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मैं क्या करूँ कि नजात पाऊं

इस्कंदर जदीद


1. नजात

2. राह-ए-नजात

3. गुनाह पर फ़त्ह

4. माफ़ी

5. नजात क्यों

6. ज़िंदगी का ताज

7. हम कैसे बचाए जा सकते हैं

सवालात

पहला बाब - नजात

नजात फ़िल-हक़ीक़त एक निहायत अहम मज़्मून है। जब मैं नजात के अहम तरीन मौज़ू को बयान करता हूँ तो मुबालग़ा आराई नहीं करता कि हर बशर को इस मौज़ू पर ग़ौर व फ़िक्र करना है। ख़ुदा तआला ने बनी नूअ इन्सान को इब्तिदा ही से नजात देने का इरादा किया और इसी हक़ीक़त को बर लाने के लिए ख़ुदा मसीह के रूप में मुजस्सम हुआ यानी ख़ुदा के कलाम व रूह-ए-ख़ुदा ने इंसानी जिस्म (लिबास-ए-मजाज़) में अपने आपको ज़ाहिर किया।

अब जबकि नजात एक ऐसा नाज़ुक व फ़ैसलाकुन मौज़ू है तो हमें इस की फ़ित्रत, मअनी और अहमियत को जानना ज़रूर है और हमें तहक़ीक़ करना चाहिए कि नजात क्या है और कहाँ से है? जब कि गुनाहों से बचने के लिए हमें इस की ज़रूरत है।

बाइबल मुक़द्दस से और मसीह के दुनिया में आने के ख़ास मक़्सद से हम समझते हैं कि नजात का मतलब गुनाह की ग़ुलामी से आज़ादी है जिसका अंजाम गुनाहों से मुकम्मल रिहाई है। इन्जील-ए-मुक़द्दस में यूं बयान है कि इब्ने-आदम (गुनाह और मौत में) खोए हुओं को ढ़ूढ़ने और नजात देने आया है। इस के मअनी ये हैं कि मसीह का इस दुनिया में आने का मक़्सद उन लोगों को नजात देना है जो गुनाहों और ख़ताओं के बाइस हलाक हो चुके हैं। इस मक़्सद की तक्मील की ख़ातिर मसीह को नजात की राह की तैयारी के लिए सब कुछ करना पड़ा, यहां तक कि ख़ुदा की रहमत और प्यार से मग़्लूब हो कर उस ने अपनी जान गुनाहगारों के लिए (कफ़्फ़ारे व फ़िद्ये में) दे दी।

ड्यूक आफ़ कैन्ट, इंगलैंड की मलिका विक्टोरिया का बाप जब करीबुल-मर्ग (मौत के क़रीब) था तो डाक्टर उस को ढारस व तसल्ली देने के लिए गया और कहा “ऐ मेरे आक़ा आप शाहाना मन्सब की अता कर्दा परवरदिगारी के ज़ेरे साये इत्मीनान पाइये।” ड्यूक ने जवाब दिया “ऐन-मुम्किन है कि ये सच्च हो लेकिन मेरी नजात मेरी नुमायां सरकारी हैसियत पर मुन्हसिर नहीं बल्कि मेरे इस इक़रार पर है कि मैं गुनेहगार हूँ और मसीह मुझे (गुनाह व मौत से) बचाने के लिए आया। उस के अल्फ़ाज़ पौलूस रसूल के इन अल्फ़ाज़ की सदाए बाज़गश्त थे :

“ये बात सच्च और हर तरह से क़ुबूल करने के लायक़ है कि मसीह येसू गुनेहगारों को नजात देने के लिए दुनिया में आया जिन में सबसे बड़ा मैं हूँ।” (1 तीमुथियुस 1:15)

मैं क्या करूँ कि नजात पाऊं

आज से तक़रीबन दो हज़ार (2000) साल पहले यही सवाल फिलिप्पी दौरागा ने पौलूस और उस के साथी सीलास से पूछा था। उस का जवाब ये था :

“ख़ुदावन्द येसू पर ईमान ला तो तू और तेरा घराना नजात पाएगा।” (आमाल 16:31)

ये निहायत सादा मगर वाज़ेह है कि आदमी को अपनी नजात के लिए कुछ भी नहीं करने को कहा गया। उसे सिर्फ ख़ुदावन्द मसीह येसू पर ईमान लाना है क्योंकि नजात के लिए कोई दूसरी राह नहीं। ख़ुदा के फ़रिश्ते ने (यूसुफ़ से) मुबारक कुँवारी मर्यम के हक़ में यूं कहा :

“उस के बेटा होगा और तू’ उस का नाम येसू रखना क्योंकि वही अपने लोगों को उन के गुनाहों से नजात देगा।” (मत्ती 1:21)

जब यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने मसीह को अपनी तरफ़ आते देखा तो कहा :

“देखो ये ख़ुदा का बर्रा है जो दुनिया का गुनाह उठा ले जाता है।” (यूहन्ना 1:29)

ताहम, नजात पर कामिल ईमान के हमराह (मसीह के) रसूलों के हुक्म के मुताबिक़ हमें पहले अपने गुनाहों का इक़रार करना ज़रूरी है :

“अगर अपने गुनाहों का इक़रार (एतराफ़) करें तो वो हमारे गुनाहों के माफ़ करने और हमें सारी नारास्ती से पाक करने में सच्चा और आदिल है।” (1 यूहन्ना 1:9)

दूसरा ये कि इक़बाल-ए-जुर्म के साथ गुनाहों से तौबा (पछतावा, नदामत, पशेमानी) शामिल हो :

“पस ख़ुदा जहालत के वक़्तों से चश्मपोशी कर के अब सब आदमियों को हर जगह हुक्म देता है कि तौबा करें।” (आमाल 17:30)

“पस तौबा करो और रुजू लाओ ताकि तुम्हारे गुनाह मिटाए जाएं और इस तरह ख़ुदावन्द के हुज़ूर से ताज़गी के दिन आएं।” (आमाल 3:19)

सो ये हतमी बात है कि गुनाहों के इक़रार के साथ तौबा वाला ईमान हर इन्सान के लिए वाजिब ठहराया गया है।

(अ) गुनाह के क़र्ज़ से नजात

मसीह येसू ने अपनी बुहत सी तम्सीलों में गुनाह को एक क़र्ज़ के तौर पर बयान किया है। एक बदकार नौकर के मुताल्लिक़ मसीह ने यूं कहा कि :

“पस आस्मान की बादशाही उस बादशाह की मानिंद है जिस ने अपने नौकरों से हिसाब लेना चाहा और जब हिसाब लेने लगा तो उस के सामने एक कर्ज़दार हाज़िर किया गया जिस पर उस के दस हज़ार तोड़े आते थे।” (मत्ती 18:23-24)

एक और तम्सील में मसीह ने यूं फ़रमाया :

“किसी साहूकार के दो कर्ज़दार थे। एक पांच सौ (500) दीनार का, दूसरा पचास (50) का। जब उन के पास अदा करने को कुछ ना रहा तो उस ने दोनों को बख़्श दिया। पस उन में से कौन उस से ज़्यादा मुहब्बत रखेगा?” (लूक़ा 7:41-42)

फ़िल-हक़ीक़त गुनाह एक बहुत बड़ा क़र्ज़ है जो गुनाहगारों को ख़ुदा का कर्ज़दार ठहराता है, चाहे ये क़र्ज़ बड़ा है या छोटा, इसे अदा करने का औज़ाना (बदल) इस से कहीं बढ़कर है, इसलिए गुनाह की अदालत होना ज़रूर है। इस के बारे में इन्जील में यूं मर्क़ूम है :

“क्योंकि गुनाह की मज़दूरी मौत है।” (रोमियों 6:23)

मगर ख़ुदा अपनी रहमत व शफ़क़त से मामूर अज़ीम मुहब्बत में और इन्जील में मौजूद शराइत के तहत मग़्फिरत व नजात देने के लिए तैयार है, चाहे गुनाह जैसे भी हों और कितने ही बड़े क्यों ना हों। चुनांचे लिखा है :

“मगर जहां गुनाह ज़्यादा हुआ वहां फ़ज़्ल इस से भी निहायत ज़्यादा हुआ।” (रोमियों 5:20)

पस इन्जील मुक़द्दस शरीअत के होलनाक और कुचल डालने वाले क़ानून के मुक़ाबले में निहायत ही शीरीं व पुर-तस्कीन हो जाती है। तौबा करने वाले गुनेहगार के लिए सलीबी ख़ून से माफ़ी ख़रीद कर मसीह की इन्जील तमाम बनी-नूअ इंसान को मुआफ़ी का वादा मुहय्या करती है और इसी वादे पर मसीह के पाक ख़ून और रूह पाक की मुहर लगी है और यही हमारे लिए अबदी तसल्ली व तस्कीन है। जिन लोगों के गुनाह मुआफ़ हुए हैं वो मसीह को प्यार करने के पाबंद हैं। एक गुनेहगार रूहानी पैदाईश से क़ब्ल अपने गुनाहों की गहराई में जितना ज़्यादा डूबा होगा, उतना ही ज़्यादा वो पाकीज़ा होता जाएगा और मसीह के हर इंजीली हुक्म की इताअत के लिए तैयार होगा।

ख़ुदा रूह है और ख़ुदा मुहब्बत है

(ब) गुनाह की ताक़त से नजात

गुनाह के भारी क़र्ज़ से रिहाई के बाद ज़रूर है कि इंसान गुनाह की क़ुव्वत से आज़ाद हो और बुरी आदतों को हमेशा के लिए तर्क कर दे। वो अपनी बद उन्वान दुनियावी ख़्वाहिशों के मुताबिक़ ज़िंदगी बसर करना तर्क करे जो इस दुनिया से मुताल्लिक़ हैं, क्योंकि ये दुनिया (शरीर की) बतालत के इख़्तियार में कर दी गई है। गुनाह की ताक़त से रिहाई के लिए इंसान मुस्तक़िल मिज़ाजी और साबित क़दमी से गुनाह के ख़िलाफ़ जंग करे ताकि वो नजात पाए। पौलूस रसूल ने फिलिप्पियों की कलीसिया के नाम ख़त में यूं लिखा है :

“पस ऐ मेरे अज़ीज़ो जिस तरह तुम हमेशा से फ़रमांबर्दारी करते आए हो उसी तरह अब भी ना सिर्फ मेरी हाज़िरी में बल्कि उस से बहुत ज़्यादा मेरी गैर-हाज़िरी में डरते और काँपते हुए अपनी नजात का काम किए जाओ। क्योंकि जो तुम में नीयत और अमल दोनों को अपने नेक इरादे को अंजाम देने के लिए पैदा करता है वो ख़ुदा है।” (फिलिप्पियों 2:12-13)

पौलुस रसूल ये भी सिखाता है कि जो शख़्स मसीह के फ़ज़्ल के बाइस बचाया गया है वो दिन-ब-दिन पाकीज़ा बनने की मश्क़ करे और अपने आपको गुनाह के असरात से आज़ाद रखे जब तक कि वो अबदी जलाल को हासिल ना कर ले। रोम की कलीसिया के लिए पौलूस रसूल के ख़त से ये अयाँ है :

“और वक़्त को पहचान कर ऐसा ही करो। इसलिए कि अब वो घड़ी आ पहुंची कि तुम नींद से जागो क्योंकि जिस वक़्त हम ईमान लाए थे उस वक़्त की निस्बत अब हमारी नजात नज़्दीक है।” (रोमियों 13:11)

मुख़्तसर ये कि नजात में इंसान की गुनाह के क़र्ज़ से आज़ादी और कैद-ए-गुनाह की ताक़त से रूह, जान व जिस्म की रिहाई शामिल है, जब तक कि इंसान ख़ुदा के हुज़ूर मुहब्बत में पाकीज़ा और बेऐब ना पाया जाये।

कुछ लोग पूछ सकते हैं कि “ख़ुदा उन सरकश गुनाहगारों में क्यों दिलचस्पी लेता है जिन्हों ने आज़ादी से गुनाह पर गुनाह किया और ऐसे लोगों को आस्मानी ख़ुदा उन के बुरे कामों का अंजाम बर्दाश्त क्यों नहीं करने देता जिसके वो इन्साफ़ की रू से मुस्तहिक़ हैं? इस बात का जवाब ख़ुदावन्द येसू मसीह से मुताल्लिक़ पाक कलाम में यूं मौजूद है :

“क्योंकि ख़ुदा ने दुनिया से ऐसी मुहब्बत रखी कि उस ने अपना इकलौता बेटा बख़्श दिया ताकि जो कोई उस पर ईमान लाए हलाक ना हो बल्कि हमेशा की ज़िंदगी पाए।” (यूहन्ना 3:16)

