दुनिया के बड़े आलिमों ने बाइबल की निस्बत क्या गवाही दी

The world’s greatest scholars and the Bible?

दुनिया के बड़े आलिमों ने बाइबल की निस्बत क्या गवाही दी
By

Faitah Masih
फ़त्ह मसीह
Published in Nur-i-Afshan September 29, 1887

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 7, नवम्बर 1887 ई॰
दुनिया के बड़े आलिमों ने बाइबल की निस्बत क्या गवाही दी है जो लोग बाइबल को बग़ौर पढ़ते हैं उन के सामने बाइबल अपनी सच्चाई की गवाही ऐसे मज़्बूत दलाईल से पेश करती है कि उनको उस के हक़ समझने में कुछ उज़्र बाक़ी नहीं रहता। लिहाज़ा उनके लिए दुनिया के बड़े आलिमों की गवाही कुछ ज़रूरी भी नहीं? मगर हज़ारहा ऐसे आदमी हैं जो कि बाइबल को ना तो ग़ौर से पढ़ते और ना इसे सुनना चाहते ये ख़्याल कर के कि इस में बज़ातिय है कुछ ख़ूबी नहीं है और या ये समझते हैं कि और मज़हबी कुतुब के मुवाफ़िक़ ये भी एक किताब है और बस। ग़रज़ ऐसे साहिबान के रूबरू दुनिया के बड़े आलिमों की गवाही जो उन्होंने बेग़र्ज़ाना तरीक़े से दी। पेश करनी अबस ना होगी। वहुवा-हज़ा।

फ़रानसन बेकन फिलासफरों का पेशवा फ़रमाता है :-
तेरी ख़ल्क़त के दफ़्तर का मैंने मुतालआ किया लेकिन ज़्यादा तेरे नविश्तों का मैं तुझे दरियाओं मैदानों और बाग़ों में तलाश करता रहा लेकिन मैंने तुझे तेरी ही हैकल में पाया।

सल्डन जो कि इंग्लिस्तान का ताज कहलाता है :-

कोई किताब ऐसी नहीं है जिस पर तकिया कर के आराम से अपनी जान दे सकें, मगर बाइबल।

मिल्टन एक निहायत मशहूर शायर :-

कोई गीत सीहोन के गीतों के बराबर नहीं कोई फ़साहत नबियों की फ़साहत के मुक़ाबिल नहीं और कोई पोलिटिक्स ऐसा है जैसा पाक नविश्ते हैं।

लॉक जो निहायत अमीक़ सोचने वाला था :-

उस से सवाल किया गया कि सबसे आसान और यक़ीनी तरीक़ा ईसाई मज़्हब के इल्म के हासिल करने का क्या है। उसने जवाब दिया, पाक नविश्तों का मुतालआ करो। ख़ासकर नए अह्दनामे का इसलिए कि इस में हमेशा की ज़िंदगी बख़्श कलाम है इस का मुसन्निफ़ ख़ुदा है। इस का मक़्सद नजात और इस का मज़्मून ख़ालिस सच्चाई है।

सर आइज़क न्यूटन जो इल्म-ए-रियाजी़ में यकता था :-
हम एक पाक नविश्तों को सबसे ज़्यादा अमीक़ और दकी़क़ फ़िलोसफ़ी समझते हैं। जिस क़द्र बाइबल के मोअतबर होने का सबूत मिलता है इस क़द्र और किसी दुनियावी तवारीख़ का नहीं मिलता।

समुएल जॉनसन ने :-

अपनी ज़िंदगी के आख़िर में एक नौजवान को कहा। सच जान कि मैं अभी अपने ख़ालिक़ के हुज़ूर जाने वाला हूँ और तुझे ये सलाह देता हूँ कि वो रोज़मर्रा ज़िंदगी-भर बाइबल को पढ़ा कर।

कोपर एक अंग्रेजी शायर :-

पाक नविश्तों में एक तजल्ली है जो सूरज की रोशनी के मुवाफ़िक़ चमकती है और उस ने हर ज़माने के लोगों को मुनव्वर किया है लेकिन ख़ुद किसी से मुनव्वर नहीं की गई।

सर विलियम जोंस जो कि मशरिक़ी उलूम का फ़ाज़िल था :-

मैंने मुतवात्तिर बाइबल को पढ़ा और इस की बाबत मेरी ये राय है कि अगर इस को इल्हामी ना समझा जाये तो भी इस में लताफ़त (मज़ा, उम्दगी, ख़ूबसूरती) और ख़ूबी, पाकीज़ा अख़्लाक़ी ताअलीम और मोअतबर तवारीख़ और लतीफ़ नज़्म और फ़साहत ऐसी पाई जाती है कि और किसी ज़बान की किसी किताब में नहीं है।

रूसो[1] एक फ्रांसी मुसन्निफ़ :-

अगर सारी फ़िलोसफ़ी की किताबों को पढ़ो तो मालूम करोगे कि वो बावजूद अपनी फ़साहत और बलाग़त के नविश्तों के सामने हक़ीर व ज़लील हैं।

नेपोलीन बोना पार्ट फ़्रांस का मशहूर बादशाह :-

बाइबल एक कामिल सिलसिला वाक़ियात का और तवारीख़ी आदमीयों का है। इस से ज़माना-ए-हाल और आइन्दा के ऐसे भेद खुल जाते हैं कि वैसे और किसी दीन से नहीं खुलते जो कुछ इस में है वो बुलंद व बाला और ख़ुदा के लायक़ है ये लासानी किताब है। सिवाए ख़ुदा के और कौन ऐसे नए और लासानी ख़यालात पैदा कर सकता है।

कोलरेज मशहूर शायर :-

सूलीज़ शैन साइंस और क़ानून बाइबल के साथ साया की मानिंद रहा यानी अख़्लाक़ी और इल्मी तरक़्क़ी उन्हीं ममालिक में हुई जहां बाइबल पहुंची। इस ने हमेशा तरक़्क़ी को सहारा दिया और इस की राहनुमा रही। नेक लोगों और सबसे दाना लोगों और सबसे बड़े शाहंशाहों ने इक़रार किया है कि इस की तासीर पाक इन्सानियत को पैदा करने के लिए कामिल आला है।

अर्थर हालम मशहूर मुअर्रिख़ का बेटा :-

मैं बाइबल को ख़ुदा की किताब मानता हूँ इसलिए कि ये इन्सान की किताब है। ये इन्सान के दिल की हर हालत के लिए मुफ़ीद है।

उम्मीद है कि नाज़रीन इन गवाहों की गवाही[2] पर ग़ौर फ़र्माकर ख़ुद बाइबल को आज़माऐंगे और मालूम करेंगे ये ऐसी किताब है जिसके वसीले से पाक इन्सानियत ख़ुदा की हुज़ूरी के लायक़ गुनाहगार इन्सान में पैदा होती है।

[1] ये एक बे-दीन शख्श था उस ने एक और मुक़ाम पर लिखा है, सुकरात फिलासफरों की मौत मिरालीकिन मसीह की मौत इब्ने-अल्लाह के मुवाफ़िक़ है।

[2] ये गवाहीयां प्रोग्रेस से तर्जुमा कर के लिखी गई है।

राह-ए-निजात

The Way of Salvation

राह-ए-निजात
By

One Disciple
एक शागिर्द
Published in Nur-i-Afshan August 22, 1889

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 22, अगस्त 1889 ई॰
जब हम इस बात को सोचते हैं कि एक ख़ुदा के हुज़ूर रसाई पाने के वास्ते लोगों ने अनेक (बेशुमार) मज़ाहिब ईजाद किए और बेशुमार अदयान (दीन की जमा) जारी किए तो हमको सख़्त हैरानी है किसी ने नजात का तरीक़ा पुण्य-दान, यात्रा वग़ैरह बताया या किसी ने रोज़ा, नमाज़ वग़ैरह ठहराया कोई तारीक-उल-दुनिया होना सबसे उम्दा तरीक़ा बताता है। कोई पूजा-पाट को काफ़ी कह सुनाता है मगर ख़ुलासा इन सब का इन चंद अल्फ़ाज़ में निकल आता है कि जो नेकी करता है वही अज़ाब अबदी से अपने आपको बचाता है ना मालूम इन फ़र्ज़ी हादियों की जिन्हों ने नजात की ये ताअलीम दी गुनाह की ख़ासीयत मालूम ना थी कि उन्हों ने सिर्फ ज़बानी जमा ख़र्च पर काम चलाया और गुनाह की अथाह समुंद्र से निकलने का कोई उम्दा तरीक़ा बताया क्या हम ऐसे आदमी की अक़्ल पर अफ़्सोस का इज़्हार ना करेंगे जो किसी ऐसे शख़्स को जो अथाह समुंद्र में ग़र्क़ हो रहा है किनारे पर खड़ा यूँ पुकारे कि तुम तैरना सीखो और फिर तैर कर निकल आओ क्या उस वक़्त उस को ये करना (अगर वो कर सके) मुनासिब ना होगा कि लपक कर उस की दस्त-गीरी करे ये करना मुनासिब बल्कि अंसब (ज़्यादा मुनासिब) है मगर अफ़्सोस की जाए कि सब फ़र्ज़ी हादयान दीन यही पुकारते गए कि गुनाह के समुंद्र से तैर कर बचोगे। मगर वह मदद का हाथ किसी ने ना बढ़ाया सिर्फ एक ही शख़्स इस क़ाबिल ठहरा जो कि पुकार-पुकार कर यूं कह रहा है, “ऐ गुनाह के तले दबे हुए लोगो मैं तुम्हें आराम देता हूँ।” (मत्ती 11:28) “ऐ गुमराहो मैं तुम्हें राह-ए-रास्त पर लाने को तैयार हूँ बशर्ते के तुम आना चाहो और वो शख़्स यसूअ मसीह है।”

क़रीबन सब मज़ाहिब के लोग ये मानते हैं कि ख़ुदा ने अव्वल इन्सान को बेगुनाह पैदा किया और कि एक गुनाह के सरज़द होने से आदमी जहन्नम का वारिस क़रार दिया गया। पस अगर एक गुनाह की इतनी सज़ा ठहरी तो कब मुम्किन है कि हम बेशुमार गुनाह करते हैं अपने दिल में नजात की उम्मीद रखें अगर कोई शख़्स बावजूद इन दो बातों के जानने के कि एक गुनाह से आदमी जहन्नम के लायक़ ठहरा और ये कि मैंने बेशुमार गुनाह किए हैं फिर भी नजात का उम्मीदवार रहे तो क्या ऐसा शख़्स बईद-अज़-अक़्ल (अक़्ल की हद से दूर) ना समझा जाएगा। मगर अफ़्सोस सद-अफ़्सोस कि लाख बल्कि करोड़ों आदमी ऐसे पाए जाते हैं जो इस बात के मिस्दाक़ हैं हम ऐसे शख्सों को ये सलाह देते हैं कि उस हादी से नजात की दरख़्वास्त करें जो कहता है कि जो मेरे पास आता है मैं उसे हरगिज़ निकाल ना दूँगा और वो यसूअ मसीह है।

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एक एतराज़ का जवाब

The Reply to the Objection on the Atonement

एक एतराज़ का जवाब
By

Nasir
नासिर
Published in Nur-i-Afshan October 31, 1886

नूर-अफ़शाँ अक्टूबर 1886 ई॰
उमूमन मसीही मज़्हब के ख़िलाफ़ यह एतराज़ पेश किया जाता है कि चूँकि मसीह के गुनाहों कफ़्फ़ारा हुआ इसलिए मसीहीयों को गुनाह करने की इजाज़त मिल गई है, या यूं कहें कि मसीही जिस क़द्र गुनाह चाहे करें, मसीह के कफ़्फ़ारे के सबब बख़्शे जाऐंगे। ऐसे मोअतरिज़ बाइबल के उसूल से नावाक़िफ़ होने के बाइस ग़लती करते हैं। वाज़ेह हो की कोई एतराज़ मसीही मज़्हब के ख़िलाफ़ नया नहीं। इब्तदा-ए-तवारीख़ में मुख़ालिफ़ों ने वो सख़्त एतराज़ किए हैं कि आजकल के बड़े-बड़े नुक्ता चीनीयों के ख़्याल में भी नहीं आए। इस पर भी इस ज़माने के बाअज़ कोताह-बीन (तंगनज़र) पुराने मुर्दे उखाड़ते और उन को नए लिबास में पेश करने पर अकड़ते हैं। मसीही मज़्हब के ख़िलाफ़ चंद सुने सुनाए एतराज़ करके जोहला के सामने अपनी लियाक़त का नक़्क़ारा बजाते (ढोल पीटना, ऐलान करना) हैं। मज़्कूर बाला एतराज़ भी उन्ही क़दीम एतराज़ों में से है। चुनान्चे पौलुस हवारी शहर रोम के मसीहीयों की तरफ़ ख़त में भी सवाल दूसरे अल्फ़ाज़ में यूं अदा करता है कि :-

“क्या हम गुनाह करें, इसलिए कि हम शरीअत के इख़्तियार में नहीं बल्कि फ़ज़्ल के इख़्तियार में हैं?”

