वह तीसरे दिन मुर्दों में से फिर जी उठा

He was raised on the third day

वह तीसरे दिन मुर्दों में से फिर जी उठा
By

Rev,K.C.Chatterji
पादरी के॰ सी॰ चटर्जी,
Published in Nur-i-Afshan May 30, 1889

मत्बूआ 30, मई 1889 ई॰v
बाअज़-बाअज़ मसीह कलीसिया में चंद रोज़ हुए इस्टर की नमाज़ हुई और अब भी इतवार की नमाज़ में इस्टर के ऊपर इशारा होता है ये नमाज़ मसीह के मुर्दों में से जी उठने के यादगार की नमाज़ है। सो मैं नूर-अफ़शाँ के पढ़ने वालों की ख़िदमत में चंद बातें मसीह के जी उठने की बाबत पेश करता हूँ।

इस माजरा का बयाँ चारों इंजील में पाया जाता है। मत्ती रसूल बयान करता है कि ख़ुदावंद यसूअ मसीह मुर्दों में से जी उठ कर पहले ईमानदार औरतों को दिखाई दिया और कहा तुम सब ख़ुश हो। लूक़ा और यूहन्ना बयान करता है कि जब वो जी उठने के बाद ईमानदार मर्दों से पहले मिला तब फ़रमाया तुम पर सलाम इस फ़र्क़ का सबब एक मशहूर मसीही के मुअल्लिम यूं बयान करता है :-

“औरतों का ईमान मज़्बूत था वो सिर्फ़ मसीह के दुख और मौत के सबब से ग़मगीं थीं। और इस वास्ते ख़ुदावंद ने उन को कहा तुम सब ख़ुश हो। मर्दों का ईमान सुत हो गया था वो सोचते थे कि मसीह बनी-इस्राईल को मख़लिसी बख़्शेगा इस वास्ते उस के मर जाने से ना उम्मीद हो कर हैरान होते थे उनका दिल शक व शुब्हा से भर गया था इस वास्ते मसीह ने उन को देखकर कहा तुम्हें सलाम यानी तुम्हारे दिल में सलामती हो मत घबराओ।”

शक शुब्हा को दिल से दूर करो। देखो मैं जीता हूँ ये कलाम सलामती का हमारे लिए भी ज़रूर है। नेचर के क़ाईदों की पाएदारी पर एतिक़ाद इस क़द्र बढ़ गया है और मुख़ालिफ़-ए-दीन मसीही के एतराज़ मसीह के जी उठने पर इस क़द्र ज़ाहिर हो रहा है कि ख़्वाम-ख़्वाह उस की निस्बत दिल में घबराहट पैदा होती है। और उस को मान लेना निहायत मुश्किल मालूम होता है। सलामती तब ही दिल में पैदा हो सकती है। जब उस के जी उठने पर पूरा यक़ीन हो और ये यक़ीन तब ही पूरा हो सकता है जब हम पूरा एतिक़ाद मुंदरजा ज़ैल बातों पर रखें।

अव्वल मसीह की अजीब शख़्सियत पर दोम इन्सान की गवाही की मोअ्तबरी पर।

पहला मसीह के जी उठने के माजरे पर यक़ीन करने के लिए ज़रूरी है कि हम मसीह की अजीब शख़्सियत पर यक़ीन करें कि मसीह की शख़्सियत अजीब थी वो ऐसा एक शख़्स था जिसमें इन्सानियत और उलूहियत इकट्ठी सुकूनत करती थीं वो बेगुनाह इन्सान था और अपने काम-काज से और गुफ़्तगु से और इक़रार से अपनी बेगुनाही ज़ाहिर की उस में उलूहियत का कमाल मौजूद था। उस ने अपने काम और कलाम से ख़ुदा के बराबर होना ज़ाहिर किया। सिवाए उस के हमको याद रखना चाहीए कि मसीह का जी उठना ऐसे एक आदमी का जी उठना है जिसकी मौत फ़ौक़ुल-आदत है उस ने कांटों का ताज पहन लिया लेकिन वो ताज दुनिया का क़हर था जो उस के सर पर रखा गया। वो सलीब पर लटक गया ताकि वो ज़मीन और आस्मान के बीच खड़ा हो वो दो चोरों के बीच में रखा गया ताकि आख़िरी अदालत का निशान हो। उस दिन उस के दाहिने हाथ पर भीड़ होंगी और बाएं हाथ पर बकरीयां जैसे कि ताइब और बे ताइब चोर खड़े किए गए थे आस्मान की हवा उस के मत्थे पर लगी और उस ने आस्मान का दरवाज़ा मग़फ़ूर गुनाहगारों के लिए खोला।

मरना उस के लिए एक फ़ौक़ुल-आदत काम था मशहूद दहरयारोहो ने ठट्ठे से मसीह की मौत की बाबत यूं बयान किया है, कि उस की मौत ख़ुदा की मौत है। अगरचे ये बात उस ने ठट्ठे से कही है तो भी ईसाईयों का अक़ीदा पहले तीन इंजीलों में बयान हुआ है कि मसीह मरने के वक़्त ऊंची आवाज़ से चिल्लाया उस को सुनकर रोमी सूबेदार ने कहा कि ये शख़्स सच-मुच ख़ुदा का बेटा है। इलावा बरीं याद रखना चाहीए कि मसीह ने अपनी जान ख़ुशी से दी उस ने ख़ुद फ़रमाया मैं अपनी जान भेड़ों के लिए देता हूँ मुझे इख़्तियार है कि मैं उसे दे दूं और मुझे इख़्तियार है कि मैं फिर उसे उठा लूं। ये तो सच है कि लोगों ने उसे पकड़ा और रस्सी से बाँधा लेकिन वो बंधा हुआ ज़्यादा अपनी मर्ज़ी और ख़ुशी से था। ख़ुदा की मर्ज़ी और दुनिया की मुहब्बत की डोर उस पर आमादा मज़्बूत थी और उन्हीं के सबब से जैसे भेड़ अपने बाल कतरने वालों के सामने चुप-चाप रहती है इस तरह वो अपने पकड़ने और सताने वालों के सामने चुप-चाप रहा उस की अक़्ल और समझ आख़िर तक क़ायम रही वह मरते वक़्त मग़्लूब ना हुआ बल्कि मौत पर ग़ालिब रहा ये भी याद रखना मुनासिब है कि मसीह का जी उठना पैशन गोइयों की कलाम के मुताबिक़ था। पोलुस रसूल कहता है कि वो गाढ़ा गया, और तीसरे दिन किताबों के मुवाफ़िक़ जी उठा फिर दूसरी जगह इस वाअदे को जो बाप दादों से किया गया था ख़ुदा ने हमारे लिए जो उन की औलाद हैं बिल्कुल पूरा किया कि यसूअ को फिर जिलाया अगर हम ग़ौर से नबुव्वत की किताबें पढ़ें तो अक्सर हम ये देखेंगे कि यसूअ की मौत और दुख का बयान है और बाद उस का जलाल का जिसमें वह जी उठ कर दाख़िल हुआ। पतरस का बयान कि उस को ख़ुदा ने मौत के बंद खोल कर उठाया क्योंकि मुम्किन ना था कि वो उस के क़ब्ज़े में रहे।

दूसरा मसीह के जी उठने का यक़ीन मोअतबर गवाही पर मौक़ूफ़ है। पेशतर कि हम इस गवाही की तरफ़ मुतवज्जा हों हम उन ख़यालों का बयान करेंगे जो मसीह के ज़िंदा होने और आस्मान के चढ़ जाने की बाबत मुम्किन है। पहला ये कि ख़ुदावंद यसूअ मसीह हक़ीक़त में नहीं मरा बल्कि जब सलीब पर उतारा गया था तो हालत ग़शी में था और उस के शागिर्दों ने मुर्दा समझ के यहूदीयों की रस्म के बमूजब उस के बदन पर निकोस बोएँ मलीं और उस को दफ़न किया बाअज़ लोग सोचते हैं कि इन खुशबुओं के मलने और ठंडी हुवा के लगने से जब शागिर्द उस को क़ब्र में रखकर चले गए तो उसी की बे-होशी जाती रही तब वो रफ़्ता-रफ़्ता क़ुव्वत हासिल कर के क़ब्र में से निकल आया और किसी पोशीदा मकान में जाकर छिपा रहा होगा कभी-कभी इस मकान से निकल कर चालीस रोज़ तक शागिर्दों पर ज़ाहिर होता रहा और बाद चालीस रोज़ के बिल्कुल ग़ायब हो गया और शागिर्दों को नज़र ना आया शागिर्द भी समझते रहे कि हमारा ख़ुदावंद जी उठा। आस्मान पर चला गया। इस ख़्याल की निस्बत मेरा जवाब ये है कि ये सिर्फ़ ख़याल ही है कि जिसका कुछ सबूत नहीं। इंजील नवीसों की शहादत के ख़िलाफ़ है कि वह सच-मुच मर गया था इस को क़ुबूल नहीं कर सकते सिवाए उस के ये ख़्याल मेरी नज़र में बिल्कुल नामुम्किन मालूम देता है क्योंकि मसीह ना सिर्फ मस्लूब किया गया था बल्कि भाले से उस का पहलू छेदा गया था। अगर वो ग़शी की हालत में हो कर क़ब्र में ज़िंदा हुआ तो निहायत कमज़ोर होगा। ये मुम्किन नहीं मालूम देता कि ऐसे भारी पत्थर को कि जिसकी निस्बत औरतें ख़्याल करती थीं कि इसे हमारे लिए कौन ढलकाएगा ख़ुद ढलकाकर निकल गया हो। पहरे वालों की आँख बचा कर भाग गया हो और भाग कर कहाँ गया इस ख़्याल के बमूजब शागिर्दों के पास नहीं गया अगर दुश्मनों के पास गया था तो मुम्किन नहीं मालूम देता कि उन्हों ने उस को छुपा रखा हुआ बीच-बीच में चालीस रोज़ तक उस को शागिर्दों पर ज़ाहिर किया हो और बाद उस को इस तरह छिपा लिया हो कि उस की कुछ ख़बर किसी ना मिली और ये सब कुछ इस नीयत से किया हो कि शागिर्दों को ये ख़्याल हो कि हमारा ख़ुदावंद जो मर गया था फिर जी उठा है बल्कि आस्मान पर चढ़ गया मेरी अक़्ल में ये ख़्याल मुहाल है और क़रीन-ए-क़ियास ये है कि अगर दुश्मनों के पास वो जाता तो गिरफ़्तार कर के फिर उसे सलीब पर दुबारा चढ़वाते।

सिवाए इस के ये ख़्याल अख़्लाक़ी क़ायदे से नामुम्किन नज़र आता है क्योंकि इस में मसीह के ज़िम्में में अव्वल दर्जे का दग़ा और फ़रेब समझा जाता है कि वो जब पत्थर ढलका कर अपने शागिर्दों के पास ना गया बल्कि किसी मकान में छिपा रहा। और वक़्तन-फ़-वक़्तन अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर होता रहा और बाद चालीस दिन किसी मकान में छिप गया। कि उन को नज़र ना आया और ये सब कुछ इस ख़्याल से करें कि शागिर्दों को फ़रेब देकर समझा दें कि मैं मुर्दों में से जी उठ कर आस्मान पर चढ़ गया। मेरी समझ में ऐसा काम मसीह के ज़िम्में लगाना निहायत नामुम्किन है ख़सूसुन जब हम सोचते हैं और उस की पिछली ज़िंदगी और ताअलीम पर नज़र डालते।

दूसरा ख़्याल ये हो सकता है कि मसीह के शागिर्दों ने उस की लाश को चूरा लिया और झूट से ये मशहूर कर दिया वो मुर्दों में से जी उठा है, बल्कि उस को चालीस दिन तक उन्हों ने वक़्त ब-वक़्त देखा है आख़िर को उन्हीं के सामने वो आस्मान पर चढ़ गया। ये ख़्याल ऐसा ही नामुम्किन है जैसा पहला क्योंकि मसीह की क़ब्र पर ना सिर्फ पत्थर रखा हुआ था बल्कि उस पर मुहर भी कर दी थी और फिर अपने सिपाहीयों को तैनात (मुक़र्रर) कर दिया था। रोमी सिपाहीयों का पहरा उस की निगहबानी कर रहा था मसीह के शागिर्द क़रीब तमाम के कमज़ोर कम हेसीयत और कमक़दर लोग थे वह यहूदीयों के ख़ौफ़ से मसीह के पास से भाग गए थे सिवाए पतरस, यूहन्ना और कई औरतों के और किसी का ज़िक्र उस की मौत के वक़्त नहीं मिलता ये बिल्कुल ना-मुम्किन मालूम देता है। कि ऐसे लोग उस की लाश चूराने के क़ाबिल हों ये बात भी हमारे क़ियास से बाहर है कि सारे शागिर्द मुत्तफ़िक़ हो कर इस झूट को बांध सकें। क्योंकि ये बयान हुआ है कि ग्यारह रसूलों ने उस को देखा और कई औरतों ने और एक मर्तबा जब वो आस्मान पर चढ़ गया बड़ी जमाअत शागिर्दों की वहां मौजूद थी। अख़्लाक़ी क़ायदे से भी ये ख़्याल मुहाल नज़र आता है। क्योंकि शागिर्दों की ख़ासकर रसूलों की ज़िंदगी और ताअलीम पर ग़ौर करने से बख़ूबी ज़ाहिर होता कि ये लोग सच्चे थे और सच्चाई के सिखाने वाले थे और अपनी कलाम और ताअलीम को सच्चाई के वास्ते बड़े दुख और तक्लीफ़ उठाई बल्कि अपनी जान तक भी दरेग़ ना की हम यक़ीन नहीं कर सकते ऐसे लोगों ने ये सब कुछ जान-बूझ कर किया कि उन के पैग़ाम की बुनियाद बिल्कुल झूटी है, उनका पैग़ाम सच्चा हो या झूटा लेकिन वो बेशक उसे सच्चा समझते थे।

बाअज़ लोगों ने नवीसों के बयान में फ़र्क़ और इख़्तिलाफ़ दिखलाया है अगर इख़्तिलाफ़ भी साबित हो तो उन के बयान की सच्चाई पर दाग़ नहीं लगा सकता सिर्फ उन के लफ़्ज़ी इल्हाम पर शक पैदा हो सकता है।

तीसरे ख़्याल को रोया का ख़्याल कहा जाता है और ये ख़्याल आजकल पहले दो ख़यालों से आलिमों के दर्मियान ज़्यादा मशहूर है। क्योंकि एक नामी और आलिम शख़्स रेनान साहब ने इस को दिलचस्प इबारत के साथ बयान किया है वो ख़्याल ये है कि :-

“गुडफ्राईडे के माजरे से मसीह के शागिर्द बहुत दिल-गीर और रंजीदा ख़ातिर हो गये थे यकायक उन में से एक औरत मर्यम मग्दिली जो पुर जोश और गर्म तबीयत की थी। अपने ख़्याल के बस में आकर चिल्ला उठी कि ख़ुदावंद जी उठा है। बिजली की मुवाफ़िक़ ये कलाम शागिर्दों की जमाअत में, फिर कई थी जमाअत उस के असर में आ गई और कहने लगी ख़ुदावंद जी उठा है चंद रोज़ बाद उनमें से एक ने कहा आओ हम गलील को जाएं वहां हमको ख़ुदावंद दिखलाई देगा। जब वो गलील में पहुंच गए और उस झील और उस मकान को देखा, जहां मसीह उन को मिलता था। और उन को ताअलीम देता था और मुहब्बत का कलाम कहता था। तब मसीह की सारी सरगुज़िश्त उन को ताज़ा हो गई और वो ख़्याल करने लगे कि हम ख़ुदावंद को देख रहे हैं। आख़िर को गलील के पहाड़ पर कई शागिर्द मसीह के इकट्ठे हो गए। हवा उस पहाड़ की निहायत लतीफ़ है और तरह-तरह के धोके से भरी हुई है। इस क़िस्म का एक धोका उस के सामने पेश हुआ। वो सोचने लगे कि मसीह की सूरत उन के सामने खड़ी है बल्कि आस्मान की तरफ़ उठ रही है उन्हों ने चिल्ला कर कहा कि ख़ुदावंद आस्मान पर चढ़ गया। और ख़ुदा के दहने हाथ जा बैठा।”