एक मशहूर वकील सर जान प्रिंटस के बारे में एक कहानी बयान की जाती है, जिस ने एक अदालती केस की कार्रवाई में दिफ़ाई दलाईल पेश करते हुए अपनी दलील को मुन्दरिजा ज़ैल बयान देकर यूं ख़त्म किया कि “मैंने एक किताब पढ़ी, जिस में ख़ुदा ने अबदी मश्वरत में अदल, सच्चाई और फ़ज़्ल से पूछा कि क्या वो इन्सान को ख़ल्क़ करे? अदल ने जवाब दिया इन्सान की तख़्लीक़ ना की जाये क्योंकि वो तेरे बनाए हुए तमाम क़वानीन, नज़्म व ज़ब्त और उसूलों को पामाल करेगा। सच्चाई ने जवाब दिया कि इन्सान को ना बनाया जाये क्योंकि उस की हालत बिगड़ जाएगी और वो हमेशा झूट और बतालत की पैरवी करेगा। मगर फ़ज़्ल (शफ़क़त) ने कहा मुझे इल्म है कि गरचे इन्सान बदनसीब और आफ़त का मारा हो जाएगा मगर मैं उस की देख-भाल करूँगा बल्कि तारीक वादी में भी उस का हम-क़दम होऊंगा जब तक कि मैं उसे रोज़े आख़िर तेरे पास ले ना आऊँ।”

गरचे ख़ुदा ने इंसान को बेहतरीन सूरत और हालत में तख़्लीक़ किया लेकिन इन्सान अपनी ही नफ़्सानी रग़बतों की पैरवी करते हुए गिर कर दुनियावी बद-उनवानियों में डूब गया। लेकिन ख़ुदा के फ़ज़्ल और मुहब्बत ने इन्सान को बे-यार व मददगार ना छोड़ा बल्कि उसके लिए येसू मसीह के वसीले कामिल अबदी नजात की तक्मील का इंतिज़ाम किया।

आप मसीह येसू में ख़ुदा की मुहब्बत पर कामिल तवक्कुल कीजिए जिस ने यूं फ़रमाया :

“ऐ इंतिहा-ए-ज़मीन के सब रहने वालो तुम मेरी तरफ़ मुतवज्जोह हो और नजात पाओ, क्योंकि मैं ख़ुदा हूँ और मेरे सिवा कोई नहीं।” (यसायाह 45:22)

“अब ख़ुदावन्द फ़रमाता है, आओ हम बाहम हुज्जत करें। अगरचे तुम्हारे गुनाह क़िरमज़ी (रंग के) हों, वो बर्फ़ की मानिंद सफ़ैद हो जाऐंगे और हर-चंद अर्ग़वानी हों तो भी ऊन की मानिंद उजले होंगे।” (यसायाह 1:18)

हिचकिचाईए नहीं अपने दिल का दरवाज़ा मसीह के लिए खोलें। मसीह आपसे ऐसा ही करने की तवक़्क़ो करता है क्योंकि वो फ़रमाता है कि :

“देख मैं दरवाज़े पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ, अगर कोई मेरी आवाज़ सुन कर दरवाज़ा खोलेगा तो मैं उस के पास अंदर जा कर उस के साथ खाना खाऊंगा और वो मेरे साथ।” (मुकाशफ़ा 3:20)

“ऐ ख़ुदा मेरे अंदर पाक दिल पैदा कर और मेरे बातिन में अज़ सर-ए-नौ
मुस्तक़ीम रूह डाल।” (ज़बूर 51:10)


दूसरा बाब - राह-ए-नजात

इन्सान की नजात की तक्मील ख़ुदा के इलाही मंसूबे से बाहर मुम्किन नहीं। सिर्फ ख़ुदा ही अदल, फ़ज़्ल, पाकीज़गी और मुहब्बत को यकजा कर सकता है। वक़्त-ए-मुक़र्ररा पर ख़ुदा ने इस बड़ी नजात और कफ़्फ़ारे के काम को गलगता (मुल्क इस्राईल में मुक़ाम-ए-कल्वरी) पर पूरा किया।

ये ज़बूर नवीस (दाऊद नबी) की पेशगोई के ऐन मुताबिक़ हुआ :

“शफ़क़त और रास्ती बाहम मिल गई हैं सदाक़त और सलामती ने एक दूसरे का बोसा लिया है।” (ज़बूर 85:10)

ख़ुदा ने कफ़्फ़ारे के इस अनोखे और ख़ास पुर-जलाली काम को मुरत्तब किया। एक तरफ़ ख़ुदा है जिस की क़ुद्दुसियत, जलाल और शफ़क़त की कोई इंतिहा नहीं जबकि दूसरी जानिब गुनेहगार इन्सान अपनी ही ख़ताओं के बाइस दागदार है, मगर इन दोनों के दर्मियान मसीह-ए-मस्लूब है जो नजातदिहंदा के तौर पर ख़ुदा की मुहब्बत के इज़्हार के लिए सलीब पर चढ़ाया गया।

“ख़ुदा ने मसीह में हो कर अपने साथ दुनिया का मेल मिलाप कर लिया ... और उस ने मेल मिलाप का पैग़ाम हमें सौंप दिया है।” (2 कुरिन्थियों 5:19)

ये वाक़ेआती शहादत, इस बात की तस्दीक़ है कि ख़ुदा ने ये नजात जो बनी नूअ इन्सान के लिए तैयार की वो कोई हंगामी कार्रवाई ना थी। ये एक पहले ही से निहायत एहतियात के साथ मुक़र्रर-कर्दा मन्सूबा था जिसे ख़ुदा तआला की कामिल हिक्मत और मश्वरत के ऐन मुताबिक़ पाया तक्मील तक पहुंचाया गया।

“और उस ने अपनी मर्ज़ी के नेक इरादे के मुवाफ़िक़ हमें अपने लिए पेश्तर से मुक़र्रर किया कि येसू मसीह के वसीले से उस के ले-पालक बेटे हों ता कि उस के उस फ़ज़्ल के जलाल की सताइश हो जो हमें उस अज़ीज़ (मसीह) में मुफ़्त बख़्शा। हमको उस में उस के ख़ून के वसीले से मख़लिसी यानी क़ुसूरों की माफ़ी उस के उस फ़ज़्ल की दौलत के मुवाफ़िक़ हासिल है जो उस ने हर तरह की हिक्मत और दानाई के साथ कस्रत से हम पर नाज़िल किया।” (इफ़िसियों 1:5-8)

फ़िल-हक़ीक़त, इन्सानियत की नजात की बुनियाद इस कफ़्फ़ारे (फ़िद्ये) पर है जिस को मसीह ने कामिल किया। इस कफ़्फ़ारे के अमल को बरूए-कार लाने के लिए ये अम्र ज़रूरी हुआ कि लोगोस (Logos) यानी ख़ुदा का कलाम जो इब्तिदा में ख़ुदा के साथ था मुजस्सम हुआ (ख़ुदा के कलाम ने इन्सानी शक्ल इख़्तियार की), वो ख़ून और गोश्त में हो कर बनी नूअ इन्सान के साथ शरीक हुआ ताकि सलीबी मज़बह पर क़ुर्बान हो कर इन्सानियत के गुनाहों का कफ़्फ़ारा अदा करे। चुनान्चे ये लिखा है :

“पस जिस सूरत में कि लड़के, ख़ून और गोश्त में शरीक हैं, तो वो ख़ुद भी उन की तरह उन में शरीक हुआ ताकि मौत के वसीले से उस को जिसे मौत पर कुदरत हासिल थी यानी इब्लीस को तबाह कर दे और जो उम्र भर मौत के डर से गु़लामी में गिरफ़्तार रहे उन्हें छुड़ा ले।” (इब्रानियों 2:14-15)

नजात के बारे में मौज़ूं (फायदेमंद) हवालेजात

“ख़ुदावंद येसू पर ईमान ला तो तू और तेरा घराना नजात पाएगा।” (आमाल 16:31)

“पस तौबा करो और रुजूअ लाओ ताकि तुम्हारे गुनाह मिटाए जाएं और इस तरह ख़ुदावन्द के हुज़ूर से ताज़गी के दिन आएं।” (आमाल 3:19)

“तौबा करो और तुम में से हर एक अपने गुनाहों की माफ़ी के लिए येसू मसीह के नाम पर बपतिस्मा ले तो तुम रूह-उल-क़ुद्स इनाम में पाओगे।” (आमाल 2:38)

“अगर अपने गुनाहों का इक़रार करें तो वो हमारे गुनाहों के माफ़ करने और हमें सारी नारास्ती से पाक करने में सच्चा और आदिल है।” (1 यूहन्ना 1:9)

“अगर तू अपनी ज़बान से येसू के ख़ुदावन्द होने का इक़रार करे और अपने दिल से ईमान लाए कि ख़ुदा ने उसे मुर्दों में जिलाया तो नजात पाएगा।” (रोमियों 10:9)

“क्योंकि तुमको ईमान के वसीले से फ़ज़्ल ही से नजात मिली है और ये तुम्हारी तरफ़ से नहीं ख़ुदा की बख़्शिश है और ना आमाल के सबब से है ताकि कोई फ़ख़्र ना करे।” (इफ़िसियों 2:8-9)

“और हमेशा की ज़िंदगी ये है कि वो तुझ ख़ुदा-ए-वाहिद और बरहक़ को और येसू मसीह को जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्ना 17:3)

“मगर तुम जो पहले दूर थे अब मसीह येसू में मसीह के ख़ून के सबब से नज़्दीक हो गए हो।” (इफ़िसियों 2:13)

“लेकिन अगर हम नूर में चलें जिस तरह कि वो नूर में है तो हमारी आपस में शराकत है और उस के बेटे येसू का ख़ून हमें तमाम गुनाह से पाक करता है।” (1 यूहन्ना 1:7)

“क्योंकि बाप को ये पसंद आया कि सारी मामूरी उसी (मसीह) में सुकूनत करे और उस के ख़ून के सबब से जो सलीब पर बहा, सुलह कर के सब चीज़ों का उसी के वसीले से अपने साथ मेल कर ले ख़्वाह वो ज़मीन की हों ख़्वाह आस्मान की।” (कुलस्सियों 1:19-20)

“क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारा निकम्मा चाल चलन जो बाप दादा से चला आता था उस से तुम्हारी ख़लासी फ़ानी चीज़ों यानी सोने चांदी के ज़रीये से नहीं हुई बल्कि एक बे-ऐब और बेदाग़ बर्रे यानी मसीह के बेशक़ीमत ख़ून से। इस का इल्म तो बिना-ए-आलम से पेश्तर से था मगर ज़हूर अख़ीर ज़माने में तुम्हारी ख़ातिर हुआ।” (1 पतरस 1:18-20)

“हमको उस में उस के ख़ून के वसीले से मख़लिसी यानी क़ुसूरों की माफ़ी उस के उस फ़ज़्ल की दौलत के मुवाफ़िक़ हासिल है।” (इफ़िसियों 1:7)

“ख़ुदा अपनी मुहब्बत की ख़ूबी हम पर यूं ज़ाहिर करता है कि जब हम
गुनेहगार ही थे तो मसीह हमारी ख़ातिर मुआ।” (रोमियों 5:8)

तीसरा बाब - गुनाह पर फ़त्ह


फ़ज़्ल ही के ज़रीये आप गुनाह पर फ़त्ह पा सकते हैं। ख़ुदा ने ईमानदार को पूरी तरह से गुनाहों से आज़ादी पाने और नजात के काम को पूरा करने के लिए उस की ज़ाती कोशिश व जद्दो जहद पर ही नहीं छोड़ दिया है बल्कि ख़ुदा एक ईमानदार की ज़िंदगी में हमा-तन सरगर्म अमल रहता है, जैसा कि पौलूस रसूल ने यूं कहा है :

“... डरते और काँपते हुए नजात का काम किए जाओ। क्योंकि जो तुम में नीयत और अमल दोनों को अपने नेक इरादे को अंजाम देने के लिए पैदा करता है वो ख़ुदा है।” (फिलिप्पियों 2:12-13)

फ़ज़्ल पाने के ज़राए बहुत हैं, जो इस तरह से हैं :

(1) मसीह के साथ “आरिफ़ाना” रिफ़ाक़त जारी रखना


मसीह ईमानदार के लिए रूहानी उस्ताद और एक लासानी मिसाल से भी बढ़कर है। इसी सच्चाई के पेश-ए-नज़र इल्हामी तहरीक से पौलूस रसूल ने इफिसस की कलीसिया के लिए दुआ करते हुए यूं बयान किया :

“और ईमान के वसीले से मसीह तुम्हारे दिलों में सुकूनत करे ताकि तुम मुहब्बत में जड़ पकड़ के और बुनियाद क़ायम कर के सब मुक़द्दसों समेत बख़ूबी मालूम कर सको कि उस की चौड़ाई और लंबाई और ऊंचाई और गहराई कितनी है।” (इफ़िसियों 3:17-18)

