बरकत और लानत के हक़दार

और ख़ुदावन्द ने अबराहाम को कहा था कि तू अपने मुल्क और अपने क़राबतियों (रिश्तेदारों) के दर्मियान से और अपने बाप के घर से उस मुल्क में जो मैं तुझे दिखाऊँगा निकल चल। और मैं तुझे एक बड़ी क़ौम बनाऊँगा और तुझको मुबारक और तेरा नाम बड़ा करूँगा। और तू एक बरकत होगा। और मैं उनको जो तुझे बरकत देते हैं बरकत दूंगा।

Deservers of Blessing and Curse

बरकत और लानत के हक़दार

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One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan October 11, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 11 अक्तूबर 1895 ई॰

और ख़ुदावन्द ने अबराहाम को कहा था कि तू अपने मुल्क और अपने क़राबतियों (रिश्तेदारों) के दर्मियान से और अपने बाप के घर से उस मुल्क में जो मैं तुझे दिखाऊँगा निकल चल। और मैं तुझे एक बड़ी क़ौम बनाऊँगा और तुझको मुबारक और तेरा नाम बड़ा करूँगा। और तू एक बरकत होगा। और मैं उनको जो तुझे बरकत देते हैं बरकत दूंगा। और उस को जो तुझ पर लानत करता है लानती करूँगा। और दुनिया के सब घराने तुझसे बरकत पाएँगे। पैदाइश 12 बाब 1 से 2 आयत तक।

ख़ुदावन्द ने इज़्हाक़ को कहा, तू इस ही ज़मीन में बूदो बाश (सुकूनत, क़ियाम) कर कि मैं तेरे साथ हूँगा और तुझे बरकत बख्शूंगा। क्योंकि मैं तुझे और तेरी नस्ल को ये सब मुल्क दूंगा। और मैं उस क़सम को जो मैंने तेरे बाप अबराहाम से की है। वफ़ा करूँगा और मैं तेरी औलाद को आस्मान के सितारों की मानिंद वाफ़र (बहुत ज़्यादा) करूँगा। और ये सब मुल्क तेरी नस्ल को दूंगा। और ज़मीन की सब कौमें तेरी नस्ल से बरकत पाएँगी। पैदाइश 26 आयत।

हज़रत इज़्हाक़ ने अपने बेटे याक़ूब को ये बरकत बख़्शी। ख़ुदा आस्मान की ओस और ज़मीन की चिकनाई। और अनाज और मय की ज़्यादती तुझे बख़्शे। कौमें तेरी ख़िदमत करें गिरोहें तेरे आगे झुकें। तू अपने भाईयों का ख़ुदावन्द (आक़ा) हो और तेरी माँ के बेटे तेरे आगे ख़म (झुकना) हों। हर एक जो तुझ पर लानत करे मलऊन (लानती) हो मगर वो जो तेरे लिए बरकत चाहे मुबारक हों। पैदाइश 27 बाब 29, 28 आयत।

हज़रत याक़ूब ने अपने बेटे यहूदाह को ये बरकत बख़्शी थी। ऐ यहूदाह तेरे भाई तेरी मदह (सताइश) करेंगे। तेरा हाथ तेरे बैरियों (दुश्मनों) की गर्दन में होगा। तेरे बाप की औलाद तेरे हुज़ूर झुकेंगी। यहूदाह शेर-ए-बब्बर का बच्चा है। ऐ बेटे तू शिकार पर से उठ चला है। वो शेर बब्बर बल्कि पुराने शेर बब्बर की मानिंद झुकता और बैठता है। कौन उस को छेड़ेगा? यहूदाह से रियासत का असा जुदा ना होगा। और ना हाकिम उस के पांव के दर्मियान से जाता रहेगा। जब तक कि शैल्वा ना आए और कौमें उस के पास इकट्ठी होंगी। पैदाइश 49 आयत।

फिर बनी-इस्राईल ने कुच किया और मूआब के मैदानों में नहर यर्दन के उस पार यरीहू के मुक़ाबिल खे़मे खड़े किए। और सफ़ोर के बीते बुलक ने वो सब जो इस्राईल ने अमूरियों से किया देखा तब मूआब उन लोगों से निपट (मुकम्मल तौर से) डरा कि वो बहुत थे। और मूआब बनी-इस्राईल के सबब से परेशान हुआ। और मूआब ने मिद्यान के बुज़ुर्गों से कहा कि अब ये गिरोह उन सबको जो हमारे आस-पास हैं यूं चाट (खा जाना, ख़त्म देना) जाएगी। जैसे बैल मैदान की घास को चाट (खा) लेता है। इस वक़्त सफ़ोर का बेटा बुलक मूआबीयों का बादशाह था। सो उसने बावर के बीते बलआम के पास फ़नूर को जो उस की क़ौम वालों की सर-ज़मीन में नहर के किनारे पर था क़ासिद भेजे ताकि उसे ये कह के बुला लाएं, कि देखो एक क़ौम मिस्र से बाहर आई है देख उनसे ज़मीन की सतह छुप गई है और वो मेरे मुक़ाबिल मुक़ाम करते है। सो अब आईए और मेरी ख़ातिर से उन लोगों के हक़ में बद-दुआ कीजिए कि वो मुझसे बहुत क़वी (ताक़तवर) हैं। शायद कि मैं ग़ालिब (ज़ोर-आवर) आके उन्हें मार सकूँ। और उन्हें इस ज़मीन पर से हटा दूँ। कि मैं यक़ीन जानता हूँ जिसे तू बरकत देता है उसे बरकत होती। और जिस पर तू लानत करता वो लानती हुआ। सो मूआब के मशाइख़ (लोग) और मिद्यान के बुज़ुर्ग जादू की मज़दूरी हाथ में लेकर रवाना हुए। और बलआम के पास आए। और बुलक का पैग़ाम उसे पहुंचाया। उसने उन्हें कहा कि आज रात तुम यहां रहो और जैसा ख़ुदावन्द मुझे फ़रमाएगा। मैं तुम्हें कहूँगा।

चुनान्चे मूआब के अमीरों ने बलआम के यहां क़ियाम किया। तब ख़ुदा बलआम के पास आया और उस से कहा ये कौन आदमी हैं जो तेरे पास हैं। बलआम ने ख़ुदा को जवाब दिया कि सफ़ोर के बेटे बुलक ने जो मूआब का बादशाह है। मेरे पास कहला भेजा है कि देख एक क़ौम है जो मिस्र से निकल आती है और उनसे ज़मीन की सतह छिप गई। तू मेरी ख़ातिर उनके हक़ में बददुआ कर। शायद मैं उन पर ग़ालिब आ सकूं। और उन्हें भगा दूँ। तब ख़ुदा ने बलआम को कहा तू उनके साथ मत जा। तू उन लोगों के हक़ में बद दुआ ना करना। इसलिए कि वो मुबारक हैं। बलआम ने सुबह को उठ कर बुलक के अमीरों से कहा तुम अपनी सर-ज़मीन को जाओ क्योंकि ख़ुदावन्द मुझे तुम्हारे साथ जाने की इजाज़त नहीं देता। और मूआब के सरदार उठे और बुलक के पास गए। और बोले कि बलआम हमारे साथ आने से इन्कार करता है। गिनती 22 बाब 1 से 14 आयत तक।

बुलक ने बलआम को फिर बुलवा भेजा और बड़ी दौलत व इज़्ज़त का वाअदा किया। बलआम लालच के मारे चला गया। मगर ख़ुदा ने जो कुछ उस के मुँह से बनी-इस्राईल के मुबारक होने की बाबत गवाही दिलाई वो ये है :-

पहली दफ़ाअ : तब ख़ुदावन्द ने एक बात बलआम के मुँह में डाली और उसे कहा बुलक के पास जा और उस को यूं कह। सो वो उस के पास फिर आया और क्या देखता है कि वो अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी के नज़्दीक मूआब के सब अमीरों समेत खड़ा है। तब उसने अपनी मिस्ल कहनी शुरू की। मूआब के बादशाह बुलक ने आराम से पूरब के पहाड़ों से मुझको बुलवाया। आओ याक़ूब को मेरी ख़ातिर से बद दुआ करो और आओ इस्राईल को बुरा कहो। मैं क्योंकर उस को ये बद दुआ करूँ जिसको ख़ुदा ने बद दुआ नहीं की। या उस को बुरा कहूँ जिसको ख़ुदा ने बुरा नहीं कहा। क्योंकि चट्टानों की चोटी पर से मैं उस को देखता हूँ और टीलों पर से मैं उसे ताकता हूँ। देख ये लोग अकेले सुकूनत करेंगे। और क़ौमों के दर्मियान वो शुमार ना किए जाऐंगे याक़ूब की गर्द के ज़र्रों को कौन गिन सकता है। और इस्राईल की चौथाई कौन शुमार कर सकता है। काश के मैं सादिकों की मौत मरूँ और मेरी आख़िरत) उस की सी हो। गिनती 23 बाब 5 से 10 आयत तक।

दूसरी दफ़ाअ : तब बुलक ने उस से पूछा ख़ुदावन्द ने क्या फ़रमाया तब बलआम ने अपनी मिस्ल कहनी शुरू की और बोला। उठ ऐ बुलक और सुन ऐ सफ़ोर के बेटे मेरी तरफ़ कान धर ख़ुदा इन्सान नहीं जो झूट बोले ना आदमी ज़ाद है कि पशेमान (शर्मिंदा) होए। क्या उसने जो कुछ कहा है सो बजा ना लाएगा। और जो कुछ फ़रमाया है क्या उसे पूरा ना करेगा। देख मैंने हुक्म पाया कि बरकत दूँ। उसने बरकत दी है मैं उसे बदल नहीं सकता। वो याक़ूब में बदी नहीं पाता। ना इस्राईल में फ़साद (झगड़ा) देखता है। ख़ुदावन्द उस का ख़ुदा उसके साथ है। और बादशाह की धूम उनके दर्मियान है। ख़ुदा उन्हें मिस्र से निकाल लाया। उस का गेंडे का सा ज़ोर है। कोई अफ़्सून (जादू) याक़ूब पर नहीं चलता। कोई बद-ख़्याली इस्राईल के बर-ख़िलाफ़ नहीं। चुनान्चे उसी वक़्त याक़ूब के और इस्राईल के हक़ में ये कहा जाएगा, कि ख़ुदा ने क्या किया। देख ये लोग भारी सिंह (शेर) के तौर से खड़े होंगे। और वो आपको जवान सिंह (शेर) की तरह उठाएगा। वो ना सोएगा जब तक कि शिकार ना खा ले और जब तक कि मार के उस का लहू ना पी ले। गिनती 23 बाब 17 से 24 आयत तक।

तीसरी दफ़ाअ : जब बलआम ने देखा कि इस्राईल को बरकत देना ख़ुदावन्द को ख़ुश आया तो वो अब की बार जैसा आगे शगुन (फ़ाल) के खोज में जाता था ना गया। बल्कि ब्याबान की तरफ़ तवज्जोह की। और बलआम ने अपनी आँखें उठाईं और इस्राईल को देखा कि अपने फ़िर्क़ों (क़बीलों) की तर्तीब पर ठहरा है। तब रूह अल्लाह इस पर नाज़िल हुई। और वो अपनी मिस्ल ले चला और बोला बाऊर का बेटा बलआम कहता है, हाँ वो शख़्स जिसकी आँखें खुल गईं हैं कहता वो जिसने ख़ुदा की बातें सुनीं और क़ादिर-ए-मुतलक़ की रोया को देखा है। सोया पड़ा था। पर उस की आँखें खुली थीं कहता है। क्या ही जो हैं तेरे खे़मे ऐ याकूब और तेरे मस्कन ऐ इस्राईल फैले हुए हैं। वादीयों की तरह से और लबे दरिया के बाग़ों के तूर जैसे ऊद के दरख़्त जो ख़ुदावन्द ने लगाए हों और जैसे देवदार के दरख़्त जो पानी के किनारे हों। और वो अपने मोटों से पानी बहाएगा और उस का बीज बहुत से पानियों में होगा। उस का बादशाह अगाग से बुज़ुर्ग होगा और उस की बादशाहत बुलंद होगी। ख़ुदा उस को मिस्र से बाहर निकाल लाया उस में गेंडे की सी क़ुव्वत है। वो क़ौमों को जो उस के दुश्मन हों खा जाएगा। और उन की हड्डियां तोड़ डालेगा। और अपने नेज़ों से उन्हें छेदेगा। वो झुकता है और सिंह (शेर) की मानिंद बल्कि भारी सिंह (शेर) की तरह बैठ जाता। उस को कौन उठा सकता है। मुबारक है वो जो तुझे मुबारक कहे और मलऊन (लानती) है वह जो तुझ पर लानत करे। गिनती 24 बाब उसे 9 आयत तक।

83 ज़बूर

ऐ ख़ुदा चुप मत हो ख़ामोशी मत कर। और चेन ना ले ऐ ख़ुदा। क्योंकि देख तेरे दुश्मन (इस़्माईली, हाजिरी) वग़ैरह ख़ुदा के दुश्मन धूम मचाते हैं। और उन्होंने जो तेरा कीना (दुश्मनी) रखते हैं सर उठाया है वो चतुराई (चालाकी) से तेरे लोगों (बनी-इस्राईल) पर मन्सूबा बाँधते हैं और तेरे छुपाए हुओं के ख़िलाफ़ मश्वरत करते हैं। वो कहते हैं कि आओ इनको उखाड़ डालें कि उनकी क़ौम ही न रहे। और इस्राईल का नाम फिर ज़िक्र में ना आए। क्योंकि उन्होंने एका कर के जी (दिल) से मश्वरत की है और तेरी मुख़ालिफ़त में अहद बाँधा है। अदूम के अहले-ख़ेमा और मूआबी और हाजिरी (अरब के बाशिंदे) और जबल और अम्मोन और अमालेक और फ़िलिस्तीन और सूर के बाशिंदों समेत मुत्तफ़िक़ हैं। असूर भी उनमें शामिल है। उन्होंने बनी लूत की मदद में अपने हाथ बढ़ाए सलाह। तू (ऐ ख़ुदा) उन से (इस़्माईलियों हाजिरियों वग़ैरह) से ऐसा कर कि जैसा तू ने मिदयानियों, और सेसरा और याबीन से वादी-ए-केसून में किया जो एन दौर में हलाक हुए। वो ज़मीन की खाद हो गए। और बनी-इस्राईल ने मिदयानियों से लड़ाई की जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया था और सारे मर्दों को क़त्ल किया।

मिद्यान के पाँच बादशाहों को जान से मारा। और बनी-इस्राईल ने मिद्यान की औरतें और उनके बच्चों को असीर (क़ैदी) किया। और उनके मवेशी और भेड़ बक्री और माल व अस्बाब सब कुछ लूट लिया। और उनके सारे शहरों को जिनमें वो रहते थे। और उनके सब क़ल्ओं को फूंक दिया। गिनती 1:3 बाब 7, 8, 9, 10 आयत। तब ख़ुदावन्द ने सेसरा को और उस के सारी रथों और उस के सारे लश्कर को तल्वार की धार से बर्क़ के सामने शिकस्त दी। चुनान्चे सेसरा का सारा लश्कर तल्वार से मांद पड़ा और एक भी ना बचा। तब हेब्रकेनी की जोरू याइल ने खे़मे की एक मेख़ उठाई और एक सेख़ को हाथ में लिया और दबे-पाँव सेसरा पास जा के और मेख़ उस की कनपटी पर धर के ऐसी गाड़ी कि ज़मीन में जा धंसी क्योंकि वो भारी ख्व़ाब में था। और मांदा हो गया था। सो वो मर गया। क़ज़ात 4 बाब 15, 16, 21 आयत। और बनी-इस्राईल के हाथ निहायत ज़ोर पकड़ चले कि कनआन के बादशाह याबीन पर ग़ालिब हुए यहां तक कि उन्हों ने शाह कनआन याबीन को नेस्त कर डाला। (कज़ात 4 बाब 24 आयत) उन्हें (इस़्माईलियों हाजिरियों वग़ैरह) को हाँ उन के अमीरों को औरेब और ज़ईब की मानिंद करो। और उन्होंने मिद्यान को दो सरदारोँ औरेब और ज़ईब को पकड़ा। और औरेब को औरेब की चट्टान पर और ज़ईब को ज़ईब के कोलहू के पास क़त्ल किया और मिद्यान को रगीदा और औरेब और ज़ईब के सरीर दिन के पार जदऊन के पास लाए। कज़ात 7:25 आयत। बल्कि उनके सारे सरदारोँ को ज़िबह और ज़ुल्मना की मानिंद करो। सो जब ज़िबह और ज़ुल्मना भागे तो जदाऊन ने उन्हें रगीदा और उन मिदयानी बादशाहों ने ज़िबह और ज़ुल्मना को पकड़ा और सारे लश्कर को परेशान किया। सो जदाऊन ने उठ के ज़िबह और ज़ुल्मना को क़त्ल किया। (कज़ात 8 बाब 12, 13 आयत) जिन्हों ने कहा है कि आओ ख़ुदा के घरों के (जिनमें बनी-इस्राईल रहते हैं) हम मालिक बनें। ऐ मेरे ख़ुदा तू उन्हें (इस़्माईलियों, हाजिरों वग़ैरह) को गर्द बाद के मानिंद कर। और भूस की मानिंद रुबुर्द हवा के। जिस तरह आग जंगल को जलाती है और जिस तरह शोला पहाड़ों को झुलस देता है। इसी तरह तू अपनी आंधी से उन का पीछा कर और अपने तूफ़ान से उन्हें परेशान कर। ऐ ख़ुदावन्द उनके मुँह को रुस्वाई से भर दे। ताकि लोग तेरे नाम के तालिब हों। ऐ लोगो (इस़्माईली, हाजिरी वग़ैरह) अब तक शर्मिंदा और परेशान हों हाँ वो रुस्वा हों और फ़ना हो जाएं। और लोग जानें कि तू ही अकेला जिसका नाम यहोवा है सारी ज़मीन पर बुलंद व बाला है।

ख़ुदा की तरफ़ से अगर इस़्माईली बरकत का वारिस होता तो हज़रत दाऊद जैसा ख़ुदा का बर्गुज़ीदा (चुना हुआ) शख़्स उस की औलाद को बुत-परस्तों के साथ कर के उन पर ऐसी ऐसी सख़्त नेअमतें ना करता। क्योंकि हज़रत दाऊद ख़ुदा और उस के लोगों की कमाल इज़्ज़त करने वाला आदमी था। साऊल अगरचे ख़ुदा का गुनेहगार और दाऊद की जान का दुश्मन भी बन गया था। मगर हज़रत दाऊद ने उस अदब के सबब से कि साऊल पहले भी एक दफ़ाअ ख़ुदा की तरफ़ से ममसूह हो चुका था। उस को मारने पर हाथ नहीं उठाया। सो दाऊद और अबेशे रात को लश्कर में घुसे और देखो उस वक़्त साऊल अहाते में पड़ा हुआ सोता था। उस का नेज़ा उस के सिरहाने ज़मीन में गड़ा था और अबनीर और अहले लश्कर उस के गिर्द पड़े हुए थे। इस दम अबेशे ने दाऊद को कहा ख़ुदा ने आज के दिन तेरे दुश्मन को तेरे क़ाबू में कर दिया। अब हुक्म हो तो मैं उसे नेज़े से एक ही बार में वारकर के ज़मीन के बीच छेद दूँ और मैं उसे दुबारा ना मारूंगा। सो दाऊद ने अबेशे को कहा उसे जान से मत मार। क्योंकि ख़ुदावन्द के ममसूह पर कौन है जो हाथ उठाए और बेगुनाह ठहरे। और दाऊद ने ये भी कहा कि ज़िंदा ख़ुदा की क़सम ख़ुदावन्द आप उस को मारेगा। या उस का दिन आएगा कि वो अपनी मौत से मरेगा। या वो जंग पर चढ़ेगा। और मारा जाएगा। लेकिन ख़ुदावन्द ना करे कि मैं ख़ुदावन्द के ममसूह पर हाथ चलाऊं। 1 समुएल 26 बाब 7 से 11 तक।

बलआम ने इज़्हाक़ की औलाद परा गरचे लानत की तो ना थी मगर चूँकि लानत करने के इरादे से गया था इस वास्ते ख़ुद मलऊन हुआ। तो मूसा ने उनको लड़ाई पर भेजा। और उन्होंने बाऊर के बेटे बलआम को भी जान से मारा। गिनती1 3 बाब 3 से 8 आयत मगर दाऊद बावजूद ये कि और इस़्माईलियों और हाजिरियों को बुत परस्त क़ौमों के साथ शुमार कर के उन को ख़ुदा के दुश्मन और उस से कीना रखने वाले कहता है। और उन पर सख़्त सख़्त लानतें करता है तो भी वो मलऊन नहीं बल्कि ख़ुदा की तरफ़ से मुबारक है क्योंकि वो हज़रत इज़्हाक़ की औलाद की बरकत का ख़्वाहां है। मैंने अपने बर्गुज़ीदा से एक अहद किया है मैंने अपने बंदे दाऊद से क़सम खाई है मैं तेरी नस्ल को अबद तक क़ायम रखूँगा। और तेरे तख़्त को पुश्त दर पुश्त क़रार बख्शूंगा। 89 ज़बूर 3, 4 आयत।

पस जो कोई बलआम की मानिंद बनी इज़्हाक़ के बरख़िलाफ़ किसी और को बरकत देना चाहेगा। या इस्माईलों और हाजिरियों वग़ैरह की मानिंद जिन्हों ने कहा था, कि आओ ख़ुदा के घरों के हम मालिक बनें। और कहा था कि आओ उनको उखाड़ डालें कि क़ौम न रहे और इस्राईल का नाम फिर ज़िक्र में ना आए। बनी इज़्हाक़ की बरकत आप छीनना चाहेगा। लानत का हक़दार होगा। लेकिन जो कोई इज़्हाक़ को जिसकी नस्ल से ख़ुदावन्द येसू मसीह इन्सानी जिस्म में ज़ाहिर हुआ। बरकत देगा। वो आप ख़ुदा से बहुत ही बहुत बरकतें पाएगा।

चाहिए कि तमाम जहान के लोग उमूमन और मुहम्मदी साहिबान ख़ुसूसुन इस बरकत और लानत पर ग़ौर करें। और हर फ़र्द बशर अपने लिए ये दुआ मांगे। काश कि मैं सादिक़ों की मौत मरुँ और मेरी आक़िबत (आख़िरत) मसीह हक़ तआला के लोगों की सी हो। आमीन

अल-सालूस अल-क़ुद्स

गुज़श्ता मज़्मून में हमने मसअला सालूस (ख़ुदा की वहदानियत की तीन शाख़ें, बाप, बेटा, रूह-उल-क़ुद्स) का एक अक़्ली सबूत देने की कोशिश की थी। अब इसी सिलसिले में दूसरी कोशिश की जाती है। याद रहे कि यहां हमारा काम अक़्ले इंसान से है। हम ये दर्याफ़्त कर रहे हैं कि आया अक़्ले इंसान के नज़्दीक तस्लीस

Holy Trinity

अल-सालूस अल-क़ुद्स

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One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan October 18, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 18 अक्तूबर 1895 ई॰

गुज़श्ता मज़्मून में हमने मसअला सालूस (ख़ुदा की वहदानियत की तीन शाख़ें, बाप, बेटा, रूह-उल-क़ुद्स) का एक अक़्ली सबूत देने की कोशिश की थी। अब इसी सिलसिले में दूसरी कोशिश की जाती है। याद रहे कि यहां हमारा काम अक़्ले इंसान से है। हम ये दर्याफ़्त कर रहे हैं कि आया अक़्ले इंसान के नज़्दीक तस्लीस (तीन हिस्सों में तक़्सीम, बाप, बेटा, रूह-उल-क़ुद्स) का कोई सबूत मुम्किन है या नहीं। ख़ुदा अपने आप में क्या और कैसा है उस को तो अक़्ल कभी पहचान भी नहीं सकती। बह्स ये है कि अक़्ले इंसानी जो ख़यालात उस पाक ज़ात की बाबत रखती है उस में तस्लीस की गुंजाइश है या नहीं। मुख़ालिफ़ान-ए-सालूस उमूमन एक ऐसे यक़ीन और तंग दिमाग़ी के साथ बह्स करते हैं जिससे मालूम होता है, कि गोया ख़ुदा कोई शैय है जो उन्होंने अपनी मुट्ठी में बंद कर रखी है। और जब हम कहते हैं कि तीन अक़ानीम (उक़नूम की जमा, मुक़द्दस तस्लीस के अफ़राद) हैं तो वो अपनी मुट्ठी खोल कर हमें दिखलाते हैं और कहते हैं वाह यहां तो एक ही है। ये मह्ज़ गुस्ताख़ी और दिमाग़ की तंगी है। अगर ख़ुदा वाहिद मह्ज़ है तो हमारी मह्ज़ गुस्ताख़ी और दिमाग़ की तंगी है। अगर ख़ुदा वाहिद मह्ज़ है तो हमारी अक़्ल से बईद (दूर) है। और अगर वो वाहिद फ़ील सलूस है तो हमारी अक़्ल से बईद है। बह्स इस बात से है कि अक़्ले इंसानी अपने तंग दायरे के अंदर और अपनी कोताह कदी (छोटा क़द) से सालूस की तरफ़ इशारा करती है या मह्ज़ तौहीद (ख़ुदा को एक मानना) की तरफ़। और सच्च पूछो तो असली हक़ीक़त एक तिनके की भी हम जान नहीं सकते।

