लोग [भी] काफ़िर हैं जो इस बात के क़ाइल हैं कि ख़ुदा तीन में का तीसरा है।”

फिर सूरह अल-निसा 4:171 में लिखा है :-

وَلَا تَقُولُوا ثَلَاثَةٌ

“और ये ना कहो कि [ख़ुदा] तीन है।”

ये क़ुरआनी आयात अक्सर मुस्लिम हज़रात की तरफ़ से पेश की जाती हैं। मैं भी मज़्हब की तब्दीली से पेश्तर मसीही अक़ीदा तस्लीस-फ़ील-तौहीद को रद्द करने के लिए इन्ही क़ुरआनी आयात का सहारा लेता था। लेकिन हक़ीक़त तो ये है कि ये क़ुरआनी आयात सिर्फ इस अक़ीदे को रद्द करती हैं कि तीन अलग-अलग ख़ुदा हैं, मगर ये तस्लीस-फ़ील-तौहीद के मसीही अक़ीदे की हरगिज़ नफ़ी नहीं करतीं।

हम मसीही इन क़ुरआनी आयात को सराह सकते हैं क्योंकि मसीही तालीमात किसी भी तरह के शिर्क को सख़्ती से रद्द करती हैं जिसमें तीन अलग-अलग ख़ुदाओं को मानना भी शामिल है जो बाइबल मुक़द्दस की तालीमात के बरअक्स अक़ीदा है। इसी तरह मसीहिय्यत “दहरियत” (Atheism) और “हमा ख़ुदाई” (Pantheism) को भी रद्द करती है।

बाइबल मुक़द्दस ने ख़ुदा के बारे में बुनियादी एतिक़ाद पर यूं महर लगा दी है, “सुन ऐ इस्राईल ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा एक ही ख़ुदावन्द है।” (इस्तिस्ना 6:4) येसू ने भी इस अक़ीदे का लोगों के सामने ऐलानीया इक़रार किया। (मर्क़ुस 12:29-30)

यसअयाह नबी के सहीफ़े में यूं दर्ज है “मैं ही ख़ुदावन्द हूँ और कोई नहीं।” (यसअयाह 45:5)

इसी तरह यूहन्ना 17:3 में लिखा है “और हमेशा की ज़िंदगी ये है कि वो तुझ ख़ुदा-ए-वाहिद और बरहक़ को और येसू मसीह को जिसे तू ने भेजा है जानें।”

यहां इस बात का ज़रा भी सबूत नहीं कि ख़ुदा की बाबत मसीही अक़ीदा तस्लीस-फ़ील-तौहीद ख़ुदा-ए-वाहिद की वहदानियत के बरख़िलाफ़ है। और इसका ये भी हरगिज़ मतलब नहीं कि तीन ख़ुदा यकजा हैं जैसा कि अक्सर लोग इस की तश्रीह करते हैं।

ख़ुदा की ज़ात में पाई जाने वाली तस्लीस-फ़ील-तौहीद की वज़ाहत यूं की जा सकती है :-

(अ) ख़ुदा-ए-ख़ालिक़ को “बाप” कहा जाता है जिसने तमाम कायनात को ख़ल्क़ किया। और ये तसव्वुर मज़्हब इस्लाम में ख़ुदा के नाम “अल-क़ादिर” से मिलता जुलता है जिसका मतलब “क़ादिर-ए-मुतलक” है।

(ब) उस का कलाम जिसे उस का बेटा भी कहा जाता है येसू की पैदाईश में मुजस्सम हुआ। वो ख़ुदा की शरीअत और उस की पाक इलाही मर्ज़ी को ज़ाहिर करने, ख़ुदा के वादों को इंसानियत के लिए बयान करने और इंसानों की अपनी ही ज़बान में उन से हम-कलाम होने के लिए ज़िंदा कलाम है। उस का कलाम होना इस्लामी हलक़ों में इस्तिमाल होने वाले इस्म सिफ़त “मुरीद” से मिलता जुलता है जिसका मतलब “इरादा करने वाला” है।

(ज) ख़ुदा-ए-ख़ालिक़ का रूह यानी रूह-उल-क़ुद्स जो रूह-ए-हक़ भी कहलाता है, उन ईमानदारों को मदद और हिदायत मुहय्या करता है जो अपने आपको ख़ुदा के लिए वक़्फ़ करते हैं। रूह-ए-ख़ुदा की बाबत ये ताअलीम इस्लाम में इस्तिमाल होने वाले इस्म सिफ़त “मुही” (مُحی) के मुतरादिफ़ है जिसका मतलब “ज़िंदगी बख़्शने वाला” है।

ख़ुदा-ए-वाहिद के ये तीन ज़हूर (आस्मानी ख़ुदा बाप, बेटा या कलाम और रूह-उल-क़ुद्स) तीन अक़ानीम (ये लफ़्ज़ इस्लाम में इस्तिमाल होने वाले लफ़्ज़ “सिफ़ात” का मुतरादिफ़ है में बयान किए गए हैं लेकिन ये ख़ुदा के वजूद में एक जोहर हैं। ये तीनों एक दूसरे से ग़ैर-मुनक़सिम (ना क़ाबिल-ए-जुदा) हैं, इसी तरह यकसाँ क़ुद्रत रखते हुए ग़ैर-फ़ानी हैं और इन में कोई भी ना तो एक दूसरे से पहले वजूद में आया और ना ही बाद। इन तीनों ज़हूरात यानी बाप, बेटा/कलाम और रूह-उल-क़ुद्स को एक लफ़्ज़ ख़ुदा से बयान किया जा सकता है।

अब ये वाज़ेह है कि मसीहिय्यत का तस्लीस-फ़ील-तौहीद का अक़ीदा, तौहीद की ताअलीम की नफ़ी नहीं करता और ना ही इस का मतलब कई ख़ुदाओं या देवताओं की यगानगत है।

क़ुरआन इस मसीही अक़ीदा तस्लीस-फ़ील-तौहीद के माअने पर ना तो एतराज़ करता है और ना ही उसे रद्द करता है। जिस अक़ीदे को सूरह अल-माइदा 5:73 या सूरह अल-निसा 4:171 में रद्द किया गया है, वो तीन मुख़्तलिफ़ ख़ुदाओं पर एतिक़ाद (Tritheism) है। मसीहिय्यत ख़ूद भी तीन मुख़्तलिफ़ ख़ुदाओं पर एतिक़ाद (Tritheism) को रद्द करती है।

इसलिए मैं ये सोचता हूँ कि क़ुरआन में ऐसी कोई भी आयत मौजूद नहीं है जो वाक़ई मसीही अक़ीदे तस्लीस-फ़ील-तौहीद की नफ़ी करती है।

6. येसू मसीह की मौत और क़ियामत

सूरह अल—निसा 4:157 में लिखा है :-

وَقَوْلِهِمْ إِنَّا قَتَلْنَا الْمَسِيحَ عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ رَسُولَ اللَّـهِ وَمَا قَتَلُوهُ وَمَا صَلَبُوهُ وَلَـٰكِن شُبِّهَ لَهُمْ ۚ وَإِنَّ الَّذِينَ اخْتَلَفُوا فِيهِ لَفِي شَكٍّ مِّنْهُ ۚ مَا لَهُم بِهِ مِنْ عِلْمٍ إِلَّا اتِّبَاعَ الظَّنِّ ۚ وَمَا قَتَلُوهُ يَقِينًا

“और ये कहने के सबब कि हमने मर्यम के बेटे ईसा मसीह को जो ख़ुदा के पैग़म्बर [कहलाते] थे क़त्ल कर दिया है [ख़ुदा ने उन को मलऊन कर दिया] और उन्हों ने ईसा को क़त्ल नहीं किया और ना उन्हें सूली पर चढ़ाया बल्कि उन को उनकी सी सूरत मालूम हुई। और जो लोग उन के बारे में इख़्तिलाफ़ करते हैं वो उन के हाल से शक में पड़े हुए हैं। और पैरवी ज़न के सिवा उन को उस का मुतलक़ इल्म नहीं। और उन्हों ने ईसा को यक़ीनन क़त्ल नहीं किया।”

ये क़ुरआनी आयत अक्सर मुस्लिम उलमा इस्तिमाल करते हैं, और ख़ुद पहले मैंने इस आयत को कई मर्तबा इस हक़ीक़त को झुटलाने के लिए इस्तिमाल किया था कि येसू मसीह हक़ीक़तन सलीब पर मरे थे।

पहले मैं यही समझता था कि ख़ुदा की इतनी पसंदीदा और क़रीबी हस्ती का, जो उस का पैग़म्बर बनी, सलीब पर बेयार व मददगार मर जाना नामुम्किन है। फिर ये भी सोचता था कि जब मसीही उसे ख़ुदा का बेटा कहते हैं तो ये नामुम्किन है कि ख़ुदा बाप ने उसे अपनी किसी भी तरह की हिफ़ाज़त मुहय्या ना की थी।

सूरह अल-माइदा 5:68 और दूसरे हवालेजात के पढ़ने से जब मैं मुतास्सिर हुआ और इस बात का क़ाइल हो गया कि बाइबल मुक़द्दस की सच्चाई की तस्दीक़ क़ुरआन करता है तो मैंने सलीब पर येसू की मौत के मौज़ू का बग़ौर जायज़ा लिया, और बाइबल मुक़द्दस और क़ुरआन के हवालों से उस का दुबारा मुतालआ किया और दियानतदारी से तहक़ीक़ की।

(अ) क़ुरआन के मुताबिक़ हम एक ऐसे वाक़ये के बारे में पढ़ते हैं जिसमें कोई मस्लूब हुआ और मर गया लेकिन वो जो मर गया उस की शनाख़्त वाज़ेह नहीं। क़ुरआनी उलमा इस अम्र का इन्कार करते हैं कि ये येसू मसीह थे जो मर गए। वो कहते हैं कि जो शख़्स सलीब पर मुआ, वो यहूदाह था।

(ब) क़ुरआन ये भी बयान करता है कि यहूदी यक़ीनन इस बात के क़ाइल थे कि दर-हक़ीक़त उन्हों ने ही येसू को क़त्ल किया था।

अब मुझे इस बारे में ज़्यादा बेहतर और मज़ीद क़ाइल करने वाली मालूमात दरकार थीं कि दरअस्ल कौन मस्लूब हुआ और मरा था येसू या कोई और। ऐसी मालूमात हासिल करने के लिए मुझे कोई ऐसा सबूत दरकार था जो हक़ीक़ी तवारीख़ी शहादत पर मबनी हो। और ऐसे सच्चे तवारीख़ी सबूत तो सिर्फ बाइबल मुक़द्दस ही से मिलना मुम्किन थे, जो कि एक खुली दस्तावेज़ है और मुकम्मल सही तवारीख़ी मालूमात हासिल करने के लिए इस्तिमाल की जा सकती है।

सलीब पर येसू की मौत के वाक़ये का मुतालआ नए अहदनामे की चार किताबों में किया जा सकता है जो मत्ती, मर्क़ुस, लूक़ा और यूहन्ना ने तहरीर कीं। इन मुसन्निफ़ीन की शहादतें अस्ल वाक़ियात पर मबनी हैं जिनमें से तीन इन्जील नवीस ऐसे थे जो इन वाक़ियात के चश्मदीद गवाह थे।

अगर हम शरीअत की शराइत को मद्द-ए-नज़र रखें कि किसी ख़ास वाक़ये की तस्दीक़ के लिए दो या तीन ऐनी (आँखों देखी) शहादतें काफ़ी हैं। (इस्तिस्ना 17:6-7), तो इन चार मुसन्निफ़ीन में से तीन जिन्हों ने येसू की मस्लुबियत और मौत की गवाही दी, की गवाहियाँ सच्ची, क़ानूनी और क़ाबिल यक़ीन हैं। जब इस का मुवाज़ना मुहम्मद और क़ुरआन की गवाही से किया जाये तो इस का ताल्लुक़ उन वाक़ियात के छः सदीयों बाद से है और यूं मुहम्मद साहब का बयान क़ाइल ना करने वाला मफ़रूज़ा है क्योंकि वो उन वाक़ियात के चश्मदीद गवाह ना थे।

