1- इस्लाम में मसीह की हैसियत

सय्यदना मसीह का इस्मे-गिरामी और आप की सिफ़ात व तालीमात का कोई ना कोई पहलू क़ुरआन में क़रीबन तिरान्वें (93) मर्तबा आयात में मज़्कूर हुआ है। ये तादाद कम नहीं है, इसी से आपकी एहमीय्यत वाज़ेह है। चुनान्चे इस्लाम में जब कभी भी हज़रत मसीह के बारे में कुछ ग़ौर व फ़िक्र करना होता है तो इन्ही आयात को बुनियाद बनाया जाता है।

बारहा ये भी देखा गया है कि मुस्लिम मुफ़क्करों और मुफ़स्सिरों ने बाइबल मुक़द्दस की आयतों को इन क़ुरआनी आयात की तफ़्सीर के लिए माख़ज़ और बुनियाद बनाया है। ताहम उन्हों ने बाइबिल मुक़द्दस में से वही इबारतें तस्लीम की हैं जो मुसल्लम ख़यालात से मेल खाती हैं और ऐसी सारी कोशिशों को ठुकरा देते हैं जिनसे किसी तरह का क़ुरआन और इन्जील के दर्मियान तताबुक़ दिखाया जा सकता है, और इस की बड़ी वजह सिवा इस के और कोई नहीं है कि दोनों किताबों में वारिद बयानात और बुनियादी अक़ाइद में फ़र्क़ पाया जाता है।

अब चूँकि ऐसे लोगों की दिलचस्पी सिर्फ इस मुआमले में रहती है कि सिर्फ क़ुरआन शरीफ़ के बयान की ही सेहत पर भरोसा किया जाये और बाक़ी दीगर माख़ज़ को रद्द कर दिया जाये। लिहाज़ा इन्जील की तहरीफ़ का शोशा हर उस मौक़े पर तैयार रहता है जब किताब-ए-मुक़द्दस का मतन क़ुरआनी मतन से टकराता है।

मैं इस मज़्मून में क़ुरआनी फ़िक्र को उस के तद्रीजी इर्तिक़ा में दिखाने की कोशिश करूँगा कि जब वो मसीही तालीमात की मुख़ालिफ़त करती है।

इस इब्तिदाई मरहले पर इतना बताता चलूं कि जो भी क़ुरआन के मतन को समझने कोशिश करेगा, उसे ये बात ज़रूर नज़र आएगी कि मक्का में नाज़िल होने वाली आयतों में मसीह की ताज़ीम और मसीहिय्यत, मसीह के शागिर्दों, मसीही उलमा और राहिबों का पास व लिहाज़ मिलता है।

लेकिन नबी इस्लाम के मदीना के आख़िरी अय्याम में क़ुरआनी आयात काफ़ी सख़्त होती गईं और मसीहियों के ख़िलाफ़ मुख़ालिफ़त उभरती चली गई। हत्ता कि मसीह की उलूहियत का तो क़तई रद्द और खुल्लम खुल्ला इन्कार नज़र आता है। सबब यहां भी मह्ज़ अक़ीदा ही है क्योंकि आँहज़रत ने ये देखा कि तस्लीस-फ़ील-तौहीद का अक़ीदा और वहदानियत का अक़ीदा बाहम टकराता है।

नीज़ ये कि तौहीद की मुनादी और वहदानियत की दावत देना ही इस्लाम का मिशन था। कई क़ुरआनी आयात में अक़ीदा सालूस के इस मौज़ू पर नुक्ता-चीनी की है, हत्ता कि कई आयतों में नसारा यानी अरब के मसीहियों पर शिर्क का इल्ज़ाम भी लगाया है।

शायद आँहज़रत को इस सालूस वाले अक़ीदे ने परेशान कर दिया था जो बिद्अती नसारा से माख़ूज़ था और बिद्अती सर-ज़मीन अरब में हर तरफ़ फैले हुए थे, ये तस्लीस मुरक्कब थी अल्लाह से, उस की साहिबा मर्यम से और उन के बेटे ईसा से।

याद रहे सच्चे मसीहियों ने ऐसे अक़ीदे का कभी भी इज़्हार नहीं किया और ना माना है। लेकिन मुसलमानों ने इस से एक बड़ा तनाज़ा खड़ा कर दिया और उसे ऐसे पकड़े हुए हैं कि छोड़ने का नाम नहीं लेते, हालाँकि मसीहियों ने मौक़ा ब मौक़ा हमेशा वज़ाहत की कोशिश की है।

साथ ही साथ एक और भी मसअला है जिसकी जड़ बड़ी गहिरी है और उस की बुनियाद एक आयत-ए-क़ुरआनिया है :-

“और (वो वक़्त भी याद करो) जब मर्यम के बेटे ईसा ने कहा कि ऐ बनी-इस्राईल मैं तुम्हारे पास ख़ुदा का भेजा हुआ आया हूँ (और) जो (किताब) मुझसे पहले आ चुकी है (यानी) तौरात उस की तस्दीक़ करता हूँ और एक पैग़म्बर जो मेरे बाद आएँगे जिनका नाम अहमद होगा उन की बशारत सुनाता हूँ। (फिर) जब वो उन लोगों के पास खुली निशानीयां लेकर आए तो कहने लगे कि ये तो सरीह जादू है।” (सूरह अल-सफ़ 61:6)

अबू जाफ़र अल-तिबरी से रिवायत है कि उस ने मुआवीया बिन सालिह से सुना और उस ने सईद बिन सुवेद से सुना और उस ने अल-आअला बिन हलाल अल-सलमी से सुना और उस ने अरबाज़ बिन सारिया से सुना, “मैंने रसूल-अल्लाह को कहते सुना “अल्लाह के नज़्दीक मैं ख़ातिम-उन्नबीय्यीन मकतूब व मुक़र्रर हूँ उस वक़्त से कि आदम सनी हुई मिट्टी की शक्ल में थे। और मैं तुमको पहले ये भी बता दूं कि मैं अपने बाप इब्राहिम की दुआ हूँ, और मैं ईसा की बशारत हूँ, अपनी वालिदा की रोया हूँ, और जैसा कि अम्बिया की माँ ने रोया देखी वैसी ही रोया मेरी माँ ने उस वक़्त देखी जब उन्हों ने मुझे जन्म दिया और वो ये थी कि एक नूर उन में से ऐसा निकला जिससे शाम के महलात रोशन हो गए।”

मुस्लिम हज़रात इस हदीस के बयान को लफ़्ज़ी तौर पर लेते हैं और जब देखते हैं कि इन्जील जनाब मुहम्मद के बारे में किसी तरह की निशानदेही नहीं करती और ना ही मसीह ने कोई इस बारे में बात की है तो फ़ौरन कह देते हैं कि इन्जील मुहर्रिफ़ है।

फिर एक तीसरी मुश्किल है जिसे मसीहियों ने माना है यानी मसीह का दुख व आलाम उठा कर सलीब पर चढ़ाया जाना, जो कि बुनियादी मसीही अक़ीदा है और इन्जील मुक़द्दस की तालीम पर मबनी है। इस वाक़िया सलीब की क़ुरआन ने नफ़ी की है क्योंकि ये यहूदीयों के बारे में कहता है :-

“और ये कहने के सबब कि हमने मर्यम के बेटे ईसा मसीह को जो ख़ुदा के पैग़म्बर (कहलाते) थे क़त्ल कर दिया है (ख़ुदा ने उन को मलऊन कर दिया) और उन्हों ने ईसा को क़त्ल नहीं किया और ना उन्हें सूली पर चढ़ाया बल्कि उन को उन की सी सूरत मालूम हुई। और जो लोग उन के बारे में इख़्तिलाफ़ करते हैं वो उन के हाल से शक में पड़े हुए हैं। और पैरवी ज़न (गुमान) के सिवा उन को उस का मुतलक़ इल्म नहीं। और उन्हों ने ईसा को यक़ीनन क़त्ल नहीं किया। बल्कि ख़ुदा ने उन को अपनी तरफ़ उठा लिया। और ख़ुदा ग़ालिब (और) हिक्मत वाला है। (सूरह अल-निसा 4:157-158)

चौथी दिक्कत मसीहियों का अक़ीदा “इब्ने-अल्लाह” है जिसे क़ुरआन ने रद्द किया है। इस मौज़ू पर हम आगे चल कर ग़ौर करेंगे और फुक़हा व उलमा की आरा (राए) और तअलिक़ात भी तब ही पेश कर देंगे।

2- मसीह की सिफ़ात मुमय्यज़ा

बुनियादी मसीही अक़ाइद की मुख़ालिफ़त के बावजूद क़ुरआन ने मसीह की आला सिफ़ात व करामात का एतराफ़ किया है जो उन्हें बशरियत की सतह से ऊपर दर्जा देते हैं। ये मुम्ताज़ औसाफ़ आपकी ज़िंदगी, किरदार, पैग़ाम और शख़्सियत में ज़ाहिर हुए। जब हम इन औसाफ़ का मुवाज़ना क़ुरआन में मज़्कूर दीगर अम्बिया और रसूलों से करते हैं तो हमें आगाही होती है कि ये तो ऐसे हैं कि किसी नबी को भी नहीं दिए गए, हत्ता कि जनाब मुहम्मद को भी नहीं।

अलिफ़ - उनका अजीब व ग़रीब और लामिसाल हमल

हम क़ुरआन में पढ़ते हैं :-

“और इमरान की बेटी मर्यम की जिन्हों ने अपनी शर्मगाह को महफ़ूज़ रखा। तो हमने उस में अपनी रूह फूंक दी और वो अपने परवरदिगार के कलाम और उस की किताबों को बरहक़ समझती थीं और फ़रमांबर्दारों में से थीं।” (सूरह अल-तहरीम 66:12, और सूरह अल-अम्बिया 21:91)

अल-फ़ख़्र अल-राज़ी कहते हैं कि “نفخنا فیہ من روحنا” का मतलब है हम (अल्लाह) ने ईसा में अपनी रूह में से फूँका क्योंकि ईसा मर्यम के शिकम में थे। किस ने फूंक मारी इस मुआमले में मुफ़स्सिरों में इख़्तिलाफ़ है, किसी ने “من روحنا” की बुनियाद पर ये कहा कि फूँकने वाला अल्लाह था। एक गिरोह का कहना ये है कि “نافخ” (फूँकने वाला) जिब्रील थे क्योंकि उन के नज़्दीक हज़रत जिब्रील के क़ौल “لاھب لک غلاماً زکیاً” (कि तुम्हें पाकीज़ा लड़का बख्शूं) से यही ज़ाहिर है।

मुफ़स्सिरीन में इस नफ़ख़ (نفخ) की कैफ़ीयत में इख़्तिलाफ़ है, और चार क़िस्म की आरा (राय) हैं :-

(1) वह्ब का कहना ये है कि जिब्रील ने मर्यम के गिरेबान में फूंक मारी तो वो मर्यम के रहम (पेट) तक जा पहुंची।

(2) एक राय ये है कि दामन में फूँका तो रहम (पेट) में वो हामिला हुईं।

(3) अल-सदी का कहना ये है कि आसतीन को पकड़ कर दरअ (درع) के पहलू में फूंका तो ये फूंक सीने तक जा पहुंची तो वो हामिला हो गईं। तब उन की बहन यानी ज़करीया की बीवी उन के पास आईं और उन्हें ये मालूम हो गया कि हामिला है तो पूछा, तब मर्यम ने सारा माजरा कह सुनाया। इस पर ज़करीया की बीवी बोल उठीं “जो मेरे पेट में है” (हज़रत यहया) उसे मैं उस को जो तेरे पेट में है (ईसा) सज्दा करते हुए महसूस करती हैं। अल-सदी कहते हैं यही “مصدقاً بکلمة من اللہ”का मतलब है।

(4) नफ़ख़ (نفخ) मर्यम के मुँह में फूंका गया था जो शिकम व रहम (पेट) तक जा पहुंचा तो वो हामिला हो गईं।

इब्ने अब्बास से मर्वी है कि “जिब्रील ने अपनी उंगलीयों से कपड़ा हटाया और उस में फूंक दिया। और कहा “अह्सनत” (احصنت)का मतलब है कि मर्यम ने अपनी इफ़्फ़त व आबरू की ख़ूब हिफ़ाज़त की थी और “महसिन” (محصنة) का मतलब है अफ़ीफ़ा (عفیفہ) यानी पाक दामन, “و نفخنا فیہ” में “रूहना” (روحنا) में “फीहा” (فیہ) से मुराद “فیہ فرج ثوبہا” है यानी चाक-ए-गिरेबाँ में हमने फूंक मारी। फिर ये भी राय दी है कि इस में हम (अल्लाह) ने वो चीज़ पैदा की जो उस (रहम मर्यम) में ज़ाहिर हुई।

मुक़ातिल ने अल्फ़ाज़ “وصدقت بکلمات ربھا” की तफ़्सीर करते हुए कहा है, “यानी ईसा पर” जिसकी क़िरआत भी ताईद करती है जिसमें “کلمات ربھا” के बजाय “بِکَلِمٰتِ رَبِّھَا” है और ईसा के लिए कलिमतुल्लाह (کلمة اللہ) तो क़ुरआन में कई जगह आया है।

ब - मसीह की अजीब व ग़रीब विलादत

क़ुरआन में उस गुफ़्तगु का ज़िक्र मिलता है जो हज़रत मर्यम और ख़ुदा के फ़रिश्ते के दर्मियान हुई जब वो मसीह की विलादत की ख़ुशख़बरी देने के लिए आ मौजूद हुआ।

“उन्हों (जिब्रील) ने कहा मैं तो तुम्हारे परवरदिगार का भेजा हुआ (यानी फ़रिश्ता) हूँ (और इसलिए आया हूँ) कि तुम्हें पाकीज़ा लड़का बख्शूं। मर्यम ने कहा कि मेरे हाँ लड़का क्योंकर होगा मुझे किसी बशर (इंसान) ने छुवा तक नहीं और मैं बदकार भी नहीं हूँ। (फ़रिश्ते ने) कहा कि यूंही (होगा) तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रमाया कि ये मुझे आसान है और (मैं उसे इसी तरीक़ पर पैदा करूँगा) ता कि उस को लोगों के लिए अपनी तरफ़ से निशानी और (ज़रीया) रहमत (व मेहरबानी) बनाऊं और ये काम मुक़र्रर हो चुका है।” (सूरह मर्यम 19:19-21)

अल-बेज़ावी ने येसू की मोअजज़ाना पैदाईश पर तफ़्सीर करते हुए ये लिखा “इस इम्तियाज़ ने मसीह को दूसरे बनी-नूअ इंसान से और सारे नबियों से मुम्ताज़ कर दिया है क्योंकि वो बग़ैर किसी इंसानी रिश्ते और मेल-जोल के पैदा हुए थे।”

लेकिन अल-फ़ख़्र अल-राज़ी ने इस मौज़ू पर ये राय ज़ाहिर की है :-

(1) अल्फ़ाज़ “لِاَھَبَ لَکِ غُلٰمًا زَکِیًّا” के बारे में उस ने कहा “पाकीज़ा” के तीन मतलब हैं पहला, यानी वो गुनाह के बग़ैर है दूसरा, वो तज़्किया में बढ़ते गए जैसे वो शख़्स जो बेगुनाह हो उस के हक़ में ये लफ़्ज़ बोला जाता है और वो आला क़िस्म की खेती की पैदावार जो हर तरह से पाक हो और लहला रही हो उसे ज़की (زکی) कहा जाता है। तीसरा, वो मलामत से बाला पाक थे।

(2) “وَلِنَجعَلَہٓ اٰیَةً لِّلنَّاسِ وَ رَحمَةً” का मतलब है कि उस की पैदाईश तमाम बनी-नूअ इंसान के लिए एक निशान है क्योंकि बग़ैर वालिद के पैदा हुए। “رَحمَةً مِّنَّا” का मतलब ये है कि तमाम बनी-नूअ इंसान उन से बरकत हासिल करेंगे, नीज़ ये कि मसीह के सिदक़ के दलाईल और ज़्यादा वाज़ेह हो जाऐंगे और आपके अक़्वाल और आपकी बातें ज़्यादा लाइक-ए-क़ुबूल बन जाएँगी।

इमाम अबू-जाफ़र अल-तिबरी ने “पाकीज़ा लड़का” की तफ़्सीर में लिखा है :-

“الغلام الزکی ھو الطاہر من الذنوب? ” मुहावरे में लफ़्ज़ ज़की (زکی) उस लड़के के लिए बोला जाता है जो गुनाह से बरी, मासूम व पाक हो। ये भी अरब इस्तिमाल करते हैं “غلام زاکِ و زکی و عالِ وعلی” यानी ख़ालिस व पाक, बेमिसाल व बुलंद पाया लड़का।

ज - मसीह का ख़ुदा की तरफ़ से मुबारक होना

हम सूरह मर्यम 19:31 में ये अल्फ़ाज़ पढ़ते हैं :-

“और मैं जहां हूँ (और जिस हाल में हूँ) मुझे साहिब-ए-बरकत किया है।”

अल-तिबरी ने यूनुस बिन अब्द आला और सुफ़ियान की रिवायत की बुनियाद पर कहा है कि “وَّ جَعَلَنِی مُبٰرَکًا” उस ने मुझे ख़ैर का मुअल्लिम बना कर भेजा है।”

सुलेमान बिन अब्दुल जब्बार ने मुहम्मद बिन यज़ीद बिन ख़नीस मख़्ज़ूमी से रिवायत की है “मैंने इब्ने अल-वरद को जो बनी मख़्ज़ूम के ग़ुलाम थे ये कहते सुना “एक आलिम की अपने से ज़्यादा बड़े आलिम के साथ मुलाक़ात हुई और सलाम के बाद उस से कहा : मेरे इल्म से क्या ज़ाहिर होना चाहीए? उस ने जवाब दिया, “الامربالمعروف و النھی عن المنکر” (भलाई करने की ज़्यादा से ज़्यादा तालीम देना और बुराई से बचना) क्योंकि यही अल्लाह का दीन है जो उस ने अपने नबियों के ज़रीये अपने बंदों की तरफ़ भेजा है।”

फुक़हा का इस बात पर इत्तिफ़ाक़ है कि हज़रत ईसा जहां भी हों मुबारक होंगे यानी उन की ज़ात बाइस-ए-बरकत है।

द - मसीह को रूहुल-क़ुदुस की मदद हासिल थी

सूरह अल-बक़रह 2:253 में लिखा है :-

“और ईसा इब्ने मरियम को हमने खुली हुई निशानीयां अता कीं। और रूहुल-क़ुदुस से उन को मदद दी।”

इब्ने अब्बास कहते हैं “रूहुल-क़ुदुस वो नाम है जिसके वसीले ईसा मुर्दे ज़िंदा करते थे।”

अबू मुस्लिम का कहना है कि “रूहुल-क़ुदुस जिसके ज़रीये उन्हें ताईद व मदद हासिल थी ग़ालिबन वो ताहिर रूह थी जिसे अल्लाह तआला ने उन में फूंक दिया था और जिसके ज़रीये से अल्लाह ने उन्हें उन सबसे मुम्ताज़ बना दिया जिन्हें उस ने आम तरीक़े से यानी मर्द व औरत के नुतफ़े के इज्तिमा से ख़ल्क़ किया था।”

सूरह अल-निसा 4:171 में लिखा है :-

“मसीह मर्यम के बेटे ईसा ख़ुदा के रसूल और उस का कलिमा थे जो उस ने मर्यम की तरफ़ भेजा था और उस की तरफ़ से एक रूह थे। तो ख़ुदा और उस के रसूलों पर ईमान लाओ।”

इस आयत का निचोड़ ये है कि अल्लाह ने ईसा को उन्ही की ज़ात में एक रूह अता कर दी थी जो उन की शख़्सियत में उन की मदद करती रहती थी। लेकिन उलमा इस्लाम रूहुल-क़ुदुस जिससे मसीह को मदद व ताईद हासिल थी की तफ़्सीर में मुत्तफ़िक़ नहीं हैं।

इब्ने अनस का कहना है कि “रूहुल-क़ुदुस वो रूह थी जो मसीह में फूंक दी गई थी, अल्लाह ने अपनी ज़ात के साथ इसलिए उसे मुताल्लिक़ किया है क्योंकि मसीह की तकरीम व तख़्सीस मक़्सूद थी। “अल-क़ूद्दू” अल्लाह है और क़ौल “فنفخنا فیہ من روحنا” इस की निशानदेही करता है।

अल-सदी और कअब की राय ये है कि “रूहुल-क़ुदुस जिब्रील हैं, और जिब्रील की मसीह की ताईद इस तरह पर थी कि वो आपके रफ़ीक़ थे, वही मदद करते और जहां-जहां वो जाते थे आपका साथ नहीं छोड़ते थे और ये कैफ़ीयत उस वक़्त तक रही ता आंका (यहाँ तक कि) मसीह आस्मान पर उठा लिए गए।

और इब्ने जुबैर ने इस बारे में कहा है “रूहुल-क़ुदुस अल्लाह का इस्म-ए-आज़म है जिससे मुर्दे ज़िंदा कर दिया करते थे।”

अलक़ा शानी ने कहा “अल्लाह ने जिस्मे ईसा को जिस्मानी नापाकियों और कदूरतों से पाक किया और आप एक रुहानी व मिसाली बदन में रूह मुतजसद थे। अल्लाह ने मसीह की रूह को माहौल और माद्दी असरात और समाजी असरात से पाक व साफ़ बनाए रखा ताकि रूहुल-क़ुदुस की ताईद व मुआवनत मिलती रहे जिसकी सूरत पर आप ढाल दिए गए थे।”

इब्ने अता का कहना है कि “उम्दा तरीन पौदे वो हैं जिनके फल वैसे ही हों जैसे ईसा रूह-अल्लाह।”

और इब्ने अब्बास ने ये कहा कि “ये रूह वो है जो फूंकी गई थी, और अल-क़ूदुस से मुराद ख़ुद अल्लाह है, सो वो रूह-अल्लाह हैं।”

ह - मसीह की वफ़ात के वक़्त उनका सऊद

हम सूरह आले इमरान 3:55 में पढ़ते हैं :-

اِذقَالَ اللّٰہُ یٰعِیسٰٓی اِنِّی مُتَوَفِّیکَ وَرَافِعُکَ اِلَیَّ وَمُطَھِّرُکَ مِنَ الَّذِینَ کَفَرُو

“उस वक़्त ख़ुदा ने फ़रमाया कि ऐ ईसा मैं तुझे वफ़ात देने और अपनी तरफ़ उठाने वाला हूँ और काफ़िरों से तुझे पाक भी करने जा रहा हूँ।”

इमाम अल-फ़ख़्र अल-राज़ी का कहना है कि “इस आयत की कई वज़ाहतें हैं जिनमें से हम दो का ज़िक्र कर रहे हैं :-

