किताबे मुसम्मा बह
बुर्ज-ए-मुस्तहकम
मुतर्जिम पादरी अगस्तन ब्रॉड हैड साहब
वास्ते फर्खआबाद मिशन के शाएअ हुआ
मतबअ अमरीकन मिशन लूदियाना
1875 ई॰
बुर्जे मुस्तहकम
ख़ुदा हमारा बाप है
“मैं तुम्हारा बाप होऊँगा। और तुम मेरे बेटे बेटियों होगे ये ख़ुदावन्द क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है।” (2 कुरिन्थियों 6:18)
ऐ आज़मूदा भाई तू यतीम नहीं है ख़ुदा अपनी ज़ात व सिफ़ात के कमालात में तेरा बाप है उस ने तुझे ले-पालक किया है अपनी रूह के वसीले से उस ने तुझे सर-ए-नौ पैदा किया है। उस ने तुझे अहले-दुनिया में से बुलाया और वाअदा किया मैं तुम्हारा बाप होऊँगा अगर तू सलाह (मश्वरा) लेने का मुश्ताक़ है तो अपने बाप से नसीहत ले अगर तू किसी चीज़ का हाजतमंद है। तो अपने बाप से मांग और वो तेरी सारी एहतियाजें रफ़ा (ज़रूरत का पूरा होना) करेगा अगर तू फ़िक्र में है तो अपनी सारी फ़िक्रें अपने बाप पर छोड़ दे अगर तू दुश्मनों से डरता है तो अपने बाप के पास जा और वो तेरी जाये पनाह (पनाह का मक़ाम) होगा अगर तेरी मुश्किलात और तक्लीफ़ात बर्दाश्त से बाहर हैं तो अपने बाप की तरफ़ रुजू कर ख़ुदा ना सिर्फ नाम से बाप है बल्कि वो बाप का मिज़ाज भी रखता है वह ना सिर्फ नाम को बेटे और बेटियां कहता है बल्कि ये भी चाहता है कि हम उस को बाप समझें। चाहिए कि हम उस की मुहब्बत पर भरोसा रखें और उस के कलाम पर एतबार करें और अपनी हाजतों के रफ़ा करने के लिए उसी पर तकिया (भरोसा) करें बल्कि हर एक बात में अपनी अर्ज़, दुआ और मिन्नत के साथ ख़ुदा से करें वो निहायत आर्ज़ूमंद है हम उस के प्यार पर भरोसा रखें और उस के कलाम पर यक़ीन करें और उस की राह ताकते रहें और उस की मर्ज़ी पर ख़ुश हों। ऐ ईमानदार तेरी तक्लीफ़ें कितनी ही बड़ी और तेरे दुश्मन कितने ही ज़ोर-आवर और तेरी मुसीबतें कितनी ही सख़्त क्यों ना हों तो भी ये नहीं हो सकता कि तो यतीम हो जाये बल्कि हमेशा तेरा एक बाप है जो ख़ुदा है। तेरी राह कैसी ही मुश्किल क्यों ना हो लेकिन तो भी तू ख़ुदा का है क्या ही बे पायां बरकत ये है।
“हम ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हैं और जब फ़र्ज़न्द हुए तो वारिस भी यानी ख़ुदा के वारिस और मीरास में मसीह के शरीक।” (रोमियों 8:16-17)
ईसा हमारा बड़ा भाई है
“जो कोई मेरे बाप की जो आस्मान पर है मर्ज़ी पर चलता है मेरा भाई वही है।” (मत्ती 12:50)
जितने ताल्लुक़ ईसा अपने लोगों के साथ रखता है सब दिल पज़ीर व नफ़ीस हैं मगर इनमें कुछ हैं जो ख़ासकर ऐसे हैं मसलन वो ना सिर्फ हमारा बचाने वाला बल्कि हमारा भाई भी है वो हमारी हड्डी में से हड्डी और हमारे गोश्त में से गोश्त है। हमारी ज़ात का शरीक और हमारे साथ एक ही ख़ानदान में से हो के वो भाई के मानिंद हमारी ख़बर लेता और भाई की सी हम-मुहब्बत रखता है यक़ीनन वो एक भाई है जो मुसीबत के दिन के लिए पैदा हुआ है। जब हम ख़ुश होते हैं तो वो भी ख़ुशी करता है। और जब हमग़म आलूदा रहते हैं तो वो हमारे साथ गम करता है चाहिए कि हम अपनी सारी तक्लीफ़ व मुसीबत में उस के पास जाएं और अपने दिल का मतलब साफ़-साफ़ कहें।
जितना वो हमको प्यार करता है उस के मुक़ाबले में कौन कर सकता है और मदद देने के लिए उस के बराबर कौन लायक़ और रज़ामंद है। वो आस्मान पर इसलिए गया ताकि हमेशा ख़ुदा के हुज़ूर हमारे लिए हाज़िर रहे। ऐ आज़मूदा ईमानदार तेरी आज़माईश में ईसा तुझी पर नज़र करता है। कान लगा के वो तेरी फ़र्याद सुनता है तेरा रंज व ग़म उस के दिल पर असर करता है और तेरी सिफ़ारिश के लिए वो हमेशा जीता है। क्या ही मुबारक ख़याल ये है कि आस्मान पर हमारा भाई है लेकिन एक ऐसा भाई जो हमारे सब दुखों से वाक़िफ़ है। यक़ीनन वो हमारे दुश्मनों को उन के मंसूबे बर आने से महरूम रखेगा। और उस के वसीले से हमारी मुसीबतें ख़ुशी का बाइस ठहरेगी क्योंकि सब चीज़ें उन की बेहतरी के लिए जो ख़ुदा से मुहब्बत रखते हैं मिल के फ़ायदा बख़्शती हैं। अपने क़वी बाज़ू से वो तेरी दस्तगीरी करेगा अपनी बरकतों के ख़ज़ाने से वो तेरी सब हाजतें रफ़ा करेगा। और दिल-सोज़ हो के तेरे दर्दों में हम्दर्द रहेगा। अपनी मस्लिहत से वो तेरी हिदायत करेगा और इस के बाद तुझे जलाल में लेगा। पस मुसीबत के वक़्त हम उस के पास जाएं और उसे भाई जान कर उसी पर तकिया करें और उसी की मेहरबानी के मुन्तज़ीर रहें।
“जो पाक करता वो जो पाक किए जाते सब एक ही के हैं इसलिए वो उनको भाई कहने से नहीं शर्माता।” (इब्रानियों 2:11)
रूह-उल-क़ुद्स तसल्ली देने वाला है
“और मैं अपने बाप से दरख़्वास्त करूँगा और वो तुमको दूसरा तसल्ली देने वाला बख़्शेगा कि हमेशा तुम्हारे साथ रहे।” (यूहन्ना 14:16)
अक्सर ईमानदारों की मुसीबतें ऐसी भारी हैं कि किसी इन्सान से रफ़ा नहीं हो सकतीं इन्सान रफ़ा करने के ख़िलाफ़ हमारे रंज को बढ़ाते हैं। ईसा ने ये बात समझी और इसी सबब से वो तीन बरस तक अपने शागिर्दों को तसल्ली देता रहा और आस्मान पर जाते वक़्त रूह-उल-क़ुद्स का जो तसल्ली देने वाला है वाअदा किया रूह-उल-क़ुद्स रूहे इलाही है वो दिल को पहचानता और हमारे रंज का हक़ीक़ी सबब दर्याफ़्त कर सकता है उस का रहम और उस की मुहब्बत बेहद है और वो लायक़ और मोअस्सर तौर से तसल्ली दे सकता है। ईसा के कुल फ़ज़ाइल (फ़ज़ीलत की जमा, खूबियां) उस के पास हैं और जिस बात में और जिस क़द्र हमको तसल्ली ज़रूर है इस बात के लिए और इस क़द्र वो हमारी हाजत रफ़ा करेगा वो बाप के चेहरे पर से गोया पर्दा उठाता है। वो ईसा की लियाक़त व क़ाबिलियत हम पर ज़ाहिर करता है। वो हमारे ले-पालक होने पर गवाही देता है यहां तक कि हम अब्बा यानी ऐ बाप कह सकते हैं। इसी से हर एक तसल्ली देने की उम्मीद शोले की मानिंद दिल में आती है तसल्ली देना उस का काम और उसी की ख़ुशी भी है। पस चाहिए कि अपनी आज़माईशों और इम्तहानों बल्कि अपनी कुल तक्लीफ़ात और मुश्किलात में हम उसी पर निगाह रखें शायद ऐसा हो कि इस दुनिया के दोस्त हमारी मदद ना कर सकें लेकिन रूह-उल-क़ुद्स हमारी मदद कर सकता है और वो मदद भी करेगा। ऐ ईसा इस तसल्ली देने वाले को मेरे दिल में भेज कि वो तेरी मुहब्बत और तेरी नजात की ख़ुशी का मुझे यक़ीन दिलाए काश कि मैँ इस तसल्ली बख़्श रूह का ज़हूर अपने दिल में देखूं और ये कि वो मुझको राह़-ए-हक़ बताए और ईसा का जलाल मुझ पर ज़ाहिर करे और मुझ पर ख़लासी के दिन तक अपनी मुहर करे।
“वो मेरी बुजु़र्गी करेगी इसलिए कि वो मेरी चीज़ों से पाएगी और तुमको दिखाएगी।” (यूहन्ना 16:14)
ईमानदारों के लिए मुसीबत का मुक़र्रर होना
“तुम इन मुसीबतों से लग़्ज़िश ना खाओ क्योंकि तुम आप जानते हो कि हम इन्हीं के लिए मुक़र्रर हुए हैं।” (1 थिस्सलुनीकियो 3:3)
अगरचे तसदीअ (दर्द-ए-सर, दुख) मिट्टी से नहीं उगती और तक्लीफ़ ज़मीन से नहीं पैदा होती लेकिन आदमी तक्लीफ़ के लिए पैदा होता है जिस तरह से चिंगारी की ख़ासियत है कि उड़े तक्लीफ़ गुनाह का एक फल है बल्कि सारी मुसीबतें इस कड़वी जड़ से निकलती हैं पर तो भी ख़ुदा हमारी मुसीबतों से हमको फ़ायदा पहुँचाता है और उन्हें हमारे हाल व इस्तिक़बाल की बेहतरी के लिए हम पर भेजता है हम को ये ना समझना चाहिए कि हमारी तकलीफ़ें ख़ुदा के क़हर से पैदा होती हैं। बल्कि वो पिदराना तम्बीह (बाप की डाँट) हैं। ख़ुदा आगे से जानता है कि हम कैसे होंगे और हमारे लिए कैसा सुलूक दरकार होगा चुनान्चे उस ने हमारी मुसीबतों का शुमार और क़िस्म और इंतिहा ठहराई कभी-कभी बे-वसीला हम पर तकलीफ़ें आती हैं। तब ख़ुदा की क़ुद्रत देखकर हम फ़ौरन उस के मुन्किर होते हैं। लेकिन कभी उस की इजाज़त से हम ख़ुद आपको मुसीबतों में डालते हैं ऐसी हालत में उस का दस्त-ए-क़ुद्रत नहीं देख सकते और इस सबब से ग़म और रंज में डूब जाते हैं जानना चाहिए कि हर एक ईमानदार के लिए एक पियाला है जो उस के बाप ने उसे पीने को दिया है चाहिए कि उसे ले ईसा की मानिंद कहे कि वो पियाला जो मेरे बाप ने मुझे दिया क्या मैं ना पियूँ। हर एक मुसीबत ख़ुदा की तरफ़ से है और हमारी बेहतरी के लिए मुक़र्रर की गई हर मुसीबत पर मुहब्बत का सर-नामा लिखा जाता है पर मुश्किल ये है कि अक्सर हम ये सर-नामा नहीं पढ़ सकते हैं हर मुसीबत व रंज के वसीले से ख़ुदा हमको ये कह के बुलाता है कि ऐ मेरे बेटे मेरे पास आ कि मैं तुझे बरकत बख्शूं पस चाहिए कि हम ख़ुदा के पास जाएं और अपना कुल रंज व मुसीबत उस पर छोड़ें हम उस से ये बरकत मांगें कि हमारी तकलीफ़ें हमको दुनिया से उसी तरफ़ खींच लें जो कुछ मेहरबान ख़ुदा से आता है सो वही मुहब्बत है।
“वो ख़ुद सर है और कौन उसे फिरा सकता है जो उस का जी चाहता है सो वोही करता है वो उस बात को जो उस ने मेरे लिए मुक़र्रर की पूरा करता है और ऐसी बहुत सी बातें उस के पास हैं।” (अय्यूब 23:13-14)
आज़माइशों की हद
“बिल-फ़अल चंद रोज़ बज़रूरत तरह-तरह की आज़माइशों से ग़म में पढ़े हो।” (1 पतरस 1:6)
ईमानदार की आज़माईशें तरह-तरह की हैं और उनका ये मंशा है कि उन के वसीले से उस का ईमान और मुहब्बत जांची जाये अक्सर उस के इम्तिहान निहायत सख़्त हैं ताहम एक तसल्ली का बाइस ये है कि वो महदूद हैं चुनान्चे लिखा है कि मुसीबत के दिन में सोच फिर इम्तिहान की घड़ी का ज़िक्र है। फिर हमारी पल-भर की हल्की मुसीबत और फिर ये कि मैंने एक दिन के लिए तुझे तलाक़ दिया इस तरह हमारी आज़माईशों के होने की बाबत एक दिन एक घड़ी एक दम वग़ैरह का ज़िक्र है और इस से जाना जाता है कि ख़ुदा हर एक इम्तिहान की कुछ हद ठहराता है और कि ये हद इस ज़िंदगी में होगी। आक़िबत में नहीं पौलुस हवारी कहता है कि मेरी समझ में ज़माना हाल के दुख दर्द इस लायक़ नहीं कि इस जलाल के जो हम पर ज़ाहिर होने वाला है मुक़ाबिल हों। ऐ अज़ीज़ोँ ! हमारी रंज व मुसीबत कितनी ही सख़्त क्यों ना हो लेकिन तो भी देर तक ना रहेगी बोझ भारी हो तो हो उसे दूर तक ले जाना पड़ेगा। हम जल्द अपनी सलीब उतारेंगे। और आस्मान पर चढ़ कर अपना ताज पाएँगे। शायद ऐसा हो कि हमारे बाप का चेहरा थोड़ी देर तक हमसे छिपा रहे लेकिन वो फिर हम पर जलवागर होगा उस का ग़ज़ब पल-भर का है उस की रजामंदी में ज़िंदगी है। अगर रोना शाम को तो सुबह को गाने की नौबत होती, तेरे हाल की तक्लीफ़ चंद रोज़ है। पस उस की बर्दाश्त कर सब्र और दुआ और बचने की उम्मीद के साथ ना उम्मीदी में डूब ना जा शैतान को जगह ना दे ख़ुदा का इंतिज़ार कर क्योंकि तू फिर उस की शुक्रगुज़ारी करेगा जो तेरे चेहरे की नजात और तेरा ख़ुदा ही रात के अंधेरे के एवज़ में सुबह की जलाली रोशनी होगी तेरे दुख और मुसीबतें अंजाम तक पहुंचेंगी, तब अबदी सरवर तेरे सर पर होगा तू ख़ुशी और शादमानी हासिल करेगा और ग़म व आह-ए-सर्द भागेगी।
“अब ख़ुदा जो कमाल फ़ज़्ल करता है जिसने हमको अपने जलाल अबदी के लिए मसीह ईसा से बुलाया है आप भी तुमको थोड़ा सा दुख सहने के बाद तैयार मज़्बूत उस्तिवार पायदार करे।” (1 पतरस 5:10)
मसीह का वसीयत नामा
“सलामती तुम लोगों के लिए छोड़ के जाता हूँ अपनी सलामती मैं तुम्हें देता हूँ ना जिस तरह से कि दुनिया देती है मैं तुम्हें देता हूँ।” (यूहन्ना 14:27)
ईसा तजुर्बेकारी से जानता था कि मेरे लोग किन-किन चीज़ों के मुहताज हैं। उस की यहां की ज़िंदगी दुख और तक्लीफ़ व रंज से भरी थी हक़ीक़तन वह मर्द-ए-ग़मनाक था लेकिन तो भी वो सलामती रखता था। उस की रूह चैन में रही उस का ईमान सर-गर्म था और वो कामिल तौर से अपने बाप की मुहब्बत पर तकिया (भरोसा) करता था। जब उस के चारों तरफ़ दुश्मन शोर व गुल मचाते और फ़साद उठाते थे। वो ख़ुश वक़्त व बरक़रार रहा और जब वो अपने बाप के पास गया तो हमारे लिए उस ने ये वसीयत की कि सलामती तुम लोगों के लिए छोड़ के जाता हूँ। अपनी सलामती मैं तुम्हें देता हूँ हमारी ज़ाहिरी हालत में हर-चंद घबराहट हो तो भी हम चैन और सुलह से रह सकते हैं। ईसा पर ईमान लाने और अपने दिल उस पर छोड़ने और उस की मर्ज़ी पर ख़ुश होने से हमें सलामती मिलती है। चुनान्चे लिखा है कि जिसका दिल तुझ पर एतिमाद रखता है। तू ख़ूब सलामती से उस की निगहबानी करेगा। क्योंकि उस का तवक्कुल तुझ पर है ऐ मेरी जान मैं तुझे ताक़ीद करता हूँ कि ईसा पर अपना बोझ डाल दे उस की मर्ज़ी का ताबे रह बल्कि अपनी मर्ज़ी से उस की मर्ज़ी को ज़्यादा पसंद कर, ईसा का कलाम अपना क़ानून और अपनी तस्कीन जान, ईसा का जलाल तेरी ग़र्ज़ हो उस वसीयत नामे को जो तूने उस से पाया फ़ज़्ल के तख़्त के पास ले जा कि वहां तुझे उस के बाप की तरफ़ से मीरास मिलेगी। अपनी सारी तक़्लीफों और मुश्किलों में दिल व जान के पाक आराम के लिए दुआ मांग और ज़िंदगी में और मौत के वक़्त मसीह पर निगाह करके तस्कीन ख़ातिर रख ईमान ला और तुझे इस वसीयत-नामे के मुताबिक़ मिलेगा तेरा शफ़ी जिसने दुनिया में आके मुझसे इस बरकत का वाअदा किया उसे देने के लिए आस्मान पर ज़िंदा है। लिहाज़ा उस से मांग सलामती का मुंतज़िर रह और वो तुझे ज़रूर मिलेगी। हम जो ईमान लाए आराम में दाख़िल होते हैं।
“किसी बात का अंदेशा ना करो बल्कि हर एक बात में तुम्हारी अर्ज़ दुआ और मिन्नत से शुक्रगुज़ारी के साथ ख़ुदा से की जाये और ख़ुदा का इत्मीनान जो सारी समझ से बाहर है तुम्हारे दिलों और ख़यालों की मसीह ईसा में निगहबानी करेगा।” (फिलिप्पियों 4:6-7)
इत्मीनान
“ख़ुदा हमारे लिए जाए-पनाह और क़ुव्वत है वो तंगियों में निहायत मददगार पाया गया।” (ज़बूर 46:1)
ख़ुदा अपने लोगों की सारी इहतियाजों को रफ़ा करेगा क्योंकि उस की सारी सिफ़ात और कमालात उन्ही के लिए हैं। जब वो ख़तरे में पड़ेंगे तब ख़ुदा उनकी जाए-पनाह (अमन की जगह) है उस के पास जा कर उन को ख़ुदा की अदल और उदूल (इन्कार, मुँह फेर लेना) की हुई शराअ की तहदीद (सरज़निश, डराना) से डरना ना चाहिए जो वो नातवां (कमज़ोर) हैं तो ख़ुदा उन की तवानाई है वो उन्हें बदी से जंग करने की ताक़त देगा। और जंग में भी उन को सँभालेगा और आख़िर को उन्हें फ़त्ह बख़्शेगा जो वो रंज व मुसीबत में पड़े हों तो वो तंगियों में उनका मददगार होगा। वो अपने लोगों को ग़म व तक्लीफ़ की बर्दाश्त करने की ताक़त देगा। और ऐसी मदद करेगा कि उन की तकलीफ़ें फ़ायदे का बाइस ठहरें वो छः (6) मुसीबतों से तुझे छुड़ाएगा बल्कि सात (7) में से एक भी तुझको ज़रर (नुक़्सान) ना करेगी। ऐ ईसाई हर ख़तरे में ख़ुदा के पास दौड़ा जा वो तुझे क़ुबूल करने को अपनी गोद फैलाता है उस का दिल तेरी जाए-पनाह होगा वो तुझे छुपाएगा और अपना दामन तेरे ऊपर फैला के तेरी हिमायत व हिदायत करेगा। ख़ुश-वक्ती और कमबख़्ती में हाँ ज़िंदगी व मौत में वो तेरी हिफ़ाज़त करता रहेगा। अपनी कुल कमज़ोरियों में उस से ज़ोर मांगा कर क्योंकि वो कहता है कि मेरा ज़ोर कमज़ोरी में पूरा होता है। वो मिस्कीन का ज़ोर है और मुहताज की परेशानी के वक़्त उस की क़ुव्वत अक्सर औक़ात उस ने ज़ईफ़ों और तंग हालों की मदद की है और तेरी भी करेगा। अपनी कुल मुश्किलों में तक़वियत और तसल्ली के लिए उस के पास जाया कर और वो तेरा इन्कार ना करेगा उस के क्या है गर उनक़द्र (क़ीमती) अल्फ़ाज़ जो वो अपने परेशान लोगों से बोलता है कि तू ना डर क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ। पीछे फिर के ना देख क्योंकि मैं तेरा ख़ुदा हूँ मैंने तुझे मज़्बूत किया हाँ तेरी मदद की हाँ तुझे अपनी सदाक़त के दहने हाथ से सम्भाला है वो ख़तरे में तेरी सिपर और तंगी में तेरा मददगार होगा वो हर वक़्त और हर हाल में मौजूद है और मदद करने और बरकत देने को तैयार।
“इसलिए आओ हम फ़ज़्ल के तख़्त के पास बेपर्वा जाएं ताकि हम पर रहम हो और फ़ज़्ल जो वक़्त पर मददगार हो हासिल करें।” (इब्रानियों 4:16)
मुसीबतें ईमानदारों का हिस्सा आम
“सादिक़ पर बहुत सी मुसीबतें पड़ती हैं पर यहोवा उन सभों से उसे रिहाई बख़्शेगा।” (ज़बूर 34:11)
ख़ुदा के लोग रास्तबाज़ हैं ईसा की कामिल रास्तबाज़ी उन के हक़ में गिनी जाती है उन में रूह-ए-पाक का रास्त काम किया जाता है वो ख़ुदा के कलाम की रास्त तालीम अमल में लाते हैं इस फ़रमांबर्दारी से जो मसीह ने की उन को जन्नत मिलती है। सारे सादिक़ों पर कमो-बेश मुसीबतें पड़ती हैं उन में कोई नहीं जो तक्लीफ़ से बचा हो हर एक बेटा तम्बीह पाता है। लेकिन उन की मुसीबतें कितनी ही बड़ी और कितनी ही सख़्त क्यों ना हों तो भी सादिक़ उन पर ग़ालिब होते हैं। उन की मुसीबतों के ज़माने के मुताबिक़ उन की क़ुव्वत होती है और उन पर ये साबित होता है, कि ईसा का फ़ज़्ल उन के लिए काफ़ी है। वो सारी मुसीबतों से उन्हें रिहाई बख़्शेगा जो रहाईयां ख़ुदा देता है सो हमेशा कामिल हैं वो अपने हर एक बेटे को बचाता है बल्कि हर तरह से और हमेशा के लिए बचाता है इस्राईल ख़ुदावन्द पर भरोसा रख के अबदी नजात के साथ रिहाई पाएगा तुम अबद-उल-आबाद कभी पशेमान (शर्मिंदा) और सरासीमा (हैरान परेशान) ना होगे। कभी किसी ईमानदार की मुसीबतें उस की हलाकत का बाइस ना ठहरी हैं और ठहरेंगी। किसी ईसाई का बोझ उस की बर्दाश्त करने से बाहर ना हुआ है और ना होगा। वाअदा इलाही ये है और ये हमारे तरसाँ दिलों को समझा ले कि जैसे तेरे दिन हों वैसी तेरी क़ुव्वत हो जब ख़ुदा-ए-रहीम ऐसा वाअदा करता है क्या अपने कलाम पर वफ़ादार ना होगा। अक्सर हम शक लाए हैं और ख़ौफ़ भी किया ता ना हो कि हम आख़िर को हलाक हों, लेकिन तो भी अपने ख़ौफ़ से रिहाई पाके हम इस पर अपनी मुहर कर सकते हैं कि ख़ुदा वफ़ादार है। अगर उस का वाअदा हक़ ही नहीं तो हम अभी तक राह-ए-रास्त पर चलने में साबित-क़दम ना रहते।
“तो जिसने बहुत तंगीयाँ और मुसीबतें दिखलाई हैं। फिर आ के हमें जिलाएगा और ज़मीन की घरानों से फिर आ के हमें उठालेगा।”
(ज़बूर 71:20)
मसीह के नक़्शे क़दम पर चलना चाहिए
“ये वही हैं जो पड़ी मुसीबत में से आए और उन्हों ने अपने जामों को बर्रे के लहू से धोया और उन्हें सफ़ैद किया।” (मुकाशफ़ा 7:14)
ख़ुदा के लोगों में अक्सर ऐसे लोग हैं जो ये समझते हैं कि अगर औरों की तकलीफ़ें और मुसीबतें भारी हों तो हों लेकिन ताहम हमारी मानिंद नहीं हैं। हमारी मुसीबत के बराबर किसी की नहीं हैं। ये ग़लती है ख़ुदा के ख़ानदान के सारे लोग जो अपने आस्मानी घर को गए हैं। एक ही राह हो के गए हैं और बहिसाब औसत उन की मुसीबतें यकसाँ हुई हैं। सभों के लिए बातिनी लड़ाई और ज़ाहिरन एक ही नाहमवार राह है। मसलन नबियों की बड़ी मुश्किल राह थी। चुनान्चे हवारी कहता है कि जो नबी ख़ुदावन्द का नाम ले के कलाम फ़र्माते थे। उन के दुख उठाने और सब्र करने को नमूना समझो जो ईसाई शहर कुरिन्थुस में थे वो समझते थे कि हमारी ऐसी आज़माईशें और तकलीफ़ें हैं कि वैसी औरों की नहीं पर तो भी पौलुस रसूल उन से कहता है कि तुम किसी इम्तिहान में सिवा इस के जो और इन्सान से किया जाता है नहीं पड़े और ख़ुदा वफ़ादार है कि वो तुमको तुम्हारी ताक़त से ज़्यादा इम्तिहान में पड़ने ना देगा। बल्कि वो इम्तिहान के साथ निकल जाने की राह भी ठहराएगा ताकि तुम बर्दाश्त कर सको और जैसा ख़ादिम वैसा ही ख़ावंद का हाल यानी गुनाह के सिवा वो सब बातों में हमारी मानिंद आज़माया गया और आप ही इम्तिहान में पड़ के वो उन की जो इम्तिहान में पड़ते हैं मदद कर सकता है। ऐ मुसीबतज़दा ईसाई तू उसी राह पर चलता है। जिसमें ईसा के कुल गल्ले को चलना पड़ता है अपनी राह पर निगाह कर और तुझे बड़े कडरिए के नक़्श-ए-पा दिखलाई पड़ेंगे। ख़ातिरजमा रख क्योंकि तेरी बिल-फ़अल की मुसीबतें जलाल आइन्दा की अलामत हैं जंगल की हैबतनाक चीज़ें देखकर आस्मान की ख़ुशी व सआदत ज़्यादा ख़ूब व पसंदीदा होगी।
“जान रखो कि ऐसे ही दुख तुम्हारे भाई जो दुनिया में हैं उठाते हैं।”
(1 पतरस 5:9)
लेपालक होने की दलील
“अगर तुम तम्बीह में सब्र करते हो तो ख़ुदा तुम से फ़रज़न्दों की मानिंद सुलूक करता है।” (इब्रानियों 12:7)
अक्सर जो मुसीबतें हम पर पड़ती हैं वो तम्बीह (नसीहत) के तौर पर पड़ती हैं। वो हमारे बाप के प्यार के सबब से होती हैं और तम्बीह के लिए दी जाती हैं हलाकत के लिए नहीं। लिहाज़ा जब मुसीबत और दुख आ जाता है तब चाहिए कि हम दर्याफ़्त करें कि इस का क्या सबब है। और नबी की मानिंद कहें कि हम खोजें और अपनी राहों को जांचें और ख़ुदावन्द की तरफ़ फिरें ख़ुदा के सारे फ़रज़न्दों के लिए तादीब दरकार है और वो उन सभों को तादीब देता है जो गुनाह कर के तम्बीह नहीं पाता वो अपने को ख़ुदा का प्यारा क्योंकर समझे क्योंकि ख़ुदा जिसे प्यार करता है उसे तम्बीह देता है। और हर एक बेटे को जिसे वो क़ुबूल करता है बेटा है लेकिन जब हमारे दिल नर्म होते जाते हैं और हमारी तक़सीरों (गुनाह, ग़लती) के लिए हमको तम्बीह मिलती है, तब हमारा बेटा होना साबित होता है। ख़ुदा की ये मर्ज़ी नहीं है कि मेरे फ़र्ज़न्द मुझसे दूर रहें छड़ी और तम्बीह दानिश बख़्शने वाली हैं और अगर हम ख़ुदा के सीधे राहों से फिरें तो वो हमको तमांचे मारेगा और तम्बीह देगा, अगर मैं गुनाह कर के इस गुनाह से पछताऊँ और जब तक अपने क़सूर का इक़रार ना करूँ तसल्ली ना पाऊँ और जब तक ख़ुदा अपना चेहरा मुझ पर जलवागर ना करे। तब तक मैं अपने को अंधेरे में समझूं तो मुझे फ़र्ज़ंद-ए-ख़ुदा होने पर शक लाना ना चाहिए ख़ुदा मेरा बाप है और मैं कितना ही कमज़ोर व बेक़रार व ख़ुद-पसंद व नालायक़ हूँ तो भी उस का फ़र्ज़न्द हूँ वो बाप की तरह छड़ी से हमको तादीब देता है और अगर ऐसा ना होता तो हाकिम की मानिंद तल्वार से हमको मार डालता। पस मैं अपने बाप के पास जाऊँगा और ये जान कर कि वो जो करता है सो रास्ती से करता है उस की छड़ी को चूमूँगा और उस की हर एक मार को बरकत जानूंगा। ऐ मेरे बाप अपने फ़र्ज़न्द का सर अपनी गोद में ले अपने प्यार की निस्बत मुझे यक़ीन करा और मेरी मदद कर कि मैं वाजिब तौर पर तादीब पाऊं ऐ ख़ुदावन्द तम्बीह दे पर अंदाज़े से अपने क़हर से नहीं ना हो कि तू मुझे नेस्त दे।
“मैं जितनो को प्यार करता हूँ उन्हें मलामत और तम्बीह करता हूँ। इस वास्ते सरगर्म हो और तौबा करो।” (मुकाशफ़ा 3:19)
रहम की तर्बियत
“यहोवा पर अपना बोझ डाल दे और वो तेरी परवरिश करेगा वो सादिक़ को अबद तक टलने ना देगा।” (ज़बूर 55:22)
जिस्मानी मुसीबतें अक्सर रूह को तक्लीफ़ देती हैं। ये तक्लीफ़ हर तरफ़ से होती है वो हम पर पड़ती है और हम इस को रोक नहीं सकते पर एक काम कर सकते हैं। यानी कह सकते हैं कि हमारा एक बार बर्दार (बोझ उठाने वाला) है जो उन्हें उठाता है क्योंकि उस ने हमारी मशक़्क़तें ले लीं। और हमारे ग़मों का बोझ उठा लिया बल्कि हमारे गुनाहों को अपने बदन पर उठा के सलीब पर चढ़ गया उस ने इसलिए हमारे गुनाह का इल्ज़ाम और सज़ा उठा लिया कि हमको उऩ्हें उठाना ना पड़े वो ग़मगीं हुआ ताकि हम ख़ुश रहें वो रंज के तले दब गया ताकि हम उठ कर कामिल ख़ुशी का मज़ा चखें और अभी जब वो देखता है कि हमारे फ़िक्र व रंज व मुसीबत का कैसा भारी बोझ है तो बड़े प्यार से कहता है कि अपना बोझ मुझ पर डाल दे मैं उस को उठा लूँगा। मेरी ताक़त तेरी ताक़त से ज़्यादा है। ऐ भाई तेरा कैसा अच्छा शफ़ी है जो तुझको बोझ उठाना नहीं पड़ता तू जान नहीं सकता कि मैं कैसा कमज़ोर हूँ और वो क्या है ज़ोर-आवर मैं कुछ नहीं हूँ और वो सब कुछ है वो तेरा सब बोझ लिया चाहता है और उस का आर्ज़ूमंद है कि तो ख़ुश हो वो ना फ़क़त तेरे बोझ को बल्कि तुझको भी उठा लेगा। और अपने अबदी बाज़ू तेरे नीचे रखकर तुझे समझा लेगा। और आख़िरकार अपने हुज़ूर में पहुंचा देगा अपना हाल का बोझ कितना ही बड़ा क्यों ना हो ईसा के पास लेजा मबादा वो तेरे लिए भारी हो जाये और तू ये सोचने लगे कि मेरा भरोसा बातिल है, अगर तू अपना सारा बोझ ईसा पर डाल देगा। तो वो सिर्फ़ उठा लेगा बल्कि तू मसीह को अज़ीज़ और प्यारा समझने लगेगा।
“तंगी के दिन मुझे पुकार मैं तुझे छुड़ाऊंगा और तू मेरा जलाल ज़ाहिर करेगा।” (ज़बूर 50:15)
आहज़ारी
“क्योंकि हम तो जब तक इस ख़ेमा में हैं बोझ से दब कर आहें खींचते हैं।” (2 कुरिन्थियों 5:4)
रूह की बूदो-बाश के लिए बदन एक परेशान मकान है पेश्तर वो इमारत शरीफ़ था। अब ना पाएदार ख़ेमा जिसकी फ़ज़ीलत थोड़ी और जिसमें हर तरह की तक्लीफ़ व एज़ा दाखिल हो गई हैं बदन दुख की जगह और आज़माईश का वसीला है और हमारी रूहानी दौड़ में अक्सर हमको रोकता है इस जिस्मानी ख़ेमे में रह के हम दो अस्बाब (सबकी जमा) से यानी अपने दुख और अपनी हाजत के सबब से भी आहें खींचते हैं और तादम-ए-मर्ग (मरते दम तक) हमें आह-ज़ारी करनी पड़ेगी। अपनी नफिसा नीयत और दुनिया परस्ती और शहवत और ग़फ़लत और अंधेरेपन और बेईमान के सबब से हमको आहें करना होगा। हम आज़ादगी और पाकीज़गी और कामिल और बिला फ़ासिला सलामती के हासिल करने के लिए आहें खींचते हैं हम तो अभी आह-ज़ारी करते हैं और जब तक ज़िंदगी मौत को निगल ना जाये यही करते रहेंगे। हम आहें खेंचते मौत तक पहुँचेंगे। लेकिन उस वक़्त से आह व नाला का अंजाम होगा। क्योंकि जो मसीह के हैं उस के हुज़ूर में गाते हुए आएँगे और अबदी सरवर उन के सुरों पर होगा। वो ख़ुशी और शादमानी हासिल करेंगे। और ग़म और आह-ए-सर्द भागेगी। मेरे भाई क्या तेरा बदन दुखता रहता है और तुझको आराम नहीं किया तू बदन में गिरफ़्तार हो के आज़ाद हुआ चाहता है खड़े हो के अपना सर उठा इसलिए कि तेरा छुटकारा नज़्दीक है जल्दी रोज़-ए-हश्र के पौ फटेगी और उसी वक़्त ख़ुदा की कलीसिया की आख़िरी आहो-ज़ारी (अफ़सोस व ग़म) ख़ुशी व शादमानी का सरोद (गीत) हो जाएगी। ईसा आता है और जब वो नज़र आएगा। तब दुनिया का छुटकारा होगा। तब सारी ज़ंजीरें आज़ा पर से गिर जाएँगी। क़ैदख़ाने के दरवाज़े खुल जाऐंगे। दुखी अपने दुख से फ़ुर्सत पाएँगे। हर तरह की तक्लीफ़ व बीमारी जाती रहेगी। और हमारा ये ख़ेमा सा घर बदल के ख़ुदा की क़ुद्रत व फ़ज़्ल से एक आलीशान इमारत हो जाएगी। जिसमें ता-अबद गुनाह का नामोनिशान पाया ना जाएगा।
