क्या ज़रूर है कि मोअजिज़ा भी इल्हाम या रिसालत के साथ हो?

Is Miracle part of Inspiration?

क्या ज़रूर है कि मोअजिज़ा भी इल्हाम या रिसालत के साथ हो?
By

Rev K.C.Chatterji
पादरी के॰ सी॰ चटर्जी
Published in Nur-i-Afshan July 11, 1889

मत्बूआ 11, जुलाई 1889 ई॰
इस सवाल के मुख़्तलिफ़ जवाब दीए गए हैं बाज़ों के ख़्याल में ये है कि मोअजिज़ा बिल्कुल ज़रूर नहीं है लेकिन बाअज़ सोचते हैं कि मोअजिज़ा निहायत ज़रूरी है। मेरा यक़ीन इस दूसरी राय के साथ मुत्तफ़िक़ है और मैं ख़्याल करता हूँ कि मोअजिज़ा के सिवाए इल्हाम बा-रिसालत क़तई सबूत को नहीं पहुंचता इल्हाम या रिसालत से यहां वह इन्किशाफ़ या मुकाशफ़ा या इल्हाम मुराद है जो सीधा ख़ुदा की तरफ़ से ग़ैर फ़ित्री तौर पर है नबी पर ज़ाहिर होता है या वह कामिल और बे नुक्स ख़ुदा की मर्ज़ी का ज़हूर जो नबी या रसूल को सीधा ख़ुदा की तरफ़ से मिलता है इस क़िस्म के इल्हाम या वही का तमाम ग़ैर फ़ित्री मज़्हबों के बानी कारों ने दावा किया है। मसलन ऐसा दावा बाइबल के तमाम नबियों से और अहले इस्लाम के पैग़म्बर से भी देखा जाता है हिंदू मज़्हब के मुनी (ज़ाहिद, तपस्वी) और रखियों की निस्बत भी ऐसा ही यक़ीन है हमारी समझ में अगर इस क़िस्म का इल्हाम ख़ुदा की तरफ़ से मुम्किन है या वक़ूअ में आया है तो ये भी ज़रूर है कि मोअजिज़ा उस के साथ हो क्योंकि बग़ैर मोअजिज़े के इस क़िस्म का इल्हाम क़ाबिल-ए-एतिबार नहीं हो सकता। इल्हाम का मतलब भी ये है कि हम पर वो बात ज़ाहिर की जाये जिसको हम अक़्ल से नहीं पा सकते सो वो ज़ाती अक़्ल से बईद है और अक़्ल उस के सबूत देने में कासिर है। पस इस वास्ते ज़रूर है कि और कोई वसीला हो या निशान उस की तस्दीक़ के वास्ते हो कि वो सच-मुच ख़ुदा की तरफ़ से है ना कि उन की बिगड़ी हुई अक़्ल का नतीजा है और वह निशान मोअजिज़ा के सिवा और कुछ नहीं हो सकता।