बाइबल मुक़द्दस, मसीह और ईमानदार के दर्मियान बाहमी ताल्लुक़ को बहुत सी मिसालें देकर वाज़ेह करती है। यूहन्ना 15:1-3 में मसीह को अंगूर का हक़ीक़ी दरख़्त कह कर पुकारा गया है और उस के शागिर्दों को डालियां। एक और वज़ाहत इस तरह दर्ज है कि मसीह रुहानी बुनियादी साख्त है जब कि उस के ईमानदार ज़िंदा पत्थरों की मानिंद हैं। (1 पतरस 2:5) और ये वही ताल्लुक़ हो सकता है जो मसीह चाहता था जब उस ने फ़रमाया “देख मैं दरवाज़े पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ। अगर कोई मेरी आवाज़ सुन कर दरवाज़ा खोलेगा तो मैं उस के पास अंदर जा कर उस के साथ खाना खाऊंगा और वो मेरे साथ।” (मुकाशफ़ा 3:20) मसीह ने ये भी फ़रमाया “अगर कोई मुझसे मुहब्बत रखे तो वो मेरे कलाम पर अमल करेगा और मेरा बाप उस से मुहब्बत रखेगा और हम उस के पास आएंगे और उस के साथ सुकूनत करेंगे।” (यूहन्ना 14:23)

ग़ालिबन, इसी मौज़ू पर निहायत हैरानकुन तश्रीह वो तजुर्बा है, जिसे पौलूस रसूल ने यूं बयान किया कि “मैं मसीह के साथ मस्लूब हुआ हूँ और अब मैं ज़िंदा ना रहा बल्कि मसीह मुझमें ज़िंदा है और मैं जो अब जिस्म में ज़िंदगी गुज़ारता हूँ तो ख़ुदा के बेटे पर ईमान लाने से गुज़ारता हूँ जिस ने मुझसे मुहब्बत रखी और अपने आपको मेरे लिए मौत के हवाले कर दिया।” (ग़लतियों 2:20)

हमें अपनी ख़ूदी व अना से इन्कार करना है और कामिल तौर पर ख़ुदावंद येसू मसीह की ज़ात में अपने आपको ढालना है ताकि “हम मसीह में क़ायम रहें और वो हम में। ये भी ज़रूरी अम्र है कि हम मसीह के कलाम में क़ायम रहें ता कि उसका पाक कलाम हमारी ज़िंदगियों में जड़ पकड़े। तब जो कुछ भी हम उस से माँगेंगे, वो हमको मिल जाएगा और मसीह में गुनाह पर फ़त्ह यक़ीनन हमारे ही हक़ में होगी।

(2) बाइबल का मुतालआ

ख़ुदावन्द येसू ने फ़रमाया “आदमी सिर्फ रोटी ही से जीता ना रहेगा बल्कि हर बात से जो ख़ुदा के मुँह से निकलती है।” (मत्ती 4:4)

फ़त्हमंद ज़िंदगी बसर करने वाले ख़ुदा के लोगों की ज़िंदगी पर ग़ौर करने से मालूम होता है कि वो रूह की तल्वार यानी कलाम-ए-ख़ुदा से मुसल्लह थे, जैसा कि हम इफ़िसियों 6:17 में देखते हैं। हम ये भी जानते हैं कि वो लोग जिन्हों ने कमज़ोरी और शिकस्तगी के दौर का सामना किया वो इलाही कलाम की क़ुद्रत से फ़त्हमंद हुए। मिसाल के तौर पर दाऊद नबी ने मुन्दरिजा ज़ैल फ़त्हमंदी के गीत लिखे :

“मुबारक हैं वो जो कामिल रफ़्तार हैं जो ख़ुदावन्द की शरीअत पर अमल करते हैं।

मुबारक हैं वो जो उस की शहादतों को मानते हैं और पूरे दिल से उस के तालिब हैं।

उन से नारास्ती नहीं होती। वो उस की राहों पर चलते हैं। तू ने अपने क़वानीन दीए हैं।

ताकि हम दिल लगा कर उन को मानें। काश कि तेरे आईन मानने के लिए

मेरी रविशें दुरुस्त हो जाएं जब मैं तेरे सब अहकाम का लिहाज़ रखूंगा

तो शर्मिंदा ना हूँगा। जब मैं तेरी सदाक़त के अहकाम सीख लूँगा

तो सच्चे दिल से तेरा शुक्र करूँगा। मैं तेरे आईन मानूँगा। मुझे बिल्कुल तर्क ना कर दे।

जवान अपनी रवीश किस तरह पाक रखे? तेरे कलाम के मुताबिक़ उस पर निगाह रखने
से।

मैं पूरे दिल से तेरा तालिब हुआ हूँ मुझे अपने फ़र्मान से भटकने ना दे

मैंने तेरे कलाम को अपने दिल में रख लिया है

ताकि मैं तेरे खिलाफ गुनाह ना करूँ (ज़बूर 119:1-11)

दाऊद नबी ने अपने गुनाहों पर ग़लबा पाने वाली गवाही को इन आयात में तहरीर किया :

“ख़ुदावन्द की शरीअत कामिल है। वो जान को बहाल करती है

ख़ुदावन्द की शहादत बरहक़ है। नादान को दानिश बख़्शती है

ख़ुदावन्द के क़वानीन रास्त हैं। वो दिल को फ़र्हत पहुंचाते हैं

ख़ुदावन्द का हुक्म बेऐब है। वो आँखों को रोशन करता है

ख़ुदावन्द का ख़ौफ़ पाक है। वो अबद तक क़ायम रहता है

ख़ुदावन्द के अहकाम बरहक़ और बिल्कुल रास्त हैं

वो सोने से बल्कि बहुत कुन्दन से ज़्यादा पसंदीदा हैं

वो शहद से बल्कि छत्ते के टपकों से भी शीरीं हैं

नीज़ उन से तेरे बंदे को आगाही मिलती है। उन को मानने का अज्र बड़ा है। ( ज़बूर 19:7-11)

यहां एक मिसाल है जो पौलूस रसूल ने अपने शागिर्द तीमुथियुस को ख़त लिखते वक़्त इस्तिमाल की :

“और तू बचपन से उन पाक नविश्तों से वाक़िफ़ है जो तुझे मसीह येसू पर ईमान लाने से नजात हासिल करने के लिए दानाई बख़्श सकते हैं। हर एक सहीफ़ा जो ख़ुदा के इल्हाम से है तालीम और इल्ज़ाम और इस्लाह और रास्तबाज़ी में तर्बियत करने के लिए फ़ाइदेमंद भी है ताकि मर्द-ए-ख़ुदा कामिल बने और हर एक नेक काम के लिए बिल्कुल तैयार हो जाये।” (2 तीमुथियुस 3:15-17)

पतरस रसूल ने वज़ाहत के लिए एक दूसरी मिसाल पेश की है कि ख़ुदा का कलाम किस तरह इन्सान की ज़िंदगी में असर करता है :

“और हमारे पास नबियों का वो कलाम है जो ज़्यादा मोअतबर ठहरा और तुम अच्छा करते हो जो ये समझ कर उस पर ग़ौर करते हो कि वो एक चिराग़ है जो अँधेरी जगह में रोशनी बख़्शता है जब तक पौ ना फटे और सुबह का सितारा तुम्हारे दिलों में ना चमके। और पहले ये जान लो कि किताब-ए-मुक़द्दस की किसी नबुव्वत की बात की तावील किसी के ज़ाती इख़्तियार पर मौक़ूफ़ नहीं। क्योंकि नबुव्वत की कोई बात आदमी की ख़्वाहिश से कभी नहीं हुई बल्कि आदमी रूह-उल-क़ुद्स की तहरीक के सबब से ख़ुदा की तरफ़ से बोलते थे।” (2 पतरस 1:19-21)

(3) दुआ

जब शैतान ने (मसीह के) शागिर्दों को आज़माने की कोशिश की तो येसू मसीह ने उन से कहा दुआ करो कि “आज़माईश में ना पड़ो” जैसा कि लूक़ा 22:40 में दर्ज है। अगर आज़माईश को अपने से दूर रखने के बजाए क़ुबूल कर लिया जाये तो ये नफ़्सानी ख़्वाहिश पैदा करती है और ये बदनी ख़्वाहिश जब अमल में लाई जाये तो गुनाह पैदा करती है। इसलिए हम बिलानागा दुआ मांगें ताकि आज़माईश में पड़ कर गुनाह ना करें और आख़िरकार हलाक ना हों।

(4) मुसम्मम तौबा

ख़ुदा के एक ख़ादिम बनाम बासिल ने यूं बयान किया है “ये बेहतर है कि तुम गुनाह ना करो और अगर गुनाह हो जाये तो तौबा का इरादा मुल्तवी ना करो। अगर तौबा करो तो फिर गुनाह ना करो। अगर इस पर अमल करने के क़ाबिल हो जाओ तो जान लो कि ख़ुदा ने इन बातों को मुम्किन किया है। जब इस ख़याल का तुमको एहसास हो जाये तो ख़ुदा के फ़ज़्ल का शुक्र करो और ख़ुदा बाप से मुसलसल राहनुमाई माँगो।”

(5) “पुरानी इन्सानियत” को मस्लूब करना

पौलुस रसूल ने इफिसस की कलीसिया को यूं लिखा “मगर तुमने मसीह की ऐसी तालीम नहीं पाई बल्कि तुमने उस सच्चाई के मुताबिक़ जो येसू में है उसी की सुनी और उस में ये तालीम पाई होगी कि तुम अपने अगले चाल-चलन की उस पुरानी इन्सानियत को उतार डालो जो फ़रेब की शहवतों के सबब से ख़राब होती जाती है और अपनी अक़्ल की रूहानी हालत में नए बनते जाओ और नई इन्सानियत को पहनो जो ख़ुदा के मुताबिक़ सच्चाई की रास्तबाज़ी और पाकीज़गी में पैदा की गई है।” (इफ़िसियों 4:20-24)

(6) मसीह की मुहब्बत के लिए कोशां हों

ये कहा जाता है कि दुआ करते वक़्त ख़ुदा के एक ख़ादिम बनाम मकारियुस को शैतान ने इस तरह आज़माया कि वो अपने दिल में तकब्बुर व ग़ुरूर के एहसास को जगह दे और कहा “तुम कितने रास्त और नेक बुज़ुर्ग हो!” मकारियुस ने जवाब दिया “तुम मेरी बहुत सी कोताहियों और कमज़ोरीयों को भूल जाते हो। एक दूसरे मौक़े पर शैतान ने फिर मकारियुस के दिल में मायूसी लाने की कोशिश की, जब उस (शैतान) ने उस से कहा “तुम महरूमियत का शिकार हो और कितनी नारास्ती से भरे हो।” मकारियुस ने कहा “ये सच्च है कि मुझमें नारास्ती और कमज़ोरियाँ बहुत हैं लेकिन मेरी ख़ातिर मसीह की मुहब्बत और उस की मौत को तुम भूल गए हो। उस की कामिलियत ही में मेरी तमाम कमज़ोरियाँ पूरी होती हैं।

(7) रूहानी रिफ़ाक़त व शराकत

ये एक क़ाबिल-ए-क़ुबूल हक़ीक़त है कि ख़ुदा की जानिब से मुहय्या कर्दा रुहानी रिफ़ाक़त व शराकत ईमानदारों के लिए मसीही ज़िंदगी में तरक़्क़ी करने और आगे बढ़ने का बेहतरीन ज़रीया है। रसूलों के आमाल में इब्तिदाई कलीसिया के मुताल्लिक़ यूं बताया गया है :

“और ये रसूलों से तालीम पाने और रिफ़ाक़त रखने में और रोटी तोड़ने और दुआ करने में मशग़ूल रहे।” (आमाल 2:42)

पस मसीह का शागिर्द तालीम देते हुए ये नसीहत करता है कि “मुहब्बत और नेक कामों की तर्ग़ीब देने के लिए एक दूसरे का लिहाज़ रखें और एक दूसरे के साथ (पाक रूहानी रिफ़ाक़त के लिए) जमा होने से बाज़ ना आएं, जैसा बाअज़ लोगों का दस्तूर है बल्कि एक दूसरे को नसीहत करें और जिस क़द्र उस दिन को नज़्दीक होते देखते हो उसी क़द्र ज़्यादा किया करो।” (इब्रानियों 10:24-25)

“ख़ौफ़ ना कर

क्योंकि मैंने

तेरा फ़िद्या दिया है,

मैंने तेरा नाम लेकर

तुझे बुलाया है,

तू मेरा है।

(यसायाह 43:1)

सवालात

(1) मैं माफ़ी, नजात और “ज़िंदगी का ताज जैसे मज़ामीन का गहराई से मुतालआ करना चाहूँगा। मेहरबानी से इन मज़ामीन को मेरे लिए मज़ीद वाज़ेह करें।

A. N. A.

अल-ज़काज़ीक, मिस्र

(2) मुझे मुन्दरिजा ज़ैल मतन मुतालआ करने के लिए मौसूल हुए :

