मसीह के कफ़्फ़ारा होने का ज़िक्र इन्जील में बहुत जगह है। चुनान्चे मिन-जुम्ला इस की चंद आयतें बयान की जाती हैं इफ़िसियों का ख़त 5 बाब 2, आयत जिसमें पौलूस रसूल यूं लिखता है तुम मुहब्बत से चलो जैसा मसीह ने हमसे मुहब्बत की। और ख़ुशबू के लिए हमारे एवज़ में अपने तईं ख़ुदा के आगे नज़र और क़ुर्बान किया।
The Christ Atonement of Sinners
मसीह गुनेहगारों का कफ़्फ़ारा
By
Kidarnath
केदारनाथद
Published in Nur-i-Afshan Nov 6-12, 1873
नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 6 ता 12 नवम्बर 1873 ई॰
पर्चा हाय गुज़श्ता अख़्बार में मसीह की उलूहियत और इंसानियत का बयान हुआ। अब उस के कफ़्फ़ारे होने का सबूत पेश किया जाता है।
1. नबियों के कलाम में मसीह जाबजा कफ़्फ़ारे के तौर पर बयान हुआ है। ख़ासकर यसअयाह नबी की किताब में देखो 53 बाब और इस की 4, 5, 6, 8, आयत इस में यूं बयान है, “यक़ीनन उस ने यानी मसीह ने हमारी मशक्क़तें उठालीं। और हमारे ग़मों का बोझ अपने ऊपर चढ़ाया। पर हमने उस का ये हाल समझा, कि वो ख़ुदा का मारा कूटा और सताया हुआ है। पर वो हमारे गुनाहों के सबब घायल (ज़ख़्मी) किया गया। और हमारी बदकारियों के सबब कुचला गया। हमारी ही सलामती के लिए उस पर सियासत हुई। ताकि उस के मार खाने से हम चंगे हों। हम सब भेड़ों की मानिंद भटक गए और हम में से हर एक अपनी राह से फिरा और ख़ुदावन्द ने हम सभों की बदकारी उस पर लादी एज़ाओं के और उस पर हुक्म कर के वो उसे ले गए। पर कौन उस के ज़माने का बयान करेगा कि वो जिन्दों की ज़मीन से काट डाला गया। मेरे गिरोह के गुनाहों के सबब उस को मार पड़ी। उस की क़ब्र भी शरीरों के दर्मियान ठहराई गई थी। पर अपने मरने के बाद दौलतमंदों के साथ वो हुआ क्योंकि उस ने किसी तरह का ज़ुल्म ना किया। और उस के मुँह में किसी तरह का छल फ़रेब, धोका ना था। लेकिन ख़ुदावन्द को पसंद आया कि उसे कुचले उस ने उसे ग़मगीं किया। जब उस की जान गुनाह के लिए गुज़रानी जाये तो वो अपनी नस्ल को देखेगा और उस की उम्र दराज़ होगी। और ख़ुदा की मर्ज़ी उस के हाथ के वसीले बर आएगी अपनी जान ही का दुख उठा के वो उसे देखेगा और सैर होगा। अपनी ही पहचान से मेरा सादिक़ (सच्चा) बंदा बहुतों को रास्तबाज़ ठहराएगा। क्योंकि वो उनकी बदकारीयाँ अपने ऊपर उठा लेगा।
और दानीएल नबी 6 बाब में पैदाइश मसीह से चार सौ नव्वे (490) बरस पेश्तर यूं कहता है कि, बदकारी की बाबत कफ़्फ़ारा (गुनाह धो देने वाला) किया जाएगा और मसीह क़त्ल किया जाएगा पर ना अपने लिए।
मसीह के कफ़्फ़ारा होने का ज़िक्र इन्जील में बहुत जगह है। चुनान्चे मिन-जुम्ला इस की चंद आयतें बयान की जाती हैं इफ़िसियों का ख़त 5 बाब 2, आयत जिसमें पौलूस रसूल यूं लिखता है तुम मुहब्बत से चलो जैसा मसीह ने हमसे मुहब्बत की। और ख़ुशबू के लिए हमारे एवज़ में अपने तईं ख़ुदा के आगे नज़र और क़ुर्बान किया। पहला कुरिन्थियों का ख़त 5 बाब 3 आयत, मसीह हमारे गुनाहों के वास्ते मुआ। 