ये ख़्याल ऐसा ही ख़ाम है जैसे पहले दो ये इस्म-बा-मुसम्मा है। यानी रेनान साहब की रोया का नतीजा है क्योंकि इस तरह का रोया सिर्फ तब ही नज़र आता है जब आदमी सारे दिल से इस का मिस्तर और उम्मीदवार हो लेकिन हमको मालूम है कि मर्यम मग्दिली और औरतें जो उस के साथ जाती थीं इस रोया की उम्मीदवार नहीं थीं वो ख़ुशबू तैयार कर के मसीह की लाश पर मलने को गई थीं सिवाए उस के रोया एक तन्हा औरत या मर्द को नज़र आ सकता है। लेकिन इंजील नवीसों का बयान हम पढ़ते हैं कि मसीह कम से कम दस दफ़ाअ अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर हुआ। ना सिर्फ तन्हा आदमी को ग़म और अफ़्सोस की हालत में बल्कि एक दफ़ाअ वो दो शागिर्दों को नज़र आया जो अमाउस की बस्ती में जा रहे थे एक दफ़ाअ दस रसूलों फिर ग्यारह को फिर सात शागिर्दों को जब वो दरिया में मछली पकड़ रहे थे और पिछले दिन जब कि वो आस्मान पर सऊद कर गया पाँच सौ आदमी से ज़्यादा शागिर्दों को नज़र आया। इसलिए हम इस को रोया मंज़ूर नहीं कर सकते पर ये भी ग़ौर के लायक़ है कि ये नुमाइश ख्व़ाब के मुवाफ़िक़ नहीं था। मसीह ने अपने हाथ और पहलू शागिर्दों को दिखलाए उन्हों ने भूनी मछली का एक टुकड़ा और शहद का छत्ता उस को दिया उस ने लेकर उन के सामने खाया।

मसीह की नुमाइश बे-माअनी नहीं थीं जैसा उस की ज़िंदगी के सारे काम रुहानी मतलब से भरे हुए थे। इस तरह जी उठने के बाद जो कुछ किया वो भी नसीहत से भरा हुआ है। मसअला उस ने शागिर्दों के साथ दरिया-ए-गलील के किनारे पर रोटी खाई इस से ये ज़ाहिर है कि मेहनत तमाम हुई आस्मानी दरिया के किनारे पर आराम है। कामिल कलीसिया हमेशा की ज़याफ़त में शामिल होती है। इन नुमाइशों में मसीह ने जो कलाम कहा वो अभी तक शागिर्दों के दिलों में जागता है। वो ज़िंदा कलाम है रोशनी और क़ुव्वत से भरा हुआ जो अब तक मसीही मुल्कों में बल्कि कुल दुनिया पर असर कर रहा है। मर्यम मगदलेन के रूबरू मसीह ने रोटी नहीं खाई ना तोमा को पाक नविश्तों की ताअलीम दी जैसे उन शागिर्दों को दी जो अमाउस की बस्ती में जा रहे थे। तोमा की बेईमानी का सबब और था और अमाउस के जाने वालों के बेईमानी का बाइस और था। सिर्फ एक ही नुमाइश में मसीह ने मोअजिज़ा दिखलाया।

और मसीह आस्मान पर चढ़ गया

मरक़ुस की इंजील के सोलहवें बाब और उन्नीसवीं आयत में ये माजरा यूँ मर्क़ूम हुआ है कि ख़ुदावंद आस्मान पर उठाया गया। लूक़ा इस का ज़िक्र इंजील के 24 बाब 51 आयत में यूं करता है तब वो उन्हें वहां से बाहर बैत-अन्याह तक ले गया और अपने हाथ उठा कर उन्हें बरकत दी और ऐसा हुआ कि जब वो उन्हें बरकत दे रहा था उनसे जुदा हुआ और आस्मान पर उठाया गया। मसीह की सऊद का मुफ़स्सिल बयान आमाल के पहले बाब में मिलता है वहां मसीह के शागिर्दों के साथ पिछली गुफ़्तगु के बयान के बाद ये लिखा है। वो ये कह कर उनके देखते हुए ऊपर उठाया गया और बदली ने उसे उनकी नज़रों से छिपा लिया। और उस के जाते हुए जब वो आस्मान की तरफ़, तक रहे थे देखो दो मर्द सफ़ैद पोशाक पहने उनके पास खड़े थे और कहने लगे “ऐ गलीली मर्दों तुम क्यों खड़े आस्मान की तरफ़ देखते हो यही यसूअ जो तुम्हारे पास से आस्मान पर उठाया गया है जिस तरह तुमने उसे आस्मान की तरफ़ जाते देखा फिर आएगा।” इन बयानों से मुंदरजा ज़ैल मतलबों का सबूत है।

(1) मसीह का सऊद उस की कुल शख़्सियत का था यानी ख़ुदावंद यसूअ मसीह ख़ुदा-ए-मुजस्सम का ख़ुदा बेटा साफ़ हक़ीक़ी जिस्म और अक़्ली रूह के साथ आस्मान पर चढ़ गया।

(2) मसीह का सऊद अलानिया था शागिर्दों ने कुल माजरा देखा उन्होंने देखा कि मसीह ज़मीन से आहिस्ता-आहिस्ता ऊपर उठाया गया। ता वक़्त ये कि बदली ने उनकी नज़रों से छिपा लिया।

(3) मसीह का सऊद मकान की तब्दीली है यानी ज़मीन से आस्मान पर उठाया गया इस से मालूम देता है कि आस्मान पर मकान है ख़ल्क़त के कौन से हिस्से में ये मकान मौजूद है मैं बता नहीं सकता। लेकिन बाइबल की ताअलीम से साफ़ मालूम होता है कि ये मकान महदूद है। जहां ख़ुदा का हुज़ूर और जलाल खासतौर पर ज़ाहिर है। और जहां ख़ुदा के फ़रिश्ते जो ग़ैर महदूद नहीं हैं। और मुक़द्दसों की रूहें मौजूद हैं। हम इक़रार करते हैं कि बाइबल में लफ़्ज़ आस्मान और मअनी में भी मुस्तअमल हुआ है। मसलन सबसे नीचे का आस्मान जहां चिड़िया उड़ती बादल फिरते या जहां से पानी बरसता है पोलार के इस हिस्से को भी आस्मान कहा गया है। जिसमें सय्यारे और सितारे चमक रहे हैं। बाइबल में सय्यारों को आस्मानी फ़ौज कहा गया है। तीसरे आस्मान के मअनी वो रुहानी हालत है जिसमें ईमानदार, मसीह पर ईमान लाने के सबब से दाख़िल होते हैं इस मअने में लफ़्ज़ आस्मान ख़ुदा की बादशाहत का मुसावी है। इफ़िसियों के ख़त के दूसरे बाब की 6 आयत में यूं लिखा है “उसने हमको उस के साथ उठाया और आस्मानी मकानों पर बैठाया।” और फिलिप्पियों के तीसरे बाब की 20 आयत में बयान हुआ है, “हमारी ममलकत आस्मान पर है।” और सबसे पिछले मअनी जिस्मानी में बयान हुआ है कि मसीह आस्मान पर चढ़ गया। आस्मान उस जगह का नाम है जहां ख़ुदा बस्ता है। और जहां उस के फ़रिश्ते और मुक़द्दसों की अर्वाह इकट्ठी हैं जहां से ख़ुदावंद यसूअ मसीह आया था और फिर लौट गया है उसने अपने शागिर्दों को फ़रमाया मैं तुम्हारे लिए एक मकान तैयार करने के लिए जाता हूँ। यही मअनी इस लफ़्ज़ के हैं जब हम ख़ुदा को कहते हैं कि हमारा बाप जो आस्मान पर है या आस्मान ख़ुदा का तख़्त है उस की हैकल है उसके रहने की जगह है अगर मसीह के सऊद का बदन है तो ज़रूर उस के लिए एक महदूद जगह की हाजत है और जहां मसीह का बदन है वही ईसाईयों का आस्मान है।

लेकिन सारे ईसाई लोग सऊद की इस तशरीह को क़ुबूल नहीं करते। मसलन लूथरन कलीसिया समझते हैं कि मसीह का सऊद नक़ल-ए-मकान नहीं है। बल्कि तब्दीली हालत की है और इस सऊद में फ़र्क़ है। बाअज़ मसीही मुअल्लिमों ने उस का मुजस्सम हुआ और आस्मान पर चढ़ जाना यूं बयान किया है कि जब मसीह मुजस्सम हुआ तब उसने उस ख़ुदा की सूरत को जो अज़ल से रखता था उतार फेंका और अपने आपको महदूद बना कर इन्सान की शक्ल को इख़्तियार किया ये लोग सऊद की निस्बत यूं कहते हैं कि ज़रूर उस के वसीले से नक़ल-ए-मकान करके दुनिया से आस्मान में दाख़िल हुआ हम ये भी इक़रार करते हैं कि हमारा ख़ुदावंद इन्सानियत की हैसियत में सिर्फ एक ही जगह में मौजूद है। लेकिन उस की हस्ती की सूरत सिर्फ़ इन्सानी है ना कि ईलाही। मशहूर मुफ़स्सिर अब्रॉड साहब ने कहा कि,

“ख़ुदा का इकलौता बेटा इन्सानी रूह बना और अपने वास्ते मर्यम के शिकम में एक जिस्म पैदा किया और उसके शिकम से इन्सान पैदा हुआ इस इन्सानी ज़ात में दो हिस्से थे। पहले वो चीज़ें जो इन्सानियत के लिए ज़रूरी हैं यानी बदन (बग़ैर) उनके इन्सान इन्सान नहीं है। दूसरे वो चीज़ें जो इन्सान में आरिज़ी और मुतग़य्यर (बदला हुआ) हैं मसलन कमज़ोरी मौत और दुख में मुब्तला ये दूसरी ख़ुसूसीयत मसीह ने सऊद के वक़्त बिल्कुल उतार फेंकी और अब आस्मान में मौजूद है बहैसीयत जलाल वाली इन्सानियत के।”

वो कहते हैं कि मसीह ने हमेशा के लिए ख़ुदा की सूरत को उतार फेंका और इन्सान की सूरत इख़्तियार की और इसी इन्सान की सूरत में अब वह आस्मान पर है। और अपनी रूह के वसीले कलीसिया और दुनिया पर हुकूमत करता है मकान की निस्बत वो दुनिया से गैर-हाज़िर है लेकिन क़ुव्वत के वसीले से वो अपने लोगों के नज़्दीक और दर्मियान मौजूद है। मसीह की इन्सानियत की क़ुव्वत से हाज़िरी को हम मानते हैं लेकिन इस बात को नहीं मानते कि उसने ख़ुदा की सूरत को बिल्कुल उतार फेंका और इन्सानी रूह बना और हमेशा को इन्सानियत की हालत में रहेगा। अगर ये सच हो तो मसीह फ़क़त आदमी है और ख़ुदा नहीं। मसलन अगर एक जवान आदमी अपने आपको महदूद और छोटा करता हुआ लड़के की सूरत तक पहुंच जाये और इसी सूरत में हमेशा को क़ायम रहे तो लड़का ही समझा जाएगा ना कि जवान, इसी तरह अगर कोई आदमी अपनी अक़्ल खो बैठे और अक़्ल बे जाये तो वो बेअक़्ल ही कहलाएगा या हैवान बन जाये और फ़क़त हैवान की ताक़त और क़ुव्वत रखे तो उस को हैवान कहेंगे, ना इन्सान इसी तरह अगर ख़ुदा का बेटा इन्सान बन गया है और इन्सानियत में हमेशा को रहता है तो वो इन्सान है ना ख़ुदा।

इंजील के मुताबिक़ मसीह का सऊद एक ज़रूरी अम्र था।

(1) ज़रूर इस वास्ते था कि मसीह आस्मान से आया आस्मान उस का घर था और आस्मान उस की सुकूनत के लायक़ है। इसलिए जब तक ये दुनिया गुनाहों से पाक ना हो जाएगी जब तक नया आस्मान और नई ज़मीन ना बने ये दुनिया उस के रहने के लायक़ नहीं है।

(2) मसीह का सऊद सरदार काहिन के काम के तमाम करने को ज़रूर था कि इस क़ुर्बानी के लहू के साथ आस्मान से गुज़र के ख़ुदा की हुज़ूर हाज़िर हो। ज़रूर था कि वो आस्मान पर जा कर अपनी उम्मतों के वास्ते ख़ुदा के हुज़ूर सिफ़ारिश करे। जैसा वो हमारे गुनाहों के वास्ते मुआ क़ब्र में वैसा हमें रास्तबाज़ ठहराने के लिए फिर जी उठा। ये सब बातें यहूदीयों के बीच में क़ुर्बानी की रस्म से ज़ाहिर थीं उनके बीच में दस्तूर था कि क़ुर्बानी का जानवर हैकल के बाहर ज़ब्ह किया जाता था। सरदार काहिन क़ुर्बानी का लहू और ख़ुशबू लेकर पर्दे के अंदर पाकतरीन जगह पर्दे में दाख़िल होता था और वहां कफ़्फ़ार-गाह में अह्द के संदूक़ पर छिड़क देना था जो काम सरदार काहिन भी इस काम को आस्मानी हैकल में पूरा करे इस मज़्मून का पूरा बयान इब्रानियों के ख़त में किया गया है।

(3) ख़ुदावंद अपने शागिर्दों को फ़रमाता है तुम्हारे लिए मेरा जाना ही फ़ायदा है क्योंकि अगर मैं ना जाऊं तो तसल्ली देने वाला तुम्हारे पास ना आएगा पर अगर मैं जाऊं तो मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा। इस वास्ते मसीह का जाना शागिर्दों के लिए ज़रूर था मसीह ने नजात का काम पूरा किया। लेकिन शागिर्दों को इस काम से फ़ायदा तब ही हुआ जब रूहुल-क़ुद्दुस के वसीले से उस पर ईमान लाए ये रूहुल-क़ुद्दुस ही की मदद से है। कि आदमी गुनाहों से मुकर होते हैं अपनी लाचारी को पहचानते हैं और मसीह के पास नजात की तलाश करते हैं मासिवा उस के नबियों ने रूहुल-क़ुद्दुस के नुज़ूल की नबुव्वत की थी उन्होंने बयान किया था कि मसीह के ज़माने की एक ख़ास ख़ुसूसीयत ये होगी। ज़रूर था कि ये नबुव्वतें पूरी हों। रूहुल-क़ुद्दुस की नेअमत हासिल करने के लिए मसीह का आस्मान पर चढ़ जाना ज़रूर था। वो उठाया गया, ताकि रूहुल-क़ुद्दुस के वसीले से लोगों को तौबा और गुनाह की माफ़ी बख़्शे हर ज़माने से और हर कौम से उनको इकट्ठा करे इस काम को पूरा करने के लिए आस्मान का तख़्त सबसे अच्छा था।

(4) मसीह ने अपने ग़मगीं शागिर्दों को फ़रमाया मैं जाता हूँ ताकि तुम्हारे लिए जगह तैयार करूँ और जिस हाल कि मैं जाता और तुम्हारे लिए जगह तैयार करता हूँ तो फिर आऊँगा और तुम्हें अपने साथ लूँगा ताकि जहां मैं हूँ तुम भी हो इस काम को पूरा करने के लिए ज़रूर था कि मसीह आस्मान पर जाये।

क़ुरआन से इंजील की क़दामत

The Reliability of the Gospel from Quran

क़ुरआन से इंजील की क़दामत
By

Kidarnath
केदारनाथ
Published in Nur-i-Afshan April 25, 1889

मत्बूआ 25, अप्रैल 1889 ई॰
वाज़ेह होकर ईसाई उलमा ने कमाल तहक़ीक़ात कर के बख़ूबी साबित कर दिया है कि इंजील मुरव्वजा हाल वही इंजील है जो (96 ई॰) तक तस्नीफ़ हो कर तमाम व कमाल शाएअ हो चुकी थी। चुनान्चे क़दीम तराजुम सरूनी वा अंगलू साक्सन वग़ैरह और पुराने क़लमी नुस्खेजात अलगुज़ नदरीह दोम इस सबूत के वसाइल मौजूद हैं। हाजत नहीं कि मुकर्रर उनकी तकरार की जाये मगर ज़माना-ए-हाल के मुहम्मदी अक्सर ये हीला पेश करते हैं कि ये इंजील वो इंजील नहीं है। जो ज़माना-ए-क़दीम हज़रात हवारियों में थी।

लिहाज़ा अब मैं ख़ास उन्हीं के इत्मीनान के वास्ते चंद सबूत जो कि मेरे ही ज़हन नाक़िस में मुतख़य्युल (ख़्याल किया गया) मैं बयान करता हूँ। याद रखना चाहीए कि मैं अपने दलाईल में सिर्फ उसी पर इक्तिफ़ा करूंगा कि इंजील मौजूद हाल की मौजूदगी ज़माना मुहम्मद में साबित हो जाये और बस। मालूम होना चाहीए कि इंजील क्या है?