मैं इक़रार करता हूँ कि इल्हाम नबियों के दिल में अलक़ा (ख़ुदा की तरफ़ से दिल में डाली हुई बात) हो सकता है बे ज़हूर मोअजिज़ा के ख़ुदाए क़ादिर-ए-मुतलक़ है और इन्सान के दिलों का ऐसा ही मालिक है जैसे उन के अजसाम का वह अपनी आम परवर्दीगारी में हमेशा इन्सान के दिल में ख़्याल और फ़िक्र पैदा करता है इस तरह अगर वो चाहे तो एजाज़ी तौर पर किसी ख़ास अम्र की निस्बत इन्सान के दिल में ख़्याल पैदा कर सकता है ऐसे ख़्याल का नाम इल्हाम है। जब ऐसा ख़्याल इन्सान के दिल में पैदा हो गया है तो हम किस दलील से जान सकते हैं कि वो ख़याल-ए-ख़ुदा की तरफ़ से है ना कि इन्सान के दिमाग़ का नतीजा कोई दलील मौजूद नहीं है ख़ुद उसी आदमी को जिसके दिल में ख़्याल पैदा हुआ है इत्मीनान नहीं हो सकता कि ये ख़याल-ए-ख़ुदा की तरफ़ से है और इस की ज़ात से नहीं पैदा हुआ सबूत इतना है कि इस के दिल में ख़्याल पैदा हुआ है मगर वो ये नहीं जानता कि इस ख़्याल का चशमा कौन सा है जब तक कि ख़ुदा की तरफ़ से होने का कोई ख़ास निशान ज़ाहिर ना हो। मसलन किसी नबी या रसूल के दिल में ये ख़्याल पैदा हुआ है कि कुल दुनिया के गुनाहों के लिए कफ़्फ़ारा किया गया है किस तरह वो नबी या उस के सुनने वाले जान सकते हैं कि ये ख़याल ख़ुदा की तरफ़ से है। एक सरगर्म तबीयत का आदमी शायद मान ले कि ऐसा ख़याल ख़ुदा की तरफ़ से है लेकिन कोई अक़्लमंद आदमी उस को क़ुबूल नहीं कर सकता जब तक कि उस को कोई सनद ना मिले। इस बात को अच्छी तरह समझाने के लिए मैं एक मिसाल देता हूँ पिछले ज़माने में नबियों पर ज़ाहिर हो गया था कि शहर अविर और बाबुल जो उन दिनों में निहायत शान व शौकत में थे बर्बाद हो जाऐंगे या बनी-इस्राईल असीर (क़ैदी) किए जाऐंगे ऐसा ख़्याल नबियों के दिलों में उठना कुछ अजीब नहीं था क्योंकि शहर बर्बाद हो जाया करते हैं और कौमें भी असीर (क़ैदी) हो जाया करती हैं इस का नबी के दिल में पैदा हो जाना उस की सच्चाई का सबूत नहीं है उस की सच्चाई तब ही मंज़ूर हुई जब कि उन के कलाम के मुताबिक़ वो शहर ग़ारत हुए और बनी-इस्राईल मुक़य्यद पैशन गोई का पूरा होना उस की सच्चाई का सबूत है लेकिन इस क़िस्म का सबूत हम इल्हामी ताअलीम की निस्बत नहीं पा सकते इस के लिए कोई और सबूत दरकार होगा और वह सबूत मेरी दानिस्त में सिवाए मोअजिज़ा के और कुछ नहीं हो सकता।

और एक मिसाल सुनो अठारह सौ बरस हुए मुल्क यहूदा में एक शख़्स सादिक़ ज़िंदगी की अजीब लियाक़त का ज़ाहिर हुआ उस ने बहुत सी बातें ख़ुदा की ज़ात और सिफ़ात और इन्सान की चाल-चलन की निस्बत सिखाई उस के साथ साथ उस ने ये भी फ़रमाया कि मेरी पैदाइश के पेशतर अज़ल में ख़ुदा के साथ जलाल की हालत में था मैं ख़ुदा का इकलौता बेटा हूँ दुनिया और कुछ इस में है मेरे वसीले बना है मैं आस्मान से उतरा हूँ और इन्सान की शक्ल और ज़ात को इख़्तियार कर लिया है ताकि मैं ख़ुदा का बर्रा हो कर दुनिया का गुनाह अपने ऊपर उठा लूं, मैं आम आदमीयों की मानिंद नहीं हूँ मेरा इलाक़ा आदम ज़ाद से अजीब व अजाज़ी है मेरे ही वसीले से इन्सान ख़ुदा के पास पहुंच सकता है, मैं एक पोशीदा बादशाही का सर हूँ जिसमें हर क़ौम और हर मुल्क के लोग शामिल हैं, मैं सलीबी मौत उठा कर आसमान पर वापिस जाऊँगा ताकि अपने लोगों की रिहायश के लिए मकान तैयार करूं दुनिया की अख़ीर में फिर मैं आऊँगा और सब मुर्दों और ज़िंदों का इन्साफ़ करुंगा उस वक़्त सारे जो क़ब्रों में हैं मेरी आवाज़ सुनेगे और निकलेंगे जिन्हों ने नेकी की है ज़िंदगी की क़ियामत के वास्ते और जिन्हों ने बदी की है सज़ा की क़ियामत के लिए। इस अजीब बयान के तस्दीक़ में अगर ये शख़्स कोई निशान ना दिखलाए बल्कि फ़क़ज़ अपने कलाम के ज़ोर से वक़्त ब वक़्त और जगह-बजगह इस को बयान करता है तब हम इस आदमी की निस्बत क्या सोचेंगे बिलाशक और बिलाशुब्हा हर एक अक़्लमंद आदमी उस को पागल और दीवाना समझेगा और ख़्याल करेगा इस के दिमाग़ में ख़लल है सिवाए इस के और क्या उस की निस्बत ख़्याल कर सकते हैं? अगर वो हमारे ही मुवाफ़िक़ गोश्त और अस्तख्वान (हड्डी) से बना हुआ हो और अपनी ज़िंदगी में ऐसी ही बातें ज़ाहिर करता हो जैसे आम इन्सान की ज़िंदगी में दिखाई देती हैं बिलाशक हम इस निस्बत सोचेंगे कि अगरचे ये आदमी दीनदार और ख़ुदा परस्त है तो भी किसी तरह ना किसी तरह उस के दिमाग़ में ख़लल आ गया और इस ख़लल के जोश से इस क़िस्म की गुफ़्तगु कर रहा है लेकिन अगर वह शख़्स इस अपने अजीब दाअवे की तस्दीक़ में मोअजिज़ा को दिखाये ऐसा मोअजिज़ा जो फ़क़त ईलाही मदद से ज़ाहिर हो सकता है तो हम बिलाशक उस की गुफ़तार को मोअतबर जानेगे और उस पर यक़ीन करेंगे सिवाए मोअजिज़ा के हमें और कोई सूरत नज़र आती जिससे हम उस की रिसालत या इल्हाम क़ुबूल करें।