“हम भी जिन्हें रूह के पहले फल मिले अपने में कराहते हैं और लेपालक होने की यानी अपने जिस्मों की रिहाई की राह तकते रहते हैं।”
(रोमियों 8:23)
ईमानदार की फ़र्याद
“आह मैं तो सख़्त मुसीबत में हूँ। इस मौत के बदन से मुझे कौन छुड़ाएगा।” (रोमियों 7:24)
ईसाई ना सिर्फ ज़ाहिरी बल्कि अंदरूनी मुसीबतों में मुब्तला हैं और दिली मुसीबतें सबसे भारी और सख़्त हैं हर एक ईमानदार का ये तजुर्बा है कि जब मैं नेकी क्या चाहता हूँ तो बदी मेरे पास मौजूद होती है और ये कि मेरे आज़ा में शरीअत है जो मेरी अक़्ल की शरीअत से लड़ती है और पौलुस की मानिंद हर एक ईसाई को ये कहना पड़ता है कि “आह ! मैं तो सख़्त मुसीबत में हूँ इस मौत के बदन से मुझे कौन छुड़ाएगा।” एक ही दिल में गुनाह की पुरानी और फ़ज़्ल की नई इन्सानियत हस्ती है। और उन के दर्मियान बराबर लड़ाई रहती पुरानी इन्सानियत से शहवतें और मस्तियाँ और हर तरह की बुरी ख़सलतें निकलती हैं और नई इन्सानियत से पाक आरज़ूऐं और रूहानी ख़्वाहिशें और आस्मानी मुहब्बतें और पाक होने के इश्तियाक़ पैदा होते हैं। जिस्म चालाक है और हमारे सारे आमालों को बिगाड़ना चाहता है। रूह-ए-पाक भी मुस्तइद हो के हमको जिस्म के ज़ोर व ज़बर्दस्ती से बचाता है नेकी करने की ख़्वाहिश है। ताहम बदी व बुराई मौजूद है। चुनान्चे गुनाह जो मौत का बदन कहलाता है हम को रोक देना और हमारी ख़ुशी को ख़राब करता है। दिल में गोया दो फ़ौजें हैं जो आपस में लड़ा करती हैं। और बड़ा ताज्जुब ये है कि ईमानदार जब अपने को फ़त्हयाब समझ कर लड़ाई से बाज़ रहता है। तब वो ज़्यादा ख़तरे में पड़ जाता है। काश कि हम सभों को फ़ज़्ल इनायत होता कि हम इस पुरानी इन्सानियत को उतारें और नई इन्सानियत को जो ख़ुदा के मुवाफ़िक़ रास्तबाज़ी और हक़ीक़ी पाकीज़गी में पैदा हुई पहनें शुक्र ख़ुदा का कि जल्दी ये लड़ाई ख़त्म होगी। जल्दी हमारी पाकीज़गी कामिल होगी। तब हमारी सआदत भी कामिल होगी चाहिए कि पुरानी इन्सानियत मर जाये बल्कि वो अभी मौत के फ़त्वे के तले है और ये कि नई इन्सानियत सल्तनत करे वो क्या ख़ूब कि ईमानदार को गुनाह से अबदी आज़ादगी का इन्तिज़ार है।
“जिस्म की ख़्वाहिश रूह के मुख़ालिफ़ है और रूह की ख़्वाहिश जिस्म के मुख़ालिफ़ है और ये आपस में बरख़िलाफ़ हैं यहां तक कि जो कुछ तुम चाहते हो सो कर नहीं सकते हो।” (ग़लतियों 5:17)
दुआ
“ऐ यहोवा मुझ पर रहम कर क्योंकि मुझ पर तंगी है।” (ज़बूर 31:9)
ख़ुदा से दुआ करने की इजाज़त एक बड़ी नेअमत है, ख़ुसूसुन मुसीबत के दिन वो निहायत दिलचस्प व मुफ़ीद है। जो हमको ये इजाज़त ना मिलती तो हम कुछ ना कर सकते जब हम लोगों के दिल रंज से भर जाते या हमारे बदन बीमारी से ज़ईफ़ (कमज़ोर) हो जाते या हम मुफ़लिसी (ग़ुर्बत) में पड़ जाते या हमारे अज़ीज़ गुज़र जाते हैं। तब अगर दुआ ना कर सकते तो क्या ही हैरान व परेशान होते, लेकिन बड़ी तस्कीन इस से हुई कि जिस वक़्त ख़ुदा के हुज़ूर में हमने अपनी अर्ज़ की तब उस ने हमारी फ़र्याद सुन ली और हमको बड़ी तसल्ली और ख़ुशवक़्ती हासिल हुई। ऐ ईसाई भाई अपने सब दुख और रंज में ख़ुदा के रहम पर तकिया कर उस की रहमत अबदी है बल्कि माँ की मुहब्बत हर-चंद कि लासानी (जिस जैसा कोई दूसरा ना हो) है। ताहम ख़ुदा की मुहब्बत की मानिंद नहीं हो सकती। वो तेरी सुनेगा और तेरे साथ हम्दर्द होगा। और उस की मेहरबानी व फ़ज़्ल से जो मुसीबतें और बोझ हैं वही बड़े फ़ायदे के बाइस होंगे। कितनों के तजुर्बे में ये बात सच्च ठहरी है कि वो अपनी तंगी में यहोवा को पुकारे उस ने उनकी सख़्त मुसीबतों से उन्हें रिहाई बख़्शी ग़र्ज़ ऐ भाइयो दुआ करते रहो और अगरचे जिस क़द्र तुम्हारी दुआएँ बढ़ती उसी क़द्र तुम्हारी मुसीबतें भी बढ़ती जाती हैं। लेकिन तो भी साबित क़दम रहो और आख़िर को तुम ग़ालिब होगे। अपने लोगों की दुआएं क़ुबूल करने में ख़ुदा इन्कार ना करेगा। बल्कि उन्हें क़ुबूल कर के चैन और तसल्ली बख़्शेगा। वो अपना वाअदे कर चुका है। और उसे फ़रामोश ना करेगा। उस के दिल में मुहब्बत है और उस मुहब्बत की तासीर बढ़ती रहेगी। उस का ख़ज़ाना मामूर व नामहसूर है घबराओ मत वो तुम्हारी दुआ की आवाज़ सुनके यक़ीनन तुम पर रहम फ़रमाएगा। बल्कि सुनते ही तुमको जवाब देगा।
“ऐ यहोवा तू अपने नाम के वास्ता मुझे जिलाएगा। तू अपनी सदाक़त के साथ मेरी जान को तंगी से निकालेगा।” (ज़बूर 143 बाब)
मुसीबत का ईलाज
“कोई हम में से अपने वास्ते नहीं जीता।” (रोमियों 14:7)
आज़मूदा ईसाई के लिए ये बेहतर है कि वो अपनी मुसीबतों और तक़्लीफों पर निगाह ना करे। मुसीबतें इसलिए ख़ुदा की तरफ़ से भेजी गईं कि वो ईमानदार को राह-ए-रास्त पर चलाऐं। चुनान्चे अक्सर मुसीबत-ज़दों को ख़ुदा की ख़िदमत में मुस्तइद होने से बड़ी तस्कीन और ख़ातिर जमुई (तसल्ली) हुई है। पस ऐ अज़ीज़ो जो तुम पर दुख और मुसीबत आ गई हो तो बीमारों के पास जा के उन्हें ईसा की मेहरबानी का बयान करो बेवाओं से मुलाक़ात करो और उनकी फ़र्याद सुन के उनको तसल्ली दो। यतीमों को उनके आस्मानी बाप की तरफ़ रहनुमाई करो। कंगालों की हाजत रफ़ा करो बल्कि अपने पर नहीं बल्कि बरअक्स इस के औरों की मुसीबतों और एह्तियाज़ों पर निगाह करो और उन के रंज व तक्लीफ़ के रफ़ा करने में मशग़ूल हो जो औरों को बरकतें देता है। वो बरकतें पाता है। अपने शफ़ी के लिए मुस्तइद रहो और इस से तुम तसल्ली पाओगे। जो अपनी मुसीबत पर नज़र करता उस की मुसीबत ज़्यादा हो जाएगी और जो ये चाहता है कि अपने दुख से आराम पाए उसे चाहिए कि मसीह की ख़िदमत में मशग़ूल रहे। जैसा कि घर में पड़े रहने से कोई सुस्त व नातवां हो जाता है लेकिन बाहर जा कर ताज़ी हवा उसे बहाल करती है। वैसा ही जो अपने दुख और मुसीबत पर सोचता रहता वो ग़मगीं व दिल-गीर हो जाता है लेकिन जो औरों की भलाई के लिए मुस्तइद है वो अपने को भूल जाता है और क़ुव्वत इलाही पाके सँभाला जाता है। ग़र्ज़ चाहिए कि जिस वक़्त तुम ख़ुदा के वाअदे पर तकिया करते हो उसी वक़्त उस की ख़िदमत में भी चुस्त व चालाक हो, क्योंकि ना सिर्फ जिस्मानी बल्कि रूहानी तौर से भी ये बात सच्च ठहरती है वो जो सुस्ती से काम करता है कंगाल हो जाएगा मगर चालाकों के हाथ दौलत पैदा करते हैं।
“और वो सब के वास्ते मुआ कि जो जीते हैं सो आगे को अपने लिए ना जियें बल्कि उस के लिए जो उस के वास्ते मुआ और फिर जी उठा।”
(2 कुरिन्थियों 5:15)
ख़ुदा का हमारे लिए हम्दर्द होना
“उन की कुल मुख़ालिफ़त में वो मुख़ालिफ़ ना था। और उस की हुज़ूर के फ़रिश्ते ने उन्हें बच्चा या अपनी मुहब्बत में और अपने हुलुम में उसी ने उन्हें ख़ल्लासी बख़्शी और उस ने उन्हें उठाया और सारे क़दीम अय्याम में उन्हें ले गया।” (यसअयाह 63:9)
क्या ख़ूब ये है कि हमारी तक़्लीफों में कोई दूसरा भी हम्दर्द हो मगर जो हम्दर्दी इन्सान करता है वो अक्सर ला-हासिल है कभी-कभी जब कोई शख़्स रंज में पड़ता हो तो अगरचे दोस्तों की मुलाक़ात और गुफ़्तगु बहुत तस्कीन देती है। लेकिन आराम पायदार नहीं देती। कोई कितना ही अज़ीज़ क्यों ना हो लेकिन जब वो दुख में पड़े तो अक्सर उस की मदद करने के लिए हमारी मुहब्बत बेकार है, मगर जिस दुखी और मुसीबतज़दा को ख़ुदा प्यार करता है उस की वो मदद कर सकता है क्योंकि उस का बाज़ू क़ादिर और उस की हिकमतें बेशुमार हैं पर अजब बात ये है कि कीड़ी की दर्दों में बार तआला हम्दर्द है। ये कलाम मुक़द्दस की गवाई है इस में निहायत दिलसोज़ी व मुहब्बत ज़ाहिर है कि बनी-इस्राईल ने अजनबी माबूदों को अपने दर्मियान से दूर किया और ख़ुदावन्द की बंदगी करने लगे। तब उस का जी इस्राईल की परेशानी से मलूल हुआ और क्या ही लुत्फ़ नफ़ीस इस बात में दिखलाई देता है कि ख़ुदा फ़रमाता है, कि “जो कोई तुम को छूता है सो मेरी आँख की पुतली को छूता है।” ऐ आज़मूदा हम-राही जब तेरी रूह ऊंची नीची और तेरी ताक़त कम और तेरा दिल ग़मगीं और तेरी आहें भारी हों तब याद कर कि ख़ुदा तेरे सब दर्दों में हम्दर्द होता है। उस की आँखें देखती हैं। और उस के कान सुनते हैं। और उस का दिल दर्द-मंदी से भरता है। चुनान्चे लिखा है कि “जैसा बाप बेटों पर रहम करता है। वैसा ही यहोवा अपने डरने वालों पर रहम करता है।” क्योंकि वही हमारी साख़त को जानता है याद रखता है कि हम मिट्टी हैं अगर तू उस पर भरोसा रखे तो ग़मगीं ना होगा। अगर उस को यक़ीन जानता है तो ना कुड़-कूड़ाएगा। ख़ुदा के कलाम पर एतबार रखकर ख़ुशी से अपनी राह पर चला कर उस के सिवा तुझे और क्या दरकार है। ख़ुदा तेरा बाप है बल्कि ऐसा बाप कि तुझे अज़ीज़ फ़र्ज़न्द जान कर तेरे सारे दुख और दर्द में हम्दर्दी करता है और करता रहेगा। यक़ीनन इस से तुझको तस्कीन और ख़ुशी पैदा होगी।
“क्योंकि हमारा सरदार काहिन ऐसा नहीं जो हमारी सुस्तियों में हम्दर्द ना हो सके बल्कि गुनाह के सिवा सारी बातों में हमारी मानिंद आज़माया गया।” (इब्रानियों 4:15)
तवक्कुल
“अगर मैं तंगी के दर्मियान चलूं तो तू मुझे ज़िंदा रखेगा।” (ज़बूर 138:7)
बाअज़ ईसाई खासतौर से आज़माऐ जाते हैं। मुसीबतें उन्हें घेरती हैं और कहीं उन को फ़ुर्सत नहीं मिलती दुनिया की तरफ़ से उनका काम और ख़ानदान में उन के फरजंदह और कलीसिया में उन के शरीक उन को आज़माते हैं। इस के सिवा वो दिली आराम नहीं पाते बल्कि बरअक्स इस के शैतान उन के दिल में दख़ल पाता है और वो डोरते और पसो पेश करते हैं। उन्हें आगे चलना पड़ता लेकिन वो किस तरह आगे जा सकते ग़ैर लोग यानी वो जो ईमानदारों की उम्मीद से नावाक़िफ़ हैं ताज्जुब करते हैं कि ये कैसी बर्दाश्त और कैसी पाएदारी है, लेकिन ईमानदार के पास एक भेद है जो उन की समझ से बाहर है। यानी ये कि ख़ुदा आज़माऐ हुओं को बहाल करता है। उस का कलाम उस की मानिंद जो घास पर गिर के उस को तरो-ताज़ा करती उन के दिलों को ज़िंदा करती है फिर रूह-ए-पाक उन के दिलों पर असर करता है और उन्हें ज़िंदगी बख़्शता है। फिर ईसा जो सदाक़त का आफ़्ताब है उन पर ज़ाहिर होता है और तारीकी की जगह में रोशनी की जगह में रोशनी चमकती है फिर दुआ करने में उन को बड़ी तसल्ली पैदा होती है और ख़ुदा की सोहबत में वो अपनी मुसीबतों को भूल जाते हैं पर ख़ुदा के घर जा के और उस का कलाम सुन के और उस की हम्द व तारीफ़ कर के वो अपने रूहानी सफ़र के लिए ताक़त हासिल करते हैं। ये औक़ात जब ख़ुदा ख़ुश्क रूह को तरो ताज़ो करता है क्या ख़ुश व ख़ुर्रम हैं तब ईमान नई ताक़त से ख़ुदा के वादों को पकड़ता है। और उम्मीद आने वाले आराम को ताकती है और मुहब्बत हक़ तआला की सिफ़त में ख़ुश होती है। काश कि अक्सर मेरी रूह को ऐसा वक़्त मुबारक मिला करे तूने ऐ मेरे ख़ुदा वाअदा किया है कि मैं इस्राईल के लिए उस की मानिंद हूँगा। वो सोसन की तरह फूलेगा। रोज़ बरोज़ ऐ मेरे ख़ुदा मेरे दिल में ये वाअदा पूरा कर।
“जब हम जाऐंगे हाँ ख़ुदावन्द के पहचानने के लिए हम पैरवी करेंगे। सुबह की मानिंद उस का खुरुज़ मुक़र्रर है। और बरसात की मानिंद हमारे लिए उस की आमद होगी पिछले मेह की मानिंद जो ज़मीन को तर करता है।”
(होसेअ 6:3)
ग़र्ज़-ए-इलाही
“जब वो जो हमारे जिस्मानी बाप थे तम्बीह करते थे। और हमने उन की ताज़ीम की तो क्या हम इस से ज़्यादा रूहों के बाप के हुक्म में ना रहें और जिएँ कि वो थोड़े दिनों के वास्ते अपनी समझ के मुवाफ़िक़ तम्बीह करते थे। पर वो हमारी बेहतरी के लिए ताकि हम उस की पाकीज़गी में शरीक हों।” (इब्रानियों 12:9-10)
ऐ ईमानदार अगर तू मुसीबतज़दा है और दुख और रंज की सारी मौजें तुझ पर से गुज़र गई हैं तो ज़रूर इस में कुछ ग़र्ज़ है क्या तू ने उस को दर्याफ़्त किया और नहीं तो दर्याफ़्त करना चाहिए। मुझे ख़ुदा क्यों आज़माता है? क्या वो मुझसे नफ़रत रखता है? नहीं। क्या वो क़हर नाक है? नहीं। क्योंकि उस ने क़सम खाई कि अपने लोगों पर क़हर ना करूँगा। तो फिर क्या सबब है? सबब ये है कि ख़ुदा का ये इरादा है कि तू पाक हो। जैसा वो पाक है वो तुझे गोया जिस्मानी ख़्वाहिशों और ख़ुशियों से खींचेंगे तेरी सोच और ख़सलतें और सारी उम्मीदें अपनी तरफ़ ले जाना चाहता है वो तुझी में उन चीज़ों से जो तुझको आलूदा करती हैं। अलग कर के तुझे साफ़ और आरास्ता किया चाहता है ताकि तू उस के जलाल को ज़ाहिर करता रहे तूने दुआ मांगी कि ऐ ख़ुदा मुझे पाक कर ख़ुदा ने तेरी सुनी और तेरी दुआ क़ुबूल भी की अपने सुलूक के वसीले से जो अभी तेरे साथ करता है। वो तुझे सुधार के तैयार करेगा। ताकि तू ज़मीन पर उस का जलाल ज़ाहिर करे और आख़िरकार मुक़द्दसों के साथ आस्मान पर मीरास पाए। वो रहम से मामूर है और जब उस का इरादा अंजाम तक पहुंचेगा। तो तुझे इक़रार करना पड़ेगा कि मेरी सारी मुसीबतें और तकलीफ़ें हिक्मत व मुहब्बत-ए-इलाही से मुक़र्रर हुईं। पस ख़ुदा का ताबे रह उस की तम्बीह बेउज्र (बहाने के बग़ैर) क़ुबूल कर और उस के सुलूक से जो वो तेरे साथ करता है इन्कार कर वो तुझे फ़र्ज़न्द जान कर तेरी भलाई के लिए तम्बीह देता है और क्या मेहरबानी की बात ये है कि जिस क़द्र वो तुझ पर बोझ डालता है। उसी क़द्र तुझे ताक़त बख़्शता है कि तू अपना बोझ उठा सके। वो तुझे रहम का बर्तन जो उसी हश्मत के लिए उसी से मुक़र्रर किया है बनाएगा और आक़िबत में तू उस का इसलिए शुक्र करेगा कि ज़िंदगी में तूने मेरी तर्बियत की और मुझे चंगा किया।
“वो मशरिक़ी हवा के दिन अपनी सख़्त आंधी से उसे दूर कर देता है उसलिए इस तम्बीह के वसीले से याक़ूब की बदी का कफ़्फ़ारा दिया जाएगा।” (यसअयाह 27:8-9)
मुहासिबा
“मेरी समझ में ज़माना हाल के दुख दर्द इस लायक़ नहीं कि उस जलाल के जो हम पर ज़ाहिर होने वाला है मुक़ाबिल हों।” (रोमियों 8:18)
ईसाइयों के दुख और मुसीबतें अक्सर सख़्त और दराज़ हैं। लेकिन वो कितना ही दुशवार हों ताहम इस लायक़ नहीं कि आने वाले जलाल के मुक़ाबिल हों इस ज़िंदगी में हर एक ईसाई क़ाबिल तर्बियत है। वो उस लड़के की मानिंद है जो मीरास का उम्मीदवार हो के इस उम्मीद के मुताबिक़ कोशिश में रहता है जो तर्बियत वो पाता है। वो अगरचे दर्द अंगेज़ हो मगर इस का नतीजा बरकत आमेज़ होगा। तर्बियत जो दी जाती सो आक़िबत (आख़िरत) में फल लाती है। बल्कि अबदी और बहारे जलाल ख़ुदा ने अपने प्यार करने वालों के लिए वो चीज़ें तैयार कीं। जो ना आँखों ने देखीं ना कानों ने सुनीं और ना दिल में आईं। बदन के लिए ऐसा जलाल होगा। जैसा उस वक़्त ईसा के चेहरे से ज़ाहिर हुआ जब पहाड़ पर उस की सूरत बदल गई। ईसा के लिए भी आइन्दा को एक जलाल होगा और ये इल्म व पाकीज़गी के काम हासिल करने और मसीह से मुशाबेह होने ख़ुदा पर लो लगाए रहने से इलाक़ा रखता है। तब रास्तबाज़ अपने बाप की बादशाहत में आफ़्ताब की मानिंद नूरानी होंगे। लेकिन वो जलाल जो हम पर ज़ाहिर होने वाला है बयान से और समझ से बाहर है। चुनान्चे यूहन्ना कहता है कि “प्यारो अब हम ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हैं और ये तो अबद तक ज़ाहिर नहीं हुआ कि हम क्या कुछ होंगे। पर हम जानते हैं कि जब वो ज़ाहिर होगा। हम उस की मानिंद होंगे।” क्योंकि हम जैसा वो है वैसा ही देखेंगे तुझे तसल्ली और ख़ुश-वक़्ती पैदा हो तेरे लिए जलाल तैयार है और तुझ पर ज़ाहिर होगा। और तेरी अब की मुसीबतें इस लायक़ नहीं कि उस जलाल के जो तुझ पर ज़ाहिर होने वाला है मुक़ाबिल हों।
“जब मसीह जो तुम्हारी ज़िंदगी है ज़ाहिर होगा। उस के साथ तुम भी जलाल में ज़ाहिर हो जाओगे।” (कुलस्सियों 3:4)
ख़ुदा का इरादा
“मेरी मस्लिहत क़ायम रहेगी और मैं अपनी सारी मर्ज़ी पूरी करूँगा।” (यसअयाह 46:10)
ख़ुदा बे इरादा कभी कुछ नहीं करता उस के इरादे मुस्तक़ीम हैं। और सब अंजाम तक पहुंचते हैं उन के रोकने की ख़्वाहिश करना बेफ़ाइदा बल्कि गुनाह है जो गुनेहगार उन को रोके उस को सज़ा मिलेगी। और अगर कोई ईमानदार रोकने चाहे तो तम्बीह पाएगा चाहिए कि हम हमेशा ख़ुदा पर भरोसा रखें। लिखा है कि आदमी के दिल में बहुतेरे मंसूबे हैं पर फ़क़त ख़ुदावन्द का मन्सूबा क़ायम रहेगा। उस ने क़सम खाई है कि मेरे सारे इरादे पूरे होंगे। वो जैसा चाहता है वैसा आस्मान के लश्करों और ज़मीन के दर्मियान काम करता है और कोई नहीं जो उस के हाथ को पकड़ सके और उसे कहे कि तू क्या करता है। ऐ ईमानदार ख़ुदावन्द तुझमें और तेरी रूहानी ख़ुश-वक़्ती में मसरूर है। जो चीज़ तेरी दीनदारी और तेरी हक़ीक़ी ख़ुशी व तसल्ली को बढ़ाती है। वही उस को पसंद है चुनान्चे हवारी कहता है, कि हमारी पल-भर की हल्की मुसीबत क्या है बेनिहायत और अबदी भारी जलाल हमारे लिए पैदा करती रहती है तू ने ख़ुदा के लोगों की मुसीबतों पर ताज्जुब किया होगा। क्या तू अभी तक उन पर ताज्जुब करता रहता है वो हक़ीक़तन इसलिए भेजे जाते हैं कि उनके सबब से मुक़द्दसों का ताज ज़्यादा रौनकदार और ज़ूलजलाल हो लाज़िम है कि हम अपनी मुसीबतों को ख़ास बरकतें जानें चाहिए कि हम दुआ मांगें कि हमारी सारी मुसीबतें हम पर ये तासीर करें कि हम अपने ख़ालिक़ से ना लड़ें और उस की दानाई पर इल्ज़ाम ना रखें और उस की मुहब्बत को रुस्वा ना करें। ये शुक्र का बाइस है ग़म का नहीं कि ख़ुदा की मस्लिहत क़ायम रहेगी। और उस की सारी सिफ़ात ग़ैर-मुतबद्दल (लातब्दील) हैं। मुहब्बत के ख़ुदा की तरफ़ से उस के फ़रज़न्दों की निस्बत सिर्फ़ मुहब्बत आमेज़ मस्लिहत निकल सकती है। ऐ ख़ुदा हमारे दिलों में नेकी की सब ख़ुशी और ईमान के काम को क़ुद्रत से पूरा कर।
“यहोवा की मस्लिहत अबद तक क़ायम रहेगी उस के दिल के मंसूबे पुश्त दर पुश्त।” (ज़बूर 33:11)
ख़ुदा की मर्ज़ी
“तेरी मर्ज़ी जैसी आस्मान पर है ज़मीन पर भी बर आए।” (मत्ती 6:10)
बिलाशक व शुब्हा ख़ुदा की मर्ज़ी दानाई व पाकी से भरी है वो हमसे सिर्फ वही बातें चाहता है जो उस की मुहब्बत और दानाई से हैं जो सुलूक वो हमारे साथ करता है उस का ये नतीजा है कि हम पाक बनें। पहले वो अपना जलाल ज़ाहिर करता तब हमारी अब की और आक़िबत की भलाई कराना चाहता है और इन दोनों इरादों में कुछ इख़्तिलाफ़ नहीं। लिहाज़ा हिक्मत की ये राय है कि हम ख़ुदा की मर्ज़ी को पूरा करने की ख़्वाहिश रखें जो हमारी मर्ज़ी और ख़ुदा की और तो हम क्योंकर ख़ुश हों, चाहिए कि हम छोटे बच्चे हों यानी पहले दर्याफ़्त करें कि हमारे बाप की क्या मर्ज़ी है तब उस मर्ज़ी से ख़ुश रहें। चाहे उस की ये मर्ज़ी हो कि हमको तंगहाली हो या ख़ुशहाली चाहे बीमारी या तंदरुस्ती चाहे दुख या चैन चाहे मौत चाहे ज़िंदगी हर हाल में हम रज़ामंद रहे। बल्कि ख़ुशी करें ऐ ख़ुदावन्द रूह-ए-पाक को भेज कि वो मेरी मर्ज़ी तेरी मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ करे और मेरी ऐसी हिदायत करे कि आइन्दा को ख़ुदा की मर्ज़ी से बख़ूबी वाक़िफ़ हो के उस को बजा लाया करूँ और उसी के मुवाफ़िक़ अपनी सारी ज़िंदगी को गुजारूं तू मेरी ख़ुश-वक़्ती को चाहता है लेकिन जब तक मेरी मर्ज़ी तेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हो मैं ख़ुश-वक़्त हो नहीं सकता तू मेरी मदद कर कि मैं अपनी मर्ज़ी को छोड़ दूं और सिर्फ ये चाहूँ कि ख़ुदा जो चाहे सो करे काश कि मैं पाकीज़गी के उस मर्तबे तक पहुँचूँ कि तेरी मानिंद कहता रहूं कि मेरी मर्ज़ी नहीं बल्कि तेरी मर्ज़ी हो।
“ऐ मेरे बाप अगर हो सके तो ये पियाला मुझसे गुज़र जाये तो भी मेरी ख़्वाहिश नहीं बल्कि तेरी ख़्वाहिश के मुवाफ़िक़ हो।” (मत्ती 26:39)
मसीह हमारा पेशवा
“वो अनदेखे को गोया देख के मज़्बूत बना रहा।” (इब्रानियों 11:27)
मूसा को अक्सर दुख और मुसीबत सहना पड़ा लेकिन इस में कुछ ताज्जुब नहीं क्योंकि ख़ुदा के सब लोगों का यही हाल है। उन के मुख़ालिफ़ यानी दुनिया और शैतान बंदिश कर रहे हैं। बाअज़ वक़्त उन के पड़ोसी उन को सताते हैं, जैसा कि इस्राईल का हाल मिस्र में हुआ कभी-कभी दुनिया के ब्याबान में हो के वो तरह-तरह के इम्तहानों में फंस जाते हैं। और कलीसिया भी वो दुख और तक्लीफ़ से आज़ाद नहीं हैं पर मूसा मज़्बूत बना रहा बावजूद ये कि तकलीफ़ें और मुश्किलात थीं तो भी वो साबित-क़दम रहा और मग़रूर और ज़ालिम बादशाह से भी ना डरा इस का सबब ये था कि वो अनदेखे ख़ुदा के ज़हूर से आगाह था। वो अपनी नज़र ख़ुदा तआला पर रखता था। बादशाह के ग़ुस्से से नहीं बल्कि वो ख़ुदा से डरता था और उस की मेहरबानी का तालिब था और उस से बरकत पा के ख़ुश रहा। जो ख़ुदा हमारे साथ हो तो ख़ैर और नहीं तो हमारी मुसीबतें बढ़ती जाएँगी। ख़ुदा हमारे साथ है अगरचे वो ग़ैर मुरई (वो जो नज़र ना आए) है। लेकिन मौजूद है हम दुख की हालत में ईमान की नज़र से अपने आस्मानी बाप को देख सकते हैं वो हमें सँभालता है और हम अपने पेशवा ईसा पर निगाह रख के मुसीबतों को सह सकते हैं। उस ने उस ख़ुशी के लिए जो उस के सामने थी। शर्मिंदगी को नाचीज़ जान के हमारा ऊज़ी हो कर सलीब को सहा और रूह-उल-क़ुद्स पर तकिया कर के तक्लीफ़ उठाई वो क़ादिर हो के हाल व इस्तकबाल में हमको तसल्ली बख़्शेगा। ऐ मुसीबतज़दा ईसाई अगरचे तू जिस्मानी आँख से ख़ुदा को देख नहीं सकता ताहम वो तेरे साथ है अभी और हर-आन (हर लम्हा) वो तुझे सँभालता है और उस ने वाअदा किया कि मैं तुझे तर्क ना करूँगा। वो वफ़ादार है और अपने कलाम के मुवाफ़िक़ करता रहेगा। पस सब्र किए रह कि वो तेरी मदद करेगा। कुछ देर ना होगी कि वो नज़र आएगा और तुझे सारी मुसीबतों से रिहाई देगा। अपने चेहरा से तुझे मसरूर करेगा। हाल में दुख और तक्लीफ़ हो तो हो पर दरिया-ए-मौत के पार हो के तुझे सलामती और ख़ुश-वक़्ती और सआदत अबदी होगी।
“मुबारक वो आदमी जो आज़माईश की बर्दाश्त करता है इस वास्ते कि जब उस की आज़माईश हो चुकी तो ज़िंदगी का ताज जिसका ख़ुदा ने अपनी मुहब्बत रखने वालों से वादा किया है पाएगा।” (याक़ूब 1:12)
मस्लिहत
“हम हर एक बोझ और उलझाने वाले गुनाह को उतार कर बर्दाश्त के साथ उस दौड़ में जो हमारे सामने आ पड़ी है दौड़ें और ईसा को जो ईमान का शुरू और कामिल करने वाला है ताकते रहें।” (इब्रानियों 12:1-2)
दुनिया एक मैदान है ज़िंदगी दौड़ और हर एक ईसाई दौड़ने वाला। दौड़ की हद पर निशान खड़ा है और ग़ालिबों को इनाम मिलेगा। इस दौड़ में तरह-तरह की रोक-टोक हैं और दौड़ने वालों पर बोझ लदा है, चाहिए कि हर तरह की रोक राह से अलग की जाये और बोझ उतारा जाये। हम लोगों का उलझाने वाला गुनाह जो कुछ हो वही रोक है और उस को अलग करना और मसीह पर निगाह कर के उस दौड़ में जो हमारे सामने आ पड़ी है दौड़ना चाहिए। ईसा हमारे लिए नमूना है हम को उसी की पैरवी करनी चाहिए वो हमारा पेशवा है। चाहिए कि हम क़दम-ब-क़दम उस के पीछे चलें। वो हमारा बादशाह है और हमें उस का ताबे होना चाहिए। वो हमारा बार बर्दार और फ़िद्या कार है। चाहिए कि उसी पर ईमान लाएं, माफ़ी के लिए उस का लहू और रास्तबाज़ी की वास्ते उस की सदाक़त और ताक़त देने के लिए उस का ज़ोर और हमारी सारी हाजतें रफ़ा करने की वास्ते उस की भर पूरी काफ़ी है। चाहिए कि उन्हीं पर तकिया (भरोसा) करें हर दम हर घड़ी हर रोज़ हम ईसा पर निगाह रखें ना-उम्मीदी के वक़्त वो हमको दिल-जमई बख़्शेगा। विस्वास (ईमान, तवक्कुल) के वक़्त वो हमको दिलेर करेगा और जब ना-तवान हैं वो ज़ोर बख़्शेगा और हमारे मरते वक़्त हमको ग़लबा देगा। चाहिए कि तेरी नज़र आख़िर ईसा पर हो वोह कहता है कि मेरी तरफ़ रुजू लाओ और नजात लो ऐ ज़मीन के किनारों के सारे रहने वालो कि मैं ख़ुदा हूँ और मेरे सिवा कोई नहीं कोई उस की तरफ़ रुजू ला के महरूम ना रहा जैसा हर एक जो ब्याबान में पीतल के साँप पर निगाह करता रहा बच गया। वैसा ही सब जो मसीह की तरफ़ नज़र ईमान से देखेंगे। उसी से बच जाऐंगे अपनी सारी इहितयाजों के रफ़ा करने और अपने सारे ख़ौफ़ों से हिफ़ाज़त पाने के लिए ईसा को ताकता रह अपनी आँख उसी पर लगाए रह ऐसा कर के तू दुनिया और शैतान पर ग़ालिब होगा रूहानी दौड़ के निशान तक पहुँचेंगे और हयात-ए-अबदी का ईमान हासिल करेगा।
“उन्हों ने उस की तरफ़ देखा और रोशन हो गए और उन के चेहरे शर्मिंदा हुए।” (ज़बूर 34:5)
जाए-पनाह
“वो मुसीबत के रोज़ मुझे अपने साएबान में छुपाएगा अपने ख़ेमे की पोशीदगी में मुझे पोशीदा करेगा। मुझे चट्टानों की बुलंद पर रखेगा।”
(ज़बूर 27:5)