1 पतरस दूसरा बाब 24 आयत, वो यानी मसीह आप हमारे गुनाहों को अपने बदन पर उठा के सलीब पर चढ़ गया। ताकि हम गुनाहों के हक़ में मर के रास्तबाज़ी में चलें। उन कोड़ों के सबब जो उस पर पड़े तुम चंगे हुए। पहला ख़त यूहन्ना 2 बाब 2 आयत। और वो यानी मसीह हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा है पर फ़क़त हमारे गुनाहों का नहीं बल्कि तमाम दुनिया के गुनाहों का भी। 2 कुरिन्थियों का ख़त 5 बाब 21, आयत उस ने यानी ख़ुदा ने उस को जो गुनाह से नावाक़िफ़ था। हमारे बदले गुनाह ठहराया ताकि हम उस में शामिल हो के इलाही रास्तबाज़ी ठहरें। रोमीयों का ख़त 5 बाब 10, आयत ख़ुदा ने अपने बेटे की मौत के सबब हमसे मेल किया। मुकाशफ़ात 5 बाब 9 आयत, तूने अपने लहू से हमको हर एक फ़िर्क़ा और अहले ज़बान और उम्मत और क़ौम में से मोल लिया।
और ख़ुदावन्द येसू मसीह ख़ुद फ़रमाता है, कि मैं अपनी जान अपनी भेड़ों के लिए देता हूँ बाप मुझे इसलिए प्यार करता है, कि मैं अपनी जान देता हूँ। ताकि मैं उसे फिर लूँ कोई शख़्स उसे मुझसे नहीं लेता पर मैं उसे आप देता हूँ। मेरा इख़्तियार है कि उसे दूँ। और मेरा इख़्तियार है कि उसे फिर लूं ये हुक्म मैंने बाप से पाया है। इस तरह बाइबल में जाबजा ज़िक्र है कि मसीह गुनाह का कफ़्फ़ारा है।
मैं ताज्जुब करता हूँ कि बावस्फ़ (सलीक़ा) इस के मलक शाह साहब किस तरह से फ़र्माते हैं कि बाइबल से मसीह का कफ़्फ़ारा होना साबित नहीं होता।
हर एक शख़्स इन आयतों से मालूम कर सकता है कि बाइबल से मसीह का कफ़्फ़ारा होना साबित है और नीज़ इन आयतों की किसी और तरह तफ़्सीर नहीं हो सकती जिससे इस के ख़िलाफ़ ख़याल दौड़ सके। इसलिए मुनासिब है कि मलिक शाह साहब इन पर ग़ौर फ़र्मा कर ये इल्ज़ाम ईसाईयों पर से उठालें, कि बाइबल से मसीह का कफ़्फ़ारा होना साबित नहीं।
मलिक शाह साहब के वास्ते तो इतने दलाईल (सबूत) काफ़ी हैं। लेकिन इसलिए कि और लोगों को कफ़्फ़ारा के माने और ख़ासियत मालूम नहीं, मैं इस की निस्बत बयान करता हूँ। और चंद और दलाईल देता हूँ मसीह के कफ़्फ़ारा के माने और ख़ासियत समझने के लिए पहले इन बातों पर ग़ौर करना वाजिब है जिनका ज़िक्र ज़ेल में किया जाता है।
1. सारे इंसान गुनेहगार हैं कोई रास्तबाज़ (सच्चा, ईमानदार) नहीं एक भी नहीं सब गुमराह (बेदीन बिद्अती, मुतकब्बिर) हैं कोई नेकोकार नहीं एक भी नहीं। इस कलाम में महल इंसान शामिल हैं अदना फ़क़ीर अमीर पीर पैग़म्बर नबी मुर्सल ग़र्ज़ कि ये कलाम हर फ़र्दे बशर पर मुहीत (घेरा) है।
और याद रहे कि गुनाह दो क़िस्म के हैं एक अमली दूसरा ख़्याली अमली गुनाह तो वो हैं जो ज़ाहिरी अमल और काम व काज में होते हैं। और जिसको हर एक इंसान देख सकता है। और ख़्याली वो हैं जो सिर्फ ख़याल से ताल्लुक़ रखते हैं। और सिर्फ इंसान के दिल में वसवसा (अंदेशा, डर, शक) अंदाज़ होते हैं जैसा कि लालच, ग़ुस्सा, तमअ (हिर्स, ख़्वाहिश) ख़यालात, फ़ासिद (नाक़िस, बर्बाद, तबाह) और दीगर उमूरात मज़मूम (बुरा, ख़राब) मालूम रहे कि ख़ुदा दिल और गुर्दों का जांचने वाला है। और उस के सामने ख़्याली गुनाह भी वैसा ही है जैसा कि अमली। और ये दोनों उस के हुज़ूर हम पल्ला (बराबर हैं। अगर अनुमानों को इन्सान मद्द-ए-नज़र रखे तो किसी को इस से या राय इन्कार नहीं। कि कोई शख़्स गुनाह से बुरी है क्योंकि अगर ज़ाहिरी गुनाह से अहितराज़ (परहेज़। किनारा-कशी भी किया जाये। ताहम ऐसा कोई फ़र्दे बशर नहीं जो ख़्याली गुनाह से बच जाये। पस इन्जील का वो कलाम कि सारे इंसान गुनेहगार हैं ऐन सच्च है।
