अवतार

The Incarnation

अवतार
By

Rev.P.C Uppal
पादरी पी॰ सी॰ ऊपल-अज़
Published in Nur-i-Afshan June 27, 1889

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 27, जून 1889 ई॰

अवतार किसे कहते हैं? इस सवाल के कई एक जवाब हैं। आम हिंदू लोग तो कहते हैं कि परमेश्वर (ख़ुदा तआला) आदमी का जन्म इख़्तियार कर लेता है। और यह जुग-दर-जुग होता आया है। और वो ये भी कहते हैं कि इन्सान के जिस्म के सिवा परमेश्वर जानवरों मसलन कछ (कछुवा) मछ (मगरमच्छ) नरसिंह के जिस्मों में भी ज़ाहिर होता रहा है। मगर बहुत हिंदू ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि अवतार लोग ख़ास परमेश्वर नहीं। मगर बड़े इख़्तियार और क़ुदरत वाले अश्ख़ास थे। और उन अवतारों में ख़ुदा की क़ुदरत दर्जा-बदर्जा थी। किसी में ज़्यादा और किसी में कम। और बाअज़ हिंदू ख़ुसूसुन नौजवान आर्य लोग कहते हैं कि जब ख़ुदा आदमी का जिस्म इख़्तियार करे और इन्सानों में बूद व बाश करे उस को अवतार कहते हैं। मगर हम हरगिज़ नहीं मानते कि कभी ऐसा हुआ हो। और ख़ुदा कभी ऐसा ना करता और ना उसने कभी किया, और ना कभी करेगा। ख़ुदा को ज़रूरत ही नहीं कि इन्सान का जिस्म इख़्तियार करे। और अगर ऐसा करे तो वो ख़ुदा ही नहीं। मज़्कूर व बाला बयानात हिंदूओं से हमने सुने और नक़्ल किए हैं। आर्य लोगों को हम हिंदूओं में शामिल करते हैं अगर हमारी ग़लती है तो हम को माज़ूर रखें। मुहम्मदी साहिबान तो इस मसअले को मानते ही नहीं वो कहते हैं कि अल्लाह वाहिद है और मुहम्मद उस का रसूल तो इस के सिवा हम और कुछ नहीं मानते। ईसाई यूं जवाब देते हैं कि जब ख़ुदा इन्सान का जिस्म इख़्तियार करके इन्सानों में बूद व बाश करे उस को अवतार या ख़ुदा-ए-मुजस्सम कहते हैं। सिर्फ अवतार की तारीफ़ में हम आर्य लोगों से इत्तिफ़ाक़ करते हैं।

हिंदू जिन में आर्य शामिल हैं और ब्राह्मण और मुहम्मदी और ईसाई सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ हैं कि ख़ुदा क़ादिर-ए-मुतलक़ है। यानी सब कुछ कर सकता है। मगर क्या यह दुरुस्त है कि ख़ुदा सब कुछ कर सकता है। क्या ख़ुदा गुनाह कर सकता या अपनी सिफ़तों को तोड़ सकता है हरगिज़ नहीं। पस क़ादिर-ए-मुतलक़ की तारीफ़ यह है कि ख़ुदा सब कुछ कर सकता है। मगर गुनाह करना या अपनी सिफ़तों को तोड़ना या उस पर धब्बा लगाना उस के लिए नामुम्किन है। वो सब कुछ कर सकता है मगर अपनी ज़ात के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कर सकता।

पस क़ादिर-ए-मुतलक़ को मज़्कूर-बाला तारीफ़ से दो बातें पाया सबूत को पहुँचती हैं। अव़्वल यह कि अगर ख़ुदा ख़्वाहिश करे और उस की ख़्वाहिश के लिए कोई अशद ज़रूरत हो। और उस ख़्वाहिश में गुनाह ना हो और उस की कोई सिफ़त शिकस्त ना खाए तो वो मुजस्सम हो सकता है। कौन उस को रोकेगा? दूसरी यह कि हिंदूओं के सब अवतार बिल्कुल अवतार नहीं थे उनको बहादुर जोधा हकीम अकेशर वगैरह के लक़ब से नामज़द करो मगर वो हरगिज़ हरगिज़ अवतार नहीं हो सकते सबब ये है कि ब्रहम्माईश नहीश जो आला अवतार कहलाते और लादा राम किशन मच्छ कछ नर्सिंग वग़ैरह-वग़ैरह जो इन तीनों के अवतार हैं सब और हर एक उनमें से गुनाहों और ख़ताओं में मुब्तला थे ज़रूर नहीं कि उनके गुनाहों और ख़ताओं की फ़हरिस्त यहां पर लिखी जाये अयाँ राचा बयान अगर कोई कहे जैसा बाअज़ हिंदूओं का अक़ीदा है कि अवतार परमेश्वर ना थे मगर परमेश्वर ने उनको क्लान यानी क़ुदरत दर्जा बदर्जा बख़्शी थी तो ये और बात है। हमारी तारीफ़ के बमूजब वो अवतार ना निकले बहुतों को खुदा ने क़ुदरत दी है। मसलन समसोन, जदओन अफ़ताह, दाऊद और सायरस और सिकन्दर नेपोलियन वग़ैरह को मगर इन में से एक भी अवतार ना था। कभी-कभी बाअज़ इल्म हिंदू ज़द से कहते हैं कि हमारे अवतारों में परमेश्वर की अपनी सत्या यानी क़ुदरत दर्जा बदर्जा मौजूद थी। इस का मतलब हम नहीं समझते क्या परमेश्वर की सत्या यानी क़ुदरत तक़्सीम हुई कुछ दर्जे इन अवतारों में समाई और कुछ ज़ाते-ए-ईलाही में मौजूद रही। पस उस में क़ुदरत मुतलक़ ना रही यह मुहाल-ए-मुत्लक़ है। कोई अक़्लमंद इन्सान इस को ना मानेगा। हक़ीक़त ये है कि जिन अश्ख़ास को हिंदू लोग अवतार मानते हैं बिल्कुल अवतार ना थे। मगर बहादुर और जंग-आवर लोग है ऐसे तो पुराने ज़माने के जहला रणजीत सिंह को भी अवतार मानते हैं। बात यह है कि जैसा ख़ुदा गुनाह से मुबर्रा है वैसा ही अगर वो इन्सान का जिस्म इख़्तियार करे और अवतार हो जाये गुनाह से फिर भी मुबर्रा रहेगा। यह शर्त ज़रूरी और लाज़िमी है हिंदूओं के अवतारों में ये शर्त पाई नहीं जाती और नतीजतन उन में से कोई भी अवतार ना था।

