सच्चाई की फ़तेह
मुसन्निफ़
इसिकंदर जदीद
दीबाचा
अज़ीज़ भाई, मैं आप के लिए ख़ुदा के फ़ज़्ल और इत्मीनान की दुआ करता हूँ। मुझे आपका मकतूब (ख़त) मिला जिसमें आपने ज़िक्र किया कि आप ख़यालात और नेक तमन्नाओ का तबादला करना चाहते हैं और यही सच्चाई की फ़त्ह में हमारा मक़्सद है। आईए फ़िक्री जुमूद और मज़्हबी तास्सुब से बचें, और इन्सानियत को अफ़रातफ़री से बचाने और उसे तारीकी से नूर में रिहाई बख़्शने के लिए एक मुकालमा करें। सो दिल की गहिराईयों से ख़ुश-आमदीद।
जो सवालात आपने मुझे भेजे हैं उन पर एक नज़र करने के बाद, मैंने दूसरे सवाल पर तवक़्क़ुफ़ कर के ग़ौर किया जो ये है कि “कौंसिलों को किस ने इख़्तियार दिया कि वो ईसा, मर्यम और रूह-उल-क़ुद्स की उलूहियत का चुनाओ करें?”
मैंने इंतिहाई मायूसी के साथ तवक़्क़ुफ़ किया क्योंकि आपकी नेक मंशा इस सवाल के साथ मफ़्क़ूद हो गई। आपकी राय का मकालमे या इन्सान की नजात के साथ कोई ताल्लुक़ नहीं। आपके सख़्त अल्फ़ाज़ ने ख़ुदा तआला के सच्चे दीन मसीहिय्यत की सच्चाई को निशाना बनाया है। ये देखकर और ज़्यादा मायूसी हुई कि आप अपने आपको सच्चाई का मुहाफ़िज़ कहते हैं। आप सच्चाई से कोसों दूर हैं, और यूं सच्चाई के ख़िलाफ़ हैं। आपने बिद्अती अफ़राद की ताअलीमात का यक़ीन किया है और मुस्तनद मसीहिय्यत पर मुक़द्दसा मर्यम को एक ख़ुदा बना देने का इल्ज़ाम लगाया है।
इस से पहले कि मैं आपके सवालात के जवाबात दूं, मैं आपके इन अल्फ़ाज़ “मेहरबानी से मेरे सवालात का जायज़ा लें और उनका जवाब दें ता कि आप अपने जुर्म का एहसास कर सकें ना कि अपने आपको इस का सितम-रसीदा समझें”, के बारे में आपको बताना लाज़िम समझता हूँ कि आप एक ग़लतफ़हमी का शिकार हैं। मैंने जनाब येसू के अल्फ़ाज़ सुन रखे हैं जिन्हों ने फ़रमाया “अगर तुम मेरे कलाम पर क़ायम रहोगे तो हक़ीक़त में मेरे शागिर्द ठहरोगे। और सच्चाई से वाक़िफ़ होगे और सच्चाई तुमको आज़ाद करेगी।” (यूहन्ना 8:31-32)
आपको सच्च बताता चलूं, मसीह के अल्फ़ाज़ ने मुझे तमाम बंधनों से रिहाई बख़्शी है, जिनमें से एक बदले की ख़्वाहिश भी थी। ख़ुदा के पाक रूह ने मुझे अपने कलाम में मज़बूती से क़ायम रखा है जो बयान करता है “लेकिन मैं तुमसे ये कहता हूँ कि अपने दुश्मनों से मुहब्बत रखो और अपने सताने वालों के लिए दुआ करो। ताकि तुम अपने बाप के जो आस्मान पर है बेटे ठहरो क्योंकि वो अपने सूरज को बदों और नेकों दोनों पर चमकाता है और रास्तबाज़ों और नारास्तों दोनों पर मीना (पानी) बरसाता है (मत्ती 5:44-45)
मेरा यक़ीन कीजिएगा, जब मैंने आपके सख़्त अल्फ़ाज़ को पढ़ना ख़त्म किया तो आप के लिए दुआ की। अब इस से पहले कि मैं आपके सवालात के जवाब दूं, मेहरबानी से मेरी नेक तमन्नाओ को क़ुबूल कीजिए।
इसिकंदर जदीद
सवाल 1
मुक़द्दस अगस्तीन ने कहा “मैं एक ईमानदार इसलिए हूँ क्योंकि ये अम्र अक़्ल से मुताबिक़त नहीं रखता।” तो फिर पागल फ़र्द और ऐसे फ़र्द के दर्मियान जो अक़्ल को दबाता है क्या फ़र्क़ रह जाता है?
जवाब :-
आपने इस इक़्तिबास के बारे में अगस्तीन का नुक्ता-ए-नज़र बयान नहीं किया बल्कि अपने ख़यालात का इज़्हार किया है। एक फ़र्द के लिए किसी भी बयान की वज़ाहत उस के अपने ख़यालात के मुताबिक़ करना आसान होता है। लफ़्ज़ “ईमान” इन्सान को मज्बूर कर देता है कि उस चीज़ को क़ुबूल करे जिसे ज़हन समझ नहीं सकता। कलाम-ए-ख़ुदावंदी बयान करता है, “अब ईमान उम्मीद की हुई चीज़ों का एतिमाद और अनदेखी चीज़ों का सबूत है।” (इब्रानियों 11:1) ये क़ौल उलमाए ईमान की तारीफ़ से मुख़्तलिफ़ नहीं है। उनका कहना है कि तस्दीक़ शहादत पर मबनी होती है ना कि हवास पर। ईमान उस चीज़ पर भरोसा है जिसकी ईमानदार को उम्मीद होती है, अनदेखी चीज़ों का सबूत। मुर्दों की क़ियामत पर ईमान ख़ुदा तआला की गवाही पर मबनी है जो उस की किताब में है, बिल्कुल जैसे फ़िर्दोस पर ईमान है जिसकी हमें उम्मीद तो है लेकिन अभी उसे नहीं देखते। इल्हामी किताब उस के वजूद की शहादत (गवाही) देती है।
इस तारीफ़ की माक़ूलीयत के लिए मज़ीद सबूत ये है :-
अलिफ़ : हम तारीख़ी वाक़ियात पर मौअर्रखीन की शहादत (गवाही) के मुताबिक़ ईमान रखते हैं, और साईंसी हक़ीक़तों पर साईंसदानों की गवाही के मुताबिक़ ईमान रखते हैं। हम ख़ल्क़, गुनाह में गिरने, और मख़लिसी पर भी ख़ुदा के मुकाशफे की बुनियाद पर जो उस ने अपनी किताब-ए-मुक़द्दस में दिया ईमान रखते हैं, जिसमें लिखा है “ईमान ही से हम मालूम करते हैं कि आलम ख़ुदा के कहने से बने हैं। ये नहीं कि जो कुछ नज़र आता है ज़ाहिरी चीज़ों से बना हो (इब्रानियों 11:3) हम अबदी ज़िंदगी, तजदीद यानी तब्दीली, रास्तबाज़ ठहराए जाने, तक़्दीस, क़ियामत, और रोज़े आख़र अदालत के अक़ीदे पर भी ईमान रखते हैं। इन सबको ख़ुदा तआला की गवाही की बुनियाद पर क़ुबूल किया जाता है।
ब : किताब-ए-मुक़द्दस भी ईमान को बयान करती है, और नए अहदनामे (इंजील) को येसू की गवाही कहा गया है। येसू मसीह एक फ़ल्सफ़ी के तौर पर नहीं बल्कि एक गवाह के तौर पर तशरीफ़ लाए। आपने निकुदेमुस से कहा, “मैं तुझसे सच्च कहता हूँ कि जो हम जानते हैं वो कहते हैं और जिसे हमने देखा है उस की गवाही देते हैं और तुम हमारी गवाही क़ुबूल नहीं करते।” (यूहन्ना 3:11) यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने यहूदीयों को बताया “जो ऊपर से आता है वो सबसे ऊपर है। जो ज़मीन से है वो ज़मीन ही से है और ज़मीन ही की कहता है। जो आस्मान से आता है वो सबसे ऊपर है। जो कुछ उस ने देखा और सुना उसी की गवाही देता है और कोई उस की गवाही क़ुबूल नहीं करता। जिसने उस की गवाही क़ुबूल की उस ने इस बात पर मुहर कर दी कि ख़ुदा सच्चा है।” (यूहन्ना 3:31-33)
मसीह के रसूल गवाह थे। येसू ने उन से वाअदा किया “लेकिन जब रूह-उल-क़ुद्स तुम पर नाज़िल होगा तो तुम क़ुव्वत पाओगे और यरूशलेम और तमाम यहूदिया और सामरिया में बल्कि ज़मीन की इंतिहा तक मेरे गवाह होगे (आमाल 1:8) जब उन्हों ने यूनान में गवाही दी तो अपनी ताअलीमात को फ़लसफ़े पर क़ायम ना किया। पौलुस रसूल ने कहा कि दुनिया की हिक्मत ख़ुदा के नज़्दीक बेवक़ूफ़ी है। रसूल फ़ल्सफ़ी नहीं थे बल्कि गवाह थे, और उन्हों ने रुहानी उमूर को इन्सानी हिक्मत से साबित ना किया, बल्कि ख़ुदा के कलाम की मुनादी की। ईमान के बारे में किताब-ए-मुक़द्दस की ताअलीम के सबूतों में से एक सबूत गवाही पर मबनी तस्दीक़ है। जो कुछ ख़ुदा के रूह ने मख़लिसी (नजात) की बाबत ज़ाहिर किया है, ख़ुदा का कलाम हमें उस पर ईमान लाने का हुक्म देता है। किताब-ए-मुक़द्दस में मर्क़ूम है, “जो ख़ुदा के बेटे पर ईमान रखता है वो अपने आप में गवाही रखता है। जिसने ख़ुदा का यक़ीन नहीं किया उस ने उसे झूटा ठहराया क्योंकि वो उस गवाही पर जो ख़ुदा ने अपने बेटे के हक़ में दी है ईमान नहीं लाया। और वो गवाही ये है कि ख़ुदा ने हमें हमेशा की ज़िंदगी बख़्शी और ये ज़िंदगी उस के बेटे में है।” (1-यूहन्ना 5:10-11) और ये ईमान की हक़ीक़त के बारे में वाज़ेह तरीन इज़्हार है।
मुख़्तसर ये कि, ईमान जिसका मुकाशफ़ा ख़ुदा तआला ने बख़्शा उस की बुनियाद उसी की गवाही है। जो कोई इस गवाही को क़ुबूल करता है इक़रार करता है कि ख़ुदा सच्चा है, और जो कोई इस का इन्कार करता है वो ख़ुदा को झूटा ठहराता है, और ये एक बहुत बड़ा कुफ़्र है।
अगर हम लोगों की गवाही क़ुबूल कर लेते हैं तो ख़ुदा की गवाही तो इस की निस्बत बहुत ही बड़ी है। किताब-ए-मुक़द्दस बारहा इस हक़ीक़त की ताअलीम देती है। ये वो बुनियाद है जिस पर हम अपना ईमान तामीर करते हैं, और ये हमें ये कह कर हुक्म देती है, “ख़ुदावंद फ़रमाता है।”
किताब-ए-मुक़द्दस ईमान के लिए एक और तारीफ़ बयान करती है। जब हमारे अव्वलीन आबाओ-अज्दाद आदम और हव्वा ने ख़ुदा तआला की ना-फ़र्मानी की तो उस ने उन से वाअदा किया “और मैं तेरे और औरत के दर्मियान और तेरी नस्ल और औरत की नस्ल के दर्मियान अदावत डालूंगा। वो तेरे सर को कुचलेगा और तू उस की एड़ी पर काटेगा।” (पैदाईश 3:15) इस वाअदे पर ईमान ख़ुदा की गवाही पर मबनी है। जब नूह नबी को ख़ुदा तआला ने आने वाले तूफ़ान के बारे में आगाह किया तो उस ने उन्हें एक कश्ती तैयार करने का हुक्म दिया। नूह नबी ने तूफ़ान के आने के निशानात देखे बग़ैर ख़ुदा के कलाम का यक़ीन किया।
ख़ुदा तआला ने अब्रहाम नबी से वाअदा किया कि उस की उम्र रसीदा बीवी सारा एक लड़के को जन्म देगी जो उनका वारिस होगा। किताब-ए-मुक़द्दस में लिखा है “अब ईमान उम्मीद की हुई चीज़ों का एतिमाद और अनदेखी चीज़ों का सबूत है।” (इब्रानियों 11:1) बज़ाहिर ये वाअदा खिलाफ-ए-अक़्ल मालूम होता है। एक और आयत पर ग़ौर कीजिए “और अबराहाम और सारा ज़ईफ़ और बड़ी उम्र के थे और सारा की वो हालत नहीं रही थी जो औरतों की होती है।” (पैदाईश 18:11) सारा नव्वे (90) बरस की हो चुकी थी और गो कि फ़ित्रती तौर पर ये मुम्किन नहीं था, लेकिन सारा ईमान लाई और ख़ुदा की क़ुद्रत से उस ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम उन्हों ने इज़्हाक़ रखा।
सो, इन वाक़ियात की बुनियाद पर हम ईमान की तारीफ़ सच्चाई को क़ुबूल करने के तौर पर करते हैं। मसीहियों बशमूल मुक़द्दस अगस्तीन का ईमान सादा तौर पर किताब-ए-मुक़द्दस में दर्ज वाक़ियात और ताअलीमात का यक़ीन करना और ख़ुदा की गवाही पर भरोसा करना है।
सवाल 2
कौंसिलों को किस ने इख़्तियार दिया कि वो ईसा, मर्यम और रूह-उल-क़ुद्स की उलूहियत (ख़ुदा होने) को तज्वीज़ करें? अगर कौंसिलों के पास ये करने का इख़्तियार है, तो क्या उन के पास ये हक़ नहीं है कि उन की उलूहियत से उन्हें महरूम कर दें और उसे किसी और के लिए तज्वीज़ करें? उन्हें किस ने इख़्तियार दिया कि वो पोप को लाख़ता (मासूम) बनाएँ? कलीसिया को किस ने गुनाहों को माफ़ करने और दीन बद्र करने का इख़्तियार बख़्शा?
जवाब :-
इस से पहले कि मैं इस सवाल का जवाब दूं, मैं आपको इस बात की याद-दहानी कराना चाहूँगा जो क़ुरआन बयान करता है “और अहले-किताब से बह्स ना करो मगर ऐसे तरीक़ से कि निहायत अच्छा हो।” (सूरह अन्कबूत 29:46)
इस सवाल को उठाने से आपने ताअलीमात क़ुरआनी से इन्हिराफ़ (ना-फ़र्मानी) किया है। याद रखिए, हर एक मुस्लिम को क़ुरआन की ताअलीमात की पैरवी करने का हुक्म दिया गया है। आपके सवाल का जवाब ये है :-
अलिफ़ : मसीहिय्यत मुक़द्दसा मर्यम को ख़ुदा का रुत्बा नहीं देती। मुझे ये कहने दीजिए कि आपके सवाल में कोई क़ाबिले ज़िक्र दर्याफ़्त नहीं है। ये सवाल क़ुरआन में मौजूद है “अल्लाह फ़रमाएगा कि ऐ ईसा इब्ने मरियम क्या तुमने लोगों से कहा था कि अल्लाह के सिवा मुझे और मेरी वालिदा को माबूद मुक़र्रर करो? (सूरह अल-मायदा 5:116) ये सवाल ज़हूर-ए-इस्लाम के वक़्त चंद बिद्अतों की मौजूदगी की वजह से पूछा गया। वो बुत-परस्त थे। इन में से चंद बिद्अतीयों ने कलीसिया में शामिल होने की कोशिश की और मर्यम को एक देवी कहा। मुअर्रिख़ बयान करते हैं कि उन्हों ने अपनी पुरानी देवी अल-ज़हरा जिसकी वो परस्तिश करते थे, उस की जगह मर्यम को एक देवी बना लिया। ये बिद्अती गिरोह मसीहिय्यत की ताअलीमात से बहुत दूर था, और एक भी सच्चा मसीही उन के अक़ाइद पर ईमान नहीं रखता। बादअज़ां बहुत से मसीही उलमा ने बाइबली दलाईल के साथ इस बिद्अत का मुक़ाबला किया। ये बिद्अती गिरोह सातवीं सदी के इख़्तताम तक मुकम्मल तौर पर ख़त्म हो गया।
वैसे मैं अपने दोस्त को जिसने ये सवाल पूछा है, बताना चाहूँगा कि इस्लाम ख़ुद भी इन बिद्अती गिरोहों से महफ़ूज़ नहीं था जिन्हों ने ख़ुद को इस से वाबस्ता किया। ऐसे बहुत से गिरोह हैं, लेकिन मैं चंद एक का ही ज़िक्र करूँगा :-
(1) अल-सबानिया : जो अब्दुल्लाह बिन सबा के पैरोकार थे। उनका मानना था कि अली बिन अबी तालिब ख़ुदा थे, और जब उस ने उन्हें जला कर सज़ा दी तो उन्हों ने कहा “अब हमने जान लिया कि आप ख़ुदा हैं, क्योंकि ख़ुदा आग से सज़ा देता है।”
(2) अल-शैतानिया : मुहम्मद बिन नोमान जो शैतान कहलाता था, ये उस के पैरोकार थे। वो शैतान की ताज़ीम करते थे।
(3) अल-जनाहिया : ये अब्दुल्लाह बिन मुआवीया के पैरोकार थे। उनका मानना था कि आदम में ख़ुदा की रूह थी और फिर वो उन के राहनुमा अब्दुल्लाह में मुंतक़िल हो गई जिसे “दो परों वाला ख़ुदा कहा गया।”
(4) अल-बज़ीगिया : ये बज़ीग़ बिन मूसा के पैरोकार थे। ये मानते थे कि जाफ़र सादिक़ ख़ुदा था लेकिन लोगों की तरह इन्सानी सूरत रखता था।
(5) अल-हायती : ये अहमद बिन हाइत के पैरोकार थे।
(6) अल-मज़दारिया : ये ईसा बिन सबा के पैरोकार थे जिसका लक़ब अल-मज़दार था। वो मानते थे कि ख़ुदा झूट बोलने और ज़ुल्म करने की क़ुद्रत रखता था। और कहते थे कि क़ुरआन मख़्लूक़ है।
इन के इलावा और भी बहुत से बिद्अती गिरोह हैं जिन सब का ज़िक्र हम इस किताबछे में करने के क़ाबिल नहीं हैं।
क्या इस्लाम इन बिद्अती गिरोहों की मौजूदगी का ज़िम्मेदार है? क्या इन के वजूद ने दीन-ए-इस्लाम को बदल दिया है?
ब : सवाल में लफ़्ज़ “तज्वीज़” ख़ुदावंद येसू मसीह के लिए ग़ैर-मुनासिब तौर पर इस्तिमाल किया गया है, क्योंकि उलूहियत कोई ऐसी चीज़ नहीं जिसे इन्सान तज्वीज़ करें। चाहे आप उसे पसंद ना करें, लेकिन सच्चाई फिर भी क़ायम है मसीह सच्चे ख़ुदा से सच्चा ख़ुदा है। उस ने ख़ुद इस सच्चाई का ऐलान किया और लोगों के बड़े हुजूमों ने उसे सुना, और तमाम क़ौमों, अदयान और ज़हनीयतों के लाखों लोगों ने इस गवाही को पढ़ा। आलिमों, हकीमों, फ़लसफ़ियों, छोटे बड़े लोगों ने इस गवाही को पढ़ा और अपने दिलों और आँखों को अपने कानों से पहले खोला ताकि उस के अपने बारे में जलाली अक़्वाल की मामूरी को अपने अंदर जज़्ब कर सकें। उन्हों ने ताज़ीम व तारीफ़ के साथ उसे सुना।
एक जर्मन मुसन्निफ़ ने कहा “अगर मसीह मह्ज़ एक उस्ताद होता, तो वो सब जिन्हों ने उसे सुना उन की तवज्जोह और भरोसा लाहासिल होता। लेकिन चूँकि वो दुनिया का नजातदिहंदा है इसलिए उसे इन अल्फ़ाज़ पर ज़ोर देने की ज़रूरत थी जो उस की ज़बरदस्त शख़्सियत की तरफ़ इशारा करते हैं, ताकि लोग उस पर ईमान लाएं, “जो ईमान लाए ...वो नजात पाएगा।”
बिशप सर्जियोस ने कहा “मसीह लासानी था। नया अहदनामा पढ़ने से हमें पता चलता है कि जहां कहीं मसीह गया सब सवालात उसी के बारे में होते थे। उस में ये हिक्मत और मोअजिज़े कहाँ से आए?” “क्या ये बढ़ई का बेटा नहीं? ये क्या है? ये तो नई ताअलीम है वो नापाक रूहों को भी इख़्तियार के साथ हुक्म देता है और वो उस का हुक्म मानती हैं।”
उस के बारे में ये सवालात क्या हैं? क्या वो हमें ये सबूत फ़राहम नहीं करते कि वो इस दुनिया के तमाम अफ़राद से ज़्यादा हैरत-अंगेज़ शख़्सियत है? वो लासानी और तमाम बनी-आदम से अज़ीम-तर था।
अगर वो ख़ुदा ना होता तो मसीह की अपने बारे में गवाही क़ायम ना रहती। उस ने अपने बारे में गवाही दी, क्योंकि वो सच्चा ख़ुदा है। उस के दावों से पता चलता है कि वो माफ़ौक़-उल-फ़ित्रत है।
ज़ेल में मसीह की चंद सिफ़ात का बयान किया गया है :-
(1) इख़्तियार : “आस्मान और ज़मीन का कुल इख्तियार मुझे दिया गया है।” (मत्ती 28:18)
(2) उलूहियत (एक ख़ुदा) के साथ यगानगत : “मैं और बाप एक हैं।” (यूहन्ना 10:30), “मैं बाप में हूँ और बाप मुझमें।” (यूहन्ना 14:11), “जिसने मुझे देखा उस ने बाप को देखा।” (यूहन्ना 14:9)
(3) अज़ली “पेश्तर इस से कि अब्रहाम पैदा हुआ मैं हूँ।” (यूहन्ना 8:58) ये उस का अपने बारे में इंतिहाई वाज़ेह बयान है। उस के अल्फ़ाज़ “मैं हूँ” वही अल्फ़ाज़ हैं जो ख़ुदा ने मूसा से कहे “मैं ज़रूर तेरे साथ रहूँगा और इस का कि मैंने तुझे भेजा है तेरे लिए ये निशान होगा कि जब तू उन लोगों को मिस्र से निकाल लाएगा तो तुम इस पहाड़ पर ख़ुदा की इबादत करोगे। तब मूसा ने ख़ुदा से कहा जब मैं बनी-इस्राईल के पास जा कर उन को कहूं कि तुम्हारे बाप दादा के ख़ुदा ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है और वो मुझे कहें कि उस का नाम क्या है? तो मैं उन को क्या बताऊँ? ख़ुदा ने मूसा से कहा मैं जो हूँ सो मैं हूँ। सो तू बनी-इस्राईल से यूं कहना कि मैं जो हूँ ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है (ख़ुरूज 3:12-14) “मैं जो हूँ सो मैं हूँ” का माअना ये है कि मसीह अपने आपको ज़ाहिर कर रहा है और कह रहा है कि वो वही ख़ुदा है जो मूसा पर झाड़ी में ज़ाहिर हुआ।
जब मसीह यूहन्ना पर पतमस के जज़ीरे पर ज़ाहिर हुआ तो उस ने उस से कहा “ख़ुदावंद ख़ुदा जो है और जो था और जो आने वाला है यानी क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि मैं अल्फ़ा और ओमेगा हूँ।” (मुकाशफ़ा 1:8) अल्फ़ाज़ “अल्फ़ा और ओमेगा” यूनानी ज़बान के पहले और आख़िरी हरूफ़-ए-तहज्जी हैं और मसीह के अज़ली व अबदी होने का इशारा देते हैं।
(4) ख़ुदा मसीह के वसीले से कलाम करता है : “ये बातें जो मैं तुमसे कहता हूँ अपनी तरफ़ से नहीं कहता लेकिन बाप मुझमें रह कर अपने काम करता है।” (यूहन्ना 14:10)
5) मसीह आस्मान और ज़मीन पर मौजूद है : “और आस्मान पर कोई नहीं चढ़ा सिवा उस के जो आस्मान से उतरा यानी इब्ने-आदम जो आस्मान में है।” (यूहन्ना 3:13) यहां वो सिर्फ़ आस्मान पर से अपने आने के बारे में बात नहीं कर रहा, बल्कि आस्मान पर अपने अबदी वजूद के बारे में भी बात कर रहा है।