(1) “رَافِعُکَ اِلَیّ” (अपनी तरफ़ उठाने वाला हूँ) का मतलब है कि “الی محلّ کرامتی” (अपने मुक़ाम इज़्ज़त की जगह पर रखूँगा) ये रिफ़अत व अज़मत उन की शान के लिए, और ये आपके क़ौल से मिलता-जुलता है जो इन्जील से मुस्तआर लिया गया है कि “मैं अपने रब की तरफ़ जा रहा हूँ।”

(2) अल्फ़ाज़ “رَافِعُکَ اِلَیّ” की तावील ये है कि अल्लाह उन्हें एक ऐसी जगह उठा कर ले जाने वाला था जहां उन पर ना किसी का ज़ोर चलेगा ना हुक्म, क्योंकि ज़मीन पर इंसान एक दूसरे पर तरह तरह के हुक्म और फ़तवे लगाते हैं, लेकिन आस्मान पर तो दर-हक़ीक़त अल्लाह ही का हुक्म चलता है।

व - मसीह की रिसालत व सीरत की इस्मत

कुछ लोग ये ख़याल करते हैं कि रिसालत व पैग़म्बरी में बेगुनाही या इस्मत, चाल चलन या सीरत से वाबस्ता है। लेकिन ये ख़याल इसलिए बेइसास (बेबुनियाद) है क्योंकि कई क़ुरआनी आयात इस की तर्दीद करती हैं। हम बहुत सी ऐसी आयतें पढ़ते हैं जो ये बताती हैं कि अम्बिया किराम की ज़िंदगीयां ना क़ब्ल रिसालत और ना बाद रिसालत, बेऐब व बे-मलामत थीं।

लेकिन क़ुरआन में सिर्फ मसीह की ज़ात मुबारका ऐसी है जो रिसालत में और सीरत के लिहाज़ से भी पाक व बेऐब नज़र आती है। इस बात की गवाही फ़रिश्ते ने भी दी जब उन की वालिदा से कहा “मैं तो तुम्हारे परवरदिगार का भेजा हुआ हूँ कि तुम्हें पाकीज़ा लड़का बख्शूं।” अल-बेज़ावी ने लफ़्ज़ “ज़की” (زَکِی) की तफ़्सीर के तहत लिखा है कि ईसा साल ब साल आला और बुलंद होते चले गए।”

ज़ - मसीह की लासानी रिसालत के निशानात

जिस तरह से ताईद रूहुल-क़ुदुस के सबब मसीह की रिसालत मुन्फ़रिद (बेमिसाल) व लामिसाल थी वैसे ही आपके मोअजज़ात की गौना गोनी ऐसी थी कि किसी और नबी या रसूल में नहीं मिलती। क़ुरआन में हम पढ़ते हैं “और ईसा इब्ने-मरियम को हमने खुली हुई निशानीयां अता कीं। और रूहुल-क़ुदुस से उन को मदद दी।” (सूरह अल-बक़रह 2:253) ये निशानात मोअजज़ात थे।

अल-बेज़ावी ने कहा कि “अल्लाह ने उन के सपुर्द ख़ास ख़िदमत की और उन के मोअजज़ात को दीगर रसुल के मोअजज़ात पर तफ़ज़ील का सबब ठहराया। वो मोअजज़ात बड़े नुमायां और बेहद अज़ीम क़िस्म के थे, तादाद की कस्रत भी ऐसी थी कि किसी और नबी में ना थी।

ह - मसीह का इल्म-ए-ग़ैब

सूरह अल-ज़ुख़रुफ़ 43:61,57 में लिखा है :-

“और जब इब्ने मरियम को बतौर मिस्ल पेश किया गया तो तुम्हारी क़ौम के लोग इस से चिल्ला उठे.... और वो क़ियामत की निशानी हैं।”

अल-जलालैन “وَاِنَّہ لَعِلم’‘ لِّلسَّاعَةِ” की तफ़्सीर करते हुए लिखते हैं “ईसा क़ियामत की घड़ी का इल्म थे, वो जानते हैं कि ये कब आएगी।” लोग उमूमन ख़याल करते हैं कि अल्लाह अपनी मख़्लूक़ से मुन्फ़रिद (बेमिसाल) है कि उसी को फ़क़त क़ियामत की घड़ी का इल्म है, इस ख़याल की रोशनी में ईसा के इस इम्तियाज़ ख़ुसूसी का पता चलता है जो क़ुरआन आपको देता है।

त - मसीह का अल्लाह से तक़र्रुब और शफ़ी होना

क़ुरआन शफ़ाअत के इख़्तियार को अल्लाह तक महदूद करता है जब कहता है :-

“शफ़ाअत तो सब ख़ुदा ही के इख़्तियार में है।” (सूरह अल-ज़ुमर 39:44)

और फिर क़ुरआन की एक आयत में शफ़ाअत को मसीह का एक इम्तियाज़ ख़ुसूसी बयान किया गया है :-

“(वो वक़्त भी याद करने के लायक़ है) जब फ़रिश्तों ने (मर्यम से) कहा कि मर्यम ख़ुदा तुमको अपनी तरफ़ से एक फ़ैज़ की बशारत देता है जिसका नाम मसीह (और मशहूर) ईसा इब्ने-मरियम होगा (और जो दुनिया और आख़िरत में बाआबरू और (ख़ुदा के ख़ासों में होगा।” (सूरह आले इमरान 3:45)

अल-जलालैन ने इस आयत की तफ़्सीर करते हुए कहा “وجیھا” दो एतबारात का हामिल है, दुनिया में आपकी नबुव्वत और आख़िरत में अल्लाह की नज़दीकी व तक़र्रुब में आप का शफ़ाअत के इख्तियारात रखना।”

अल-तिबरी ने इब्ने हमीद और सलमह और इब्ने इस्हाक़ और मुहम्मद बिन जाफ़र के सिलसिले का हवाला देते हुए कहा “وَجِیھًا فِی الدُّنیَا” का मतलब है इज़्ज़त व वक़ार का हामिल और दुनिया में अल्लाह की क़ुर्बत (नज़दिकी) में ज़िंदगी बसर करना। और अल्फ़ाज़ “وَالاٰخِرَةِ وَمِنَ المُقَرَّبِین” का मतलब है कि मसीह उन में होंगे जिन्हें अल्लाह तआला रोज़-ए-क़यामत अपनी क़ुर्बत (नज़दिकी) अता करेगा और अपने जवार में जगह देगा।

अल-राज़ी ने ईसा के बारे में लिखा है “वो दुनिया में इज़्ज़त व वक़ार के हामिल इसलिए थे कि आपकी दुआएं मुस्तजाब थीं क़ुबूल कर ली जाती थी, आपने मुर्दे ज़िंदा किए, अँधों और कोढ़ीयों को शिफ़ा बख़्शी और रोज़ आख़िरत अल्लाह उन को शफ़ी उम्मत बनाएगा।”

ताहम अल्फ़ाज़ “وَمِنَ المُقَرَّبِین” के बारे में कई नुक्ता नज़र हैं।

पहला ये कि अल्लाह ने मसीह को अपनी क़ुर्बत (नज़दिकी) अता कर के आपको एक इस्तिहक़ाक़ (कानूनी हक़) अज़ीम बख़्शा और सिफ़त हम्द में मलाइका के दर्जात आला तक पहुंचा दिया है।

दूसरा ये कि ये बयान एक ऐलान है कि वो आस्मान पर उठाए जाऐंगे और फ़रिश्तों के साथ होंगे।

तीसरा ये कि आइन्दा जहान में हर इज़्ज़त व वक़ार की हामिल शख़्सियत मुक़र्रब बारगाह इलाही ना हो सकेगी क्योंकि अहले-जन्नत अलग अलग मुरातिब व दर्जात में तक़्सीम होंगे।

3- क़ुरआन में मसीह के मोअजिज़े
अलिफ़ - ख़ल्क़ करने की क़ुद्रत

सूरह अल-माइदा 5:110 में लिखा है :-

“जब ख़ुदा (ईसा से) फ़रमाएगा कि ऐ ईसा इब्ने मरियम मेरे उन एहसानों को याद करो.... जब मैंने तुमको किताब और दानाई और तौरात और इन्जील सिखाई और जब तुम मेरे हुक्म से मिट्टी का जानवर बना कर उस में फूंक मार देते थे तो वो मेरे हुक्म से उड़ने लगता था।”

इब्ने अल-अरबी ने इस आयत की तफ़्सीर में लिखा है कि :-

“अल्लाह ने ईसा को उन के रूह होने की वजह से इस क़िस्म की ख़ुसूसीयत दी थी और उन के मिट्टी लेकर तख़्लीक़ (परिंद) में नफ़ख़ यानी फूँकने को मुज़ाफ़ किया। ज़िंदगी बख़्शने के मुआमले में सिवाए ईसा के इस तरह का नफ़ख़ और किसी के साथ मन्सूब नहीं किया गया। हाँ ख़ुद अल्लाह तआला की ज़ात से ज़रूर मन्सूब किया गया।

ब - ब-वक़्त विलादत आपका गुफ़्तगु करना

जब मर्यम ने अपने बेटे को जन्म दिया तो उन की क़ौम वालों ने उन की ख़ूब लानत मलामत की, क्योंकि वो यही ख़याल करते थे कि बच्चा बद-चलनी का नतीजा है। तब क़ुरआनी बयान के मुताबिक़ :-

“मर्यम ने उस लड़के की तरफ़ इशारा किया। वो बोले कि हम इस से कि गोद का बच्चा है क्योंकर बात करें। बच्चे ने कहा कि मैं ख़ुदा का बंदा हूँ उस ने मुझे किताब दी है और नबी बनाया है।” (सूरह मर्यम 19:30,29)

अल-सदी का कहना है कि :-

“जब मर्यम ने क़ौम के उन अफ़राद की तरफ़ इस तरह का इशारा किया तो उन लोगों को बड़ा ग़ुस्सा आया और बोले “इस का तम्सख़र (मज़ाक) तो इस के ज़िना से भी ज़्यादा संगीन है।”

एक और रिवायत बताती है कि “ईसा दूध पी रहे थे, जब उन्हों ने ये गुफ़्तगु सुनी तो दूध छोड़ दिया और उन लोगों की तरफ़ रुख फेरा, और अपने बाएं तरफ़ के पहलू को टेका और अपने कलिमे की उंगली उठाई, तब उन लोगों को जवाब दिया।

अल-राज़ी ने एक और रिवायत बयान की है कि “हज़रत ज़करीया इस मौक़े पर हज़रत मर्यम की तरफ़ से यहूदीयों से मुनाज़रा करने आ मौजूद हुए थे और उन्हों ने ही ईसा से कहा था कि “अब तुम अपनी हुज्जत पेश करो, अगर तुमको उस का हुक्म मिल चुका है। तब ईसा ने कहा “मैं ख़ुदा का बंदा हूँ, उस ने मुझे हिक्मत दी है और मुझे नबी बनाया है।”

ज - मुर्दे ज़िंदा करना, जन्म के अँधों को बीनाई अता करना और कोढ़ीयों को शिफ़ा देना

मसीह की ही ज़बान से क़ुरआन ने ये कहा है :-

“और (मैं) अंधे और अब्रस को तंदुरुस्त कर देता हूँ। और ख़ुदा के हुक्म से मुर्दे में जान डाल देता हूँ।” (सूरह आले इमरान 3:49)

सब ही जानते हैं कि “الاکمہ” का मतलब वो शख़्स है जो मादर-ज़ाद बीनाई से महरूम हो। और ये भी एक हक़ीक़त है कि कोढ़ एक ख़तरनाक बीमारी है और दोनों ही अमराज़ इंसान के बस से बाहर और लाइलाज थे।

मुसन्ना की एक रिवायत जिसका सिलसिला इब्ने इस्हाक़, हफ्स बिन उमर और अक्रमा से मिलता है ये बताती है कि “अल्लाह अज्ज़ व जल ने ईसा से कहा कि यही अल्फ़ाज़ वो बनी-इस्राईल के सामने बतौर-ए-एहतजाज अपनी नबुव्वत की निशानी के तौर पर कहें क्योंकि ये दोनों अमराज़ लाइलाज हैं।”

अल्फ़ाज़ “وَ اُحیِ المَوتٰی” (मुर्दे ज़िंदा कर देता हूँ) के बारे में वह्ब बिन मंबा ने बयान किया है कि “हज़रत ईसा बच्चों के साथ खेल रहे थे तो अचानक एक लड़का एक छोटे लड़के पर टूट पड़ा और उस को लातें मार मार कर हलाक कर दिया। फिर उसे ख़ून में लिथड़ा हुआ ईसा के क़दमों पर फेंक दिया, जब लोगों को ख़बर हुई तो उस का इल्ज़ाम ईसा पर ही लगाया गया और उन को पकड़ कर मिस्र के क़ाज़ी के पास ले गए और ये इल्ज़ाम लगाया कि इसी ने क़त्ल किया है। क़ाज़ी ने आपसे पूछा और ईसा ने जवाब दिया “मुझे नहीं मालूम कि इसे किस ने क़त्ल किया है और ना में इस का साथी हूँ।” फिर उन्हों ने ईसा को मारने का इरादा किया तो आपने उन से कहा “अच्छा लड़के को मेरे पास लाओ।” वो बोले “मतलब क्या है तुम्हारा?” आपने फ़रमाया “लड़के से पूछ लूँगा कि किस ने उसे क़त्ल किया है?” वो कहने लगे “भला मुर्दे से कैसे बात कर के पूछ लेगा फिर वो आपको मक़्तूल लड़के के पास ले गए। ईसा ने दुआ करनी शुरू की तो अल्लाह ने उस लड़के को ज़िंदा कर दिया।”

वह्ब ही की एक रिवायत ये भी है कि “कभी कभी तो ईसा के पास बीमारों की इतनी भीड़ लग जाती थी हत्ता कि एक एक मजमा पचास पचास हज़ार का हो जाता था। जिस मरीज़ में इतनी सकत होती वो आपके पास पहुंच जाता, और जिसमें आप तक पहुंचने की ताक़त नहीं होती थी उस के पास आप ख़ुद चले जाते थे और आप दुआ के ज़रीये उन लोगों का ईलाज करते थे।”

अल-क़ल्बी से रिवायत है कि “हज़रत ईसा “یا حیّ یا قیّوم” की मदद से मुर्दे जिला देते थे। आपने आज़र (लाज़र) अपने एक दोस्त को भी ज़िंदा किया। आपने नूह के बेटे साम को भी क़ब्र से निकाला और वो ज़िंदा हो गया। एक बार एक बुढ़िया के मुर्दा बच्चे के पास से गुज़र हुआ तो उसके लिए दुआ की और चारपाई से उतर आया और अपने लोगों के पास जा कर ज़िंदगी गुज़ारने लगा और बाल बच्चेदार भी हुआ।”

द - ग़ैब का इल्म

मसीह की ज़बानी क़ुरआन ने ये भी कहा “और जो कुछ तुम खा कर आते हो और जो अपने घरों में जमा कर रखते हो सब तुमको बता देता हूँ।” (सूरह आले इमरान 3:49)

इस ताल्लुक़ से उलमा दो बातें बयान करते हैं :-

पहली ये कि वो शुरू ही से ग़ैब की बातों की ख़बर दे दिया करते थे। अल-सदी ने रिवायत की है कि “वो लड़कों के साथ खेलते खेलते उन के माँ बाप के काम बता दिया करते थे। उन्हों ने एक बच्चे को यहां तक बता दिया कि तेरी माँ ने तेरे लिए फ़ुलां चीज़ फ़ुलां जगह छिपा रखी है और जब वो बच्चा घर पहुंचा तो उस चीज़ के लिए रोता रहा यहां तक कि उसे हासिल कर के ही छोड़ा। इस का ये असर हुआ कि लोग अपने बच्चों को मसीह के साथ खेलने से ये कह कर रोकने लगे कि ये जादूगर है और उन्हें घर ही में रखने लगे और बाहर ना निकलने देते थे। जब ईसा उन की तलाश में उन के पास जाते तो लोग कह देते कि घर ही में नहीं हैं। एक बार मसीह ने पूछ लिया कि “अगर घर में नहीं हैं तो घर में कौन है? जवाब मिला “वो तो ख़िंज़ीर हैं। ईसा ने कहा “तब तो वो वैसे ही हो जाऐंगे बाद में लोगों ने किया देखा कि वो वैसे ही बन चुके थे।”

और दूसरी बात ये कि इस तरह से तो ग़ैब की ख़बर देना मोअजिज़ा हुआ। नजूमी लोग जो ग़ैब की ख़बर बताने का दाअवा करते हैं उन के लिए बग़ैर सवाल पूछे बताना मुश्किल होता है। फिर उन्हें तो ये एतराफ़ भी रहता है कि उन से गलतीयां भी सरज़द होती रहती हैं, और ग़ैब की ख़बर बिला किसी आला की मदद के और बग़ैर पूछ-गुछ के सिवा वही के और किसी तरीक़े से मुम्किन नहीं।

ह - आस्मान से दस्तर-ख़्वान उतारना

क़ुरआन में कहा गया है कि :-

“(वो क़िस्सा भी याद करो) जब हवारियों ने कहा कि ऐ ईसा इब्ने मरियम क्या तुम्हारा परवरदिगार ऐसा कर सकता है कि हम पर आस्मान से (तआम खाने का) ख़वान नाज़िल करे? उन्हों ने कहा कि अगर ईमान रखते हो तो ख़ुदा से डरो। वो बोले कि हमारी ये ख़्वाहिश है कि हम उस में से खाएं और हमारे दिल तसल्ली पाएं और हम जान लें कि तुमने हमसे सच्च कहा है और हम इस (ख़वान के नुज़ूल) पर गवाह रहें। (तब) ईसा इब्ने मरियम ने दुआ की कि ऐ हमारे परवरदिगार हम पर आस्मान से ख़वान नाज़िल फ़र्मा कि हमारे लिए (वो दिन) ईद क़रार पाए यानी हमारे अगलों और पिछलों (सब) के लिए और वो तेरी तरफ़ से निशानी हो और हमें रिज़्क़ दे तू बेहतर रिज़्क़ देने वाला है।” (सूरह माइदा 5:112-114)

नुज़ूल माइदा के बारे में उलमा इख़्तिलाफ़ राय का शिकार हैं कि किस तरह वो ख़वान आस्मान से उतरा और उस की क्या कैफ़ीयत थी और उस में क्या-क्या चीज़ थी।

क़तादा ने जाबिर, यासिर बिन अम्मार, मुहम्मद के सिलसिले की रिवायत करते हुए बताया है कि “ख़वान उतरा और उस में रोटी और गोश्त था। इसलिए कि उन्हों ने ईसा से ऐसी ख़ुराक की दरख़्वास्त की थी जिसे वो खाएं और वो ख़त्म होने का नाम ना ले। तब आपने फ़रमाया “अच्छा मैं ये दरख़्वास्त मंज़ूर करता हूँ और वहां तुम्हारे दर्मियान उस वक़्त तक मौजूद रहेगी जब तक तुम उसे छुपाओगे नहीं और उस में ख़ियानत नहीं करोगे, और अगर तुमने ऐसा किया तो तुम्हें अज़ाब दिया जाएगा। एक दिन ना गुज़रा था कि उन्हों ने ख़ियानत भी की और छुपा भी दिया, इसलिए ख़वान ऊपर उठा लिया गया और उन की सूरतों बिगड़ गईं कि बंदर और ख़िंज़ीर बन गए।”

इब्ने अब्बास से ये रिवायत है कि “ईसा ने बनी-इस्राईल से (इस दरख़्वास्त के बाद) ये कहा “तीस दिन रोज़े रखो और बाद में अल्लाह से जो चाहते हो माँगो। चुनान्चे उन्हों ने तीस दिन रोज़े रखे और जब रोज़ों का इख़्तताम हुआ तो कहने लगे “ऐ ईसा रोज़े तो हमने रख लिए अब सख़्त भूक लगी है, अल्लाह से दुआ कीजिए ताकि आस्मान से अल्लाह माइदा (खाना) नाज़िल फ़रमाए। ये सुन कर हज़रत ईसा टाट ओढ़ कर और राख बिछा कर बैठ गए और दुआ में मशग़ूल हो गए, और फ़रिश्ते आस्मानी ख़वान लेकर उतरे जिसमें सात रोटियाँ और सात मछलियाँ थीं। उन्हों ने इस ख़वान को उन के सामने ला कर रख दिया, फिर क्या था सबने शिकम सैर हो कर खाया और एक भी भूका ना रहा।

4 - क़ुरआन में मसीह की इब्नियत

क़ुरआन की तालीम की रोशनी में शख़्सियत अल-मसीह पर ग़ौर व ख़ौज़ करने वाले के लिए मसीह की इब्नियत एक ऐसा मौज़ू है जिसने बह्स व तमहीस को जन्म दिया है और इस ज़िमन में पाँच नज़रियात पाए जाते हैं :-

अलिफ़ - पहला नज़रिया कुफ़्र का है

क़ुरआन में लिखा है “ख़ुदा को सज़ावार नहीं कि किसी को बेटा बनाए वो पाक है जब किसी चीज़ का इरादा करता है तो उस को यही कहता है कि हो जा तो वो हो जाती है।” (सूरह मर्यम 19:35)

इस में ये भी लिखा है कि :-

“और कहते हैं कि ख़ुदा बेटा रखता है। (ऐसा कहने वालो ये तो) तुम बुरी बात (ज़बान पर) लाए हो। क़रीब है कि इस से आस्मान फट पढ़ें और ज़मीन शक़ हो जाये और पहाड़ पारा-पारा हो कर गिर पढ़ें। कि उन्हों ने ख़ुदा के लिए बेटा तज्वीज़ किया। और ख़ुदा को शायां नहीं कि किसी को बेटा बनाए। तमाम शख़्स जो आसमानों और ज़मीन में हैं सब ख़ुदा के रूबरू बंदे हो कर आएँगे।” (सूरह मर्यम 19:88-93)

अल-फ़ख़्र अल-राज़ी की तफ़्सीर में आया है कि “मैं जानता हूँ कि अल्लाह तआला बुत-परस्तों की तर्दीद करने के बाद अब उन लोगों की तर्दीद कर रहे हैं जो उसके लिए बेटा साबित करते हैं। यहूदी कहते हैं कि उज़ैर अल्लाह के बेटे हैं और नसारा कहते हैं कि मसीह अल्लाह के बेटे हैं और अरब ने फ़रिश्तों को अल्लाह की बेटियां कहा है। इस आयत में ये सब शामिल हैं।

अल्फ़ाज़ “جِئتُم شَیئًا اِدًّا” (तुम बुरी बात लाए हो) का मतलब है सच्चाई का बहुत बड़ा इन्कार। इसलिए ज़मीन के फट जाने और पहाड़ों के रेज़ा रेज़ा होने का मतलब ये हुआ कि उस पर अल्लाह का ग़ज़ब है जो ये कहता है कि “ख़ुदा बेटा रखता है।”