अब हम अवतार की अशद ज़रूरत की तरफ़ मुतवज्जह होते हैं क्योंकि ईसाईयों का अक़ीदा है कि दुनिया में फ़क़त एक ही अवतार हुआ है और वह बेगुनाह या निस्कलंक ठहरा और वो ख़ुदावंद ईसाई मसीह था जो कन्या कुँवारी मर्यम से बग़ैर बाप के ख़ुदा की पाक रूह से पैदा हुआ। हिंदू मुहम्मदी और ईसाई बल्कि दुनिया के तमाम फ़िर्क़े ख़ुदा को क़ुद्दूस, सादिक़ुल-क़ौल, रहीम, आदिल और मुहब्बत मानते हैं और तमाम मज़ाहिब की किताबों में मुंदरज बल्कि हर एक शख़्स के दिल पर नक़्श है कि ख़ुदा ने फ़रमाया है कि गुनाहगार दोज़ख़ में जाएगा। अब इन्सान गुनाह-गार है ख़ुदावंद सादिक़ुल-क़ौल और आदिल है। अगर वो इन सिफ़ात को क़ायम रखे और गुनाहगार को दोज़ख़ में गिरा दे तो दूसरी सिफ़तें यानी रहम और मुहब्बत बिल्कुल ना ज़ाहिर होती अगर वो रहम और मुहब्बत को काम में लाए और गुनाहगार को बख्शे और उसे सर्ग यानी बहिश्त में क़ुबूल करे तो ये दो वस्फ़ यानी रहम और मुहब्बत तो क़ायम रहे मगर कुद्दूसी और सिदक़ और अदल क़तई नज़र नहीं आते और यह एक मुहाल-ए-मुत्लक़ है कि उस की कोई सिफ़त शिकस्त खाए या कमज़ोर हो जाये। ख़ुदा कामिल है नाक़िस नहीं। अच्छा, क्योंकर यह सिफ़तें गुनाह-गार की निस्बत कामिल और बे नुक़्स क़ायम रह सकती हैं। हरगिज़ नहीं अलबत्ता अगर ख़ुदा जो क़ादिर-ए-मुतलक़ है कोई तज्वीज़ करे तो मुम्किन है कि उस की सिफ़तें पूरी और कामिल और बे नुक़्स क़ायम रह सकें। ख़ुदा ने अपने कलाम में इज़्हार किया है, कि ख़ुदा ने जहान को ऐसा प्यार किया कि अपना इकलौता बेटा बख़्शा कि इन्सान का जिस्म इख़्तियार करे यानी अवतार हो वो मगर बेगुनाह हुआ इसलिए वो आदमी के तुख़्म से नहीं। बल्कि कुँवारी कन्या मर्यम से पैदा हुआ कि फ़रिश्ता जिब्राईल ने मर्यम को ख़ुशख़बरी दी थी कि रूहुलक़ुद्दुस तुझ पर नाज़िल होगी और ख़ुदा तआला की क़ुदरत का साया तुझ पर होगा इस सबब से