(6) मसीह ज़िंदों और मुर्दों का मुंसिफ़ है : “जब इब्ने-आदम अपने जलाल में आएगा और सब फ़रिश्ते उस के साथ आएँगे तब वो अपने जलाल के तख़्त पर बैठेगा। और सब कौमें उस के सामने जमा की जाएँगी और वो एक को दूसरे से जुदा करेगा जैसे चरवाहा भेड़ों को बकरीयों से जुदा करता है। और भेड़ों को अपने दहने और बकरीयों को बाएं खड़ा करेगा। उस वक़्त बादशाह अपनी दहनी तरफ़ वालों से कहेगा आओ मेरे बाप के मुबारक लोगो जो बादशाही बना-ए-आलम से तुम्हारे लिए तैयार की गई है उसे मीरास में लो। क्योंकि मैं भूका था। तुमने मुझे खाना खिलाया। मैं प्यासा था। तुमने मुझे पानी पिलाया। मैं परदेसी था। तुमने मुझे अपने घर में उतारा। नंगा था। तुमने मुझे कपड़ा पहनाया। बीमार था। तुमने मेरी ख़बर ली। क़ैद में था। तुम मेरे पास आए। तब रास्तबाज़ जवाब में उस से कहेंगे ऐ ख़ुदावंद हमने कब तुझे परदेसी देखकर घर में उतारा? या नंगा देखकर कपड़ा पहनाया? हम कब तुझे बीमार या क़ैद में देखकर तेरे पास आए? बादशाह जवाब में उन से कहेगा मैं तुमसे सच्च कहता हूँ कि जब तुमने मेरे इन सबसे छोटे भाईयों में से किसी के साथ ये सुलूक किया तो मेरे ही साथ किया। फिर वो बाएं तरफ़ वालों से कहेगा ऐ मलऊनों मेरे सामने से इस हमेशा की आग में चले जाओ जो इब्लीस और उस के फ़रिश्तों के लिए तैयार की गई है।” (मत्ती 25:31-41) इन अल्फ़ाज़ को कहने से मसीह हमें दिखाता है कि वो रास्त मुंसिफ़ है। वो बड़े जलाल में अपने फ़रिश्तों के साथ वापिस आने को है “सरदार काहिन ने उस से कहा मैं तुझे ज़िंदा ख़ुदा की क़सम देता हूँ कि अगर तू ख़ुदा का बेटा मसीह है तो हमसे कह दे। येसू ने उस से कहा तू ने ख़ुद कह दिया बल्कि मैं तुमसे कहता हूँ कि इस के बाद तुम इब्ने-आदम को क़ादिर-ए-मुतलक़ की दहनी तरफ़ बैठे और आस्मान के बादिलों पर आते देखोगे।” (मत्ती 26:63-64)
(7) वो हमा जा (हर जगह हाज़िर नाज़िर) है : मसीह ने अपने शागिर्दों के सामने ये दावा किया, "देखो मैं दुनिया के आख़िर तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती 28:18), “क्योंकि जहां दो या तीन मेरे नाम पर इखट्ठे हैं वहां मैं उन के बीच में हूँ।” (मत्ती 18:20)
(8) उस ने तौरेत को पूरा किया : “तुम सुन चुके हो कि अगलों से कहा गया था कि ख़ून ना करना और जो कोई ख़ून करेगा वो अदालत की सज़ा के लायक़ होगा तुम सुन चुके हो कि कहा गया था कि ज़िना ना करना। लेकिन मैं तुमसे ये कहता हूँ कि जिस किसी ने बुरी ख़्वाहिश से किसी औरत पर निगाह की वो अपने दिल में उस के साथ ज़िना कर चुका।.... तुम सुन चुके हो कि कहा गया था कि आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत। लेकिन मैं तुमसे ये कहता हूँ कि शरीर (बुरे) का मुक़ाबला ना करना.. तुम सुन चुके हो कि कहा गया था कि अपने पड़ोसी से मुहब्बत रख और अपने दुश्मन से अदावत। लेकिन मैं तुमसे ये कहता हूँ कि अपने दुश्मनों से मुहब्बत रखो और अपने सताने वालों के लिए दुआ करो।” (मत्ती 5:21-48)
मसीह के काम उस की उलूहियत की गवाही देते हैं :-
- मुर्दों का ज़िंदा किया जाना। (लूक़ा 7:13-15, मर्क़ुस 5:22, यूहन्ना 11:1-27)
- गुनाहों की माफ़ी। (मर्क़ुस 2:5-12)
- उस का अलीम-उल-कुल होना। (लूक़ा 22:10-12)
- फ़ित्रत के अनासिर पर इख़्तियार व क़ुद्रत। (लूक़ा 8:22-25)
- रूह-उल-क़ुद्स का भेजना। (यूहन्ना 15:26)
- उस का सब चीज़ों का ख़ालिक़ होना। (कुलस्सियों 1:16)
बाप, बेटे येसू मसीह की उलूहियत की गवाही देता है। उस ने इस सच्चाई को अपने नबियों पर मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) किया जिन्हों ने रूह-उल-क़ुद्स की तहरीक से मुक़द्दस किताबों को तहरीर किया। मसलन यसअयाह 9:6 में लिखा है, “इसलिए हमारे लिए एक लड़का तवल्लुद हुआ और हमको एक बेटा बख़्शा गया और सल्तनत उस के कंधे पर होगी और उस का नाम अजीब मुशीर खुदा-ए-क़ादिर, अबदीयत का बाप सलामती का शाहज़ादा होगा।” (यसअयाह 7:14) में लिखा है, “लेकिन ख़ुदावंद आप तुमको एक निशान बख़्शेगा। देखो एक कुँवारी हामिला होगी और बेटा पैदा होगा और वो उस का नाम इम्मानूएल रखेगी।” इस बात की याददहानी हमें मत्ती 1:23 में करवाई गई है, “देखो एक कुँवारी हामिला होगी और बेटा जनेगी और उस का नाम इम्मानूएल रखेंगे।” जिसका तर्जुमा है, “ख़ुदा हमारे साथ।”
शागिर्दों ने जनाब मसीह की उलूहियत की गवाही दी। वो शागिर्द और रसूल जिन्हों ने क़दीम यहूदी शरीअत का मुतालआ किया था उन की गवाही बहुत अहम है। उन की गवाही मसीह के साथ होने, उस की ताअलीमात को सुनने और उस के मोअजज़ात को देखने के उन के तजुर्बे की बदौलत आई। वो ख़ुदा के एक होने पर ईमान रखते थे और उन्हों ने पुराने अहदनामे के अक़ाइद से इन्हिराफ़ (ना-फ़र्मानी) ना किया। उन्हों ने मसीह में अपनी रुहानी ज़िंदगीयों के लिए ज़िंदगी बख़्श पानी का चश्मा पाया। इन में से किसी ने भी मसीह की बतौर ख़ुदावंद, नजातदिहंदा और ख़ुदा परस्तिश करने की हक़ीक़त का इन्कार ना किया। ज़ेल में मसीह की उलूहियत के बारे में उन की चंद गवाहियाँ दी गई हैं :-
(1) मर्क़ुस इन्जील नवीस, अपनी इन्जील के शुरू में लिखता है, “येसू मसीह इब्ने-ख़ुदा की ख़ुशख़बरी का शुरू”, और इख़्तताम इन अल्फ़ाज़ से करता है “ग़र्ज़ ख़ुदावंद येसू उन से कलाम करने के बाद आस्मान पर उठाया गया और ख़ुदा की दहनी तरफ़ बैठ गया। फिर उन्हों ने निकल कर हर जगह मुनादी की और ख़ुदावंद उन के साथ काम करता रहा और कलाम को उन मोअजिज़ों के वसीले से जो साथ-साथ होते थे साबित करता रहा।”
(2) यूहन्ना इन्जील नवीस प्यारा शागिर्द अपनी इन्जील का आग़ाज़ इन अल्फ़ाज़ से करता है, “इब्तिदा में कलाम था और कलाम ख़ुदा के साथ था और कलाम ख़ुदा था। यही इब्तिदा में ख़ुदा के साथ था। सब चीज़ें उस के वसीले से पैदा हुईं और जो कुछ पैदा हुआ है इस में से कोई चीज़ भी उस के बग़ैर पैदा नहीं हुई।” अस्ल यूनानी मतन में “कलाम” के लिए इस्तिमाल होने वाला लफ़्ज़ “लोगोस” है जिसका मफ़्हूम ये है “वो क़ुद्रत जो कायनात की मालिक है।”, या “ख़ुदा और इन्सान के बीच में दर्मियानी।” उस के वसीले से तमाम कायनात बनी। उन सबको ख़ामोश करवाने के लिए, जो ये दावा करते हैं कि ख़ुदा के लिए एक मुजस्सम वजूद इख़्तियार करना नामुम्किन है, उस ने कहा “और कलाम मुजस्सम हुआ और फ़ज़्ल और सच्चाई से मामूर हो कर हमारे दर्मियान रहा और हमने उस का ऐसा जलाल देखा जैसा बाप के इकलौते का जलाल।” (यूहन्ना 1:14)
(3) पतरस रसूल ने यहूदीयों की एक बड़ी भीड़ के सामने ये कहा “ऐ इस्राईलियों ये बातें सुनो कि येसू नासरी एक शख़्स था जिसका ख़ुदा की तरफ़ से होना तुम पर उन मोअजिज़ों और अजीब कामों और निशानों से साबित हुआ जो ख़ुदा ने उस की मार्फ़त तुम में दिखाए। चुनान्चे तुम आप ही जानते हो। जब वो ख़ुदा के मुक़र्ररा इंतिज़ाम और इल्म-ए-साबिक़ के मुवाफ़िक़ पकड़वाया गया तो तुमने बे-शराअ लोगों के हाथ से उसे मस्लूब करवा कर मार डाला। लेकिन ख़ुदा ने मौत के बंद खोल कर उसे जिलाया क्योंकि मुम्किन ना था कि वो उस के क़ब्ज़े में रहता। क्योंकि दाऊद उस के हक़ में कहता है कि “मैं ख़ुदावंद को हमेशा अपने सामने देखता रहा। क्योंकि वो मेरी दाहिनी तरफ़ है ताकि मुझे जुंबिश ना हो। इसी सबब से मेरा दिल ख़ुश हुआ और मेरी ज़बान शाद बल्कि मेरा जिस्म भी उम्मीद में बसा रहेगा। इसलिए कि तू मेरी जान को आलम-ए-अर्वाह में ना छोड़ेगा और ना अपने मुक़द्दस के सड़ने की नौबत पहुंचने देगा। तू ने मुझे ज़िंदगी की राहें बताएं। तू मुझे अपने दीदार के बाइस खु़शी से भर देगा।” ऐ भाइयो मैं क़ौम के बुज़ुर्ग दाऊद के हक़ में तुमसे दिलेरी के साथ कह सकता हूँ कि वो मुआ (मरा) और दफ़न भी हुआ और उस की क़ब्र आज तक हम में मौजूद है। पस नबी हो कर और ये जान कर कि ख़ुदा ने मुझसे क़सम खाई है कि तेरी नस्ल से एक शख़्स को तेरे तख़्त पर बिठाऊंगा। उस ने पेशीनगोई के तौर पर मसीह के जी उठने का ज़िक्र किया कि ना वो आलम-ए-अर्वाह में छोड़ा गया ना उस के जिस्म के सड़ने की नौबत पहुंची। इसी येसू को ख़ुदा ने जिलाया जिसके हम सब गवाह हैं। पस ख़ुदा के दहने हाथ से सर-बुलंद हो कर और बाप से वो रूह-उल-क़ुद्स हासिल कर के जिसका वाअदा किया गया था उस ने ये नाज़िल किया जो तुम देखते और सुनते हो। क्योंकि दाऊद तो आस्मान पर नहीं चढ़ा लेकिन वो ख़ुद कहता है कि “ख़ुदावंद ने मेरे ख़ुदावंद से कहा मेरी दाहिनी तरफ़ बैठ। जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाओ तले की चौकी ना कर दूं।” पस इस्राईल का सारा घराना यक़ीन जान ले कि ख़ुदा ने उसी येसू को जिसे तुमने मस्लूब किया ख़ुदावंद भी किया और मसीह भी।” (आमाल 2:22-36)
(4) पौलुस रसूल ने रूह-उल-क़ुद्स की तहरीक से कहा, “फिर भी कामिलों में हम हिक्मत की बातें कहते हैं लेकिन इस जहान की और इस जहान के नेस्त होने वाले सरदारोँ की हिक्मत नहीं। बल्कि हम ख़ुदा की वो पोशीदा हिक्मत भेद के तौर पर बयान करते हैं जो ख़ुदा ने जहान के शुरू से पेश्तर हमारे जलाल के वास्ते मुक़र्रर की थी। जिसे इस जहान के सरदारोँ में से किसी ने ना समझा क्योंकि अगर समझते तो जलाल के ख़ुदावंद को मस्लूब ना करते।” (1-कुरिन्थियों 2:6-8) येसू ने इन्सानी जिस्म इख़्तियार किया, लेकिन इस के साथ-साथ वो ख़ुदा भी था जिसे बनी-आदम ना जानते थे।
अगर लोग ये जानते कि येसू जलाल का ख़ुदावंद है तो वो उसे मस्लूब ना करते। पौलुस ने लिखा, “लेकिन हमारे नज़्दीक तो एक ही ख़ुदा है यानी बाप जिसकी तरफ़ से सब चीज़ें हैं और हम उसी के लिए हैं। और एक ही ख़ुदावंद है यानी येसू मसीह जिसके वसीले से सब चीज़ें मौजूद हुईं और हम भी उसी के वसीले से हैं।” (1-कुरिन्थियों 8:6) “और बाप का शुक्र करते रहो जिसने हमको इस लायक़ किया कि नूर में मुक़द्दसों के साथ मीरास का हिस्सा पाएं।” (कुलस्सियों 1:12) “और पौलुस ने ये भी लिखा “ख़बरदार कोई शख़्स तुमको इस फ़ैलसूफ़ी और लाहासिल फ़रेब से शिकार ना कर ले जो इन्सानों की रिवायत और दुनियावी इब्तिदाई बातों के मुवाफ़िक़ हैं ना कि मसीह के मुवाफ़िक़। क्योंकि उलूहियत की सारी मामूरी उसी में मुजस्सम हो कर सुकूनत करती है। और तुम उसी में मामूर हो गए हो जो सारी हुकूमत और इख़्तियार का सर है।” (कुलस्सियों 2:8-10)
अगर लोग ये जानते कि येसू जलाल का ख़ुदावंद है तो वो उसे मस्लूब ना करते। पौलुस ने लिखा, “लेकिन हमारे नज़्दीक तो एक ही ख़ुदा है यानी बाप जिसकी तरफ़ से सब चीज़ें हैं और हम उसी के लिए हैं। और एक ही ख़ुदावंद है यानी येसू मसीह जिसके वसीले से सब चीज़ें मौजूद हुईं और हम भी उसी के वसीले से हैं।” (1-कुरिन्थियों 8:6) “और बाप का शुक्र करते रहो जिसने हमको इस लायक़ किया कि नूर में मुक़द्दसों के साथ मीरास का हिस्सा पाएं।” (कुलस्सियों 1:12) “और पौलुस ने ये भी लिखा “ख़बरदार कोई शख़्स तुमको इस फ़ैलसूफ़ी और लाहासिल फ़रेब से शिकार ना कर ले जो इन्सानों की रिवायत और दुनियावी इब्तिदाई बातों के मुवाफ़िक़ हैं ना कि मसीह के मुवाफ़िक़। क्योंकि उलूहियत की सारी मामूरी उसी में मुजस्सम हो कर सुकूनत करती है। और तुम उसी में मामूर हो गए हो जो सारी हुकूमत और इख़्तियार का सर है।” (कुलस्सियों 2:8-10)
अगर तमाम ज़हीन, बड़े, बेहतरीन पढ़े लिखे उलमा ख़ुदा की सिफ़ात की मार्फ़त तक पहुंचने की कोशिश करने के लिए एक कान्फ़्रैंस का एहतिमाम करते, तो वो किसे कायनात के ख़ुदा और मालिक के तौर पर चुनते? यक़ीनन, उन्हें येसू मसीह की सूरत में तमाम अख़्लाक़ी और रुहानी सिफ़ात मिल जातीं।
इस में कोई शक नहीं कि इन्सानियत के लिए सबसे बड़ी ख़बर का बयान 1-तीमुथियुस 3:16 में किया गया है, “इस में कलाम नहीं कि दीनदारी का भेद बड़ा है यानी वो जो जिस्म में ज़ाहिर हुआ और रूह में रास्तबाज़ ठहरा और फ़रिश्तों को दिखाई दिया और ग़ैर क़ौमों में उस की मुनादी हुई और दुनिया में उस पर ईमान लाए और जलाल में ऊपर उठाया गया। ग़ैर-मसीही दुनिया तक पहुंचाने के लिए बेहतरीन ख़बर ये है कि क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा जिसे वो बहुत कम जानते हैं वो क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा है जिसकी सिफ़ात और खूबियां येसू मसीह में हैं।”
ज - लफ़्ज़ “तज्वीज़ करना” का इतलाक़ रूह-उल-क़ुद्स पर भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि रूह-उल-क़ुद्स ख़ुदा है। ज़ेल में किताब-ए-मुक़द्दस की वो आयात दी जा रही हैं जो रूह-उल-क़ुद्स की उलूहियत का सबूत फ़राहम करती हैं :-
(1) हमारे ख़ुदावंद येसू मसीह ने सामरी औरत से कहा “मगर वो वक़्त आता है बल्कि अब ही है कि सच्चे परस्तार बाप की परस्तिश रूह और सच्चाई से करेंगे क्योंकि बाप अपने लिए ऐसे ही परस्तार ढूंढता है।” (यूहन्ना 4:23)
(2) पतरस रसूल ने हननियाह से जिसने झूट बोला ये कहा, “ऐ हननियाह क्यों शैतान ने तेरे दिल में ये बात डाल दी कि तू रूह-उल-क़ुद्स से झूट बोले और ज़मीन की क़ीमत में से कुछ रख छोड़े? क्या जब तक वो तेरे पास थी तेरी ना थी? और जब बेची गई तो तेरे इख़्तियार में ना रही? तू ने क्यों अपने दिल में इस बात का ख़याल बाँधा? तू आदमीयों से नहीं बल्कि ख़ुदा से झूट बोला।” (आमाल 5:3-4)
ग़ालिबन आपका एतराज़ ताअलीमे इस्लामी पर मबनी है जो दाअवा करती है कि रूह-उल-क़ुद्स जिब्राईल फ़रिश्ता है। यहूदियत और मसीहिय्यत इस अक़ीदे को रद्द करती हैं क्योंकि जिब्राईल फ़रिश्ता एक मख़्लूक़ है जबकि रूह-उल-क़ुद्स ख़ालिक़ है। किताब-ए-मुक़द्दस में लिखा है, “ख़ुदा की रूह ने मुझे बनाया है और क़ादिर-ए-मुतलक़ का दम मुझे ज़िंदगी बख़्शता है।” (अय्यूब 33:4) “तू अपनी रूह भेजता है और ये पैदा होते हैं और तो रू-ए-ज़मीन को नया बना देता है।” (ज़बूर 104:30)
रूह-उल-क़ुद्स के चंद नाम ये हैं :-
- ख़ुदावंद का रूह
- पाक ख़ुदा का रूह
- रूह-उल-क़ुद्स
- रूह-ए-हक़
- पाकीज़गी का रूह
रूह-उल-क़ुद्स पाक तस्लीस का तीसरा उक़नूम है। वो अपनी तमाम सिफ़ात के साथ ख़ुदा है।
द - बे-ख़ता पोप : हम इंजीली और प्रोटैस्टैंट कलीसियाएं इस अक़ीदे को नहीं मानतीं। सिर्फ मसीह ही गुनाह से मुबर्रा (पाक) वाहिद शख़्सियत थी और है। हम पोप की राहनुमाई या इख़्तियार के ताबेअ नहीं हैं। अच्छा होता आप उस के किसी पैरोकार से पूछते। ये अक़ीदा हमारी किताब-ए-मुक़द्दस के भी ख़िलाफ़ है जो ये कहती है, “इसलिए कि सबने गुनाह किया और ख़ुदा के जलाल से महरूम हैं।” (रोमीयों 3:23), और ये भी कि, “अगर हम कहें कि हम बेगुनाह हैं तो अपने आपको फ़रेब देते हैं और हम में सच्चाई नहीं। अगर अपने गुनाहों का इक़रार करें तो वो हमारे गुनाहों के माफ़ करने और हमें सारी नारास्ती से पाक करने में सच्चा और आदिल है। अगर कहें कि हमने गुनाह नहीं किया तो उसे झूटा ठहराते हैं और उस का कलाम हम में नहीं है।” (1-यूहन्ना 1:8-10)
ह - कलीसिया का दीन बद्र करने और गुनाहों को माफ़ करने का इख़्तियार नया अहदनामा दीन बद्र (दीन से बाहर कर देना) किए जाने पर कोई ताअलीम नहीं देता। किताब-ए-मुक़द्दस कलीसिया में ईमानदारों को हुक्म देती है कि वो शरीर (बुरे) अफ़राद से उस वक़्त तक सोहबत (रिफाक़त) ना रखें जब तक कि वो तौबा ना करें। इस बारे में किताब-ए-मुक़द्दस की चंद आयात ज़ेल में दी गई हैं :-
“लेकिन मैंने तुमको दरहक़ीक़त ये लिखा था कि अगर कोई भाई कहला कर हरामकार या लालची या बुत-परस्त या गाली देने वाला या शराबी या ज़ालिम हो तो उस से सोहबत ना रखो बल्कि ऐसे के साथ खाना तक ना खाना। क्योंकि मुझे बाहर वालों पर हुक्म करने से किया वास्ता? क्या ऐसा नहीं है कि तुम तो अंदर वालों पर हुक्म करते हो। मगर बाहर वालों पर ख़ुदा हुक्म करता है। पस इस शरीर (बुरे) आदमी को अपने दर्मियान से निकाल दो।” (1-कुरिन्थियों 5:11-13)
“ऐ भाइयो हम अपने ख़ुदावंद येसू मसीह के नाम से तुम्हें हुक्म देते हैं कि हर एक ऐसे भाई से किनारा करो जो बेक़ाइदा चलता है और उस रिवायत पर अमल नहीं करता जो उस को हमारी तरफ़ से पहुंची।” (2-थिस्सलुनीकियों 3:6)
माफ़ करने के बारे में हमारे ख़ुदावंद येसू मसीह की ताअलीमात ये हैं :-
“ख़बरदार रहो अगर तेरा भाई गुनाह करे तो उसे मलामत कर। अगर तौबा करे तो उसे माफ़ कर। और अगर वो एक दिन में सात दफ़ाअ तेरा गुनाह करे और सातों दफ़ाअ तेरे पास फिर आकर कहे कि तौबा करता हूँ तो उसे माफ़ कर।” (लूक़ा 17:3-4)
“अगर तेरा भाई तेरा गुनाह करे तो जा और ख़ल्वत में बातचीत कर के उसे समझा। अगर वो तेरी सुने तो तू ने अपने भाई को पा लिया। और अगर ना सुने तो एक दो आदमीयों को अपने साथ ले जाता कि हर एक बात दो तीन गवाहों की ज़बान से साबित हो जाये। अगर वो उन की भी सुनने से इन्कार करे तो कलीसिया से कह और अगर कलीसिया की सुनने से भी इन्कार करे तो तू उसे ग़ैर क़ौम वाले और महसूल लेने वाले के बराबर जान। मैं तुमसे सच्च कहता हूँ कि जो कुछ तुम ज़मीन पर बाँधोगे वो आस्मान पर बंधेगा और जो कुछ तुम ज़मीन पर खोलोगे वो आस्मान पर खुलेगा।” (मत्ती 18:15-18)
और मुक़द्दस याक़ूब ने इस बारे में ये लिखा :-
“ऐ मेरे भाइयो अगर तुम में कोई राह़-ए-हक़ से गुमराह हो जाये और कोई उस को फेर लाए। तो वो ये जान ले कि जो कोई किसी गुनेहगार को उस की गुमराही से फेर लाएगा। वो एक जान को मौत से बचाएगा और बहुत से गुनाहों पर पर्दा डालेगा।” (याक़ूब 5:19-20)
व - कौंसिलों को किस ने इख़्तियार दिया कि वो ईसा, मर्यम और रूह-उल-क़ुद्स की उलूहियत (ख़ुदा होने) को तज्वीज़ करें? अगर कलीसियाई कौंसिलों के पास इख़्तियार है कि वो ईसा, मर्यम और रूह-उल-क़ुद्स की उलूहियत (ख़ुदा होने) का चुनाओ करें, तो क्या उन के पास ये हक़ नहीं है कि इन की उलूहियत से उन्हें महरूम कर दें और इन की जगह किसी और का चुनाओ करें?
आपके सवाल का ये हिस्सा ख़ुदावंद तआला के कलाम की वाज़ेह तज़हीक है। लाज़िम है कि हम ख़ुदा के कलाम की पैरवी करें जो ये बयान करता है, “मुबारक है वो आदमी जो शरीरों (बुरों) की सलाह पर नहीं चलता और ख़ताकारों की राह में खड़ा नहीं होता और ठट्ठा बाज़ों की मज्लिस में नहीं बैठता।” (ज़बूर 1:1) किताब-ए-मुक़द्दस हमें हुक्म देती है कि ठट्ठा बाज़ों के साथ अपने तमाम मुआमलात और रिफ़ाक़त को ख़त्म कर दें।”
सवाल 3
क्या तस्लीस का एक ही उक़नूम मस्लुबियत में से गुज़रा और बाक़ी अक़ानीम इस से मुतास्सिर नहीं हुए?