इंजील के मअनी लुग़त में ख़ुशी और इस्तिलाह में उस किताब के कहते हैं जो ख़ुदावंद यसूअ मसीह के हालात पर मुश्तमिल है। और वो चार हिस्सों में महदूद हैं।

पहले में चारों अनाजील, दूसरे में आमाल अल-रसुल, तीसरे में ख़ुतूत और चौथे में मुकाशफ़ा है।

मुकाशफ़ा नबुव्वत की किताब है। ख़ुतूत ताअलीमात ईस्वी के मुफ़स्सिर हैं। आमाल में रसूलों की कारगुज़ारी है। इंजीलों में मसीह की सवानिह-ए-उम्री गोया वो बीज जो किश्तज़ार (सरसब्ज़ खेत) इंजील में बोया गया। ये आबयारी आमाल निहाल सरसब्ज़ नज़र आया। ख़ुतूत में उस के फूल ख़ुशबू पुहंचाते हैं। फिर मुकाशफ़ा में फल लगे हुए पाते हैं।

पस इस सिलसिले मतनासबा पर ग़ौर करने से साफ़ मालूम हो सकता है कि हर चार हिस्स (हिस्सा जमा) आपस में कैसा इलाक़ा मुत्तहदा रखते जिसमें ना इफ़रात को दख़ल है और ना तफ़रीत को गुंजाइश जब अल-हुक्म (मुकाशफ़ा 22:18-19)

अब सारी इंजील का लुब्बे-लिबाब जे़ल में दर्ज किया जाता है।

ख़ुदावंद मसीह की मोअजज़ाना पैदाइश, उस की ताअलीमात और मोअजज़ात मौत और जी उठना, आस्मान पर तशरीफ़ ले जाना। वहदत फिल-तस्लिस, इब्नीयत कफ़्फ़ारा, मसीह अदालत करेगा, इसी की क़दामत और असलीयत साबित करना हमारा मुद्दा है।

मुहम्मदी इन तमाम बातों से इनकार नहीं करते सिर्फ तस्लीस और इबनीयत और मसीह की मौत और जी उठने और कफ़्फ़ारा और अदालत से। और इन्हीं बातों को इंजील में पढ़ कर वो घबरा जाते और बेवजह कह बैठते हैं कि जिसकी इंजील पर ईमान लाने को हमें क़ुरआन हुक्म देता है वो इंजील और है और ये और है। और उनका ये दावा वहमी क़ुरआन से इलाक़ा रखता है उन के गुमान में (1300) बरस से है और मुहम्मद के रूबरू लिखा जा चुका था। पस मुझे हक़ पहुंचता है कि अगर मैं आयात मुतनाज़ा-फिया को सिर्फ क़ुरआन से साबित कर दूँ तो मुहम्मदियों से कहूं कि ये वही इंजील है जिसे तुम क़दीमी ख़्याल करते हो।

तस्लीस और मसीह की इब्नीयत के वास्ते

देखो क़ुरआन में सूरह निसा आयत 171

اَہۡلَ الۡکِتٰبِ لَا تَغۡلُوۡا فِیۡ دِیۡنِکُمۡ وَ لَا تَقُوۡلُوۡا عَلَی اللّٰہِ اِلَّا الۡحَقَّ ؕ اِنَّمَا الۡمَسِیۡحُ عِیۡسَی ابۡنُ مَرۡیَمَ رَسُوۡلُ اللّٰہِ وَ کَلِمَتُہٗ ۚ اَلۡقٰہَاۤ اِلٰی مَرۡیَمَ وَ رُوۡحٌ مِّنۡہُ ۫ فَاٰمِنُوۡا بِاللّٰہِ وَ رُسُلِہٖ ۚ۟ وَ لَا تَقُوۡلُوۡا ثَلٰثَۃٌ ؕ اِنۡتَہُوۡا خَیۡرًا لَّکُمۡ ؕ اِنَّمَا اللّٰہُ اِلٰہٌ وَّاحِدٌ ؕ سُبۡحٰنَہٗۤ اَنۡ یَّکُوۡنَ لَہٗ وَلَدٌ

“यानी मसीह ख़ुदा की रूह से तो है मगर बेटा नहीं है। और तीन ना कहो ख़ुदा सिर्फ एक है।”

हम इस आयत पर कुछ एतराज़ नहीं करते हमारा मतलब ये है कि मुहम्मद के ज़माने की इंजील में भी तस्लीस और इब्नीयत दर्ज थी और अब की इंजील में भी दर्ज है। अगर ईसाईयों ने अब दर्ज कर ली होती और क़दीम इंजील में ना होती तो मुहम्मद क्यों पेश अज़वक़्त क़ुरआन में तस्लीस और इब्नीयत से इन्कार करता। पस मालूम हुआ कि मुहम्मद के वक़्त में भी जिसको (1300) बरस गुज़रे यही इंजील थी जो अब है। और ना

सलीब की बाबत

देखो सुरह निसा आयत 157

وَ مَا قَتَلُوۡہُ وَ مَا صَلَبُوۡہُ وَ لٰکِنۡ شُبِّہَ لَہُمۡ

“यानी मस्लूब नहीं हुआ।”

इस नफ़ी से भी इस्बात हासिल होता है कि मुहम्मदी अह्द की इंजील में भी वाक़िया सलीब उसी सूरत से मुंदरज था जिस तरह हाल की इंजीलों में ये हाल लिखा है और जिस शमाउन कुरैनी ने मुहम्मद को शुब्हा में डाला वही शमाउन कुरैनी अब भी मुहम्मदियों को धोके में डालता है बहर-ए-हाल समझ का फेर है अगर अब ईसाईयों ने लिख लिया होता तो मुहम्मद ने क़ब्ल अज़ वक़ूअ किस अम्र की नफ़ी की बेशक वो इंजील इसी इंजील की अस्ल थी। पस साबित हो गया कि ये इंजील पहली इंजील की नक़्ल है।

रूहुल-क़ुद्दुस के हक़ में

देखो क़ुरआन में सुरह अल-सफ़ा आयत 6

وَ اِذۡ قَالَ عِیۡسَی ابۡنُ مَرۡیَمَ یٰبَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ اِنِّیۡ رَسُوۡلُ اللّٰہِ اِلَیۡکُمۡ مُّصَدِّقًا لِّمَا بَیۡنَ یَدَیَّ مِنَ التَّوۡرٰىۃِ وَ مُبَشِّرًۢا بِرَسُوۡلٍ یَّاۡتِیۡ مِنۡۢ بَعۡدِی اسۡمُہٗۤ اَحۡمَدُ

मालूम होता है कि मुहम्मद ने इस आयत में पहला हिस्सा (मत्ती 5:18) से नक़्ल कर लिया है जिसमें हमारे ख़ुदावंद ने फ़रमाया कि एक नुक़्ता या एक शोशा तौरेत का हरगिज़ ना टलेगा जब तक सब कुछ पूरा ना हो दूसरे हिस्से की निस्बत तमाम मुहम्मदी उलमा मुत्तफ़िक़ हैं कि (यूहन्ना 16:7) से ये नबुव्वत मुहम्मद के हक़ में बज़बान ख़ुदावंद मसीह मन्क़ूल हुई है। अगरचे हमारे ख़ुदावंद की मुराद इस से रूहुल-क़ुद्दुस है। पर तो भी हम मुहम्मद के इस दाअवे बातिला से एक सदाक़त हासिल कर सकते हैं कि गोया मुहम्मदियों ने ख़ुद मान लिया कि वो आयत जिस पर मुहम्मद ने (1300) बरस हुए इशारा किया अब भी तमाम इंजीलों में बजिन्स (ऐसे ही) मौजूद है। यहां इस एक दलील से दो दलीलें हाथ आती हैं। अव्वल ये कि इस आयत की क़दामत 33 ई॰ तक मुंतही है। दोम कि अगर ईसाई मुहम्मद की नबुव्वत पोशीदा करना चाहते, या उन्हें पाक कलाम में कुछ दस्त अंदाज़ी का मौक़ा मिलता तो सबसे पहले वो इसी आयत को निकला डालते और आज मुहम्मदी इतने कहने का मौक़ा ना पाते कि इंजील में मुहम्मद की ख़बर है मगर इस से साबित हो गया कि इंजील नवीसों या ईसाईयों ने कभी ऐसे काफ़िराना काम का इरादा नहीं किया इंजील जैसी की तैसी मौजूद है।

कफ़्फ़ारा की बाबत

सिर्फ यही कहना काफ़ी होगा कि जब वाक़िया सलीब साबित हुआ तो कफ़्फ़ारा इस का ज़रूरी नतीजा ख़ुद बख़ुद है।

मसीह सबकी अदालत करेगा

इस की निस्बत क़ुरआन में ज़ाहिरन किसी ख़ुसूसीयत के साथ से एतराज़ नहीं किया गया इसलिए वो इस अम्र का शाहिद नहीं हो सकता कि मुहम्मदी इस से मुन्किर हैं ताहम माअनवी तौर पर क़ुरआन की आयत जे़ल में ग़ौर करने से ये इक़्तिबास हो सकता है।

देखो सुरह क़लम की ये आयत

یَوۡمَ یُکۡشَفُ عَنۡ سَاقٍ وَّ یُدۡعَوۡنَ اِلَی السُّجُوۡدِ

“यानी ख़ुदा क़ियामत में अपनी पिंडली खोल कर दिखलाएगा।”

इस से ख़ुदा का मुजस्सम होना साबित होता है। दरहक़ीक़त इस आयत को इब्न-ए-आदम से बहुत कुछ इलाक़ा है। दरांहालेका मुहम्मदी ख़ुदा के मुजस्सम होने से सख़्त इन्कार करते हैं तो मालूम होता है कि मुहम्मद ने अगरचे इस क़ियास में धोका खाया और तख़सीस (ख़ुसूसीयत, महफूज़ करना) पिंडली से वो पाक कलाम की ताअलीम से बहुत दूर जा पड़ा। लेकिन इस क़द्र तो ज़रूर साबित होता है कि ख़ुदा के मुजस्सम होने का ख़्याल उस के दिमाग़ में इसी इंजील के मुआइना से आ गया। पस इस से भी साबित हो गया कि ये इंजील उसी इंजील की नक़्ल है जो मुहम्मद के ज़माने में मौजूद थी और जिस का असली मतलब ये है कि :-

“ख़ुदा ने जहान को ऐसा प्यार किया कि उस ने अपना इकलौता बेटा बख़्शा ताकि जो कोई उस पर ईमान लाएगा हलाक ना हो, बल्कि हमेशा की ज़िंदगी पाए।” (यूहन्ना 3:16)

अगर मसीह मुनज्जी नहीं तो और कौन?

If Jesus is not the Savior then who is?

अगर मसीह मुनज्जी नहीं तो और कौन?
By

One Disciple
एक शागिर्द
Published in Nur-i-Afshan March 12, 1889

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 12, मार्च 1889 ई॰
अज़ीज़ एक मज़्मून बउन्वां, मान मसीह को फ़र्ज़ंद ख़ुदा जान इसी पर्चे में शाएअ हुआ था, पढ़ा है तो मालूम होगा कहा इस के अंजाम में एक जुम्ला इस क़िस्म का था कि अगर मसीह की उलूहियत का क़ाइल हुआ चाहे तो ख़ुदा के हुज़ूर गिर कर रूह और रास्ती से यूं दुआ कर कि “ऐ ख़ुदावंद अगरचे ये बात सच है तो मेरे दिल को फेर” उसी तरह मैं अब फिर याद दिलाता हूँ कि अगर तू रास्त पसंद है और तुझे “ख़ुशीयों की सेरी” दरकारी तो सज्दा कर और फिर कह कि “ऐ ख़ुदावंद अगर नजात मसीह से है तो मेरे दिल को फेर।” इस राज़ अमीक़ की तह तक पहुंचने का यही तरीक़ है।

जिन बातों का ज़िक्र इस हदिये में है वह नई तो नहीं बल्कि बहुत पुरानी है। और मुझे यक़ीन है कि अक्सर तेरे मुतालऐ से गुज़र चुकी होंगी या तेरे पुंबा-दर गोश (बे-ख़बर) कानों ने किसी ना किसी मुनाद की ज़बान पर से गुज़रती सुनी होगी। लेकिन क्या मैं ये समझ कर कि ये मज़्मून मज़मूँ कहीं है ख़ामोश बैठा रहूँ और ख्व़ाब रबूदा (ग़फ़लत) को आवाज़ देकर ना जगाऊं कि नसीम (सुबह की ठंडी हवा) जागो कमर बाँधो उठाओ बिस्तर कि रात कम है।

या क्या जब तक हुस्ने लियाक़त और तेज़ी तबाअ दिखाने के लिए मन-खड़त या लोगों के कहने के मुताबिक़ अक़्ली और मंतीक़ी दलाईल नए ढंग और नई तर्ज़ पर तैयार ना कर सकूँ चुप-चाप रहूं। नहीं नहीं मैं ग़ुन्चा नहीं कि लब बंद रहूं पर मैं बुलबुल बन कर उस हमेशा बहार हक़ीक़ी गुल पर जां व दिल निसार करूँगा और जिस तरह बन पड़ेगा जान तोड़-तोड़कर भी उस की मदह-सराई करूँगा। अगरचे मेरे मज़्हब यही दावत तेरे सामने करते-करते आराम से सो गए और तू ने मानना था सो, ना माना तो भी मेरा क़लम ना रुकेगा। और मैं एक या पाँच या दस को काम में लाने से बाज़ ना आऊँगा। शायद तू जाग उठे और पोलुस सिफ़त बने और उम्मीद वासिक़ है कि अगर बरगुज़ीदा है तो एक ना एक दिन बच ही जाएगा अभी शुरू-शुरू में ये क़ुंद ज़हर सा लगता है। लेकिन अंजाम बख़ैर होगा क्योंकि तू जानता है कि कोई साईंस ऐसी नहीं जिसने बचपन के ज़माने में ठोकरें ना खाई हों। कोई ईजाद ऐसा नहीं कि जिसने दिक्कतें ना उठाई हों। उलूम फ़नून अपने-अपने वक़्त पर तेरी मुख़ालिफ़त का निशाना रह चुके हैं और तमाम मज़्हब शुरू-शुरू में बिद्अ़तों की मार सह चुके हैं लेकिन अंजाम का जिनकी तर्दीद व तर्मीम की जाती थी एक मर्तबा वही तस्लीम व तस्दीक़ को पहुंचेंगे गो झूटे थे तो क्या यही मज़्हब जो हक़ीक़त में सच्चा और रास्त है जिसके हक़ में यूं कहा है कि “दोज़ख़ का इख़्तियार इस चलेगा तेरे दिल पर तासीर पज़ीर ना होगा? मतरुक तारीख़ को पढ़ और तेरी आँखें खुल जाएँगी। तास्सुब की चर्बी जो आँखों में छाई हुई है और नुक़्सान व फ़वाइद के सोचने का मौक़ा नहीं देती बिल्कुल उठ जाएगी ये अक़्ल की पैरवी ये लकीर का फ़क़ीर होना जवाब बसीरत दिल के लिए मौत का हुक्म रखता है सरासर दूर हो जाएगा। अब ज़रा पौलुस की सवानिह उम्री पर ग़ौर कर मैं मुख़्तसरन बयान करता हूँ कि वो मसीहीय्यत के क़दीम तरक़्क़ी के सामने कैसी सख़्त सद्द-ए-राह हुआ था। आफ़्ताब सदाक़त की शआओं को लोगों पर गिरने ना देता था। मसीहीय्यत के इस्तीसाल के लिए जगह-जगह शहर-शहर फिरता था। बे-गुनाहों का ख़ून करने की इजाज़त देता था। जब ख़ुद क़ाइल हुआ तो जिसे बुरा जानता था वही भला दिखाई देने लगा। जब हक़ीक़त समझ में आ गई तब उस के मुश्तहर (ऐलान) करने कैसी-कैसी अज़ीयतें सहीं और कैसे-कैसे रंज झेले। मसीह के लिए जान को हथेली पर लिए फिरता रहा। वो ऐसे लोगों को भी ये ख़ुशख़बरी पहुंचाने से बाज़ ना आया जो शरारत और बदकारी की मदमस्ती में नसीहत को मुदाख़िलत बेजा तसव्वुर करते थे जो जवानी के दिलोलों और बेजा उमंकों के जोश से नासेह को जूता पैज़ार करना ज़रा सी तफ़रीह-ए-तबाअ ख़्याल करते थे। मुतअस्सिबों के माबूदों में जा-जा कर इंजील सुनाया, क्या मेरे दिल में यही उम्मीद है कि शायद तुझे जो पीने की मेख़ पर लात मार रहा है वही मोअस्सर सदा दी जाये कि ऐ फ़ुलां पीने की कील पर लात मारना तेरे लिए अच्छा नहीं। ये गुमान ना कर कि मैं तुझे वरग़लाता हूँ। पर मेरे दिल में मुहब्बत जोश मारती है तेरी क़ाबिल-ए-रहम हालत पर बहुत तरस आता है इसलिए जो नेअमत मुझको मुफ़्त मिली जिससे मेरी रूह को मेरी* (तसल्ली*) हासिल हुई तुझे भी दिया चाहता हूँ। मेरा और मेरे हम ख़िदमत भाईयों का हाल बईना वैसा है जैसा उस प्यासे का जिसका मुद्दत के बाद पानी मिले और वो अपने अज़ीज़ों को ख़बर दे। फ़र्ज़ कर कह अरब की रेगिस्तान में ख़त असतवा के क़रीब व जवार में ताजिरों का क़ाफ़िला प्यास के मारे मायूसी की हालत में अल-अतश अल-अतश कह-कह कर चिल्लाता हो और यके बाद दीगरे (एक के बाद एक) गिर-गिर जाता हो एक एक पानी-पानी कह कह कर बेहोशी की हालत में बुराता हो। ऐसे वक़्त में अगर किसी रफ़ीक़ को ताज़गी वो ज़िंदगी बख़्श चशमा मिल जाये तो क्या वो अपने हम राहों को जो नजात का नफ़ा नुक़्सान बे-देखे बे-तोशह बे-ज़ाइर और रहने मुल्क-ए-अदम हो रहें हैं ख़बर ना देगा कि पी लो पी लो चशमा मिल गया।