ब - दूसरा नज़रिया ख़ालिक़ को मख़्लूक़ से मिला देने का नज़रिया है

क़ुरआन में लिखा है “और उन्हों ने उस के बंदों में से उसके लिए औलाद मुक़र्रर की। बेशक इन्सान सरीह नाशुक्रा है। क्या उस ने अपनी मख़्लूक़ात में से ख़ुद तो बेटियां लीं और तुमको चुन कर बेटे दिए।” (सूरह अल-ज़ुखरूफ 43:16,15)

यहां एक सवाल उठ खड़ा होता है कि ख़ालिक़ और मख़्लूक़ में वो कौन सा रिश्ता है कि एक जुज़्व मख़्लूक़ अपने ख़ालिक़ से मिल जाये? ये फ़ित्रतन और अक़्लन नामुम्किन है। ऐसे लोगों ने अल्लाह के इस क़ौल को पेश किया है “तमाम शख़्स जो आसमानों और ज़मीन में हैं सब ख़ुदा के रूबरू बंदे हो कर आएँगे।” (सूरह मर्यम 19:93), और कहा है कि “अब्द (बंदे) का रब बन जाना मुम्किन नहीं, और अल्फ़ाज़ “بدیع السموات والارض” (यानी अल्लाह ही आसमानों और ज़मीन का पैदा करने वाला है) को पेश करते हुए कहते हैं कि किसी मख़्लूक़ का ख़ालिक़ बन जाना मुम्किन नहीं है।

हम मसीही भी इस बात का इक़रार करते हैं कि अल्लाह की मख़्लूक़ात में से किसी एक हिस्सा या जुज़्व का अपने ख़ालिक़ में ज़म हो जाना जायज़ नहीं है लेकिन हमारे अक़ीदे में ये बात बाप और बेटे के ताल्लुक़ात पर मुंतबिक़ नहीं होती क्योंकि इब्न बाप के साथ जोहर में एक ही है, और क़ुरआन ख़ुद ये कहता है कि मसीह कलिमतुल्लाह और उस की तरफ़ से रूह हैं। सो ख़ुदा की मख़्लूक़ का अपने ख़ालिक़ में ज़म हो जाने का मसीह की इब्नियत के साथ कोई ताल्लुक़ नहीं है।

ज - बेटा तो नर व मादा से मिलकर ही बज़रीये विलादत पैदा होता है

यहां इब्नियत के ताल्लुक़ से इस्लामी मफ़्हूम में एक मुश्किल दरपेश है “उस के औलाद कहाँ से हो जब कि उस की बीवी ही नहीं।” (सूरह अल-अन्आम 6:101)

अल-बेज़ावी ने इस आयत पर अपने ख़यालात का इज़्हार यूं किया है “अक़्ल जिस बात को तस्लीम करती है वलद (औलाद) के मुआमला में वो ये है कि वो दो हम-जिंस नर व मादा के मिलाप से ही जन्म लेता है और अल्लाह तआला ऐसी बातों से पाक व बरी है।

इस्लाम का यही नज़रिया है जो अल्लाह के लिए किसी जन्मे हुए बेटे यानी वलद को नामुम्किन ठहराता है क्योंकि अल्लाह की कोई अहलिया (बीवी) नहीं और अल्लाह के लिए ऐसा मानना भी नामुम्किन है। अल्लाह के लिए मसीह के बाप होने को मुन्किर और अजीब सी बात मानने में यही एक राज़ है क्योंकि क़ुरआनी फ़िक्र में कोई बेटा हो ही नहीं सकता सिवा इस के कि जिस्मानी ताल्लुक़ वाक़ेअ हो।

तिबरी की तफ़्सीर जामेअ-उल-बयान में इसी की ताईद मिलती है। वह्ब और अबी ज़ैद से रिवायत है कि “बेटा नर व मादा के मिलाप का नतीजा होता है और अल्लाह के लिए किसी साथी औरत या बीवी का तसव्वुर ही मुहाल है इसलिए बेटा (वलद) कहाँ से आएगा, नीज़ ये कि उसी ने तो सारी चीज़ें ख़ल्क़ की हैं और जब ये बात हो कि कोई चीज़ ऐसी नहीं है जिसे अल्लाह ने ख़ल्क़ ना किया हो तो उस के बेटा कैसे होगा?”

मुहक़्क़िक़ीन ने ये लिखा है कि ये मज़्कूर आयत उन लोगों के हक़ में उतरी जो बिद्अती थे और जिनकी जड़ें बुत-परस्ती में गड़ी हुई थीं, ये लोग कलीसिया में शामिल हो गए और उस में बिद्अती तालीम फैलाने की कोशिश की कि मुक़द्दसा मर्यम ख़ुदा हैं। उन के अन्दर यह ख़याल उस वक़्त से था जब कि वो बुत-परस्ती का शिकार थे कि ज़ुहरा सितारा जिसकी वो पूजा किया करते थे ख़ुदा है। इसी फ़ासिद अक़ीदे ने ज़ुहरा की जगह मर्यम को रख दिया।

अल्लामा अहमद अल-मकरिज़ी ने अपनी किताब “अल-क़ोल-उल-अबरेज़ी (القول الابریزی) के सफ़ा 26 पर इस बात की तरफ़ इशारा किया है। और इब्ने हज़म ने अपनी किताब “अल-मलल व अल-अहवा व अल-नहल (الملل والاھواء والنحل) के सफ़ा 48 पर इस बिद्दत पर बह्स की है। ये बिद्अती लोग ये मानते थे कि अल्लाह के बीवी है और उस से बच्चा भी है। अब वाज़ेह हो गया कि क़ुरआन ने इसी नज़रिये का रद्द किया है और मसीहिय्यत का इस ख़याल से दूर का भी वास्ता नहीं। चुनान्चे एक भी मसीही ऐसा नहीं मिलेगा जो ऐसी बात पर एतिक़ाद रखता हो। ये तो अल्लाह ज़ूल-जलाल व क़ुद्दूस की ज़ात की तौहीन है जो हर तरह के जिस्मानी ख़साइस से पाक व मुनज़्ज़ह है।

हक़ीक़त तो ये है कि मसीहियों का वो अक़ीदा जो इन्जील शरीफ़ पर मबनी है, उस पर ग़ौर व फ़िक्र करने वाले पर ये बात बख़ूबी वाज़ेह हो जाती है कि जनाब मसीह का इब्ने-अल्लाह होना अल्लाह की किसी बीवी के ज़रीये पैदा होने की वजह से नहीं है बल्कि मोमिनों का ये ईमान है कि मसीह का इब्ने-अल्लाह होना वजूद व ज़ात इलाही से उन के सदूर की वजह से है जिसकी सिफ़त बताई गई कि मसीह ख़ुदा का वो कलिमा हैं जो इब्तिदा से ख़ुदा के साथ था और रूह-उल-क़ुद्दुस की मार्फ़त वो मर्यम में हमल की शक्ल इख़्तियार कर गया।

पौलुस रसूल ने इसी हक़ीक़त की तरफ़ इशारा किया जब रोमीयों 1:1-4 में लिखा,

“पौलुस की तरफ़ से जो येसू मसीह का बंदा है और रसूल होने के लिए बुलाया गया और ख़ुदा की उस ख़ुशख़बरी के लिए मख़्सूस किया गया है, जिसका उस ने पेश्तर से अपने नबियों की मार्फ़त किताबे मुक़द्दस में अपने बेटे हमारे ख़ुदावंद येसू मसीह की निस्बत वाअदा किया था। जिस्म के एतबार से तो दाऊद की नस्ल से पैदा हुआ लेकिन पाकीज़गी की रूह के एतबार से मुर्दों में से जी उठने के सबब से क़ुद्रत के साथ ख़ुदा का बेटा ठहरा।”

द - चौथा नज़रिया है कि मसीह खाता था

सूरह अल-माइदा 5:75 में लिखा है :-

“मसीह इब्ने मरियम तो सिर्फ (ख़ुदा के) पैग़म्बर थे उन से पहले भी बहुत से रसूल गुज़र चुके थे और उन की वालिदा (मर्यम) ख़ुदा की वली और सच्ची फ़रमांबर्दार थीं दोनों (इन्सान थे और) खाना खाते थे देखो हम उन लोगों के लिए अपनी आयतें किस तरह खोल खोल कर बयान करते हैं फिर (ये) देखो कि ये किधर उल्टे जा रहे हैं।”

अब इस्लामी फ़िक्र का कहना ये है कि मसीह को इलोही सिफ़ात से मुत्तसिफ़ करना ग़ैर-मुम्किन है क्योंकि ये बात उन की बशरियत से वाज़ेह है, जो खाना खाता हो वो कैसे ख़ुदा बन सकता है?

अल-राज़ी ने अपनी तफ़्सीर में इस आयत के बारे में लिखा है :-

(1) “जिस किसी शख़्स की भी माँ हो वो ऐसा हादिस और नोपैद है जो पहले नहीं था, और जो इस तरह हो वो मख़्लूक़ हुआ ना कि ख़ुदा।”

(2) “दोनों (ईसा और मर्यम) को ख़ुराक की अशद हाजत (बहुत ज़रूरत) थी और ख़ुदा तो वो हस्ती है जो इन सारी चीज़ों से बेपरवा और ग़नी है, इसलिए मसीह कैसे ख़ुदा हो सकते हैं?”

(3) “अल्फ़ाज़ “दोनों खाना खाते थे” उन की इंसानियत का इज़्हार हैं क्योंकि हर कोई जो ख़ुराक खाता है वो फ़ानी है।” (लेकिन अल-राज़ी ने इस नुक्ता नज़र को ज़ईफ़ क़रार दिया है।

ह - पांचवां नज़रिया मख़्लूक़ का नफ़ा व नुक़्सान पहुंचाने से आजिज़ होना है

सूरह अल-माइदा 5:76 में लिखा है :-

“कहो कि तुम ख़ुदा के सिवा ऐसी चीज़ की क्यों परस्तिश करते हो जिसको तुम्हारे नफ़ा और नुक़्सान का कुछ भी इख़्तियार नहीं? और ख़ुदा ही (सब कुछ) सुनता जानता है।”

मुफ़स्सिरों ने इस आयत को नसारा के क़ौल के फ़ासिद होने पर दलील ठहराया है क्योंकि उन के ख़याल में इस से कई तरह की हुज्जत उठ खड़ी होती है।

(1) यहूदी लोग मसीह से दुश्मनी करते और हर वक़्त उन के ख़िलाफ़ रेशा दवानी करते रहते थे लेकिन मसीह उन को किसी तरह का भी नुक़्सान पहुंचाने की क़ुद्रत नहीं रखते थे। उन के हवारी व मददगार उन से बड़ी मुहब्बत करते थे लेकिन वो उन्हें किसी तरह का दुनियावी फ़ायदा ना पहुंचा सके। अब जो नफ़ा व नुक़्सान पहुंचाने पर क़ुद्रत ना रखे उसे किस तरह ख़ुदा तस्लीम किया जा सकता है।

इस आयत की तफ़्सीर करते हुए अल-बेज़ावी ने लिखा है “ईसा को कि गोया ये इम्तियाज़ हासिल था क्योंकि अल्लाह ने उन्हें इस का मालिक तो बनाया था लेकिन ये तमलिक उन की ज़ाती ना थी।”

लेकिन हम कहते हैं कि अगर येसू मह्ज़ क़ुरआन के ही ईसा होते (यानी क़ुरआन ने जैसे उन्हें पेश किया है) यानी बंदा व ग़ुलाम ईसा तो हम ज़रूर ये मान लेते कि उन की अपनी ज़ात में ना नफ़ा पहुंचाने की सकत थी ना नुक़्सान पहुंचाने की क़ुद्रत। लेकिन जैसा यसअयाह नबी ने बयान किया है येसू “क़ादिर ख़ुदा है।” और हम तो इसके लिए शुक्रगुज़ार हैं क्योंकि मसीह की रिसालत नुक़्सान और माद्दी नफ़ा से बालातर थी, बल्कि उन की रिसालत ख़लास आसीयाँ थी और क़ुरआन ने इसी हक़ीक़त का इज़्हार इस तरह किया है कि मसीह रहमतुल-लिल-आलमीन बन कर आए थे।

(2) दूसरी हुज्जत ये पेश की जाती है कि मसीही मज़्हब ये मानता है कि यहूदीयों ने मसीह को सलीब पर लटका दिया था और उन की पिसलियाँ छेद दी गई थीं और जब वो प्यासे हुए और पानी मांगा तो उन्हों ने उन के हलक़ में सिरका उंडेल दिया था। ऐसी कमज़ोरी और बेबसी की हालत रखने वाले को कैसे ख़ुदा माना जा सकता है?

(3) तीसरी बात ये कि कायनात के मालिक ख़ुदा को अपने सिवा हर चीज़ से बेनियाज़ होना चाहीए और उस के मासिवा सारी चीज़ों को उस का मुहताज। अगर ईसा बेनियाज़ होते तो अल्लाह की इबादत में मशग़ूल होने से भी बेनियाज़ होते क्योंकि अल्लाह तो किसी की इबादत नहीं करता। ये तो इंसान है जो अल्लाह की इबादत करता है। बतरीक़ तवातर ये बात साबित है कि ईसा ताअत व इबादत में मसरूफ़ रहते थे और ऐसा ख़ुद नफ़ा हासिल करने के लिए और दूसरे की तरफ़ दफ़ाअ मुज़र्रत के लिए करते थे। फिर जिसकी ये हालत हो वो बंदों की तरफ़ फ़वाइद कैसे पहुंचाए और उन्हें बुराई से कैसे बचाए? वो ऐसे ही थे, दूसरे आजिज़ बंदों की तरह एक बंदा थे।

5 - इस्लाम में मसीह की उलूहियत

इस्लाम और मसीहिय्यत के दर्मियान मुज़ाकरा और गुफ़्त व शनीद के बीच जो चीज़ सबसे ज़्यादा आड़े आती है वो है मसीह में उलूहियत का मसीही अक़ीदा, जिसे इस्लाम में कुफ़्र से ताबीर किया जाता है। इस की मुख़ालिफ़त में बहुत सी क़ुरआनी आयतें मिलती हैं जिनमें से चार बहुत सरीह हैं जो सूरह अल-माइदा में हैं, और एक सूरह अल-निसा में वाक़ेअ है।

अलिफ़ - पहली आयत

“जो लोग इस बात के क़ाइल हैं कि ईसा बिन मर्यम ख़ुदा हैं वो बेशक काफ़िर हैं (उनसे) कह दो कि अगर ख़ुदा ईसा बिन मर्यम को और उन की वालिदा को और जितने लोग ज़मीन में हैं सबको हलाक करना चाहे तो उस के आगे किस की पेश चल सकती है?” (सूरह अल-माइदा 5:17)

इस आयत की शरह करते हुए अल-राज़ी कहते हैं कि यहां एक सवाल उठता है कि अगर मसीहियों में कोई भी ये नहीं कहता था कि अल्लाह ही मसीह इब्ने मरियम हैं तो फिर इस तरह की बात अल्लाह ने क्यों कही? इस का जवाब ये है कि “حلولیہ” (हलुलिया) गिरोह के लोग ये मानते हैं कि अल्लाह तआला किसी इंसान ख़ास के बदन में या उस की रूह में हलूल कर जाता या समा जाता है। अगर ऐसी बात है तो ये मानना कुछ बईद भी नहीं है कि शायद नसारा में कुछ लोग ऐसी बात कहते और मानते रहे होंगे। और फिर मसीही ये मानते हैं कि उक़नूम-अल-कलमा (اقنوم الکلمة) ईसा के साथ मुत्तहिद था।

अब उक़नूम-अल-कलमा (اقنوم الکلمة) या तो ज़ात होगा या सिफ़त होगा। अगर ज़ात मानें तो ये मानना होगा कि अल्लाह तआला की ज़ात ईसा में उतरी और समा गई। तब तो ईसा अल्लाह हो गए। और अगर हम उक़नूम को सिफ़त से ताबीर करें तो फिर सिफ़त का एक ज़ात से दूसरी ज़ात में मुंतक़िल हो जाना ग़ैर-माक़ूल बात है।

फिर ज़ाते इलाही से ईसा की तरफ़ अगर उक़नूम इल्म के इंतिक़ाल को तस्लीम करें तो ख़ुदा की ज़ात का इल्म से ख़ाली होना लाज़िम आएगा और इस सूरत में ये मानना पड़ेगा कि जो आलिम नहीं वो अल्लाह नहीं। फिर तो नसारा ही की बात के मुताबिक़ ईसा ख़ुदा हो गए। पस इस से साबित है कि नसारा अगरचे ऐसी बात खुल कर नहीं कहते लेकिन उन के मज़्हब का निचोड़ यही है।

फिर अल्लाह सुब्हाना ने इस मज़्हब व अक़ीदा के फ़साद पर ये कह कर हुज्जत पेश की है कि अगर अल्लाह ईसा बिन मर्यम को और उन की वालिदा को हलाक करना चाहे तो उस के आगे किस की पेश चल सकती है? इन अल्फ़ाज़ से मुफ़स्सिरों ने ये मुराद लिया है कि ईसा भी शक्ल व सूरत, बदन, सिफ़ात व अहवाल के एतबार से उन ही लोगों की तरह हैं जिन्हें “لمن فی الارض” यानी ज़मीन वाले कहा गया है। हालाँकि ऐसा नहीं है।

ब - दूसरी आयत

“वो लोग बे-शुब्हा काफ़िर हैं जो कहते हैं कि मर्यम के बेटे (ईसा) मसीह ख़ुदा हैं। हालाँकि मसीह यहूद से ये कहा करते थे कि ऐ बनी-इस्राईल ख़ुदा ही की इबादत करो जो मेरा भी परवरदिगार है और तुम्हारा भी (और जान रखो कि) जो शख़्स ख़ुदा के साथ शिर्क करेगा। ख़ुदा उस पर बहिश्त (जन्नत) को हराम कर देगा। और उस का ठिकाना दोज़ख़ है और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं।” (सूरह अल-माइदा 5:72)

इमाम अल-राज़ी की इस आयत पर शरह ये है कि “अल्लाह ने जब यहूदीयों के साथ इस्तिक़सा किया और जहां तक बात जाती थी कर चुका तो इस आयत में नसारा के मुआमले पर गुफ़्तगु की और उन के एक गिरोह की हिकायत बयान करते हुए कहा कि वो मानते हैं कि अल्लाह तआला ने ईसा की ज़ात में हलूल किया और उन के साथ मिलकर एक हो गया।

ज - तीसरी आयत

"वो लोग (भी) काफ़िर हैं जो इस बात के क़ाइल हैं कि ख़ुदा तीन में का तीसरा है। हालाँकि उस माबूद यकता के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं। अगर ये लोग ऐसे अक़्वाल (व अक़ाइद) से बाज़ नहीं आएँगे तो उन में जो काफ़िर हुए हैं वो तक्लीफ़ देने वाला अज़ाब पाएँगे।” (सूरह अल-माइदा 5:73)

मुसलमानों ने इस आयत को लेकर मसीहियों पर ये इल्ज़ाम लगाया है कि वो तीन खुदाओं यानी अल्लाह, ईसा और मर्यम की इबादत करते हैं।

अल-राज़ी ने मसीहियों के इस अक़ीदे के बारे में ये बयान किया है “नसारा के बारे में ये बात कही जाती है कि वो दाअवा करते हैं कि “अल्लाह जोहर वाहिद और तीन अक़ानीम वाला है यानी बाप, बेटा और रूहुल-क़ुदुस। ये तीनों एक ही ख़ुदा हैं, मसलन जैसे सूरज में क़ुरस, शुआ और हरारत (टिकिया, किरण, गर्मी) पाई जाती है। मसीही लोग बाप से मुराद ज़ात लेते हैं और बेटे से मुराद अल-कलमा और रूह से मुराद ज़िंदगी लेते हैं। उन्हों ने ज़ात, कलमा और ज़िंदगी को इस तरह साबित किया है कि अल-कलमा जो कि अल्लाह का कलाम है ईसा के जसद में जा कर घुल मिलकर एक हो गया जैसे पानी और शराब का या पानी और दूध का इख़तिलात हो जाता है। मसीहियों का भी यही ख़याल है कि बाप ख़ुदा है, और बेटा ख़ुदा है और रूह ख़ुदा है।” फिर अल-राज़ी ने इस तअ्लीक़ से ये शरह ख़त्म कर दी कि “मालूम होना चाहीए कि ये ख़याल बुतलान और ख़िलाफ़ अक़्ल है क्योंकि तीन एक नहीं हो सकते और एक तीन नहीं हो सकता।”

द - चौथी आयत

“और (उस वक़्त को भी याद रखो) जब ख़ुदा फ़रमाएगा कि ऐ ईसा बिन मर्यम क्या तुमने लोगों से कहा था कि ख़ुदा के सिवा मुझे और मेरी वालिदा को माबूद मुक़र्रर करो? वो कहेंगे कि तू पाक है मुझे कब शायां था कि मैं ऐसी बात कहता जिसका मुझे कुछ हक़ नहीं। अगर मैंने ऐसा कहा होगा तो तुझको मालूम होगा (क्योंकि) जो बात मेरे दिल में है तू उसे जानता है और जो तेरे ज़मीर में है उसे मैं नहीं जानता बेशक तू अल्लाम-उल-ग़यूब है।” (सूरह अल-माइदा 5:116)

अल-राज़ी को इस आयत में कई बातें नज़र आई हैं :-

पहली तो ये कि इस का ताल्लुक़ अल्लाह के बयान “ऐ ईसा इब्ने मरियम मेरे उन एहसानों को याद कर जो मैंने तुम पर किए” से है। वो इसे उस शान व वजाहत से मिलाता है जो ईसा को रोज़े क़ियामत होगी।

दूसरी बात ये कि अल्लाह ग़ैब की बातों का जानने वाला है। और ये जानता है कि ईसा ने ऐसी कोई बात नहीं कही थी और अल्लाम-उल-ग़यूब को इस तरह का सवाल भी ज़ेबा नहीं देता तो फिर इस तरह का हज़रत ईसा से ख़िताब क्यों? इस का अगर ये जवाब दिया जाये कि इस ख़िताब से ये ग़र्ज़ थी कि नसारा को मलामत और बुरा-भला कहा जाये तो हम कहेंगे कि किसी मसीही ने कभी ये नहीं कहा कि अल्लाह के इलावा ईसा और मर्यम दो ख़ुदा थे। तो फिर ऐसी बात को उन की तरफ़ मन्सूब करना जो उन्हों ने कभी कही ही नहीं कैसे जायज़ है?