बाअज़ कहते हैं कि ताअलीम की ख़ूबी और सदाक़त इल्हाम की पूरी शहादत में हैं इस बात को मंज़ूर नहीं कर सकता मैं इक़रार करता हूँ कि ताअलीम की ख़ूबी और सदाक़त ख़ुद उस की सच्चाई पर दलालत करती है यानी ये ज़ाहिर करती है कि वो ताअलीम ख़ुदा की मर्ज़ी और हुक्म के मुताबिक़ है क्योंकि सच्चाई आप में अपनी गवाही है लेकिन हरगिज़ ताअलीम की ख़ूबी और सदाक़त ताअलीम देने वाले रिसालत या इल्हाम पर दलालत नहीं करती यानी वो साबित नहीं कर सकती कि ताअलीम देने वाला ख़ुदा की तरफ़ से ख़ास तौर पर भेजा हुआ है या इल्हाम या वही से बोल रहा है इस से फ़क़त ये ज़ाहिर होता है कि ताअलीम देने वाला नेक बंदा है जो ख़ुदा के राह की हिदायत करता है। दुनिया में इस क़िस्म के हज़ार-हा दीनी मुअल्लिम हैं जो नेक और बे नुक्स ताअलीम देते हैं लेकिन हम उन को रसूल नहीं कह सकते जब तक कि वो कोई सनद पेश ना करें जिससे ज़ाहिर हो कि वो ताअलीम ख़ुदा की तरफ़ से सीधी उस को हासिल है। मसअला तेरह सौ (1300) बरस हुए कि एक आली दिमाग़ और सर गर्म आदमी बुत परस्त अरबियों में ज़ाहिर हुआ और उस ने उन को बड़े ज़ोरावर क़ुव्वत के साथ तौहीद और वहदानीयत की ताअलीम दी ये ताअलीम निहायत ख़ूब और सच्ची है इस को सुनते ही उस मुल्क के लोगों ने क़ुबूल कर लिया, ये ऐसी ताअलीम है जिसको हमारी अक़्ल और तमीज़ तस्लीम कर लेती है और क़रार देती है कि ये ताअलीम ख़ुदा की मर्ज़ी और हुक्म के मुवाफ़िक़ है लेकिन इस से ये नहीं साबित होता कि इस ताअलीम का देने वाला इस को सीधा ख़ुदा की तरफ़ से बज़रीया वही यानी जिब्राईल फ़रिश्ते से हासिल करता रहा अगर उस ने इस-इस तौर पर हासिल किया तो और किसी सनद से साबित होगा। लेकिन इस से हरगिज़ नहीं कि वो उम्दा ताअलीम और सच्ची है गुमान तो ये है कि मुहम्मद साहब ने इस ताअलीम को नेचर पर ग़ौर करने से और अपने दिल की गवाही पर फ़िक्र करने से यक़ीन किया और ये ही बहुतों का गुमान है कि उन्हों ने इस ताअलीम को यहूदी और ईसाईयों से हासिल किया ये गुमान हमारे दिल से हरगिज़ ना जाएगा जब तक कोई कामिल निशान नज़र ना पड़े जिस इस गुमान का बुतलान साबित हुआ और ये ज़ाहिर हो कि ज़रूर ये बात मुहम्मद साहब के ऊपर ख़ुदा की तरफ़ से फ़ित्रती तौर पर नाज़िल हुई।

