ये बात निहायत हैरत-अफ़्ज़ा है, कि दीन[1] मुहम्मदी, जिसमें बनिस्बत दीगर मज़ाहिब-ए-दुनिया के यहूदियत और मसीहिय्यत की अक्सर सदाक़तें और ताअलीमात पाई जाती हैं। और जो इन मज़ाहिब की कुतुब मक़बूला के मिन जानिब अल्लाह होने का मक़र (क़रार करने वाला) है। और अम्बिया-ए-मस्तूरा बाइबल (बाइबल में लिखे हुए नबी) को मुर्सलीन मिनल्लाह
Whom Birth was Spiritual
जिसकी पैदाइश रुहानी थी
By
One Disciple
एक शागिर्द
Published in Nur-i-Afshan Oct 26, 1894
नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 26 अक्तूबर 1894 ई॰
पर जैसा कि इस वक़्त वो, जिसकी पैदाइश जिस्मानी थी। उसे जिसकी पैदाइश रुहानी थी सताता था। वैसा अब भी होता है। (ग़लतीयों 4:29)
ये बात निहायत हैरत-अफ़्ज़ा है, कि दीन[1] मुहम्मदी, जिसमें बनिस्बत दीगर मज़ाहिब-ए-दुनिया के यहूदियत और मसीहिय्यत की अक्सर सदाक़तें और ताअलीमात पाई जाती हैं। और जो इन मज़ाहिब की कुतुब मक़बूला के मिन जानिब अल्लाह होने का मक़र (क़रार करने वाला) है। और अम्बिया-ए-मस्तूरा बाइबल (बाइबल में लिखे हुए नबी) को मुर्सलीन मिनल्लाह (अल्लाह की तरफ़ से रसूल) मान कर उन के तज़किरे बड़ी ताज़ीम व तकरीम (इज़्ज़त व एहतिराम) के साथ करता है। वही मसीहिय्यत का दुनिया में सबसे ज़्यादा दुश्मन, और उस का सख़्त तरीन बदख़वाह और मुख़ालिफ़ है।
ज़माना हाय माज़ी से क़त-ए-नज़र (नज़र-अंदाज करना) कर के हम फ़ी ज़माना इस अम्र का तजुर्बा और मुशाहिदा कर रहे हैं, कि इस को जिस क़द्र हज़ूमत व हसद मसीहिय्यत के साथ है, इस क़द्र किसी दीगर मज़्हब के साथ नहीं है। लेकिन जब हम इस का बाइस दर्याफ़्त (मालूम) करना चाहते तो कुतब मुक़द्दसा से हमें साफ़ मालूम हो जाता है, कि इस का बाइस जिस्म और रूह की मुख़ालिफ़त है। क्योंकि जिस्म की ख़्वाहिश रूह की मुख़ालिफ़त है और रूह की ख़्वाहिश जिस्म की मुख़ालिफ़ और ये एक दूसरे के बर-ख़िलाफ़ हैं। (ग़लतीयों 5:17) और फ़ौरन वो हैरत जो मुहम्मदियत की दोस्त नुमा दुश्मनाना बातों पर ग़ौर करने से वाक़ेअ होती, दूर हो जाती है। अगरचे ये मुख़ालिफ़त जिस्मानी और रुहानी इन्सानों में गुनाह के दुनिया में दाख़िल होने के वक़्त ही से ज़हूर में आई।
जैसा कि क़ाइन और हाबिल के हालात से ज़ाहिर है। मगर इब्राहिम ख़लील-उल्लाह के दो बेटों इस्माईल और इज़्हाक़ की पैदाइश के वक़्त से इस मुख़ालिफ़त का इज़्हार ज़्यादातर साफ़ और वाज़ेह तौर पर हो गया।