इलावा अज़ीं, इन्जील मुक़द्दस से मज़ीद चश्मदीद शहादतें भी मिलती हैं, मसलन जब येसू ने जान दे दी तो उस के बाद अरमतिया का रहने वाला यूसुफ़ पेंतुस पीलातुस के पास गया और येसू की लाश मांगी और उस की दरख़्वास्त मान ली गई। (मर्क़ुस 15:42-46) अब अगर वो लाश जो सलीब पर से उतारी गई, येसू की नहीं थी तो यक़ीनन अरमतिया का रहने वाला यूसुफ़ उसे रद्द कर देता और वो लाश लेने से इन्कार कर देता।

एक और सबूत ये है कि यहूदीयों ने पिन्तुस पीलातुस से येसू की क़ब्र पर पहरा बिठाने की दरख़्वास्त की थी। अगर येसू के इलावा कोई और उस में दफ़न होता तो पीलातुस उस की हिफ़ाज़त ना करता क्योंकि उस ने येसू की ज़बानी ये सुना था कि वो तीसरे दिन मुर्दों में से जी उठेगा।

अगर एक लम्हे के लिए हम फ़र्ज़ करें कि वो शख़्स जिसे सलीब पर मस्लूब किया गया येसू नहीं था। तो ये नामुम्किन था कि वो फ़र्द इतने पुर-मुहब्बत अल्फ़ाज़ अदा कर सकता जिन्हों ने उस के हक़ीक़ी किरदार को ज़ाहिर किया “ऐ बाप इन को माफ़ कर क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या करते हैं।”, और “तमाम हुआ।” ये सब अल्फ़ाज़ ज़ाहिर करते हैं कि सलीब पर जो फ़र्द मस्लूब हुआ था वो येसू मसीह के इलावा कोई और दूसरा ना था

यूं मैं इस क़ाइल करने वाले नतीजे पर पहुंचा कि सूरह अल—निसा 4:157 में जिस फ़र्द का ज़िक्र किया गया है कि जिसे मस्लूब किया गया और वो मर गया, वो बग़ैर किसी शक व शुब्हे के येसू ख़ुद था, ना कि कोई और फ़र्द जैसे कि यहूदाह और चारों इंजीली बयानात के मुसन्निफ़ीन की सच्ची गवाही क़ाइल करने वाली, क़ानूनी और दुरुस्त है।

मुर्दों में से मसीह का जी उठना

क़ुरआन कहीं पर भी येसू के मुर्दों में से जी उठने का इन्कार नहीं करता। क़ुरआन के मुताबिक़ मुहम्मद साहब को येसू के बारे में ये मुकाशफ़ा मिला :-

وَالسَّلَامُ عَلَيَّ يَوْمَ وُلِدتُّ وَيَوْمَ أَمُوتُ وَيَوْمَ أُبْعَثُ حَيًّا

“और जिस दिन मैं पैदा हुआ और जिस दिन मरूँगा और जिस दिन ज़िंदा कर के उठाया जाऊँगा मुझ पर सलाम [व] रहमत है।” (सूरह मर्यम 19:33)

इस क़ुरआनी आयत ने मुझे क़ाइल कर दिया कि येसू ने वाक़ई सलीबी मौत का मज़ा चखा मगर कुछ लोग इस हक़ीक़त का इन्कार करते हैं। मुझे पूरा यक़ीन हो गया कि येसू मरने के बाद दुबारा जी उठा (أُبْعَثُ حَيًّا) ऐसा जिस्म जो हक़ीक़ी मौत (أَمُوتُ) के बाद जी उठे, इसके लिए “أُبْعَثُ حَيًّا” के अल्फ़ाज़ इस्तिमाल किए जाते हैं।

येसू अपने बदन में तीसरे दिन वाक़ई मुर्दों में से जी उठा जिस का मुशाहिदा किया और छुआ जा सकता था। (फिलिप्पियों 3:21) येसू मसीह की मौत बे माअना होती अगर उन्हें मुर्दों में से जी उठने का सहरा ना मिलता।

फ़र्ज़ करें, जब मसीह सलीब पर लटकाया गया और मर गया और अगर वो मुर्दा ही रहता तो मसीही दुनिया और मज़्हब के लिए ये होलनाक धचका होना था क्योंकि उनका ख़ुदा यूं मर जाता और ख़त्म हो जाता। और मसीही मज़्हब अब तक मज़बूती से क़ायम ना रहता क्योंकि मसीहियों के पास अपनी नजात की कोई उम्मीद ना होती।

और ये भी कि अगर मसीह मर कर मुर्दा ही रहा और अगर उस की हड्डियां आज तक क़ब्र में ही होतीं तो क्यों मसीही मुर्दा ख़ुदा की परस्तिश में अपना वक़्त गँवाते? और किस मक़्सद के तहत मसीही एक मुर्दा शख़्स के नाम पर बपतिस्मा लेते? और क्यों वो एक मुर्दा शख़्स पर ज्ञान ध्यान करते? यक़ीनन ऐसा ज्ञान ध्यान तो बेवक़ूफ़ी ही ठहरता कि अगर मसीही उस येसू को अपना नजातदिहंदा समझते जो ख़ुद मौत के बंद से छुटकारा ना पा सका था और क़ब्र ही में पड़ा रह गया।

ख़ुदा की ला-महदूद मुहब्बत को साबित करने के लिए येसू को मस्लूब होना था, लेकिन हमेशा मुर्दा रहने के लिए नहीं बल्कि ऐसा मौत पर फ़त्ह पा कर जी उठने और ता अबद ज़िंदा रहने के लिए था। येसू मुर्दों में से जी उठा, वो फिर से ज़िंदा है और ये तसव्वुराती या क़ियास पर मबनी नहीं है बल्कि हक़ीक़त पर मबनी है क्योंकि बहुत से लोगों ने बादअज़ां उसे देखा और इस बात की गवाही दी।

येसू की सलीबी मौत और फिर मुर्दों में से जी उठना तमाम दुनिया में मसीही कलीसियाओं की गवाही का जोहर है। हमारा ईमान-ए-कामिल उम्मीद से भरपूर है। हमारा ऐसा नजातदिहंदा है जो अबद तक जीता है। हमारे ईमान की बुनियाद मुहब्बत पर है और येसू की बदौलत हम ख़ुदा के वाअदे हासिल करते हैं। हम उसके साथ दुख उठाते हैं और उसके साथ जलाल भी पाएँगे। (रोमीयों 8:17)

इसी वजह से हम मसीह के पैरोकार होते हुए कामिल यक़ीन रखते हैं कि हम तमाम मुख़्तलिफ़ क़िस्म की अम्वात से छुटकारा पाएंगे।

(अ) हम ख़ानदानी झगड़ों, तनाज़ों और नफ़रत की मौत से छुटकारा पाते हैं।

(ब) हम तक्लीफ़ से अपनी रोज़ी कमाने की मौत से छुटकारा पाते हैं।

(ज) हम तशवीश से भरे दिल की मौत से छुटकारा पाएँगे।

(द) हम अपने कमज़ोर ईमान की मौत से छुटकारा पाएँगे।

(ह) हम अपनी ख़ूद ग़रज़ी और अना की मौत से छुटकारा पाएँगे।

(व) हम तमाम ख़ौफ़, बीमारीयों और दुखों की मौत से छुटकारा पाएँगे।

हमारे लिए येसू की सलीब के माअना

पतरस रसूल ने रूह-उल-क़ुद्स की तहरीक से यूं लिखा :-

“क्योंकि अगर कोई ख़ुदा के ख़याल से बे-इंसाफ़ी के बाइस दुख उठा कर तक़्लीफों की बर्दाश्त करे तो ये पसंदीदा है। इसलिए कि अगर तुम ने गुनाह कर के मुक्के खाए और सब्र किया तो कौनसा फ़ख़्र है? हाँ अगर नेकी कर के दुख पाते और सब्र करते हो तो ये ख़ुदा के नज़्दीक पसंदीदा है। और तुम इसी के लिए बुलाए गए हो क्योंकि मसीह भी तुम्हारे वास्ते दुख उठा कर तुम्हें एक नमूना दे गया है ताकि उस के नक़्श-ए-क़दम पर चलो। ना उस ने गुनाह किया और ना उस के मुंह से कोई मक्र की बात निकली। ना वो गालियां खा कर गाली देता था और ना दुख पा कर किसी को धमकाता था बल्कि अपने आपको सच्चे इंसाफ़ करने वाले के सुपुर्द करता था। वो आप हमारे गुनाहों को अपने बदन पर लिए हुए सलीब पर चढ़ गया ताकि हम गुनाहों के एतबार से मर कर रास्तबाज़ी के एतबार से जिएँ और उसी के मार खाने से तुम ने शिफ़ा पाई। क्योंकि पहले तुम भेड़ों की तरह भटकते फिरते थे मगर अब अपनी रूहों के गल्लाबान और निगहबान के पास फिर आ गए हो।” (1-पतरस 2:19-25)

येसू की सलीबी मौत उस के दुखों की इंतिहा थी। सलीब पर मरने की तमन्ना मसीह ने अपने लिए ख़ूद ना की बल्कि इंसानियत के गुनाहों की ख़ातिर ये ख़ुदा की तरफ़ से एक मुक़र्रर कर्दा इंतिज़ाम था। यसअयाह नबी ने येसू के दुखों की बाबत पेशीनगोई इस तमाम वाक़ये से सात सौ (700) साल पहले की :-

“तो भी उस ने हमारी मशक़्क़तें उठा लीं और हमारे ग़मों को बर्दाश्त किया। पर हमने उसे ख़ुदा का मारा कुटा और सताया हुआ समझा। हालाँकि वो हमारी ख़ताओं के सबब से घायल किया गया और हमारी बदकिर्दारी के बाइस कुचला गया। हमारी ही सलामती के लिए उस पर सियासत हुई ताकि उस के मार खाने से हम शिफ़ा पाएं। हम सब भेड़ों की मानिंद भटक गए। हम में से हर एक अपनी राह को फिरा पर ख़ुदावन्द ने हम सबकी बदकिर्दारी उस पर लादी। वो सताया गया तो भी उस ने बर्दाश्त की और मुंह ना खोला। जिस तरह बर्रा जिसे ज़ब्ह करने को ले जाते हैं और जिस तरह भेड़ अपने बाल कतरने वालों के सामने बेज़बान है उसी तरह वो ख़ामोश रहा। वो ज़ुल्म कर के और फ़त्वा लगा कर उसे ले गए पर उस के ज़माने के लोगों में से किस ने ख़याल किया कि वो ज़िन्दों की ज़मीन से काट डाला गया? मेरे लोगों की ख़ताओं के सबब से उस पर मार पड़ी। उस की क़ब्र भी शरीरों के दर्मियान ठहराई गई और वो अपनी मौत में दौलतमंदों के साथ हुआ हालाँकि उस ने किसी तरह का ज़ुल्म ना किया और उस के मुंह में हरगिज़ छल ना था। लेकिन ख़ुदावन्द को ये पसंद आया कि उसे कुचले। उस ने उसे ग़मगीं किया। जब उस की जान गुनाह की क़ुर्बानी के लिए गुज़रानी जाएगी तो वो अपनी नस्ल को देखेगा। उस की उम्र दराज़ होगी और ख़ुदावन्द की मर्ज़ी उस के हाथ के वसीले से पूरी होगी। अपनी जान ही का दुख उठा कर वो उसे देखेगा और सैर होगा। अपने ही इर्फ़ान से मेरा सादिक़ ख़ादिम बहुतों को रास्तबाज़ ठहराएगा क्योंकि वो उन की बद-किर्दारी ख़ूद उठा लेगा। इसलिए मैं उसे बुज़ुर्गों के साथ हिस्सा दूंगा और वो लूट का माल ज़ोर-आवरों के साथ बांट लेगा क्योंकि उस ने अपनी जान मौत के लिए उंडेल दी और वो ख़ताकारों के साथ शुमार किया गया तो भी उस ने बहुतों के गुनाह उठा लिए और ख़ताकारों की शफ़ाअत की।” (यसअयाह 53:4-12)

