जो कलाम की तहक़ीर करता है

सुलेमान का ये क़ौल ना सिर्फ हर फ़र्द बशर के हाल पर सादिक़ (सच्च) आता है। बल्कि क़ौमों का बढ़ना और घटना इस सदाक़त (सच्चाई) पर मबनी है। ना सिर्फ वो इन्सान जो कलामे इलाही की तहक़ीर करता है, और उस पर अमल नहीं करता बर्बाद होता है। बल्कि हर एक क़ौम और हर एक बादशाहत का उरूज (बुलंदी) और ज़िल्लत (रुस्वाई)

Those who despise the word of God

जो कलाम की तहक़ीर करता है

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan Sep 6, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 6 सितंबर 1895 ई॰

जो कलाम की तहक़ीर (हक़ीर जानना) करता है हलाक किया जाएगा। पर जो हुक्म से डरता है उस की ख़ैरीयत होगी।

अम्साल 13:13 आयत।

सुलेमान का ये क़ौल ना सिर्फ हर फ़र्द बशर के हाल पर सादिक़ (सच्च) आता है। बल्कि क़ौमों का बढ़ना और घटना इस सदाक़त (सच्चाई) पर मबनी है। ना सिर्फ वो इन्सान जो कलामे इलाही की तहक़ीर करता है, और उस पर अमल नहीं करता बर्बाद होता है। बल्कि हर एक क़ौम और हर एक बादशाहत का उरूज (बुलंदी) और ज़िल्लत (रुस्वाई) उसी क़द्र वक़ूअ (वाक़्य) में आती है, जिस क़द्र वो क़ौम या बादशाहत ख़ुदा के कलाम की इज़्ज़त या हिक़ारत (कमतर समझना) करती है। जिस मुल्क या जिस क़ौम में बाइबल की ताअलीम हिक़ारत की नज़र से देखी जाती है। और इस पर अमल दरआमद नहीं होता उस मुल्क या उस क़ौम की तारीख़ के हर सफ़ा पर ज़ुल्म और किशत व ख़ून (ख़ूँरेज़ी) और हर एक तरह की बे एतिदालीयाँ (ना इंसाफ़ीयाँ) दिल की दुखाने वालियाँ पाई जाती हैं।

इस के बरअक्स जिस मुल्क या जिस क़ौम ने बाइबल की ताअलीम की क़द्र की और इस पर अमल करने की कोशिश की तो इस जगह इक़बालमंदी (ख़ुशनसीबी) और आज़ादगी के नुमायां आसार पाए जाते हैं। दूर क्यों जाते हो। हिन्दुस्तान की मौजूदा हालत को गुज़श्ता हालत से ज़रा तो मुक़ाबला कर के देखो। किस क़द्र आपको ऊपर के क़ौल की सदाक़त साबित होती नज़र आएगी। देखिए आज़ादगी किस तरह जगह जगह फूटती और कलियाँ निकालती है। जब कि और मुल्कों में ये आज़ादी लोग अपना ख़ून बहा-बहा कर हासिल नहीं कर सकते। मज़ालिम आरमीनीया इस अम्र की एक उम्दा नज़ीर (मिसाल) है।

इस में तो ज़रा शक नहीं कि लोग ये मान लेते हैं और कहते भी हैं। कि अंग्रेज़ी सल्तनत से हमको बहुत ही फ़ायदे पहुंचे हैं। मगर इस अम्र को क़ुबूल करने से ताम्मुल (सोचना) करते कि इस का बाइस क्या है वो कौन सी ताक़त है, कि जिससे ये खूबियां निकलती हैं। जवाब इस का सिवाए इस के और क्या हो सकता है कि ये बाइबल ही है जो हमको ऐसे बेश-बहा फ़ायदे पहुंचा रही है। और ये सख़्त नाशुक्री है कि हम इस की हिक़ारत करते हैं। दुनिया में अक्सर ये देखा जाता है कि इंसान अपने मुरब्बी (सरपरस्त) की परवाह नहीं करता जब वो इस नेअमत को हासिल कर लेता है। जो इस को उस के मुरब्बी के वसीले मिली कीना पनी (दुश्मनी रखना) और नाशुक्री के निशानात हैं। ऐसा ही वो जो बाइबल की रोशनी से मुस्तफ़ीद (फ़ायदा हासिल करना) हो कर बाइबल को नहीं मानते और इस की क़द्र नहीं करते अपने दिल की नाशुक्री को ज़ाहिर करते हैं।