जवाब :
एक मज़्हबी मुसलमान की तरफ़ से जिसने क़ुरआन पढ़ रखा हो, इस क़िस्म के सवाल को सुनना निहायत ही हैरान कुन अम्र है। क़ुरआन हमें येसू मसीह की मस्लुबियत के बारे में यहूदीयों का वाक़िया बयान करता है। क़ुरआन में लिखा है, “और ये कहने के सबब कि हमने मर्यम के बेटे ईसा मसीह को क़त्ल कर दिया है।” (सूरह निसा 4:157)
तमाम दुनिया की नजात की ख़ातिर बाप और बेटे के माबैन मख़लिसी के अहद के मुताबिक़ तस्लीस का दूसरा उक़नूम मस्लुबियत में से गुज़रा। वो अहद हमारे इदराक से परे है। हमें मख़लिसी की इस ताअलीम को क़ुबूल करना है, क्योंकि ये किताब-ए-मुक़द्दस की बुनियादी बात है। हाँ, हम एक ख़ुदा पर ईमान रखते हैं। ये ख़ुदा उलूहियत की तमाम ख़ूबीयों और सिफ़ात के साथ एक हस्ती है। इस वाहिद ख़ुदा में तीन अक़ानीम हैं, जो क़ुद्रत और जलाल में बराबर हैं। इस बड़े भेद की वज़ाहत हमारी क़ाबिलीयत से परे है। ये अक़ीदा मसीही ईमान का एक हिस्सा है क्योंकि क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा की किताब-ए-मुक़द्दस ने हर एक मसीही ईमानदार को इस की ताअलीम दी है :-
पौलुस रसूल ने कहा :-
“अब ख़ुदा जो तुमको मेरी ख़ुशख़बरी यानी येसू मसीह की मुनादी के मुवाफ़िक़ मज़्बूत कर सकता है इस भेद के मुकाशफ़े के मुताबिक़ जो अज़ल से पोशीदा रहा।” (रोमीयों 16:25)
“और सब पर ये बात रोशन करूँ कि जो भेद अज़ल से सब चीज़ों के पैदा करने वाले ख़ुदा मैं पोशीदा रहा उस का क्या इंतिज़ाम है।” (इफ़िसियों 3:9)
“यानी इस भेद की जो तमाम ज़मानों और पुश्तों से पोशीदा रहा लेकिन अब उस के इन मुक़द्दसों पर ज़ाहिर हुआ।” (कुलस्सियों 1:26)
हत्ता कि मसीह के तजस्सुम से पहले भी इस बात का ज़िक्र मिलता है कि मख़लिसी का वाअदा ख़ुदा तआला के मन्सूबे में था। किताब-ए-मुक़द्दस हमें मख़लिसी के मंसूबे का एक बाक़ायदा ख़ाका पेश करती है जिसे येसू मसीह ने पूरा करना था ताकि जो कोई उस पर ईमान लाए वो नजात पाए।
(1) उस ने हमारी सूरत इख़्तियार की और एक कुँवारी से पैदा हुआ। किताब-ए-मुक़द्दस में लिखा है :-“पस उस को सब बातों में अपने भाईयों की मानिंद बनना लाज़िम हुआ ताकि उम्मत के गुनाहों का कफ़्फ़ारा देने के वास्ते उन बातों में जो ख़ुदा से इलाक़ा रखती हैं एक रहमदिल और दयानतदार सरदार काहिन बने।” (इब्रानियों 2:17)
(2) उसे शरीअत के तहत पैदा होना पड़ा।“इसी तरह हम भी जब बच्चे थे तो दुनियावी इब्तिदाई बातों के पाबंद हो कर गु़लामी की हालत में रहे। लेकिन जब वक़्त पूरा हो गया तो ख़ुदा ने अपने बेटे को भेजा जो औरत से पैदा हुआ और शरीअत के मातहत पैदा हुआ।” (ग़लतीयों 4:3-4)
“ये ना समझो कि मैं तौरेत या नबियों की किताबों को मन्सूख़ करने आया हूँ। मन्सूख़ करने नहीं बल्कि पूरा करने आया हूँ क्योंकि मैं तुमसे सच्च कहता हूँ कि जब तक आस्मान और ज़मीन टल ना जाएं एक नुक़्ता या एक शोशा तौरेत से हरगिज़ ना टलेगा जब तक सब कुछ पूरा ना हो जाये।” (मत्ती 5:17-18)
(3) उस ने अपने आपको दुनिया के तमाम गुनाहों की ख़ातिर एक कामिल कफ़्फ़ारे के तौर पर पेश किया।“हमारे पैग़ाम पर कौन ईमान लाया और ख़ुदावंद का बाज़ू किस पर ज़ाहिर हुआ? पर वो उस के आगे कोन्पल की तरह और ख़ुश्क ज़मीन से जड़ की मानिंद फूट निकला है। ना उस की कोई शक्ल व सूरत है ना ख़ूबसूरती और जब हम उस पर निगाह करें तो कुछ हुस्न व जमाल नहीं कि हम उस के मुश्ताक़ हों। वो आदमीयों में हक़ीर व मर्दूद, मर्द-ए-ग़मनाक और रंज का आश्ना था। लोग उस से गोया रुपोश थे उस की तहक़ीर की गई और हमने उसकी कुछ क़द्र ना जानी। तो भी उस ने हमारी मशक़्क़तें उठा लीं और हमारे ग़मों को बर्दाश्त किया। पर हमने उसे ख़ुदा का मारा कूटा और सताया हुआ समझा। हालाँकि वो हमारी ख़ताओ के सबब से घायल किया गया और हमारी बदकिर्दारी के बाइस कुचला गया। हमारी ही सलामती के लिए उस पर सियासत हुई ताकि उस के मार खाने से हम शिफ़ा पाएं। हम सब भेड़ों की मानिंद भटक गए। हम में से हर एक अपनी राह फिरा पर ख़ुदावंद ने हम सबकी बदकिर्दारी उस पर लादी। वो सताया गया तो भी उस ने बर्दाश्त की और मुँह ना खोला। जिस तरह बर्रा जिसे ज़ब्ह करने को ले जाते हैं और जिस तरह भेड़ अपने बाल कतरने वालों के सामने बेज़बान है उसी तरह वो ख़ामोश रहा। वो ज़ुल्म कर के और फ़त्वा लगा कर उसे ले गए पर उस के ज़माने के लोगों में से किस ने ख़याल किया कि वो ज़िंदों की ज़मीन से काट डाला गया? मेरे लोगों की ख़ताओ के सबब से उस पर मार पड़ी। उस की क़ब्र भी शरीरों के दर्मियान ठहराई गई और वो अपनी मौत में दौलतमंदों के साथ हुआ हालाँकि उस ने किसी तरह का ज़ुल्म ना किया और उस के मुँह में हरगिज़ छल ना था। लेकिन ख़ुदावंद को पसंद आया कि उसे कुचले। उस ने उसे ग़मगीं किया। जब उस की जान गुनाह की क़ुर्बानी के लिए गुज़रानी जाएगी तो वो अपनी नस्ल को देखेगा। उस की उम्र दराज़ होगी। अपनी ही जान का दुख उठा कर वो उसे देखेगा और सैर होगा। अपने ही इर्फ़ान से मेरा सादिक़ ख़ादिम बहुतों को रास्तबाज़ ठहराएगा क्योंकि वो उन की बदकिर्दारी ख़ुद उठा लेगा। इसलिए मैं उसे बुज़ुर्गों के साथ हिस्सा दूंगा और वो लूट का माल ज़ोर आवरों के साथ बांट लेगा क्योंकि उस ने अपनी जान मौत के लिए उंडेल दी और वो ख़ताकारों के साथ शुमार किया गया तो भी उस ने बहुतों के गुनाह उठा लिए और ख़ताकारों की शफ़ाअत की। (यसअयाह 53:1-12)
“जो गुनाह से वाक़िफ़ ना था उसी को उस ने हमारे वास्ते गुनाह ठहराया ताकि हम उस में हो कर ख़ुदा की रास्तबाज़ी हो जाएं।” (2-कुरिन्थियों 5:21)
"मसीह जो हमारे लिए लानती बना उस ने हमें मोल लेकर शरीअत की लानत से छुड़ाया क्योंकि लिखा है कि जो कोई लकड़ी पर लटकाया गया वो लानती है।” (ग़लतीयों 3:13)
“और मुहब्बत से चलो। जैसे मसीह ने तुमसे मुहब्बत की और हमारे वास्ते अपने आपको ख़ुशबू की मानिंद ख़ुदा की नज़र कर के क़ुर्बान किया।” (इफ़िसियों 5:2)
ख़ुदा बाप ने एक बदन या आदम के बदन की तरह का मुक़द्दस तैयार करने का वाअदा किया, एक ऐसा बदन जो ना सड़ेगा और ना उस में कोई नुक़्स होगा। “इसी लिए वो दुनिया में आते वक़्त कहता है कि तू ने क़ुर्बानी और नज़र को पसंद ना किया बल्कि मेरे लिए एक बदन तैयार किया।” (इब्रानियों 10:5)
ख़ुदा तआला ने इस बदन को रूह-उल-क़ुद्स और जलाल व क़ुद्रत से मामूर किया। बाप ने हमेशा बेटे के साथ का और शरीर के ख़िलाफ़ उस की लड़ाई में मदद फ़राहम करने और शैतान को उस के पाओ के नीचे कुचलने का वाअदा किया। उस ने बेटे को आस्मान और ज़मीन का कुल इख़्तियार दिया। “येसू ने पास आकर उन से बातें कीं और कहा कि आस्मान और ज़मीन का कुल इख़्तियार मुझे दिया गया है।” (मत्ती 28:18)
फिलिप्पियों 2:6-18 में लिखा है :-
“उस ने अगरचे ख़ुदा की सूरत पर था ख़ुदा के बराबर होने को क़ब्ज़े में रखने की चीज़ ना समझा। बल्कि अपने आपको ख़ाली कर दिया और ख़ादिम की सूरत इख़्तियार की और इंसानों के मुशाबेह हो गया। और इंसानी शक्ल में ज़ाहिर हो कर अपने आपको पस्त कर दिया और यहां तक फ़रमांबर्दार रहा कि मौत बल्कि सलीबी मौत गवारा की। इसी वास्ते ख़ुदा ने भी उसे बहुत सर-बुलंद किया और उसे वो नाम बख़्शा जो सब नामों से आला है। ताकि येसू के नाम पर हर एक घुटना टिके। ख़्वाह आसमानियों का हो ख़्वाह ज़मीनियों का। ख़्वाह उनका जो ज़मीन के नीचे हैं। और ख़ुदा बाप के जलाल के लिए हर एक ज़बान इक़रार करे कि येसू मसीह ख़ुदावंद है। पस ऐ मेरे अज़ीज़ो जिस तरह तुम हमेशा से फ़रमांबर्दारी करते आए हो उसी तरह अब भी ना सिर्फ मेरी हाज़िरी में बल्कि इस से बहुत ज्यादा मेरी गैर-हाज़िरी में डरते और काँपते हुए अपनी नजात का काम किए जाओ क्योंकि जो तुम में नीयत और अमल दोनों को अपने नेक इरादे को अंजाम देने के लिए पैदा करता है वो ख़ुदा है। सब काम शिकायत और तकरार बगैर किया करो। ताकि तुम बेऐब और भोले हो कर टेढ़े और कजरौ लोगों में ख़ुदा के बेनुक्स फ़र्ज़न्द बने रहो। (जिन के दरमियान तुम दुनिया में चराग़ों की तरह दिखाई देते हो। और ज़िंदगी का कलाम पेश करते हो) ताकि मसीह के दिन मुझे फ़ख़्र हो कि ना मेरी दौड़ धूप बे फ़ाइदा हुई ना मेरी मेहनत अकारत गई। और अगर मुझे तुम्हारे ईमान की क़ुर्बानी और ख़िदमत के साथ अपना ख़ून भी बहाना पड़े तो भी ख़ुश हूँ और तुम सब के साथ ख़ुशी करता हूँ। तुम भी इसी तरह ख़ुश हो और मेरे साथ ख़ुशी करो।”
यूहन्ना 5:22 में लिखा है, “क्योंकि बाप किसी की अदालत भी नहीं करता बल्कि उस ने अदालत का सारा काम बेटे के सपुर्द किया है।”
ख़ुदा तआला ने बेटे को ईमानदारों की नई पैदाईश के लिए, उन्हें मुनव्वर करने और राहनुमाई फ़राहम करने, उन्हें तसल्ली देने और उन की तक़्दीस करने के लिए रूह-उल-क़ुद्स भेजने का तमाम इख़्तियार बख़्शा है। “लेकिन जब वो यानी रूह-ए-हक़ आएगा तो तुमको तमाम सच्चाई की राह दिखाएगा। इसलिए कि वो अपनी तरफ़ से ना कहेगा लेकिन जो कुछ सुनेगा वही कहेगा और तुम्हें आइंदा की ख़बरें देगा।” (यूहन्ना 16:13)
“चुनान्चे तू ने उसे हर बशर पर इख़्तियार दिया है ताकि जिन्हें तू ने उसे बख़्शा है उन सबको वो हमेशा की ज़िंदगी दे।” (यूहन्ना 17:2)
“उस ने ये बात उस रूह की बाबत कही जिसे वो पाने को थे जो उस पर ईमान लाए क्योंकि रूह अब तक नाज़िल ना हुआ था इसलिए कि येसू अभी अपने जलाल को ना पहुंचा था।” (यूहन्ना 7:39)
“पस ख़ुदा के दहने हाथ से सर-बुलंद हो कर और बाप से वो रूह-उल-क़ुद्स हासिल कर के जिसका वाअदा किया गया था उस ने ये नाज़िल किया जो तुम देखते और सुनते हो।” (आमाल 2:33)
बेटे के ज़रीये बाप को जलाल मिला, और वो उस के ज़रीये और उस में, और उस की कलीसिया में ज़ाहिर हुआ। ख़ुदा की ज़ात की तमाम सिफ़ात मसीह में थीं।” ता कि हम जो पहले से मसीह की उम्मीद में थे उस के जलाल की सताइश का बाइस हों।” (इफ़िसियों 1:12) “अपनी ही जान का दुख उठा कर वो उसे देखेगा और सैर होगा। अपने ही इर्फ़ान से मेरा सादिक़ ख़ादिम बहुतों को रास्तबाज़ ठहराएगा क्योंकि वो उन की बदकिर्दारी ख़ुद उठा लेगा।” (यसअयाह 53:11)
मख़लिसी तस्लीस के अक़ानीम के दर्मियान इत्तिफ़ाक़ का नतीजा है। किताब-ए-मुक़द्दस तस्दीक़ करती है कि फ़िद्ये के ज़रीये मख़लिसी का काम ख़ुदा बेटे के तजस्सुम से पहले ख़ुदा के ज़हन में पूरा हो चुका था।
“चुनान्चे उस ने अपनी मर्ज़ी के भेद को अपने उस नेक इरादे के मुवाफ़िक़ हम पर ज़ाहिर किया। जिसे अपने आप में ठहरा लिया था। ताकि ज़मानों के पूरे होने का ऐसा इंतिज़ाम हो कि मसीह में सब चीज़ों का मजमूआ हो जाये। ख़्वाह वो आस्मान की हों ख़्वाह ज़मीन की। उसी में हम भी उस के इरादे के मुवाफ़िक़ जो अपनी मर्ज़ी की मस्लिहत से सब कुछ करता है पेश्तर से मुक़र्रर हो कर मीरास बने।” (इफ़िसियों 1:9-11)
“और सब पर ये बात रोशन करूँ कि जो भेद अज़ल से सब चीज़ों के पैदा करने वाले ख़ुदा में पोशीदा रहा उस का क्या इंतिज़ाम है ता कि अब कलीसिया के वसीले से ख़ुदा की तरह तरह की हिक्मत उन हुकूमत वालों और इख़्तियार वालों को जो आस्मानी मुक़ामों में हैं मालूम हो जाये। उस अज़ली इरादे के मुताबिक़ जो उस ने हमारे ख़ुदावंद मसीह येसू में किया था।” (इफ़िसियों 3:9-11)
फ़िद्या के ज़रीये ख़ुदा तआला के नजात के मन्सूबे के तीन मुज़म्मिरात हैं :-
- क़ुर्बानी का चुनाओ और मुक़र्रर किया जाना।
- इस के हुसूल के मुवाफ़िक़ ज़रीये की तैयारी।
- अपने हतमी मक़्सद के लिए उस ज़रीये का इस्तिमाल। इन सबकी तक्मील मख़लिसी के मंसूबे में हुई। ख़ुदा ने एक बातर्तीब कायनात बनाई। एक बे-ख़बर निगाह के लिए अज्राम-ए-फ़लक बग़ैर किसी तर्तीब के होते हैं, लेकिन एक माहिर फ़लकियात की निगाह में वो हैरत-अंगेज़ हम-आहंगी का इज़्हार करते हैं।
तमाम जलाल ख़ुदा तआला का है, वो अपनी तमाम ख़ल्क़ में नज़्म व ज़ब्त (क़ाबू) का ख़ुदावंद है। अगर वो फ़ित्रत में इस सबको मुम्किन कर सकता है तो रुहानी आलम में वो ज़्यादा आला और उत्तम काम कर सकता है। किताब-ए-मुक़द्दस बयान करती है कि निज़ाम ख़ुदावंदी फ़ज़्ल पर मबनी है। किताब-ए-मुक़द्दस बयान करती है कि ख़ुदा ने हर एक चीज़ को अपनी मर्ज़ी की मस्लिहत से पैदा किया, “उसी में हम भी उस के इरादे के मुवाफ़िक़ जो अपनी मर्ज़ी की मस्लिहत से सब कुछ करता है पेश्तर से मुक़र्रर हो कर मीरास बने।” (इफ़िसियों 1:11)
लाज़िम है कि हम किताब-ए-मुक़द्दस को पढ़ें और जो कुछ ख़ुदा तआला रुहानी मुआमलात के बारे में कहता है उसे देखें, और तजुर्बे से समझें कि फ़िद्या व मख़लिसी का क्या मतलब है। इस बारे में शक व शुब्हा नहीं कि नजात की ज़रूरत आलमगीर है। पौलुस रसूल ने लिखा, “इसलिए कि सबने गुनाह किया और ख़ुदा के जलाल से महरूम हैं।” (रोमीयों 3:23)
पौलुस रसूल से बहुत अर्से पहले दाऊद नबी ने कहा, “वो सब के सब गुमराह हो गए। वो बाहम नजिस हो गए। कोई नेको कार नहीं। एक भी नहीं।” (ज़बूर 14:3)
और यसअयाह नबी ने लिखा, “हम सब भेड़ों की मानिंद भटक गए। हम में से हर एक अपनी राह फिरा पर ख़ुदावंद ने हम सबकी बदकिर्दारी उस पर लादी।” (यसअयाह 53:6)
अगर नजात इन्सान की ज़िंदगी और उस की अबदीयत के लिए इस क़द्र संजीदा अम्र है तो हमें अपने आपसे ये सवाल पूछना चाहीए “नजात है क्या?” किस चीज़ से हम बचाए गए हैं? ये बिल्कुल वाज़ेह है कि मसीहिय्यत एक राह-ए-नजात है। मसीहिय्यत का बानी और राहनुमा ख़ुदावंद येसू मसीह है जो तमाम ज़मानों के ईमानदारों का नजातदिहंदा है।
इन्जील मुक़द्दस इस सवाल का जवाब देती है कि ये गुनाहों से नजात है। फ़रिश्ते ने मुक़द्दसा मर्यम की बाबत कहा “उस के बेटा होगा और तू उस का नाम येसू रखना क्योंकि वही अपने लोगों को उन के गुनाहों से नजात देगा।” (मत्ती 1:21)
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने येसू के बारे में ये बयान किया, “देखो ये ख़ुदा का बर्रा है जो दुनिया का गुनाह उठा ले जाता है।” (यूहन्ना 1:29)
मसीह येसू ने ख़ुद अपने बारे में कहा “क्योंकि इब्ने-आदम खोए हुओ को ढ़ूढ़ने और नजात देने आया है।” (लूक़ा 19:10) पौलुस रसूल ने लिखा “ये बात सच्च और हर तरह से क़ुबूल करने के लायक़ है कि मसीह येसू गुनेहगारों को नजात देने के लिए दुनिया में आया।” (1-तीमुथियुस 1:15)
किताब-ए-मुक़द्दस सिखाती है कि इन्सानी नजात फ़िद्या व मख़लिसी की बुनियाद पर क़ायम है। इसलिए, नजात मह्ज़ एक फ़ल्सफ़ा नहीं है, बल्कि वो सब जो ईमान लाते हैं उन के गुनाहों को दूर करने का ये हक़ीक़त में नागुज़ीर तौर पर वाहिद ज़रीया है। हर वो नज़रिया या अक़ीदा जो इस बुनियाद पर क़ायम नहीं वो ग़लत, बेकार और नाक़िस है।
सवाल 4
क्यों ईसा, आदम के गुनाह के ज़िम्मेदार थे, जैसे कि आप दाअवा करते हैं, और क्यों उन्हें बनी-आदम के गुनाहों के लिए कफ़्फ़ारा देने की ज़रूरत थी?
जवाब :
कोई भी फ़र्द उस वक़्त तक सच्चाई को समझ नहीं सकता जब तक कि वो हक़ीक़ी नाम इस्तिमाल ना करे। सो, मैं आपको याद कराना चाहूँगा कि मसीह का नाम येसू है ना कि ईसा। इसी लिए ख़ुदावंद के फ़रिश्ते जिब्राईल ने मुक़द्दसा कुँवारी मर्यम से कहा, “और देख तू हामिला होगी और तेरे बेटा होगा। उस का नाम येसू रखना। वो बुज़ुर्ग होगा और ख़ुदा तआला का बेटा कहलाएगा और ख़ुदावंद ख़ुदा उस के बाप दाऊद का तख़्त उसे देगा।” (लूक़ा 1:31-32)
किताब-ए-मुक़द्दस सिखाती है कि ख़ुदा तआला ने इन्सान को रास्तबाज़ी और पाकीज़गी में अपनी सूरत पर पैदा किया। उस ने इन्सान को अबदी ज़िंदगी का एक अहद बख़्शा जो इस बात के साथ मशरूत था कि इन्सान उस के अहकाम पर अमल पैरा हो। ग़ौर कीजिए कि पैदाईश की किताब में क्या लिखा है, “और ख़ुदा ने इन्सान को अपनी सूरत पर पैदा किया। ख़ुदा की सूरत पर उस को पैदा किया। नर व नारी उन को पैदा किया। और ख़ुदा ने उन को बरकत दी और कहा कि फलो और बढ़ो और ज़मीन को मामूर व मह्कूम करो और समुंद्र की मछलीयों और हवा के परिंदों और कुल जानवरों पर जो ज़मीन पर चलते हैं इख़्तियार रखो।” (पैदाईश 1:27-28) “और ख़ुदावंद ख़ुदा ने आदम को लेकर बाग-ए-अदन में रखा कि उस की बाग़बानी और निगहबानी करे। और ख़ुदावंद ख़ुदा ने आदम को हुक्म दिया और कहा कि तू बाग़ के हर दरख़्त का फल बे रोक-टोक खा सकता है। लेकिन नेक व बद की पहचान के दरख़्त का कभी ना खाना क्योंकि जिस रोज़ तू ने इस में से खाया तो मरा।” (पैदाईश 2:15-17)
आदम कुछ अर्से तो ख़ुदा के फ़िर्दोस में बेगुनाही की हालत में रहा, और उसे ख़ुदावंद ख़ुदा के साथ रुहानी रिफ़ाक़त हासिल थी। रुहानी रिफ़ाक़त ने आदम के दिल व दिमाग़ को हक़ीक़ी ख़ुशी से मामूर कर दिया।
आदम सादा दिल था और सादा दिली एक फ़र्द को ख़ुदा तआला के नज़्दीक लेकर आती है। अगरचे वो एक रास्तबाज़ शख़्स था, लेकिन ख़ुदावंद ख़ुदा ने इस बात की इजाज़त दी कि वो आज़माया जाये ता कि पता चले कि क्या आदम हुक्म ख़ुदावंदी की पैरवी करने से अपनी जगह पर क़ायम रहता है या नहीं। हुक्म ख़ुदावंदी ने जो चीज़ आदम के लिए अच्छी थी और जो मना थी उस के दर्मियान एक हद क़ायम कर दी। बाअल्फ़ाज़-ए-दीगर, ख़ुदा का मक़्सद अबू-अल-बशर आदम को ये सिखाना था कि सही और ग़लत के दर्मियान एक हद या एक बड़ी ख़लीज मौजूद है।
फिर, आज़माइश शैतान की तरफ़ से आई जिसने हव्वा से एक सादा सा सवाल पूछा, लेकिन ये पुरफ़रेब था। उस ने हव्वा से पूछा, “क्या वाक़ई ख़ुदा ने कहा है कि बाग़ के किसी दरख़्त का फल तुम ना खाना?” और ये ऐसे था जैसे वो कह रहा था, “क्या ये मुनासिब है कि ख़ुदा जो तुमसे बड़ी मुहब्बत रखता है और जिसने तुम्हें अपनी भलाई से घेर रखा है और जिसने तुम्हें ये सब ख़ुशी बख़्शी क्या वो तुम्हें उन सब दरख़्तों में से खाने से मना करेगा जो उस ने तुम्हें दिए हैं?”
हव्वा ने शैतान के मक्काराना अल्फ़ाज़ सुने और जवाब दिया, “बाग़ के दरख़्तों का फल तो हम खाते हैं। पर जो दरख़्त बाग़ के बीच में है उस के फल की बाबत ख़ुदा ने कहा है कि तुम ना तो उसे खाना और ना छूना वर्ना मर जाओगे।” (पैदाईश 3:2-3) ग़ौर कीजिए कि हव्वा ने कैसे हुक्म ख़ुदावंदी के अल्फ़ाज़ में इज़ाफ़ा किया “और ना छूना।” उस ने एक ऐसी बात का ज़िक्र किया ख़ुदा ने नहीं कही थी। जो कुछ शैतान ने पहले कहा था, अब वो उसे फैला कर बयान करता है ताकि हव्वा ख़ुदा की भलाई पर मज़ीद शक करे “बल्कि जानता है कि जिस दिन तुम इसे खाओगे तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी और तुम ख़ुदा की मानिंद नेक व बद के जानने वाले बन जाओगे।” (पैदाईश 3:5)
नतीजा ये निकला कि हव्वा ने धोके बाज़ दुश्मन की बात को सुना और गुनाह में गिर गई। “औरत ने जो देखा कि वो दरख़्त खाने के लिए अच्छा और आँखों को ख़ुशनुमा मालूम होता है और अक़्ल बख़्शने के लिए ख़ूब है तो उस के फल में से लिया और खाया और अपने शौहर को भी दिया और उस ने खाया। तब दोनों की आँखें खुल गईं और उन को मालूम हुआ कि वो नंगे हैं और उन्हों ने इंजीर के पत्तों को सी कर अपने लिए लुंगीयां बनाईं (पैदाईश 3:6-7)
नस्ल इन्सानी के अव्वलीन माँ बाप इस तरह से गुनाह में गिर गए। हव्वा गुनाह में इसलिए गिर गई कि उस ने ख़ुदा की वफ़ादारी और भलाई पर शक किया और उस के हुक्म की ना-फ़र्मानी की। ऐसा इसलिए हुआ कि हव्वा ख़ुदा तआला की मानिंद बनना चाहती थी। ना सिर्फ उस ने ख़ुद ख़ुशी से हुक्म ख़ुदावंदी को तोड़ा बल्कि अपने शौहर को भी इस में शामिल किया, और ख़ुदा की ना-फ़र्मानी करने के नतीजे में दोनों गिरावट का शिकार हुए और दोनों ने इन्सानी तारीख़ का सबसे बड़ा गुनाह किया। गुनाह का मतलब है “निशाना ख़ता हो जाना।” “जो कोई गुनाह करता है वो शराअ की मुख़ालिफ़त करता है और गुनाह शराअ की मुख़ालिफ़त ही है।” (1-यूहन्ना 3:4) “क्योंकि गुनाह की मज़दूरी मौत है मगर ख़ुदा की बख़्शिश हमारे ख़ुदावंद मसीह येसू में हमेशा की ज़िंदगी है।” (रोमीयों 6:23)
ख़ुदा तआला ने अपने कलाम के मुताबिक़ उन्हें सज़ा दी “लेकिन नेक व बद की पहचान के दरख़्त का कभी ना खाना क्योंकि जिस रोज़ तू ने इस में से खाया तो मरा।” (पैदाईश 2:17)
यहां मौत का मतलब क़ब्र में जिस्मानी मौत नहीं है, बल्कि रुहानी मौत है जो पाक ख़ुदा की रिफ़ाक़त से रूह की जुदाई है। इस का नतीजा इन्सानी रूह का अबदी दुख और तक्लीफ़ था। सज़ा दोनों को मिलनी थी। “और आदम से उस ने कहा चूँकि तू ने अपनी बीवी की बात मानी और उस दरख़्त का फल खाया जिसकी बाबत मैंने तुझे हुक्म दिया था कि उसे ना खाना इसलिए ज़मीन तेरे सबब से लानती हुई। मशक्क़त के साथ तू अपनी उम्र-भर उस की पैदावार खाएगा। और वो तेरे लिए कांटे और ऊंटकटारे उगाएगी और तू खेत की सब्ज़ी खाएगा। तू अपने मुँह के पसीने की रोटी खाएगा जब तक कि ज़मीन में तू फिर लौट ना जाये इसलिए कि तू उस से निकाला गया है क्योंकि तू ख़ाक है और ख़ाक में फिर लौट जाएगा।” (पैदाईश 3:17-19)
आख़िरकार, ख़ुदावंद तआला ने आदम और हव्वा को बाग-ए-अदन से बाहर निकाल दिया। फ़िर्दोस से बाहर उन्हों ने दुख उठाया और उन की औलाद भी थी। ना सिर्फ वो ख़ुद गुनेहगार बने बल्कि किताब-ए-मुक़द्दस बयान करती है कि “पस जिस तरह एक आदमी के सबब से गुनाह दुनिया में आया और गुनाह के सबब से मौत आई और यूं मौत सब आदमीयों में फैल गई इसलिए कि सबने गुनाह किया।” (रोमीयों 5:12)
आपने अबस कहा कि आदम का गुनाह हम तक नहीं आया। क्या जनाब आदम उस वक़्त तमाम नस्ल इन्सानी के तर्जुमान ना थे जब उन्हों ने ख़ुदा तआला से अहद बाँधा? वो सब वाअदे जो ख़ुदा ने आदम को दिए वो उन की नस्ल के साथ भी थे।”
दाऊद नबी ने इस बात की तस्दीक़ की जब ये कहा कि “देख मैंने बदी में सूरत पकड़ी और मैं गुनाह की हालत में माँ के पेट में पड़ा।” (ज़बूर 51:5)
एक मशहूर अंग्रेज़ मुसन्निफ़ ने कहा, “आदमी अब भी वही है, ख़ूनी, ज़ालिम और फिर जो कुछ उस ने किया उस पर रोता है और जिनको निशाना सितम बनाता है उन की मक़बरे तामीर करता है। ...इन्सान के लिए ये काफ़ी है कि वो अपनी रूह में अंदर गहरे तौर पर झांक कर देखे और जाने कि गुनाह की शरीअत उस में बसेरा करती है।”
दाऊद नबी ने कहा "अहमक़ ने अपने दिल में कहा कि कोई ख़ुदा नहीं। वो बिगड़ गए। उन्हों ने नफ़रत-अंगेज़ काम किए हैं। कोई नेकोकार नहीं।” (ज़बूर 14:1)
यसअयाह नबी ने इन्सान के बारे में बयान किया “उन के जाले से पोशाक नहीं बनेगी। वो अपनी दस्तकारी से मुलब्बस ना होंगे। उन के आमाल बदकिर्दारी के हैं और ज़ुल्म का काम उन के हाथों में है। उन के पाओ बदी की तरफ़ दौड़ते हैं और वो बेगुनाह का ख़ून बहाने के लिए जल्दी करते हैं। उन के ख़यालात बदकिर्दारी के हैं। तबाही और हलाकत उन की राहों में है। वो सलामती का रास्ता नहीं जानते और उन की रवीश में इन्साफ़ नहीं। वो अपने लिए टेढ़ी राह बनाते हैं। जो कोई उस में जाएगा सलामती को ना देखेगा।” (यसअयाह 59:6-8)
यर्मियाह, रोने वाले नबी ने इन्सानी दिल की तस्वीर यूं बयान की “दिल सब चीज़ों से ज़्यादा हीलेबाज़ (बहानेबाज़) और लाइलाज है। उस को कौन दर्याफ़्त कर सकता है? (यर्मियाह 17:9)
जुर्म की तारीख़ पर नज़र दौड़ाने से ये देखकर अफ़्सोस होता है कि इन्सान अपनी नेक फ़ित्रत खो बैठे हैं, और अब उस बिगड़ी फ़ित्रत के हामिल हैं जो पहले किए गए जुर्म से मुंतक़िल हुई कि जब क़ाइन ने अपने भाई हाबिल को क़त्ल कर दिया। उस ने उसे क्यों क़त्ल किया? क्या ऐसा इसलिए नहीं है कि हमारी फ़ित्रत बुरी है? क्यों एक क़ौम दूसरी क़ौम के ख़िलाफ़ जंग लड़ती है? ऐसा इसलिए है कि इन्सानी दिल शरीर (बुरा) है।