हर वक़्त उमूमन और ख़तरे के वक़्त ख़ुसूसुन माँ बाप अपने बच्चे की हिफ़ाज़त की फ़िक्र करते हैं। इसी तरह ऐ ईमानदार तेरा बाप जो आस्मान पर है। तेरी मुसीबत और ख़तरे के वक़्त तेरे बचाने के लिए अंदेशा करता है। वो तुझ पर निगाह करके यहां तक तेरी हिफ़ाज़त करेगा कि तुझे अपने साएबान में छुपाएगा साएबान से ख़ेमा शाहाना मुराद है जो फ़ौज के दर्मियान मशहूर बहादुर सिपाहियों से घिरा रहता है। उस में ख़ुद बादशाह रहता है और वह जगह बहुत महफ़ूज़ होती है। ऐ आज़मूदा ये तेरे लिए तसल्ली की बात है कि ख़ुदा अपने साएबान में तुझे छुपाएगा। वहां तेरी सारी एहतियाजें रफ़ा होंगी। और तेरे ज़ख़्मों के वास्ते बल्सान और तेरी मुसीबतों के लिए कामिल तस्कीन मिलेगी। बहुतेरे ईसाइयों को बरसों की दुनियावी ख़ुश-वक़्ती की बनिस्बत एक हफ्ते की मुसीबतों में ज़्यादा तसल्ली और ख़ुदा के ज़हूर की रोशनी मिली है अपने साएबान में ख़ुदा अपने आज़माऐ हुओं के साथ सोहबत रखता है और उस का चेहरा उन पर जलवागर है। और वह सलामती पाते हैं। ऐ मुबारक ख़ुदा मेरी मुसीबत के रोज़ मुझे अपने साएबान में छिपा अपने ख़ेमे की पोशीदगी में मुझे पोशीदा रख और मुझे ये इनाम दे कि मैं उन की सआदत जिनकी ज़िंदगी मसीह के साथ ख़ुदा में छिपी हुई है, पहचानूं। ऐ मेरी जान हर रंज व तक्लीफ़ में अपने ख़ुदा की तरफ़ रुजू कर उस के साथ हुज्जत कर के मिन्नत कर कि मेरी हिफ़ाज़त किया कर अपने पैरों के साये तले मुझे छिपा तब तुझको कहना पड़ेगा कि ऐ ख़ुदा तेरी मेहरबानी क्या ही बेशक़ीमती है। और बनी-आदम तेरे पैरों के साये तले पनाह ले सकते हैं।
“ऐ ख़ुदावन्द पुश्त दर पुश्त हमारी जाए-पनाह तू ही रहा है।” (ज़बूर 90:1)
रफ़ीक़ अज़ीम
“वो मुझे पुकारेगा। और मैं उस की सुनूँगा। तंगी में मैं उस के साथ रहूँगा। मैं उसे छुड़ाऊंगा और उसे इज़्ज़त बख्शूंगा।” (ज़बूर 91:15)
कभी-कभी ईमानदारों को ये ख़याल होता है कि कोई हमारे साथ हम्दर्दी नहीं करता हमें अकेला अपना बोझ उठाना पड़ता है। कोई हमारी फ़िक्र नहीं करता शायद इस फ़र्याद की वजह ईसाई भाईयों की ग़फ़लत हो जो लोग अपने को अकेला जानते हैं उन को ये सलाह दी जाती है कि ऐ भाइयो ! घबराओ मत ईसाइयों की सोहबत और दिल सोज़ी बहुत ही दिल पसंद है। इस में कुछ शक नहीं लेकिन तो भी तुम्हारे लिए ये सोहबत ज़रूर नहीं है याद करो कि ख़ादिम की मुलाक़ात करने से खुदावंद की सोहबत कहीं बेहतर है और हर एक आज़माऐ हुऐ ईमानदार की निस्बत उस ने कहा है कि तंगी में मैं उस के साथ हूँ लेकिन इस को मत भूलियो कि सिर्फ ईमान से ख़ुदावन्द का ज़हूर पहचाना जाएगा अक्सर ऐसा होता है कि जब ईमान की कमज़ोरी के सबब से उस की हुज़ूरी से ख़ुशी हासिल नहीं होती है, लेकिन तो भी इस से तरह-तरह के फ़ायदे होते हैं अगर हमको ख़ुशी ना मिले तो भी अपने वाअदे के मुताबिक़ वो अपने लोगों के साथ है। अगरचे हमारी बे-एतिक़ादी के बाइस उस की हुज़ूरी तसल्ली ना दे तो भी वो ताक़त देती है और हमें बुराई से बचाती है। ऐ ख़ुदावन्द तू हमेशा अपने लोगों के साथ उन की मुसीबतों में रहा है अब भी उन के साथ रहता है। तो छः (6) मुसीबतों से उन्हें छुड़ाएगा, बल्कि सात (7) में से एक भी उनको ज़रर ना पहुँचाएगी। तेरे कलाम के मुताबिक़ हम जानते हैं कि तेरा फ़ज़्ल काफ़ी है और हमारे ज़माने के मुवाफ़िक़ हमारी क़ुव्वत है। हाल की मुसीबतों में हमारे साथ हो और हमारा ईमान इसलिए ज़्यादा कर कि हम तेरी हुज़ूरी से वाक़िफ़ हो कर तुझमें मसरूर हों हम चाहते हैं कि तेरी मुहब्बत दर्याफ़्त करें और तेरे चेहरे की रोशनी से रोशन हो जाएं, यहां तक कि मुसीबतों की आग में भी हम तेरा जलाल ज़ाहिर कर सकें। ऐ ईसा जैसा तू जलती भट्टी में तीन (इब्रानियों) के साथ रहा वैसा ही हर एक तापने वाली आग में जो आज़माने के लिए हम पर पड़ी हमारे साथ रह।
“ना डर क्योंकि मैंने तुझे ख़लासी बख़्शी है। मैंने तेरा नाम ले के तुझे बुलाया है। तू ही मेरा है जब तू पानियों में गुज़र करेगा तब मैं तेरे साथ हूँगा। और घरों में तब वो तुझे ना दबाएगी। जब तू आग में चलेगा तब तुझे आँच ना लगेगी और शोला तुझे ना जलाएगी।” (यसअयाह 43:1-2)
हाल का आराम
“जिस दिल का तकिया (भरोसा) तुझ पर है तू उसे सही सलामत रखेगा। क्योंकि वो तेरा मुअतक़िद (अक़ीदतमंद) है।” (यसअयाह 26:3)
जो शख़्स मुसीबत के दिन में ख़ुदा ही पर तकिया (भरोसा) करता है। वो ख़ुश-वक़्त और साबित-क़दम रहता है। ख़ुदा का अहद ईमानदारों की जाए-पनाह है उस की तरफ़ हम दौड़ सकते और उसी से सलामती पा सकते हैं जो बावर करता है कि ख़ुदा मेहरबान और रहीम है और नेकी और सच्चाई से मामूर और ये भी जानता है कि क़ादिर-ए-मुतलक़ का यह इरादा है कि उस की सिफ़ात मज़्कूरह मेरे तजुर्बे में ज़ाहिर हों वही तसल्ली पाएगा। और सारे हादिसों में क़ायम रहेगा। अगर कोई दिली आराम व सलामती चाहे तो चाहिए कि सारी मख़्लूक़ात और वाक़ियात से नज़र फेर के बराबर ख़ुदा ही पर जैसा वो मसीह में ज़ाहिर है निगाह रखे। चाहिए कि उस के दिल में ये ख़याल पैदा हो कि यक़ीनन ख़ुदा मुहब्बत है और ये भी ज़रूर है कि उस की सच्चाई और वफ़ादारी और बे-तब्दीली पर कामिल भरोसा रखे और तब हर तरह से सलामती होगी, लेकिन जिस वक़्त ख़ुदा को छोड़ के ईमानदार और किसी की तरफ़ देखेगा उसी वक़्त घबराहट और अंदेशा दिल में पैदा होगा। पतरस जब समुंद्र पर चलता था, तो जब तक उस की नज़र ईसा पर लगी रही वो साबित-क़दम रहा पर जब वो हवा का शोर सुनने और लहरें देखने लगा तब डूबने लगा। हमारा भी वही हाल है। पस चाहीए कि हम ताक़त मांगें ताकि हर वक़्त ख़ुदा पर भरोसा रखें और उसी पर तकिया किया करें ऐ मेहरबान ईसा तू ने अपना हाथ बढ़ा के डूबते हुए पतरस को बचाया हर वक़्त तू हमें बचा और अपने दस्त (हाथ) अबदी हमेशा हमारे नीचे रख।
“मेरी उम्मत सलामती के मकान में और इम्तिहान की सुकूनत-गाहों और चैन की आराम-गाहों में रहेगी।” (यसअयाह 32:18)
नज़र मुहब्बत
“ख़ुदावन्द ने मेरा दुख देख लिया।” (पैदाइश 29:32)
जब ख़ुदा ने लियाह को बेटा दिया तब औरत मज़्कूर ने ये कहा कि ख़ुदावन्द ने मेरा दुख देख लिया लावलदी (जिसकी कोई औलाद ना हो, बेऔलाद) उस की मुसीबत का बाइस थी। पर अब ख़ुदा ने उस पर निगाह की और उसे बरकत दी ख़ुदावन्द की क़ुद्रत की नज़र से बड़े-बड़े माजरे होते हैं। उसी के सबब से मिस्र के लोग घबराहट और तक्लीफ़ से भर गए। और उसी से बनी-इस्राईल ने आराम और तसल्ली पाई। यहोवा की आँखें सादिक़ों की तरफ़ हैं और उस के कान उन की फ़र्याद की तरफ़। ऐ दर्द-रसीदा ईसाई तेरी तरफ़ ख़ुदा की आँखें लगी हैं वो तेरा सारा हाल पहचानता है। वो रास्तबाज़ों की तरफ़ से चश्मपोशी नहीं करता तू उस से छिप नहीं सकता उस की रहमत की आँख तुझको देखती है और उस की क़ुद्रत का हाथ तेरी तरफ़ फैला है वो उस वक़्त भी तेरे दुख के हाल से बख़ूबी वाक़िफ़ है और सिर्फ तेरी बेहतरी के लिए तेरी मदद करने में देर करता है चूँकि उस की आँखें तेरी तरफ़ हैं। चाहिए कि तेरी आँखें भी उस की तरफ़ लगी रहें और तेरी नज़र ईमान उस की नज़र रहमत से मिल जाये हाँ आँसूओं के साथ भी उस की तरफ़ निगाह कर और दाऊद की मानिंद कहता रह कि अपने नाम के आशिक़ों के हक़ के मुताबिक़ मेरी तरफ़ मुतवज्जोह हो और मुझ पर रहम कर याद कर कि जब ईसा ने अपने शागिर्द पतरस पर निगाह की तब वह शागिर्द पशेमान (शर्मिंदा) और ताईब हुआ और जब इस्तीफान (इस्तिफ़नुस) पर ईसा मुतवज्जोह हुआ तो कामिल दिलेरी उस मज़्लूम में पैदा हुई। ईसा का नज़र करना तेरे ईमान को मज़्बूत करेगा। और तेरी उम्मीद को तरो-ताज़ा बनाएगा। और तेरी हिम्मत को बढ़ाएगा। ऐ ईसा मैं ज़रूर याद रखूं कि तेरी आँख मुझ पर लगी है और तू मेरी भलाई चाहता है और तेरी नज़र मुहब्बत से मैं ख़तरों और दुश्मनों से बच जाऊँगा।
“और ख़ुदा ने बनी-इस्राईल पर नज़र की उन के हाल को मालूम किया।” (ख़ुरूज 2:25)
बे-तब्दील दोस्ती
“वो छः मुसीबतों से मुझे छुड़ाएगा। बल्कि सात में से एक भी तुझको ज़रर ना पहुँचाएगी।” (अय्यूब 5:19)
ऐ अज़ीज़ो ! क्या ख़ुदावन्द ने अक्सर औक़ात तुझको रिहाई नहीं दी क्या तू गवाही नहीं दे सकता कि सादिक़ चिल्लाए और यहोवा ने सुना और उन की सारी तंगियों से उनको रिहाई बख़्शी अगली रिहाई आइन्दा की रिहाइयों का ज़ामिन है अगरचे मुसीबतें बार-बार होंगी। लेकिन रिहाईयां भी मुसलसल आयेंगी। सात (7) मर्तबा तक पहुंचना कमालियत का निशान है और इस शुमार की इस्तिमाल से मालूम होता है कि ख़ुदा हमें कामिल मख़लिसी देगा और जहां तक मदद हमारे लिए दरकार हो मदद करता रहेगा। और ये सोचो कि जब उस ने हमको हमारी मुर्दा सी हालत से रिहाई दी और हमें ज़िंदा किया और अपने आपको हम पर ऐसा ज़ाहिर किया कि हम उस के मक़्बूल हुए और अपने जलाल बढ़ाने के लिए हमें मख़्सूस कर लिया तो क्या ये नाशुक्री की बात नहीं कि हम उस की वफ़ादारी पर शक लाएं और यक़ीन ना करें कि वो आख़िर तक हमको बचाएगा। गुनाहगारों का बचाना उस के नज़्दीक कुछ मुश्किल नहीं है। क्योंकि उस की दानिश बेहद और उस की क़ुद्रत बेपायाँ है। ख़ुदा में मुहब्बत का कुछ ख़लल नहीं है क्योंकि उस का प्यार अज़ल से ले के अबद तक ग़ैर-मुतबद्दल है पर ख़ुदा के नज़्दीक हमारे बचाने में कोई मना करने वाला नहीं है। क्योंकि उस ने हमें फ़र्ज़न्द ठहराया और उस का जलाल हमारे हाल और आइन्दा की बेहतरी के साथ ताल्लुक़ रखता है ख़ुदा की दस्त-गीरी की निस्बत दाऊद ने हमारे लिए एक नमूना रखा है ये कह के कि ये मुसीबतज़दा चिल्लाया और यहोवा ने सुना और उसे उस की सारी तंगियों से बचाया हर एक के साथ जो ख़ुदा की तरफ़ देखता वैसा ही होगा। आख़िरकार वो गुनाह और शैतान और दुनिया से रिहाई पाएगा और रोज़-ए-क़यामत में उस का बदन सड़ने से बच कर और रूह से मिलकर जलाल में दाख़िल होगा। इसी तरह हम खुदावंद के साथ हमेशा रहेंगे।
“उस ने हमको ऐसी बड़ी हलाकत से छुड़ाया और छुड़ाया भी है हमको उस से ये उम्मीद है कि वो आगे को भी छुड़ाएगा।” (2 कुरिन्थियों 1:10)
नतीजा मुतयक़्क़न
“हम जानते हैं कि सारी चीज़ें उनकी बहाली के लिए जो ख़ुदा से मुहब्बत रखती हैं। मिल के फ़ायदा बख़्शती हैं ये वो हैं जो ख़ुदा के इरादे के मुवाफ़िक़ बुलाए गए।” (रोमियों 8:28)
वाह क्या ही मुबारक ये बात है कि सारी चीज़ें ख़्वाह अच्छी ख़्वाह बुरी ख़्वाह रूहानी ख़्वाह जिस्मानी हों सारी चीज़ें हमारी भलाई में काम आती हैं। वो सब मिल के फ़ायदा बख़्शती हैं जैसा कि ज़ंजीर में एक कड़ी दूसरी के साथ मेल रखती है और सब मिल कि ज़ंजीर हो जातीं हैं वैसा ही ये सारी चीज़ें एक दूसरे की मदद करती हैं। और सब मिल के हमारे हाल और आइन्दा की भलाई के लिए फ़ायदा बख़्शती हैं। वो ये फ़ायदा बख़्शती हैं कि गुनाह को रोकती हैं और हमारी पाकीज़गी को बढ़ाती हैं। वो हमको दुनिया से खींच के आस्मान की तरफ़ रुजू करती हैं। वो हमारी बड़ी ख़्वाहिशों को मिटा देती हैं और उन के एवज़ रूहानी ख़्वाहिशें उभारती हैं। ख़ुदा ने वाअदा किया है कि मैं अपने फ़ज़्ल से उन को बुलाऊँगा। और उस ने अपने क़ौल के मुताबिक़ किया भी है रूह-ए-पाक की मार्फ़त हमारे दिलों में उस की मुहब्बत मौजूद है और इस मुहब्बत से मुहब्बत ख़ुदा और इंसान की तरफ़ मुहब्बत पैदा होती है। वो अज़ीज़ फ़र्ज़न्द जान कर हमारी भलाई चाहता है और अपने इंतिज़ाम व कलाम व रूह के वसीले से ऐसा करता है कि जो वाक़ियात पेश आते हैं। वो हमारा नुक़्सान नहीं करते बल्कि बरअक्स इस के हमको फ़ायदा बख़्शते हैं। चुनान्चे हर एक आज़माईश और इम्तिहान और दुख और लज़्ज़त और नुक़्सान और मुहासिल के हक़ में हम कह सकते हैं कि ये हमारी भलाई के लिए हैं। ऐ मेरी जान जब तुझे रंज व ग़म और दुख और तक्लीफ़ के अंधेरे पेश आए तो इस बात को ना भूल कि जिस वक़्त तेरी तकलीफ़ें ज़्यादा हैं। उस वक़्त भी सारी चीज़ें मिलकर तेरी भलाई के लिए फ़ायदा बख़्शती हैं हाल की चीज़ें इस्तिक़बाल की चीज़ों से इलाक़ा रखती हैं और तेरी हल्की मुसीबतें तेरे लिए एक बेनिहायत और अबदी और बड़ा जलाल पैदा करती रहती हैं। चुनान्चे लिखा है कि रास्तबाज़ों से कहो की तुम्हारा भला होगा।
“मैं यक़ीनन जानता हूँ कि उन्हीं का भला होगा। जो ख़ुदा से डरते हैं और उस के हुज़ूर कांपते हैं।” (वाइज़ 8:12)
आराम
“हासिले कलाम ख़ुदा के लोगों के वास्ते सबत का आराम बाक़ी है।” (इब्रानियों 4:9)
थके मांदे को आराम पाना क्या ख़ुश मालूम होता है पर तू भी ख़ुदावन्द के लोगों को यहां बहुत थोड़ा सा आराम मिलता है लेकिन ग़म आलूदा व शिकस्ता रूह को ख़ुदा के हुज़ूर में चैन मिलेगा और जो बदन अक्सर दुख में रहता है वो गोर (क़ब्र) में सारे दुख और दर्द से रिहाई पाएगा। मांदगी ज़माना हाल से इलाक़ा रखती है लेकिन आराम अबद तक रहेगा। दरिया-ए-मौत के उस पार दुखी सर और थके बाज़ू या आज़ुरदा-ए-दिल (नाख़ुश, रंजीदा) नहीं फिर आस्मान का आराम इसलिए ज़्यादा दिल पसंद होगा कि यहां मेहनतें सख़्त थीं। अभी अपने वादों के वसीले गोया अपनी गोद में ईसा हमें फ़राग़त देता है। पर वो जल्द हमें अपने बाप के घर में पहुंचाएगा। और कामिल आराम बख़्शेगा। वहां क्या ही ख़ूब आराम होगा। गुनाह से, दुख से, लड़ाई से, मेहनत से, रंज से रिहाई मिलेगी बल्कि ऐसा आराम होगा कि जिसमें ईसा आप मसरूर रहता है। हम ना सिर्फ उस के साथ बल्कि उसी की मानिंद आराम पाएँगे। उस के जलाली हुज़ूर में कितने जो यहां थके-माँदे थे। आराम लेते हैं उनका आराम बरक़रार होगा। जो यहां किस को आराम मिले तो अक्सर औक़ात घबराहट और ख़तरे पेश आते हैं लेकिन वहां कमाल चैन और आराम मिलेगा। बल्कि बढ़ता चला जाएगा। ख़ुदा का शुक्र हो उस फ़राग़त के लिए जो हम मसीह के वसीला पाते हैं। हज़ारों शुक्र उस अबदी आराम के लिए जो मसीह के साथ हम पाएँगे। ऐ तू जो थका है अपने दुख ख़याल में मत ला और मसीह पर निगाह कर के याद रख कि तेरे लिए आराम बाक़ी है थोड़ी देर बाद तुझको आराम मिलेगा। थोड़े अर्से बाद तू ईसा को देखेगा और उस की मुहब्बत के साथ मसरूर होगा। और अबद तक उस के हुज़ूर में कामिल चैन और फ़र्हत हासिल करेगा। हाल में तुझको थकाई (थकावट) और नातवानी (कमज़ोरी) और दुख हो तो हो पर इस्तिक़बाल में तेरे लिए आराम और सलामती और सआदत कामिल होगी।
“तुम उस आराम और मीरास तक जो ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुमको देता है हनूज़ नहीं पहुंचे।” (इस्तिस्ना 12:9)
तैयारी
“तुम सब तैयार रहो।” (यशूअ 8:4)
लाज़िम है कि ईसा पर वाक़ेअ के लिए तैयार हो उस के लिए तदबीर की गई और वाअदा किए हुए नमूने पेश किए गए और नसीहतें मिलीं। ख़ुदावन्द का फ़र्मान ये है कि तैयार हो चाहिए कि हम तक्लीफ़ात पाने और उन्हें बर्दाश्त करने और उन से फ़ायदा हासिल करने को तैयार होना चाहिए कि मौत के लिए तैयार हों। मौत ज़रूर आएगी पर क्या जानें कि कब या किस तरह से आएगी। पस लाज़िम है कि कमर बांध के और आस्मानी बातों पर दिल लगा कर तैयार हों चाहिए कि मसीह की आमद के लिए तय्यार हों जिस तरह वो आस्मान पर गया उसी तरह फिर आएगा और हम उस को रूबरू देखेंगे। लाज़िम कि हमारी उम्मीदें और आरज़ूऐं और इंतिज़ार उस की आमद पर होना चाहिए कि हम उस के फिर आने के ऐसे मुंतज़िर रहें जैसे राह गुमकर्दा राह का और पासबान सुबह का और दूल्हन आने वाले दूल्हे की और क़ैदी रिहाई का मुंतज़िर है। ऐ भाई मैं तुझसे कहता हूँ कि तैयार रह ईसा आता है क्या जानें कि जल्द ये आवाज़ सुनी जाये कि देख दूल्हा आता है उस के मिलने को निकल काश कि उस वक़्त हमारी कमरें बंधी हों और हमारी मशअलें रोशन हों तब ख़ुशी से पुकारेंगे कि ऐ ख़ुदावन्द ईसा जिल्द आ जो ऐसा तैयार है वो काम करने और बेकार रहने और मरने और जीने और यहां रहने और मसीह के पास जाने को तैयार है। ऐ रूह-उल-क़ुद्स अपने लोगों के दिल पर नाज़िल हो ताकि ये तेरी तासीर से सर-नव पैदा हो कर मसीह के आने की बड़ी आरज़ू व कोशिश से मुंतज़िर रहें। क्या ही मुबारक ये बात है कि ख़ुदावन्द आएगा ऐ ईसा ख़ुदावन्द आ।
“इसलिए तुम भी तैयार रहो क्योंकि जिस घड़ी तुम्हें गुमान ना हो इब्ने-आदम आएगा।” (मत्ती 24:44)
शरीरों की हालत का बयान
“वोह इन्सान की मानिंद दुख में नहीं हैं। और आदमजा़द के साथ मार नहीं खाते।” (ज़बूर 73:5)
अक्सर मुसीबतज़दा ईसाई बदकारों के अहवाल पर ग़ौर कर के ताज्जुब करते हैं कि इन बेदीनों के साथ ख़ुदा का कैसा सुलूक है। आसेफ़ की मानिंद सिर्फ अपनी अक़्ल से इन्साफ़ कर के वो ठोकर खाते हैं और जब तक आसेफ़ के मानिंद वो मुक़द्दस में नहीं जाते ये भेद उन पर नहीं खुलता अलबत्ता इस में शक की जगह नहीं कि अक्सर दीनदार तंगहाल और बदकार ख़ुशहाल हैं पहले बीमार और दूसरे तंदुरुस्त वो बदशक्ल और ये ख़ूबसूरत रास्तबाज़ कम्बख़्त और दग़ाबाज़ ख़ुश-वक़्त हैं ये क्यूँ-कर है क्या इंतिज़ाम इलाही नहीं है कि ख़ुदा अपनों को प्यार नहीं करता हाँ प्यार तो करता है लेकिन याद रखना चाहिए की जो सुलूक ख़ुदा यहां अपने लोगों के साथ करता है सो जल्द मुबद्दल (तब्दीलशूदा) होने वाला है गुनेहगारों पर हसद ना कर और उन की राहों पर चल क्योंकि हाल की ख़ुशी के सिवा उस की कोई दूसरी नहीं वो अभी अच्छी चीज़ें और ईमानदार बुरी चीज़ें पाता है। बदकार ऐश व इशरत में मशग़ूल हो तो हो और इस दुनिया की दौलत को हासिल करे तो करे मगर उस को याद रखना चाहिए कि बाद इस के अदालत होगी। चुनान्चे लिखा है कि वो ग़रीब मर गया और फ़रिश्तों ने उसे इब्राहिम की गोद में रखा और दौलतमंद भी मरा और गाढ़ा गया उस के निजाम और अबदी हिस्से का मुक़ाबला कर, अगर ख़ुदा ने तुझे तंगहाल और मुसीबत पज़ीर लोगों में शुमार किया हो तो तुझे उस का शुक्र करना वाजिब है हाल की मुसीबत पर लिहाज़ ना कर बल्कि याद रख कि गुनेहगार फिसलनी जगहों में खड़े हैं और जल्द तबाही ही में गिरा दिए जाऐंगे। ऐ गुनेहगार तेरी कामयाबी तेरे लिए एक जाल है तू अब अपनी अच्छी चीज़ें लेता है लेकिन अगर तू बग़ैर मसीह पर ईमान लाए मर जाये तो तेरे लिए फ़क़त रोना और वावेला और दाँत पीसना बाक़ी है। ईसा के पास ज़िंदगी और सलामती के हासिल करने के लिए दौड़ के जा।
“कि हम ना उन चीज़ों पर जो देखने में आती हैं बल्कि उन चीज़ों पर जो देखने में नहीं आतीं नज़र करते हैं क्योंकि जो चीज़ें देखने में आती हैं चंद रोज़ की हैं और जो देखने में नहीं आतीं हमेशा की हैं।”
(2 कुरिन्थियों 4:18)
मसीह की तारीफ़
“तू बनी-आदम से अज़-हद हसीन व जमील है तेरे लबों में लुत्फ़ उंडेला गया इसलिए ख़ुदा ने तुझे अबद तक बरकत दी है।” (ज़बूर 45:2)
ऐ पढ़ने वाले मैं एक शख़्स की तारीफ़ करना चाहता हूँ जो तेरी मुहब्बत के लायक़ है और तेरे अहवाल से मुताबिक़त रखता है इन्सान की ग़ैर-फ़ानी रूह बहुतेरी एहतियाजें और आरज़ूऐं रखती है और ईसा के सिवा कोई मख़्लूक़ उन को रफ़ा नहीं कर सकता जो कुछ तुझे दरकार हो उस के पास है तेरे सारे इश्तियाक़ (शौक़) वो बर लाएगा फ़क़त मसीह इस काम के लिए काफ़ी है। जो मैं कहता हूँ सो तजुर्बे से कहता हूँ। मेरी ऐसी हाजतें और इश्तियाक़ थे उस के रफ़ा करने वाले को मैं ढूँढता फिरा पर सिर्फ ना उम्मीदी पाई आख़िर को मैंने ईसा पर लिहाज़ किया। मैं ने उस का कलाम पढ़ा और उस पर भरोसा रखकर यक़ीन किया कि वो मेरे मतलब के मुवाफ़िक़ है। लिहाज़ा उस की तरफ़ रुजू किया उसी पर ईमान लाया उसी से आराम पाया मुझे सलामती व ख़ुशी मिली बस वो मेरा है और मैं उस का हूँ ता-अबद वो मेरा रहेगा। और मैं उस का रहूँगा। उस वक़्त उस से मुद्दत दराज़ हुई और उस तमाम अर्से में ईसा की किफ़ायत बढ़ती चली गई है और मुझे ज़्यादा तर यक़ीन हुआ कि वो मेरे सारे मक़्सूद में काम आएगा। उस को पहचानना उस को प्यार करना है उस पर ईमान लाना नजात पाना है जब तक कोई उस की मुहब्बत की शीरीनी ना पाएगा। तब तक उस की सोहबत की मह्ज़ ख़ुशी जान नहीं सकता। उस की फ़ज़ीलत में तुम पर ज़ाहिर किया चाहता हूँ और मेरी ये ग़र्ज़ है कि उस की चंद सिफ़तों का इशारा करूँ और तुम पर साबित कर दूँ कि वो तुम्हारे हाल के मुताबिक़ है और मेरी ये उम्मीद है कि उस की खूबियों से वाक़िफ़ हो कर तुम उस पर ईमान लाओ और उस में मिलकर हर तरह से बढ़ते जाओ।
“उस का नाम अकेला बुलंद है उस का जलाल ज़मीन व आस्मान के ऊपर है।” (ज़बूर 148:13)
ईसा बचाने के क़ाबिल है
“वो उन्हें जो उस के वसीले ख़ुदा के हुज़ूर जाते हैं आख़िर तक बचा सकता है।” (इब्रानियों 7:25)
बड़े गुनेहगारों के लिए बड़ा बचाने वाला चाहिए जब कोई शख़्स रूह-ए-पाक के वसीले से गुनाह का क़ाबिल होता है वो अपना भरोसा किसी मज़्बूत बुनियाद पर डालना चाहता है जिस क़द्र गुनाह की पहचान बढ़ती है उस क़द्र आक़िबत (आख़िरत) बनाने की फ़िक्र होती है। जब ऐसी फ़िक्र पैदा होती है तब तरह-तरह की तदबीरें इस्तिमाल की जाती हैं, लेकिन कोई काम नहीं आती कभी-कभी बिल्कुल नाउम्मीदी का सोच पैदा होता है। पर ऐसा सोच शैतान की तरफ़ से है और जो इस को जगह देता है वो मसीह को बे-हुरमत करता है और अपनी जान को तक्लीफ़ देता है ईसा के सिवा और कोई बचा नहीं सकता सिर्फ उस के कामिल कफ़्फ़ारे से नजात होती है। हमारे आँसू और दुआएं और मेहनतें हमें बचा नहीं सकतीं ईसा बचा सकता है आस्मान के तले कोई ऐसा मख़्लूक़ नहीं है जिसे वो बचा नहीं सकता चूँकि उस की क़ाबिलियत उस की उलूहियत और उस की क़ुर्बानी की लियाक़त के साथ इलाक़ा रखती है। लिहाज़ा वो बचा सकता है क्योंकि ख़ुदा हो के वो सब कुछ कर सकता है और उस की क़ुर्बानी की लियाक़त बेहद है ईसा का कफ़्फ़ारा इस क़ाबिल है कि वो सारे आदमियों के गुनाहों को मिटाए क्योंकि वो मौजूद बेपायाँ है और नामुम्किन है कि उस का कफ़्फ़ारा महदूद हो। पस वो गुनेहगारों के बचाने के लिए वो कितने ही क्यों ना हों और उन के सारे गुनाहों के मिटाने के लिए काफ़ी है। ऐ पढ़ने वाले ! ईसा तुझे बचा सकता है बल्कि अगर तू ईमान लाए तो उस वक़्त तुझे बचाएगा और तेरे बचाने से उस को इज़्ज़त मिलेगी। कुछ शक मत ला क्योंकि वो क़ादिर-ए-मुतलक़ है मत डर क्योंकि उस का लहू सारे गुनाहों से पाक करता है।
“ये कौन है मैं सदाक़त में कलाम करने वाला बचाने के लिए क़वी हूँ।” (यसअयाह 63 बाब 1)
ईसा गुनेहगारों को बचाना चाहता है
“अगर तू चाहे तो मुझ पाक कर सकता है मैं चाहता हूँ तू पाक हो।”
(मर्क़ुस 1:40-41)
अक्सर लोग मान लेते हैं कि ईसा इस क़ाबिल है कि हमको बचाए लेकिन उस की रजामंदी पर शक रखते हैं ये ग़ैर-मुनासिब है क्योंकि जितनी दलीलें उस के बचाने की क़ाबिलियत पर हैं उतनी ही उस की रजामंदी पर भी हैं। उस के कलाम से मैं जानता हूँ कि मसीह मुझको बचा सकता है और वही कलाम जिससे उस की क़ाबिलियत जानी जाती है मुझे साफ़-साफ़ बताता है कि वो बचाना भी चाहता है। उस कौड़ी को शक आया कि वो मुझे चंगा करेगा या नहीं क्योंकि उस के चंगा करने का कुछ वाअदा ना था। वो अपनी तंगहाली में आया और जिस दम को अज़ रुए ईमान के ईसा की क़ाबिलियत का क़ाइल हुआ उसी दम जान लिया कि वो मुझे बचाना चाहता है और फ़ौरन दोनों बातें उस पर साबित हुईं। अज़ल ही से मसीह गुनेहगारों के बचाने का शौक़ रखता है और जब तदबीर इलाही कामिल हुई तो वो दुनिया में आया और शरीअत का फ़रमांबर्दार हो के और दुख उठा के नजात की राह खोल दी ज़मीन पर उस ने मुसीबत ज़दों के साथ हम्दर्दी की और सभों पर ज़ाहिर किया कि मैं तुम को हर तरह की बुराई से रिहाई दूंगा। और जो मेरे पास आते हैं उन्हें निकाल ना दूंगा उस का दिल रहीम और दर्द-मंदी से भरा था। हर एक की मदद करता रहा जो किया हमारी नसीहत के लिए किया कि जैसा उस वक़्त लोगों को जिस्मानी नेअमतें दीं वैसा ही अब भी रूहानी बरकतें देने को तैयार है। जिसने जिस्मानी बीमारो मुसीबत ज़दों को बचाया मुहाल है कि वो जहन्नुमी मौत से ना बचाए, पर ये बात ऐसी साफ़ व रोशन है कि इस के लिए कुछ दलील की ज़रूरत नहीं, चुनान्चे पाक कलाम में लिखा है कि जो कोई चाहे आब-ए-हयात मुफ़्त ले। ऐ पढ़ने वाले अगर ईसा के वसीले से बचना तुझे मंज़ूर है तो वो तुझे बचाएगा। और तेरा मंज़ूर होना उस का सबूत है क्योंकि अगर तुझे बचाना ना चाहता तो तेरे दिल में ये ख़्वाहिश पैदा ना करता।
“तुम क्यों ऐसे ख़ौफ़नाक हुए और काहे को एतिक़ाद नहीं रखते।”
(मर्क़ुस 4:40)
ईसा गुनेहगारों पर मेहरबानी करने को तैयार है
“यहोवा तुम पर मेहरबान होने के वास्ते इंतिज़ार करेगा।”
(यसअयाह 30:18)
अगर हमको ख़ुदावंद के लिए इंतिज़ार करना पड़ता तो कुछ ताज्जुब नहीं अजीब बात ये है कि हमारे लिए वो इंतिज़ार करता है। ख़ुदावन्द ईसा तख़्त फ़ज़्ल पर बैठ के गुनेहगारों को बुलाता है और मेहरबानी करने के लिए वो गुनेहगारों को माफ़ी और सलामती और हयाते अबदी बख़्शना चाहता है। ये अजीब तरह का फ़ज़्ल है। आज ईसा इंतिज़ार करता है शायद ऐ पढ़ने वाले तू भी ऐसा शख़्स हो कि ईसा तेरे लिए इंतिज़ार करता है। इस वास्ते वो ग़ज़ब करने में देर करता है कि तू अपनी हमाक़त से वाक़िफ़ हो जाये और अपनी बुराई से बाज़ आए और अपनी रास्तबाज़ी का भरोसा छोड़ के और उस की रास्तबाज़ी की उम्मीद रख के सिर्फ उसी पर ईमान लाए अगर उस के पसंद के लायक़ तेरे पास कुछ है तो वो यही है कि तू मुफ़्लिस और नाचार और गुनेहगार है। वोह तुझको मोहलत देता है कि तू हर एक बेकार भरोसे को छोड़ के कामिल रिहाई के लिए उस के पास आए वो तुझे बरकतें देने पर तैयार है। तुझे क़ुबूल किया चाहता है। बार-बार उस ने तुझे बुलाया है अब भी तुझे बुलाता है। उस के इंतिज़ाम में जो कुछ वाक़ेअ होता है और जो कलाम तू सुनता है और जो कुछ तेरी तमीज़ को दहशतनाक मालूम होता है और बाइबल का सारा मज़्मून ये सब ईसा की तरफ़ से दावतें हैं। सभों से तुझे ये ख़बर मिलती है कि ईसा तुझे बचाना चाहता है और इस सबब से वो सज़ा देने में सब्र करता है बल्कि तुझे कहता है कि तेरी नादानी और सरकशी और बेईमानी के सिवा तेरे और हयात-ए-अबदी के दर्मियान और कुछ रोक नहीं है मसीह की मुहब्बत क्या ही अजीब है। अगरचे माँ बड़ी आरज़ूए रखती कि मेरा भटका हुआ बेटा मेरी गोद में फिर आए लेकिन उस की मुहब्बत से ईसा की मुहब्बत ज़्यादा और मज़्बूत है। फ़क़त मसीह ऐसा ला-सानी प्यार दिखा सकता है। उस की मेहरबानी में कुछ शक मत ला।