और इस एतराज़ का जवाब भी रसूल मज़्कूर ने इसी बाब में तहरीर किया है। जो चाहे रोमीयों के नाम के ख़त का छटा बाब ग़ौर से पढ़ कर देखे।

इस एतराज़ से ये साबित होता है कि मोअतरिज़ (एतराज़ करने वाला) ख़ुद नहीं समझता कि क्या एतराज़ कर रहा है क्योंकि जो शख़्स गुनाह की नजासत से नावाक़िफ़ और गुनाहों की मग़फ़िरत की निस्बत इंतिज़ाम एज़दी (ज़्यादती) का इल्म नहीं रखता वही इस क़िस्म के कलिमात ज़बान पर लाएगा। शायद बेजा ना होगा कि ऐसों की ख़ातिर यहां चंद अल्फ़ाज़ इस ताल्लुक़ की निस्बत लिखे जाएं जो मसीही का मसीह के साथ होता है। लेकिन याद रहे कि ये मुआमलात रुहानी आलम से मुताल्लिक़ हैं और उन लोगों की समझ में हज़गिज़ नहीं आ सकते जो दीनी अश्या के हलक़ा के बाहर निगाह नहीं दौड़ा सकते। ऐसों के सामने रुहानी आलम की बातें बेवक़ूफ़ीयाँ हैं। दुनिया में हर एक इस उसूल को तस्लीम करेगा कि अच्छा दरख़्त अच्छे फल लाता और बुरा दरख़्त बुरे फल ला सकता है या दूसरे अल्फ़ाज़ में अगर सर में ज़ईफ़ हो तो सारा जिस्म ज़ईफ़ होगा। इस ख़्याल को मद्द-ए-नज़र रखकर ज़रा आगे चलें। जब आदम दिल जो तमाम ख़ल्क़त का सर था ख़ुदा की ना-फ़र्मानी से गुनाहगार ठहरा तो उस के बाइस उस की नस्ल और उस के तमाम मुताल्लिक़ीन पर एक क़िस्म का ज़ईफ़ तारी हो गया। ज़मीन आदम के सबब मलऊन हो गई। बनी-आदम का बिगाड़ देखने के लिए बहुत ग़ौरो-फ़िक्र की ज़रूरत नहीं ये अज़हर मिनश शम्स (रोज़-ए-रोशन की तरह अयाँ) है। अगर यह मुम्किन हो कि हम आदम अव़्वल से ताल्लुक़ रख कर गुनाहगार हो तो क्या ये नामुम्किन है कि किसी ऐसे आदम-ए-सानी से मुताल्लिक़ हो कर जो कामिल रास्तबाज़ हो हम रास्तबाज़ ठहरें? क्या नामुम्किन है कि, “जैसा एक ख़ता के वसीले सब आदमीयों पर सज़ा का हुक्म हुआ वैसा ही एक रास्तबाज़ी के वसीले सब आदमी रास्तबाज़ ठहर के ज़िंदगी पाएं, क्योंकि जैसे एक शख़्स की नाफ़रमांबरदारी के वसीले बहुत लोग गुनाहगार ठहरे वैसे ही एक फ़रमांबर्दारी के वसीले बहुत लोग रास्तबाज़ ठहरेंगे।” (रोमीयों 5:18-19)

जैसा कि जिस्मानी आलम में पैदाइश है वैसा ही रुहानी आलम में भी है। जिसको रूहुल-क़ुद्दुस से सर-ए-नौ पैदा होना कहा गया है। जैसा बच्चा का पैदा होना कोई इल्में-ए-ईलाही का मसअला नहीं बल्कि एक अम्र वाक़ई है। वैसा ही सर-ए-नौ पैदा होना भी कोई इल्म-ए-ईलाही का मसअला या बह्स तलब अम्र नहीं है। इस नौ (नई) पैदाईश से इन्सान एक ऐसे बदन का अज़ू बन जाता है जिसका सर मसीह है। ज़िंदगी की हरकात किस में नुमायां होती है। इस ताल्लुक़ को हमारे ख़ुदावंद ने दूसरे अल्फ़ाज़ में अंगूर की मिसाल से अदा किया। चुनान्चे वो फ़रमाता है कि, “अंगूर का दरख़्त मैं हूँ, तुम डालियां हो। वो जो मुझ में क़ायम होता है और मैं उस में वही बहुत मेवा लाता है क्योंकि मुझसे जुदा हो कर तुम कुछ नहीं कर सकते।” ग़रज़ इन्सान मसीह में पैवंद हो कर नई ज़िंदगी हासिल करता है। वही इस जो जड़ में है शाख़ में भी दौरान करता है। और फिर जैसा कि शाख़ को मेवा लाने के लिए किसी क़िस्म की कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि दरख़्त में क़ायम रहना ही शर्त है। वैसा ही इन्सान अपनी मर्ज़ी को ख़ुदा की मर्ज़ी के ताबे कर के ईमान से इस में क़ायम रह कर बहुत फल लाता है। पर फल वही हैं जिनको उमूमन नेकियां कहते हैं। और जिनको पौलुस अस्ल रूह का फल कहता है चुनान्चे वो फ़रमाता है कि,

“रूह का फल जो है सो मुहब्बत, ख़ुशी, सलामती, सब्र, ख़ैरख़्वाही, नेकी, ईमानदारी, फ़िरोतनी, परहेज़गारी है।”

हासिल कलाम जों-जों इन्सान मसीह में शामिल होता जाता है उसी क़द्र उस की ख़्वाहिश या ख़ुशी गुनाह में नहीं होती। मसीह ने ना फ़क़त हमारे गुज़शता गुनाहों की माफ़ी के लिए कफ़्फ़ारा दिया है बल्कि जो शख़्स ईमान के ज़रीये अपने तईं उस के ताबे कर देता है आइंदा के लिए गुनाह के इख़्तियार से भी रिहाई पाता है। चुनान्चे लिखा है कि, “तुम गुनाह से छूटकर रास्तबाज़ी के ग़ुलाम बने।” तुम (अपने) आपको गुनाह की निस्बत मुर्दा पर ख़ुदा की निस्बत हमारे ख़ुदावंद यसूअ मसीह के वसीले ज़िंदा समझो।” और कि, गुनाह तुम्हारे फ़ानी जिस्म पर सल्तनत ना करे।” अब इस सदाक़त के सामने वो एतराज़ कहाँ रहा। इस अजीब रोशनी के सामने उस की पेचीदगी हल हो गई।

ऐ नाज़रीन ! ये मुबारक तजुर्बा मेरे और तुम्हारे लिए है और ख़ुदा अपनी बरकतें मुफ़्त देता है। देखो अब क़बूलीयत का वक़्त है देखो अब नजात का दिन है।

अवतार

The Reincarnation

अवतार
By

Rev.P.C Uppal
पादरी पी॰ सी॰ ऊपल-अज़
Published in Nur-i-Afshan September 05, 1886

नूर-अफ़शाँ मतबूआ 5, सितंबर 1886 ई॰
तनासुख़ (एक सूरत से दूसरी सूरत इख़्तियार करना) यानी चौरासी जीवन या आवागवन (हिंदूओं के एतिक़ाद के मुताबिक़ बार-बार मरने और जन्म लेने का सिलसिला)

तनासुख़ यानी आवागवन किसे कहते हैं? इन्सान की रूह का अपने क़ालिब या बदन से निकल कर दूसरे क़ालिब या बदन में जाने को तनासुख़ यानी आवागवन कहते हैं और ये इन्सान की मौत के वक़्त वक़ूअ है।

अहले हनूद (हिंदू की जमअ़) और अहले-बुद्ध के सिवा इस मसअले को और कोई क़ौम या अहले मज़्हब नहीं मानते। अहले बुद्ध चूँकि हमारे मुल्क हिन्दुस्तान में नहीं और ना हम इस मज़्हब से काफ़ी इल्म रखते हैं और चूँकि इस मसअले के हुस्न व क़बाहत (बुराई, नुक़्स) दोनों मज़्हबों से मुताल्लिक़ हैं हम फ़क़त हिंदूओं पर किफ़ायत करेंगे। पण्डित दयानंद साहब की तशरीफ़ आवरी से पेशतर हम सुनते थे कि जब आदमी मर जाता है उस की रूह बमूजब अपने आमाल के किसी ना किसी हैवान के जिस्म को इख़्तियार कर लेती है। ख़्वाह वो जिस्म इन्सान का हो या हैवान का मुतलक़ का यहां तक कि मेले और गंदगी के कीड़े के जिस्म को भी इख़्तियार करती है और चोरासी लाख या कम या ज़्यादा जीवन के बाद फिर आदमी बनता है। अलबत्ता नेक लोगों को इन्सान और अच्छे पाकीज़ा जानवरों का जिस्म मिलता है और बद-किरदार शरीरों को बुरे और गंदे नापाक जानवरों का ये अक़ीदा हिन्दुस्तान के तमाम अहले हनूद में मुरव्वज (राइज) है। बल्कि अक्सर आर्य लोग भी इस को इसी तरह मानते हैं मगर बाअज़ आर्य अपनी सहूलियत के वास्ते यूं कहते कि :-

“आदमी की रूह किसी जानवर के जिस्म में नहीं बल्कि फिर इन्सान के बदन में इंतिक़ाल करती है नेकों, ख़ुदा-परस्तों की रूह आराम में और बदों, अज्ञानियों की मुसीबत और अज्ञान में रहती है।”

ये मसअला तनासुख़ ना सिर्फ पुराणों और शास्त्रों में जिनको पण्डित दयानंद साहब और अक्सर आर्य लोग ब्रह्मणों की साख़त बतलाते हैं मुंदरज है बल्कि ख़ास वेदों में मौजूद है। हमने ख़ुद पण्डित साहब से इस मसअले के बारे में बह्स मुबाहिसा किया है वो इस के पूरे मुअतक़िद (अक़ीदतमंद, पैरौ) थे। हमें ज़रा भी शक नहीं कि कोई हिंदू ख़्वाह पुराने फ़ैशन के ब्रह्मणों का मुअतक़िद (अक़ीदतमंद) हो या नए फ़ैशन के पण्डित साहब का इस अक़ीदे से इन्कार करेगा। बल्कि सब के सब इस पर मुत्तफ़िक़ हैं कि तनासुख़ का मसअला शास्त्रों पुराणों और ख़ास वेदों में मौजूद है।

जब हम सवाल करते हैं कि तनासुख़ की ग़र्ज़ क्या है सब पुराने और नए फ़ैशन के हिंदू हम-आवाज़ हो कर जवाब देते हैं कि इन्सान के कामों की सज़ा और जज़ा इससे हासिल और मुराद है यानी शरीरों को सज़ा और नेकों को जज़ा। जब कोई नेक ख़ुदा-परस्त आदमी मर गया उस को अच्छे इन्सान या पाकीज़ा हैवान-ए-मुत्लक़ का जिस्म मिला यानी या तो वह ज्ञान वाला ब्राह्मण या गाय बैल बना। हम उस ब्राह्मण से पूछते हैं भाई तू बता कि तू ब्राह्मण क्यों बना और तेरे कौनसे कामों का फल तुझको मिला। तू अपने पहले जन्म की कुछ ख़बर दे सकता है? वो कुछ जवाब नहीं दे सकता। गाय बैल से दर्याफ़्त करने की हाजत नहीं कि हैवान-ए-मुत्लक़ हैं ना हैवान-ए-नातिक़ (बोलने वाला) और सज़ा और जज़ा समझदार को उस के क़ाबिल होने पर दी जाती है कि एक से दुख पाए और दूसरे से आराम कि ये उस के कामों का समरा (फल) है। शीरख़्वार (दूध पीता बच्चा) जब अपने वालिद की दाढ़ी पकड़ लेता, या पागल बेहोश आदमी लोगों को गालियां देता और पत्थर मारता है तो उनको सज़ा नहीं दी जाती बल्कि उन को ऐसी हरकात से बाज़ रखने के लिए तदारुक (चारह, ईलाज) किया जाता है। जब ब्राह्मण और गाय बैल मुदल्लिल और माक़ूल जवाब नहीं देते कि हमारे फ़लां-फ़लां कामों का समरा (फल) है कि हम ऐसा जन्म रखते हैं तो सालिम अक़्ल फ़त्वा देती है कि ये बात सच नहीं कि वो पहले जन्म के नेक कामों के सबब इसलिए पुरतर यानी पाक जानदार पैदा हुए।