पौलुस रसूल ने कहा, “क्योंकि गुनाह की मज़दूरी मौत है मगर ख़ुदा की बख़्शिश हमारे ख़ुदावंद मसीह येसू में हमेशा की ज़िंदगी है।” (रोमीयों 6:23)
हिज़्क़ीएल नबी ने कहा, “जो जान गुनाह करती है वही मरेगी। बेटा बाप के गुनाह का बोझ ना उठाएगा और ना बाप बेटे के गुनाह का बोझ। सादिक़ की सदाक़त उसी के लिए है और शरीर (बुरे) की शरारत शरीर (बुरे) के लिए।” (हिज़्क़ीएल 18:20)
जब आदम और हव्वा गिरावट का शिकार हुए तो वो रुहानी तौर पर मर गए। वो रुहानी तौर पर ख़ुदा से जुदा हो गए। क्लोनियुस ने कहा, “... आदम और हव्वा गुनाह में गिरने की वजह से ख़ुदा से जुदा हो गए। वो मुहब्बत करने वाले ख़ालिक़ से अपनी रुहानी रिफ़ाक़त खो बैठे। यहां तक कि उन्हें उस की हुज़ूरी में शर्मिंदगी महसूस हुई।
“और उन्हों ने ख़ुदावंद ख़ुदा की आवाज़ जो ठंडे वक़्त बाग़ में फिरता था सुनी और आदम और उस की बीवी ने (अपने) आपको ख़ुदावंद ख़ुदा के हुज़ूर से बाग़ के दरख़्तों में छुपाया।” (पैदाईश 3:8)
वो ना सिर्फ शर्मिंदा हुए बल्कि ख़ौफ़ज़दा भी हुए। “बल्कि तुम्हारी बदकिर्दारी ने तुम्हारे और तुम्हारे ख़ुदा के दर्मियान जुदाई कर दी है और तुम्हारे गुनाहों ने उसे तुमसे रुपोश किया ऐसा कि वो नहीं सुनता।” (यसअयाह 59:2)
इस का नतीजा हमारे अव्वलीन वालदैन के लिए ख़ौफ़नाक अदालत की सूरत में निकला। “लेकिन नेक व बद की पहचान के दरख़्त का फल कभी ना खाना क्योंकि जिस रोज़ तू ने उस में से खाया तू मरा।” (पैदाईश 2:17)
क्या इन्सानियत अपनी उम्मीद खो बैठी? क्या इन्सान की उम्मीद उस वक़्त मर गई जब वो फ़िर्दोस से निकाला गया? नहीं उम्मीद ख़त्म नहीं हुई। हमारा ख़ुदा मुहब्बत है, और वो रास्त मुंसिफ़ है। अपनी अबदी मुहब्बत के ज़रीये ख़ुदा ने आदम को बुलाया “आदम, तू मुझसे क्यों दूर भाग गया है? तुझे तो मेरी साथ मिलकर ख़ुशी होती थी। चूँकि ख़ुदा ने इन्सान को अपनी सूरत पर तख़्लीक़ किया था इसलिए ख़ुदा अपनी बड़ी मुहब्बत में इन्सान को अपनी रिफ़ाक़त में बहाल करना चाहता था। वक़्त पर, ख़ुदा ने बनी-आदम के लिए नजात व मख़लिसी के बड़े मंसूबे को तैयार किया।”
ख़ुदा की मुहब्बत की मुदाख़िलत
ख़ुदा अपनी तमाम ख़ूबीयों और सिफ़ात में कामिल है। वो आदिल भी है और सच्चाई भी।
सज़ा के तौर पर इन्सान को अबदी मौत हमेशा के लिए सहनी थी। ख़ुदा सिर्फ़ आदिल और सादिक़ ही नहीं है, बल्कि मुहब्बत भी है। उस की मग़्फिरत की कोई हद नहीं। उस की मुहब्बत अजीब है जो हर रंग व नस्ल के इन्सान के लिए है। हमारा ख़ालिक़ अपनी शफ़क़त व रहमत में इंतिहाई ग़नी है। उस की बाबत यर्मियाह नबी ने लिखा, “ख़ुदावंद क़दीम से मुझ पर ज़ाहिर हुआ और कहा कि मैंने तुझसे अबदी मुहब्बत रखी इसी लिए मैंने अपनी शफ़क़त तुझ पर बढ़ाई।” (यर्मियाह 31:3)
ख़ुदा की अज़ीम मुहब्बत ने इन्सान के लिए नजात को तैयार किया ताकि वो मख़लिसी पाए और हमेशा जलाल में ज़िंदगी बसर करे। हिज़्क़ीएल नबी ने लिखा “तू उन से कह ख़ुदावंद ख़ुदा फ़रमाता है मुझे अपनी हयात की क़सम शरीर (बेदीन) के मरने में मुझे कुछ ख़ुशी नहीं बल्कि इस में है कि शरीर (बेदीन) अपनी राह से बाज़ आए और ज़िंदा रहे। ऐ बनी-इस्राईल बाज़ आओ तुम अपनी रवीश से बाज़ आओ तुम क्यों मरोगे? (हिज़्क़ीएल 33:11)
किताब-ए-मुक़द्दस सिखाती है कि ख़ुदा रास्त है और उस के इन्साफ़ का तक़ाज़ा है कि हर गुनेहगार सज़ा पाए। हमारे ख़ुदावंद येसू मसीह ने हमारा तमाम क़र्ज़ चुका दिया और मुहब्बत करने वाले ख़ुदा के हुज़ूर हमारी जगह अपने आप को क़ुर्बान कर दिया। सलीब पर मसीह की क़ुर्बानी की बदौलत, ख़ुदा तआला के इन्साफ़ का तक़ाज़ा पूरा हुआ ताकि वो गुनेहगारों को रास्तबाज़ी बख़्शे।
एक नामवर वकील ने एक मुजरिम के दिफ़ा में अपनी दलील को मुन्दरिजा ज़ैल बयान देकर यूं ख़त्म किया कि “मैंने एक किताब पढ़ी जिस में ख़ुदा ने अबदी मश्वरत में अदल और सच्चाई से पूछा कि क्या वो इन्सान को ख़ल्क़ करे? अदल ने जवाब दिया इन्सान की तख़्लीक़ ना की जाये क्योंकि वो तेरे बनाए हुए तमाम क़वानीन, नज़्म व ज़ब्त (क़ाबू) और उसूलों को पामाल करेगा। सच्चाई ने जवाब दिया कि इन्सान को ना बनाया जाये क्योंकि उस की हालत बिगड़ जाएगी और वो हमेशा झूट और बतालत की पैरवी करेगा। फिर मुहब्बत ने कहा मुझे इल्म है कि गरचे इन्सान बदनसीब और आफ़त का मारा हो जाएगा मगर मैं उस की देख-भाल करूँगा बल्कि तारीक वादी में भी उस का हमक़दम हूँगा जब तक कि मैं उसे रोज़ आख़िर तेरे पास ले ना आओ।
ख़ुदा ने इन्सान को कामिल तख़्लीक़ किया, लेकिन इन्सान ना-फ़र्मानी की बदौलत गुनाह में गिर गया। ख़ुदा की मुहब्बत इन्सान के साथ तहम्मुल से पेश आई, और उस ने हमारे नजातदिहंदा येसू मसीह के वसीले से गुनाह में गिरे हुए इन्सान के लिए कामिल नजात तैयार की।
आपके सवाल ने हमें मज्बूर कर दिया कि एक बार फिर ख़ुदा की अज़ीम नजात और इस नजात को पाने के हक़ीक़ी रास्ते पर ग़ौर करें। नस्ल इन्सानी की ज़िंदगी में हम अब इस नजात को कैसे देखते हैं? हक़ीक़ी मसीहिय्यत को समझने के लिए ज़रूरी है कि आप लाज़िमन गुनाह में गिरे हुए इन्सान के लिए ख़ुदा की मख़लिसी को समझें।
जब हम पैदाईश की किताब में ख़ुदा तआला के इस कलाम के बारे में पढ़ते हैं जो उस ने मर्द-ए-ख़ुदा मूसा नबी को दिया, और आदम और हव्वा के गुनाह में गिरने के बाद उन के नंगे पन को ढांपने के लिए जो कुछ ख़ुदावंद ख़ुदा ने किया इस बारे में सोचते हैं, तो हम ख़ुदा की मुहब्बत की हक़ीक़त तक पहुंच जाऐंगे।
किताब-ए-मुक़द्दस बयान करती है “और ख़ुदावंद ख़ुदा ने आदम और उस की बीवी के वास्ते चमड़े के कुरते बना कर उन को पहनाए।” (पैदाईश 3:21)
ये वाक़िया साबित करता है कि सबसे पहले बाग़-ए-अदन में जानवर ज़ब्ह हुए। इन्सान ने तूफ़ान के बाद जानवरों का गोश्त खाना शुरू किया। (पैदाईश 9:1-3) जो गुनाह में गिरने के तक़रीबन 500 साल बाद का अर्सा है। गुनाह में गिरने से पहले इन्सान नबातात ख़ौर (सब्जी खाने वाला) था। उस वक़्त तक जानवरों का ज़ब्ह किया जाना नहीं था जब तक कि ज़मीन पर गुनाह ना आया। जब आदम व हव्वा ने गुनाह किया तो उन्हें पहनाने के लिए ख़ुदा ने चमड़े के कुरते मुहय्या किए ताकि उन्हें सिखाए कि “बग़ैर ख़ून बहाए माफ़ी नहीं।” (इब्रानियों 9:22) इस वाक़िये से ख़ुदा ने उस अहद का इशारा दिया जो कफ़्फ़ारा देने वाली क़ुर्बानीयों पर मुश्तमिल था, जिन्हें बाद में पुराने अहदनामे के वक़्तों में पेश किया जाता रहा। तमाम क़ुर्बानियां ख़ुदा के बर्रे येसू मसीह को ज़ाहिर करती थीं, जिसने तमाम दुनिया के लिए अपना बदन क़ुर्बान कर दिया।
हम जानते हैं कि ख़ून की क़ुर्बानी जो हाबिल ने पेश की वो आने वाली मख़लिसी की मह्ज़ एक झलक थी। वो क़ुर्बानी ख़ुदा के मन्सूबे के साथ हम-आहंग थी। “और हाबिल भी अपनी भेड़ बकरीयों के कुछ पहलौठे बच्चों का और कुछ उन की चर्बी का हद्या लाया और ख़ुदावंद ने हाबिल को और उस के हद्ये को मंज़ूर किया। (पैदाईश 4:4)
वो मेंढा जो ख़ुदा तआला ने अब्रहाम को मुहय्या किया कि उस का बेटा इज़्हाक़ बच जाये, वो मह्ज़ उस अज़ीम फ़िदीए येसू मसीह की अलामत था जिसे ख़ुदा ने बनाए आलम से पेश्तर तैयार किया था। “इन बातों के बाद यूं हुआ कि ख़ुदा ने अब्रहाम को आज़माया और उसे कहा, ऐ अब्रहाम ! उस ने कहा मैं हाज़िर हूँ। तब उस ने कहा कि तू अपने बेटे इज़्हाक़ को जो तेरा इकलौता है और जिसे तू प्यार करता है साथ लेकर मोरय्या के मुल्क में जा और वहां उसे पहाड़ों में से एक पहाड़ पर जो मैं तुझे बताऊंगा सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर चढ़ा। तब अब्रहाम ने सुब्ह-सवेरे उठ कर अपने गधे पर जार जामा कसा और अपने साथ दो जवानों और अपने बेटे इज़्हाक़ को लिया और सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए लकड़ियाँ चिरीं और उठ कर उस जगह को जो ख़ुदा ने उसे बताई थी रवाना हुआ। तीसरे दिन अब्रहाम ने निगाह की और उस जगह को दूर से देखा। तब अब्रहाम ने अपने जवानों से कहा तुम यहीं गधे के पास ठहरो। मैं और ये लड़का दोनों ज़रा वहां तक जाते हैं और सज्दा कर के फिर तुम्हारे पास लौट आएँगे। और अब्रहाम ने सोख़्तनी क़ुर्बानी की लकड़ियाँ लेकर अपने बेटे इज़्हाक़ पर रखीं और आग और छुरी अपने हाथ में ली और दोनों इखट्ठे रवाना हुए। तब इज़्हाक़ ने अपने बाप अब्रहाम से कहा, ऐ बाप, उस ने जवाब दिया कि ऐ मेरे बेटे मैं हाज़िर हूँ। उस ने कहा देख आग और लकड़ियाँ तो हैं पर सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए बर्रा कहाँ है? अब्रहाम ने कहा ऐ मेरे बेटे ख़ुदा आप ही अपने वास्ते सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए बर्रा मुहय्या कर लेगा। सो वो दोनों आगे चलते गए। और उस जगह पहुंचे जो ख़ुदा ने बताई थी। वहां अब्रहाम ने क़ुर्बान गाह बनाई और उस पर लकड़ियाँ चुनीं और अपने बेटे इज़्हाक़ को बाँधा और उसे क़ुर्बान गाह पर लकड़ीयों के ऊपर रखा। और अब्रहाम ने हाथ बढ़ा कर छुरी ली कि अपने बेटे को ज़ब्ह करे। तब ख़ुदावंद के फ़रिश्ते ने उसे आस्मान से पुकारा कि ऐ अब्रहाम! ऐ अब्रहाम! उस ने कहा मैं हाज़िर हूँ। फिर उस ने कहा कि तू अपना हाथ लड़के पर ना चला और ना उस से कुछ कर क्योंकि मैं अब जान गया कि तू ख़ुदा से डरता है इसलिए कि तू ने अपने बेटे को भी जो तेरा इकलौता है मुझसे दरेग़ ना किया। और अब्रहाम ने निगाह की और अपने पीछे एक मेंढा देखा जिसके सींग झाड़ी में अटके थे। तब अब्रहाम ने जा कर उस मेंढे को पकड़ा और अपने बेटे के बदले सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर चढ़ाया।” (पैदाईश 22:1-13)
पौलुस रसूल ने लिखा, “हमारा भी फ़सह यानी मसीह क़ुर्बान हुआ।” (1-कुरिन्थियों 5:7)
तारीख़ का जायज़ा लेने से हमें पता चलता है कि ख़ुदा के लोग सैंकड़ों साल तक शरीअत के साये में रहे जो मूसा को दी गई थी। उस शरीअत में उन के लिए जानवरों की क़ुर्बानीयों के ज़रीये अपने गुनाहों के कफ़्फ़ारे का मौक़ा भी था। ख़ुदा की अदालत बहुत सख़्त थी और जिस किसी ने शरीअत की ना-फ़र्मानी की उसे उस ने बहुत सख़्त सज़ा दी।
वो क़ुर्बानियां जिनका मूसा नबी ने हुक्म दिया वो मुख़्तलिफ़ क़िस्म की थीं, और सब में कफ़्फ़ारे का ख़ून होता था। इब्रानियों की किताब में लिखा है, “और तक़रीबन सब चीज़ें शरीअत के मुताबिक़ ख़ून से पाक की जाती हैं और बग़ैर ख़ून बहाए माफ़ी नहीं होती।” (इब्रानियों 9:22)
ख़ुरूज की किताब इस अलामत के बारे में ये बयान करती है, “और मूसा ने आधा ख़ून लेकर बासनों में रखा और आधा क़ुर्बान गाह पर छिड़क दिया। फिर उस ने अहदनामा लिया और लोगों को पढ़ कर सुनाया। उन्हों ने कहा कि जो कुछ ख़ुदावंद ने फ़रमाया है उस सबको हम करेंगे और ताबे रहेंगे। तब मूसा ने उस ख़ून को लेकर लोगों पर छिड़का और कहा देखो ये उस अहद का ख़ून है जो ख़ुदावंद ने इन सब बातों के बारे में तुम्हारे साथ बाँधा है।” (ख़ुरूज 24:6-8)
जब हम किताब-ए-मुक़द्दस में क़ुर्बानीयों की तारीख़ के बारे में पढ़ते हैं तो ये वाज़ेह हो जाता है कि तमाम क़ुर्बानियां मसीह की और दुनिया के गुनाहों के लिए उस की क़ुर्बानी की अलामत थीं।
इब्रानियों की किताब इस बात की तस्दीक़ इन अल्फ़ाज़ से करती है, “और चूँकि हर सरदार काहिन नज़रें और क़ुर्बानियां गुज़राँने के वास्ते मुक़र्रर होता है इसलिए ज़रूर हुआ कि उस के पास भी गुज़राँने को कुछ हो।” (इब्रानियों 8:3) इब्रानियों में काहिनों के बारे में ये भी लिखा है “और हर एक काहिन तो खड़ा हो कर हर रोज़ इबादत करता है और एक ही तरह की क़ुर्बानियां बार-बार गुज़रानता है जो हरगिज़ गुनाहों को दूर नहीं कर सकतीं।” (इब्रानियों 10:11)
काहिनों को इन सब क़ुर्बानीयों को गुज़राँना उस वक़्त तक जारी रखना था जब तक मसीह जिसका वो इंतिज़ार कर रहे थे ज़ाहिर ना हो जाता।
मसीह की क़ुर्बानी दुबारा दुहराई नहीं जा सकती क्योंकि ये उस का अपना ख़ून था और उस के ज़रीये उस ने अबदी मख़लिसी को मुम्किन कर दिया।
इब्रानियों की किताब इस बात का सबूत इन अल्फ़ाज़ में बयान करती है, “और इसी सबब से वो नए अहद का दर्मियानी है ताकि उस मौत के वसीले से जो पहले अहद के वक़्त के क़ुसूरों की माफ़ी के लिए हुई है बुलाए हुए लोग वाअदा के मुताबिक़ अबदी मीरास को हासिल करें। क्योंकि जहां वसिय्यत है वहां वसिय्यत करने वाले की मौत भी साबित होना ज़रूर है। इसलिए कि वसिय्यत मौत के बाद ही जारी होती है और जब तक वसिय्यत करने वाला ज़िंदा रहता है उस का इजरा नहीं होता। इसी लिए पहला अहद भी बग़ैर ख़ून के नहीं बाँधा गया। चुनान्चे जब मूसा तमाम उम्मत को शरीअत का हर एक हुक्म सुना चुका तो बछड़ों और बकरों का ख़ून लेकर पानी और लाल ऊन और ज़ूफ़ा के साथ उस किताब और तमाम उम्मत पर छिड़क दिया। और कहा कि ये उस अहद का ख़ून है जिसका हुक्म ख़ुदा ने तुम्हारे लिए दिया है। और इसी तरह उस ने ख़ेमे और इबादत की तमाम चीज़ों पर ख़ून छिड़का। और तक़रीबन सब चीज़ें शरीअत के मुताबिक़ ख़ून से पाक की जाती हैं और बग़ैर ख़ून बहाए माफ़ी नहीं होती। पस ज़रूर था कि आस्मानी चीज़ों की नक़लें तो उन के वसीले से पाक की जाएं मगर ख़ुद आस्मानी चीज़ें उन से बेहतर क़ुर्बानीयों के वसीले से। क्योंकि मसीह उस हाथ के बनाए हुए पाक मकान में दाख़िल नहीं हुआ जो हक़ीक़ी पाक मकान का नमूना है बल्कि आस्मान ही में दाख़िल हुआ ताकि अब ख़ुदा के रूबरू हमारी ख़ातिर हाज़िर हो। ये नहीं कि वो अपने आपको बार-बार क़ुर्बान करे जिस तरह सरदार काहिन पाक मकान में हर साल दूसरे का ख़ून लेकर जाता है वर्ना बना-ए-आलम से लेकर उस को बार-बार दुख उठाना ज़रूर होता मगर अब ज़मानों के आख़िर में एक बार ज़ाहिर हुआ ताकि अपने आपको क़ुर्बान करने से गुनाह को मिटा दे।” (इब्रानियों 9:15-26)
ये हक़ीक़त नए अहदनामे में वाज़ेह है। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने जब येसू को देखा तो ऐलान किया “देखो ये ख़ुदा का बर्रा है जो दुनिया का गुनाह उठा ले जाता है।” (यूहन्ना 1:29) वो उस की तरफ़ इशारा कर रहा था जिसने हमारे गुनाहों की ख़ातिर ख़ुदा की क़ुर्बानी बन जाना था। यूहन्ना रसूल ने अपने ख़त में लिखा “और वही हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा है और ना सिर्फ हमारे ही गुनाहों का बल्कि तमाम दुनिया के गुनाहों का भी।” (1-यूहन्ना 2:2)
येसू एक शहीद की मौत नहीं मरा, बल्कि अपने आप सब के लिए क़ुर्बान कर दिया। येसू ने कहा “इब्ने-आदम इसलिए नहीं आया कि ख़िदमत ले बल्कि इसलिए कि ख़िदमत करे और अपनी जान बहुतेरों के बदले फ़िद्या में दे।” (मत्ती 20:28)
ख़ुदा ने अपने बेटे येसू मसीह के तजस्सुम से सदीयों पहले ये हक़ीक़त यसअयाह नबी पर मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) की “हालाँकि वो हमारी ख़ताओ के सबब से घायल किया गया और हमारी बदकिर्दारी के बाइस कुचला गया। हमारी ही सलामती के लिए उस पर सियासत हुई ताकि उस के मार खाने से हम शिफ़ा पाएं। हम सब भेड़ों की मानिंद भटक गए। हम में से हर एक अपनी राह फिरा पर ख़ुदावंद ने हम सबकी बदकिर्दारी उस पर लादी। वो सताया गया तो भी उस ने बर्दाश्त की और मुँह ना खोला। जिस तरह बर्रा जिसे ज़ब्ह करने को ले जाते हैं और जिस तरह भेड़ अपने बाल कतरने वालों के सामने बेज़बान है उसी तरह वो ख़ामोश रहा।” (यसअयाह 53:5-7)
पौलुस रसूल ने अक्सर मसीह के कफ़्फ़ारे का ज़िक्र किया है। चंद मिसालें दर्ज ज़ेल हवालों में हैं :-
“हमको उस में उस के ख़ून के वसीले से मख़लिसी यानी क़ुसूरों की माफ़ी उस के उस फ़ज़्ल की दौलत के मुवाफ़िक़ हासिल है।” (इफ़िसियों 1:7)
“क्योंकि जितने शरीअत के आमाल पर तकिया करते हैं वो सब लानत के मातहत हैं। चुनान्चे लिखा है कि “जो कोई उन सब बातों के करने पर क़ायम नहीं रहता जो शरीअत की किताब में लिखी हैं वो लानती है।.. मसीह जो हमारे लिए लानती बना उस ने हमें मोल लेकर शरीअत की लानत से छुड़ाया क्योंकि लिखा है कि जो कोई लकड़ी पर लटकाया गया वो लानती है ताकि मसीह येसू में अब्रहाम की बरकत ग़ैर क़ौमों तक भी पहुंचे और हम ईमान के वसीले से उस रूह को हासिल करें जिसका वाअदा हुआ है।” (ग़लतीयों 3:10, 13-14)
“जो गुनाह से वाक़िफ़ ना था उसी को उस ने हमारे वास्ते गुनाह ठहराया ताकि हम उस में हो कर ख़ुदा की रास्तबाज़ी हो जाएं।” (2-कुरिन्थियों 5:12)
ये आयात मसीह के बारे में बात करती हैं जिसने शरीअत की सज़ा को अपने ऊपर लेने और सलीब पर जान देने से हमें शरीअत की सज़ा से बचाया। ये कफ़्फ़ारा बख़्श क़ुर्बानी थी। पौलुस लिखता है “उसे ख़ुदा ने उस के ख़ून के बाइस एक ऐसा कफ़्फ़ारा ठहराया जो ईमान लाने से फ़ाइदेमंद होता कि जो गुनाह पेश्तर हो चुके थे और जिनसे ख़ुदा ने तहम्मुल कर के तरह दी थी उन के बारे में वो अपनी रास्तबाज़ी ज़ाहिर करे। बल्कि इसी वक़्त उस की रास्तबाज़ी ज़ाहिर होता कि वो ख़ुद भी आदिल रहे और जो येसू पर ईमान लाए उस को भी रास्तबाज़ ठहराने वाला हो।” (रोमीयों 3:25-26)
हमें निहायत एहतियात से इन आयात का जायज़ा लेना चाहीए जो हमें सिखाती हैं कि :-
(1) ख़ुदा तआला ने येसू मसीह को सब के लिए एक कफ़्फ़ारा बख़्श क़ुर्बानी ठहराया।
(2) हर एक इन्सान मसीह पर शख़्सी ईमान की बदौलत इस कफ़्फ़ारे को हासिल कर सकता है। ये उन सबको रास्तबाज़ ठहराता है जो येसू मसीह पर ईमान लाते हैं।
(3) ख़ुदा अपनी रास्तबाज़ी को कफ़्फ़ारा बख़्श क़ुर्बानी के ज़रीये ज़ाहिर करता है । ये गुनेहगारों की तरफ़ उस के रहम का इज़्हार है। ये मज़्कूर रास्तबाज़ी ख़ुदा तआला की एक मुन्फ़रिद (बेमिसाल) ख़ूबी है, और ये उस रास्तबाज़ी की बात नहीं है जो ख़ुदा ईमानदार को बख़्श देता है। हम इसे सियाक़ व सबाक़ से भी देखते हैं, “बल्कि इसी वक़्त उस की रास्तबाज़ी ज़ाहिर हो ताकि वो ख़ुद भी आदिल रहे और जो येसू पर ईमान लाए उस को भी रास्तबाज़ ठहराने वाला हो। ये बयान लफ़्ज़ के ऐसे मफ़्हूम को ख़ारिज करता है और अदल से रास्तबाज़ी में अमल करने की ख़ुदा तआला की रजामंदी की तस्दीक़ करता है, क्योंकि वो ख़ुदा है शरीअत का बख़्शने वाला और दुनिया का मुंसिफ़।
(4) इन्साफ़ के तक़ाज़ों को तोड़े बग़ैर ख़ुदावंद तआला के रहम को ज़ाहिर करने के लिए क़ुर्बानी दरकार है। अगर ख़ुदा तआला ने कफ़्फ़ारा बख़्श क़ुर्बानी के बग़ैर गुनेहगारों पर अपनी रहमत को ज़ाहिर किया होता, तो वो रास्त ना होता। इस वजह से पौलुस रसूल कहता है कि “ख़ुदा ने येसू को एक कफ़्फ़ारे के तौर पर बख़्श दिया।” ताकि वो ख़ुद भी आदिल रहे और जो येसू पर ईमान लाए उस को भी रास्तबाज़ ठहराने वाला हो। ख़ुदा के किरदार को बदल कर उसे रहमदिल बनाने की कोई ज़रूरत ना थी। ख़ुदावंद ख़ुदा कभी नहीं बदलता क्योंकि वो कल, आज बल्कि अबद तक यकसाँ है। ख़ुदा तआला की गवाही किताब-ए-मुक़द्दस की बुनियाद है जिससे हमें पता चलता है कि मसीह ने इन्सानी फ़ित्रत इख़्तियार कर के अपने आप को बाप के हुज़ूर नज़र कर दिया और गुनेहगारों की जगह ख़ुदा की शरीअत की लानत को बर्दाश्त किया। और इस से हम आगाही पाते हैं कि ख़ुदा तआला ने उस की क़ुर्बानी को क़ुबूल किया, और उसे अपने अदल के तक़ाज़े के मुताबिक़ समझा। इसलिए वो सब जो येसू मसीह पर ईमान रखते हैं, उस की जलाली शान व शौकत के ख़िलाफ़ नहीं जाते और उस की अख़्लाक़ी शरीअत किसी भी तरह से नहीं तोड़ते, वो उन सबको माफ़ कर सकता है।
क़ुर्बानी की अक़्साम (क़िस्में)
मसीह की कफ़्फ़ारा बख़्श क़ुर्बानी पर ज्ञान ध्यान करना हमें पुराने अहदनामे की क़ुर्बानीयों के जायज़े की तरफ़ ले जाता है जो मूसा नबी की मार्फ़त मिलने वाली इलाही शरीअत के मुताबिक़ थीं।
(1) ख़ता की क़ुर्बानी (अहबार 9 बाब) लोगों के लिए कफ़्फ़ारा ताकि उन्हें माफ़ी हासिल हो और फ़ज़्ल पाएं।
(2) जुर्म की क़ुर्बानी (अहबार 5 बाब) इस का ताल्लुक़ उन गुनाहों से है जिनकी तलाफ़ी की जा सकती हो।
(3) सोख़्तनी क़ुर्बानी (अहबार 1 बाब) एक बेऐब क़ुर्बानी है जो उस चीज़ को ज़ाहिर करती है जो मुकम्मल तौर पर ख़ुदा के लिए वक़्फ़ है।
(4) सलामती का ज़बीहा (अहबार 7:11-16) ये ख़ुदावंद ख़ुदा के हुज़ूर शुक्रगुज़ारी का इज़्हार है।
(5) फ़सह की क़ुर्बानी (ख़ुरूज 12 बाब) ख़ुदा तआला ने जनाब मूसा, हारून और बनी-इस्राईल को दरवाज़ों के बाज़ूओ और चौखट पर ख़ून छिड़कने का हुक्म दिया।
(6) सुर्ख़-रंग की बछिया की क़ुर्बानी (गिनती 19 बाब) नापाकी को दूर करने के लिए राख इस्तिमाल की जाती थी।
(7) कौड़ी की क़ुर्बानी (अहबार 14 बाब) इस का ताल्लुक़ कौड़ी के पाक किए जाने के साथ था।
(8) बछिया (बछड़े) की क़ुर्बानी (इस्तिस्ना 21:3) इस का ताल्लुक़ बेगुनाह के ख़ून की जवाबदेही को अपने ऊपर से दूर करने से था।
(9) काहिन की मख्सुसियत की क़ुर्बानी (अहबार 7 बाब) ये उस वक़्त पेश की जाती थी जब बनी हारून में से किसी को काहिन के तौर पर मख़्सूस किया जाता था।
ग़ौर कीजिए कि इन सब क़ुर्बानीयों का बेऐब होना ज़रूरी था ताकि लोगों की निगाह में ख़ुदा तआला की क़द्र कम ना हो (1-सलातीन 8:13-14) बिलख़ुसूस, सबसे बढ़कर बेऐब क़ुर्बानी ख़ुदा के बर्रे येसू की अलामत थी जिसने दुनिया के गुनाहों के लिए सलीब पर एक कफ़्फ़ारा दिया और वो “बेऐब और बेदाग़ है।” (1-पतरस 1:19-20)
क़ुर्बानी के ख़ून का छिड़काओ
पुराने अहदनामे में ख़ून का छिड़काओ एक आला ज़ाबता था, क्योंकि ये कफ़्फ़ारे का निशान था। ख़ून का ये छिड़काओ काहिन की ज़िम्मेदारी होती थी जो ख़ुदा तआला और लोगों के माबैन एक दर्मियानी मुक़र्रर होता था। ख़ेमा इज्तिमा में लाने के बाद सात मर्तबा ख़ून का छिड़काओ। (अहबार 8:14) कफ़्फ़ारे के कामिल होने का एक निशान था, क्योंकि सात का अदद कामिलियत की तरफ़ इशारा करता है। इसलिए नया अहदनामा ईमानदारों के बारे में ये बयान करता है कि वो येसू मसीह के ख़ून के बहाए जाने के वसीले से गुनाह से पाक हुए हैं। (इब्रानियों 9, 1-पतरस 1)
मसीह की हक़ीक़ी क़ुर्बानी जिसकी वो अलामतें थे
पुराने अहदनामे के मर्दान-ए-ख़ुदा ने बशरी कमज़ोरी और गुनाह से बचाए जाने में मूसवी शरीअत की कमज़ोरी को देखा। वो क़ुर्बानीयों और सोख़्तनी क़ुर्बानीयों के इलावा किसी और राह के मुतमन्नी थे, उन्ही क़ुर्बानीयों के बारे में रसूल ने कहा कि ये “इबादत करने वाले को दिल के एतबार से कामिल नहीं कर सकतीं।” (इब्रानियों 9:9) और ख़ुदा को ख़ुश नहीं कर सकतीं। हमें ज़बूर 15:16-17 में लिखा मिलता है, “क्योंकि क़ुर्बानी में तेरी ख़ुशनुदी नहीं वर्ना मैं देता। सोख़्तनी क़ुर्बानी से तुझे कुछ ख़ुशी नहीं। शिकस्ता रूह ख़ुदा की क़ुर्बानी है। ऐ ख़ुदा तू शिकस्ता और ख़स्ता दिल को हक़ीर ना जानेगा।”
यसअयाह नबी ने कहा, “ख़ुदावंद फ़रमाता है तुम्हारे ज़बीहों की कस्रत से मुझे क्या काम? मैं मेंढों की सोख़्तनी क़ुर्बानी से और फ़र्बा बछड़ों की चर्बी से बेज़ार हूँ और बैलों और भेड़ों और बकरों के ख़ून में मेरी ख़ुशनुदी नहीं। जब तुम मेरे हुज़ूर आकर मेरे दीदार के तालिब होते हो तो कौन तुमसे ये चाहता है कि मेरी बारगाहों को रोंदो?” (यसअयाह 1:11-12)