पहला नुक्ता कि “क्यों वो उन से मुख़ातिब हुआ?” का जवाब ये दिया गया कि ये आयत इस्तिफ़हाम-ए-इन्कारी के तौर पर लाई गई यानी उन्हों ने इस बारे में कोई तालीम नहीं सिखाई।

दूसरे सवाल का जवाब ये है कि अल्लाह तआला ही ख़ालिक़ है। हालाँकि मसीही ये मानते हैं कि ईसा और मर्यम के हाथों जो मोअजिज़े ज़ाहिर हुए उन के ख़ालिक़ या करने वाले ख़ुद ईसा थे और अल्लाह ने उन्हें नहीं किया था। अब ऐसी बात हुई तो मसीहियों ने कहा कि इन सारे मोअजज़ात के ख़ालिक़ ईसा व मर्यम थे, अल्लाह नहीं था। सो किसी हद तक उन्हों ने इस बात को मान लिया कि ईसा और मर्यम उस के इलावा दो ख़ुदा हैं, साथ ये भी कि अल्लाह तआला ख़ुदा नहीं था। अल-राज़ी का मानना है कि बहुत सी हिकायात और रिवायत इस तावील के साथ मुत्तफ़िक़ हैं।

ताहम क़ुरआन के मुफ़स्सिरों के दर्मियान इस बात में इख़्तिलाफ़ राय है कि ईसा से इस तरह का सवाल आख़िर अल्लाह ने किस वक़्त किया?

अल-सदी कहते हैं कि “जब अल्लाह ने ईसा को अपनी तरफ़ उठाया था तब ये सवाल किया था कि “क्या तुमने लोगों से कहा था कि ख़ुदा के सिवा मुझे और मेरी वालिदा को माबूद मुक़र्रर करो?”

लेकिन क़तादा की राय है कि “ये सवाल अभी उन से किया ही नहीं गया, क़ियामत के दिन किया जाएगा इस राय से इत्तिफ़ाक़ करने वालों में इब्ने जरीह और मेसरह भी हैं”

ह - पांचवीं आयत

“ऐ अहले-किताब अपने दीन (की बात) में हद से ना बढ़ो और ख़ुदा के बारे में हक़ के सिवा कुछ ना कहो। मसीह (यानी) मर्यम के बेटे ईसा (ना ख़ुदा थे ना ख़ुदा के बेटे) बल्कि ख़ुदा के रसूल और उस का कलिमा (बशारत) थे जो उस ने मर्यम की तरफ़ भेजा था और उस की तरफ़ से एक रूह थे। तो ख़ुदा और उस के रसूलों पर ईमान लाओ। और (ये) ना कहो (कि ख़ुदा) तीन (हैं। इस एतिक़ाद से) बाज़ आओ कि ये तुम्हारे हक़ में बेहतर है। ख़ुदा ही माबूद वाहिद है।” (सूरह अल-निसा 4:171)

अबू जाफ़र अल-तिबरी ने इस आयत की तफ़्सीर में लिखा है कि “ऐ अहले इन्जील यानी नसारा तुम दीन में सच्ची बात से तजावुज़ ना करो ताकि इफ़रात व तफ़रीत के मुर्तक़िब ना बनो और ईसा के हक़ में सच्ची बात के इलावा और कुछ ना कहो। अल्लाह को सालुस सलसा (तीन में का तीसरा) कहने से बचो कि ये अल्लाह पर झूट और उस के साथ शिर्क करने की बात हुई। इस से बचते रहो तो तुम्हारी इस में भलाई है क्योंकि इस तरह की बात कहने वाले के लिए जल्द आने वाला अज़ाब है कि अगर अपनी बात पर अड़े रहोगे और सच्ची और हक़ बात की तरफ़ रुजू ना करोगे।”

इस्लाम में इस उलझी हुई मुश्किल की वजह ये एतिक़ाद है कि तस्लीस से मुराद तीन ख़ुदा यानी अल्लाह, ईसा और मर्यम हैं। हालाँकि मसीहिय्यत ने एक अर्सा दराज़ से यानी इस्लाम से पहले के ज़माने में और बाद में भी पुकार पुकार कर कहा है कि लफ़्ज़ तस्लीस का तसव्वुर जो तीन अलैहदा खुदाओं को ज़ाहिर करता हो हमारे हाँ मौजूद नहीं है। ये तो बिद्अती और ग़लत तालीम रखने वालों के औहाम हैं जिन्हें मसीही कलीसिया ने अपनी जमाअत से निकाल बाहर किया था और उन की इस बिद्दत को सख़्ती से कुचला गया था। क़ब्ल अज़ इस्लाम जाहिलियत के ज़माने में अरब में ऐसे बिद्अती मौजूद थे। उन्ही से इस्लाम ने मसीहिय्यत का बिगड़ा हुआ तसव्वुर लिया और उसे हक़ीक़ी मसीहिय्यत समझा।

6- इस्लाम में मसीह की इन्सानियत

इस्लाम में मसीह के इंसानी पहलू पर बड़ा ज़ोर दिया जाता है और इस ज़िमन में दो बातें अहम हैं मसीह अब्द (बंदा) हैं रब नहीं, और मसीह मिस्ल आदम हैं।

अलिफ़ - मसीह अब्द (बंदा) हैं, रब नहीं

क़ुरआन ने मसीह की ज़बान से कहा “मैं ख़ुदा का बंदा हूँ उस ने मुझे किताब दी है और नबी बनाया है। और मैं जहां हूँ (और जिस हाल में हूँ) मुझे साहिबे बरकत किया है और जब तक ज़िंदा हूँ मुझको नमाज़ और ज़कात का इर्शाद फ़रमाया है। और (मुझे) अपनी माँ के साथ नेक सुलूक करने वाला (बनाया है) और सरकश व बद-बख़्त नहीं बनाया।” (सूरह मर्यम 19:30-32)

इमाम अल-राज़ी इस आयत की तफ़्सीर करते हुए लिखते हैं कि “अब्दुल्लाह के चार फ़वाइद हैं।”

(1) पहला फ़ायदा : ये मसीहियों के इस वहम को दूर करता है कि ईसा ख़ुदा हैं।

(2) दूसरा फ़ायदा : मसीह ने जो अपनी बंदगी और अबदियत का इक़रार किया है तो अगर वो अपनी बात में सच्चे थे तो हमारा मक़्सद पूरा हो गया और अगर अपने क़ौल में सच्चे नहीं हैं तो जो उन में क़ुव्वत थी वो इलाही क़ुव्वत नहीं थी बल्कि शैतानी क़ुव्वत हो गई, चुनान्चे दोनों सूरतों में मसीह का ख़ुदा होना बातिल हो गया।

(3) तीसरा फ़ायदा : उस वक़्त का अहम तक़ाज़ा ये था कि मर्यम की ज़ात-ए-पाक से ज़िना की तोहमत का रद्द किया जाये। फिर ये कि ईसा ने इस पर नस नहीं किया बल्कि ख़ुद अपनी बंदगी के इस्बात पर नस किया है, गोया कि अल्लाह तआला पर तोहमत को हटाना उन्हों ने अपनी माँ पर लगाई गई तोहमत को हटाने से ज़्यादा ज़रूरी समझा, इसलिए ख़ुद को ख़ुदा का बंदा कहा।

(4) चौथा फ़ायदा : अल्लाह की ज़ात-ए-पाक पर लगाई हुई तोहमत के इज़ाले की बात से ये फ़ायदा पहुंचा कि वालिदा पर की तोहमत भी ज़ाइल हो गई, क्योंकि अल्लाह तआला किसी गिरी हुई फ़ाजिरा औरत को इस आली मर्तबत और अज़मत वाले बच्चे यानी मसीह ईसा की माँ बनने के लिए मख़्सूस नहीं कर सकता।

इस के बाद वो लाहोतियत मसीह के मसीही अक़ीदे पर राय ज़नी करते हैं कि “नसारा का मज़्हब ख़बत से भरा हुआ है यानी एक तरफ़ तो वो ये कहते हैं कि अल्लाह तआला के ना जिस्म है और ना हिय्यज़ है, इस के बावजूद हम उन की एक ऐसी तक़्सीम का ज़िक्र करते हैं जो उन के मज़्हब के बुतलान के लिए काफ़ी है। चुनान्चे हमारा कहना ये है कि अगर वो अल्लाह को किसी हिय्यज़ में मानें तो अज्साम के हुदूस पर उन के क़ौल को हमने बातिल कर दिया। अगर वो मानें कि अल्लाह को कोई हिय्यज़ नहीं तो उन के ये कहने से उन की इस बात का बुतलान होगा कि अल्लाह का कलमा इंसानियत से इस तरह मख़लूत हो गया जैसे पानी शराब में या आग अंगारे में, क्योंकि ऐसी बात का होना जिस्म में ही समझ में आ सकता है।

राक़िम-उल-हरूफ़ का ख़याल है कि मसीह की शख़्सियत पर क़ुरआन की राय ज़नी और ग़ौर व फ़िक्र दो हक़ीक़तों पर मुन्हसिर मालूम होती है और उन में एक ऐसा भेद है जिसे फ़ित्री इंसान समझ नहीं पाता। पहली हक़ीक़त तो ये है कि मसीह इब्ने मरियम होने के नाते अब्दुल्लाह (ख़ुदा के बंदे) हैं। इस हक़ीक़त का इज़्हार अम्बिया किराम ने अपनी ज़बान से अदा किया, मसलन यसअयाह नबी के सहीफ़े 53 बाब की तेरहवीं आयत मुलाहिज़ा हो जहां लिखा है कि “देखो मेरा ख़ादिम इकबालमंद होगा। वो आला व बरतर और निहायत बुलंद होगा।”

फिर इसी सहीफ़े के 53 बाब की ग्यारवीं आयत में लिखा है कि “अपने ही इर्फ़ान से मेरा सादिक़ ख़ादिम बहुतों को रास्तबाज़ ठहराएगा क्योंकि वो उन की बदकिर्दारी ख़ुद उठा लेगा।”

दूसरी हक़ीक़त ये है कि मसीह के बंदे होने की सिफ़त की क़ुरआन की उस आयत से नफ़ी नहीं होती जिसमें उन्हें अल्लाह का कलमा और उस की रूह कहा गया है।

इस नस क़ुरआनी में जो कि दो पहलू की हामिल है जो शख़्स गहराई से ग़ौर व फ़िक्र करेगा उस पर पौलुस रसूल का ये ऐलान ख़ूब ज़ाहिर हो जाएगा जिसका ज़िक्र रोमीयों 4:1-4 में मिलता है कि : “(येसू मसीह) जिस्म के एतबार से तो दाऊद की नस्ल से पैदा हुआ। लेकिन पाकीज़गी की रूह के एतबार से मुर्दों में से जी उठने के सबब से क़ुद्रत के साथ ख़ुदा का बेटा ठहरा।”

ब - मसीह मिस्ले आदम हैं

सूरह आले इमरान 3:59 में लिखा है कि “ईसा का हाल ख़ुदा के नज़्दीक आदम का सा है कि उस ने (पहले) मिट्टी से उनका क़ालिब बनाया फिर फ़रमाया कि (इन्सान) हो जा तो वो (इन्सान) हो गए।”

अबू जाफ़र अल-तिबरी की किताब जामे-उल-बयान में लिखा है कि “अल्लाह तआला ने फ़रमाया : ऐ मुहम्मद नजरान से आए हुए नसारा को बता दो कि मेरा ईसा को बिला किसी मर्द के पैदा कर देना वैसा ही है जैसा मैंने आदम से कहा था कि हो जा तो वो बिला किसी नर व मादा के वजूद में आ गया। चुनान्चे बिला किसी मर्द के उन की माँ से ईसा को ख़ल्क़ करना मेरे आदम को ख़ल्क़ कर देने से ज़्यादा अजीब नहीं है।”

मुहम्मद बिन साद ने अपने बाप से और उन के बाप ने इब्ने अब्बास से रिवायत की है कि “शहर नजरान से एक जमाअत आँहज़रत की ख़िदमत में हाज़िर हुई, उन में सय्यद और आक़िब थे। उन्हों ने मुहम्मद से पूछा “आप हमारे साहब के बारे में क्या कहते हैं? उन्हों ने जवाबन पूछा “तुम्हारे साहब कौन हैं? कहा गया “ईसा जिनको आप अल्लाह का बंदा कहते हैं।” हज़रत मुहम्मद ने जवाब दिया “हाँ हाँ वो तो अल्लाह के बंदे थे।” इस पर वो लोग बोले “क्या आपने ईसा की तरह किसी और को भी देखा है या उन जैसे किसी और के बारे में आपको ख़बर है।” ये कह कर वो लोग वहां से चले गए। फिर अल्लाह समीअ अलीम की तरफ़ से जिब्रील ये पैग़ाम लेकर आए कि “जब दुबारा वो लोग आएं तो उन से कहो “ان مثل عیسیٰ عند اللہ کمثل آدم”

एक और रिवायत है जो मुहम्मद बिन अल-हुसैन, अहमद बिन अल-मफ़ज़ल के सिलसिले में अल-सदी ने की है कि “जब मुहम्मद मबऊस हुए और नजरान के लोगों को आपकी ख़बर हुई तो नजरानियों की तरफ़ से चार ऐसे अश्ख़ास आपके पास भेजे गए जो क़ौम में आला मर्तबा के हामिल थे, यानी अलआक़िब, अल-सय्यद, मासरजिस और मारेजज़। जब ये आए तो आँहज़रत से पूछा कि आपका ख़याल ईसा के बारे में क्या है? आपने जवाब दिया “वो अल्लाह के बंदे और अल्लाह की रूह और अल्लाह का कलमा हैं।” इस पर वो बोले “नहीं, वो तो अल्लाह हैं जो अपनी बादशाही छोड़कर नीचे उतरे और मर्यम के बतन में चले गए, फिर वहां से पैदा हुए और हम पर ज़ाहिर हुए। क्या आपने कभी ऐसा भी आदमी देखा है जो बग़ैर बाप के पैदा हुआ हो?” इस पर अल्लाह ने आयत नाज़िल की कि “ان مثل عیسیٰ عند اللہ کمثل آدم”

एक तीसरी रिवायत बसिलसिला अल-क़साम, इब्ने जरीज और अक्रम बयान की जाती है कि “हमें पता चला कि नजरान के नसारा का एक वफ़द आँहज़रत के पास आया जिसमें आक़िब और सय्यद भी थे जिन्हों ने पूछा “ऐ मुहम्मद आप हमारे साहब को क्यों बुरा बोलते हैं?” आपने फ़रमाया “तुम्हारे साहब कौन हैं?” उन्हों ने कहा मर्यम के बेटे ईसा जिन्हें आप बंदा और ख़ादिम बताते हैं। आपने फ़रमाया “हाँ अल्लाह के बंदे भी थे और वो अल्लाह का कलमा भी थे जो मर्यम की तरफ़ पहुंचाया गया था और अल्लाह की तरफ़ से भेजी गई रूह भी थे।” आपके इन अल्फ़ाज़ पर उन्हें ग़ुस्सा आ गया और वो बोले “अगर आप सच्च कहते हैं तो हमें कोई ऐसा बंदा दिखाइये जो मुर्दे ज़िंदा कर दिया करता हो, जन्म के अँधों को बीनाई अता कर देता हो और कोढ़ीयों को सेहत अता करता हो, और जो सनी हुई मिट्टी से परिंद जैसी चीज़ बना कर उस में फूंक देता हो और वो ज़िंदा परिंद बन जाता हो?” इस पर आँहज़रत ख़ामोश रहे हत्ता कि जिब्रील आए और कहा “ऐ मुहम्मद कुफ़्र बका उन लोगों ने जिन्हों ने ये कहा कि अल्लाह तो मसीह इब्ने मरियम ही है।” आँहज़रत ने कहा “जिब्रील उन्हों ने तो ये पूछा है कि ईसा जैसा और कौन है? तब जिब्रील बोले “ईसा की मिसाल आदम जैसी है।”

7 - किताब-ए-मुक़द्दस (बाइबिल में मसीह)
अलिफ़ - मसीह की उलूहियत

इस में शक नहीं कि जो शख़्स मसीहिय्यत की बातों को जानने में दिलचस्पी रखेगा उसे कई अहम और संजीदा मसाइल से दो-चार होना पड़ेगा और शायद उन सब में सख़्त मसअला मसीह की तरफ़ उलूहियत की मंसूबी का मसअला है।

इस से मेरी मुराद मसीहियों का ये पुख़्ता अक़ीदा है कि येसू जिसने फ़िलिस्तीन में जन्म लिया एक कुँवारी मर्यम नाम की औरत से पैदा हो कर उस ने इसी सर-ज़मीन पर कुछ अर्सा ज़िंदगी गुज़ारी, वो इब्ने-अल्लाह भी है और साथ ही साथ ख़ुदा बेटा भी है।

ये एतिक़ाद अक्सर बड़ा मुश्किल नज़र आता है, लेकिन याद रहे कि किसी सवाल का मुश्किल होना मसीही मज़्हब को वाहिद सच्चा दीन होने से रोक नहीं देता। ज़ात-ए-बारी वाहिद में तीन अक़ानीम के वजूद का मसीही अक़ीदा इस बात को ज़रूरी क़रार नहीं देता कि एक दूसरे से वक़्त में मुक़द्दम है या ये कि एक दूसरे से किसी भी तरह से बड़ा है। हाँ ये ज़रूर है कि उस ने इन तीन अस्मा के ज़रीये अपने ज़हूर का ऐलान किया है ताकि इंसान के फ़िद्ये का इलाही इंतिज़ाम आश्कारा हो जाये।

ब - ख़ुदा की अबुव्वत

मसीह की उलूहियत पर ग़ौर करने से पहले आईए हम उन बयानात और मशहूर ऐलानात को पढ़ें जो किताब-ए-मुक़द्दस (बाइबिल) में मसीह के ताल्लुक़ से ख़ुदा की अबुव्व्त के बारे में हैं।

इन्जील मुक़द्दस लूक़ा 1: 31,32 में हम पढ़ते हैं कि ख़ुदा तआला के फ़रिश्ते ने मुक़द्दसा मर्यम से कहा “देख तू हामिला होगी और तेरे बेटा होगा। उस का नाम येसू रखना। वो बुज़ुर्ग होगा और ख़ुदा तआला का बेटा कहलाएगा।”

जब येसू की पैदाईश हुई तो यसअयाह नबी की नबुव्वत पूरी हुई “देखो एक कुंवारी हामिला होगी और बेटा पैदा होगा और वो उस का नाम इम्मानुएल (ख़ुदा हमारे साथ) रखेगी।” (यसअयाह 7:14, मत्ती 1:23)

फिर हम येसू के बपतिस्मा के वक़्त के बारे में पढ़ते हैं कि “और येसू बपतिस्मा लेकर फ़ील-फ़ौर पानी के पास से ऊपर गया और देखो उसके लिए आस्मान खुल गया और उस ने ख़ुदा के रूह को कबूतर की मानिंद उतरते और अपने ऊपर आते देखा। और आस्मान से ये आवाज़ आई कि ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे मैं ख़ुश हूँ।” (मत्ती 3:16-17)

मज़ीद बरआँ हम पढ़ते हैं कि जब येसू पहाड़ पर अपने तीन शागिर्दों के साथ थे तो आपने मूसा और एलियाह से कलाम किया और अभी मसरूफ़ तकल्लुम ही थे कि “एक नूरानी बादल ने उन पर साया कर लिया और उस बादल में से आवाज़ आई कि ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे मैं ख़ुश हूँ उस की सुनो।” (मत्ती 17:5)

ज - मसीह के बयान

आईए अब उन ऐलानों को देखें जो मसीह ने ख़ुद अपनी तरफ़ किए हैं।

मसीह ने अपनी एक तम्सील में बयान किया है कि “अंगूर का हक़ीक़ी दरख़्त मैं हूँ और मेरा बाप बाग़बान है।” (यूहन्ना 15:1)

फिर यूहन्ना 10:27-29 में लिखा है कि "मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं और मैं उन्हें जानता हूँ और वो मेरे पीछे पीछे चलती हैं। और मैं उन्हें हमेशा की ज़िंदगी बख़्शता हूँ और वो अबद तक कभी हलाक ना होंगी और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन ना लेगा कोई उन्हें बाप के हाथ से नहीं छीन सकता।”

फिर अपने अलविदाई पैग़ाम में मसीह ने फ़रमाया “मैं तुमसे सच्च कहता हूँ कि जो मुझ पर ईमान रखता है ये काम जो मैं करता हूँ वो भी करेगा बल्कि इन से भी बड़े काम करेगा क्योंकि मैं बाप के पास जाता हूँ। और जो कुछ तुम मेरे नाम से चाहोगे मैं वही करूंगा ताकि बाप बेटे में जलाल पाए।” (यूहन्ना 14:13,12)

एक मौक़े पर यहूदी लोग फ़ख़्रिया कहने लगे कि मूसा ने तो उन्हें मन व सलवा ब्याबान में दिया था तो मसीह ने उन्हें फ़रमाया “मैं तुमसे सच्च कहता हूँ कि मूसा ने तो वो रोटी आस्मान से तुम्हें ना दी लेकिन मेरा बाप तुम्हें आस्मान से हक़ीक़ी रोटी देता है।” (यूहन्ना 6:32)

एक और मौक़े पर दूसरे लोगों से मसीह ने फ़रमाया “मैं तुमसे सच्च कहता हूँ कि बेटा आपसे कुछ नहीं कर सकता सिवा उस के जो बाप को करते देखता है क्योंकि जिन कामों को वो करता है उन्हें बेटा भी उसी तरह करता है। इसलिए कि बाप बेटे को अज़ीज़ रखता है और जितने काम ख़ुद करता है उसे दिखाता है…. जिस तरह बाप मुर्दों को उठाता और ज़िंदा करता है उसी तरह बेटा भी जिन्हें चाहता है ज़िंदा करता है। क्योंकि बाप किसी की अदालत भी नहीं करता बल्कि उस ने अदालत का सारा काम बेटे के सपुर्द किया है। ताकि सब लोग बेटे की इज़्ज़त करें जिस तरह बाप की इज़्ज़त करते हैं।... मैं तुमसे सच्च कहता हूँ कि वो वक़्त आता है बल्कि अभी है कि मुर्दे ख़ुदा के बेटे की आवाज़ सुनेंगे और जो सुनेंगे वो जिएँगे।” (यूहन्ना 5:19-25)

बादअज़ां लोगों को तालीम देते हुए आपने फ़रमाया “मैं तुमसे सच्च कहता हूँ कि जो कोई गुनाह करता है गुनाह का ग़ुलाम है। और ग़ुलाम अबद तक घर में नहीं रहता बेटा अबद तक रहता है। पस अगर बेटा तुम्हें आज़ाद करेगा तो तुम वाक़ई आज़ाद होगे।” (यूहन्ना 8:34-36)