वो क़ुद्दूस भी जो पैदा होगा ख़ुदा का बेटा कहलाएगा। हमारे भाई मुहम्मदी लफ़्ज़ बेटा सुनते है नाराज़ हो जाते हैं मगर याद रखना चाहिए कि ईसाई लोग ईसा को इन्सान की तरह ख़ुदा का बेटा नहीं क़रार देते अगर कोई ऐसा कहे कि ख़ुदावंद ईसा मसीह इन्सान की तरह ख़ुदा का बेटा है, वो कलाम के बरख़िलाफ़ कहता और काफ़िर है। हम फ़ख़्र के साथ इक़रार करते है कि हम वहदत फ़ी तस्लीस और तस्लीस फ़ील-वहदत के मुतअक़्क़िद (पैरों. मानने वाले) हैं कि उलूहियत वाहिद मगर अक़ानीम सलासा हैं और इस बात को हम एक मिसाल यानी तश्बीह से वाज़ेह करेंगे। हमारी तश्बीह शायद ऐन मुनासबत ना रखती हो, ताहम फ़ायदेमंद होगी और वह यह है। हर एक जुग़राफ़ियादान जानता है कि सूरज ज़मीन से 9500000 मील फ़ासिले पर है पर रोशनी और गर्मी सूरज से निकल कर हम तक पहुँचती है तो भी सूरज इन दोनों से ज़रा भी ख़ाली या नाक़िस नहीं होता और इन दोनों से हम सूरज को पहचान लेते और चलते-फिरते ज़िंदा रहते और यह दोनों दुनिया की हर्शे यानी इन्सान हैवान और नबात की ज़िंदगी हैं अगर ये ना हो तो कोई चीज़ ज़िंदा ना रह सकती अगर रोशनी को सूरज का बेटा और गर्मी को इस की रूह कहें बेजा ना होगा। रोशनी को सूरज और गर्मी को भी सूरज कहें तो बेजा ना होगा। मगर तीन सूरज नहीं सूरज तो एक ही है। रोशनी कब से है जब से सूरज, गर्मी किस वक़्त से है जिस वक़्त से सूरज है। बाप सूरज बेटा रोशनी और रूहुलक़ुद्दुस गर्मी है। मसीह ने ख़ुद भी फ़रमाया कि जहान का नूर मैं हूँ, रूहुलक़ुद्दुस बाप और बेटे की रूह और मुक़द्दसों की ज़िंदगी है। जिस तरह रोशनी और गर्मी से हम सूरज को पहचान लेते हैं इसी तरह बेटे और रूहुलक़ुद्दुस के ज़रीये से हम बाप को जान जाते हैं। चुनान्चे कलाम में लिखा भी है कि ख़ुदा नूरों के उस दायरे में रहता है कि जहां तक किसी की रसाई नहीं उस को ना किसी ने देखा और ना कोई देख सकता है। फ़िर ये कि बाप को किसी ने कभी नहीं देखा। इकलौता बेटा जो बाप की गोद में है उसने उस को ज़ाहिर कर दिया। और कि रूहुलक़ुद्दुस बाप और बेटे की बाबत हम पर ज़ाहिर करती और हमें सारी सच्चाई की ख़बरें देती है। कलाम से ज़ाहिर है कि ख़ुदा की सिफ़तों को क़ायम रखने के लिए बेटे ने इन्सान का पाक जिस्म इख़्तियार किया। और ख़ुदा की शरीअत को इन्सान की एवज़ कामिल तौर से पूरा किया। और ख़ुदा की अदालत और सिदक़ के बमूजब गुनाहगारों का ज़ामिन होकर शरीअत की निस्बत गुनाह का समरा (फल, नतीजा) अपने ऊपर उठाया, मौत तक बल्कि सलीबी मौत तक फ़र्माबरदार रहा और इस बात के सबूत में कि ख़ुदा की शरीअत पूरी हुई। और उस का अदल और सिदक़ क़ायम रहा। ख़ुदा ने इस अवतार को तीसरे दिन ज़िंदा किया और आस्मान पर ज़िंदा चढ़ गया जहां से वो रूहुलक़ुद्दुस भेजता है कि उनके दिलों में बूद व बाश करे जो इस अवतार के कफ़्फ़ारे पर ईमान और भरोसा रखते हैं कि रफ़्ता-रफ़्ता उनको ख़ुदा की क़ुद्दूसी के लायक़ बनाए। पस उस ख़ुदा के अवतार के कफ़्फ़ारे से ख़ुदा की अदालत और सिदक़ और कुद्दूसी ख़ूब रौनक पाती और क़ायम रहती हैं और रहमत और मुहब्बत बे रोक इन्सान तक पर पहुँचती हैं। हम ने कहा था कि अगर ख़ुदा चाहे और उस की ख़्वाहिश में गुनाह ना हो तो अवतार का होना मुम्किन है। हमने ये भी कहा था कि अशद ज़रूरत भी है और हम ने ज़ाहिर किया है कि अवतार के होने के बग़ैर ख़ुदा की सिफ़तें पूरा ज़हूर नहीं पातीं। हमने यह भी साबित किया है कि बेटे ने जो अज़ल से बाप के साथ बल्कि ख़ुद ख़ुदा था। पाक इन्सानियत को इख़्तियार किया और इन्सानों के दर्मियान 33 बरस रहा। बेगुनाह ज़िंदगी बसर कर गया। जो चाहे उस की ज़िंदगी का मुफ़स्सिल हाल इंजील शरीफ़ में पढ़ सकता है। अब हम सिर्फ ये कह कर ख़त्म करेंगे कि ऐ अज़ीज़ पढ़ने वाले अगर तू इस अवतार को ना माने तो याद रख कि इस तज्वीज़ के सिवा जो ख़ुद खुदा ने ईजाद की है ना तो और ना कोई इन्सान गुनाह-गार की निस्बत ख़ुदा की कुद्दूसी अदल सिदक़ और मुहब्बत को क़ायम रख सकता है। जब ख़ुद खुदा ना कर सका तो इन्सान या फ़रिश्तगान क्या हैं। इस तज्वीज़ रहमत और मुहब्बत कमबख़्त गुनाहगारों तक पहुँचती हैं जो कोई उस को क़ुबूल ना करे वो गोया अपनी उम्मीद का दरवाज़ा बंद करना और अदालत में खड़ा होता है और दाऊद नबी फ़रमाता है कि, “ऐ ख़ुदा अगर तू अदालत करे तो कौन तेरे हुज़ूर ठहर सकेगा।” ख़ुदा ने जो हो सकता था किया। अब तो फ़क़त तज्वीज़ को रास्त और बरहक़ समझ के क़ुबूल कर और और निसकलंक ख़ुदा मुजस्सम अवतार ख़ुदावंद ईसाई मसीह पर ईमान ला तो ज़रूर दोज़ख़ से रिहाई पाएगा वर्ना तेरा गुनाह तेरे सिर पर है। और याद रख कि गुनाह की मज़दूरी मौत है और हमेशा की ज़िंदगी हैं इस अवतार के वसीले ख़ुदा की बख़्शिश है क्योंकि इस अवतार ने हमेशा की ज़िंदगी को अपना ख़ून दे के ख़रीद लिया है अगर तू इस से ना ले तो और कोई वसीला नहीं है। इस पर भरोसा रख और ज़रूर तेरी नजात होगी।

सहीफ़ा क़ुद्दुसी दिल्ली

The Holy Scripture

सहीफ़ा क़ुद्दुसी दिल्ली

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One Disciple

एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan September 12, 1889

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 12, सितंबर 1889 ई॰

क़तअ़ तारीख़-ए-वफ़ात में (304 हि॰) ओला माद्दा सू-ए-जन्नत बरफ़त्त वाले हकीम तो दुरुस्त है। मगर तारीख़ तैयारी मर्क़द में दो गलतीयां में अगर हसत जाये फ़िदा मुहम्मद ख़ां के लफ़्ज़ हसत को राजू नीज़ तारीख़ तर बतीश की ख़बर है उस के मुबतदआ के साथ पैवंद करें तो वो तारीख़ से 465 अदद जाते रहेंगे और बजाय (130) के (842) रह जाऐंगे और अगर लफ़्ज़ नेस्त को जाये फ़िदा मुहम्मद ख़ां से मिला कर बढें तो इस माद्दा तारीख़ का मिसरा अव़्वल यूं होना चाहीए कि गुफ़्त तारीख़ तर बत्श क़ुद्दुसी। हसत जाये फ़िदा मुहम्मद ख़ां और तारीख़ वफ़ात का माद्दा पहले है और ख़बर उस के बाद इस में भी कलाम है यक़ीन कि हमारे हम-अस्र मौलवी क़ुद्दुसी साहब हमको हमारी इस गुस्ताख़ी से जो उन की शान में सादिर हुई माफ़ फ़रमाएँगे।