“वो अभी दूर था कि उसे देख के उस के बाप को बड़ा रहम आया और दौड़ के उस को गले लगा लिया और चूमा।” (लूक़ा 15:20)
ख़ुदा का मसीह में ज़ाहिर होना
“ख़ुदा ने मसीह में हो के दुनिया को अपने साथ यूं मिला लिया कि उस ने उनकी तक़सीरों को उन पर हिसाब ना किया।” (2 कुरिन्थियों 5:19)
अगर हम साफ़ व सरीह और ख़ुशी से ख़ुदा पर लिहाज़ करें तो चाहिए कि उस पर ऐसा लिहाज़ करें जैसा वो मसीह में ज़ाहिर है मसीह की सूरत में ख़ुदा ज़हूर में आया मसीह में उलूहियत का सारा कमाल मुजस्सम हो गया फ़क़त मसीह ख़ुदा को कामिल तौर से ज़ाहिर करता है। जो ईसा है सो ही ख़ुदा है। ईसा ने जो कुछ कहा ख़ुदा की तरफ़ से कहा और जो कुछ उस ने किया सो ख़ुदा ही ने किया। मसीह ने ख़ुद कहा कि जिसने मुझे देखा है उस ने बाप को देखा है। ये बात तसल्ली से भरी है ख़ुदा को देखने के लिए ख़ल्क़त की तरफ़ रुजू होना ना चाहिए अगर मैं ये दर्याफ़्त किया चाहूँ कि ख़ुदा क्या है तो कोह-ए-सिना या शरीअत पर नहीं बल्कि बरअक्स इस के ईसा पर निगाह करना लाज़िम है जब उस का काम देखता हूँ तो ख़ुदा का काम इसी से मैं जानता हूँ देखता हूँ जब उस की सुनता हूँ तो इस को ख़ुदा की आवाज़ जानता हूँ कि ख़ुदा क्या है और वो क्या करेगा बेदार हो के मैं उस के पास जाऊं वो मुझे हटाने ना देगा। बल्कि बरअक्स इस के क़ुबूल करेगा अपना हाथ फैला के कहता है, “ऐ थके-माँदे मेरे पास आ मैं तुझे आराम दूंगा। “ऐ प्यासे आ पीने को दूंगा। गुनेहगार आ माफ़ी बख्शूंगा गुमराह आ क़ुबूल करूँगा। ख़ुदा पर ऐसी नज़र रखना गुनेहगार के लिए क्या ही बाइस तस्कीन है। हक़ीक़तन ख़ुदा ईसा में था और अभी तक ईसा में है। अज़ीज़ ! ख़ुदावन्द ईसा तू मुबारक है कि तू ने इस तरह हम पर बाप को ज़ाहिर किया है ऐ मेरी जान अगर तू ग़ुलाम की मानिंद ख़ुदा से डर सकती है तो ईसा पर अपनी निगाह रख और उस पर लिहाज़ कर के जान ले कि ख़ुदा मुहब्बत है।
“ख़ुदा को किसी ने कभी ना देखा इकलौता बेटा जो बाप की गोद में है उसी ने बतला दिया।” (यूहन्ना 1:18)
मसीह का फ़ज़्ल से मामूर होना
“और कलाम मुजस्सम हुआ और वो फ़ज़्ल और रास्ती से भरपूर होके हमारे दर्मियान रहा और हमने उस का ऐसा जलाल देखा जैसा बाप के इकलौते का जलाल।” (यूहन्ना 1:14)
ख़ुदा का फ़ज़्ल ये है कि ना लायक़ पर वो रहम की नज़र करे सारे इनाम जो हमको मिलते हैं फ़ज़्ल से हैं। सारा फ़ज़्ल मसीह की मार्फ़त हमको मिलता है आगे हम गुनाहों और ख़ताओं के सबब से मुर्दा थे। पर अब फ़ज़्ल से हम ज़िंदा हो गए। आगे नारास्त थे और अब फ़ज़्ल से रास्तबाज़ ठहरे, फ़ज़्ल से रफ़्ता-रफ़्ता पाक और आस्मान में बसने के लायक़ तैयार हो जाते हैं। फ़ज़्ल के वसीले से ख़ुदा की मर्ज़ी बजा लाने की क़ाबिलियत हम में पाई जाती है फ़ज़्ल से हमको हिमायत और हिदायत मिलती है और आख़िरकार फ़ज़्ल से आस्मानी आराम हासिल होगा। हम फ़ज़्ल के सबब से ईमान ला के बच गए हैं और ये हमसे नहीं ख़ुदा की बख़्शिश है। मसीह के वसीले से फ़ज़्ल हमको मिलता है और सिर्फ वही फ़ज़्ल का चशमा है। सिर्फ उसी से सारा फ़ज़्ल मिल सकता है इसलिए फ़ज़्ल के तख़्त के पास बेपर्वा जाएं ताकि हम पर रहम हो और फ़ज़्ल जो वक़्त पर मददगार हो हासिल करें। ऐ पढ़ने वाले क्या तू ने मसीह से फ़ज़्ल पाया है, अगर पाया हो तो उस की तासीर ये हुई होगी कि तू मसीह के पास दौड़ा गया होगा और उसी से आराम पाया होगा और रफ़्ता-रफ़्ता उस की मानिंद बनता जाएगा अगरचे फ़ज़्ल पाया तो और ज़्यादा पाने की ख़्वाहिश करेगा। और मसीह के पास जाया करेगा कि उसे पाए ऐ ईमानदार जो शैतान तुझे आज़माऐ जो दिली ख़राबी तुझे तक्लीफ़ दे जो दुनिया तुझको हक़ीर जाने जो मौत के ख़ौफ़ से तू हैरान हो तो याद कर कि ईसा में फ़ज़्ल की मामूरी है और ये फ़ज़्ल तेरे लिए है।
“क्योंकि बाप को पसंद आया कि सारा कमाल उस में बसे।”
(कुलुस्सियों 1:19)
ईमानदार का मसीह में होना
“अंगूर का दरख़्त मैं हूँ तुम डालियां हो वो जो मुझमें क़ायम होता है और मैं उस में वही बहुत मेवे लाता है क्योंकि मुझ से जुदा होके तुम कुछ नहीं कर सकते।” (यूहन्ना 15:5)
ईमानदारों का मसीह में पैवस्ता होना कलाम इलाही की एक ख़ास तालीम है ये तालीम साफ़ व सही और तरह-तरह की मिसालों से ज़ाहिर होती है। और वो एक हक़ीक़ी बरकत है नूह कश्ती में और लूत शहर ज़गर में और ख़ूनी शहर-पनाह में थे। और वहां रह के महफ़ूज़ रहे और जिस क़द्र वो महफ़ूज़ थे उसी क़द्र बल्कि उस से ज़्यादा ईमानदार मसीह में महफ़ूज़ रहेंगे। जैसा अंगूर के दरख़्त से डाली और न्यू से इमारत और सर से उज़ू मिल के एक ही हो जाता है। वैसा ही मसीह से ईमानदार मिल के वो दोनों एक ही हो जाते हैं। मसीह से पैवंद होना तरह-तरह की क़ीमती नेअमतों और बरकतों का सोता है। उन पर जो मसीह ईसा में हैं सज़ा का हुक्म नहीं है। हसन व बार आवरी मसीह में पैवंद होने से निकलती हैं और इस मेल (मिलाप) के नीचे सलामती और पा ग़ेय्ज़गी हैं अगर कोई मसीह में है। तो वो नया मख़्लूक़ है हम मसीह ईसा में हो के अच्छे कामों के वास्ते पैदा हुए जिनके लिए ख़ुदा ने हमें आगे मुक़र्रर किया था। कि हम उन्हें क्या करें उन को जो मसीह में हैं नया दिल दिया जाता है। जिससे नई सोच, नई ख़्वाहिशें, नई उम्मीदें, नए ख़ौफ़, नए ग़म, नई ग़रज़ें बल्कि ज़िंदगी की नई रौशें निकलती हैं। अगर हम मसीह में हो के उस के साथ एक ही हैं तो शुरु और दुनिया और ज़िंदगी हाल गुज़श्ता की निस्बत मुर्दे हैं मसीह और उस के लोग एक ही हैं। शरीअत की नज़र में वह एक ही हैं अदल के रु से एक ही हैं। बाप के नज़्दीक एक ही है मसीह सर है और वो उज़ू मसीह अंगूर का दरख़्त है और वो डालियां मसीह दूल्हा है और वो दुल्हन। ये मेल फ़क़त मसीह के इरादे से पैदा हुआ। इन्सान ने ना इस को ईजाद किया ना चाहा है। ये तो मसीह की मुहब्बत की एक क़वी दलील है। ईसाई का दिल ईसा का मस्कन है इस में वो सुकूनत और हुकूमत करता है। ऐ ईसा मेरे दिल में सुकूनत कर।
“मैं मसीह के साथ सलीब पर खींचा गया लेकिन ज़िंदा हूँ। पर तो भी मैं नहीं बल्कि मसीह मुझमें ज़िंदा है और मैं जो अब जिस्म में ज़िंदा हूँ सो ख़ुदा के बेटे पर ईमान लाने से ज़िंदा हूँ। जिसने मुझसे मुहब्बत की और आपको मेरे बदले दिया।” (ग़लतियों 1:20)
कलाम-ए-ख़ुदा ईसा का लक़ब है
“इब्तिदा में कलाम था और कलाम ख़ुदा के साथ था और कलाम ख़ुदा था।” (यूहन्ना 1:1)
जो कलिमे इन्सान बोलते हैं वो उनकी दिली सोच और ख़याल के निशान हैं। मसीह उस इरादे मुहब्बत को जो ख़ुदा की मर्ज़ी में अज़ल से था ज़ाहिर करता है। चुनान्चे वो इसी सबब से ख़ुदा का कलाम कहलाता है अगर हम ख़ुदा के प्यार को पहचानना चाहें तो ईसा पर निगाह करना चाहिए वो हमको बताता है कि ख़ुदा का क्या इरादा था। यानी ख़ुदा ने जहान को ऐसा प्यार किया है कि उस ने अपना इकलौता बेटा बख्शाता कि जो कोई उस पर ईमान लाए हलाक ना हो बल्कि हमेशा की ज़िंदगी पाए। ख़ुदा का इरादा हमारी नजात के लिए था और उस ने ईसा को इस इरादे के ज़ाहिर करने के लिए भेजा। ईसा ने अपनी ज़िंदगी कामों, बातों, दुखों से और ख़ासकर अपनी मौत से ख़ुदा की मुहब्बत हम पर ज़ाहिर की। ऐ मेरी जान अगर तू जाना चाहती है कि ख़ुदा का अज़ल से क्या इरादा था और है और रहेगा तो ईसा पर लिहाज़ कर क्योंकि वो कलाम है जो ख़ुदा के इरादे जलाल को ज़हूर में लाता है। उस के वसीले से मैं जानता हूँ कि ख़ुदा उन सभों के लिए जो उस के बेटे के कफ़्फ़ारे से उस से मिलाए जाते हैं मुहब्बत है। ऐ ईसा मैं तुझे बाप का ज़िंदा कलाम जानूं तेरी मर्ज़ी को बजा ला के बाप की मर्ज़ी को बजा लाऊँ और अपनी सारी ज़िंदगी उस के जलाल का बाइस ठहरूं। तुझ पर ईमान ला के बाप को देखूं। ऐ रूह-उल-क़ुद्स ईसा को मुझ पर साफ़ व रोशन ज़ाहिर कर ताकि उस पर लिहाज़ कर के मैं अपनी कैफ़ीयत से वाक़िफ़ होऊं। और उस की किफ़ायत जान कर फ़क़त उसी पर भरोसा रखूं तेरा ये काम है कि ईसा को ईमानदारों पर ज़ाहिर करे उस को मुझ पर ऐसा ज़ाहिर कर कि उसे पहचान कर मैं बाप का जलाल देखूं और बाप और ईसा के और तेरे साथ सोहबत रखूं।
“ख़ून में डूबा हुआ लिबास वो पहने था और उस का नाम कलाम-ए-ख़ुदा है।” (मुकाशफ़ा 19:13)
ईसा का हमारा दोस्त होना
“कोई शख़्स इस से ज़्यादा मुहब्बत नहीं करता कि अपनी जान अपने दोस्तों के लिए दे जो कुछ कि मैंने तुम्हें फ़रमाया अगर तुम करो तो मेरे दोस्त हो।” (यूहन्ना 15:13-14)
दोस्ती करने से ज़िंदगी को ख़ूबियाँ शीरीं-तर होती जाती हैं। लेकिन ऐसा दोस्त मिलना जो कामिल तौर से वफ़ादार हो और जिसके सपुर्द हम अपना सब कुछ कर सकें अज़-बस मुश्किल है। ईसा ऐसा ही दोस्त है। वो हम पर अपनी दोस्ती के साबित करने और हमसे दोस्ती हासिल करने के लिए मुजस्सम हुआ और दुख उठा के मर गया, मर के वो जी उठा और सभों का जो उस पर ईमान लाते हैं दोस्त है। चाहिए कि उस की तरफ़ अपनी सारी एह्तियाजों के रफ़ा करने के लिए देखें क्योंकि वो इस के क़ाबिल और रज़ामंद भी है। अपनी सारी तक़्लीफों के साथ उस के पास जाएं क्योंकि वो सुनने और मदद और नसीहत करने को तैयार है। उस से कुछ ना छुपाएं वो किसी बात को जो उस के लोगों की सलामती या ख़ुश-वक़्ती या ख़ुशी के लिए काम आती है। हक़ीर ना जानेगा। वो हमारे सारे दर्दों में हम्दर्दी करता है। हमारी रोज़मर्रा की दिक्कत उस के पास पहुंचाई जाये और उस के कान में बोली जाये अक्सर औक़ात उस के ना करने से और उस सोच से कि ये क्या ही छोटी बात है कि मैं इस ईसा को बताऊं ईमानदार की तक्लीफ़ बढ़ जाती है चाहिए कि हमको दिक़ करने से ना डरें वो अपने ऊपर हमारा बोझ उठाना चाहता है और अगर कभी उस को तक्लीफ़ मिलती है तो उस वक़्त मिलती है जब वो ये देखता है कि हम उस के पास ना जाऐंगे। बल्कि बरअक्स इस के मदद हासिल करने के लिए और किसी पर तकिया (भरोसा) करते हैं चाहिए कि फ़क़त मसीह पर तकिया (भरोसा) करें, क्योंकि जो किसी मख़्लूक़ पर भरोसा रखें तो वो हमारी मुराद को अंजाम ना पहुंचाएगा, लेकिन ईसा में ना पाएदारी नहीं। मख़्लूक़ टूटा हुआ सेंठा है मगर ईसा ज़मानों की चट्टान है। ऐ मेरी जान ईसा को अपना दोस्त बना कर और उस के साथ सोहबत कर के अपनी दोस्ती ज़ाहिर कर।
“मैंने तुम्हें दोस्त कहा है कि सब बातें जो मैंने अपने बाप से सुनी हैं। मैं ने तुम्हें बतलाईं” (यूहन्ना 15:15)
मसीह की मुहब्बत
“मसीह की मुहब्बत जो दर्याफ़्त से बाहर है दर्याफ़्त कर सको। ताकि तुम ख़ुदा की सारी भरपूरी से भर जाओ।” (इफ़िसियों 3:19)
ईसा की मुहब्बत क्या ही अजीब है उस ने गुनेहगारों से जब वो अपने गुनाहों में मुर्दा थे मुहब्बत रखी, बल्कि यहां तक उन को प्यार किया कि उन के बचाने के लिए अपनी जान दी वो हमारी लियाक़त के सबब से नहीं बल्कि इसलिए हमसे मुहब्बत रखता है कि हमें प्यार करना उस को पसंद है। इस से वो कोई दूसरा सबब नहीं बतलाता है अपनों को प्यार कर के वो उन्हें आख़िर तक प्यार करेगा। क्योंकि वो अपनी सिफ़ात व तबइयत में ग़ैर-मुतबद्दल है ख़ुद वो कहता है और ये बिल्कुल शीरीं बात है कि मैंने अबदी इश्क़ से तुझे प्यार किया इसलिए मैंने बड़ी चाह से तुझे खींचा है हम उस की मुहब्बत में मसरूर हों पर उस से बख़ूबी वाक़िफ़ नहीं हो सकते क्योंकि दर्याफ़्त से बाहर है उस की मुहब्बत हमारी पहचान और हमारे सारे ख़यालों से बाहर है फ़रिश्ते भी इस मुहब्बत के ज़ोर को जान नहीं सकते। फ़क़त मसीह हमें ऐसा प्यार कर सकता है क्योंकि उस की उलूहियत के सबब से उस की मुहब्बत बेपायाँ है अपनी इन्सानियत के बाइस वो हमारे साथ बड़ी मुताबिक़त रखता है जो कुछ मसीह ने ज़मीन पर हो के किया मुहब्बत की रु से किया और जो अभी करता है बे-तब्दील मुहब्बत से करता है अगर हमें तंगहाल करे तो ये प्यार से करता है अगर हम पर भारी सलीब लाए तो ये प्यार से करता है। हमसे अपना मुँह छुपाए तो ये भी मुहब्बत से है। चुनान्चे वो कहता है कि मैं जितनों को प्यार करता उन्हें मलामत करता हूँ। इस वास्ते सर-गर्म हो और तौबा कर। ऐ अज़ीज़ ईसा तेरी मुहब्बत मेरे दिल में बढ़ती रहे ताकि मैं तेरी राह-ए-रास्त पर चलूं।
“मसीह ने हमसे मुहब्बत की और ख़ुशबू के लिए हमारे एवज़ में अपने को ख़ुदा के आगे नज़र और क़ुर्बान किया।” (इफ़िसियों 5 बाब 2)
मसीह का फ़ज़्ल
“तुम हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के फ़ज़्ल को जानते हो कि वो दौलतमंद था और तुम्हारे वास्ते मुफ़्लिस हो गया ताकि तुम उस की मुफ़लिसी से दौलतमंद हो जाओ।” (2 कुरिन्थियों 8 ब 9)
ईसा में उलूहियत की सारी दौलत व हिक्मत व जलाल शामिल है। लेकिन उस ने हमें ऐसा प्यार किया कि मुफ़्लिस हो गया। बल्कि हमारे लिए अपना सब कुछ दिया, चुनान्चे ख़ुद उस ने कहा कि लोमड़ियों के लिए मांदें और हवा के परिंदों के वास्ते बसेरे हैं। पर इब्ने-आदम के लिए जगह नहीं जहां सर धरे। हक़ीक़तन ईसा का फ़ज़्ल बेनज़ीर व बे-बयान है। जो शख़्स उस पर जिसने ऐसा फ़ज़्ल दिखलाया शक लाए। वो कैसा गुनेहगार होगा, क्या मसीह इस से ज़्यादा क्या कर सकता क्या अपने को और पस्त कर सकता किया और किसी तदबीर से ज़्यादा मुहब्बत ज़ाहिर कर सकता है। ये मुहाल है लेकिन उसने ना सिर्फ हम पर अपना फ़ज़्ल यूं ज़ाहिर किया पर इलावा इस के हमको अपनी मामूरी से फ़ज़्ल बख़्शा करता है। फ़ज़्ल जो वक़्त पर मददगार हो वो देता है। फ़ज़्ल की किफ़ायत देता है। ताकि हम भारी मुसीबतें सहें और ज़ोर-आवर दुश्मनों पर ग़ालिब हों। चुनान्चे जब पौलुस हवारी (शागिर्द) ने शैतान की पैक से घूँसा खाया और ख़ुदावन्द से इल्तिमास की कि ये मुझमें से दूर हो जाये तब उस को ये जवाब मिला कि मेरा फ़ज़्ल तुझे किफ़ायत करता है। क्योंकि मेरा ज़ोर कमज़ोरी में पूरा होता है। ऐ पढ़ने वाले मसीह के सिवा और कोई तुझे ऐसा फ़ज़्ल दिखला नहीं सकता। सिर्फ वही फ़ज़्ल दे सकता है ताकि तेरी सारी हाजतों को रफ़ा करे वो फ़ज़्ल से भरपूर है और उस की भर पूरी से हम सबने पाया बल्कि फ़ज़्ल पर फ़ज़्ल फ़ज़्ल पाते हैं कि अपनी बुरी ख़सलतों को मारें और दुनिया पर फ़त्ह करें। और शैतान को अपने पांव तले कुचलें और अपनी फ़ज़ीलातों में जो फ़ज़्ल से होतीं ख़ुश हो और अपने फ़राइज़ को बजा लाएं और दिलेरी से मौत को हासिल करें। और मसरूर हो के दुनिया को छोड़ें कि हमेशा मसीह के साथ रहें चाहे कि हम रोज़ बरोज़ ईसा से फ़ज़्ल के तालिब हों ताकि हम उस के नाम-ए-मुबारक का जलाल ज़ाहिर करें।
“हमको यक़ीन है कि हम ख़ुदावन्द ईसा मसीह के फ़ज़्ल से नजात पाएँगे।” (आमाल 15:11)
मसीह का बेशक़ीमत लहू
“जिसे ख़ुदा ने आगे से एक कफ़्फ़ारा ठहराया जो उस के लहू पर ईमान लाने से काम आए।” (रोमियों 3:25)
चाहिए कि हम मसीह के लहू पर नज़र-ए-ईमान रखें क़दीम इस्राईलियों की दीनी रसूमात में लहू बकस्रत इस्तिमाल होता था। हर सुबह और शाम नज़रों के सिवा क़ुर्बानियों का लहू भी बहाया गया। जब कभी इस्राईली ख़ैमागाह या हैकल में दाख़िल होते थे। वो लहू को देखते थे इसी तरह चाहिए कि ईसा का लहू हमारे सामने रखा जाये। वो ही लहू हमारा कफ़्फ़ारा है। उसी से हमको सलामती हासिल हुई और उसी से वो सलामती क़ायम व दाइम भी रहेगी। हमसे और ख़ुदा से उस के बेटे की मौत के वसीले से मेल (मिलाप) हुआ और सिर्फ ईसा का लहू हमें सारे गुनाह से पाक कर सकता है। जिस क़द्र हम अपनी निगाह इस लहू पर रखते हैं उसी क़द्र दिलेरी से ख़ुदा के पास आ सकते और शैतान पर फ़त्ह कर सकते। और दिली आराम हासिल कर सकते हैं हम हर आन गुनाह करते हैं और अपनी सज़ा की सज़ा वारी बढ़ाते हैं और गोया शैतान के हाथ में ऐसा हथियार जिससे वो हम पर ग़ालिब हो देते हैं। और सिर्फ आप और गुनाह और शैतान से मुनहरिफ़ हो कर और ईसा के लहू पर लिहाज़ कर के हम माफ़ी और सलामती को हासिल कर सकते हैं और शैतान को अपने पांव तले दबा सकते अगर हम एक घंटा भी इस लहू पर निगाह ना रखें तो ज़रूर किसी गुनाह या इम्तिहान में फंस जाएं मसीह के लहू पर निगाह करने से हमारी हिफ़ाज़त होती है। इस के याद रखने से कि मसीह हमारे गुनाहों के सबब से मुआ और फिर के जिलाया गया ताकि हम रास्तबाज़ ठहरें और ये कि वो हमेशा जीता है कि हमारी सिफ़ारिश करे। हमारी सलामती होती है। चाहिए कि मसीह के बेशक़ीमत लहू पर मेरी नज़रे-दिल रहे और जब शैतान मुझ पर हमला करे या मैं बीमारी में मुब्तला हूँ या मौत की तलातुम में डूब जाऊं तब ऐ ईसा तेरे लहू की याद मुझे तस्कीन व बख़्शे।
“हम उस में हो के उस के ख़ून के बदौलत छुटकारा यानी गुनाहों की माफ़ी उस के निहायत फ़ज़्ल से पाते हैं।” (इफ़िसियों 1:7)
ईसा का हमारे लिए सरदार काहिन होना
“इस सबब से ज़रूर था कि वो हर एक बात में अपने भाईयों की मानिंद बने ताकि वो ख़ुदा की बातों में लोगों के गुनाहों का कफ़्फ़ारा करने के वास्ते एक रहीम और अमानतदार सरदार काहिन ठहरे।” (इब्रानियों 2:17)
गुनेहगारों के लिए एक काहिन चाहिए जो कफ़्फ़ारा हो के हमें ख़ुदा से मिला सकता है और हमारी दुआएं उस के हुज़ूर पहुंचा सकता है। ऐसा काहिन ईसा है उस ने हमारे गुनाहों के लिए अपने को कफ़्फ़ारे के तौर पर क़ुर्बान कर दिया। अपनी मौत के वसीले से उस ने हमारे और ख़ुदा के बीच में मेल (मिलाप) कराया और अदल के सारे दाअवों को अदा कर के ऐसी राह खोली है कि जिससे हम ख़ुदा के पास जा सकते हैं और वो हमें क़ुबूल कर सकता है उस के कफ़्फ़ारे के सबब से ख़ुदा जो कामिल रास्त है गुनेहगारों को रास्त ठहराता है। अपने लहू के वसीले से ईसा ने हमारा मेल (मिलाप) कराया और अपनी सिफ़ारिश से वो इस मेल (सुलह) को सलामत रखता है। वो रहीम है। पस हमारे साथ दिल सोज़ी करता है। और हमारी सारी कमज़ोरियों और आज़माईशों और तक़्लीफों में हमारे साथ हम्दर्दी करता है वो वफ़ादार है और अपने वाअदों को पूरा करता है अपने ओहदे पर इज़्ज़त बख़्शता है। अपने कलाम के मुताबिक़ करता रहता है और सभों के जो उस पर ईमान लाते हैं हाल की क़बूलियत और आइन्दा की नजात क़ायम करता है। अब लहू बहाना और कफ़्फ़ारे के तौर पर दुख उठाना ना चाहे। अपने बेटे के काम से बाप का ग़ुस्सा ठंडा हो गया। और जो कुछ वो ईमानदारों के लिए करता है मुहब्बत की रु से करता है। ऐ मेरी जान मैं तुझे ताकीद करता हूँ कि और सारे काहिनों और क़ुर्बानियों को छोड़ के ईसा और उस के कामिल कफ़्फ़ारे पर तकिया कर क्योंकि उस ने एक ही नज्र गुज़राँने से मुक़द्दसों को हमेशा के लिए कामिल किया। मसीह के सिवा तेरा दूसरा नहीं।
“हमारा सरदार काहिन ऐसा नहीं जो हमारी सुस्तियों में हम्दर्द ना हो सके बल्कि गुनाह के सिवा सारी बातों में हमारी मानिंद आज़माया गया।” (इब्रानियों 4:15)
ईसा हमारी सदाक़त होना
“उस का नाम ये रखा जाएगा ख़ुदावन्द हमारी सदाक़त।” (यर्मियाह 23:6)
बज़ाता कोई रास्तबाज़ नहीं है एक भी नहीं। हम अपने आप ऐसी रास्तबाज़ी हासिल नहीं कर सकते जिसमें ख़ुदा के हुज़ूर सादिक़ ठहरें। लेकिन अगर हमको ऐसी रास्तबाज़ी जो शरीअत के सारे दाअवों को अदा करेगी। हासिल ना हो तो ख़ुदा हमें रास्तबाज़ ठहराएगा, बल्कि हमें रास्त ठहरा नहीं सकता। पस ऐसी रास्तबाज़ी कहाँ से मिलेगी। इस का जवाब ये है कि ईसा मौत तक फ़रमांबर्दार हो के अपने लोगों के लिए ये रास्तबाज़ी हासिल कर चुका वो रास्तबाज़ी इन्जील में हम पर ज़ाहिर होती है। ईमान के हाथ से हम उसे पकड़ सकते हैं और ख़ुदा उसे हमारी रास्तबाज़ी जानता है। वो हमारे हिसाब में गिनी जाती हैं। और इसी तरह हम रास्तबाज़ ठहरते हैं हमारी रास्तबाज़ी ईसा से है। अगर हम अपनी रास्तबाज़ी का सबब दर्याफ़्त क्या चाहते हैं तो अपने पर नहीं मसीह पर लिहाज़ करना चाहिए। जब तमीज़ इल्ज़ाम दे तो चाहिए कि उस के इल्ज़ाम पर ये हुज्जत (दलील) करें कि हमारे लिए ईसा ने दुख उठाया और मर गया। जब शैतान हमें आज़माऐ और सताए तब ईसा पर निगाह करना चाहिए, जब मौत नज़र आए और अदालत का ख़ौफ़ घबराए तब भी चाहिए कि ईसा के कामिल कफ्फारे पर तकिया (भरोसा) करें और उस की ख़ातिर से बचने की उम्मीद रखें। आदम की नाफ़र्माबर्दारी से हम गुनेहगार ठहराए गए और मसीह की फ़रमांबर्दारी से हम रास्तबाज़ ठहरते हैं। चुनान्चे लिखा है कि शरीअत की ग़ायत ये है कि मसीह हर एक ईमानदार की रास्तबाज़ी हो इसी से सब जो उस पर ईमान लाते हैं। रास्तबाज़ी पाते हैं। उन पर गुनाह गिना नहीं जाता उन्हीं को बग़ैर आमाल के रास्तबाज़ ठहराता है। हमारे रास्तबाज़ होने की निस्बत फ़क़त मसीह काम आता है। हमारे आमाल नहीं हमारे दुख नहीं फ़क़त मसीह अमल करने वाला वो है और उस के आमाल के फल हमको मिलते हैं।
“तुम ईसा मसीह में हो के उस के हो।” (1 कुरिन्थियों 1:30)
ईसा का हमारी पाकीज़गी होना
“वो हमारे लिए ख़ुदा की पाकीज़गी है।” (1 कुरिन्थियों 1:30)
पाक होने से दुनिया से अलग होना और ख़ुदा की ख़िदमत के लिए मख़्सूस किया जाना और ख़ुदा से मुशाबहत रखना मुराद है। ईसा हमारी पाकीज़गी की अस्ल और जड़ है। जैसा हम उस में मिलाए गए और रास्तबाज़ ठहराए गए वैसा ही हमारी पाकीज़गी उस से निकलती है। पाकीज़गी से साफ़ होना मुराद है और वो हमें पाक-साफ़ कर सकता है। इस से मुराद धोना है, चुनान्चे रूह-उल-क़ुद्स से ग़ुस्ल दिलाए गए इस से मुराद अलग करना है। चुनान्चे लिखा है कि इस वास्ते ईसा भी ताकि लोगों को अपने लहू से पाकीज़गी बख़्शे फाटक के बाहर मारा गया जो हमें पाक करता है। सो रूह-ए-पाक ही वसीला जिससे पाकीज़गी होती है। मसीह की सच्चाई है नज़ीर (मिसाल) जिस पर लिहाज़ करने से पाकीज़गी बढ़ती जाती है। मसीह है हमारी सारी पाकीज़गी। उसी से है और उस से पैवस्ता होने के बग़ैर पाकीज़गी हासिल नहीं हो सकती। पैवस्ता मार्फ़त डालियां दरख़्त से अपनी परवरिश पाती हैं। और बदन में सर और उज़ूओं के बीच ऐसा ही मेल (मिलाप) हुआ है इसी तरह हम ईसा से मिलकर उस से ज़िंदगी और सलामती और पाकीज़गी बल्कि हर एक बरकत पाते हैं। इस के बमूजब ख़ुद ईसा ने कहा कि मुझसे जुदा तुम कुछ नहीं कर सकते बग़ैर उस के लहू भी हमारे लिए कफ़्फ़ारा नहीं है। बग़ैर उस के पाकीज़गी का लिबास पहने ख़ुदा के हुज़ूर मक़बूलियत नहीं हो सकती। उस से मिलने के बग़ैर पाकीज़गी कहीं नहीं मिल सकती वो हमारा बदला हुआ हमारा फ़िद्या दिया रूह-ए-पाक के वसीले से हमें जिला दिया वही रूह भी हमें दिया करता और हमें इस लायक़ करता है कि हम नूर यानी पाकीज़गी में मुक़द्दस लोगों के साथ मीरास पाएं। अगर हम पाक हुआ चाहते हैं तो चाहिए कि ईसा पर निगाह करें उस से फ़ज़्ल पाएं उस के साथ चले जाएं उस के नक़्शे क़दम पर हो लें। और बहर तरह (इसी तरह) उस के जलाल के तालिब हों।
“हम उस की कारीगरी हैं और मसीह ईसा में हो के अच्छे कामों के वास्ते पैदा हुए जिनके लिए ख़ुदा ने हमें आगे से मुक़र्रर किया था, ताकि हम उन्हें किया करें।” (इफ़िसियों 2:10)
ईसा का हमारी हिक्मत होना
“वो हमारे लिए ख़ुदा की हिक्मत है।” (1 कुरिन्थियों 1:30)
ख़ुदा ने ईसा को इस क़द्र तक किफ़ायत बख़्शी कि वो हमारी सारी इहितयाजों के रफ़ा करने के क़ाबिल हो। ईसा हमारी हिक्मत है। उस में हिक्मत और मार्फ़त के सारे खज़ाने छुपे हैं और ये हिक्मत सबकी सब हमारे काम आती है उस के वसीले से ईसा हमारी मुहब्बत को दुनिया की तरफ़ से अपनी तरफ़ खींचता है और हमारे पांव को फिसलने से रोक कर हमें राहे रास्त पर साबित-क़दम चलाता है। अपनी हिक्मत के वसीले से उस ने हमारा मेल और क़बूलियत ख़ुदा के साथ कराई इसी हिक्मत से वो हमारे दुश्मनों को ग़ारत करता है और इस के सबब से बारगाह आस्मान में हमारा मुक़द्दमा दुरुस्त होता है। अपनी हिक्मत की मार्फ़त वो हमें राह-ए-हक़ बताता है। अपनी हिक्मत से वो आलम के ऊपर सल्तनत करता है। और हमारी भलाई के लिए सारी बातों का इंतिज़ाम करता है। ग़ौर के लायक़ ये भी है कि ईसा ना फ़क़त अपनी हिक्मत हमारे लिए सर्फ करता है बल्कि हमें भी इस का एक हिस्सा दिया करता है और उसे हासिल कर के हम आने वाले ग़ज़ब से भागते हैं और इस जाए-पनाह को जो इन्जील में हम पर ज़ाहिर है। ढूँढते हैं और ईसा से मिलना चाहते हैं और उस को अपनी रास्तबाज़ी और पाकीज़गी और ख़लासी जानते हैं। कलीसिया की हिक्मत उस के सुरमें है और ये सर मसीह है। हमारी हिक्मत मसीह में है और चाहिए कि वो मसीह से हमको मिले वो इन्सान और फ़रिश्तों की हिक्मत से अजीब-तर है। ऐ मेरी जान तू याद रख कि फ़क़त मसीह तेरी हिक्मत है उसे हासिल करने के लिए मसीह के पास जाना चाहिए। उस को उसी से माँगना चाहिए और मांग के हम उस का ये वाअदा पेश करें कि ख़ुदाया तू ने कहा है कि अगर तू मार्फ़त के लिए पुकारेगा। और चिल्ला के फ़हमीदा (हिक्मत, दानिशमंदी) का तालिब होगा और अगर उसे यूं ढूँडेगा जिस तरह रूपये को ढूँढते हैं और यूं उस की तलाश करेगा। जिस तरह गंज निहां (ख़ज़ीना, गोदाम, ख़ज़ाना, अनाज) की तलाश करते हैं तब तू ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ को समझेगा और ख़ुदा की शनासाई को पाएगा।
“अगर कोई तुम में से हिक्मत में नाक़िस हो तो ख़ुदा से मांगे जो सबको सख़ावत के साथ देता और मलामत नहीं करता है कि उस को इनायत होगी।” (याक़ूब 1:5)
ईसा का हमारी ख़लासी होना
“वो हमारे लिए ख़ुदा की ख़लासी है।” (1 कुरिन्थियों 1:30)
