उस के आने का वाअ़दा कहाँ?

WHERE IS THE PROMISE OF HIS COMING?

उस के आने का वाअ़दा कहाँ?

2-Peter 3:4

By

Jaswant Singh

जसवंत सिंह द

Published in Nur-i-Afshan Jan 1, 1891

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 1 जनवरी 1891 ई॰
(2 पतरस 3:4)

नाजरीन कलीसिया ने चार इतवार मुक़र्रर किए हैं ताकि मसीह की दूसरी आमद की यादगारी व तैयारी हो। सबब इस का ये है कि इन्सान ग़ाफ़िल रहते और सो जाते हैं। और चार इतवार चार घंटों के मुवाफ़िक़ हैं कि अगर हम पहले दूसरे व तीसरे घंटे सो रहे हैं तो चौथे घंटे में जाग जाएं। यहां पतरस रसूल मसीह की दूसरी आमद का ताकीदन ज़िक्र करता है, चुनान्चे पहले बाब की 16 वीं आयत में यूं फ़रमाता है कि, “क्योंकि हमने ना फ़लसूफ़ी की कहानीयों का पीछा कर के, बल्कि उस की बुजु़र्गी को अपनी आँखों से देखने वाले होके अपने ख़ुदावंद यसूअ मसीह की क़ुदरत और आने की ख़बर तुम्हें दी।” यानी उस के दुबारा आने की ख़बर तुमको दी ना सिर्फ फ़लसूफ़ी से पुर चशमदीद गवाह हो के। तो दूसरे ख़त का मज़्मून ख़ुदावंद की दूसरी आमद की ख़बर देता है। रसूल फ़रमाता है कि, इस मुक़द्दस पहाड़ पर उस की तब्दीली सूरत देखकर हमारे दिल में एक नया यक़ीन पैदा हुआ यानी जब उस की पहली हुज़ूरी को देखा, तो उस की दूसरी हुज़ूरी का ख़्याल हमारे दिल में आया जितनी परेशानी और शक व शुब्हा हमारे दिलों में पहले थे, अब उतने नहीं। क्योंकि अब हम उस के चश्मदीद गवाह हो कर कहते हैं कि वो ज़रूर फिर आएगा।

 