कहते हैं कि जब दो मुसीबतों में से एक का बर्दाश्त करना लाज़िमी हो तो वाजिब है कि अक़्लमंद इन्सान इन दोनों में से हल्की मुसीबत को इख़्तियार कर ले। जैसा कि दाऊद नबी ने तीन मुसीबतों में से एक मुसीबत तीन दिन की ख़ुदा की तल्वार मंज़ूर कर ली थी चुनान्चे आजकल भी मुत्ला`अ (बाख़बर) श्यान-ए-दीन-ए-हक़ को दो मुसीबतों का मुक़ाबला आ पड़ा है।

(अव़्वल)

ये कि तौरेत व ज़बूर व इंजील अगरचे इल्हामी हैं मगर शहादत अहमदियह वो मुहर्रिफ़ हैं।

(दोम)

ये कि क़ुरआन इल्हाम रब्बानी और महफ़ूज़ है बग़ैर शहादत अम्बिया अम्र सलीन साबक़ीन। चूँकि कुतुब साबिक़ा की निस्बत हज़ार-हा अम्बिया शहादत दे गए और ख़ुद ख़ुदावंद मसीह ने उनकी सेहत और इल्हामी होने की गवाही दी है। और क़ुरआन की बाबत सिर्फ मुहम्मद साहब है मुद्दई हैं कि वह इल्हामी है दरां हाल ये कि आप दायरा नबुव्वत से भी ख़ारिज हैं। पस अक़्लमंद मुतलाशी दीन-ए-हक़ को मुनासिब है कि जिन किताबों के इल्हामी होने पर ख़ुद मुहम्मद साहब भी। शाहिद हैं उन्हें को इल्हामी जाने और तहरीफ़ का इत्तिहाम (तोहमत, इल्ज़ाम) सिर्फ़ हम्द साहब के ज़िम्में माने क्योंकि हज़ार-हा अम्बिया को ना सुनने से ये बेहतर है कि एक मुहम्मद साहब ही को ना माना जाये।

रिव्यू

हमने रिसाले ज़मर मह इस्लाम को आग़ाज़ से अंजाम तक देखा ख़ूब लिखा है वाज़ेह हो कर ये रिसाला हमारे मसीही भाई मुंशी मौलवी हसन अली साहब बह मुक़ाबला मौलवी अब्दुल्लाह रिसाला मसकलता अल-मुस्लिमीन (مصقلتہ المسلمین) तस्नीफ़ ख़ुद का जवाब-उल-जवाब तहरीर फ़रमाया है हमने मसक़लता अल-मुस्लिमीन (مصقلتہ المسلمین) का भी मुआनिया किया दरहक़ीक़त दोनों रिसाला लाजूब हैं ग़रज़ इस तालीफ़ व तसनीफ़ की ये है कि जिस हाल में ये कि मुहम्मदी भाई क़ुरआन को बाऐतबार इबादत मोअजिज़ा फ़साहत गरदानते हैं। पस ज़रूर है कि ऐसी किताब में ग़लती ना हो।

एक पेशगोई जो पूरी हो चुकी

One Prophecy has been fulfilled

एक पेशगोई जो पूरी हो चुकी
By

Rev.J.Newton
पादरी जय, नियूटल
Published in Nur-i-Afshan September 19, 1888

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 19, सितंबर 1889 ई॰

इंजील मुक़द्दस में (मत्ती की इंजील की 16:27-28) आयतों में हम पढ़ते हैं कि, “क्योंकि इब्न-ए-आदम अपने बाप के जलाल में अपने फ़रिश्तों के साथ आएगा तब हर एक को इस के आमाल के मुवाफ़िक़ बदला देगा। मैं तुमसे सच कहता हूँ कि उन में से जो यहां खड़े हैं कि जब तक इब्न-ए-आदम को इस अपनी बादशाहत आते देख ना लें मौत का मज़ा ना चखेंगे बाअज़ लोग ख़्याल करते हैं कि ख़ुदावंद यसूअ मसीह की ये पेशगोई पूरी नहीं हुई। क्योंकि उस की बादशाहत जिसका वो ख़्याल करते हैं कि आनी चाहीए थी नहीं आई और वह लोग जो वहां खड़े थे जिनको ये कहा गया था देर हुई कि वो मर गए। लेकिन जाये ग़ौर है कि इस का क्या मतलब था जो यसूअ मसीह ने कहा कि, “इब्न-ए-आदम को अपनी बादशाहत में आते देख ना लें।” हक़ीक़त में ये वक़ूअ तो हो चुका इन बातों के कहे जाने के चंद रोज़ बाद ये माजरा वकूअ में आया इस का बयान अगले बाब में पाया जाता है। देखो (मत्ती 17:1-4) और छः दिन बाद यसूअ पतरस और याक़ूब और उस के भाई यूहन्ना को अलग एक उंचे पहाड़ पर ले गया। और उन के सामने उस की सूरत बदल गई और उस का चेहरा आफ़्ताब सा चमका और उस की पोशाक नूर की मानिंद सफ़ैद हो गई।” ये ज़िक्र नहीं है कि आया ये माजरा दिन के वक़्त हुआ या कि रात की वक़्त मगर ग़ालिबन रात के वक़्त होगा ताकि इस माजरे की रौनक इर्द-गिर्द के अंधेरे में बख़ूबी ज़ाहिर हो। और ये भी लिखा है कि वहां मूसा और इल्यास भी दिखाई दिए। और वो ख़ुदावंद यसूअ से बातें करते थे। और एक नूरानी बदली ने भी उन पर साया किया और बादल में से एक आवाज़ आई कि, “ये मेरा प्यारा बेटा है” ये आवाज़ साफ़-साफ़ ख़ुदा की थी और ये इस वास्ते आई कि शागिर्दों को यक़ीन दिलाए कि ये यसूअ जो एक जलाल वाली शक्ल में पहाड़ पर नज़र आया वही है जिसकी बाबत (ज़बूर 2:7) में लिखा है कि, “तू मेरा बेटा है” इस जिसकी बाबत उसी (ज़बूर 2:6)में लिखा है कि,