(अ) “जान देने तक भी वफ़ादार रह तो मैं तुझे ज़िंदगी का ताज दूंगा।” (मुकाशफ़ा 2:10)

(ब) “अगर अपने गुनाहों का इक़रार करें तो वो हमारे गुनाहों के माफ़ करने और हमें सारी नारास्ती से पाक करने में सच्चा और आदिल है।” (1 यूहन्ना 1:9)

मेहरबानी से मेरे लिए इन हवालेजात की वज़ाहत कीजिए।

G. K. Y.

मिस्र
चौथा बाब - माफ़ी


बाइबल मुक़द्दस में लफ़्ज़ “माफ़ी” का मतलब गुनाह को ढाँपना, इस को छुपाना या इस का कफ़्फ़ारा अदा करना है। इस को पहले पैदाईश की किताब में “ढांपने” के तौर पर इस्तिमाल किया गया (जब बाग-ए-अदन में आदम और हव्वा के गुनाह के बाद ख़ुदा ने चमड़े के कपड़ों से उन के नंगेपन को ढाँपा या नूह ने कश्ती को राल लगा कर ढाँपा) मूसा के ज़माने में इस का मतलब (इब्तिदाई यहूदी हैकल में मौजूद खैमाइ-ए-इज्तमाअ के) पाक तरीन मुक़ाम को (सोने और दो करूबियों के परों से) ढांपने की शक्ल में मज़ीद वाज़ेह हुआ। नए अहदनामे (इन्जील) में मसीह के ख़ून के ज़रीये गुनाह के कफ़्फ़ारे के माअनों में “ढाँपना” का इस्तिमाल हुआ है, पिछले सफ़े में किए गए सवाल के जवाब में “माफ़ी” का मतलब “ढाँपना” यानी मसीह के कफ़्फ़ारे से अपने गुनाहों को ढाँपना है।

अगर हम बाइबल में लफ़्ज़ “माफ़ी” पर मज़ीद सोच बिचार करें तो ये वाज़ेह हो जाएगा कि मसीह हमारे गुनाहों की माफ़ी के लिए “शफ़ाअत” है, क्योंकि मसीह ने अपनी सलीबी मौत के ज़रीये उनका कफ़्फ़ारा दिया है। यूहन्ना रसूल इस हक़्क़ीत की वज़ाहत अपनी गवाही से यूं देता है जब उस ने लिखा कि “ए मेरे बच्चो ये बातें मैं इसलिए लिखता हूँ कि तुम गुनाह ना करो और अगर कोई गुनाह करे तो बाप के पास हमारा एक मददगार मौजूद है यानी येसू मसीह रास्तबाज़ और वोही हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा है और ना सिर्फ हमारे ही गुनाहों का बल्कि तमाम दुनिया के गुनाहों का भी।” (1 यूहन्ना 2:1-2)

माफ़ी का मतलब ये भी है कि “उठा ले जाना” जैसा कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने इस मतलब को इस्तिमाल में लाते हुए मसीह के बारे में यूं कहा “देखो ये ख़ुदा का बर्रा है जो दुनिया का गुनाह उठा ले जाता है।” (यूहन्ना 1:29)

कुछ लोग ये पूछना चाहेंगे कि “ख़ुदा बग़ैर कफ़्फ़ारे के माफ़ी क्यों नहीं देता है?” इस का जवाब यूं है कि

(अ) ख़ुदा के पास तमाम बनी-नूअ इंसान के लिए अख़्लाक़ी ज़ाबता कानून है। उस के अदल (इन्साफ) और रास्ती का तक़ाज़ा है कि इन्सान उस के बनाए गए क़ानून का एहतिराम करे और शरीअत का क़ानून बयान करता है कि “जो जान गुनाह करेगी वो ज़रूर मरेगी।”

(ब) ये तमाम बनी नूअ इन्सान के मफ़ाद में है कि क़ानून की पासदारी की जाये क्योंकि क़ानून की पासदारी करना अमन और बाज़ाबतगी की ज़मानत है।

(ज) अगर इन्सान को अपने लिए ख़ूद ही कफ़्फ़ारा अदा करने के लिए कहा जाता तो इन्सानियत के पास एहतजाजन इस तरह का सवाल करने का हक़ होना चाहिए था “अब हम जानते हैं कि शरीअत जो कुछ कहती है उन से कहती है जो शरीअत के मातहत हैं ताकि हर एक का मुंह बंद हो जाये और सारी दुनिया ख़ुदा के नज़्दीक सज़ा के लायक़ ठहरे।” (रोमियों 3:19)

हम ज़हन नशीन करें कि ख़ुदावन्द शफ़क़त में ग़नी है और इसी में उस की ख़ुशनुदी है “मगर उस के फ़ज़्ल के सबब से उस मख़लिसी के वसीले से जो मसीह येसू में है मुफ़्त रास्तबाज़ ठहराए जाते हैं। उसे ख़ुदा ने उस के ख़ून के बाइस एक ऐसा कफ़्फ़ारा ठहराया जो ईमान लाने से फ़ाइदेमंद होता कि जो गुनाह पेश्तर हो चुके थे और जिन से ख़ुदा ने तहम्मुल कर के तरह दी थी उन के बारे में वो अपनी रास्तबाज़ी ज़ाहिर करे।” (रोमियों 3:24-25)

इन्सान और उस के गुनाहों की माफ़ी


इन्सान और उस के गुनाहों की माफ़ी जो अपने गुनाहों के भारी बोझ को महसूस करते हैं, वो मुख़्तलिफ़ ज़राए से ख़ुदा की हिमायत हासिल करने की कोशिश करते हैं ताकि ख़ुदा की तरफ़ से दी गई माफ़ी को हासिल कर सकें और इस हक़ीक़त पर कोई बह्स व तकरार भी नहीं करता। मुन्दरिजा ज़ैल चंद ज़राए ज़ेरे बह्स हैं।

(1) नेक आमाल

नेक आमाल अपने तौर पर तो ठीक हैं लेकिन वो माज़ी के गुनाहों के लिए ख़ुदा की माफ़ी को जीत नहीं सकते। यसायाह नबी इस की वज़ाहत बड़ी साफ़ दिली से करता है “और हम तो सब के सब ऐसे हैं जैसे नापाक चीज़ और हमारी तमाम रास्तबाज़ी नापाक लिबास की मानिंद है और हम सब पत्ते की तरह कुमला जाते हैं और हमारी बदकिर्दारी आंधी की मानिंद हमको उड़ा ले जाती है।” (यसायाह 64:6) ये हक़ीक़त पौलूस रसूल के लिए और भी वाज़ेह हो गई जब उस ने रूह-उल-क़ुद्स की तहरीक से हमारे लिए इस गवाही को पेश किया “(ये नजात) और ना आमाल के सबब से है ता कि कोई फ़ख़्र ना करे क्योंकि हम उसी की कारीगरी हैं और मसीह येसू में इन नेक आमाल के वास्ते मख़्लूक़ हुए जिनको ख़ुदा ने पहले से हमारे करने के लिए तैयार किया था।” (इफ़िसियों 2:9-10)

जैसा कि पौलूस रसूल ने ऊपर वज़ाहत की है कि नेक आमाल इन्सान को माफ़ी नहीं दे सकते क्योंकि नेक आमाल तो एक फ़र्ज़ के तौर पर हैं जिसे इन्सान को करना ही है और इन नेक आमाल के करने के बाइस वो गुनाहों की माफ़ी हासिल नहीं कर सकता। मसीह ने ख़ूद अपनी ताअलीमात में इस ख़याल को यूं पेश किया है :

“इसी तरह तुम भी जब उन सब बातों की जिनका तुम्हें हुक्म हुआ तामील कर चुको तो कहो कि हम निकम्मे नौकर हैं। जो हम पर करना फ़र्ज़ था वही किया है।” (लूक़ा 17:10)

मसीह हमें पहला और सबसे बड़ा हुक्म याद दिलाता है “ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल और अपनी सारी जान और अपनी सारी अक़्ल से मुहब्बत रख (मत्ती 22:37) इस हुक्म का मतलब ये है कि ख़ुदा को मुहब्बत करने के साथ-साथ हमारी पेश कर्दा ख़िदमत भी शामिल-ए-हाल हो और हम वही कुछ करें जो उस की नज़र में अच्छा है।

ग़ालिबन इस बारे में यहां एक बेहतरीन और शानदार मिसाल वो है जो दाऊद बादशाह ने हमें दी, जब वो और उस की क़ौम के लोगों ने ख़ुदा की हैकल की तामीर के लिए बड़ी मिक़दार में सोना नज़्र किया। दाऊद बादशाह ने कहा “पर मैं कौन और मेरे लोगों की हक़ीक़त क्या है कि हम इस तरह से ख़ूशी ख़ूशी नज़राना देने के क़ाबिल हों? क्योंकि सब चीज़ें तेरी तरफ़ से मिलती हैं और तेरी ही चीज़ों में से हमने तुझे दिया है क्योंकि हम तेरे आगे परदेसी और मुसाफ़िर हैं जैसे हमारे सब बाप दादा थे। हमारे दिन रुए ज़मीन पर साये की तरह हैं और क़ियाम नसीब नहीं। ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ये सारा ज़ख़ीरा जो हमने तैयार किया है कि तेरे पाक नाम के लिए एक घर बनाएँ तेरे ही हाथ से मिला है और सब तेरा ही है।” (1 तवारीख़ 29:14-16)

ये सच्च है कि नेक आमाल ज़रूरी हैं क्योंकि ये ख़ुदाई फ़हम व हिक्मत से मुत्तफ़िक़ हैं लेकिन नेक आमाल माफ़ी को ख़रीद नहीं सकते हैं वर्ना तो “फ़ज़्ल” का लफ़्ज़ तमाम डिक्शनरियों (किताब लुगात) से मिटाना पड़ेगा।

(2) दुआ

दुआ का मतलब माफ़ी नहीं है। गुनेहगार इन्सान ने पहले ही से ख़ुदा को मलूल और ग़मज़दा किया हुआ है और नमाज़ या बंदगी के वसीले इन्सान ख़ुदा की नाराज़गी को मौक़ूफ़ (ख़त्म) नहीं कर सकता और ना ही नमाज़ (इबादत) के वसीले वो ख़ुदा के फ़ज़्ल को जीत सकता है क्योंकि ख़ुदा का रहम उस के बेहद कामिल अदल (इन्साफ) से मुंसलिक है

एक गुनेहगार शख़्स रूह-उल-क़ूद्स की तरफ़ से अता कर्दा शफ़ाअत का भी मज़ा नहीं उठा सकता जिसकी बदौलत इन्सान की रूह और ख़ुदा के दर्मियान ह्म-आहंगी पैदा होती है और रूह-उल-क़ूदस दुआ में इन्सान के लिए सिफ़ारिश करता और इबादत को मोअस्सर बना देता है।

ये सवाल किया जा सकता है कि “जबकि सूरत-ए-हाल ऐसी है तो फिर कौन दुआ कर सकता है?” जवाब यूं है कि जिस किसी ने भी शख़्सी तौर पर मसीह येसू को अपने लिए नजातदिहंदा क़ुबूल किया हो और नजात देने वाले की सलीब पर बहाए गए ख़ून से माफ़ी हासिल की हो वही दुआ कर सकता है। सो, दुआ माफ़ी हासिल करने का ही ज़रीया नहीं बल्कि अपने गुनाह माफ़ हो जाने के बाद दुआ के वसीले इन्सान ख़ुदा के साथ ख़ुशगवार ताल्लुक़ात का लुत्फ़ भी उठाता है।

(3) रोज़ा

रोज़ा, अपनी ही रूह की इन्किसारी और तौबा की हालत है लेकिन ये ख़ुदा के ख़िलाफ़ किए गए गुनाहों के बाइस नाराज़गी को मौक़ूफ़ करने के लिए काफ़ी नहीं है। इसलिए रोज़े के वसीले गुनेहगार को उसके गुनाहों से माफ़ी नहीं मिलती।

तजुर्बे से हम ये सीखते हैं कि जो लोग ख़ुदा के फ़ज़्ल को जीतने के लिए रोज़ा रखते हैं वो दर-हक़ीक़त ख़ुदा और इन्सानियत के लिए कोई भी मुफ़ीद काम नहीं कर रहे होते और ना ही वो रोज़े के अज्र व मुआवज़ा के मुस्तहिक़ हैं। ख़ुदा ने फ़रमाया “जब तुमने पाँचवें और सातवें महीने में इन सत्तर (70) बरस तक रोज़ा रखा और मातम किया तो क्या कभी मेरे लिए ख़ास मेरे ही लिए रोज़ा रखा था?” (ज़करियाह 7:5)