2. ख़ुदा हमारा ख़ालिक़ मालिक और परवरदिगार है। उसने हमें बनाया और पैदा किया और जो कुछ हमारे पास है वो उस का है। इस वास्ते हम पर फ़र्ज़ है कि हम उस की बंदगी और फ़रमांबर्दारी करें। और उस की ताबेदारी बजा लाएं। और उस से दिल व जान से मुहब्बत रखें। और उस की मर्ज़ी पूरा करने के लिए कोशिश करें। अगर हम ये फ़र्ज़ अदा ना करें तो हम उस के क़सूरवार और गुनेहगार और फ़र्ज़ के क़र्ज़दार ठहरते हैं। और सज़ा के लायक़ होते हैं इस वास्ते हर एक गुनेहगार उस के हुज़ूर फ़र्ज़ और फ़रमांबर्दारी का देनदार है और सज़ा का सज़ावार है।
3. ये फ़र्ज़ का दीन इंसान तौबा के वसीले से अदा नहीं कर सकता। क्योंकि तौबा हमारी तरफ़ से ख़ुदा की तरफ़ वाजिब है। अगर वाजिब को अदा करें तो पिछ्ला देन साक़ित (निकम्मा, गिरा हुआ, मुस्तर्द) नहीं होता तो ये पिछली चीज़ों पर असर नहीं कर सकती। ये सिर्फ़ आइन्दा से ताल्लुक़ रखती है मसलन एक कर्ज़दार क़र्ज़ उठाने से तौबा करे। और आइंदा बल्कि क़ायम रहता है। हाँ आइंदा[1] को वो इस बोझ से सबकदोश (जिस पर कोई बोझ हो) रहता है। ऐसा ही अगर कोई शख़्स बेवक़ूफ़ी से अपने किसी अज़्व (बदन का टुकड़ा, जिस्म) को काट डाले और आइंदा को ऐसे काम करने से तौबा करे। और एहतियात अमल में लाए। तो इस तोहम करने से वो उस का उज़ू दुरुस्त नहीं हो जाएगा। गो आइंदा को उस के दूसरे उज़ू सलामत और महफ़ूज़ रहें। इसी तरह इंसान गुनेहगार जब अपने गुनाहों से पशेमान (शर्मिंदा) हो के तौबा करता है। और गुनाहों से परहेज़ और कफ़्फ़ारा करके ख़ुदा की तरफ़ मुतवज्जोह होता है, तो इस से उस के गुनाह साबिक़ा ज़ाइल (दूर, कम) नहीं हो जाते। हाँ उस की तौबा का असर उस की आइंदा ज़िंदगी पर ज़रूर पहुंचता है उस के साबिक़ा गुनाहों की माफ़ी के लिए कोई और तरीक़ या कोई और वसीला ज़रूर है लेकिन तौबा ईलाज नाकारा है।
4. एक और सबब है जिससे साबित होता है कि गुनाह तौबा से माफ़ नहीं हो सकता। वो ये है कि ख़ुदा आदिल (इन्साफ़) करने वाला और मुंसिफ़ है। और उस की अदालत उस के हर एक काम में ज़ाहिर होती है अदालत उस की ज़ात का एक हिस्सा है और इस के बग़ैर वो कुछ नहीं कर सकता। और हर एक अम्र (काम, फ़ेअल) में उस को मल्हूज़ (ख़याल, लिहाज़ रखना) रखता है। अदालत इस अम्र की मुक़तज़ी (ख़याल, तक़ाज़ा करने वाला) है, कि हर एक गुनेहगार गुनाह के एवज़ में सज़ा पाए। और हर एक ख़ता (ग़लती) और ग़फ़लत (लापरवाही) के एवज़ में इस पर सज़ा का फ़त्वा सादिर (नाफ़िज़) किया जाये। और वो किसी शख़्स को बरी ज़िम्मा नहीं करते, जब तक कि वो फ़रमांबर्दारी और इताअत (जो उस पर वाजिब है) ख़ुदा की तरफ़ अदा ना हुई हो अलबत्ता ये ज़रूर है कि ख़ुदा बड़ा रहीम है और रहीमी की सिफ़त उस में मौजूद है। लेकिन ये रहम उस का अदल (इन्साफ़, बराबरी) के साथ मिला हुआ है। और जब तक उस की अदालत का हक़ पूरा ना हो तब तक वो रहम गुनेहगारों की बख़्शिश और नजात में ज़ाहिर नहीं होता। पस फिर क्योंकर तौबा गुनाहों की माफ़ी का वसीला हो सकती है।