हम सब के सब शैतान के ग़ुलाम और गुनाह के जालों में गिरफ़्तार थे शैतान ने हमें जीता शिकार किया ताकि उस की मर्ज़ी पर चलें गुनाह मुतफ़र्रिक़ सूरतों से हमें ज़ंजीरों से बाँधता था। शैतान के ताबे हो कर हम ख़ुदा के बाग़ी और उस के तख़्त व सल्तनत के नमक-हराम हुए। अदल ने हमारी रिहाई के लिए फ़िद्या का दावा किया। तब ईसा हमारा फ़िदाकार बना वो मुजस्सम हो के दुनिया में आया और दुख उठा के और अपना लहू बहा के उस ने हमारे कफ़्फ़ारे के लिए अपनी जान दी। तब वो आस्मान में फिर गया ताकि रूह-उल-क़ुद्स हम पर नाज़िल करके हमें ना सिर्फ गुनाह के इल्ज़ाम बल्कि उस की ज़बरदस्ती से भी रिहाई बख़्शे। अपने जाने के वक़्त उस ने हुक्म फ़रमाया कि इन्जील अबदी जो उस की मुहब्बत की बहुतायत और हमारे कफ़्फ़ारे का दाम और उस जलाल की अजाइबात जो ईमानदार की मीरास ही इशारा करती है हर कहीं सुनाई जाये। लेकिन अगरचे हमने गुनाह से रिहाई पाई और शैतान की हुकूमत के तले नहीं हैं तो भी गुनाह के सबब से हमें मरना है, लेकिन मसीह के वसीले से बदन फिर जियेगा। फ़िद्ये का दाम जो दिया गया सो ना सिर्फ रूह के बल्कि बदन के लिए भी दिया गया। पस इस का जी उठना यक़ीनी बात है। चुनान्चे लिखा है कि जो मसीह में हो के मुए (मरे) हैं वो पहले उठेंगे। हाँ क़ियामत के दिन रास्तबाज़ अपने दुश्मनों पर सल्तनत करेंगे। फ़क़त मसीह हमारी ख़लासी है। उस ने अहद बांध के अपने अहद को पूरा किया और हमारे कफ़्फ़ारे का दाम ख़ुशी से दिया रूह-ए-पाक की मार्फ़त उस ने हमें तारीकी की हुकूमत से बुलाया आख़िर को हमें क़ब्र से उठा के और अपनी बादशाहत जलाली में दख़ल दे के और हमें बेदाग़ और बेऐब कर के वो हमको ख़ुदा के हुज़ूर में हाज़िर करेगा।
“मैं उन्हें पाताल के क़ाबू से फ़िद्या में लूँगा मैं उन्हें मौत से छुड़ाऊंगा। ऐ मौत तेरी मरी कहाँ है ऐ पाताल तेरी हलाकत कहाँ पछताना मेरी आँखों के सामने से छिपा है।” (होसेअ 13:14)
ईसा का हमारा सालिस होना
“हमारे दर्मियान कोई सालिस नहीं जो अपने हाथ दोनों पर धरे।”
(अय्यूब 9:33)
मुसीबतज़दा अय्यूब एक सुलह-कार का मुहताज था। यानी ऐसे शख़्स का मुहताज जो उस के और ख़ुदा के दर्मियान हो के सुलह कराए हर एक क़ैद की गई जान को ये हाजत है, लेकिन हम नहीं कह सकते कि कोई सुलहकार नहीं क्योंकि ऐसा है। जो हमारी हाजत रफ़ा करने के लायक़ है वो इलाही हो के जैसा हम-सर हम-सर के साथ ख़ुदा से मुआमला कर सकता है और इन्सान हो के हमारे साथ हम्दर्दी कर सकता है और हमारी एहतियाजें ख़ुदा के हुज़ूर में ज़ाहिर कर सकता है। वो हमारे और ख़ुदा के दर्मियान आता है एक हाथ से हमारे लिए ख़ुदा को नज़रीन गुज़रान कर उस को मनाता है और दूसरे हाथ से हमें हमारे गुनाहों की माफ़ी की सनद बख़्शता है। वो सुलह करता है सारे एतराज़ों को ले जाता है उस के हम पर हाथ रखने से कुछ डर नहीं। ऐ पढ़ने वाले अगर तू ख़ुदा के पास जाने से डरता है अगर उस की बुजु़र्गी तुझे दहश्त देती है। या उस का क़हर तुझे डराता तो तूझे डरना ना चाहिए। एक जो इलाही है पर तो भी तेरी ज़ात में है। ख़ुदा के तख़्त के सामने नज़र आता है। ईसा तेरा सुलहकार वहां हाज़िर है अपना मुआमला उस के सपुर्द कर तो तू ग़ालिब होगा। उस के साथ हुज्जत कर और तेरे लिए वो बाप के साथ हुज्जत करेगा। वो अदल के दाअवोँ को घटाना ना चाहेगा। पर तेरे सारे गुनाहों के लिए पूरा बदला देगा। वो अपने बाप के चेहरे पर से पर्दा उठाएगा। और तुझ पर ज़ाहिर करेगा कि ख़ुदा मुहब्बत है। फ़क़त मसीह को अपना सुलहकार और माँझी और शफ़ी होने दे वो इस क़ाबिल है और किसी दूसरे में क़ाबिलियत नहीं। ऐ आज़मूदा (आज़माया हुआ) अपना सर उठा ईसा तख़्त के आगे मौजूद है वो तेरे और पाक ख़ुदा के दर्मियान खड़ा रहता है कुछ डर नहीं जो तुझसे तलब किया गया। सो उस ने भर दिया है उस ने तेरा जुर्माना अदा किया और हमेशा जीता है कि तेरी सिफ़ारिश करे।
“कि ख़ुदा एक है और ख़ुदा और आदमियों के बीच एक आदमी दर्मियानी है वो मसीह ईसा है।” (1 तीमुथियुस 2:5)
ईसा का हमारा वकील होना
“अगर कोई गुनाह करे तो ईसा मसीह जो सादिक़ है बाप के पास हमारा वकील है।” (1 यूहन्ना 2:1)
गुनेहगारों के लिए सिफ़ारिश करना हमेशा दरकार है। चुनान्चे ईसा उनका सिफ़ारशी हमेशा जीता है कि उन की सिफ़ारिश करे। लेकिन जब किसी ख़ास वक़्त में हम तख्त-ए-अदालत के आगे लाए जाते हैं और कोई हमारा मुद्दई होके हम पर इल्ज़ाम देता है। तब हमारे लिए वकील निहायत ज़रूर है। ईसा ऐसा वकील है वो शैतान को जो ईमानदारों का मुद्दई है जवाब देता है और उस को मग़्लूब करता है। वो अपना ताबे होना और लहू बहाना हमारे लिए हुज्जत करता है और इसी बाइस से हमारे लिए रिहाई हासिल करता है। फ़र्ज़ करो कि ईमानदार शैतान के इम्तिहान में फंस जाये तो बारगाह आस्मान में ईसा उस का वकील है। उस के लोगों के लिए ये बड़ी ख़ातिरजमा का और शैतान के लिए मह्ज़ हैरानी का बाइस है। ऐ मेरी जान ख़ुशी कर कि तेरे ख़ुदा ने तेरी सारी इहितयाजों के लिए तदबीर की है। यहां तुझे बहाली और ख़ुशहाली मिलती है और आख़िरकार नजात अबदी मिलेगी। ईसा तेरा सब कुछ है तेरा मुक़द्दमा उस के हाथ में है और उस के वसीले से तू ग़लबा करेगा। वो तेरे मुद्दई को लाजवाब करेगा। वो तेरे सारे गुनाहों के लिए कुल्ली माफ़ी पाएगा। वोह तुझे खुदा के हुज़ूर रास्त ठहराएगा। इसलिए फ़क़त मसीह की तरफ़ देखता रह, तारीकी में, आज़माईश में, बल्कि उस वक़्त जब तू गुनाह में फंस गया हो तो ईसा की तरफ़ देख और उस को वकील जान कर उस पर तकिया (भरोसा) कर वोह तेरी सुनेगा। तेरा इक़रार करेगा। तेरा मुक़द्दमा पेश करेगा। और तुझे रिहाई दे के तेरा चेहरा अपने चेहरे के जल्वे से जलवागर करेगा। ऐ अज़ीज़ ख़ुदावन्द तू जो अपने लोगों का वकील है जैसा तूने हमेशा अपने भटके हुओं के मुक़द्दमे को पेश किया है वैसा ही मेरा मुक़द्दमा अपने ज़िम्मे ले और मुझे मेरी मुश्किलात से रिहाई दे ताकि मैं हमेशा तक अपने और तेरे बाप की हुज़ूरी में रहूं। ऐ रूह-ए-पाक ईसा के इस ओहदे जलील को मुझ पर ज़ाहिर कर।
“क्योंकि मसीह उस पाक मकान में जो हाथों से बनाया गया और हक़ीक़ी मकान का नमूना है दाख़िल नहीं हुआ बल्कि आस्मान ही में ताकि अब से ख़ुदा के हुज़ूर हमारे लिए हाज़िर रहे।” (इब्रानियों 9:24)
ईसा का हमारा तबीब होना
“ईसा ने उन्हें कहा कि भले चंगों को हकीम दरकार नहीं बल्कि बीमारों
को।” (मत्ती 9:12)
ईसा के सिवा कोई दूसरा तबीब (हकीम) गुनाह आलूदा जान को चंगा नहीं कर सकता। इस का बल्सान सिर्फ उस का लहू है और फ़क़त उसी से उस को सेहत मिलती है तमाम जहान के बाशिंदों को ख़बर होती जाती है कि हर इक़लीम (मुल्क, विलायत) और क़ौम और ज़बान के गुनेहगार मसीह के पास आएं और चंगे हो जाएं। वो गोया हमारे घर का तबीब है, चुनान्चे लिखा है कि वाअदा तुमसे और तुम्हारे लड़कों से है कुछ ज़रूर नहीं कि जब तक कोई मोहलिक मर्ज़ हमको ना पकड़े उस के पास ना जाएं। हम तो अपनी सारी मुसीबत में ख़्वाह सर की ख़्वाह दिल की हो उस के पास जाएं और वो ऐसी दवा देगा, जिससे हमको आराम मिलेगा। ये ना समझना चाहिए कि अपने आपको चंगा कर सकते हैं बल्कि फ़ौरन ईसा के पास जाएं बीमार जो उस के पास गए वो सब के सब चंगे हुए। किसी आर्ज़ूमंद को उस ने कभी नहीं कहा कि मैं तेरी मदद नहीं कर सकता। पर हिक्मत व शऊर ला-सानी से वो हर एक को जो रूहानी सेहत का तलबगार हो रुहानी सेहत देता है, बल्कि मुफ़्त देता है। फ़क़त मसीह इस क़ाबिल है कि हमारा तबीब (हकीम) हो। फ़क़त मसीह इस ओहदे पर मुक़र्रर किया गया। उन मुक़द्दसों को जो अभी जलाल में पहुंच गए फ़क़त मसीह के वसीले गुनाह से रिहाई मिली। हम भी उस के पास जाएं हर वक़्त और हर हाल में हमारी मुसीबत बड़ी या छोटी कितनी ही क्यों ना हो हम ईसा मसीह के पास जाएं। हम अपने बीमार दिल को उसी के पास ले जाएं और वो उन्हें चंगा करेगा। वो हमारे दिलों की सुस्ती और कम निगाही और गुमराही और ढलाई को मिटा सकता है और उन्हें मिटाएगा। ये ना समझना चाहिए कि हमारे लिए सेहत नहीं है।
“देख मैं उसे सेहत और शिफ़ा बख्शुंगा मैं उन्हें चंगा करूँगा और अमान और सच्चाई की कस्रत उन पर ज़ाहिर करूँगा।” (यर्मियाह 33:6)
ईसा का हमारा चौपान होना
“मैं उन के लिए एक चौपान (चरवाहा) मुक़र्रर करूँगा। और वो उन्हें चराएगा।” (हिज़्क़ीएल 34:23)
जैसा गल्ले की सदा ख़बर लेना और उस की हिमायत करना चाहिए वैसा ही ईमानदार की हिमायत और हिदायत करना ज़रूर है। बज़ाते वो गुमराह होने पर माइल रहता है। वो मर्ज़ के हाथ में है और होशियार और ज़ालिम दुश्मनों के ख़तरे में बेशक उस के लिए चौपान और निगेहबान ज़रूर है। इस ओहदे पर ईसा अपने बाप की तरफ़ से मख़्सूस किया गया उस ने उस ओहदे को ले लिया और अपनी भेड़ों का चौपान बना अपने इस ओहदे को वो इज़्ज़त बख़्शता है। वो अपने गल्ले का शुमार और इस में हर एक का नाम और अहवाल जानता है। उसने अहद बाँधा है कि मैं उनकी ख़बर लूँगा, उन को चरा दूंगा, उनकी हिमायत करूँगा और अपने बाप के हुज़ूर उन्हें कामिल कर के पहुंचा दूंगा। वो अपने काम को कभी ना छोड़ेगा। वो अपने काम में ख़ुश होता है। अपने गल्ले को प्यार करता है उस को चराता है बर्रों को अपने हाथ से फ़राहम करता और अपनी गोद में उठा के ले चलता और उन को जो बच्चे वालियाँ हैं मुलाइमियत से ले जाता है। उस की ऐसी होशयारी और ख़बरदारी है कि अगरचे हज़ारों भटक गए तो भी उस के गल्ले में से एक भी खोया ना गया और कभी एक खोया ना जाएगा। वो अपनों को हरी चरागाहों में बिठाता है और राहत के चश्मों के पास उन्हें ले जाता है। वो उन पर ख़ुश होता है कि उनकी भलाई करे। ऐ मेरे दोस्त क्या तू ईसा के गल्ले का है क्या तू गडरिये की आवाज़ जानता है। जब वो बुलाता है क्या तू जल्द आता है और उस के पीछे चला जाता है। क्या तू फ़क़त मसीह को अपना निगेहबान जान कर परवरिश और रहनुमाई और हिमायत और हिदायत और नजात अबदी के लिए उसी पर भरोसा रखता है? जो ऐसा हो तो तू ख़ुशहाल है और तेरा इस्तिक़बाल जलाल से भरा है अपने चौपान के नज़्दीक हो हमेशा उस की आवाज़ सुनता रह।
“अच्छा गडरिया (चरवाहा) मैं हूँ अच्छा गडरिया (चरवाहा) भेड़ों के लिए अपनी जान देता है।” (यूहन्ना 10:11)
ईसा का हमारा नमूना होना
“मसीह भी हमारे वास्ते दुख पा के एक नमूना हमारे लिए छोड़ गया है ताकि तुम उस के नक़्शे क़दम पर चले जाओ।” (1 पतरस 2:21)
अक्सर औक़ात ईसाई दीन को उस के मक़रून (क़रीब) की बद रविश (बुरे ढंग) से नुक़्सान पहुंचा वो पुरानी इन्सानियत को उस के फ़ेअलों समेत उतार नहीं फेंकते और नई इन्सानियत को जो मार्फ़त में अपने पैदा करने वाले की सूरत के मुवाफ़िक़ नई बन रही है नहीं पहनते, इक़रार तो करते हैं कि मसीह हमारा नजातदिहंदा है पर तो भी उस के पीछे नहीं हो लेते, लेकिन ये दो बातें आपस में बड़ी निस्बत रखती हैं, जिसने हमारे लिए अपनी जान दी ख़ुद अपने को एक नमूना हमारे लिए छोड़ गया है ताकि हम उस के नक़्शे क़दम पर चले जाएं चाहिए कि फ़क़त मसीह हमारा नज़ीर (मिसाल) हो और हमारी ये ग़र्ज़ हो कि उस की सूरत में बनें जो सच्चे ईसाई हैं। सो मसीह की मानिंद होते जाते हैं। चुनान्चे वो कहता है कि मुझ ही से सीखो ना सिर्फ उस की तालीम से बल्कि उस की सारी रविशों से सीखना चाहिए जैसा वो करता है वैसा ही हमको भी करना चाहिए। रूह-उल-क़ुद्स का एक काम ये है कि वो हम पर ईसा को ज़ाहिर करता है और अपनी हिदायत से हमें ईसा की मानिंद बनाता है। उस की मदद मांग के चाहिए कि रोज़ बरोज़ मिज़ाज और चाल चलन में मसीह की पैरवी करते रहें। जो मुझे दुख उठाना पड़ता है तो पूछना चाहिए कि मसीह के दुख उठाने में कैसी चाल थी ताकि फ़ज़्ल मांग के उस की मानिंद दुख सहूँ जो ख़ुदा के लिए काम करना पड़ता है तो दर्याफ़्त करना चाहिए कि मसीह ने क्यूँ-कर काम किया ताकि उस की मानिंद करूँ। इसी तरह मेरी ज़िंदगी का गोया एक अक्स हो और मेरी चाल उस की सी हो चाहिए कि हमारा ये मंशा व मतलब हो ये ख़ुदा के फ़ज़्ल से हो सकता है और वो फ़ज़्ल पर फ़ज़्ल देगा। हम तरक्क़ी करते चले आए हैं और आइन्दा को भी होते होते मसीह की सूरत में बन जाऐंगे। ऐ रूह-उल-क़ुद्स हमें हमारे अज़ीज़ ख़ुदावन्द की मानिंद ठीक-ठीक बना।
“इसलिए मैंने तुम्हें एक नमूना दिया है ताकि जैसा मैंने तुमसे किया तुम भी करो।” (यूहन्ना 13:15)
ईसा का हमारी नजात का पेशवा होना
“उस को जिसके लिए सब कुछ है और जिसके वसीले सारी चीज़ें मौजूद हैं ये मुनासिब था कि जब बहुत से फ़रज़न्दों को जलाल में लाए उन की नजात के पेशवा को अज़ीयतों से कामिल करे।” (इब्रानियों 2:10)
ईमानदार रूह-उल-क़ुद्स के वसीले से सर-नौ पैदा हो के जलाल को पहुँचेंगे। अब रूहानी लड़ाई लड़ते हैं। हमारा पेशवा ज़िंदगी का मालिक है अपने दुखों के वसीले से ईसा ने इस काम के लिए तैयारी हासिल की। और वो हमें हमारे घर पहुंचाने के क़ाबिल है। वो हमारी तबीयत और अहवाल और दुश्मनों और मुश्किलों से वाक़िफ़ है। एक दफ़ाअ उस ने हमारे लिए फ़त्ह पाई पर हम में हो के फ़त्ह पाएगा। कभी उस का कोई सिपाही हलाक ना हुआ जंग होने के बाद जब सब हाज़िर किए जाऐंगे। तब मालूम होगा कि उनमें से जो उस के झंडे तले लड़ते थे एक भी गैर-हाज़िर नहीं सब के सब उस के गिर्दागिर्द होके अपना ग़ालिब होना उस की मार्फ़त समझेंगे। ऐ पढ़ने वाले अगर ईसा तेरा पेशवा है तो वो तुझे शैतान से मुक़ाबला करने की ताक़त देगा चाहिए कि तू उस पर ग़ालिब हो गुनाह के मुक़ाबले करने की ताक़त देगा। तुझे उस को मग़्लूब करना चाहिए। तेरे लिए हथियार बना के वो तुझे जंग करने को बुलाता है। उस ने वाअदा किया है कि जो ग़ालिब होता है मैं उसे अपने तख़्त पर अपने साथ बैठने दूंगा। चुनान्चे मैं भी ग़ालिब हुआ और अपने बाप के साथ उस के तख़्त पर बैठा। यशूअ की रहनुमाई से मुल्क कनआन बनी-इस्राईल को मिला और जो ईसा हमारा रहनुमा हो तो आस्मान पर उस का सारा जलाल हमको मिलेगा। शुरू में वो इस जंग में पेशवा था और वो उसे अंजाम तक पहुंचाएगा। चाहिए कि हम उस की पैरवी कर के ब-हिम्मत लड़ते रहें, चाहिए कि ख़ुदा के सारे हथियार बांधें ताकि शैतान के मन्सूबों के मुक़ाबिल क़ायम रह सकें। हम अपने पेशवा पर निगाह करते रहें और उस के और अपने दुश्मनों को अपने दिलों में जगह ना दें रात बहुत गुज़र गई है और सुबह नज़्दीक हुई। पस हम अंधेरे के कामों को तर्क करें और रोशनी के हथियार बांधें।
“अब उस के लिए जो तुमको गिरने से बचा सकता और अपने जलाल के हुज़ूर कामिल ख़ुशी से तुम्हें बेऐब खड़ा कर सकता है जो ख़ुदा-ए-वाहिद हकीम और हमारा बचाने वाला है जलाल और क़ुद्रत और इख़्तियार अब से अबद तक हो आमीन।” (यूहन्ना 1:24-25)
ईसा का अपने लोगों के लिए अहद का पूरा करने वाला होना
“मैं तुझे उम्मत का अहद और क़ौमों का नूर ठहराऊंगा।” (यसअयाह 42:6)
अक्सर लोगों को तरह-तरह के ओहदों की तालीम की निस्बत जो बाइबल में मिलती है फ़िक्र और अंदेशा है जो मैं ईसा को ख़ुदा का अहद जानता तो मुझे फ़िक्र नहीं होती। वो कहता है कि मैंने अपने बरगुज़ीदा से अहद बाँधा। फिर कहता है कि इस की सुनो, अगर कोई ख़ुदा का अहद बख़ूबी समझे तो चाहिए कि ईसा की सुने और उस पर ग़ौर करे। वो कहता है कि जिसने मुझे भेजा है, उस की मर्ज़ी ये है कि हर एक जो बेटे को देखे और उस पर ईमान लाए हमेशा की ज़िंदगी पाए और मैं उसे आख़िरी दिन उठाऊंगा। इस अहद का जो बाप और बेटे के बीच बाँधा गया ये बयान हो सकता है कि गुनेहगार की फ़रमांबर्दारी और दुख उठाने और मर जाने के एवज़ में ख़ुदा ईसा की फ़र्मांबरदारी और दुख उठाने और मर जाने को क़ुबूल करता है और ये वाअदा करता है कि मैं सभों को जो मसीह पर ईमान लाएँगे। हयात-ए-अबदी दूंगा। जितना अदल गुनेहगार से दावा करता है उतना ही ईसा अदा करता है और जो कुछ गुनेहगार से दरकार हो वो ईसा की ख़ातिर से दिया जाता है। जो मैं ये क़ुबूल करूँ कि ईसा को अपना शफ़ी जानूंगा। और अपने माफ़ होने और रास्तबाज़ ठहराने और पाक हो जाने के लिए उस के लहू बहाने और ताबे होने पर भरोसा करूँगा। तब ख़ुदा ईसा की ख़ातिर मुझे क़ुबूल करेगा। और मेरे गुनाहों को माफ़ कर के मुझे रास्त ठहराएगा। इस तरह ख़ुदा मसीह में हो के गुनेहगारों को अपने साथ मिला लेता है कि वो उनकी तक़सीरों (ग़लती) को उन पर हिसाब नहीं करता और वो जो गुनाह से वाक़िफ़ नहीं था। हमारे बदले गुनाह ठहरता कि हम उस के सबब इलाही रास्तबाज़ ठहरें। इसी तरह ख़ुदा मसीह में हो के रास्त रहे और उसे जो ईसा पर ईमान लाए रास्तबाज़ ठहराए फ़क़त मसीह में अहद की सारी शर्तें पूरी हुईं। और उसी के वसीले से अहद की सारी बरकतें ईमानदारों को पहुँचती हैं।
“अपना कान झुकाओ और मेरे पास आओ सुनो और तुम्हारी जान जीती रहेगी और मैं तुम्हारे साथ अबदी अहद बांधूंगा। यानी दाऊद की सच्ची मेहरबानियां।” (यसअयाह 55:3)
ईसा का हमारा पेशवा होना
“जहां पेश्तर व ईसा जो मलिकेसिदक़ की तरह हमेशा के लिए सरदार काहिन है हमारे वास्ते दाख़िल हुआ।” (इब्रानियों 6:20)
ईसा मह्ज़ मुहब्बत से हमारे लिए नजात हासिल करने को ज़मीन पर आया और फिर आस्मान पर हमारा पेशरु हो के चला गया। वोह ना सिर्फ राह दिखलाता है बल्कि ख़ूद उसी राह पर चला जाता है। हर एक रोक-टोक जिस पर हम ग़ालिब ना हो सकते थे वो उठा ले गया और उस के नक़्श-ए-क़दम पर निगाह कर के हमको उस की पैरवी करना चाहिए। हमें कुड़कुड़ाना ना चाहिए कि उसी राह पर जिस पर ईसा चला गया, हमको भी चलना पड़ता है। उस ने हमारे लिए आस्मान में दाख़िल हो के हमारे लिए आस्मान का दरवाज़ा भी खोला ताकि हम उस की पैरवी कर के दख़ल पाएं वो राह को आश्कार (ज़ाहिर) करता है और कहता है कि इसी पर चलते रहो। वो उस मकान का जहां वो सुकूनत करता है। बयान कर के कहता है कि जहां मैं हूँ तुम भी होगे। ऐ अज़ीज़ शफ़ी ऐ पेशरु जलील हमको फ़ज़्ल इनायत कर ताकि तेरी पैरवी करें और जब हम पर आज़माईश पड़ती है तो तू हमें याद दिला कि मैं ही उसी राह पर तुम्हारे आगे चला और अब तुम्हारे लिए जगह तैयार कर के अपने बाप के घर में हाज़िर हूँ ताकि तुम्हें अपनी हुज़ूरी और जलाल में दाख़िल करूँ। ईसा आगे गया कि हमारे आने की ख़बर दे वो सारे राह की हाजत को रफ़ा करता है। फ़क़त मसीह ऐसी मुहब्बत और फ़िक्रमंदी दिखला सका। ऐ मेरी जान अपने पेशरु जलील पर निगाह रख और उस पर ताकने वाले हो कर उस दौड़ में जो तेरे सामने आ पड़ी है, दौड़ती जा अपनी सारी मेहनतों में आने वाले आराम पर सोचती रह अपनी लड़ाईयों में आने वाली फ़त्ह पर ध्यान कर और जब तुझे फिर ने का इम्तिहान हो तो ईसा के नक़्श-ए-क़दम को ढूंढ कर उस के पीछे चलती रह। वो तो तमाम राह में दिखलाई देगा। ऐ रूह-उल-क़ुद्स हमारी मदद कर कि हम ईसा पर सोचें और उस पर तकिया (भरोसा) कर के उस के उम्मीदवार हों।
“पस जिस हालत में हमारा एक ऐसा बुज़ुर्ग सरदार काहिन जो अफ़्लाक से गुज़र गया ख़ुदा का बेटा ईसा है तो चाहिए कि हम अपने इक़रार पर साबित-क़दम रहें।” (इब्रानियों 4:14)
ईसा का क़ियामत होना
“क़ियामत और ज़िंदगी मैं ही हूँ जो मुझ पर ईमान लाए अगरचे वो मर जाये जियेगा।” (यूहन्ना 11:25)
इंसान ने गुनाह किया और इसलिए मरते जाते हैं ईसा मुआ और इस सबब से इन्सान जी उठेंगे। क़ियामत की तालीम तालीम अज़ीज़ है मार्था ने इस तालीम को क़ुबूल किया पर सोचते थे कि एक वक़्त सब जी उठेंगे और उस वक़्त तुज मुर्दे रहेंगे, चुनान्चे अपने भाई लाज़र के हक़ में उस ने कहा कि मैं जानती हूँ कि क़ियामत में पिछले दिन फिर उठेगा। तब ईसा ने कहा कि क़ियामत मैं ही हूँ। वो मौत पर इख़्तियार रखता है। वो क़ब्र की कुंजी रखता है। मुर्दों को फिर ज़िंदा करना उस के काबू में है। वो हमको उठाएगा। उस मेल (सुलह) की तासीर से जो हमारे और उस के दर्मियान होता है। वो हमें ठीक अपनी ही मानिंद उठाएगा। हमारे बदन रूहानी होंगे। उन में ना दुख ना दर्द ना किसी तरह की बद-सूरती होगी। वो ख़ूबसूरत और कामिल और जलील होंगे। ईसा के जी उठने के सबब से हम भी जी उठेंगे। क्योंकि वो उनका जो सो गए हैं पहला फल है और जैसा फ़स्ल के पहले फल ख़ुदा को गुज़राने जाते हैं और उस को मक़्बूल हैं। वैसा ही तमाम फ़स्ल के फल उस को गुज़राने जाऐंगे। ऐ वालदैन तुम्हारा लड़का या लड़की जो मसीह पर ईमान ला के मर जाये, फिर उठेंगे। ऐ लड़के तेरे माँ बाप जो मसीह पर ईमान ला के गुज़र गया है जी उठेगा। अगर वह ख़ुदावन्द में मर गए तो जी उठेंगे ताकि उन से ख़ुदावन्द को जलाल मिले चुनान्चे लिखा है, कि ईसा आएगा ताकि अपने मुक़द्दसों से जलाल पाए और अपने सब ईमानदारों में ताज्जुब का बाइस हो ये फ़ानी बक़ा को पहनेगा। और ये मरने वाला हमेशा की ज़िंदगी को और जब ये फ़ानी ग़ैर-फ़ानी को और ये मरने वाला हमेशा की ज़िंदगी को पहन चुकेगा। तब वो बात जो लिखी है पूरी होगी कि फ़त्ह ने मौत को निगल लिया।
“अगर उस की रूह जिसने ईसा को मुर्दों में से जिलाया तुम में बसे तो मसीह का जिलाने वाला तुम्हारे मुर्दा बदन को अपने उस रूह के वसीले से जो तुम में बस्ती है जिलाएगा।” (रोमियों 8:11)
ईसा का सब का सर होना
“और सब कुछ उस के पांव तले कर दिया। और उस को कलीसिया के लिए सब का सर बनाया।” (इफ़िसियों 1:22)
कलीसिया यानी सारे सच्चे ईमानदार मसीह को अज़ीज़ हैं। उस ने कलीसिया को प्यार किया और उस के लिए अपने आपको दिया उस के लिए वो सब का सर बन गया है। सारी चीज़ें ईसा के पांव तले हैं वो सारी चीज़ों का इख़्तियार रखता है। वो क़ादिर-ए-मुतलक़ है और अपने लोगों की भलाई के लिए सारी बातों पर ख़्वाह आस्मान पर ख़्वाह ज़मीन पर ख़्वाह दोज़ख़ में हों हुकूमत करता है। कलीसिया का सर वो है और कलीसिया उस का बदन है। हर ईमानदार उस से इलाक़ा रखता है उस से मुतवस्सिल है और उस से सब कुछ पाता है। कलीसिया का सर हो के वो उस के लिए देखता और सुनता और बोलता और बहर-सूरत उस की ख़बर लेता है। लेकिन ईसा ना फ़क़त कलीसिया का बल्कि सब का सर है। सब कुछ उस पर ज़ाहिर होता है और उस की क़ुद्रत से सँभाला जाता है। और उस की हुकूमत से मुंतज़िम किया जाता है। एक गोरा (चिड़िया) भी उस की बे मर्ज़ी ज़मीन पर नहीं गिरता काश कि सारी बातों में हम ईसा पर लिहाज़ करें। काश कि ये जानें और यक़ीन करें कि फ़क़त मसीह हकीम मुतलक़ और ख़ुदा-ए-क़ादिर है। इस सोच से मेरी रूह ख़ातिरजमा रहे, अगर ईसा सारा इंतिज़ाम करता है। तो ज़रूर सारी चीज़ें उन की बहबूदी (तरक़्क़ी) के लिए जो ख़ुदा से मुहब्बत रखते हैं मिल के फ़ायदा बख़्शेंगी, यानी उन के लिए जो ख़ुदा के इरादे के मुवाफ़िक़ बुलाए गए हैं। चाहिए कि हम ये आरज़ू रखें कि सारी बातों के हक़ में ख़ुदा की मर्ज़ी पूरी हो जाये चाहिए कि अपनी मर्ज़ी को दबाए और सिर्फ उस की मर्ज़ी मंज़ूर करें हमारे हाल की ख़ातिर जमुई और आइन्दा की तरक़्क़ी और आक़िबत की ख़ुशहाली सबकी सब इसी पर मौक़ूफ़ है और जब तक हमारी और मसीह की मर्ज़ी में कामिल मुवाफ़िक़त ना बने तब तक हमको कामिल ख़ुशी व ख़ुर्मी हासिल नहीं हो सकती।
“और वो सबसे आगे है और उस से सारी चीज़ें बहाल रहती हैं। और वह बदन यानी कलीसिया का सर है वही शुरू में मुर्दों में से पहलौठा है ताकि सब बातों में उस का अव़्वल दर्जा हो।” (कुलस्सियों 1:17, 18)
ईसा का दिलसोज़ी रखना
“क्योंकि हमारा सरदार काहिन ऐसा नहीं जो हमारी सुस्तियों में हम्दर्द ना हो सके बल्कि गुनाह के सिवा सारी बातों में हमारी मानिंद आज़माया गया।” (इब्रानियों 4:15)
ईसा ने दुख उठाया उस ने इसलिए दुख उठाया कि तजुर्बेकारी से जाने कि मेरे लोगों को क्या सहना है। उस ने हमारी हालत से बख़ूबी वाक़िफ़ होना चाहा और जहां तक हो सकता वो हमारी मानिंद बन गया। पस वो तजुर्बा से जानता है कि हमारी दुखी और सुखी हालत है वो हमसे ऐसा वाक़िफ़ है जैसा कोई फ़रिश्ता वाक़िफ़ नहीं हो सकता इसलिए कि फ़रिश्ते ने हमारी ज़ात व तबीयत कभी नहीं पकड़ी। ईसा की रिक़्क़त व दिलसोज़ी फ़रिश्तों की निस्बत बहुत ज़्यादा है वो जिस्मानी दुख और रूहानी दुख को भी जानता है वो जानता है कि घबराहट और दिल गेरी और जान कुंदनी किया है। उस की जान आज़ुर्दा हुई उस के बदन में भूक और प्यास और ठंडा और थकावट और ज़ख़्मों से तक्लीफ़ हुई। वो बदन व जान व रूह में दुखी था और जानता था कि बर्दाश्त करने के लिए ताक़त और सँभालने के लिए तसल्ली पाना चाहिए। वो हमारे दर्द के सबब से दर्द-मंद है। हाँ हमारे ही साथ दर्द-मंदी करता है। वो सर है और हम उस के उज़ू हैं सर और आज़ा के दर्मियान ह्मदर्दी जल्द और पाएदार व मुलाज़िम व कामिल है। ईसा की ऐसी दर्द-मंदी होती है। ऐ दुखी फ़क़त मसीह कामिल तौर से तेरे साथ हम्दर्द हो सकता है, क्योंकि उस की हम्दर्दी मोअस्सर है वो तुझे सँभालेगा। और तेरे दुख को तेरे फ़ायदे का बाइस ठहराएगा और आख़िर को तुझे कामिल रिहाई देगा। ईसा तुझ पर सदा निगाह रखता है और तेरा दुख और रंज उस के दिल पर असर करता है वो तुझको तेरी ताक़त से ज़्यादा बोझ उठाने ना देगा। उस की रहमत बहुत नर्म है और उस की शफ़क़तें ला-इंतिहा हैं। अपनी सारी रंज और आफ़तों और दुखों में उस पर निगाह कर और इस सोच से अपने लिए तसल्ली हासिल कर कि मेरे सारे दर्दों में ईसा हम्दर्द है।
“और जब उस ने जमाअतों को देखा उस को उन पर रहम आया क्योंकि वो उन भेड़ों की मानिंद थे जिनका चरवाहा ना हो आजिज़ व परेशान थीं।” (मत्ती 9:36)
ईमानदारों का मसीह में कामिल बनना
“और तुम उस में जो सारी सरदारी और मुख्तारी का सर है कामिल बने हो।” (कुलस्सियों 2:10)