इंसानी अक़्ल और फ़ल्सफ़ा पुकार पुकार कर कह रहा है, कि एक शख़्स जो मह्ज़ वाहिद है अपनी हस्ती से वाक़िफ़ नहीं हो सकता। “मैं” इंसान तभी कह सकता है कि जब “मैं” के मुक़ाबले “मैं” तो मौजूद हो या तू का ख़याल हो। इस की मिसाल यूं अदा हो सकती है। एक आदमी का ख़याल करो जो अंधा बहरा गूँगा यानी बग़ैर हवासे ख़मसा के पैदा हो तो मुम्किन नहीं। कि उस को ये मालूम हो कि मैं हूँ। ये मिसाल हमने इस लिए चुनी है कि हमारा मतलब फ़क़त इसी से अदा हो सकता है। जिस शख़्स में एक भी हिस हो वो दूसरी शैय की मौजूदगी से वाक़िफ़ हो कर अपनी हस्ती से वाक़िफ़ हो सकता है। वर्ना नहीं।

अब हमारा सवाल है कि अगर ख़ुदा अज़ल से मह्ज़ वाहिद है और दुनिया की पैदाइश से पहले उस में अक़ानीमे सलासा मौजूद ना थी तो उस को किस तरह मालूम हुआ कि मैं हूँ। अकेली शैय इंसानी अक़्ल के नज़्दीक नहीं कह सकती कि मैं हूँ। या तो ये मानो कि हमेशा से ख़ुदा के साथ कोई और ग़ैर शैय थी जिसको देख कर वो कह रहा था कि मैं हूँ और ये मानो कि दुनिया की पैदाइश से पहले ख़ुदा ना जानता था कि मैं हूँ। अगर इन दोनों में से एक हालत भी तस्लीम कर ली जाये तो ख़ुदा ख़ुदा नहीं रहता।

अगर कोई इस के जवाब में कहे कि ख़ुदा अपनी ज़ात ही से उस के मुस्तग़नी (आज़ाद) होने का और कोई वसीला नहीं।

एक तीसरी दलील भी हम यहां लिखते हैं। ख़ुदा की सिफ़ात बहुत सी माअनी गई हैं। लेकिन जितनी इंसानी अक़्ल में आई हैं चंद ही हैं। यानी इल्म, मुहब्बत, क़हर, रहम अदल, क़ुद्रत लेकिन जब बनज़र ग़ौर देखते हैं तो ये सिफ़ात दूर रह जाती हैं। यानी इल्म और मुहब्बत, ख़ुदा का क़हर उस की मुहब्बत का एक ख़ास क़िस्म का ज़हूर है। रहम और अदल की भी हालत है और उस की क़ुद्रत भी मुहब्बत ही की क़ुद्रत है।

अब इल्म दूसरी शैय को नहीं चाहता माअनी हुई बात है कि अपना इल्म अपनी ज़ात का पहचानना सबसे आला इल्म है। नौदाई सलफ़ ख़ुदा के इल्म को किसी दूसरी शैय की हाजत (ज़रूरत) नहीं कि उस की मालूम बने। लेकिन मुहब्बत का ये तक़ाज़ा है कि वो दूसरी शैय को चाहती है। अपनी मुहब्बत ख़ुदग़रज़ी है। पस अगर मसअला सालूस दुरुस्त नहीं तो ख़ुदा महबूब कहाँ था।

इस के जवाब में अगर कोई सवाल करे कि ख़ुदा के क़हर का मक़हूर इंसान व शयातीन की पैदाइश से पहले कहाँ था। तो हम जवाब देते हैं कि उस का क़हर तो उस की मुहब्बत ही का एक ख़ास ज़हूर है। वो आदमी की तरह जुनून कर के किसी को मारने या सज़ा देने नहीं दौड़ता। बल्कि उस की मुहब्बत चाहती है कि अगर इंसान नर्मी व रहम से दुरुस्त नहीं हो तो सख़्ती से दुरुस्त किया जाये।

लेकिन अगर कोई कहे कि ज़रूरी नहीं कि अगर किसी शख़्स में कोई ताक़त है तो ज़रूर कोई ऐसी शैय भी उस के पास हो जिस पर वो इस ताक़त को सर्फ करे। हम इस का जवाब ये देते हैं कि क्या अक़्ल में आता है कि ख़ुदा जो ज़माना अज़ल से है सुस्ती के आलम में रहा और सिर्फ जब से उसने दुनिया को ख़ल्क़ किया तब ही से उस की मुख़्तलिफ़ ताक़तें और सिफ़ात काम में आने लगीं। अक़्ल से पूछो क्या जवाब देती है।

एक और दलील भी लिखते हैं। ख़ुदा ग़ैर-महदूद है और उस की सिफ़ात और ताक़तें भी ग़ैर-महदूद हैं। दुनिया महदूद और उस की ताक़तें और क़ाबिलीयतें भी महदूद हैं।

अब हम देखते हैं कि अगर किसी मदरिसे में एक बड़े आलिम को छोटे लड़कों को अलिफ़ बे पढ़ाने को बिठा दिया जाये तो कहा जाता है कि इस आलिम की लियाकतें बे इस्तिमाल पड़ी हैं। पस ये क्योंकर अक़्ले इंसानी में आता है, कि ग़ैर-महदूद ख़ुदा की ग़ैर-महदूद सिफ़ात और क़ुव्वतें सब इस महदूद दुनिया में सर्फ हो रही हैं। और ये नहीं तो ये मानो कि ख़ुदा की सिफ़ात का एक बहुत बड़ा बल्कि ग़ैर-महदूद हिस्सा सुस्त और बेकार पड़ा है। अक़्ले इंसानी के वास्ते ये जानना ज़रा दुशवार (मुश्किल) है। इस से ये मान लेना आसान तर है। कि ज़माना अज़ल से बाप के साथ बेटा मौजूद है जिसमें बाप अपनी माहीयत (हक़ीक़त) का नक़्श देख रहा है। जिसको बाप की बे-इंतिहा सिफ़ात मिली हैं और जिस से बाप की बे-इंतिहा मुहब्बत का तक़ाज़ा पूरा हो रहा है। हम फिर कहते हैं कि मह्ज़ तौहीद की निस्बत तौहीद फ़ी अल-सालूस का मानना और अक़्ल में लाना आसान तर है।

ऐ बोझ से दबे हुए

अगर कोई शख़्स हक़ का तालिब हो कर सवाल करे, कि किस तरह नजात पाऊँगा उस के लिए ये अच्छा और तसल्ली का जवाब है, कि अगर तू सच-मुच फ़ज़्ल का मुहताज और दिल के आराम और हयात-ए-अबदी का आर्ज़ूमंद है, तो जो तू चाहता है सो पा सकता है। मसीह की तरफ़ रुजू कर कि वो बचाने को दुनिया में आया और अपने

O Burdened ones

ऐ बोझ से दबे हुए

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan October 18, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 18 अक्तूबर 1895 ई॰

ऐ मेहनत उठाने वालो और बोझ से दबे हुए लोगो मेरे पास आओ। मैं तुम को आराम दूंगा। मत्ती 11 बाब 28 आयत

अगर कोई शख़्स हक़ का तालिब हो कर सवाल करे, कि किस तरह नजात पाऊँगा उस के लिए ये अच्छा और तसल्ली का जवाब है, कि अगर तू सच-मुच फ़ज़्ल का मुहताज और दिल के आराम और हयात-ए-अबदी का आर्ज़ूमंद है, तो जो तू चाहता है सो पा सकता है। मसीह की तरफ़ रुजू कर कि वो बचाने को दुनिया में आया और अपने कलाम के साबिक़-उल-ज़िक्र आयत में तुझे अपने पास बुलाता तुझसे मुहब्बत रखता और बहुत बहुत चाहता है कि तुझे बचाए और ख़ुदा से मिलाए सो हम इस वक़्त उस के फ़ज़्ल से इस मतलब का बयान करेंगे कि ख़ुदावन्द येसू मसीह हमें नजात देने का बहुत आर्ज़ूमंद है।

इस बड़ी बात के बयान करने में चाहिए कि सबसे पेश्तर उस पर नज़र करें जो इस नसीहत की आयतों में आदमीयों को अपने पास बुलाता और उन्हें आराम देने का वाअदा करता है वो कौन है येसू मसीह ही हयात का सूरज नजात का तारा सच्चाई का चशमा जिसे ख़ुदा ने हमारे लिए हिक्मत और रास्ती और पाकीज़गी ठहराया है। उसने हमारा सच्चा सरदार काहिन हो के अपना ही लहू बहाया और अपनी ही जान दी है ताकि गुनेहगारों के लिए ऐसा कफ़्फ़ारा जो ख़ुदा को मक़्बूल व मंज़ूर हो और हमेशा क़ायम रहे हासिल करे पस ये इस आस्मानी बादशाह से मुराद है जो अपने सब ईमानदार मोअतक़िदों (एतिक़ाद रखने वालों) को बादशाहत ज़ूल-जलाल और ताज लाज़वाल देगा। क्योंकि वो सब चीज़ों का मालिक और सब ख़ूबीयों का बानी और देने वाला है सुनो यह बड़ा बादशाह ये दौलतमंद मालिक ये करीम अल-रहमान ख़ुदावन्द लाचार ख़ाकसार आदमीयों के पास आया कि उन्हें अपने नज़्दीक करे क्योंकि बहुत चाहता है कि उन्हें बचाए और आस्मान का वारिस ठहराए।

सो वो यूं पुकार कर हमें बुलाता है कि इधर मेरे पास आओ उस की मीठी आवाज़ और करीम बुलाहट है वो बेशक हमारी बेहतरी चाहता और हमारी नजात का मुश्ताक़ (मुंतज़िर) है और गोया हाथ फैला कर इस का आर्ज़ूमंद है कि जिस तरह मुर्ग़ी अपने बच्चों को अपने परों तले जमा करती है उसी तरह हमें अपने फ़ज़्ल के साये में पनाह दे। जब मसीह ने पुकार के मज़्कूर बातें कहीं उस वक़्त बहुत बहुत और तरह-तरह के आदमी उस के आगे खड़े थे। उनमें से बाअज़ दौलत मंद बाअज़ ग़रीब कई बुज़ुर्ग कई हक़ीर थे। बल्कि फटे और मैले कपड़े पहने हुए आदमी भी हाज़िर थे। उन सबको पुकार कर कहा, ऐ सब लोगो मेरे पास आओ उसने इस्राईल की सब खोई हुई भेड़ों को अपने पास बुलाया कि उन्हें नजात दे हाँ जहां के सब बाशिंदों पर करम की नज़र कर के उन्हें बुलाया और आज तक बुलाता है और कहता है कि ऐ सब लोगो इधर मेरे कहने पर आओ फिर आइन्दा ज़माने के लोगों को जो आगे पैदा होंगे अपने दाइमी कलाम से पुकार के फ़रमाता है कि आओ सब मेरे पास आओ वो हरगिज़ किसी को अपने फ़ज़्ल से महरूम नहीं करना बल्कि चाहता है कि सब के सब ख़्वाह दौलतमंद ख़्वाह कंगाल चाहे इज़्ज़तदार हों चाहे ख़ाकसार उस के शरीक और शामिल हों। हाँ उनको भी जो सबसे ग़रीब सबसे हक़ीर व फ़क़ीर हैं। अपने पास बुलाता है और उनमें से जो आते हैं कभी किसी को नामंज़ूर नहीं करता बल्कि उन्हें ख़ुशी से क़ुबूल करता है। तुझे भी ऐ पढ़ने वाले बुलाता है। तू भी उसकी पसंद और उस का महबूब व मक़्बूल है किस मर्तबे और दर्जे का आदमी तू क्यों ना हो अगर मसीह की आवाज़ सुन के और मान के उस के पास आए मक़्बूल होगा क्योंकि ख़ुदावन्द उनको जो थके-माँदे और बोझ से दबे हैं बुलाता और वाअदा करता है कि जो कोई आजिज़ हो के मेरे पास आए मैं उसे हरगिज़ नहीं निकालूँगा। यूहन्ना 6 बाब 37 आयत।

फिर येसू मसीह थके-माँदे और बोझ से दबे लोगों का ज़िक्र इस लिए करता और उन्हें पुकारता है, कि इन लफ़्ज़ों से हमारी तक़्लीफों और ग़मों और दुख दर्दों को ख़्वाह जिस्मानी हों ख़्वाह रुहानी ज़ाहिर करे और शौक़ दिलाए कि सच्चे और हक़ीक़ी ग़रीब परवर यानी ख़ुदा-ए-परवरदिगार के पास आएं और उस की मदद के मुंतज़िर रहें और जो हम लोग अपनी अपनी हालत को ग़ौर से सोचें तो यक़ीनन ये मालूम होता है कि सभों के ऊपर किसी तरह का बोझ है कोई नहीं कह सकता कि मुझ पर बोझ नहीं बल्कि हर एक आदमी अपना ख़ास बूझ रखता है हर एक को किसी ना किसी तरह का ग़म या रंज या दुख है और जो बोझ सबसे भारी और सख़्त है सो गुनाह का है जिससे हम सब लोग दबे हैं। मगर तू ऐ दोस्त इस भारी बात से वाक़िफ़ ना हो या वाक़िफ़ हो, चाहे तू मत कह कि मुझ पर गुनाह का बोझ नहीं बल्कि अपने ख़यालों और बातों और कामों को परख कि उनकी हक़ीक़त को ख़ूब सोच और उस आदिल मुंसिफ़ के हुज़ूर जो दिल के अंदर देखता और पोशीदा (छिपी हुई) बातों से भी वाक़िफ़ है दर्याफ़्त कर कि तू लड़काई (लड़कपन) से अब तक क्या-क्या काम अमल में लाया। तो तू जान जाएगा कि गुनाह का बोझ तुझ पर भी लदा और तुझे भी दबा देता है। और अगरचे शायद इस का दबाना तुझे मालूम ना होए तो भी तुझे दबा लेता है। क्योंकि तेरी नाख़ुशी और बे-आरामी तेरा वो ख़ौफ़ जो कभी-कभी तेरे दिल में मालूम होता है। कहाँ और किस सबब से है क्या ये उस बोझ का जो तेरी गर्दन पर लदा है निशान नहीं। यक़ीनन इसी से है अगर तू माने या ना माने पर गुनाह का बोझ तुझ पर हो के तुझे यहां तक दबाता है, कि तू अपनी आँखें ख़ुदा और आस्मान की तरफ़ नहीं उठा सकता। इलावा इस के और तरह की दुश्वारियां (मुश्किलात) और तकलीफ़ें और आफ़तें हमें कभी ज़ाहिर कभी बातिन (पोशीदा, अंदरूनी हिस्सा) में दबाती हैं। यानी इस दुनिया के सब रोक-टोक, दुख-दर्द वग़ैरह जिनका हर एक आदमजा़द हिस्सेदार है। ग़र्ज़ इस दुनिया की सारी ज़िंदगी एक बोझ है जो सिर्फ मरते वक़्त उतारा जाता है। पस ज़ाहिर और बातिन में ज़ेर-ए-बार (बोझ के नीचे) और बारिदार (फलदार, साहब-ए-औलाद) हो कर आदमी ज़िंदगी गुज़ारते और लाचार (मुहताज, मजबूर) हो कर क़ब्र की तरफ़ जो ख़ुदा की दरगाह और अदालत का दरवाज़ा है चले जाते हैं।

फिर ख़ुदावन्द रहीम हो कर इसलिए इन सब कम्बख़्त मुसाफ़िरों को बुला बुला कर कहता है, कि ऐ सब लोगो जो थके-माँदे और ज़ेर-ए-बार (बोझ के नीचे) हो। मेरे पास आओ कि मैं तुम्हें ताज़ा-दम और आराम बख्शूंगा। और इसलिए ये रुहानी खूबियां और नेअमतें उन्हें दिखलाता और पेश करता है, कि उनके देखने और चखने से उन लाचारों (मजबूरों) के दिलों में मसीह के पास आने का शौक़ पैदा हो। सो ऐ दोस्त कान धर और सुन ले कि तू भी जिसका दिल बे आरामी और ग़म से भरा है। और तू भी जिस पर शरीअत की लानत और सज़ा का हुक्म है। और तू भी जो अपने राहों और तरीक़ों में अबस (फ़ुज़ूल) मदद और रिहाई ढूंढ कर दुनियावी चीज़ों से तसल्ली नहीं पा सकता। और तू भी जिसको उस की ज़िंदगी की आंधीयां और मुख़ालिफ़ों और शैतान के मुक़ाबलों में पनाह नहीं मिलती। और ख़ासकर तू भी जिसके गुनाह का बोझ भारी मालूम देता बुलाया जाता है। हाँ तुम सबको ऐ गुनेहगार और लाचार आदमीयों ख़ुदावन्द येसू मसीह बुलाता तुम्हें ताज़ा करना और चेन देना चाहता है। जैसे कि ओस आस्मान से और मीना बादल से सूखी ज़मीन पर पढ़के उसे तर व ताज़ा करते। और जिस तरह मीठे पानी का कंडावर हरे दरख़्तों का झुण्ड थके और मांदे मुसाफ़िर को ताज़गी देते हैं। वैसे ही रुहानी रिहाई और जानी ताज़गी और दिली आराम येसू मसीह से है।

वो हमें अपनी सलीब और लहू और दुख-दर्द और जाँ-कनी जिनसे हम लोगों के लिए सुलह और ज़िंदगी और ख़ुशी हासिल हुई दिखाता और गोया यूं कहते हुए तसल्ली देता है, कि मैंने तुम्हारे क़र्ज़ अदा किए तुम्हारी सज़ा अपने ज़िम्मे ली सो तुम ख़ुदा से मिल गए और उस के ले पालक बेटे और बेटियां हुए। और अगर मुझ पर सच्चा ईमान लाओ और भरोसा रखो तो तुमको ना दुनिया में ना आख़िरत में ख़ौफ़ व ख़तरा होगा। मैं तरह आदमी का बोझ हल्का, जुआ मुलायम, दिल ताज़ा और ख़ातिरजमा होती है। और ऐसा शख़्स कह सकता है कि मैं तसल्ली का मुहताज था पर तू ने ऐ ख़ुदावन्द मेरी जान फिर ला कर हलाकत से बचाई। क्योंकि तू ने मेरे सारे गुनाह अपनी नज़र से दूर किए ख़ुदा तू मेरी रोशनी और मख़लिसी (नजात) है। पस किस से डरूं वो मेरी ज़िंदगी की क़ुव्वत है किस से ख़ौफ़ करूँ।

इस्लाम पर मुकालमा

ज़ेल का मुकालमा चूँकि आपके मुलाहिज़े के क़ाबिल है लिहाज़ा मैंने चाहा कि इसे एक काग़ज़ पर लिख कर आपके पास ना भेजूँ पस आप भी बराहे मेहरबानी पढ़ कर बज़रीये नूर-अफ़्शां शाएअ फ़र्मा दीजिए। ये मुकालमा माबैन एक मुहम्मदी और एक ईसाई वाइज़ के हुआ है।

Dialogue on Islam

इस्लाम पर मुकालमा

By

Kidarnath Manat
क़ेदारनाथ मिन्नत

Published in Nur-i-Afshan October 11, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 11 अक्तूबर 1895 ई॰

जनाब ऐडीटर साहब

तस्लीम,

ज़ेल का मुकालमा चूँकि आपके मुलाहिज़े के क़ाबिल है लिहाज़ा मैंने चाहा कि इसे एक काग़ज़ पर लिख कर आपके पास ना भेजूँ पस आप भी बराहे मेहरबानी पढ़ कर बज़रीये नूर-अफ़्शां शाएअ फ़र्मा दीजिए। ये मुकालमा माबैन एक मुहम्मदी और एक ईसाई वाइज़ के हुआ है।

मुहम्मदी : क्यों वाइज़ साहब आप मसीह मसीह पुकारते हैं। नाहक़ सर मारते हैं। क्या दीन-ए-इस्लाम के मुक़ाबिल आप की ईसाईयत फ़रोग़ पा सकती है?