बफ़र्ज़ मुहाल अगर हम मान लें कि जज़ा और सज़ा की ख़ातिर नेकों को अच्छा और बदों को बुरा जन्म मिलता है तो एक और मुश्किल दरपेश है कि ये जज़ा और सज़ा अच्छा जन्म और बुरा जन्म इन्सान के नज़्दीक मालूम होता है। अस्ल हैं तो ऐसा नहीं है। मिहतर (बुज़ुर्ग) आपको ब्राह्मण से हरगिज़ कम नहीं समझता और अपनी हालत में मस्त और ख़ुश रहता है। बल्कि हैवानात मुतलक़ भी अपनी-अपनी हालतों में निहायत ख़ुश हैं वह अपनी हालत को मुसीबत नहीं समझते। मेले का कीड़ा भी मेला खा के ख़ुश होता है। सब अपनी-अपनी हालत में ख़ुश हैं अगर ये कहा जाये कि इन्सान में क़िस्म-क़िस्म के दर्जे हैं। कोई अमीर है और कोई ग़रीब एक ऐश करता और दूसरा मुसीबत में रहता हैं। ये भी ग़लती है क्योंकि जिनको हम आराम में समझते हैं हक़ीक़त में बड़े दुखी होते कभी ऐसा होता है कि ग़रीब मुफ़्लिस किसान, बादशाह से भी ज़्यादा ख़ुश होता कि बादशाह को बेशुमार फ़िक्र और अंदेशे बे-आराम करते हैं और वो कभी सुख और चैन से नहीं सोता और ग़रीब किसान सूखी फीकी रोटी खा कर और ठंडा पानी पी कर अपनी जोरू और बाल -बच्चों के पास आराम से सोता और कोई बुरा ख्व़ाब भी इस को दिक़ नहीं करता। अच्छा भाई, किस को आराम में और किस को दुख में कहोगे, अगर किसी को आराम में बरअक्स इस के समझें तो ठीक नहीं है इस से यही साबित हुआ कि ब्राह्मण और गाय बैल का जन्म उन को उन के पहले जन्म के बाइस नहीं मिला। क्योंकि दलील माक़ूल मादूम (नापैद, नाबूद, फ़ना किया गया) है।

एक और बात का ज़िक्र करना निहायत मुनासिब मालूम होता है कि जज़ा और सज़ा इस ग़रज़ से दी जाती है कि जज़ा पाने वाला अपने कामों का फल देखकर ख़ुश हुआ व नेकी में तरक़्क़ी करे, दूसरों के लिए तर्ग़ीब का बाइस हो, और सज़ा पाने वाला अपने बुरे कामों से बाज़ आए और दूसरों के लिए बाइस इबरत हो। अच्छा भाई अगर नेक मर्द मर कर ब्राह्मण या क्षत्रिय या कोई पाकीज़ा जानवर बना तो जज़ा की ग़रज़ पूरी नहीं हुई क्योंकि तजुर्बे से मालूम है कि ब्राह्मण क्षत्रिय और लोगों की निस्बत नेकी और पाकीज़गी में ज़्यादा तरक्क़ी नहीं करते बल्कि कभी कभी देखा गया है कि मेंहतर (नीच तबक़े के लोग) ज़्यादा ख़ुदा-तरस और आजिज़ और फ़रोतन होते हैं अलबत्ता ब्राह्मण और क्षत्रिय लोग दुनियावी बातों में तो तरक़्क़ी करते हैं मगर ख़ुदा तरसी, ख़ैरख़्वाही, हलीमी, फ़िरोतनी में किसी से ज़्यादा नहीं बल्कि ग़रूर और तकब्बुर से पुर होते और दूसरों को हक़ीर और नीच जानते हैं और गाय बैल और किसी पाकीज़ा जानवर का ज़िक्र करना फ़ुज़ूल है। क्योंकि वो तरक़्क़ी करने का माद्दा भी नहीं रखते। बरअक्स उस के जब शरीर मरा तो उस को बड़े नीच आदमी या ना पाक जानवर का जिस्म मिला भला वह कब बदी से बाज़ आएगा वो तो शरीरों के साथ रह के कि ऐसे ही उस के साथी होंगे ज़्यादा शरारत करेगा और हर जन्म में बदतर जन्म इख़्तियार करेगा और उस की सज़ा से दूसरों को इबरत कहाँ हुई क्योंकि दूसरे तो जानते ही नहीं कि वो क्यों ऐसा शरीर बना, [1] ना पाक जानवर आया बदी से बाज़ रहेगा या नहीं और दूसरों को उस से इबरत होगी या नहीं ये हम आपके इन्साफ़ पर छोड़ते हैं। हम तो बार-बार कह चुके हैं कि वो नातिक़ ना होने के बाइस ना तरक़्क़ी कर सकते और ना शरारत से बाज़ रह सकते और ना दूसरों की इबरत का बाइस हो सकते हैं। जब आदमी अपने बद कामों के सबब शरीर और नीच पैदा हुआ या किसी नापाक जानवर का जिस्म उस को मिला तो पहली हालत में अग़्लब (यक़ीनी, मुम्किन) है कि वह बदतर होता जाये और हर जीवन में उस को बदतर जन्म लेना पड़ेगा और दूसरे हालत यानी जानवर के जिस्म में हो कर तो वो बिल्कुल ज्ञान यानी इल्म से ख़ाली हो गया तनासुख़ की ग़रज़ क़तई मादूम हो गई हर कोई मान लेगा कि इन्सान के सिवा माद्दा इल्म या ज्ञान और किसी जानवर में नहीं है। जब ये माद्दा ही ना रहा तो सज़ा और जज़ा और नतीजा तनासुख़ बिल्कुल फ़ुज़ूल बातिल और ठहरा।

एक और बात निहायत मुश्किल ला-हल पेश आती है कि चूँकि नेकी और बदी रास्ती और नारास्ती की तमीज़ की सिफ़त फ़क़त इन्सान में है और नतीजतन वो अपने अफ़आल व अक़्वाल और ख़यालात का ज़िम्मेदार है और तजुर्बा हमको क़ाइल करता है कि कोई इन्सान गुनाह से ख़ाली नहीं या यूं कहें कि जब इन्सान पैदा हुआ तो ज़रूर गुनाह करेगा पस लाज़िमी दलील है कि ये तनासुख़ का तसलसुल ताअबद जारी रहेगा यानी अगर मुम्किन हो कि इन्सान चौरासी लाख या ज़्यादा या कम जीवन हासिल करके फिर इन्सान बने तो वो ज़रूर गुनाह करेगा और ज़रूर फिर उसी दर्द में यानी तनासुख़ के तसलसुल में जा पड़ेगा और उस से कभी रिहाई ना पाएगा। इस तसलसुल का आख़िर नहीं। पस ख़ुदा का क्या फ़ायदा हुआ और वो हमको इस से रिहाई नहीं दे सकता क्योंकि तनासुख़ के क़ानून के बमूजब इन्सान अपने आमाल का फल पाएगा अगर ना पाए तो क़ानून टूटता है हैवान-ए-मुत्लक़ को छोड़ हम इन्सान की बाबत बोलते हैं कि जो कुछ वो है और जो दुख-सुख वो हासिल करता है सब पहले जन्म के आमाल का समरा (फल) है वो ख़ुद उस को ना बदल सकता है और ना ख़ुदा उस को बेहतर बना सकता और ना क़ानून शक खाएगा पस इन्सान की फे़अल मुख़तारी गुम हुई और ख़ुदा की क़ुदरत मुतलक़ ना रही। फिर जब इन्सान अपने बदआमाल का समरा (फल) पाकर नापाक जानवर बना और हर जन्म में बदतर होता रहा यहां तक कि बदतरीन गंदगी के कीड़े के जिस्म में आया तो फिर क्या बनेगा? क्या इन्सान बनेगा या मादूम हो जाएगा अगर कहो इन्सान तो हर कोई दानिशमंद आदमी इस पर हँसेगा और जवाब को बेवक़ूफ़ी समझेगा क्योंकि तनासुख़ के अक़ीदे से साबित है कि निहायत उम्दा आमाल का समरा (फल, नतीजा) इन्सान का जन्म मिलता है तो इस कीड़े ने कौनसी भक्ति और तपस्या और नेक आमाल किए कि इन्सान बना अगर कहो कि मादूम हो जाएगा तो ये भी मसअला मज़्कूर के ख़िलाफ़ है क्योंकि हर कोई अपनी सज़ा व जज़ा पाकर कुछ बनता रहेगा अगर कहो कि परमेश्वर में लीन यानी जज़ब हो जाएगा तो हम ज़रूर इतना ही कहेंगे कि अशरफ़-उल-मख़्लूक़ात को तो लीन यानी जज़ब ना किया मगर बदतरीन गंदे मैले कीड़े को कर लिया जिसमें तमीज़ ही नहीं इस में कुछ अक़्ल नहीं ये मुहाल-ए-मुत्लक़ है आम फहम इन्सान भी इस को ना मानेगा।

आख़िर में हम सवाल करते हैं कि ये और यानी तनासुख़ या जीवन और आवागवन का तसलसुल कब से शुरू हुआ? जवाब मिलता है कि हमेशा से कि ना इस का शुरू है और ना आख़िर क्योंकि सृष्टि यानी दुनिया अनादी यानी बे इब्तिदा है और नतीजतन बे-इंतिहा। क्या वेद-शास्त्रों की ताअलीम ये ही है? बेशक यही है। पण्डित साहब ने ऐसा ही फ़रमाया और वेदों में यही दर्ज है। अच्छा भाई जब इस तसलसुल का शुरू और आख़िर नहीं और ये सृष्टि अनादी है तो परमेश्वर यानी ख़ुदा कौन है। ख़ालिक़ और ख़ल्क़त और मख़्लूक़ क्या चीज़ें हैं मख़्लूक़ का तो शुरू होता है और इस दुनिया का शुरू नहीं, पस ये मख़्लूक़ नहीं। फिर ख़ालिक़ कौन और इस की ज़रूरत कहाँ? जब मख़्लूक़ नहीं ख़ालिक़ ही नहीं और इस का काम यानी ख़ल्क़त भी नहीं वेदों से तो ख़ालिक़ की नेस्ती पाई गई पस कोई ख़ुदा नहीं। वो आर्य लोगों का फ़ख़्र कि वेद परमेश्वर की किताबें हैं वेदों से परमेश्वर साबित ही नहीं होता तो परमेश्वर की किताबें क्या? यूनान और रोम के हुकमा-ए मसलन सुकरात, बक्ऱात अफ़लातून सिसरोकीटो वगैरह ने भी ऐसी किताबें लिखी हैं जिनसे ख़ुदा की हस्ती का इन्कार टपकता है उन को इश्वरकर्त यानी ख़ुदा का कलाम मान लूं।

सच है कि इन्सान ने (अपने) आपको दाना तसव्वुर कर के (अपने) आपको बेवक़ूफ़ साबित क्या और वो क्या कुछ ना करेगा क्योंकि शैतान ने उस की अक़्ल को तारीक कर रखा है अगर ख़ुदा अपने रहम और अक़्ल से हमारी हिदायत ना करे तो हम सब गुमराह रहेगे इसलिए इल्हाम इलाही की ज़रूरत हुई और शुक्र बेहद उस की रहमत के लिए कि उन से हमको बग़ैर इल्हाम के गुमराह नहीं छोड़ा और इल्हाम कामिल तहक़ीक़ात के बाद मालूम हुआ कि तौरेत, ज़बूर और अम्बिया के सहाइफ़ और इंजील में मौजूद है। तालिब हक़ अगर चाहे देख और मालूम कर सकता है। मसअला तनासुख़ पर हम मुफ़स्सिल तहरीर नहीं कर सकते कि इस मज़्मून में तवालत की गुंजाइश नहीं है इंशा-अल्लाह-तआला बशर्त ज़िंदगी व सेहत व फ़ुर्सत एक उम्दा छोटी किताब में मुफ़स्सिल बयान करेंगे फ़िलहाल मज़्कूर-बाला चंद एतराज़ात नाज़रीन ने पेश हैं ख़ुदा करीम हक़ की तलाश में पढ़ने वालों की मदद और हिदायत करे।

[1] फ़िर जुर्म की सज़ा चाहे न हो कि जुर्म मसअला चोर चोरी की सजाएं जेल में भेजा जाता है अदालत ये नहीं कहती कि और चोरी कर। एडीडर

लफ़्ज़ मुहम्मदीम की हक़ीक़त

The Reality of the Hebrew Word Machamadim

लफ़्ज़ मुहम्मदीम की हक़ीक़त
By

Rev.Mulawi Abduhla Bin Habib Alqureshi
रेव॰ मौलवी अब्दुल्लाह बिन हबीब अल-क़ुरैशी
Published in Nur-i-Afshan November 21, 1889