लोगों से गुफ़्तगु करते हुए एक बार आपने फ़रमाया “मेरा बाप अब तक काम करता है और मैं भी काम करता हूँ। इस सबब से यहूदी और भी ज़्यादा उसे क़त्ल करने की कोशिश करने लगे कि वो ना फ़क़त सबत का हुक्म तोड़ता है बल्कि ख़ुदा को ख़ास अपना बाप कह कर अपने आपको ख़ुदा के बराबर बनाता है।” (यूहन्ना 5:17-18)

इसी तरह एक मर्तबा अपने सामईन को मुख़ातिब करते हुए आपने फ़रमाया “मेरे बाप की तरफ़ से सब कुछ मुझे सौंपा गया और कोई बेटे को नहीं जानता सिवा बाप के और कोई बाप को नहीं जानता सिवा बेटे के और उस के जिस पर बेटा उसे ज़ाहिर करना चाहे। ऐ मेहनत उठाने वालो और बोझ से दबे हुए लोगो सब मेरे पास आओ मैं तुमको आराम दूंगा।” (मत्ती 11:27-28)

अब इन सारे ऐलानों पर ग़ौर करें तो लगता है कि ना कोई इन्सान, ना कोई नबी और रसूल, ना आस्मान का कोई फ़रिश्ता, ना कोई फ़रिश्तों का सरदार येसू मसीह की अजीब व ग़रीब शख़्सियत के भेद का इदराक करने की अहलीयत रखता है। इसी नुक्ते की तरफ़ यसअयाह नबी ने भी इशारा किया था। इस से इस बात की भी बख़ूबी सराहत हो जाती है कि येसू मसीह की ज़ात व शख़्सियत ऐसी ग़ैर-महदूद है कि सिवा बाप के और किसी को मक़्दूर (ताक़त) नहीं कि उसे पूरे तौर पर समझ सके। अगर येसू एक आम इंसान होते तो इस क़िस्म का बयान ना दिया गया होता। बिलाशक व शुब्हा ये अज़ीम ऐलान बाप के साथ उस की वहदत अज़लिया के एतबार से मसीह की रिसालत व ख़िदमत पर दलालत करता है कि वो उस बाप को जो अनदेखा है लोगों पर ज़ाहिर व मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) करे।

ये मुकाशफ़ा जिसका ऐलान मसीह ने किया एक नाक़ाबिले फ़हम मुअम्मा नज़र आ सकता है, लेकिन रूह-उल-क़ुद्दुस ने इन्जील यूहन्ना के मुसन्निफ़ को इस का इल्हाम कर दिया ताकि वो आयतों के एक सिलसिले के ज़रीये इस की वज़ाहत कर सके, जिसमें से वाज़ेह तर ये है कि “ख़ुदा को किसी ने कभी नहीं देखा। इकलौता बेटा जो बाप की गोद में है उसी ने ज़ाहिर किया।” (यूहन्ना 1:18) ये आयत हमें यक़ीन दिलाती है कि ना किसी बशर ने, ना किसी फ़रिश्ते ने ही कभी ख़ुदा को देखा है, ना उस की शायान-ए-शान कमा-हक़्क़ा इल्म से जाना है या इदराक किया है यानी उस की इलोही सिफ़ात के साथ कभी किसी ने ख़ुदा को ना देखा ना जाना है और जो कुछ भी मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) हुआ तो वो इल्हाम से या रोया से ही हासिल हुआ है। चुनान्चे ना कभी मूसा ने ना किसी और नबी ने कभी ख़ुदा को देखा है, हाँ जो कुछ ख़ुदा के बारे में मार्फ़त मिली है वो इल्हाम या रोया की बदौलत मिली है जिसका ज़रीया उक़नूम सानी येसू मसीह था क्योंकि तन्हा वही एक ऐसी शख़्सियत है जो ज़ात बारी के अक़ानीम सलसा के अफ़्क़ार को जानता है और आलम के लिए इलाही मक़ासिद का हुक्म रखता है और वही जसद इंसानी में ज़ाहिर हुआ।” (1 तीमुथियुस 3:16)

जब मसीह ने अपने शागिर्दों को कहा कि मैं और बाप एक ही हैं, जिसने मुझे देखा उस ने बाप को देखा, मैं बाप में हूँ और बाप मुझमें है तो वो उन्हें यक़ीन दिला रहे थे कि उन के और बाप के दर्मियान एक वहदत है कि इरादा व मशीयत में, मुक़ाम व मर्तबत व क़ुद्रत में और मजद व अज़मत में बाएतबार जोहर वो और बाप एक हैं।

द - रसूलों की गवाही

(1) मसीह के शागिर्द पतरस रसूल ने आपके बारे में उस वक़्त बड़ी साफ़ गवाही दी जब मसीह ने अपने शागिर्दों से पूछा कि “तुम मुझे क्या कहते हो? शमऊन पतरस ने जवाब दिया तू ज़िंदा ख़ुदा का बेटा मसीह है।” (मत्ती 16: 15,16)

(2) मसीह के एक दूसरे शागिर्द यूहन्ना ने आपके बारे में ये शहादत दी “(हम) ये भी जानते हैं कि ख़ुदा का बेटा आ गया है और उस ने हमें समझ बख़्शी है ताकि उस को जो हक़ीक़ी है जानें और हम उस में जो हक़ीक़ी है यानी उस के बेटे येसू मसीह में हैं। हक़ीक़ी ख़ुदा और हमेशा की ज़िंदगी यही है।” (1 यूहन्ना 6:20)

(2) मसीह के एक दूसरे शागिर्द यूहन्ना ने आपके बारे में ये शहादत दी “(हम) ये भी जानते हैं कि ख़ुदा का बेटा आ गया है और उस ने हमें समझ बख़्शी है ताकि उस को जो हक़ीक़ी है जानें और हम उस में जो हक़ीक़ी है यानी उस के बेटे येसू मसीह में हैं। हक़ीक़ी ख़ुदा और हमेशा की ज़िंदगी यही है।” (1 यूहन्ना 6:20)

ह - अम्बिया की गवाही

(1) हज़रत सुलेमान ने फ़रमाया “कौन आस्मान पर चढ़ा और फिर नीचे उतरा? किस ने हवा को मुट्ठी में जमा किया? किस ने पानी को चादर में बाँधा? किस ने ज़मीन की हुदूद ठहराईं? अगर तू जानता है तो बता उस का नाम क्या है और उस के बेटे का क्या नाम है? ख़ुदा का हर एक सुख़न (कलाम, बात) पाक है। वो उन की सिपर (ढाल) है जिनका तवक्कुल उस पर है।” (अम्साल 30:5,4)

(2) हज़रत दानीएल (दानयाल) ने फ़रमाया “मैंने रात को रोया में देखा और क्या देखता हूँ कि एक शख़्स आदमज़ाद की मानिंद आस्मान के बादलों के साथ आया और क़दीम-उल-अय्याम (ख़ुदा) तक पहुंचा। वो उसे उस के हुज़ूर लाए। और सल्तनत और हश्मत और ममलकत उसे दी गई ताकि सब लोग और उम्मतीं और अहले-लुग़त उस की ख़िदमतगुज़ारी करें। उस की सल्तनत अबदी सल्तनत है जो जाती ना रहेगी और उस की ममलकत लाज़वाल होगी।” (दानीएल 7:14,13)

(3) हज़रत यहया (यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले) ने फ़रमाया “तुम ख़ुद मेरे गवाह हो कि मैंने कहा मैं मसीह नहीं मगर उस के आगे भेजा गया हूँ।…. जो ऊपर से आता है वो सबसे ऊपर है।…. जो कुछ उस ने देखा और सुना उसी की गवाही देता है और कोई उस की गवाही क़ुबूल नहीं करता।…. बाप बेटे से मुहब्बत रखता है और उस ने सब चीज़ें उस के हाथ में दे दी हैं। जो बेटे पर ईमान लाता है हमेशा की ज़िंदगी उस की है लेकिन जो बेटे की नहीं मानता ज़िंदगी को ना देखेगा बल्कि उस पर ख़ुदा का ग़ज़ब रहता है।” (यूहन्ना 3:28-36)

ये सारी आयतें पेश करने के बाद ये बता देना ज़रूरी है कि मसीह को जो ख़ुदा का बेटा कहा गया है वो ज़ात-ए-इलाही के उक़नूम सानी होने की हैसियत से कहा गया है। चुनान्चे लफ़्ज़ बाप और बेटा मसीही अक़ीदे में इस क़िस्म के तसव्वुर से जो इंसान के हाँ बाप बेटे का है कोई इलाक़ा नहीं रखते।

किताब-ए-मुक़द्दस बाइबिल में अल-इब्न (बेटा) अल-कलमा को कहा गया है जो नादीदा ख़ुदा की सूरत है, उस के जलाल का पर्तो और उस की ज़ात का नक़्श और इम्मानुएल (ख़ुदा हमारे साथ) है। इस सबसे लफ़्ज़ इब्न का इज़्हार होता है। बिल्कुल जिस तरह कलमा (बात) ज़हन के ख़यालात की वज़ाहत का वसीला होता है और जो कुछ अक़्ल में है उस का ज़ाहिरी तौर पर ऐलान करता है इसी तरह जब कलमे ने जिस्म इख़्तियार किया तो उस ने ख़ुदा और उस के ख़यालात को इंसानियत पर ज़ाहिर किया। जिस तरह नक़्श किसी हईयत व सूरत की तर्जुमानी करता है उसी तरह येसू मसीह ख़ुदा तआला की तर्जुमानी करते हैं, जिस तरह सूरज की रोशनी जो कि ख़ुद सूरज का जोहर ही होती है उस की शान व शौकत को ज़ाहिर करती है इसी तरह येसू के ज़रीये ख़ुदा के मजद व इज़्ज़त, शान व जलाल और उलूहियत की रुहानी माहीयत (असलियत) की शान व अज़मत ज़ाहिर होती है। बस हुआ ये है कि उस ने अपनी मुहब्बत की ज़्यादती के बाइस उसे बदन की चादर में लपेट कर छिपा दिया है, और वो हमारी दुनिया में रहा ताकि हम ख़ुदा को देख और सुन सकें।

अब तक जो कुछ कहा गया है इस से ये मालूम हुआ कि अल-इब्न (बेटा) वो हस्ती है जिसने उलूहियत को ज़ाहिर किया और वो इंसानों पर ख़ुदा-ए-नादीदा को मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) करने का भी ज़रीया था। इसी तरह रूह-उल-क़ुद्दुस जो उक़नूम सालिसा है इंसान के ज़मीर तक ख़ुदा की आवाज़ पहुंचाने का ज़रीया है, क्योंकि हम रूह-उल-क़ुद्दुस के काम के बग़ैर मुकाशफ़ा की हक़ीक़ी नौईय्यत को समझ नहीं सकते, जो ऐलानात इलाहिया के इसरार व ग़वामिज़ को इंसान पर ज़ाहिर करता है और उस के इदराक की तरफ़ राहनुमाई करता है। इसी हक़ीक़त को जान लेने के बाद पौलुस रसूल ने ये कहा कि “ना कोई रूह-उल-क़ुद्दुस के बग़ैर कह सकता है कि येसू ख़ुदावंद है।” (1 कुरिन्थियों 12:3)

इस का बड़ा इम्कान रहता है कि लफ़्ज़ “बेटा” (इब्न) कुछ लोगों के दिमाग़ में इज़तिराब व बेचैनी का बाइस बन जाये, क्योंकि वो लफ़्ज़ “बाप” के साथ उस के ताल्लुक़ से फ़ौरन तसव्वुर करते हैं कि बाप तो ज़मानी लिहाज़ से बेटे से पहले होता है, इसलिए दोनों हस्तीयों में ज़माना और फ़र्क़ मुरातिब की वजह से बड़ा फ़र्क़ पड़ना ज़रूरी है। लेकिन इस मुक़ाम पर हम ये बताते चलें कि लफ़्ज़ बेटा बावजाह मज़ाफिन होने के किसी तरह भी ना कम होता है ना ज़्यादा यानी अदम मुसावात और तक़दीम के माअने की तरफ़ इशारा ही नहीं करता, क्योंकि लफ़्ज़ बाप का जब ख़ुदा पर इतलाक़ किया जाये तो ये उस वक़्त तक बे माअना होगा जब तक एक बेटा ना पाया जाये, और लफ़्ज़ बेटा भी इसी तरह बाप के वजूद का मुहताज होता है। किताब-ए-मुक़द्दस की तालीम यही है कि अज़ल से बाप है और बाप का लक़ब ख़ुद ही बिल-ज़रूर अज़ल से ही इब्न का वजूद चाहेगा और शायद इसी ख़याल ने मुसावात व बराबरी के मौज़ू पर अक़्ली परागंदगी को जन्म दिया है और ये परागंदगी उमूमन ज़हन इंसानी को लाहक़ होती है और उन्हें बाप के वजूद की सबक़त की तरफ़ ले जाती है और दोनों (बाप बेटे) की हस्तीयों के दर्मियान फ़ारिक़ ज़िमनी के तसव्वुर की बुनियाद डालती है। लेकिन हक़ीक़ी ताबीर यही है कि बिला तक़द्दुम व ताख़्ख़ुर उस वक़्त तक बाप का वजूद नहीं जब तक कि बेटा ना हो, इसलिए ख़ुदा तआला और उस के बेटे मसीह के साथ ज़माने के फ़र्क़ को मन्सूब करना मह्ज़ एक ख़्याली और मौहूमी बात है ख़ुसूसुन उस वक़्त तो और भी जबकि उस के साथ ये भी जोड़ दिया जाये कि अल्लाह तो वो ज़ात है जो ना जन्मा गया ना जन्म देता है (आम लोग दुनिया में विलादत के माअने यही लेते हैं कि जन्म होना नर व मादा के इख़तिलात से है) लेकिन जन्म की निस्बत ख़ुदा की तरफ़ करना बड़ी नीच सी बात है, इस ख़याल से हर मसीही पनाह मांगता है और उसे कुफ़्र मान कर रद्द करता है। हाँ रूहानी विलादत की निस्बत ख़ुदा तआला की तरफ़ करना अक़्ल से ज़्यादा क़रीब है।

हम ऐसी ताबीरों, इबारतों और अल्फ़ाज़ का बकस्रत इस्तिमाल करते हैं जैसे इब्न-उल-हक़ (सच्चाई का बेटा) या इब्न-उल-नूर (नूर का बेटा), जो कि इस ख़याल की तर्जुमानी करते हैं कि इन के और सच्चाई और नूर के दर्मियान तमासुल ताम है। इसी माअना में मसीह भी इब्ने-अल्लाह (खुदा के बेटे) कहे गए हैं क्योंकि ख़ुदा में और बेटे में एक मुकम्मल मुमासिलत है और बाहमी मुशाबहत व रिफ़ाक़त है, मसीह को ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि वो ख़ुदा की शख़्सियत के एक अज़ली, मुकम्मल और वाहिद मुकाशफ़ा हैं, जैसा कि हम इब्रानियों के ख़त 1:1-2 में भी पढ़ते हैं कि “अगले ज़माने में ख़ुदा ने बाप दादा से हिस्सा ब हिस्सा और तरह ब तरह नबियों की मार्फ़त कलाम कर के इस ज़माने के आख़िर में हमसे बेटे की मार्फ़त कलाम किया जिसे उस ने सब चीज़ों का वारिस ठहराया और जिसके वसीले से उस ने आलम भी पैदा किए।”

8 - मसीह की उलूहियत और इंसानियत

“लोग मुझे क्या कहते हैं?” ये एक सवाल है जो मसीह ने दो हज़ार साल पहले अपने शागिर्दों के सामने रखा था। ये एक इंतिहाई अहम सवाल है जिसकी सदाए बाज़गश्त तब से आज तक आलम में गूंज रही है और आज भी ये हर शख़्स से पूछा जा रहा है। शायद इस सवाल से ज़्यादा अहम और बड़ा सवाल तारीख़ में कभी पूछा ही नहीं गया। इस की एहमीय्यत इसलिए है कि इस सवाल में सारी इंसानियत से ताल्लुक़ रखने वाला मसअला निहां है। ये सवाल जब तक दुनिया क़ायम है जूं का तूं बना रहेगा। मज़ाहिब व एतिक़ाद के बीच इस सवाल ने एक ख़त-ए-फ़ासिल खींच दिया है, इसी के जवाब पर हर शख़्स का अंजाम मुन्हसिर है।

मसीहिय्यत की ये भी एक ख़ुसूसीयत है कि जो कुछ सय्यदना मसीह के बारे में कहा जाता है ये उस से ख़ौफ़ज़दा नहीं। मसीह ने ख़ुद ही इस मज़्हब की तामीर उस क़ुव्वत पर की है जिस पर जहन्नम के दरवाज़े कभी ग़ालिब नहीं आ सकते। मसीह ने ख़ुद आज़ादी राय को बढ़ाया और सराहा है, और कहीं पर भी ऐसा नज़र नहीं आता कि आपने ज़बरदस्ती किसी बात को किसी पर थोपा हो। मसीहिय्यत की तारीख़ के किसी भी दौर में मसीह की ज़ात व शख़्सियत के बारे में कभी तल्वार का इस्तिमाल नहीं किया गया है बल्कि उस ईमान को एहमीय्यत दी गई है जो यक़ीन-ए-कामिल पर क़ायम हो और जिसे दिल व दिमाग़ दोनों तस्लीम करें। इसी बुनियाद पर हम भी ये कहते हैं कि लोग मसीह की उलूहियत को ज़बरदस्ती क्यों मंज़ूर करें? या ऐसी राय पेश की ही क्यों जाये और लोग ऐसे अटल हो जाएं कि अगर कोई उस के ख़िलाफ़ कभी कुछ कह भी दे तो ग़ेय्ज़ (गुस्सा) व ग़ज़ब में आ जाएं। इसलिए हम वो तमाम मुख़्तलिफ़ आरा क़ारईन के सामने पेश करते हैं जो मसीह के बारे में रखी गई हैं।

अलिफ़ - मसीह में सिर्फ कामिल उलूहियत थी

ग़िनास्ती फ़िर्क़े ने आम मसीहियों के अक़ीदे के ख़िलाफ़ ये माना कि मसीह सिर्फ एक इलोही वजूद थे। ये लोग अक़ीदा तजस्सुम के भी क़ाइल ना थे, जबकि आम मसीही ये मानते हैं कि मसीह में उलूहियत भी थी और इंसानियत भी, लेकिन ग़िनास्ती लोगों ने उन की इंसानियत का इन्कार किया। उन लोगों का कहना था कि मसीह इंसान की शक्ल में तो ज़रूर ज़ाहिर हुए लेकिन वो इंसानी जिस्म कोई हक़ीक़ी जिस्म ना था, ना ही उन की विलादत हुई, ना उन्हों ने दुख उठाया, और ना हक़ीक़ी मौत का मज़ा चखा क्योंकि जो जिस्म उन के साथ नज़र आ रहा था वो अस्ल में एक ज़ुल या छाया था। फिर बाद में इस फ़िर्क़े में एक और जमाअत पैदा हुई जिसने ये माना कि मसीह का बदन इंसानों के बदन की तरह माद्दी ना था बल्कि वो एक ख़ास आस्मानी जोहर था।

ग़िनास्ती फ़िर्क़े ने आम मसीहियों के अक़ीदे के ख़िलाफ़ ये माना कि मसीह सिर्फ एक इलोही वजूद थे। ये लोग अक़ीदा तजस्सुम के भी क़ाइल ना थे, जबकि आम मसीही ये मानते हैं कि मसीह में उलूहियत भी थी और इंसानियत भी, लेकिन ग़िनास्ती लोगों ने उन की इंसानियत का इन्कार किया। उन लोगों का कहना था कि मसीह इंसान की शक्ल में तो ज़रूर ज़ाहिर हुए लेकिन वो इंसानी जिस्म कोई हक़ीक़ी जिस्म ना था, ना ही उन की विलादत हुई, ना उन्हों ने दुख उठाया, और ना हक़ीक़ी मौत का मज़ा चखा क्योंकि जो जिस्म उन के साथ नज़र आ रहा था वो अस्ल में एक ज़ुल या छाया था। फिर बाद में इस फ़िर्क़े में एक और जमाअत पैदा हुई जिसने ये माना कि मसीह का बदन इंसानों के बदन की तरह माद्दी ना था बल्कि वो एक ख़ास आस्मानी जोहर था।

“ऐ अज़ीज़ो हर एक रूह का यक़ीन ना करो बल्कि रूहों को आज़माओ कि वो ख़ुदा की तरफ़ से हैं या नहीं क्योंकि बहुत से झूटे नबी दुनिया में निकल खड़े हुए हैं। ख़ुदा के रूह को तुम इस तरह पहचान सकते हो कि जो कोई रूह इक़रार करे कि येसू मसीह मुजस्सम हो कर आया है वो ख़ुदा की तरफ़ से है। और जो कोई रूह येसू का इक़रार ना करे वो ख़ुदा की तरफ़ से नहीं और यही मुख़ालिफ़-ए-मसीह की रूह है जिसकी ख़बर तुम सुन चुके हो कि वो आने वाली है बल्कि अब भी दुनिया में मौजूद है।”

ब - मसीह सिर्फ़ इंसान थे

ये अक़ीदा भी ग़िनास्ती अक़ीदे से कम ताज्जुब ख़ेज़ नहीं क्योंकि इस ख़याल के पैरौ (मानने वाले) मसीह में उलूहियत को नहीं मानते और सिर्फ उन की इंसानियत पर यक़ीन करते हैं। वो कहते हैं कि मसीह एक कामिल तरीन इंसान थे, यानी ज़मीन पर पाए जाने वाले सारे लोगों में से सबसे आला इंसान थे। इसलिए उन की अज़मत व बुजु़र्गी को एक अज़ीम रहनुमा और सूरमा और शहीद के तौर पर मानना चाहीए। ग़ालिबन इस का सबसे उम्दा जवाब वो है जो डाक्टर कोनराड ने दिया है कि “जो लोग इस नतीजे पर पहुंचे हैं बड़ी ग़लती पर हैं क्योंकि उन के लिए मसीह को कोई रहनुमा या हीरो मानना मुश्किल है, वजह ये है कि जो कुछ ख़ुद मसीह ने अपने बारे में कहा है उसी को उन लोगों ने रद्द कर दिया है ऐसी हालत में मसीह की दो ही हैसियतें हो सकती थीं यानी या तो वो ख़ुद सबसे बड़े धोका बाज़ थे और या वो ख़ुद धोके में थे, और इन सूरतों में वो ख़ुद एक बड़ी क़ाबिल-ए-रहम हस्ती हुए, फिर उन्हें इज़्ज़त व शर्फ देना बेवक़ूफ़ी है। हक़ीक़त में बात तो ये है कि अगर मसीह क़ाबिल-ए-परस्तिश नहीं तो उन्हें इज़्ज़त का कोई मुक़ाम देने की भी ज़रूरत नहीं क्योंकि जिस चीज़ के मुतक़ाज़ी थे यानी इबादत व जलाल वो तो उन्हें दिया ही नहीं जा सका।”

ज - मसीह की शख़्सियत में उलूहियत और इंसानियत की यगानगत

ये वो राय है जो मसीही उम्मत या कलीसिया में शुरू से राइज है, इसलिए इसे क़बूलीयत आम हासिल है और इसी की मुनादी व बशारत की जाती है। इस राय का ख़ुलासा ये है कि मसीह में दो कामिल तबीयतें थीं, क्योंकि वो कामिल ख़ुदा और कामिल इन्सान है।

शायद पूछने वाला पूछ बैठे कि आख़िर कलीसियाई काऊंसिलों और लोगों के सामने आख़िर वो क्या मज्बूरी थी जिसने उलूहियत मसीह को तस्लीम करने पर आमादा किया? और ये एतिक़ाद ऐसा जड़ पकड़ गया कि लातादाद इंसानों ने इस की हिफ़ाज़त में अपनी जान-ए-अज़ीज़ को दाओ पर लगा दिया और शहादत हासिल की? क्यों इस एतिक़ाद के मानने वालों में बड़े बड़े मुफ़क्किरीन थे जो हर ज़माने में रहे हैं, और आख़िर उन के पास ऐसी कौन सी हुज्जत और दलील क़ातेअ थी जिस पर उनका तकिया था?

