ग़ैर-विलायतों में, अव़्वल मुल्क यहूदिया में, इस मज़्हब की बिना मह्ज़ मुहब्बत और हिल्म (नर्मी, फिरोतनी) पर रखी गई है। इस के बानी ने जबकि वो इस छोटे से मुल्क में ज़ाहिर हुआ अवाम की बेहतरी और बहबूदी के दरपे हो कर अपने आराम का ख़याल ना कर के मुहब्बत की राह से हर तरह से औरों के आराम देने के ख़याल में मशग़ूल रहा। और मुहब्बत की कशिश से पहले बारह शागिर्द बनाए।
Fruit of Christian Religion
ईसाई मज़्हब का फल
By
J. S
जे॰ ऐस॰
Published in Nur-i-Afshan May 11, 1894
नूर-अफ्शाँ मत्बूआ 11 मई 1894 ई॰
ग़ैर-विलायतों में, अव़्वल मुल्क यहूदिया में, इस मज़्हब की बिना मह्ज़ मुहब्बत और हिल्म (नर्मी, फिरोतनी) पर रखी गई है। इस के बानी ने जबकि वो इस छोटे से मुल्क में ज़ाहिर हुआ अवाम की बेहतरी और बहबूदी के दरपे हो कर अपने आराम का ख़याल ना कर के मुहब्बत की राह से हर तरह से औरों के आराम देने के ख़याल में मशग़ूल रहा। और मुहब्बत की कशिश से पहले बारह शागिर्द बनाए।
और फिर और भी उसकी अजीब मुहब्बत और उम्दा ताअलीम देख और सुन कर उस पर ईमान ले आए और वो ख़ुद एक गुमनाम और ग़रीबी की हालत में था और अपने शागिर्द भी मछेरे और कम-क़द्र लोग चुने। लेकिन बावजूद ऐसी बातों के वो इस क़द्र दिलेर और ईमानदार हो गए कि उन्हों ने तमाम दुनिया को अपनी ताअलीम से भर दिया। अजीब व ग़रीब करिश्मे उन से ज़ाहिर हुए। उन की चाल व चलन रफ़्तार व गुफ़तार (चाल चलन व तौर तरीक़ा) आला दर्जे के और बेलौस हो गए। हत्ता कि उन्हों में से अक्सरों ने अपनी जानों को भी अज़ीज़ ना जाना। और अपने नफ़ा और फ़ायदे के तमाम कामों को छोड़कर दूसरों की जानों की नजात के लिए मुतफ़क्किर हो कर हर तरह की सऊबतें व तकलीफ़ें (मुश्किलें) जिनका उन को सामना पड़ा सब्र से बर्दाश्त करते थे। और बहुत उन में से शहीद हो गए। और उन के बाद भी मसीही इस मुल्क में ऐसे ही सरगर्म और मज़्बूत हुए, जिन्हों ने अपनी जानें निसार कर डालीं। और इस मुल्क से निकल कर और मुल्कों में बशारत फैलाई। और नजात की बरकत-ए-अज़ीम दूसरों तक पहुंचाई। यूरोप के लोगों ने भी इस ख़ुशख़बरी को क़ुबूल कर लिया। और जब से उन्हों ने इस को क़ुबूल किया उसी वक़्त से उन्हें हर सूरत से तब्दीली वाक़ेअ हुई। और उन में ईसाई मज़्हब का फल ज़ाहिर हुआ, कि मसीही मुहब्बत ने उन के दिलों को इन्सानी हम्दर्दी से भर दिया और उन्हों ने दूसरे मुल्कों में कलाम पहुंचाया। मुल्क अमरीका में भी ये कलाम फैल गया और उस दिन से नुमायां तरक़्क़ी हर अम्र में हुई। और वो लोग ख़ुद इस से मुस्तफ़ीज़ (फ़ैज़याब हुए) हुए। और वहां से दूसरे मुल्कों में ख़ुशख़बरी पहुंचाने