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 21, नवम्बर 1889 ई॰
रिसाला मुबश्शिर इंजील के सीग़ा मुरासलात में लफ़्ज़ “मुहम्मदीम” की निस्बत एक मुहम्मदी आलिम के वहम का इज़ाला जनाब पादरी टॉमस हाइल साहब ने ख़ूब किया है। इस मुहम्मदी आलिम के दावे का माहसल (हासिल) ये है कि किताब (ग़ज़ल-उल-ग़ज़लात 5:16) में बज़बान इब्रानी जो लफ़्ज़ “मुहम्मदीम” वाक़ेअ है वह मुहम्मद साहब नबी अरब का नाम है जो बतौर बशारत मुहम्मद साहब के लिए कुतुब साबिक़ा में आया है।

वाह सुब्हान अल्लाह मुहम्मद साहब की बशारत के सबूत के लिए क्या अजीब व ग़रीब इस्तिदलाल (दलील) है। ये इस्तदाल ऐसा है जैसा कि कबीर साहब का कोई शागिर्द अपने गुरु कबीर साहब की उलूहियत और बशारत क़ुरआन से इस तौर साबित करे।

1 क़ुरआन सूरह रअ़द (13) आयत 9

(عٰلِمُ الۡغَیۡبِ وَ الشَّہَادَۃِ الۡکَبِیۡرُ الۡمُتَعَالِ)

तर्जुमा :- अल्लाह साहब ज़ाहिर और बातिन का जानने वाला कबीर बुज़ुर्ग है।

अब अगर इस मुहम्मदी आलिम का इस्तिदलाल जिहत (जद्दो-जहद) बशारत मुहम्मद साहब बाइबल के लफ़्ज़ “मुहम्मदीम” से दुरुस्त हो तो कबीर के मुरीद का इस्तिदलाल क़ुरआन के आयत मज़्कूर से अपने गुरूजी के लिए बतरीक़ ऊला दुरुस्त होगा क्योंकि बईना लफ़्ज़ कबीर मौजूद है।

ब- क़ुरआन सूरह हज (22) आयत 61

(ذٰلِکَ بِاَنَّ اللّٰہَ ہُوَ الۡحَقُّ وَ اَنَّ مَا یَدۡعُوۡنَ مِنۡ دُوۡنِہٖ ہُوَ الۡبَاطِلُ وَ اَنَّ اللّٰہَ ہُوَ الۡعَلِیُّ الۡکَبِیۡرُ)

तर्जुमा :- फिर सबब इस के अल्लाह साहब वही सच्चा है और मा सिवा इस के वो पुकारते हैं वो बातिल है और तहक़ीक़ वही बड़ा कबीर है।

अगर कोई मुहम्मदी कहे कि किताबे-मुक़द्दस में मख़रज (ख़ारिज होने की जगह) हम्द से मुश्तक़ात (वो लफ़्ज़ जो किसी दूसरे लफ़्ज़ से बनाया गया हो) मुहम्मदीन वग़ैरह मुहम्मद साहब का बशारती नाम है तो क्या कोई कबीरपंथी ये नहीं कह सकता है कि बाइबल और क़ुरआन में माद्दा कबर से त जहां-जहां लफ़्ज़ कबीर आया है वो हमारे गुरु जी का बशारती नाम है ?

बाइबल में लफ़्ज़ कबीर (अय्यूब 15:10) (1 समुएल 19:13-16) में आया है।

जीम – क़ुरआन सूरह लुक़्मान (31) आयत 29 आयत बईना सूरह हज वाली आयत की मानिंद है सिर्फ इतना फ़र्क़ है कि हुवल-बातिल की जगह अल-बातिल है।

दाल – क़ुरआन सूरह सबा (34) आयत 22

(وَ ہُوَ الۡعَلِیُّ الۡکَبِیۡرُ )

तर्जुमा :- और वो (ख़ुदा) बड़ा कबीर है।

किताबे-मुक़द्दस में मुहम्मद नहीं बल्कि मुहम्मदीम है लेकिन यहां क़ुरआन में तो कबीरीन (बसेगा-जमअ़) भी नहीं बल्कि बजिन्सा कबीर ही मौजूद है।

हे – क़ुरआन सूरह मोमिन (40) आयत 12

(فَالۡحُکۡمُ لِلّٰہِ الۡعَلِیِّ الۡکَبِیۡرِ )

यानी हुक्म अल्लाह साहब बड़े कबीर का है।

अब क्या ये भी कुछ समझ है कि कबीर जो लफ़्ज़ जलाल के वास्ते बतौर सिफ़त के क़ुरआन में जाबजा वाक़िया है उस से कबीर साहब का बशारती नाम मुराद हो और क्या ये भी कुछ इज्तिहाद या इल्मीयत है कि इब्रानी माद्दा हम्द की मुश्तक़ात मिस्ल मुहम्म्दीम, मुहम्मद-हा, मुहम्मद हम वग़ैरह-वग़ैरह बमाअनी मर्ग़ूब चीज़ें, नफ़ीस चीज़ें, दिल पज़ीर चीज़ें। जहां-जहां किताबे-मुक़द्दस मैं हूँ वह मुहम्मद साहब का बशारती नाम हो।

अगर रब्त कलामी और सियाक़ इबारत और अल्फ़ाज़ के माअनों से कुछ सरोकार न रखो और सिर्फ किसी लफ़्ज़ से जहां कहीं मिले बशारत और पेशिनगोई साबित करो तो इस तौर से किताबे-मुक़द्दस में सिर्फ ये नहीं कि मुहम्मद का नाम मोहम्मदीम से निकलता है बल्कि उन के वालदैन और खल़िफ़ा के नाम और मक्का व मदीना वग़ैरह बहम्द अल्लाह सब बाइबल से साबित हो सकते हैं। क्योंकि (यर्मियाह 34:26) में अब्दुल्लाह नाम आया है तो वह इस क़ायदे से मुहम्मद साहब के वालिद-ए-माजिद का नाम होगा। और (पैदाइश 12:8) में जो बैतुल्लाह मज़कूरह तो ये उनका ख़ाना काअबा होगा (दानीएल 3:2-3) में लफ़्ज़ मदीना मौजूद है तो वो मुहम्मद के मदफ़न मदीना मुनव्वरा का नाम अगली किताबों में बतौर बशारत लिखा गया होगा। और जहां-जहां किताबे-मुक़द्दस में मख़ारिज बक्र, उमर, अली से जो-जो मुश्तक़ात आए हों उन से खल़िफ़ा अबू-बक्र उमर अली मुराद होंगे।

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बाइबल और मसीह की उलूहियत पर एक एतराज़

The Objection on the Bible And Deity of Christ

बाइबल और मसीह की उलूहियत पर एक एतराज़
By

Rev.Mulawi Muhammad Shah
मुहम्मद शाह
Published in Nur-i-Afshan August 29, 1888

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 29, अगस्त 1889 ई॰
तस्लीम, 11 जुलाई 1889 ई॰ का नूर-अफ़शाँ बंदे की नज़र से गुज़रा और जब बंदे ने इस को पढ़ा तो मालूम हुआ कि एक साइल (सवाल करने वाला) बनाम मौलवी महमूद शाह साहब ने ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत और बाइबल के कलाम-उल्लाह होने पर मसीहीयों से सवाल किया है। बंदा ने भी मुनासिब जाना कि साइल की ख़िदमत शरीफ़ में इस सवाल का जवाब ख़ुदा के कलाम से कुछ थोड़ा सा ज़िक्र करूँ ये साइल का सवाल कुछ नया सवाल नहीं है ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत और बाइबल के कलाम-उल्लाह होने पर मसीहीयों ने बहुत सी किताबें लिखीं हैं। शायद साइल ने कभी उन को नहीं देखा। पहले साइल को मुनासिब था कि, “मीज़ान-उल-हक़ और मसीह इब्न-अल्लाह और नियाज़ नामा” का मुतालआ करने और फिर मसीहीयों से ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत और बाइबल के कलाम-उल्लाह होने पर सवाल करते। ख़ैर, साइल अगर बाइबल को ग़ौर से पढ़ते तो उन को मालूम हो जाता कि नबी और रसूलों ने रूहुल-क़ुद्दुस की हिदायत से ख़ुदावंद मसीह के हक़ में क्या-क्या बयान किया है। और फिर ख़ुदावंद मसीह ने इंजील में बज़ात-ए-ख़ुद अपनी निस्बत क्या दावा किया है। अगर साइल तवारीख़-ए-कलीसिया को भी ग़ौर से मुतालआ करते तब भी साइल को मालूम हो जाता कि क़दीम कलीसिया के लोगों ने ख़ुदावंद मसीह की ज़ात व सिफ़ात की निस्बत क्या लिखा है और वह ख़ुद उस की निस्बत क्या समझ कर इस से गुनाहों की मग़फ़िरत और बरकत पाने के लिए दुआ करते थे। जब हम ख़ुदा के कलाम को ग़ौर से पढ़ते हैं तो हमको मालूम होता है कि नबी और रसूल ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत के क़ाइल थे और ख़ुदावंद मसीह में वो ज़ात-ए-ईलाही मान कर उस पर अपना भरोसा रखते थे देखो (ज़बूर 2:12) आयत में दाऊद नबी रूहुल-क़ुद्दुस की हिदायत से क्या लिखते हैं, “बेटे को चूमो ता ना हो कि वो बेज़ार हो और तुम राह में हलाक हो जाओ जब उस का क़हर यका-य़क भड़के मुबारक वो सब जिसका तवक्कुल उस पर है।” (मलाकी 4:2) को देखो यहां पर नबी ख़ुदावंद मसीह को आफ़्ताब सदाक़त कहता है।

अब बंदा पाक कलाम से ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत की बाबत चंद दलीलें पेश करता है जिनको साइल ग़ौर से पढ़े।

(अव़्वल)
पाक कलाम में वो सारे नाम जो कि ला-महदूद ख़ुदा के लिए ज़रूरी हैं वह सब नाम ख़ुदावंद मसीह को मंसूब किए जाते हैं। मसलन पाक कलाम में वो ख़ुदावंदों का ख़ुदावंद कहलाता है। (ज़बूर 110:1) ख़ुदावंद ने मेरे ख़ुदावंद को फ़रमाया कि तू मेरे दहने हाथ बैठ जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पांव तले की चौकी बनाऊँ। वह ख़ुदाए क़ादिर कहलाता है। (यसअयाह 9:6) कि हमारे लिए एक लड़का तव्व्लुद हुआ हमको एक बेटा बख़्शा गया। और सल्तनत उस के कांधे पर होगी वो इस नाम से कहलाता है अजीब-मुशीर। ख़ुदा-ए-क़ादिर अबदीयत का बाप सलामती का शहज़ादा वग़ैरह (मलाकी 4:2)

यहोवा या ख़ुदावंद कहलाता है, वो ख़ुदा कहलाता है। (रोमीयों 9:5) और बाप दादे इन्ही में के हैं और जिस्म की निस्बत मसीह भी उन्हीं में से हुआ जो सब का ख़ुदा हमेशा मुबारक है आमीन वो ख़ुदा-ए-बरहक़ और हमेशा की ज़िंदगी कहलाता है। (1 यूहन्ना 5:20) वो बुज़ुर्ग ख़ुदा कहलाता है। (तितुस 2:13) वग़ैरह साइल को मुनासिब है कि इन आयात को ग़ौर से देखे।

(दोम)
पाक कलाम में वो तमाम सिफ़ात जो कि ला-महदूद ख़ुदा की ज़ात के लायक़ हैं वो सब ख़ुदावंद मसीह के हक़ में मंसूब होती हैं। वो हर जगह हाज़िर व नाज़िर कहलाता है।

(यूहन्ना 3:13) और कोई आस्मान पर नहीं गया सिवा उसी शख़्स के जो आस्मान पर से उतरा यानी इब्न-ए-आदम जो आस्मान पर है। इस आयत में ख़ुदावंद मसीह ये ज़ाहिर करते हैं मैं इब्न-ए-आदम हो के ईलाही ज़ात रखता हूँ और मैं ईलाही शख़्स हो के आस्मान व ज़मीन दोनों जगहों में मौजूद हूँ। (मत्ती 28:20) देखो। वह ग़ैर मुबद्दल (ला-तब्दील) कहलाता है। (इब्रानियों 13:8) यसूअ कल और आज और अबद तक यकसाँ है, वो अज़ली कहलाता है। (मीकाह 5:1) (यूहन्ना 8:58) यसूअ ने उन्हें कहा “मैं तुमसे सच सच कहता हूँ पेशतर इस से कि अब्राहम हो मैं हूँ। वो अव़्वल व आख़िर होने का दावा करता है।

(मुकाशफ़ा 1:8) मैं अल्फ़ा और ओमेगा हूँ यानी मैं अव़्वल और आख़िर हूँ वग़ैरह। वो आलिम-उल-गै़ब कहलाता है। (मुकाशफ़ा 2:23) और सारी कलीसियाओं को मालूम होगा कि मैं वही हूँ जो दिलों और गुर्दों का जांचने वाला हूँ वग़ैरह। (यूहन्ना 2:24, 4 बाब 18, 16 बाब 30) इन आयात में हमारे ख़ुदावंद मसीह के आलिम-उल-गै़ब होने का बयान है।