अगर हम नाक़िस ना होते तो हमारे ख़ालिक़ को हमसे हम-कलाम होने में दरेग़ ना होता लेकिन तो भी वो हम पर अपनी मर्ज़ी ज़ाहिर करता है। लेकिन एक ख़ास तरीक़ से और वो तरीक़ इल्हाम है और इल्हाम बाइबल है। बाइबल के इल्हामी होने के सबूत में तो मैं कुछ कोशिश नहीं करूँगा क्योंकि इन्हीं दिनों और इसी पर्चे में एक मुदल्लिल शख़्स जो मुझसे कहीं ज़बरदस्त[1] लिखने वाला है बाइबल के सबूत में क़लम को काम में ला रहा है उस की तहरीर को पढ़, और उम्मीद है कि ये बात समझ में आ जाएगी। पस मैं बाइबल को इल्हामी क़रार देकर आगे बढ़ता हूँ और तुझे अव्वल से आख़िर तक कहीं-कहीं बाइबल की सैर कराता हूँ। आओ पहले पेशगोई पर ग़ौर करें।

(1)
देखो ये कैसा वसीअ़ मैदान है, कैसा पुर-फ़िज़ा मकान है। सतअ़ ज़मीन पर घास किस अंदाज़ से जमी है और इस पर शबनम के क़तरे कैसे सुहाने दिखाई देते हैं गोया सब्ज़ मख़मल पर होती जड़े हैं। दरख़्त किस तर्ज़ से सर-कशीदा पहलू बह पहलू खड़े हैं। बर्ग व गुल सनअ़त एज़दी का मज़हर और हर बैल-लूटा उस की क़ुदरत कामिला और जिसको नुमाई का मंज़र हुआ है। चहार जानिब से दरिया बहते हैं और चांदी के से पानी से बाग़-ए-बहिश्त निशान को सेराब करते हैं। उन के किनारों पर हैवानात मुतलक़ आराम कर रहे हैं। गर्ग (भेड़ीया) गो सफ़ंद से हमकलाम है। आ हो और पलंग में इत्तिहाद तमाम है। बाज़, चकोर से खेलता है कबूतर खटके गरबा को देखता है। लेकिन एक मख़्लूक़ अजीब शक्ल ग़रीब सूरत नज़र आता है जिसके बशरे के शरफ़ के आसार ज़ाहिर हैं। उस की रफ़्तार गुफ़तार से अबदीयत (बंदगी) के अत्वार साद रहें सर से पांव तक इस में कोई अजीब नहीं कोई नुक़्स नहीं। वो तो ख़ुदा के नाम पर फ़िदा और उस के जलवे का शैदा नज़र आता है इस की और उस की शक्ल में बहुत कुछ मुशाबहत भी पाई जाती है लो देखो ये तो उस के (ख़ुदा के) साथ हमकलाम भी हो रहा है। लेकिन हाय ये क्या ग़ज़ब होने लगा ये क्या आफ़त मचने लगी!

एक दुश्मन पीछे खड़ा गिरा देने की सई कर रहा है पांव तले की मिट्टी निकाल रहा है। वाय क़िस्मत वो गिरा दिया।

(2)
यूं तो ज़िंदगी में तरह-तरह के हादसे वाक़िया होते रहते हैं और क़िस्म क़िस्म की तकलीफ़ें झेलने पड़ते हैं। लेकिन जो ग़म अव्वल-अव्वल अपने ज़ावबोम को छोड़ते वक़्त उठाना पड़ता है वो तल्वार की तरह कांटे और तीर की तरह छेदने वाला होता है। ख़ुसूसुन उस वक़्त जब फिर लौट कर आने अज़ीज़ों को देखने और रफीकों से मिलने की उम्मीद बिल्कुल क़तअ़ हो जाये। हाँ ऐसा ज़ख़्म है जिसका दाग़ हरगिज़ मिट नहीं सकता ये ऐसा कांटा है जो हमेशा खटकता रहता है जिसकी काविश उम्र साथ ही ख़त्म होती है हुब्ब वतन, महर वालदैन, दोस्तों की मेहनत अज़ीज़ों की उल्फ़त आदमी को रस्सी की तरह जकड़ देती है। ज़माने की गर्दिशें सहता है और कुछ पराद नहीं करता। इफ़्लास (ग़रीबी) दतनगी के तूफ़ान आते हैं और आ-आ कर ख़ूब टकराते हैं। दुश्मनों के तानों की बर्दाश्त करता है। हासिदों के हसद को उठाता है। लेकिन देख यहां एक शख़्स है जिसका मन व साल कोई पछत्तर (75) साल का होगा। वो अपनी जोरू अज़ भतीजे को लिए बाक़ी अज़ीज़ व अक़र्बा (रिश्तेदारों) को छोड़े जिस मुल्क में पैदा हुआ जिस शहर में पाला पोसा गया जहां बचपन का ज़माना ख़र्च किया कुछ हिस्सा जवानी का काटा। उस जगह से मुँह मोड़े दूसरे मुल्क को जा रहा है तास्सुफ़ और उदासी के आसार उस की सूरत पुर-अनवार पर ज़रा भी पैदा नहीं किसी तरह का ग़म और किसी क़िस्म का रंज उस के चेहरे से हुवैदा (अयाँ) नहीं। उस के दिल में एक निहायत अजीब तसल्ली है जिसके सबब से उस की सूरत बश्शाश नज़र आती है। ये शख़्स ख़ुदा का फ़रमांबर्दार है। इस का नाम इब्राहिम खलिलुल्लाह है वो तसल्ली जिसकी ख़ुशी की उम्मीद में घर-बार छोड़े जाता है ये है कि दुनिया के सब घराने तुझसे बरकत पाएँगे। क्या इब्राहिम से? नहीं पर उस की नस्ल से। और वो नस्ल मसीह ऐसी है। क्या यही वाअदे का फ़र्ज़ंद है? हाँ ये वही नस्ल है जिसकी बाबत और पढ़ आया है। इब्राहिम नेक आदमी तो था लेकिन बज़ात इस लायक़ ना था कि वह इस क़िस्म की, की बरकत देता कि हम बच जाते। ये ख़ुदावंद मसीह ही है जिसके तुफ़ैल से कौमें बरकत पर बरकत पाई हैं। यही मुबारक नाम जिसकी बरकत से वहशी आदमी, दीवाना होशयार, बेअक़्ल अक़्लमंद हो जाते हैं। ये भूके लिए रोटी, पियासे के लिए पानी, नादाँ के लिए दानाई कौर चशम के लिए बीनाई है। ज़रा लगे हाथ यूरोप और अमरीका के मुल्कों को, एशिया और अफ्रीका के मुल्कों से मुक़ाबला करके देख लें कि क्या फ़र्क़ है।

कि उन क़ौमों को किस क़द्र तरक़्क़ी और बरकत हाथ आई और किस क़द्र अफ़्रीक़ा और एशिया की क़ौमों पर व फ़ौक़ियत पाई। यही अंग्रेज़ जो अब मुल्कों पर हुकमरान हैं। जिनकी उलूम व फ़नून को कौमें आँखों से लगाती हैं। जिनके ईजादों से सद-हा लोग मुस्तफ़ीज़ होते वो मसीह को क़ुबूल करने से पहले क्या थे। अमरीका जो अब से क़रीब चार-सौ साल विवर नामालूम था। जिसमें वहशियों का दौर-दौरा था। जिसमें अंधेरा राज करता था। वही अब ऐसे-ऐसे अजाइबात पैदा कर रहा है जो हमारे बाप दादों ने ना कभी देखे और ना कभी सुने थे। दूर ना जा घर ही में देख कि आज के हिन्दुस्तान और मुसलमानों के ओहदे सल्तनत के हिन्दुस्तान में क्या फ़र्क़ है। आ तू भी इसी चश्मे से और आसूदा हो।

(3)
इन पैशन गोइयों की सदाक़त तब समझ में आती है जब हम ये देखते हैं कि अक्सर उन में से पूरी हो चुकी हैं मसलन याक़ूब जब उस की मुसाफ़िरत के दिन पूरे हो चुके और वो आलम-ए-बक़ा को रहलत करने के नज़्दीक पहुंचा तब अपने बेटों को बरकत देते वक़्त यहूदा की तरफ़ जिसकी नस्ल में मसीह पैदा हुआ मुख़ातब हो कर यूं कहा है तेरे भाई तेरी मदह करेंगे तेरे बाप की औलाद तेरे हुज़ूर झुकेगी यहूदा शेर बब्बर का बच्चा बल्कि पुराने शेर बब्बर की मानिंद झुकता और बैठता है यहूदा से रियासत का असा जुदा ना होगा हाकिम उस के पांव के दर्मियान से जाता ना रहेगा जब तक सैला ना आए और कौमें उस के सामने इकट्ठी होंगी।

अक्सर लोग यहूदा के नाम से वाक़िफ़ भी नहीं मदह-सराई करना बर सिर्फ इस यहूदा से मुराद ख़ुदावंद मसीह है जिसके सामने कौमें सज्दा करती हैं। वो क़ौम जो गैर कोम से नफ़रत करती थी जिसके क़ानून और इंतिज़ाम मुल्की नज़्म व नसक़ दूसरे मुल्कों से कुछ भी मुशाबेह ना थे जो ग़ैरों के साथ कुछ ताल्लुक़ कुछ रिश्ता ना रखती थी। सेला यानी मसीह के आने पर और इस को रद्द करने की एवज़ कैसी तितर-बितर हो गई उनका क़ौमी जत्था टूट गया। मुल़्क उन से छूट गया। लेकिन मसीह के हुज़ूर दुनिया की कौमें सज्दा करती हैं।

(4)
ख़ुदावंद ख़ुदा ख़ुदावंद मसीह की आमद की ख़बर हज़रत मूसा यूं देते हैं, “मैं उन के लिए उन के भाईयों में से तुझ सा एक नबी बरपा करुंगा और अपना कलाम उस के मुँह में डालूँगा और कुछ मैं उसे फ़र्माऊँगा वो सब उन से कहेगा और ऐसा होगा कि जो कोई बातों को जिन्हें वो मेरा नाम लेके कहेगा ना सुनेगा तो मैं उस का हिसाब उस से लूँगा।” ये पैशन गोई भी ख़ुदावंद मसीह के हक़ में है। गोया जिस तरह हज़रत मूसा बनी-इस्राईल को फ़िरऔन की असीरी से निकाल लाए इस तरह ख़ुदावंद मसीह गुनाहगारों को शैतान की क़ैद से रिहाई बख़्शता है। ख़ुदावंद मसीह सिर्फ ख़ास इसी बात में मूसा की तरह है वर्ना पौलुस इल्हाम की हिदायत से यूं कहता है कि मूसा को इख़्तियार कुल ना था पर मसीह को इख़्तियार कुल है। क्योंकि मूसा दयानतदार नौकर था लेकिन मसीह बाप यानी ख़ुदा का बेटा और घर का मालिक है क्या तू इन बातों को जो वो कहता है ना सुनेगा। देख इस का हिसाब तुझसे लिया जाएगा।

(5)
हज़रत दाऊद यूं कहते हैं :-

कौमें किस लिए जोश में हैं और लोग बातिल ख़्याल करते हैं ज़मीन के बादशाह सामना करते हैं और सरदार आपस में ख़ुदावंद के और उस के मसीह के मुख़ालिफ़ मंसूबे बाँधे हैं आओ हम उन के बंद खोल डालें और उन की रस्सी अपने से तोड़ फैंके वो जो आस्मान पर तख़्त नशीन है हँसेगा और ख़ुदावंद उन्हें ठट्ठों में उड़ाएगा तब वो ग़ुस्से में उन से बातें करेगा और निहायत बेज़ार हो के उन्हें परेशानी में डालेगा। “मैंने तो अपने बादशाह को कोहे-मुक़द्दस सीहोन पर बिठाया है मैं हुक्म को आशकार करूँगा कि ख़ुदावंद ने मेरे हक़ में फ़रमाया तू मेरा बेटा है मैं आज के दिन तेरा बाप हुआ। मुझसे मांग कि मैं तुझे क़ौमों का वारिस करूँगा। और मैं सरासर ज़मीन तेरे क़ब्ज़े में कर दूँगा। तू लोहे के असा तोड़ लेगा। कुम्हार के बर्तन कि तरह इन्हें चकना-चूर करिगा। पस अब बादशाह होशयार हो ऐ ज़मीन के अदालत करने वालों तर्बीयत लो। डरते हुए ख़ुदावंद की बंदगी करो और काँपते हुए ख़ुशी करो। बेटे को चूमो ता ना हो कि वो बैज़ार हो और तुम राह में हलाक हो जाओ। जब उस का क़हर यका-य़क भड़के मुबारक वो सब जिसका तवक्कुल उस पर है।” अज़ीज़ो मैं अब बंद करता हूँ। यहां तक हम देख चुके हैं दूसरे पर्चे में यहां से शुरू करेंगे।

[1] ये सिर्फ़ आप का हुस्न जन और आप कि कसिर नफ्सी है। एडीडर

दुनिया के बड़े आलिमों ने बाइबल की निस्बत क्या गवाही दी

The world’s greatest scholars and the Bible?

दुनिया के बड़े आलिमों ने बाइबल की निस्बत क्या गवाही दी
By

Faitah Masih
फ़त्ह मसीह
Published in Nur-i-Afshan September 29, 1887

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 7, नवम्बर 1887 ई॰
दुनिया के बड़े आलिमों ने बाइबल की निस्बत क्या गवाही दी है जो लोग बाइबल को बग़ौर पढ़ते हैं उन के सामने बाइबल अपनी सच्चाई की गवाही ऐसे मज़्बूत दलाईल से पेश करती है कि उनको उस के हक़ समझने में कुछ उज़्र बाक़ी नहीं रहता। लिहाज़ा उनके लिए दुनिया के बड़े आलिमों की गवाही कुछ ज़रूरी भी नहीं? मगर हज़ारहा ऐसे आदमी हैं जो कि बाइबल को ना तो ग़ौर से पढ़ते और ना इसे सुनना चाहते ये ख़्याल कर के कि इस में बज़ातिय है कुछ ख़ूबी नहीं है और या ये समझते हैं कि और मज़हबी कुतुब के मुवाफ़िक़ ये भी एक किताब है और बस। ग़रज़ ऐसे साहिबान के रूबरू दुनिया के बड़े आलिमों की गवाही जो उन्होंने बेग़र्ज़ाना तरीक़े से दी। पेश करनी अबस ना होगी। वहुवा-हज़ा।

फ़रानसन बेकन फिलासफरों का पेशवा फ़रमाता है :-
तेरी ख़ल्क़त के दफ़्तर का मैंने मुतालआ किया लेकिन ज़्यादा तेरे नविश्तों का मैं तुझे दरियाओं मैदानों और बाग़ों में तलाश करता रहा लेकिन मैंने तुझे तेरी ही हैकल में पाया।

सल्डन जो कि इंग्लिस्तान का ताज कहलाता है :-

कोई किताब ऐसी नहीं है जिस पर तकिया कर के आराम से अपनी जान दे सकें, मगर बाइबल।

मिल्टन एक निहायत मशहूर शायर :-

कोई गीत सीहोन के गीतों के बराबर नहीं कोई फ़साहत नबियों की फ़साहत के मुक़ाबिल नहीं और कोई पोलिटिक्स ऐसा है जैसा पाक नविश्ते हैं।

लॉक जो निहायत अमीक़ सोचने वाला था :-

उस से सवाल किया गया कि सबसे आसान और यक़ीनी तरीक़ा ईसाई मज़्हब के इल्म के हासिल करने का क्या है। उसने जवाब दिया, पाक नविश्तों का मुतालआ करो। ख़ासकर नए अह्दनामे का इसलिए कि इस में हमेशा की ज़िंदगी बख़्श कलाम है इस का मुसन्निफ़ ख़ुदा है। इस का मक़्सद नजात और इस का मज़्मून ख़ालिस सच्चाई है।

सर आइज़क न्यूटन जो इल्म-ए-रियाजी़ में यकता था :-
हम एक पाक नविश्तों को सबसे ज़्यादा अमीक़ और दकी़क़ फ़िलोसफ़ी समझते हैं। जिस क़द्र बाइबल के मोअतबर होने का सबूत मिलता है इस क़द्र और किसी दुनियावी तवारीख़ का नहीं मिलता।

समुएल जॉनसन ने :-

अपनी ज़िंदगी के आख़िर में एक नौजवान को कहा। सच जान कि मैं अभी अपने ख़ालिक़ के हुज़ूर जाने वाला हूँ और तुझे ये सलाह देता हूँ कि वो रोज़मर्रा ज़िंदगी-भर बाइबल को पढ़ा कर।