नेकी की ख़ातिर बदी से बाज़ (दूर) रहना बेहतरीन रोज़ा है


(4) शफ़ाअत

बाइबल में ऐसी कोई तालीम नहीं मिलती कि मुक़द्दस, नेक, बुज़ुर्ग और वली क़िस्म के लोग जो हमसे पहले आए (या जिनको ज़माना हाल में ऐसा समझा जाता है) उन की शिफ़ाअती दुआ से गुनाहों की माफ़ी मिलती हो। रसूलों की ताअलीमात में सादगी से ये बयान है “क्योंकि ख़ुदा एक है और ख़ुदा और इन्सान के बीच में दर्मियानी भी एक यानी मसीह येसू जो इंसान है जिसने अपने आपको सब के फ़िद्ये में दिया कि मुनासिब वक़्तों पर इस की गवाही दी जाये (1 तीमुथियुस 2:5-6)

“इसी तरह तुम भी जब उन सब बातों की जिनका तुम्हें हुक्म हुआ तामील कर चुको तो कहो कि हम निकम्मे नौकर हैं जो हम पर करना फ़र्ज़ था वही किया है।” (लूक़ा 17:10)

(5) तौबा

गुनाहों से तौबा निहायत ही आला अम्र है जबकि ये बहुत से गुनाहों के इर्तिकाब से रोकती है। गरचे ये अपने आप में दुरुस्त तो है मगर फिर भी ये हमारे “माज़ी” (पहले) के गुनाहों को माफ़ नहीं कर सकती। मिसाल के तौर पर अगर एक क़ातिल जिस पर अदालती मुक़द्दमा चल रहा है संजीदगी से वाअदा करे कि आइन्दा से वो अपने आपको जराइम से बाज़ रखेगा तो क्या जज मुजरिम के इस वाअदे में जायज़ दलील पा सकेगा कि वो मुजरिम को माफ़ कर दे? हरगिज़ नहीं। जज से तवक़्क़ो (उम्मीद) लाज़िम है कि वो अदल व इन्साफ़ को क़ायम रखे। तो फिर किस तरह आस्मान व ज़मीन का मुक़द्दस मुंसिफ़ आस्मानी ख़ुदा अपने ही क़ानून (शरीअत) को तोड़ेगा जिसके मुताबिक़ “जो जान गुनाह करती है वही मरेगी ..।” (हिज़्क़ीएल 18:20) मगर अब कैसे माफ़ी हासिल की जाये?

तमाम ज़मानों में हर नस्ल के गुनेहगार ने जिसका ज़मीर मौत की नींद और तारीकी से बेदार हुआ है ये सवाल ज़रूर किया होगा। इस का जवाब ये है कि माफ़ी, फ़ज़्ल के वसीले नजात पाने ही से हासिल हो सकती है। हम मुन्दरिजा ज़ैल एक ख़ूबसूरत हवाला पढ़ते हैं जो पौलूस रसूल ने कुलस्से की कलीसिया के ईमानदारों की बाबत लिखा “और बाप का शुक्र करते रहो जिसने हमको इस लायक़ किया कि नूर में मुक़द्दसों के साथ मीरास का हिस्सा पाएं उसी ने हमको तारीकी के क़ब्ज़े से छुड़ा कर अपने अज़ीज़ बेटे की बादशाही में दाख़िल किया जिसमें हमको मख़लिसी यानी गुनाहों की माफ़ी हासिल है।” (कुलस्सियों 1:12-14)

ये हक़ीक़त ख़ुदा के बंदों पर ज़ाहिर हुई जिन्हों ने ज़ाहिर होने वाले इलाही मुकाशफे की गवाही दी। यसायाह नबी लिखता है “अपनी जान ही का दुख उठा कर वो (मसीह) उसे देखेगा और सैर होगा। अपने ही इर्फ़ान से मेरा सादिक़ ख़ादिम बहुतों को रास्तबाज़ ठहराएगा क्योंकि वो उन की बदकिर्दारी ख़ूद उठा लेगा। इसलिए मैं उसे बुज़ुर्गों के साथ हिस्सा दूंगा और वो लूट का माल ज़ोरावरों के साथ बांट लेगा क्योंकि उस ने अपनी जान मौत के लिए उंडेल दी और वो ख़ताकारों के साथ शुमार किया गया तो भी उस ने बहुतों के गुनाह उठा लिए और ख़ताकारों की शफ़ाअत की।” (यसायाह 53:11-12)

माफ़ी फ़ज़्ल के ज़रीये मुफ़्त मिलती है और मसीह फ़ज़्ल का सरचश्मा है क्योंकि उसी में आस्मानी बाप ने हमको हमेशा की ज़िंदगी के लिए चुन लिया है, उसी में हम लेपालक बेटे भी ठहराए गए हैं और उसी में हमको आस्मान में तमाम रूहानी बरकात बख़्शी गई हैं।

इस अज़ीम नजात के ज़रीये से मसीह येसू हमारे और ख़ुदा के दर्मियान सुलह कराने वाला “दर्मियानी” बन गया। नजात का फल गुनाहों की माफ़ी है। ख़ुदा की बेइंतिहा मुहब्बत और फ़याज़ाना उल्फ़त में ऐसी माफ़ी की कोई हद नहीं।

माफ़ी के ख़ूश-कुन नताइज ये हैं :

(अ) ख़ुदा का ग़ज़ब गुनेहगार पर ख़त्म हो जाता है और उसकी जगह हमें उस के बर्गुज़ीदा (बेटे येसू मसीह) के फ़ज़्ल की बदौलत रूहानी ख़ुशी मिलती है।

(ब) इन्सान के दिली एहसास-ए-जुर्म के एतराफ़ के बाइस तमाम ग़ैर ज़रूरी दुख व तक्लीफ़ से नजात मिलती है।

(ज) वो सज़ा जिसका इन्सान मुस्तहिक़ है वो मौक़ूफ़ (ख़त्म) हो जाती है और मुर्दा कामों को करने वाला ज़मीर शिफ़ायाब हो कर ज़िंदा ख़ुदा की ख़िदमत करने के लिए तैयार हो जाता है।

“जिस (ख़ुदा) ने अपने बेटे ही को दरेग़ ना किया बल्कि हम सबकी

ख़ातिर उसे हवाले कर दिया वो उस के साथ और सब चीज़ें भी

हमें क्यों ना बख़्शेगा?” (रोमियों 8:32)

पाँचवा बाब - नजात क्यों


ख़ुदा-ए-ख़ालिक़ ने इन्सान को बेहतरीन हालत में तख़्लीक़ किया। ये आस्मानी ख़ुदा बाप की हिक्मत में मर्ज़ी थी कि वो इंसान को ऐसा ज़हन अता करता जो दुरुस्त सोच की सलाहियत रखते हुए मुख़्तलिफ़ उमूर् को समझने बूझने के लायक़ होता। इसी सोच व बिचार की बदौलत इन्सान के अंदर मुख़्तलिफ़ सवालात करने का रुझान भी पाया जाता है। इन्सान के गुनाहों में गिर जाने के बाद उस के ज़हन में सबसे अहम सवाल जिसका उसे सामना रहा है शायद ये है कि :

“मैं क्या करूँ कि नजात पाऊं?”


जब पौलूस रसूल ने ये कहा कि “इतनी बड़ी नजात से ग़ाफ़िल रह कर हम क्योंकर बच सकते हैं? जिसका बयान पहले ख़ुदावन्द के वसीले से हुआ तो वो (पौलुस रसूल) ये इक़रार कर रहा था कि इन्सान से मुताल्लिक़ सबसे अहम मौज़ू “नजात” था। इम्कान ग़ालिब है कि पौलूस रसूल को इस से बेहतर और कोई अल्फ़ाज़ अदा करने को नहीं मिल रहे थे और उस ने इस का यूं इज़्हार किया कि “इतनी बड़ी नजात।” नजात के इसी ख़याल ने क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा के दिल को तहरीक दी और यही ख़याल ख़ुदा के ज़हन पर बराबर छाया रहा कि वो नजात के अमल को ज़हूर में लाता। इसके लिए “ख़ुदा ने अपने बेटे को भेजा जो औरत (मुक़द्दसा मर्यम) से पैदा हुआ और शरीअत के मातहत पैदा हुआ ताकि शरीअत के मातहतों को मोल लेकर छुड़ा ले और हमको लेपालक होने का दर्जा मिले।” (ग़लतियों 4:4-5)

अगर नजात की एहमीय्यत इतनी ही फ़ैसलाकुन है तो हमें इस के मफ़्हूम व मतलब को परखना ज़रूरी होगा। गरचे इतनी अज़ीम नजात के फ़वाइद और इस की एहमीय्यत वाज़ेह करना इन्सानी बस की बात नहीं मगर फिर भी मैं हत्त-उल-वुसअ (पूरी) कोशिश करूंगा कि नजात की कामिल अज़मत पर बेसाख्तगी से उस ईमानदार की तरह बग़ौर मुशाहिदा कर सकूँ जिसने अपने आपको नजातदिहंदा ख़ुदावन्द येसू मसीह के सुपुर्द कर के अज़ली सच्चाइयों को दर्याफ़्त कर लिया हो :

(1) वो क़ीमत जो मसीह को हमारी नजात के लिए चुकानी पड़ी, उस की एहमीय्यत इतनी ज़्यादा थी कि उस ने पतरस रसूल की मशहूर ताअलीमात को बहुत मुतास्सिर किया “और जबकि तुम बाप कह कर उस से दुआ करते हो जो हर एक के काम के मुवाफ़िक़ बग़ैर तरफ़दारी के इंसाफ़ करता है तो अपनी मुसाफ़िरत का ज़माना ख़ौफ़ के साथ गुज़ारो क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारा निकम्मा चाल-चलन (गुनेहगार किरदार) जो बाप दादा से चला आता था उस से तुम्हारी ख़लासी फ़ानी चीज़ों यानी सोने चांदी के ज़रीये से नहीं हुई बल्कि एक बेऐब और बेदाग़ बर्रे यानी मसीह के बेशक़ीमत ख़ून से, उसका इल्म तो बना-ए-आलम से बेशतर से था मगर ज़हूर अख़ीर ज़माने में तुम्हारी ख़ातिर हुआ।” (1 पतरस 1:17-20)

ख़ुदा ने नजात के लिए ये महंगी क़ीमत (मसीह के ज़रीये) अदा की है। ख़ुदा के लिए इन्सानी नजात का काम इन्सानी तख़्लीक़ के काम से ज़्यादा बेशक़ीमत था। इन्सानी तख़्लीक़ फ़क़त ख़ुदा के मुँह के कलाम से हुई लेकिन इन्सान के लिए मुहय्या कर्दा नजात मुख़्तलिफ़ थी। ख़ुदा ने ना सिर्फ अपना इकलौता बेटा हमको बख़्श दिया बल्कि हमारी ख़ातिर यानी कफ़्फ़ारा व फ़िद्ये की क़ुर्बानी के लिए सलीब पर मसीह को दे दिया। यक़ीनन ऐसी अज़ीमुश्शान नजात की एहमीय्यत ज़रूर ही लासानी होगी जिसके हुसूल की ख़ातिर ख़ुद कलाम-ए-ख़ुदा (ख़ुदावन्द येसू मसीह) को बे-इंतिहा दुख दर्द बर्दाश्त करना पड़ा।

(2) ख़ुदा ने हमें आख़िर किस से बचाया है? उस ने हमें तमाम घिनौने गुनाहों और उन के बोझ और उन की सज़ा यानी मौत से बचाया है। इसी निस्बत से पौलूस रसूल ने ये गवाही दी है “ये बात सच्च और हर तरह से क़ुबूल करने के लायक़ है कि मसीह येसू गुनेहगारों को नजात देने के लिए दुनिया में आया जिन में सबसे बड़ा मैं हूँ।” (1 तीमुथियुस 1:15)

मुक़द्दस इन्जील में यूं बयान है “क्योंकि इब्ने-आदम (गुनाह व मौत के साये की वादी में) खोए हुओं को ढ़ूढ़ने और नजात देने आया है।” (लूक़ा 19:10)

येसू मसीह ने हमें शैतान की ताक़त से बचाया है जैसा कि यूं बयान है :

“ख़ुदा ने येसू नासरी को रूह-उल-क़ुद्स और कुदरत से किस तरह मसह किया। वो भलाई करता और उन सबको जो इब्लीस के हाथ से ज़ुल्म उठाते थे शिफ़ा देता फिरा क्योंकि ख़ुदा उस के साथ था।” (आमाल 10:38)

(3) नतीजे के तौर पर वो जो नजात पा कर बचाए गए हैं उन के लिए येसू मसीह की हक़ीक़त मुख़्तलिफ़ रुहानी फ़वाइद व बरकात के साथ यूं है :

इस्तिहकाम और मज़बूती के लिए नजात का सींग (लूक़ा 1:69)

साबित क़दमी के लिए नजात की चट्टान (ज़बूर 95:1)

हिफ़ाज़त के लिए नजात का खोद (इफ़िसियों 6:17)

ख़ूशी और शादमानी के लिए नजात का पियाला (ज़बूर 116:13)

प्यास बुझाने के लिए नजात का चशमा (यसायाह 12:3)

रूहानी आराइश व ख़ूबसूरती के लिए नजात का लिबास (यसायाह 61:10)

जबकि हम नजात के ज़रीये रास्तबाज़ ठहराए जाते हैं तो ख़ुदावन्द येसू मसीह के वसीले हम ख़ुदा के साथ अमन की ख़ुशी मनाने के क़ाबिल हो जाते हैं। अमन से मामूर ये इत्मीनान हमें कस्रत की ज़िंदगी में ढाल फ़राहम करता है जो ख़ुदावन्द ख़ुदा हमारे लिए यरूशलेम (जो कि अमन का आस्मानी शहर है) में अबदी ख़ुशी की तैयारी के लिए चाहता है। ऐसी नजात जो हमें तमाम रूहानी फ़वाइद और आस्मानी बरकात से लुत्फ़ अंदोज़ होने की ज़मानत देती है उस की एहमीय्यत ज़रूर ही निहायत आला होगी।

अज़ीज़ क़ारी! मैं आपकी तवज्जोह पौलूस रसूल की तरफ़ से किए गए इस सवाल की तरफ़ फिर ले जाना चाहूँगा कि हम इतनी बड़ी नजात से ग़ाफ़िल हो कर किस तरह बच सकते हैं? इतनी बड़ी नजात से ग़ाफ़िल रह कर क्या हम वाक़ई रूहानी तौर पर महफ़ूज़ हालत में हैं? क्या हम इन्जील की बुलाहट के वसीले इतनी बड़ी नजात को जिसे ख़ुदा ख़ुद इन्सानी जिस्म में पूरा करने के लिए (मुजस्सम हो कर) आया, नजरअंदाज़ कर के बच सकते हैं?