और जैसी ताअलीम की ख़ूबी और सदाक़त ताअलीम देने वाले की रिसालत पर दलालत नहीं करती इस तरह ताअलीम दहिंदा की पाक और बेऐब ज़िंदगी इस बात की तस्दीक़ के लिए काफ़ी नहीं पहले तो इसलिए कि किसी बशर की ज़िंदगी बिल्कुल पाक और बेऐब साबित होनी मेरी दानिस्त में नामुम्किन है। नामुम्किन इसलिए कि बेऐबी और पाकीज़गी ना सिर्फ ज़ाहिरी अम्वार और बैरूनी हालत पर बल्कि उस के अंदरूनी ख़्याल और तबीयत पर मौक़ूफ़ है उस के इरादे और नियत पर जिससे वो बैरूनी काम करता है और कौन इन्सान दूसरे इन्सान की अंदरूनी हाल का फ़ैसला कर सकता है दिल और गुर्दों का जांचने वाला फ़क़त ख़ुदा है। दूसरा फ़र्ज़ करो कि किसी आदमी की कामिल पाकीज़गी और बेऐबी साबित हो तो भी ये उस के इल्हाम और रिसालत पर गवाही नहीं हो सकती फ़क़त इतना ही साबित हुआ है कि वो ख़ुदा की दरगाह में मक़्बूल और पसंदीदा है। वो सच बोलने वाला है, यानी जैसे उस का यक़ीन है वह बयान करता है। लेकिन ये साबित नहीं हुआ और उस का यक़ीन हर एक अम्र में सच्चा है और उस ने धोका नहीं खाया या उस के दिमाग़ में किसी क़िस्म का ख़लल नहीं और वो जो इल्हाम का दावा करता है ये दावा उस के मालीखूलिया (पागलपन) का नतीजा नहीं है जब तक ये साबित ना हो तब तक उस का इल्हाम का दावा हरगिज़ क़ाबिल पज़ीराई नहीं।

तीसरा बाअज़ कहते हैं कि किसी मज़्हब की पाक तासीर और कामयाबी उस के इल्हामी होने पर दलालत करती है बेशक क़ुबूल करता हूँ कि जिस मज़्हब की तासीर पाक है यानी हमको गुनाह से अलग कर के ख़ुदा की तरफ़ पहुंचाना है वह मज़्हब पाक और ख़ुदा की तरफ़ से है पेड़ अपने फलों से पहचाना जाता है और दवा की ख़ूबी उस के तजुर्बा से, लेकिन साबित नहीं होता कि वो मज़्हब ख़ुदा की तरफ़ से किस तौर पर है फ़ित्री तौर पर या ग़ैर फ़ित्री किसी मज़्हब की पाक तासीर उस की ताअलीम पर दलालत करती है और ये भी बताती है कि उस के पैरो सच्चे हैं और उस की ताअलीम पर अमल करते हैं लेकिन इस से ये नहीं साबित होता कि उस मज़्हब की ताअलीम देने वाले ने वो ताअलीम सीधी राह-ए-रास्त ख़ुदा से पाई है। इस बात के लिए दीगर सनद ज़रूर है और मेरी समझ में वो सनद बजुज़ मोअजिज़ा के और कुछ नहीं हो सकती।

मैं अंदरूनी दलील की हक़ारत नहीं करता ना उस को बेफ़ाइदा जानता हूँ वो अपनी जगह में निहायत ज़रूर और कारगिर है ऐसी ज़रूर है कि बुदून (बग़ैर) उस के मोअजिज़ा भी मुसर्रिफ़ और निकम्मा है उस के वसीले से ताअलीम की ख़ूबी और सदाक़त ज़ाहिर होती है। ख़ुद ख़ुदावंद यसूअ मसीह ने फ़रमाया है वो शख़्स जो ख़ुदा की मर्ज़ी पर चलता है जानेगा कि मेरी ताअलीम ख़ुदा की यक़ीनन सच्चाई का सबसे बड़ा सबूत ख़ुद सच्चाई है जैसा पेशतर मस्तूर हुआ और नेकी ख़ुद अपने लिए सबसे पुख़्ता दलील है अंदरूनी दलील से ये साबित होता है कि ताअलीम का देने वाला बंदा ख़ुदा और नेक है ना बंदा शैतान जब इस क़द्र साबित हो गया हो तो उस वक़्त बैरूनी दलील की हाजत पड़ेगी वह मोअजिज़ा और पैशन गोई है जब नेक और पाक ताअलीम देने वाला दाअवा करता है कि मेरी ताअलीम मेरी अपनी नहीं ना मैंने किसी बशर से हासिल की है बल्कि उस को सीधा बज़रीया इल्हाम या वही ख़ुदा की तरफ़ से पाया है और अपने दाअवे के सबूत में मोअजिज़ा या पैशन गोई पेश करता है तब हम उस को ख़ुदा का रसूल या-नबी मंज़ूर करते हैं नहीं तो फ़क़त पाक मुर्शिद या ताअलीम दहिंदा जानेंगे।