कोपर एक अंग्रेजी शायर :-

पाक नविश्तों में एक तजल्ली है जो सूरज की रोशनी के मुवाफ़िक़ चमकती है और उस ने हर ज़माने के लोगों को मुनव्वर किया है लेकिन ख़ुद किसी से मुनव्वर नहीं की गई।

सर विलियम जोंस जो कि मशरिक़ी उलूम का फ़ाज़िल था :-

मैंने मुतवात्तिर बाइबल को पढ़ा और इस की बाबत मेरी ये राय है कि अगर इस को इल्हामी ना समझा जाये तो भी इस में लताफ़त (मज़ा, उम्दगी, ख़ूबसूरती) और ख़ूबी, पाकीज़ा अख़्लाक़ी ताअलीम और मोअतबर तवारीख़ और लतीफ़ नज़्म और फ़साहत ऐसी पाई जाती है कि और किसी ज़बान की किसी किताब में नहीं है।

रूसो[1] एक फ्रांसी मुसन्निफ़ :-

अगर सारी फ़िलोसफ़ी की किताबों को पढ़ो तो मालूम करोगे कि वो बावजूद अपनी फ़साहत और बलाग़त के नविश्तों के सामने हक़ीर व ज़लील हैं।

नेपोलीन बोना पार्ट फ़्रांस का मशहूर बादशाह :-

बाइबल एक कामिल सिलसिला वाक़ियात का और तवारीख़ी आदमीयों का है। इस से ज़माना-ए-हाल और आइन्दा के ऐसे भेद खुल जाते हैं कि वैसे और किसी दीन से नहीं खुलते जो कुछ इस में है वो बुलंद व बाला और ख़ुदा के लायक़ है ये लासानी किताब है। सिवाए ख़ुदा के और कौन ऐसे नए और लासानी ख़यालात पैदा कर सकता है।

कोलरेज मशहूर शायर :-

सूलीज़ शैन साइंस और क़ानून बाइबल के साथ साया की मानिंद रहा यानी अख़्लाक़ी और इल्मी तरक़्क़ी उन्हीं ममालिक में हुई जहां बाइबल पहुंची। इस ने हमेशा तरक़्क़ी को सहारा दिया और इस की राहनुमा रही। नेक लोगों और सबसे दाना लोगों और सबसे बड़े शाहंशाहों ने इक़रार किया है कि इस की तासीर पाक इन्सानियत को पैदा करने के लिए कामिल आला है।

अर्थर हालम मशहूर मुअर्रिख़ का बेटा :-

मैं बाइबल को ख़ुदा की किताब मानता हूँ इसलिए कि ये इन्सान की किताब है। ये इन्सान के दिल की हर हालत के लिए मुफ़ीद है।

उम्मीद है कि नाज़रीन इन गवाहों की गवाही[2] पर ग़ौर फ़र्माकर ख़ुद बाइबल को आज़माऐंगे और मालूम करेंगे ये ऐसी किताब है जिसके वसीले से पाक इन्सानियत ख़ुदा की हुज़ूरी के लायक़ गुनाहगार इन्सान में पैदा होती है।

[1] ये एक बे-दीन शख्श था उस ने एक और मुक़ाम पर लिखा है, सुकरात फिलासफरों की मौत मिरालीकिन मसीह की मौत इब्ने-अल्लाह के मुवाफ़िक़ है।

[2] ये गवाहीयां प्रोग्रेस से तर्जुमा कर के लिखी गई है।

राह-ए-निजात

The Way of Salvation

राह-ए-निजात
By

One Disciple
एक शागिर्द
Published in Nur-i-Afshan August 22, 1889

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 22, अगस्त 1889 ई॰
जब हम इस बात को सोचते हैं कि एक ख़ुदा के हुज़ूर रसाई पाने के वास्ते लोगों ने अनेक (बेशुमार) मज़ाहिब ईजाद किए और बेशुमार अदयान (दीन की जमा) जारी किए तो हमको सख़्त हैरानी है किसी ने नजात का तरीक़ा पुण्य-दान, यात्रा वग़ैरह बताया या किसी ने रोज़ा, नमाज़ वग़ैरह ठहराया कोई तारीक-उल-दुनिया होना सबसे उम्दा तरीक़ा बताता है। कोई पूजा-पाट को काफ़ी कह सुनाता है मगर ख़ुलासा इन सब का इन चंद अल्फ़ाज़ में निकल आता है कि जो नेकी करता है वही अज़ाब अबदी से अपने आपको बचाता है ना मालूम इन फ़र्ज़ी हादियों की जिन्हों ने नजात की ये ताअलीम दी गुनाह की ख़ासीयत मालूम ना थी कि उन्हों ने सिर्फ ज़बानी जमा ख़र्च पर काम चलाया और गुनाह की अथाह समुंद्र से निकलने का कोई उम्दा तरीक़ा बताया क्या हम ऐसे आदमी की अक़्ल पर अफ़्सोस का इज़्हार ना करेंगे जो किसी ऐसे शख़्स को जो अथाह समुंद्र में ग़र्क़ हो रहा है किनारे पर खड़ा यूँ पुकारे कि तुम तैरना सीखो और फिर तैर कर निकल आओ क्या उस वक़्त उस को ये करना (अगर वो कर सके) मुनासिब ना होगा कि लपक कर उस की दस्त-गीरी करे ये करना मुनासिब बल्कि अंसब (ज़्यादा मुनासिब) है मगर अफ़्सोस की जाए कि सब फ़र्ज़ी हादयान दीन यही पुकारते गए कि गुनाह के समुंद्र से तैर कर बचोगे। मगर वह मदद का हाथ किसी ने ना बढ़ाया सिर्फ एक ही शख़्स इस क़ाबिल ठहरा जो कि पुकार-पुकार कर यूं कह रहा है, “ऐ गुनाह के तले दबे हुए लोगो मैं तुम्हें आराम देता हूँ।” (मत्ती 11:28) “ऐ गुमराहो मैं तुम्हें राह-ए-रास्त पर लाने को तैयार हूँ बशर्ते के तुम आना चाहो और वो शख़्स यसूअ मसीह है।”

क़रीबन सब मज़ाहिब के लोग ये मानते हैं कि ख़ुदा ने अव्वल इन्सान को बेगुनाह पैदा किया और कि एक गुनाह के सरज़द होने से आदमी जहन्नम का वारिस क़रार दिया गया। पस अगर एक गुनाह की इतनी सज़ा ठहरी तो कब मुम्किन है कि हम बेशुमार गुनाह करते हैं अपने दिल में नजात की उम्मीद रखें अगर कोई शख़्स बावजूद इन दो बातों के जानने के कि एक गुनाह से आदमी जहन्नम के लायक़ ठहरा और ये कि मैंने बेशुमार गुनाह किए हैं फिर भी नजात का उम्मीदवार रहे तो क्या ऐसा शख़्स बईद-अज़-अक़्ल (अक़्ल की हद से दूर) ना समझा जाएगा। मगर अफ़्सोस सद-अफ़्सोस कि लाख बल्कि करोड़ों आदमी ऐसे पाए जाते हैं जो इस बात के मिस्दाक़ हैं हम ऐसे शख्सों को ये सलाह देते हैं कि उस हादी से नजात की दरख़्वास्त करें जो कहता है कि जो मेरे पास आता है मैं उसे हरगिज़ निकाल ना दूँगा और वो यसूअ मसीह है।

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एक एतराज़ का जवाब

The Reply to the Objection on the Atonement

एक एतराज़ का जवाब
By

Nasir
नासिर
Published in Nur-i-Afshan October 31, 1886

नूर-अफ़शाँ अक्टूबर 1886 ई॰
उमूमन मसीही मज़्हब के ख़िलाफ़ यह एतराज़ पेश किया जाता है कि चूँकि मसीह के गुनाहों कफ़्फ़ारा हुआ इसलिए मसीहीयों को गुनाह करने की इजाज़त मिल गई है, या यूं कहें कि मसीही जिस क़द्र गुनाह चाहे करें, मसीह के कफ़्फ़ारे के सबब बख़्शे जाऐंगे। ऐसे मोअतरिज़ बाइबल के उसूल से नावाक़िफ़ होने के बाइस ग़लती करते हैं। वाज़ेह हो की कोई एतराज़ मसीही मज़्हब के ख़िलाफ़ नया नहीं। इब्तदा-ए-तवारीख़ में मुख़ालिफ़ों ने वो सख़्त एतराज़ किए हैं कि आजकल के बड़े-बड़े नुक्ता चीनीयों के ख़्याल में भी नहीं आए। इस पर भी इस ज़माने के बाअज़ कोताह-बीन (तंगनज़र) पुराने मुर्दे उखाड़ते और उन को नए लिबास में पेश करने पर अकड़ते हैं। मसीही मज़्हब के ख़िलाफ़ चंद सुने सुनाए एतराज़ करके जोहला के सामने अपनी लियाक़त का नक़्क़ारा बजाते (ढोल पीटना, ऐलान करना) हैं। मज़्कूर बाला एतराज़ भी उन्ही क़दीम एतराज़ों में से है। चुनान्चे पौलुस हवारी शहर रोम के मसीहीयों की तरफ़ ख़त में भी सवाल दूसरे अल्फ़ाज़ में यूं अदा करता है कि :-

“क्या हम गुनाह करें, इसलिए कि हम शरीअत के इख़्तियार में नहीं बल्कि फ़ज़्ल के इख़्तियार में हैं?”

और इस एतराज़ का जवाब भी रसूल मज़्कूर ने इसी बाब में तहरीर किया है। जो चाहे रोमीयों के नाम के ख़त का छटा बाब ग़ौर से पढ़ कर देखे।

इस एतराज़ से ये साबित होता है कि मोअतरिज़ (एतराज़ करने वाला) ख़ुद नहीं समझता कि क्या एतराज़ कर रहा है क्योंकि जो शख़्स गुनाह की नजासत से नावाक़िफ़ और गुनाहों की मग़फ़िरत की निस्बत इंतिज़ाम एज़दी (ज़्यादती) का इल्म नहीं रखता वही इस क़िस्म के कलिमात ज़बान पर लाएगा। शायद बेजा ना होगा कि ऐसों की ख़ातिर यहां चंद अल्फ़ाज़ इस ताल्लुक़ की निस्बत लिखे जाएं जो मसीही का मसीह के साथ होता है। लेकिन याद रहे कि ये मुआमलात रुहानी आलम से मुताल्लिक़ हैं और उन लोगों की समझ में हज़गिज़ नहीं आ सकते जो दीनी अश्या के हलक़ा के बाहर निगाह नहीं दौड़ा सकते। ऐसों के सामने रुहानी आलम की बातें बेवक़ूफ़ीयाँ हैं। दुनिया में हर एक इस उसूल को तस्लीम करेगा कि अच्छा दरख़्त अच्छे फल लाता और बुरा दरख़्त बुरे फल ला सकता है या दूसरे अल्फ़ाज़ में अगर सर में ज़ईफ़ हो तो सारा जिस्म ज़ईफ़ होगा। इस ख़्याल को मद्द-ए-नज़र रखकर ज़रा आगे चलें। जब आदम दिल जो तमाम ख़ल्क़त का सर था ख़ुदा की ना-फ़र्मानी से गुनाहगार ठहरा तो उस के बाइस उस की नस्ल और उस के तमाम मुताल्लिक़ीन पर एक क़िस्म का ज़ईफ़ तारी हो गया। ज़मीन आदम के सबब मलऊन हो गई। बनी-आदम का बिगाड़ देखने के लिए बहुत ग़ौरो-फ़िक्र की ज़रूरत नहीं ये अज़हर मिनश शम्स (रोज़-ए-रोशन की तरह अयाँ) है। अगर यह मुम्किन हो कि हम आदम अव़्वल से ताल्लुक़ रख कर गुनाहगार हो तो क्या ये नामुम्किन है कि किसी ऐसे आदम-ए-सानी से मुताल्लिक़ हो कर जो कामिल रास्तबाज़ हो हम रास्तबाज़ ठहरें? क्या नामुम्किन है कि, “जैसा एक ख़ता के वसीले सब आदमीयों पर सज़ा का हुक्म हुआ वैसा ही एक रास्तबाज़ी के वसीले सब आदमी रास्तबाज़ ठहर के ज़िंदगी पाएं, क्योंकि जैसे एक शख़्स की नाफ़रमांबरदारी के वसीले बहुत लोग गुनाहगार ठहरे वैसे ही एक फ़रमांबर्दारी के वसीले बहुत लोग रास्तबाज़ ठहरेंगे।” (रोमीयों 5:18-19)

जैसा कि जिस्मानी आलम में पैदाइश है वैसा ही रुहानी आलम में भी है। जिसको रूहुल-क़ुद्दुस से सर-ए-नौ पैदा होना कहा गया है। जैसा बच्चा का पैदा होना कोई इल्में-ए-ईलाही का मसअला नहीं बल्कि एक अम्र वाक़ई है। वैसा ही सर-ए-नौ पैदा होना भी कोई इल्म-ए-ईलाही का मसअला या बह्स तलब अम्र नहीं है। इस नौ (नई) पैदाईश से इन्सान एक ऐसे बदन का अज़ू बन जाता है जिसका सर मसीह है। ज़िंदगी की हरकात किस में नुमायां होती है। इस ताल्लुक़ को हमारे ख़ुदावंद ने दूसरे अल्फ़ाज़ में अंगूर की मिसाल से अदा किया। चुनान्चे वो फ़रमाता है कि, “अंगूर का दरख़्त मैं हूँ, तुम डालियां हो। वो जो मुझ में क़ायम होता है और मैं उस में वही बहुत मेवा लाता है क्योंकि मुझसे जुदा हो कर तुम कुछ नहीं कर सकते।” ग़रज़ इन्सान मसीह में पैवंद हो कर नई ज़िंदगी हासिल करता है। वही इस जो जड़ में है शाख़ में भी दौरान करता है। और फिर जैसा कि शाख़ को मेवा लाने के लिए किसी क़िस्म की कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि दरख़्त में क़ायम रहना ही शर्त है। वैसा ही इन्सान अपनी मर्ज़ी को ख़ुदा की मर्ज़ी के ताबे कर के ईमान से इस में क़ायम रह कर बहुत फल लाता है। पर फल वही हैं जिनको उमूमन नेकियां कहते हैं। और जिनको पौलुस अस्ल रूह का फल कहता है चुनान्चे वो फ़रमाता है कि,

“रूह का फल जो है सो मुहब्बत, ख़ुशी, सलामती, सब्र, ख़ैरख़्वाही, नेकी, ईमानदारी, फ़िरोतनी, परहेज़गारी है।”

हासिल कलाम जों-जों इन्सान मसीह में शामिल होता जाता है उसी क़द्र उस की ख़्वाहिश या ख़ुशी गुनाह में नहीं होती। मसीह ने ना फ़क़त हमारे गुज़शता गुनाहों की माफ़ी के लिए कफ़्फ़ारा दिया है बल्कि जो शख़्स ईमान के ज़रीये अपने तईं उस के ताबे कर देता है आइंदा के लिए गुनाह के इख़्तियार से भी रिहाई पाता है। चुनान्चे लिखा है कि, “तुम गुनाह से छूटकर रास्तबाज़ी के ग़ुलाम बने।” तुम (अपने) आपको गुनाह की निस्बत मुर्दा पर ख़ुदा की निस्बत हमारे ख़ुदावंद यसूअ मसीह के वसीले ज़िंदा समझो।” और कि, गुनाह तुम्हारे फ़ानी जिस्म पर सल्तनत ना करे।” अब इस सदाक़त के सामने वो एतराज़ कहाँ रहा। इस अजीब रोशनी के सामने उस की पेचीदगी हल हो गई।

ऐ नाज़रीन ! ये मुबारक तजुर्बा मेरे और तुम्हारे लिए है और ख़ुदा अपनी बरकतें मुफ़्त देता है। देखो अब क़बूलीयत का वक़्त है देखो अब नजात का दिन है।

अवतार

The Reincarnation

अवतार
By

Rev.P.C Uppal
पादरी पी॰ सी॰ ऊपल-अज़
Published in Nur-i-Afshan September 05, 1886

नूर-अफ़शाँ मतबूआ 5, सितंबर 1886 ई॰
तनासुख़ (एक सूरत से दूसरी सूरत इख़्तियार करना) यानी चौरासी जीवन या आवागवन (हिंदूओं के एतिक़ाद के मुताबिक़ बार-बार मरने और जन्म लेने का सिलसिला)

तनासुख़ यानी आवागवन किसे कहते हैं? इन्सान की रूह का अपने क़ालिब या बदन से निकल कर दूसरे क़ालिब या बदन में जाने को तनासुख़ यानी आवागवन कहते हैं और ये इन्सान की मौत के वक़्त वक़ूअ है।