येसू ने बज़ात-ए-ख़ूद जान लिया था कि ये नबुव्वत उस की अपनी ही पाक ज़ात में पूरी होनी थी क्योंकि वही ख़ुदा का सादिक़ ख़ादिम था जिसका इस नबुव्वत में ज़िक्र है। इसी वजह से येसू ने इस हद तक दुखों का सामना करते हुए, अपने उस शागिर्द को जिसने उसे गिरफ़्तार करने वाले सिपाही पर तल्वार से हमला किया, ये हुक्म दिया “अपनी तल्वार को मियान में कर ले क्योंकि जो तल्वार खींचते हैं वो सब तल्वार से हलाक किए जाऐंगे। क्या तू नहीं समझता कि मैं अपने बाप से मिन्नत कर सकता हूँ और वो फ़रिश्तों के बारह तुमन से ज़्यादा मेरे पास अभी मौजूद कर देगा? मगर वो नविश्ते कि यूंही होना ज़रूर है क्योंकर पूरे होंगे?” (मत्ती 26:52-54)

यहूदी मज़्हबी पेशवाओं के हाथों येसू को रूमी गवर्नर के हवाले किया गया ताकि उसे सलीब दी जाये, इसलिए नहीं कि उस ने तौरेत की तालीमात के ख़िलाफ़ कोई जुर्म या गुनाह किया था। इस के बारे में यहूदी मज़्हबी पेशवाओं ने कुफ़्र का फ़त्वा इसलिए दिया कि उस ने उन के सामने इक़रार किया था कि वो ख़ुदा का बेटा और दुनिया का नजातदिहंदा है।

सलीब की अलामत हमें याददहानी कराती है कि येसू ने हमें गुनाह की ताक़त से नजात देने के लिए बतौर क़ुर्बानी सलीब पर दुख सह कर मौत बर्दाश्त की ताकि हम हमेशा की ज़िंदगी के वारिस बन सकें।

येसू का सऊद-ए-आस्मानी (मेअराज)

येसू का आस्मान पर उठाया जाना यरूशलेम शहर से बाहर बैत-अन्याह में अपने ग्यारह शागिर्दों के सामने हुआ। (लूक़ा 24:50)

जहां तक येसू के आस्मान पर उठाए जाने (मेअराज) की हक़ीक़त है, क़ुरआन में इस बारे में कोई एतराज़ नहीं। बल्कि क़ुरआन में इस की तस्दीक़ सूरह आले इमरान 3:55 में यूं मिलती है :-

إِذْ قَالَ اللَّـهُ يَا عِيسَىٰ إِنِّي مُتَوَفِّيكَ وَرَافِعُكَ إِلَيَّ

“उस वक़्त ख़ुदा ने फ़रमाया कि ऐ ईसा मैं बेशक तुम्हें मौत दूंगा और अपनी तरफ़ उठा लूँगा।”

येसू के आस्मान पर सऊद कर जाने के वाक़ये में दो चीज़ों को मद्द-ए-नज़र रखना चाहीए :-

(अ) येसू ने अपने शागिर्दों को जो आख़िरी पैग़ाम दिया उस में उस के आने का मतमाअ नज़र उस हुक्म में बयान किया गया जो उस ने अपने तमाम पैरोकारों को दिया है :-

(1) तमाम दुनिया में जाओ और नजात की ख़ुशख़बरी की मुनादी करो और सब क़ौमों को येसू के शागिर्द बनाओ।

(2) उन्हें ख़ुदा बाप, बेटे और रूह-उल-क़ुद्स के नाम से बपतिस्मा दो।

(3) और उनको वो ताअलीम दो जो मैंने तुम्हें बिल-ख़ुसूस इन्जील के बारे में और बिल-उमूम बाइबल मुक़द्दस के बारे में दी है।

(ब) येसू ने अपने तमाम शागिर्दों को रूह-उल-क़ुद्स की क़ुव्वत देने का वाअदा किया, जिसमें हम भी शामिल हैं जो मौजूदा ज़माने में उस के शागिर्द और पैरोकार बनते हैं कि इस बात की गवाही दें कि येसू ख़ुदा का बेटा ज़िंदगी का कलाम है। उस का रूह अब से ले कर अबद-उल-आबाद तक हमारे साथ साथ रहेगा।

येसू की आमद-ए-सानी

येसू ज़िंदों और मुर्दों का इन्साफ़ करने के लिए इलाही मुंसिफ़ की हैसियत से इस दुनिया में जल्द ही दुबारा तशरीफ़ लाएगा। (आमाल 1:11; मुकाशफ़ा 20:11-15)

येसू का रास्त मुंसिफ़ की हैसियत से इस दुनिया के आख़िर में दुबारा आना मुस्लिम अक़ीदा भी है और इस ताल्लुक़ से कई अहादीस भी मिलती हैं। मसलन :-

(अ) सही बुख़ारी की जिल्द चहारुम में अबू हुरैरा से रिवायत है :-

کیف انتم اذا نزل ابن مریم فیکم و امامکم منکم

“तुम्हारा उस वक़्त क्या हाल होगा जब ईसा इब्ने मरियम तुम में उतरेंगे और तुम्हारा इमाम तुम ही में से होगा।”

(ब) मुस्नद इमाम अहमद इब्ने हम्बल 2:240, 411 में लिखा है :-

لَیُوشِکَنَّ انَّ یَنزِلَ فِیکُم ابنُ مَریَمَ اِمَاماً مَھدِیاً وَ حَکَماً عَدلا

“वो ज़माना क़रीब है कि ईसा इब्ने-मर्यम तुम में बहैसियत राह याफ्ताह इमाम और आदिल हाकिम की हैसियत से नाज़िल होंगे।”

(ज) हदीस मुस्लिम किताब अव्वल के मुताबिक़ एक मर्तबा मुहम्मद अरबी ने क़सम खा कर दूसरों को यक़ीन दिलाया कि येसू मसीह इब्ने-मर्यम दुबारा बेहतरीन मुंसिफ़ बन कर आएँगे। मुहम्मद ने कहा :-

وَاُللَّہَ لَیَنزِلَنَّ ابنُ مَریَمَ حَکَماً عَادِلاً

“अल्लाह की क़सम, इब्ने-मर्यम आदिल हाकिम की हैसियत से नाज़िल होंगे।”

इस हदीस की तश्रीह ये है कि येसू मसीह की दूसरी आमद ज़रूर ही आख़िरी ज़माने में होगी। लफ़्ज़ “हकिमन” से ये साफ़ ज़ाहिर है कि येसू मसीह की दुबारा आमद नबी की हैसियत से नहीं होगी और वो ख़ुदा की शरीअत को बाइबल या क़ुरआन में लेकर नहीं आएगा बल्कि वो तमाम इंसानों के मुंसिफ़ की हैसियत से अपने साथ एक नई किताब “किताब-ए-हयात” लेकर आएगा। (मुकाशफ़ा 20:11-15)

सही बुख़ारी और सही मुस्लिम की मुन्दरिजा बाला हदीसों का मुवाज़ना बाइबल मुक़द्दस की एक आयत से कीजिए :-

“जिस रोज़ ख़ुदा मेरी खुशखबरी के मुताबिक़ येसू मसीह की मार्फ़त आदमीयों की पोशीदा बातों का इन्साफ़ करेगा।” (रोमीयों 2:16)

इस वजह से मेरे लिए येसू को अपना ख़ुदावन्द और शख़्सी नजातदिहंदा क़ुबूल करने और बतौर रास्त मुंसिफ़ उस की दूसरी आमद के इंतिज़ार करने में कोई रुकावट ना रही।

येसू के पैरोकारों की नजात के बारे में क़ुरआन यूं शहादत देता है :-

إِذْ قَالَ اللَّـهُ يَا عِيسَىٰ إِنِّي مُتَوَفِّيكَ وَرَافِعُكَ إِلَيَّ وَمُطَهِّرُكَ مِنَ الَّذِينَ كَفَرُوا وَجَاعِلُ الَّذِينَ اتَّبَعُوكَ فَوْقَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ

“उस वक़्त ख़ुदा ने फ़रमाया कि ईसा मैं बेशक तुम्हें मौत दूंगा और अपनी तरफ़ उठा लूँगा और तुम्हें काफ़िरों [की सोहबत] से पाक कर दूंगा। और जो लोग तुम्हारी पैरवी करेंगे उन को काफ़िरों पर क़ियामत तक फ़ाइक़ [व] ग़ालिब रखूँगा।” (सूरह आले-इमरान 3:55)

वाज़ेह तौर पर क़ुरआन गवाही देता है कि मसीह के पैरोकारों की नजात यानी फ़िर्दोस में अबदी ज़िंदगी की ज़मानत दी गई है जैसे कि येसू ने ख़ुद फ़रमाया :-

“मैं तुम से सच्च कहता हूँ कि जो मेरा कलाम सुनता और मेरे भेजने वाले का यक़ीन करता है हमेशा की ज़िंदगी उसकी है और उस पर सज़ा का हुक्म नहीं होता बल्कि वो मौत से निकल कर ज़िंदगी में दाख़िल हो गया है।” (यूहन्ना 5:24)

“राह और हक़ और ज़िंदगी में हूँ। कोई मेरे वसीले के बग़ैर बाप के पास नहीं आता।” (यूहन्ना 14:6)

7. बाइबल मुक़द्दस की सदाक़त

जैसा कि मैंने अपने मसीही ईमान की बाबत गवाही के शुरू ही में ज़िक्र किया था कि सबसे पहले सूरह अल-मायदा की आयत 68 ने मुझे बाइबल मुक़द्दस की सदाक़त को परखने पर आमादा किया, और ये क़ुरआनी आयत तस्दीक़ करती है कि बाइबल मुक़द्दस (तौरेत, ज़बूर, सहाइफ़-ए-अम्बिया और इन्जील) हर उस शख़्स के लिए, जो ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ सच्चाई से ख़ुदा की परस्तिश करता है, रास्त किताब है।

क़ुरआन में कई ऐसी आयात हैं जो मुस्लिम उलमा अक्सर ये साबित करने के लिए इस्तिमाल करते हैं कि बाइबल मुक़द्दस तब्दीली, तहरीफ़ और ग़लती का शिकार हो चुकी है। पहले मैंने भी इन क़ुरआनी आयात को इस मक़्सद के लिए इस्तिमाल किया था।

लेकिन बादअज़ां मैंने इन क़ुरआनी आयात को वाक़ई हक़ीक़ी माअनों में समझने की कोशिश की, बिल्कुल वैसे ही जैसे मैं बाइबल मुक़द्दस के मशमूलात समझना चाहता था।

मैंने दियानतदारी से ये जानने की कोशिश की कि मुन्दरिजा ज़ैल क़ुरआनी आयात में किस हद तक सच्चाई पिनहां है। आख़िरकार मैं इस नतीजा पर पहुंचा :-

(अ) सूरह अल-बक़रह 2:75

أَفَتَطْمَعُونَ أَن يُؤْمِنُوا لَكُمْ وَقَدْ كَانَ فَرِيقٌ مِّنْهُمْ يَسْمَعُونَ كَلَامَ اللَّـهِ ثُمَّ يُحَرِّفُونَهُ مِن بَعْدِ مَا عَقَلُوهُ وَهُمْ يَعْلَمُونَ

“[मोमिनो] क्या तुम उम्मीद रखते हो कि ये लोग तुम्हारे [दीन के] क़ाइल हो जाऐंगे [हालाँकि] उन में से कुछ लोग कलाम ख़ुदा [यानी तौरात] को सुनते फिर उस के समझ लेने के बाद उस को जान बूझ कर बदल देते रहे हैं।”

उमूमन मुसलमान “कुछ लोग” (فَرِيقٌ مِّنْهُمْ) से बाइबली उलमा (यहूद व नसारा) मुराद लेते हैं जिन्हों ने तौरेत और इन्जील में ख़ुदा के अल्फ़ाज़ को बदल दिया।

मेरी तहक़ीक़ के मुताबिक़ सूरह अल-बक़रह 2:75 के माअना ये नहीं हैं। “कुछ लोग” से मुराद वो मुसलमान थे जो पहले यहूदी और मसीही थे मगर जब उन को मुहम्मद साहब की हक़ीक़ी तालीमात का इल्म हुआ तो उन्हों ने इस्लाम को तर्क कर दिया। क़ुरआन उन लोगों को मौरिद-उल-इल्ज़ाम ठहराता है कि उन्हों ने क़ुरआनी आयात के माअना या तश्रीह को बदल दिया था ना कि बाइबल मुक़द्दस के अल्फ़ाज़ को।