ताहम, इस ग़लत रवैय्ये के दौरान, ख़ुदा के बेटे की मुहब्बत तालेअ हुई और उस ने अपने ईमानदार पैरोकारों को बताया कि उस ने नजात के लिए वक़्त की भर पूरी पर एक हतमी क़ुर्बानी इलाही दर्मियानी के वसीले तैयार की है, “क्योंकि उस ने एक ही क़ुर्बानी चढ़ाने से उन को हमेशा के लिए कामिल कर दिया है जो पाक किए जाते हैं।” (इब्रानियों 10:14)
अय्यूब नबी जिसने गहरे तौर पर दुख उठाया, अपने और ख़ुदा तआला के माबैन एक दर्मियानी को ज़रूरी पाया। (अय्यूब 9:33) क्योंकि वो कहता है, “हमारे दर्मियान कोई सालस नहीं जो हम दोनों पर अपना हाथ रखे।”
यसअयाह नबी ने मसीह को अपनी नबूव्वती आँख से देखते हुए उस के नजात बख़्श काम की बात की है।
“वो ज़ुल्म कर के और फ़त्वा लगा कर उसे ले गए पर उस के ज़माने के लोगों में से किस ने ख़याल किया कि वो ज़िंदों की ज़मीन से काट डाला गया? मेरे लोगों की ख़ताओ के सबब से उस पर मार पड़ी। उस की क़ब्र भी शरीरों के दर्मियान ठहराई गई और वो अपनी मौत में दौलतमंदों के साथ हुआ हालाँकि उस ने किसी तरह का ज़ुल्म ना किया और उस के मुँह में हरगिज़ छल ना था। लेकिन ख़ुदावंद को पसंद आया कि उसे कुचले। उस ने उसे ग़मगीं किया। जब उस की जान गुनाह की क़ुर्बानी के लिए गुज़रानी जाएगी तो वो अपनी नस्ल को देखेगा। उस की उम्र दराज़ होगी। अपनी ही जान का दुख उठा कर वो उसे देखेगा और सैर होगा। अपने ही इर्फ़ान से मेरा सादिक़ ख़ादिम बहुतों को रास्तबाज़ ठहराएगा क्योंकि वो उन की बदकिर्दारी ख़ुद उठा लेगा। इसलिए मैं उसे बुज़ुर्गों के साथ हिस्सा दूंगा और वो लूट का माल ज़ोरावरों के साथ बांट लेगा क्योंकि उस ने अपनी जान मौत के लिए उंडेल दी और वो ख़ताकारों के साथ शुमार किया गया तो भी उस ने बहुतों के गुनाह उठा लिए और ख़ताकारों की शफ़ाअत की।” (यसअयाह 53:8-12)
तरसुस का साऊल शरीअत की रास्तबाज़ी तक पहुंचने में नाकाम होने के बाद उस दर्मियानी की तलाश में था जिसका नबियों ने ज़िक्र किया था, जब तक कि मसीह उसे दमिश्क़ की राह पर ना मिल गया। पौलुस ने उस में उस दर्मियानी को पहचाना जो मुजस्सम हुआ ताकि सलीब पर अपनी कफ़्फ़ारा बख़्श मौत के ज़रीये गुनेहगारों को नजात बख़्शे। इसलिए पौलुस ने ये अल्फ़ाज़ लिखे, “लेकिन जब वक़्त पूरा हो गया तो ख़ुदा ने अपने बेटे को भेजा जो औरत से पैदा हुआ और शरीअत के मातहत पैदा हुआ। ताकि शरीअत के मातहतों को मोल लेकर छुड़ा ले और हमको ले पालक होने का दर्जा मिले।” (ग़लतीयों 4:4-5)
दरहक़ीक़त, कलाम का तजस्सुम सहाइफ़ मुक़द्दसा में इंतिहाई एहमीय्यत की हामिल हक़ीक़त है क्योंकि ये इलाही मख़लिसी की असास है। एक नजातदिहंदा के तौर पर अपने काम को मुकम्मल करने से पहले ये उम्र लाज़िम था। इसी लिए तजस्सुम वो मौज़ू है जो ख़ुदा की इल्हामी किताबों के ज़रीये एक मुसलसल मुकाशफ़े की सूरत में दिया गया।
ये मुकाशफ़ा जात नजातदिहंदा की तरफ़ इशारा देने से शुरू हुए जिसने उस वक़्त आना था “जब वक़्त पूरा हो गया ता कि इन्सानियत को शरीअत की लानत से आज़ाद करे और हर एक उम्मत के लिए एक बड़ी बरकत हो। फिर ये ऐलानात उस सबको और ज़्यादा वाज़ेह करने के लिए शुरू हुए जिसका उस से कोई ताल्लुक़ था।” इन का आग़ाज़ “औरत की नस्ल” के ज़िक्र से शुरू हुआ, फिर अब्रहाम की नस्ल का ज़िक्र हुआ, फिर यहूदाह के क़बीले का ज़िक्र हुआ, फिर दाऊद के घराने का ज़िक्र हुआ, फिर कुँवारी से उस की पैदाईश का ज़िक्र हुआ। इन ऐलानात ने बयान किया कि वो इलाही सिफ़ात का हामिल होगा और अपने लिए चुने हुए लोगों को मख़लिसी बख़्शेगा जिन पर वो मेहरबान हुक्मरान होगा। (यसअयाह 9:6)
हैरानकुन बात ये है कि इन बयानात में उस की ज़ात से मुताल्लिक़ अनोखे और सही हालात व वाक़ियात का ज़िक्र किया गया है जो किसी तरह से भी इन्सानी इख़्तिरा पसंदी नहीं हो सकते इन में से कुछ का ज़िक्र ज़ेल में किया गया है।
• उस की पैदाईश के बिल्कुल सही मुक़ाम का ज़िक्र है :-
“लेकिन ऐ बैत-लहम अफराताह अगरचे तू यहूदाह के हज़ारों में शामिल होने के लिए छोटा है तो भी तुझमें से एक शख़्स निकलेगा और मेरे हुज़ूर इस्राईल का हाकिम होगा और उस का मुसद्दिर ज़माना साबिक़ हाँ क़दीम-उल-अय्याम से है। (मीकाह 5:2)
• वो ग़रीब और हलीम होने के साथ साथ जलाली भी होगा :-
“और यस्सी के तने से एक कोंपल निकलेगी और उस की जड़ों से एक बार आवर शाख़ पैदा होगी। और ख़ुदावंद की रूह उस पर ठहरेगी। हिक्मत और खुर्द की रूह मस्लिहत और क़ुद्रत की रूह मार्फ़त और ख़ुदावंद के ख़ौफ़ की रूह।” (यसअयाह 11:1-2)
• वो किसी ख़ारिजी जलाल के बग़ैर एक बादशाह होगा :-
“ऐ बिंत-ए-सिय्योन तू निहायत शादमान हो। ऐ दुख्तर-ए-यरूशलेम ख़ूब ललकार क्योंकि तेरा बादशाह तेरे पास आता है। वो सादिक़ है और नजात उस के हाथ में है। वो हलीम है और गधे पर बल्कि जवान गधे पर सवार है।” (ज़करीयाह 9:9)
• वो एक काहिन होगा :-
“ख़ुदावंद ने क़सम खाई है और फिरेगा नहीं कि तो मलिक-ए-सिदक़ के तौर पर अबद तक काहिन है।” (ज़बूर 110:4)
इस का मतलब ये है कि मसीह का कफ़्फ़ारा बख़्श काम एक काहिन का काम है जिससे चंद ख़ास बातें अख़ज़ होती हैं :-
(1) एक काहिन होना उसे गुनेहगारों का नुमाइंदा बनाता है जिसे ख़ुदा ने उन के लिए मुक़र्रर किया ताकि जो कुछ वो अपने लिए नहीं कर सकते वो उन के लिए कर सके। चूँकि वो अपने गुनाहों और नापाकी की वजह से ख़ुदा तआला तक नहीं पहुंच सकते, इसलिए इलाही मुहब्बत ने इलाही इख़्तियार की हामिल एक हस्ती को मुक़र्रर किया जो ख़ुदा के सामने उन की ख़ुदा के साथ मुसालहत कराने के लिए पेश हो।
(2) गुनाह के लिए कफ़्फ़ारे के बग़ैर सुलह सफ़ाई नहीं हो सकती। “और तक़रीबन सब चीज़ें शरीअत के मुताबिक़ ख़ून से पाक की जाती हैं और बग़ैर ख़ून बहाए माफ़ी नहीं होती।” (इब्रानियों 9:22)
(3) ये कफ़्फ़ारा गुनेहगार की जगह लेकर एक क़ुर्बानी पेश करने से पूरा होगा ता कि उसके लिए गुनाह की सज़ा मौत को बर्दाश्त कर सके।
(4) पुराने अहदनामे के काहिन बिल्कुल इसी तरीक़े से जिसे ख़ुदा ने मुक़र्रर किया था ख़िदमत करते थे जिससे गुनेहगार अपने जुर्म से माफ़ी पाता था। ताहम, जैसा कि हमने देखा है, गुनाह ख़त्म नहीं हो गया। अगर वो इसी गुनाह का इर्तिकाब दुबारा करता तो उसे फिर एक और क़ुर्बानी नज़र करनी पड़ती थी।
(5) ग़र्ज़, हारून की कहानत एक हक़ीक़ी काहिन और शुरू से वाअदा की गई हक़ीक़ी क़ुर्बानी की अलामत थी।
(6) मसीह हक़ीक़ी काहिन है और उस में वो तमाम सिफ़ात मौजूद हैं जो कहानत के लिए ज़रूरी हैं। और चूँकि मसीह ने एक इन्सानी जिस्म इख़्तियार क्या, इसलिए वो नस्ल-ए-इन्सानी का एक नुमाइंदा बन गया। उस ने एक क़ुर्बानी गुज़रानी और अपने लोगों के साथ हम्दर्दी करने के क़ाबिल था और उस ने दर-हक़ीक़त काहिन के काम को मुकम्मल तौर पर पूरा किया।
(7) वो क़ुर्बानी जो हमारे अज़ीम सरदार काहिन मसीह ने गुज़रानी, वो जानवरों का ख़ून नहीं था बल्कि उस का अपना ख़ून था।
(8) ये वो वाहिद क़ुर्बानी थी जिसने उन को हमेशा के लिए कामिल कर दिया जो पाक किए जाते हैं। (इब्रानियों 10:14)
(9) मसीह की क़ुर्बानी ने बाक़ी तमाम क़ुर्बानीयों को ख़त्म कर दिया, क्योंकि अब उन की ज़रूरत नहीं है।
मज़्कूर बाला निकात से ये बड़ा वाज़ेह है कि मसीह का कफ़्फ़ारा सिर्फ एक दावा नहीं है जैसा कि आपका कहना है, बल्कि एक हक़ीक़त है जो इलाही मश्वरत और इन्सान की तरफ़ उस की मुहब्बत पर मबनी है। हो सकता है कि इस मुफस्सिल वज़ाहत के बाद आप ये सवाल करें “किस चीज़ ने मसीह को तजस्सुम और फ़िद्या व कफ़्फ़ारे के काम के लिए तहरीक दी?”
जवाब ये है तस्लीस के दूसरे उक़नूम का तजस्सुम और इन्सानियत को मख़लिसी देने के लिए उस की मौत कोई इज़तिरारी अमल नहीं था, बल्कि ये उस का अपना इंतिख़ाब था। उस ने ख़ुद फ़रमाया “बाप मुझसे इसलिए मुहब्बत रखता है कि मैं अपनी जान देता हूँ ताकि उसे फिर ले लूं। कोई उसे मुझसे छीनता नहीं बल्कि मैं उसे आप ही देता हूँ। मुझे उस के देने का भी इख़्तियार है और उसे फिर लेने का भी इख़्तियार है। ये हुक्म मेरे बाप से मुझे मिला।” (यूहन्ना 10:17-18)
इस का मतलब ये हुआ कि मसीह को मज्बूर नहीं किया गया था कि वो अपने आप को क़ुर्बान करे, बल्कि उस ने जहान के गुनाह उठा ले जाने के लिए अपने आप को रजामंदी से नज्र किया। बाअल्फ़ाज़-ए-दीगर, ख़ुदा तआला ने इन्सान के लिए अपनी हैरत-अंगेज़ मुहब्बत की बदौलत मख़लिसी के लिए अपने इकलौते बेटे को बख़्श दिया जो दुनिया में आया “पस जिस सूरत में कि लड़के ख़ून और गोश्त में शरीक हैं तो वो ख़ुद भी उन की तरह उन में शरीक हुआ ताकि मौत के वसीले से उस को जिसे मौत पर क़ुद्रत हासिल थी यानी इब्लीस को तबाह कर दे। और जो उम्र-भर मौत के डर से गु़लामी में गिरफ़्तार रहे उन्हें छुड़ा ले।” (इब्रानियों 2:14-15)
किताब-ए-मुक़द्दस हमें बताती है कि मसीह ने ब रज़ा व रग़बत जिस्म इख़्तियार किया ताकि एक दर्मियानी हो और इन्सान की ख़ुदा तआला से सुलह करवाए। बाइबल मुक़द्दस में लिखा है “ख़ुदा ने मसीह में हो कर अपने साथ दुनिया का मेल मिलाप कर लिया और उन की तक़सीरों को उन के ज़िम्मे ना लगाया और उस ने मेल मिलाप का पैग़ाम हमें सौंप दिया है।” (2-कुरिन्थियों 5:19)
ये अज़ीज़ किताब सरीह तौर पर हमें बताती है कि दर्मियानी जिसने ख़ुदा की इन्सान से सुलह करवानी थी उस में मुन्दरिजा ज़ैल सिफ़ात होनी चाहिऐं :-
(1) एक इन्सान हो। “और कलाम मुजस्सम हुआ और फ़ज़्ल और सच्चाई से मामूर हो कर हमारे दर्मियान रहा।” (यूहन्ना 1:14) कलाम ने फ़रिश्ते की फ़ित्रत इख़्तियार करने के बजाए इन्सानी फ़ित्रत इसलिए इख़्तियार की कि हमें नजात बख़्शे। इसके लिए ज़रूरी था कि उस शरीअत के ताबे पैदा होता जो हमने तोड़ी थी, ता कि तमाम रास्तबाज़ी पूरी करे और हमारी इन्सानी ज़िंदगी में शरीक हो और हमारी कमज़ोरीयों का तजुर्बा करे, और फिर हमारे गुनाहों के लिए कफ़्फ़ारे के तौर पर दुख उठाए और मर जाये।
(2) गुनाह के बग़ैर हो। क्योंकि शरीअत के मुताबिक़ कफ़्फ़ारा व फ़िद्या के तौर पर जो क़ुर्बानी नज़्र की जाती थी उसके लिए ज़रूरी था कि वो बेऐब हो। ग़र्ज़, दर्मियानी जिसने दुनिया की मख़लिसी के लिए अपना आप नज़्र करना था, ज़रूरी था कि वो ख़ुद बेगुनाह हो। क्योंकि गुनाह से नजात देने वाले के लिए ये नामुम्किन है कि वो एक गुनेहगार हो, क्योंकि गुनेहगार ख़ुदा तक नहीं पहुंच सकता, और ना ये गुनाहों की क़ुर्बानी के लायक़ है और ना ही अपने लोगों के लिए पाकीज़गी और अबदी ज़िंदगी का ज़रीया हो सकता है। चुनान्चे हमारे सरदार काहिन फ़िद्या अज़ीम के लिए ज़रूरी था कि वो “पाक और बेरिया और बेदाग” और “गुनाहों से जुदा हो।” (इब्रानियों 7:26) हमें मालूम है कि मसीह बग़ैर ख़ता के था क्योंकि उस की गवाही रसूली अल्फ़ाज़ में यूं दी गई है, “... क्योंकि मसीह भी तुम्हारे वास्ते दुख उठा कर तुम्हें एक नमूना दे गया है ताकि उस के नक़्शे क़दम पर चलो। ना उस ने गुनाह किया और ना उस के मुँह से कोई मक्र की बात निकली।” (1-पतरस 2:21-22)
(3) ख़ुदा हो। एक आदमी का ख़ून गुनाह दूर नहीं कर सकता। ख़ुदा होते हुए मसीह ने अपनी कामिल तरीन क़ुर्बानी के ज़रीये मुक़द्दसीन को हमेशा के लिए कामिल कर दिया। (इब्रानियों 9:26) सिर्फ ख़ुदा ही शैतान की क़ुव्वत पर फ़त्ह पा सकता है और उन सबको बचाता है जो इब्लीस के क़ब्ज़े में थे। वो शख़्सियत जो इस मख़लिसी के काम को कर सकती उसके लिए एक अज़ीम सरदार काहिन और सब के मुंसिफ़ होने के लिए ज़रूरी था कि वो हर शैय पर क़ादिर होती, और उस की हिक्मत व मार्फ़त ग़ैर महदूद होती। तमाम मुक़द्दसीन के लिए रुहानी ज़िंदगी का मुसद्दिर होने के लिए लाज़िम था कि वो ऐसी शख़्सियत हो जिसके बारे में किताब-ए-मुक़द्दस कहती है कि “उलूहियत की सारी मामूरी उसी में मुजस्सम हो कर सुकूनत करती है।” (कुलस्सियों 2:9)
ये सब सिफ़ात जिनके बारे में किताब-ए-मुक़द्दस बयान करती है कि ये ख़ुदा और इन्सान के माबैन दर्मियानी के लिए ज़रूरी थीं मसीह में पाई जाती थीं। मसीह का दर्मियानी होना इन्सान की नजात के लिए जो कुछ उस ने किया और जो कुछ अब वो कर रहा है उस के मुताबिक़ है, और ये एक इलाही शख़्सी अमल बन जाता है। इसी तरह, मसीह का दर्मियानी होने का सारा काम और दुख एक इलाही शख़्सियत से ताल्लुक़ रखते हैं। वो जो मस्लूब हुआ जलाल का ख़ुदावंद था। ये सच्चाई मुन्दरिजा ज़ैल निकात से अयाँ है :-
(1) किताब-ए-मुक़द्दस उस के काम, इख़्तियार, उस की ताअलीमात की सदाक़त, हिक्मत, और उस के दुखों की एहमीय्यत को उस के वजूद से मन्सूब करती है कि ख़ुदा “जिस्म में ज़ाहिर हुआ।” (1-तीमुथियुस 3:16)
(2) अगर हमारा दर्मियानी मह्ज़ एक इन्सानी वजूद होता, तो वो गुनाह में गिरे हुए इन्सानों को बचाने के क़ाबिल ना होता, और नतीजा ये होता कि इन्जील जलाल या क़ुद्रत या किफायत से ख़ाली होती।
(3) गुनाह में गिरे हुए इन्सानों के लिए सिर्फ वो शख़्सियत फ़िद्या व मख़लिसी दे सकती थी जो ख़ुदा और इन्सान दोनों हो। मसीह के नबूव्वती काम के लिए ज़रूरी है कि वो हिक्मत और इल्म के तमाम ख़ज़ानों का मालिक हो।
उस के काहिन होने के लिए लाज़िम अम्र ये है कि उसे ख़ुदा के बेटे होने का शर्फ हासिल हो ताकि उस का काम मोअस्सर हो। सिर्फ एक इलाही शख़्सियत उस इख़्तियार को इस्तिमाल कर सकती है जो मसीह को दर्मियानी के तौर पर आस्मान और ज़मीन पर दिया गया। सिर्फ इलाही शख़्सियत ही हमें गुनाह की गु़लामी और उस के तबाहकुन असरात से बचा सकती है या मुर्दों को ज़िंदा कर सकती है या अबदी ज़िंदगी दे सकती है। सच्चाई ये है कि हमें एक नजातदिहंदा की ज़रूरत है “जो पाक और बेरिया और बेदाग हो और गुनेहगारों से जुदा और आसमानों से बुलंद किया गया हो।” (इब्रानियों 7:26)
सवाल 5
मसीह के उलूहियत के बारे में अम्बिया की गवाही।
क्या वो अम्बिया जो मसीह की आमद से पहले थे उस की उलूहियत पर ईमान रखते थे? (अगर जवाब हाँ में है तो इसकेलिए सबूत दीजिए।)
जवाब :
जी हाँ, मसीह की आमद से पहले के अम्बिया उस की उलूहियत पर ईमान रखते थे। ये उन की गवाहियों से साबित शूदा है जो कि इल्हामी सहीफ़ों में दर्ज हैं :-
(अ) दाऊद
(1) दाऊद नबी ने दूसरे ज़बूर में ज़मीन के बादशाहों और हाकिमों को मुख़ातिब किया है “पस अब ऐ बादशाहो दानिशमंद बनो। ऐ ज़मीन के अदालत करने वालो तर्बीयत पाओ डरते हुए ख़ुदावंद की इबादत करो। काँपते हुए ख़ुशी मनाओ बेटे को चूमो। ऐसा ना हो कि वो क़हर में आए और तुम रास्ते में हलाक हो जाओ क्योंकि उस का ग़ज़ब जल्द भड़कने को है। मुबारक हैं वो सब जिनका तवक्कुल उस पर है।” (ज़बूर 2:10-12)
दाऊद नबी हमें ना सिर्फ उस की इबादत करने का हुक्म देता है बल्कि उन्हें मुबारक कहता है जो ये जानते हुए उस पर तवक्कुल करते हैं कि किताब-ए-मुक़द्दस वाज़ेह तौर पर उन सबको लानती क़रार देती है जो इन्सान पर तवक्कुल करते हैं।
(2) ज़बूर 110:1 में लिखा है, “यहोवा ने मेरे ख़ुदावंद से कहा तू मेरे दहने हाथ बैठ जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाओ की चौकी ना कर दूँ। हमारे ख़ुदावंद येसू मसीह ने इन अल्फ़ाज़ का इक़्तिबास उस वक़्त किया जब आप चंद मज़्हबी यहूदीयों से बातचीत कर रहे थे। आपने उन से पूछा “तुम मसीह के हक़ में क्या समझते हो? वो किस का बेटा है? उन्हों ने उस से कहा दाऊद का। उस ने उन से कहा पस दाऊद रूह की हिदायत से क्योंकर उसे ख़ुदावंद कहता है कि “ख़ुदावंद ने मेरे ख़ुदावंद से कहा मेरी दाहिनी तरफ़ बैठ जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाओ के नीचे ना कर दूँ? पस जब दाऊद उस को ख़ुदावंद कहता है तो वो उस का बेटा क्योंकर ठहरा?” (मत्ती 22:42-45)
(ब) यसअयाह
(1) “तब ख़ुदावंद की तरफ़ से रोईदगी (शाख़) ख़ूबसूरत व शानदार होगी और ज़मीन का फल उन के लिए जो बनी-इस्राईल में से बच निकले लज़ीज़ और ख़ुशनुमा होगा। (यसअयाह 2:4) “रोईदगी (शाख़) किताब-ए-मुक़द्दस की ज़बान में येसू मसीह की तरफ़ इशारा करती है, और नबियों ने अक्सर उसे “शाख़” कह कर मुख़ातिब किया है। मसलन यर्मियाह नबी कहता है, “देख वो दिन आते हैं ख़ुदावंद फ़रमाता है कि मैं दाऊद के लिए एक सादिक़ शाख़ पैदा करूँगा और उस की बादशाही मुल्क में इक़्बालमंदी और अदालत और सदाक़त के साथ होगी।” (यर्मियाह 23:5) और ज़करीयाह नबी ने कहा “देख वो शख़्स जिसका नाम शाख़ है उस के ज़ेरे साये ख़ुशहाली होगी और वो ख़ुदावंद की हैकल को तामीर करेगा।” (ज़करीयाह 6:12)
(2) यसअयाह नबी ने कहा, “जिस साल में उज्ज़ियाह बादशाह ने वफ़ात पाई मैंने ख़ुदावंद को एक बड़ी बुलंदी पर ऊंचे तख़्त पर बैठे देखा और उस के लिबास के दामन से हैकल मामूर हो गई। उस के आस-पास सराफ़ीम खड़े थे जिनमें से हर एक के छः बाज़ू थे और हर एक दो से अपना मुँह ढाँपे था और दो से पाओ और दो से उड़ता था। और एक ने दूसरे को पुकारा और कहा क़ुद्दूस क़ुद्दूस क़ुद्दूस रब्बु-उल-अफ़्वाज़ है। सारी ज़मीन उस के जलाल से मामूर है।” (यसअयाह 6:1-3) यहां नबी येसू मसीह की बात कह रहा है जिसकी तस्दीक़ इन्जील मुक़द्दस भी करती है, “यसअयाह ने ये बातें इसलिए कहीं कि उस ने उस का जलाल देखा और उस ने उसी के बारे में कलाम किया।” (यसअयाह 12:41)
(3) “इसलिए हमारे लिए एक लड़का तवल्लुद हुआ और हमको एक बेटा बख़्शा गया और सल्तनत उस के कंधे पर होगी और उस का नाम अजीब मुशीर ख़ुदा-ए-क़ादिर अबदीयत का बाप सलामती का शाहज़ादा होगा।” (यसअयाह 9:6)
(ज) यर्मियाह
यर्मियाह नबी कहता है, “देख वो दिन आते हैं ख़ुदावंद फ़रमाता है कि मैं दाऊद के लिए एक सादिक़ शाख़ पैदा करूँगा और उस की बादशाही मुल्क में इक़्बालमंदी और अदालत और सदाक़त के साथ होगी। उस के अय्याम में यहूदाह नजात पाएगा और इस्राईल सलामती से सुकूनत करेगा और उस का नाम ये रखा जाएगा ख़ुदावंद हमारी सदाक़त।” (यर्मियाह 23:5-6)
(द) दानीएल
(1) दानीएल नबी कहता है, “मैंने रात को रोया (कश्फ़) में देखा और क्या देखता हूँ कि एक शख़्स आदमज़ाद की मानिंद आस्मान के बादिलों के साथ आया और क़दीम-उल-अय्याम तक पहुंचा। वो उसे उस के हुज़ूर लाए। और सल्तनत और हश्मत और ममलकत उसे दी गई ताकि सब लोग और उम्मतें और अहले-लुग़त उस की ख़िदमतगुज़ारी करें। उस की सल्तनत अबदी सल्तनत है जो जाती ना रहेगी और उस की ममलकत लाज़वाल होगी।” (दानीएल 7:13-14)
(2) वो मज़ीद ये कहता है, “तेरे लोगों और तेरे मुक़द्दस शहर के लिए सत्तर हफ़्ते मुक़र्रर किए गए कि ख़ताकारी और गुनाह का ख़ातिमा हो जाये। बदकिर्दारी का कफ़्फ़ारा दिया जाये। अबदी रास्तबाज़ी क़ायम हो। रोया व नबुव्वत पर मुहर हो। और पाक तरीन मुक़ाम ममसूह किया जाये। पस तू मालूम कर और समझ ले कि यरूशलेम की बहाली और तामीर का हुक्म सादिर होने से ममसूह फ़रमां रवा तक सात हफ़्ते और बासठ हफ़्ते होंगे। तब फिर बाज़ार तामीर किए जाऐंगे और फ़सील बनाई जाएगी मगर मुसीबत के अय्याम में। और बासठ हफ़्तों के बाद वो ममसूह क़त्ल किया जाएगा और उस का कुछ ना रहेगा और एक बादशाह आएगा जिसके लोग शहर और मुक़द्दस को मिस्मार करेंगे और उस का अंजाम गोया तूफ़ान के साथ होगा और आख़िर तक लड़ाई रहेगी। बर्बादी मुक़र्रर हो चुकी है। और वो एक हफ्ते के लिए बहुतों से अहद क़ायम करेगा और निस्फ़ हफ्ते में ज़बीहा और हद्या मौक़ूफ़ करेगा और फ़सीलों पर उजाड़ने वाली मकरूहात रखी जाएँगी यहां तक कि बर्बादी कमाल को पहुंच जाएगी और वो बला जो मुक़र्रर की गई है इस उजाड़ने वाले पर वाक़ेअ होगी।” (दानीएल 9:24-27)
ये नबुव्वतें मसीह की आमद और जो इलाही काम वो पूरा करने को था उस के बारे में हैं। दानीएल नबी अपनी पहली गवाही में मसीह को “इब्ने-आदम” कह कर मुख़ातिब करता है। और दूसरी जगह वो मसीह को ममसूह बादशाह कहता है। ये वो अल्क़ाब हैं जो मसीह ने अपने लिए इस्तिमाल किए हैं।
“क्योंकि इब्ने-आदम इसलिए नहीं आया कि ख़िदमत ले बल्कि इसलिए कि ख़िदमत करे और अपनी जान बहुतेरों के बदले फ़िद्या में दे।” (मत्ती 20:28)
“और फ़िलदलफियह की कलीसिया के फ़रिश्ते को ये लिख कि जो क़ुद्दूस और बरहक़ है और दाऊद की कुंजी रखता है जिसके खोले हुए को कोई बंद नहीं करता और बंद किए हुए को कोई खौलता नहीं।” (मुकाशफ़ा 3:7)
(ह) मीकाह नबी
वो लिखता है, “लेकिन ऐ बैत-लहम अफराताह अगरचे तू यहूदाह के हज़ारों में शामिल होने के लिए छोटा है तो भी तुझमें से एक शख़्स निकलेगा और मेरे हुज़ूर इस्राईल का हाकिम होगा और उस का मुसद्दिर ज़माना साबिक़ हाँ क़दीम-उल-अय्याम से है।” (मीकाह 5:2)
ये येसू मसीह के तजस्सुम और बैत-लहम में उस की पैदाईश के बारे में एक नबुव्वत है और उस के अज़ली होने की तरफ़ इशारा है। “निकलेगा” का मतलब तस्लीस के दूसरे उक़नूम के तौर पर उस का ज़हूर है कि जब वो अहद के फ़रिश्ते के तौर पर अब्रहाम पर ज़ाहिर हुआ। (पैदाईश 18 बाब), मूसा पर ज़ाहिर हुआ। (ख़ुरूज 3 बाब), यशूअ पर ज़ाहिर हुआ (यशूअ 13 बाब), जिदऊन पर ज़ाहिर हुआ। (क़ुज़ात 6 बाब) और मनूहा पर ज़ाहिर हुआ। (यशूअ 13 बाब)
जैसे ख़ुदा अज़ली है वैसे ही मसीह अज़ली है। (देखिए यूहन्ना 1:1-2)
(व) मलाकी
मलाकी नबी कहता है, “देखो मैं अपने रसूल को भेजूँगा और वो मेरे आगे राह दुरुस्त करेगा और ख़ुदावंद जिसके तुम तालिब हो नागहाँ अपनी हैकल में आ मौजूद होगा। हाँ अहद का रसूल जिसके तुम आर्ज़ूमंद हो आएगा रब्बु-उल-अफ़वाज फ़रमाता है।” (मलाकी 3:1)
ये आयत मजीदा यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बारे में बताती है जो ख़ुदावंद येसू मसीह से पहले राह तैयार करने को आया। ये वो है जिसने लोगों को ये कहते हुए मुनादी की “तौबा करो क्योंकि आस्मान की बादशाही नज़्दीक आ गई है।” (मत्ती 3:1) पाक तस्लीस का दूसरा उक़नूम अहद का रसूल है, और उसे ये नाम इसलिए दिया गया कि उस में ख़ुदा के वाअदे पूरे होने थे। (इब्रानियों 9:15)
मुन्दरिजा बाला हवालेजात में हमने देखा कि पुराने अहदनामे के अम्बिया मसीह की उलूहियत पर ईमान रखते थे। अम्बिया के नविश्तों ने वाज़ेह तौर पर ऐलान किया कि दुनिया को बचाने के लिए ख़ुदा इन्सानी फ़ित्रत के साथ मुलब्बस एक शख़्स के तौर पर आ रहा है। उसे एक औरत से, अब्रहाम की नस्ल से, यहूदाह के क़बीले से, दाऊद के घराने से एक कुँवारी से पैदा होना है और वो दुनिया के गुनाह के लिए अपने आपको एक क़ुर्बानी के तौर पर नज़्र गुज़रानेगा।
हमारे पास मज़्बूत सबूत है कि अहद का रसूल ख़ूदा की ज़ात में दूसरा उक़नूम है, और पुराने अहदनामे में उसे यहोवा का फ़रिश्ता, ईलोहीम और ख़ुदा भी कहा गया है। ये वही मसीह है जिसका ज़िक्र नए अहदनामे में है जो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बाद आया। और यसअयाह नबी ने उस के आने के बारे में नबुव्वत की जब ये कहा “पुकारने वाले की आवाज़ ब्याबान में ख़ुदावंद की राह दुरुस्त करो। सहरा में हमारे ख़ुदा के लिए शाहराह हमवार करो। .. और ख़ुदावंद का जलाल आश्कारा होगा और तमाम बशर उस को देखेगा क्योंकि ख़ुदावंद ने अपने मुँह से फ़रमाया है।” (यसअयाह 40:3, 5)
अगर हम नया अहदनामा देखें तो हमें पता चलेगा कि जो राह तैयार कर रहा है वो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला है, और जो आ रहा है जिसे यसअयाह “हमारे ख़ुदा” कहता है बिला-शुब्हा वो येसू मसीह है। ख़ुदावंद जो अपनी हैकल में आ रहा है मसीह है। (मत्ती 11:10, मर्क़ुस 1:2, लूक़ा 1:76, 7:27)
सवाल 6
क्या ख़ुदा तआला आदम और उस की नस्ल को मसीह की मस्लुबियत के बग़ैर नजात नहीं दे सकता था?