वाइज़ : प्यारे भाई ये आपकी ग़लती है, जो कहते हैं कि आपकी ईसाईयत ये ईसाईयत हमारी ईसाईयत नहीं है बल्कि ख़ुदावंद येसू मसीह की ईसाईयत है। ये ना मानने वालों बल्कि ख़ुद येसू मसीह पर मौक़ूफ़ है उसने वाअदा किया है, कि ये तमाम अदयाने बातिला (झूटे मज़ाहिब) पर ग़ालिब आएगी और एक ही गल्ला और एक ही गडरिया (चरवाहा) होगा।

मुहम्मदी : आपने आँख खोल कर सिवाए इन्जील के और कुछ नहीं देखा वर्ना मालूम हो जाता कि ख़ुदावंद तआला सिवाए दीने इस्लाम के और किसी दीन को पसंद नहीं करता है और ना करेगा।

वाइज़ : प्यारे भाई हमने अगर और कुछ नहीं पढ़ा तो क्या मज़ायका (हर्ज) हमारे पास तौरेत ज़बूर कुतुबे अम्बिया और इन्जील शरीफ़ मौजूद है और यही ख़ुदा का कलाम है इस के बाहर नजात की बाबत कुछ नहीं है तो भी हमने क़ुरआन पढ़ा और अरब की अस्ल तवारीख और दीने मुहम्मदी की बुनियाद हमको मालूम है।

मुहम्मदी : क़ुरआन शरीफ़ का पढ़ना बहुत मुश्किल है और इस का तर्जुमा करना हर एक के लिए सनद नहीं है। तो भी जो कुछ इस के बाहर आपने पढ़ लिया वो हमको भी बताएं।

वाइज़ : मुल्क अरब में बुत परस्ती फैली हुई थी और वहां के बुत-परस्त भी सब एक ही अक़ीदे के ना थे। जिस तरह हमारे हिन्दुस्तान में क्योंकि यहां अगरचे मुख़्तलिफ़ फ़िर्क़े हनूद नज़र आते हैं मगर उनमें एक ये बात है कि चार वेद छः शास्त्र हर एक के मुत्तफ़िक़ अलैहि हैं। और वहां के बुत-परस्तों का पाक मुक़ाम जिसको मंदिर कहें मक्का में काअबा था।

मुहम्मदी : काअबा शरीफ़ हज़रत इब्राहिम ख़लील-उल्लाह और उनके फ़र्ज़न्द इस्माईल के हाथों से बना है और आप कहते हैं कि बुत-परस्तों का मुक़ाम ये कैसी बात है।

वाइज़ : हज़रत इब्राहिम ख़लील-उल्लाह की सारी तवारीख़ हज़रत मूसा ने लिख कर हमको दे दी है उनके बुलाए जाने से उनकी वफ़ात तक कुल हाल सिलसिले-वार हमको मिलते है लेकिन काअबा का बनाना कहीं साबित नहीं है।

मुहम्मदी : अगर बाइबल में ये हाल ना हो तो इस से ये नहीं साबित होता कि हज़रत इब्राहिम ने मक्का का काअबा नहीं बनाया।

वाइज़ : भाई साहब हम जानते हैं कि हज़रत इब्राहिम ख़ुदा के बर्गुज़ीदा ईमानदारों के बाप ने ना कोई मज़्हब ईजाद किया और ना कोई परस्तिशगाह मुक़र्रर की सिवाए उस के जो ख़ुदा तआला ने उन्हें इशारा किया और उन्होंने कई मुक़ामात पर क़ुर्बान गाह बनाई और आख़िर को वो ख़ास मुक़ाम जहां हज़रत ने अपने इकलौते फ़र्ज़न्द मौऊद (वाअदा किया हुआ बेटा) इज़्हाक़ को ज़ब्ह करना चाहा और ख़ुदावंद की तरफ़ से उनको फिर ज़िंदा वापिस मिला। उस को ख़ुदा ने मंज़ूर फ़रमाया और आख़िरकार वहीं पर दाऊद के बेटे हज़रत सुलेमान ने हैकल तैयार की और ख़ुदा ने अपनी हुज़ूरी से उसे शर्फ बख़्शा अगर दर-हक़ीक़त इब्राहिम ने कोई काअबा बनाया होता तो ज़रूरत ना थी, कि मुल़्क सुरया में भी खुदा अपने लिए एक इबादत-गाह मंज़ूर करता। हज़रत दाऊद से जो निहायत मुश्ताक़ थे, कि ख़ुदा के लिए एक घर बनाएँ साफ़ कह देता कि तेरे दादे अबराहाम ने मक्का में मेरे लिए एक घर बना दिया है उस में मेरी हुज़ूरी तुझको मिलेगी। चूँकि ऐसा नहीं हुआ पस मुहम्मदियों की रिवायत मह्ज़ गलत है।

मुहम्मदी : अच्छा आगे बयान फ़रमाईए हम मौलवी साहब से दर्याफ़्त कर लेंगे।

वाइज़ : बाद चंद रोज़ के यहूदी लोग जो अपने असली वतन से ख़ारिज हुए और ख़ुदा के बेटे को रद्द करने की हमाक़त में इधर-उधर भगाए गए उनकी हैकल बर्बाद होती तो सीधे मुल्क अरब में पनाहगीर हुए उन्होंने अपनी बिगड़ी हुई यहूदियत को अरब में रिवाज दिया।

मुहम्मदी : इन यहूदीयों को आप बिगड़े हुए यहूदी क्यों कहते हैं।

वाइज़ : हम उनको बिगड़े हुए यहूदी इसलिए कहते हैं कि उन्होंने ख़ुदा के कलाम के समझने में अपनी ही राय को दख़ल दिया और जो कुछ ख़ुदा के नबियों ने उन्हें बार-बार हिदायत की उस पर अमल ना किया। और जब आख़िरी ज़माने में ख़ुदा अपने बेटे के वसीले उनसे बोला तो उन्हों ने और भी सरकशी कर के उसे मार डाला और बड़ी मौत से मारा। और उस पर ईमान ना लाए इस वास्ते अब जो कुछ उनकी राइयों का ज़ख़ीरा उनके पास है वही बिगड़ी हुई यहूदियत है।

मुहम्मदी : ये मालूम हो हक़ीक़त में जब कि येसू वही मसीह है तो उस से इन्कार करना ज़रूर बर्बादी का बाइस है।

वाइज़ : चंद रोज़ के बाद चंद ईसाई बिद्अती फ़िर्क़े जो सच्ची कलीसिया से ख़ारिज किए गए वो भी भाग कर मुल्क अरब में आ बसे और कई एक अरबी अक़्वाम को ईसाई बनाया।

मुहम्मदी : आप उन्हें बिद्अती ईसाई कहते हैं मगर हमारे क़ुरआन में तो उनकी बहुत तारीफ़ है।

वाइज़ : अगर दर-हक़ीक़त क़ुरआन कलाम-ए-इलाही होता तो पहचान लेता कि ये सच्चे ईसाई हैं या बिद्अती मुहम्मद साहब ने धोका खाया और धोका खाने की वजह भी थी। क्योंकि ईसाई हज़ार बिगड़ा हो तो भी बनिस्बत और लोगों के अख़्लाक़ में ब दर्जा ज़्यादा होगा। पस क्या ताज्जुब है कि उन ईसाईयों के चाल चलन से मुहम्मद साहब फ़रेफ़्ता (आशिक़) हो कर क़ुरआन में उनकी तारीफ़ लिख गए।

मुहम्मदी : इस से साबित होता है कि हमारे पैग़म्बर बरहक़ हैं क्योंकि अगर वह सच्चे ना होते तो उन्हें ईसाईयों की तारीफ़ क़ुरआन में दर्ज करने से क्या सरोकार था।

वाइज़ : नहीं जनाब ये सच्चाई की दलील नहीं है बल्कि हक़ीक़त इस की यूं है कि शुरू में मुहम्मद साहब ने उनको अपनी तरफ़ करने में ख़ुशामदाना उनकी तारीफ़ लिख दी और जब देखा कि इस से मतलब पूरा नहीं हुआ तो आख़िरी ज़माने में जब सल्तनत उनकी उरूज पर पहुंची तब खुले ख़ज़ाने ईसाईयों को मुश्रिक काफिर बेदीन कहने लगे।

मुहम्मदी : फिर क्यों हज़ार हा ईसाई हमारे पैग़म्बर पर ईमान लाए।

वाइज़ : हमने पहले ही बयान किया कि बिगड़े हुए बिद्अती ईसाई नादान जो कलाम-उल्लाह से मह्ज़ नाआशना (नावाक़िफ़) थे और साथ ही उस के लूट मार का लालच भी दामगीर (मददगार) होना था बहुतेरे बिद्अती मुहम्मद पर ईमान ले आए।

मुहम्मदी : तब यहूदी क्यों मुहम्मदी बन गए।

वाइज़ : उनका हाल भी वही हो रहा था अपने ख़ुदावंद ज़िंदगी के मालिक को रद्द कर चुके थे। रुहानी तौर पर मुर्दा थे और ख़ुदा को सज़ा देना मंज़ूर थी बहुतेरे क़त्ल हुए और बहुतेरे मुहम्मद पर ईमान ले आए।

मुहम्मदी : हमारे हज़रत ने अर्से तक बैतुल-मुक़द्दस की तरफ़ नमाज़ में रुख किया इस से साबित होता है कि आप सच्चे नबी हैं।

वाइज़ : भाई साहब ये भी यहूदीयों की तालीफ़ क़लूब (दिल की तब्दीली) के लिए ढंग (तरीक़ा) था मगर जब यहूदी इस तरह क़ब्ज़े में ना आए तब वही काअबे की तरफ़ सज्दा शुरू कर दिया। दरां हालेका 360 बुत उस में मौजूद थे।

मुहम्मदी : बुतों को सज्दा करने की नीयत ना थी उनको तो हज़रत ने तोड़ दिया।

वाइज़ : लेकिन अगर कुफ़्फ़ार अरब हज़रत को तंग ना करते और नौबत जंग की ना पहुँचती तो आप यक़ीन कर के जान लें कि काअबा के बुत कभी ना तोड़े जाते हज़रत का तो ये हाल था कि इंतिक़ाम लेते वक़्त उनको कुछ किसी का ख़याल ना रहता था। देखिए मदीना के मुनाफ़िक़ों की बनाई हुई मस्जिद भी हज़रत ने तोड़ दी। वाह तो जो बुतों से नफ़रत रखता क्या आप ही हैकल को लूटता है।

मुहम्मदी : हज़रत ने तमाम मुल्क अरब में अल्लाह की तौहीद को फैलाया ये क्या आपकी पैग़म्बरी का अच्छा सबूत नहीं है।

वाइज़ : हक़ीक़त में मुहम्मद साहब ने एक ख़्याली तौहीद की मुनादी की ना उस तौहीद की जिसकी मुनादी हज़रत मूसा और दीगर अम्बिया ने की। बल्कि इस ख़्याली तौहीद में भी मिलावट कर दी कि अल्लाह के नाम के साथ अपना नाम भी मिला दिया ये गोया कोढ़ में खाज हुई (आफ़त पर आफ़त) ख़ुदा के कलाम से कहीं नहीं वाज़ेह होता है कि किसी नबी ने अल्लाह के नाम के साथ अपना नाम भी मिलाया हो ये सिर्फ़ मुहम्मद ने शिर्क किया है।

मुहम्मदी : मगर इन्जील में तो लिखा है कि तुम ख़ुदा पर ईमान लाते हो मुझ पर भी ईमान लाओ।

वाइज़ : जनाब-ए-मन, ख़ुदावंद येसू मसीह जो ख़ुदा हो कर ख़ुदा के बराबर है वो उसी इक़्तिदार (इख़्तियार) से ये ईमान लोगों से तलब करता है। ना मह्ज़ इन्सान हो कर क्योंकि अगर ख़ुदावंद ईसा मसीह मह्ज़ इन्सान हो तो वो इतना भी नहीं कि हम उस को नेक कहें।

मुहम्मदी : आप लोग सब मानते हैं और हम भी सब नबियों को मानते हैं और हज़रत ईसा को भी हम मानते हैं। फिर आप हमारे हज़रत को क्यों रद्द करते हैं।

वाइज़ : मुहम्मद साहब के मानने में एक बड़ी क़बाहत (बुराई) ये हुई। कि सारे ख़ुदा के पैग़म्बरों को छोड़ना पड़ता है इसलिए कि मुहम्मद ने ये जब ताअलीम दी है कि अगले अम्बिया का हाल जिस क़द्र कि क़ुरआन में ग़लत-सलत दर्ज है वही दुरुस्त है बाक़ी जो ख़ुद उनकी किताबों में या उनकी बाबत और नबियों ने फ़रमाया है वो सब ग़लत है। अब अगर मुहम्मद को मानें तो सारे नबियों को झूट जानें। यही हाल क़ुरआन को सच्चा मान लेने में है। क्योंकि किसी मुहम्मदी को ना देखा होगा कि ईसाईयों की मानिंद अल्लाह के कुल कलाम को पढ़ता हो। जब कोई मुहम्मदी बनता है तो उस को ये मानना फ़र्ज़ हो जाता है कि तौरेत ज़बूर इन्जील मन्सूख़ और मुहर्रिफ़ (तब्दील शूदा) और रद्दी हैं अब ऐसा बेवक़ूफ़ दुनिया में कौन होगा जो ख़ुदा की 66 किताबों को झूटा कह कर एक क़ुरआन को इल्हामी माने और जहन्नम जाये।

मुहम्मदी : तब आप इस्लाम को सिरे से बनावट समझते हैं।

वाइज़ : जी हाँ ना सिर्फ बनावट बल्कि बुत-परस्तों और यहूदीयों और ईसाईयों का बिगाड़ दर बिगाड़। और यही सबब है कि जिस जगह ये मज़्हब जाता है सब कुछ बिगाड़ता है।

मुहम्मदी : मुहम्मदी मज़्हब ने क्या बिगाड़ा फ़रमाईए तो सही।

वाइज़ : इस वक़्त ज़्यादा फ़ुर्सत नहीं कि तफ़्सील-वार बयान करूँ तो भी कुछ अर्ज़ किया जाता है सुनिए! मुहम्मदी मज़्हब इन्सान की अक़्ल को बिगाड़ता है उसे जाहिल बल्कि अजहल बना देता है। ग़ुस्सा पैदा करता है। शहवत को तेज़ करता है यहां तक कि वो जो एक ही जोरु पर क़ानेअ (एक बीवी पर सब्र करना) था मुहम्मदी बन कर चार चार पर भी बस नहीं करता रुहानी बातों का ख़याल भी नहीं रहता सिर्फ़ जिस्मानी चीज़ों पर नज़र रहती है आख़िरत की ख़राबियां ऐसी हैं। जो इस ज़िंदगी में मुहम्मदी शख़्स में असर पज़ीर हो जाती हर वक़्त हूर व ग़िल्माँ शराब क़बाब की यादगारी अज़ाब में रखती है।

अल-ग़र्ज़ इस तमाम मुकालमे से आप पर वाज़ेह हुआ होगा दर-हक़ीक़त इस्लाम क्या है ये बुत-परस्तों और यहूदीयों और ईसाईयों के बिगाड़ का बिगाड़ है इस की सारी ताअलीमात ज़ुलमात की तरफ़ ले जाती हैं। और इस से ये नतीजा निकलता है कि जिस तरह बुत-परस्तों और यहूदीयों और ईसाईयों के बिगड़ने से अरब में इस्लाम फैल गया इसी तरह जिस-जिस मुक़ाम पर बिद्दतें (मज़्हब में नई बात निकालना) बरपा होती हैं और लोग सच्चे ख़ुदा की कलाम से बर्गश्ता (गुमराह) होते हैं वहां इस्लाम ख़ुद बख़ुद उनको सज़ा देने के लिए पैदा हो जाता है। ताकि वो ज़्यादा गंदी शहवतों में पढ़ कर तक्लीफ़ उठाएं। जनाब-ए-मन, ये इस्लाम है। तो इस को सलाम है। काश के ये जो दायरा इस्लाम में आकर अपने किए की सज़ा भुगत रहे हैं जल्द ख़ुदावंद येसू मसीह की बादशाहत में आकर आराम पाएं। आमीन।

बाअज़ बुत-परस्त मुख़ालिफ़ों की शहादतें

रूमी सिपाही जो उस की क़ब्र के निगहबान मुक़र्रर किए गए थे। और जिनका मसीह की तरफ़ कोई दोस्ताना ख़याल भी ना था। उन्होंने सरदार काहिनों को इत्तिला दी, कि एक ज़लज़ला वाक़ेअ हुआ। और एक अजीब सूरत ज़ाहिर हुई जिसने पत्थर को ढलकाया। मत्ती 28:2, 4 और अगरचे वो ख़ौफ़-ज़दा थे ताहम उन्होंने मालूम किया, कि क़ब्र खुल गई और लाश ग़ायब हो गई।

Testimonies of some Pagan Opponents

बाअज़ बुत-परस्त मुख़ालिफ़ों की शहादतें

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One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan October 25, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 25 अक्तूबर 1895 ई॰

1. एक रूमी सूबेदार जिसने मसीह की मौत के वक़्त अजाइबात देखकर ख़ुदा की तारीफ़ की और कहा बेशक ये आदमी रास्तबाज़ था। लूक़ा 23:47

2. रूमी सिपाही जो उस की क़ब्र के निगहबान मुक़र्रर किए गए थे। और जिनका मसीह की तरफ़ कोई दोस्ताना ख़याल भी ना था। उन्होंने सरदार काहिनों को इत्तिला दी, कि एक ज़लज़ला वाक़ेअ हुआ। और एक अजीब सूरत ज़ाहिर हुई जिसने पत्थर को ढलकाया। मत्ती 28:2, 4 और अगरचे वो ख़ौफ़-ज़दा थे ताहम उन्होंने मालूम किया, कि क़ब्र खुल गई और लाश ग़ायब हो गई। और अगरचे सरदार काहिनों ने उनको रिश्वत देकर इस एजाज़ी (मोजज़ाती) माजरे को पोशीदा करना भी चाहा। 28:1, 15) मगर ये क्योंकर हो सकता। पस एक सूरत वो उस के जी उठने के गवाह हैं।

3. अपबलात जो कनआन का रूमी सरदार था कि जिसके अहद में मसीह सलीब दिया गया। वो अपने रोज़नामचे में जो उसने नेबरीआस रूमी बादशाह की ख़िदमत में रवाना किया इस में दरबाब मोअजज़ाते मसीह और उस के जी उठने की तहरीर करता है। देखो हारून साहब की सुबूती इन्जील जिल्द अव़्वल बाब सोम सफ़ा 178 और 188

4. टरटोलियन साहब जो सदी सोम में ज़िंदा था और कानून-ए-रूमी से बख़ूबी माहिर था वो अपनी तस्नीफ़ में लिखता है कि पिलात ने मसीह के ज़िंदा होने की बाबत लिखा और ये भी कहा कि लोग उस को ख़ुदावन्द मसीह समझते हैं। देखो तारीख़ कलीसिया यूसेबस साहब जिल्द दोम बाब दोम सफ़ा 39 और 40

5. यूसीबस साहब जो अख़ीर सदी सोम और शुरू सदी चहारुम से ज़िंदा था। वो भी अपनी किताब में मसीह की उलूहियत (ख़ुदाई) और उस के मोअजज़ात और उस के जी उठने का बयान करता है। देखो यूसीबस साहब की तवारीख़ कलीसिया किताब अव़्वल, बाब दोम ईज़न शिप्रड साहब की सुबूती इन्जील जिल्द दोम बाब दवाज़धम सफ़ा 276

6. इस्ट्राओस जो एक मुख़ालिफ़ मसीह का था। वो बहालत अपनी मामूली अमदी मुख़ालिफ़त के कहता है कि मसीह का जी उठना। मर्कज़ का मर्कज़ और मसीहिय्यत का हक़ीक़ी दिल है। और बमुशकिल शक हो सकता है कि मसीहिय्यत की सच्चाई इस ही हक़ीक़त के साथ क़ायम रहती या गिर पड़ती है। वग़ैरह। देखो मसीही शहादतों (गवाहियों) के मुशाहदात बाब 5, मसीह का जी उठना सफ़ा 2

7. सऊद मसीह : सूरह अन्निसा आयत 156, ये यक़ीन उस को क़त्ल नहीं किया बल्कि उसे ख़ुदा ने अपनी तरफ़ उठा लिया। अलीख।

अगरचे ख़ुदावन्द मसीह के आस्मान पर सऊद (आस्मान पर चढ़ना) करने की बाबत क़ुरआन इक़रारी है। मगर उस की जाये सऊद की बाबत हनूज़ मुक़र्रीन क़ुरआन (क़ुरआन का इक़रार करने वाले) मुख़्तलिफ़-उल-राए हैं। चुनान्चे मुफ़स्सिर हुसैनी लिखता है, कि जिस मकान में मसीह रहता था। शब-भर उस की पासबानी की मगर मसीह शब ही को सऊद आस्मान कर गए थे। यानी उसी मकान से मगर मुफ़स्सिर फ़त्ह-उल-अज़ीज़ी लिखता है कि वो कोहे ज़ैतून से आस्मान को सऊद फ़र्मा गए बेशक इस आख़िरी क़ौल में सिर्फ उस की जाये सऊद इन्जील के मुवाफ़िक़ दर्ज हुई। मगर इस का मुफ़स्सिल बयान इन्जील-ए-मुक़द्दस में यूं मज़्कूर है। यानी

1. क़ब्ल अज़ सऊद ख़ुदावन्द का रसूलों को ताअलीम व हिदायत और तसल्ली व तश्फ़ी देना

और येसू ने पास आकर उनसे कहा कि आस्मान और ज़मीन का सारा इख़्तियार मुझे दिया गया। इसलिए तुम जा कर सब क़ौमों को शागिर्द करो और उन्हें बाप और बेटे और रूह-उल-क़ुद्स के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सिखलाओ कि उन सब बातों पर जिनका मैंने तुमको हुक्म दिया है अमल करें। और देखो मैं ज़माने के तमाम होने तक हर रोज़ तुम्हारे साथ हूँ। मत्ती 38:18, 20 और उनके साथ एक जा हो के हुक्म दिया कि यरूशलेम से बाहर ना जाओ बल्कि बाप के उस वाअदे की जिसका ज़िक्र तुम मुझसे सुन चुके हो, राह देखो क्योंकि यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया। पर तुम थोड़े दिनों के बाद रूह-उल-क़ुद्स से बपतिस्मा दोगे। तब उन्हों ने जो इकट्ठे थे उस से पूछा कि ऐ ख़ुदावन्द क्या तू इसी वक़्त इस्राईल की बादशाहत को फिर बहाल किया चाहता है। पर उसने उन्हें कहा तुम्हारा काम नहीं कि इन वक़्तों और मौसमों को जिन्हें बाप ने अपने ही इख़्तियार में रखा है जानो लेकिन जब रूह-उल-क़ुद्स तुम पर आएगी। तुम क़ुव्वत पाओगे और यरूशलेम और सारे यहूदिया व सामरिया में बल्कि ज़मीन की हद तक मेरे गवाह होगे। आमाल 1:4, 8

2. स का आस्मान पर उठाया जाना

और वो ये कह के उन के देखते हुए ऊपर उठाया गया और बदली ने उसे उनकी नज़रों से छिपा लिया। 1:9

ग़र्ज़ ख़ुदावन्द उन्हें ऐसा फ़रमाने के बाद आस्मान पर उठाया गया और ख़ुदा के दहने हाथ बैठा। मर्क़ुस 16:19

तब वो उन्हें वहां से बाहर बैत-अन्याह तक ले गया और अपने हाथ उठा के उन्हें बरकत दी। और ऐसा हुआ कि जब वो उन्हें बरकत दे रहा था तो उन से जुदा हुआ और आस्मान पर उठाया गया और उन्होंने उस को सज्दा किया और बड़ी ख़ुशी से यरूशलेम को फिरे। लूक़ा 24:50, 52

3. सऊद आस्मान के बाद दो फ़रिश्तों की स की आमदे सानी पर गवाही

और उस के जाते हुए जब वो आस्मान की तरफ़ तक रहे थे। देखो, दो मर्द सफ़ैद पोशाक पहने उनके पास खड़े थे। और कहने लगे ऐ गलीली मर्दो तुम क्यों खड़े आस्मान की तरफ़ देखते हो। यही येसू जो तुम्हारे पास से आस्मान पर उठाया गया है। उसी तरह जिस तरह तुमने उसे आस्मान को जाते देखा फिर आएगा। आमाल 1:10-11 बाक़ी आइन्दा।

आस्मान की बादशाहत (मत्ती 7:21)

ये मज़्मून इस सबब से तहरीर किया गया है कि जब बाज़ारों में वाज़ किया जाता है तो अक्सर सामईन (सुनने वालों) ने ये एतराज़ किया है, कि अजी ईसाईयों के वास्ते तो हज़रत ईसा ने अपनी जान दे दी। कफ़्फ़ारा हो गए। पस अब ये जो जी चाहे सो करें। चंद रोज़ हुए कि एक साहब ने जिनकी रुहानी आँखों में शायद मोतिया हो रहा था।

The kingdom of heaven

आस्मान की बादशाहत (मत्ती 7:21)

By

John Emmanuel
जान इम्मानुएल

Published in Nur-i-Afshan October 4, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 4 अक्तूबर 1895 ई॰

मक़्सद तहरीर मज़्मून

ये मज़्मून इस सबब से तहरीर किया गया है कि जब बाज़ारों में वाज़ किया जाता है तो अक्सर सामईन (सुनने वालों) ने ये एतराज़ किया है, कि अजी ईसाईयों के वास्ते तो हज़रत ईसा ने अपनी जान दे दी। कफ़्फ़ारा हो गए। पस अब ये जो जी चाहे सो करें। चंद रोज़ हुए कि एक साहब ने जिनकी रुहानी आँखों में शायद मोतिया हो रहा था। अपने लब हाय क़हर बार से यही रतूबत छांटी। अब चूँकि हमारा अख़्बार सदाक़त आसार मनावां व मुबश्शरां मसीही की तरफ़ से डायरेक्टर है यानी अख़्बार फ़र्हत आसार अफ़शा-ए-अनवार मौसूम ब नूर-अफ़्शां, हर हफ़्ता चहारदांग बर्र-ए-आज़म एशीया में मिस्ल आफ़्ताब आलमताब (सूरज की तरह दुनिया को रोशन करने वाला) दवां (भागना, दौड़ना) है। शहर शहर गली गली कूचा कूचा इस का नक़्क़ारा बज रहा (ऐलान होना) है। इस के सपुर्द, ये पुड़ीया सुरमे की, की जाती है ताकि मए इन अनवार-ए-रुहानी के जिनको लेकर ये हज़ारों रुहानी अँधों, चंदाओं, कानों और मोतिया और बग़लगनद (बग़ल की बू जो एक बीमारी है) वालों को बीना करता फिरता है। और सैंकड़ों इस की उम्र दारज़ी के दुआ गो हैं। बाअज़ इन अँधों पर इस को भी आज़माऐ।