ऐसे सवालात के जवाबात देने ज़रूरी हैं। आईए वो सबूत देखें :-

(1) नबुव्वतों पर मबनी सबूत

आग़ाज़-ए-तारीख़ से किताब-ए-मुक़द्दस की आख़िरी किताब के क़रीबन चार हज़ार साल के दर्मियानी अर्से में हमें नबुव्वतों और पेशीनगोइयों की मुतवातिर और मुसलसल कड़ियाँ नज़र आती हैं। इन पेशीनगोइयों को मसीहियों की ईजाद कह कर टाल देना इतना आसान नहीं है क्योंकि मसीहिय्यत के जन्म लेने से बहुत पहले ये नबुव्वतें इल्हामी किताबों के तूमारों पर लिखी थीं। इन में से आख़िरी किताब का ताल्लुक़ तक़रीबन मसीह की आमद से चार सौ (400) साल पहले के अर्से से है। इन नबुव्वतों का ख़ुलासा ये है कि आस्मान से इंसानी सूरत में एक इलाही शख़्स ज़ाहिर होगा ताकि दुनिया का नजात देने वाला बन सके। ये हस्ती इब्राहिम की नस्ल से और औरत के पेट से जन्म लेगी, यहां तक कह दिया गया कि वो यहूदाह के क़बीले और दाऊद के घराने से होगा। एक कुँवारी से पैदा होगा जिसमें किसी क़िस्म का ऐब या गंदगी ना होगी, और वो शहर बैत-लहम यानी दाऊद के शहर में पैदा होगा। इस के साथ ये भी बताया गया कि वो हस्ती ख़ुदा-ए-क़ादिर अबदी व सरमदी होगी। अब देखिए ये बातें उस वक़्त तक मुम्किन नहीं जब तक तजस्सुम वाक़ेअ ना हो और लाहूत नासूत को लपेट में ना ले और उनका इत्तिहाद अमल में ना आए। इन बातों की ताईद करने वाली आयतें ये हैं :-

“हमारे लिए एक लड़का तवल्लुद हुआ और हमको एक बेटा बख़्शा गया और सल्तनत उस के कंधे पर होगी और उस का नाम अजीब मुशीर ख़ुदा-ए-क़ादिर अबदीयत का बाप सलामती का शाहज़ादा होगा।” (यसअयाह 6:9)

“ख़ुदावंद आप तुमको एक निशान बख़्शेगा। देखो एक कुंवारी हामिला होगी और बेटा पैदा होगा और वो उस का नाम इम्मानुएल रखेगी।” (यसअयाह 7:14)

मत्ती 1:23 में बताया गया है कि इम्मानुएल का मतलब है “ख़ुदा हमारे साथ।”

“यहोवा ने मेरे ख़ुदावंद से कहा तू मेरे दहने हाथ बैठ जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाओं की चौकी ना कर दूं।” (ज़बूर 110:1)

ये इबारत बड़ी एहमीय्यत की हामिल है जिसकी तफ़्सीर हमें सिवाए ईमान के और कोई नहीं मिल सकती कि ये माना जाये कि ये बाप और बेटे के दर्मियान एक मुकालमा है और इस में मुतकल्लिम ख़ुद ख़ुदा है।

“लेकिन ऐ बैत-लहम इफराताह अगरचे तू यहूदाह के हज़ारों में शामिल होने के लिए छोटा है तो भी तुझमें से एक शख़्स निकलेगा और मेरे हुज़ूर इस्राईल का हाकिम होगा और उस का मुसद्दिर ज़माना साबिक़ हाँ क़दीम-उल-अय्याम से है।” (मीकाह 5:2)

(2) मसीह के अक़्वाल पर मबनी सबूत

सिपरजिन नाम के एक मर्द-ए-ख़ुदा जो एक मशहूर वाइज़ थे फ़र्माते हैं कि “मसीह दुनिया की तारीख़ में ऐसी मर्कज़ी हक़ीक़त हैं कि तारीख़ के सारे फ़ैज़ान और बहाओ आप ही के दस्त-ए-क़ुद्रत के तहत हो कर बहते हैं और ज़िंदगी के सारे अज़ीम मक़ासिद उन की शख़्सियत ही में आकर मुकम्मल होते हैं।”

इस पर मुस्तज़ाद ये कि आपके सारे मोअजज़ात, हैरत-अंगेज़ काम, आपके बोले हुए अल्फ़ाज़ की तस्दीक़ करते और गवाह बनते नज़र आते हैं। मसीह ने बीसियों हक़ाइक़ अपने बारे में बताए हैं जो सिवाए ख़ुदा के किसी और के साथ मन्सूब किए ही नहीं जा सकते। कुछ अहम हक़ाइक़ ये हैं :-

अलिफ़ - आपका अज़ली वजूद

ग़ालिबन आपकी ज़बान मुबारका से निकला हुआ वो जुम्ला बड़ी एहमीय्यत का हामिल है जो आपने यहूदी मज़्हबी रहनुमाओं के सामने फ़रमाया था :-

“मैं तुमसे सच्च कहता हूँ कि पेश्तर इस से कि अब्रहाम पैदा हुवा मैं हूँ।” (यूहन्ना 8:58)

“मैं हूँ” वही अल्फ़ाज़ हैं जो ख़ुदा ने ख़ुद अपने लिए और अपनी ज़ात के लिए उस वक़्त फ़रमाए जब मूसा नबी ने उन से पूछा था कि “जब मैं बनी-इस्राईल के पास जा कर उन को कहूं कि तुम्हारे बाप दादा के ख़ुदा ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है और वो मुझे कहें कि उस का नाम क्या है? तो मैं उन को क्या बताऊं? ख़ुदा ने मूसा से कहा मैं जो हूँ सो मैं हूँ। सो तू बनी-इस्राईल से यूं कहना कि मैं जो हूँ ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।” (ख़ुरूज 3:14,13)

इस से मालूम होता है कि मसीह ने अपनी ज़ात में उसी ख़ुदा को ज़ाहिर किया जो हज़रत मूसा पर कोह होरेब पर जलती झाड़ी में ज़ाहिर हुआ था।

इन्जील मुक़द्दस यूहन्ना 17:5 में ये लिखा है कि मसीह ने अपनी शिफ़ाअती दुआ में कहा : “और अब ऐ बाप तू उस जलाल से जो मैं दुनिया की पैदाईश से पेश्तर तेरे साथ रखता था मुझे अपने साथ जलाली बना दे।”

और फिर आयत 24 में लिखा है कि “ऐ बाप मैं चाहता हूँ कि जिन्हें तू ने मुझे दिया है जहां मैं हूँ वो भी तेरे साथ हों ताकि मेरे उस जलाल को देखें जो तू ने मुझे दिया है क्योंकि तू ने बिना-ए-आलम से पेश्तर मुझसे मुहब्बत रखी।”

ये अल्फ़ाज़ मसीह के अज़ली वजूद का यक़ीन दिलाते हैं और मसीह को हादिस या नोपिद अब कौन सी ज़बान कह सकती है।

ब - आपका आस्मान से आना

यहूदीयों के साथ एक और गुफ़्तगु के दौरान मसीह ने कहा “तुम नीचे के हो। मैं ऊपर का हूँ। तुम दुनिया के हो। मैं दुनिया का नहीं हूँ।” (यूहन्ना 8:23)

फिर निकुदेमुस नाम एक यहूदी मज़्हबी रहनुमा से दौरान-ए-गुफ़्तगु मसीह ने फ़रमाया “आस्मान पर कोई नहीं चढ़ा सिवा उस के जो आस्मान से उतरा यानी इब्ने आदम (ख़ुद मसीह) जो आस्मान में है।” (यूहन्ना 3:13)

मज़ीद बरआँ मुकाशफ़ा 22:13 में हम पढ़ते हैं कि “मैं अल्फ़ा और ओमेगा, अव़्वल व आख़िर, इब्तिदा व इंतिहा हूँ।”

यहां हम देखते हैं कि मसीह ने आस्मान से ना सिर्फ अपनी आमद के बारे में बताया है बल्कि ये भी कि उनका वजूद और हुज़ूरी आस्मान में उस वक़्त भी बरक़रार थी जब वो इस रुए-ज़मीन पर मौजूद थे।”

ज - आपकी तमाम जगहों और तमाम ज़मानों में मौजूदगी

मत्ती 18:20 में आया है कि “जहां दो या तीन मेरे नाम पर इखट्ठे हैं वहां मैं उन के बीच में हूँ।”

और मसीह ने अपने जी उठने के बाद अपने शागिर्दों को ये हुक्म दिया कि “पस तुम जा कर सब क़ौमों को शागिर्द बनाओ और उन को बाप और बेटे और रूह-उल-क़ुद्दुस के नाम से बपतिस्मा दो। और उन को ये तालीम दो कि उन सब बातों पर अमल करें जिनका मैंने तुमको हुक्म दिया और देखो मैं दुनिया के आख़िर तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती 28:19-20)

द - आपका ग़ैर-महदूद इख़्तियार

मसीह जब पतमस के जज़ीरे में यूहन्ना पर रोया में ज़ाहिर हुए तो कहा “ख़ुदावंद ख़ुदा जो है और जो था और जो आने वाला है यानी क़ादिर मुतलक फ़रमाता है कि मैं अल्फ़ा और ओमेगा हूँ।” (मुकाशफ़ा 1:8)

(3) मसीह के अलक़ाबात और इलाही अफ़आल पर मबनी सबूत
अलिफ़ - आप का ख़ालिक़ होना

मुन्दरिजा ज़ैल आयात इस हक़ीक़त को वाज़ेह करती हैं

“सब चीज़ें उस के वसीले से पैदा हुईं और जो कुछ पैदा हुआ है उस में से कोई चीज़ भी उस के बग़ैर पैदा नहीं हुई। उस में ज़िंदगी थी और वो ज़िंदगी आदमीयों का नूर थी।” (यूहन्ना 1:4,3)

“क्योंकि उसी में सब चीज़ें पैदा की गईं। आस्मान की हों या ज़मीन की। देखी हों या अनदेखी। तख़्त हों या रियासतें या हुकूमतें या इख्तियारात। सब चीज़ें उसी के वसीले से और उसी के वास्ते पैदा हुई हैं।” (कुलस्सियों 1:16)

“सब पर ये बात रोशन करो कि जो भेद अज़ल से सब चीज़ों के पैदा करने वाले ख़ुदा में पोशीदा रहा उसका क्या इंतिज़ाम है।” (इफ़िसियों 3:9)

ब - आपका मुर्दों को ज़िंदा कर देना

“जब वो (येसू) शहर के फाटक के नज़्दीक पहुंचा तो देखो एक मुर्दे को बाहर लिए जाते थे। वो अपनी माँ का इकलौता बेटा था और वो बेवा थी और शहर के बहुतेरे लोग उसके साथ थे। उसे देखकर ख़ुदावंद (मसीह) को तरस आया और उस से कहा मत रो। फिर उस ने पास आकर जनाज़े को छुवा और उठाने वाले खड़े हो गए और उस (मसीह) ने कहा, ऐ जवान मैं तुझसे कहता हूँ उठ (क़ुम) वो मुर्दा उठ बैठा और बोलने लगा और उस ने उसे उस की माँ को सौंप दिया।” (लूक़ा 7:12-15)

“उस ने बुलंद आवाज़ से पुकारा कि ऐ लाज़िर निकल आ! जो मर गया था वो कफ़न से हाथ पाओं बंधे हुए निकल आया और उसका चेहरा रूमाल से लिपटा हुआ था। येसू ने उन से कहा उसे खोल कर जाने दो।” (यूहन्ना 11:44,43)

ज - आप मुंसिफ़ आलिम होंगे

“जब इब्ने-आदम अपने जलाल में आएगा और सब फ़रिश्ते उस के साथ आएँगे तब वो अपने जलाल के तख़्त पर बैठेगा और सब कौमें उस के सामने जमा की जाएँगी और वो एक को दूसरे से जुदा करेगा जैसे चरवाहा भेड़ों को बकरीयों से जुदा करता है”। (मत्ती 25:32,31)

“बाप किसी की अदालत भी नहीं करता बल्कि उस ने अदालत का सारा काम बेटे के सपुर्द किया है।” (यूहन्ना 22:5)

द - आप लायक़ परस्तिश हैं

“ताकि सब लोग बेटे की इज़्ज़त करें जिस तरह बाप की इज़्ज़त करते हैं। जो बेटे की इज़्ज़त नहीं करता वो बाप की जिसने उसे भेजा इज़्ज़त नहीं करता।” (यूहन्ना 5:23)

याद रहे बाप के साथ बेटे की इबादत व परस्तिश मर्दान-ए-ख़ुदा के बीच अह्दे-अतीक़ के ज़माने में भी राइज थी। मसलन दाऊद नबी ने कहा “डरते हुए ख़ुदावंद की इबादत करो। काँपते हुए ख़ुशी मनाओ बेटे को चूमो। ऐसा ना हो कि वो क़हर में आए और तुम रास्ते में हलाक हो जाओ क्योंकि उस का ग़ज़ब जल्द भड़कने को है। मुबारक हैं वो सब जिनका तवक्कुल उस पर है।” (ज़बूर 2:12,11)

ह - आप ग़ाफ़िर-उल-ज़ुनुब हैं (गुनाह बख़्शते हैं)

यहूदी हमेशा ये मानते थे कि गुनाहों की माफ़ी का इख़्तियार सिर्फ़ ख़ुदा ही को है और जब उन्हों ने मसीह को एक मोअजिज़ा करते वक़्त मफ़लूज को ये ख़िताब करते सुना कि “बेटा तेरे गुनाह माफ़ हुए।” (मर्क़ुस 2:5) यहूदी आपके इस अमल व सुलूक से निहायत ही मुज़्तरिब व परेशान हो रहे थे तो मसीह ने फ़रमाया “तुम क्यों अपने दिलों में ये बातें सोचते हो? आसान क्या है? मफ़लूज से ये कहना कि तेरे गुनाह माफ़ हुए या ये कहना कि उठ और अपनी चारपाई उठा कर चल फिर? लेकिन इसलिए कि तुम जानो कि इब्ने-आदम को ज़मीन पर गुनाह माफ़ करने का इख़्तियार है। (उस ने उस मफ़लूज से कहा) मैं तुझसे कहता हूँ उठ अपनी चारपाई उठा कर अपने घर चला जा। और वो उठा और फ़ील-फ़ौर चारपाई उठा कर उन सब के सामने बाहर चला गया। चुनान्चे वो सब हैरान हो गए और ख़ुदा की तम्जीद कर के कहने लगे हमने ऐसा कभी नहीं देखा था।” (मर्क़ुस 2:8-12)

व - आप हयात-ए-अबदी बख़्शते हैं

आपने फ़रमाया “मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं और मैं उन्हें जानता हूँ और वो मेरे पीछे पीछे चलती हैं। और मैं उन्हें हमेशा की ज़िंदगी बख़्शता हूँ और वो अबद तक कभी हलाक ना होंगी और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन ना लेगा।” (यूहन्ना 10:27-28)

ज़ - आप बाप के मुसावी (बराबर) हैं

आपने फ़रमाया :-

“मैं और बाप एक हैं।” (यूहन्ना 10:30)

“जिसने मुझे देखा उस ने बाप को देखा। तू क्योंकर कहता है कि बाप को हमें दिखा? क्या तू यक़ीन नहीं करता कि मैं बाप में हूँ और बाप मुझमें है? ये बातें जो मैं तुमसे कहता हूँ अपनी तरफ़ से नहीं कहता लेकिन बाप मुझमें रह कर अपने काम करता है। मेरा यक़ीन करो कि मैं बाप में हूँ और बाप मुझमें। नहीं तो मेरे कामों ही के सबब से मेरा यक़ीन करो।” (यूहन्ना 14:8-11)

ह - आपने सुजूद व तअब्बुद (इबादत) क़ुबूल किया

इस में तो शक ही नहीं कि येसू ने परस्तिश व सज्दे को क़ुबूल किया जो किसी भी बशर (इंसान) के लिए जायज़ नहीं। ये बात उस वक़्त वाक़ेअ हुई जब एक जन्म के अंधे से जनाब मसीह ने पूछा “क्या तू ख़ुदा के बेटे पर ईमान लाता है? उस ने जवाब में कहा ऐ ख़ुदावंद वो कौन है कि मैं उस पर ईमान लाऊँ? येसू ने उस से कहा तू ने तो उसे देखा है और जो तुझसे बातें करता है वही है। उस ने कहा ऐ ख़ुदावंद मैं ईमान लाता हूँ और उसे सज्दा किया।” (यूहन्ना 9:35-38)

(4) मसीह के शागिर्दों की गवाही पर मबनी सबूत

ये गवाही उन लोगों की है जिन्हों ने मसीह की अज़मत और शान को ऐलानीया तौर पर देखा। ये सारी शहादतें (गवाहियाँ) मुकम्मल और सारे शकूक से पाक हैं। मसलन कुछ आपके सामने पेश की जा रही हैं :-

अलिफ़ - तोमा की गवाही

इस शागिर्द (तोमा) ने मसीह के जी उठने के बाद जब उन के हाथों में कीलों से छेदे जाने के निशान देखे और पहलू पर उस ज़ख़्म को देखा जिसे छेदा गया था तो ईमान लाया और पुकार उठा “ऐ मेरे ख़ुदावंद ऐ मेरे ख़ुदा!” (यूहन्ना 20:28)

ब - यूहन्ना की गवाही

इस शागिर्द ने ख़ुदा के इल्हाम से कहा “हम उस में जो हक़ीक़ी है यानी उस के बेटे येसू मसीह में हैं। हक़ीक़ी ख़ुदा और हमेशा की ज़िंदगी यही है।” (1 यूहन्ना 5:20)

ज - पौलुस की गवाही

पौलुस रसूल ने गवाही दी कि : “जिस्म के रू से मसीह भी उन ही में से हुआ जो सब के ऊपर और अबद तक ख़ुदा-ए-महमूद है। आमीन” (रोमीयों 5:9)

9 - अक़ीदा तस्लीस-फ़ील-तौहीद

मसीहिय्यत का ये मानना है कि ख़ुदा तआला एक रूह है जो माद्दी जिस्म नहीं रखता कि जिसे देखा या छुआ जा सके या जो हवास से मालूम किया जा सके, जैसा कि मसीह ने ख़ुद बता दिया है “ख़ुदा रूह है और ज़रूर है कि उस के परस्तार रूह और सच्चाई से परस्तिश करें।” (यूहन्ना 4:24)

एक जगह ख़ुदा को रूहों का बाप भी कहा गया है कि उस ने उन्हें अपनी सूरत और शबिया पर पैदा किया है, जैसा कि हम पढ़ते हैं : “फिर ख़ुदा ने कहा कि हम इंसान को अपनी सूरत पर अपनी शबिया की मानिंद बनाएँ।” (पैदाईश 1:26)

ख़ुदा वाहिद है और तीन अक़ानीम बाप, बेटा और रूह-उल-क़ुद्दुस का हामिल है।

ईमान के इस रुक्न पर यानी अक़ीदा सालूस पर जब हम ग़ौर करते हैं तो ये एतराफ़ करना ही पड़ता है कि हम एक ऐसे बड़े राज़ या भेद से दो-चार हो रहे हैं जो ज़िंदगी और वजूद के बेहद गहरे भेदों में से एक है।

मुक़द्दस अगस्तीन ने भी अपने ज़माने में और उस के बाद एक अज़ीम मुस्लेह (मुजद्दिद, सुधारक) केल्विन ने भी यही माना है कि लातीनी ज़बान गो कि मुफ़रिदात और लुगात के और हुस्न व जमाल के मुआमलात के बयान करने में बड़ी मालदार है फिर भी वो इस भेद की गहराई की ताबीर में पूरे तौर पर लाचार है।

ये बात यक़ीनी और वाज़ेह है कि मसीहियों ने तस्लीस-फ़ील-तौहीद का अक़ीदा किसी इंसान से नहीं सीखा था, ना ही ये किसी इंसानी दिमाग़ की पैदावार है बल्कि ये वो हक़ीक़त है जिसका ख़ुदावंद तआला की तरफ़ से ऐलान हुआ है और बाइबिल मुक़द्दस में शुरू से आख़िर तक मिलता है। इस मौज़ू पर कुछ और लिखने से बेहतर है कि हम वो सब जमा करें जो कलीसिया या मसीही जमाअत का मसीह के बारे में तारीख़ी हैसियत से अक़ीदा रहा है और अब एक हरफ़-ए-आख़िर की सूरत में दुनिया के सामने मौजूद है।

मसीह के शागिर्दों और रसूलों के ज़माने में हत्ता कि दूसरी मसीही सदी तक भी मसीहियों ने कोई बंधा टिका मसीही अक़ीदा तशकील नहीं दिया था बल्कि इस तरफ़ ना कभी ध्यान दिया और ना सोचा था क्योंकि वो इस बात से मुत्मइन थे कि सारे लोग उन्ही बातों और तालीम पर कारबन्द हैं जो बाइबिल मुक़द्दस में मर्क़ूम हैं। अगर कभी कोई मसअला दरपेश होता तो वो रसूलों और उन के शागिर्दाने-रशीद की तरफ़ रुजू करते या उन की तरफ़ जो उन के जांनशीन थे।