जवाब :
ये सवाल हमें दुबारा कफ़्फ़ारे के मौज़ू की तरफ़ ले जाता है, क्योंकि माज़ी के गुनाहों के लिए कफ़्फ़ारे के बग़ैर नजात नहीं है। लफ़्ज़ “कफ़्फ़ारा” का मतलब है गुनाह को ढाँपना या उस पर पर्दा डाल देना। मसीहिय्यत में कफ़्फ़ारा मसीह का काम है जो बाप की मर्ज़ी की कामिल फ़रमांबर्दारी के ज़रीये हुआ। मुख़्तसर ये कि शरीअत की लानत से दुनिया की नजात और इन्सान की ख़ुदा के साथ मुसालहत उस के ख़ून के ज़रीये हुई जो सलीब पर बहा।
मसीह की सिफ़ात पर मुख़्तलिफ़ ज़ावियों मसलन मुहब्बत, क़ुद्दुसियत और इन्साफ़ के एतबार से ख़ुदा के ताल्लुक़ से, और नस्ल-ए-इन्सानी में और उन के लिए उस के काम के एतबार से इन्सान के ताल्लुक़ से निगाह करना मुमिद व मुआविन है।
सो ये बयान किया गया है कि मसीह का कफ़्फ़ारा इन्सान के गुनाह के लिए है ये गुनेहगारों की शरीअत की लानत और सज़ा से नजात के लिए मसीह की क़ुर्बानी का वाज़ेह इज़्हार है।
ये भी बयान किया गया है कि मसीह का कफ़्फ़ारा ख़ुदा तआला को ख़ुश करना और उस के अदल के तक़ाज़े को पूरा करना है। यानी इस का ताल्लुक़ उस की रज़ा से है। ये ख़ुदा के ग़ज़ब को दूर करने में मसीह की क़ुर्बानी के नताइज को और मुसालहत के लिए गुनेहगार को क़ुबूल करने में उस की रज़ा को ज़ाहिर करता है।
एक और नुक्ता-नज़र ये है कि कफ़्फ़ारा गुनेहगार नफ़्स का मसीह के ख़ून से ढाँपा जाना है ताकि उस पर सज़ा लागू ना हो।/p>
मसीह जो उस की ख़ातिर क़ुर्बान हुआ उस ने उस की सज़ा अपने ऊपर ले ली। इस बात का इशारा यूहन्ना रसूल ने अपने अल्फ़ाज़ में दिया “मुहब्बत इस में नहीं कि हमने ख़ुदा से मुहब्बत की बल्कि इस में है कि उस ने हमसे मुहब्बत की और हमारे गुनाहों के कफ़्फ़ारे के लिए अपने बेटे को भेजा।” (1-यूहन्ना 4:10)
मज़ीद ये कि कफ़्फ़ारे ने ख़ुदा की पाक शरीअत की एहमीय्यत को कम किए बग़ैर ख़ुदा तआला और इन्सान के दर्मियान मुसालहत के दरवाज़े को खोल दिया। इस का इज़्हार पौलुस रसूल ने अपने इन अल्फ़ाज़ में किया है, “ख़ुदा ने मसीह में हो कर अपने साथ दुनिया का मेल मिलाप कर लिया और उन की तक़सीरों को उन के ज़िम्मे ना लगाया और उस ने मेल मिलाप का पैग़ाम हमें सौंप दिया है।” (2-कुरिन्थियों 5:19)
किताब-ए-मुक़द्दस की ज़बान में येसू के फ़िद्ये व मख़लिसी को “फ़ज़्ल” के लफ़्ज़ से ज़ाहिर किया जाता है। क्योंकि हमारा आस्मानी बाप इस बात का पाबंद नहीं था कि गुनेहगार इन्सानियत के लिए एक क़ुर्बानी मुहय्या करे। ना ही बेटा जिस्म में आने और मख़लिसी के मंसूबे को पूरा करने के लिए मज्बूर था। अपनी अज़ीम मुहब्बत और रहमत में ग़नी होने की वजह से ख़ुदा-ए-कामिल ने शरीअत की सज़ाओ के तक़ाज़े की सिम्त बदल दी। ख़ुदा ने उन दुखों को क़ुबूल किया जो मुजस्सम बेटे ने ऊज़ी के तौर पर ब-रज़ा व रग़बत गुनेहगार की जगह बर्दाश्त किए। हमारे ख़ुदावंद येसू मसीह ने इस सच्चाई का ऐलान उस वक़्त किया जब कहा “मैं भेड़ों के लिए अपनी जान देता हूँ।” (यूहन्ना 10:15) “इस से ज़्यादा मुहब्बत कोई शख़्स नहीं करता कि अपनी जान अपने दोस्तों के लिए दे दे।” (यूहन्ना 15:13)
हमारे मुबारक ख़ुदावंद ने जो कुछ किया उस के सबब की वज़ाहत इन बयानात में की गई है। अगरचे वो क़ुद्दूस है लेकिन उस ने इन्सानी जिस्म इख़्तियार करना क़ुबूल किया और सलीब पर अपने जिस्म में हमारे गुनाहों को बर्दाश्त करते हुए दुख उठाया।
रोमीयों के नाम अपने ख़त में पौलुस रसूल ने इन ऊज़ी दुखों की ज़रूरत को वाज़ेह किया है, “इसलिए कि जो काम शरीअत जिस्म के सबब से कमज़ोर हो कर ना कर सकी वो ख़ुदा ने किया यानी उस ने अपने बेटे को गुनाह आलूदा जिस्म की सूरत में और गुनाह की क़ुर्बानी के लिए भेज कर जिस्म में गुनाह की सज़ा का हुक्म दिया। ता कि शरीअत का तक़ाज़ा हम में पूरा हो जो जिस्म के मुताबिक़ नहीं बल्कि रूह के मुताबिक़ चलते हैं।” (रोमीयों 8:3-4)
बाअल्फ़ाज़-ए-दीगर, अबदी मौत जो हमारी सज़ा थी वो गुनाह की मज़दूरी थी, और मसीह ने उसे हमारी जगह नुमाइंदे के तौर पर अपने ऊपर ले लिया। ये नबुव्वती क़ौल के मुताबिक़ है, “हालाँकि वो हमारी ख़ताओ के सबब से घायल किया गया और हमारी बदकिर्दारी के बाइस कुचला गया। हमारी ही सलामती के लिए उस पर सियासत हुई ताकि उस के मार खाने से हम शिफ़ा पाएं।” (यसअयाह 53:5)
बहुत से लोग ये कहते हैं कि ख़ुदा जिसे चाहे बख़्श देता है और जिसे चाहे सज़ा देता है। ये बयान ख़ुदा तआला की सच्चाई के मुवाफ़िक़ नहीं जिसका इज़्हार उस के इंतिबाहात और वादों में मिलता है। माफ़ी के लिए एक कफ़्फ़ारा बख़्श क़ुर्बानी उस के अदल का तक़ाज़ा है। इस उसूल से आगाही शुरू ही से थी ये पुराने अहदनामा के सफ़हात में एक क़िरमज़ी धागे की मानिंद पिरोई हुई सच्चाई है। ये ख़ून बहाती है और हर नस्ल में पुकारती है, “बग़ैर ख़ून बहाए माफ़ी नहीं होती। हक़ीक़त ये है कि अगर ख़ुदा तआला अपनी तमाम सिफ़ात में कामिल है तो उसे हक़ व अदालत की बिना पर इन्सान को उस की ख़ताओ को माफ़ नहीं करना। हिज़्क़ीएल नबी ने फ़रमाया, “जो जान गुनाह करती है वही मरेगी। बेटा बाप के गुनाह का बोझ ना उठाएगा और ना बाप बेटे के गुनाह का बोझ। सादिक़ की सदाक़त उसी के लिए होगी और शरीर की शरारत शरीर के लिए (हिज़्क़ीएल 18:20)
अगर ख़ुदा किसी फ़र्द की ख़ताएँ माफ़ करता है तो उस की माफ़ी का कोई ना कोई लाज़िम सबब भी होना चाहीए एक ऐसा सबब जो ख़ुदा की पाकीज़गी और उस के साथ-साथ उस के अदल की तश्फ़ी करे।
ये तश्फ़ी पुराने अहदनामे के वक़्तों में ख़ून की क़ुर्बानियां गुज़राँने से होती थी जो मसीह की अलामत थीं। अब अह्दे-जदीद में ये मसीह की क़ुर्बानी से हासिल होती है जिसने सारी रास्तबाज़ी को पूरा किया।
मसीह की क़ुर्बानी की ख़ुसूसियात में ये बात शामिल है कि वो ना सिर्फ इन्सान के गुनाह को दूर करती है बल्कि उसे गुनाह जैसी अख़्लाक़ी बीमारी से शिफ़ा भी देती जाती है। वो जो मसीह मस्लूब को क़ुबूल करता है वो नई ज़िंदगी पाता है। वो गुनाह के तबाहकुन अमल और उस की ख़ौफ़नाक सज़ा को देखना शुरू कर देता है और उस की मश्क़ नहीं करता। इसी वजह से रसूल ने ये कहा, “जो कोई ख़ुदा से पैदा हुआ है वो गुनाह नहीं करता क्योंकि उस का तुख़्म उस में बना रहता है बल्कि वो गुनाह कर ही नहीं सकता क्योंकि ख़ुदा से पैदा हुआ है।” (1-यूहन्ना 3:9)
सवाल 7
किताब-ए-मुक़द्दस मसीह की उलूहियत को साबित नहीं करती। क्या जनाब मूसा इस से वाक़िफ़ थे और क्या उन्हों ने इसे लोगों से छुपाया, या वो इस से नावाक़िफ़ थे?
जवाब :
मूसा नबी ख़ुदा की ज़ात के तीन अक़ानीम से नावाक़िफ़ नहीं थे, और उन्हों ने इसे छुपाया नहीं, बल्कि उन्हों ने उन पाँच किताबों में जो उन्हों ने इल्हाम से तहरीर कीं और जो तौरेत कहलाती हैं उन में कई जगहों पर इस का ज़िक्र किया, मसलन :-
٭ पहली आयत जो मूसा नबी ने इल्हामी कलाम में दर्ज की, बयान करती है “ख़ुदा (ईलोहीम) ने इब्तिदा में ज़मीन व आस्मान को पैदा किया।” (पैदाईश 1:1) लफ़्ज़ “ईलोहीम” तौरेत में जमा के सीगे में इस्तिमाल हुआ है, जो इशारा करता है कि ख़ुदा की वहदानियत जामईयत पर मबनी है।
٭ जनाब मूसा ने ये भी लिखा “सुन ऐ इस्राईल ख़ुदावंद हमारा ख़ुदा एक ही ख़ुदावंद है।” (इस्तिस्ना 6:4) अल्फ़ाज़ “हमारा ख़ुदा” इस मतन में सीग़ा जमा में इस आगही के साथ इस्तिमाल हुए हैं कि यहां मक़्सद वहदानियत पर ज़ोर है। क़ाबिल ज़िक्र अम्र ये है कि ख़ुदा तआला ने अपने लिए ज़मीर जमा कई आयात में इस्तिमाल किया है जो हमारे लिए मूसा ने तहरीर की हैं “फिर ख़ुदा ने कहा कि हम इन्सान को अपनी सूरत पर अपनी शबिया की मानिंद बनाएँ।” (पैदाईश 1:24) “अपनी सूरत पर अपनी शबिया की मानिंद” का मतलब जिस्मानी नहीं बल्कि अक़्ली व रुहानी है।
٭ “देखो इन्सान नेक व बद की पहचान में हम में से एक की मानिंद हो गया।” (पैदाईश 3:22)
٭ “सो आओ हम वहां जा कर उन की ज़बान में इख़्तिलाफ़ डालें।” (पैदाईश 11:7)
ये हवालेजात इस हक़ीक़त की तरफ़ इशारा करते हैं कि ख़ुदा अपने जोहर में एक है और अक़ानीम में तस्लीस। इस से पहले कि हम इस अक़ीदे का मुतालआ करें या इस पर तर्तीबवार बह्स करें, बेहतर है कि हम मसीह की कलीसिया में इस की तारीख़ से वाक़फ़ीयत हासिल करें, और इस से पहले कि ये ग़ैर-मुतग़य्यर (बदला हुआ) हतमी सूरत में सामने आया जो अफ़्क़ार (फिक्रें) इस ने आगे मुंतक़िल किए, उन से वाक़फ़ीयत हासिल करें।
रसूलों के अय्याम में और दूसरी सदी ईस्वी के शुरू तक मसीहियों ने मसीही अक़ाइद को मुईन वज़ा देने के बारे में नहीं सोचा था। जैसे ये उसूल किताब-ए-मुक़द्दस में बयान किए गए थे वैसे वो उन की मश्क़ करते रहे। जब उन्हें मुश्किलात व मसाइल का सामना होता तो वो रसूलों या उन के शागिर्दों से रुजू करते। ताहम, जब मसीहिय्यत दुनिया में फैली तो बाअज़ बिद्अती फ़िर्क़े सामने आए और सूरत-ए-हाल बदल गई। कलीसिया के लिए फ़ौरी तौर पर ज़रूरी हो गया कि वो दो टुक अल्फ़ाज़ में अपनी ताअलीम का ऐलान करे खासतौर पर जब आर्योस और सबीलस की ग़लत ताअलीम फैलनी शुरू हुई। इन अफ़राद ने ख़ुदावंद येसू मसीह और रूह-उल-क़ुद्स की उलूहियत के बारे में अक़ाइद की मुख़ालिफ़त की। इन बिद्अती आरा को बे-नक़ाब करने के लिए मुम्ताज़ मसीही राहनुमा सामने आए, जिनमें से सबसे ज़्यादा मशहूर मुक़द्दस अथनासीस था जिसने उन बिद्अती फ़िर्क़ों की मुख़ालिफ़त की और मशहूर अथनासीस के अक़ीदे को जारी किया। जो कि ज़ेल में बयान किया गया है :-
(1) तालिब-ए-नजात हर चीज़ से पहले मसीही कलीसिया के जामेअ ईमान का यक़ीन करे।
(2) इस ईमान को अगर कोई बे कम व कासित और ख़ालिस ना रखे तो वो बेशक अबदी हलाकत में पड़ेगा।
(3) और आलमगीर ईमान ये है कि हम वाहिद ख़ुदा की परस्तिश सालूस में और सालूस की परस्तिश तौहीद में करें।
(4) ना अक़ानीम को मख़लूत करें ना जोहर को तक़्सीम।
(5) क्योंकि इक़नोमित बाप की और है, बेटे की और, रूह-उल-क़ुद्स की और
(6) लेकिन बाप बेटे और रूह-उल-क़ुद्स की उलूहियत एक ही है, जलाल बराबर, अज़मत यकसाँ अज़ली।
(7) जैसा बाप है, वैसा ही बेटा और वैसा ही रूह-उल-क़ुद्स है।
(8) बाप ग़ैर-मख़्लूक़, बेटा ग़ैर-मख़्लूक़, रूह-उल-क़ुद्स ग़ैर-मख़्लूक़।
(9) बाप ग़ैर-महदूद, बेटा ग़ैर-महदूद, रूह-उल-क़ुद्स ग़ैर महदूद।
(10) बाप अज़ली, बेटा अज़ली, रूह-उल-क़ुद्स अज़ली। ताहम तीन अज़ली नहीं, बल्कि एक ही अज़ली है।
(11) इसी तरह ना तीन ग़ैर-महदूद हैं, ना तीन ग़ैर-मख़्लूक़, बल्कि एक ही ग़ैर-मख़्लूक़ और एक ही ग़ैर-महदूद है।
(12) इसी तरह बाप क़ादिर-ए-मुतलक़, बेटा क़ादिर-ए-मुतलक़, रूह-उल-क़ुद्स क़ादिर-ए-मुतलक़ है। तो भी तीन क़ादिर-ए-मुतलक़ नहीं, बल्कि एक ही क़ादिर-ए-मुतलक़ है।
(13) वैसा ही बाप ख़ुदा, बेटा ख़ुदा, रूह-उल-क़ुद्स ख़ुदा है। ताहम तीन ख़ुदा नहीं, बल्कि एक ही ख़ुदा है।
(14) इसी तरह बाप ख़ुदावंद, बेटा ख़ुदावंद, रूह-उल-क़ुद्स ख़ुदावंद है। फिर भी तीन ख़ुदावंद नहीं, बल्कि एक ही ख़ुदावंद है।
(15) क्योंकि जिस तरह मसीही सच्चाई हमें सिखाती है कि हम ये एतराफ़ ना करें कि हर उक़नूम जुदागाना ख़ुदा और ख़ुदावंद है। उसी तरह दीन जामेअ भी हमें मना करता है कि हम तीन ख़ुदाओ और तीन ख़ुदावन्दों को मानें।
(16) बाप ना किसी से मसनूअ है, ना मख़्लूक़, ना मौलूद। बेटा सिर्फ बाप ही से है, ना मसनूअ है ना मख़्लूक़ बल्कि मौलूद। रूह-उल-क़ुद्स बाप और बेटे से है, ना मसनूअ, ना मख़्लूक़, ना मौलूद बल्कि सादिर है।
(17) पस एक बाप है, तीन बाप नहीं। एक बेटा है, तीन बेटे नहीं। एक ही रूह-उल-क़ुद्स है, तीन रूह-उल-क़ुद्स नहीं।
(18) और इस सालूस में कोई एक दूसरे से पहले या पीछे नहीं, ना कोई एक दूसरे से बड़ा या छोटा है।
(19) बल्कि तीनों अक़ानीम यकसाँ, अज़ली और बाहम बराबर हैं।
(20) अल-ग़र्ज़ हर अम्र में जैसा कि ऊपर बयान हुआ है, वाहिद की परस्तिश तस्लीस में और सालूस की परस्तिश तौहीद में करनी वाजिब है।
(21) पस जो कोई नजात चाहे, सालूस को यूँही माने।
(22) इलावा इस के अबदी नजात के लिए ज़रूर है कि वो हमारे ख़ुदावंद येसू मसीह के तजस्सुम पर भी सही ईमान रखे।
(23) क्योंकि सही ईमान ये है कि हम एतिक़ाद रखें और इक़रार भी करें कि हमारा ख़ुदावंद येसू मसीह जो ख़ुदा का बेटा है, ख़ुदा भी है और इन्सान भी।
(24) वो ख़ुदा है बाप के जोहर से सब आलमों से पेश्तर मौलूद, और इन्सान है जो अपनी माँ के जोहर से इस आलम में पैदा हुआ।
(25) वो कामिल ख़ुदा और कामिल इन्सान है, नफ़्स-ए-नातिक़ा और इन्सानी जिस्म से मौजूद।
(26) उलूहियत की राह से बाप के बराबर, इन्सानियत की राह से बाप से कमतर।
(27) वो अगरचे ख़ुदा और इन्सान है, ताहम दो नहीं बल्कि एक ही मसीह है।
(28) एक ही है इस तौर पर नहीं कि उलूहियत को जिस्मानियत से बदल डाला, बल्कि इस तौर पर कि इन्सानियत को उलूहियत में ले लिया।
(29) वो मुतल्लिक़न एक है, जौहरों के इख़तिलात से नहीं बल्कि उक़नूम की यकताई से।
(30) क्योंकि जिस तरह नफ़्स-ए-नातिक़ा और जिस्म मिलकर एक इन्सान होता है, उसी तरह ख़ुदा और इन्सान मिलकर एक मसीह है।
(31) उस ने हमारी नजात के वास्ते दुख उठाया, आलम-ए-अर्वाह में उतर गया, और तीसरे दिन मुर्दों में से जी उठा।
(32) आस्मान पर चढ़ गया और ख़ुदा क़ादिर-ए-मुतलक़ बाप के दहने बैठा है।
(33) वहां से वो ज़िंदों और मुर्दों की अदालत करने के लिए आने वाला है।
(34) उस की आमद पर सब आदमी अपने अपने बदन के साथ जी उठेंगे, और अपने अपने आमाल का हिसाब देंगे।
(35) तब जिन्हों ने नेकी की है वो अबदी ज़िंदगी में, और जिन्हों ने बदी की है वो अबदी आग में दाख़िल होंगे।
(36) ईमान जामेअ यही है। इस पर अगर कोई सच्चे दिल से एतिक़ाद ना रखे तो वो नजात को हासिल ना कर सकेगा।
मुख़्तसर ये कि गो तस्लीस में तीन अक़ानीम बाप, बेटा और रूह-उल-क़ुद्स हैं लेकिन ख़ुदा एक ही ख़ुदा है जो तीन अक़ानीम में वाहिद जोहर है। तस्लीस का जोहर मुनक़सिम नहीं है। इसलिए, हर एक उक़नूम उस का एक ख़ास जुज़ नहीं रखता बल्कि वही जोहर रखता है जो दूसरे का है। इन्सानी ज़हन इस सबको ना पूरी तरह से समझ सकता है और ना उन के ताल्लुक़ के भेद का इदराक कर सकता है, लेकिन किताब-ए-मुक़द्दस इस भेद की हमें वज़ाहत पेश करती है। हर फ़ल्सफ़ियाना फ़िक्र या मन्तिक़ी नुक्ता जो किताब-ए-मुक़द्दस से बाहर से ताल्लुक़ रखता है वो सहाइफ़ की वज़ाहत सिर्फ क़ियास पर करता है।
ये तारीख़ की एक माअरूफ़ हक़ीक़त है कि क़दीम मसीही तस्लीस के अक़ीदे से वाक़िफ़ थे। उन्हों ने इल्हामी मुक़द्दस सहाइफ़ की रोशनी में इस का मुतालआ किया। वो इस पर ईमान रखते थे। उन्हों ने कलीसिया के क़वानीन में इस का इज़्हार किया। इन में से सबसे ज़्यादा मशहूर नकाया का अक़ीदा है, जो यूं है :-
“मैं ईमान रखता हूँ एक ख़ुदा क़ादिर-ए-मुतलक़ बाप पर जो आस्मान व ज़मीन और सब देखी और अनदेखी चीज़ों का ख़ालिक़ है।
और एक ख़ुदावंद येसू मसीह पर जो ख़ुदा का इकलौता बेटा है। कुल आलमों से पेश्तर अपने बाप से मौलूद, ख़ुदा से ख़ुदा, नूर से नूर, मसनूअ नहीं बल्कि मौलूद। उस का और बाप का एक ही जोहर है। उस के वसीले से कुल चीज़ें बनीं। वो हम आदमीयों के लिए और हमारी नजात के वास्ते आस्मान पर से उतर आया। और रूह-उल-क़ुद्स की क़ुद्रत से कुँवारी मर्यम से मुजस्सम हुआ और इन्सान बना। और पेंतुस पीलातुस के अहद में हमारे लिए मस्लूब भी हुआ। उस ने दुख उठाया और दफ़न हुआ। और तीसरे दिन पाक नविश्तों के बमूजब जी उठा। और आस्मान पर चढ़ गया। और बाप के दहने बैठा है। वो जलाल के साथ ज़िंदों और मुर्दों की अदालत के लिए फिर आएगा। उस की सल्तनत ख़त्म ना होगी।
और मैं ईमान रखता हूँ रूह-उल-क़ुद्स पर जो ख़ुदावंद है और ज़िंदगी बख़्शने वाला है। वो बाप और बेटे से सादिर है। उस की बाप और बेटे के साथ परस्तिश व ताज़ीम होती है। वो नबियों की ज़बानी बोला। मैं एक पाक कैथोलिक रसूली कलीसिया पर ईमान रखता हूँ। मैं एक बपतिस्मा का जो गुनाहों की माफ़ी के लिए है इक़रार करता हूँ। और मुर्दों की क़ियामत और आइंदा जहान की हयात का इंतिज़ार करता हूँ। आमीन।
इस्लाम में तस्लीस
ये वाज़ेह है कि इस्लाम ने मुश्रिकाना ताअलीमात का मुक़ाबला किया। ज़ेल में उन मतून का ज़िक्र किया जा रहा है जो इस्लाम ने ताअलीमात बातिला से लड़ने में इस्तिमाल किए।
(1) “और ये ना कहो कि ख़ुदा तीन हैं इस एतिक़ाद से बाज़ आओ कि ऐसा करना तुम्हारे हक़ में बेहतर है। अल्लाह ही माबूद वाहिद है।” (सूरह निसा 4:171)
(2) “अल्लाह फ़रमाएगा कि ऐ ईसा इब्ने मरियम क्या तुमने लोगों से कहा था कि अल्लाह के सिवा मुझे और मेरी वालिदा को माबूद मुक़र्रर करो?” (सूरह माइदा 5:116)
(3) “वो लोग भी काफ़िर हैं जो इस बात के क़ाइल हैं कि अल्लाह तीन में का तीसरा है।” (सूरह माइदा 5:73)
इन आयात से ये वाज़ेह है कि इस्लाम एक ऐसी ताअलीम की मुख़ालिफ़त कर रहा था जो ख़ुदा तआला की ज़ात में शिर्क कर रही थी और कई ख़ुदाओ को मान रही थी। मसीहिय्यत ने शिर्क या कई ख़ुदाओ को मानने की ताअलीम नहीं दी। मसीह के अल्फ़ाज़ गवाह हैं, “तो ख़ुदावंद अपने ख़ुदा को सज्दा कर और सिर्फ उसी की इबादत कर।” (मत्ती 4:10)
इसलिए वाज़ेह है कि इस्लाम मसीही तस्लीस-फ़ील-तौहीद के अक़ीदे का नहीं बल्कि तीन ख़ुदाओ की बिद्अती ताअलीम का मुक़ाबला कर रहा था। वो एक और ताअलीम एक और अक़ीदे से नबर्द-आज़मा थे।
वाज़ेह तौर पर शिर्क के ख़िलाफ़ इस्लामी हमले ख़ास बिद्अती गिरोह या गिरोहों के ख़िलाफ़ थे। ये शुरू इस्लाम के ज़माने में सामने आया और इस की मुख़ालिफ़त ना सिर्फ अहले इस्लाम ने की बल्कि मसीहिय्यत ने भी निहायत शिद्दत से इस की मुख़ालिफ़त की यहां तक कि ये ख़त्म हो गया। इस बात का ज़िक्र मैंने अपने एक गुज़श्ता जवाब में भी दिया है।
एक बार फिर मैं कहना चाहूँगा कि मसीहिय्यत ख़ुदाओ की ज़्यादा तादाद की ताअलीम नहीं देती और ये नहीं कहती कि मसीह ख़ुदा से जुदा ख़ुदा है। बल्कि मानती है कि बाप और बेटा दोनों तअद्दुद (एक से ज्यादा, बहुत सी) और इफ़्तिराक़ के बग़ैर एक ख़ुदा हैं। मसीह ने इस की तस्दीक़ की जब कहा कि, “मैं और बाप एक हैं।” (यूहन्ना 10:30) मसीहिय्यत ये ताअलीम नहीं देती कि मुबारक मर्यम ख़ुदा है। ना ही मुक़द्दसा मर्यम ने अपने लिए उलूहियत का दाअवा किया। बल्कि इक़रार किया, “मेरी जान ख़ुदावंद की बड़ाई करती है। और मेरी रूह मेरे मुनज्जी ख़ुदा से ख़ुश हुई।” (लूक़ा 1:46-47)
जहां तक क़ुरआनी अल्फ़ाज़ “वो लोग भी काफ़िर हैं जो इस बात के क़ाइल हैं कि अल्लाह तीन में का तीसरा है।” (सूरह माइदा 5:73) का ताल्लुक़ है, तो ये मुख़ालिफ़ीन-ए-मसीहिय्यत के मक़तबस शूदा अल्फ़ाज़ हैं जैसे कि मिर्क़ूनी। इन लोगों को कलीसिया से निकाला जा चुका था क्योंकि ये तीन ख़ुदाओ की इबादत की ताअलीम देते थे जो ये थे,