शायद कि इस के हाथ से इस नुस्खे के वसीले भी सबको आराम हो जाये आमीन। क्योंकि इस के अक्सर मुरक्कबात-उल-क़ादिर, हकीम-उल-हकमा, शाहज़ादा इम्मानुएल के दारा-अल-शिफ़ा हामराह से लिए गए हैं। शाहज़ादा इम्मानुएल हकीम हाज़िक़ का इश्तिहार रुहानी अँधों के वास्ते ये है। मैं जहां में नूर हो कर आया हूँ ताकि जो कोई मुझ पर ईमान लाए अंधेरे में ना रहे। जो साहिबान मुतबर्रिक (पाक) और लासानी (बेमिस्ल) और ला-जवाब (जिसका जवाब न हो) किताब से जो बाइबल मुक़द्दस कहलाता है, जो कि फ़क़त अकेला और सच्चा कलाम ख़ुदावन्द करीम लातब्दील का है, ना कि अल्लाह माकीरीन का वो ख़ूब वाक़िफ़ हैं कि जब उम्मीद अम्बिया, ज़ात किबरिया (ख़ुदाए तआला का एक सिफ़ाती नाम) ख़ुदावन्द दो-जहाँ मालिके अर्ज़ व समा (ज़मीन व आस्मान का मालिक) सुल्तान शाहाँ नबी आख़िर उल्ज़मान मुनज्जी बनी-नूअ इन्सान इस दारेना पायदार में आफताब-ए-सदाक़त (सच्चाई का सूरज) हो कर जलवागर हुए। ताकि इस की ज़ुल्मत (अंधेरा) और तारीकी को और लश्कर कुफ़्फ़ार और शैतान उनके सरदार को। बरसरदार नाबकार कफ़्फ़ारा हो कर और पाँच ज़रब-ए-शदीद बराए निशान व अलामत आशिक़ सादिक़ लेकर। दाख़िल कुर्रा-ए-नार कर के, अपने बर्गज़ीदों ख़ूँ खरीदों को लूओ लोय आबदार, फ़र्ज़ंद-ए-परवरदिगार (ख़ुदा के बेटे) बल्कि एक उरूस ख़ुश अतवार, नेक किरदार, रश्क-ए-परी व हूर बना कर, आस्मान पर मान फ़िरदौस-ए-बरीं पर उठा ले। एक दफ़ाअ जब अपने हवारियान-ए-मुक़द्दस (जिन पर सिलसिला कश्फ़ वही, व इल्हाम रिसालत व नबुव्वत ता-अबद मौक़ूफ़ हुआ) साथ था। बहुत भीड़, जिनमें बहुत से ख़ूनी ज़ानी अय्यारों (फ़रेबी) का। जो उस के ख़ून-ए-मुक़द्दस के प्यासे थे भी मौजूद थे देखकर एक कोह वाला शिकवा पर चढ़ गए। और ऐसा मालूम होता है कि उनमें ऐसे अहमक़ (बेवक़ूफ़) भी थे कि ये तौरेत और नबियों की किताबों को मन्सूख़ (रद्द) करने आया है। इस मुक़ाम पर ख़ुदावन्द मसीह ने अपनी ज़बाने निजात व हयात व शिफ़ा बख़्श से वो नादिर व लासानी (नायाब व बेमिसाल) वाज़ फ़रमाया। जो अबद तक बर्गज़ीदों (चुने हुए) की नजात के वास्ते काफ़ी व वाफ़ी है। इस में उन्होंने नासिख़ (कातिब, मिटाने वाला) और मन्सूख़ ख़ुदा वालों से यूं फ़रमाया कि ये गुमान मत करो कि मैं तौरेत या नबियों की किताबों को मन्सूख़ (रद्द) करने आया हूँ। मैं मन्सूख़ करने नहीं बल्कि पूरी करने आया हूँ। ग़र्ज़ ईसाई होने से शरीअत मन्सूख़ नहीं होती और ना उदूल (इन्कार) बल्कि कामिल (मुकम्मल) होती है। अब बादब मलमतस (अदब से इल्तिमास) करना हूँ कि नाज़रीन पर तमकीन ब नज़र-ए-इनायत ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से बेदार (जागना, होशियार) हो कर तास्सुब (तरफ़-दारी) की रतूबत अपनी चश्म हाय इन्साफ़ बीन में से साफ़ कर के इन्जील मत्ती बाब 7:21, 23 को बग़ौर पढ़ें। और गोश-ए-होश (होशयारी) से इन आयात पर जो बतौर तश्रीह आयात मज़्कूर गोश हाय सदफ़ वार में गोश गुज़ार हैं मिस्ल लूलूए बे-बहा पिनहां (छिपे हुए मोती) कीजिए। और दरिया-ए-इन्साफ़ में ग़ोता-ज़न हो कर दर सदाक़त (सच्चाई का दरवाज़ा) को हासिल करें उम्मीद है कि साहिबान फ़हम व ज़का (समझदार, अक़्लमंद हज़रात) जो हर हक़ीक़त से बहरावर (ख़ूश क़िस्मत) हों लेकिन वो जिनके ख़ुदा ने उनके दिल पर मुहर कर दी है कि अंधे, बहरे, गूँगे रहें। और अज़ाब दर्द-नाक उनका हिस्सा उनके ख़ुदा ने मुक़र्रर किया है। उनके वास्ते सिवाए अफ़्सोस के चारा नहीं है।

पर हक़ीक़त शनासों को मालूम हो जाएगा, कि मसीही होना ये नहीं कि शरीअत से रिहा हो गए। और गुनाह की इजाज़त दुनिया में और हूर परस्ती जन्नत में जायज़ हो गई। बल्कि तबीयत नफ़्सानी, रुहानी हो जाती, और मसीह में हो कर शरीअत ईमानदार की तबीयत बन जाती है।

आग़ाज़ मज़्मून, मत्ती 7:21 जो मुझसे ऐ ख़ुदावन्द ऐ ख़ुदावन्द कहते हैं उन में से हर एक आस्मान की बादशाही में दाख़िल ना होगा मगर वही जो मेरे आस्मानी बाप की मर्ज़ी पर चलता है।

कलाम में यूं लिखा है कि बग़ैर रूह-उल-क़ुद्स की मदद के कोई ख़ुदावन्द मसीह को ख़ुदावन्द नहीं कह सकता है। पस साफ़ ज़ाहिर है कि ख़ुदावन्द मसीह का ये फ़र्मान उमूमन तमाम बनी-आदम के वास्ते जो ज़बानी या लकड़ी के दानों के वसीले उस के नाम को बेफ़ाइदा लेते हैं। पर दिल दूर हैं। और ख़ुसूसुन अपने शागिर्दों को यानी उन देरीना शागिर्दों को जिनके नाम बर्रे की हयात की किताब में दर्ज हैं। और जिन्हों ने आख़िरी इल्हामी तस्नीफ़ात से जहान पर इल्हाम और वही के दफ़्तर को बंद किया। और सिलसिला नबुव्वत का ख़ुदावन्द मसीह की दूसरी आमद तक बंद हुआ सिवाए जहां के सरदार के यानी शैतान के जिसने शहवत और नफ़्स परस्ती और ख़ूने ग़लाम (लौंडे बाज़ी) को जायज़ फ़रमाया। जो उस के लासानी जमाल (बेमिसाल हुस्न) का जलवा (नज़ारा) हासिल कर रहे थे। ताकि यहूदाह जैसे बवालहूस शागिर्द (लालची, हरीस) और हर ज़माने के मौलवियान ग़ुलाम तास्सुब और पिंड तान हट धरम पर शाद पर वाज़ेह हो जाये, कि मसीहिय्यत का घर दूर है। साएँ का घर दूर है जैसे :-

लंबी खजूर चढ़े तो चाखे प्रेम रस। और गिरे तो चकना-चुर

इस आयत का मज़्मून, हर एक रियाकार ईसाई, और हर एक मुतलाशी (तलाश करने वाला) दीने इलाही यानी मसीही, और नौ मुरीदों, और मुतारज़ां को ताह अंदेश (कम फ़ह्म) एतराज़ करने वाले बद-केश (बेदीन) को हिला हिला कर जगाता, और ख़ौफ़नाक और दर्द-नाक आवाज़ से यूं फ़रमाता है, कि धोका मत खाओ। ख़ुदा ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता।

हरगिज़ हरगिज़ ग़फ़लत (लापरवाही) में मत रहो। और जल्दी से किसी को बहिश्त का वारिस मत जान लो। अगर तुम किसी को देखो कि उसने सरकारी डिग्रियां हासिल कर ली हैं कि वो फ़साहत (ख़ुश-कलामी) और बलाग़त (हसब-ए-मौक़ा गुफ़्तगु) में बाँग दहल ब चर्ख़-ए-बरीं रसीदा है। और उस की ज़ाहिर परस्ती पर बड़े बड़े ख़ुदा तरसों ने धोका खाया है, तो ये आयत यूं फ़रमाती है, ہر پیشہ گمان سرکہ خالیست شاید کہ پلنگ خفتہ باشد इस वक़्त मुनासिब है कि रसूल-ए-मक़्बूल पौलुस का ख़त अव़्वल कुरिन्थियों का बाब 13 का विर्द करें। वो फ़रमाता है अगर मैं आदमी या फ़रिश्तों की ज़बानें बोलूँ और मुहब्बत ना रखूं। तो मैं ठंठनाता पीतल या झनझनाती झांज हूँ और अगर मैं नबुव्वत करूँ और अगर मैं ग़ैब की सब बातें जानू। और सारे इल्म जानू और मेरा ईमान कामिल हो यहां तक कि मैं पहाड़ों को हटा दूं पर मुहब्बत ना रखूं तो मैं कुछ नहीं हूँ। और अगर मैं अपना सारा माल ख़ैरात में दूँ या अगर मैं अपना बदन दूँ, कि जलाया जाये पर मुहब्बत ना रखूं तो मुझे कुछ फ़ायदा नहीं। यही तमाम चीज़ें हैं जो इस दुनिया में दीनदारों और बेदीनों में इम्तियाज़ (फ़र्क़) होने नहीं देती हैं सो रसूल ने एक एक का नाम लेकर उनको बातिल (झूटा) ठहराया।

फिर वो ख़त रोमीयों को बाब 8:1, 10

में यूं फ़रमाता है, पस अब उन पर जो मसीह येसू में हैं और जिस्म के तौर पर नहीं बल्कि रूह के तौर पर चलते सज़ा का हुक्म नहीं। क्योंकि इस रूह-ए-ज़िन्दगी की शरीअत ने जो मसीह येसू में है। मुझे गुनाह और मौत की शरीअत से छुड़ाया। इसलिए कि जो शरीअत से जिस्म की कमज़ोरी के सबब ना हो सका सो ख़ुदा से हुआ, कि उसने अपने बेटे को गुनेहगार जिस्म की सूरत में गुनाह के सबब भेज कर गुनाह पर जिस्म में सज़ा का हुक्म किया। ताकि शरीअत की रास्ती हम में जो जिस्म के तौर पर नहीं बल्कि रूह के तौर पर चलते हैं पूरी हो। क्योंकि वो जो जिस्म के तौर पर हैं उनका मिज़ाज जिस्मानी है। पर वो जो रूह के तौर पर हैं उनका मिज़ाज रुहानी है। जिस्मानी मिज़ाज मौत है पर रुहानी मिज़ाज ज़िंदगानी और सलामती है। इसलिए कि जिस्मानी मिज़ाज ख़ुदा का दुश्मन है क्योंकि ख़ुदा की शरीअत के ताबे नहीं और ना हो सकता है और जो जिस्मानी हैं ख़ुदा को पसंद नहीं आ सकते।

इन आयात में रसूल साफ़ फ़रमाता है कि जिस्मानी मिज़ाज में और रुहानी मिज़ाज में बड़ी मुख़ालिफ़त है। वो यानी जिस्मानी मिज़ाज शरीअत के ताबे नहीं। वो ख़ुदा का दुश्मन है। वो मौत है। जिस्मानी मिज़ाज ख़ुदा की बादशाहत को देख भी नहीं सकता है। पर रूहानी मिज़ाज ज़िंदगानी और सलामती है। और वो ख़ुदावंद मसीह पर सच्चा ईमान लाने से हासिल होता है जब मसीही ख़ुदावन्द मसीह पर ईमान लाता है। अपनी बदियों से वाक़िफ़ और नादिम और पशेमान (शर्मिंदा) और पछताना हो कर तौबा करता तब ख़ुदावन्द मसीह की रूह उसे मिलती है यानी रूह ज़िंदगी।

वो ईमानदार में नई पैदाइश को शुरू करती है। वो ईमानदार को ख़ुदावन्द मसीह में पैवंद (जोड़ना, लगाना) करती है। वो ख़ुदावन्द मसीह में परवरिश पाता है वो नया मख़्लूक़ है वो मर्द-ए-नौ ज़ाद है। वो शरीअत से आज़ाद है। पर शरीअत की आज़ादी को जिस्म के लिए फ़ुर्सत नहीं जानता है। हाँ भाई मोअतरिज़ (एतराज़ करने वाला) अगर कोई मसीही, तुम्हारी मद्द-ए-नज़र हो, जो इस आज़ादगी को जिस्म के वास्ते फ़ुर्सत जानता हो। और अब तक जिस्म हराम की पैरवी करता है। और जराइम संगीन अब तक इस से सरज़द होते हैं, मैं और तुम नहीं बल्कि अगर सारी दुनिया इस से वाक़िफ़ नहीं। पर वो जिसकी आँख ने एकिन का गुनाह देखा, देखती है। वो कहता है कि वो शख़्स मलऊन (लानती) है। देखो ख़त इब्रानियों 10:26 क्योंकि अगर बाद इस के कि हमने सच्चाई की पहचान हासिल की है। जान-बूझ के गुनाह करें तो फिर गुनाहों के लिए कोई क़ुर्बानी बाक़ी नहीं। मगर अदालत का एक होलनाक इंतिज़ार और आतिश ग़ज़ब (ग़ज़ब की आग) जो मुख़ालिफ़ों को खाएगी बाक़ी है।

पर भाई मोअतरिज़ इन बातों से ठोकर ना खाना चाहिए क्या तुम नहीं जानते हो कि سلح دار خار ست بادشاہ گل शमादान के नीचे हमेशा अंधेरा होता है बादशाही बाग़ में। जंगली पौदे भी होते हैं। गेहूँ के साथ कड़वा दाना भी तो होता है ख़ुदावन्द का हुक्म है दोनों को साथ बढ़ने दो। दरोके वक़्त (फ़स्ल की कटाई) गेहूँ खलियान में। और कड़वा दाना भट्टी में। प्यारे बारे में एक मलऊन (लानती) था।

दोस्त ख़ुदावन्द ने हमको तुमको मुंसिफ़ नहीं ठहराया इन्साफ़ करना उसी का काम है वो ख़ुद फ़रमाता है। उस दिन बहुतेरे मुझे कहेंगे ऐ ख़ुदावन्द, ऐ ख़ुदावन्द क्या हमने तेरे नाम से नबुव्वत नहीं की। और तेरे नाम से बद रूहों को नहीं निकाला। और तेरे नाम से बहुत सी करामात (मोअजिज़े) ज़ाहिर नहीं की उस वक़्त मैं उनसे साफ़ कहूँगा, कि मैं कभी तुमसे वाक़िफ़ ना था। ऐ बदकारो मेरे पास से दूर हो।

पस प्यारे, अब तुमको ख़ूब मालूम हुआ कि ईसा के कफ़्फ़ारे पर ईमान लाना। ये नहीं है ज़िंदगी-भर नफ़्सानियत में कटे ख़ूब दिल के अरमान निकाले और मरते दम कलिमा पढ़ा और जन्नत ले ली। रात-भर ख़ूब पी। सुबह हुई तो तौबा कर ली। रिंद के रिंद रहे जन्नत हाथ से ना दी। देखो मुक़ाम और कलाम इलाही के निहायत क़ाबिल-ए-ग़ौर हैं। देखो ख़त ग़लतीयों 5:19 और जिस्म के काम तो ज़ाहिर हैं यही, ज़िना, हरामकारी, नापाकी, शहवत, बुत-परस्ती, जादूगरी, दुश्मनीयां, कीज़ रश्क, ग़ज़ब, जुदाइयाँ, बिद्दतें (मज़्हब में नई बात निकालना) डाह, (दुश्मनी, हसद) ख़ून, मस्तियाँ, ओबाशीयाँ और जो काम इनकी मानिंद हैं। और इनकी बाबत मैं तुम्हें आगे से जताता हूँ जैसा मैंने उस वक़्त भी आगे से जताया, कि ऐसे काम करने वाले ख़ुदा की बादशाहत के वारिस ना होंगे।

अब मेरी मिन्नत आपसे ये है। आपके उस्ताद ने आपके वास्ते कफ़्फ़ारा दिया। क्या आप गुनाहों से छूट गए? क्या आपके दिल में आस्मानी तसल्ली है? क्या आपके उस्ताद ने कहीं फ़रमाया है, कि ऐ थके और बड़े बोझ के तले दबे हुओ मेरे पास आओ मैं तुम्हें आराम दूंगा। क्या उसने मौत को फ़त्ह किया है कि तुमको भी उठाएगा। क्या वो गुनाह से बरी (आज़ाद) था।

क्या तुम्हारे उस्ताद ने कभी गुनाह की माफ़ी नहीं मांगी। क्या उस का ताल्लुक़ और रिश्ता ख़ुदा से वही था। जो इन्जील येसू नासरी का बताती है। अगर है तो मुबारक हो। अगर नहीं तो रात बहुत गुज़र गई। आफ़्ताब सदाक़त (सच्चाई का सूरज) तुम पर तुलूअ हो चुका है। इस प्यारे की आवाज़ सुनो। अगरचे आज तक तुम उस के मुख़ालिफ़ रहे उस का ठट्ठा किया। उस के नाम पर कुफ़्र बका। उस के एलचियों को हंसी में उड़ाया ख़ैर ग़लती से किया जो कुछ किया। आज नजात का दिन है आज मक़बूलियत का अय्याम (दिन) है बख़्शिश का दरवाज़ा खुला है। वो कहता है दरवाज़ा मैं हूँ। कोई बग़ैर मेरे वसीले बाप के पास जा नहीं सकता। मैं सच्चे अंगूर का दरख़्त हूँ। जो मुझमें क़ायम रहता है वही बहुत मेवा लाता है। मैं ज़िंदा पानी हूँ जो मुझको पीता है कभी प्यासा ना होगा। मैं आस्मानी रोटी हूँ। जो मुझको खाता है कभी भूका ना होगा। और मैं जहां का नूर हूँ। जो मेरी पैरवी करता है अंधेरे में नहीं चलता है जो मेरे पास आता है मैं कभी उस को निकाल ना दूँगा। प्यारे रो-रो कर ख़ुदावन्द से दुआ मांग। इन्जील मुक़द्दस को ले। इस को खोल कर पढ़ दुआ पर दुआ कर ख़ुदावन्द ज़रूर तुझ पर फ़ज़्ल करेगा। सैंकड़ों हज़ारों शहीद और ज़िंदा उस के गवाह में जो तुम्हारे वास्ते दुआ-गो हैं मैं भी और हर एक मसीही नाज़रीन ऐसे किसी के वास्ते दुआ करे।

दुआ

ये तरीक़ा ख़ुदावन्द येसू मसीह की बदौलत आता है वो अपने तख़्त के पास बुलाता है वो बताता है कि किस तरह आना और क्या करना चाहिए। फ़र्ज़ करो हम में से किसी को किसी दुनियावी बादशाह के पास जाने का इत्तिफ़ाक़ हो तो वो बहुत मुज़्तरिब (परेशान) हो जाएगा और दिल में समझेगा कि मैं नहीं जानता कि क्या करना और कहना

Prayer

दुआ

By

Barkat Ali Ashraf
बरकत अली अशरफ़

Published in Nur-i-Afshan October 4, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 4 अक्तूबर 1895 ई॰

ये तरीक़ा ख़ुदावन्द येसू मसीह की बदौलत आता है वो अपने तख़्त के पास बुलाता है वो बताता है कि किस तरह आना और क्या करना चाहिए। फ़र्ज़ करो हम में से किसी को किसी दुनियावी बादशाह के पास जाने का इत्तिफ़ाक़ हो तो वो बहुत मुज़्तरिब (परेशान) हो जाएगा और दिल में समझेगा कि मैं नहीं जानता कि क्या करना और कहना चाहिए लेकिन येसू मसीह हमें सच्चे हम्दर्द कामिल उस्ताद की मानिंद गोया हम सा बन कर अपने फ़ज़्ल के तख़्त के पास आने को कहता है वो बताता कि क्या कहना चाहिए वो सिखाता है कि क्या करना ज़रूर है और वो अपना पाक रूह इनायत करता है जो हम सबको दुआ माँगना सिखलाता है और हर एक कलाम काम में हम सबकी सच्ची राहनुमा होती है।

ख़ुदावन्द ने अपने बंदों के लिए हर तरह से सहूलत की है ताकि वह पशेमान (शर्मिंदा) नादिम ना रहें और बड़े-बड़े मवाक़े और फ़ुर्सत भी अता फ़रमाता है ताकि गुनेहगार भी अपने बुरे कामों से बाज़ आकर उस के आगे सज्दा करें वो हर नूअ (क़िस्म) की नेअमतों से सैर करता है। चुनान्चे इन में से उसने दुआ मांगने की इजाज़त दी है। और ये एक बड़ी उम्दा नेअमत है। ख़ुसूसुन मुसीबत व तंगी के के अय्याम में जब कि सिवाए उस के कोई साथी व सांजी नहीं होता अपने बेगाने दोस्त आश्ना किनारा-कश हो जाते हैं।

तब दुआ निहायत दिलचस्प व मुफ़ीद और शीरीं है जो ये इजाज़त भी ना मिलती तो सच्च है कुछ ना कर सकते पर हज़ार-हा शुक्र है इस अच्छे गडरिया का जो अपनी भेड़ों के लिए अपनी जान देता है। यूहन्ना 10:11 जब हम लोगों के दिल रंज से भर जाते या बीमारी से ज़ईफ़ (कमज़ोर) हो जाते या अपनी मेहनतों का समरा (अज्र, फल) ना मिलते देखकर ग़मगीं और पज़ मुर्दा दिल (मायूस, मुर्दा दिल) होते या कामयाबी की उम्मीद से मायूसी की भंवर (जाल) में आ जाते या ज़माने के इन्क़िलाब में आकर मुफ्लिसी (मोहताजी) में पड़ जाते या जब कि ग़ैर-अक़्वाम के दस्त-ए-तही (ज़ुल्म व सितम वाले हाथ) के हमलों से हरासाँ (ख़ौफ़-ज़दा) हो जाते या किसी और सऊबत (मुसीबत) का पल्ला पड़ता है या अज़ीज़ ख़वेश व अका़रिब (दोस्त रिश्तेदार) वालदैन व औलाद की तरफ़ से नाज़ुक दिल पर भारी सदमे गुज़र जाते हैं तब अगर दुआ ना कर सकते तो क्या परागंदा हालत व परेशान ख़ातिर ना होते। लेकिन उह व आहा बड़ी तस्कीन व तश्फ़ी (तसल्ली) इस से है कि जिस वक़्त ख़ुदा के हुज़ूर में किसी ने अपनी अर्ज़ दुआ की तब ही उस की फ़र्याद सुनी गई और अपनी मुराद को पहुंचा और तसल्ली हासिल हुई।

इसी तरह दूसरे पहलू में एक बूढ़ा उम्र रसीदा दुखिया मायूस बीमारी के बिस्तर पर पड़ा हुआ हाय, हाय हाय करता है जिसके जीने की एक लम्हा भी उम्मीद नहीं है जिसको लोग और डाक्टर भी ये कह कर कर छोड़ बैठे कि “ये नहीं जिएगा” इस वक़्त कुहन साला बूढ़ा (बड़ी उम्र वाला) भी ये सुनकर कहता है। ऐ यहोवा मुझ पर रहम कर क्योंकि मुझ पर तंगी है। ज़बूर 31 आयत 9, तब वो अपने पाक वाअदे के मुताबिक़ आता और इस को बड़ी धीमी और मुलाइमीयत की आवाज़ से इर्शाद फ़रमाता है कि तेरे ईमान ने तुझे चंगा किया सलामत जा, उठ खा पी।

उन माओं को जो अपने बच्चों की तक्लीफ़ को देखकर एक मिनट भी गवारा नहीं कर सकतीं और जिनके गोद में उनके बेज़बान लख़्त-ए-जिगर जांबहक़ होने को हैं वो अपने हाथों का सहारा देकर दुबारा उनको ज़िंदगी बख़्शता और उनके कलेजे में ठंडक पड़ती वो डूबते जहाज़ों को सही व सलामत किनारे पर पहुँचाता भूखों को सैर करता अमीरों को ग़रीब और गदागरों (फ़क़ीरों) को बादशाह बनाता है और अपनी क़ुद्रत का साया सब के ऊपर रखता है और किसी को इस में चूं व चरा की जगह नहीं है वाह-वाह क्या ही अजीब हिक्मत है।