इस क़ुरआनी आयत को पढ़ने से ये समझा जा सकता है कि “क्या तुम [मुहम्मद] अब भी उम्मीद रखते हो कि ये लोग तुम्हारा यक़ीन करेंगे?” इस जुम्ले में “तुम” का लफ़्ज़ वाज़ेह तौर पर मुहम्मद साहब के लिए इस्तिमाल हुआ है। उन्हों ने (यहूदीयों और मसीहियों ने) मुहम्मद साहब को अपना नबी तस्लीम कर लिया, और बादअज़ां जब उन्हों ने इस्लाम को ख़ैर आबाद (अलविदा) कह दिया तो उन पर ये इल्ज़ाम लगा कि उन्हों ने क़ुरआनी आयात के मतलब को बदल डाला है और ये कि ऐसे लोग अहमक़, झूटे और जाहिल हैं।

(ब) सूरह अल-बक़रह 2:106

مَا نَنسَخْ مِنْ آيَةٍ أَوْ نُنسِهَا نَأْتِ بِخَيْرٍ مِّنْهَا أَوْ مِثْلِهَا

“हम जिस आयत को मंसूख कर देते या उसे फरामोश करा देते हैं तो उस से बेहतर या वैसी ही और आयत भेज देते हैं क्या तुम नहीं जानते कि ख़ुदा हर बात पर क़ादिर है।”

इस क़ुरआनी आयत के बारे में आम-तौर पर मुसलमान ये मानते हैं कि ये “मन्सूख़” आयात बाइबल की आयात हैं जो तौरेत और इन्जील में हैं। लेकिन क़ुरआन की कुछ इस्लामी तश्रीह से आप जान सकते हैं कि इन मन्सूख़ शूदा या फ़रामोश की गई आयात से मुराद कई क़ुरआनी आयात हैं क्योंकि उन के क़वानीन और अहकाम अब मन्सूख़ कर दिए गए हैं। किताब “अल-तजदीद फ़ील-इस्लाम” के मुताबिक़ पाँच से पचास तक ऐसी क़ुरआनी आयात हैं जो मन्सूख़ शुदा हैं।

जबकि कुछ लोग ये कहते हैं कि ये मन्सूख़ शूदा आयात वो हैं जिनमें मुहम्मद के मोअजज़ात का ज़िक्र था, क्योंकि मुहम्मद साहब ख़ुदा की तरफ़ से नबी होते हुए भी मूसा और ईसा की तरह मोअजज़ात करने से महरूम थे। इसलिए सूरह अल-बक़रह 2:106 का हवाला इस सच्चाई को रद्द करने के लिए बतौर सबूत पेश नहीं किया जा सकता कि बाइबल मुक़द्दस इलाही किताब है जो हर उस फ़र्द के लिए रास्ती की हक़ीक़ी बुनियाद है जो सच्चाई से ख़ुदा की परस्तिश करेगा।

(ज) सूरह अल-माइदा 5:13

فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَاقَهُمْ لَعَنَّاهُمْ وَجَعَلْنَا قُلُوبَهُمْ قَاسِيَةً ۖ يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِ وَنَسُوا حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُوا بِهِ ۚ وَلَا تَزَالُ تَطَّلِعُ عَلَىٰ خَائِنَةٍ مِّنْهُمْ إِلَّا قَلِيلًا مِّنْهُمْ

“तो उन लोगों के अहद तोड़ देने के सबब हमने उन पर लानत की और उन के दिलों को सख़्त कर दिया। ये लोग कलिमात [किताब] को अपने मुक़ामात से बदल देते हैं। और जिन बातों की उन को नसीहत की गई थी उनका भी एक हिस्सा फ़रामोश कर बैठे और थोड़े आदमीयों के सिवा हमेशा तुम उन की [एक ना एक] ख़ियानत की ख़बर पाते रहते हो।”

सूरह अल-माइदा की इस आयत के लफ़्ज़ “इन” के साथ उमूमन क़ौसिन (ब्रेकेट) में “यहूदी/मसीही” जान-बूझ कर लिखा जाता है और जुम्ले के अल्फ़ाज़ “ये लोग कलिमात को अपने मुक़ामात से बदल देते हैं” से ये मुराद लिया जाता है कि तौरेत और इन्जील तब्दील हो गई हैं।

हक़ीक़त में ये क़ुरआनी आयत सूरह अल-बक़रह 2:75 की तरह मुहम्मद साहब के ज़माने के उन मुसलमानों की बात करती है जो पहले यहूदी या मसीही थे लेकिन बादअज़ां दुबारा अपने पुराने मज़्हब में चले गए और इस्लाम को रद्द कर दिया। क़ुरआन ने ऐसे लोगों को मुल्ज़िम ठहराया कि उन लोगों ने क़ुरआनी आयात के लफ़्ज़ों को उनके मुक़ाम से बदल डाला है। इस मौज़ू पर मज़ीद मुतालआ सूरह अल-माइदा 5:7-14 के तनाज़ुर में किया जा सकता है।

यक़ीनन सूरह अल-माइदा 5:13 को बाइबल मुक़द्दस की सच्चाई को रद्द करने के लिए बुनियाद के तौर पर इस्तिमाल नहीं किया जा सकता।

नताइज तहक़ीक़

ऊपर बयान की गई आयात से मिलती जुलती और भी कई क़ुरआनी आयात हैं जिनके पढ़ने से बज़ाहिर यूं लगता है कि वो बाइबल मुक़द्दस की सच्चाई को रद्द कर रही हैं। ऐसी आयात का दियानतदारी से मुतालआ करने के बाद मैं ये इक़रार करता हूँ कि एक भी ऐसी क़ुरआनी आयत नहीं जो वाज़ेह तौर ये बयान करती हो कि बाइबल मुक़द्दस (तौरेत, ज़बूर और इन्जील) में किसी भी तरह की तब्दीली की गई है।

आख़िर में मेरा नतीजा ये है कि क़ुरआनी आयात यानी सूरह अल-माइदा 5:68, सूरह अल-बक़रह 2:62, सूरह अल-सज्दह 32:23 और कई दूसरी आयात ऐसी हैं जो ये यक़ीन दिलाती हैं कि तौरेत, ज़बूर और इन्जील उन सब लोगों के लिए बरहक़ हिदायत है जो ख़ुदा की परस्तिश व इबादत उस की मर्ज़ी के मुताबिक़ करना चाहते हैं।

8. माहौल के असरात के ख़िलाफ़ मेरी जद्दो जहद

अगरचे मैं मसीही ईमान की सच्चाई का क़ाइल हो चुका था और येसू को अपना शख़्सी नजातदिहंदा क़ुबूल करने के लिए भी तैयार था, ताहम में बाक़ायदा तरीक़े से मसीही ना हुआ क्योंकि मेरे गर्द व पेश के हालात साज़गार ना थे और मेरे लिए रुकावट का सबब बने हुए थे। इस के इलावा मैं ख़ौफ़ व इज़तिराब का शिकार भी था।

मेरा तजुर्बा ज़ाहिर करता है कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो येसू को अपने शख़्सी नजातदिहंदा के तौर पर क़ुबूल करने के लिए आमादगी का इज़्हार करते हैं लेकिन माहौल के असरात से घबरा कर अक्सर ठोकर खा जाते हैं। शायद वो अपने वालदैन के ख़िलाफ़ जाना नहीं चाहते, कई बार उन्हें अपनी नौकरी के खो जाने का या बीवी से तसादुम का अंदेशा होता है। इस के इलावा और भी बहुत सी रुकावटें हैं जो लोगों को इस बात से रोकती हैं कि वो येसू को पूरे तौर पर अपनी ज़िंदगी पर हुक्मरानी करने दें।

येसू ने माहौल के ख़ौफ़नाक असरात से पेश्तर ही आगाह कर दिया था जिसका ज़िक्र मत्ती 10:34-36 में मिलता है। आपने उन दुखों का ज़िक्र किया जिनका सामना हर उस फ़र्द को करना पड़ सकता है जो मसीह की पैरवी करना चाहता है। हो सकता है कि वालदैन की तरफ़ से मज़्हब की तब्दीली के बाइस नफ़रत का जज़्बा पैदा हो, ख़ानदानी ताल्लुक़ात ख़त्म हो जाएं और अपनी जान का ख़तरा लाहक़ हो जाये। ताहम, वो जो येसू को ख़ुदावन्द के तौर पर क़ुबूल करते हैं और अपनी ज़िंदगी उस के हवाले करते हैं कि वो उन के दिलों पर हुकूमत करे, उन की मुश्किलात कभी देरपा नहीं रहतीं और ख़ुदा की मदद इन तमाम मसाइल पर ग़लबा पाने के लिए मददगार होगी। मुझे भी ऐसे ही तजुर्बात से गुज़रना पड़ा लेकिन हर बार ख़ुदा ने इन तमाम मसाइल से निकलने की राह भी आसान कर दी।

1961 ई॰ से लेकर 1964 ई॰ तक मैं दोहरे मज़्हबी फ़राइज़ अदा करता रहा। मैं मुस्लिम अक़ीदे के मुताबिक़ नमाज़ पढ़ता और हर जुमा को मस्जिद भी जाता। मगर इस के साथ साथ हर इतवार को मैं मसीही इबादत-गाह में भी जाता और हफ़्ते के दिन एक एडविंटिस्ट कलीसिया में इबादत करता। उस वक़्त में गिरजे में काइलित के तहत ना जाता था बल्कि सिर्फ इस वजह से कि मैं सच्चाई को जानना चाहता था। अक्सर मैंने ग़ैर-मसीहियों के ये बयानात पढ़े थे कि गिरजे में लोग बुतों और तस्वीरों की परस्तिश करते हैं। इस वजह से मैं हर इतवार जकार्ता में किसी ना किसी गिरजे में जाता और फिर अक्सर में एक ही इतवार को कई गिरजों में ये देखने के लिए जाता कि क्या मसीही मुजस्समों या तसावीर की पूजा करते थे।

आख़िरकार, मैं ये नतीजा निकालने के क़ाबिल हुआ कि मेरे ख़दशात बे-बुनियाद थे। मैं जिस भी गिरजे में गया मुझे कहीं भी बुत-परस्ती नज़र ना आई।

1964 ई॰ से मेरी रूह हक़ीक़त में ख़ुदा के रूह या सच्चाई के रूह से मामूर हो गई। और उस वक़्त मैंने येसू को पूरे दिल से अपना शख़्सी नजातदिहंदा क़ुबूल करने का फ़ैसला किया। लेकिन अभी तक एक बात की कमी का एहसास मुझ में था और वो ये थी कि मुझमें इतनी हिम्मत ना थी कि अपने मसीही ईमान का इक़रार एलानिया तौर पर करता। मैंने उस वक़्त तक अपनी मसीहिय्यत को राज़ में रखा हुआ था और नहीं चाहता था कि मेरा ख़ानदान, मेरी बीवी और दूसरे अज़ीज़ मेरे इस फ़ैसले को किसी तरह से जान पाएं, इसलिए मैंने “कविटिंग” (Kwitang) शहर में, चर्च आफ़ इंडोनेशिया से राज़दारी में बपतिस्मा लेने की दरख़्वास्त की जो कि नामंज़ूर कर दी गई क्योंकि किसी को भी खु़फ़ीया तौर पर बपतिस्मा नहीं दिया जाता था।

कई हफ़्ते गुज़रने के बाद इसी मक़्सद के तहत मैंने पादरी जय स्पोलेते (Rev. J. Sapulete) से बैत-एल चर्च जातीनग़ारा (Jatinegara) में मुलाकात की। वो फ़ौरन राज़ी हो गए, मगर एक शर्त पर कि बपतिस्मा दो या तीन मसीही पड़ोसीयों के सामने होगा जो मेरी मसीही ज़िंदगी में मेरी रुहानी राहनुमाई कर सकें ताकि मैं मसीही ज़िंदगी बसर कर सकूँ। मैं इस शर्त को मानने के लिए तैयार ना था क्योंकि उस वक़्त तक मैंने मसीही होने का ऐलानीया इक़रार ना किया था और इसकी वजह मेरे इर्दगिर्द का माहौल और मेरा अपना घराना था। मुझे ख़ौफ़ था कि इस तरह मेरे अपने ही घर में बड़ी मुश्किल पैदा हो जाएगी। इस ख़ौफ़ के तहत कि कहीं वो इंतिक़ामन मुझे इस्लामी क़ानून के तहत तलाक़ के लिए अदालत में ना ले जाये मैं अपनी बीवी से भी बात करने की हिम्मत ना पा रहा था कि वो कलीसिया में मेरे साथ जाये। इस वजह से मैं येसू मसीह को सिर्फ ख़ुफ़ीया तौर पर क़ुबूल करना चाहता था।