“यक़ीनन मैंने अपने बादशाह को कोहे-मुक़द्दस सीहोन पर बिठा चुका हूँ।” जिसमें उस ने पहले ही ज़ाहिर किया था जो कि वो करना चाहता था। इस मौक़े पर इब्ने-आदम के अपनी बादशाहत में दाख़िल होने का एक निशान है जिसको उन लोगों में से बाज़ों ने देखा जो वहां खड़े थे जब कि उन से वो बातें अपनी ज़बान से निकालीं थीं जो कि (मत्ती 16:28) में मर्क़ूम हैं। वो पहाड़ कि जिस पर सूरत का बदलना वक़ूअ में आया कोहे-सीहोन से दलालत करता है। जो कि ख़ुदावंद मसीह की बादशाहत की जो ज़मीन पर हुई ख़ास जगह है। जहां कि ख़ुदा के ममसोह बादशाह ने हुकूमत करनी थी। और तमाम क़ौमों पर उस की सल्तनत क़ायम होने को थी जिसकी बाबत पहले ही से पेशगोई हो चुकी थी देखो (यसअयाह 2:3-5) कि, “शरीअत सीहोन से और ख़ुदावंद का कलाम यरूशलीम से निकालेगा। और वह उम्मतों के दर्मियान अदालत करेगा…अलीख।” इसी सबब से ख़ुदावंद यसूअ मसीह “बादशाहों का बादशाह” और “ख़ुदावंद का ख़ुदावंद” कहलाता है। देखो (मुकाशफ़ा 19:16) ख़ुदावंद यसूअ मसीह के चेहरे का निहायत रोशन होना और उस की पोशाक का चमक जाना और नूरानी बदली का साया करना ये सब बातें ख़ुदा के जलाल वाली हुज़ूरी को ज़ाहिर करती हैं और इसलिए ज़ाहिर हुईं कि शागिर्दों पर साबित हो कि वो आने वाली बादशाहत कैसी जलाली और रौनकदार होगी जब कि वो अपने बाप ख़ुदावंद और उस के फ़रिश्तों के साथ जलाल में आएगा। इस हुकूमत का ज़िक्र यसअयाह नबी की किताब में इस तरह हुआ है कि, “चांद मुज़्तरिब होगा और सूरज शर्मिंदा कि रब्बुल-अफ़वाज कोहे-सीहोन पर यरूशलेम में सल्तनत करेगा। और उस की बुज़ुर्गों के आगे हशमत होगी।” (यसअयाह 24:23) इस माजरे के मुताल्लिक़ दूसरी बात ये है कि मूसा और इल्यास भी दिखलाई दे। पाक नविश्तों में हम पढ़ते हैं कि पेशतर इस के कि ख़ुदावंद यसूअ मसीह ज़मीन पर हुकूमत करने के वास्ते आएगा, वो उन पाक लोगों को उठाएगा, जो पहले मर चुके होंगे। और उन को ग़ैर-फ़ानी और जलाली जिस्म में मलबूस कर के फिर ज़िंदा करेगा। (फिलिप्पियों 3:20-21) और इस तरह जो ईमानदार उस वक़्त ज़िंदा होंगे उन के जिस्मों को बदल डालेगा। (1 कुरिन्थियों 10:51,54) और दोनों गिरोहों के मिलने के लिए बादलों पर उठा लेगा। (1 थिस्स्लिनिकियों 4:16-17) और जब कि वो हुकूमत करने आएगा तो वो उस के साथ होंगे। (कुलस्सियों 3:4) और उस के साथ ज़मीन पर हुकूमत करेंगे। (मुकाशफ़ा 3:21,4:24-27) लेकिन उस की ताबेदारी में वो हुकूमत करेंगे। मुनासिब था कि इस की बादशाहत के निशान में दोनों गिरोहों का ज़िक्र होता। चुनान्चे ऐसा ही हुआ क्योंकि मूसा और इल्यास का वहां होना इस पर दलालत करता है। मूसा जो मर गया था अब ज़िंदा हुआ था और इल्यास जो मरा नहीं था लेकिन ज़िंदा आस्मान को उठाया गया अब दोनों मौजूद थे और इस जलाल में शरीक थे। (लूक़ा 9:31) एक और बात इस माजरे में क़ाबिल-ए-ग़ौर है कि यहां पर तीनों आदमी यानी पतरस और याक़ूब और यूहन्ना अपने असली जिस्मों में हाज़िर थे ये बात दुनिया के इन मौजूदा बाशिंदगान की तरफ़ इशारा करती है कि जिन पर ख़ुदावंद यसूअ मसीह और उस के ईमानदार जलाल वाली सूरत में हो के हुकूमत करेंगे दर-हक़ीक़त आस्मान की बादशाहत का जिसमें ख़ुदावंद यसूअ मसीह अपने बाप के जलाल में आएगा ये एक उम्दा निशान और नज़ारा है इस पेशगोई के पूरे होने को सादिक़ ठहराता है कि, “बाअज़ हैं कि जब तक इब्न-ए-आदम को अपनी बादशाहत में आते देख ना लें मौत का मज़ा ना चखेंगे।” मुंदरजा-बाला तफ़्सीर की तस्दीक़ ख़ुद पतरस की बात से होती है, (1 पतरस 1:11-18) ये वही पतरस था जो उन तीनों शागिर्दों में से एक था जो-जो यसूअ मसीह के साथ पहाड़ की चोटी पर गए थे। और उस ने ये सब कुछ जिसका बयान अभी किया गया था। और वो यूं लिखता है, “बल्कि तुम हमारे ख़ुदावंद और बचाने वाले यसूअ मसीह की अबदी बादशाहत में बड़ी इज़्ज़त के साथ दाख़िल होगे….। क्योंकि हमने ना फ़ैलसूफ़ी की कहानीयों का पीछा कर के बल्कि आप उस की बुजु़र्गी के देखने वाले हो के अपने ख़ुदावंद यसूअ मसीह की क़ुदरत और आने की ख़बर तुम्हें दी कि उस ने ख़ुदा बाप से इज़्ज़त व हुर्मत पाई जिस वक़्त निहायत बड़े जलाल से उस को ऐसी आवाज़ आई कि “ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे में मैं राज़ी हूँ और हमने जब उस के साथ मुक़द्दस में पहाड़ पर थे ये आवाज़ आस्मान से आती सुनी” उसे पेशतर मसीह को अपनी बादशाहत में आते देख लिया जैसा कि उस ने वाअदा किया था कि वह देखेंगे।