ताहम बाद के दौर में जब कुछ ग़लत-सलत और ग़ैर-मुसल्लिमा तालीम रिवाज पाने लगी तो उस ने इख़्तिलाफ़ात को जन्म देना शुरू किया। सबसे अहम नुक़्ता जिस पर इख़्तिलाफ़ात ने सर उठाना शुरू किया वो “हैसियत-ए-मसीह” या “ज़ात-ए-उलूहियत में से सदूर रूह-उल-क़ुद्दुस” का मसअला था। ऐसी सूरत-ए-हाल में कलीसिया या उम्मते मसीही ने उन मुबाहिस पर अपने नुक़्तहाए नज़र का इज़्हार किया। ये इज़्हार उस वक़्त तो खासतौर पर किया गया जब सबेलिस और अरुईस की आरा (राय) इंतिशार पकड़ने लगीं। सबेलिस ने ये तालीम दी कि ख़ुदा की वहदानियत में कोई सालूस नहीं और रहे ऐसे अल्फ़ाज़ जैसे बाप, बेटा और रूह-उल-क़ुद्दुस वग़ैरह तो ये सब ख़ुदा के मुख़्तलिफ़ मुज़ाहरात और तजल्लियात हैं। जबकि अरुईस का मानना ये था कि बाप और बेटे और रूह-उल-क़ुद्दुस में किसी क़िस्म की मुसावात या बराबरी नहीं है क्योंकि बेटा और रूह-उल-क़ुद्दुस दोनों मख़्लूक़ हैं और बाप से कमतर हैं और बाप ने उन दोनों को इलाही फ़ित्रत के मुशाबेह बनाया है।

कलीसिया-ए-जामा ने इन ख़यालात को रद्द किया क्योंकि ये बाइबिल मुक़द्दस के नुसूस और तालीम से मेल नहीं खाते जो वाज़ेह तौर पर सिखाती है कि कभी कोई ऐसा वक़्त नहीं था जब तस्लीस-फ़ील-तौहीद के तीनों अक़ानीम इखट्ठे मौजूद ना थे। बाप बेटे के साथ हमेशा से मौजूद है जैसा कि हम ज़बूर 110:1 में पढ़ते हैं “यहोवा ने मेरे ख़ुदावंद से कहा तू मेरे दहने हाथ बैठ।”

इसी तरह ज़बूर 16:8 को आमाल 2:25 में बेटे के ताल्लुक़ से बयान किया गया है “मैं ख़ुदावंद को हमेशा अपने सामने देखता रहा। क्योंकि वो मेरी दहनी तरफ़ है ताकि मुझे जुंबिश ना हो।”

मुक़द्दस अथनासीस सिकंदरीया का बिशप उन अज़ीम लोगों में से है जिन्हों ने कलीसिया की तरफ़ से बिद्अतों का मुक़ाबला किया और अपने ईमान का दिफ़ा किया, उस ने अथनासीस का अक़ीदा जारी किया जिसके ख़ास अजज़ा ये हैं :-

(1) तालिब-ए-नजात हर चीज़ से पहले मसीही कलीसिया के जामा ईमान का यक़ीन करे।

(2) वो आलमगीर ईमान जामा ये है कि सालूस में ख़ुदा वाहिद की परस्तिश और तौहीद में सालूस की परस्तिश की जाये।

(3) ना अक़ानीम मख़लूत किए जाएं ना जोहर में फ़स्ल पैदा की जाये।

(4) बाप का एक उक़नूम है, बेटे का एक उक़नूम है, रूह-उल-क़ुद्दुस का एक उक़नूम है। लेकिन बाप बेटा और रूह-उल-क़ुद्दुस लाहूत वाहिद है यानी वो उलूहियत में वाहिद, मज्द में मुसावी और जलाल व बुजु़र्गी में अबदी हैं।

(5) जैसा बाप है, वैसा ही बेटा और वैसा ही रूह-उल-क़ुद्दुस है।

(6) बाप ग़ैर-मख़्लूक़, बेटा ग़ैर-मख़्लूक़, रूह-उल-क़ुद्दुस ग़ैर-मख़्लूक़ है। लेकिन तीन ग़ैर-मख़्लूक़ हस्तियाँ नहीं बल्कि वाहिद ग़ैर-मख़्लूक़ है।

(7) बाप ग़ैर-महदूद, बेटा ग़ैर-महदूद, रूह-उल-क़ुद्दुस ग़ैर-महदूद, लेकिन तीन लामहदूद हस्तियाँ नहीं बल्कि वाहिद लामहदूद है।

(8) बाप अज़ली, बेटा अज़ली, रूह-उल-क़ुद्दुस अज़ली, फिर भी तीन सरमदी व अज़ली हस्तियाँ नहीं बल्कि वाहिद अज़ली हस्ती है।

(9) बाप ने हर शैय को अपने क़ब्ज़े क़ुद्रत में रखा है, बेटा भी ज़ाबित-उल-कुल है और रूह-उल-क़ुद्दुस भी मुंतज़िम-उल-कुल है, लेकिन तीन ज़ाबित व मुंतज़िम नहीं बल्कि एक ही ज़ाबित-उल-कुल है।

(10) बाप ख़ुदा है, बेटा ख़ुदा है, रूह-उल-क़ुद्दुस ख़ुदा है लेकिन तीन ख़ुदा नहीं बल्कि एक ही ख़ुदा है।

(11) बाप रब (ख़ुदावंद) है, बेटा रब है, रूह-उल-क़ुद्दुस रब है लेकिन तीन अर्बाब नहीं बल्कि रब वाहिद है।

(12) मसीही सच्चाई हमें सिखाती है कि हम ये एतराफ़ ना करें कि हर उक़नूम बज़ाते ख़ुदा और रब है, दीन जामा भी हमें मना करता है कि हम तीन ख़ुदाओं और तीन अर्बाब को मानें।

(13) हमारा तो एक ही बाप है, तीन बाप नहीं, एक बेटा है, तीन बेटे नहीं, एक ही रूह-उल-क़ुद्दुस है, तीन रूह-उल-क़ुद्दुस नहीं।

(14) इन तीन सालूस में एक भी ऐसा नहीं जो एक दूसरे से बड़ा है या छोटा है बल्कि सारे अक़ानीम साथ-साथ अज़ली हैं और बराबर हैं।

(15) चुनान्चे अब तक जो कुछ कहा गया है इस से ये मुस्तंबित है कि सालूस में वहदानियत की और वहदानियत में सालूस की इबादत की जाये।

(16) सच्चा और सीधा ईमान मसीही ये है कि येसू मसीह बाप के जोहर से क़ब्ल-उल-दहूर मौलूद है और ख़ुदा है। वो माँ के जोहर से इंसान बना और एक अस्र (दहर या ज़माना) में मौलूद है।

(17) गो कि येसू मसीह अल्लाह और इंसान है, फिर भी वो एक ही मसीह है दो नहीं। मसीह जिस्म में उलूहियत को तब्दील कर के इंसान नहीं बना। बल्कि इंसानियत और उलूहियत के इत्तिहाद व इमत्तीज़ाज से इंसान हो गया।

अब कोई ये पूछ सकता है कि इस हक़ीक़त की क्या असास (बुनियाद) है? इस की सेहत व सबात के लिए किया बुरहान है? कैसे ये हक़ीक़त रसूख़ व इस्तिक़रार के इस दर्जे तक पहुंची?

जवाब ये है कि इस हक़ीक़त की वाहिद असास (बुनियाद) किताब-ए-मुक़द्दस है। क्योंकि इंसान ख़्वाह कितना ही बड़ा और मुफ़क्किरे आज़म ही क्यों ना बन जाये ये उस के बस और इख़्तियार में नहीं है कि ज़ाते इलाही की तबीयत और कुनह को पा सके तावक़्ते के ख़ुदा तआला ख़ुद उस पर अपनी ज़ात को मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) ना कर ले और मार्फ़त व ऐलान ना अता करे। किताब-ए-मुक़द्दस से हट कर जो कुछ सालूस के बारे में मिलता है, ख़्वाह वो फ़ल्सफ़ियाना तफ़क्कुर से हासिल है या मन्तिक़ी दलाईल से, वो सबकी सब तश्रीह व क़यासी तोज़िहात हैं।

इस में तो गुंजाइश शुब्हा नहीं कि किताब-ए-मुक़द्दस के सहाइफ़ ने ख़ुदा की ज़ात व तबीयत में वहदानियत की ही तालीम दी है, इस मौक़िफ़ पर ना किसी मसीही को इख़्तिलाफ़ है ना बह्स। लेकिन क्या वो वहदानियत मुजर्रद व बसीत है? नहीं बल्कि वो वहदानियत कामला व शामला है और इसी बात की तालीम से किताब-ए-मुक़द्दस भरी हुई है, अह्दे-अतीक़ भी और अह्दे-जदीद भी। यही वहदानियत कामला व शामला है जो सालूस अक़्दस की तबीयत और ज़ात को कमा-हक़्क़ा मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) करती है। यही मसीहियों का ईमान है।

बाइबिल मुक़द्दस के उलमा ने इसी को माना है और इसी की कलीसियाई क़ानून में सूरत-गरी की गई है। इन कलीसियाई अक़ीदों में सबसे अहम निकाया का अक़ीदा है जिसका मतन ये है :-

“मैं ईमान रखता हूँ एक ख़ुदा क़ादिर-ए-मुतलक़ बाप पर जो आस्मान व ज़मीन और सब देखी और अनदेखी चीज़ों का ख़ालिक़ है।”

“और एक ख़ुदावंद येसू मसीह पर जो ख़ुदा का इकलौता बेटा है। कुल आलमों से पेश्तर अपने बाप से मौलूद, ख़ुदा से ख़ुदा, नूर से नूर, हक़ीक़ी ख़ुदा से हक़ीक़ी ख़ुदा, मसनूअ नहीं बल्कि बाप से मौलूद, उस का और बाप का एक ही जोहर है। उस के वसीले से कुल चीज़ें बनीं। वो हम आदमीयों के लिए और हमारी नजात के वास्ते आस्मान पर से उतर आया। और रूह-उल-क़ुद्दुस की क़ुद्रत से कुंवारी मर्यम से मुजस्सम हुआ। और इंसान बना। और पुनतीस पीलातुस के अहद में हमारे लिए मस्लूब भी हुआ। उस ने दुख उठाया और दफ़न हुआ। और तीसरे दिन पाक नविश्तों के बमूजब जी उठा। और आस्मान पर चढ़ गया। और बाप के दहने बैठा है। वो जलाल के साथ ज़िंदों और मुर्दों की अदालत के लिए फिर आएगा। उस की सल्तनत ख़त्म ना होगी।”

“और मैं ईमान रखता हूँ रूहुल-क़ुदुस पर जो ख़ुदावंद है और ज़िंदगी बख़्शने वाला है। वो बाप और बेटे से सादिर है। उस की बाप और बेटे के साथ परस्तिश व ताज़ीम होती है। वो नबियों की ज़बानी बोला। मैं एक पाक कैथलिक (जामा, आलमगीर) रसूली कलीसिया पर ईमान रखता हूँ। मैं एक बपतिस्मे का जो गुनाहों की माफ़ी के लिए है इक़रार करता हूँ। और मुर्दों की क़ियामत और आइंदा जहान की हयात का इंतिज़ार करता हूँ। आमीन!”

ये बात सच्च है और किताब-ए-मुक़द्दस ने कहा कि “ख़ुदावंद हमारा ख़ुदा एक ही ख़ुदा है”, “यहोवा (ख़ुदावंद) मैं हूँ। यही मेरा नाम है। मैं अपना जलाल किसी दूसरे के लिए और अपनी हम्द खोदी हुई मूरतों के लिए रवा ना रखूंगा।”

लेकिन ये बात भी अपनी जगह मुसल्लम है कि किताब-ए-मुक़द्दस में बेशुमार ऐसी आयात हैं जो इस बात पर दलालत करती हैं कि ख़ुदा की ज़ात में वहदानियत जामिआ व शामिला है और ख़ुदा तआला कई सिफ़ात से मुत्तसिफ़ है जैसे समिअ, बसिर, कलाम, इल्म, इरादा और मुहब्बत वग़ैरह क्योंकि उस ज़ाते बारी का अपनी मख़्लूक़ात से रब्त व रिश्ता है जिसे ये सिफ़तें ज़ाहिर करती हैं और ये भी ज़ाहिर है कि ये सिफ़तें कभी भी अज़लियत में मुअत्तल नहीं थीं यानी इस कायनात की तख़्लीक़ से पहले भी आमिल थीं। जिससे ये नतीजा निकलता है कि ख़ुदा अपनी सिफ़तों का इस्तिमाल करता रहा है और ये तब ही मुम्किन हो सकता है जब क़ब्ल कायनात कोई और भी शख़्सियत हो। अब देखिए यहीं से वहदानियत में अक़ानीम का वजूद लाज़िम आता है।

और कोई शक नहीं कि जो मसीहिय्यत के अक़ीदे पर गहराई से नज़र करता हो तो उस के सामने ये हक़ाइक़ वाज़ेह होते हैं :-

अलिफ़ - बाप बेटे और रूह-उल-क़ुद्दुस में से हर उक़नूम को इलाही अल्क़ाब व ख़िताब हासिल हैं और सब क़ाबिल-ए-ताज़ीम और लायक़ इबादत हैं।

ब - किताब-ए-मुक़द्दस से बेटे की उलूहियत इसी तरह वाज़ेह है जैसे बाप की उलूहियत, जैसा कि मसीह ने ख़ुद फ़रमाया “ताकि सब लोग बेटे की इज़्ज़त करें जिस तरह बाप की इज़्ज़त करते हैं।” (यूहन्ना 5:23)

ज - जिस तरह बाप और बेटे की उलूहियत किताब-ए-मुक़द्दस से साबित है, उसी तरह रूह-उल-क़ुद्दुस की उलूहियत भी साबित है। ख़ुद मसीह ने फ़रमाया कि “ख़ुदा रूह है और ज़रूर है कि उस के परस्तार रूह और सच्चाई से परस्तिश करें।” (यूहन्ना 4:24)

जब हम मसीही अक़ीदे का मुतालआ करते हैं तो देखते हैं कि सालूस अक़्दस के नाम यानी बाप, बेटा, और रूह-उल-क़ुद्दुस ख़ुदा और उस की मख़्लूक़ात के दर्मियान किसी निस्बत मुख़्तलिफ़ा से किनाया नहीं है यानी वैसा इम्तियाज़ नहीं है जैसा ख़ालिक़, हाफ़िज़ और मुनइम जैसी इस्तिलाहात से होता है। गो कि कुछ लोग ऐसा ख़याल करते हैं लेकिन मुन्दरिजा ज़ैल निकात इस को ग़लत साबित करते हैं।

अलिफ़ - बाप, बेटा और रूह-उल-क़ुद्दुस हर एक अपनी ज़ात के बारे में “मैं” का इस्तिमाल करते हैं।

ब - इन में से हर एक जब दूसरे से ख़िताब करता है तो गुफ़्तगु में “तू” का और सीग़ा ग़ायब के तौर पर “वो” का इस्तिमाल करता है।

ज - बाप बेटे से मुहब्बत करता है, बेटा बाप से मुहब्बत करता है और रूह-उल-क़ुद्दुस बेटे की गवाही देता और उसे जलाल देता है।

इन तमाम हक़ाइक़ और बाइबली सच्चाइयों का नतीजा ये है कि मसीही लोग सारी दुनिया में इसी अक़ीदा तस्लीस-फ़ील-तौहीद को लेकर फैल गए।

कुछ हज़रात ये कह देते हैं कि ये तालीम हमारे इदराक (समझ) से परे है। लेकिन ऐसा बयान मसीही अक़ीदे की तौज़ीह तो नहीं हुआ, बहुत सी साईंस की हक़ीक़तें हमारे इदराक (समझ) से बाहर होते हुए भी जानी और मानी जाती हैं। हमें मानना चाहीए कि हमारे महदूद ज़हन इस तरह ख़ल्क़ नहीं किए गए जो मुम्किन व लामुम्किन का उन उमूर से मुताल्लिक़ मेयार बन सकें जो हमारे हवास, फ़हम और इदराक से बाहर हैं।

10 - वहदानियत-ए-अक़ानीम
अलिफ़ - अक़ानीम की उलूहियत

किताब-ए-मुक़द्दस में जो ख़ुदावंद तआला का इल्हामी कलाम है, ये हक़ाइक़ मिलते हैं :-

(1) बाप के बारे में ये कि ख़ुदा हमारा बाप है।

“अब हमारा ख़ुदावंद येसू मसीह ख़ुद और हमारा बाप ख़ुदा जिसने हमसे मुहब्बत रखी और फ़ज़्ल से अबदी तसल्ली और अच्छी उम्मीद बख़्शी।” (2 थसलुनीकीयों 2:16)

(2) बेटे के बारे में लिखा है :-

“मगर बेटे की बाबत कहता है कि ऐ ख़ुदा तेरा तख़्त अबद-उल-आबाद रहेगा और तेरी बादशाही का असा रास्ती का असा है।” (इब्रानियों 1:8)

(3) रूह-उल-क़ुद्दुस की बाबत कहा गया है :-

“ऐ हननियाह क्यों शैतान ने तेरे दिल में ये बात डाली कि तू रूह-उल-क़ुद्दुस से झूट बोले…. तू आदमीयों से नहीं बल्कि ख़ुदा से झूट बोला।” (आमाल 5:3-4)

ब - रबूबियत अक़ानीम

(1) बाप के बारे में लिखा है कि वो ख़ुदावंद है :-

“उसी घड़ी वो (येसू मसीह) रूह-उल-क़ुद्दुस से ख़ुशी से भर गया और कहने लगा ऐ बाप आस्मान और ज़मीन के ख़ुदावंद मैं तेरी हम्द करता हूँ।” (लूक़ा 10:21)

(2) बेटे के बारे में लिखा है कि वो ख़ुदावंद है :-

“जो कलाम उस ने बनी-इस्राईल के पास भेजा जबकि येसू मसीह की मार्फ़त जो सब का ख़ुदावंद है सुलह की ख़ुशख़बरी दी।” (आमाल 10:36)

(3) रूह-उल-क़ुद्दुस के बारे में लिखा है कि वो ख़ुदावंद है :-

“और ख़ुदावंद रूह है और जहां कहीं ख़ुदावंद का रूह है वहां आज़ादी है।” (2 कुरिन्थियों 3:17)

ज - अज़लियत-ए-अक़ानीम

(1) बाप के बारे में लिखा है कि वो अज़ली है :-

“दानीएल के ख़ुदा के हुज़ूर तरसाँ व लरज़ाँ हूँ क्योंकि वही ज़िंदा ख़ुदा है और हमेशा क़ायम है और उस की सल्तनत लाज़वाल है और उस की ममलकत अबद तक रहेगी।” (दानीएल 6:26)

(2) बेटे के बारे में लिखा है कि वो अज़ली है :-

“ख़ुदावंद ख़ुदा जो है और जो था और जो आने वाला है यानी क़ादिर मुतलक फ़रमाता है कि मैं अल्फ़ा और ओमेगा हूँ।” (मुकाशफ़ा 1:8)

(3) रूह-उल-क़ुद्दुस के बारे में लिखा है कि वो अज़ली है :-

“तो मसीह का ख़ून जिसने अपने आपको अज़ली रूह के वसीले से ख़ुदा के सामने बेऐब क़ुर्बान कर दिया तुम्हारे दिलों को मुर्दा कामों से क्यों ना पाक करेगा ताकि ज़िंदा ख़ुदा की इबादत करें।” (इब्रानियों 9:14)

द - अक़ानीम की हमाजाई

(1) बाप के बारे में लिखा है कि वो हर जगह मौजूद है :-

“सब का ख़ुदा और बाप एक ही है जो सब के ऊपर और सब के दर्मियान और सब के अंदर है।” (इफ़िसियों 4:6)

(2) बेटे के बारे में लिखा है कि वो हर जगह मौजूद है :-

“क्योंकि जहां दो या तीन मेरे नाम पर इखट्ठे हैं वहां मैं उन के बीच में हूँ।” (मत्ती 18:20)

(3) रूह-उल-क़ुद्दुस के बारे में लिखा है कि वो हर जगह मौजूद है :-

“मैं तेरी रूह से बच कर कहाँ जाऊं या तेरी हुज़ूरी से किधर भागूं? अगर आस्मान पर चढ़ जाऊं तो तू वहां है। अगर मैं पाताल में बिस्तर बिछाऊं तो देख! तू वहां भी है। अगर मैं सुबह के पर लगा कर समुंद्र की इंतिहा में जा बसूं तो वहां भी तेरा हाथ मेरी राहनुमाई करेगा और तेरा दाहिना हाथ मुझे सँभालेगा।” (ज़बूर 139:7-10)

ह - सज्दा का इस्तिहक़ाक़

(1) बाप की बाबत इन्जील यूहन्ना 4:23 में लिखा है कि :-

“मगर वो वक़्त आता है कि बल्कि अब ही है कि सच्चे परस्तार बाप की परस्तिश रूह और सच्चाई से करेंगे क्योंकि बाप अपने लिए ऐसे ही परस्तार ढूंढता है।”

(2) बेटे की बाबत फिलिप्पियों 2:10-11 में लिखा है :-

“ताकि येसू के नाम पर हर एक घटना झुके। ख़्वाह आसमानियों का हो ख़्वाह ज़मीनियों का। ख़्वाह उनका जो ज़मीन के नीचे हैं। और ख़ुदा बाप के जलाल के लिए हर एक ज़बान इक़रार करे कि येसू मसीह ख़ुदावंद है।”

(3) रूह-उल-क़ुद्दुस ईमानदारों को परस्तिश व इबादत के लिए तैयार करता है :-

“इसी तरह रूह भी हमारी कमज़ोरी में मदद करता है क्योंकि जिस तौर से हमको दुआ करना चाहीए हम नहीं जानते मगर रूह ख़ुद ऐसी आहें भर भर कर हमारी शफ़ाअत करता है जिनका बयान नहीं हो सकता।” (रोमीयों 8:26)

व - सिफ़ते हक़

(1) बाप हक़ है :-

“और हमेशा की ज़िंदगी ये है कि वो तुझ ख़ुदा-ए-वाहिद और बरहक़ को और येसू मसीह को जिसे तू ने भेजा है जानें।” (यूहन्ना 17:3)

(2) बेटा हक़ है :-

“येसू ने उस से कहा कि राह और हक़ और ज़िंदगी मैं हूँ। कोई मेरे वसीले के बग़ैर बाप के पास नहीं आता।” (यूहन्ना 14:6)

(3) रूह-उल-क़ुद्दुस हक़ है :-

“और मैं बाप से दरख़्वास्त करूँगा तो वो तुम्हें दूसरा मददगार बख़्शेगा कि अबद तक तुम्हारे साथ रहे यानी रूह-ए-हक़ जिसे दुनिया हासिल नहीं कर सकती क्योंकि ना उसे देखती और ना जानती है। तुम उसे जानते हो क्योंकि वो तुम्हारे साथ रहता है और तुम्हारे अन्दर होगा।” (यूहन्ना 14:16-17)