ताहम, मसीही ईमान के ताल्लुक़ से मुझमें कोई ग़ैर-यक़ीनी बाक़ी ना रही थी। इस वजह से मैंने दोहरी मज़्हबी इबादात को अदा करना छोड़ दिया और मैं सिर्फ मसीही इबादतगाह में जाता। लेकिन राज़ इफ़शा हो जाने और ख़ानदान के रद्द-ए-अमल का डर हमेशा ही लगा रहता था। मुझे कोई हल नज़र नहीं आता था कि मैं इन तमाम मुश्किलात पर कैसे काबू पाऊं और ना ही मश्वरा लेने के लिए किसी के पास गया।

फिर भी, ख़ुदा ने अपने वक़्त पर इन तमाम मुश्किलात पर क़ाबू पाने के लिए मेरी मदद की। पहले मैं सोचता था कि अगर मैं अपनी बीवी से मज़्हब की तब्दीली के बारे में बात करूँगा तो ये हमारे लिए मुश्किल का सबब बन जाएगा। लेकिन ख़ुदा ने अपनी बड़ी रहमत से मेरी बीवी पर सच्चाई का दरवाज़ा खोल दिया। क्रिसमिस की ख़ूबसूरत सजावट यानी रंग-बिरंगी रोशनीयां और क्रिसमिस ट्री जो मसीही घरों से दिलकश नज़ारा पेश कर रहे थे, उन्हों ने मेरी बीवी के दिल को बहुत सुकून दिया और मसीहिय्यत की ख़ूबी उस पर ज़ाहिर हुई कि मसीही ख़ानदान में ज़िंदगी कितनी ख़ूबसूरत होती है।

अपने जज़्बात का इज़्हार करने के लिए मेरी बीवी और मेरी एक बेटी मेरे पास ये बताने के लिए आईं कि कितना अच्छा हो कि हमारा ख़ानदान भी मसीही घर हो। अब यही मौक़ा था जिसका मैं मुंतज़िर था।

अगले दिन क्रिसमिस था और मैं पादरी स्पोलेते से फिर मिला और उन से अपने और अपने ख़ानदान की तरफ़ से बपतिस्मे की दरख़्वास्त की जो फ़ौरन मंज़ूर हो गई। यूं 26 दिसंबर 1969 ई॰ को मैंने बमए बीवी और सात बच्चों के एक ख़ानदान की तरह बैतएल चर्च में पादरी जय स्पोलेते से बपतिस्मा लिया। एक हफ़्ता गुज़र जाने के बाद मेरे एक और बेटे ने भी बपतिस्मा लिया और ये इन्किशाफ़ हुआ कि वो भी छुप छुप कर कलीसिया जाता था क्योंकि इस बात से ख़ौफ़ज़दा था कि कहीं मुझे सच्च ना पता चल जाये। मैं भी अपनी बीवी और बच्चों के डर से छुप कर कलीसिया जाता था, और यूं गोया हम एक दूसरे के साथ आँख-मिचोली खेलते रहे, लेकिन ख़ुदावन्द की तारीफ़ करता हूँ कि बिल-आख़िर मैं और मेरा ख़ानदान येसू के पैरोकार बन गए और हमारे दिलों पर उस की हुक्मरानी हो गई।

बेशुमार बरकतें

26 दिसंबर 1969 ई॰ में जब मैंने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया तो हमने कई ख़ुशगवार तब्दीलीयों का तजुर्बा किया। हमें बहुत सी बरकात मिलें जिनसे हमारी ज़िंदगी बदल गई। पौलुस रसूल ने लिखा “इसलिए अगर कोई मसीह में है तो वो नया मख़्लूक़ है। पुरानी चीज़ें जाती रहीं। देखो वो नई हो गईं।” (2 कुरिन्थियों 5:17)

जब कोई फ़र्द येसू को अपना शख़्सी नजातदिहंदा क़ुबूल करता है तो ख़ुदा उस ईमानदार की ज़िंदगी को तब्दील कर देता है और वो मसीह की सूरत पर ढलने लगता है। बाइबल मुक़द्दस में लिखा है “ख़ुदा ने इंसान को अपनी सूरत पर पैदा किया।” (पैदाईश 1:27) इस नई रूहानी तब्दीली में ख़ुशी और मुहब्बत की चाहतें जन्म लेने लगती हैं। ऐसा फ़र्द दुनियावी चीज़ों से मुहब्बत की जगह नफ़रत करने लगता है और जो दीनदारी की बातें उसे पहले नापसंद होती थीं वो दिल पसंद बन जाती हैं। उस की ज़िंदगी बदल जाती है और ऐसी नुमायां तब्दीली आती है जिसे आस-पास के लोग भी देख सकते हैं। उस की ज़िंदगी के रास्ते बदल जाते हैं जो उस के तर्ज़-ए-कलाम में भी तब्दीली लाता है। क्या ही अजीब तब्दीली है।

ऐसी ही तब्दीली का मैं और मेरे ख़ानदान ने भी अपनी ज़िंदगी में तजुर्बा किया। गर्म-मिज़ाजी के बजाए नर्म मिज़ाजी ने जगह ले ली। अपनी रूहानी ज़िंदगी में हमें ख़ूशी और इत्मीनान मिला। तमाम शकूक व शुब्हात दूर हो गए। हमारी रूहें महफ़ूज़ थीं और दिल ख़ूशी से भर गए। यहां तक कि हमें दुनियावी तौर पर भी कस्रत से बरकतें मिलीं। ये तमाम तजुर्बात ख़ुदा के हक़ीक़ी वाअदों का सबूत थे जो येसू मसीह के वसीले से ईमानदारों की ज़िंदगी में पूरे होते हैं।

“अगर कोई प्यासा हो तो मेरे पास आकर पिए। जो मुझ पर ईमान लाएगा उस के अंदर जैसा कि किताब-ए-मुक़द्दस में आया है ज़िंदगी के पानी की नदियाँ जारी होंगी।” (यूहन्ना 7:37-38)

“मैं इसलिए आया कि वो ज़िंदगी पाएं और कस्रत से पाएं।” (यूहन्ना 10:10)

हमारी रोज़मर्रा ख़ानदानी ज़िंदगी में तब्दीली इस क़द्र तेज़ी से नुमायां हुई कि हम लोगों की नज़रों में आ गए और हमारी तरफ़ उंगलीयां उठने लगीं। हमारे हम-साए और रिश्तेदार ये ख़याल करने लगे कि हमने मसीहिय्यत इख़्तियार करने के एवज़ चर्च से मदद हासिल की है। लोग ये कहते हुए हमारा तम्सख़र (मज़ाक़) उड़ाने लगे कि “अगर जल्द अमीर बनना है तो मिस्टर अम्बरी के नमूने की पैरवी करो और मसीही हो जाओ तो मदद के तौर पर तुम्हें चर्च की तरफ़ से लाखों रुपया हासिल होगा।” लोग ये शक करते थे कि हमारी ज़िंदगी में बरकात का नाज़िल हो जाना चर्च की तरफ़ से था जबकि मसीही हो जाने पर रिश्वत के तौर पर हमें माली मदद दी गई है। ऐसा हरगिज़ नहीं था हमने किसी भी चर्च से या किसी और ज़रीये से मसीही हो जाने पर कोई मदद ना ली, ना रोज़गार के लिए कोई वाअदा लिया और ना एक पाई तक ली। दर-हक़ीक़त हमारी तमाम रूहानी व माद्दी बरकात और बाबरकत ज़िंदगी फ़क़त ख़ुदा की फ़य्याज़ी का नतीजा थी। ये उस का वाअदा है कि जो कोई उस पर ईमान लाएगा कस्रत से बरकत पाएगा।

मेरे ग़ैर-मुतहर्रिक इब्तिदाई मसीही साल

1970 ई॰ से 1972 ई॰ तक मैं एक जामिद (सुस्त) मसीही था। मैं अपने कारोबार को क़ायम करने और अपने ख़ानदान की परवरिश में मसरूफ़ रहा। मैं सिर्फ इतवार को कलीसिया में जाता और फ़ारिग़ वक़्त में बाइबल मुक़द्दस की तिलावत करता। ख़ुदा ने मुझे ऐसे रवैय्ये पर मुजरिम होने का एहसास दिलाया। मैंने उस वक़्त वाज़ेह महसूस किया कि ख़ुदा ने मुझे तंबीया की “अगर तुम हक़ीक़ी मसीही बनना चाहते हो तो इस तरह की सर्द मिज़ाजी का रवैय्या दुरुस्त नहीं। तुम्हारे लिए ये मुनासिब नहीं है कि तुम काहिली से बैठ कर ख़ुदा की उन बरकात का मज़ा चखो जो उस ने तुम्हें अता की हैं। मसीह के एक शागिर्द की हैसियत से तुम्हें लाज़िमन मसीह की इन्जील की वाज़ेह गवाही देनी है क्योंकि उस ने मत्ती 19:28-20 में तुम्हें इस बात का हुक्म दिया है।”

सवाल ये था कि किस तरह मैं खुले आम शख़्सी मसीही गवाही और इन्जील की ख़ुशख़बरी की मुनादी करूँ? दरहक़ीक़त मैं ऐसा करने की ख़्वाहिश तो रखता था लेकिन इस बात से नावाक़िफ़ था कि कैसे इस का आग़ाज़ किया जाये। इसके लिए एक बार फिर ख़ुदा ने रास्ता तैयार किया और यूं मेरी मदद की :-

एक दिन मेरा बेहतरीन दोस्त हमारे घर एक रात क़ियाम करने के लिए बंजर मासीन से आया। वो मेरा हक़ीक़ी दोस्त था जिसने अच्छे और बुरे दिनों में मेरा साथ दिया था। जब भी डच फ़ौज की तरफ़ से गिरफ्तारियां होती थीं हमारी हमेशा एक दूसरे से किसी ना किसी क़ैदख़ाने में मुलाक़ात हो जाती थी।

हमारे घर में कोई ऐसा निशान ना था कि जिससे पता चलता कि हम मसीही हो चुके थे। वो हम से हस्ब-ए-मामूल मिला। जब उसने “अस्सलामु अलैकुम” कहा तो मैंने जवाब दिया “वाअलैकुम अस्सलाम।” मेरे दोस्त ने पड़ोसीयों से सुना था कि मैं मसीही हो चुका हूँ। लेकिन उस ने उन्हें जवाब दिया कि ऐसा मुम्किन नहीं हो सकता और तक़रीबन मेरे पड़ोसीयों को इस का क़ाइल भी कर लिया। उस ने उन्हें बताया “मैं हमरान अम्बरी को ना सिर्फ जकार्ता बल्कि बंजर मासीन से भी अच्छी तरह से जानता हूँ। वो कोई मामूली मुसलमान नहीं बल्कि अपने ईमान में बाउसूल है। अपने सूबे में वो एक तशद्दुद पसंद मुजाहिद-ए-इस्लाम, मुख़ालिफ़-ए-मसीही, तहरीक मुहम्मदिया के राहनुमाओं में से एक, मुस्लिम सहाफ़ी और इस्लाम के मुबल्लिग़ के तौर पर जाना जाता है। और वसती और मशरिक़ी कालिमंतन (Kalimantan) का सारा इलाक़ा उसे जानता है। मज़ीद बरआँ 1947 ई॰ में अमूनताई (Amuntai) में कालिमंतन इस्लामी कांग्रेस की तरवीज में हमरान अम्बरी निहायत सरगर्म था। इस के इलावा इंडोनेशिया की सरकारी फ़ौज के लिए बंजर मासीन में बड़े मुस्लिम मुबल्लिग़ की हैसियत से मुक़र्रर किया गया था। सो, मैं यक़ीन से कहता हूँ कि हमरान अम्बरी अपने होश व हवास में कभी भी मुसलमान से मसीही नहीं हो सकता।”