राक़िम

पादरी जय, नियूटल

मैं तुम से सच कहता हूँ

I Tell You the Truth

मैं तुम से सच कहता हूँ
By

Rev.J.Newton
रेव॰ जे॰ न्यूटोन
Published in Nur-i-Afshan October 03, 1889

नूर-अफ़शाँ मत्बूआ 3, अक्टूबर 1889 ई॰

मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जब तक ये सब कुछ हो ना ले इस ज़माने के लोग गुज़र ना जाऐंगे। (मत्ती 24:34)

जब कि ख़ुदावंद यसूअ मसीह के शागिर्दों ने ख़ल्वत में उस से पूछा कि यरूशलेम की हैकल कब बर्बाद होगी और उस के (ख़ुदावंद यसूअ मसीह के) आने और ज़माने के आख़िर होने का निशान क्या है? तब ख़ुदावंद ने उस वाक़िया की ख़बर दी की जो यहूद की तवारीख़ में सबसे मशहूर वाक़ियात में से एक है जिसमें कि उस के इस दुनिया से आस्मान पर चले जाये के वक़्त से उस के फिर ज़मीन पर आने के और अपनी बादशाहत क़ायम करने के वक़्त का हाल बे कम व कासित मुन्कशिफ़ (थोड़े से थोड़ा ज़ाहिर होना) होता है। इन वाक़ियात का बहुत मुख़्तसर बयान हुआ है और उन में से बाअज़ का तो सिर्फ इशारा ही पाया जाता है। मसलन यरूशलेम का मुहासिरा होना और दुबारा बर्बाद होना।

(अव्वल)

तितुस से जैसा कि तवारीख़ के मुतालआ से मालूम होता है कि यसूअ मसीह के आस्मान पर चले जाने के (40 बरस) बाद वक़ूअ में आया।

(दोम)