अहले हनूद (हिंदू की जमअ़) और अहले-बुद्ध के सिवा इस मसअले को और कोई क़ौम या अहले मज़्हब नहीं मानते। अहले बुद्ध चूँकि हमारे मुल्क हिन्दुस्तान में नहीं और ना हम इस मज़्हब से काफ़ी इल्म रखते हैं और चूँकि इस मसअले के हुस्न व क़बाहत (बुराई, नुक़्स) दोनों मज़्हबों से मुताल्लिक़ हैं हम फ़क़त हिंदूओं पर किफ़ायत करेंगे। पण्डित दयानंद साहब की तशरीफ़ आवरी से पेशतर हम सुनते थे कि जब आदमी मर जाता है उस की रूह बमूजब अपने आमाल के किसी ना किसी हैवान के जिस्म को इख़्तियार कर लेती है। ख़्वाह वो जिस्म इन्सान का हो या हैवान का मुतलक़ का यहां तक कि मेले और गंदगी के कीड़े के जिस्म को भी इख़्तियार करती है और चोरासी लाख या कम या ज़्यादा जीवन के बाद फिर आदमी बनता है। अलबत्ता नेक लोगों को इन्सान और अच्छे पाकीज़ा जानवरों का जिस्म मिलता है और बद-किरदार शरीरों को बुरे और गंदे नापाक जानवरों का ये अक़ीदा हिन्दुस्तान के तमाम अहले हनूद में मुरव्वज (राइज) है। बल्कि अक्सर आर्य लोग भी इस को इसी तरह मानते हैं मगर बाअज़ आर्य अपनी सहूलियत के वास्ते यूं कहते कि :-

“आदमी की रूह किसी जानवर के जिस्म में नहीं बल्कि फिर इन्सान के बदन में इंतिक़ाल करती है नेकों, ख़ुदा-परस्तों की रूह आराम में और बदों, अज्ञानियों की मुसीबत और अज्ञान में रहती है।”

ये मसअला तनासुख़ ना सिर्फ पुराणों और शास्त्रों में जिनको पण्डित दयानंद साहब और अक्सर आर्य लोग ब्रह्मणों की साख़त बतलाते हैं मुंदरज है बल्कि ख़ास वेदों में मौजूद है। हमने ख़ुद पण्डित साहब से इस मसअले के बारे में बह्स मुबाहिसा किया है वो इस के पूरे मुअतक़िद (अक़ीदतमंद, पैरौ) थे। हमें ज़रा भी शक नहीं कि कोई हिंदू ख़्वाह पुराने फ़ैशन के ब्रह्मणों का मुअतक़िद (अक़ीदतमंद) हो या नए फ़ैशन के पण्डित साहब का इस अक़ीदे से इन्कार करेगा। बल्कि सब के सब इस पर मुत्तफ़िक़ हैं कि तनासुख़ का मसअला शास्त्रों पुराणों और ख़ास वेदों में मौजूद है।

जब हम सवाल करते हैं कि तनासुख़ की ग़र्ज़ क्या है सब पुराने और नए फ़ैशन के हिंदू हम-आवाज़ हो कर जवाब देते हैं कि इन्सान के कामों की सज़ा और जज़ा इससे हासिल और मुराद है यानी शरीरों को सज़ा और नेकों को जज़ा। जब कोई नेक ख़ुदा-परस्त आदमी मर गया उस को अच्छे इन्सान या पाकीज़ा हैवान-ए-मुत्लक़ का जिस्म मिला यानी या तो वह ज्ञान वाला ब्राह्मण या गाय बैल बना। हम उस ब्राह्मण से पूछते हैं भाई तू बता कि तू ब्राह्मण क्यों बना और तेरे कौनसे कामों का फल तुझको मिला। तू अपने पहले जन्म की कुछ ख़बर दे सकता है? वो कुछ जवाब नहीं दे सकता। गाय बैल से दर्याफ़्त करने की हाजत नहीं कि हैवान-ए-मुत्लक़ हैं ना हैवान-ए-नातिक़ (बोलने वाला) और सज़ा और जज़ा समझदार को उस के क़ाबिल होने पर दी जाती है कि एक से दुख पाए और दूसरे से आराम कि ये उस के कामों का समरा (फल) है। शीरख़्वार (दूध पीता बच्चा) जब अपने वालिद की दाढ़ी पकड़ लेता, या पागल बेहोश आदमी लोगों को गालियां देता और पत्थर मारता है तो उनको सज़ा नहीं दी जाती बल्कि उन को ऐसी हरकात से बाज़ रखने के लिए तदारुक (चारह, ईलाज) किया जाता है। जब ब्राह्मण और गाय बैल मुदल्लिल और माक़ूल जवाब नहीं देते कि हमारे फ़लां-फ़लां कामों का समरा (फल) है कि हम ऐसा जन्म रखते हैं तो सालिम अक़्ल फ़त्वा देती है कि ये बात सच नहीं कि वो पहले जन्म के नेक कामों के सबब इसलिए पुरतर यानी पाक जानदार पैदा हुए।

बफ़र्ज़ मुहाल अगर हम मान लें कि जज़ा और सज़ा की ख़ातिर नेकों को अच्छा और बदों को बुरा जन्म मिलता है तो एक और मुश्किल दरपेश है कि ये जज़ा और सज़ा अच्छा जन्म और बुरा जन्म इन्सान के नज़्दीक मालूम होता है। अस्ल हैं तो ऐसा नहीं है। मिहतर (बुज़ुर्ग) आपको ब्राह्मण से हरगिज़ कम नहीं समझता और अपनी हालत में मस्त और ख़ुश रहता है। बल्कि हैवानात मुतलक़ भी अपनी-अपनी हालतों में निहायत ख़ुश हैं वह अपनी हालत को मुसीबत नहीं समझते। मेले का कीड़ा भी मेला खा के ख़ुश होता है। सब अपनी-अपनी हालत में ख़ुश हैं अगर ये कहा जाये कि इन्सान में क़िस्म-क़िस्म के दर्जे हैं। कोई अमीर है और कोई ग़रीब एक ऐश करता और दूसरा मुसीबत में रहता हैं। ये भी ग़लती है क्योंकि जिनको हम आराम में समझते हैं हक़ीक़त में बड़े दुखी होते कभी ऐसा होता है कि ग़रीब मुफ़्लिस किसान, बादशाह से भी ज़्यादा ख़ुश होता कि बादशाह को बेशुमार फ़िक्र और अंदेशे बे-आराम करते हैं और वो कभी सुख और चैन से नहीं सोता और ग़रीब किसान सूखी फीकी रोटी खा कर और ठंडा पानी पी कर अपनी जोरू और बाल -बच्चों के पास आराम से सोता और कोई बुरा ख्व़ाब भी इस को दिक़ नहीं करता। अच्छा भाई, किस को आराम में और किस को दुख में कहोगे, अगर किसी को आराम में बरअक्स इस के समझें तो ठीक नहीं है इस से यही साबित हुआ कि ब्राह्मण और गाय बैल का जन्म उन को उन के पहले जन्म के बाइस नहीं मिला। क्योंकि दलील माक़ूल मादूम (नापैद, नाबूद, फ़ना किया गया) है।

एक और बात का ज़िक्र करना निहायत मुनासिब मालूम होता है कि जज़ा और सज़ा इस ग़रज़ से दी जाती है कि जज़ा पाने वाला अपने कामों का फल देखकर ख़ुश हुआ व नेकी में तरक़्क़ी करे, दूसरों के लिए तर्ग़ीब का बाइस हो, और सज़ा पाने वाला अपने बुरे कामों से बाज़ आए और दूसरों के लिए बाइस इबरत हो। अच्छा भाई अगर नेक मर्द मर कर ब्राह्मण या क्षत्रिय या कोई पाकीज़ा जानवर बना तो जज़ा की ग़रज़ पूरी नहीं हुई क्योंकि तजुर्बे से मालूम है कि ब्राह्मण क्षत्रिय और लोगों की निस्बत नेकी और पाकीज़गी में ज़्यादा तरक्क़ी नहीं करते बल्कि कभी कभी देखा गया है कि मेंहतर (नीच तबक़े के लोग) ज़्यादा ख़ुदा-तरस और आजिज़ और फ़रोतन होते हैं अलबत्ता ब्राह्मण और क्षत्रिय लोग दुनियावी बातों में तो तरक़्क़ी करते हैं मगर ख़ुदा तरसी, ख़ैरख़्वाही, हलीमी, फ़िरोतनी में किसी से ज़्यादा नहीं बल्कि ग़रूर और तकब्बुर से पुर होते और दूसरों को हक़ीर और नीच जानते हैं और गाय बैल और किसी पाकीज़ा जानवर का ज़िक्र करना फ़ुज़ूल है। क्योंकि वो तरक़्क़ी करने का माद्दा भी नहीं रखते। बरअक्स उस के जब शरीर मरा तो उस को बड़े नीच आदमी या ना पाक जानवर का जिस्म मिला भला वह कब बदी से बाज़ आएगा वो तो शरीरों के साथ रह के कि ऐसे ही उस के साथी होंगे ज़्यादा शरारत करेगा और हर जन्म में बदतर जन्म इख़्तियार करेगा और उस की सज़ा से दूसरों को इबरत कहाँ हुई क्योंकि दूसरे तो जानते ही नहीं कि वो क्यों ऐसा शरीर बना, [1] ना पाक जानवर आया बदी से बाज़ रहेगा या नहीं और दूसरों को उस से इबरत होगी या नहीं ये हम आपके इन्साफ़ पर छोड़ते हैं। हम तो बार-बार कह चुके हैं कि वो नातिक़ ना होने के बाइस ना तरक़्क़ी कर सकते और ना शरारत से बाज़ रह सकते और ना दूसरों की इबरत का बाइस हो सकते हैं। जब आदमी अपने बद कामों के सबब शरीर और नीच पैदा हुआ या किसी नापाक जानवर का जिस्म उस को मिला तो पहली हालत में अग़्लब (यक़ीनी, मुम्किन) है कि वह बदतर होता जाये और हर जीवन में उस को बदतर जन्म लेना पड़ेगा और दूसरे हालत यानी जानवर के जिस्म में हो कर तो वो बिल्कुल ज्ञान यानी इल्म से ख़ाली हो गया तनासुख़ की ग़रज़ क़तई मादूम हो गई हर कोई मान लेगा कि इन्सान के सिवा माद्दा इल्म या ज्ञान और किसी जानवर में नहीं है। जब ये माद्दा ही ना रहा तो सज़ा और जज़ा और नतीजा तनासुख़ बिल्कुल फ़ुज़ूल बातिल और ठहरा।

एक और बात निहायत मुश्किल ला-हल पेश आती है कि चूँकि नेकी और बदी रास्ती और नारास्ती की तमीज़ की सिफ़त फ़क़त इन्सान में है और नतीजतन वो अपने अफ़आल व अक़्वाल और ख़यालात का ज़िम्मेदार है और तजुर्बा हमको क़ाइल करता है कि कोई इन्सान गुनाह से ख़ाली नहीं या यूं कहें कि जब इन्सान पैदा हुआ तो ज़रूर गुनाह करेगा पस लाज़िमी दलील है कि ये तनासुख़ का तसलसुल ताअबद जारी रहेगा यानी अगर मुम्किन हो कि इन्सान चौरासी लाख या ज़्यादा या कम जीवन हासिल करके फिर इन्सान बने तो वो ज़रूर गुनाह करेगा और ज़रूर फिर उसी दर्द में यानी तनासुख़ के तसलसुल में जा पड़ेगा और उस से कभी रिहाई ना पाएगा। इस तसलसुल का आख़िर नहीं। पस ख़ुदा का क्या फ़ायदा हुआ और वो हमको इस से रिहाई नहीं दे सकता क्योंकि तनासुख़ के क़ानून के बमूजब इन्सान अपने आमाल का फल पाएगा अगर ना पाए तो क़ानून टूटता है हैवान-ए-मुत्लक़ को छोड़ हम इन्सान की बाबत बोलते हैं कि जो कुछ वो है और जो दुख-सुख वो हासिल करता है सब पहले जन्म के आमाल का समरा (फल) है वो ख़ुद उस को ना बदल सकता है और ना ख़ुदा उस को बेहतर बना सकता और ना क़ानून शक खाएगा पस इन्सान की फे़अल मुख़तारी गुम हुई और ख़ुदा की क़ुदरत मुतलक़ ना रही। फिर जब इन्सान अपने बदआमाल का समरा (फल) पाकर नापाक जानवर बना और हर जन्म में बदतर होता रहा यहां तक कि बदतरीन गंदगी के कीड़े के जिस्म में आया तो फिर क्या बनेगा? क्या इन्सान बनेगा या मादूम हो जाएगा अगर कहो इन्सान तो हर कोई दानिशमंद आदमी इस पर हँसेगा और जवाब को बेवक़ूफ़ी समझेगा क्योंकि तनासुख़ के अक़ीदे से साबित है कि निहायत उम्दा आमाल का समरा (फल, नतीजा) इन्सान का जन्म मिलता है तो इस कीड़े ने कौनसी भक्ति और तपस्या और नेक आमाल किए कि इन्सान बना अगर कहो कि मादूम हो जाएगा तो ये भी मसअला मज़्कूर के ख़िलाफ़ है क्योंकि हर कोई अपनी सज़ा व जज़ा पाकर कुछ बनता रहेगा अगर कहो कि परमेश्वर में लीन यानी जज़ब हो जाएगा तो हम ज़रूर इतना ही कहेंगे कि अशरफ़-उल-मख़्लूक़ात को तो लीन यानी जज़ब ना किया मगर बदतरीन गंदे मैले कीड़े को कर लिया जिसमें तमीज़ ही नहीं इस में कुछ अक़्ल नहीं ये मुहाल-ए-मुत्लक़ है आम फहम इन्सान भी इस को ना मानेगा।

आख़िर में हम सवाल करते हैं कि ये और यानी तनासुख़ या जीवन और आवागवन का तसलसुल कब से शुरू हुआ? जवाब मिलता है कि हमेशा से कि ना इस का शुरू है और ना आख़िर क्योंकि सृष्टि यानी दुनिया अनादी यानी बे इब्तिदा है और नतीजतन बे-इंतिहा। क्या वेद-शास्त्रों की ताअलीम ये ही है? बेशक यही है। पण्डित साहब ने ऐसा ही फ़रमाया और वेदों में यही दर्ज है। अच्छा भाई जब इस तसलसुल का शुरू और आख़िर नहीं और ये सृष्टि अनादी है तो परमेश्वर यानी ख़ुदा कौन है। ख़ालिक़ और ख़ल्क़त और मख़्लूक़ क्या चीज़ें हैं मख़्लूक़ का तो शुरू होता है और इस दुनिया का शुरू नहीं, पस ये मख़्लूक़ नहीं। फिर ख़ालिक़ कौन और इस की ज़रूरत कहाँ? जब मख़्लूक़ नहीं ख़ालिक़ ही नहीं और इस का काम यानी ख़ल्क़त भी नहीं वेदों से तो ख़ालिक़ की नेस्ती पाई गई पस कोई ख़ुदा नहीं। वो आर्य लोगों का फ़ख़्र कि वेद परमेश्वर की किताबें हैं वेदों से परमेश्वर साबित ही नहीं होता तो परमेश्वर की किताबें क्या? यूनान और रोम के हुकमा-ए मसलन सुकरात, बक्ऱात अफ़लातून सिसरोकीटो वगैरह ने भी ऐसी किताबें लिखी हैं जिनसे ख़ुदा की हस्ती का इन्कार टपकता है उन को इश्वरकर्त यानी ख़ुदा का कलाम मान लूं।

सच है कि इन्सान ने (अपने) आपको दाना तसव्वुर कर के (अपने) आपको बेवक़ूफ़ साबित क्या और वो क्या कुछ ना करेगा क्योंकि शैतान ने उस की अक़्ल को तारीक कर रखा है अगर ख़ुदा अपने रहम और अक़्ल से हमारी हिदायत ना करे तो हम सब गुमराह रहेगे इसलिए इल्हाम इलाही की ज़रूरत हुई और शुक्र बेहद उस की रहमत के लिए कि उन से हमको बग़ैर इल्हाम के गुमराह नहीं छोड़ा और इल्हाम कामिल तहक़ीक़ात के बाद मालूम हुआ कि तौरेत, ज़बूर और अम्बिया के सहाइफ़ और इंजील में मौजूद है। तालिब हक़ अगर चाहे देख और मालूम कर सकता है। मसअला तनासुख़ पर हम मुफ़स्सिल तहरीर नहीं कर सकते कि इस मज़्मून में तवालत की गुंजाइश नहीं है इंशा-अल्लाह-तआला बशर्त ज़िंदगी व सेहत व फ़ुर्सत एक उम्दा छोटी किताब में मुफ़स्सिल बयान करेंगे फ़िलहाल मज़्कूर-बाला चंद एतराज़ात नाज़रीन ने पेश हैं ख़ुदा करीम हक़ की तलाश में पढ़ने वालों की मदद और हिदायत करे।