का सबब हुए। मुल्क हिन्दुस्तान में इस मुल्क की हालत बा सबब बुत-परस्ती और बातिल परस्ती के निहायत अबतर (निहायत बुरी) हो रही थी। गोया कि ये मुल़्क नीम-वहशी हो रहा था। हिन्दुवों में कैसे-कैसे बुरे दस्तुरात फैले हुए थे। और ऐसे ही मुसलमानों में। लेकिन मसीही मज़्हब ने उन के नाजायज़ होने को बख़ूबी वाज़ेह कर दिखलाया। और अपनी सदाक़त का सबूत ऐसी उम्दगी और सफ़ाई के साथ दिया कि तमाम मुख़ालिफ़-ए-मसीही मज़्हब की अफ़्ज़ल और आला ताअलीमात से दंग और हैरान हैं। पर अफ़्सोस कि बावजूद इस के, कि क़ाइल होते और मान लेते हैं। मगर तो भी बग़ावत का झंडा खड़ा रखते और मसीहीयों की मुख़ालिफ़त और मसीही मज़्हब की निस्बत कलिमात नाजायज़ बोलने और तहरीर करने से मुताल्लिक़ दरेग़ नहीं करते। पर ये भी देखा जाता है कि अक्सर औक़ात जब कभी इत्तिफ़ाक़ पड़ता है तो ख़्वाह-मख़्वाह अच्छे-अच्छे ताअलीम-ए-याफ्ता लोगों की ज़बानों से बे-तक्लीफ़ निकल जाता है कि “इन्जील की ताअलीम उम्दा है, और यसूअ मसीह अच्छे पुरुष (आदमी) थे।” और जिन लोगों ने सच्चे दिल से मसीही मज़्हब को इख़्तियार किया है उन में मसीही मज़्हब का फल अच्छी तरह से ज़ाहिर होता है। उन की चाल चलन रफ़्तार व गुफ़तार साफ़ तौर से वाज़ेह करती है कि वो इस मज़्हब की ताअलीमात से मोअस्सर हो कर उस के फ़ाइदों से मुस्तफ़ीज़ हुए हैं। मुन्दरिजा ज़ैल फ़ायदे सच्चे मसीहीयों को दीन-ए-ईस्वी से पहुंचे हैं,
1. बुत-परस्ती से बच कर ख़ुदापरस्त बन गए।
2. वहमात (वहम की जमा) परस्ती और हर तरह के बुरे शुगून और बुरी रसूमात को मानने से छूट गए हैं।
3. फ़ुज़ूल अख़राजात (खर्चे) से बच गए हैं।
4. दीगर मज़ाहिब वाले हर क़िस्म के कामों में बा सबब बुत-परस्ती और बातिल ख़यालात के ज़र कसीर (बहुत रुपया) ख़र्च करते हैं लेकिन मसीही किसी क़िस्म की ऐसी फ़ुज़ूल कारवाई को रवा नहीं रखते।
5. दिली आराम और तसल्ली पाते हैं जो अक्सर दीनदार मसीहीयों की वफ़ात के वक़्त मुशाहिदे में आ चुकी है। और मौत से गुज़र कर ज़िंदगी में दाख़िल हुए हैं।
6. और आइन्दा आलमे बका में हमेशा की ज़िंदगी और तमाम नेअमतें आस्मानी और रुहानी उन को मिलेंगी जिनसे दीगर अक़्वाम महरूम रहेंगी।
पस जब इस दरख़्त में क़ायम होने से इतने फ़ायदे मिलते हैं तो क्यों इस में पैवंद (जुड़ना) ना हों? काश कि लोग ग़फ़लत की नींद से जागें और झूटे मज़ाहिब को कि जिनकी पैरवी करने से कुछ हासिल नहीं छोड़ दें और सच्चे मज़्हब में क़ायम हो कर मेवादार शाख़ बनें। ताकि आख़िरकार शर्मिंदा ना हों बल्कि दीन व दुनिया दोनों में इकबालमंद हों और हमेशा की ज़िंदगी के वारिस हो जाएं।
राक़िम
जे॰ ऐस॰