मुताबिक़ तहरीर बाला के हम बाइबल में ये पढ़ते हैं कि जब ख़ुदा ने अपनी पाक मर्ज़ी का फ़ौक़ुल आदत या ग़ैर फ़ित्री तौर पर ज़हूर किया तब उन को मोअजिज़ा और पैशन गोई के साथ भेजा और उन्हों ने ख़ुद अपनी रिसालत के सबूत में और ईलाही रिफ़ाक़त के ज़ाहिर करने में उन को पेश किया। इंजील में हम पढ़ते हैं कि ख़ुदा ने रसूलों की गवाही को निशानों और अजाइबात और मुख़्तलिफ़ मोअजज़ों और रूहुल-क़ुद्दुस की नेअमतों से तस्दीक़ किया और ख़ुद हमारे ख़ुदावंद यसूअ मसीह की निस्बत जिसमें उलूहियत का कमाल बसता था ये बयान हुआ कि उस का ख़ुदा की तरफ़ से होना साबित हुआ इन मोअजज़ों और निशानों और अजनबियों से जो ख़ुदा ने उस की मार्फ़त दिखलाएँ और मसीह ने आप लोगों के सामने मोअजज़ों को क़तई रिसालत के सबूत में पेश किया देखो (यूहन्ना 5:20-21) मुझ पास यूहन्ना की गवाही से एक बड़ी गवाही है इसलिए कि ये काम जो बाप ने मुझे सौंपे हैं ताकि पूरे करूँ यानी ये काम जो मैं करता हूँ मुझ पर गवाही देते हैं कि बाप ने मुझे भेजा है। फिर (यूहन्ना 10:25) यसूअ ने उन्हें जवाब दिया कि मैंने तो तुम्हें कहा और तुमने यक़ीन ना किया जो काम मैं अपने बाप के नाम से करता हूँ ये मेरे गवाह हैं और इसी (बाब की 38) पर नज़र करो अगर मैं अपने बाप का कलाम करता हूँ तो अगरचे मुझ पर ईमान ना लाओ तो भी कामों पर ईमान लाओ ताकि तुम जानो और यक़ीन करो कि बाप मुझमें है और मैं उस में हूँ।

मुहम्मदी मज़्हब के इल्हामी या फ़ौक़ुल आदत होने की इस क़िस्म की क़तई दलील नहीं इसलिए मेरी समझ में उस की बुनियाद ख़ाम और ना माक़ूल है अहले इस्लाम मुहम्मद साहब की रिसालत यानी ग़ैर फ़ित्री तौर पर ख़ुदा की तरफ़ से मुक़र्रर हो कर दुनिया में आना फ़क़त मुहम्मद साहब के दाअवे से क़ुबूल करते हैं इस क़िस्म का यक़ीन मेरी समझ में कमज़ोर और नामाक़ूल है। मुहम्मदी मज़्हब की क़ुव्वत और उम्मीद हाल के ज़माने में कैसा ही क्यों ना हों हमें पूरा यक़ीन है कि अक़्ल और तक़रीर के इल्म में जब मुहम्मदी लोग तरक़्क़ी करेंगे तब ज़रूर उन के यक़ीन की बुनियाद टूट जाएगी क्योंकि ज़ाती उनका यक़ीन बे बुनियाद है बेशक अगर मुहम्मद साहब चाहता तो मोअजज़े का दाअवा करता लेकिन उन्हों ने ऐसा दाअवा नहीं किया फ़क़त अपना कलाम अपनी नबुव्वत के दाअवे में पेश किया है हमारी समझ में इस क़िस्म का दावा ताअलीम याफ़्ता और शाबस्ता लोग कभी क़ुबूल नहीं करेंगे इस का नतीजा इन दो बातों से एक ज़रूर होगा या वह बिल्कुल मुहम्मदी मज़्हब पर से यक़ीन उठा लेंगे या उस को ऐसा बना लेंगे जिससे फ़क़त वह नेचरी मज़्हब रह जाएगा। हर एक ग़ैर फ़ित्री दाअवा और ताअलीम को रद्द* कर देंगा और फ़क़त उस को मुहम्मदी मज़्हब क़रार देंगे जिसको नेचर या फ़ित्रत क़ुबूल कर लेती है चुनान्चे उस आज कल ऐसा ही ताअलीम-याफ़्ता मुहम्मदियों के बीच में रहा है यानी सय्यद अहमद ख़ान साहब के पैराओं के दर्मियान।