[1] फ़िर जुर्म की सज़ा चाहे न हो कि जुर्म मसअला चोर चोरी की सजाएं जेल में भेजा जाता है अदालत ये नहीं कहती कि और चोरी कर। एडीडर

लफ़्ज़ मुहम्मदीम की हक़ीक़त

The Reality of the Hebrew Word Machamadim

लफ़्ज़ मुहम्मदीम की हक़ीक़त
By

Rev.Mulawi Abduhla Bin Habib Alqureshi
रेव॰ मौलवी अब्दुल्लाह बिन हबीब अल-क़ुरैशी
Published in Nur-i-Afshan November 21, 1889

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 21, नवम्बर 1889 ई॰
रिसाला मुबश्शिर इंजील के सीग़ा मुरासलात में लफ़्ज़ “मुहम्मदीम” की निस्बत एक मुहम्मदी आलिम के वहम का इज़ाला जनाब पादरी टॉमस हाइल साहब ने ख़ूब किया है। इस मुहम्मदी आलिम के दावे का माहसल (हासिल) ये है कि किताब (ग़ज़ल-उल-ग़ज़लात 5:16) में बज़बान इब्रानी जो लफ़्ज़ “मुहम्मदीम” वाक़ेअ है वह मुहम्मद साहब नबी अरब का नाम है जो बतौर बशारत मुहम्मद साहब के लिए कुतुब साबिक़ा में आया है।

वाह सुब्हान अल्लाह मुहम्मद साहब की बशारत के सबूत के लिए क्या अजीब व ग़रीब इस्तिदलाल (दलील) है। ये इस्तदाल ऐसा है जैसा कि कबीर साहब का कोई शागिर्द अपने गुरु कबीर साहब की उलूहियत और बशारत क़ुरआन से इस तौर साबित करे।

1 क़ुरआन सूरह रअ़द (13) आयत 9

(عٰلِمُ الۡغَیۡبِ وَ الشَّہَادَۃِ الۡکَبِیۡرُ الۡمُتَعَالِ)

तर्जुमा :- अल्लाह साहब ज़ाहिर और बातिन का जानने वाला कबीर बुज़ुर्ग है।

अब अगर इस मुहम्मदी आलिम का इस्तिदलाल जिहत (जद्दो-जहद) बशारत मुहम्मद साहब बाइबल के लफ़्ज़ “मुहम्मदीम” से दुरुस्त हो तो कबीर के मुरीद का इस्तिदलाल क़ुरआन के आयत मज़्कूर से अपने गुरूजी के लिए बतरीक़ ऊला दुरुस्त होगा क्योंकि बईना लफ़्ज़ कबीर मौजूद है।

ब- क़ुरआन सूरह हज (22) आयत 61

(ذٰلِکَ بِاَنَّ اللّٰہَ ہُوَ الۡحَقُّ وَ اَنَّ مَا یَدۡعُوۡنَ مِنۡ دُوۡنِہٖ ہُوَ الۡبَاطِلُ وَ اَنَّ اللّٰہَ ہُوَ الۡعَلِیُّ الۡکَبِیۡرُ)

तर्जुमा :- फिर सबब इस के अल्लाह साहब वही सच्चा है और मा सिवा इस के वो पुकारते हैं वो बातिल है और तहक़ीक़ वही बड़ा कबीर है।

अगर कोई मुहम्मदी कहे कि किताबे-मुक़द्दस में मख़रज (ख़ारिज होने की जगह) हम्द से मुश्तक़ात (वो लफ़्ज़ जो किसी दूसरे लफ़्ज़ से बनाया गया हो) मुहम्मदीन वग़ैरह मुहम्मद साहब का बशारती नाम है तो क्या कोई कबीरपंथी ये नहीं कह सकता है कि बाइबल और क़ुरआन में माद्दा कबर से त जहां-जहां लफ़्ज़ कबीर आया है वो हमारे गुरु जी का बशारती नाम है ?

बाइबल में लफ़्ज़ कबीर (अय्यूब 15:10) (1 समुएल 19:13-16) में आया है।

जीम – क़ुरआन सूरह लुक़्मान (31) आयत 29 आयत बईना सूरह हज वाली आयत की मानिंद है सिर्फ इतना फ़र्क़ है कि हुवल-बातिल की जगह अल-बातिल है।

दाल – क़ुरआन सूरह सबा (34) आयत 22

(وَ ہُوَ الۡعَلِیُّ الۡکَبِیۡرُ )

तर्जुमा :- और वो (ख़ुदा) बड़ा कबीर है।

किताबे-मुक़द्दस में मुहम्मद नहीं बल्कि मुहम्मदीम है लेकिन यहां क़ुरआन में तो कबीरीन (बसेगा-जमअ़) भी नहीं बल्कि बजिन्सा कबीर ही मौजूद है।

हे – क़ुरआन सूरह मोमिन (40) आयत 12

(فَالۡحُکۡمُ لِلّٰہِ الۡعَلِیِّ الۡکَبِیۡرِ )

यानी हुक्म अल्लाह साहब बड़े कबीर का है।

अब क्या ये भी कुछ समझ है कि कबीर जो लफ़्ज़ जलाल के वास्ते बतौर सिफ़त के क़ुरआन में जाबजा वाक़िया है उस से कबीर साहब का बशारती नाम मुराद हो और क्या ये भी कुछ इज्तिहाद या इल्मीयत है कि इब्रानी माद्दा हम्द की मुश्तक़ात मिस्ल मुहम्म्दीम, मुहम्मद-हा, मुहम्मद हम वग़ैरह-वग़ैरह बमाअनी मर्ग़ूब चीज़ें, नफ़ीस चीज़ें, दिल पज़ीर चीज़ें। जहां-जहां किताबे-मुक़द्दस मैं हूँ वह मुहम्मद साहब का बशारती नाम हो।

अगर रब्त कलामी और सियाक़ इबारत और अल्फ़ाज़ के माअनों से कुछ सरोकार न रखो और सिर्फ किसी लफ़्ज़ से जहां कहीं मिले बशारत और पेशिनगोई साबित करो तो इस तौर से किताबे-मुक़द्दस में सिर्फ ये नहीं कि मुहम्मद का नाम मोहम्मदीम से निकलता है बल्कि उन के वालदैन और खल़िफ़ा के नाम और मक्का व मदीना वग़ैरह बहम्द अल्लाह सब बाइबल से साबित हो सकते हैं। क्योंकि (यर्मियाह 34:26) में अब्दुल्लाह नाम आया है तो वह इस क़ायदे से मुहम्मद साहब के वालिद-ए-माजिद का नाम होगा। और (पैदाइश 12:8) में जो बैतुल्लाह मज़कूरह तो ये उनका ख़ाना काअबा होगा (दानीएल 3:2-3) में लफ़्ज़ मदीना मौजूद है तो वो मुहम्मद के मदफ़न मदीना मुनव्वरा का नाम अगली किताबों में बतौर बशारत लिखा गया होगा। और जहां-जहां किताबे-मुक़द्दस में मख़ारिज बक्र, उमर, अली से जो-जो मुश्तक़ात आए हों उन से खल़िफ़ा अबू-बक्र उमर अली मुराद होंगे।

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बाइबल और मसीह की उलूहियत पर एक एतराज़

The Objection on the Bible And Deity of Christ

बाइबल और मसीह की उलूहियत पर एक एतराज़
By

Rev.Mulawi Muhammad Shah
मुहम्मद शाह
Published in Nur-i-Afshan August 29, 1888

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 29, अगस्त 1889 ई॰
तस्लीम, 11 जुलाई 1889 ई॰ का नूर-अफ़शाँ बंदे की नज़र से गुज़रा और जब बंदे ने इस को पढ़ा तो मालूम हुआ कि एक साइल (सवाल करने वाला) बनाम मौलवी महमूद शाह साहब ने ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत और बाइबल के कलाम-उल्लाह होने पर मसीहीयों से सवाल किया है। बंदा ने भी मुनासिब जाना कि साइल की ख़िदमत शरीफ़ में इस सवाल का जवाब ख़ुदा के कलाम से कुछ थोड़ा सा ज़िक्र करूँ ये साइल का सवाल कुछ नया सवाल नहीं है ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत और बाइबल के कलाम-उल्लाह होने पर मसीहीयों ने बहुत सी किताबें लिखीं हैं। शायद साइल ने कभी उन को नहीं देखा। पहले साइल को मुनासिब था कि, “मीज़ान-उल-हक़ और मसीह इब्न-अल्लाह और नियाज़ नामा” का मुतालआ करने और फिर मसीहीयों से ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत और बाइबल के कलाम-उल्लाह होने पर सवाल करते। ख़ैर, साइल अगर बाइबल को ग़ौर से पढ़ते तो उन को मालूम हो जाता कि नबी और रसूलों ने रूहुल-क़ुद्दुस की हिदायत से ख़ुदावंद मसीह के हक़ में क्या-क्या बयान किया है। और फिर ख़ुदावंद मसीह ने इंजील में बज़ात-ए-ख़ुद अपनी निस्बत क्या दावा किया है। अगर साइल तवारीख़-ए-कलीसिया को भी ग़ौर से मुतालआ करते तब भी साइल को मालूम हो जाता कि क़दीम कलीसिया के लोगों ने ख़ुदावंद मसीह की ज़ात व सिफ़ात की निस्बत क्या लिखा है और वह ख़ुद उस की निस्बत क्या समझ कर इस से गुनाहों की मग़फ़िरत और बरकत पाने के लिए दुआ करते थे। जब हम ख़ुदा के कलाम को ग़ौर से पढ़ते हैं तो हमको मालूम होता है कि नबी और रसूल ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत के क़ाइल थे और ख़ुदावंद मसीह में वो ज़ात-ए-ईलाही मान कर उस पर अपना भरोसा रखते थे देखो (ज़बूर 2:12) आयत में दाऊद नबी रूहुल-क़ुद्दुस की हिदायत से क्या लिखते हैं, “बेटे को चूमो ता ना हो कि वो बेज़ार हो और तुम राह में हलाक हो जाओ जब उस का क़हर यका-य़क भड़के मुबारक वो सब जिसका तवक्कुल उस पर है।” (मलाकी 4:2) को देखो यहां पर नबी ख़ुदावंद मसीह को आफ़्ताब सदाक़त कहता है।

अब बंदा पाक कलाम से ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत की बाबत चंद दलीलें पेश करता है जिनको साइल ग़ौर से पढ़े।

(अव़्वल)
पाक कलाम में वो सारे नाम जो कि ला-महदूद ख़ुदा के लिए ज़रूरी हैं वह सब नाम ख़ुदावंद मसीह को मंसूब किए जाते हैं। मसलन पाक कलाम में वो ख़ुदावंदों का ख़ुदावंद कहलाता है। (ज़बूर 110:1) ख़ुदावंद ने मेरे ख़ुदावंद को फ़रमाया कि तू मेरे दहने हाथ बैठ जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पांव तले की चौकी बनाऊँ। वह ख़ुदाए क़ादिर कहलाता है। (यसअयाह 9:6) कि हमारे लिए एक लड़का तव्व्लुद हुआ हमको एक बेटा बख़्शा गया। और सल्तनत उस के कांधे पर होगी वो इस नाम से कहलाता है अजीब-मुशीर। ख़ुदा-ए-क़ादिर अबदीयत का बाप सलामती का शहज़ादा वग़ैरह (मलाकी 4:2)

यहोवा या ख़ुदावंद कहलाता है, वो ख़ुदा कहलाता है। (रोमीयों 9:5) और बाप दादे इन्ही में के हैं और जिस्म की निस्बत मसीह भी उन्हीं में से हुआ जो सब का ख़ुदा हमेशा मुबारक है आमीन वो ख़ुदा-ए-बरहक़ और हमेशा की ज़िंदगी कहलाता है। (1 यूहन्ना 5:20) वो बुज़ुर्ग ख़ुदा कहलाता है। (तितुस 2:13) वग़ैरह साइल को मुनासिब है कि इन आयात को ग़ौर से देखे।

(दोम)
पाक कलाम में वो तमाम सिफ़ात जो कि ला-महदूद ख़ुदा की ज़ात के लायक़ हैं वो सब ख़ुदावंद मसीह के हक़ में मंसूब होती हैं। वो हर जगह हाज़िर व नाज़िर कहलाता है।

(यूहन्ना 3:13) और कोई आस्मान पर नहीं गया सिवा उसी शख़्स के जो आस्मान पर से उतरा यानी इब्न-ए-आदम जो आस्मान पर है। इस आयत में ख़ुदावंद मसीह ये ज़ाहिर करते हैं मैं इब्न-ए-आदम हो के ईलाही ज़ात रखता हूँ और मैं ईलाही शख़्स हो के आस्मान व ज़मीन दोनों जगहों में मौजूद हूँ। (मत्ती 28:20) देखो। वह ग़ैर मुबद्दल (ला-तब्दील) कहलाता है। (इब्रानियों 13:8) यसूअ कल और आज और अबद तक यकसाँ है, वो अज़ली कहलाता है। (मीकाह 5:1) (यूहन्ना 8:58) यसूअ ने उन्हें कहा “मैं तुमसे सच सच कहता हूँ पेशतर इस से कि अब्राहम हो मैं हूँ। वो अव़्वल व आख़िर होने का दावा करता है।

(मुकाशफ़ा 1:8) मैं अल्फ़ा और ओमेगा हूँ यानी मैं अव़्वल और आख़िर हूँ वग़ैरह। वो आलिम-उल-गै़ब कहलाता है। (मुकाशफ़ा 2:23) और सारी कलीसियाओं को मालूम होगा कि मैं वही हूँ जो दिलों और गुर्दों का जांचने वाला हूँ वग़ैरह। (यूहन्ना 2:24, 4 बाब 18, 16 बाब 30) इन आयात में हमारे ख़ुदावंद मसीह के आलिम-उल-गै़ब होने का बयान है।

(सोम)
पाक कलाम में उस की इबादत ऐसी की जाती है जो किसी दूसरे की नहीं की जाती है। बाप के बराबर यानी ख़ुदा के बराबर उस की इज़्ज़त करनी चाहीए। (यूहन्ना 5:23) ताकि सब बेटे की इज़्ज़त करें जिस तरह से बाप की इज़्ज़त करते हैं जो बेटे की इज़्ज़त नहीं करता, बाप की जिसने उसे भेजा है इज़्ज़त नहीं करता।

बाप के बराबर उस पर ईमान लाना चाहीए यानी ख़ुदा की बराबर। (यूहन्ना 14:1) तुम ख़ुदा पर ईमान लाते हो मुझ पर भी ईमान लाओ। उस के आगे हर एक घुटना झुकेगा। (यसअयाह 25:23) (रोमीयों 14:10-11) (फिलिप्पियों 2:10) साइल को मुनासिब है कि इन आयात को भी ग़ौर से देखे।

(चहारुम)
पाक कलाम में उस के ऐसे कामों का तज़्किरा है कि जिनसे ज़ाहिर होता है कि वह ख़ुदा है और वह काम ऐसे हैं जो फ़क़त ख़ुदा ही कर सकता है।