ज़ - सिफ़ते मुहब्बत

(1) बाप मुहब्बत है। येसू ने कहा :-

“बाप तो आप ही तुमको अज़ीज़ रखता है क्योंकि तुमने मुझको अज़ीज़ रखा है और ईमान लाए हो कि मैं बाप की तरफ़ से निकला हूँ।” (यूहन्ना 16:27)

(2) बेटा मुहब्बत है :-

“जो कुछ मैं तुमको हुक्म देता हूँ अगर तुम उसे करो तो मेरे दोस्त हो। अब से मैं तुम्हें नौकर ना कहूँगा क्योंकि नौकर नहीं जानता कि उस का मालिक क्या करता है बल्कि तुम्हें मैंने दोस्त कहा है। इसलिए कि जो बातें मैंने अपने बाप से सुनीं वो सब तुमको बता दीं।” (यूहन्ना 14:15,14)

(3) रूह-उल-क़ुद्दुस मुहब्बत है :-

“क्योंकि ख़ुदा ने हमें दहश्त की रूह नहीं बल्कि क़ुद्रत और मुहब्बत और तर्बीयत की रूह दी है।” (2 तीमुथियुस 1:7)

ह - क़ुद्दुसियत

(1) बाप क़ुद्दूस है। येसू मसीह ने अपनी शिफ़ाअती दुआ में कहा :-

“ऐ क़ुद्दूस बाप अपने उस नाम के वसीले से जो तू ने मुझे बख़्शा है उन की हिफ़ाज़त कर ताकि वो हमारी तरह एक हों।” (यूहन्ना 17:11)

(2) बेटा क़ुद्दूस है :-

“और फ़रिश्ते ने जवाब में उस से कहा कि रूह-उल-क़ुद्दुस तुझ पर नाज़िल होगा और ख़ुदा तआला की क़ुद्रत तुझ पर साया डालेगी और इस सबब से वो मौलूद-ए-मुक़द्दस ख़ुदा का बेटा कहलाएगा।” (लूक़ा 1:35)

(3) रूह-उल-क़ुद्दुस क़ुद्दूस है :-

“और ख़ुदा के पाक रूह को रंजीदा ना करो जिससे तुम पर मख़लिसी के दिन के लिए मुहर हुई।” (इफ़िसियों 4:30)

10 - एतराज़ात
अलिफ़ - मसीह की उलूहियत पर एतराज़

शायद कोई मसीह की उलूहियत पर एतराज़ करे और ताईद में मसीह का ये क़ौल पेश कर दे कि “मैं अपने आपसे कुछ नहीं कर सकता…. क्योंकि मैं अपनी मर्ज़ी नहीं बल्कि अपने भेजने वाले की मर्ज़ी चाहता हूँ।” (यूहन्ना 5:30), या फिर ये क़ौल बयान करे “बाप मुझसे बड़ा है।” (यूहन्ना 14:28)

इस एतराज़ पर हम ये कहेंगे कि ये बयानात तस्लीस-फ़ील-तौहीद में बाप की तरफ़ से निस्बत होने के एतबार से मसीह की उलूहियत की नफ़ी नहीं करते, क्योंकि इंसान के फ़िदीए और मख़लिसी के लिए ये लाज़िम था कि ख़ुदावंद तआला का उक़नूम सानी जसद इंसानी इख़्तियार कर ले और अपने आपको कफ़्फ़ारे में पेश कर के इलाही मर्ज़ी पूरी कर दे।

जब इस इलाही काम को मसीह ने मुकम्मल कर लिया तो आस्मान पर सऊद किया और ख़ुदा के दहने हाथ आला तरीन अज़मत के साथ बैठ गया “और हर तरह की हुकूमत और इख़्तियार और क़ुद्रत और रियासत और हर एक नाम से बहुत बुलंद किया जो ना सिर्फ इस जहान में बल्कि आने वाले जहान में भी लिया जाएगा। और सब कुछ उस के पाओं तले कर दिया और उस को सब चीज़ों का सरदार बना कर कलीसिया को दे दिया। ये उस का बदन है और उसी की मामूरी जो हर तरह से सब का मामूर करने वाला है।” (इफ़िसियों 1:21-23)

रसूलों की तालीम हम पर वाज़ेह कर देती है कि मख़लिसी के काम के लिए नजातदिहंदा को एक बशर (इंसान) होना लाज़िमी था ताकि वो उन की तबीयत व फ़ित्रत में हिस्सेदार और शरीक बन सके जिनको बचाने के लिए आया था। ये भी ज़रूरी था कि वो ख़ुदा भी होता कि इक़तिदार-ए-आला का हामिल हो, गुनाह पर उस का ग़लबा हो और जो ईमान लाएं इन सबको गुनाह की गिरिफ़्त व इख़्तियार से आज़ाद कर दे।

किताब-ए-मुक़द्दस का मुतालआ करने वालों को इस की सुतूर में पैदाईश की किताब से मुकाशफ़ा की किताब तक मुनज्जी का अक्स नज़र आता है। कभी तो वो एक इंसान की शक्ल में नज़र आता है “जो औरत से पैदा हुआ और शरीअत के मातहत पैदा हुआ ताकि शरीअत के मातहतों को मोल लेकर छुड़ा ले और हमको लेपालक होने का दर्जा मिले।” (ग़लतीयों 4:4) और कभी वो ख़ुदा-ए-बुज़ुर्ग व बरतर की सूरत में नज़र आता है ताकि आबिदों का मरकज़-ए-ईमान और नुक़्ता इबादत बन जाये।

मसीह की शख़्सियत हैरत-अंगेज़ है जो अल्लाह भी है और इंसान भी है जिसने क़ब्ल तजसद (जिस्म के साथ) अम्बिया किराम की रोयतों को हर दौर में मामूरी बख़्शी। यसअयाह नबी ने उन के ख़ुदा की अज़ीमतरीन निशानी के तौर पर तजसद (जिस्म) इख़्तियार करने की बशारत दी “ख़ुदावंद आप तुमको एक निशान बख़्शेगा। देखो एक कुंवारी हामिला होगी और बेटा पैदा होगा और वो उस का नाम इम्मानुएल (ख़ुदा हमारे साथ) रखेगी।” (यसअयाह 7:14, मत्ती 1:22-23) यसअयाह नबी ने मसीह के बारे में ये भी बयान किया “उसका नाम अजीब मुशीर ख़ुदा-ए-क़ादिर अबदीयत का बाप सलामती का शाहज़ादा होगा।” (यसअयाह 9:6)

ब - रूह-उल-क़ुद्दुस की उलूहियत पर एतराज़

कुछ लोग कहते हैं कि रूह-उल-क़ुद्दुस तस्लीस-फ़ील-तौहीद का उक़नूम नहीं है बल्कि वो ख़ुदा की क़ुव्वत व क़ुद्रत है जो कायनात में सरगर्म अमल और क़ुलूब इंसानी में तासीर करती रहती है। लेकिन किताब-ए-मुक़द्दस के मतन और नुसूस से ये अयाँ है कि रूह-उल-क़ुद्दुस भी एक उक़नूम है, वो मह्ज़ ख़ुदा की क़ुव्वत फ़आला ही नहीं है जो हम में काम करती रहती है बल्कि उस में शख़्सियत है। मह्ज़ क़ुव्वत को पाकीज़गी सच्चाई, हिक्मत या इरादे की हामिल नहीं कहा जा सकता, और ना ही वो मुतकल्लिम हो सकती है और ना ही उस से कलाम किया जा सकता है।

किताब-ए-मुक़द्दस बाइबिल में मर्क़ूम है कि मसीह के बपतिस्मे के वक़्त रूह-उल-क़ुद्दुस जिस्मानी सूरत में कबूतर की मानिंद उन पर नाज़िल हुआ और आस्मान से एक आवाज़ आई “तू मेरा प्यारा बेटा है। तुझसे मैं ख़ुश हूँ।” (लूक़ा 3:22) ये बात भी तीन अक़ानीम के वजूद पर दलालत करती है कि बाप ने आस्मान से कलाम किया, रूह-उल-क़ुद्दुस आस्मान से बेटे पर जो ज़मीन पर था नाज़िल हुआ।

इसी तरह मसीह ने अपने शागिर्दों को मददगार यानी रूहे हक़ जो बाप से सादिर होता है भेजने का वाअदा किया। (यूहन्ना 15:26) रसूलों के कलिमात बरकात भी इसी क़बील से ताल्लुक़ रखते हैं, यानी “ख़ुदावंद येसू मसीह का फ़ज़्ल ख़ुदा की मुहब्बत और रूह-उल-क़ुद्दुस की शराकत तुम सब के साथ होती रहे।” (2 कुरिन्थियों14:13) और पौलुस रसूल के ऐलान “उसी के वसीले से हम दोनों की एक ही रूह में बाप के पास रसाई होती है।” (इफ़िसियों 2:18) का ताल्लुक़ भी इसी बात से है।

रूह-उल-क़ुद्दुस के क़ुव्वते इलाहिया के दाअवे की अदम सदाक़त किताब-ए-मुक़द्दस के हर क़ारी पर अयाँ है। ऐसा ही एक हवाला 1 कुरिन्थियों 12:4-11 है जिसमें पौलुस रसूल का ये बयान मिलता है कि रूह-उल-क़ुद्दुस के वसीले कलीसिया को कई नेअमतें दी गईं, जिनमें से एक मोअजिज़ा करने की नेअमत है। अगर रूह-उल-क़ुद्दुस मह्ज़ एक क़ुव्वत है तो इस का ये मतलब हुआ कि रूह मह्ज़ नेअमतों में से एक नेअमत है।

इस के इलावा और भी कई हवालेजात हैं जहां रूह-उल-क़ुद्दुस एक शख़्सियत नज़र आती है ना कि मह्ज़ एक क़ुव्वत या नेअमत। देखिए :-

“फिर येसू रूह की क़ुव्वत से भरा हुआ गलील को लौटा।” (लूक़ा 4:14)

“ख़ुदा ने येसू नासरी को रूह-उल-क़ुद्दुस और क़ुद्रत से किस तरह मसह किया।” (आमाल 10:38)

“ताकि रूह-उल-क़ुद्दुस की क़ुद्रत से तुम्हारी उम्मीद ज़्यादा होती जाये।” (रोमीयों 15:13)

“निशानों और मोअजिज़ों की ताक़त से और रूह-उल-क़ुद्दुस की क़ुद्रत से।” (रोमीयों 15:18)

अब अगर मोअतरिज़ का ख़याल (यानी ये कि रूह-उल-क़ुद्दुस ख़ुदा की एक क़ुव्वत का नाम है) सही माना जाये तो इन आयात की तफ़्सीर यूं होगी कि “येसू क़ुव्वत की क़ुव्वत से भरा हुआ” या “क़ुद्दूस क़ुव्वत की क़ुव्वत” से वग़ैरह-वग़ैरह। क्या इस तरह की तफ़्सीर कोई शख़्स पसंद करेगा?

ज - तस्लीस-फ़ील-तौहीद के अक़ीदे पर एतराज़

अक्सर ये एतराज़ किया जाता है कि “ख़ुदा-ए-वाहिद की ज़ात में तीन अक़ानीम या शख़्सियात हैं। इस पर तुम्हारी क्या दलील है?”

जवाब में हम कहेंगे कि ख़ुदा की वहदानियत तो किताब-ए-मुक़द्दस में सुनहरी लफ़्ज़ों में बड़े उजले तौर पर नज़र आती ही है, लेकिन ये इक़रार कर लेना कि ख़ुदावंद तआला जैसा कोई और है ही नहीं इस बात से नहीं रोकता कि जोहर वाहिद में तीन शख़्सियात हों।

आईए किताब-ए-मुक़द्दस को ही हकम बनाएँ और इसी के नुसूस व मतन से इस्तिदलाल पकड़ें। अह्दे-अतीक़ में ख़ुदा के लिए इस्तिमाल होने वाला इज़्हार अक्सर जमा के सीगे में आया है “ईलोहीम” और इसके लिए इस्म ज़मीर “हम” इस्तिमाल हुआ है। ऐसा अहम तरीन हवाला इस्तिस्ना 6:4 में आया है “सुन ऐ इस्राईल ख़ुदावंद हमारा ख़ुदा (ईलोहीम) एक ही ख़ुदावंद है।”

इस आयत में क़सद तो ये है कि वहदानियत की तालीम दी जाये और उस का बयान हो लेकिन ख़ुदा जमा में आया है यानी ईलोह की जमा “ईलोहीम।” और भी बहुत सी आयात हैं जहां ख़ुदा का नाम आया है। मसलन :-

“फिर ख़ुदा ने कहा कि हम इंसान को अपनी सूरत पर अपनी शबिया की मानिंद बनाएँ।” (पैदाईश 1:26)

“और ख़ुदावंद ख़ुदा ने कहा, देखो इंसान नेक व बद की पहचान में हम में से एक की मानिंद हो गया।” (पैदाईश 3:22)

“आओ हम वहां जा कर उन की ज़बान में इख़्तिलाफ़ डालें।” (पैदाईश 11:7)

“मैं किस को भेजूँ और हमारी तरफ़ से कौन जाएगा।” (यसअयाह 6:8)

कोई शख़्स इस मौक़े पर ये कह सकता है कि ख़ुदा का मक़्सद यहां ख़ुद को साहिबे ताज़ीम व जलालत के तौर पर पेश करना है जैसा कि बादशाह लोग किया करते हैं और अपने लिए जमा का सीग़ा इस्तिमाल करते हैं, लेकिन पैदाईश 3:22 में जो अल्फ़ाज़ ख़ुदा ने कहे “इंसान नेक व बद की पहचान में हम में से एक की मानिंद हो गया।” इस एतराज़ को रद्द करते हैं, क्योंकि ये बयान मुख़ातिब करने वाले और सामेअ (सुनने वाले) के वजूद की निशानदेही करता है।

अगरचे तस्लीस-फ़ील-तौहीद का भेद हमारी समझ से बाहर है, लेकिन इस को मह्ज़ इसलिए रद्द कर देना कि ये हमारी महदूद समझ में नहीं आ रहा, सही नहीं है।

बहुत से इलाही ऐलानात और मज़ाहिर व ज़हूरात हैं जिनका कमा-हक़्क़ा इदराक हमारी इस्तिताअत व इस्तिदाद (सलाहियत) से बाहर है। मसलन बारी तआला का वजूद बिलज़ात, उस का अज़ली वजूद, उस का हर शैय के लिए इल्लत औला होना, साथ ही साथ अज़ल से अबद तक और सारे ज़मानों में उस की हमाजाई (हाजिर नाज़िर) और हमा दान (आलिमुल गैब) होने की ख़ूबी।

हम ये पहले ही कह आए हैं कि तस्लीस-फ़ील-तौहीद की बात गो हमारी समझ और इदराक से मावरा है, फिर भी वहदानियत के मुनाफ़ी (खिलाफ) नहीं है और ना इस में कोई ऐसी बात है कि हम इस के रद्द करने पर मज्बूर हों, ना इस में कोई ऐसी बात है जो हमारे दीन व ईमान को मुहाल बनाती है क्योंकि इस में तीन ख़ुदाओं का वजूद हरगिज़ मुराद नहीं है।

ये भी पूछा जा सकता है कि अक़ीदा तस्लीस-फ़ील-तौहीद मसीही मज़्हब में क्या कोई ख़ास फ़ायदा देता है?

हाँ इस का फ़ायदा ये है कि हम इस को असास बना कर दीगर अहम इलाही तालीमात की तौज़ीह कर सकते हैं। मसलन :-

(1) अक़ीदा तस्लीस-फ़ील-तौहीद शाने उलूहियत को बुलंद करता और इलाही कमालात की वज़ाहत करता है। तस्लीस-फ़ील-तौहीद के बग़ैर वहदानियत इलाही शान व कमालात को महदूद कर देती है और ज़ाते बारी को सआदत व मुहब्बत के हर पहलू से महरूम रखती है। हम तस्लीस-फ़ील-तौहीद के अक़ानीम में बाहमी मुहब्बत पाते हैं और मुहब्बत उस की उलूहियत को हर तरह की अज़ली ख़ुशी और सआदत के तमाम मुकतज़ियात से मामूर रखती है।

(2) तस्लीस-फ़ील-तौहीद एक ऐसा ज़रीया है जिससे ख़ुदा ख़ुद को अपनी मख़्लूक़ात पर ज़ाहिर करता है।

बाप, बेटा और रूह-उल-क़ुद्दुस हर एक का एक ही जोहर है। बेटा ही बाप के बारे में मार्फ़त ताम्मा रखता है और वही उसे ज़ाहिर करता है। रूह-उल-क़ुद्दुस बनी-नूअ इंसान को उलूहियत से मुतआरिफ़ कराता और ज़ाहिर करता है।

अपने तीन अक़ानीम के ज़रीये ख़ुदा अपनी मख़्लूक़ात के नज़्दीक आता है। लेकिन इस के बग़ैर वो हमसे दूर रह जाता, और हमारी अक़्ल व समझ पर पर्दा पड़ जाता और हमारे तजुर्बात मुनक़तेअ हो जाते।

(3) तस्लीस-फ़ील-तौहीद वो ज़रीया है जिससे नजात के कुल तक़ाज़े पूरे हुए। उक़नूम सानी ने जिस्म इख़्तियार किया और हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा दिया। वो हमारे लिए दर्मियानी बन गया और नजात, सुलह, मुसालहत और रास्तबाज़ी का वसीला मुहय्या किया। पौलुस रसूल ने कहा “ख़ुदा ने मसीह में हो कर अपने साथ दुनिया का मेल मिलाप कर लिया और उन की तक़सीरों को उन के ज़िम्मे ना लगाया और उस ने मेल मिलाप का पैग़ाम हमें सौंप दिया है।” (2 कुरिन्थियों 5:19)

उक़नूम सालिस के अमल के बारे में ये तालीम मिलती है कि वो हमारे दिलों को नया बना देता है, और हमारी अक़्लों को रोशन करता है और ख़ुदा के हुज़ूर हाज़िर होने के लायक़ बनाने के लिए हमारी तक़्दीस करता है। सच्च तो ये है कि तस्लीस-फ़ील-तौहीद के बग़ैर ख़ुदा को मुनज्जी और फ़िद्या देने वाला, तक़्दीस करने वाला और मुंसिफ़ कहना सही ना होगा, क्योंकि गुनाहों की वजह से शरीअत की जो लानत इंसान पर पड़ती है उस से छुटकारा दिलाने के लिए वो गुनाहगारों की ज़रूरत को पूरा करता है।

(4) तस्लीस-फ़ील-तौहीद ख़ुदा तआला को इंसानी ज़िंदगी में एक मिसाल व नमूने की हैसियत से पेश करती है। ख़ानदानी हम-आहंगी और समाजी मुहब्बत में हम उक़नूम अव़्वल में पद्रीयत की सही और सच्ची सिफ़त देखते हैं, और उक़नूम सानी में इब्नियत की हक़ीक़ी सिफ़त देखते हैं। ये इंसान में तसव्वुर पद्रीयत और फर्ज़न्दियत को मिस्ल आला के तौर पर पेश करती है।

अगर बिलफ़र्ज़ उलूहियत ख़ुदावंदी में से तमाम एहसास-ए-मुहब्बत को उस से मुनज़्ज़ह कर दें तो ख़ुदा सिर्फ एक सख़्त व जाबिर ख़ुदा बन कर रह जाएगा, जिसकी सख़्ती व जबर हमें रोज़ बरोज़ उस से दूर करती जाएगी हत्ता कि हम उस से जुदा हो कर रह जाऐंगे।

सवालात

अज़ीज़ क़ारी, अब जबकि आपने इस किताब का ध्यान से मुतालआ किया है तो हम आपको दावत देते हैं कि आप ज़ेल में दिए गए सवालात के जवाबात देकर अपने इल्म का जायज़ा लें :-

1. वो कौन-कौन सी बातें हैं जिनमें मसीह की शख़्सियत के बारे में इस्लाम व मसीहिय्यत हम-ख़याल नज़र आते हैं?

2. वो कौन से अस्बाब हैं जिन्हों ने मुसलमानों को मसीहिय्यत की तस्लीस की तालीम को रद्द करने पर आमादा किया है?

3. आपकी राय में मुस्लिम हज़रात क्या अपने इस क़ौल की ताईद में काफ़ी दलील रखते हैं कि इन्जील मुहर्रिफ़ है क्योंकि वो आँहज़रत को नबी की हैसियत से पेश नहीं करती?

4. क़ुरआन में मसीह की कौन-कौन सी मुम्ताज़ ख़ुसूसियात हैं?

5. वो कौन सा मोअजिज़ा है जिसे इस्लाम ने मसीह से मन्सूब तो किया है लेकिन इन्जील इस बारे में ख़ामोश है?

6. क़ुरआन के मतन में क्या कोई शख़्स मसीह की उलूहियत की झलक देख सकता है?

7. आपकी राय में वो कौन से अस्बाब हैं जिन्हों ने इस्लाम को इस बात पर आमादा किया है कि वो ख़ुदा की पद्रीयत का इन्कार करता है?

8. मसीह की उलूहियत के बारे में इस्लाम ने किया नताइज अख़ज़ किए हैं?

9. मसीह की तालीम के इन्कार में इमाम राज़ी ने जो कहा है उस का आप किस तरह जवाब दे सकते हैं?

10. इस्लाम के इस बयान की कि मसीह सिर्फ एक बन्दे थे, आप किस तरह तर्दीद करेंगे?

11. किताब-ए-मुक़द्दस से मसीह की उलूहियत की दलील मुख़्तसरन पेश कीजिए।

12. क्या मसीह ने ख़ुदा की ज़ात से अपना ताल्लुक़ इन्जील में बयान किया है? हवाले दीजिए।

13. पुराने अहदनामा के नबियों और नए अहदनामे के रसूलों ने मसीह की उलूहियत पर क्या दलीलें दी हैं?

14. क्या मसीह ने उसी तरह अपनी ताज़ीम का हुक्म दिया है जिस तरह बाप की ताज़ीम का?

15. ग़िनास्तियों ने और अरुईस के मानने वालों ने शख़्सियत मसीह का जो इन्कार पेश किया है उस की आप किस तरह तख़्सीस करेंगे?

16. क्या कोई ऐसा ज़बूर भी है जिसमें मसीह की उलूहियत नज़र आती है?

17. आप इस सच्चाई को शख़्सी तौर पर किस तरह बयान करेंगे कि ख़ुदा तस्लीस-फ़ील-तौहीद है?

18. आप उन लोगों को क्या जवाब देंगे जो तस्लीस-फ़ील-तौहीद का मतलब तीन ख़ुदा लेते हैं?

19. क्या तस्लीस-फ़ील-तौहीद की बुनियाद कुतुब मुक़द्दसा में है?

20. किताब-ए-मुक़द्दस की कोई ऐसी इबारत पेश कीजिए जो तस्लीस-फ़ील-तौहीद की बेनज़ीरी दिखाती हो?

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