पस ऐ नादान भाई तू जो दुआ को काम में नहीं लाता और नाशुक्र गुज़ारी ज़ाहिर करता है और आदमीयों और मिशनरियों पर भरोसा करने वाला है शर्म खा और आ मसीह तुझे बुलाता है अपने सब दुख और रंज में ख़ुदा के रहम पर भरोसा व आसरा रख और हिम्मत ना हार तकिया कर। उस की रहमत अबदी है वो सब का हाफ़िज़ निगहबान है अगरचे माँ की मुहब्बत लासानी है ताहम ख़ुदा की मुहब्बत की मानिंद नहीं हो सकती वो तेरी सुनेगा और तेरे साथ हम्दर्द होगा और उस की मेहरबानी और फ़ज़्ल से जो जो मुसिबतें और बोझ नज़र आते हैं वही बड़े फ़ायदे का बाइस होंगे। पाक कलाम की तिलावत करने से अज़हर (ज़ाहिर) होता है कि कितनों ने अपनी तंगियों में यहोवा को पुकारा और उसने उनकी सख़्त मुसीबतों और बंधनों, क़ैद और गु़लामी के जूओं (बोझों) से निकाला, छुड़वाया, ख़लासी दिलाई, आज़ाद करवा लिया और ख़ुद हमारे लिए वो नमूना ठहरे कि हम भी उनके हाल पढ़ कर नसीहत हासिल करें उस को पुकारें और उनकी तरह सिदक़ दिली (सच्चे दिल) से दुआ में हमेशा लगे रहें और इस ज़रीये से उस की पाक मर्ज़ी को पूरा करें। और इस ताज आस्मानी को फ़त्हयाबी से लें।

ग़र्ज़ ऐ मसीही भाई और बहनों बूढ़े और जवानो आओ। मसीही क़ौम की बेहतर हालत के लिए और उसकी पायदारी व मज़बूती के वास्ते और अपनी ज़िंदगीयों को दूसरों के फ़ायदे के लिए जिस क़द्र हो सके मुफ़ीद बनाने के लिए जैसा कि ख़ुदावन्द येसू मसीह ने अपनी ज़िंदगी का नक़्शा हम सबको दिया है अपने अपने घरों में दुआएं मांगें अगरचे जिस क़द्र हमारी दुआएं बढ़ती उसी क़द्र हमारी तकलीफ़ें भी ज़्यादा होती जाएं। लेकिन तो भी साबित क़दमी और मुस्तक़िल मिज़ाजी को अमल में लाओ और साबिर रहो हौसला ना हारोगे तो आख़िर को ज़रूर ग़ालिब आओगे उठो जल्द आस्मानी मुल्क-ए-कनआन में दाख़िल होने का सामान तैयार करो ऐसा ना हो कि क़ाफ़िला तैयार हो जाये और हम में से कोई बे सरो सामान उठ कर हमराह हो ले और उन पाँच नादान कुँवारियों की तरह दूसरों का मुहताज बने और फिर पछताना पड़े। याद करो कि ख़ुदावन्द अपने बंदों की दुआएं क़ुबूल करने में इन्कार ना करेगा। बल्कि उन्हें मंज़ूर फ़रमाएगा चेन और राहत व तसल्ली बख़्शेगा और आस्मानी मुल्क कनआन में बग़ैर किसी रुकावट और दिक़्क़त के ख़ुद साथ हो कर दाख़िल करेगा वो अपना वाअदा कर कर चुका है और उसे कभी भी फ़रामोश ना करेगा वो सादिक़ होने के इलावा मुहब्बत से भरा हुआ है और इस मुहब्बत की तासीर बढ़ती रहेगी। यक़ीनन वो हमारी दुआओं को सुनकर रहम फ़रमाएगा बल्कि सुनते ही जवाब देगा शर्त यह है कि हम भी उस ईमानदार औरत की मानिंद होएं जो दामन के छूने से बारह बरस की तक्लीफ़ से शिफ़ायाब हुई और अपनी मुराद को फ़ौरन हासिल कर के शादू राज़ी हुई। काश के हर एक मसीही सच्चे दिल से दुआ गो हो और बाइबल की दुआओं से अपने दिल को तर व ताज़ा मामूर व भरपूर करे और जिसको वो अपनी हिदायत के लिए यानी ख़ुदा के सारे कलाम को फ़ाइदेमंद समझता है मेज़ पर या अलमारी में सजावट के तौर पर ना रख छोड़े बल्कि उस के नमूने को जो ख़ुद नजातदिहंदा ने अपने शागिर्दों को सिखाया। जिसे अक्सर दुआए रब्बानी कहते हैं जो कि हिदायत के लिए एक ख़ास क़ानून है। इस्तिमाल में ला कर ये कह सके जैसा कि ज़बूर में लिखा कि ऐ यहोवा तू अपने नाम के वास्ते मुझे जिलाएगा (मुर्दों से ज़िंदा करना) तू अपनी सदाक़त के साथ मेरी जान को तंगी से निकालेगा। आमीन

वो जो मिस्कीन पर ज़ुल्म करता है

ख़ुदा पर ईमान लाना आपस के फ़राइज़ की अदायगी का सर-चशमा है। सुलेमान की निस्बत एक बुज़ुर्ग तर शख़्स ने यही हिदायत अपने उस शागिर्द को दी जो उस की छाती पर तकिया करता था। चुनान्चे वही यूहन्ना अपने मकतूब (ख़त) में लिखता है। और हमने उस से ये हुक्म पाया कि जो कोई ख़ुदा से मुहब्बत रखता है सो अपने भाई से मुहब्बत रखता है। (1 यूहन्ना 4:21)

He who oppresses the Poor

वो जो मिस्कीन पर ज़ुल्म करता है

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan October 4, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 4 अक्तूबर 1895 ई॰

वो जो मिस्कीन पर ज़ुल्म करता है उस के बनाने वाले की अहानत करता है पर वो जो उसे ताज़ीम करता है मिस्कीनों पर रहम करता है।

अम्साल 14:31 आयत

ख़ुदा पर ईमान लाना आपस के फ़राइज़ की अदायगी का सर-चशमा है। सुलेमान की निस्बत एक बुज़ुर्ग तर शख़्स ने यही हिदायत अपने उस शागिर्द को दी जो उस की छाती पर तकिया करता था। चुनान्चे वही यूहन्ना अपने मकतूब (ख़त) में लिखता है। और हमने उस से ये हुक्म पाया कि जो कोई ख़ुदा से मुहब्बत रखता है सो अपने भाई से मुहब्बत रखता है। (1 यूहन्ना 4:21)

क़ादिर-ए-मुतलक़ खुदा उन की सिपर (ढाल) है जिनका कोई मददगार नहीं और जो मदद के मुहताज हैं। वो ग़रीबों का निगहबान और उनका साथ देता है। उन पर ज़ुल्म करना उनके ख़ुदा को मलामत करता है उसने अपनी परवरदिगारी में ऐसा इंतिज़ाम किया है कि ग़रीब और मिस्कीन हमेशा हमारे साथ रहते हैं ताकि हमारी मुहब्बत परखी जाये और ताकि हमको मुहब्बत के इज़्हार और अमल का मौक़ा हाथ आए। ख़ुदा की मुहब्बत उस तमाम मुहब्बत की जड़ है जो इन्सान के दिल में होती है। अगरचे जड़ जो एक दरख़्त की आला जुज़्व बल्कि हस्ती की बुनियाद और तरो ताज़गी और तरक़्क़ी का आला है फ़ीनफ्सिही छिपी रहती है। हर एक दरख़्त अपने फलों से पहचाना जाता है ख़ुदा की मुहब्बत गो दिल में छिपी हुई है मगर ताहम अपने फलों से पहचानी जाती है। ख़ुदा की मुहब्बत का फल ख़लाइक़ (मख़्लूक़ात, लोग) दोस्ती है। इन्सानी फ़राइज़ का इन्हिसार इलाही ईमान पर मबनी है। देखिए सुलेमान किस क़द्र सफ़ाई से कहता है “जो उस की ताज़ीम करता है मिस्कीनों पर रहम करता है” अगर इन्सान का दिल अपने ख़ुदा के हुज़ूर रास्त और सीधा है तो ऐसे शख़्स का बाज़ू अपने भाई की मदद को तैयार है। तमाम सच्ची हम्दर्दी का सरचश्मा जो इन्सान इन्सान के साथ करता है ऊपर ही से है। हमारे ख़ुदावन्द येसू मसीह ने इस मज़्मून पर ताअलीम देते हुए कहा “मैंने ये बातें तुम्हें कहीं ताकि मेरी ख़ुशी तुम में बनी रहे और तुम्हारी ख़ुशी कामिल हो” और इस के बाद ही फ़रमाया कि “मेरा ये हुक्म है कि जैसे मैंने तुम्हें प्यार किया है तुम भी एक दूसरे को प्यार करो” जब तक ये मेल ना हो कोई भी अपने भाई को सच्ची मुहब्बत से प्यार नहीं कर सकता है। ये ही सर चशमा है जो हक़ीक़ी मुहब्बत और ख़ैर ख़्वाही का मंबा है और जिससे मुहब्बत का दरिया बह कर तमाम के दिलों को सैराब कर सकता है। आओ हम ऐसे सर चशमे से ईमान के ज़रीये मेल हासिल करें और उस की मुहब्बत से फ़ैज़याब (फ़ायदा हासिल करना) हो कर औरों पर मुहब्बत और ख़ैर ख़्वाही का इज़्हार करें।

बाअज़ आयात क़ुरआन पर सरसरी रिमार्क्स

साल गुज़श्ता यानी 94 ई॰ के दर्मियानी चंद हफ़्तों के पर्चे अख़्बार नूर-अफ़्शां में एक मज़्मून ब उन्वान “बाअज़ ख़यालात-ए-मुहम्मदी” पर सरसरी रिमार्क्स (राय, क़ौल) दर्ज हुआ। जिसमें मुहम्मदी साहिबान के बाअज़ ख़यालात दीनिया व रूहानिया का ख़ुलासा, जिनको वो अपने तईं अहले-किताब समझ कर क़ुरआन व हदीस के मुवाफ़िक़

Minor Remarks on some verses of Quran

बाअज़ आयात क़ुरआन पर सरसरी रिमार्क्स

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan Sep 27, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 27 सितंबर 1895 ई॰

साल गुज़श्ता यानी 94 ई॰ के दर्मियानी चंद हफ़्तों के पर्चे अख़्बार नूर-अफ़्शां में एक मज़्मून ब उन्वान “बाअज़ ख़यालात-ए-मुहम्मदी” पर सरसरी रिमार्क्स (राय, क़ौल) दर्ज हुआ। जिसमें मुहम्मदी साहिबान के बाअज़ ख़यालात दीनिया व रूहानिया का ख़ुलासा, जिनको वो अपने तईं अहले-किताब समझ कर क़ुरआन व हदीस के मुवाफ़िक़ अपने मज़्हबी फ़राइज़ अमल में लाने के लिए ज़रूरी और मूजिब-ए-सवाब ख़याल करते हैं मुक़ाबले के तौर पर तहरीर किया गया। और जिसका नतीजा सिर्फ यही हासिल हुआ, कि उनके वो मज़्कूर कुल ख़यालात अहले किताब मसीहियों की ताअलीम के मह्ज़ ख़िलाफ़ है। मगर हाँ बहुत कुछ ताअलीम हनूद (हिंदू की जमा) के मुवाफ़िक़ साबित व ज़ाहिर हुए। जो अज़रूए क़ुरआन मुश्रिक क़रार दीए जाते हैं। और जो अम्र निहायत गौर-तलब है और जिसके लिए अदबन मुकर्रर (दुबारा अदब से) इल्तिमास भी किया गया था। कि अगर उनकी कोई दूसरी हक़ीक़त हो तो कोई साहब बराए मेहरबानी उस को ज़ाहिर कर के राक़िम मज़्मून को ममनून व मशकूर (एहसानमंद व शुक्रगुज़ार) फ़रमाएं। मगर हनूज़ (अभी तक) जिसको क़रीब एक साल का अर्सा गुज़रता है किसी साहब ने ख़ाकसार को ममनून ना[1] किया।

पस अब दूसरा मज़्मून उन्वान बाला से दर्ज अखबार-ए-हाज़ा किया जाता है। जिसमें क़ुरआन साहब के उन अल्फ़ाज़ पर ग़ौर करना कमाल (निहायत) ज़रूरी है। जिनके ज़रीये बाअज़ मुहम्मदी साहिबान हम मसीहियों पर बाअज़ दफ़ाअ हट धर्मी (ज़िद, ढीट पन) या बे-मुंसफ़ी (ना इंसाफ़ी) का इल्ज़ाम लगाया करते हैं, कि “क़ुरआन तो़ इन्जील और दीगर अम्बिया की तस्दीक़ करता है। मगर मसीही क़ुरआन और मुहम्मद साहब को क़ुबूल व तस्लीम नहीं करते वग़ैरह, वग़ैरह।” चुनान्चे इन आयात-ए-क़ुरआनी में से जिनमें वो कुतब-ए-साबिक़ा यानी तौरेत व इन्जील वगैरह के मुसद्दिक़ (तस्दीक़ गया) होने का इक़रार करता एक ये है, यानी “क़ुरआन बनावट की बात नहीं है। मगर वो तस्दीक़ है अगली किताब की और तफ़्सील है हर चीज़ की और हिदायात व रहमत है इस क़ौम के लिए जो ईमान लाते हैं।” (सूरह यूसुफ़ आयत 111)

अलबत्ता इन अल्फ़ाज़-ए-क़ुरआनी के ज़रीये मसीहियों को मुनासिब ही नहीं। बल्कि निहायत ज़रूरी होता, कि वो अगरचे क़ुरआन को मिन्जानिब अल्लाह और मुहम्मद साहब को नबी बरहक़ तो हरगिज़ ना मान सकते थे। क्योंकि नबी और नबुव्वत की ज़रूरत, ज़रूरत पर मौक़ूफ़ (ठहराया गया) है। जिनका ख़ातिमा किताब-ए-मुकाशफ़ा पर हो चुका। और अब ना कोई और किताब की ज़रूरत और ना किसी दीगर नबी के ज़हूर की कुछ हाजत (ज़रूरत) बाक़ी रही। जिसकी बह्स बदलाईल किताब अदम ज़रूरत क़ुरआन के सफ़ा 3 से 15 तक बग़ौर मुतालआ करना चाहिए। ताहम वो उनकी इज़्ज़त व ताज़ीम दीगर बुज़ुर्गों के मानिंद ज़रूर ही करते। जिसके लिए उन्हें आम तौर पर हुक्म दिया गया है कि “अगर तुम फ़क़त अपने भाईयों को सलाम करो तो क्या ज़्यादा किया? क्या महसूल लेने वाले भी ऐसा नहीं करते? (मत्ती 5:47) और जिनकी ख़ासियत का क़ुरआन में भी यूं मज़्कूर (ज़िक्र करना) है, “और दोस्ती के बारे में मुसलमानों के तू उन को ज़्यादा क़रीब पाएगा, जो कहते हैं कि हम नसारा हैं। इसलिए कि इनमें क़िस्सीस (दीन-ए-नसारा का आलिम) और रहबान (राहिब की जमा) हैं। और ये लोग तकब्बुर (ग़ुरूर) नहीं करते। (सूरह अल-मायदा आयत 85)

मगर ताज्जुब (हैरत) का मुक़ाम है कि वही क़ुरआन अपने इन अल्फ़ाज़ की आड़ में दीगर कुतब-ए-साबिक़ा और ख़ुसूसुन इन्जील-ए-मुक़द्दस को रद्द करने का इरादा कर के सिर्फ अपनी ही ज़रूरत को पेश करना चाहता है।

जो कलाम-अल्लाह बाइबल मुक़द्दस के मह्ज़ ख़िलाफ़ और नामुम्किन अम्र है। तो भला अब क्योंकर हो सके। मगर हाँ कोई बेजा या नामुनासिब लफ़्ज़ उन के या किसी के ख़िलाफ़ अपनी ज़बान या क़लम से मसीहियों का निकालना उन के उसूल-ए-ईमानिया के बिल्कुल ख़िलाफ़ है। लेकिन रास्ती और हक़ को ज़ाहिर करना भी उनका ख़ास व ज़रूरी फ़र्ज़ है। जो बेशक अक्सरों को बुरा मालूम हो सकता अम्र मज्बूरी है। चुनान्चे क़ुरआन की उन बाअज़ आयतों में से जो ताअलीम बाइबल के ख़िलाफ़ हैं। बाअज़ का मुख़्तसरन यहां ज़िक्र किया जाता है, कि जिनके ज़रीये क़ुरआन ख़ुसूसुन इन्जील-ए-मुक़द्दस पर अपना हमला ज़ाहिर कर के उस की ख़ास ताअलीम को रद्द करने की बदर्जहा कोशिश करता है। जिनमें से अव़्वल उन आयतों[2] पर ग़ौर करे जिनका ज़िक्र इन्जील-ए-मुक़द्दस में मुतलक़ (बिल्कुल) पाया नहीं जाता और ना हो सकता है। मगर क़ुरआन उनके ज़रीये अपना दावा उस पर साबित करता है।

अव़्वल : वो आयातए-क़ुरआनी जिनका ज़िक्र इन्जील में मुतलक़ पाया नहीं जाता

1. सूरह अल-मायदा आयत 116, 117, (116) ‘‘और जब ख़ुदा ने कहा ऐ ईसा मर्यम के बेटे क्या तू ने लोगों से कहा था कि मुझे और मेरी माँ को अल्लाह से अलग दो ख़ुदा मानो। ईसा बोला तू पाक है मुझसे क्योंकर हो कि वो बात कहूं जो मेरा हक़ नहीं। अगर मैं कहता तो मुझे मालूम होता तू मेरे दिल की जानता है और मैं तेरे दिल की नहीं जानता तू तो छिपी बातें जानता है। (117) मैंने उन्हें वही बात कही है जिसका तू ने मुझे हुक्म दिया था कि तुम अल्लाह की इबादत करो। जो मेरा और तुम्हारा रब है। और जब तक मैं इन में रहा उनका निगहबान रहा और जब तू ने मुझे वफ़ात दी तू इनका निगहबान हो गया और तू हर शैय पर गवाह है।

आयाते क़ुरआनी मज़्कूर बाला से दो बातें मुतशरह हैं :-

अव़्वल, ये कि ख़ुदावन्द येसू मसीह के इक़रार की आड़ में बुज़ुर्गान-दीन यानी रसूलों, हवारियों (शागिर्दों) और दीगर बुज़ुर्गों ने मर्यम को एक माबूद (ख़ुदा) समझा, सिवाए अल्लाह के।

दोम, ये कि ख़ुदावन्द येसू मसीह की उलूहियत (ख़ुदाई) का इक़रार किया बरख़िलाफ़ उस के इन्कार के। जिसने मिस्ल मुहम्मद साहब की, कि बंदगी करो अल्लाह की वग़ैरह वग़ैरह मगर इन बातों का ज़िक्र इन्जील-ए-मुक़द्दस में मुतलक़ (बिल्कुल) पाया नहीं जाता है। और ना किसी दीनदार मसीही की रिवायत से आज तक इनकी कोई तस्दीक़ हुई लेकिन ताज्जुब (हैरानगी) है कि छः सौ बरस बाद मुहम्मद साहब को बज़रीये वही ये हिदायत पहुंची। अब इन बातों पर ग़ौर करीए।

अव़्वल, मर्यम इन्सान थी। जिसको कभी किसी ईसाई ने आज तक माबूद (ख़ुदा) इक़रार नहीं दिया। जिस हाल कि कलामे ख़ुदा इंसान को इन्सान पर सिर्फ भरोसा रखने पर लानत का फ़त्वा ज़ाहिर करता है। (यर्मियाह 17:5) तो उस को ख़ुदा समझने का किस क़द्र होलनाक नतीजा। जिसकी वजह सिर्फ ये है, कि मुहम्मद साहब ने रोमन कैथोलिक ईसाईयों को ग़लती से मर्यम की ज़्यादा ताज़ीम करते हुए देखकर उस को पाक तस्लीस का उक़नूमे सालिस ख़याल कर लिया। और ईसाईयों के सर पर ये इल्ज़ाम थोप दिया जिसको वो ख़ुद कुफ़्र समझते हैं।

दोम, ख़ुदावन्द येसू मसीह की उलूहियत के सबूत पर इन्जील-ए-मुक़द्दस में बकस्रत शहादतें व सदाक़तें (गवाहियाँ व सच्चाईयां) मौजूद हैं। जिनको आँखें खोल कर देखना चाहिए। मगर इनका ज़िक्र बसबब तवालत (लंबा होने की वजह से) क़त-ए-नज़र (नज़र-अंदाज करना) कर के यहां पर सिर्फ ख़ुदावन्द येसू मसीह के चंद अक़्वाल जो इस अम्र के सबूत पर इस में बरमला दावा के साथ मज़्कूर हुए मुन्दरज किए जाते हैं।

चुनान्चे उसने फ़रमाया मैं बाप की गोद से आया हूँ कि मैंने ख़ुदा को देखा और मैं ही उस को ज़ाहिर करता हूँ। (यूहन्ना 1:18) कि “मैं और बाप एक हैं।” (यूहन्ना 10:30) कि मैं अदालत व क़ियामत के दिन मुर्दों का इन्साफ़ करूँगा। (यूहन्ना 5:22) कि “जिसने मुझे देखा उसने बाप को देखा।” (यूहन्ना 14:9) कि “आस्मान व ज़मीन का सारा इख़्तियार मुझे दिया गया है।” (मत्ती 28:18) कि “मैं ज़माने के आख़िर तक हर रोज़ तुम्हारे साथ हूँ।” (28:20) वग़ैरह-वग़ैरह। पस इस क़द्र इक़रारों और दाअवों के सामने क़ुरआन के इस मस्नूई (खुद-साख्ता) इन्कार की जो मह्ज़ ग़र्ज़ से किया गया। जिसका ज़िक्र आइन्दा भी किया जाएगा। वक़अत (इज़्ज़त) हो सकती है?