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ग्रेशीन मिथ्यालोजी

Greek Mythology

ग्रेशीन मिथ्यालोजी
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One Disciple
एक शागिर्द
Published in Nur-i-Afshan June 20, 1889

मत्बूआ 20, जून 1889 ई॰
जब हमारी नज़र दुनिया के बेशुमार मज़ाहिब और मुख़्तलिफ़ क़िस्म के अक़ीदों पर पड़ती है जब कि हम देखते हैं कि इस मुआमले में कितना कुछ इख़्तिलाफ़ राय हैं। तो तबीयत हैरान और अक़्ल परेशान हो जाती है। और दिल बड़े तफ़क्कुरात (फ़िक्र व सोच बिचार) में पड़ जाता है और दिल में ख़्याल आता है कि क्या ये सब ख़यालात जो किसी ना किसी आक़िल व आलिम व फ़ाज़िल ने हर एक मज़्हब की बाबत ज़ाहिर किए हैं ठीक ना होंगे। अगर हमारी अक़्ल थोड़ी सी या ना-मुकम्मल हो लेकिन क्या उन दानाओं की अक़्ल व फ़हम जो हमसे कैसी बढ़कर थी इस बारे में क़ाबिल-ए-क़दर के ना होगी क्या ये या वो मज़्हब जिसके बानी-मबानी फ़ुलाने या फ़ुलाने थे सच्चा ना होगा। और अगर नहीं तो क्यूँ-कर उन की अक़्लें जो ऐसे दाना और फ़ाज़िल थे धोका खा सकती थीं। और जिन्हों ने बड़े बड़े साईंस दर्याफ़्त किए क्या इस एक ख़ास बात के बारे में ग़लती खा सकते थे। तो उस के बारे में हमको पाक कलाम इंजील मुक़द्दस की एक आयत याद आती है। (1 कुरिन्थियों 1:21) में मर्क़ूम है कि :-

“दुनिया ने अपनी हिक्मत से ख़ुदावंद को ना पहचाना। बल्कि ये भी लिखा है कि क्या ख़ुदा ने इस दुनिया की हिक्मत बेवक़ूफ़ी नहीं ठहराया।”

हाँ ये बात साफ़ साबित होती है। जब हम उन के मज़हबी अकाइदे से वाक़िफ़ होते हैं और उन के उसूलों को पढ़ते हैं और दानाओं की दानाई की तरफ़ ज़रा ग़ौर करते हैं तो कोई ना कोई ग़लत ख़्याल उन की बातों में ज़रूर ही मिला हुआ पाते हैं जिससे ये पाक कलाम का फ़र्मान *बिलकुल सादिक़ ठहराता है। चुनान्चे हम इस बात की तस्दीक़ जे़ल के बयान से करेंगे। जिस वक़्त कि मुल़्क यूनान अक़्ल व दानाई में तमाम दुनिया में बेनज़ीर था और बड़े-बड़े आलिम व फ़ाज़िल यूनानी हुकमा मौजूद थे। उस वक़्त उनका मज़्हब बिल्कुल बुत परस्ती था। और उन के ख़यालात दर बाब मज़्हब बड़े अजीब व ग़रीब थे जिनका हम उस वक़्त कुछ मुख़्तसरन बयान करते हैं।

उस वक़्त यूनानी तीन क़िस्म के दैवते मानते थे।

(अव्वल) सेलेशल यानी आस्मानी।)

(दुवम) मीरें यानी बहरी।)

(सोम) अंज़रनिल यानी दोज़ख़ी।)