(सोम)
पाक कलाम में उस की इबादत ऐसी की जाती है जो किसी दूसरे की नहीं की जाती है। बाप के बराबर यानी ख़ुदा के बराबर उस की इज़्ज़त करनी चाहीए। (यूहन्ना 5:23) ताकि सब बेटे की इज़्ज़त करें जिस तरह से बाप की इज़्ज़त करते हैं जो बेटे की इज़्ज़त नहीं करता, बाप की जिसने उसे भेजा है इज़्ज़त नहीं करता।

बाप के बराबर उस पर ईमान लाना चाहीए यानी ख़ुदा की बराबर। (यूहन्ना 14:1) तुम ख़ुदा पर ईमान लाते हो मुझ पर भी ईमान लाओ। उस के आगे हर एक घुटना झुकेगा। (यसअयाह 25:23) (रोमीयों 14:10-11) (फिलिप्पियों 2:10) साइल को मुनासिब है कि इन आयात को भी ग़ौर से देखे।

(चहारुम)
पाक कलाम में उस के ऐसे कामों का तज़्किरा है कि जिनसे ज़ाहिर होता है कि वह ख़ुदा है और वह काम ऐसे हैं जो फ़क़त ख़ुदा ही कर सकता है।

वो ख़ल्क़त का पैदा कनुंदा कहलाता है। (कुलस्सियों 1:16) क्योंकि उसी से सारी चीज़ें जो आस्मान और ज़मीन पर हैं देखीं और अन्देखीं क्या तख़्त क्या हुकूमतें किया रियासतें क्या मुख़तारीयाँ पैदा की गईं वग़ैरह। (युहन्ना 1:1-3) वो ख़ल्क़त को संभालता है। (इब्रानियों 1:2-3) आख़िरी दिनों में हमसे बेटे के वसीले बोला जिसको उस ने सारी चीज़ों का वारिस ठहराया और जिसके वसीले उस ने आलम बनाए वह उस के जलाल की रौनक और उस की माहीयत (असलियत) का नक़्श हो के सब कुछ अपनी ही क़ुदरत के कलाम से संभालता है वग़ैरह। लोगों को उन के गुनाहों से खलासी देता है। (इब्रानियों 9:12) अपनी क़ुदरत से मोअजिज़ा दिखलाता है गुनाहों को माफ़ करता है। (मरक़ुस 2:5) क़ियामत के दिन मुर्दों को ज़िंदा करेगा। (यूहन्ना 28-29) ये सब आयात हमारे ख़ुदावंद मसीह के हक़ में हैं अगर साइल मेहरबानी से इनको बाइबल में देखें तो उन को मालूम हो जाएगा कि ख़ुदावंद मसीह कौन है बाइबल में नबी और रसूल ने ख़ुदावंद मसीह को ईलाही दर्जा दिया है अगर नबी और रसूल ख़ुदावंद मसीह को फ़क़त इन्सान ही ख़्याल करते तो उस को ऐसे दर्जे में बयान ना करते जैसा कि उन्हों ने रूहुल-क़ुद्दुस की हिदायत से पाक कलाम में बयान किया है क्योंकि इन्सान की अक़्ल उस को क़ाइल करती है कि किसी इन्सान को ईलाही दर्जा देकर उस को ख़ुदा जानना ये बात इन्सान की अक़्ल के नज़्दीक बहुत बुरी मालूम होती है और ख़ुदा के नज़्दीक भी ये एक बड़ा भारी गुनाह है जैसा कि ख़ुदा के पहले और दूसरे हुक्म में ज़िक्र है ऐसा कौन इन्सान है जो ये कलिमा कह कर अपने ऊपर ख़ुदा की लानत ले और हमेशा के अज़ाब का मुस्तहिक़ हो जाये ख़ुदा की और मुक़द्दसों और फ़रिश्तों की सोहबत से महरूम हो जाये। मौलवी साहब ख़ुदा के कलाम में ऐसी बहुत सी आयात हैं जिनसे ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत साबित होती है। और ख़ुदावंद मसीह ने भी अपने आपको यहूदी क़ौम के सामने इब्न-अल्लाह कह कर अपने में ज़ात ईलाही के शामिल होने का दावा किया है कि मैं इब्ने-अल्लाह हूँ और ख़ुदा मेरा बाप है। अगर आप कहो कि यहूदी और फ़रिश्तें बाइबल में इब्न-अल्लाह कहलाते हैं हाँ बेशक उन की निस्बत इब्न-ए-अल्लाह लफ़्ज़ लिखा है मगर जिस ग़रज़ से ख़ुदावंद मसीह अपने को इब्न-अल्लाह कहते थे उस ग़रज़ से ना हुए और ना फ़रिश्ते इब्ने-आदम कहलाते हैं। ख़ुदावंद मसीह अपने को इब्न-अल्लाह कह कर अपने में ज़ात-ए-इलाही को शामिल कर के ख़ुदा के बराबर ठहराते थे बल्कि ख़ुदा का और अपना एक होना बयान करते थे। देखो (यूहन्ना 7:9) से शुरू कर के जबकि फिलिप्पुस ने ख़ुदावंद मसीह से सवाल किया कि, “ऐ ख़ुदावंद बाप को हमें दिखला तब ख़ुदावंद मसीह ने फिलिप्पुस के जवाब में कहा कि ऐ फिलिप्पुस में इतनी देर से तुम्हारे साथ हूँ और तुमने मुझे ना जाना जिसने मुझको देखा बाप को देखा है क्योंकि मैं और बाप एक हैं।” फिर अगर साइल यूहन्ना की इंजील का मुतालआ करेंगे तो उन को मालूम हो जाएगा जब कि यहूदी लोगों ने ख़ुदावंद मसीह को कहा कि तू इन्सान हो के तईं ख़ुदा के बराबर ठहराता है और अपने को इब्ने-अल्लाह कह कर अपने में ख़ुदा की ज़ात को शामिल करता है ये तो कुफ़्र कहता है और इन्सान हो के अपने को ख़ुदा बनाता है। क़दीम ज़माने के ईमानदार लोग ख़ुदावंद मसीह को एक ईलाही शख़्स जान कर उस की पैरवी दिलो-जान से करते थे और दुश्मनों की एज़ा से मौत के वक़्त उस को अपनी रूह सपुर्द करते थे देखो (आमाल 7) में इस्तफ़नुस का ज़िक्र है कि उस ने मौत के वक़्त क्या कहा, ये कि ख़ुदावंद मसीह में ज़ात ईलाही है यानी वो एक ईलाही शख़्स है। इस बात को जान कर मसीही उस को ख़ुदा मानते थे इस अक़ीदे का इन्कार क़ुरआन में भी मौजूद है कि ईसाई लोग ख़ुदावंद मसीह को ख़ुदा जानते हैं जैसा कि सूरह माइदा आयत 72 में लिखा है :-

(لَقَدۡ کَفَرَ الَّذِیۡنَ قَالُوۡۤا اِنَّ اللّٰہَ ہُوَ الۡمَسِیۡحُ ابۡنُ مَرۡیَمَ)

यानी अलबत्ता तहक़ीक़ काफ़िर हुए वो लोग जो कहते हैं तहक़ीक़ अल्लाह वही है मसीह बेटा मर्यम का। वग़ैरह

क़ुरआन में ईसाईयों के इस अक़ीदे का इन्कार उस वक़्त किया गया है जब कि ये अक़ीदा क़दीम ईसाई कलीसिया में राइज था और ख़ुदावंद मसीह को ख़ुदा-ए-मुजस्सम मानते थे चुनान्चे यही अक़ीदा जो कि क़दीम कलीसिया का ख़ुदा के कलाम के मुताबिक़ था आजकल भी यही अक़ीदा मसीही कलीसिया में पाया जाता है। मौलवी साहब मसीही लोग हर ज़माने में ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत को ख़ुदा के कलाम के मुताबिक़ मानते चले आए हैं ये कुछ नई बात है (नहीं) जो कि हम लोगों ने अपनी तरफ़ से ईजाद की हो। ये हमारा अक़ीदा ख़ुदा के कलाम के मुताबिक़ है। इस अक़ीदे को हम छोड़ नहीं सकते हैं क्योंकि इस अक़ीदे का छोड़ना गोया ख़ुदा के कलाम को रद्द करना है और अपने ऊपर ख़ुदा की लानत लेना है फ़क़त।

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दीन ईस्वी का मोअजज़ाना सबूत

The Miraculous Proof of the Christianity

दीन ईस्वी का मोअजज़ाना सबूत
By

One Disciple
एक शागिर्द
Published in Nur-i-Afshan October 03, 1888

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 3, अक्टूबर 1889 ई॰<

मोअजिज़ा का असली माद्दा अजुज़-बिल-कस्र (عجز بالکسر) है और मअनी उस के नातवानी या आजिज़ हो जाने के हैं। हालत फ़ाइलीयत में मोअजिज़ा किया जाता है। तब उस के मअनी आजिज़ करने वाला इस्म-ए-फाइल के आते हैं। और हालत मफ़ऊलीयत में मोअजिज़ा बफत्ह जीम अरबी (معجز بفتح جیم عر بی اسم) इस्म-ए-मफ़उल ब मअनी आजिज़ किया गया पाते हैं। अगरचे इन माअनो में ये जुम्ला हालतें उस की उमूमीयत पर दलालत करती हैं। मगर लुग़त में देखने से मालूम होता है कि हालत-ए-इज़ाफ़ी में जब कि इज़ाफ़त बनी की जानिब हो ख़ारिक़ आदत (आदत और क़ुदरती क़ाएदे को तोड़नेवाला, अम्बिया के मोअजज़े औलिया की करामात) कहते हैं। यानी आदत का फाड़ने वाला और इस्लाह में मुराद वो काम है जो ज़ाती आदत के ख़िलाफ़ वाक़ेअ हो। ज़माना-ए-हाल में फ़िर्क़ा नेचर इन इस्तिलाही माअनों पर एक एतराज़ वारिद कर के रास्ती से बहुत दूर जा पड़े हैं वो कहते हैं कि उस से क़ानून-ए-फ़ित्रत टूटता है लेकिन इस का जवाब मुख़्तसर में सिर्फ इसी क़द्र काफ़ी व वाफ़ी है कि नेचरियों ने अपनी ही अक़्ल महदूद के मुताबिक़ ख़ल्क़त की आम तर्तीब पर जहां तक कि उन की बसारत ने काम किया निगाह डाल कर क़ानून-ए-फ़ित्रत गढ़ लिया है। ख़ुदा ने इल्हाम से नेचरियों को नहीं बता दिया कि मेरी लामहदुद व तर्तीब सिर्फ इसी तर्तीब पर जो हमने देख ली महदूद है। पस जब तक ये साबित ना हो तब तक इस्तिलाही मअनी बजा-ए-ख़ुद क़ायम और बरक़रार हैं। फिर इस लफ़्ज़ मोअजिज़ा के मुरादी मअनी हम ईसाईयों के नज़्दीक ये हैं कि ऐसी क़ुदरत अमल में लाई जाये जो ख़ल्क़त की आम तर्तीब की तब्दील की क़ाइल है। मसलन बहरा हुमुर का सिखाना और लारज़ को जलाना वग़ैरह ना खिलाफ-ए-अक़्ल है ना मुख़ालिफ़-ए-नक़ल अक़्लन इस वास्ते कि अक़्ल-ए-इन्सानी महदूद और ख़ुदाए क़ादिर-ए-मुतलक़ के काम लामहदूद ना सिर्फ यही बल्कि एक इन्सान ही दूसरे इन्सान के बाअज़ उमूर को दर्याफ़्त नहीं कर सकता। चुनान्चे रियाज़ी वाईअत वग़ैरह उलूम उस पर गवाह हैं। नक़लन इसलिए कि इसी जहान में आँखों देखते अक्सर ऐसे उमूर हादसे होते हैं कि अक़्ल-ए-इन्सानी दर्जा हैरानी में मुसतग़र्क़ हो जाती है। अब बाद इस क़द्र बयान के साबित हो गया कि दरहक़ीक़त मोअजिज़ा हमारे मुरादी माअनों में मुहाल नहीं बल्कि मुम्किन-उल-वक़ूअ है। मगर इस से ये ना समझ लेना चाहीए कि वो सारे वाक़ियात ख़्याली जो मुहम्मद या राम कृष्ण वग़ैरह