2. सूरह अल-निसा आयत 169 “और ऐ अहले-किताब अपने दीन में मुबालग़ा (किसी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बयान करना) ना करो और ख़ुदा की निस्बत सिर्फ हक़ बात बोलो। मसीह ईसा इब्ने मर्यम अल्लाह का रसूल और स का कलिमा है जिसे उसने मर्यम की तरफ़ डाला था और रूह[3] है। इस में से (यानी ख़ुदा में से) पस तुम अल्लाह पर और स के रसूलों पर ईमान लाओ और तीन ना कहो बाज़ आओ तुम्हारा भला होगा।” अलीख

अलबत्ता इस आयते क़ुरआनी के दर्मियानी अल्फ़ाज़ जिन पर ख़त खींचा गया अजीब और निहायत रास्त और इन्जील के मुवाफ़िक़ अल्फ़ाज़ में (देखो यूहन्ना 1:1, 5, लूक़ा 1:35) जो इस में इत्तिफ़ाक़ीया दर्ज हो गए। मगर ताज्जुब (हैरत) का मुक़ाम है कि बहुत से मुहम्मदी साहिबान इन पर बहुत कम ख़याल करते हैं। क्या ये अजीब ख़िताब किसी दीगर नबी की तरफ़ भी क़ुरआन में मन्सूब (क़ायम) हुए? हरगिज़ नहीं। मगर इस के आख़िरी अल्फ़ाज़ यानी “तीन ना कहो बाज़ आओ तुम्हारा भला होगा।” बेशक गौर तलब हैं क्योंकि ईसाईयों के अक़ीदे में तीन ख़ुदा कहना या मानना मह्ज़ कुफ़्र है। बल्कि वो सिर्फ एक वाहिद ख़ुदा के क़ाइल हैं। (इस्तिस्ना 6:4, रोमीयों 16:27, 1 तीमुथियुस 1:17, यहूदाह 1:25) मगर एक वाहिद ख़ुदा में अक़ानीम सलासा यानी बाप, इब्न (बेटा) और रूहउल-क़ुद्स के अलबत्ता क़ाइल हैं। जिनसे तीन ख़ुदा हरगिज़ लाज़िम नहीं आते। बल्कि तीन उसूल जो फ़िल-हक़ीक़त शख़्सियत में अलग अलग, मगर ज़ात व सिफ़ात और जलाल में वाहिद। (मत्ती 28:19, 2 कुरिन्थियों 13:14) उस इलाही अज़ली व हक़ीक़ी वहदानियत में जो इलाही है कलाम अल्लाह के मुवाफ़िक़ क़ुबूल करना मुनाफ़ी (खिलाफ) इस वहदत के नहीं जो अल्लाह की वहदत है। मगर वहदत-ए-मुजर्रिद (अकेला, तन्हा) या उस वहदत के ज़रूर ख़िलाफ़ है, जो अक़्ली वहदत है क्योंकि अल्लाह की वहदत में अक़्ली वहदत का क़ाइल होना कुफ़्र है जिसके सिर्फ़ ईमान और इक़रार से मुतलक़ कोई फ़ायदा नहीं है। (याक़ूब 2:19) क्योंकि ख़ुदा की वहदत वो वहदत है जो क़ियास (ख़याल) व गुमान इन्सानी से बालातर है। उस में ना वहदत वजूदी ना वहदत अक़्ली और ना वहदत अददी है। बल्कि वो ग़ैर-मुद्रिक (समझ में ना आने वाली) है जो मुतशाबहात (जिनके मअनी ख़ुदा के सिवा कोई नहीं जानता इनके एक से ज़ाइद मअनी हो सकते हैं) जिसका मतलब आज तक ना कोई समझ सका। और ना इन्सान की ताक़त है कि इस को समझ सके।

3. सूरह अल-तौबा आयत 112 मुसलमानों की जानें और माल अल्लाह ने बओज़ बहिश्त ख़रीद की हैं, कि वो अल्लाह की राह में लड़ें क़त्ल करें और क़त्ल हों ये लाज़िमी वाअदा है अल्लाह पर। तौरेत में और इन्जील व क़ुरआन और अल्लाह से ज़्यादा वादा-वफ़ा कौन है सो इस बैअ (फ़रोख़्त) पर जो तुमने उस से की ख़ुशी करो और ये बड़ी मुराद याबी है।

ख़ुदा के पाक कलाम तौरेत व इन्जील में ना कहें कि राह में लड़ने मरने का हुक्म हुआ और ना इस के लिए कोई अज्र ठहराया गया। और ना ऐसे फ़ेअल पर किसी तरह की बैअ क़रार पाई। बल्कि बरअक्स इस के क़सदन ऐसा करने वाले पर अल्लाह का इताब (क़हर) है। अलबत्ता बाअज़ मुख़ालिफ़ीन बनी-इस्राईल की उन लड़ाईयों को जो कनआनियों के साथ हुईं। अल्लाह की राह पर लड़ना। मरना ख़याल करते हैं। मगर ये उनकी ग़लत-फ़हमी है। उन लड़ाईयों की निस्बत बनी-इस्राईल को कहीं ख़ुदा की तरफ़ से ये वाअदा नहीं हुआ कि जो इन लड़ाईयों में क़त्ल करेंगे, या क़त्ल किए जाऐंगे। वो बहिश्त में दाख़िल होंगे। जिनमें से बहुतों को ख़ुद ख़ुदा ने उनकी सरकशी व ना-फ़र्मानी के सबब बाअज़ दफ़ाअ हलाक कर दिया। देखो ख़ुरूज 32:28 गिनती 11:33, 21:6 वग़ैरह वग़ैरह। यहां तक कि सिवाए बच्चों वग़ैरह के उन छः लाख जंगी मर्द बनी-इस्राईल में से जो मिस्र से निकले (ख़ुरूज 12:37) सिर्फ दो यानी कालिब और यशूअ है इस वाअदे के मुल्क कनआन में भी दाख़िल हो सके। और बाक़ी सब उस जंगल ब्याबान में मर गए। (गिनती 26:65) और ना कहीं ये हुक्म सादिर हुआ कि जो कनआनी अल्लाह की राह पर ईमान लाएं और इस को क़ुबूल करें, उन्हें छोड़ दो। क्योंकि वो उस ख़ुदा-ए-आदिल व मुंसिफ़ की आलिमुल गैबी के मुवाफ़िक़ उनकी सख़्त बुराईयों के सबब उन पर एक क़हर था। जैसा ख़ुदा-ए-क़ुद्दूस का बर्ताव उस के ऐन अदल (इन्साफ़) के मुवाफ़िक़ बाइबल मुक़द्दस के दूसरे मुक़ामों से भी बख़ूबी ज़ाहिर है। चुनान्चे दुनिया की बुराई के सबब उस को तूफ़ान से ग़ारत (तबाह व बर्बाद) कर देना। सदोम व अमोरह की शरारत और नापाकी के बाइस उनको गंधक और आग से भस्म कर डालना। फ़िरऔन को उस की सख़्त दिली के सबब मए उस की फ़ौज बहर-ए-क़ुलज़ुम में डूबा मारना। वग़ैरह वग़ैरह मगर दीनदार और अपने परस्तारों को महफ़ूज़ रखना।

इन्जील मुक़द्दस में भी ख़ुदा की राह में लड़ने व मरने का कहीं मुतलक़ (बिल्कुल) ज़िक्र नहीं है। बल्कि अल्लाह की राह ज़ाहिर करने की बाबत इस में यूं लिखा है, क़ौल ख़ुदावन्द येसू मसीह देखो मैं तुम्हें भेड़ों की मानिंद भेड़ीयों के बीच में भेजता हूँ। पस तुम साँपों की तरह होशियार और कबूतरों की मानिंद बे आज़ाद बनो। (मत्ती 10:16) और उनसे बर्ताव की बाबत जो ख़ुदा के कलाम से बर्गश्ता (गुमराह) हो जाते हैं, यूं मर्क़ूम है, “मुनासिब नहीं कि ख़ुदावन्द का बंदा झगड़ा करे बल्कि सबसे नर्मी करे। और सिखलाने पर मुतअद और दुखों का सहने वाला होए। और मुख़ालिफ़ों की फ़िरोतनी से तादीब (तंबीया) करे, कि शायद ख़ुदा उन्हें तौबा बख़्शे ताकि वो सच्चाई को पहचानें। और वो जिन्हें शैतान ने जीता (शिकार किया) है बेदार (जागना) हो कर उस के फंदे से छूटें। ताकि ख़ुदा की मर्ज़ी को बजा लाएं। (2 तीमुथियुस 2:22, 26)

पस कलाम-ए-ख़ुदा बाइबल मुक़द्दस के मुवाफ़िक़ अल्लाह की राह में लड़ने मरने या उस के लिए किसी तरह की सख़्ती करने की क़तई मुमानिअत (मना) है। और ना अक़्ल गवारा कर सकती है, कि इस तरह किसी इंसान की दिली तब्दीली हो सके। मगर हाँ नर्मी मुलाइमियत और बुर्दबारी (सब्र तहम्मुल) से मुम्किन है जो मसीहियों की इन्जील-ए-मुक़द्दस के ज़रीये दिली ख़ासियत है और जिसकी ताईद (हिमायत) क़ुरआन भी यूं ज़ाहिर करता है, “जो लोग ईसा के ताबे हुए हमने उनके दिलों में शफ़क़त और मेहरबानी डाली” अलीख। सूरह अल-हदीद आयत 27

4. सूरह सफ़, आयत 6, “और जब ईसा इब्ने मर्यम ने कहा ऐ बनी-इस्राईल मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का रसूल हूँ मुझ आगे जो तौरेत है मैं उस का मुसद्दिक़ (तस्दीक़ करने वाला) हूँ और एक रसूल की बशारत (ख़ुशख़बरी) देता हूँ जो मेरे बाद आएगा। उस का नाम अहमद होगा। अलीख।

मगर इन्जील-ए-मुक़द्दस में ना किसी नबी के ज़हूर की अब कुछ ज़रूरत और ना किसी की आमद का कुछ इशारा है। बल्कि ख़िलाफ़ इस के ख़ुदावन्द येसू मसीह ने ऐसे लोगों से जो उस के बाद नबुव्वत का दावा करें होशियार रहने की बाबत ताकीदन यूं फ़रमाया है, “तब अगर कोई तुमसे कहे कि देखो मसीह यहां या वहां है तो उसे ना मानना। क्योंकि झूठे मसीह और झूटे नबी उठेंगे। और ऐसे बड़े निशान और करामातें (मोअजिज़े) दिखाएँगे, कि अगर हो सकता तो वो बर्गज़ीदों (चुने हुए) को भी गुमराह करते। देखो मैं तुम्हें आगे ही कह चुका। पस अगर वो तुम्हें कहें कि देखो वो ब्याबान में है तो बाहर ना जाऐ कि देखो वो कोठरी में है, तो ना मानो। मत्ती 24:23 से 26 क्योंकि अहकामात तौरेत मुक़द्दस में जो कुछ तक्मील तलब थे। और जिनकी तक्मील के लिए एक तक्मील कनिंदा “मसीह” की बाबत सब नबियों ने हम-ज़बाँ हो कर गवाही दी। (यूहन्ना 5:39) वो आ चुका और सब कुछ पूरा कर चुका। (मत्ती 5:17, 18) जिसके सबूत के लिए कुल इन्जील को जो तक्मील का ज़ख़ीरा है बग़ौर मुतालआ करें और देखें। तो अब किसी दूसरे की क्या ज़रूरत बाक़ी रही।

ताहम बाअज़ मुहम्मदी साहिबान ने इस आयत क़ुरआनी के मुवाफ़िक़ इन्जील में निहायत जद्दो-जहद (कोशिश) से छानबीन की। मगर जब कहीं इस का पता ना पाया। तो लाचार (मज्बूर) बाअज़ ने लफ़्ज़ “वो नबी” को मुहम्मद साहब की तरफ़ मन्सूब (क़ायम) करने की कोशिश की। मगर इस का इशारा सिर्फ़ ख़ुदावन्द येसू मसीह की तरफ़ है। (यूहन्ना 7:40, 41) जिसकी बह्स किताब अदमे ज़रूरत क़ुरआन मुसन्निफ़ा पादरी ठाकुर दास साहब सफ़ा 115 से 122 में ये दलाईल मुन्दरज है मुतालआ करें। फिर बाअज़ ने लफ़्ज़ “तसल्ली देने वाला” को उनकी तरफ़ ख़याल कर लिया।

जिससे सिर्फ़ रूह-उल-क़ूदस मुराद है। (यूहन्ना 14:16, 17) और जिसको ख़ुदावन्द ने अपने शागिर्दों पर नाज़िल करने का वाअदा फ़रमाया कि जो उस के लिए गवाही देगा। उस की बुजु़र्गी करेगा। और उस की बातें (ताअलीम) उनको याद दिलाएगा। वग़ैरह-वग़ैरह (यूहन्ना 14:26 15:26 16:14) और जिसका नुज़ूल भी उस के वाअदे के मुवाफ़िक़। उस के सऊदे आस्मान (आस्मान पर जाने) के दस दिन बाद उस के शागिर्दों पर बरमला ज़ाहिर हो गया। (आमाल 2:2, 3) मगर मुहम्मद साहब की ताअलीम गौर-तलब है। पस जब उन्होंने इस में भी कामयाबी ना देखी तो आख़िरकार बाअज़ ने लफ़्ज़ “सरदार जहान” का हज़रत पर क़ायम करने की कोशिश की, कि जिसको हम मसीही भी उनकी या किसी की तरफ़ हरगिज़ मन्सूब नहीं कर सकते। क्योंकि उस की मुराद सिर्फ शैतान से है। और जिसकी निस्बत ये भी लिखा है कि इस जहान के सरदार पर हुक्म किया गया, कि अब इस दुनिया का सरदार निकाल दिया जाएगा। वग़ैरह-वग़ैरह (यूहन्ना 12:31 16:11) पस इन आख़िरी दो आयतों की हक़ीक़त मालूम करने के लिए रिसाला “सक़ाल” मुसन्निफ़ पादरी इमाम मसीह साहब, सफ़ा 12 से 34 तक बग़ौर मुतालआ करें और तसल्ली पाएं।

बाक़ी आइन्दा

 राक़िम

 एक वाइज़ इन्जील जलील

दुवम : बाअज़ आयात तालीमी क़ुरआन व इन्जील मुक़ाबला

1. इन्कार उलूहियत (ख़ुदाई) ख़ुदावन्द येसू मसीह। सूरह अल-मायदा 19, “वो काफ़िर हैं जो मसीह इब्ने मर्यम को अल्लाह कहते हैं। तू कह अगर अल्लाह मसीह बिन मर्यम को उस की माँ को और सबको जो ज़मीन में हैं हलाक करना चाहे तो कौन उस के इरादे को रोक सकेगा।”

2. सूरह ईज़न (अल-मायदा) आयत 79, मसीह और कुछ नहीं मगर एक रसूल इस से पहले बहुत रसूल गुज़र चुके। और उस की माँ और कुछ नहीं मगर सिद्दीक़ा। दोनों खाना खाया करते थे। देखो हम इनके लिए कैसी निशानीयां बयान करते हैं फिर देख वो कहाँ उलटे जाते हैं। तू कह क्या तुम ख़ुदा के सिवाए पूजते हो कि तुम्हें नफ़ा नुक़्सान नहीं पहुंचा सकता।”

3. सूरह अल-तौबा आयत 30 “यहूद ने कहा उज़ैर (यानी एज्रा काहिन) ख़ुदा का बेटा है और नसारा ने कहा कि मसीह ख़ुदा का बेटा है। ये उन के मुँह की बातें हैं अगले काफ़िरों की बात के मुशाबेह इन्हें ख़ुदा की मार कहाँ उलटे जाते हैं।”

4. सूरह अल-निसा आयत 169 का आख़िर हिस्सा। अल्लाह एक है इस बात से पाक है कि उस के कोई बेटा हो। अलीख और देखो सूरह मर्यम भी।

पस क़ुरआन में यही चार ख़ास आयतें हैं। जो उलूहियत ख़ुदावन्द मसीह के ख़िलाफ़ ज़ोर शोर से बयान हुईं। जिनमें से अव़्वल, में ये बतलाया गया है कि वो सिर्फ़ मख़्लूक़ है और दूसरे की मानिंद हलाक हो सकता है। दोम, में उस की इन्सानियत का सबूत और कि वो इन्सान को ना कुछ नफ़ा या नुक़्सान पहुंचा सकता है। सोम, में ये कि ख़ुदा पाक है उस से जो मसीही उस की तरफ़ निस्बत करते हैं। चहारुम, में बड़ी सफ़ाई से ये कहा गया है कि वो ख़ुदा का बेटा नहीं हो सकता।

पस इस से ज़्यादा उलूहियत-ए-मसीह का और क्या इन्कार हो सकता था। जो क़ुरआन का ख़ास मुद्दआ (मक़्सद) है। और बेशक अगर मसीही ख़्वाह-मख़्वाह बिला दलाईल सुबूती उस को (मसीह को) अल्लाह कह कर उस की उलूहियत के क़ाइल हैं तो उनसे बढ़कर कौन काफ़िर हो सकता है। मगर यहां मुआमला दिगर-गूँ (उलट पुलट) नज़र आता है। क्योंकि जैसे मसीहियों के पास उस की इन्सानियत के दलाईल हैं कि वो इन्सान बन कर इब्ने आदम और मसीह कहलाया। और स लिए ख़साइस-ए-इन्सानी यानी खाना, पीना, थकना और सोना वग़ैरह भी उस को लाज़िमी हुए और जिन बातों पर मुहम्मद साहब ने ज़्यादा बल्कि बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया। ताकि उस की उलूहियत व ख़ुसूसीयत को ज़ाइल (ख़त्म) कर के सिर्फ क़ुरआन की ज़रूरत को पेश करें। मगर चूँकि वो कामिल (मुकम्मल) इन्सान था। इसलिए वो गुनाह की ख़ासियत से भी मुतल्लिक़ (बिल्कुल) पाक व मुबर्रा रहा। और जिस अम्र की क़ुरआन भी पूरी शहादत (गवाही) ज़ाहिर करता। पस ये ही ख़ुसूसीयत उस की हम गुनाह आलूदा इन्सानों का शफ़ी (शफ़ाअत करने वाला) होने की है। मगर उस की इन्सानियत से कहीं बढ़कर क़वी (ताक़तवर) दलाईल उस की उलूहियत के भी उनके पास मौजूद हैं। जो इलाही है कि वो मसीह ख़ुदा बसूरत इन्सान दुनिया में ज़ाहिर हुआ। (फिलिप्पियों 2:5-11) कि जिसकी क़वी शहादतें व सदाक़तें कलाम-ए-रब्बानी में मौजूद हैं। और जिनका मुफ़स्सिल बयान इस जगह बख़ोफ़ तवालत दुशवार (मुश्किल) है। मगर ख़ुलासे के तौर पर बाअज़ ये हैं :-

अव़्वल : दलाईल उलूहियते मसीह

(1) नबियों की गवाही। यसअयाह 9:6, यर्मियाह 23:6, मीकाह 5:2

(2) रूह-उल-क़ुद्स की गवाही बमवाजिब कौल-ए-मसीह। यूहन्ना 16:13, 14 व क़ौल रसूल, 1 कुरिन्थियों 12:3

(3) यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की गवाही। यूहन्ना 1:15 से 27

(4) रसूलों की गवाही। यूहन्ना 1:15 और रोमीयों 1:3 से 4

(5) ख़ुद मसीह के अक़्वाल जिनका ज़िक्र पीछे हो चुका।

(6) और उस के ज़िंदा होने का सबूत। मत्ती 28:5-8

दुवम : लफ़्ज़ बेटे का सबूत

(1) नबी का कलाम। ज़बूर 2:12

(2) जिब्राईल फ़रिश्ते की गवाही, कि “वो ख़ुदा तआला का बेटा कहलाएगा।” लूक़ा 1:35

(3) ख़ुदा बाप की गवाही, कि “ये मेरा प्यारा बेटा है, कि तुम उस की सुनो।” मत्ती 3:17, 17:5

(4) ख़ुद मसीह का इक़रार कि “मैं वही हूँ।” मर्क़ुस 16, 14, इलावा बरीं और यही चंद बातें ख़ुलासे के तौर पर किताब हिदायत-तुल-मुस्लिमीन, मुसन्निफ़ पादरी इमाद-उद्दीन साहब, डी॰ डी॰ के सफ़ा 383, 384 से नक़्ल करना ज़रूरी मालूम होती हैं। यानी

पस उस की (मसीह की) उलूहियत के ये दलाईल हैं, कि अव़्वल बाअज़ फ़िक्रात अह्दे-अतीक़ (पुराना अहदनामा) बयान करते हैं, कि ख़ुदा आप मुजस्सम हो के दुनिया में आएगा और ऐसे ऐसे काम करेगा। और ये बातें मसीह में साफ़ पूरी हुई नज़र हैं।

दुवम, आंका (यह कि) ज़रूर मसीह ने ख़ुद उलूहियत का दावा किया और इस का सबूत भी दिया और यहूदी उस के इसलिए भी दुश्मन हुए कि उसने अपने आपको ख़ुदा बतलाया।

सोइम, उस से जो क़ुद्रत ज़ाहिर हुई वो साफ़ अल्लाह की क़ुद्रत थी और उसने उसे अपनी क़ुद्रत बतलाया।

चहारुम, उसने जो पाकीज़गी और खूबियां दिखलाईं वो सब अल्लाह की ज़ात के ख़ास्से थे और कोई बशर कभी ऐसा पाक ज़ाहिर नहीं हुआ है।

पंजुम, उस की सारी ताअलीम का इन्हिसार (मुन्हसिर होना) इसी बात पर है कि वो अल्लाह है।

शश्म, वो अपनी ख़ुदाई का सबूत अपने तसर्रुफ़ात (इख़्तियार) से हमारे ज़हनों में अब तक करता है ऐसा कि ना-मुम्किन है कि उस की उलूहियत का हम इन्कार करें।

पस अब नाज़रीन ख़ुद इंसाफ़न फ़ैसला कर लें। कि उलूहियत ख़ुदावन्द पर मसीह के इन कस्रत दलाईल के नज़्दीक जो कलामे रब्बानी में मुन्दरज हैं।

क़ुरआन साहब की वो चार आयतें जो उस की मह्ज़ इन्सानियत पर दलालत (निशान, अलामत) करती। किस तरह कामयाब हो सकती हैं।

(2) क़त्ल-ए-मसीह के यहूदी क़रारी। मगर मुहम्मद साहब इंकारी सूरह अल-निसा आयत 156, “और इस क़ौल के सबब कि हमने ईसा इब्ने मर्यम रसूल अल्लाह को क़त्ल किया है। हालाँकि ना उसे क़त्ल किया ना उसे सलीब दी लेकिन वो उनके लिए शुब्हा में डाला गया। और वो जो उस के बारे में इख़्तिलाफ़ रखते हैं। उस की निस्बत मुतशक्की (शक करने वाले) हैं। उन्हें इल्म हासिल नहीं लेकिन वो गुमान की पैरवी करते हैं। और ब यक़ीन उस को क़त्ल नहीं किया बल्कि उसे ख़ुदा ने अपनी तरफ़ उठा लिया और अल्लाह ग़ालिब पुख़्ताकार है।

जब कि क़ुरआन ख़ुदावन्द येसू मसीह की उलूहियत का इंकारी है। जिसके खुले सबूत ऊपर मज़्कूर हो चुके तो ज़रूर है, कि वो उस के फ़िद्या (ख़ून बहा) का भी इंकारी हो। जो उस की कामिल (मुकम्मल) क़ुर्बानी में उस के मारे जाने के ज़रीये कामिल हुआ। और जिसका ज़िक्र उस के वाक़ेअ होने से पहले ख़ुदावन्द मसीह ने अपने शागिर्दों पर बरमला ज़ाहिर कर दिया था, कि सब जो नबियों की मार्फ़त इब्ने-आदम के हक़ में लिखा है पूरा होगा। क्योंकि वो ग़ैर क़ौम वालों के हवाले किया जाएगा और वो उस को ठट्ठे में उड़ा देंगे और बेइज़्ज़त करेंगे और उस पर थूकेंगे और उस को कोड़े मार के क़त्ल करेंगे। और वो तीसरे दिन जी उठेगा। लूक़ा 18:32, 33

चुनान्चे उस के दुख व तक्लीफ़ सहने और मारे जाने की बाबत पैशन गोईयाँ बाअज़ नबियों की किताबों में पाई जाती हैं। ख़ुसूसुन यसअयाह नबी की किताब 53 बाब में जो क़रीबन सात सौ बरस पहले इस वाक़िये से कमाल सफ़ाई के साथ बयान हुईं। कि वो यानी मसीह हमारे गुनाहों और बदकारियों के लिए घायल (ज़ख़्मी) किया और मारा जाएगा। और कि उस के मार खाने से हम चंगे हुए। वग़ैरह-वग़ैरह। कि जिनके वक़ूअ की वाक़ई तक्मील ख़ुद चश्मदीद गवाहों ख़ुसूसुन ख़ुदावन्द के हवारियों (शागिर्दों) से इन्जील-ए-मुक़द्दस में कलमबंद की गई। जिनका ख़ुलासा दर्ज ज़ैल है :-

पैशन गोईयाँ म तक्मीलए-इन्जील

1. वो बेचा और पकड़वाया जाएगा। ज़बूर 41:9 ज़करीयाह 11:13

तक्मील मत्ती, 26:14 ता 16 और 23 ता 5 आयत

2. वो तन्हा अकेला छोड़ा जाएगा। ज़करीयाह 13:7

तक्मील मत्ती, 26:56, मर्क़ुस 14:5, 52

3. वो हक़ीर और ज़लील किया जाएगा। यसअयाह 53:3 ज़बूर 7:22 ता 9

तक्मील लूक़ा 9:58, यूहन्ना 19:15, मत्ती 27:39 ता 42

4. उस के दुख और तक्लीफ़ सहने की बाबत। ज़बूर 22:14 ता 17, ज़करीयाह 12:10, यसअयाह 53:4, 5, 6

तक्मील यूहन्ना 19:1-3, मत्ती 27:30, 31

5. उस के कपड़ों की तक़्सीम की बाबत। ज़बूर 22:18

तक्मील मत्ती 27:35

6. उस की मौत की जांकनी की बाबत। ज़बूर 22:1, यसअयाह 53:4, 5

तक्मील मत्ती 27:46, लूक़ा 22:44

7. उस की क़ब्र या दफ़न होने की बाबत। यसअयाह 53:9

8. उस के तीन दिन क़ब्र में रहने की बाबत। (कौल-ए-मसीह)

मत्ती 12:40, तक्मील मत्ती 28:1, 6, 1 कुरिन्थियों 15:4

पस अब मुक़ाम-ए-ग़ौर है, कि नबियों की इस क़द्र शहादतें उस के दुख तक्लीफ़ उठाने और मारे जाने पर कलाम-ए-रब्बानी में मौजूद और जिनकी पूरी तक्मील चश्मदीद गवाहों से इन्जील में साबित। यहूदी अपने जुर्म के ख़ुद इक़रारी। नीज़ रूमी हाकिम और उस वक़्त के बुत-परस्त मुअर्रिख़ इस वाक़िये के गवाह। मगर निहायत ताज्जुब है कि मुहम्मद साहब जो इस वाक़िये के छः सौ बरस बाद पैदा हुए। इन सब शहादतों और सदाक़तों को रद्द करने पर मुस्तइद (आमादा) भला इस अनोखे ख़याल का भी कोई ठिकाना है। जो सिर्फ इस तरह का ख़याल है, कि अगर कोई इस वक़्त अपनी तस्नीफ़ में सिकंदर-ए-आज़म मक़िदूनिया के बादशाह को हिन्दुस्तान में आने का इन्कार कर के ये कहे, कि वो सब झूठे हैं। जो उस का पंजाब तक आना तस्लीम करते हैं। वग़ैरह,वग़ैरह। तो भला ऐसे शख़्स को तवारीख़ दान क्या कहेंगे।

