बहुत मोअजज़े दिखाता है

“ये मर्द बहुत मोअजज़े दिखाता है।” (युहन्ना 11:47) ज़रूर नहीं कि लफ़्ज़ मोअजिज़ा की तशरीह की जाये क्योंकि ये लफ़्ज़ ऐसा आम हो गया है कि हर एक मज़्हब व मिल्लत के लोग बख़ूबी तमाम जानते और समझते हैं कि मोअजिज़ा क्या है। अगरचे मोअजिज़ा को ग़ैर-मुम्किन व मुहाल जानने वाले हर ज़माने और हर मुल्क में होते आए हैं। लेकिन ये ख़्याल इन्सानी तबीयत में क़ुदरती ऐसे तौर

This man is performing a lot of miracles

बहुत मोअजज़े दिखाता है

By

One Disciple

एक शागिर्द’

Published in Nur-i-Afshan June 4, 1891

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 4 जून 1891 ई॰

“ये मर्द बहुत मोअजज़े दिखाता है।” (युहन्ना 11:47) ज़रूर नहीं कि लफ़्ज़ मोअजिज़ा की तशरीह की जाये क्योंकि ये लफ़्ज़ ऐसा आम हो गया है कि हर एक मज़्हब व मिल्लत के लोग बख़ूबी तमाम जानते और समझते हैं कि मोअजिज़ा क्या है। अगरचे मोअजिज़ा को ग़ैर-मुम्किन व मुहाल जानने वाले हर ज़माने और हर मुल्क में होते आए हैं। लेकिन ये ख़्याल इन्सानी तबीयत में क़ुदरती ऐसे तौर पर जमा हुआ है कि कोई उस को मिटा नहीं सकता। इस में शक नहीं अगर ख़ुदा की हस्ती को तस्लीम करते तो कोई वजह-मुवज्जह मोअजिज़ा को तस्लीम ना करने की क़ियास में नहीं आती। नेचरलिस्ट (फ़ित्रत को मानने वाले) और मटीरिएलिस्ट (माद्दे को मानने वाले) वग़ैरह सिर्फ उन्हीं चीज़ों को जो उन की महदूद अक़्ल और नज़र में आ सकती हैं क़ुबूल करते। और अगर ब-मज्बूरी और शर्मा-शर्मी ख़ुदाई हस्ती के क़ाइल भी हों, तो ऐसे ख़ुदा के हैं। जो नेचर में दस्त अंदाज़ी और तग़य्युर पैदा करने की क़ुदरत हरगिज़ ना रखता हो। मख़्लूक़ को फ़ौक़-उल-ख़लक़त कामों का समझना निहायत ही मुश्किल और ग़ैर-मुम्किन के क़रीब है। लेकिन जब कि वो ख़ालिक़ की क़ुदरत बेहद का मग़्लूब हो जाता, तो अगरचे उस का मुअतक़िद (अक़ीदतमंद) व मुअ़तरिफ़ ईमान सादिक़ और मुहब्बत वासिक़ से ना हो। ताहम मज्बूरी के बाइस उन फ़रीसयों और सरदार काहिनों की मानिंद जिन्हों ने ख़ुदावंद के जलाली और सरीह एजाज़ी कामों को देखकर बेसाख़्ता कहा कि, “ये मर्द बहुत मोअजज़े दिखाता है।”

तूँदकरहन (चार व नाचार) बजुज़ इक़रार हक़ीक़त और क्या कह सकता है। मसीह ख़ुद मोअजज़ों का मोअजिज़ा है। और ब-नतीजा मसीहीय्यत सरासर मोअजिज़ा के सिवा और कुछ नहीं। अगर हम ख़ुदा को वाजिब-उल-वजूद जानें और मानें। और मसीह को ईलाही मुअल्लिम और फ़ौक़-उल-ख़लक़त शख़्स। जैसा कि पाक तवारीख़ उस को ज़ाहिर करती है तस्लीम करें, तो उन तमाम माजरों और कामों के, जो उस की ज़िंदगी और ताअलीम से मुताल्लिक़ हैं इन्कार करने की कोई माक़ूल वजह हरगिज़ क़ियास में नहीं आ सकती।

दरहालेका मुवाफ़िक़ व मुख़ालिफ़, आलिम व जाहिल, ख़ास व आम, उस के एजाज़ी कामों के मुक़र हैं। तो मसीहीयों के लिए कोई मुश्किल और मुक़ाम शक मुतलक़ नहीं है कि मसीही मोअजज़ात मुंदरजा अनाजील को हक़ और सही जानें।

अब हम इस मुआमले में ज़्यादा लिखना नहीं चाहते। और अपने वाअदे के मुवाफ़िक़ नंबर हज़ा से “मसीही मोअजज़ात” को सिलसिला-वार लिखना शुरू करते हैं। यक़ीन है कि मसीही नाज़रीन ख़ुसूसुन और ग़ैर-मसीही नाज़रीन उमूमन मज़ामीन मुसलसल को बग़ौर व दिलचस्पी मुतालआ फ़रमाएँगे। हर-चंद ये सब्जेक्ट (मज़्मून) एक दकी़क़ और किस क़द्र दुशवार फ़हम है। ताहम कोशिश की गई है कि वो आम-फहम और सलीस इबारत में तर्जुमा किया जाये। और नाज़रीन को हत्त-उल-इम्कान उस से फ़ायदा मतलूबा हासिल हो।“ये मर्द बहुत मोअजज़े दिखाता है।” (युहन्ना 11:47) ज़रूर नहीं कि लफ़्ज़ मोअजिज़ा की तशरीह की जाये क्योंकि ये लफ़्ज़ ऐसा आम हो गया है कि हर एक मज़्हब व मिल्लत के लोग बख़ूबी तमाम जानते और समझते हैं कि मोअजिज़ा क्या है। अगरचे मोअजिज़ा को ग़ैर-मुम्किन व मुहाल जानने वाले हर ज़माने और हर मुल्क में होते आए हैं। लेकिन ये ख़्याल इन्सानी तबीयत में क़ुदरती ऐसे तौर