इसी तीसरे बाब में वो ठोकर खिलाने वाले ठट्ठे बाज़ों का ज़िक्र करता है कि आख़िरी ज़माने में ऐसे लोग उठेंगे और ये कहेंगे कि, “उस के आने का वाअदा कहाँ?” लेकिन वो ये भी कहेंगे, कि हम तअ़नाज़नी से एतराज़ नहीं करते पर नेचर हमको यही सिखाती है। देखो सूरज का तुलूअ भी होता है और ग़ुरूब भी और, और दुनिया में बहुत तग़य्युरात व तब्दीलात (तब्दीलीयां) वग़ैरह होते हैं। तो हम किस तरह यक़ींन करें? क्योंकि ये सब बातें और चीज़ें गुज़र जाती और हलाक होती हैं। रसूल फ़रमाता कि “ख़ुदावंद अपने वाअदों की बाबत सुस्ती नहीं करता, जैसा कि बाअज़ सुस्ती समझते हैं। पर इसलिए हमारी बाबत सब्र करता कि किसी की हलाकत नहीं चाहता, बल्कि चाहता है कि सब तौबा करें।” तो ठट्ठे बाज़ लोग सवाल करते हैं कि इस बात का क्या सबूत हो सकता है? अफ़्सोस बाअज़ मसीही भी उन्हीं के शामिल-ए-हाल हो कर कहते हैं, कि उस के आने का वाअदा कहाँ? तो इस का जवाब रसूल पहले बाब में देता है, वहां नबियों और रसूलों की गवाही का ज़िक्र कर के कहता है कि ये क़वी दलील है। नबियों व रसूलों ने ना सिर्फ उस की आमद का ज़िक्र किया, बल्कि बहुत से तग़य्युरात व तब्दिलात (तब्दीलीयों) का ज़िक्र किया, मसलन बाबुल वग़ैरह का बर्बाद होना और दुनिया की बहुत बादशाहतें और सल्तनतों के तग़य्युर व तब्दील होने का ज़िक्र कर के कहता है, कि ये बड़ी क़वी दलील है तो जब उनकी बाबत ये पेशीनगोई पूरी हो गई, तो जब वो उस की दूसरी आमद का ज़िक्र करता है तो वो भी ज़रूर पूरी होगी। जब पहली आमद की बाबत पेशीनगोई हुई तो पूरी हुई वैसे ही दूसरी आमद की बाबत जो नबुव्वत है वो भी ज़रूर बिलज़रूर पूरी होगी। अलबत्ता उसने अपनी उंगली से तो इशारा कर के नहीं बतलाया कि वो है, पर उन नबुव्वतों की तरफ़ इशारा कर के कहा, कि देखो यरूशलेम वग़ैरह बर्बाद हो गई तो अब हमने उनसे भी यक़ीन किया कि दूसरी आमद के वक़्त भी वैसा ही होगा कि उसी में आस्मान सन्नाटे के साथ जाते रहेंगे और अज्राम-ए-फ़लक जल कर गुदाज़ (पिघल) हो जाऐंगे। और ज़मीन इन कारीगिरियों समेत जो इस में है भस्म हो गई। देखो 2 पतरस 3:10 को बमुक़ाबला मत्ती 24:29 से 32 तक लेकिन ठट्ठे बाज़ों ने कहा कि अलबत्ता वो कुछ दलील है पर थोड़ा सबूत है, इसलिए हम फिर तुमसे पूछते हैं कि उस के आने वाअदा कहाँ? तब रसूल फ़रमाता है कि तुम तो आलिम व फ़ाज़िल व बड़ी हिक्मत वाले हो और दुनिया में बहुत चीज़ों को देखते हो और मालूम करते हो कि वो सब एक ही हालत में नहीं रहतीं बल्कि मुबद्दल (बदली) हो जाती हैं। जैसे हज़रत नूह के वक़्त तूफ़ान से बड़े-बड़े पहाड़ ग़र्क़ाब (ग़र्क़, व बर्बाद) हो गए और सब हलाक हो गए, तो क्या ये तब्दीली ना थी? अलबत्ता थी। और फिर पत्थरों और चट्टानों को देख के और ग़ौर कर के बख़ूबी मालूम होता है कि कैसी-कैसी तब्दीलीयां वक़ूअ में आईं और ये सब चार अनासिर बदल जाएँगी। दुनिया की ये हालत देखकर तो बख़ूबी मालूम होता है कि ये तब्दीलीयां ज़हूर में आईं, तो फिर क्यों ये सब कुछ ना होगा ज़रूर होगा। तुम अपने उलूम व फ़नून वग़ैरह को तो देखो जब तुम इतने इल्म जानते हो तो फिर क्यों ग़ाफ़िल रहते हो? ना सिर्फ चट्टानों वग़ैरह में तब्दीलीयां हैं पर ज़मीन को खोद के देखो कि कैसी-कैसी तब्दीलीयां हुई हैं। ये रसूल ने दूसरा जवाब उनको दिया था, पर जब वो फिर कहते और सवाल करते कि अलबत्ता ये तो सबूत क़वी है, पर फिर भी हम पूछते हैं कि उस के आने का वाअदा कहाँ? तब रसूल आख़िरी जवाब देता है, कि अफ़्सोस कि तुम अहले इल्म हो और ये नहीं समझते तो अब चले जाओ क्योंकि जो कुछ हमसे हो सका दीन व दुनिया और इल्म व अक़्ल से तुमको जवाब दिया और तुम फिर भी कुछ नहीं समझते और नूह और लूत के ज़माने के लोगों के साथी हो, तो जाओ अपनी हलाकत आप देखो अगर तुम यक़ीन नहीं करते कि यूँही है तो अपने गुनाहों में आप ही मरोगे।