5. बसूरत हाय मस्बूक़-उल-ज़िक्र यानी जब कि ख़ुदा की बंदगी और फ़रमांबर्दारी और उस के अहकाम और शरीअत की इताअत हम पर[2] फ़र्ज़ और वाजिब (लाज़िमी) है। और हम बाखल्क़त गुनेहगार और मुसीबत परवरदह हैं। और किसी सूरत से हम उस के फ़र्ज़ को अदा नहीं कर सकते। और तौबा हमारी नजात का वसीला नहीं हो सकती और ना हमारे पिछले गुनाहों को मादूम (मिटाया गया, फ़ना) कर सकती है। और उस की अदालत हमारी निस्बत सज़ा का फ़त्वा सादिर (नाफ़िज़) करती है। और हमारे लिए कोई सूरत बरतीत की नहीं। और हम निहायत नाउम्मीदी और यास की हालत में हैं। तो ज़रूर था कि कोई और तरीक़ा हमारी नजात का होता जिससे ख़ुदा का रहम भी ज़ाहिर होता और उस का अदल (इन्साफ़) भी क़ायम और बरक़रार रहता।
पस ख़ुदा ने ऐसे बेहद रहम को काम में लाकर अपनी लातादाद हिक्मत से हमारे लिए एक तरीक़ा नजात का निकाला। जिससे उस की अदालत में भी कुछ फ़र्क़ नहीं आया वो ये है, कि ख़ुदावन्द येसू मसीह को जो इब्ने-अल्लाह था इस दुनिया में भेजा और इस ने पैराये इंसानियत में आकर 33 बरस तक दुनिया में ज़िंदगानी बसर की और आख़िर को उस ने गुनेहगारों का ज़ामिन बन के और उन के एवज़ में आप सज़ा उठा के ख़ुदा की शरीअत को पूरा किया और सारा हक़ उस की अदालत का पहुंचाया। यानी वो पूरी और कामिल फ़रमांबर्दारी जो इंसान पर ख़ुदा की तरफ़ वाजिब (लाज़िमी) थी। येसू मसीह ने इंसान का ज़ामिन (ज़मानत देने वाला) हो कर पूरी की। और आख़िरश (अंजाम-कार) उस ने अपनी जान इंसान के एवज़ में सलीब पर दी। और आप बेगुनाह हो कर उस ने गुनेहगारों की सज़ा अपने सर उठाई।
और यही अम्र यानी येसू का इंसान के एवज़ में ख़ुदा की फ़रमांबर्दारी उठाना और गुनाह की सज़ा का अपने ऊपर बर्दाश्त करना कफ़्फ़ारा कहलाता है जो शख़्स इस कफ़्फ़ारे पर ईमान लाता है वो गुनाह की सज़ा से बच जाता है। क्योंकि वो सज़ा और सियासत जो उस पर लाज़िम थी उस ने पूरी की।
अब अदालत भी बरक़रार रही। और उस का रहम भी बाज़हूर (ज़ाहिर होना) आ गया। और इंसान को नजात की उम्मीद हो गई। यही एक तरीक़ा नजात का है जिसका ज़िक्र ऊपर हुआ और जो इन्जील से ज़ाहिर है।
अब वाज़ेह राय ज़रीन नाज़रीन हो कि इस तरीक़ा नजात यानी कफ़्फ़ारे पर दो एतराज़ लाज़िम आते हैं :-
(अव़्वल ये) कि एक आदमी की मौत से किस तरह बहुतों की माफ़ी हो सकती है। ख़ुदावन्द येसू मसीह अकेला गुनेहगारों के एवज़ में सलीबी मौत उठा कर कफ़्फ़ारा हुआ। इस एक कफ़्फ़ारे से सारी दुनिया की नजात किस तरह हो सकती है एक आदमी के एवज़ में एक ही बच सकता है ना कि कुल दुनिया।