जो दज्जाल से होगा। जिसका ज़माना ख़ुदावंद यसूअ मसीह की दूसरी आमद से कुछ पहले होगा। जैसा कि ज़करिया नबी की किताब के पढ़ने से वाज़ेह होता है। देखो (ज़करीयाह 14:1-4) तक और ताहम इन दोनों वाक़ियात का एक ही साथ ज़िक्र आया है और उन दोनों में मुवाफ़िक़त भी पाई जाती है। और दोनों वाक़ियात अगरचे एक का ज़माना दूसरे से बहुत दूर का था ऐसे बयान हुए कि दोनों की इबारत हर दो वाक़ियात पर सादिक़ ठहर सकती है। और ये तमाम ज़माना मुसीबत का ज़माना कहलाता है जिस का आख़िरी हिस्सा ऐसा सख़्ती वाला होगा कि जिसकी कोई नज़ीर (मिसाल) दी जा नहीं सकती वो बर्बादी कि जिसका ज़िक्र हुआ था आदमीयों की सज़ा के लिए तज्वीज़ हुई थी ख़ुसूसुन क़ौम यहूद को सज़ा देने के वास्ते उन की बदकारियों के सबब से जो हद से बढ़ती थीं। लेकिन वो कहता है उन दिनों की मुसीबतों के बाद फ़ौरन इब्न-ए-आदम का निशान आस्मान में ज़ाहिर होगा ओर तब वो ख़ुद आएगा और (34 आयत) में लिखा है कि, “जब तक ये सब कुछ हो ना ले इस ज़माने के लोग गुज़र ना जाऐंगे।” अब बाअज़ जो पाक कलाम बाइबल की इबारत व मुहावरह को समझते कहते हैं कि यसूअ मसीह की ये बातें कि जब तक सब कुछ ना हो ले इस ज़माने के लोग गुज़र ना जाऐंगे सच नहीं निकलीं क्योंकि वाक़ियात में इख़्तिलाफ़ पाया गया। और ये दावा करते हैं कि गो (1800 बरस) गुज़रे कि वो लोग जो उस ज़माने में ज़िंदा थे गुज़र गए पर मसीह की बाअज़ पैशन-गोइयाँ आज तक पूरी नहीं हुईं। ऐसे मोतरिज़ों को समझना चाहीए कि ये नहीं अल्फ़ाज़ ज़माना के लोग सिर्फ एक ही यूनानी लफ़्ज़ γενιά (गनिया) का तर्जुमा है जिसके मअनी अंग्रेज़ी (GENERATION) जनरेशन यानी पुश्त के हैं लेकिन अगर बाइबल को ग़ौर से पढ़ा जाये तो साफ़ मालूम होगा कि ये लफ़्ज़ सिर्फ उसी ज़माने के लोगों से जो उस वक़्त मौजूद हों मुराद नहीं बल्कि अक्सर उन से मुराद होता है जो कि एक सामज़ाज या एक सी ख़सलत रखते हों ख़्वाह वो एक ही ज़माने के लोग हों या ना हों चुनान्चे (ज़बूर 24:6) में मर्क़ूम है कि ये वो गिरोह (जनरेशन) है जो उस की तालिब है। यानी वो ख़ुदा की तालिब है और फिर लिखा है कि उस की नस्ल (जनरेशन) ज़मीन पर ज़ोर-आवर होगी। (ज़बूर 114:4) फिर देखो ईसाईयों की बाबत कहा गया है कि तुम चुना हुआ ख़ानदान (जनरेशन) हो। (1 पतरस 2:9) और फिर (ज़बूर 73:15) में कहा है अगर मैं कहता कि यूं बयान करूँगा तो देख कि मैं तेरी औलाद की गिरोह जनरेशन से बेवफाई करता है और फिर देखो (अम्साल 30:11-14) ये लफ़्ज़ मुख़्तलिफ़ क़िस्म का गुनाह-गारों के बयान में चार दफ़ाअ इस्तिमाल किया गया है एक पुश्त जनरेशन ऐसी है जो अपने बाप पर लानत करती है और अपनी माँ को मुबारक नहीं कहती। एक पुश्त (जनरेशन) ऐसी है जो अपनी निगाह में पाक है लेकिन उस की गंदगी उस से धोई नहीं गई। एक पुश्त (जनरेशन) ऐसी है कि वाह-वाह क्या ही बुलंद नज़र है और उनकी पलकें ऊपर को रहती हैं। एक पुश्त (जनरेशन) ऐसी है कि जिसके दाँत तल्वारें हैं और दाढ़ हैं छुरियां ताकि ज़मीन के मिस्कीनों को काट खाए और गुनाहगारो को ख़ल्क़ में से फ़ना कर दे। फिर यर्मियाह नबी कहता है कि ख़ुदावंद ने उस नस्ल (जनरेशन) को जिस पर उस का क़हर भड़का था मर्दूद किया और तर्क कर दिया है। (यर्मियाह 7:29) यानी उन लोगों को जो बसबब बुत परस्ती के उस के क़हर के लायक़ ठहरे थे मूसा भी इस्राईल को कजरवावर गर्दनकश क़ौम जनरेशन कहता है (इस्तिस्ना 32:5) ये उन लोगों की निस्बत कहा गया था जो आख़िरी ज़माने में होंगे जिनकी बाबत उस ने कहा कि वो ख़ुदा की नज़र में बदी करेंगे। इस आयत का (इस्तिस्ना 31:29) मुक़ाबला करो। “यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने फ़रीसियों और सदूकियों को साँपों के बच्चे (जनरेशन) कहा” जहां कि यही लफ़्ज़ इस्तिमाल किया गया है (मत्ती 3:7) और फिर ख़ुदावंद यसूअ मसीह ने क़ौम यहूद की सख़्त बेदीनी की बाबत मिसाल दी जो (मत्ती 12:43-45) आयतों तक मुंदरज है वो मिसाल एक बदरूह की बाबत थी जो एक आदमी पर से उतरी है लेकिन फिर दुबारा उस के दिल में जाती है ना सिर्फ अकेली बल्कि सात और रूहें जो अज़हद बुरी हों साथ ले जाती है और कहा कि इस ज़माने के लोगों जनरेशन का हाल भी ऐसा ही होगा ये तमाम क़ौम पर आइद होता है जो बुत-परस्ती की आदत को छोड़ कर बाइबल की असीरी के वक़्त यसूअ मसीह से (500 बरस) पेशतर फ़ौरन हर क़िस्म की शरारत में फिर मुब्तला हो गई। ये शरारत करने वाली नस्ल थी और बदतर होती गई जब तक कि उस की बाबत ये कहा गया जैसा कि पौलुस रसूल ने कहा कि जिन्हों ने ख़ुदावंद यसूअ और अपने नबियों को मार डाला और हमें सुनाया और वो ख़ुदा को ख़ुश नहीं करते और सारे आदमीयों के मुख़ालिफ़ हैं। और इसलिए कि उस के गुनाह हमेशा कमाल को पहुंचे हैं वह हमको मना करते हैं कि हम ग़ैर क़ौमों को वो कलाम ना सुना दें जिससे उनकी नजात हो। क्योंकि उन पर ग़ज़ब इंतिहा को पहुंचा। (1 थिस्स्लिनिकीयों 2:15-16) ये शरीर नस्ल है जिसकी बाबत यसूअ मसीह ने लिखा है कि वो शरारत के फ़र्ज़ंद (जनरेशन) हैं मुंदरजा-बाला बाइबल की आयतें जो पेश की गई हैं इस बात के साबित करने के लिए कि लफ़्ज़ generation किसी ख़ास ज़माने के लोगों ही पर नहीं लगाया जाता बल्कि एक वैसी ही ख़सलत के लोगों पर जो किसी दूसरे ज़माने में हों आइद होता है। और हक़ीक़त में (मत्ती 24:34) का यही मतलब है। ख़ुदावंद मसीह ने कौम यहूद का ज़िक्र किया था कि बसबब उन की बेदीनी के उन पर ख़ौफ़नाक मुसीबतें आ पड़ेंगी और कहा गया कि अगर ख़ुदा उस वक़्त को ना घटाता तो एक तन नजात ना पाता लेकिन उन में से उन लोगों की ख़ातिर जो चुने हुए थे वो वक़्त को घटाएगा और बाअज़ उन में से ज़िंदा बचे रहेंगे जब तक कि मुसीबत का ज़माना गुज़र ना जाये और इब्न-ए-आदम आस्मान से ना आए ताकि ज़मीन पर रास्तबाज़ी की सल्तनत क़ायम करे इन्ही माअनों में उस ने कहा कि जब तक ये सब कुछ ना हो ले पुश्त (जनरेशन) गुज़र ना जाएगी। पस जब कि मसीह दूसरी दफ़ाअ आएगा तब वह उस की बादशाहत के क़ाबिल होंगे। और उस वक़्त वो शरारत और ग़र्दनकशी से पछताएँगे और वावीला करेंगे। और ख़ुसूसुन वो इस बात से पछताएँगे कि क्यों उन्होंने उसे रद्द किया और मस्लूब किया था और जब वो उसे देखेंगे वो चिल्लाऐंगे और कहेगे कि मुबारक वो जो ख़ुदावंद के नाम पर आता है (मत्ती 23:39) उस वक़्त से वो कभी फिर शरीर पुश्त नहीं कहलाएँगे। इस सबब से मोअतरिज़ का ये कहना कि इस वाक़िये में इख़्तिलाफ़ रहा और ये कि ये बात मसीह ना ठहरी ठीक नहीं। यहूदी एक ऐसी क़ौम है जो ख़ुदावंद यसूअ मसीह पर ईमान नहीं लाई और अगरचे वो ख़ौफ़नाक मुसीबत जो हो गी उन के शुमार को बहुत घटा देगी ताहम तमाम बर्बाद ना होगी और गुज़र जाएगी जब तक कि इब्न-ए-आदम ना आए और तमाम दूसरी बातें जो बतौर पैशनगोई के कही गईं थीं पूरी ना हों।