लेकिन मेरे पड़ोसीयों ने उसे यक़ीन दिलाया कि कई सालों से हमने उसे गांव के चर्च में बाक़ायदगी से जाते और क्रिसमिस के तहवार पर क्रिसमिस ट्री (Christmas Tree) सजाते हुए भी देखा है। उन्हों ने उसे मुझसे बराह-ए-रास्त वज़ाहत हासिल करने के लिए कहा।

सो मेरा दोस्त जैसे ही घर के अंदर दाख़िल हुआ, बराह-ए-रस्त उस ने मुझसे सवाल किया कि मेरे मसीही हो जाने की ख़बर क्या वाक़ई दुरुस्त है? मैंने बग़ैर किसी शक व शुब्हा के उसे जवाब दिया “हाँ ये दुरुस्त है। मैं और मेरे ख़ानदान ने बपतिस्मा ले लिया है।”

ये सुनते ही मेरे उस दोस्त की आँखों से आँसू जारी हो गए। उसे इंतिहाई अफ़्सोस हुआ और एक लम्हे के लिए हैरानी के आलम में खड़ा रहा। बंजर मासीन लौट जाने के बाद उस ने दूसरों को ख़ुसूसुन मेरे क़रीबी दोस्तों को मेरे मसीही हो जाने की ख़बर दी।

मेरे एक और क़रीबी दोस्त ने जो एक मुस्लिम सहाफ़ी था बंजर मासीन के एक अख़्बार हारयान उतामा (Harin Utama) में इस बारे में ख़बर छाप दी।

ऐच अरसियाद मारान (H.Arsyad Maran) के क़लम से जली हुरूफ़ में ये शाएअ हुआ, “तहरीक की एक मुम्ताज़ हस्ती मसीही हो गई है।” और ख़बर ये दी कि “वो तीस के अशरे की मुहम्मदिया तहरीक की मुम्ताज़ हस्ती है जो कभी अख़्बार “जिहाद” का चीफ़ ऐडीटर था।”

जनाब इंतिमास ने यूं लिखा, “मुहम्मदिया तहरीक की एक हस्ती की मसीही मज़्हब में तब्दीली इंतिहाई हैरत-अंगेज़ ख़बर।”

एक और सहाफ़ी अर्थम आर्था (Arthum Artha) ने ये तवक़्क़ो ज़ाहिर की कि इस ख़बर में सच्चाई नहीं है और हमरान अम्बरी जो आज़ादी का सूरमा है, उस के मज़्हबी अक़ीदे के ताल्लुक़ से अब भी बहुत से सवाल हैं।

बंजर मासीन के मुसलमानों ने भी तास्सुब भरा रद्द-ए-अमल दिखाया कि, “माली तंगी किसी को भी तब्दील-ए-मज़्हब पर आमादा कर सकती है।”

हत्ता कि मुस्लिम यूनीवर्सिटी आई॰ ए॰ आई॰ अन्तासरी (I. A. I. N. Antasari) ने भी मेरे मज़्हब की तब्दीली पर रद्द-ए-अमल ज़ाहिर किया। इसी असना में बंजर मासीन में पी ऐम डब्लयू मुहम्मदिया (P. M. W. Muhammadiyah) के सेक्रेटरी ने तो इस बात से इन्कार ही करने की कोशिश की कि मैं कभी मुहम्मदिया तहरीक का एक रुक्न था, अलबत्ता ये ज़रूर माना कि मैं आज़ादी का एक मुस्लिम सूरमा था।

मेरे मज़्हब की तब्दीली पर ये तमाम ख़बरें अख़बारात में इसलिए शाएअ की गईं ताकि मुझे शर्मिंदा किया जाये और मैं वापिस इस्लाम की तरफ़ लौट आऊँ। मगर उनका इरादा और मर्ज़ी ख़ुदा की इलाही मर्ज़ी के बिल्कुल बरअक्स थी और ख़ुदा ने उन्हें इस तरह इस्तिमाल किया कि मैं और भी सरगर्म मसीही बन कर अपने ख़ुदावन्द येसू मसीह की उलूहिय्यत की सच्चाई की गवाही देने के लिए तैयार हो सका। यूं तक़रीबन दो माह तक मेरे मज़्हब की तब्दीली पर अख़बारात में चर्चा होता रहा, ये अवाम में ज़ेरे मौज़ू रहा और ये मौज़ू बंजर मासीन में हारयान उतामा अख़्बार की अहम ख़बरों की सुरख़ी बना रहा। मुझे ये भी ख़बर मिली कि इस वजह से बाअज़ जगहों पर क़त्ल व ग़ारत भी हुई। मेरे कुछ दोस्त जिनका ख़याल था कि ये ख़बरें मुझे बदनाम करने के लिए छापी गई हैं नामा निगारों पर हमले के लिए तैयार थे। ये सब कुछ देख कर मैं ने जल्द ही एक “खुला ख़त” बंजर मासीन के अख़्बार हारयान उतामा में छपवाया जिसमें अपने मज़्हब की तब्दीली का खुले आम एतराफ़ किया।

हारयान औतामा के क़ारईन के नाम एक खुला ख़त

क़ारईन हज़रात अस्सलाम व अलैकुम!

मैं इस ख़त के ज़रीये इक़रार कर रहा हूँ कि ये बात सच है कि मैं प्रोटैस्टैंट मसीही दीन इख़्तियार कर चुका हूँ और मेरी ये तब्दीली 1964 ई॰ से है।

आपके अख़्बार में शाएअ होने वाली ख़बर सनसनीखेज़ रही क्योंकि उस ने मुझे इस्लाम की अज़ीम हस्ती और आज़ादी के एक सूरमा के तौर पर बयान किया है।

मैं इस सारे रद्द-ए-अमल और दाद के लिए जो मेरे दोस्तों ने मुझे दी उनका शुक्रगुज़ार हूँ। हालाँकि अब तक मैंने कभी ये महसूस नहीं किया और ना ही ये ऐलान किया है कि मैं इस्लाम की कोई अज़ीम हस्ती और आज़ादी की तहरीक का सूरमा हूँ। अगर मैंने माज़ी में जंग में शिरकत की भी, जैसा कि मेरे दोस्तों ने लिखा है तो वो सिवाए धर्ती-माँ का बेटा होने की हैसियत से फ़र्ज़ के इलावा और कुछ ना था। इस वजह से ये मेरा उसूल बन गया है कि इस ख़िदमत के औज़ कोई लक़ब नहीं चाहता। मैंने तो सिर्फ अपना फ़र्ज़ अदा किया है।

मैं अपने तमाम दोस्तों खासतौर पर ऐच॰ अरसियाद मारान (मैंने आपके ख़त को क़ुबूल नहीं किया), अंतेमास और अर्थम आर्था का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्हों ने मेरे बारे में लिखना ज़रूरी समझा। आप सबकी तहरीरों में ऐसी कोई बात नहीं जिसका मैं इन्कार करूँ या अपना रद्द-ए-अमल ज़ाहिर करूँ सिवाए इस तसहीह के कि मैंने आज़ादी के पहले अलमबरदार के लक़ब के लिए कभी भी दरख़्वास्त नहीं की।

अर्थम आर्था को मैंने “नोटिस आफ़ फ़ेथ” (Notes of Faith) भी भेजे जो मेरे प्रोटैस्टैंट मसीही मज़्हब की बुनियाद भी बनी।

ख़ैर जो कुछ भी हो, दोस्त तो दोस्त ही रहते हैं और अच्छी दोस्ती कभी नहीं टूटती।

आप सब फ़िक्रमंद अफ़राद का बहुत शुक्रिया।

आपका मुख़लिस

हमरान अम्बरी

जकार्ता, 6 मई 1972 ई॰

मसीही ज़िंदगी में सरगर्म गवाही का आग़ाज़

इस “खुले ख़त” के शाएअ होने के बाद दोस्तों की तरफ़ से बंजर मासीन और हौलू सिंघाई से कई ख़ुतूत मौसूल हुए जिनमें तास्सुफ़ का इज़्हार था और क़ुरआनी आयात के साथ नसीहत और तंबीया की गई थी। कुछ ख़त ऐसे थे जिनमें मुझसे पूछा गया कि वो कौन से हालात थे जिन्हों ने मुझे तब्दीली मज़्हब पर आमादा किया।

ये वो इब्तिदाई वजूहात थीं जिन्हों ने मुझे आमादा किया कि मैं मसीही गवाही के लिए तैयार हो जाऊं। पहले-पहल तो हर ख़त के ज़ाती जवाब के लिए मैं टाइपराइटर इस्तिमाल करता था। ये ख़ुतूत ईमान की वज़ाहत करने वाले नोटिस में ढलना शुरू हो गए। फिर जैसे जैसे इन में इज़ाफ़ा हुआ तो मैंने एक मज़्मून प्रैस में छपवाया जिस का उन्वान था “ख़ुदा, येसू और रूह-उल-क़ुद्स” अगली इशाअत “मसीह और ख़ुदा की वहदानियत की बाबत इल्म-ए-इलाही” 1973 ई॰ में मुकम्मल हुई। नतीजतन, सवालात और हम्दर्दी की शक्ल में कई ख़ुतूत मौसूल हुए और कुछ ऐसे भी थे जो बह्स के अंदाज़ में सच्चाई जानने के कोशां थे।

मेरे मसीही अक़ीदे की मुख़ालिफ़त में कई रिसाले जावा में छापे गए। उन मज़ामीन की इशाअत का मजमूई नतीजा ये निकला कि मुझे लिखे जाने वाले ख़ुतूत की तादाद में इज़ाफ़ा होता गया। ये ख़ुतूत इंडोनेशिया के तमाम इलाक़ों, बंजर मासीन से और मग़रिबी जावा, वसती जावा और मशरिक़ी जावा के मुस्लिम इलाक़ों से, समाटरा (पालम बैंग, मेड इन, पडाइंग, आचा) से भी लिखे गए। कुछ ख़ुतूत ग़ैर-ममालिक से भी आए जैसे मिस्र और मलाईशीया।

ये ख़ुदा की राहनुमाई थी जिसकी वजह से मैं अपने ईमान पर मज़बूती से क़ायम रहा और उस की गवाही दी।

कुछ लोगों से ख़त व किताबत का सिलसिला निस्फ़ साल तक जारी रहा। मसीही दीन से मुताल्लिक़ कई नित पर ख़यालात का तबादला हुआ। कुछ सवालात और जवाबात को मैंने किताबी शक्ल दी और सच्चाई की दस्तावेज़ के तौर पर शाएअ किया।

(अ) मेडान से किबलत मैगज़ीन जकार्ता के मुआविन मुदीर और मुस्लिम सहाफ़ी ऐच॰ ऐम॰ यूसुफ़ शुऐब से खत व किताबत।

(ब) सलाटिजा से इस्लामी मुदर्रिस समूडी से ख़त व किताबत

(ज) जकार्ता के स्टडी इस्लाम मैगज़ीन के मुदीर इमाम मूसा प्रोजोसीसोवैव से ख़त व किताबत।

(द) दार-उल-कुतब इस्लामिया जकार्ता के जनाब हादी वाहयोनो से ख़त व किताबत।

(ह) क़ाहिरा, मिस्र के एक मुस्लिम तालिबे इल्म अली याक़ूब मातो निदाइंग से ख़त व किताबत।

(व) डंपासार, बाली में इस्लामी जमाअत अहमदिया इंडोनेशिया के वाइज़ए हसन ताओ से ख़त व किताबत।

(ज़) अज़ीफ़ फ़हमी और दीगर तलबा (सोराबाया के मुस्लिम तलबा का एक गिरोह) से ख़त व किताबत।

(ह) कीमाही बांडुंग की मस्जिद आगूंग (मर्कज़ी मस्जिद) के मुंतज़िम आला, एम॰ ए॰ फ़ज़ली से ख़त व किताबत।

1979 ई॰ तक मैंने इंडोनेशिया के तक़रीबन हर हिस्से से हज़ारों मुसलमान भाईयों के ख़ुतूत के जवाबात दिए। हर रोज़ आने वाले ख़ुतूत मेरी हिम्मत बढ़ाते और इस बात का ज़िंदा सबूत थे कि ख़त लिखने वाले सच्चाई के मुतलाशी थे, और मेरे दीए गए जवाबात से उन्हें तसल्ली मिलती थी। ख़ुदा का शुक्र हो उन में चंद ऐसे भी थे जो शख़्सी तौर पर मुझे मिलने के लिए आए।