(1) आदिल वो ख़ुदा जिसने तौरेत को नाज़िल किया।
(2) सालिह वो ख़ुदा जिसने तौरेत को इन्जील से मन्सूख़ किया।
(3) शरीर यानी शैतान।
इस्लाम ने दो और बिद्अतों का मुक़ाबला किया। माअनी और देसानी। ये दो ख़ुदाओ पर ईमान रखते थे। एक ख़ुदा ख़ैर के लिए था जिसे नूर का जोहर कहते थे। दूसरा शर के लिए था जो तारीकी का जोहर था। ये बिदआत इस्लाम से पहले और बाद में मसीहिय्यत की मुख़ालिफ़ थीं। अब भी कलीसिया इन्हें बिद्अती और निकाले हुए क़रार देती है जैसे अहले-इस्लाम ख़ारिजियों को समझते हैं। ऐसे लोग किताब व सुन्नत से दूर हो गए जैसे कि वो गिरोह जिसने दाअवा किया कि ख़ुदा फ़ातिमी बादशाह हाकिम में रहता था।
सो, दीन-ए-इस्लाम तस्लीस की सही मसीही ताअलीम की मुख़ालिफ़त नहीं करता, जैसा कि कुछ समझते हैं बल्कि बिदआत की मुख़ालिफ़त करता है। इस वजह से मैं समझता हूँ कि क़ुरआनी आयात जो उन के बारे में हैं जो कई ख़ुदाओ पर ईमान रखते थे हक़ीक़तन सच्ची मसीहिय्यत के बारे में नहीं थीं।
जब हम इस्लामी तहरीरों में इस मौज़ू का मुतालआ करते हैं तो पता चलता है कि जैसे अम्बिया ने मसीही अक़ीदा तस्लीस पर बह्स की और उस की सही होने की तस्दीक़ की वैसे ही मुस्लिम उलमा ने किया। ये इक़्तिबास करना काफ़ी है जो “उसूल-उद्दीन” नामी किताब के एक क़दीम नुस्ख़े में लिखा है। उसे अबी अल-ख़ैर बिन अल-तय्यब ने लिखा जो इमाम अब्बा हामिद अल-ग़ज़ाली के ज़माने से ताल्लुक़ रखता था। उस ने कहा, “बाअज़ मसीहियों ने अबी अल-ख़ैर बिन अल-तय्यब से कहा, “इन्जील जब बयान करती है कि जाओ और सब क़ौमों को ताअलीम दो और उन्हें बाप और बेटे और रूह-उल-क़ुद्स के नाम से बपतिस्मा दो तो तीन ख़ुदाओ पर एतिक़ाद की बात करती है।” जवाब मिला “कोई शक नहीं कि इन्जील और उस के साथ-साथ पौलुस के ख़ुतूत और दूसरे शागिर्दों की तहरीरें मसीही शरीअत के लिए बुनियादी हैं। ये तहरीरें और तमाम दुनिया के मसीही उलमा के अक़्वाल गवाही देते हैं कि वो एक ख़ुदा पर ईमान रखते हैं। और बाप, बेटे और रूह-उल-क़ुद्स के नाम उस ज़ात-ए-वाहिद के ख़वास हैं। अगर मुझे ये तफ़्सील से बयान करना पड़ता तो मैं मुफ़स्सिल सबूत दे सकता था। इसलिए मैं मसीही ईमान की सेहत के बारे में मुअतक़िद (अक़ीदतमंद) हूँ। उन के ईमान का लुब्बे लुबाब ये है वो कहते हैं कि बारी तआला जोहर वाहिद है जिसका वस्फ़ कमाल है। वो ज़ाती ख़वास रखता है जिन्हें मसीह ने मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) किया। और वो ये हैं बाप, बेटा और रूह-उल-क़ुद्स। वो इशारा करते हैं उस जोहर की तरफ़ जिसे वो बारी तआला या बाप कहते हैं जो मुतलक़ अक़्ल का हामिल है। और वो उसी जोहर की तरफ़ इशारा करते हैं कि बेटे के तौर पर आक़िल अक़्ल का हामिल है। और वो उसी जोहर को जो माक़ूल अक़्ल का मालिक है रूह-उल-क़ुद्स के तौर पर बयान करते हैं। इस तनाज़ुर में जोहर वो है जो क़ायम बिल-ज़ात हालात व वाक़ियात से आज़ाद है।
मशहूर मुस्लिम आलिम इमाम अबू हामिद मुहम्मद अल-ग़ज़ाली ने अपनी किताब “अर्रद-उल-जमील” में मसीही अक़ीदे तस्लीस का ज़िक्र किया है, “मसीही ईमान रखते हैं कि ज़ात बारी तआला जोहर में वाहिद है और इस के ये मआनी हैं जब ये वजूद किसी दूसरे पर मुन्हसिर नहीं तो वो मुतलक़ वजूद है, और वो उसे बाप का उक़नूम कहते हैं। अगर उसे किसी और वजूद पर मुन्हसिर समझा जाये जैसे इल्म जिसका इन्हिसार आलिम पर है, तो वो उसे बेटे का उक़नूम या कलिमा कहते हैं। अगर उसे सादिर होने के लिए उस के इख़्तियार पर मुन्हसिर समझा जाये तो वो वजूद रूह-उल-क़ुद्स का उक़नूम कहलाता है क्योंकि ज़ात बारी तआला का वजूद इस से सामने आता है। इस इस्तिलाही ताबीर का नतीजा ये है कि ख़ुदा की ज़ात अपने जोहर में वाहिद है, गो कि उस में तस्लीस के अक़ानीम की सिफ़ात पाई जाती हैं।”
उस ने ये भी कहा “ख़ुदा की ज़ात बग़ैर एक जिस्म के नाक़ाबिल बयान वजूद है जो अक़्ल के माअना देता है और उसे बाप का उक़नूम कहा जाता है। अगर आप इख़्तियार मुतलक़ के ख़ुद के इज़्हार यानी आक़िल पर ग़ौर करें तो उसे बेटे या कलिमा का उक़नूम कहा जाता है। अगर आप जो उस से सादिर होता है इस पर ग़ौर करें यानी माक़ूल तो वो रूह-उल-क़ुद्स कहलाता है। इन इस्तिलाहात के मुताबिक़ अक़्ल का ताल्लुक़ ख़ुदा की ज़ात से है और इस से मुराद बाप है। आक़िल उस की अपनी ज़ात का इज़्हार है और इस से मुराद बेटा या कलिमा है। माक़ूल ख़ुदा का इज़्हार है जो अपनी ज़ात में माक़ूल है और इस से मुराद रूह-उल-क़ुद्स है।”
फिर उस ने कहा “अगर ये तमाम मआनी सही हैं, तो फिर बोलने वालों के अल्फ़ाज़ और इस्तिलाहात में कोई मसअला नहीं।”
इमाम फ़ख़्र उद्दीन अल-राज़ी ने मसीही अक़ीदा तस्लीस को यूं बयान किया है “उलमा ने ज़िक्र किया है कि मसीहिय्यत एक जोहर और तीन अक़ानीम बाप, बेटा और रूह-उल-क़ुद्स की बात करती है। ये तीन अक़ानीम एक ख़ुदा हैं। जैसे सूरज की एक क़ुर्स नुमा शक्ल है, किरनें हैं और हरारत है, सो मसीही कहते हैं कि ज़ात-ए-ख़ुदा बाप है, बेटा कलाम है, और रूह-उल-क़ुद्स ज़िंदगी है। मसीही ये भी ईमान रखते हैं कि बाप ख़ुदा है, बेटा ख़ुदा है, और रूह-उल-क़ुद्स ख़ुदा है। और ये सब वाहिद ख़ुदा है (अल-तफ़्सीर अल-कबीर जुज़ 12, सफ़ा 102)
एक और मुसन्निफ़ ने जनाब अली बिन वफ़ा का इक़्तिबास करते हुए लिखा, “ज़ात से मुराद एक है जिसमें कोई कस्रत या तअद्दुद (ज्यादा तादाद) नहीं। ताहम, मोतज़िला ने तअद्दुद (एक से ज्यादा तादाद) की बात की जिसे क़दीम लोग सिफ़ात के एतबार से लेते थे। ये मुरवज्जह कस्रत है जो हक़ीक़ी वहदत का इन्कार नहीं करती, जैसे जड़ की निस्बत से एक दरख़्त की शाख़, या हथेली के हवाले से उंगलियां।
किताब “अल-मलल वल-नहल” में अबू हुज़ैल हमदान, मोतज़िला के शेख़ और उस तरीक़त के क़ाइद बयान करते हैं, “बारी तआला आलम है जो इल्म रखता है और उसे अपनी ज़ात का इल्म है, क़ादिर है जिसके पास क़ुद्रत है, और उस की क़ुद्रत अपनी ज़ात है, और ज़िंदगी के साथ ज़िंदा है और उस की ज़िंदगी अपनी ज़ात है। मुम्किन है कि अबू हुज़ैल ने ये तसव्वुर उन फ़लसफ़ियों से मुकतबस किया जो एतिक़ाद रखते थे कि बारी तआला की ज़ात वाहिद है और उस में कस्रत नहीं। ताहम, सिफ़ात उस की ज़ात से जुदा नहीं हैं, यक़ीनन उस की ज़ात में क़ायम हैं, बल्कि उस की ज़ात हैं। अल्फ़ाज़ “आलिम है जो अपनी ज़ात का इल्म रखता है” में फ़र्क़ ये है कि ये सिफ़त की नफ़ी है और फिर ज़ात का इस्बात बज़ाते खुद सिफ़त की मानिंद है। या फिर ये कि इस्बाते सिफत ख़ुद ज़ात की मानिंद है। अगर अबू हुज़ैल ज़ात में सिफ़ात को साबित करने में कामयाब हुआ तो फिर वो यक़ीनन नसारा के अक़ानीम की तरह हैं।”
इब्ने-सीना, अल-मुलक्कब बारईस का कहना है, “वाजिब-उल-वजूद (ख़ुदा) अक़्ल, आक़िल और माक़ूल है। वो अपनी ज़ात और दीगर अश्या का इदराक रखता है। लेकिन उस की एजाबी और सुल्बी (सगा) (मसबत और मन्फ़ी) सिफ़ात का लाज़िमी तौर पर ज़ात में कस्रत का मफ़्हूम नहीं निकलता। अगर ये अपनी ज़ात में मुजर्रिद है, तो फिर ये अपनी ज़ात की अक़्ल है। वाजिब-उल-वजूद (ख़ुदा) माद्दे से जुदा और ज़ात में मुजर्रिद है इसलिए वो अपनी ज़ात में अक़्ल है। चूँकि हम उस के मुजर्रिद होने को ज़ात ले रहे हैं तो फिर वो अपने आप में माक़ूल है, और अगर उस की ज़ात मुजर्रिद है तो फिर वो अपनी ज़ात में आक़िल है। अब लाज़िम नहीं है कि आक़िल और माक़ूल होने का मतलब ज़ात का दोहरापन हो।”
इब्ने-सीना का बयान कर्दा नुक्ता ये है कि ख़ुदा तआला अक़्ल, आक़िल और माक़ूल है, और अबू हुज़ैल की तरफ़ से सामने लाया गया नुक्ता ये है कि ख़ुदा तआला इल्म, आलिम और मालूम है। बशरी अक़्ल इस बात को या उस हक़ीक़त को नहीं समझ सकती कि वो मुरक्कब नहीं है। वो वाहिद, किसी भी तर्कीब से जुदा है।
चंद मुस्लिम उलमा का इक़्तिबास करने का मक़्सद ख़ुदा की ज़ात के अक़ानीम सलासा का उन के ख़यालात के साथ मुवाज़ना करना नहीं था, (किताब-ए-मुक़द्दस हमें फ़र्क़ बात सिखाती है), बल्कि मुत्ला`श्यान-ए-हक़ पर इस बात को वाज़ेह करना है कि मसीही, ख़ुदा की वाहिद ज़ात में तअद्दुद (एक से ज्यादा तादाद) या तर्कीब पर एतिक़ाद नहीं रखते। मसीही ईमान हमें सिखाता है कि ख़ुदा तआला का वजूद अक़ानीम सलासा में है और ये अक़ानीम वाहिद ख़ुदा के मुख़्तलिफ़ ज़हूर नहीं हैं। इसलिए, ज़ात-ए-इलाही में उक़नूम सानी के उक़नूम अव़्वल के साथ बेटे के ताल्लुक़ का मतलब एक इन्सानी पैदाईश नहीं है जैसा कि उमूमन हम सोचते हैं, बल्कि ये ज़ात इलाही में दोनों अक़ानीम के दर्मियान एक अबदी ताल्लुक़ को बयान करने के लिए इस्तिमाल की जाने वाली एक इस्तिलाह है, जैसा कि इस्तिलाह सादिर ज़ात इलाही में तीसरे उक़नूम और पहले और दूसरे अक़ानीम के दर्मियान अबदी ताल्लुक़ को बयान करती है।
इस्तिलाह “कलिमा” जो किताब-ए-मुक़द्दस में मसीह के लिए इस्तिमाल हुई है और बाद-अज़ां इस्लाम में इस का इक़्तिबास किया गया, उक़नूम अव़्वल और उक़नूम सानी के दर्मियान वहदत को ज़ाहिर करती है। अगर एक मुसलमान क़ुरआनी मतन का जायज़ा ले तो उसे पता चलेगा कि इस्तिलाह “कलिमतुल्लाह” (کلمتہ اللہ) ख़ुदा तआला की ज़ात की एक अबदी सिफ़त है जिसमें कोई तब्दीली नहीं हो सकती।
ख़ुलासा ये है कि ख़ुदा मह्ज़ तीन मुख़्तलिफ़ ज़हूरों के साथ वाहिद नहीं है जैसा कि सवाल करने वाला समझता है बल्कि वो क़ुद्रत, अज़मत और जलाल में बराबर अक़ानीम सलासा वाहिद है। जैसे उस की सिफ़ात तफ़ावुत से जुदा हैं वैसे ही ज़ात-ए-इलाही में तीन अक़ानीम भी हैं।
इल्म इलाहियात हमें ये एतिक़ाद रखने से मना नहीं करता कि अज़ली कलिमे ने इन्सानी जिस्म इख़्तियार किया, ताहम वो महदूद या फ़ानी नहीं हो गया, क्योंकि वो ग़ैर-महदूद और ग़ैर-फ़ानी रूह है जिसमें कोई कमी बेशी नहीं हो सकती।
इसलिए, ख़ुदा की ज़ात में या उस के अज़ली व सरमदी जोहर में कोई तब्दीली नहीं हुई, और ना ही ज़ाते इलाही के अक़ानीम में कोई फ़र्क़ है। वो वाहिद, क़ुव्वत व क़ुद्रत में बराबर हैं, हत्ता कि तब भी जब मसीह इन्सान बन गया। क्योंकि वो इल्म, मशीयत और अक़्ल में वाहिद हैं।
मसीह ने फ़रमाया “जिन कामों को वो करता है उन्हें बेटा भी उसी तरह करता है।” (यूहन्ना 5:19) पौलुस ने कहा “इसी तरह ख़ुदा के रूह के सिवा कोई ख़ुदा की बातें नहीं जानता।” (1-कुरिन्थियों 2:11) ज़ाते इलाही में तस्लीस में कोई फ़र्क़ नहीं। बेटा मुजस्सम हुआ और उस ने अपने आप को दुनिया के कफ़्फ़ारे के लिए नज़्र कर दिया। रूह-उल-क़ुद्स हमारे दिलों को नया बनाता है। बाप ने बेटे को भेजा जो ज़ात वाहिद में तमाम सिफ़ात-ए-कमालिया रखता है। बिलाशक व शुब्हा ये हमारे इदराक से परे है। पौलुस ने रोमीयों 11:33 में ख़ुदा तआला के बारे में कहा “वाह ख़ुदा की दौलत और हिक्मत और इल्म किया ही अमीक़ है उस के फ़ैसले किस क़द्र इदराक से परे और उस की राहें क्या ही बे-निशान हैं!”
इस में कोई शक नहीं कि इस्लाम इस हक़ीक़त का एतराफ़ करता है। शेख़ मुही उद्दीन ने किताब-अल-बाब के सफ़ा 322 पर लिखा “वो जो अल्लाह तआला की ज़ात के बारे में गहरे तौर पर तहक़ीक़ करता है उस ने अल्लाह और उस के रसूलों के ख़िलाफ़ गुनाह किया है। अल्लाह तआला ने हमें हुक्म नहीं दिया कि उस की ज़ात के इल्म की गहरे तौर पर तहक़ीक़ करें। अगर बंदा अपने नफ़्स की पूरी मार्फ़त नहीं रखता तो वो कैसे हक़ तआला की मार्फ़त रख सकता है?”
वो सफ़ा नम्बर 373 पर लिखता है “हक़ तआला को फ़िक्री नज़र के ज़रीये पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता। वो जो अल्लाह की ज़ात को अपने ज़हन के ज़रीये जानने की कोशिश करते हैं गुनेहगार अज़ीम हैं। वो जहालत के इंतिहाई दर्जात तक चले जाते हैं।”
इम्मानूएल “ख़ुदा हमारे साथ”
905 ई॰ में अलाज़हर में कई मुस्लिम शयूख़ एक ख़त पर बह्स करने के लिए इखट्ठे हुए। उन के इज्तिमे में बह्स का मौज़ू था “ख़ुदा हमारे साथ।” शेख़ बुरहान-उद्दीन ने कहा “ख़ुदा हमारे साथ अपने अस्मा और सिफ़ात के ज़रीये है, लेकिन हमारे साथ अपनी ज़ात में नहीं है। शेख़ इब्राहिम ने कहा “नहीं, वो हमारे साथ अपनी ज़ात और सिफ़ात में है। एक और शेख़ ने पूछा “इस बात की क्या दलील है?” शेख़ इब्राहिम ने जवाब दिया “क़ुरआन कहता है” और अल्लाह तुम्हारे साथ है। सो, हमें ख़ुदा की शख़्सी हुज़ूरी को लाज़िमन मानना चाहीए। शेख़ इब्ने अल-लबान ने कहा “और हम उस से तुमसे भी ज़्यादा नज़्दीक होते हैं लेकिन तुमको नज़र नहीं आते।” ये आयत ख़ुदा के अपने बंदों के क़रीब होने का एक सबूत है। ये कहने का कि “तुमको नज़र नहीं आते मक़्सद ख़ुदा की इन्सान के साथ नज़दीकी पर ज़ोर देना है।” उस ने इस बात का भी ज़िक्र किया “और हम तो शह रग से भी ज़्यादा उस के क़रीब हैं।” इस का मतलब है कि वो इंतिहाई क़रीब है, यहां तक कि शह रग से भी ज़्यादा क़रीब है। शेख़ इब्राहिम ने कहा “इसलिए, ख़ुदा अपनी ज़ात के बग़ैर अपनी तमाम सिफ़ात के साथ हमारे क़रीब नहीं हो सकता।” शेख़ मुहम्मद अल-मग़रिबी अल-शाज़िली शेख़ अल-जलाल सियुती वहां आए और उन्हें सुना। उन्हों ने कहा “ख़ुदा अज़ली है जिसकी कोई इब्तिदा नहीं। ख़ुदा अबदी है जिसका कोई इख़्तताम नहीं। ख़ुदा शुरू ही से अपनी तख़्लीक़ के साथ है। वो सब उन के साथ मुत्तफ़िक़ हुए, और मज्लिस बर्ख़ास्त हुई।” वो सब उलमा फ़ाज़िल ख़ुदा की हुज़ूरी पर उस की सिफ़ात और ज़ात समेत मुत्तफ़िक़ थे जैसा कि क़ुरआन कहता है “और अल्लाह तुम्हारे साथ है” और “अल्लाह एहसान करने वालों के साथ है।” किताब-ए-मुक़द्दस मत्ती 28:20 में कहती है “...उन को ये ताअलीम दो कि उन सब बातों पर अमल करें जिनका मैंने तुमको हुक्म दिया है और देखो मैं दुनिया के आख़िर तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”
नतीजे के तौर पर मैं कहना चाहूँगा कि इन्सानी सूरत में उलूहियत का तजस्सुम बहुत मुम्किन है। इस्लाम इस बात का एतराफ़ करता है कि ख़ुदा अपनी सिफ़ात के ज़रीये और अपनी ज़ात में अपनी मख़्लूक़ के साथ हो सकता है। ये भेद बशरी अक़्ल व समझ से बईद है।
अब कैसे दीगर आम मुसलमान कलमा के तजस्सुम, ख़ुदा तआला के जिस्म में ज़हूर के मसीही एतिक़ाद को क़ुबूल करना रद्द कर सकते हैं?
सवाल 8
अगर आदम की ख़ता की माफ़ी के लिए एक मज़हकाख़ेज़ अलमनाक ड्रामा दरकार था, तो आदम से लेकर अब तक तमाम इन्सानों के गुनाहों को माफ़ करने के लिए क्या दरकार होगा?
जवाब :
मैंने पहले ही बयान कर दिया है कि मसीह की क़ुर्बानी ने दुनिया के गुनाहों को दूर कर दिया, सो मुझे ये बात दुबारा दुहराने की ज़रूरत नहीं। आपके मज़हकाख़ेज़ “ड्रामा” के बारे में ये कहना चाहूँगा कि ये इस दाअवे में पाया जाता है कि ख़ुदा ने येसू की शबिया किसी और पर डाल दी जिसे मस्लूब किया गया जिसकी शनाख़्त के बारे में मुस्लिम उलमा मुत्तफ़िक़ नहीं हैं।
उस की शनाख़्त के बारे में की जाने वाली चंद क़यास-आराइयाँ ज़ेल में दी गई हैं,
(अ) वो तीताओस यहूदी था जो मसीह को गिरफ़्तार करने के लिए एक घर में दाख़िल हुआ। उसे येसू ना मिला। अल्लाह ने उस की शबिया मसीह की तरह की कर दी। जब वो बाहर निकला तो यहूदीयों ने सोचा कि वो मसीह है, सो उन्हों ने उसे लिया और मस्लूब कर दिया।
(ब) जब यहूदीयों ने मसीह को गिरफ़्तार कर लिया तो उन की हिफ़ाज़त के लिए एक मुहाफ़िज़ को मुक़र्रर किया। जिसकी शबिया मसीह की तरह की हो गई और मसीह आस्मान पर सऊद कर गया। उन्हों ने उस मुहाफ़िज़ को लिया और मस्लूब कर दिया जो चिल्ला रहा था कि “मैं मसीह नहीं हूँ।”
(ज) ईसा ने अपने शागिर्दों में से एक से जन्नत का वाअदा किया जिसने उन की जगह लेने के लिए अपने आपको रज़ाकाराना तौर पर पेश कर दिया। सो अल्लाह ने ईसा की शबिया उस पर डाल दी। सो यहूदीयों ने उसे बाहर निकाला और मस्लूब कर दिया, लेकिन ईसा आस्मान पर उठा लिए गए।
(द) ईसा के शागिर्दों में से एक (यहूदाह) ने मुनाफ़क़त की और यहूदीयों के पास गया कि उन्हें पकड़वाए। जब वो ईसा को लेने के लिए उन के साथ अंदर गया तो अल्लाह ने उस की सूरत ईसा की सी कर दी। फिर यहूदीयों ने यहूदाह को लिया और मस्लूब कर दिया।
इमाम अबू जाफ़र अल-तिबरी ने अपनी तफ़्सीर में शबिया के इल्ज़ाम से मुताल्लिक़ कई रिवायत का ज़िक्र किया है :-
(अ) कुछ ने कहा “जब यहूदीयों ने ईसा और उन के शागिर्दों के गर्द घेरा डाल लिया, तो सबकी शबिया ईसा की तरह की हो गई। यहूदी घबरा गए और किसी और को मार दिया (सलम से रिवायत)
(ब) इब्ने हमीया ने याक़ूब अल-अतमी से और उस ने वह्ब बिन मंबा से रिवायत की है, “ईसा सत्रह शागिर्दों के साथ आए। यहूदीयों ने उन्हें घेर लिया। अल्लाह ने शागिर्दों की शबिया ईसा की तरह की कर दी। यहूदीयों ने शागिर्दों से कहा “तुमने हम पर सहर (जादू) तारी कर दिया। अच्छा है कि हमें बता दो कि तुम में से ईसा कौन है वर्ना तुम सब मारे जाओगे। तब ईसा ने शागिर्दों से कहा “आज कौन जन्नत की ख़ातिर अपनी जान देने के लिए तैयार है?” शागिर्दों में से एक ने अपने आपको रज़ाकाराना तौर पर पेश किया और यहूदीयों के पास ये कहते हुए गया कि “मैं ईसा हूँ। उन्हों ने उसे लिया और मस्लूब कर दिया।”
(ज) मुहम्मद बिन अल-हुसैन ने अल-सदी से रिवायत की है “बनी-इस्राईल ने ईसा और उन के उन्नीस शागिर्दों को एक घर में घेर लिया। ईसा ने शागिर्दों से कहा “कौन मेरी सूरत लेने, मरने और जन्नत में जाने के लिए तैयार है? एक शागिर्द ने अपने आपको पेश किया और उसे बाहर ले जा कर मस्लूब कर दिया गया, जबकि ईसा आस्मान पर सऊद कर गए।”
(द) इब्ने इस्हाक़ से रिवायत है “बनी-इस्राईल के बादशाह ने जिसका नाम दाऊद था, ईसा को क़त्ल करने के लिए एक आदमी भेजा। उस ने अपने साथ और आदमी लिए। ईसा अपने तेराह शागिर्दों के साथ थे। जब उन्हें पता चला कि वो आ गए हैं तो उन्हों ने अपने शागिर्दों में से एक की शबिया अपनी तरह की कर दी। जब यहूदीयों ने उस शागिर्द को देखा तो उन्हों ने उसे बाहर निकाला और मस्लूब कर दिया।”
अब वो शख़्स कौन था जिसकी शबिया ईसा की तरह की हो गई? क्या वो यहूदाह था या कोई और? ये है मज़हकाख़ेज़ ड्रामा ख़ुदा तआला पर ज़ुल्म व सितम का इल्ज़ाम लगाना कि उस ने धोका दिया और एक मिस्कीन व बेगुनाह इन्सान को हवाले करवा दिया कि वो मस्लूब हो और मारा जाये। ये ख़ुदा तआला की ज़ात से मावरा है कि वो किसी को धोका दे। “वो लोग जो ख़ुदा पर ईमान रखते हैं उन्हें वो धोका नहीं देता ये इन्सान की अपने साथी इन्सानों के साथ धोका-दही है।”
सवाल 9
मसीह के आने तक क्यों फ़िद्या व मख़लिसी का मन्सूबा इलतिवा में रहा? उन सब लोगों के मुक़द्दर में क्या है जो मसीह के फ़िद्ये से पहले मर गए?