मसीह से क़ब्ल के बाइबल मुक़द्दस के हिस्से यानी अह्दे-अतीक़ में मज़्हबी इबादत की रसूमात व तरीक़ाकार और शरीअत के बावजूद नजात की बहुत ज़्यादा एहमीय्यत है। इस ज़िमन में चंद वजूह दर्ज ज़ेल हैं कि ऐसा क्यों है?

ख़ुदा ने बज़ात-ए-ख़ुद नजात की बाबत कलाम के ज़रीये पेशगोई की। इब्तिदा ही में ख़ुदा ने फ़रमाया कि औरत (मर्यम) की नस्ल से पैदा होने वाले (मसीहा) को शैतान का सर कुचलना था। (पैदाईश 3:15)

ख़ुदा की जानिब से मुक़र्रर कर्दा दर्मियानी ख़ुदावन्द येसू ने जो फ़रिश्तों से कहीं अफ़्ज़ल है (नजात देने का) ऐलानिया इक़रार किया और अपने आपको क़ुर्बान कर के नजात के इस काम को पूरा किया (पुराने अहदनामे में ख़ुदा और इन्सान के बीच में फ़रिश्ते दर्मियानी थे) मसीही ईमान में यही (येसू) कोने के सिरे का पत्थर हो गया और इसी मसीही ईमान को ख़ुदावन्द येसू मसीह ने आस्मान पर जाने से क़ब्ल अपने (ग्यारह) रसूलों के सुपुर्द किया और बाद में उनको पाक रूह से क़ुव्वत बख़्शी ताकि वो तमाम क़ौमों में (मसीही नजात) की बशारत दें।

यक़ीनी तौर पर पेश की जाने वाली नजात, जिसकी हमें तस्दीक़ कराई गई है, हर तरह से क़ुबूल करने के लायक़ है जो उन अम्बिया के नविश्तों के ऐन मुताबिक़ भी है जिन्हों ने नजात का पैग़ाम रूह-उल-क़ुद्स की तहरीक से दिया और जिन्हों ने इस नजात के पैग़ाम को सुना उन्हों ने गवाही दी यानी रसूल जो ख़ुदावन्द येसू मसीह की ज़िंदगी में उस के शागिर्द थे। उन्हों ने बराह-ए-रास्त मसीह येसू से ख़ुदाई कलाम की सच्चाई व नजात के पैग़ाम को हासिल किया और यरूशलेम से शुरू कर के दुनिया की इंतिहा तक इसी इंजीली कलाम की बशारत दी। ख़ुदावन्द मसीह येसू बज़ात-ए-ख़ुद रूह-उल-क़ुद्स की क़ुद्रत के मुख़्तलिफ़ कामों और रूह की नेअमतों के ज़हूर की सूरत में अपने शागिर्दों व पैरोकारों के साथ गवाह था। ख़ुदा ने शागिर्दों के वसीले नजात की ख़ुशख़बरी की बशारत को उन के हाथों से होने वाले मोअजज़ात मसलन बीमारों को शिफ़ा, ग़ैर-ज़बानों में बोलने और नबुव्वत करने से तक़वियत दी।

अब जबकि हम इतनी अज़ीम नजात के मफ़्हूम से और भी ज़्यादा आश्ना हो गए हैं तो पूछा जा सकता है कि “हमें क्या करना चाहिए कि हम बच सकें?” ये एक ऐसा अज़ली सवाल है जो हर बशर, हर ज़बान में सूरज के नीचे इस ज़मीन पर करता रहेगा। इस सवाल का कोई और जवाब नहीं सिवाए उस जवाब के जो पौलूस रसूल ने फिलिप्पी शहर की क़ैद में जेल के दारोगा को दिया था कि “ख़ुदावन्द येसू पर ईमान ला तो तू और तेरा घराना नजात पाएगा।” (आमाल 16:31)

शुक्रगुज़ारी के साथ ख़ुदा की नजात को अपने दिल व रूह में क़ुबूल कीजिए तो येसू मसीह आपके दिल को रूह-उल-क़ुद्स की ख़ुशी से मामूर करेगा, आपको फ़त्हमंदी अता करेगा और आख़िर में ज़िंदगी का ताज देगा। ख़ुदावन्द येसू मसीह के फ़ज़्ल की उम्मीद रखते हुए हमेशा की ज़िंदगी के लिए ख़ुदा की पाक मुहब्बत में अपने आपको बेऐब रखिये।

याद कीजिए कि इन्सान की रूह ख़ुदा की नज़र में इस हद तक क़ीमती है कि ख़ुदा ने इस इन्सानी रूह को अपने ही इकलौते बेटे की मौत से ख़रीद लिया। अपनी रूह से ग़ाफ़िल ना रहें और इस की हिफ़ाज़त के लिए किसी भी काविश को हाथ से जाने ना दें।

किसी आदमी ने अपना सारा माल व अस्बाब बेच कर एक बेशक़ीमत मोती ख़रीद लिया। वो इस बेशक़ीमत मोती को अपने साथ लेकर दूर दराज़ के किसी मुल्क के लिए बहरी (समुंद्री) सफ़र पर रवाना हुआ। बहरी (समुंद्री) जहाज़ के अर्शे पर वो इस ख़ूबसूरत मोती का मुशाहिदा कर रहा था और सुरज की किरणों में इस की चमक दमक की तारीफ़ कर रहा था। वो मोती को हाथ में लिए खेलता रहा। दोस्तों के मना करने के बावजूद भी वो मोती को ऊपर की तरफ़ हवा में बहुत ऊँचा फेंक कर उछालता रहा। तब जो होना था वही हुआ। इस बार जब कि मोती की उछाल बहुत ज़्यादा बुलंद थी तो उस आदमी से मोती समुंद्र की गहराई में गिर पड़ा। वो आदमी तज़बज़ब (बेचैनी) की हालत में चिल्ला उठा कि मैंने इसे खो दिया मैंने उसे खो दिया!

ये एक हक़ीक़ी वाक़िया है। ये हर उस इन्सान को आगाह करने में मदद देता है जो अपनी ज़िंदगी से जुआ खेलता है। आप ख़ुद भी इस बेशक़ीमत मोती की तरह हो सकते हैं! मुम्किन है कि आप ख़ुदा की जानिब से अता कर्दा अपनी रूह और ईमान से ऐसे ही (मज़्हबी जुआ) खेल रहे हों। कहीं आप अपनी रूह और ईमान की जायज़ निगहदाश्त को दुनिया की नफ़्सानी ख़्वाहिशात, जहालत व बतालत की फ़िज़ा में उछाल कर नजर-अंदाज़ तो नहीं कर रहे? ऐसा करने से आपकी रूह को बुराईयों के अथाह घड़े में उतरने और उस के अबदी ख़सारे का ख़तरा लाहक़ है।

छठा बाब - ज़िंदगी का ताज

हम मुकाशफ़ा 2:10 में वफ़ादार रहने का एक हुक्म पढ़ते हैं जो मसीह का हर एक ईमानदार के लिए है “जान देने तक भी वफ़ादार रह तो मैं तुझे ज़िंदगी का ताज दूंगा।” ये इलाही हुक्म दो अहम हक़ाइक़ की अक्कासी करता है। पहला ये कि, हमारी मसीह के साथ वफ़ादारी एक बेशक़ीमत मोती की तरह है जिसे हमें बड़ी हिफ़ाज़त से रखना ज़रूर है, चाहे हमें अपनी जान का नुक़्सान ही क्यों ना उठाना पड़े, और दूसरा ये कि मसीह येसू के साथ हमारी ज़िंदगी की वफ़ादारी का तसलसुल ज़रूर ही बरक़रार रहे ताकि जब दुनिया का ख़ातिमा हो तो ये ज़िंदगी साबित-क़दम और मुस्तहकम पाई जाये, क्योंकि हम बज़ात-ए-ख़ुद मसीह के हाथों में बतौर अमानत हैं।

मसीह के साथ ऐसी वफ़ादारी का अज्र बहुत ही बेशक़ीमत है यानी “ज़िंदगी का ताज” ये वो ताज है जो मसीह येसू ने मौत की क़ुव्वत यानी शैतान को कुचल कर और क़ब्र पर ग़ालिब आकर हमारे लिए जीत लिया है। मौत पर ग़लबा पाने वाला मसीह, ज़िंदगी का ताज उन्हें अता करता है जो गुनाह पर ग़ालिब आते हैं। इन्जील मुक़द्दस इस के बारे में यूं बयान करती है :

(1) ये जलाली और शाहाना ताज, ख़ुदावन्द ख़ुदा ने ईमानदारों की जमाअत (कलीसिया) के लिए तैयार कर रखा है, जिसे ख़ुदावन्द मसीह येसू ने अपने पाक ख़ून से ख़रीदा (यसायाह 62:3 के मुताबिक़ हम अपने ख़ुदावन्द के हाथ में जलाली ताज की तरह हैं)

(2) जलाली सहरा, जो कभी भी मुर्झाने का नहीं। ये जलाली सहरा ख़ुदावन्द मसीह येसू के गले की वफ़ादार भेड़ों को दिया जाएगा। (1 पतरस 5:4)

(3) रास्तबाज़ी का ताज उनको दिया जाता है जो रास्तबाज़ी में हो कर अपनी ज़िंदगी बसर करते, सब्र से मसीही ईमान में क़ायम रहते और मसीह येसू की दूसरी आमद की उम्मीद रखते हैं। ये (मसीही ईमान की) अच्छी कुश्ती लड़ने और दौड़ को ख़त्म करने का अज्र है। (2 तीमुथियुस 4:7-8)

(4) ज़िंदगी का ताज उस वफ़ादार ईमानदार को दिया जाता है जिसने आज़माईशों का सामना किया और इन में से बेइल्ज़ाम हो कर गुज़रा हो। ये उन शहीदों के लिए मसीह के साथ वफ़ादारी का अज्र है जिसे मौत भी चुरा ना सकी।

मुख़्तसर ये कि ख़ुदावन्द ख़ुदा ने “वफ़ादारी का ताज” उन को देने का वाअदा किया है जो मसीह येसू (उस की पाक आस्मानी व अज़ली ताअलीमात को पढ़ते और उन पर अमल करते हैं) से प्यार करते हैं। इन्जील की ज़बान में अबदी ज़िंदगी और फ़त्हमंदी के ताज का एज़ाज़ वफ़ादार ईमानदार को राह-ए-रास्त मसीह येसू के हाथों से मिलता है। मसीह येसू ने हमें हुक्म दिया है कि हम इस (ताज) को महफ़ूज़ रखें “मैं जल्द आने वाला हूँ। जो कुछ तेरे पास है उसे थामे रह ताकि कोई तेरा ताज ना छीन ले।” (मुकाशफ़ा 3:11) इसी दिए गए हुक्म से मुतास्सिर हो कर पौलूस रसूल कुलस्से (कुलस्सियों की कलीसिया) को यूं हुक्म देता है “कोई शख़्स ख़ाकसारी और फ़रिश्तों की इबादत पसंद कर के तुम्हें दौड़ के इनाम से महरूम ना रखे।” (कुलस्सियों 2:18)

इस हुक्म के बाइस मसीह ने अपने पैरोकारों को यूं आगाह करना चाहा कि वो बे-राह रवी की हालत में बेदीन ना हों जैसा कि ऐसो ने किया “जिसने एक वक़्त के खाने के एवज़ अपने पहलौठे होने के हक़ को बेच डाला क्योंकि तुम जानते हो कि इस के बाद जब उस ने बरकत का वारिस होना चाहा तो मंज़ूर ना हुआ। चुनान्चे उस को नीयत की तब्दीली का मौक़ा ना मिला गो उस ने आँसू बहा बहा कर उस की बड़ी तलाश की।” (इब्रानियों 12:16-17)

कौन हमको मसीह की मुहब्बत से जुदा करेगा?