जब मैंने देखा कि मेरी इस मज़्हब की तब्दीली ने बहुत से लोगों को तलाश-ए-हक़ की जानिब माइल किया है तो मैंने मुलाक़ातियों के साथ तबादला ख़यालात के लिए हर मंगल जुमेरात और हफ्ते को सुबह से शाम तक का वक़्त वक़्फ़ कर दिया।

मैं ख़ुदा का शुक्र बजा लाता हूँ कि उस ने मुझे वसीला बनाया कि ख़ास तौर पर मुस्लिम भाईयों को बाइबल मुक़द्दस की सदाक़त और येसू मसीह की उलूहिय्यत के बारे में बता सका ताकि वो मसीह की बाबत कामिल तौर पर समझ सकते।

सवालात व एतराज़ात के जवाबात देने से मैंने महसूस किया कि बाइबल मुक़द्दस और येसू मसीह की उलूहियत के बारे में तमाम ग़लत-फ़हमियों और ग़लत वज़ाहत की सच्चाई को वाज़ेह तौर पर दिखा कर फ़ौरन तसहीह करनी चाहीए।

बैरूनी ख़िदमत

1973 ई॰ से फरवरी 1978 ई॰ तक मसीही मज़्हब की बाबत सवालात के जवाब देते हुए मैं अपनी शख़्सी गवाही अपने मेज़ से ख़ुतूत के ज़रीये देता रहा। मैंने उन ख़ुतूत के जवाबात को सच्चाई की दस्तावेज़ के तौर पर छपवाया।

लेकिन फरवरी 1978 ई॰ में मैंने दुआ की “ऐ ख़ुदा, मेहरबानी से इस तहरीक को कोई नया मैदान बख़्श क्योंकि मेरा ख़त व किताबत का सिलसिला तक़रीबन ख़त्म हो चुका है।” इस दुआ का मुझे बराह-ए-रस्त जवाब मिला कि कल सुबह मुझे अपने घर से बाहर आना चाहीए और वहां से मुझे नया मैदान मिलेगा।

अगले रोज़ सुबह होते ही मैं घर से निकला और बिल्कुल नहीं जानता था कि मुझे कहाँ जाना है। जब मैं मर्कज़ी सड़क पर आ गया तो मैंने ख़ुदा से दुआ की कि जिस राह मुझे जाने की ज़रूरत है वो मेरे क़दमों की राहनुमाई फ़रमाए। रूह की हिदायत से मैं शुमाल की जानिब चला, मुझे मंज़िल का इल्म तो नहीं था और मैं बग़ैर कोई गाड़ी या बस लिए पैदल चलता रहा। जब मैं बाइबल इंस्टीटियूट आफ़ इंडोनेशिया के दफ़्तर के सामने पहुंचा तो ख़ुदावन्द ने मुझे दफ़्तर में दाख़िल होने को कहा। मैं शक की हालत में था क्योंकि किसी को जानता ना था। किसी वक़्त वहां पादरी बी प्रोबोवीनोतो थे लेकिन वो सलाटिजा में भेज दिए गए। मैं सोच रहा था कि अब अगर मैं अंदर जाऊं तो किस से बात करूँ और क्या कहूं? लेकिन मेरे दिल की आवाज़ यही थी कि अंदर जाओ और मैं दफ़्तर में दाख़िल हो गया।

एक दोस्त ने मुझे दफ़्तर में दाख़िल होते देखा तो पहचान लिया और फ़ौरन ही मुझ से मुख़ातिब हुआ “मिस्टर अम्बरी ख़ुदा की हम्द हो, ये कैसी राहनुमाई है दफ़्तर में कोई आपको मिलना चाहता है।” जल्द ही हम बात करने के क़ाबिल थे। बादअज़ां, मुझे पादरी ऐम॰ के॰ जाकर एतिमादजा से मुलाक़ात का मौक़ा मिला जिन्हों ने मेरे बारे में सुना था और मुझ से मिलने के ख़्वाहिशमंद थे। इस बाहमी गुफ़्तगु से मुझे बहुत बरकत मिली। वो मेरी चंद किताबें ख़रीदना चाहते थे।

मैं सोच में पड़ गया कि क्या ये मेरा नया मैदान-ए-अमल है और फिर फ़ैसला किया कि ऐसा नहीं है। मैंने घर वापिस लौटना चाहा लेकिन मेरी रूह ने राहनुमाई की कि मैं शुमाल की तरफ़ चलता जाऊं।

मैं पैदल चलता रहा यहां तक कि करामातवी के सामने आ गया। मेरी रूह ने मुझे अंदर जाने और पादरी डाक्टर ऐस॰ ऐम॰ ओ॰ पूरमज़ से मुलाक़ात करने के लिए कहा। मैं सोच में पड़ गया कि कैसे पादरी पूरमज़ से मुलाक़ात की जाये क्योंकि मैं उन से अच्छी तरह से वाक़िफ़ ना था और ना ही उन के इदारे से मेरा कोई ताल्लुक़ था। हम एक दूसरे से मिले तो थे लेकिन ये कोई तीन साल पहले की बात थी।

लेकिन जब ख़ुदा के रूह ने मुझसे बात की तो मैं करामातवी की तरफ़ मुड़ गया। वहां दाख़िल होने से पहले मैं बे-यक़ीनी का शिकार था। पहले ये घर ख़ुदा के खादिमों से भरा होता था लेकिन अब बड़ी ख़ामोशी थी। मैंने सोचा, शायद पादरी पूरमज़ यहां से चले गए हैं। ताहम, पादरी पूरमज़ ने मुझे देख लिया और इस्तिक़बाल के लिए आगे बढ़ते हुए बोले “ख़ुश-आमदीद, अम्बरी साहब कल ही से मैं आपके बारे में सोच रहा था और आपसे मिलना चाहता था क्योंकि कुछ बातें आपसे करना चाहता हूँ। मैं आपसे तवक़्क़ो रखता हूँ कि हम मिलकर ख़ुदावन्द की ख़िदमत के लिए आगे बढ़ेंगे।” मुझे बेहद ताज्जुब हुआ कि पादरी पूरमज़ ने मुझे कैसे याद रखा जबकि हम एक दूसरे को ज़्यादा ना जानते थे? लेकिन मुझे एक दिन पहले की अपनी दुआ याद आई। ख़ुदा के रूह ने मेरी राहनुमाई की कि मैं यहां ख़िदमत के नए मैदान में दाख़िल हो सका।

उस सारी गुफ़्तगु से मुझे ताज़गी मिली। पादरी पूरमज़ मुझसे तवक़्क़ो कर रहे थे कि मैं उन के साथ मिलकर ख़ुदा की ख़िदमत करूँ। उन्हें मेरी सेहत के बारे में भी फ़िक्रमंदी थी जो उस वक़्त इतनी अच्छी ना थी।

आख़िर में पादरी पूरमज़ ने कहा कि मैं उनका ख़त ऐम॰ के॰ सीनागा, डायरेक्टर बूमी असीह, गली नम्बर 4 सोलो में लेकर जाऊं और उन्हें दूं। मैं ये ख़त लेकर गया और ज़ाती तौर पर उन के हवाले किया। वहां से मुझे जुमे की सुबह होटल इंडोनेशिया में भेजा गया क्योंकि उन के बक़ौल कई वाइज़ मेरी बाबत जानना चाहते थे।

जुमे की सुबह 24 फरवरी 1978 ई॰ को मैं होटल इंडोनेशिया पहुंचा जहां जकार्ता के मसीही ताजिरों के एक ग्रुप की तरफ़ से जो “C.B.M.C.” कहलाता था, एक दुआइया मज्लिस का इनइक़ाद किया गया था।

दौरान-ए-तआरुफ़ पता चला कि बहुत से लोग मेरे नाम से पहले ही से वाक़िफ़ थे और मुझे ज़ाती तौर पर मिलना चाहते थे। उस वक़्त के बाद मुझे कई और दुआइया मजालिस में ख़िदमत करने का मौक़ा मिला जिसका नतीजा बाद में कलीसियाई इबादात में ख़िदमत की सूरत में निकला। मुझे जकार्ता और बांडूइंग के कई गिरजों में अपनी शख़्सी गवाही देने का मौक़ा मिला। अब तक मैंने जकार्ता से बाहर भी ख़िदमत की है, ख़ासकर जुनूबी कालिमंतन (बंजर मासीन और अमनताई), वसती कालिमंतन (प्लानिंग काराया), मशरिक़ी जावा (सूराबाया और मिलाइंग), बांडूंग वग़ैरह।

ये ख़िदमत के लिए एक नया मैदान था। मैंने वफ़ादारी से इसे जारी रखा और मुख़्तलिफ़ तरह की मीटिंग्ज़ के ज़रीये मसीह की ख़ुशख़बरी दूसरों तक पहुंचाई।

गो, अब मेरी ख़िदमत का मैदान घर के बाहर की दुनिया में है तो भी ख़त व किताबत का सिलसिला बंद नहीं हुआ बल्कि कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया है। ख़ुदा की हम्द हो ये ख़ुतूत मेरे लिए बरकत का बाइस हैं और मैं ख़ुशी से बहुत से मुतलाशियों की ख़िदमत कर सकता हूँ।

मसीही ख़िदमात में इज़ाफ़ा

एक तहरीरी दावतनामे में मुझे कहा गया कि 13 मई 1979 ई॰ को मस्जिद दार-उस्सलाम, शारअ बटंगहारी, जकार्ता में मुसलमान नौजवानों के एक गिरोह के सामने जिन्हों ने लेमबाग पिंगा जियान इस्लाम-उल-फुर्क़ान में शमूलीयत की थी एक लैक्चर “उलूहियत मसीह” पर दूं। इस में बड़े मुनाज़िर डाक्टर अबू नियामीन रोहाम और डाक्टर सानी इर्दी थे और हाज़िरीन की तादाद तक़रीबन सौ के क़रीब थी जिसमें इस्लामी तलबा और असातिज़ा सब ही शामिल थे। सिर्फ में ही जवाबात देने के लिए आया था। इख़्तताम अच्छा रहा और ये मुलाक़ात दोस्ताना मुसाफे पर ख़त्म हुई।

22 जुलाई 1979 ई॰ को मेरे और मज्लिस उलमा (मुस्लिम माहिरीन इल्म इलाहयात की कौंसल) के कई इस्लामी क़ाइदीन के दर्मियान फिर लैक्चर का सिलसिला हुआ। बह्स का मौज़ू “ख़ुदा-ए-क़ादिर-ए-मुतलक़ तस्लीस में एक?” था। मुनाज़रा करने वाले अफ़राद की फ़हरिस्त में दस अश्ख़ास थे जिन में प्रोफ़ैसर डाक्टर ऐच॰ ऐम॰ रसीदी, डाक्टर अबू नियामीन रोहाम, डाक्टर टागोर, डाक्टर असमोनी भी शामिल थे। सदर-ए-मज्लिस के फ़राइज़ डाक्टर मारमन से अर्रहमान ने अंजाम दीए। हाज़िरीन की तादाद 150 के क़रीब थी जिन में मुस्लिम क़ाइदीन, असातिज़ा और कई दानिशमंद अफ़राद शामिल थे।

दो माह के अंदर अंदर 15 अगस्त के बाद मैंने जकार्ता से बाहर मशरिक़ी और मग़रिबी जावा के कई इलाक़ों का दौरा किया। उसी साल यक्म सितंबर को गॉस्पल मिशन की राहनुमाई करते हुए मैंने मीनाड व औजोइंग पांडाइंग, ताना तोराजा, पालोपो, बालिक पापान, बंजर मासीन और कप्वास का दौरा किया।

9. नतीजा

नजात हर फ़र्द के लिए सबसे अहम तरीन मक़्सद है जिस में अपने लिए, अपने ख़ानदान के लिए, अपनी ज़मीन के लिए नजात और कई और तरह की मख़लिसी शामिल है। ये तमाम मक़ासिद उस की ज़िंदगी की ख़ुशी में अहम तरीन मक़ासिद बन जाते हैं।