बाअज़ आयात क़ुरआन पर सरसरी रिमार्क्स

सोम : बाअज़ आयात क़ुरआन गौरतलब

सूरह अल-मायदा आयत 50, 51 यानी और पीछे हमने इन रसूलों के क़दमों पर मर्यम के बेटे ईसा को भेजा जो अगली (किताब) तौरात की तस्दीक़ करता। और उस को हमने इन्जील दी जिसमें नूर और हिदायत है और अगली (किताब) तौरात की तस्दीक़ करती है और जो हिदायत और नसीहत है परहेज़गारों के लिए। और चाहिए कि जिन्हों ने इन्जील पाई है, हुक्म करें और उस का जो अल्लाह ने इस में नाज़िल किया है और जो कोई हुक्म ना करे उस का जो ख़ुदा ने नाज़िल किया है तो वही लोग बदकार हैं।

आयात मज़्कूर बाला से चार आयतें साबित हैं जिनका क़ुरआन इक़रारी है।

अव़्वल, ये कि इन्जील तौरात की तस्दीक़ के वास्ते नाज़िल हुई जो मूसा पर उतरी थी।

दुवम, ये कि इन्जील ख़ुदा की तरफ़ से हिदायत नूर और नसीहत है।

सोइम, ये कि ख़ुदा ने इस में जो कुछ इर्शाद किया है चाहिए कि लोग इस पर अमल करें।

चहारुम, ये कि जो लोग अमल ना करेंगे इस पर जो कुछ ख़ुदा ने इस में इर्शाद किया है तो वो लोग गुनेहगार हैं।

मगर अब निहायत ताज्जुब का मुक़ाम है कि वही क़ुरआन अपने इन इक़रारों के ख़िलाफ़ इन्जील की ख़ास ताअलीम लेने उलूहियत ख़ुदावन्द येसू मसीह और उस की मौत के ज़रीये कफ़्फ़ारा आमेज़ काम से जिसकी शहादत व सदाक़त नबियों के कलाम के मुवाफ़िक़ इन्जील-ए-मुक़द्दस से बख़ूबी साबित व ज़ाहिर हुई। और जो इन्सान की हुसूल-ए-नजात के लिए अज़ल से ठहराया गया था। इफ़िसियों 3:11 जिसका ज़िक्र पीछे मज़्कूर हो चुका। बिल्कुल इंकारी, बल्कि और भी चंद बातें निहायत ग़ौर तलब हैं, कि जिनका मतलब व मंशा (मर्ज़ी) ताअलीम इन्जील के मह्ज़ ख़िलाफ़ ज़ाहिर है। जो ज़ेल में दर्ज की जाती हैं। तो अब अम्र मज्बूरी है कि क़ुरआन के कलाम को कुतब-ए-साबक़ा यानी तौरेत व इन्जील का मुसद्दिक़ (तस्दीक़ किया गया) क्योंकर समझा जाये। चुनान्चे

(5) ये क़ुरआन जहान के परवरदिगार का कलाम और उस का नाज़िल किया हुआ है। सूरह अल-हाक्क़ा की आयत 30 से 42 तक, मैं क़सम खाता हूँ। उन चीज़ों की जो देखते हो और उनकी जो नहीं देखते कि तहक़ीक़ ये (क़ुरआन) इज़्ज़त वाले रसूल का क़ौल है। वो किसी शायर का कहा हुआ नहीं तुम थोड़ा यक़ीन करते हो। और ना किसी काहिन का क़ौल है तुम थोड़ा ध्यान करते। ये जहान के परवरदिगार का नाज़िल किया हुआ है।

पीछे मज़्कूर हो चुका है कि नबी और नबुव्वत की ज़रूरत। ज़रूरत पर मौक़ूफ़ (ठहराया) गया है। जिसका ख़ातिमा किताब मुकाशफ़ा पर हो चुका। और जिसके आख़िर उस शख़्स पर जो कलाम रब्बानी में कुछ ज़्यादा करे। या इस में से कुछ कम करे ख़ुदा तआला की तरफ़ से निहायत ख़ौफ़नाक फ़तवे दर्ज हुए। यानी मैं हर एक शख़्स के लिए जो इस किताब की नबुव्वत की बातें सुनता है ये गवाही देता हूँ, कि अगर कोई इन बातों में कुछ बढ़ाए तो ख़ुदा उन आफ़तों का जो इस किताब में लिखी हैं इस पर बढ़हाएगा। और अगर कोई इस नबुव्वत की किताब की बातों में से कुछ निकाल डाले तो ख़ुदा उस का हिस्सा किताबे हयात से और शहर-ए-मुक़द्दस से और उन बातों से जो इस किताब में लिखी हैं निकाल डालेगा। मुकाशिफ़ा 22:18, 19 पस इस इलाही मुहर के सामने किसी दूसरी किताब को किताब-ए-इलाही ख़याल करना किस तरह मुम्किन हो। इलावा बरीं क़ुरआन की अदम ज़रूरत मालूम करने के लिए किताब अदमे ज़रूरते क़ुरआन मुसन्निफ़ पादरी ठाकुरदास साहब बग़ौर मुतालआ करना चाहिए तसल्ली हो जाएगी।

(6) क़ुरआन के मुवाफ़िक़ राहए-नजात सूरह अल-इमरान आयत 29, ऐ मुहम्मद तू कह दे कि अगर तुम ख़ुदा की मुहब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी (पीछे चलना) करो कि ख़ुदा तुमसे मुहब्बत करे और तुम्हारे गुनाह बख़्श दे और ख़ुदा बख़्शने वाला और मेहरबान है। तू कह दे कि तुम अल्लाह और उस के रसूल की ताबेदारी करो फिर अगर वो बर्गश्ता हों तो बेशक ख़ुदा काफ़िरों को दोस्त नहीं रखेगा।

इन्जील-ए-मुक़द्दस में लिखा है कि गुनेहगारों के रास्त बाज़ ठहराए जाने और पाक किए जाने के लिए सिर्फ एक ही वसीला है। यानी ख़ुदावन्द येसू मसीह का कामिल कफ़्फ़ारा ठहराया गया है। जो सिदक़ दिल (सच्चे दिल) से उस पर ईमान लाते हैं वही अपने गुनाहों की माफ़ी हासिल करेंगे। चुनान्चे यूहन्ना 3:36 में लिखा है, कि वो जो बेटे पर ईमान लाता है सो हमेशा की ज़िंदगी उस की है और वो जो बेटे पर ईमान नहीं लाता सो ज़िंदगी को ना देखेगा। बल्कि ख़ुदा का ग़ज़ब उस पर रहता है। और मर्क़ुस 16:15 में लिखा है कि उसने (मसीह ने) उन्हें (हवारियों को) कहा तुम तमाम दुनिया में जा के हर मख़्लूक़ को इन्जील की मुनादी करो। जो कोई ईमान लाता और बपतिस्मा पाता है नजात पाए पर जो ईमान नहीं लाता उस पर सज़ा का फ़त्वा होगा। और किताब आमाल 4:12 में लिखा है कि किसी दूसरे से नजात नहीं क्योंकि आस्मान के तले आदमीयों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया जिससे हम नजात पाए।

(7) क़ुरआन में पैरवान-ए-मसीह पर कुफ़्र का फ़त्वा सूरह अल-मायदा आयत 19, यानी वो लोग बेशक काफ़िर हैं। जो कहते हैं कि ख़ुदा वही मर्यम का बेटा मसीह है। तू कह दे कि फिर किसी का कुछ चलता है अल्लाह से अगर वो चाहे कि मसीह मर्यम के बेटे को और उस की माँ (मर्यम) को और जितने लोग ज़मीन पर हैं हलाक करे।

मगर इन्जील-ए-मुक़द्दस उन लोगों को जो मसीह की उलूहियत (ख़ुदाई) को क़ुबूल करके उस के कफ़्फ़ारे के ज़रीये रास्तबाज़ ठहरते ख़ुदा के ले-पालक (लेकर पाले हुए) फ़रज़न्दों का ख़िताब देती है। और कि वही जहां जा दवां में उस के हुज़ूर बादशाहों और इमामों के रुतबे से अबद-उल-आबाद सरदार होते हैं। चुनान्चे यूहन्ना 16:27 में लिखा है, क्योंकि बाप तो आप ही तुम्हें प्यार करता है इसलिए कि तुम ने मुझे प्यार किया और यक़ीन लाए हो कि मैं ख़ुदा से निकला हूँ मैं बाप से निकला और दुनिया में आया हूँ। पर दुनिया से रुख़्सत होता और बाप के पास जाता हूँ। और ग़लतीयों 3:26 में लिखा है। तुम सब मसीह येसू पर ईमान लाने से ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हो। फिर किताब मुकाशफ़ा 1:4 में लिखा है, कि यूहन्ना उन सात कलसियाओं को जो एशिया में हैं। फ़ज़्ल और सलामती तुम पर हो उस की तरफ़ से जो है और जो था और जो आने वाला है। और उन सात रूहों से जो उस के तख़्त के हुज़ूर में। और येसू मसीह से जो सच्चा गवाह और मुर्दों में से पहलौठा और दुनिया के बादशाहों का सुल्तान है। उसी को जिस ने हम को प्यार किया और अपने लहू से हमें हमारे गुनाहों से धोया और हमको बादशाह और काहिन (इमाम) अपने बाप ख़ुदा के लिए बनाया उसी का जलाल और क़ुद्रत अबद-उल-आबाद है। आमीन

(8) क़ुरआन में इंतिक़ाम लेना जायज़ है सूरह हज आयत 40, 59, उन लोगों को जो मुक़ाबला करते हैं। हुक्म दिया गया है इस वास्ते कि उन पर ज़ुल्म हुआ है। और ख़ुदा उनकी मदद करने पर क़ादिर (क़ुदरत वाला) है। वो जिनको निकाला उनके घरों से नाहक़। हो उस के कि वो कहते हैं कि हमारा रब अल्लाह है फिर जो कोई तक्लीफ़ पहुंचाए जैसे उस को तक्लीफ़ पहुंचाई गई थी फिर दुश्मन ज़्यादती करे उस पर तो ज़रूर ख़ुदा उस की मदद करेगा। क्योंकि ख़ुदा गुज़र करने वाला और बख़्शने वाला है।

मगर इन्जील-ए-मुक़द्दस इंतिक़ाम लेने की बाबत क़तई मना कर के मसीही ईमानदारों को हुक्म देती है, कि वो नुक़्सान और तक्लीफ़ उठा कर सिर्फ सब्र ही ना करें, बल्कि सताने वालों के लिए नेक दुआ करें। चुनान्चे मत्ती 5:42, 45 में यूं लिखा है कि तुम सुन चुके हो कि कहा गया अपने पड़ोसी से दोस्ती रख और अपने दुश्मन से अदावत। पर मैं तुम्हें कहता हूँ, कि अपने दुश्मनों को प्यार करो जो तुम पर लानत करें उनके लिए बरकत चाहो। जो तुमसे कीना (दुश्मनी) रखें उनका भला करो और जो तुम्हें दुख दें और सताएं उनके लिए दुआ माँगो, ताकि अपने बाप के जो आस्मान पर है फ़र्ज़न्द हो।

क्योंकि वो अपने सूरज को बदों और नेकों पर तुलूअ करता और रास्तों व नारास्तों पर मेह बरसाता है। फिर रोमीयों 12:19, 21 में लिखा है, ऐ अज़ीज़ो अपना इंतिक़ाम मत लो बल्कि ग़ुस्से की राह छोड़ो क्योंकि लिखा है कि इंतिक़ाम लेना मेरा काम है। मैं ही बदला लूँगा। ख़ुदावन्द फ़रमाता है, पस अगर तेरा दुश्मन भूका हो उस को खिला अगर पियासा हो उसे पानी पिला क्योंकि ये कर के उस के सर पर आग के अंगारों का ढेर लगाएगा। बदी का मग़्लूब (हारा हुआ) ना हो बल्कि बदी पर नेकी से ग़ालिब (जीतने वाला) हो।

(9) क़ुरआन में लौंडियां हलाल हैं सूरह मोमिन आयत 1 ता 6, ईमानदार कामयाब हुए जो अपनी नमाज़ में आजिज़ी करते। और बेहूदा बात से मुँह मोड़ते और ज़कात अदा किया करते। और अपनी शर्म गाहों की हिफ़ाज़त करते हैं। मगर अपनी औरतों और बांदियों पर नहीं वो बे मलामत हैं।

मगर इन्जील मुक़द्दस एक निकाही बीवी के सिवा किसी हालत में किसी दूसरी औरत से ताल्लुक़ रखना हरामकारी ठहराती है। चुनान्चे ख़ुदावन्द येसू मसीह ने फ़रमाया क्या तुमने नहीं पढ़ा कि ख़ालिक़ ने शुरू में उन्हें एक ही मर्द और एक ही औरत बनाया और फ़रमाया कि इसलिए मर्द अपने माँ बाप को छोड़ेगा। और अपनी जोरू से मिला रहेगा और वो दोनों एक तन होंगे। इसलिए अब वो दो नहीं बल्कि एक तन हैं। (मत्ती 19:4, 9) और फिर फ़रमाया, कि मैं तुम्हें कहता हूँ कि जो कोई शहवत से किसी दूसरी औरत पर निगाह करे वो अपने दिल में उस के साथ ज़िना कर चुका। 5:2-3 पस ऐसे कामों से जो इन्जील के मुवाफ़िक़ हरामकारी व ज़िनाकारी में दाख़िल हैं बचने और एहतियात रखने के लिए यूं मज़्कूर है कि हरामकारी और हर तरह की नापाकी और लालच का तुम में ज़िक्र तक ना हो जैसा मुक़द्दसों को मुनासिब है। (इफ़िसियों 5:3) फिर हरामकारी से भागो। जो जो गुनाह आदमी करता है सो बदन के बाहर है जो हरामकारी करता है अपने बदन का गुनेहगार है। (1 कुरिन्थियों 6:18)

(10) क़ुरआन में तलाक़ दी हुई औरत भी हलाल है सूरह अह्ज़ाब आयत 37, 38, और जब तू ऐ मुहम्मद (ज़ैद) से जिस पर तू ने और ख़ुदा ने फ़ज़्ल किया कहता था कि तू अपनी औरत को थाम रख और ख़ुदा से डर और तू अपने दिल में इस बात को छुपाता था (यानी ज़ैनब के इश्क़ को) और अल्लाह उसे ज़ाहिर किया चाहता था और तू आदमीयों से डरता था। हालाँकि तुझे अल्लाह से ज़्यादा डरना चाहिए था। पस जब ज़ैद ने अपना मतलब उस (जैनब) से पूरा कर लिया। हमने ऐ मुहम्मद तेरा निकाह उस औरत से कर दिया। ताकि ईमानदारों पर अपने मुँह बोले बेटों की औरतों में तंगी न रहे और अल्लाह का काम पहले से किया हुआ था जो अल्लाह ने नबी के लिए हलाल कर दिया इस में नबी पर कुछ तंगी नहीं। अलीख।

मगर इन्जील-ए-मुक़द्दस अव़्वल, तो औरतों को तलाक़ देने की बाबत सिवाए हरामकारी की हालत के और किसी हालत में रवा नहीं रखती।

दोम, तलाक़ दी हुई औरत से निकाह करना मुतलक़ (बिल्कुल) नाजायज़ ठहराती है

चुनान्चे मत्ती 5:31, 32 में लिखा है ये भी कहा गया कि जो कोई अपनी जोरु को छोड़े वह उसे तलाक़ नामा लिख दे पर मैं (मसीह) तुम्हें कहता हूँ, कि जो कोई अपनी जोरू को हरामकारी के सिवा किसी और सबब से छोड़ दे। उस से ज़िना करवाता है। और जो कोई इस छोड़ी हुई से ब्याह करे ज़िना करता है। फिर 19:7-9 में लिखा है, उन्होंने (फ़रीसियों ने) उस से कहा फिर मूसा ने क्यों तलाक़ नामा देने और उसे छोड़ने का हुक्म दिया। उसने (मसीह ने) उन्हें कहा मूसा ने तुम्हारी सख़्त दिली के सबब तुम्हें अपनी जौरओं को छोड़ देने की इजाज़त दी है। पर शुरू से ऐसा ना था और मैं तुम्हें कहता हूँ, कि जो कोई अपनी जोरू को सिवा हरामकारी के सबब के छोड़ दे। और दूसरी से ब्याह करे ज़िना करता है। और जो कोई छोड़ी हुई औरत को ब्याहे ज़िना करता है।

बाअज़ आयात क़ुरआन पर सरसरी रिमार्क्स

(3) मसीह का जी उठना सूरह मर्यम आयत 15, और सलाम है उस पर जिस दिन वो पैदा हुआ। और जिस दिन वो मरेगा और जिस दिन जी के उठ खड़ा होगा। अगर आयत मज़्कूर अल-सदर के साथ सूरह अल-मायदा की आयत 117 के अल्फ़ाज़ पर भी ग़ौर यानी करें (क़ौल मसीह बमूजब क़ुरआन) मैंने उन्हें वही बात कही है जिसका तू ने मुझे हुक्म दिया था कि तुम अल्लाह की इबादत करो जो मेरा और तुम्हारा रब है और जब तक मैं इन में रहा। उनका निगहबान रहा और जब तू ने मुझे वफ़ात दी (या जब क़ब्ज़ किया) तू ने मुझको अलीख।

तो उस के मरने और जी उठने का किसी क़द्र सबूत ज़ाहिर होता है। अगर मुफ़स्सिर क़ुरआन ने इन की और ही तरह तावील (बयान, तश्रीह) की है। जो कलाम-ए-रब्बानी के बिल्कुल ख़िलाफ़ है। क्योंकि जब वो उस की कफ़्फ़ारा आमेज़ मौत के ही क़ाइल नहीं। तो उस के जी उठने की जलील सदाक़त (सच्चाई) के क्योंकर क़ाइल (तस्लीम करने वाले) हो सकते हैं। जिसकी शहादत (गवाही) और सदाक़त (सच्चाई) इन्जील से बरमला ज़ाहिर है। चुनान्चे इस के वक़ूअ से कई सौ बरस पहले ख़ुदा तआला के नबी ने यूं फ़रमाया था, कि तू अपने क़ुद्दूस को क़ब्र में सड़ने ना देगा। (ज़बूर 16:10) और जिसकी तक्मील की पूरी शहादत ख़ुद ख़ुदावन्द ने बारहा अपने शागिर्दों पर साफ़-साफ़ ज़ाहिर कर दी थी। कि मैं फिर जी उठूँगा कि जैसा यूनाह तीन रात-दिन मछली के पेट में रहा। वैसा ही इब्ने-आदम तीन रात-दिन ज़मीन के अंदर रहेगा। (मत्ती 12:40) जो नबुव्वत के ख़ास और लायक़ तरीक़े पर ज़्यादा क़ाबिल-ए-ग़ौर है। फिर पतरस को सख़्त मलामत (लान तान) करने से बख़ूबी अपनी मौत और जी उठने का इज़्हार किया। (मत्ती 16:21) फिर अपनी तब्दील सूरत के बाद उसने अपने शागिर्दों को ये हुक्म दिया कि इस रोया का किसी से ज़िक्र ना करो जब तक इब्ने आदम मुर्दों में से जी ना उठे। मत्ती 17:9 वग़ैरह-वग़ैरह।

पस ख़ुद ख़ुदावन्द की इन पैशन गोइयों और हिदायतों के मुवाफ़िक़ इन्जील-ए-मुक़द्दस से बख़ूबी ज़ाहिर है, कि वो सच-मुच जी उठा जिसकी सदाक़तों और शहादतों का मुख़्तसरन ज़िक्र आगे किया जाएगा। और ख़ुदावन्द के हवारियों (शागिर्दों) ने उस के जी उठने को एक निहायत क़ाबिल-ए-क़द्र और बड़ी ज़रूरत की बात ठहराया। जिनकी राय में उस की इलाही रिसालत और कफ़्फ़ारा आमेज़ काम की निस्बत ये एक सबसे बढ़कर दलील (सबूत) थी। अगर वो जी ना उठता तो उस की रिसालत एक धोका और उस की ताअलीम भी कुछ मुग़ालते (फ़रेब) से कम ना होती। उस की मौत अगर एक फ़रेबी की मौत ना होती। ताहम एक सादा-लौह फ़रेब ख़ूर्दा शख़्स की मौत ज़रूर समझी जाती। लेकिन क्या मुम्किन था कि वो ज़िंदगी का मालिक (मुकाशफ़ा 1:18) जिसने अपने हुक्म के मुवाफ़िक़ चार रोज़ के मुर्दे को क़ब्र से ज़िंदा कर उठाया (यूहन्ना 11:43, 44) ख़ुद क़ब्र का शिकार हो सकता? हरगिज़ नहीं। पस जब वो जी उठा तो वो ख़ुदा से ठहरा हुआ मसीहा और उस की ताअलीम ख़ुदा की अबदी सदाक़त और उस की मौत जहां के गुनाहों के लिए एक कामिल कफ़्फ़ारा थी।

पस इसलिए रसूलों को वाजिब हो कि क़ियामत मसीह को अपनी ख़िदमत का एक ज़रूरी हिस्सा जान कर उस के लिए ज़ाती शहादत दें। और इसलिए उन्होंने अपनी इब्तिदाई वाज़ में इसी आला मर्तबा सदाक़त को उसी जगह, उसी सदर-ए-मज्लिस के सामने जिसने चंद हफ़्ते पेश्तर उस पर क़त्ल का फ़त्वा दिया था। पेश करना ज़रूरी समझा। (आमाल[4] 2:23,27) और ना सिर्फ जी उठने की मुनादी का इज़्हार ही किया, बल्कि ये भी इक़रार किया कि हम सब उस के गवाह हैं। (3:15)

 


[1] लेकिन अगर किसी दूसरे अख़्बार में किसी साहब ने कुछ तहरीर किया हो तो वो राक़िम तक पहुंचा नहीं।

 

[2] जिनका जवाब मुहम्मदी साहिबान के पास सिवा इस के और कुछ नहीं कि “क़ुरआन में ऐसा ही लिखा है” सच्च है। मगर इन्जील के सामने इस का मिंजानिब अल्लाह होना ना आज तक साबित हुआ और ना आइन्दा हो सकता है। अलबत्ता क़ुरआन के ऐसे दावे साबित करने के लिए वो ये ज़रूर कहा करते हैं, कि “ये इन्जील तहरीफ़ व तब्दील हो गई। और वो असली इन्जील है ही नहीं।” वग़ैरह वग़ैरह। मगर इनके ऐसे बे-बुनियाद व बे-दलील ख़याल की क़ातेअ तर्दीद कामिल सबूतों के अक्सर मसीही उलमा की तसानीफ़ में भरी पड़ी है। जिसको कमाल ग़ौर व फ़िक्र से मुतालआ करना निहायत ज़रूरी है। और जिसका ख़ुलासा ये है कि बिलाशक व शुब्हा ये वही अस्ल कलाम-उल्लाह इन्जील मुक़द्दस है, जो ब-ज़माना हवारियान से आज तक ब-हिफ़ाज़त तमाम मसीहियों के हाथ में सही सलामत मौजूद है। कि जिसमें कुछ बदल कर बढ़ाना या घटाना किसी इन्सान का मक़्दूर (ताक़त) नहीं है। चुनान्चे क़ुरआन भी इस अम्र की पूरी, पूरी ताईद करता है, कि “अल्लाह की बातों (कलाम) को कोई बदलने वाला नहीं है।” देखो सूरह अनआम आयत 34, 115, सूरह यूनुस आयत 65 को। कि जिस निहायत ख़तरनाक मकरूह फ़ेअल से बचने के लिए ख़ुदा-ए-तआला की तरफ़ से निहायत ख़ौफ़नाक फ़तवा उस के पाक कलाम में भी दर्ज हुए। देखो।