चुनान्चे लिखा है, कि “अब्रहाम के दो बेटे थे। एक लौंडी (हाजिरा) से दूसरा आज़ाद (सारा) से। पर वो जो लौंडी से था जिस्म के तौर पर पैदा हुआ। और जो आज़ाद से था सो वाअदे के तौर पर।” (ग़लतीयों 4;22) इन दोनों की बाहमी मुख़ालिफ़त का बयान किताब पैदाइश के 21:9 में यूं लिखा है, “और सारा ने देखा कि हाजिरा मिस्री का बेटा जो वो अब्रहाम से जनी थी ठट्ठे मारता है। तब उसने अब्रहाम से कहा, कि इस लौंडी और इस के बेटे को निकाल दे। क्योंकि इस लौंडी का बेटा मेरे बेटे इज़्हाक़ के साथ वारिस ना होगा।” पस अब्रहाम ने ना सिर्फ सारा के कहने से, बल्कि इलाही हुक्म के बमूजब हाजिरा और उस के बेटे इस्माईल को पानी की एक मश्क और रोटी देकर रुख़्सत कर दिया। वो एक वहशी आदमी था और जैसा ख़ुदा ने फ़रमाया था उस का हाथ सब के, और सब के हाथ उस के बरख़िलाफ़ थे पस अगर बानी इस्लाम इस्माईल की नस्ल से हैं, तो कुछ ताज्जुब की बात नहीं, कि उनके पैरौ (मानने वाले) मसीह और उस के दीन हक़ीक़ी के साथ अपनी मुख़ालिफ़त ज़ाहिर करें। क्योंकि नबुव्वत का पूरा होना ज़रूर है। मगर ये याद रहे, कि उनकी ये मुख़ालिफ़त व ख़सूसत जो राह हक़ और ज़िंदगी के साथ है, उस को ज़रा भी नुक़्सान नहीं पहुंचा सकती। बल्कि इस मुख़ालिफ़ाना तरीक़ से वो ख़ुद अपना नुक़्सान कर रहे हैं। जिसका नतीजा जल्द या बदेर ज़रूर ज़ाहिर होगा। क्योंकि क़वानीन-ए-नेचर हमें सिखाते हैं, “कि पीने की आर पर लात मारना” ख़ुद लात मारने वाले के हक़ में ज़रर रसां (नुक़्सानदेह) होगा जिसके मुताबिक़ सादी शीराज़ी ने भी लिखा है :-
“हर कि बा फ़ौलाद बाज़ू पंजा करो”
“साअद सीमेन ख़ू दर्रा रंजा करो”
जबकि मुहम्मदियत की हक़ से मुख़ालिफ़त का ये हाल है, जिसको कुतब-ए-मुक़द्दसा से बहुत कुछ रोशनी व सदाक़त पहुंची है। तो मज़्हब हनूद (हिंदू) की मुख़ालिफ़त का, जो उन से ज़्यादा फ़ैज़याब नहीं हुआ। क्या हाल होना चाहिए? लेकिन हम देखते हैं, कि बनिस्बत मुहम्मदियों के अहले-हनूद मसीहिय्यत के ज़्यादा तर दुश्मन व मुख़ालिफ़ नहीं हैं और यक़ीन से कह सकते हैं कि कुतुब-ए-हनूद में मसीह की इस क़द्र तारीफ़ व तौसिफ (ख़ूबी बयान करना) बयान की जाती, जैसा कि क़ुरआन में की गई है कि वो रूह-उल्लाह और कलिमतुल्लाह (کلمتہ اللہ) है। और उसकी विलादत बाकरामत (बुजु़र्गी) एजाज़ी (मोअजज़ाना) तौर पर हुई है। और उस में एहया-उल-मौता (मुर्दे में जान डालना) वग़ैरह मोअजज़ात की क़ुद्रत थी। तो अगर वो फ़ौरन मसीह को क़ुबूल ना कर लेते, तो भी इस से और उस के पेरओं से बनिस्बत हाल के ज़्यादा तर उल्फ़त व महब्बत रखते। और बख़िलाफ़ मुहम्मदियों के इस क़द्र मुख़ालिफ़त व अदावत का इज़्हार ना करते।
[1] इस मज़्मून पर हमारे मुअज़्ज़िज़ नाज़रीन में से अगर कोई मुफ़ीद व मुदल्लिल आर्टीकल लिखें तो हम बखु़शी दर्ज अख़्बार करेंगे। (एडीटर)