पस अब रसूल इन अहले इल्म और ठट्ठे बाज़ों की तरफ़ से मुँह फेर कर कलीसिया की तरफ़ मुख़ातब हो कर फ़रमाता है, कि कलाम तो तुम्हारे पास है और नबुव्वतें भी तो तुम्हारे लिए हैं और ख़ुदावंद की हुज़ूरी अब दरवाज़े पर है, तो अब तुम्हारा क्या हाल है? रसूल 1:19 आयत में फ़रमाता है कि “हमारा भी नबियों का कलाम है जो ज़्यादा क़दीम है” यानी बनिस्बत इस तमाशे के जो इस पहाड़ पर था, इस की निस्बत ज़्यादा नबियों का कलाम क़दीम है। इस की चमक और झलक नज़र आती है। वो एक चिराग़ है जो अँधेरी जगह में जब तक पौ ना फटे और सुबह का तारा तुम्हारे दिलों में ज़ाहिर ना होवे रोशनी बख़्शता है। तुमने तो नबुव्वतों से भी ज़्यादा दलीलें हासिल की हैं पर एक और भी दलील है चिराग़ चमकता है और ना सिर्फ ये पर सुबह का सितारा भी है, तो ये सुबह का सितारा कहाँ और कौन है? ये तो किसी दूसरे आस्मान पर नहीं पर हमारे पास और दिल में चमकता है। हाँ ख़ुदावंद आप मुकाशफ़ा की किताब में फ़रमाता है, कि सुबह का सितारा मैं हूँ। तो रसूल भी फ़रमाता है कि सुबह का सितारा तुम्हारे दिल में चमकेगा। रसूल अपने लोगों के दिलों को तैयार करता है, कि ग़ाफ़िल मत हो और रोओ मत क्योंकि ना उनके चिरागदान में तेल है और ना उनके बर्तनों में। तो वो सुबह के सितारे को उनके सामने पेश करता है यानी मसीह की दूसरी आमद की ख़बर देता है, कि जब सुबह का सितारा चमकेगा तो ज़रूर सूरज तुलूअ होगा। क्योंकि ये हो नहीं सकता कि सितारा चमके और सूरज ना चमके तो वो ज़रूर बिलज़रूर चमकेगा। रसूल उनको कहता है कि नबुव्वतें यानी चिराग़ तो तुम्हारे पास बहुत हैं, जिनसे रोशनी पहुँचती है पर एक सुबह का सितारा भी है जब वो आएगा तो दिन चढ़ जाएगा। और लड़ाई तमाम होगी तब वो जो वफ़ादार रहेगा, ख़ुदावंद का वाअदा उस ख़ादिम के लिए ये है कि सुबह का सितारा तेरे दिल में दूंगा क्योंकि वो जानता है कि मैं दुख व मुसीबत और दुश्मनों के घेरे में हूँ। तो जवाब है कि सब्र कर और इस्तिराहत (आराम) में रह अब थोड़ी देर लड़ाई है तब तमाम होगी। डर मत मुझ पर भरोसा रख और मेरे कलाम की नबुव्वत की बातों को पढ़ और देख और समझ और याद कर आख़िर को थोड़े दिनों के बाद सबसे भारी सबूत तुम्हारे वास्ते होगा यानी बड़ी तसल्ली तुमको होगी। यानी जब वो ख़ुदावंद आएगा वो आप तुमको तमाम मुसीबतों से रिहाई बख़्शेगा।

पस ऐ नाज़रीन हमको भी चाहीए कि हम अपने ख़ुदावंद की आमद के लिए ख़ूब इंतिज़ारी में रहें क्योंकि जब वो सुबह का सितारा चमकेगा तो वो सदाक़त आफ़्ताब यानी मसीह चढ़ेगा, तब हम सब के सब उस की रोशनी से रोशन होंगे। आमीन।