बक़ीया, फुट नोट किताब मुकाशफ़ात 22:10, 19 को कि जिस कामिलियत का कामिल सबूत सिर्फ यही काफ़ी हो सकता है, कि इस की ताअलीम दीगर कुल मज़ाहिब की तालीमों पर ग़ालिब है। जिसकी बहुत कुछ हक़ीक़त मज़्मून बाअज़ ख़यालात।

बक़ीया फ़ुट नोट, “मुहम्मदी पर सरसरी रिमार्क्स” मैं ज़ाहिर हो चुकी या आइन्दा ज़ाहिर हो जाएगी। जो अम्र निहायत क़ाबिल-ए-ग़ौर है कि बेतास्सुब आज़माया जाये।

मौलवी रहमत अल्लाह के तर्जुमा में लिखा है। पस जब क़ब्ज़ किया तू ने। ” माने दोनों के एक ही हैं। मगर यही क़ुरआन दूसरे मुक़ाम मैं ख़ुदावन्द येसू मसीह की वफ़ात का इन्कार य है। देखो सूरह अल-निसा आयत 156, 157। जिसका ज़िक्र आइन्दा किया जाएगा।

 

[3] नोट, बैज़ावी में भी लिखा कि روح منہ ذوروح صدر منہ यानी साहब रूह है निकली है अल्लाह से।

 

[4] नोट, ये शहादत उन्ही हवारियों की है, जिनका ज़िक्र क़ुरआन की सूरह यसीन आयत 12 और सूरह ** आयत में बलक़ब रसूल और मोमिनों (ईमानदारों) के मज़्कूर है। क़ुरआन उनका मद्दाह है। और मुहम्मदी साहिबान ताज़माना हाल इन्हीं हवारियों की मदह व सना अपनी बाअज़ नमाज़ में पढ़ रहे हैं।

ईसा मिला मसीह नासरी मिला मूसा ने जिसकी दी थी ख़बर वो नबी मिला

कलाम-उल्लाह के मुख़्तलिफ़ 66 किताबों का मुतफ़र्रिक़ मुसन्निफ़ों की मार्फ़त तस्नीफ़ होने और उन में क़िस्म क़िस्म के मज़ामीन मुन्दरज होने से हम दर्याफ़्त कर सकते हैं कि बाअज़ नादान कोताह अंदेशों (कम-इल्म, कम-फ़ह्म) का मह्ज़ किसी एक ही किताब या उस के किसी एक ही मज़्मून से कोई बड़ी और अहम ताअलीम पैदा कर लेना ऐसा है,

Essa found Masih Nazareth found Moses informed us about whichProphet we found

ईसा मिला मसीह नासरी मिला मूसा ने जिसकी दी थी ख़बर वो नबी मिला

By

Kadarnath Manat
क़ेदारनाथ मिन्नत

Published in Nur-i-Afshan Sep 20, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 20 सितम्बर 1895 ई॰

कलाम-उल्लाह के मुख़्तलिफ़ 66 किताबों का मुतफ़र्रिक़ मुसन्निफ़ों की मार्फ़त तस्नीफ़ होने और उन में क़िस्म क़िस्म के मज़ामीन मुन्दरज होने से हम दर्याफ़्त कर सकते हैं कि बाअज़ नादान कोताह अंदेशों (कम-इल्म, कम-फ़ह्म) का मह्ज़ किसी एक ही किताब या उस के किसी एक ही मज़्मून से कोई बड़ी और अहम ताअलीम पैदा कर लेना ऐसा है, जैसे कोई बेवक़ूफ़ अक़्ल का अंधा अल्लाह के मुख़्तलिफ़ कामों में से सिर्फ एक ही को अपने तजुर्बे की बुनियाद समझे नज़र बरां हमारे मुहम्मदी भाई भी इस पहलू पर गए कि अल्लाह जल्ले शाना (जल्लाजलालुहू) की कुतबे मुख्तलिफा तौरेत व ज़बूर व सहाइफ़ अम्बिया व अनाजील को छोड़कर मह्ज़ एक ऐसी किताब को जिसका इल्हामी होना किसी ज़माने भी ख़ुदा के लोगों से तस्लीम नहीं हुआ अपने ईमान की ब्याज़ समझ लिया और ख़ुदा के कल सच्चे पैग़म्बरों से रू गर्दां हो कर सिर्फ एक ऐसे शख़्स पर फ़रेफ़्ता (आशिक़, फ़िदा) हो गए जिसका नबी होना आज तक पाया सबूत से ख़ारिज है। इस सब के इलावा नजातदिहंदा की तलाश में ख़ुदा के कलाम से सिर्फ एक ही आयत को सनद मान कर अकेले मर्द-ए-ख़ुदा मूसा से चंद ख़्याली बातों में जिनको वो आप ही ताक़तवर जानते हक़ीक़ी नजातदिहंदा को मशाबहा गरदान्ते हैं हालाँकि इस मुआमले में ख़ुदा का कलाम अपने उस काम से जो उसने हमारी नज़रों के सामने फैला रखा है यानी ख़ल्क़त के काम से मुबानियत और मुग़ाइरत (अजनबीयत, ना मुवाफ़िक़त) नहीं रखता देखो मलाकी नबी की किताब जो पुराने अहदनामे को ख़त्म करती उस के चौथे बाब की दूसरी आयत में अल्लाह जल्ले शाना (जल्लाजलालुहू) यूं फ़रमाता है, लेकिन तुम पर जो मेरे नाम से डरते हो आफ़्ताब सदाक़त तुलु होगा और उस के पंखों में शिफ़ा होगी। 4:2

ऐ नाज़रीन अपनी आँखों को ज़रा ऊपर उठाईये और फ़िज़ा में नय्यर आज़म (सूरज) को मुलाहिज़ा फ़रमाईए कि किसी तरह से ख़ुदा ने इन हज़ारहा हज़ार बल्कि बेशुमार सय्यारों के वास्ते उसे मर्कज़ क़रार दिया है कि सब के सब जिनमें ये हमारी ज़मीन भी शामिल है शब व रोज़ आफ़्ताब के गिर्द घूमते और रात व दिन महीना साल तब्दीली-ए-मौसम रात-दिन का घटाओ बढ़ाओ और फिर क़ुव्वत-ए-कशिश और सारे चांद सितारों का सूरज से रोशनी पाना ये सब कुछ ख़ुदा ने आप ही ठहरा दिया इसी तरह ये आफ़्ताबे सदाक़त भी जिसकी तलाश में हम तुम सब सरगर्दां हैं कलाम-ए-इलाही के कुल वाक़ियात और हालात और मोअजज़ात और अलामात और अम्बिया वग़ैरह कुल का मर्कज़ सब पैग़म्बर और बुज़ुर्ग और आबा और सारे दीनदार इस से नूर पा कर मुनव्वर हैं।

जब ये हाल है तो याद रखना चाहिए कि ख़ल्क़त में कोई चीज़ या कोई शख़्स ऐसा नहीं जो इस कामिल नूर की कामिल अलामत या मुशाबहत हो। हाँ ज़र्रे की मानिंद आफ़्ताब चमकता है लेकिन ज़र्रे की रोशनी जो ज़र्रा भर है सूरज की रोशनी से जो रोशनी का मादिन (निकलने की जगह, मंबा) है मुक़ाबिल नहीं हो सकती अला-हज़ा-उल-क़यास (इसी तरह) अगरचे मर्द-ए-ख़ुदा मूसा की नबुव्वत में मेरी मानिंद वारिद (नाज़िल होना) है इस से ये ना समझ बैठो कि उस में जो मूसा की नबुव्वत में मेरी मानिंद है यही है जो मूसा में है बल्कि उस में बहुत कुछ है जो मूसा में नहीं है इस वास्ते वाअदे से बढ़कर जो उन्वान में किया गया हम ये दिखा देंगे कि बाइबल के मुख़्तलिफ़ पैग़म्बर और बुज़ुर्ग कहीं बज़ाता (ज़ात के लिहाज़ से) और कहीं बअक़वाला (क़ौल के लिहाज़) से और कहीं बअफ़आला (अमल के लिहाज़) साफ़ साफ़ कह रहे हैं कि वो नबी या बादशाह या काहिन हमारी मानिंद है और ये अम्र अगरचे लोगों की नज़रों में अजीब हो पर ख़ुदा तो सब कुछ कर सकता है ख़ुदा के बेटे में ये ताक़त है कि वो अपने में से बहुतेरों को दे और जो कुछ कि औरों को दे अपने में कामिल तौर से रखे।

जब ये सब कुछ हम बयान कर चुके तो अब हमारा हक़ है कि बयान करें कि किस तरह से हमारा नजातदिहंदा ख़ुदावंद ईसा वही नबी है जिसकी बाबत मूसा ने कहा कि वो मेरी मानिंद नबी होगा।

अव़्वल : इस सबब से कि बहुतेरे से दुख उठा कर और हलाकत के ख़तरों में पड़ कर मूसा ने मर्द-ए-ख़ुदा बइज़ाफ़त हर्फ़ वाल ख़िताब पाया लेकिन ख़ुदावंद ईसा सलीब पर जान देकर मर्द-ए-ख़ुदा बग़ैर इज़ाफ़त हर्फ़ वाल साबित हुआ ज़्यादा आसानी से समझने के वास्ते हम इन हर दो अल्फ़ाज़ को मक़लूब (उल्टा करना, पलटना) कर के देखें यानी ख़ुदा, मर्द इस में मूसा अपने लक़ब से ख़ुदावंद ईसा में दो ज़ातों उलूहियत (ख़ुदा) और इन्सानियत का (मर्द) ब-लिहाज़ तज़कीर बरफा तानीस इशारा देता है। और ऐसा अजीब शख़्स चूँकि दुनिया में और कोई नहीं हुआ पस साबित हुआ कि ईसा मूसा की मानिंद है।

दुवम : इस सबब से कि मूसा ने जिस वक़्त चट्टान को दो बार लाठी से मारा तो यूं कहा कि सुनो ऐ बाग़ीयो क्या हम तुम्हारे लिए चट्टान ही से पानी निकाल लाएं। गिनती 10:20 और इसलिए ख़ुदावंद तआला ने जो अपनी इज़्ज़त किसी दूसरे को नहीं देता फ़रमाया कि तुम मुझ पर एतिक़ाद ना लाए ताकि बनी-इस्राईल के हुज़ूर मेरी तक़्दीस करते सो तुम इस जमाअत को उस ज़मीन में जो मैंने उन्हें दी है ना लाओगे। गिनती 20:12 और फ़रमाया कि अबारीम के कोहिस्तान बनू के पहाड़ जो मूआब की सर-ज़मीन में यरीहू के मुक़ाबिल है। चढ़ जा और कनआन की सर-ज़मीन को कि जिसे मैं इस्राईल का मुल्क कर दूंगा। देख और उस पहाड़ पर जिस पर तू जाता है मर जा। इस्तिस्ना 32:49, 50 इस माजरे से बज़बान हाल मूसा ने हमको ख़बर दी कि वो नबी जो मेरी मानिंद आएगा ये इज़्ज़त और जलाल और क़ुद्रत ख़ुद इख्तियारी उसी का हिस्सा है। चुनान्चे ईसा नासरी ने एक कोढ़ी से कहा कि मैं चाहता हूँ तू पाक हो। मर्क़ुस 1:41 और मफ़लूज को हुक्म दिया कि मैं तुझे कहता हूँ उठ। मर्क़ुस 2:11 फिर एक मुर्दा लड़की से फ़रमाया ऐ लड़की मैं तुझे कहता हूँ उठ। मर्क़ुस 5:41 वग़ैरह लेकिन अगर मर्द-ए-ख़ुदा मूसा अपनी तरफ़ से पानी चट्टान का निकालते हुए मुजरिम क़रार पाया तो और कौन शख़्स है जो ऐसा कलमा-ए-कुफ़्र ज़बान से निकाले और ख़ुदा उस से कुछ ना कहे। क्या ख़ुदा के यहां अंद मेर है। पस इस दलील से साबित हुआ कि वो जो अपने ही हुक्म से मुर्दा जिलाता कौड़ी पाक करता मफ़लूज को चंगा करता ज़रूर मूसा की मानिंद है। ना मूजिबन बल्कि साइबन पस ईसा मूसा की मानिंद है।

सोम : इस सबब से कि जिस वक़्त मूसा पहाड़ से उतर गया और शहादत के दोनों तख़्ते उस के हाथ में थे वो तख़्ते लिखे हुए थे दोनों तरफ़ इधर-उधर लिखे हुए थे। और वो तख़्ते ख़ुदा के काम से थे जो लिखा हुआ सो ख़ुदा का लिखा हुआ और उन पर कुंदा किया हुआ था। ख़ुरूज 32:10, 15 और यूं हुआ कि जब वो लश्कर गाह के पास आया और बछड़ा और नाच राग देखा तब मूसा का ग़ज़ब भड़का और उसने तख्ती अपने हाथ से फेंक दीं और पहाड़ के नीचे तोड़ डालीं। ख़ुरूज 32:19 फिर ख़ुदावंद ने मूसा से कहा कि अपने लिए पहले लोहों के मुताबिक़ दो लोहें पत्थर की तराश और इन लौहों पर वो बातें जो पहली लौहों पर थीं। जिन्हें तू ने तोड़ डाला लिखूँगा। ख़ुरूज 34:1 इस नारवा फ़ेअल (नामुनासिब काम) यानी लौहों के तोड़ डालने से मूसा ने साफ़ इशारा दिया कि अगरचे मैंने ख़ुदा की तराशी हुई और लिखी हुई लौहें तोड़ दीं और फिर हुक्म के मुताबिक़ दूसरी लौहें तैयार कीं लेकिन एक मेरी मानिंद आएगा। जो इस तोड़ी हुई शरीअत को फिर जोड़ देगा और शरीअते इलाही अज़ सर-ए-नौ (नए सिरे से) बग़ैर उस के कि टूटे क़ायम होगी। इसलिए वो दुनिया में आते हुए कहता है कि ज़बीहा और हद्या तू ने ना चाहा पर मेरे लिए एक बदन तैयार किया सोख़्तनी क़ुर्बानी और ख़ता की क़ुर्बानीयों से तू राज़ी ना हुआ तब मैंने कहा कि देख मैं आता हूँ मेरी बाबत किताब के दफ़्तर में लिखा है ताकि ऐ ख़ुदा तेरी मर्ज़ी बजा लाऊँ। इब्रानियों 10:5, 6, 7 और ये कोई और शख़्स नहीं मगर ख़ुदावंद ईसा पस ईसा मूसा की मानिंद है।

चहारुम : इस सबब से कि मूसा बज़ाता बयान में बनी-इस्राईल के साथ मौजूद था वो कोई वहमी या ख़्याली ना था बनी-इस्राईल अपनी आँखों से मूसा को देखते थे उनके हाथों ने उसे छोआ उन के कानों में उस की आवाज़ आती थी तो भी वो जिसकी बाबत मूसा ने अपनी नबुव्वत में अपनी मानिंद कहा कोई ऐसा शख़्स है जो हक़ीक़त में मौजूद हस्ती और क़ायम बज़ात हो और उस वक़्त उनके दर्मियान वही काम करता हो और ख़ुदा के कलाम से साबित होता है कि एक ऐसी हस्ती ब्याबान में बनी-इस्राईल के साथ बराबर थी और अगरचे मूसा मर गया तो भी वो ना मरी बल्कि जब यशूअ मूसा का जांनशीन यरीहू के मुक़ाबिल जाता था तब वही हस्ती ख़ुदावंद के लश्कर का सरदार बन कर उसे नज़र आई और उसे हुक्म दिया कि अपने पांव से अपनी जूती उतार क्योंकि ये मकान जहां तू खड़ा है मुक़द्दस है। यशूअ 5:15 और मुक़ाबले के लिए। ख़ुरूज 3:5 और ये शख़्स कोई इन्सान नहीं हो सकता क्योंकि हर ज़माने में मिस्ल मूसा के जो एक महदूद ज़माने में 40 बरस तक बनी-इस्राईल के साथ था उनके साथ रहा और अब भी है ये सिर्फ़ ख़ुदावंद मसीह पर सादिक़ आता है जिसने फ़रमाया कि पेश्तर इस से कि इब्राहिम हो मैं हूँ पस ईसा मूसा की मानिंद है।

पंजुम : इस सबब से कि जब मूसा ख़ुदावंद के आगे जाता था कि उस से कलाम करे तो जब तक बाहर ना आता निक़ाब को उतार देता था। ख़ुरूज 34:34 जैसा कि पौलुस रसूल फ़रमाता है कि आज तक पुराने अहदनामे के पढ़ने में वही पर्दा रहता है और उठ नहीं जाता कि वो परदा मसीह से जाता रहता है। 2 कुरिन्थियों 3:14 और हम मूसा की तरह अमल नहीं करते जिसने अपने चेहरे पर पर्दा डाला। 2 कुरिन्थियों 3:14 पर मूसा इस निक़ाब के डालने से ज़ाहिर करता था कि ख़ुदा को किसी ने कभी ना देखा इकलौता बेटा जो बाप की गोद में है उसने बतला दिया। यूहन्ना 1:18 पस अगर मूसा ने ऐसा किया ताकि बनी-इस्राईल इस उठ जाने वाले की ग़ायत (आख़िर, अंजाम) तक बख़ूबी देखें तो क्यों ना हम उस के वसीले जो ख़ुदा का चेहरा कहलाता है यानी ख़ुदा के जलाल की पहचान का नूर येसू मसीह के चेहरे से हम में जलवागर हो इस ग़ायत (अंजाम) तक बख़ूबी देखें। और चूँकि ऐसा और कोई शख़्स दुनिया में अब तक ज़ाहिर ना हुआ लिहाज़ा साबित हुआ कि ईसा मूसा की मानिंद है।

शश्म : इस सबब से कि जब मूसा बड़ा हुआ तो अपने भाईयों के पास बाहर गया और उनकी मशक़्क़तों को देखा और देखा कि एक मिस्री एक इब्रानी को जो उस के भाईयों में से एक था मार रहा है। (ख़ुरुज 2:11) फिर उस ने इधर-उधर नज़र की और देखा कि कोई नहीं तब इस मिस्री को मार डाला और रेत में छिपा दिया। 2:12 जब फ़िरऔन ने ये सुना तो चाहा कि मूसा को क़त्ल करे पर मूसा फ़िरऔन के हुज़ूर से भागा। ख़ुरूज 2:15 ईमान से मूसा ने सियाना हो के फ़िरऔन की बेटी का बेटा कहलाने से इन्कार किया कि उसने ख़ुदा के लोगों के साथ दुख उठा ना इस से ज़्यादा पसंद किया कि गुनाह के सुख को जो चंद रोज़ा है हासिल करे कि उसने मसीह की लान तान को मिस्र के ख़ज़ानों से बड़ी दौलत जाना क्योंकि उस की निगाह बदला पाने पर थी। इब्रानियों 11:24, 25, 26 पस तुम्हारा मिज़ाज वही हो जो मसीह येसू का भी था कि उसने ख़ुदा की सूरत में हो के ख़ुदा के बराबर होना ग़नीमत ना जाना लेकिन उसने अपने आपको नीच किया कि ख़ादिम की सूरत पकड़ी और इन्सान की शक्ल बना और आदमी की सूरत में ज़ाहिर हो के अपने आप को पस्त किया और मरने तक बल्कि सलीबी मौत तक फ़रमांबर्दार रहा। इफ़िसियों 2:5-8 येसू को जो ईमान का शुरू और कामिल करने वाला है तकते रहें जिसने उस ख़ुशी के लिए जो उस के सामने थी शर्मिंदगी को नाचीज़ जान के सलीब को सहा। इब्रानियों 12:2 यहां पर हमको मुहम्मदियों के एक सूफ़ी यानी सादी का शेअर याद आता है जो उसने भूल कर ख़ुदा की सिफ़त में यूं कहा :-

کرم میں و لطف خداوند گار ۔ گند بند ہ کرداست اوشرمسار

इस से साबित होता है कि ईसा मूसा की मानिंद है।

हफ़्तुम : इस सबब से कि पौलुस रसूल ने अपने रिसाले बनाम इब्रानियों में यूं फ़रमाया कि पस ऐ पाक भाइयो जो आस्मानी दावत में शरीक हुए इस रसूल और सरदार काहिन मसीह येसू पर जिसका हम इक़रार करते हैं ग़ौर करो कि वो उस के आगे जिसने उसे मुक़र्रर किया अमानतदार था जिस तरह मूसा भी अपने सारे घर में था बल्कि वो मूसा से इस क़द्र ज़्यादा इज़्ज़त के लायक़ समझा गया जिस क़द्र घर से घर का मालिक ज़्यादा इज़्ज़तदार होता है कि हर एक घर का कोई बनाने वाला है पर जिसने सब कुछ बनाया सो ख़ुदा है। और मूसा तो अपने सारे घर में ख़ादिम की तरह दयानतदार रहा कि उन बातों पर जो ज़ाहिर होने को थीं गवाही दे। पर मसीह बेटे की मानिंद अपने घर का मुख़्तार रहा। इब्रानियों 3:1-6 पस ईसा मूसा की मानिंद है।

अगरचे दलीलों और मुशाबहतों का शुमार बहुत बढ़ सकता है पर अभी सच्चाई का मुतलाशी जो ख़ुदा से डर कर नजात का उम्मीद वार है इन्हीं सात मुशाबहतों से यक़ीन कर सकता है कि आने वाला नजातदिहंदा येसू नासरी है जैसा कि फिलिप्पुस ने नतनीएल से कहा कि जिसका ज़िक्र मूसा ने तौरेत में और नबियों ने किया है हमने उसे पाया वो यूसुफ़ का बेटा येसू नासरी है। यूहन्ना 1:45 और वो 12 दलाईल जो पहले सिलसिले में दर्ज हैं मिला लो। अब हम हसबे वाअदा ज़ेल के दायरे में आप सब साहिबों को ये दिखलाना चाहते हैं कि जिस तरह ख़ल्क़त के काम में ख़ुदा ने सिर्फ सूरज को मर्कज़ क़रार दिया है। । इसी तरह उसने अपने कलाम में कुल उमूर का मर्कज़ ख़ुदावंद येसू मसीह को ठहराया है।

ये नक़्शा अगरचे कामिल और तमाम वाक़यात-ए-बाइबल को हावी नहीं तो भी मुश्ते नमूना अज़ ख़िरव एरिए व अंदक अज़ बसियारे उस के देखने से इतना तो ज़रूर मालूम होगा कि जब अहम मुआमलात में कुल का मुरज्जा ख़ुदावंद ईसा है ख़्वाह पैशन गोई हो ख़्वाह अलामती फ़ेअल हो तब छोटा वाक़ियात क्यों होगा अगर इतने पर भी कोई हुज्जती ना माने तो वो जाने मगर ख़ासकर हम मुहम्मदी मौलवियों को नसीहत के तौर पर दोस्ताना सलाह देते हैं, कि अगर हो सके तो अपने मुहम्मद साहब को इसी तरह बग़ैर मुग़ालते मन्तिक़ी तास्सुब को अलैहदा कर के और ख़ुदा से डर के एक साफ़ नक़्शे में तसव्वुर की मानिंद दिखाएं वर्ना उस कहानी के मिस्दाक़ (सबूत) ना हों जो हमने एक किताब में पढ़ी कि कोई बेल भूसे के ढेर की तरफ़ इस ग़र्ज़ से गया कि कुछ उस में से खाए मगर एक कुत्ता जो इस ढेर के ऊपर बैठा था ज़ोर से भोंका तब बेल ने कहा कि जिस हाल कि तुम भूसा नहीं खा सकते तो उनको जिनकी ये ख़ुराक है क्यों रोकते हो। भाई तुम्हारा तो यही रिज़्क़ का हीला है कि मुहम्मदी लोग तुम्हारी किताबों को ख़रीद लें और तुमको फ़ायदा हो तुम्हारा पेट चले लेकिन वो बेचारे जहन्नम में जाएं इसलिए तौबा करो और उस पर जो आदम से अब तक और आइंदा क़ियामत तक कुल आदम ज़ाद का नजातदिहंदा है। ईमान लाओ और उस की सुनो जो कुछ वो तुम्हें कहे। ऐसा ना हो कि यहूदीयों की तरह तुम भी मुवाख़िज़ा (जवाबतलबी) में आओ और अगर बअक़ीदा शमा तुम हाजिरा के फ़र्ज़न्द हो तो याद करो कि तुम्हारा ज़्यादा हक़ है कि मसीह ख़ुदावंद से बरकत लो। काश कि ख़ुदा ऐसा ही करे आमीन। तुफ़ैल सय्यद-उल-मुर्सलिन फ़र्ज़न्द रब अलालमीन ख़ुदावंद येसू-उल-मुज़नबीन।