उन के ख़्याल में पहली क़िस्म के देवतें आस्मान पर रहते थे। और दूसरी क़िस्म के समुंद्र में और तीसरी क़िस्म के ज़मीन के नीचे मुहीब जगह में रहते थे। और इन के सिवा और बहुत क़िस्म के छोटे-छोटे देवतें माने जाते थे जो उन के ख़्याल में जंगलों और नदी नालों में सुकूनत करते थे पहली क़िस्म के देवतें ये थे। जोपटीर, अपलो, मार्स, मरकरी, बीकस, वलकन, जोनो, मिज़वा, वनीस, डायना, केरस और सीटा और उन सब के इख़्तियार में मुख़्तलिफ़ काम बताते थे। मसलन गरज और बिजली जब गिरती थी तो ख़्याल करते थे, कि जो पीटर नाराज़ हो गया। और सूरज की गर्दिश का ख़्याल था कि अपलो देवता उस को चलाता है। मार्स लड़ाई का देवता समझाता था। वीनस ख़ूबसूरती का। मरकरी चोरों का देवता। और बेकस शराबियों का देवता ख़्याल किया जाता था वग़ैरह-वग़ैरह।

दूसरी क़िस्म के देवतें भी बहुत थे। मगर उन में से नेपच्यून सब का सरदार था उस की सवारी की गाड़ी बड़ी अजीब थी। और उस के घोड़ों की दुमें मछलीयों की दुमों की मानिंद थीं। और जब कभी वो सैर करता था तो तमाम देवतें उस के इर्द-गिर्द जमा हो जाते थे।

तीसरी क़िस्म का देवता प्लूटो था, जो ज़मीन के नीचे मुहीब जगह में रहता था। और एक ख़ौफ़नाक और डरावनी शक्ल में गंधक के एक बड़े तख़्त पर बैठता था।

मुंदरजा-बाला बयान से साफ़ ज़ाहिर होता है कि ऐसे इल्म व अक़्ल के ज़माने में भी मुल्क यूनान एक गहिरी जहालत और तारीकी के बड़े भंवर में पड़ा हुआ था। और बावजूद बड़े-बड़े हुकमा व फुज़ला के ये वाहीयात ख़यालात *फैले हुए थे। क्यों अक़्ल की रोशनी ने उन को दूर ना किया। और उन की बुत परस्ती को ना मिटाया सबब इस का सिवा इस के और कुछ नहीं कि दुनिया की हिक्मत ख़ुदा को पहचान नहीं सकती। और इसलिए वो ख़ुदा की बातों की हक़ीक़त से महरूम रहे। अब ऐसा ही बल्कि इस से बदतर हाल और तमाम मुल्कों का भी है। ख़ुसूसुन हमारे मुल्क हिन्दुस्तान का भी अब तक यही हाल है, कि अपनी बुत परस्ती और वहमात परस्ती से आँख नहीं खोलता और अगर कुछ ज़र्रा सी बेदार भी होता है लेकिन फिर भी एक बड़ी भारी ग़फ़लत की नींद में ख़र्राटे मारता है। हालाँकि इल्म व अक़्ल ने ज़माने में बड़ी तरक़्क़ी हासिल की है और सैंकड़ों हज़ारों आर्टस पढ़े गए हैं। और बड़ी-बड़ी डिग्रियां भी हासिल की हैं। मगर मज़्हब की बाबत वही पुराने और वही ख़यालात भरे हुए हैं। अगरचे ताअलीम याफ़्तह नव-जवानों ने बहुत कुछ सई व कोशिश भी की है। और कहीं नेचरी कहीं ब्रहमवावर कहीं कुछ बन बैठे हैं। मगर ताहम अपनी अक़्ल व दानाई के सबब सच और हक़ीक़त को पा नहीं सकते। क्योंकि वो असलीयत अक़्ल के अहाते में नहीं बल्कि अक़्ल से बरतर औरा फ़ज़्ल है और वो ये है कि जब अक़्ल इस अम्र में बिल्कुल बेकार रह गई थी तो ख़ुदा की ये मर्ज़ी हुई कि मुनादी की बेवक़ूफ़ी से ईमान वालों को बचाए। (1 कुरिन्थियों 2:21) और वो मुनादी क्या है? ये कि मसीह मस्लूब पर ईमान ला तो तू नजात पाएगा। क्योंकि वो तेरे गुनाह के बदले क़ुर्बान हुआ।