वो ख़ल्क़त का पैदा कनुंदा कहलाता है। (कुलस्सियों 1:16) क्योंकि उसी से सारी चीज़ें जो आस्मान और ज़मीन पर हैं देखीं और अन्देखीं क्या तख़्त क्या हुकूमतें किया रियासतें क्या मुख़तारीयाँ पैदा की गईं वग़ैरह। (युहन्ना 1:1-3) वो ख़ल्क़त को संभालता है। (इब्रानियों 1:2-3) आख़िरी दिनों में हमसे बेटे के वसीले बोला जिसको उस ने सारी चीज़ों का वारिस ठहराया और जिसके वसीले उस ने आलम बनाए वह उस के जलाल की रौनक और उस की माहीयत (असलियत) का नक़्श हो के सब कुछ अपनी ही क़ुदरत के कलाम से संभालता है वग़ैरह। लोगों को उन के गुनाहों से खलासी देता है। (इब्रानियों 9:12) अपनी क़ुदरत से मोअजिज़ा दिखलाता है गुनाहों को माफ़ करता है। (मरक़ुस 2:5) क़ियामत के दिन मुर्दों को ज़िंदा करेगा। (यूहन्ना 28-29) ये सब आयात हमारे ख़ुदावंद मसीह के हक़ में हैं अगर साइल मेहरबानी से इनको बाइबल में देखें तो उन को मालूम हो जाएगा कि ख़ुदावंद मसीह कौन है बाइबल में नबी और रसूल ने ख़ुदावंद मसीह को ईलाही दर्जा दिया है अगर नबी और रसूल ख़ुदावंद मसीह को फ़क़त इन्सान ही ख़्याल करते तो उस को ऐसे दर्जे में बयान ना करते जैसा कि उन्हों ने रूहुल-क़ुद्दुस की हिदायत से पाक कलाम में बयान किया है क्योंकि इन्सान की अक़्ल उस को क़ाइल करती है कि किसी इन्सान को ईलाही दर्जा देकर उस को ख़ुदा जानना ये बात इन्सान की अक़्ल के नज़्दीक बहुत बुरी मालूम होती है और ख़ुदा के नज़्दीक भी ये एक बड़ा भारी गुनाह है जैसा कि ख़ुदा के पहले और दूसरे हुक्म में ज़िक्र है ऐसा कौन इन्सान है जो ये कलिमा कह कर अपने ऊपर ख़ुदा की लानत ले और हमेशा के अज़ाब का मुस्तहिक़ हो जाये ख़ुदा की और मुक़द्दसों और फ़रिश्तों की सोहबत से महरूम हो जाये। मौलवी साहब ख़ुदा के कलाम में ऐसी बहुत सी आयात हैं जिनसे ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत साबित होती है। और ख़ुदावंद मसीह ने भी अपने आपको यहूदी क़ौम के सामने इब्न-अल्लाह कह कर अपने में ज़ात ईलाही के शामिल होने का दावा किया है कि मैं इब्ने-अल्लाह हूँ और ख़ुदा मेरा बाप है। अगर आप कहो कि यहूदी और फ़रिश्तें बाइबल में इब्न-अल्लाह कहलाते हैं हाँ बेशक उन की निस्बत इब्न-ए-अल्लाह लफ़्ज़ लिखा है मगर जिस ग़रज़ से ख़ुदावंद मसीह अपने को इब्न-अल्लाह कहते थे उस ग़रज़ से ना हुए और ना फ़रिश्ते इब्ने-आदम कहलाते हैं। ख़ुदावंद मसीह अपने को इब्न-अल्लाह कह कर अपने में ज़ात-ए-इलाही को शामिल कर के ख़ुदा के बराबर ठहराते थे बल्कि ख़ुदा का और अपना एक होना बयान करते थे। देखो (यूहन्ना 7:9) से शुरू कर के जबकि फिलिप्पुस ने ख़ुदावंद मसीह से सवाल किया कि, “ऐ ख़ुदावंद बाप को हमें दिखला तब ख़ुदावंद मसीह ने फिलिप्पुस के जवाब में कहा कि ऐ फिलिप्पुस में इतनी देर से तुम्हारे साथ हूँ और तुमने मुझे ना जाना जिसने मुझको देखा बाप को देखा है क्योंकि मैं और बाप एक हैं।” फिर अगर साइल यूहन्ना की इंजील का मुतालआ करेंगे तो उन को मालूम हो जाएगा जब कि यहूदी लोगों ने ख़ुदावंद मसीह को कहा कि तू इन्सान हो के तईं ख़ुदा के बराबर ठहराता है और अपने को इब्ने-अल्लाह कह कर अपने में ख़ुदा की ज़ात को शामिल करता है ये तो कुफ़्र कहता है और इन्सान हो के अपने को ख़ुदा बनाता है। क़दीम ज़माने के ईमानदार लोग ख़ुदावंद मसीह को एक ईलाही शख़्स जान कर उस की पैरवी दिलो-जान से करते थे और दुश्मनों की एज़ा से मौत के वक़्त उस को अपनी रूह सपुर्द करते थे देखो (आमाल 7) में इस्तफ़नुस का ज़िक्र है कि उस ने मौत के वक़्त क्या कहा, ये कि ख़ुदावंद मसीह में ज़ात ईलाही है यानी वो एक ईलाही शख़्स है। इस बात को जान कर मसीही उस को ख़ुदा मानते थे इस अक़ीदे का इन्कार क़ुरआन में भी मौजूद है कि ईसाई लोग ख़ुदावंद मसीह को ख़ुदा जानते हैं जैसा कि सूरह माइदा आयत 72 में लिखा है :-

(لَقَدۡ کَفَرَ الَّذِیۡنَ قَالُوۡۤا اِنَّ اللّٰہَ ہُوَ الۡمَسِیۡحُ ابۡنُ مَرۡیَمَ)

यानी अलबत्ता तहक़ीक़ काफ़िर हुए वो लोग जो कहते हैं तहक़ीक़ अल्लाह वही है मसीह बेटा मर्यम का। वग़ैरह

क़ुरआन में ईसाईयों के इस अक़ीदे का इन्कार उस वक़्त किया गया है जब कि ये अक़ीदा क़दीम ईसाई कलीसिया में राइज था और ख़ुदावंद मसीह को ख़ुदा-ए-मुजस्सम मानते थे चुनान्चे यही अक़ीदा जो कि क़दीम कलीसिया का ख़ुदा के कलाम के मुताबिक़ था आजकल भी यही अक़ीदा मसीही कलीसिया में पाया जाता है। मौलवी साहब मसीही लोग हर ज़माने में ख़ुदावंद मसीह की उलूहियत को ख़ुदा के कलाम के मुताबिक़ मानते चले आए हैं ये कुछ नई बात है (नहीं) जो कि हम लोगों ने अपनी तरफ़ से ईजाद की हो। ये हमारा अक़ीदा ख़ुदा के कलाम के मुताबिक़ है। इस अक़ीदे को हम छोड़ नहीं सकते हैं क्योंकि इस अक़ीदे का छोड़ना गोया ख़ुदा के कलाम को रद्द करना है और अपने ऊपर ख़ुदा की लानत लेना है फ़क़त।

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दीन ईस्वी का मोअजज़ाना सबूत

The Miraculous Proof of the Christianity

दीन ईस्वी का मोअजज़ाना सबूत
By

One Disciple
एक शागिर्द
Published in Nur-i-Afshan October 03, 1888

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 3, अक्टूबर 1889 ई॰<

मोअजिज़ा का असली माद्दा अजुज़-बिल-कस्र (عجز بالکسر) है और मअनी उस के नातवानी या आजिज़ हो जाने के हैं। हालत फ़ाइलीयत में मोअजिज़ा किया जाता है। तब उस के मअनी आजिज़ करने वाला इस्म-ए-फाइल के आते हैं। और हालत मफ़ऊलीयत में मोअजिज़ा बफत्ह जीम अरबी (معجز بفتح جیم عر بی اسم) इस्म-ए-मफ़उल ब मअनी आजिज़ किया गया पाते हैं। अगरचे इन माअनो में ये जुम्ला हालतें उस की उमूमीयत पर दलालत करती हैं। मगर लुग़त में देखने से मालूम होता है कि हालत-ए-इज़ाफ़ी में जब कि इज़ाफ़त बनी की जानिब हो ख़ारिक़ आदत (आदत और क़ुदरती क़ाएदे को तोड़नेवाला, अम्बिया के मोअजज़े औलिया की करामात) कहते हैं। यानी आदत का फाड़ने वाला और इस्लाह में मुराद वो काम है जो ज़ाती आदत के ख़िलाफ़ वाक़ेअ हो। ज़माना-ए-हाल में फ़िर्क़ा नेचर इन इस्तिलाही माअनों पर एक एतराज़ वारिद कर के रास्ती से बहुत दूर जा पड़े हैं वो कहते हैं कि उस से क़ानून-ए-फ़ित्रत टूटता है लेकिन इस का जवाब मुख़्तसर में सिर्फ इसी क़द्र काफ़ी व वाफ़ी है कि नेचरियों ने अपनी ही अक़्ल महदूद के मुताबिक़ ख़ल्क़त की आम तर्तीब पर जहां तक कि उन की बसारत ने काम किया निगाह डाल कर क़ानून-ए-फ़ित्रत गढ़ लिया है। ख़ुदा ने इल्हाम से नेचरियों को नहीं बता दिया कि मेरी लामहदुद व तर्तीब सिर्फ इसी तर्तीब पर जो हमने देख ली महदूद है। पस जब तक ये साबित ना हो तब तक इस्तिलाही मअनी बजा-ए-ख़ुद क़ायम और बरक़रार हैं। फिर इस लफ़्ज़ मोअजिज़ा के मुरादी मअनी हम ईसाईयों के नज़्दीक ये हैं कि ऐसी क़ुदरत अमल में लाई जाये जो ख़ल्क़त की आम तर्तीब की तब्दील की क़ाइल है। मसलन बहरा हुमुर का सिखाना और लारज़ को जलाना वग़ैरह ना खिलाफ-ए-अक़्ल है ना मुख़ालिफ़-ए-नक़ल अक़्लन इस वास्ते कि अक़्ल-ए-इन्सानी महदूद और ख़ुदाए क़ादिर-ए-मुतलक़ के काम लामहदूद ना सिर्फ यही बल्कि एक इन्सान ही दूसरे इन्सान के बाअज़ उमूर को दर्याफ़्त नहीं कर सकता। चुनान्चे रियाज़ी वाईअत वग़ैरह उलूम उस पर गवाह हैं। नक़लन इसलिए कि इसी जहान में आँखों देखते अक्सर ऐसे उमूर हादसे होते हैं कि अक़्ल-ए-इन्सानी दर्जा हैरानी में मुसतग़र्क़ हो जाती है। अब बाद इस क़द्र बयान के साबित हो गया कि दरहक़ीक़त मोअजिज़ा हमारे मुरादी माअनों में मुहाल नहीं बल्कि मुम्किन-उल-वक़ूअ है। मगर इस से ये ना समझ लेना चाहीए कि वो सारे वाक़ियात ख़्याली जो मुहम्मद या राम कृष्ण वग़ैरह

से मिस्ल शक़-उल-क़मर व सबुत बंद रामेश्वर्द गोबर्धन लहला मंसूब किए जाते हैं। सब दुरुस्त हैं जब तक कि उन के दिखाने की इल्लत-ए-ग़ाई और ख़ुदा की मर्ज़ी मारज़ सबूत में ना लाई जाये। क्योंकि अक़्ल-ए-सलीम के नज़्दीक ये बात क़ाबिल-ए-तस्लीम है कि मोअजिज़ा दीन-ए-हक़ के अस्बात में ज़रूरी है। वो उन उमूर में जिन्हें इन्सान आप ही अक़्ल और इल्म से साबित और ग़ैर साबित कर सकता है। हमारा इरादा नहीं कि हम उन सारे मोअजज़ात मुंदरजा बाइबल को जो नबियों और रसूलों और ख़ुदावंद मसीह से वक़ूअ पज़ीर हुए फ़र्दन-फ़र्दन सामईन के रूबरू पेश करें क्योंकि इन पर यहां तक रद्दो-क़दह (तर्दीद) हो चुकी है कि उन्हें बयान करना क़रीबन तहसील हासिल की हद तक गुज़रना है हम सिर्फ ये बयान किया चाहते हैं कि क़त-ए-नज़र दीगर मोअजज़ात के जिनके मसीही मज़्हब साबित किया जाता है मसीही मज़्हब ख़ुद मोअजिज़ा है। देखो जब तमाम मज़्हबों के अजज़ा की आम तर्तीब पर नज़र डाली जाती है तो मालूम हो जाता है कि अगर वह तमाम वसाइल जो मज़्हब जारी करने में काम आते हैं क़ायदा मफ़रूज़ा के मुताबिक़ बरते जाएं तो फ़िल-जुम्ला हर शख़्स एक मज़्हब जारी कर सकता है। मसलन मौजूदा हिंदू मज़्हब इस तरह जारी हुआ कि जब आम हिंदू बुद्ध मज़्हब की रूखी फीकी हकीमाना ताअलीम से मुतनफ़्फ़िर (नफरत करने वाले) हुए और चाहते थे कि उस के ख़िलाफ़ को क़ुबूल कर लें। तब ब्रह्मणों ने उन की ख़्वाहिश को पा कर एक ऐसा नू-तर्ज़ मुरस्सा (ख़ुश-बयानी से आरास्ता) मज़्हब को हिन्दुस्तान से नेस्त व नाबूद कर दिया फिर मुहम्मदी मज़्हब अरबों की हसब तबाला होने पर कैसा जल्द चारों तरफ़ फैल जाने को तैयार हो गया। अला हज़-उल-क़यास आर्य ब्राह्मण भी हसब-ए-हाल व मुवाफ़िक़ तबाबा इन्सानी हैं। अब इसी के मुक़ाबिल ईस्वी मज़्हब को देखो जिसमें कहाँ ख़ुदावंद की वो नई और अनोखी ताअलीम नई पैदाइश की ज़रूरत जिसे नेकोदीमस सा उस्ताद और मुअल्लिम यहूद समझ ना सका और कहाँ पतरस इन्द्रियास वग़ैरह मछोओं का वो ज़र्फ़ जो पंतीकोस्त के दिन रूह-क़ुद्दुस से मामूर किया गया। भला कौन कह सकता था कि आम तर्तीब कि मज़ाहिब के ख़िलाफ़ ऐसी बुनियाद पर इन्सान मज़्हब ईस्वी को क़ुबूल करेगा फिर बाक़ी मज़्हब की फ़िरोतनी लाचारी और गिरफ़्तारी के वक़्त शागिर्दों का छोड़ देना ख़ुद पतरस का जो ज़रा अपने को सर गर्म मज़्हब समझता था। तीन बार मसीह का इन्कार करना और शागिर्द ही का उस्ताद को पकड़वा देना क्या आदमी को हैरत में नहीं डालता। इलावा-बरीं जब मसीह मस्लूब हो कर दफ़न हुआ तो अक़्ल कह सकती है कि आम तर्तीब मज़ाहिब के मुवाफ़िक़ ईस्वी मज़्हब दुनिया से जाता रहा और कोई सूरत फिर उस के क़ायम होने की ना रही हाँ इन्सानी मज़्हबों के हक़ में तो ये राय बेशक दुरुस्त है। मगर ख़िलाफ़ उस के क्या देखने में आया कि जिस तरह दाना ज़मीन में गिर कर और मरकर एक के बदले अनेक[1] हो जाता है। इसी तरह ख़िलाफ़-ए-दस्तूर ज़माना-मसीही मज़्हब ने ज़मीन में दफ़न हो कर फिर रिवाज पाया। पस जिस तरह सच्चाई-सच्चाई से निकलती है उसी तरह मोअजिज़ा मसीही मज़्हब से पैदा होता है क्योंकि मसीही मज़्हब ख़ुद मोअजिज़ा है और इस के वसाइल ख़्वाह मज़्हब से ख़्वाह बानी मज़्हब से इलाक़ा रखते हों सब के सब मोअजिज़ा हैं अल-मतलब मज़्हब ईस्वी अपने सबूत में मोअजज़े का मुहताज नहीं बल्कि वो आप मोअजिज़ा को साबित करता है। मज़्हब से इस वास्ते कि वो ख़िलाफ़ और मज़्हबों के अपनी इशाअत-दाफ़िजाइश में किसी दुनियावी ताक़त से मदद नहीं पाता कभी ना सुना होगा मुहम्मद साहब और उस के खल़िफ़ा-ए-महमूद ग़ज़नवी और औरंगज़ेब की सूरत ख़ुदावंद मसीह या उन के हवारियों या मसीही सलातीन ने मसीही मज़्हब को बुज़ोर शमशीर जारी किया बल्कि बरअक्स इस के इब्तदा-ए-हुकूमत पिन्तुस पिलातूस और दीगर शाहाँ रोम नीरू वग़ैरह से जिन्हों ने हमेशा मसीही मज़्हब की मुख़ालिफ़त में कोई बात उठा नहीं रखी ईसाईयों को शेरों से फड़वाया ज़िंदा जलवाया शिकंजे में खिचवाया आख़िर आज तक ईसाई जाबजा किसी ना किसी सूरत से सताए जाते हैं बावजूद वो कि गर्वनमैंट मौजूदा ईसाई गर्वनमैंट कहलाती है तो भी मुंसिफ़ मिज़ाज वाक़िफ़ आएं सल्तनत बर्तानिया कह सकता है कि गर्वनमैंट के नज़्दीक और मज़्हबों से ईस्वी मज़्हब की कोई ज़्यादा वक़अ़त नहीं है मगर ख़ुदा उन पे मज़्हब को आप ही मोअजज़ाना क़ायदे से बढ़ाता जाता है। बानी मज़्हब से इसलिए कि ख़िलाफ़ और बानियान मज़्हब के मसीह की पैदाइश ही मोअजिज़ा है जिसमें किसी दूसरे का वास्ता नहीं यानी यहां जो मुज़ाफ़ (मिला हुआ) है वही मुजाफ़-अलैह (वो इस्म जिस के साथ कोई दूसरा इस्म मंसूब किया जाये) है। पस ये मोअजिज़ा नहव के आम तर्तीब को तब्दील कर देता है फिर बाद मसलूबी वो आप तीसरे दिन ज़िंदा क़ब्र से निकल आया ना ये कि किसी दूसरे ने ज़िंदा किया क्योंकि वो ज़िंदगी उसी में थी। पस इस मोअजिज़ा में भी ख़िलाफ़ नहू जो मफ़ऊल है वही फ़ाइल है और जो सिफ़त है वही मौसूफ़ है और यही ज़िंदगी हमेशा की ज़िंदगी है जो मसीह से मुफ़्त मिलती है काश कौमें जो मोअजज़ात पर जांदादह या उन की तक़्ज़ीब (ज़बानी लड़ाई) पर आमादा हैं इस मुजस्सम मोअजिज़ा यानी मसीह पर ईमान लाएं और हयात-ए-अबदी पाएं।

[1] बे-शुमार बहुत सा