से मिस्ल शक़-उल-क़मर व सबुत बंद रामेश्वर्द गोबर्धन लहला मंसूब किए जाते हैं। सब दुरुस्त हैं जब तक कि उन के दिखाने की इल्लत-ए-ग़ाई और ख़ुदा की मर्ज़ी मारज़ सबूत में ना लाई जाये। क्योंकि अक़्ल-ए-सलीम के नज़्दीक ये बात क़ाबिल-ए-तस्लीम है कि मोअजिज़ा दीन-ए-हक़ के अस्बात में ज़रूरी है। वो उन उमूर में जिन्हें इन्सान आप ही अक़्ल और इल्म से साबित और ग़ैर साबित कर सकता है। हमारा इरादा नहीं कि हम उन सारे मोअजज़ात मुंदरजा बाइबल को जो नबियों और रसूलों और ख़ुदावंद मसीह से वक़ूअ पज़ीर हुए फ़र्दन-फ़र्दन सामईन के रूबरू पेश करें क्योंकि इन पर यहां तक रद्दो-क़दह (तर्दीद) हो चुकी है कि उन्हें बयान करना क़रीबन तहसील हासिल की हद तक गुज़रना है हम सिर्फ ये बयान किया चाहते हैं कि क़त-ए-नज़र दीगर मोअजज़ात के जिनके मसीही मज़्हब साबित किया जाता है मसीही मज़्हब ख़ुद मोअजिज़ा है। देखो जब तमाम मज़्हबों के अजज़ा की आम तर्तीब पर नज़र डाली जाती है तो मालूम हो जाता है कि अगर वह तमाम वसाइल जो मज़्हब जारी करने में काम आते हैं क़ायदा मफ़रूज़ा के मुताबिक़ बरते जाएं तो फ़िल-जुम्ला हर शख़्स एक मज़्हब जारी कर सकता है। मसलन मौजूदा हिंदू मज़्हब इस तरह जारी हुआ कि जब आम हिंदू बुद्ध मज़्हब की रूखी फीकी हकीमाना ताअलीम से मुतनफ़्फ़िर (नफरत करने वाले) हुए और चाहते थे कि उस के ख़िलाफ़ को क़ुबूल कर लें। तब ब्रह्मणों ने उन की ख़्वाहिश को पा कर एक ऐसा नू-तर्ज़ मुरस्सा (ख़ुश-बयानी से आरास्ता) मज़्हब को हिन्दुस्तान से नेस्त व नाबूद कर दिया फिर मुहम्मदी मज़्हब अरबों की हसब तबाला होने पर कैसा जल्द चारों तरफ़ फैल जाने को तैयार हो गया। अला हज़-उल-क़यास आर्य ब्राह्मण भी हसब-ए-हाल व मुवाफ़िक़ तबाबा इन्सानी हैं। अब इसी के मुक़ाबिल ईस्वी मज़्हब को देखो जिसमें कहाँ ख़ुदावंद की वो नई और अनोखी ताअलीम नई पैदाइश की ज़रूरत जिसे नेकोदीमस सा उस्ताद और मुअल्लिम यहूद समझ ना सका और कहाँ पतरस इन्द्रियास वग़ैरह मछोओं का वो ज़र्फ़ जो पंतीकोस्त के दिन रूह-क़ुद्दुस से मामूर किया गया। भला कौन कह सकता था कि आम तर्तीब कि मज़ाहिब के ख़िलाफ़ ऐसी बुनियाद पर इन्सान मज़्हब ईस्वी को क़ुबूल करेगा फिर बाक़ी मज़्हब की फ़िरोतनी लाचारी और गिरफ़्तारी के वक़्त शागिर्दों का छोड़ देना ख़ुद पतरस का जो ज़रा अपने को सर गर्म मज़्हब समझता था। तीन बार मसीह का इन्कार करना और शागिर्द ही का उस्ताद को पकड़वा देना क्या आदमी को हैरत में नहीं डालता। इलावा-बरीं जब मसीह मस्लूब हो कर दफ़न हुआ तो अक़्ल कह सकती है कि आम तर्तीब मज़ाहिब के मुवाफ़िक़ ईस्वी मज़्हब दुनिया से जाता रहा और कोई सूरत फिर उस के क़ायम होने की ना रही हाँ इन्सानी मज़्हबों के हक़ में तो ये राय बेशक दुरुस्त है। मगर ख़िलाफ़ उस के क्या देखने में आया कि जिस तरह दाना ज़मीन में गिर कर और मरकर एक के बदले अनेक[1] हो जाता है। इसी तरह ख़िलाफ़-ए-दस्तूर ज़माना-मसीही मज़्हब ने ज़मीन में दफ़न हो कर फिर रिवाज पाया। पस जिस तरह सच्चाई-सच्चाई से निकलती है उसी तरह मोअजिज़ा मसीही मज़्हब से पैदा होता है क्योंकि मसीही मज़्हब ख़ुद मोअजिज़ा है और इस के वसाइल ख़्वाह मज़्हब से ख़्वाह बानी मज़्हब से इलाक़ा रखते हों सब के सब मोअजिज़ा हैं अल-मतलब मज़्हब ईस्वी अपने सबूत में मोअजज़े का मुहताज नहीं बल्कि वो आप मोअजिज़ा को साबित करता है। मज़्हब से इस वास्ते कि वो ख़िलाफ़ और मज़्हबों के अपनी इशाअत-दाफ़िजाइश में किसी दुनियावी ताक़त से मदद नहीं पाता कभी ना सुना होगा मुहम्मद साहब और उस के खल़िफ़ा-ए-महमूद ग़ज़नवी और औरंगज़ेब की सूरत ख़ुदावंद मसीह या उन के हवारियों या मसीही सलातीन ने मसीही मज़्हब को बुज़ोर शमशीर जारी किया बल्कि बरअक्स इस के इब्तदा-ए-हुकूमत पिन्तुस पिलातूस और दीगर शाहाँ रोम नीरू वग़ैरह से जिन्हों ने हमेशा मसीही मज़्हब की मुख़ालिफ़त में कोई बात उठा नहीं रखी ईसाईयों को शेरों से फड़वाया ज़िंदा जलवाया शिकंजे में खिचवाया आख़िर आज तक ईसाई जाबजा किसी ना किसी सूरत से सताए जाते हैं बावजूद वो कि गर्वनमैंट मौजूदा ईसाई गर्वनमैंट कहलाती है तो भी मुंसिफ़ मिज़ाज वाक़िफ़ आएं सल्तनत बर्तानिया कह सकता है कि गर्वनमैंट के नज़्दीक और मज़्हबों से ईस्वी मज़्हब की कोई ज़्यादा वक़अ़त नहीं है मगर ख़ुदा उन पे मज़्हब को आप ही मोअजज़ाना क़ायदे से बढ़ाता जाता है। बानी मज़्हब से इसलिए कि ख़िलाफ़ और बानियान मज़्हब के मसीह की पैदाइश ही मोअजिज़ा है जिसमें किसी दूसरे का वास्ता नहीं यानी यहां जो मुज़ाफ़ (मिला हुआ) है वही मुजाफ़-अलैह (वो इस्म जिस के साथ कोई दूसरा इस्म मंसूब किया जाये) है। पस ये मोअजिज़ा नहव के आम तर्तीब को तब्दील कर देता है फिर बाद मसलूबी वो आप तीसरे दिन ज़िंदा क़ब्र से निकल आया ना ये कि किसी दूसरे ने ज़िंदा किया क्योंकि वो ज़िंदगी उसी में थी। पस इस मोअजिज़ा में भी ख़िलाफ़ नहू जो मफ़ऊल है वही फ़ाइल है और जो सिफ़त है वही मौसूफ़ है और यही ज़िंदगी हमेशा की ज़िंदगी है जो मसीह से मुफ़्त मिलती है काश कौमें जो मोअजज़ात पर जांदादह या उन की तक़्ज़ीब (ज़बानी लड़ाई) पर आमादा हैं इस मुजस्सम मोअजिज़ा यानी मसीह पर ईमान लाएं और हयात-ए-अबदी पाएं।

[1] बे-शुमार बहुत सा

अवतार

The Incarnation

अवतार
By

Rev.P.C Uppal
पादरी पी॰ सी॰ ऊपल-अज़
Published in Nur-i-Afshan June 27, 1889

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 27, जून 1889 ई॰

अवतार किसे कहते हैं? इस सवाल के कई एक जवाब हैं। आम हिंदू लोग तो कहते हैं कि परमेश्वर (ख़ुदा तआला) आदमी का जन्म इख़्तियार कर लेता है। और यह जुग-दर-जुग होता आया है। और वो ये भी कहते हैं कि इन्सान के जिस्म के सिवा परमेश्वर जानवरों मसलन कछ (कछुवा) मछ (मगरमच्छ) नरसिंह के जिस्मों में भी ज़ाहिर होता रहा है। मगर बहुत हिंदू ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि अवतार लोग ख़ास परमेश्वर नहीं। मगर बड़े इख़्तियार और क़ुदरत वाले अश्ख़ास थे। और उन अवतारों में ख़ुदा की क़ुदरत दर्जा-बदर्जा थी। किसी में ज़्यादा और किसी में कम। और बाअज़ हिंदू ख़ुसूसुन नौजवान आर्य लोग कहते हैं कि जब ख़ुदा आदमी का जिस्म इख़्तियार करे और इन्सानों में बूद व बाश करे उस को अवतार कहते हैं। मगर हम हरगिज़ नहीं मानते कि कभी ऐसा हुआ हो। और ख़ुदा कभी ऐसा ना करता और ना उसने कभी किया, और ना कभी करेगा। ख़ुदा को ज़रूरत ही नहीं कि इन्सान का जिस्म इख़्तियार करे। और अगर ऐसा करे तो वो ख़ुदा ही नहीं। मज़्कूर व बाला बयानात हिंदूओं से हमने सुने और नक़्ल किए हैं। आर्य लोगों को हम हिंदूओं में शामिल करते हैं अगर हमारी ग़लती है तो हम को माज़ूर रखें। मुहम्मदी साहिबान तो इस मसअले को मानते ही नहीं वो कहते हैं कि अल्लाह वाहिद है और मुहम्मद उस का रसूल तो इस के सिवा हम और कुछ नहीं मानते। ईसाई यूं जवाब देते हैं कि जब ख़ुदा इन्सान का जिस्म इख़्तियार करके इन्सानों में बूद व बाश करे उस को अवतार या ख़ुदा-ए-मुजस्सम कहते हैं। सिर्फ अवतार की तारीफ़ में हम आर्य लोगों से इत्तिफ़ाक़ करते हैं।

हिंदू जिन में आर्य शामिल हैं और ब्राह्मण और मुहम्मदी और ईसाई सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ हैं कि ख़ुदा क़ादिर-ए-मुतलक़ है। यानी सब कुछ कर सकता है। मगर क्या यह दुरुस्त है कि ख़ुदा सब कुछ कर सकता है। क्या ख़ुदा गुनाह कर सकता या अपनी सिफ़तों को तोड़ सकता है हरगिज़ नहीं। पस क़ादिर-ए-मुतलक़ की तारीफ़ यह है कि ख़ुदा सब कुछ कर सकता है। मगर गुनाह करना या अपनी सिफ़तों को तोड़ना या उस पर धब्बा लगाना उस के लिए नामुम्किन है। वो सब कुछ कर सकता है मगर अपनी ज़ात के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कर सकता।

पस क़ादिर-ए-मुतलक़ को मज़्कूर-बाला तारीफ़ से दो बातें पाया सबूत को पहुँचती हैं। अव़्वल यह कि अगर ख़ुदा ख़्वाहिश करे और उस की ख़्वाहिश के लिए कोई अशद ज़रूरत हो। और उस ख़्वाहिश में गुनाह ना हो और उस की कोई सिफ़त शिकस्त ना खाए तो वो मुजस्सम हो सकता है। कौन उस को रोकेगा? दूसरी यह कि हिंदूओं के सब अवतार बिल्कुल अवतार नहीं थे उनको बहादुर जोधा हकीम अकेशर वगैरह के लक़ब से नामज़द करो मगर वो हरगिज़ हरगिज़ अवतार नहीं हो सकते सबब ये है कि ब्रहम्माईश नहीश जो आला अवतार कहलाते और लादा राम किशन मच्छ कछ नर्सिंग वग़ैरह-वग़ैरह जो इन तीनों के अवतार हैं सब और हर एक उनमें से गुनाहों और ख़ताओं में मुब्तला थे ज़रूर नहीं कि उनके गुनाहों और ख़ताओं की फ़हरिस्त यहां पर लिखी जाये अयाँ राचा बयान अगर कोई कहे जैसा बाअज़ हिंदूओं का अक़ीदा है कि अवतार परमेश्वर ना थे मगर परमेश्वर ने उनको क्लान यानी क़ुदरत दर्जा बदर्जा बख़्शी थी तो ये और बात है। हमारी तारीफ़ के बमूजब वो अवतार ना निकले बहुतों को खुदा ने क़ुदरत दी है। मसलन समसोन, जदओन अफ़ताह, दाऊद और सायरस और सिकन्दर नेपोलियन वग़ैरह को मगर इन में से एक भी अवतार ना था। कभी-कभी बाअज़ इल्म हिंदू ज़द से कहते हैं कि हमारे अवतारों में परमेश्वर की अपनी सत्या यानी क़ुदरत दर्जा बदर्जा मौजूद थी। इस का मतलब हम नहीं समझते क्या परमेश्वर की सत्या यानी क़ुदरत तक़्सीम हुई कुछ दर्जे इन अवतारों में समाई और कुछ ज़ाते-ए-ईलाही में मौजूद रही। पस उस में क़ुदरत मुतलक़ ना रही यह मुहाल-ए-मुत्लक़ है। कोई अक़्लमंद इन्सान इस को ना मानेगा। हक़ीक़त ये है कि जिन अश्ख़ास को हिंदू लोग अवतार मानते हैं बिल्कुल अवतार ना थे। मगर बहादुर और जंग-आवर लोग है ऐसे तो पुराने ज़माने के जहला रणजीत सिंह को भी अवतार मानते हैं। बात यह है कि जैसा ख़ुदा गुनाह से मुबर्रा है वैसा ही अगर वो इन्सान का जिस्म इख़्तियार करे और अवतार हो जाये गुनाह से फिर भी मुबर्रा रहेगा। यह शर्त ज़रूरी और लाज़िमी है हिंदूओं के अवतारों में ये शर्त पाई नहीं जाती और नतीजतन उन में से कोई भी अवतार ना था।