मुसीबत या तंगी या ज़ुल्म या काल या नंगापन या ख़तरा या तल्वार?

चुनान्चे लिखा है कि

हम तेरी ख़ातिर दिन भर जान से मारे जाते हैं। हम तो ज़ब्ह होने वाली

भेड़ों के बराबर गिने गए। मगर उन सब हालतों में उस के वसीले से जिसने

हमसे मुहब्बत की हमको फ़त्ह से भी बढ़ कर ग़लबा हासिल होता है।

(रोमियों 8:35-37)

सवाल

मैं गुनाह से मुकम्मल तौर पर किस तरह बच सकता और उन को कैसे तर्क

कर सकता हूँ?

क्या नजात के लिए बपतिस्मा पाना और एतिक़ाद रखना ही काफ़ी है?

गुनाहों से तौबा करने वाले शख़्स को जिसके गुनाह माफ़ हुए उसे मज़ीद

क्या करना चाहिए?


ए॰ एल॰ जी॰

सिकंदरीया

मिस्र

सातवाँ बाब - हम कैसे बचाए जा सकते हैं?


मसीह ने मुर्दों में से ज़िंदा हो कर आस्मान पर उठाए जाने से क़ब्ल अपने शागिर्दों को हुक्म दिया कि तुम तमाम दुनिया में जा कर सारी ख़ल्क़ के सामने इन्जील की मुनादी करो। जो ईमान लाए और बपतिस्मा ले वो नजात पाएगा और जो ईमान ना लाए वो मुजरिम ठहराया जाएगा। (मर्क़ुस 16:15-16) जिस तरीक़े से मसीह के मुक़द्दस रसूलों ने ख़ुदावन्द के इंजीली हुक्म को बयान किया, इस से हम समझते हैं कि (गुनाह के बाइस) तमाम इन्सानियत हलाक होने के लिए मुजरिम ठहराई गई है, लेकिन जो मसीह येसू पर ईमान लाता है वो अपने माज़ी के गुनाहों की माफ़ी मसीह के नाम में हासिल करता और गुनाह की क़ुव्वत व ताक़त से बचाया जाता है।

हक़ीक़त में जब हम बचाने वाले ईमान से मुताल्लिक़ मुक़द्दस बाइबल की ताअलीमात पर सोच बिचार करते हैं तो हमें पता चलता है कि ख़ुदा ने हमारे लिए नजात तैयार की है और इसी बचाने वाले ईमान की मुन्दरिजा ज़ैल अहम सिफ़ात यूं हैं :

(1) पाक नविश्तों में इलाही मुकाशफ़े की बाबत ख़बरदारी, पाक कलाम में मौजूद मसीह के वसीले तैयार कर्दा नजात पर ईमान, इन्सान की फ़ित्री तौर पर (गुनाह में) गिरी हालत की बाबत बाइबल के मुकाशफ़े की सच्चाई और इन्सान के लिए मसीह की ज़रूरत की क़बूलियत। गरचे ये ज़हनी कैफ़ीयत अपने आप में नजात पाने के लिए काफ़ी नहीं है, मगर ये इन्सान की बचाने वाले ईमान के रास्ते की तरफ़ राहनुमाई करती है।

(2) रूह की गिरी हुई हालत पर एहसास-ए-जुर्म की बाबत शख़्सी क़ाइलियत। ऐसा एहसास-ए-जुर्म जो ख़ुदा की हम्द व तारीफ़ और शुक्रगुज़ारी पैदा करता है, इस से हमारी गिरी हुई हालत के लिए मसीह में तैयार की गई नजात की मुनासिब राह हमवार होती है।

(3) येसू मसीह हमारे ख़ुदावन्द और नजातदिहंदा पर, रज़ाकाराना इन्हिसार। गुनाहों के इक़रार और रूहानी लियाक़त से महरूमियत वाले एहसास के बाइस येसू की बचाने वाली क़ुव्वत हमारी रूहानी ज़िंदगी को मुतहर्रिक करती है ताकि हम मसीह को अपने शख़्सी नजातदिहंदा के तौर पर क़ुबूल करें और गुनाहों की माफ़ी व कफ़्फ़ारे के वाहिद ज़रीये को थामे रखें। बाइबल मुक़द्दस में ऐसी बहुत सी बुनियादी आयात हैं जो ये बयान करती हैं कि हम मसीह के वसीले नजात हासिल करने के लिए किस तरह उस के पास आ सकते हैं।

“ऐ (मज़्हबी) मेहनत (नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात, जिहाद वग़ैरह) उठाने वालो

और (गुनाह के) बोझ से दबे हुए लोगो!

सब मेरे पास आओ, मैं तुमको आराम दूंगा।

मेरा जुआ (कलाम और सलीब) अपने ऊपर उठा लो

और मुझसे सीखो क्योंकि मैं हलीम हूँ और दिल का फ़रोतन,

तो तुम्हारी जानें आराम पाएँगी।”

(मत्ती 11:28)


“लेकिन जितनों ने उसे (मसीह येसू को नजातदिहंदा के तौर पर) क़ुबूल किया, उस ने उन्हें ख़ुदा के फ़र्ज़न्द बनने का हक़ बख़्शा यानी उन्हें जो उसके नाम पर ईमान लाते हैं।” (यूहन्ना 1:12)

“मगर जो कोई इस पानी में से पिएगा जो मैं उसे दूंगा वो अबद तक प्यासा ना होगा बल्कि जो पानी में उसे दूंगा वो उस में एक चशमा बन जाएगा जो हमेशा की ज़िंदगी के लिए जारी रहेगा।” (यूहन्ना 4:14)

“येसू ने उस से कहा, क़ियामत और ज़िंदगी तो मैं हूँ, जो मुझ पर ईमान लाता है गो वो मर जाये तो भी ज़िंदा रहेगा और जो कोई ज़िंदा है और मुझ पर ईमान लाता है वो अबद तक कभी ना मरेगा। क्या तू इस पर ईमान रखती है?” (यूहन्ना 11:25-26)

“और येसू ने और बहुत से मोअजिज़े शागिर्दों के सामने दिखाए जो इस किताब में लिखे नहीं गए, लेकिन ये इसलिए लिखे गए कि तुम ईमान लाओ कि येसू ही ख़ुदा का बेटा मसीह है और ईमान ला कर उस के नाम से ज़िंदगी पाओ।” (यूहन्ना 20:30-31)

“ख़ुदावन्द येसू पर ईमान ला तो तू और तेरा घराना नजात पाएगा” (आमाल 16:31)

अब हमें ये जानना चाहिए कि बचाने वाले ईमान में (येसू मसीह के ताल्लुक़ से) शख़्सी और (ख़ुदाई इल्हाम के ताल्लुक़ से) मजमूई दोनों ही खासियतें हैं। मजमूई ख़ासियत जिसमें तमाम इलाही नविश्ते शामिल हैं और शख़्सी ख़ासियत जिसमें नजातदिहंदा के तौर पर सिवाए मसीह के और कोई दूसरा नहीं है। दूसरे लफ़्ज़ों में हम ये कह सकते हैं कि बचाने वाला ईमान मसीह में नजात के इलाही वाअदे पर मुन्हसिर है।

चंद वज़ाहतें मुन्दरिजा ज़ैल हैं जो ये बयान करतीं है कि मसीह नजात के लिए कोने के सिरे का पत्थर है :

(1) मसीह की अपनी गवाही

मसीह ने लोगों को अक्सर दावत दी कि वो उस पर ईमान लाएं। मसीह येसू ने फ़रमाया कि अगर लोग उस पर ईमान ना लाएं तो वो मुजरिम ठहराए जाऐंगे “ताकि जो कोई ईमान लाए उस में हमेशा की ज़िंदगी पाए। जो उस (मसीह येसू) पर ईमान लाता है उस पर सज़ा का हुक्म नहीं होता, जो उस पर ईमान नहीं लाता उस पर सज़ा का हुक्म हो चुका इसलिए कि वो ख़ुदा के इकलौते बेटे के नाम पर ईमान नहीं लाया। जो बेटे पर ईमान लाता है हमेशा की ज़िंदगी उस की है लेकिन जो बेटे की नहीं मानता (उस के इंजीली कलाम पर अमल नहीं करता), (अबदी) ज़िंदगी को ना देखेगा बल्कि उस पर ख़ुदा का ग़ज़ब रहता है।” (यूहन्ना 3:15, 18, 36)

(2) मसीह येसू को क़ुबूल करने की ज़रूरत

पाक इन्जील में ऐसे बहुत से मतन हैं जो ये ऐलानिया बयान करते हैं कि हम मसीह येसू पर ईमान ला कर बचाए गए हैं।

“जब हम आदमियों की गवाही क़ुबूल कर लेते हैं तो ख़ुदा की गवाही तो इस से बढ़कर है और ख़ुदा की गवाही ये है कि उस ने अपने बेटे के हक़ में गवाही दी है। जो ख़ुदा के बेटे पर ईमान रखता है वो अपने आप में गवाही रखता है, जिसने ख़ुदा का यक़ीन नहीं किया उस ने उसे (ख़ुदा को) झूटा ठहराया क्योंकि वो उस गवाही पर जो ख़ुदा ने अपने बेटे के हक़ में दी है ईमान नहीं लाया और वो गवाही ये है कि ख़ुदा ने हमें हमेशा की ज़िंदगी बख़्शी और ये ज़िंदगी उस के बेटे में है। जिसके पास बेटा है उस के पास ज़िंदगी है और जिसके पास ख़ुदा का बेटा नहीं उस के पास ज़िंदगी भी नहीं।” (1 यूहन्ना 5:9-12)

“जिसका ये ईमान है कि येसू ही मसीह है वो ख़ुदा से पैदा हुआ है और जो कोई वालिद से मुहब्बत रखता है वो उस की औलाद से भी मुहब्बत रखता है।” (1 यूहन्ना 5:1)

ऊपर दीए गए हवालेजात से ये साफ़ अयाँ है कि नजात पाने के लिए जो कुछ हमें करना है उस का तक़ाज़ा ये है कि हम मसीह और उस गवाही को जो ख़ुदा ने अपने बेटे के हक़ में बयान की ईमान से क़ुबूल करें कि मसीह येसू ही ज़िंदा ख़ुदा का बेटा है। मसीह येसू अपनी ही ज़ात में ईमान की ज़िंदा मिसाल है जो नजात को यक़ीनी बनाता है।

पस ईमान का मतलब है मसीह येसू की इलाही ज़ात को तकना, जो ईमान का बानी है उस पर भरोसा (तवक्कुल, यक़ीन, एतबार) रखना और अपने आपको उस के सुपुर्द कर देना। (ईमान, उम्मीद की हुई चीज़ों का एतिमाद और अनदेखी चीज़ों का सबूत है)

(3) रसूलों की ताअलीमात

पौलुस रसूल ने ये सिखाया है कि हम मसीह पर ईमान लाने से ही रास्तबाज़ ठहराए जाते हैं। यहां ईमान ना सिर्फ ज़हनी रुझान, मह्ज़ ख़ुदा पर आम ईमान, इलाही मुकाशफ़े पर एतिक़ाद, किसी अज़ली हक़ीक़त पर तकिया करना है, बल्कि ये एक ऐसा ईमान है जिसमें मसीह ही बुनियादी मुद्आ (ग़र्ज़) है।

पौलुस रसूल रोमियों के ख़त में यूं बयान करता है :

“यानी ख़ुदा की वो रास्तबाज़ी जो येसू मसीह पर ईमान लाने से सब ईमान लाने वालों को हासिल होती है।” (रोमियों 3:22)

ग़लतियों की कलीसिया को पौलूस यूं लिखता है :

“तो भी ये जान कर कि आदमी शरीअत के आमाल से नहीं बल्कि सिर्फ़ येसू मसीह पर ईमान लाने से रास्तबाज़ ठहरता है ख़ूद भी मसीह येसू पर ईमान लाए ताकि हम मसीह पर ईमान लाने से रास्तबाज़ ठहरें ना कि शरीअत के आमाल से क्योंकि शरीअत के आमाल से कोई बशर रास्तबाज़ ना ठहरेगा।” (ग़लतियों 2:16)

“ईमान के आने से पेश्तर शरीअत की मातहती में हमारी निगहबानी होती थी और उस ईमान के आने तक जो (मसीह में) ज़ाहिर होने वाला था हम उसी के पाबंद रहे।” (ग़लतियों 3:23)

