हम क्या हैं?
हमने कभी अपनी हालत पर ग़ौर ना किया कि “वर्ना हम ज़रूर अपनी ख़ुद ही तारीफ़ कर लेते। हालाँकि ख़ालिक़ एव किब्र ने हमको अशरफ़-उल-मख़्लूक़ात का रुत्बा अता किया। अगर हम अपनी उन आज़माईशी हालतों पर जो हमको इस पुर ज़ाल दहर (मुद्दत-उल-अम्र) की गोद में वाक़ेअ होती हैं। नज़र ताम्मुक़ (गहराई की नज़र) What […]
अल सालूस अल-अक़्दस
ये मानी हुई बात है कि मसीही अक़ाइद (मज़्हब के उसूल, ईमान) में सालूस (मुक़द्दस तस्लीस) का मसअला सबसे मुश्किल और आख़िरकार बरतर-अज़-अक़्ल है। लेकिन इस के ये मअनी (नहीं) हैं कि अक़्ल इस के सबूत में दो बातें भी नहीं कह सकती। अक़्ल इस के सबूत में दो छोड़ बहुत से दलाईल Holy Trinity […]
अम्र तहक़ीक़ी
अक्सर मसीही मुनादों से ग़ैर-मज़्हबों के साइल (सवाल करने वाले) ऐसे सवालात करते हैं, कि जिनके जवाब देने में दरबारा मसाइल दीन के वो ख़ुद आजिज़ व परेशान हैं। क्योंकि दीनी ख़्वाह दुनियावी तवारीख़ के गुज़श्ता वाक़ियात को साबित करने ख़्वाह इस से कोई माक़ूल (मुनासिब) नतीजा निकालने के लिए एक अहले मज़्हब के A […]
जो कलाम की तहक़ीर करता है
सुलेमान का ये क़ौल ना सिर्फ हर फ़र्द बशर के हाल पर सादिक़ (सच्च) आता है। बल्कि क़ौमों का बढ़ना और घटना इस सदाक़त (सच्चाई) पर मबनी है। ना सिर्फ वो इन्सान जो कलामे इलाही की तहक़ीर करता है, और उस पर अमल नहीं करता बर्बाद होता है। बल्कि हर एक क़ौम और हर एक […]
कहाँ मर्द ख़ुदा मूसा ख़ुदा सा कहाँ उम्मी मुहम्मद मुस्तफ़ा सा
हमारे ख़यालात के सिलसिले की पहली जुंबिश (हरकत, गर्दिश) से बख़ूबी साबित हो चुका, कि मुहम्मदियों का रसूल मुहम्मद किसी नहज (रोशन और कुशादा) रास्ते पर वो नबी नहीं हो सकता जो कि मूसा की मानिंद है। और इसी के ज़िमन (ताल्लुक़) में ख़ातिमा पर हकीम नूर उद्दीन भैरवी के वहम (शक) का इज़ाला Prophet […]
वोह अपने आपको दाना जता कर बेवक़ूफ़ बन गए
वोह अपने आपको दाना जता कर बेवक़ूफ़ बन गए। (रोमीयों 1 बाब 22 आयत) पौलुस रसूल ने शहर रोम के मसीहियों को ख़त लिखते वक़्त ये फिक़रा उस वक़्त के उलमा और फुज़ला और यूनानी उस्तादों के हक़ में लिखा। जो ख़ुदा के कलाम की निस्बत अपने इल्म व हिक्मत की रु से मुख़ालिफ़त ज़ाहिर […]
इसी तरह जब तुम इन सब बातों को देखो
ये सब देखो” यानी मसीह के आने की अलामतें। मिन-जुम्ला जिनके ये कि झूटे मसीह और झूटे नबी उठेंगे। और ऐसे बड़े निशान और करामातें (अनोखापन) दिखाएँगे, कि अगर हो सकता तो बर्गज़ीदों (ख़ुदा के चुने हुए) को भी गुमराह करते।” हम आजकल अपने ही मुल्क में कैसा साफ़ देख रहे हैं। कि कोई मह्दी […]
लेकिन अगर ख़ुदा की तरफ़ से है
ग़मलीएल फ़रीसी एक मुअज़्ज़िज़ मुअल्लिम शरीअत की उम्दा व मस्लिहत आमेज़ सलाह (अच्छा मश्वरा, मुनासिब तज्वीज़) जो उसने क़ौमी ख़ैर ख़्वाही व हम्दर्दी के जोश में अपने अकाबिर (अकबर की जमा, बड़े लोगों) क़ौम को दी। आयात-ए-मज़्कूर बाला की बातें अठारह सौ बरस से कैसा साफ़ सबूत दिखा रही हैं। But if it is from […]
रूह-उल-क़ुद्स और मुहम्मद
लूक़ा के चौबीसवें बाब की 49 वीं आयत में ख़ुदावन्द मसीह ने रूह-उल-क़ुद्स को मौऊद (वाअदा किया गया) फ़रमाया और शागिर्दों से कहा। देखो मैं अपने बाप के उस मौऊद को तुम पर भेजता हूँ। लेकिन तुम जब तक आलम-ए-बाला की क़ुव्वत से मुलब्बस (क़ुव्वत से भरना) ना हो यरूशलेम में ठहरो। ये ख़ुदावन्द की […]
कोई दानिशमंद कोई ख़ुदा का तालिब
ख़ुदा-ए-क़ुद्दूस की नज़र में बनी-आदम की गुनाह आलूदा हालत की निस्बत ये एक ऐसे शख़्स की शहादत (गवाही) है। जो मुलहम (इल्हाम शुदा) होने के इलावा, बहैसीयत एक बड़ी क़ौम का बादशाह होने के ख़ास व आम के हालात व मुआमलात से बख़ूबी वाक़िफ़, और तजुर्बेकार था। और ये ना सिर्फ उसी की शहादत है, […]
हमने सुना भी नहीं कि रूह-उल-क़ुद्स नाज़िल हुआ है
ये जवाब इफ़िसुस शहर के उन शागिर्दों ने पौलुस रसूल को दिया था, जब कि वो ऊपर के अतराफ़ मुल्क में इन्जील सुना कर इफ़िसुस में पहुंचा। और उसने पूछा, क्या तुमने जब ईमान लाए रूह-उल-क़ुद्स पाया? अगरचे ये लोग कमज़ोर, और बग़ैर रूह-उल-क़ुद्स पाए हुए ईसाई थे। तो भी शागिर्द कहलाए क्योंकि वो मसीह […]
हमारी ज़िंदगी
इंसान की ज़िंदगी में ख़ास तीन हालतें हैं या यूं कहो कि इंसान के अय्यामे ज़िन्दगी तीन बड़े हिस्सों में मुनक़सिम (तक़्सीम) हैं। बचपन, जवानी, बुढ़ापा। इनमें से उम्र का पहला हिस्सा वालदैन की निगरानी और उस्तादों की सुपुर्दगी में गुज़रता है। और नाबालिग़ होने की सूरत में दूसरों की मर्ज़ी और ख़्वाहिश के मुवाफ़िक़ […]