अब हम अवतार की अशद ज़रूरत की तरफ़ मुतवज्जह होते हैं क्योंकि ईसाईयों का अक़ीदा है कि दुनिया में फ़क़त एक ही अवतार हुआ है और वह बेगुनाह या निस्कलंक ठहरा और वो ख़ुदावंद ईसाई मसीह था जो कन्या कुँवारी मर्यम से बग़ैर बाप के ख़ुदा की पाक रूह से पैदा हुआ। हिंदू मुहम्मदी और ईसाई बल्कि दुनिया के तमाम फ़िर्क़े ख़ुदा को क़ुद्दूस, सादिक़ुल-क़ौल, रहीम, आदिल और मुहब्बत मानते हैं और तमाम मज़ाहिब की किताबों में मुंदरज बल्कि हर एक शख़्स के दिल पर नक़्श है कि ख़ुदा ने फ़रमाया है कि गुनाहगार दोज़ख़ में जाएगा। अब इन्सान गुनाह-गार है ख़ुदावंद सादिक़ुल-क़ौल और आदिल है। अगर वो इन सिफ़ात को क़ायम रखे और गुनाहगार को दोज़ख़ में गिरा दे तो दूसरी सिफ़तें यानी रहम और मुहब्बत बिल्कुल ना ज़ाहिर होती अगर वो रहम और मुहब्बत को काम में लाए और गुनाहगार को बख्शे और उसे सर्ग यानी बहिश्त में क़ुबूल करे तो ये दो वस्फ़ यानी रहम और मुहब्बत तो क़ायम रहे मगर कुद्दूसी और सिदक़ और अदल क़तई नज़र नहीं आते और यह एक मुहाल-ए-मुत्लक़ है कि उस की कोई सिफ़त शिकस्त खाए या कमज़ोर हो जाये। ख़ुदा कामिल है नाक़िस नहीं। अच्छा, क्योंकर यह सिफ़तें गुनाह-गार की निस्बत कामिल और बे नुक़्स क़ायम रह सकती हैं। हरगिज़ नहीं अलबत्ता अगर ख़ुदा जो क़ादिर-ए-मुतलक़ है कोई तज्वीज़ करे तो मुम्किन है कि उस की सिफ़तें पूरी और कामिल और बे नुक़्स क़ायम रह सकें। ख़ुदा ने अपने कलाम में इज़्हार किया है, कि ख़ुदा ने जहान को ऐसा प्यार किया कि अपना इकलौता बेटा बख़्शा कि इन्सान का जिस्म इख़्तियार करे यानी अवतार हो वो मगर बेगुनाह हुआ इसलिए वो आदमी के तुख़्म से नहीं। बल्कि कुँवारी कन्या मर्यम से पैदा हुआ कि फ़रिश्ता जिब्राईल ने मर्यम को ख़ुशख़बरी दी थी कि रूहुलक़ुद्दुस तुझ पर नाज़िल होगी और ख़ुदा तआला की क़ुदरत का साया तुझ पर होगा इस सबब से

वो क़ुद्दूस भी जो पैदा होगा ख़ुदा का बेटा कहलाएगा। हमारे भाई मुहम्मदी लफ़्ज़ बेटा सुनते है नाराज़ हो जाते हैं मगर याद रखना चाहिए कि ईसाई लोग ईसा को इन्सान की तरह ख़ुदा का बेटा नहीं क़रार देते अगर कोई ऐसा कहे कि ख़ुदावंद ईसा मसीह इन्सान की तरह ख़ुदा का बेटा है, वो कलाम के बरख़िलाफ़ कहता और काफ़िर है। हम फ़ख़्र के साथ इक़रार करते है कि हम वहदत फ़ी तस्लीस और तस्लीस फ़ील-वहदत के मुतअक़्क़िद (पैरों. मानने वाले) हैं कि उलूहियत वाहिद मगर अक़ानीम सलासा हैं और इस बात को हम एक मिसाल यानी तश्बीह से वाज़ेह करेंगे। हमारी तश्बीह शायद ऐन मुनासबत ना रखती हो, ताहम फ़ायदेमंद होगी और वह यह है। हर एक जुग़राफ़ियादान जानता है कि सूरज ज़मीन से 9500000 मील फ़ासिले पर है पर रोशनी और गर्मी सूरज से निकल कर हम तक पहुँचती है तो भी सूरज इन दोनों से ज़रा भी ख़ाली या नाक़िस नहीं होता और इन दोनों से हम सूरज को पहचान लेते और चलते-फिरते ज़िंदा रहते और यह दोनों दुनिया की हर्शे यानी इन्सान हैवान और नबात की ज़िंदगी हैं अगर ये ना हो तो कोई चीज़ ज़िंदा ना रह सकती अगर रोशनी को सूरज का बेटा और गर्मी को इस की रूह कहें बेजा ना होगा। रोशनी को सूरज और गर्मी को भी सूरज कहें तो बेजा ना होगा। मगर तीन सूरज नहीं सूरज तो एक ही है। रोशनी कब से है जब से सूरज, गर्मी किस वक़्त से है जिस वक़्त से सूरज है। बाप सूरज बेटा रोशनी और रूहुलक़ुद्दुस गर्मी है। मसीह ने ख़ुद भी फ़रमाया कि जहान का नूर मैं हूँ, रूहुलक़ुद्दुस बाप और बेटे की रूह और मुक़द्दसों की ज़िंदगी है। जिस तरह रोशनी और गर्मी से हम सूरज को पहचान लेते हैं इसी तरह बेटे और रूहुलक़ुद्दुस के ज़रीये से हम बाप को जान जाते हैं। चुनान्चे कलाम में लिखा भी है कि ख़ुदा नूरों के उस दायरे में रहता है कि जहां तक किसी की रसाई नहीं उस को ना किसी ने देखा और ना कोई देख सकता है। फ़िर ये कि बाप को किसी ने कभी नहीं देखा। इकलौता बेटा जो बाप की गोद में है उसने उस को ज़ाहिर कर दिया। और कि रूहुलक़ुद्दुस बाप और बेटे की बाबत हम पर ज़ाहिर करती और हमें सारी सच्चाई की ख़बरें देती है। कलाम से ज़ाहिर है कि ख़ुदा की सिफ़तों को क़ायम रखने के लिए बेटे ने इन्सान का पाक जिस्म इख़्तियार किया। और ख़ुदा की शरीअत को इन्सान की एवज़ कामिल तौर से पूरा किया। और ख़ुदा की अदालत और सिदक़ के बमूजब गुनाहगारों का ज़ामिन होकर शरीअत की निस्बत गुनाह का समरा (फल, नतीजा) अपने ऊपर उठाया, मौत तक बल्कि सलीबी मौत तक फ़र्माबरदार रहा और इस बात के सबूत में कि ख़ुदा की शरीअत पूरी हुई। और उस का अदल और सिदक़ क़ायम रहा। ख़ुदा ने इस अवतार को तीसरे दिन ज़िंदा किया और आस्मान पर ज़िंदा चढ़ गया जहां से वो रूहुलक़ुद्दुस भेजता है कि उनके दिलों में बूद व बाश करे जो इस अवतार के कफ़्फ़ारे पर ईमान और भरोसा रखते हैं कि रफ़्ता-रफ़्ता उनको ख़ुदा की क़ुद्दूसी के लायक़ बनाए। पस उस ख़ुदा के अवतार के कफ़्फ़ारे से ख़ुदा की अदालत और सिदक़ और कुद्दूसी ख़ूब रौनक पाती और क़ायम रहती हैं और रहमत और मुहब्बत बे रोक इन्सान तक पर पहुँचती हैं। हम ने कहा था कि अगर ख़ुदा चाहे और उस की ख़्वाहिश में गुनाह ना हो तो अवतार का होना मुम्किन है। हमने ये भी कहा था कि अशद ज़रूरत भी है और हम ने ज़ाहिर किया है कि अवतार के होने के बग़ैर ख़ुदा की सिफ़तें पूरा ज़हूर नहीं पातीं। हमने यह भी साबित किया है कि बेटे ने जो अज़ल से बाप के साथ बल्कि ख़ुद ख़ुदा था। पाक इन्सानियत को इख़्तियार किया और इन्सानों के दर्मियान 33 बरस रहा। बेगुनाह ज़िंदगी बसर कर गया। जो चाहे उस की ज़िंदगी का मुफ़स्सिल हाल इंजील शरीफ़ में पढ़ सकता है। अब हम सिर्फ ये कह कर ख़त्म करेंगे कि ऐ अज़ीज़ पढ़ने वाले अगर तू इस अवतार को ना माने तो याद रख कि इस तज्वीज़ के सिवा जो ख़ुद खुदा ने ईजाद की है ना तो और ना कोई इन्सान गुनाह-गार की निस्बत ख़ुदा की कुद्दूसी अदल सिदक़ और मुहब्बत को क़ायम रख सकता है। जब ख़ुद खुदा ना कर सका तो इन्सान या फ़रिश्तगान क्या हैं। इस तज्वीज़ रहमत और मुहब्बत कमबख़्त गुनाहगारों तक पहुँचती हैं जो कोई उस को क़ुबूल ना करे वो गोया अपनी उम्मीद का दरवाज़ा बंद करना और अदालत में खड़ा होता है और दाऊद नबी फ़रमाता है कि, “ऐ ख़ुदा अगर तू अदालत करे तो कौन तेरे हुज़ूर ठहर सकेगा।” ख़ुदा ने जो हो सकता था किया। अब तो फ़क़त तज्वीज़ को रास्त और बरहक़ समझ के क़ुबूल कर और और निसकलंक ख़ुदा मुजस्सम अवतार ख़ुदावंद ईसाई मसीह पर ईमान ला तो ज़रूर दोज़ख़ से रिहाई पाएगा वर्ना तेरा गुनाह तेरे सिर पर है। और याद रख कि गुनाह की मज़दूरी मौत है और हमेशा की ज़िंदगी हैं इस अवतार के वसीले ख़ुदा की बख़्शिश है क्योंकि इस अवतार ने हमेशा की ज़िंदगी को अपना ख़ून दे के ख़रीद लिया है अगर तू इस से ना ले तो और कोई वसीला नहीं है। इस पर भरोसा रख और ज़रूर तेरी नजात होगी।

सहीफ़ा क़ुद्दुसी दिल्ली

The Holy Scripture

सहीफ़ा क़ुद्दुसी दिल्ली

By

One Disciple

एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan September 12, 1889

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 12, सितंबर 1889 ई॰

क़तअ़ तारीख़-ए-वफ़ात में (304 हि॰) ओला माद्दा सू-ए-जन्नत बरफ़त्त वाले हकीम तो दुरुस्त है। मगर तारीख़ तैयारी मर्क़द में दो गलतीयां में अगर हसत जाये फ़िदा मुहम्मद ख़ां के लफ़्ज़ हसत को राजू नीज़ तारीख़ तर बतीश की ख़बर है उस के मुबतदआ के साथ पैवंद करें तो वो तारीख़ से 465 अदद जाते रहेंगे और बजाय (130) के (842) रह जाऐंगे और अगर लफ़्ज़ नेस्त को जाये फ़िदा मुहम्मद ख़ां से मिला कर बढें तो इस माद्दा तारीख़ का मिसरा अव़्वल यूं होना चाहीए कि गुफ़्त तारीख़ तर बत्श क़ुद्दुसी। हसत जाये फ़िदा मुहम्मद ख़ां और तारीख़ वफ़ात का माद्दा पहले है और ख़बर उस के बाद इस में भी कलाम है यक़ीन कि हमारे हम-अस्र मौलवी क़ुद्दुसी साहब हमको हमारी इस गुस्ताख़ी से जो उन की शान में सादिर हुई माफ़ फ़रमाएँगे।