मसीह का जलाल लासानी है उस की सरफ़राज़ी की कोई मुवाफ़िक़त नहीं है। वो सारी मुबारकबादी के ऊपर सरफ़राज़ है। उस के जलाल में उस के लोग हिस्सेदार हैं। वो आप ना-कामिल हैं और उनकी फ़ज़ीलातों में कमाल नहीं मिलता उन के सारे कामों में गुनाह मिलाया जाता है। वो बोझ से दब कर आहें खींचते हैं वो कामिलियत के लिए बड़ी आरज़ू रखते हैं। पर मसीह में कामिल बन गए। उस में पैवस्ता हो कर वो उस के शरीके विरासत हो गए हैं। मसीह को छोड़ के और किसी में कमाल नहीं मिल सकता शराअ ने कुछ कामिल नहीं किया पर उस फ़रमांबर्दारी के वसीले से जिसे मसीह ने किया और उस क़ुर्बानी की मार्फ़त जिसे उस ने दिया ईमानदार उस में कामिल बने। पहले उस की फ़रमांबर्दारी के वसीले से उस के लोग कामिल बनें उस की ज़िंदगी का काम ख़ुदा की फ़रमांबर्दारी थी। ये उस के लोगों के लिए थी वो उन के हिसाब में गिनी जाती है। उस के बाइस वो फ़त्वे से आज़ाद और हयात-ए-अबदी के हक़दार हैं पर उस के होने के वसीले से उस के लोग कामिल बनें उसने एक ही नज़र गुज़राँने से मुक़द्दसों को हमेशा के लिए कामिल किया। क्या ख़ूब ईसा का एक नज़र गुज़राँना काफ़ी था। उस के सारे लोगों के लिए वो काफ़ी है और इसी से वो हमेशा के लिए कामिल बने पर मसीह में सारी भरपूरी है। चुनान्चे लिखा है कि बाप को ये पसंद आया कि सारा कमाल उस में बसे और ये सारी कमालियत उस के लोगों के लिए है फिर वो ताक़त बख़्शता है जैसा लिखा है कि तेरे ज़माने के मुवाफ़िक़ तेरी क़ुव्वत हो वो दानिश भी देता है जो हमारे मुताबिक़ हो और पाकीज़गी बख़्शता कि हम आस्मान पर रहने को तैयार हों। फ़क़त मसीह में हम कामिल हैं अपनी सारी इहितयाजों के रफ़ा करने के लिए उस की तरफ़ माइल होना चाहिए।
“वहां ना यूनानी है ना यहूदी ना खतना, ना नामख़्तूनी, ना बरबरीयत ना उसक़ोती ना गुलाम ना आज़ाद पर मसीह सब कुछ और सब में है।” (कुलस्सियों 3:1)
ईसा आने वाला है
“मैं फिर आऊँगा। और तुमको अपने साथ लूँगा ताकि जहां मैं हूँ तुम भी हो।” (यूहन्ना 14:3)
जो रसूमात मसीही दीन से इलाक़ा रखती हैं। वो बेश क़द्र हैं। मसीह का कलाम भी बेश क़द्र है, लेकिन ख़ुद मसीह के मुक़ाबले में ये कहा है जिस को हम प्यार करते हैं वो ख़ुद मसीह है और जिस क़द्र हमारी उम्र बढ़ती है उसी क़द्र हमारी आरज़ूऐं मसीह के लिए बढ़ती जाती हैं। जो आस्मान पर मसीही ना हो तो वो जगह हमारे लिए ख़ातिरपसंद ना हो और ज़मीन पर जिसके हम आर्ज़ूमंद हैं सो मसीह है, अगर मसीह के साथ होने की इंतिज़ारी ना हो तो मौत की बाबत सोचना क्या ही दिलगीरी होती। मसीह का आना हमारी उम्मीद की ग़र्ज़ है एक बार उसने पस्त हाली में आ के हमारे लिए दुख उठाने और मर जाने में अपना प्यार दिखाया। दूसरी बार अपने जलाल में आएगा। तब हमको अपनी मानिंद करके हमको अपनी हुज़ूरी से ख़ुश करने में अपनी मुहब्बत दिखलाएगा। अभी वो ख़ुदा के हुज़ूर हमारे लिए हाज़िर रहता है और जल्द आएगा और हमें अपने पास लेगा। उस ने सिर्फ थोड़े अर्से के लिए इस दुनिया को छोड़ा है और अब हम उस के इंतिज़ार में हैं कि आस्मान पर से उतरेगा और हमको ग़ज़ब से छुड़ा के अबदी जलाल में दाख़िल कर देगा। फ़क़त मसीह और उस की हुज़ूरी हमारे साथ हमारी जानों की आरज़ू को रफ़ा करेगी। चूँकि जब उस ने कहा कि मैं यक़ीनन जल्द आता हूँ लिहाज़ा हम उस के ज़हूर के मुंतज़िर हैं और आर्ज़ूमंद हो के पुकारते हैं कि हाँ ऐ ख़ुदावन्द ईसा तमाम ख़ल्क़त के लिए वो दिन जब मसीह आएगा क्या ही मुबारक दिन होगा। क्योंकि तब उस की चीख़ें मारने के अय्याम ख़त्म होंगे और उस के पेड़ें (दुख, दर्द) याद भी ना आएगी। और अगर ख़ल्क़त के लिए ऐसी ख़ुशी बाक़ी है तो कलीसिया के लिए जो मसीह का बदन है कितना ज़्यादा होगा। इस वास्ते तुम अपने फ़हम की कमर बांध के होशयारी से इस फ़ज़्ल की कामिल उम्मीद रखो जो ईसा मसीह के ज़ाहिर होते वक़्त तुम पर नाज़िल होगा।
“अब ऐ बच्चो तुम उस में रहो ताकि जब वो ज़ाहिर हो तो हम बेपर्वा हों और उस के आते वक़्त उस के आगे शर्मिंदा ना हूँ।” (1 यूहन्ना 2:28)
ईसा का अबद तक यकसाँ होना
“ईसा मसीह कल और आज और अबद तक यकसाँ है।” (इब्रानियों 13:8)
दुनिया मुतग़य्यर (बदली हुई) और बे-सबात है दो रोज़ के वाक़ियात में क्या ही दूर नगी (बेगानगी, मुनाफ़क़त) है। शायद हमारे रिश्तेदारों में से बाअज़ मेरे दोस्तों की निस्बत ख़्वाह बदनी ख़्वाह दिली मुफ़ारकत (जुदाई, अलैह्दगी) हो के सेहत के एवज़ बीमारी और आराम के एवज़ दुख और सलामती के बदले तक्लीफ़ और ख़ुशी की जगह रंज और ज़िंदगी मौत से बदल जाये। हमारे अंदर और पाया सब नापायदार और तब्दीली पज़ीर है, मगर एक है जो बदलता नहीं ईसा हमेशा यकसाँ है। उस की ज़ात व सिफ़ात बे तब्दील हैं उस की मुहब्बत मुस्तहकम है। उस की शफ़क़तें हर सुबह को नूअ बनूअ हैं वो बे-इंतिहा हैं उस का दिल हमारी तरफ़ लगा रहता है वो हमेशा हमारे लिए मोअस्सर काम करता है। उस की आँखें मुझको देखती हैं। उस के अबदी बाज़ू हमारे नीचे हैं हाँ कमबख़्ती और ख़ुश-वक़्ती बीमारी और तंदरुस्ती मौत और ज़िंदगी में ईसा यकसाँ है। उस की ज़ात व तबीयत बे-तब्दीली हैं। जो उस के मुँह से निकला उसे ना बदलेगा। पहाड़ जाते रहेंगे और कोह हिल जाऐंगे पर उस की मेहरबानी में जो हम पर है कुछ फ़र्क़ ना पाया जाएगा और उस की सुलह का अहद जुंबिश ना करेगा। आलम बदले तो मुम्किन है लेकिन ईसा का प्यार और कलाम यकसाँ रहेगा आस्मान और ज़मीन टल जाऐंगे मगर उस की बातें हरगिज़ ना टलेंगी। वो जो कहता सो पूरा करेगा। उस के हाथ हमेशा फैले हैं कि हम आएं और उस की गोद में आराम पाएं उस के लहू का चशमा हमेशा बहता रहता है और उस में हम अपने गुनाहों को धो डालें और अपना लिबास उजला करें। फ़क़त मसीह पर हमारा भरोसा रखा जाये। वो हमारी तसल्ली का सोता और हमारे ख़ुश करने का बाइस होगा। अगर ईसा हमारा हो तो हर वक़्त और हर हाल में हम दाऊद की मानिंद गा सकते हैं कि ख़ुदावन्द ज़िंदा है और मेरी चट्टान मुबारक है और ख़ुदा मेरी नजात की चट्टान बुलंद व बाला है।
“तू वही है और तेरे बरस जाते ना रहेंगे।” (इब्रानियों 1:12)
हाल ख़ौफ़नाक
“जो कोई ख़ुदावन्द को अज़ीज़ नहीं रखता मलऊन हो। हमारा ख़ुदावन्द आने वाला है।” (1 कुरिन्थियों 16:22)
क्या हम ईसा से मुहब्बत ना रखें क्या ऐसे लोग भी हैं जो ईसा से मुहब्बत नहीं रखते। हाँ बहुतेरे ऐसे हैं उस की निस्बत सुनते हैं। उस के हक़ में पढ़ते हैं। उस की बाबत गुफ़्तगु करते हैं पर उस से मुहब्बत नहीं रखते अगर वो कभी बच जाऐंगे, तो ईसा के वसीले से बचना चाहिए लेकिन तो भी उस को प्यार नहीं करते ये हाल ख़ौफ़नाक है। ऐ मेरे दोस्त फ़क़त मसीह तुझे बचा सकता है अगर वो तुझे ना बचाए तो तुझे दोज़ख़ में जाना पड़ेगा। तुझे दोज़ख़ के अज़ाब को सहना पड़ेगा। तू सदा शैतान की शराकत करेगा। सिर्फ मसीह के वसीले से आदमी बाप के पास पहुंच सकता और उस को मक़्बूल हो सकता है। सिर्फ ईसा पर ईमान लाने से आस्मानी मीरास मिलेगी। फिर जो लोग मसीह से मुहब्बत नहीं रखते वो उस पर ईमान भी नहीं रखते। ये भी सोचो कि अगर कोई गुनाह से नफ़रत ना रखे तो वो ईसा से मुहब्बत नहीं रख सकता। ऐ प्यारो ! उस के सिवा कोई दूसरी राह नहीं फ़क़त मसीह के वसीले से बचना चाहिए या हलाक होना चाहिए। ख़ुदा का फ़ज़्ल जिससे नजात है तुम पर ज़ाहिर हुआ इस फ़ज़्ल को ईमान पकड़ता है और पकड़ते है फ़ौरन ईसा ईमानदार को अज़ीज़ है। चुनान्चे पत्रस कहता है कि वो तुम्हारे वास्ते जो ईमान लाए हो क़ीमती है। पस अगर तुम्हारे लिए मसीह क़ीमती ना होतो इस सबब से है कि तुम उस पर ईमान नहीं लाते और अगर तुम उस पर ईमान नहीं लाते तो तुम अब तक अपने गुनाहों में गिरफ़्तार हो और ख़ुदा का ग़ज़ब तुम पर बना रहता है और अगर अपने गुनाहों में गिरफ़्तार हो के मर जाओ तो जब मसीह आएगा, तुम मलऊन होगे। पस मेरा ये इल्तिमास सुनो कि आपको जांचो कि तुम ईमान के साथ हो कि नहीं अपने को परखो और ये जान लो कि ईसा मसीह तुम में है और नहीं तो तुम ना मक़बूल हो।
“जो बेटे पर ईमान लाता है हमेशा की ज़िंदगी उस की है और जो बेटे पर ईमान नहीं लाता हयात को ना देखेगा। बल्कि ख़ुदा का क़हर उस पर रहता है।” (यूहन्ना 3:36)
तसल्ली-देह का शख़्स इलाही होना
“क्यों शैतान तेरे दिल में समाया कि तू रूह-उल-क़ुद्दुस से झूट बोले तू आदमी से नहीं बल्कि ख़ुदा से झूट बोला।” (आमाल 5:34)
हर एक ख़ुसूसियत जिससे शख़्स होना जाना जाता है। पाक कलाम में रूह-उल-क़ुद्स को दी जाती है। वो भेजा जाता आता और काम करता है वो सिखलाता ले जाता और राह बतलाता है। वो बोलता बातें ज़ाहिर करता और गवाही देता है वो शख़्स इलाही है और क़ुद्रत व बुजु़र्गी और जलाल में ख़ुदा बाप और ख़ुदा बेटे का हम-सर है। बपतिस्मा के ज़ाबते में वो बाप और बेटे के साथ शरीक होता है क्योंकि हम बाप और बेटे और रूह-उल-क़ुद्स के नाम से बपतिस्मा पाते हैं। उस दुआ से भी जो रसूलों ने दी और जो कलीसिया में दी जाती है। उस का नाम है यानी ये कि ख़ुदावन्द ईसा मसीह का फ़ज़्ल और ख़ुदा की मुहब्बत और रूह-उल-क़ुद्स की शिरकत तुम सभों के साथ हो आमीन। जो दलीलें हैं कि ख़ुदा बाप एक शख़्स और इलाही है वही दलीलें रूह-उल-क़ुद्स के शख़्स होने और इलाही होने के लिए काम आती हैं। उलूहियत की सारी सिफ़ात उस को दी जाती हैं और बाप और बेटे के बराबर कलीसिया से हम्द और जलाल और इज़्ज़त पाने के लायक़ है। ख़ुदा के कलाम के तज़किरे में वो कभी मुतकल्लिम फिर मुख़ातिब और फिर ग़ायब है और हर शख़्सी काम अमल में लाता है। वो बाप और बेटे से अलेहदा (अलग) है और बाप और बेटे के साथ हमता (बराबर, नज़ीर, शरीक) है और वो आप ही में ज़ात इलाही की भरपूरी रखता है क्योंकि वो बज़ाते असालतन और हमेशा ख़ुदा है। ऐ रूह-ए-पाक अपनी शख़्सियत और ज़ात इलाही और असली जलाल की बाबत हमें साफ़ समझा दे काश कि पाक कलाम में तुझे देखें और अपने दिलों में तुझे हाज़िर जानें और रोज़ बरोज़ तेरे साथ सोहबत रखें।
“क्या तुम नहीं जानते कि तुम ख़ुदा की हैकल और ये कि ख़ुदा की रूह तुम में बस्ती है।” (1 कुरिन्थियों 3:16)
रूह-ए-पाक का तसल्ली बख़्श होना
“अगर मैं ना जाऊं तो तसल्ली देने वाला तुम्हारे पास ना आएगा पर अगर मैं जाऊं तो मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा।” (यूहन्ना 16:7)
ख़ुदा के लोगों के लिए एक तसल्ली बख़्श चाहिए क्योंकि उन को हर तरह का रंज व ग़म मिलता है। चूँकि अंदर गुनाह और बाहर दुनिया की आज़माईशें और हर कहीं शैतान है और ये सब उस को सताते और वरग़लानते हैं। लिहाज़ा कुछ ताज्जुब नहीं कि अक्सर वो नाउम्मीदी और तक्लीफ़ में डूब जाएं। इलावा इस के उनकी रोज़मर्रा फ़िक्रें उनको दबाती और घबराती हैं और जब वो ज़बरदस्तों का ज़ुल्म और मिस्कीनों की तंगहाली और ईसाइयों का कम ईमान और कम मुहब्बत देखते हैं तो ज़रूर रंज व ग़म खाते हैं, ऐसे हाल में इन्सान थोड़ी तस्कीन दे सकते हैं। सिर्फ ख़ुदा वाजिबी तौर से तसल्ली बख़्श सकता है, चुनान्चे रूह-ए-पाक ने ये ओहदा लिया है। वो ईमानदारों के लिए तसल्ली बख़्श है वो ईसा की सारी भरपूरी और बाप के सारे इरादों से वाक़िफ़ है। जलाल की सारी दौलत और फ़ज़्ल के खज़ाने उस के जाने जाते हैं और उस का काम ये है कि इसी से ख़ुदा के लोगों को तसल्ली दे वो हर एक ईमानदार को और उस के हाल को भी पहचानता है वो दिल में दाख़िल हो के हमारी सब हाजतों को रफ़ा कर सकता है। वो हर एक दुश्मन और आज़माईश से वाक़िफ़ है वो हमारी नज़र ईसा की तरफ़ रुजू करता है वो हमें ऐसी तर्ग़ीब देता है कि ख़ुदा पर भरोसा रखें। वो हमारे दिलों में जलाल की उम्मीद पैदा करता है। वो ख़ुदा के वादों को ले के हमको बतलाता है कि उन में हमारा क्या हिस्सा है। वो गोया हम पर कफ़्फ़ारे का ख़ून छिड़कता है। वो सलामती देता है। वो हमको शैतान से लड़ना सिखाता है। हमारी सारी तक़्लीफों में वो हमको तसल्ली देता है, बल्कि ऐसी तसल्ली बख़्शता है कि गुनाह से नफ़रत रखें और ईसा को प्यार करें और पाकीज़गी को ज़्यादा चाहें। ऐ रूहे पाक हमारे दिलों पर नाज़िल हो और हमको ये ख़ूब तसल्ली दे।
“जैसा आदमी जिसे उस की माँ तसल्ली बख़्शती है वैसा ही मैं तुमको तसल्ली बख्शूंगा और तुम यरूशलेम में तसल्ली पाओगे।”
(यसअयाह 66:13)
तसल्ली देने वाले का ईमानदारों के साथ हमेशा रहना
“मैं अपने बाप से दरख़्वास्त करूँगा और वो तुम्हें दूसरा तसल्ली देने वाला बख़्शेगा कि हमेशा तुम्हारे साथ रहे यानी रूहे हक़।”
(यूहन्ना 14:16-17)
ईसा कुछ अर्से तक अपने लोगों को तसल्ली देने और उन की तस्कीन अबदी की बुनियाद डालने को दुनिया में आया। वो तसल्ली का चशमा है और सारी रूहानी तसल्ली उस के कामिल काम पर मुन्हसिर है लाज़िम था कि वो अपने बाप के पास फिर जाये ताकि हमारे लिए हमेशा सिफ़ारिश करे मगर उस ने रूह-उल-क़ुद्स को भेजा कि वो कलीसिया के साथ रहे। रूह-उल-क़ुद्स जो पंतिकोस्त के रोज़ बकस्रत ज़ाहिर हुआ, कलीसिया के साथ उसी वक़्त से रहा है और उस के साथ अबद तक रहेगा। कलीसिया में रूह-उल-क़ुद्स ईसा को दिखलाता है और उस का जलाल ज़ाहिर करता है। वो ईमानदार के दिल पर नाज़िल होता है और उसे ईसा की हैकल में बदलता है और वहां हमेशा हुकूमत करता है। गाह-गाह (कभी-कभी) वो हमारी रविश को देखकर ग़म खाता है, कभी तम्बीह देता है। अपनी तसल्ली वो तासीरें नहीं देता हमको हमारी उम्मीद की बाबत यक़ीन नहीं दिलाता। हमारे ले-पालक होने पर गवाही नहीं देता पर वो हमें कभी तर्क नहीं करता। हमेशा हमारे साथ रहता। ख़याल मुबारक ये है सोचता हूँ कि अगर मुम्किन होता कि रूह-ए-पाक अपनी हैकलों को छोड़े और नाफ़रमांबरदारों और बाग़ीयों को तर्क करे तो मुद्दत से मुझ को छोड़ता अभी तक उसने हमारे वास्ते मेहनत की है और फ़त्ह भी पाई और फ़त्ह पाना उस में ज़ाहिर है कि जब हम अपने बाप से दूर गए थे। रूह की हिदायत व हिमायत और नाला व मिन्नत के साथ हम फिराए और उस की बग़ावत हमने की फिर ताबे हुए। ऐ रूह मुबारक तेरा शुक्र हो कि तू वफ़ादार है। मेरे साथ रहा कर और मुझ पर ईसा को ज़ाहिर कर के मुझे मसरूर कर।
“जो कोई वो पानी जो मैं उसे दूंगा पिए वो कभी प्यासा ना हो बल्कि जो पानी मैं उसे देता हूँ उस में पानी का सोता हो जाएगा जो हमेशा की ज़िंदगी तक जारी रहेगा।” (यूहन्ना 4:14)
तसल्ली देने वाले का हमा जा होना
“तेरी रूह से मैं किधर जाऊं और तेरे हुज़ूर से किधर भागूं, अगर आस्मान पर चढ़ जाऊं तो वहां तू है और क़ब्र को बिस्तर बनाऊँ देख तू वहां है।” (ज़बूर 139:7-8)
किसी दोस्त का हमारे साथ मौजूद होना दिल पज़ीर है पर ऐसा दोस्त मिलना जो हर बात में हमारा हम्दर्द हो और उस का हमेशा हमारे साथ रहना क्या ख़ूब है रूह-ए-पाक ऐसा ही दोस्त है और वो हमेशा साथ है। ख़ुदा हो के वो इस क़ाबिल है कि हमा जा (हर जगह) हो सकता और उसने अहद भी बाँधा है कि ईमानदारों के साथ हर वक़्त और हर जा (जगह) हाज़िर रहूँगा। वो ना सिर्फ हाज़िर है बल्कि हमारे दिलों को हिदायत करने और हमको ख़ताओं से मुतनब्बाह (आगाह किया) करने और हमारी तबीअतों को इल्ज़ाम देने और हमको सच्चाई के हक़ में याद दिलाने और हमारे दिलों को पाक-साफ़ करने और दुखों में हमें तसल्ली देने के लिए मौजूद है। वो हमको कभी ना छोड़ेगा। अगरचे हमारी ख़ताओं के सबब से वो ग़म खाए और हमको तसल्ली ना दे पर तो भी हमारे दिलों पर असर करेगा और इल्ज़ाम दे के और तम्बीह कर के हमें जगाएगा। और हमको भटकने से लौटा देगा। वो अपने हाथ के काम को कभी ना छोड़ेगा। पस चाहिए कि हम उस की वफ़ादारी और कामिल मुहब्बत पर इसी तरह सोचते रहें कि रूह-ए-पाक मेरे साथ है वो मेरी सारी चाल को देखता और मेरे दिल के मन्सूबों को पहुंचाँता है। चाहिए कि ऐसी सोच हमारे दिल में रहें तो हम जिस्म के लिए ना बोएँगे। जिससे ख़राबी की फ़स्ल है पर रूह के लिए बोएँगे और हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे। ऐ मेरी जान याद रख कि रूह-ए-पाक हमेशा तेरे साथ है और तुझे बरकत दिया चाहता है वो तेरा रोज़-रोज़ का सिखलाने वाला है तेरा दोस्त है कभी उस को ग़मगीं ना कर।
“रूह सब चीज़ों को बल्कि ख़ुदा की गहरी बातों को भी दर्याफ़्त कर लेते है।” (1 कुरिन्थियों 2:15)
रूह-उल-क़ुद्स का क़ादिर होना
“जब रूह-उल-क़ुद्स तुम पर आएगा तो तुम क़ुव्वत पाओगे।” (आमाल 1:8)
सब अजीब मोअजज़ात जो रसूलों से किए गए और फ़ज़्ल की बड़ी करामात जो ईमानदार के दिल में ज़ाहिर की गई। रूह-उल-क़ुद्स की क़ुद्रत से मन्सूब हुई बग़ैर क़ुद्रत के हक़ीक़ी दीनदारी नहीं हो सकती और रूह की क़ुद्रत के सिवा और कोई क़ुद्रत इस क़ाबिल नहीं है। हवारियों ने ईसा से हुक्म पाया कि येरूशलेम से बाहर ना जाओ बल्कि बाप के वाअदे की राह देखो। वाअदा ये था कि तुम थोड़े दिनों के बाद रूह-उल-क़ुद्स से बपतिस्मा पाओगे। रूह-उल-क़ुद्स अपनी क़ुद्रत और तासीर के बतलाने के लिए अपने को तीन अनासिर क़वी से मुक़ाबला करता है। यानी हवा और आग और पानी से उस की क़ुद्रत गुनेहगार की ख़राबी को जीत लेती और गुनेहगार को मसीह की तरफ़ रुजू करने और उस को इस क़द्र सँभालती है कि अगरचे कमज़ोरी में कीड़ा सा हो, लेकिन अपने सारे दुश्मनों पर ग़ालिब होता है। रूह-उल-क़ुद्स के हमारे दिल में बसने से हमको ख़ुदा के साथ क़ुद्रत है और शैतान के ऊपर भी क़ुद्रत और गुनेहगारों के दिलों पर असर कर सकते हैं। रूह की क़ुद्रत से हम सब कुछ कर सकते हैं और सब दुखों को बर्दाश्त कर सकते हैं। ये क़ुद्रत कलीसिया को ज़रूर है ताकि वो बरूमंद हो और उस के शरीकों में ख़लामला हो और वो पाक बन के तरक़्क़ी पाए और ये क़ुद्रत हर एक ईसाई को चाहिए ताकि वो ख़ुश रहे और दुनिया से अलेहदा (अलग) हो के ख़ुदा की तालीम को सब बातों में रौनक दे, मगर हम को रूह की क़ुद्रत की ऐसे ख़्वाहिश नहीं जैसा लाज़िम है और इस सबब से इस की तलाश वाजिब तौर से नहीं करते। जानना चाहिए कि अगर हम दीनदारी में तरक़्क़ी पाएं और मसीह की मानिंद बनते जाएं और ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर करें तो रूह-उल-क़ूदस की क़ुद्रत से भर जाना चाहिए। ऐ रूह-ए-पाक तू क़ुद्रत की रूह होके मेरे दिल में रह और बहरसूरत मुझे ख़ुदावन्द ईसा मसीह की मानिंद बना।
“ख़ुदा ने हमको दहश्त की रूह नहीं बल्कि क़ुद्रत और मुहब्बत और होशयारी की दी है।” (2 तीमुथियुस 1:7)
रूह-उल-क़ुद्स का ख़ुद-मुख़्तार होना
“लेकिन वही एक रूह ये सब करती है मगर जैसा चाहती है हर एक को बाँटती है।” (1 कुरिन्थियों 12:11)
अगले ज़मानों में रूह-ए-पाक के इनाम और काम कलीसिया में बहुत से और तरह तरह के थे और ये ख़ुद रूह से दिए गए। उन के हक़ में किसी का कुछ दावा ना था। अब भी वैसा ही है। रूह-उल-क़ुद्स ख़ुदा हो के इख़्तियार रखता है कि जो चाहिए सो करे मुक़द्दसों को बुलाने में वो बिल्कुल इख़्तियार रखता है और उनको ऐसा आराम देता है, जैसा उनकी हाजत के मुताबिक़ हो ख़ुदा का कलाम जब तक रूह-ए-पाक उस के सुनने और सुनाने पर बरकत ना दे बे-तासीर रहेगा। लेकिन इस काम में भी यही रूह बरतर है और एक को क़ाइल करता और दूसरे को तम्बीह देता और तीसरे को तसल्ली बख़्शता है। वो गुनेहगार को फ़रोतन करता है और ईसा पर इज़्ज़त बख़्शता है और ख़ुदा के फ़ज़्ल को सर्फ़राज़ करता है। हर काम और हर बात वो क़ादिर-ए-मुतलक़ है, अगरचे अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ करता है, लेकिन वो कभी-कभी आदमी के ज़िम्मे और जवाबदेही को नहीं रोकता और अक्सर बग़ैर वसीले के किसी के दिल पर असर नहीं करता बल्कि इस के बरअक्स उस की ये मर्ज़ी है कि किसी ना किसी वसीले से वो तासीर करता है। और ऐसे वसीलों से जो उस को पसंद हों इस्तिमाल करता है। वो कलीसिया में सल्तनत करता और उनसे काम करवाता है और उस के हर एक शरीक में काम लेता है और जो कुछ वो करता है सो ईसा के नाम पर और उस के जलाल को बढ़ाने के लिए करता है। रूह क़ादिर हो के वह सब कुछ कर सकता है और अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ करता रहेगा। और चूँकि वो अपनों से कामिल मुहब्बत रखता है। पस जो कुछ वो करता उन के हाल की और अबदी भलाई के लिए करता है। ऐ रूह मुबारक मेरे दिल में असर कर कि मैं तेरी मर्ज़ी बजा लाने की आरज़ू रखूं और तेरा काम भी करूँ। मेरे दिल में असर कर कि मैं अपनी नजात के काम किए जाऊं। मेरे दिल में असर कर कि मैं ख़ुदा के जलाल के ज़ाहिर करने में मुस्तइद रहूं।
“ख़ुदा आप इस पर निशानों और करामातों और तरह-तरह के मोअजिज़ों और रूह-उल-क़ुद्स की बाँटी हुई नेअमतों से अपनी मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ गवाही देता रहा।” (इब्रानियों 2:4)
रूहे पाक का सरनू पैदा करने वाला होना
“जो जिस्म से पैदा हुआ है जिस्म है और जो रूह से पैदा हुआ रूह है। ताज्जुब ना कर कि मैंने तुझे कहा कि तुम को सरनौ (नए सिरे) पैदा होना ज़रूर है।” (यूहन्ना 3:6-7)
जैसा सोता वैसा धारा, आदम से उसी की सूरत में औलाद पैदा हुई। बज़ाते हम सब के सब जिस्मानी आदमी की सूरत पर पैदा हो के नफ़्सानी बिगड़े और ख़राब पैदा हुए हैं। इस हालत में मुब्तला हो के नामुम्किन है कि ख़ुदा की बादशाहत की खासियतें जानें या उन में ख़ुश हों, चुनान्चे लिखा है कि नफ़्सानी आदमी ख़ुदा की रूह की बातों को नहीं क़ुबूल करता कि वो उस के आग बेवक़ुफ़ियां हैं और ना वो उन्हें जान सकता क्योंकि वो रूहानी तौर पर बूझी जाती हैं, इस सबब से रूह-उल-क़ुद्स का काम निहायत ज़रूरी है और उस के मुताबिक़ मसीह ने ख़ुद कहा कि अगर कोई सरनौ (नए सिरे से) पैदा ना हो तो वो ख़ुदा की बादशाहत को देख नहीं सकता। रूह-ए-पाक की तासीर से नई इन्सानियत पैदा होती है और हम नई मख़्लूक़ बनते हैं। जब उस की मार्फ़त हमारी समझ खुल जाती तब ख़ुदा की शरीअत की रूहानियत और अपने बर्गश्ता और बिगड़े हुए हाल से वाक़िफ़ हो जाते हैं और ये भी जानते हैं कि बे फ़ज़्ल के नजात हो नहीं सकती। तब ये भी मालूम करते हैं कि ख़ुदावन्द ईसा मसीह हमारी कुल रूहानी हाजतों को रफ़ा कर सकता है और उस के सिवा कोई दूसरा इस क़ाबिल नहीं है। इस नई पैदाइश का एक फल ये है कि दिल में मसीह के लिए आरज़ू और शौक़ पैदा होता है और ईमानदार मसीह के नक़्शे क़दम पर चलता है और मसीह पर लगा रहता है उसी पर तकिया (भरोसा) कर के और उस के साथ सोहबत रख के ईमानदार मसीह का हमशक्ल बनता है और सभों पर ज़ाहिर होता है कि इस शख़्स में कैसी बड़ी तब्दील हुई हैं। बाद इस के वो जिस्मानी शहवतों में मुब्तला नहीं, बल्कि ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ अपनी ज़िंदगी बसर करता है। वो ख़ुदा के बेटे पर ईमान लाने से ज़िंदा है और गोया मसीह का ख़त है जो सब आदमी जानते और पढ़ते हैं, अगर कोई मसीह में है तो वो नया मख़्लूक़ है। पुरानी चीज़ें गुज़र गईं देखो कुल चीज़ें नई हुईं।
“वो जो जिस्म के तौर पर हैं उनका मिज़ाज जिस्मानी है पर वो जो रूह के तौर पर हैं उनका मिज़ाज रूहानी है।” (रोमियों 8:5)
रूहे पाक का गुनाह की बाबत क़ाइल करना
“और वो आकर दुनिया को गुनाह से और रास्ती से और अदालत से क़सूरवार ठहराएगा गुनाह से इसलिए कि वो मुझ पर ईमान नहीं लाए।” (यूहन्ना 6:8-9)
आयत मज़्कूर में दुनिया को गुनाह से क़सूरवार ठहराने से क़ाइल करना मुराद है, बल्कि ऐसा क़ाइल करना कि इस में इल्ज़ाम देना भी शामिल होता है। वो ख़ास गुनाह जिसका इस मुक़ाम में ज़िक्र है बेईमानी है। इन्सान की राय है कि जो शरीअत को उदूल (रुगिरदानी, इन्कार) करते हैं। उन को क़सूर-वार ठहराती हैं पर रूह-ए-पाक का ये काम है कि जो मसीह पर ईमान नहीं लाते, उन को क़सूरवार ठहराता है। वो सिखलाता है कि ईसा मसीह गुनेहगारों के बचाने को दुनिया में आया है। और वो गुनेहगार को बचाने के क़ाबिल और रज़ामंद है और उस को क़ाइल भी करता है कि तू मसीह पर ईमान नहीं लाया और ये तेरा गुनाह है इसलिए हम पर फ़र्ज़ है कि मसीह पर ईमान लाएं क्योंकि ख़ुदा हमको ऐसा हुक्म देता है। चुनान्चे यूं मस्तूर (सतर किया गया, ऊपर लिखा गया) है कि ये लिखी गई ताकि तुम ईमान लाओ कि ईसा मसीह ख़ुदा का बेटा है और ताकि तुम ईमान ला के उस के नाम से ज़िंदगी पाओ। उन्हें जो ईमान लाते हैं नजात का वाअदा किया जाता है, चुनान्चे लिखा है कि जो कोई ईमान लाता और बपतिस्मा पाता है नजात पाएगा। बेईमानी का फल हलाकत है और इस के मुताबिक़ ये भी मस्तूर है कि “जो ईमान नहीं लाता उस पर सज़ा का हुक्म किया जाएगा।” उन आदमियों में से जिनके पास इन्जील पहुँचती है हर एक मसीह को ख़्वाह क़ुबूल ख़्वाह ना क़ुबूल करता है। जो शख़्स ईमान नहीं लाता वो मसीह की बेइज़्ज़ती करता है। और कौनसा गुनाह इस से बड़ा है? काश कि हम इस गुनाह की बुराई समझें और दिल ही से मसीह पर ईमान लाएं। ऐ रूह-उल-क़ुद्स जो ईमान का पैदा करने वाला है। अगर मेरे दिल में ईमान ना हो तो उसे पैदा कर और अगर हो तो उसे ज़्यादा कर ताकि मैं ना फ़क़त अपनी जान बचाने के लिए बल्कि ख़ुदा के जलाल और रहम बढ़ाने के वास्ते भी ईमान लाऊँ।
“और सज़ा क़े हुक्म का सबब ये है कि नूर जहां में आया और इन्सान ने तारीकी को नूर से ज़्यादा प्यार किया क्योंकि उन के काम बुरे थे।”
(यूहन्ना 3:19)
रूहे पाक का रास्तबाज़ी के हक़ में क़ाइल करना
“और वो अगर दुनिया को रास्ती से क़सूर-वार ठहराएगा इसलिए कि मैं अपने बाप के पास जाता हूँ और तुम मुझे फिर ना देखोगे।”
(यूहन्ना 16:8-10)