इस का जवाब ये है, कि ख़ुदावन्द येसू मसीह आम इंसानों के मुवाफ़िक़ इंसान नहीं था। बल्कि उस में उलूहियत थी यानी ज़ात व सिफ़ात ख़ुदा के मौजूद थी। और इस उलूहियत के सबब जो कुछ काम व काज उस ने जामा इंसानी में किया। उस में उलूहियत का असर पहुंचा और उस के दर्जा और सिफ़त ने इस में तास्सुर किया। इसलिए जब मसीह ने इंसान के एवज़ में फ़रमांबर्दारी और मौत उठाई। तब उस के अहकाम में भी दर्जा उलूहियत का पहुंचा। इसलिए मसीह की रास्तबाज़ी बेहद रास्तबाज़ी थी। उस की मौत का असर भी बेहद है वो पूरा और कामिल और बे नुक़्स और सबसे बढ़कर इन्सान था या ये कहें कि वो एक बड़ी क़द्र व मंजिलत का इंसान था। और उस में उलूहियत भी मौजूद थी। इसलिए उस की जान गिरामी सारी दुनिया का कफ़्फ़ारा हो सकती है। और उस की एक जान तमाम जहान के एवज़ काफ़ी ख़याल की जा सकती है बल्कि मेरी राय तो ये है कि उस की क़ीमत इस से भी बढ़कर है क्योंकि उस का मर्तबा बेहद है।
(दूसरा एतराज़) इस बयान से बेइंसाफ़ी ज़ाहिर होती है कि गुनाह और इंसानों ने किया और सज़ा मसीह ने उठाई इस से ख़ुदा का इन्साफ़ क़ायम नहीं रहता कि करे कोई और भरे कोई।
इस का पहला जवाब यूं है इस से ख़ुदा की बेइंसाफ़ी ज़ाहिर नहीं होती क्योंकि मसीह ने अपनी मर्ज़ी और अपनी ख़ुशी से ये सज़ा बओज़ गुनेहगारों के अपने ऊपर उठाई। देखो यूहन्ना की इन्जील जिसमें मसीह ख़ुदावन्द ख़ुद फ़रमाता है कि मैं अपनी जान भेड़ों के लिए देता हूँ मैं अपनी ख़ुशी से उसे देता हूँ कोई उसे मुझसे नहीं लेता मुझको इख़्तियार है, कि मैं उसे दूँ या फिर लूँ। वो आप इंसान पर रहम खा कर गुनेहगारों का ज़ामिन बना। और उन के एवज़ में उस ने ख़ुद गुनाह की सज़ा अपने सर पर उठाई इस हाल में क्योंकर ख़ुदा बे इन्साफ़ हो सकता है।
(2) जवाब ये हो सकता है कि एक के एवज़ में दूसरा सज़ा का सज़ावार हो। देखो दुनिया का आम वतिरा (दस्तूर) है कि ज़ामिन अपने अस्ल मुजरिम के एवज़ में माख़ूज़ (अख़ज़ करना) किया जाता है। और ख़ुदा के इंतिज़ाम में तो ये आम है और उस की परवरदिगारी के काम में हम अक्सर देखते हैं, कि एक शख़्स दूसरे के एवज़ जिससे उस का कुछ ताल्लुक़ हो सज़ा उठाता है। देखो बाप हरामकारी करता है और उस की बीमारी का असर बेटे पर पहुंचता है और वो आतिशक (एक जिन्सी बीमारी) की बीमारी से मरता और जलता है। बाप बदकारी में अपने जिस्म को कमज़ोर करता है और इस का अज़ाब उस की नस्ल पर पड़ता है। देखो गुनाह-ए-आदम से बज़हुर आया उस के एवज़ में उस की तमाम नस्ल को बहिश्त से महरूम रखा गया। ताहम हम ख़ुदा को बे इन्साफ़ नहीं कह सकते। ये सब परवरदिगारी के इंतिज़ाम हैं इस में हम नुक़्स नहीं निकाल सकते। पस जब इस में नुक़्स नहीं निकाल सकते तो हम पर वाजिब है, कि हम नजात के काम में भी नुक़्स ना निकालें बल्कि हमें वाजिब है कि हम उस के मुताबिक़ परवरदिगारी के कामों को क़ुबूल लें।
फ़ुर्सत हुई तो आइंदा अख़्बार में मसीह के खातिमुन-न्नबीय्यीन होने की निस्बत बयान होगा।
[1] बमतबअ अमरीकन मिशन लुदियाना बएहतमाम पादरी वेरी साहब के छपा। अगर नक़द सौदा लेता रहता है तो उस से उस का पिछला क़र्ज़ जाता नहीं रहता। बाक़ी हफ्ता आइन्दा।
[2] खान पर बाबत खेवा के जुर्माना हुआ है जो 1993 तक अदा किया जाएगा।