कहते हैं कि जब दो मुसीबतों में से एक का बर्दाश्त करना लाज़िमी हो तो वाजिब है कि अक़्लमंद इन्सान इन दोनों में से हल्की मुसीबत को इख़्तियार कर ले। जैसा कि दाऊद नबी ने तीन मुसीबतों में से एक मुसीबत तीन दिन की ख़ुदा की तल्वार मंज़ूर कर ली थी चुनान्चे आजकल भी मुत्ला`अ (बाख़बर) श्यान-ए-दीन-ए-हक़ को दो मुसीबतों का मुक़ाबला आ पड़ा है।

(अव़्वल)

ये कि तौरेत व ज़बूर व इंजील अगरचे इल्हामी हैं मगर शहादत अहमदियह वो मुहर्रिफ़ हैं।

(दोम)

ये कि क़ुरआन इल्हाम रब्बानी और महफ़ूज़ है बग़ैर शहादत अम्बिया अम्र सलीन साबक़ीन। चूँकि कुतुब साबिक़ा की निस्बत हज़ार-हा अम्बिया शहादत दे गए और ख़ुद ख़ुदावंद मसीह ने उनकी सेहत और इल्हामी होने की गवाही दी है। और क़ुरआन की बाबत सिर्फ मुहम्मद साहब है मुद्दई हैं कि वह इल्हामी है दरां हाल ये कि आप दायरा नबुव्वत से भी ख़ारिज हैं। पस अक़्लमंद मुतलाशी दीन-ए-हक़ को मुनासिब है कि जिन किताबों के इल्हामी होने पर ख़ुद मुहम्मद साहब भी। शाहिद हैं उन्हें को इल्हामी जाने और तहरीफ़ का इत्तिहाम (तोहमत, इल्ज़ाम) सिर्फ़ हम्द साहब के ज़िम्में माने क्योंकि हज़ार-हा अम्बिया को ना सुनने से ये बेहतर है कि एक मुहम्मद साहब ही को ना माना जाये।

रिव्यू

हमने रिसाले ज़मर मह इस्लाम को आग़ाज़ से अंजाम तक देखा ख़ूब लिखा है वाज़ेह हो कर ये रिसाला हमारे मसीही भाई मुंशी मौलवी हसन अली साहब बह मुक़ाबला मौलवी अब्दुल्लाह रिसाला मसकलता अल-मुस्लिमीन (مصقلتہ المسلمین) तस्नीफ़ ख़ुद का जवाब-उल-जवाब तहरीर फ़रमाया है हमने मसक़लता अल-मुस्लिमीन (مصقلتہ المسلمین) का भी मुआनिया किया दरहक़ीक़त दोनों रिसाला लाजूब हैं ग़रज़ इस तालीफ़ व तसनीफ़ की ये है कि जिस हाल में ये कि मुहम्मदी भाई क़ुरआन को बाऐतबार इबादत मोअजिज़ा फ़साहत गरदानते हैं। पस ज़रूर है कि ऐसी किताब में ग़लती ना हो।

एक पेशगोई जो पूरी हो चुकी

One Prophecy has been fulfilled

एक पेशगोई जो पूरी हो चुकी
By

Rev.J.Newton
पादरी जय, नियूटल
Published in Nur-i-Afshan September 19, 1888

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 19, सितंबर 1889 ई॰

इंजील मुक़द्दस में (मत्ती की इंजील की 16:27-28) आयतों में हम पढ़ते हैं कि, “क्योंकि इब्न-ए-आदम अपने बाप के जलाल में अपने फ़रिश्तों के साथ आएगा तब हर एक को इस के आमाल के मुवाफ़िक़ बदला देगा। मैं तुमसे सच कहता हूँ कि उन में से जो यहां खड़े हैं कि जब तक इब्न-ए-आदम को इस अपनी बादशाहत आते देख ना लें मौत का मज़ा ना चखेंगे बाअज़ लोग ख़्याल करते हैं कि ख़ुदावंद यसूअ मसीह की ये पेशगोई पूरी नहीं हुई। क्योंकि उस की बादशाहत जिसका वो ख़्याल करते हैं कि आनी चाहीए थी नहीं आई और वह लोग जो वहां खड़े थे जिनको ये कहा गया था देर हुई कि वो मर गए। लेकिन जाये ग़ौर है कि इस का क्या मतलब था जो यसूअ मसीह ने कहा कि, “इब्न-ए-आदम को अपनी बादशाहत में आते देख ना लें।” हक़ीक़त में ये वक़ूअ तो हो चुका इन बातों के कहे जाने के चंद रोज़ बाद ये माजरा वकूअ में आया इस का बयान अगले बाब में पाया जाता है। देखो (मत्ती 17:1-4) और छः दिन बाद यसूअ पतरस और याक़ूब और उस के भाई यूहन्ना को अलग एक उंचे पहाड़ पर ले गया। और उन के सामने उस की सूरत बदल गई और उस का चेहरा आफ़्ताब सा चमका और उस की पोशाक नूर की मानिंद सफ़ैद हो गई।” ये ज़िक्र नहीं है कि आया ये माजरा दिन के वक़्त हुआ या कि रात की वक़्त मगर ग़ालिबन रात के वक़्त होगा ताकि इस माजरे की रौनक इर्द-गिर्द के अंधेरे में बख़ूबी ज़ाहिर हो। और ये भी लिखा है कि वहां मूसा और इल्यास भी दिखाई दिए। और वो ख़ुदावंद यसूअ से बातें करते थे। और एक नूरानी बदली ने भी उन पर साया किया और बादल में से एक आवाज़ आई कि, “ये मेरा प्यारा बेटा है” ये आवाज़ साफ़-साफ़ ख़ुदा की थी और ये इस वास्ते आई कि शागिर्दों को यक़ीन दिलाए कि ये यसूअ जो एक जलाल वाली शक्ल में पहाड़ पर नज़र आया वही है जिसकी बाबत (ज़बूर 2:7) में लिखा है कि, “तू मेरा बेटा है” इस जिसकी बाबत उसी (ज़बूर 2:6)में लिखा है कि,

“यक़ीनन मैंने अपने बादशाह को कोहे-मुक़द्दस सीहोन पर बिठा चुका हूँ।” जिसमें उस ने पहले ही ज़ाहिर किया था जो कि वो करना चाहता था। इस मौक़े पर इब्ने-आदम के अपनी बादशाहत में दाख़िल होने का एक निशान है जिसको उन लोगों में से बाज़ों ने देखा जो वहां खड़े थे जब कि उन से वो बातें अपनी ज़बान से निकालीं थीं जो कि (मत्ती 16:28) में मर्क़ूम हैं। वो पहाड़ कि जिस पर सूरत का बदलना वक़ूअ में आया कोहे-सीहोन से दलालत करता है। जो कि ख़ुदावंद मसीह की बादशाहत की जो ज़मीन पर हुई ख़ास जगह है। जहां कि ख़ुदा के ममसोह बादशाह ने हुकूमत करनी थी। और तमाम क़ौमों पर उस की सल्तनत क़ायम होने को थी जिसकी बाबत पहले ही से पेशगोई हो चुकी थी देखो (यसअयाह 2:3-5) कि, “शरीअत सीहोन से और ख़ुदावंद का कलाम यरूशलीम से निकालेगा। और वह उम्मतों के दर्मियान अदालत करेगा…अलीख।” इसी सबब से ख़ुदावंद यसूअ मसीह “बादशाहों का बादशाह” और “ख़ुदावंद का ख़ुदावंद” कहलाता है। देखो (मुकाशफ़ा 19:16) ख़ुदावंद यसूअ मसीह के चेहरे का निहायत रोशन होना और उस की पोशाक का चमक जाना और नूरानी बदली का साया करना ये सब बातें ख़ुदा के जलाल वाली हुज़ूरी को ज़ाहिर करती हैं और इसलिए ज़ाहिर हुईं कि शागिर्दों पर साबित हो कि वो आने वाली बादशाहत कैसी जलाली और रौनकदार होगी जब कि वो अपने बाप ख़ुदावंद और उस के फ़रिश्तों के साथ जलाल में आएगा। इस हुकूमत का ज़िक्र यसअयाह नबी की किताब में इस तरह हुआ है कि, “चांद मुज़्तरिब होगा और सूरज शर्मिंदा कि रब्बुल-अफ़वाज कोहे-सीहोन पर यरूशलेम में सल्तनत करेगा। और उस की बुज़ुर्गों के आगे हशमत होगी।” (यसअयाह 24:23) इस माजरे के मुताल्लिक़ दूसरी बात ये है कि मूसा और इल्यास भी दिखलाई दे। पाक नविश्तों में हम पढ़ते हैं कि पेशतर इस के कि ख़ुदावंद यसूअ मसीह ज़मीन पर हुकूमत करने के वास्ते आएगा, वो उन पाक लोगों को उठाएगा, जो पहले मर चुके होंगे। और उन को ग़ैर-फ़ानी और जलाली जिस्म में मलबूस कर के फिर ज़िंदा करेगा। (फिलिप्पियों 3:20-21) और इस तरह जो ईमानदार उस वक़्त ज़िंदा होंगे उन के जिस्मों को बदल डालेगा। (1 कुरिन्थियों 10:51,54) और दोनों गिरोहों के मिलने के लिए बादलों पर उठा लेगा। (1 थिस्स्लिनिकियों 4:16-17) और जब कि वो हुकूमत करने आएगा तो वो उस के साथ होंगे। (कुलस्सियों 3:4) और उस के साथ ज़मीन पर हुकूमत करेंगे। (मुकाशफ़ा 3:21,4:24-27) लेकिन उस की ताबेदारी में वो हुकूमत करेंगे। मुनासिब था कि इस की बादशाहत के निशान में दोनों गिरोहों का ज़िक्र होता। चुनान्चे ऐसा ही हुआ क्योंकि मूसा और इल्यास का वहां होना इस पर दलालत करता है। मूसा जो मर गया था अब ज़िंदा हुआ था और इल्यास जो मरा नहीं था लेकिन ज़िंदा आस्मान को उठाया गया अब दोनों मौजूद थे और इस जलाल में शरीक थे। (लूक़ा 9:31) एक और बात इस माजरे में क़ाबिल-ए-ग़ौर है कि यहां पर तीनों आदमी यानी पतरस और याक़ूब और यूहन्ना अपने असली जिस्मों में हाज़िर थे ये बात दुनिया के इन मौजूदा बाशिंदगान की तरफ़ इशारा करती है कि जिन पर ख़ुदावंद यसूअ मसीह और उस के ईमानदार जलाल वाली सूरत में हो के हुकूमत करेंगे दर-हक़ीक़त आस्मान की बादशाहत का जिसमें ख़ुदावंद यसूअ मसीह अपने बाप के जलाल में आएगा ये एक उम्दा निशान और नज़ारा है इस पेशगोई के पूरे होने को सादिक़ ठहराता है कि, “बाअज़ हैं कि जब तक इब्न-ए-आदम को अपनी बादशाहत में आते देख ना लें मौत का मज़ा ना चखेंगे।” मुंदरजा-बाला तफ़्सीर की तस्दीक़ ख़ुद पतरस की बात से होती है, (1 पतरस 1:11-18) ये वही पतरस था जो उन तीनों शागिर्दों में से एक था जो-जो यसूअ मसीह के साथ पहाड़ की चोटी पर गए थे। और उस ने ये सब कुछ जिसका बयान अभी किया गया था। और वो यूं लिखता है, “बल्कि तुम हमारे ख़ुदावंद और बचाने वाले यसूअ मसीह की अबदी बादशाहत में बड़ी इज़्ज़त के साथ दाख़िल होगे….। क्योंकि हमने ना फ़ैलसूफ़ी की कहानीयों का पीछा कर के बल्कि आप उस की बुजु़र्गी के देखने वाले हो के अपने ख़ुदावंद यसूअ मसीह की क़ुदरत और आने की ख़बर तुम्हें दी कि उस ने ख़ुदा बाप से इज़्ज़त व हुर्मत पाई जिस वक़्त निहायत बड़े जलाल से उस को ऐसी आवाज़ आई कि “ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे में मैं राज़ी हूँ और हमने जब उस के साथ मुक़द्दस में पहाड़ पर थे ये आवाज़ आस्मान से आती सुनी” उसे पेशतर मसीह को अपनी बादशाहत में आते देख लिया जैसा कि उस ने वाअदा किया था कि वह देखेंगे।

राक़िम

पादरी जय, नियूटल