रूह-ए-पाक हमको क़ाइल करता है कि ईसा का दावा रास्त और उस का चाल चलन कामिल है और उस ने शरीअत को पूरा किया है और इसी तरह रूह की हिदायत से हम यक़ीन करते हैं कि ईसा ने ख़ुदा का बेटा होके कामिल रास्तबाज़ी निकाली है जिससे हर एक ईमानदार ख़ुदा के आगे रास्तबाज़ ठहरेगा। रूह-ए-पाक हमको बताता है कि हमारी ख़ुद की रास्तबाज़ी नजात के काम ना आएगी और ये कि वो गंदी धज्जी की सी है और जो किसी दूसरे की रास्तबाज़ी हासिल ना हो तो ज़रूर हलाक होंगे। वो हमको ये भी सिखलाता है कि शरीअत की ग़ायत ये है कि मसीह हर एक ईमानदार की रास्तबाज़ी हो और ये कि हर एक जो ईमान लाता सब बातों से बेगुनाह ठहरता है। रूह की हिदायत से हम समझते हैं कि ख़ुदा जो रास्त है किसी को जो रास्त नहीं रास्तबाज़ नहीं ठहराएगा। और इसलिए कि हम नारास्त हैं। पस अपनी सदाक़त को पेश कर के ख़ुदा के हुज़ूर में पहुंच नहीं सकते। फिर रूह-उल-क़ूदस हमको सिखलाता है कि ईसा की रास्तबाज़ी उन सभों पर जो ईमान लाते हैं गिने जाते हैं और इसी रास्तबाज़ी के सबब से वो ख़ुदा के हुज़ूर में रास्त ठहरते हैं, फिर रूह-ए-पाक के असर करने से गुनेहगार आप और अपने कुल कामों पर नहीं बल्कि बरअक्स इस के मसीह पर भरोसा रखता है और उस को हिक्मत और रास्तबाज़ी और पाकीज़गी और ख़लासी जान के अपने को उस के सपुर्द करता है। रूह-उल-क़ुद्स की तासीर से गुनेहगार मसीह पर ईमान लाता है। और उस का फल ये है कि मसीह ईमानदार के नज़्दीक सब में और सब कुछ है। इसी तरह मसीह की रास्तबाज़ी मोअस्सर है और जो नारास्त हुए वो रास्त हो जाते हैं, यानी मसीह की रास्तबाज़ी के सबब से जो उन के हिसाब पर गिनी जाती है। वो रास्तबाज़ ठहरते हैं, चुनान्चे कलाम अल-क़ूदस में मस्तूर है कि जैसा एक शख़्स की नाफर्माबर्दारी से बहुत लोग गुनेहगार ठहरे वैसा ही एक की फ़रमांबर्दारी के सबब से बहुत लोग रास्तबाज़ ठहरेंगे। ऐ रूह-उल-क़ुद्स मुझ पर मसीह की रास्तबाज़ी इस क़द्र ज़ाहिर कर कि अपनी रास्तबाज़ी को बातिल जान कर सिर्फ उसी की रास्तबाज़ी का मुश्ताक़ रहूं।
“और इस वक़्त की बाबत भी अपनी रास्ती ज़ाहिर कर ताकि वो आप ही रास्त रहे और उसे जो ईसा पर ईमान लाए रास्तबाज़ ठहराए।”
(रोमियों 3:26)
रूहे पाक का अदालत की निस्बत क़ाइल करना
“और वो अगर दुनिया को अदालत से क़सूर-वार ठहराएगा इसलिए कि इस जहान के सरदार पर हुक्म किया गया है।” (यूहन्ना 16:8-11)
रूह-ए-पाक बताता है कि ख़ुदा रास्त व अदल है और उस ने अदालत के वास्ते अपनी मुस्नद क़ायम की और एक रोज़ ठहराया है। जिसमें वो रास्ती से दुनिया की अदालत करेगा और अपने बेटे को मुंसिफ़ ठहराएगा। जो हर एक को उस के काम के मुताबिक़ बदला देगा इस की एक क़वी दलील ये है कि मसीह की मौत के सबब से इस दुनिया के सरदार यानी शैतान पर सज़ा का फ़तवा दिया गया। इलावा इस के गुनेहगार की तमीज़ भी गोया एक मस्नद-ए-अदालत है। जिसके सामने वो हाज़िर किया जाता है और उस के गुनाह सिलसिले-वार उस पर ज़ाहिर होते हैं। और वो लाजवाब है और क़सूर-वार ठहरा और उस पर मौत का फ़त्वा दिया जाता है। वो अपने को हलाक होने के क़ाबिल जानता है। क्योंकि देखता है कि कोई आदमी शरीअत पर अमल करने से ख़ुदा के सामने रास्तबाज़ ना ठहरेगा। तब इन्जील की ख़ुशख़बरी उस पर ज़ाहिर होती है कि बचने की राह खुल गई। और जल्द वो इस जाएपनाह की तरफ़ दौड़ता है वो ईसा के पास जाता है और जो कलाम उस की निस्बत पाक नविश्तों में लिखा है उसे क़ुबूल करता है और नजात के लिए उस पर भरोसा रखता है। माफ़ी हासिल करने के लिए वो मसीह के बहे हुए लहू को पेश करता है। और रास्तबाज़ी पाने को उस की फ़रमांबर्दारी की दलील लाता है और उस के वाअदे पर तकिया (भरोसा) करता है कि रूह-उल-क़ुद्स उस को पाक करेगा और उसे आस्मान में बसने के लिए तैयारी देगा। वो अदालत की निस्बत क़ाइल होता है। क्योंकि अपनी तमीज़ में उस को पहचानता और यक़ीन करता है कि सभों को चाहिए कि मसीह की मस्नद-ए-अदालत के आगे हों वो अपने को ईसा के सपुर्द करता है और उस को यक़ीन है कि वो मेरी अमानत की उस रोज़ तक हिफ़ाज़त कर सकता है। वो होशयारी से दुनिया में चलता है और हमेशा याद रखता है कि हर एक हम में से ख़ुदा को हिसाब देगा।
“क्योंकि उस ने एक रोज़ मुक़र्रर किया है जिसमें वो रास्ती से दुनिया की अदालत करेगा। उस आदमी की मार्फ़त जिसे उस ने मुक़र्रर किया और उसे मुर्दों में से उठा के ये बात सब पर साबित की।” (आमाल 17:31)
रूह-ए-पाक का उस्ताद होना
“जो मसह तुमने उस से पाया तुम में बहाल रहता है और तुम इस के मुहताज नहीं कि कोई तुमको सिखाए बल्कि जैसा वो मसह तुम्हें सब बातें सिखाता है और सच्च है और झूट नहीं और जैसा उस ने तुमको सिखाया वैसा तुम उस में क़ायम रहोगे।” (1 यूहन्ना 2 27)
आयत मज़्कूर में लफ़्ज़ मसीह से ईमानदार को रूह की बख़्शिश का मिलना मुराद है हर एक ईमानदार को रूह-उल-क़ुद्स इनायत होता है। और वह ईमानदार को मख़्सूस करता है और उस को ख़ुदा के लिए बादशाह और काहिन ठहराता है। रूह-उल-क़ुद्स ईमानदार का उस्ताद ही हो जाता है और पाक कलाम और ख़ुदा के सारे इंतिज़ाम के वसीले से उस को सिखलाया करता है। और अगर कोई दूसरा उस्ताद रूह के ख़िलाफ़ सिखलाए या समझाए तो झूटा ठहरता है उस के पास सारी सच्चाई है और रफ़्ता-रफ़्ता ईमानदार का दिल रोशन होता है। और वो तारीकी से नहीं पर नूर इलाही से भरपूर और मामूर है जो कुछ हम अपनी निस्बत या ईसा के हक़ में या अपने आस्मानी बाप की निस्बत जानते हैं रूह-उल-क़ुद्स ने उसे हम पर ज़ाहिर किया है। वो ख़ुदा की उम्मत का उस्ताद है वो मसीह की चीज़ों से पाता है। और उन्हें हमको दिखलाता है। रूह-उल-क़ुद्स का हिदायत करना ईमानदार की सारी ज़िंदगी में ज़ाहिर होता है और इलाही इंतिज़ाम के हादसों ख़ुसूसुन मुतफ़र्रिक़ आफतों और मुसीबतों के वसीले से और फिर पाक कलाम की मार्फ़त वो हमारी गुनेहगार हालत और ख़ुदावन्द ईसा की लियाक़त और अज़ीज़ होने और ख़ुदा पाक की ला-इंतिहा मुहब्बत के हक़ में हमको सिखाता है और ये बतलाता है कि अबदी सआदत के मुक़ाबले में दुनिया की ख़ुशी ख़ाक और राख है। ऐ रूह मुबारक हमको हिदायत क्या कर काश कि हम ये जानें कि तू हमारे साथ रहता है और हम पर ईसा को ज़ाहिर करता है। हम तेरे वसीले से ईसा को देखें और उस से बख़ूबी वाक़िफ़ हों उसी पर अपना सारा भरोसा रखकर हम उस के आर्ज़ूमंद हैं कि उस की मानिंद बनते जाएं।
“और तुमने उस मुक़द्दस से मसह पाया और सब कुछ जानते हो।”
(1 यूहन्ना 2:20)
रूह-उल-क़ुद्स का हिदायत करना
“इसलिए कि जितने ख़ुदा की रूह की हिदायत से चलते वही ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हैं।” (रोमियों 8:14)
जब हम अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ चलते हैं तब गुनाह और ख़तरे में भटकते जाते हैं और इसलिए रूह-उल-क़ुद्स हम पर नाज़िल होता है कि हमारी हिदायत और हिमायत करे। रूह-ए-पाक हमको हमेशा गुनाह की तरफ़ से मसीह की तरफ़ और हमारी रास्तबाज़ी की तरफ़ से मसीह की रास्तबाज़ी की तरफ़ ले जाता है। माफ़ी हासिल करने के लिए वो हमको मसीह की सलीब के पास ले जाता है और पाकीज़गी पाने को मसीह के लहू के चशमे के पास हमें रहनुमाई करता है और रूहानी आराम व ताज़गी के मिलने के वास्ते हमको दीनी रसूमात दिखलाता है और जब हम सोहबत और मदद इलाही मांगते हैं तो वो हमको फ़ज़्ल का तख़्त बतलाता है वह इजाज़त नहीं देता कि कोई अपनी नेकी पर तकिया (भरोसा) करे, बल्कि ये भी नहीं चाहता कि ईमानदार उस के काम पर भरोसा रखे लेकिन बरअक्स इस के वो उस पर मसीह की खूबियां ज़ाहिर करता है और उस को सिखलाता है कि ज़िंदगी और सलामती के लिए सिर्फ मसीह ही पर तकिया (भरोसा) करना चाहिए। रूह-ए-पाक हमेशा गुनेहगार को फ़रोतन करता है और ईसा को सर्फराज़ी देता है और अगर हम रूह का ज़हूर रखा करें तो अलबत्ता मसीह हमारे दिलों में सर्फ़राज़ हो, रूह पाक हमको गुनाह से पाकीज़गी की तरफ़ और दुनियावी बातों से रूहानी बातों की तरफ़ ले जाता है। वो हमको तर्ग़ीब देता है कि अपने को आज़माऐं और अपने दिलों से वाक़िफ़ हों और इसी तरह हम ठोकर खाने से बचते हैं वो शरीअत से इन्जील की तरफ़ रहनुमाई करता है। हमको अक़्लमंद जान कर वो मक़बूलियत और बड़ी मुहब्बत के साथ हमको फ़र्ज़न्द समझ के ले चलता है। ऐ रूह-उल-क़ुद्स हमेशा हमारी रहनुमाई कर ऐसी रहनुमाई कि हम ईसा के साथ उस के दुख उठाने में शरीक हों। राह़-ए-रास्त में हमको चलाया कर मसीह मस्लूब और मसीह तख़्त नशीन की तरफ़ हमें चला।
“अगर तुम रूह की हिदायत से चलते हो तो शरीअत के बंद में नहीं।” (ग़लतियों 5:18)
रूह-उल-क़ुद्स का दिल का पाक करना
“ऐ भाइयो ख़ुदावन्द के प्यारो लाज़िम है कि हम तुम्हारे वास्ते हमेशा ख़ुदा का शुक्र करें कि ख़ुदा ने तुम्हें शुरू से चुन लिया कि तुम रूह की पाकीज़गी बख़्श तासीर से और सच्चाई पर ईमान लाने से नजात पाओ।”
(2 थिस्सलुनीकियों 2:13)
यहां पर चुन लेने से अलग करना और पाक काम के लिए ठहराना मुराद है। ख़ुदा ने अपने लोगों को मसीह में चुन कर अलग कर दिया है। और रूह-ए-पाक की क़ुद्रत और तासीर और सुकूनत के वसीले से वो उन को अपने लिए मख़्सूस करता है। अज़रूए पाकीज़गी के हम मसीह में सरनू (नए सिरे से) पैदा होते हैं और हमारे दिलों में ऐसा काम शुरू होता है जिसका अंजाम ये है कि हम मसीह की मानिंद बनें जिसको रूह-उल-क़ुद्स पाक-साफ़ करता है। उस का दिल बदल गया और उस की मर्ज़ी नए तौर से अमल करती है और उस का ज़हन खुल जाता है और उस की तमीज़ पाकीज़गी की तरफ़ लगती है और उस की ख़सलतें रूहानी बनती जाती हैं। सरनू (नए सिरे से) पैदा होने में पाकीज़गी का शुरू होता है पर उस का अंजाम नहीं ये रफ़्ता-रफ़्ता बढ़ती जाती है और मसीह के दिन में पूरी होगी। वो इन्सान के दिल व बदन से इलाक़ा रखती है और पाक कलाम और दीनी रसूमात और ख़ुदा के इंतिज़ाम के वसीले से तरक़्क़ी पाती है, बल्कि सारी चीज़ें उस के बढ़ाने के लिए काम आईं। पहले सब्ज़ी है फिर बालें बाद उस के बालों में तैयार दाने। पहले हम मसीह में हो के बच्चे हैं फिर लड़के फिर जवान और आख़िर को बूढ़े। मसीह के साथ पैवस्ता हो के हम उस की भर-पूरी से पाते हैं। और उस के लिए फल लाते हैं। पाकीज़गी दिल में पैदा होती है और वो हर रोज़ की चाल और ज़िंदगी के सब कामों में ज़हूर करती है। अगर कोई शख़्स रूह से पाक बनता है तो गुनाह उस को अफ़्सोस कराएगा। शैतान उसे आज़माएगा। दुनिया में उस की ख़ुशी ना होगी। और आस्मान उस के नज़्दीक दिल पसंद और अज़ीज़ होगा। ऐ रूह-उल-क़ुद्स हमको पाक-साफ़ कर ताकि हम ईसा की मानिंद बुनते जाएं। हर एक मुसीबत और नेअमत के वसीले से हमें पाक कराए। ख़ुदा हमको अपनी सच्चाई की मार्फ़त पाक कर तेरा कलाम सच्चाई है।
“उन्हें अपनी सच्चाई से पाक कर तेरा कलाम सच्चाई है।” (यूहन्ना 17:17)
रूह-उल-क़ुद्स का गवाह होना
“वही रूह हमारी रूह के साथ गवाही देता है कि हम ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हैं।” (रोमियों 8:16)
रूह-उल-क़ुद्स अपने सब फ़रज़न्दों को पहचानता है। जब उनका नाम दफ़्तर हयात में लिखा गया तब वो हाज़िर था। वह उन्हें मसीह में सरनू (नए सिरे से) पैदा करता है। वो उन के दिलों में सुकूनत करता है और गवाही देता है कि वो ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हैं। अगर पूछा जाये कि वो कब ये गवाही देता है तो जवाब ये है कि जब वो हमारे दिलों में फ़र्ज़ंदी तबीयत पैदा करता है और हम पर बाप की मुहब्बत ज़ाहिर करता है। और हम को यक़ीन दिलाता है कि ख़ुदा हमारा बाप है और हम उस के फ़र्ज़न्द तब हमको ये गवाही देता है। कभी-कभी वो ख़ुदा किसी वाअदे को गोया चमकाता और उसे हमारे दिलों पर नक़्श करता है और दलील लाता कि ये वाअदे हमारे ही लिए है। गाह-गाह वो हम पर अपना काम हमारे दिलों में ऐसा साबित करता है कि जो हम अपने लेपालक होने पर शक ला सकें तो अपनी पैदाइश पर भी शक लाएं। वो दिल को नरम करता और ख़सलतों को ख़ुदा की तरफ़ फेरता और तमीज़ को आराम बख़्शता और हमारे अंदर अब्बा नाम बताता है यहां तक कि हम ख़ुदा की तरफ़ दिल उठा के पुकार सकते हैं कि यक़ीनन तू हमारा बाप है। फिर वो उन बातों को जो ख़ुदा के कलाम में उस के लोगों की निस्बत मुन्दरज हैं हम पर ऐसा रोशन कर देता है कि हमको यक़ीन होता है कि सारे ईमानदार एक ख़ानदान के हैं और उनका एक ही बाप है फिर वो कलाम के सुनने की ऐसी तासीर बख़्शता है कि जो बातें ख़ुदा के लोग सुनें उन को समझें और ये भी जानें कि हक़ीक़तन हम ख़ुदा के हैं और बे-ताब गुनेहगार अपने गुनाह से क़ाइल हो के जानें कि बग़ैर ईमान लाए हम ना उम्मीद हैं। ऐ पाक रूह मेरे दिल को सिखला कि वो अपने ले पालक होने को पहचाने और मेरी रूह के साथ गवाही दिया करे कि मैं ख़ुदा का फ़र्ज़न्द हूँ मेरे शुबहे दूर व दफ़ाअ कर और मेरे दिल में पाक यक़ीन पैदा कर दे तू बख़्श कि मैं अपने फ़र्ज़न्द होने से वाक़िफ़ हो कर ख़ुदा के चेहरे के जलवे में चलता रहूं और रोज़ बरोज़ अपने बड़े भाई मसीह की मानिंद होता जाऊं।
“जो कि ख़ुदा के बेटे पर ईमान लाता है गवाही आप में रखता है।”
(1 यूहन्ना 5:10)
रूह-ए-पाक का मुहर करना
“और तुम ने भी कलाम-ए-हक़ जो तुम्हारी नजात की ख़ुशख़बरी है सुनकर उस पर भरोसा किया और उस के सबब से तुम को भी जो ईमान लाए रूह-उल-क़ुद्स की जिसका वाअदा हुआ मुहर मिली।” (इफ़िसियों 1:13)
रूह-ए-पाक की इनायत होने से मसीह के काम के दाअवे और वाअदे और कमालियत पूरी हुई। ईसा का मसीह होना इस से साबित हुआ और ये भी कि उस का काम पूरा हुआ और उस का कफ़्फ़ारा ख़ुदा को मक़्बूल है रूह की बख़्शिश गोया एक मुहर है जो हमारे लेपालक होने और ख़ुदा से मक़्बूल होने को साबित करती है। रूहे पाक बाप की मुहर है जिससे हमें उस के एहसानमंद और मंज़ूर होने और मुहब्बत रखने के हक़ में यक़ीन आता है। वो बेटे की मुहर भी है और हमको यक़ीन दिलाता है कि मसीह का लहू बहाना और उस की रास्तबाज़ी और सिफ़ारिश हमारी माफ़ी और रास्तबाज़ी और नजात के लिए काफ़ी है। रूह-उल-क़ुद्स हम पर मुहर कर देता है उस की मुहर सच्चाई है, यानी इन्जील की कलाम की सच्चाई वो अपनी मुहब्बत के वसीले से हमारे दिलों को नरम करता और अपनी क़ुद्रत से उन पर असर करता और मुहर कर देता है। सच्चाई हम पर ईसा को ज़ाहिर करती और गोया ईसा की शबिया हमारे दिलों पर खींचा करती है। ये शबिया ईसा की इस तरह पर ज़ाहिर होती है कि जहां-जहां उस की शहादत है। वहां गुनाह से नफ़रत रखना और पाक होने की आरिज़ो और मसीह को इज़्ज़त देने की ख़्वाहिश और उस की मानिंद होने और आख़िर को उस के साथ रहने की तमन्ना होती है। रूह की मुहर करने से हमारे दिलों में मसीह मक़्बूल होने और उस से मिल जाने और उस के साथ रहने की उम्मीद पैदा होती है। ऐ रूह ईसा मेरे दिल पर मुहर कर बल्कि आप मेरे दिल में रहा कर ताकि मुझे यक़ीन हो कि फ़ज़्ल व जलाल मेरे हैं। ऐ मेरी जान मैं तुझे ताकीद करता हूँ कि पाक रूह को जिससे तुझ पर ख़लासी के दिन तक मुहर हुई रंजीदा मत कर रूह में चलती रह और रूह का फल दिखलाया कर।
“हम इसी से जानते हैं कि हम उस में रहते हैं और वो हम में कि उस ने अपनी रूह से हमें दिया” (1 यूहन्ना 4:13)
रूह-उल-क़ुद्स का बैयाना
“और उस ने हम पर मुहर भी की और रूह का बैयाना हमारे दिलों में दिया।” (2 कुरिन्थियों 1:22)
ईमानदारों को ख़ुदा ने एक बड़ी और जलाल वाली मीरास देने का वाअदा किया है, लेकिन चाहिए कि कुछ देर तक उसे ना पाएं और जब तक वो ना मिले ऐसा हो कि हम पर आज़माईशें और शुबहे और डर पड़ें इसलिए रूह-उल-क़ुद्स हमें इनायत होता है ताकि हम यक़ीन करें कि उस को मक़्बूल हैं और इस वजह से भी कि वो हमारी मीरास का बैयाना हो रूह-ए-पाक का हमारे दिल में बसना गोया ख़ुदा का रहन (गिरवी रखना) है और वो उस के वाअदे को मुस्तहकम करता और हमको यक़ीन दिलाता है कि मीरास को हासिल करेंगे। रूह-उल-क़ुद्स का हमारे दिलों में बसना इस मीरास का एक हिस्सा है। यहां तक कि जो रूह को पाता है ज़रूर ख़ुदा की बादशाहत का वारिस है और अपना हिस्सा पाएगा। रूहे पाक आया है कि हमको हमारी मीरास लेने के लिए तैयार करे और हमको उस की ख़ुशी और लज़्ज़तों की हलावत (मिठास, मज़ा, आराम) बख़्शे जो सलामती रूह-ए-पाक हमारे अंदर पैदा करता है और जो ख़ुशी वो हमें बख़्शता है और जो आज़ादगी वो इनायत करता है। उस सलामती और ख़ुशी और आज़ादगी की मानिंद हैं जो नूर के फ़रज़न्दों को मिलेगी। रूहे पाक हमें आस्मान में नहीं ले जाता लेकिन अक्सर हमारे दिलों में आस्मान की पेशबंदी किया करता है वो बैयाना है। और जब ख़ुदा ने बैयाना दिया तो वो मीरास भी देगा। चुनान्चे ईसा ने कहा कि ऐ छोटे झुण्ड मत डर तुम्हारे बाप को पसंद आया कि बादशाहत तुम्हें दे और पौलुस भी रूह की निस्बत कहता है कि वो हमारी मीरास पाने का बैयाना है। जब तक कि ख़रीदे हुओं की ख़लासी ना हो ताकि उस के जलाल की सिताइश हो काश कि हमको रूह की मार्फ़त आस्मान की बहुत सी हलावतें मिलें काश कि वो हम पर ईसा को ऐसा ज़ाहिर करे कि इस दुनिया की ख़ुशी हमें बेक़द्र और नाचीज़ हो जाएं।
“और जिसने हमको उसी के लिए तैयार किया सो ख़ुदा है और उस ने हमें रूह का बैयाना भी दिया।” (2 कुरिन्थियों 5:5)
रूहे-पाक का सिफ़ारिश करना
“और वो जो दिलों का जांचने वाला है जानता है कि रूह का क्या मतलब है कि वो ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ मुक़द्दस लोगों के लिए शफ़ाअत करता है।” (रोमियों 8:27)
ईमानदार को क़ाबिलियत नहीं है कि अपने दिल के सारे मतलब और मंशा बताए। गुनाह के सबब से ऐसा रंज पैदा होता है और उस के अंदर पाकीज़गी के हासिल करने के लिए ऐसी आरज़ूऐं हैं और वो जलाल पाने का इस क़द्र मुश्ताक़ है कि बयान से बाहर है। ये सब रूह से पैदा होता है ये हमारे अंदर उस की शफ़ाअतें हैं और गोया इस शफ़ाअत का गंज है। जिसे मसीह हमारे लिए आस्मान में करता है। आस्मान में ईसा हमारे लिए सिफ़ारिश करता है कि हम पाक हो जाएं। और आख़िर को जलाल पाएं और रूह-उल-क़ुद्स हमारे दिलों को इन बातों पर लगाता है और हमारे अंदर इन बातों के लिए दुआएं और आरज़ूऐं पैदा करता है। फिर ख़ुदा जानता है कि हमारी पोशीदा लुक्नत करते हुए दुआओं की ग़र्ज़ क्या है, क्योंकि वो दिलों का जांचने वाला है हमारी आहें और ज़ारियाँ और घबराहटें और मुसीबतें और आरज़ूऐं उस को पुर मअनी मालूम होती हैं।
और वो इनका मतलब पहचान कर उन्हें क़ुबूल करता है ख़ुदा जानता है कि रूह का क्या मतलब है वो जानता है कि रूह-ए-पाक हमारे दिलों में क्या बोलता है और उस की क्या मर्ज़ी है और वो हम में कौन सी ख़्वाहिशें पैदा करता है। रूह की शफ़ाअत ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ है। जब हम इन बातों को मांगते हैं जो अपनी तबीयत में बुरी या हमारे नुक़्सान के बाइस हों तब रूह-उल-क़ुद्स हमारी मदद नहीं करता वो ख़ुदा की मर्ज़ी हमारी निस्बत जानता है। हमारी हाजत जानता और ये कि किन बातों में हमारे दिलों को लगाना चाहिए और जब हमारी आरज़ूऐं ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ हैं। तब हम उस की मदद पाते हैं। और ये मदद मोअस्सर भी है। ऐ रूह-ए-पाक मेरे दिल में शफ़ाअत कर जैसा कि आस्मान में ईसा मेरा शफ़ी है। वैसा ही मेरे अंदर तू मेरा शफ़ी हो, मेरी कमज़ोरियों में मेरी मदद कर और मुझे सिखला कि किन चीज़ों के लिए और कैसी दुआ माँगूँ मुझे मेरी हाजत दिखला और मुझे यक़ीन दिला कि ईसा मेरी कुल एहतियाजें रफ़ा कर सकता है।
“ऐ ख़ुदावन्द तू मिस्कीनों का मतलब सुनता है तू उन के दिलों को मुस्तइद करेगा। और कान रख के सुनेगा।” (ज़बूर 10:17)
रूह-ए-पाक का हमारा मदद करने वाला होना
“इसी तरह रूह भी हमारी कमज़ोरियों में हमारी मदद करती है क्योंकि जैसा चाहिए हम नहीं जानते कि क्या दुआ मांगें मगर वो रूह ऐसी आहें भर के कि जिनका बयान नहीं हो सकता हमारी सिफ़ारिश करती है।”
(रोमियों 8:26)
हम कमज़ोरियों में खड़े हैं हमारी कमज़ोरी और नादानी बड़ी हैं। गाह-गाह मालूम होता है कि दुआ मांगने की ताक़त नहीं है और अगर दुआ मांगें तो हम नहीं जानते कि ख़ुदा से क्या कहें। चाहिए कि ताक़त और दानिश के लिए रूह-ए-पाक पर मुतवक्किल हों वह रूहानी बातों की निस्बत हमारी एहतियाज हम पर ज़ाहिर करता है और उस भर-पूरी को जो ईसा में है पेश करता है और गोया हमारे ईमान के हाथ में वाअदा डालता है कि ये हमारे लिए सनद हो। वो हमारे इश्तियाक़ को बढ़ाता है और हमारे अंदर ऐसी आरज़ूऐं पैदा करता है कि बयान से बाहर हैं। गाह-गाह वो हमें अल्फ़ाज़ बताता है कि अपनी हाजत को ज़ाहिर करें और जब वो हमारी ऐसी मदद करता है। तब हम ख़ुदा से क़ुव्वत पाते हैं और ग़ालिब हो जाते हैं सारी सच्ची दुआएं रूह-ए-पाक की तरफ़ से दिल में पैदा होती हैं। इसी से हम दुआ मांगने में मदद पाते हैं। दुआ मांगने में हमारी सब फ़त्हयाबियाँ उस की मदद पर मुन्हसिर हैं। इसलिए कि जब तक वो हमारी मदद ना करे हम ईमान से दुआ नहीं कर सकते। कभी-कभी वो गोया ख़ुदा की मुहब्बत दिल पर ज़ाहिर करता है कभी कोई क़ीमती वाअदा दिखलाता है कभी ईसा की मोअस्सर सिफ़ारिश की तरफ़ हमारी आँखें रुजू करता है और तब हमको तर्ग़ीब देता है कि ख़ुदा से दुआ मांगें और हमारी मदद करता है ताकि अपने दिल का सब मतलब बताएं। जब रूह-उल-क़ुद्स हमारी कमज़ोरियों में मदद करता है। तब दुआ मांगने की इजाज़त क्या ख़ूब व पसंदीदा है लेकिन जब उस की तासीर ना हो तो दुआ करने में दिल व जान क्या ही ख़ुश्क और बे-फल रहते हैं। ऐ ख़ुदावन्द ईसा रोज़ बरोज़ तसल्ली देने वाला मेरे दिल में भेज कि वो तेरी मर्ज़ी बजा लाने और तेरा दीन बढ़ाने और तेरा जलाल ज़ाहिर करने में मेरी मदद करे।
“मेरा फ़ज़्ल तुझे किफ़ायत है क्योंकि मेरा ज़ोर कमज़ोरी में पूरा होता है।” (2 कुरिन्थियों 12:9)
रूह-उल-क़ुद्स का जिलाने वाला होना
“रूह ही वो जो जिलाती है जिस्म से कुछ फ़ायदा नहीं ये बातें जो मैं तुम्हें कहता हूँ रूह और ज़िंदगी हैं।” (यूहन्ना 6:63)
कलामे मुक़द्दस हमें सिखलाता है कि इंसान ख़ताओं और गुनाहों के सबब से मुर्दा है और मुर्दा होके वो रूहानी ताक़त नहीं रखता और रूह-उल-क़ुद्स के बग़ैर वो नेकी करने के क़ाबिल नहीं है। पस रूह-ए-पाक का अहद और काम मुर्दों को जिलाना ही सारी दीनदारी रूह-ए-पाक के जिलाने से शुरू होती है। जब रूह-ए-पाक को मिलती हैं। तब रूहानी ज़िंदगी शुरू होती हैं और गोया नई दुनिया में अपनी आँखें खोलते हैं और रास्तबाज़ी के भूके और प्यासे होते हैं। और आख़िर को मज़ा हासिल करते हैं। कि ख़ुदावन्द मेहरबान है तब हमारी नई सोच और नई ख़्वाहिशें और नए ख़ौफ़ और नई उम्मीद और नई ख़ुशी और नए गम होते हैं। ईमानदार की आँख मसीह पर लगी रहती है दिल मसीह की तरफ़ रुजू करता है। और उस की बड़ी आरज़ू ये है कि मसीह की मानिंद हो जाऊं। रूह-ए-पाक ना सिर्फ हमको जिला देता है कि हम मौत से गुज़र के ज़िंदा हो जाएं बल्कि ज़िंदगी-भर वो हमको जिलाया करता है वो हमें यहां तक जिलाता है कि दुआ मांगें बल्कि दुआ मांगने ही में जिला देता है। उस के जिलाने से हम रूहानी ज़िंदगी हासिल करते हैं और शैतान का मुक़ाबला कर के ईमान में साबित-क़दम रहते हैं जब वो हमें ना जलाए तो हम शिर गर्म और ग़ाफ़िल और सुस्त हो जाएं। तब हमको दुआ मांगने में क़ुद्रत नहीं और दीनी रसूमात में ख़ुशी नहीं और मुक़द्दसों के साथ गुफ़्तगु करने में आज़ादगी नहीं और बाइबल के पढ़ने से फ़ायदा नहीं होता। जब रूह-उल-क़ुद्स हमें जिलाता है तब सब कुछ कर सकते हैं। लेकिन उस के जिलाने के बग़ैर हम लाचार हैं ऐ रूहे हयात रोज़ बरोज़ मेरी जान को जिलाया कर।
“मेरी जान ख़ाक से लगी जाती है तू अपने क़ौल के मुताबिक़ मुझको जिला।” (ज़बूर 119:25)
रूह-ए-पाक का हमको जिलाना
“पर हम सब बेपर्दा ख़ुदावन्द के जलाल को आइन्दा में देख देख के जलाल से जलाल तक ख़ुदावन्द की रूह के वसीले से उसी सूरत पर बनते जाते हैं।” (2 कुरिन्थियों 3:18)
इन्जील एक आईना है जो मसीह की सूरत का अक्स देता है और ईसा गोया आईना है जो बाप की माहियत (असलियत) व रौनक का नक़्श देता है वो हमारे सामने खड़ा होता है मूसा की मानिंद नहीं जब वो अपने मुँह पर निक़ाब डाल के बनी-इस्राईल के सामने खड़ा हुआ बल्कि बे-नक़ाब और उस के चेहरे में हम ख़ुदा की रौनक देखते हैं रूह-ए-पाक-दिल को रौनक देखते हैं। रूह-ए-पाक-दिल को रोशन करता है और हमारी आँख ईसा पर लगाता है और उस की फ़ज़ीलतें हम पर ज़ाहिर करता है और जैसा कि पहाड़ पर मूसा का चेहरा ख़ुदा के जलाल का कुछ अक्स पा कर जलवागर हुआ वैसा ही हम मसीह की सूरत पर बदल के उसी की मानिंद हो जाते हैं। हम उस की पाकीज़गी और मुहब्बत और सच्चाई और रहमत और अदल व मेहरबानी की सूरत पर बनते जाते हैं हम रूहानी होते जाते हैं। और जो लोग बाहर हैं वो देखते हैं कि हम पर तब्दीली आ गई है। हमारी फ़िरोतनी व सब्र और ख़ैर ख़्वाही बढ़ती जाती हैं हर एक आदमी कमो-बेश उस चीज़ की सूरत पर जिसे वो ज़्यादा प्यार करता है बनता जाता है और ईसाई जिस क़द्र वो ईसा पर सोचता और उस के साथ चलता और सोहबत रखता है उसी क़द्र उसी की सूरत पर बनता जाता है। इन्सान बज़ात ख़ुदा की मानिंद नहीं हैं। लेकिन फ़ज़्ल के वसीले से वो उस की मानिंद होता जाता और जलाल में यानी जब अपनी मीरास में पहुँचेगा। ठीक मसीह की मानिंद हो जाऐंगे। हम उस वक़्त उस की मानिंद होंगे क्योंकि जैसा वो है वैसा ही उसे देखेंगे। मसीह के देखने से हम उस की मानिंद हो जाऐंगे। ऐ रूह-ए-पाक मेरा दिल ईसा पर लगा रख रोज़ बरोज़ मैं उस का जलाल देखूं और उस की सूरत पर मैं ऐसा बन जाऊं कि सब लोग गवाही दें कि ये कैसी तब्दीली है। ईसा की ख़ातिर मुझे जलाल से जलाल तक मुबद्दल कर यहां तक कि मैं ज़ाहिर व बातिन में जलील व जमील हो जाऊं।