एक ख़ुदा-परस्त आदमी के लिए नजात इस दुनियावी ज़िंदगी तक ही महदूद नहीं बल्कि इस में उस की रूह की गुनाहों के असर से नजात भी शामिल है। उस की रूहानी नजात का मुहब्बत से क़रीबी ताल्लुक़ है जो आस्मानी ज़िंदगी की बुनियाद भी है।

फ़र्ज़ करें कि अगर आदम और हव्वा बाग-ए-अदन में गुनाह में ना गिरते तो इंसान अब भी हमेशा हमेशा ज़िंदा रहता। लेकिन आदम और हव्वा, जब उन्हों ने ख़ुदा के हुक्म की ना-फ़र्मानी की, अपने गुनाह के बाइस अबदी ज़िंदगी से निकाल दिए गए और यूं तमाम इंसानी नस्ल भी गुनेहगार ठहरी और एक ऐसी हालत में दाख़िल हो गई जहां रूहानी और जिस्मानी मौत दोनों का सामना है।

ये फ़ना व बर्बाद होने वाली ज़िंदगी जिसमें रूहानी और जिस्मानी मौत है आदम और हव्वा के गुनाह का नतीजा है जो हमें विरसे में मिला। ये मौरूसी गुनाह हर इंसान के अंदर है जिसमें मैं और आप भी शामिल हैं।

लेकिन रहमदिल ख़ुदा हमें मुर्दा हालत में अपने आपसे जुदा नहीं रहने देगा। ख़ुदा ने हमें हमेशा की ज़िंदगी देने का वाअदा किया है जो इस ज़िंदगी से भी बहुत बेहतर होगी जब आदम और हव्वा की तख़्लीक़ हुई थी।

पहला क़दम

ख़ुदा नबियों की मार्फ़त लोगों से हमकलाम हुआ कि हम तौबा करें, उस की तरफ़ रुजू लाएं, उस की फ़रमांबर्दारी करें और उस के अहकाम की पैरवी करें जो तौरेत और नबियों की मार्फ़त दिए गए। (इब्रानियों 1:1)

दूसरा क़दम

ख़ुदा का कलाम येसू मसीह में मुजस्सम हुआ जो “ज़िंदगी का कलाम है” और जिसे बाप का इकलौता बेटा कहा गया है। (इब्रानियों 1:1; यूहन्ना 1:1,14; 1 यूहन्ना 1:1)

तीसरा क़दम

ख़ुदा अपने पाक रूह की बदौलत इंसान की राहनुमाई करता और मदद फ़राहम करता है ताकि वो बाइबल मुक़द्दस में दीए गए इलाही अहकाम पर अमल कर सके। अब जो इलाही क़वानीन और ख़ुदा के ज़बरदस्त वादों को क़ुबूल करते हैं उन्हें वो अबदी ज़िंदगी अता करता है।

ये समझना इंतिहाई ज़रूरी है :-

“क्योंकि ख़ुदा ने दुनिया से ऐसी मुहब्बत रखी कि उस ने अपना इकलौता बेटा बख़्श दिया ताकि जो कोई उस पर ईमान लाए हलाक ना हो बल्कि हमेशा की ज़िंदगी पाए।” (यूहन्ना 3:16)

“जो ईमान लाए और बपतिस्मा ले वो नजात पाएगा और जो ईमान ना लाए वो मुजरिम ठहराया जायेगा।” (मर्क़ुस 16:16)

येसू ने फ़रमाया :-

“मैं इसलिए आया कि वो ज़िंदगी पाएं और कस्रत से पाएं।” (यूहन्ना 10:10)

“देखो मैं दुनिया के आख़िर तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती 28:20)

फ़रिश्तों ने येसू के शागिर्दों से कहा :-

“ऐ गलीली मर्दो तुम क्यों खड़े आस्मान की तरफ़ देखते हो? यही येसू जो तुम्हारे पास से आस्मान पर उठाया गया है इसी तरह फिर आएगा जिस तरह तुम ने उसे आस्मान पर जाते देखा है।” (आमाल 1:11)

“ऐ गलीली मर्दो तुम क्यों खड़े आस्मान की तरफ़ देखते हो? यही येसू जो तुम्हारे पास से आस्मान पर उठाया गया है इसी तरह फिर आएगा जिस तरह तुम ने उसे आस्मान पर जाते देखा है।” (आमाल 1:11)

“उस वक़्त लोग इब्ने-आदम को क़ुद्रत और बड़े जलाल के साथ बादल में आते देखेंगे।” (लूक़ा 21:27)

येसू मसीह की दूसरी आमद का ज़िक्र सिर्फ़ बाइबल मुक़द्दस में बयान नहीं किया गया बल्कि इस सच्चाई का इज़्हार अहादीस नब्वी से भी होता है जहां हम रास्त मुंसिफ़ की हैसियत से येसू की दूसरी आमद के बारे में पढ़ सकते हैं।

तीन ऐसे वाअदे हैं जिन की ख़ुदा के फ़रज़न्दों के लिए ज़मानत दी गई है :-

(अ) आस्मान पर हमेशा की ज़िंदगी आदम व हव्वा की इब्तिदाई ज़िंदगी से भी कहीं शानदार और जलाली होगी। हमेशा की ज़िंदगी और आस्मानी नजात हासिल करने के लिए येसू मसीह पर ईमान लाने, उस के वफ़ादार शागिर्द बनने और फिर बपतिस्मा पाने की ज़रूरत है।

(ब) भरपूर ज़िंदगी जिसमें रुहानी व जिस्मानी बरकात शामिल हैं। मसीह के पैरोकारों को किसी चीज़ की कमी ना होगी बल्कि हमेशा उस की कस्रत की मामूरी का तजुर्बा करेंगे।

(ज) ख़ुदा का पाक रूह हर उस फ़र्द में हमेशा हमेशा बसेरा करेगा जो मसीह का इक़रार करता और उस की पैरवी वफ़ादारी से करता है।

(ए) अज़ीज़ क़ारी इस वजह से मैं आपको ये मश्वरा देता हूँ :-

अब मौक़ा है कि आप फ़ैसला कीजिए। वाअदा की गई और तैयार शुदा नजात को क़ुबूल करने का फ़ैसला करें। येसू मसीह को क़ुबूल करें कि आपके दिल पर हुक्मरानी करे, यूं आपकी नई ज़िंदगी उस में महफ़ूज़ होगी और आप उस में आराम व चैन पाएँगे। तब हम अबदीयत में ख़ुदा के साथ सुकूनत करेंगे।

इस मौक़े को नज़र-अंदाज ना करें। कल तक का इंतज़ार ना करें। आज ही फ़ैसला कीजिएगा, मालूम नहीं कि कब तौबा का दरवाज़ा बंद हो जाये और कहीं आपको अबदी नदामत और सज़ा का सामना ना करना पड़े। सच्चे दिल से मसीह के पास आएं और उसे अपने ख़ुदावन्द और शख़्सी नजातदिहंदा के तौर पर क़ुबूल करें ताकि उस ज़िंदगी बख़्श दरवाज़े में दाख़िल हो जाएं जो अबदी ज़िंदगी में ले जाता है।

“और किसी दूसरे के वसीले से नजात नहीं क्योंकि आस्मान के तले आदमीयों को कोई दूसरा नाम नहीं बख़्शा गया जिस के वसीले से हम नजात पा सकें।” (आमाल 4:12)

येसू मसीह में आपका ख़ैरख़्वाह

हमरान अम्बरी

सवालात

हयात-ए-जाविदानी की इलाही पेशकश के सवालात हल कीजिए। अज़ीज़ क़ारी, अगर आपने इस सरगुज़श्त का ध्यान से मुतालआ किया है तो आप ज़ेल में दिए गए सवालात के जवाबात देने के क़ाबिल होंगे :-

1. क़ुरआन की वो कलीदी आयत लिखें जो ज़ाहिर करती है कि उस वक़्त तौरेत और इन्जील वही थीं जो अब बाइबल मुक़द्दस में मौजूद हैं।

2. वो कौनसे चार क़ुरआनी हवालेजात हैं जो ये बयान करते हैं कि तौरेत और इन्जील ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ सच्चाई हैं?

3. मूसा और मसीह के दर्मियान कौन सी लासानी और ग़ैर-मामूली यकसानियत पाई जाती है?

4. वो कौन से ख़ास निशान हैं जो दिखाते हैं कि इस्तिस्ना 18 बाब की बेनज़ीर पेशीनगोई इशारा करती है कि येसू मसीह ख़ुदा का मुजस्सम कलाम है?

5. जब हमरान अम्बरी ने जान लिया कि बाइबल मुक़द्दस ख़ुदा का सच्चा कलाम है तो तब भी वो मसीह को क़ुबूल करने के लिए तैयार ना था। क्यों?

6. क्यों वो मुकम्मल तौर पर मसीही वाइज़ीन और मुबश्शिरों के जवाबात और वज़ाहतें क़ुबूल ना कर सका था?

7. हमरान अम्बरी ने इन तीन रुकावटों पर कैसे क़ाबू पाया जो उस की राह में हाइल थीं?

8. ख़ुदा ने इन रुकावटों के दूर करने में हमरान अम्बरी की कैसे मदद की?

9. येसू को “ख़ुदावन्द” क्यों कहते हैं?

10. ख़ुदा की वहदानियत की बाबत हमरान अम्बरी का अक़ीदा मसीही हो जाने के बाद भी क्यों ना बदले जाने की ज़रूरत थी?

11. ख़ुदा की वहदानियत के अक़ीदे को कैसे मसीही ताअलीम आला दर्जा देती है?

12. एक से ज़ाइद ख़ुदाओं को मानने (शिर्क) का क्या मतलब है?

13. क्यों मसीहियों को एक से ज़ाइद ख़ुदाओं को मानने वाले नहीं गिरदाना जा सकता?

14. ख़ुदा की बाबत तस्लीस की हक़ीक़त क्यों मुसलमानों के लिए एक रुकावट है?

15. मसीही नुक्ता-ए-नज़र से पाक तस्लीस में यगानगत को वाज़ेह करें।

16. हम कैसे निशानदेही कर सकते हैं कि येसू मसीह हक़ीक़त में सलीब पर मस्लूब हुए थे?

17. हम कैसे जान सकते हैं कि येसू मुर्दों में से ज़िंदा हुए?

17. हम कैसे जान सकते हैं कि येसू मुर्दों में से ज़िंदा हुए?

18. वो कौन सी मुख़्तलिफ़ अम्वात हैं जिन से हम छुटकारा पाएँगे?

19. येसू की सलीब के माअना की वज़ाहत करें।

20. यसअयाह 53:4-12 को पाँच मर्तबा लिखें और ज़बानी याद करें।

21. जो तल्वार खींचते हैं उन सब के साथ क्या होगा?

22. क्या क़ुरआन येसू के सऊद-ए-आस्मानी पर एतराज़ करता है?

23. येसू जब इस दुनिया में दुबारा आएगा तो उस वक़्त क्या करेगा?

24. बाइबल मुक़द्दस को झुटलाने की ख़ातिर किस तरह क़ुरआन की बाअज़ आयात का ग़लत इस्तिमाल किया गया है?

25. क्या क़ुरआन में ऐसी कोई भी एक आयत है जो साफ़ तौर पर बयान करती हो कि बाइबल मुक़द्दस में किसी भी तरह की तब्दीली की गई है?

26. येसू की पैरवी में कौन सी मुश्किलात और दुखों का सामना हो सकता है?

27. जब हमरान अम्बरी और उन के घराने ने अपनी अपनी ज़िंदगी येसू के सुपुर्द की तो उन में कौन सी तब्दीलीयां आईं?

28. वो कौनसे चार वाअदे हैं जिन का ख़ुदा के फ़रज़न्दों की ज़िंदगी में पूरा होना यक़ीनी है?

29. यूहन्ना 3:16 और आमाल 4:12 को पाँच मर्तबा लिखें और ज़बानी याद करें।

30. क्या आपने ज़िंदा मसीह की पैरवी करने का फ़ैसला किया है?

“और हमेशा की ज़िंदगी ये है कि वो तुझ ख़ुदा-ए-वाहिद और बरहक़ को और येसू मसीह को जिसे तू ने भेजा है जानें।” (यूहन्ना 17:3)