जवाब :
ख़ुदा तआला ने अपनी मश्वरत में दुनिया की मख़लिसी के लिए एक ज़मान व मकान और एक क़ुर्बानी मुक़र्रर की। ये मन्सूबा लफ़्ज़ “इलतिवा” को ख़ारिज करता है जिसे आपने इस्तिमाल किया है।
ये सही है कि दुनिया सुकूते आदम के नतीजे में लानत के तहत आ गई। ख़ुदा ने फ़ैसला किया कि ऐसा हमारे ख़ुदावंद येसू मसीह के आने के वसीले सब चीज़ों की बहाली से पहले अमल में वाक़ेअ हो। और ऐसा उस ख़राबी के नतीजे में होना था जिसने ज़मीन की हईयत बदल देनी थी। यूं सुकूत के नताइज इस्लाह से पहले देखे जाने थे।
मज़ीद ये कि मूसा नबी की आमद से पहले जनाब मसीह की आमद मुनासिब ना होती, क्योंकि लोगों ने उमूमी तौर पर ख़ुदा तआला के ख़िलाफ़ पूरी तरह से बग़ावत ना की थी। बाअल्फ़ाज़-ए-दीगर, वो सब के सब बुत-परस्ती की तारीकी में ना थे।
ग़ालिबन मसीह की तूफ़ान-ए-नूह से पहले या उस के फ़ौरन बाद ना आने की वजूहात में से एक वजह ये है कि ख़ुदा तआला आदम से अपने कलाम के मुताबिक़ ज़मीन को लोगों से भरा हुआ देखना चाहता था। (पैदाईश 1:28)
बाबिली असीरी से पहले मसीह की आमद मुनासिब ना थी क्योंकि शैतान की ममलकत अपनी अज़मत की बुलंदी तक ना पहुंची थी। असीरी से पहले बुत परस्तों की मुमलकतें इतनी बड़ी नहीं थीं। सो ख़ुदा तआला ने इसे मुनासिब समझा कि मसीह तारीख़ की सबसे बड़ी ममलकत के वक़्त में आए। वो ममलकत रूमी सल्तनत थी जो इस दुनिया में शैतान की दीदनी बादशाहत थी। इस अज़ीम ममलकत पर अपने ग़लबे से मसीह ने शैतान की बादशाहत को जो अपनी क़ुव्वत व अज़मत की बुलंदी पर थी शिकस्त देनी थी।
अहम बात ये है "इब्तिदा में ...कलाम ख़ुदा के साथ था और कलाम ख़ुदा था” जब वक़्त पूरा हो गया तो वो आया कि “इम्मानूएल...ख़ुदा हमारे साथ” होता कि हमारा फ़िद्या व कफ़्फ़ारा दे सके। आँखों ने उसे देखना था, कानों ने उसे सुनना था, और हाथों ने उसे छूना था। वो “फ़ज़्ल और सच्चाई से मामूर हो कर हमारे दर्मियान रहा” और आँखों ने उस का “जलाल” देखना था” “बाप के इकलौते का जलाल।” वो जो उस पर ईमान लाए उन्हों ने उस की मामूरी में से पाया यानी फ़ज़्ल पर फ़ज़्ल। मुजस्सम कलाम सबसे बड़ा ज़हूर था जिससे ख़ुदा ने अपने आप को नस्ल-ए-इन्सानी पर ज़ाहिर किया। ख़ुदा तआला ने ना सिर्फ अपनी क़ुव्वत व अज़मत को ज़ाहिर किया बल्कि उस ने इन्सानों पर अपनी मुहब्बत व शफ़क़त भरे दिल और अपनी रहमत व तरस को भी ज़ाहिर किया।
हाँ, यूं मशीयत इलाही पूरी हुई। इस से पहले कि नजात की किरनें इम्मानूएल (ख़ुदा हमारे साथ) के ज़रीये ज़ाहिर होतीं दुनिया को कुछ अर्से के लिए इंतिज़ार करना ज़रूर था। लेकिन इस अर्से के दौरान ख़ुदा बशिद्दत इस अफ़सुर्दा व मायूस दुनिया के बारे में फ़िक्रमंद था।
तारीख़ हमें बताती है कि मसीह के तजस्सुम के वक़्त दुनिया में तीन बाअसर अक़्वाम थीं यूनानी, रूमी और यहूदी। यूनानी ताअलीम-याफ़्ता और मुहज़्ज़ब थे, रूमी मज़्बूत और क़ुव्वत के मालिक थे और यहूदी ख़ुदा तआला की शरीअत के निगहबान थे। इन तीन अक़्वाम ने ना जानते हुए मसीह के रास्ते की तैयारी में तआवुन किया। हम ईमान रखते हैं कि ये ग़ैर-इरादी तआवुन तदबीर इलाही की वजह से था ताकि वो जो “ख़ुदावंद के नाम में” आने को था उस का रास्ता तैयार हो।
सबसे पहले, ख़ुदा ने रोमीयों को राह की तैयारी में इस्तिमाल किया कि वो दुनिया के मुहज़्ज़ब हिस्सों को इखट्ठा करें और हर तरफ़ अमन क़ायम करें। इस से पहले, चोरों और डाकूओ के गिरोह हर तरफ़ दनदनाते फिरते और तबाही फैलाते थे और सर-ज़मीन मुक़द्दस में सामने आने वाली किसी भी ख़बर के लिए उस इलाक़े से निकल कर दूसरे इलाक़ों में फैलना नामुम्किन था।
इसी तरह, मसीह के लिए राह की तैयारी में यूनानियों ने नादानिस्तगी में अपनी ख़ूबसूरत और लचकदार ज़बान को फैलाने से अपना हिस्सा अदा किया, यूनानी ज़बान उस वक़्त सारी सल्तनत में बड़ी और सरकारी ज़बान थी। वो ज़बान मुतमद्दिम दुनिया के तमाम हिस्सों तक इन्जील के फैलाओ के लिए एक ज़बरदस्त ज़रीया थी।
जहां तक यहूदीयों का ताल्लुक़ है जो तमाम दुनिया में फैले हुए थे, वो अपने साथ अपने मुक़द्दस सहीफ़े लेकर गए क्योंकि मूसा नबी ने उन्हें हुक्म दिया था कि हर हफ्ते (सबत) के दिन अपनी जमाअत में उन्हें पढ़ें।
इन अहम तरीन अवामिल में से एक जिन्हों ने इन क़ौमों तक पहुंचने में मदद की, किताब-ए-मुक़द्दस का यूनानी ज़बान में तर्जुमा था, जिसने ग़ैर-अक़्वाम को इस क़ाबिल बनाया कि वो मसीह के आने के बारे में नबुव्वतों को देख सकें और उसे क़ुबूल करने के लिए तैयार हों। ये हक़ीक़तन एक मोअजिज़ा था कि इन सब अक़्वाम ने जाने बग़ैर ख़ुदावंद की राह को तैयार किया।
सबसे अनोखी बात, मसीह की आमद से पहले यहूदी क़ौम का बशिद्दत इंतिज़ार था। उलमा की राय ये है कि ये इंतिज़ार मुकाशफ़ा मुनक़ते किए जाने के तक़रीबन पाँच सदीयों पर मुहीत अर्से की वजह से था। एक फ़र्द शायद इन हालात में लोगों के भूल जाने और उन की उम्मीदों के कमज़ोर पड़ जाने की तवक़्क़ो करता हो। लेकिन ऐसा ना हुआ, क्योंकि वो बड़ी शिद्दत से क़ौमों की उम्मीद के मुंतज़िर थे।
इस में कोई शक नहीं कि ग़ैर-अक़्वाम जिन्हों ने किताब-ए-मुक़द्दस को पढ़ा, वो भी यहूदीयों के साथ इस इंतिज़ार में शरीक हुईं। इस बात का सबूत अर्ज़-ए-मुक़द्दस में उन मजूसियों की आमद से मिलता है जो बैत-लहम की चरनी में बच्चे येसू को अक़ीदत से देखने के लिए आए।
ये क़ाबिल ज़िक्र है कि जब कलाम बैत-लहम की चरनी में मुतजसद हुआ, तो कुछ इंतिहाई अहम वाक़ियात रौनुमा हुए जिन्हों ने ख़ुदावंद के मुंतज़िर अफ़राद के दिलों में उम्मीद को ज़िंदा किया। वो वाक़ियात ये हैं :-
(अ) नबुव्वत और मुकाशफ़ा की रूह की वापसी जो मलाकी नबी के बाद से मौक़ूफ़ थी। नबियों को इलक़ा करने वाला मौजूद था, ये नेअमत बहाल हुई जो सबसे पहले ज़करीयाह काहिन, फिर इलिशबा, फिर कुँवारी मर्यम, फिर यूसुफ़, बूढ़े शमऊन, हन्ना नबियाह, और आख़िर में यूहन्ना इस्तिबाग़ी में नज़र आती है।
(ब) वो अज़ीम ख़ुशी जो आस्मान व ज़मीन पर हुई। आस्मान के फ़रिश्ते गाते हुए उतरे “आलम-ए-बाला पर ख़ुदा की तम्जीद हो और ज़मीन पर उन आदमीयों में जिनसे वो राज़ी है सुलह।” (लूक़ा 2:14) आस्मान और ज़मीन के रहने वाले कलमा के तजसद का इंतिज़ार कर रहे थे क्योंकि वो ख़ुदा की तैयार कर्दा मख़लिसी के वादों को जानते थे।
(ज) बच्चे येसू का हैकल में दाख़िला। इस से हज्जी नबी की नबुव्वत पूरी हुई “मैं सब क़ौमों को हिला दूँगा और उन की मर्ग़ूब चीज़ें आयेंगी और मैं इस घर को जलाल से मामूर करूँगा रब्बु अफ़वाज फ़रमाता है। चांदी मेरी है और सोना मेरा है रब्बु-अफ़वाज फ़रमाता है। इस पिछले घर की रौनक पहले घर की रौनक से ज़्यादा होगी रब्बु-अफ़वाज फ़रमाता है और मैं इस मकान में सलामती बख्शूंगा रब्बु-अफ़वाज फ़रमाता है।” (हज्जी 2:7-9)
सवाल 10
मसीहिय्यत से पहले तस्लीस का तसव्वुर फ़ारस, यूनान, रुम, हिन्दुस्तान, चीन और मिस्र की बुत-परस्त दुनिया में मौजूद था। इस का राज़ क्या है?
जवाब :
(अ) क़दीम मिस्री तीन ख़ुदाओ को मानते थे जो ओसीरस, आइसस और होरस थे लेकिन ये एक नहीं बल्कि तीन देवता थे।
(ब) इसी तरह, हिंदू ईमान रखते थे कि एक सादा देवता का जोहर मौजूद था जो अपनी ज़ात से वाक़िफ़ ना था, और किसी भी तरह की सिफ़ात से महरूम था। उसे ज़ाहिर करने के लिए और दूसरों से बरतर होने के लिए तीन देवता उस में से निकले। पहला देवता ब्रह्मा, ख़ालिक़ और हर शैय की अस्ल था। दूसरा देवता विष्णु, हर शैय का मुहाफ़िज़ था। तीसरा देवता शिवा तबाह करने वाला था।
(ज) अहले-फ़ारस दो बड़े ख़ुदाओ को मानते थे पहला ख़ुदा अहूरामज़दा था। वो अच्छाई का ख़ुदा था। दूसरा ख़ुदा अहरमन था। वो बदी का ख़ुदा था। वो कहते थे कि तमाम अच्छाई और रुहानी चीज़ें अच्छाई के ख़ुदा से सादिर होती हैं जबकि हर बदी और माद्दी चीज़ बदी के ख़ुदा से सादिर होती है। और चूँकि उन्हों ने देखा कि दोनों में कश्मकश मुसलसल मौजूद है इसलिए उन्हों ने कहा कि ये दोनों ख़ुदा अज़ली और मुसावी हैं, और एक का दूसरे पर ग़ालिब आना नामुम्किन है।
किसी भी तरह से मसीही तस्लीस का इन बुत पुरसताना अक़ाइद के साथ कोई ताल्लुक़ नहीं है। और उन के तसव्वुर में कुछ भी ऐसा नहीं जो तस्लीस की नफ़ी करता हो। मसलन, नाम “अल्लाह इस्लाम से पहले मौजूद था, लेकिन ये हक़ीक़त क़ुरआन के लिए एक मुश्किल पैदा नहीं करती। क़ब्ल अज़ इस्लाम के अरबों ने अपनी नज़मों और तहरीरों में इसे इस्तिमाल किया है। क्या ये क़ुरआन की एहमीय्यत को कम कर देता है कि बुत-परस्तों के वक़्तों की मख़्सूस बातों का मुसलमानों को हुक्म दिया गया? इसी तरह हज, उमरा, वक़ूफ़ अर्फ़ात, मुज़दल्फ़ा जाना, रमी और जुमरात, और हज्र-ए-असवद को बोसा देना ये सब क़ब्ल अज़ इस्लाम बुत परस्तों के शाइर (निशानी) थे।
आप अल-इसरा व अल-मअराज के वाक़े के बारे में क्या कहेंगे? क़ब्ल अज़ इस्लाम की ज़रतुश्त की मज़्हबी किताबों में इसी तरह के वाक़ियात बयान हैं। या फिर क्या ये इस्लाम को कमज़ोर करता है कि इस से पहले यहूदी मज़्हब में वहदानियत का अक़ीदा पाया जाता था?
सवाल 11
इस बात का कोई सबूत नहीं कि शागिर्द जो मसीह के ज़माने में थे और जिन्हों ने उस की पैरवी की वो उस की उलूहियत पर ईमान रखते थे। क्या आप मसीह को शागिर्दों से ज़्यादा बेहतर जानते हैं?
जवाब :
नया अहदनामा हमें बताता है कि येसू ने अपने सऊदे आस्मानी से पहले अपने शागिर्दों को इखठ्ठा किया और उन से कहा “ये मेरी वो बातें हैं जो मैंने तुमसे उस वक़्त कही थीं जब तुम्हारे साथ था कि ज़रूर है कि जितनी बातें मूसा की तौरेत और नबियों के सहीफ़ों और ज़बूर में मेरी बाबत लिखी हैं पूरी हों। फिर उस ने उनका ज़हन खोला ताकि किताब-ए-मुक़द्दस को समझें। और उन से कहा यूं लिखा है कि मसीह दुख उठाएगा और तीसरे दिन मुर्दों में से जी उठेगा। और यरूशलेम से शुरू कर के सब क़ौमों में तौबा और गुनाहों की माफ़ी की मुनादी उस के नाम से की जाएगी। तुम इन बातों के गवाह हो। और देखो जिसका मेरे बाप ने वाअदा किया है मैं उस को तुम पर नाज़िल करूँगा लेकिन जब तक आलम-ए-बाला से तुमको क़ुव्वत का लिबास ना मिले इस शहर में ठहरे रहो। फिर वो उन्हें बैत-अन्याह के सामने तक बाहर ले गया और अपने हाथ उठा कर उन्हें बरकत दी। जब वो उन्हें बरकत दे रहा था तो ऐसा हुआ कि उन से जुदा हो गया और आस्मान पर उठाया गया। और वो उस को सज्दा कर के बड़ी ख़ुशी से यरूशलेम को लौट गए। और हर वक़्त हैकल में हाज़िर हो कर ख़ुदा की हम्द किया करते थे। (लूक़ा 24:44-53)
लूक़ा की इन्जील की इन इख़ततामी आयात के मुताबिक़ हम देखते हैं कि शागिर्दों ने मसीह के रुख़्सत होने पर उस की परस्तिश की। किताब-ए-मुक़द्दस में बहुत से ऐसे हवालेजात भी मौजूद हैं जहां शागिर्द इन्फ़िरादी तौर पर मसीह की उलूहियत पर ईमान लाए।
(अ) यूहन्ना इन्जील नवीस की गवाही
“इब्तिदा में कलाम था और कलाम ख़ुदा के साथ था और कलाम ख़ुदा था। यही इब्तिदा में ख़ुदा के साथ था। सब चीज़ें उस के वसीले से पैदा हुईं और जो कुछ पैदा हुआ है उस में से कोई चीज़ भी उस के बग़ैर पैदा नहीं हुई। उस में ज़िंदगी थी और वो ज़िंदगी आदमीयों का नूर थी।” (यूहन्ना 1:1-4) “ख़ुदावंद ख़ुदा जो है और जो था और जो आने वाला है यानी क़ादिर-ए-मुतलक़ फ़रमाता है कि मैं उल्फ़ा और ओमेगा हूँ।” (मुकाशफ़ा 1:8)
(ब) तोमा की गवाही
“आठ रोज़ के बाद जब उस के शागिर्द फिर अन्दर थे और तोमा उन के साथ था और दरवाज़े बंद थे येसू ने आकर और बीच में खड़ा हो कर कहा तुम्हारी सलामती हो। फिर उस ने तोमा से कहा अपनी उंगली पास ला कर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ पास ला कर मेरी पिसली में डाल और बे-एतिक़ाद ना हो बल्कि एतिक़ाद रख। तोमा ने जवाब में उस से कहा, ऐ मेरे ख़ुदावंद ऐ मेरे ख़ुदा!” (यूहन्ना 20:26-28)
(ज) पतरस की गवाही
“पस येसू ने उन बारह से कहा क्या तुम भी चले जाना चाहते हो? शमऊन पतरस ने उसे जवाब दिया ऐ ख़ुदावंद हम किस के पास जाएं? हमेशा की ज़िंदगी की बातें तो तेरे ही पास हैं।” (यूहन्ना 6:67-68)
“उस ने तीसरी बार उस से कहा, ऐ शमऊन यूहन्ना के बेटे क्या तू मुझे अज़ीज़ रखता है? चूँकि उस ने तीसरी बार उस से कहा क्या तू मुझे अज़ीज़ रखता है, इस सबब से पतरस ने दिलगीर हो कर उस से कहा, ऐ ख़ुदावंद तू तो सब कुछ जानता है। तुझे मालूम ही है कि मैं तुझे अज़ीज़ रखता हूँ। येसू ने उस से कहा तू मेरी भेड़ें चरा।” (यूहन्ना 21:17)
(द) पौलुस की गवाही
“और क़ौम के बुज़ुर्ग उन ही के हैं और जिस्म के रूह से मसीह भी उन ही में से हुआ जो सब के ऊपर और अबद तक खुदा-ए-महमूद है।” (रोमीयों 9:5)
सवाल 12
तौरेत बयान करती है, “क्योंकि जिसे फांसी मिलती है वो ख़ुदा की तरफ़ से मलऊन है।” (इस्तिस्ना 21:23) आप अपने गले में सलीब डाल कर फ़ख़्र करते हैं। हम कहते हैं कि मसीह आपके तमाम दावों से पाक है। वो मस्लूब नहीं हुआ था। हम मुत्तफ़िक़ कब होंगे?
जवाब :
(अ) तौरेत बिल्कुल सही है। जनाब मसीह सलीब पर मस्लूब हुए ताकि इन सबकी लानत को दूर कर सकें जो शरीअत (तौरेत) की किताबों में मज़्कूर बातों पर अमल करने में नाकाम हुए।
(ब) एक मसीही अपनी गर्दन में सलीब डालने से फ़ख़्र का इज़्हार करता है। जो कुछ पौलुस ने फ़रमाया उस को सुनें “लेकिन ख़ुदा ना करे कि मैं किसी चीज़ पर फ़ख़्र करूँ सिवा अपने ख़ुदावंद येसू मसीह की सलीब के जिससे दुनिया मेरे एतबार से मस्लूब हुई और मैं दुनिया के एतबार से।” (ग़लतीयों 6:14)
(ज) मसीह की मौत एक हक़ीक़त है जो अम्बिया की नबुव्वतों और शागिर्दों की गवाहियों पर मबनी है, शागिर्दों ने उसे मरते हुए देखा और उस के जी उठने के बाद भी उसे देखा। तारीख़ भी इस हक़ीक़त की एक गवाह है। अगर हम रसूलों की इल्हामी तहरीरों का बग़ौर जायज़ा लें तो हमें पता चलेगा कि इन्जील जिसकी आग़ाज़-ए-मसीहिय्यत से मुनादी की गई उसे लाखों लोगों ने क़ुबूल किया और नजात पाई। नया अहदनामा ख़ुशख़बरी (इन्जील) को बयान करता है। पौलुस ने इस बारे में बयान किया “अब ऐ भाइयो मैं तुम्हें वही ख़ुशख़बरी जताए देता हूँ जो पहले दे चुका हूँ जिसे तुमने क़ुबूल भी कर लिया था और जिस पर क़ायम भी हो। उसी के वसीले से तुमको नजात भी मिलती है बशर्ते के वो ख़ुशख़बरी जो मैंने तुम्हें दी थी याद रखते हो वर्ना तुम्हारा ईमान लाना बेफ़ाइदा हुआ। चुनान्चे मैंने सबसे पहले तुमको वही बात पहुंचा दी जो मुझे पहुंची थी कि मसीह किताब-ए-मुक़द्दस के मुताबिक़ हमारे गुनाहों के लिए मुआ। और दफ़न हुआ और तीसरे दिन किताब-ए-मुक़द्दस के मुताबिक़ जी उठा।” (1-कुरिन्थियों 15:1-4)
दुनिया में इन्जील के फैलाओ के तक़रीबन पाँच सौ (500) साल बाद एक आदमी आया जिसने इस बाइबली हक़ीक़त की मुख़ालिफ़त की और उसे क़ुबूल करने से इन्कार किया कि जैसे वो तमाम दुनिया के मसीहियों से कह रहा है “तुम ग़लत हो। तुम्हारी किताब और तुम्हारे दीन में ग़लती है।”
सलीब के मौज़ू को मद्द-ए-नज़र रखते हुए मैं सोच रहा था कि आपको वो सब दिखाऊँ जो पुराने अहदनामा के अम्बिया और मसीह के शागिर्दों ने और ख़ुद मसीह ने अपने बारे में मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर) किया। मैं आपको तारीख़ दानों के पास भी लेकर जाना चाहता था और जो कुछ आँखों देखे गवाहों ने कहा उस से भी मुतआरिफ़ करवाना चाहता था। लेकिन मैंने इसे ग़ैर-ज़रूरी पाया क्योंकि आलम समावी तमाम किताबों के साथ जो हमें दी गईं, और आलम अर्ज़ अपने तमाम तारीख़ी इंदिराज के साथ मस्लुबियत की गवाही देता है।
(द) आपके सवाल के आख़िरी हिस्से से मुताल्लिक़ में कहना चाहूँगा कि नया अहदनामा हमें आगाह करता है कि जब येसू ने यहूदीयों तक अपनी दावत पहुंचाई तो कहा, “जो कुछ बाप मुझे देता है मेरे पास आ जाएगा और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं हरगिज़ निकाल ना दूँगा।” (यूहन्ना 6:37) आपने ये भी फ़रमाया “क़ियामत और ज़िंदगी तो मैं हूँ। जो मुझ पर ईमान लाता है गो वो मर जाये तो भी ज़िंदा रहेगा।” (यूहन्ना 11:25)
येसू के पास आने का मतलब है उसे शख़्सी नजातदिहंदा के तौर पर क़ुबूल करना, कि नजात उस फ़िद्ये व कफ़्फ़ारे के ज़रीये है जो उस ने सलीब पर दिया। येसू पर ईमान रखने में उस की उलूहियत पर ईमान रखना शामिल है। अगर आप वाक़ई इस से मुत्तफ़िक़ हैं तो आएं हम इन अल्फ़ाज़ को दोहराएँ जो यरूशलेम के रहने वालों ने उस वक़्त गाए जब येसू सलामती के शाहज़ादे के तौर पर यरूशलेम में तशरीफ़ लाया “मुबारक है वो जो ख़ुदावंद के नाम पर आता है।” (मत्ती 21:9)
फिर हम मख़लिसी याफ्ता अफ़राद के बड़े गिरोह के साथ ये कहते हुए मख़लिसी के गीत में शामिल हो सकते हैं, “जो हमसे मुहब्बत रखता है और जिसने अपने ख़ून के वसीले से हमको गुनाहों से ख़लासी बख़्शी। और हमको एक बादशाही भी और अपने ख़ुदा और बाप के लिए काहिन भी बना दिया। उस का जलाल और सल्तनत अबदुल-आबाद रहे। आमीन।” (मुकाशफ़ा 1 5-6)
सवालात
किताब “सच्चाई की फ़त्ह के सवालात हल कीजिए। अब जबकि आपने इस किताब का मुतालआ किया है, हम आपको दावत देते हैं कि मुन्दरिजा ज़ैल सवालात के जवाब दें और अपने जवाबात हमें भजें :-
1. मसीही तालीमात के मुताबिक़ ईमान की तारीफ़ क्या है?
2. क्या इन्सानी अक़्ल ग़ैब का इदराक कर सकती है?
3. ईमान की तारीफ़ में कुछ मिसालें बयान कीजिए।
4. सूरह माइदा 5:116 में किस बिद्अत का ज़िक्र किया गया है?
5. येसू की अपने बारे में गवाही की मिसालें दीजिए।
6. ख़ुदा बाप ने कैसे बेटे मसीह के बारे में गवाही दी?
7. मसीह के बारे में रसूलों की गवाही की ख़ुसूसीयत क्या है?
8. मसीही तालीमात के मुताबिक़ रूह-उल-क़ुद्स कौन है?
9. मसीही कफ़्फ़ारे की क्या बुनियाद है?
10. किताब-ए-मुक़द्दस के मुतालआ से हम क्या सीखते हैं?
11. क्या कोई गुनाह के बग़ैर पैदा हुआ है? किताब-ए-मुक़द्दस इस बारे में क्या कहती है?
12. येसू नाम का क्या मतलब है? क्या इस का ताल्लुक़ गुनाह के साथ है?
13. क्या नजात इत्तिफ़ाक़ी अम्र है या ये ख़ुदा का अबदी मन्सूबा है?
14. ख़ुदा तआला ने इन्सान अव़्वल को किस की सूरत पर तख़्लीक़ किया?
15. आदम और हवा किस तरह शैतान की आज़माइश में गिर गए?
16. ज़बूर 14 और यर्मियाह 17 की किस आयत का किताब में ज़िक्र किया गया है?
17. गुनाह की मज़दूरी क्या है?
18. कब पहली बार खु़दा ने कफ़्फ़ारा देने वाली क़ुर्बानी का तक़ाज़ा किया?
19. तमाम क़ुर्बानीयों का तक़ाज़ा करने में ख़ुदा का क्या मक़्सद था?
20. तमाम क़ुर्बानीयों की हतमी अलामत क्या है?
21. मसीही ताअलीम में तजस्सुम का क्या मतलब है और इस का मक़्सद क्या है?
22. मसीही ताअलीम में कफ़्फ़ारे का क्या मतलब है?
23. क्या हमें तौरेत में सालूस में वहदानियत का कोई इशारा मिलता है? कोई एक मिसाल दें।
24. अथनासीस के अक़ीदे का ख़ुलासा क्या है?
25. क्या वो तस्लीस जिसका इस्लाम ने मुक़ाबला किया हक़ीक़ी मसीही तस्लीस है?
26. फ़ल्सफ़ी और उलमा-ए-इस्लाम तस्लीस के अक़ीदे के बारे में क्या राय रखते हैं?
इस किताब में दिए गए सवालात और उन के जवाबात के बारे में आपकी क्या राय है।