“और जिस तरह हमने ख़ाकी की सूरत पाई है हम आस्मानी की सूरत भी पाएँगे।” (1 कुरिन्थियों 15:49)
रूहे-पाक के वसीले से बाप के पास दाख़िल होना
“क्योंकि उसी के वसीले हम दोनों एक ही रूह से बाप के पास दख़ल पाते हैं।” (इफ़िसियों 2:18)
अपनी मौत के वसीले से ईसा ने गुनेहगारों के लिए बाप के पास राह खोली अपनी तालीम में उस ने वो राह दिखलाई और अपनी सिफ़ारिश की मार्फ़त वो हमें इस राह पर चलने की तर्ग़ीब देता है। ये राह यहूदी और ग़ैर क़ौमों के लिए खुल गई। इसी राह से हम ख़ुदा के पास दख़ल पाते हैं और गोया उस की हुज़ूरी में आते हैं रूह-उल-क़ुद्स है जो राह हमको दिखलाता और हमें इस राह में चलाता है वो हमें ले चलता और सिखलाता और चलने की ताक़त देता है। बग़ैर उस की मदद के हम कभी ख़ुदा के पास नहीं पहुंच सकते। रसूमात पर तकिया (भरोसा) कर के या अपनी रास्तबाज़ी पर भरोसा रख के हम सिर्फ अपने ही राह पर चलते रहेंगे। राह-ए-रास्त पर नहीं लेकिन रूह-उल-क़ुद्स हम पर असर करता है कि ख़ुदा के साथ क़राबत रखें। और उसी की मुशाबहत क़ुबूल करें सच्ची दीनदारी ये है कि ईसा के कफ़्फ़ारे और रूह के वसीले से हम ख़ुदा के पास दख़ल पाएं हम ख़ुदा को बाप जान कर उस के पास आते हैं और इस के साथ दलील लाते हैं और उस के हुज़ूर में गुनाहों का इक़रार करते हैं और उस से माफ़ी हासिल करते हैं और उसी से फ़ज़्ल की नेअमतें पाते हैं। रूह-ए-पाक हमारे लेपालक होने पर गवाही देता है। ऐ मुबारक तसल्ली बख़्श हमें ख़ुदा के पास दख़ल पाने दे हमको उस के साथ सोहबत रखने दे और तेरी तासीर और तालीम और काम के वसीले से हम रोज़ बरोज़ फ़ज़्ल में बढ़ते-बढ़ते आख़िर को कामिल तौर से बाप के हुज़ूर में दाख़िल हों। हम दीनी रसूमात या अपनी नेकी पर भरोसा ना रखें बल्कि ये कहें कि हमारा मेल बाप के साथ और उस के बेटे ईसा मसीह के साथ है।
“पर ऐ प्यारो तुम अपने पाक तरीन ईमान का घर बनाने रूह-ए-पाक से दुआ मांगते हुए अपने को ख़ुदा की मुहब्बत में महफ़ूज़ रखो और हमेशा की ज़िंदगी के लिए ख़ुदावन्द ईसा मसीह की रहमत के मुंतज़िर रहो।”
(यहूदाह 20, 21)
रूह में चलना
“अगर हमारी ज़िंदगी रूहानी है तो चाहिए कि हमारा चलन भी रूहानी हो।” (ग़लतियों 6:25)
रूह-उल-क़ुद्स हमारी पाकीज़गी की अस्ल और जड़ हो के हम में बस्ता है और हमको चाहिए कि रूह में इस तौर से बसें कि गोया वो हैकल हो जिसमें हम सुकूनत करें। रूहानी चलन ये है कि रूहे पाक हमेशा हमारे दिलों में असर करे और हम उस के कलाम के मुताबिक़ अपनी ज़िंदगी काटें और हमेशा मालूम करें कि वो हमारे साथ है। जो लोग ऐसी रूहानी चाल चलते हैं तो रूह-ए-पाक उनकी हिदायत करता है और उनको समझाता है और हर ख़तरे से उन्हें बचाता है। जो ऐसी चाल चलते हैं वो शराअ के तले नहीं बल्कि फ़ज़्ल के तले हैं और गुनाह उन के ऊपर सल्तनत नहीं करता और वो ख़ुदा के जलाल बढ़ाने के लिए मख़्सूस हैं। रूह-ए-पाक हमारा उस्ताद और पेशवा और तसल्ली बख़्श है। हम अपने को उस के सुपुर्द कर के ये आरज़ू करते हैं कि उस को राज़ी करें और उस को इज़्ज़त दें। हम ना उस को ग़मगीं किया और ना उस को रोक दिया चाहते हैं और ना उस की पाक तासीरें बुझाना चाहते हैं। रूहानी चाल चलना ये है कि हम मसीह का मिज़ाज रखें और मुख़ालिफ़त और सताए जाने और मुसीबत व दिक़्क़त में दिखलाएँ कि अपनी मर्ज़ी नहीं बल्कि मसीह की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ अपनी ज़िंदगी को बसर किया चाहते हैं। रूहानी चाल ऐसी चाल चलना है जैसा ईसा आप चलता था और ऐसा ख़याल व अमल करना जैसा उस ने किया ऐ रूहे पाक हमको सिखला कि आज रूहानी चाल चलें और रोज़ बरोज़ इसी तरह चलते रहें। हम ईसा की मानिंद चलें और उस की मानिंद अपनी ज़िंदगी को बसर करें हम अपने बदन को ख़ुदा की नज़र करें ताकि एक ज़िंदा क़ुर्बानी मुक़द्दस व पसंदीदा हो कि ये हमारी माक़ूल इबादत है और इस जहान के हम-शक्ल ना हों बल्कि अपने दिल के नए होने से अपनी शक्ल बदल डालें ताकि ख़ुदा के उस इरादा को जो ख़ूब व पसंदीदा व कामिल है जानें।
“पर मैं कहता हूँ कि तुम रूह से चलन चलो तो तुम जिस्म की ख़्वाहिश को पूरा ना करोगे।” (ग़लतियों 5:16)
रूहे-पाक का मसीह के हक़ में गवाही देना
“पर जब कि वो तसल्ली देने वाला जिसे मैं तुम्हारे लिए बाप की तरफ़ से भेजूँगा यानी रूहे हक़ जो बाप से निकलती है। तो वो मेरे लिए गवाही देगी।” (यूहन्ना 15:25)
मसीह के हक़ में गवाही देना रूह-उल-क़ुद्स का एक ख़ास काम है। कलाम-ए-अक़्दस में उस ने ये किया है, चुनान्चे उस कलाम के हर एक हिस्से में मसीह की बाबत गवाही मिलती है। गवाही जो ईसा पर है नबुव्वत की रूह है। शरीअत की अलामतें और निशानियां और नबियों की पेशगोईयां और बाइबल के ज़बूर और गीत मसीह के हक़ में बहुत पेश करते हैं। ख़ासकर नए अहदनामे में रूह-उल-क़ुद्स ने ईसा पर गवाही दी है। और उस में उस के जन्म और बपतिस्मा और मोअजिज़ों और दाअवों और दुख और मौत और जी उठने और जलाल में चढ़ जाने पर गवाही देता है। जब कलाम अल-हक़ और दीनी रसूमात और वाइज़ के वसीले और अपनी क़ुद्रत से वो दिल को सर-ए-नौ पैदा करता तब वो मसीह पर गवाही देता है। ईमानदार के दिल में वह मसीह पर और उसी के लिए गवाही देता है। वो उस की उलूहियत पर गवाही देता है और इस पर भी गवाही देता है कि इम्मानुएल यानी ख़ुदा और इन्सान दोनों वही है। वो उस के लहू की तासीर पर गवाही देता है और उस की रास्तबाज़ी की कामिलियत और उस के दिल की मुहब्बत और उस के बचाने की रजामंदी पर गवाह होता है वो इस पर गवाही देता है कि ईसा में ऐसी लियाक़त है कि वो हर एक की हाजत को ख़्वाह वो ईमानदार की या गुनेहगार की हो रफ़ा कर सकता है और ये हमको यक़ीन दिलाता है कि ईसा अपनों को प्यार कर के उन्हें आख़िर तक प्यार करेगा। पस लाज़िम है कि हम बख़ूबी जानें कि रूह-ए-पाक ख़ुदावन्द ईसा के जलाल और लियाक़त और फ़ज़ीलत पर एक क़ादिर गवाह है। ऐ रूह-उल-क़ुद्स हमारे दिलों में ईसा की जलाली माहियत (असलियत) और कामिल काम पर गवाही दे काश कि हमारे अंदर वो गवाही हो जो कलाम अल-क़ूदस की गवाही को यक़ीन करे।
“क्योंकि उस ने एक ही नज़र (कुर्बानी) गुज्राने से मुक़द्दसों को हमेशा के लिए कामिल किया और रूह-उल-क़ूदस भी हमारे लिए गवाही देता है।” (इब्रानियों 10:14-15)
रूह-ए-पाक का मसीह की बुजु़र्गी करना
“लेकिन जब वो यानी रूहे हक़ आए तो वो तुम्हें सारी सच्चाई की राह बताएगा इसलिए कि वो अपनी ना कहेगा। लेकिन जो कुछ वो सुनेगा सो कहेगा और तुम्हें आइन्दा की ख़बर देगा वो मेरी बुजु़र्गी करेगा इसलिए कि वो मेरी चीज़ों से पाएगा और तुम्हें दिखाएगा।” (यूहन्ना 16:13-14)
जो मसीह सर्फ़राज़ ना हो तो चाहिए कि गुनेहगार पस्त हो जाये। पस साफ़ वाज़ेह है कि जिस क़द्र कोई आदमी रूह से सिखलाया जाता और जिस क़द्र वो रूह से मामूर हो जाता है उसी क़द्र वो अपने को फ़रोतन करेगा। और जिस दर्जे वो (अपने) आपको पस्त जाने उसी दर्जा मसीह को सर्फराज़ करेगा। रूहे पाक मसीह की शख़्सियत और काम व कलाम और ओहदों और मुहब्बत के हक़ में गवाही दे के उस की बुजु़र्गी करता है। जब रूह की बहुतायत हमको मिलती है तो मसीह की बाबत सोचते हैं और उस के साथ शराकत रखते हैं और उस की तारीफ़ व हम्द गाते रहते हैं जब रूह-ए-पाक मसीह का ला-इंतिहा और बे-तब्दील प्यार और उस के जलाल वाली रास्तबाज़ी और उस का कामिल कफ़्फ़ारा और उस की मुलायम हम्दर्दी और उस की मुस्तहकम और मोअस्सर सिफ़ारिश हम पर ज़ाहिर करता है। या हमारे दिलों को तर्ग़ीब देता है कि उस के उस ज़हूर को ताकें जब वो आएगा कि अपने मुक़द्दसों से जलाल पाए और अपने सब ईमानदारों में ताज्जुब का बाइस हो तब हमारे दिल मुहब्बत से लबरेज़ हैं हम उस पर यक़ीन रखते हैं और उस की हम्द तारीफ़ करते हैं। और अपने को और अपना सब कुछ उस के सपुर्द करते हैं और आरज़ू रखते हैं कि उस के साथ हों और जैसा वह है उस को देखें तब उस का जलाल और सब जलालों से बरतर है वो हमारा सब कुछ है। और हम उस की सिफ़तों को बयान करते हैं। तब हम पर उस की ऐसी लियाक़त इश्कार है कि बयान से बाहर है और हमको मालूम है कि उस की इज़्ज़त व ख़ूबी व जलाल के ज़ाहिर करने के लिए अबदियत भी काफ़ी नहीं है लेकिन अबदियत इसलिए पसंदीदा व जलील है कि उस की तारीफ़ व बुजु़र्गी करने में बसर की जाये।
“तुम्हारे वास्ते जो ईमान लाए हो वो क़ीमती है।” (1 पतरस 2:7)
फ़ज़्ल की रूह
“और मैं दाऊद के घराने पर और यरूशलेम के बाशिंदों पर फ़ज़्ल और मुनाजात की रूह बरसाऊँगा। और वो मुझ पर जिसे उन्हों ने छेदा है नज़र करेंगे। और वो उस के लिए मातम करेंगे जैसा कोई अपने इकलौते के लिए मातम करता है। और वो उस के लिए तल्ख़ काम होंगे। जिस तरह से कोई अपने पहलौठे के लिए तल्ख़-कामी (नाकामी) में पड़ता है।”
(ज़करियाह 12:10)
कफ़्फ़ारे की तर्तीब में रूह-ए-पाक का ये काम है कि बाप से बेटे की मार्फ़त फ़ज़्ल को गुनेहगार के दिल में बर लाए (उम्मीद होना) हमारा आस्मानी बाप सारे फ़ज़्ल का ख़ुदा है। ये फ़ज़्ल ईसा में ज़ाहिर है बल्कि वो फ़ज़्ल और सच्चाई से मामूर है और रूहे पाक की तासीर से भी फ़ज़्ल हमारे दिल में दाख़िल होता है। यहां तक कि मसीह की भरपूरी से हम सब पाते हैं बल्कि फ़ज़्ल पर फ़ज़्ल। जो फ़ज़्ल हम ईसा से पाते हैं वो हमें उसी की मानिंद बदल कर देता है वो हमको पाक कर देता और हमारी मुहब्बतें और ख़सलतें आस्मान की तरफ़ रुजू करता है। और हमको ख़ुदावन्द के जलाल और इज़्ज़त ज़ाहिर करने के लिए मख़्सूस करता है। फ़ज़्ल दुआ करने का चशमा और नेकी करने का सोता और और सारी रूहानी फ़ज़ीलातों की जड़ है। अगर हम ख़ुदा के मक़्बूल हों तो चाहिए कि फ़ज़्ल के बाइस से मक़्बूल हों अगर मसीह की इन्जील के मुवाफ़िक़ अपनी ज़िंदगी गुज़राँ करें तो चाहिए कि फ़ज़्ल से गुज़राँ करें और अगर हम बर्दाश्त से दुख उठाएं तो चाहिए फ़ज़्ल के तख़्त के पास बेपर्वा जाएं ताकि हम पर रहम हो और फ़ज़्ल जो वक़्त पर मददगार हो हासिल करें हमारे दिलों में जो रूहानी ख़याल और नीयतें पैदा होती हैं। वो रूह-ए-पाक से पैदा होती हैं। और उसी से बढ़ती जाती हैं। जैसा कि पौदे की ज़िंदगी कि तरावत (ताज़गी) और सूरज की किरनों और उस पर मुन्हसिर है वैसा ही हमारी रूहानी बरूमंदी फ़ज़्ल की रूह पर मौक़ूफ़ होती है। फ़ज़्ल के वसीले से हम सब कुछ कर सकते हैं। और उस के बग़ैर हम मह्ज़ लाचार हैं। अफ़ज़ल की रूह हमारे दिलों को फ़ज़्ल से मामूर कर और हमारी हिदायत कर कि हम फ़ज़्ल से भरपूर हो के ईसा के लिए रहें।
“अपनी नजात की शादमानी मुझको फिर इनायत कर और अपनी आज़ाद रूह से मुझ को आरास्ता कर।” (ज़बूर 51:12)
लेपालक होने की रूह
“तुमने गु़लामी की रूह नहीं पाई कि फिर डरो बल्कि लेपालक होने की रूह पाई जिससे हम अब्बा यानी ऐ बाप पुकारते हैं।” (रोमियों 8:15)
गु़लामी की रूह वो है जो शरीअत से पैदा होती है और जिससे हम ख़ुदा के हुज़ूर में ख़ौफ़ रखते और उस के क़हर से डरते हैं, पर लेपालक की रूह रूह-ए-पाक है। जो इन्जील के वसीले से हमें दिया जाता है। हम शरीअत पर अमल करने से नहीं बल्कि ईमान के सबब भी रूह पाते हैं। हम ले पालक होने से फ़र्ज़न्द होते हैं। और सर-ए-नौ पैदा होने से फ़र्ज़न्दियत का मिज़ाज पाते हैं। और तब हम को लेपालक की रूह दी जाती है। रूह-ए-पाक लेपालक होने की रूह हो के हम पर ख़ुदा का बाप होना ज़ाहिर करता है और हमारे दिलों में उस की मुहब्बत जारी करता है। और उसे मसीह की सूरत में हम पर ऐसा ज़ाहिर करता है कि वो हमारा दिलचस्प व अज़ीज़ दिखलाई देता और तब हमको अब्बा नाम बताता है। और हम उस की मदद से ख़ुदा को बाप कह सकते हैं। जब ख़ुदा हम पर ऐसा ज़ाहिर होता है। तब हमारी ख़ुशी पूरी होती है। और ख़ौफ़ और डर जाते रहते हैं और मसीह पर ईमान लाने से हम भरोसे के साथ ख़ुदा के हुज़ूर में दख़ल रखते हैं। तब पौलुस के इस कलाम की मुराद हम पर आशकार होती है कि पस जब कि हम ईमान के सबब रास्तबाज़ ठहरे तो हम में और ख़ुदा में हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के वसीला मेल (मिलाप, सुलह) हुआ और उसी के वसीले हम इस फ़ज़्ल में जिस पर क़ायम हैं ईमान के सबब दख़ल पाने और ख़ुदा के जलाल की उम्मीद पर फ़ख़्र करते हैं। ऐ लेपालक बनाने की रूह मेरे दिल में बसा कर और मुझे हर तरह की गु़लामी से आज़ाद कर के मुझे मेरी नई फ़र्ज़न्दियत में ख़ुश कर।
“और इसलिए कि तुम बेटे हो ख़ुदा ने अपने बेटे की रूह तुम्हारे दिलों में भेजी जो अब्बा यानी ऐ बाप पुकारती है।” (ग़लतियों 4:6)
रूह-उल-क़ुद्स का आज़ादगी रूह होना
“और ख़ुदावन्द वही रूह है और जहां कहीं ख़ुदावन्द की रूह है वहां आज़ादगी है।” (2 कुरिन्थियों 3:17)
जिस दिल में रूह पाक ने दख़ल नहीं पाया वो शरीअत के तले गिरफ़्तार और गुनाह का ग़ुलाम और शैतान का क़ैदी है। आज़ादगी उस में नहीं है बल्कि आज़ाद होने की ख़्वाहिश भी नहीं, जब तक वो रूह-ए-पाक से जिलाया ना जाये और रोशन ना हो वो अपनी गु़लामी को पसंद करता है। जब रूहे पाक गोया दिल को खौलता है तब गुनेहगार अपनी ख़तरनाक हालत को पहचान के आज़ादी के लिए आह भरता है। वो अपनी गु़लामी से मख़लिसी (छुटकारा) चाहता है और तसल्ली बख़्श मुबारक उस की बंद को तोड़ता और उस की ज़ंजीरों को खौलता है। वो गुनाह की ताक़त और ज़बरदस्ती से ख़लासी पाता है। उस की तमीज़ इल्ज़ाम देने से छूट जाती और उस के दिल से ख़ौफ़ और डर जाता रहता है। वो शरीअत के क़ाबू से आज़ादी पा के इन्जील की आज़ादी में दाख़िल होता है। और सलामती और ख़ुशी और दिली आराम हासिल करता है। अब भी गुनाह उस पर सल्तनत नहीं कर सकता क्योंकि वो शरीअत के तले नहीं बल्कि फ़ज़्ल के तले है। शैतान उस के दिल से निकाल दिया गया है और अगरचे वो दिक़ करे और तर्ग़ीब दे और दिल को वरग़लाना चाहे तो भी उस की क़ुद्रत और इख़्तियार मिट गया है। और अपनी मर्ज़ी पर उस को जिला नहीं सकता, तब ईमानदार एतबार से ख़ुदा के हुज़ूर में आ सकता है और ख़ातिरजमा के साथ ईसा पर तकिया (भरोसा) कर सकता है। और ऐसी कामिल आज़ादगी पाता है कि ख़ुदा की ख़िदमत सच्ची आज़ादगी जानता है जो मसीह में है। वह हक़ीक़तन आज़ाद है और हमेशा आज़ाद रहेगा। वो ग़ुलाम नहीं बल्कि फ़र्ज़न्द हो के ईसा के वसीले से ख़ुदा का वारिस ठहरता है, अगर बेटा तुमको आज़ाद करेगा। तो तुम हक़ीक़ी आज़ाद होगे।
“क्योंकि इस रूह ज़िंदगी की शरीअत ने जो मसीह ईसा में है मुझे गुनाह और मौत की शरीअत से छुड़ा दिया।” (रोमियों 8:2)
रूह-ए-पाक का याद दिलाने वाला होना
“लेकिन वो तसल्ली देने वाला जो रूह-उल-क़ुद्स है जिसे बाप मेरे नाम से भेजेगा। वही तुम्हें सब चीज़ें सिखलाएगा। और सब बातें जो कुछ कि मैंने तुम्हें बताई हैं तुमको याद दिलाएगा।” (यूहन्ना 14:26)
ईमानदार की याद बिगड़ी और नापाएदार है अक्सर वो बुराई को याद रखता और नेकी को भूल जाता है। अक्सर औक़ात जब वो अंधेरे या तक्लीफ़ में हो या किसी बातिनी सलीब के तले दब गया हो तब जो वाअदे उस की तसल्ली के लिए दिए गए उस की याद में नहीं आते। रूह-ए-पाक का एक काम ये है कि ईमानदार को ख़ुदा के कलाम की निस्बत याद दिलाए, कभी वो मुसीबतज़दा या आज़मूदा ईमानदार की आँख को किसी वाअदे पर लगाता है। कभी ईमानदार के किसी शरीक से उस को याद दिलाता है और कभी दिल में ऐसी सोच और ख़याल पैदा करता है जिनसे मह्ज़ तसल्ली मिलती है। कितनी बार दिल में क़ीमती बातें और लज़ीज़ वाअदे और दिलचस्प याद ख़ुदावन्द के काम की निस्बत दिल में आए हैं और हम तो भूल गए होंगे, कि रूह का ख़ास काम ये है कि इसी तरह ईमानदार को सँभाले और तसल्ली दे कभी वो वाइज़ को ऐसी तर्बियत करता है, कि वो ऐसी बातें निकाले जो ठीक हमारी हालत के मुवाफ़िक़ हों या कोई ईसाई हमें सलाह और तसल्ली देता है कि गोया वो हमारी कोठरी के दरवाज़े पर खड़ा होता और हमारी सारी फ़र्यादें सुनता और कभी कलाम अल-क़ूदस का कोई हिस्सा जो हमको नामालूम था हमें ऐसी तस्कीन बख़्शता है कि गोया हमारे ही लिए लिखा गया हो। ये याद दिलाने वाली रूह का काम है। जब हम दुआ मांगने में मशग़ूल हैं तब बाइबल के हिस्से जो हमारे हाल के लायक़ हैं याद आते हैं। या वो हिस्से जिन्हें बहुत बरस गुज़रे हमने सुना या पढ़ा था दिल में फिर आते हैं। और उन में नई तासीर व हक़-शनासी है और ये भी रूह-ए-पाक का काम है कि वो मसीह की चीज़ों से पाता और हमें दिखलाता है। ऐ रूह मुबारक रोज़ बरोज़ मुझे ईसा के हक़ में याद दिला और उस की लज़ीज़ बातें तासीर के साथ मुझ पर ज़ाहिर कर।
“इसलिए जब वो मुर्दों में से जी उठा तो उस के शागिर्दों को याद आया कि उसने ये कहा था और वो किताब और येसू के कलाम पर ईमान लाए।” (यूहन्ना 2:22)
रूह से भर जाना
“और शराब पी कर मतवाले ना हो कि उस में ख़राबी है बल्कि रूह से भर जाओ।” (इफ़िसियों 5:18)
जो हमारा हक़ ख़ास है सो वो भी हमारा फ़र्ज़ ठहरता है हर ईमानदार पर रूह-उल-क़ुद्स नाज़िल होता है। लेकिन अक्सर इस का वो पैमाना और मामूरी नहीं मिलती जैसा मिल सकता मामूरी हमारे पास है और उसे बरतर हम हासिल कर सकते हैं। जिनके पास पौलुस ने ख़त मज़्कूर लिख भेजा उन में रूह तो नहीं और उन पर उसी से ख़लासी के दिन तक मुहर की गई। पर तो भी उन से हवारी कहता है कि रूह से भर जाओ ऐसा भर जाना हो सकता है और वो मर्ग़ूब है और इस का होना यक़ीन है। हमारे लिए ये मामूरी जो पाईँ तरह तरह की बुराईयों से बचाओ हो क्योंकि इस से जान व बदन पाक हो जाएगा। और हम मसीह की ख़िदमत करने और आस्मान पर जाने के लिए तैयारी हासिल करेंगे। रूह से भर जाना हमें कुल फ़राइज़ अदा करने के लिए तैयारी देगा। और हमारी सोच और दिली हरकतों और कलाम पर असर करेगा। वो हमारी ख़्वाहिशों को क़ब्ज़े में लाएगा। और हमारी बुरी ख़सलतों को रोकेगा और हमारे क़दमों को राह-ए-रास्त में चला के बहर तरह हमारी ख़ुशी व तरक़्क़ी बढ़ाएगा। पस लाज़िम है कि ये फ़र्ज़ अमल में लाएं। ख़ुदा के कलाम में वाअदा और दावत और नमूने और तर्ग़ीब और इल्तिमास हमारे सामने पेश किए गए हैं। क्या हम उन सभों को हक़ीर जानें चाहिए कि हर एक शख़्स अपने फ़हम से दर्याफ़्त करे कि कि क्या मैं कभी रूह से बड़ा हूँ? क्या मैं इस का आर्ज़ूमंद हूँ क्या इस का तालिब हूँ? क्या इस के हासिल करने के बग़ैर मैं ख़ुश हूँ जो हम पाक व चालाक और फ़ाइदेबख्श और इम्तियाज़ और ख़ुश-दिल हों तो चाहिए कि रूह से भरे हों क्योंकि सिर्फ इसी से ये हासिल हो सकता है। ऐ रूह-उल-क़ुद्स आ और मेरे दिल को भर दे। मैं तो तेरी रोशनी और ज़िंदगी और मुहब्बत व क़ुद्रत और पाकीज़गी से बल्कि आपसे भर जाऊं।
“क्योंकि वो नेक मर्द था और रूह-उल-क़ुद्स और ईमान से भरा और एक बड़ी जमाअत ख़ुदावन्द की तरफ़ रुजू लाई।” (आमाल 11:24)
क्या तुमने रूहे अक़्दस को पाया
“क्या तुमने जब से ईमान लाए रूह-उल-क़ुद्स पाया उन्हों ने कहा हमने तो सुना भी नहीं कि रूह-उल-क़ुद्स है।” (आमाल 19:2)
बग़ैर रूह-उल-क़ुद्स पाने के रास्तबाज़ और दीनदार होना नामुम्किन है, क्योंकि रूह-उल-क़ुद्स सब रूहानी ज़िंदगी का बानी व चशमा है और जो दीन व मज़्हब रूहानी नहीं है वो मसीह से नहीं, अगर तुमने रूह-उल-क़ुद्स को पाया है तो जानोगे कि पाया, लेकिन तुम शायद इसी वक़्त ये ना पहचान सको क्योंकि पाक रूह की सब तासीरें तुम को मालूम नहीं हो सकतीं। पर तो भी अगर तुम ने रूह को पाया तो कई एक निशानों से ये जाना जाएगा। पहले तुम जानोगे कि गुज़रे दिनों में तुम्हारा मिज़ाज नफ़्सानी था रूहानी नहीं फिर हम खुदगर्ज़ मग़ुरूर सरकश थे। लेकिन अब फ़रोतन और मुलायम दिल हो गए। तुम्हारे नज़्दीक ख़ुदा की शरीअत पाक और रास्त और नेक है। और इन्जील कामिल नजात की ख़ुशख़बरी है। तुम इस बात से ख़ौफ़ रखते हो कि शायद तुम फ़रेब खाते या फ़रेबी हो और अपने दिलों को जाँचा करते हो ताकि यक़ीन हो कि तुम मसीह में नई मख़्लूक़ हो कि नहीं तुम गुनाह से ख़्वाह वो अंदर हो या बाहर नफ़रत रखते हो और तुम्हारी ये आरज़ू है कि सर ता पा (सर से पैर तक) पाक हो। तुम ख़्वाहिशमंद हो कि औरों का फ़ायदा करो और ये कि दिल व रूह व बदन से ईसा का जलाल ज़ाहिर करो क्योंकि तुम उसी के हो। ख़ुदा का कलाम तुम्हारी ज़िंदगी का क़ानून है और इसलिए कि ईसा को इज़्ज़त बख़्शो और ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर करो तुम अपना इन्कार करते हो जहां ये निशान हैं वहां रूह-उल-क़ुद्स है। ऐ ख़ुदावन्द मुझे जांच और मेरे दिल को आज़मा और मुझे मेरे हक़ीक़ी हाल बता जब तक तेरी हुज़ूरी से मामूर ना हूँ मैं कभी ख़ुश ना हूँगा। मैं तेरी रूह को ना भुजाऊँ और ना उसे रंजीदा करूँ। तेरी रूह ऐ ख़ुदा मेरी हिदायत और रहनुमाई करे और मुझे राह़-ए-रास्त पर चलाए।
“जिसमें मसीह की रूह नहीं वो उस का नहीं।” (रोमियों 8:9)
रूहे पाक की बख़्शिश ईमान लाने पर मुन्हसिर है
“क्या तुमने जब से ईमान लाए रूह-उल-क़ुद्स पाया उन्हों ने उसे कहा हमने तो सुना भी नहीं कि रूह है।” (आमाल 19:2)
जब ख़ुदा पहले ही रूह-उल-क़ुद्स देता है तब इसलिए देता है कि वो हम पर हमारी हाजत ज़ाहिर करे और मसीह की तरफ़ ये हाजत रफ़ा करने के लिए ले चले और हमारी एसी हक़ीक़ी मदद करे कि मसीह में नजात पाऐँ। बाद इस के भी रूह-ए-पाक दिया जाता है। और तब उस का ये काम है कि मसीह को हम पर कामिल तौर से ज़ाहिर करे ताकि हमारी ख़ुशी कामिल हो। वो ईमानदारों के दिलों में रहता और ख़ुशी और सलामती और कामिल यक़ीन पैदा करता है। वो हम पर ज़ाहिर करता है कि ईसा में ख़ुशी की भर-पूरी है और कि ये सारी ख़ुशी हमारे लिए है ताकि हम हर वक़्त और हर हाल में ख़ुश हों, चुनान्चे लिखा है कि, “ख़ुदावन्द में हमेशा ख़ुश रहो फिर कहता है हाँ ख़ुश रहो” वो ख़ुदा की बादशाहत आदमियों के दिलों में क़ायम करता है और ये बादशाहत रास्ती और सलामती और रूह-उल-क़ुद्स से ख़ुश-वक़्ती है। इस के हक़ में जिन्हों ने ये बरकत पाई कहा जाता है कि वो ख़ुशी और रूह-उल-क़ुद्स से भरी थी। रूह का फल ख़ुशी है। ईमानदारों की निस्बत अगरचे वो दुखी और मुसीबतज़दा हों। लिखा है कि उस को यानी मसीह को बे-देखे तुम प्यार करते हो और बावजूद ये कि तुम अब उस को नहीं देखते मगर उस पर ईमान ला के ऐसी ख़ुशी व ख़ुर्रमी करते हो जो बयान से बाहर और जलाल से भरी है और फिर लिखा है कि तुम को भी जो ईमान लाए रूह-उल-क़ुद्स की जिसका वाअदा हुआ मुहर मिली। ऐ आस्मानी बाप क़ुद्रत और किफ़ायत के साथ हमें तसल्ली बख़्श दे ऐ रूह मुबारक हम में रहा कर और हमको हमारे गुनाहों और ख़ौफ़ों और ग़मों से छुटकारा दे। ऐ ईसा अपने लोगों को अपनी रूह इनायत कर कह वो ईमान लाने में पायदार और फ़र्ज़ अदा करने में चालाक और दुख उठाने में साबिर और मौत की इंतिज़ार में हिम्मती हों।
“अब ख़ुदा जो उम्मीद का बानी है तुमको ईमान ला ने के बाइस सारी ख़ुशी और सलामती से भर देता कि रूह-उल-क़ुद्स की क़ुद्रत से तुम्हारी उम्मीद ज़्यादातर होती जाये।” (रोमियों 15:13)
रूह उन में नहीं
“ये वही हैं जो अपने को अलग करते हैं ये नफ़्सानी लोग हैं और रूह उन में नहीं।” (यहूदाह 19)
किसी के पास बहुतेरी चीज़ें हों पर तो भी वो जो ख़ास चीज़ उस को चाहे सो उस के पास नहीं है। वो कलीसिया में ओहदेदार हो और उस की चाल भी मुवाफ़िक़ हो। वो आस्मान का उम्मीदवार हो और यक़ीन करे कि मैं ख़ुदा का मक़्बूल हूँ। वो बाइबल की तामील को अच्छी तरह से पहचाने और उस की सारी चाल और रविश दुरुस्त हो और तो भी रूह में ना हो। रूह के बग़ैर सच्चा ईमान और तौबा और प्यार और सरगर्मी और गुनाह पर क़ाइल होना और मसीह के हक़ में मोअस्सर सोच और ख़याल नहीं हो सकते जो शख़्स रूह के बग़ैर है वो कलीसिया के हुक़ूक़ में कुछ इख़्तियार और ख़ुदावन्द की ख़िदमत करने के लिए कुछ लियाक़त नहीं रखता और ख़ुदा से मुसाहबत (हमनशीनी, साथ रहना) नहीं रख सकता और ख़ुदा के जलाल को ज़ाहिर नहीं कर सकता अब का हाल ये है तो आइन्दा को वो कैसा ख़ौफ़नाक और पुर-ख़तर होगा। तब ईसा से ख़ारिज होगा। और बर्रे के ब्याह की ज़ियाफ़त में दख़ल ना पाएगा। और ख़ुदा के क़हर तले रहेगा। और ख़ुदावन्द के चेहरे से और उस की क़ुद्रत के जलाल से अबदी हलाकत की सज़ा पाएगा। जो कोई रूह में ना हो तो उस का सारा हासिल क्या चाहिए कि इस बात के हक़ में दर्याफ़्त करें कि हम रूह में हैं या नहीं ता ना हो कि हम फ़रेब खाएं चाहिए कि रूह की भर पूरी हासिल करें। ऐ अज़ीज़ पढ़ने वाले क्या रूह में है? क्या तू रूह में सारी ज़िंदगी बसर करता है? क्या तू रूह में चलता है? ख़बरदार मबादा तू रूह-उल-क़ुद्स को बुझाए या उसे रंजीदा करे ख़याल कर कि अगर ख़ुदा अपनी रूह से कहे कि उसे जाने दे तो तेरा कैसा हाल होगा। बहुतेरों ने रूह-ए-पाक से यहां तक लड़ाई की कि उस ने उन को छोड़ दिया और तब शैतान ने उन के दिलों में ऐसी जगह पाई कि जिससे वो फिर बाहर नहीं गया। ऐ अज़ीज़ो ! मसीह की तरफ़ दौड़ो कि तुम्हारा ये हाल ना हो।