“मैं मसीह के साथ मस्लूब हुआ हूँ और अब मैं ज़िंदा ना रहा बल्कि मसीह मुझमें ज़िंदा है और मैं जो अब जिस्म में ज़िंदगी गुज़ारता हूँ तो ख़ुदा के बेटे पर ईमान लाने से गुज़ारता हूँ जिस ने मुझसे मुहब्बत रखी और अपने आपको मेरे लिए मौत के हवाले कर दिया।” (ग़लतियों 2:20)

(4) मसीह येसू अपने आपको हमारे लिए कफ़्फ़ारे और क़ुर्बानी के तौर पर पेश करता है :

हम इन्जील मुक़द्दस में ये पढ़ते हैं कि मसीह बहुतों को नजात देने के लिए अपने आपको ख़ुदा के हुज़ूर क़ुर्बानी के तौर पर पेश कर के तमाम इन्सानियत के गुनाहों के लिए कफ़्फ़ारा बन गया। हम ये भी पढ़ते हैं कि बनी नूअ इन्सान मसीह येसू की रास्तबाज़ी और मौत की फ़ज़ीलत के वसीले ही से बचाए जाते हैं। जबकि वो हमारा नजातदिहंदा है, हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा है और इसी ईमान ही से हमारी ख़ुदा के साथ सुलह हुई है, तो हमें ज़रूर ही मसीह येसू को जैसा वो है वैसे ही क़ुबूल करना और उसी पर तवक्कुल करना है। इन्जील मुक़द्दस इस हक़ीक़त को वाज़ेह करती है कि ख़ुदावन्द मसीह येसू अपनी ज़ात में और जो कुछ उस ने (इन्सान की नजात के लिए) किया है, हमारे ईमान का मर्कज़ और हमारे तवक्कुल की बुनियाद है।

(5) ईमान ही से मसीह के साथ हमारी ज़िंदगी

मसीह और ईमानदारों के दर्मियान ताल्लुक़ की तस्दीक़ बाइबल के मतन के मुख़्तलिफ़ हिस्सों से होती है। बाइबल में इस के ताल्लुक़ से ये लिखा है :

“ईमान ही के बाइस हम उस में क़ायम हैं।”

“वो हम में क़ायम रहता है।”

“वो हमारा सर है और हम उस में उस के आज़ा हैं।”

“हमारी ज़िंदगी का क़ियाम उस की ज़िंदगी से है।”

“वो अंगूर का हक़ीक़ी दरख़्त है और हम उस की डालियां हैं।”

“वो हमारे ईमान का मुंसिफ़ और उसे कामिल करने वाला है।”


मुन्दरिजा बाला आयात और इसी तरह की दीगर मिलती जुलती आयात ऐसे किसी भी ख़याल व मश्वरे को रद्द करती हैं कि ख़ुदा और बाइबल पर ख़्याली या आम लफ़्ज़ी ईमान से हमारी नजात की तस्दीक़ होती है बल्कि ये इस बात का सबूत हैं कि गुनाहों से बचाने वाले ईमान का अंजाम मसीह में कामिल होता है और मसीह शख़्सी तौर पर हमारा ख़ुदावन्द और नजातदिहंदा बन जाता है। हम कलाम-ए-मुक़द्दस (बाइबल) में ये भी पढ़ते हैं कि ख़ुदा बाप आस्मानी ने दुनिया को गुनाहों से बचाने के लिए अपने इकलौते बेटे (येसू मसीह) को भेजा।

इलावा अज़ीं मसीह हमारे गुनाहों के लिए (सलीब पर) क़ुर्बानी के तौर पर क़ुर्बान किया गया और हमें रास्तबाज़ ठहराने के लिए मुर्दों में से ज़िंदा हुआ और मसीह, ख़ुदा की तरफ़ से हमारे लिए हिक्मत, रास्तबाज़ी, पाकीज़गी और नजात ठहराया गया। वो लोग जो नजातदिहंदा मसीहा को क़ुबूल करते हैं, जैसा कि उस ने अपने आपको हम पर ज़ाहिर करना चाहा और जो अपनी रूहों को उस (मसीहा) के हाथ में सौंप देते हैं और अपने आपको उस की ख़िदमत के लिए वक़्फ़ कर देते हैं, वही लोग उस के हक़ीक़ी ईमानदार हैं जैसा कि बाइबल उन से यही तक़ाज़ा करती है और जिसके नतीजे में वो फ़ज़्ल ख़ुदावंदी ही से बचाए जाते हैं।

इस में कोई शक नहीं कि हर मसीही ईमानदार मसीह येसू को नजातदिहंदा के तौर पर क़ुबूल करता है और हर तरह की बदी और गुनाह से नजात के लिए इक़रार करता है कि मसीह ख़ुदा का इकलौता बेटा है जो इन्सानियत के गुनाहों के लिए सलीब पर क़ुर्बान हुआ, मर गया, मगर अपनी मौत के तीसरे दिन मुर्दों में से जी उठा है। बाइबल अपने पैरोकारों से यूं बयान करती है कि मसीह नबी, सरदार काहिन और बादशाह है। इस में ये भी बयान है कि मसीह ज़िंदगी का सर-चश्मा, हक़ीक़ी नूर, ख़ुशियों का मंबा और परस्तिश व प्यार का मौज़ू व मक़्सद है।

अगर नजात की एहमियत, ज़िंदगी की गहराई और अबदियत के लिए इतनी ही ज़्यादा है तो हमें ज़रूर ही इस की फ़ित्रत और हर पहलू से इस के मफ़्हूम की बाबत ये सवाल उठाना चाहिए कि “नजात क्या है?”

दर-हक़ीक़त “मसीहिय्यत” का मजमूई मौज़ू आग़ाज़ से लेकर इख़्तताम तक सिर्फ रास्ता-ए-नजात है कि गुनाह में खोया इन्सान ख़ुदा के जलाल में फिर से शामिल हो सके। इस का बानी और मुअम्मार आस्मानी ख़ुदा बाप का मुजस्सम शूदा कलाम है जो ख़ुदा के नाम से येसू मसीह की सूरत में इस दुनिया में आया जिसका मतलब है ख़ुदा “नजातदिहंदा।” नजात की वज़ाहत ख़ुदावन्द येसू मसीह के आस्मानी पैग़ाम से होती है और तमाम इन्सानियत को उन के गुनाहों से बचाना ही मसीहिय्यत का अहम मक़्सद है। आस्मानी ख़ुदा बाप के पाक फ़रिश्ते जिब्राईल ने मत्ती 1:21 के मुताबिक़ यूसुफ़ से (कुँवारी मर्यम की बाबत) यूं कहा था “उस (मर्यम) के बेटा होगा और तू उस का नाम येसू रखना क्योंकि वही अपने लोगों को उन के गुनाहों से नजात देगा। मसीह ने ख़ुद अपनी ही बाबत बमुताबिक़ लूक़ा 19:10 यूं कहा “क्योंकि इब्ने-आदम खोए हुओं को ढ़ूढ़ने और नजात देने आया है।”

अब तक आपने महसूस कर लिया होगा कि कोई भी तौबा करने वाला शख़्स मह्ज़ किसी काहिन, पोप, चर्च फ़ादर, पादरी, मौलवी, ख़तीब, दरवेश या वली की शिफ़ाअती दुआ की मुदाख़िलत के बाइस अपने गुनाहों से बरी-उज़्ज़िम्मा नहीं होता और ना ही वो गुनाह व मौत से नजात हासिल कर सकता है। कोई भी काहिन, पोप, चर्च फ़ादर, पादरी, मौलवी, ख़तीब, दरवेश, वली, मुक़द्दस बुज़ुर्ग, दरवेश शख़्स, नबी, इन्सानी किताब या फ़रिश्ता ऐसा नहीं जिसमें किसी इन्सान को गुनाह व मौत से बरी करने की क़ुद्रत या ताक़त हो, मगर सिर्फ एक ही ऐसी ज़ात व शख़्सियत है जो ये क़ुद्रत और ताक़त रखती है वो आस्मानी व ज़िंदा ख़ुदावन्द येसू मसीह है जिसके बारे में यूं लिखा है कि “और किसी दूसरे के वसीले से नजात नहीं क्योंकि आस्मान के तले आदमियों को कोई दूसरा नाम नहीं बख़्शा गया जिसके वसीले से हम नजात पा सकें।” (आमाल 4:12)

“हम एक मुंजी (नजात देने वाले) यानी ख़ुदावन्द येसू मसीह

के वहां से आने के इंतज़ार में हैं

जो हमारी पस्त हाली के बदन की शक्ल बदल कर

अपने जलाल के बदन की सूरत पर बनाएगा।”

(फिलिप्पियों 3:20-21)

सवालात

किताब

“मैं क्या करूँ कि नजात पाऊं?”

के मुअम्मों (सवालात) के जवाबात तहरीर कीजीए।


अज़ीज़ क़ारी! अगर आपने इस किताब का गहराई से मुतालआ कर लिया है तो हम उम्मीद करते हैं कि आप आसानी से मुन्दरिजा ज़ैल सवालात के जवाबात देने के क़ाबिल होंगे। मेहरबानी से नीचे दीए गए सवालात के जवाबात उर्दू या इंग्लिश (ईमेल) के ज़रीये या किसी अलग काग़ज़ पर लिख कर इदारा हज़ा को दीए गए पते पर रवाना कीजिए ताकि इस किताब की बाबत आपकी मालूमात का बेहतर अंदाज़ा लगाया जा सके। इस किताब के मुताल्लिक़ अपनी ज़ाती राय व ख़याल ख़त की सूरत में जवाब-नामे के हमराह लिखिए। अपना मुकम्मल नाम, मुकम्मल पता, इस इलाक़ा का दुरुस्त पोस्टल एरिया कोड (मालूम ना होने की सूरत में अपने नज़दीकी डाकख़ाने से दर्याफ़्त कर के लिखिए) अपने जवाब के हमराह लिखना भूल ना जाइएगा। शुक्रिया


1. नजात का मफ़्हूम बयान कीजिए?

2. इन्जील में कौन सा किरदार किस लिए ये सवाल उठाता है कि मैं क्या करूँ कि नजात पाऊं?

3. पौलुस और सीलास ने फिलिप्पी शहर की जेल के दारोगा को क्या जवाब दिया?

4. आप बाइबल मुक़द्दस में से कैसे वाज़ेह करेंगे कि गुनाह एक क़र्ज़ है?

5. राह-ए-नजात क्या है और इसे कैसे समझा जा सकता है?

6. नजात से मुताल्लिक़ा बाइबल मुक़द्दस में से सात मुख़्तलिफ़ आयात तहरीर करें।

7. वो कौनसे ज़राए हैं जो एक ईमानदार को गुनाह के ख़िलाफ़ फ़त्हमंदी बख़्शते हैं?

8. बाइबल मुक़द्दस में लफ़्ज़ “माफ़ी” का क्या मतलब है? वाज़ेह कीजिए।

9. क्या हम नेक आमाल से गुनाहों की माफ़ी हासिल कर सकते हैं? वाज़ेह कीजिए।

10. क्या नमाज़ (इबादत) की अदायगी की रसूमात नजात का वसीला बन सकती हैं, वजह?

11. क्यों मुक़द्दस या मज़्हबी लोगों की शिफ़ाअती दुआएं गुनाहों की माफ़ी नहीं दे सकतीं?

12. क्या तौबा हमारे माज़ी के गुनाहों को धो सकती है? वाज़ेह कीजिए।

13. मसीह येसू ने हमारी नजात की ख़ातिर क्या क़ीमत अदा की है? तफ़्सील से बयान कीजिए।

14. मसीह येसू ने हमें किन-किन मुख़्तलिफ़ बातों से नजात दी है?

15. ज़िंदगी का ताज क्या है? वज़ाहत कीजिए।

16. क्या बाइबल में किसी और ताज के मुताल्लिक़ ज़िक्र किया गया है?

17. मसीह येसू ने अपने शागिर्दों को मुनादी करने के लिए क्या हुक्म दिया?

18. “गुनाहों से बचाने वाले ईमान” की क्या-क्या ख़ुसूसियात हैं?

19. बाइबल मुक़द्दस की वो आयत लिखें जो इस मज़्मून पर ज़ोर देती है कि, मसीह येसू पर ईमान लाना ही हमेशा की ज़िंदगी को हासिल करना है।

20. बाइबल मुक़द्दस की चंद आयात दर्ज करें जो दावत देती हैं कि लोग अपने लिए शख़्सी तौर पर मसीह येसू को नजातदिहंदा के तौर पर क़ुबूल करें।

21. आपका मसीह येसू के वसीले नजात की बाबत क्या ख़याल है?

22. क्या आपने अपने गुनाहों से मसीह में नजात हासिल कर ली है? मसीही ईमान व नजात समझने में अगर आपको कोई दिक्कत पेश आ रही है तो हमें लिखिए।