राक़िम

(पादरी) जय न्यूटन

शाही दावत का देने वाला

The Royal Invitation

शाही दावत का देने वाला

By

Padri K C Chatarji

पादरी के॰ सी॰ चटर्जी

Published in Nur-i-Afshan August 22, 1889

नूर – अफ़शाँ मत्बूआ 22 , अगस्त 1889 ई ॰

मेरे पास आओ

ये शाही दावत है क्योंकि इस का देने वाला बादशाहों का बादशाह है हम उस के अल्फ़ाज़ से अच्छी तरह से वाक़िफ़ हैं क्योंकि अक्सर ये अल्फ़ाज़ हमारे गोश गुज़ार हुए हैं। हमारी दुआ ये है कि रूहुल-क़ुद्दुस हमारे कान खोल दे ताकि इस दावत में हम बादशाह की आवाज़ पहचानें और इस के अल्फ़ाज़ हमारे दिलों पर-असर करें।

“उस दिन वो समझेंगे कि कहने वाला मैं ही हूँ।”

ख़ुदावंद हम किस के पास जाएं यानी किस शख़्स के पास ना कि किस चीज़ के पास जाएं ये पतरस का सवाल था और यही सवाल हर एक इन्सान का है। हर एक इन्सान चाहता है कि उस के वास्ते एक शख़्सी ज़िंदा आरामगाह और पनाह-गाह होए। ये उस के दिल की आरज़ू और तमन्ना है। ताअलीम, नसीहत और ख़यालात से ये तमन्ना पूरी नहीं होती हर एक इन्सान एक शख़्स है रुहानी रफ़ाफ़त में शख़्स की क़ुर्बत (नज़दिकी) और मेल चाहता है ख़यालात के मुतालआ से उस के दिल की आरज़ू पूरी नहीं होती सो बादशाह ने हमारी हाजत पर ख़याल करके ये शाही और ईलाही दावत हमारी रूह की ख़्वाहिश पूरी करने के लिए भेजी है।

वो कहता है मेरे पास आओ।

मेरे पास आओ। हाँ यही उस की दावत है इस दावत का पूरा मतलब समझने के लिए चाहिए कि ख़ुदावंद यसूअ मसीह की सारे बड़े और अजीब नाम जो बाइबल में उस को दिये गए हैं तलाश करो और उन की फ़हरिस्त बनाओ और हर एक नाम के महाज़ (मैदान, सामने) में लिखो कि ये शख़्स कहता है, मेरे पास आओ। मैं जो क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा हूँ जो नजात देने में क़ादिर हूँ और तुमको बचाने के लिए हमेशा तैयार हूँ तुम मेरे पास आओ।

उस की नसीहत और चाल चलन पर भी सोचो जब वो इस दुनिया में आया था तब किस तरह नेकी करता और सबको तंदुरुस्त करता फिरा, कैसा सब के साथ मेहरबानी और मुहब्बत और फ़ज़्ल से कलाम करता था, हत्ता कि उस के दुश्मनों ने भी इस कलाम को सुन कर इक़रार किया कि किसी इन्सान ने ऐसा कलाम नहीं किया जैसा वह करता है ख़ुद वही मसीह तुमको कहता है मेरे पास आओ वो जो रहम और शाही फ़ज़्ल से भरपूर है वो कहता है मेरे पास आओ।

मसीह मस्लूब पर भी देखो यानी उस अजीब वाक़िया पर नज़र करो जो कुल ख़ल्क़त का मर्कज़ है दुनिया और आक़िबत की तवारीख़ के अजीब माजरे पर ग़ौर करो यानी ख़ुदावंद यसूअ मसीह पर जब वो सलीब पर लटकाया गया क्योंकि वो आप हमारे गुनाहों को अपने बदन पर उठा कर सलीब पर चढ़ गया और उस बोझ के नीचे अपना ख़ून आलूदह सर झुकाया क्योंकि उस की वफ़ादारी मौत तक थी और उस की मुहब्बत ने मौत तक जोश मारा देखो अपने ख़ुदा पर और देखो उस इन्सान पर जिसने तुमको प्यार किया और अपने आपको तुम्हारे बदले दे दिया। उस की मेहरबानी की दावत सुनो वो कहता है मुझ पर देखो और सब चीज़ों पर से अपनी निगाह उठा लो और फ़क़त मसीह-ए-मस्लूब पर देखो और जब तुम देखो याद करो वो फ़रमाता है मेरे पास आओ।

ऐ ज़िंदगी के मुसाफ़िरो क्या तुमको इस बात की परवाह नहीं कि मसीह अपने ग़म की गहराई से तुमको बुलाता है और अपने जलाल की बुलंदी से भी तुमको कहता है। मेरे पास आओ।

ये दावत हर दो हालत में उस के मुँह से निकलती है मसीह-ए-मस्लूब भी तुमको बुलाता है और मसीह सल्तनत करने वाला भी तुम्हारे लिए ये दावत भेजता है देखो तुम इस दावत से ग़ाफ़िल न रहो क्योंकि वो आता है कि मुर्दों और ज़िंदों का इन्साफ़ करे वो अब सल्तनत करता है और उस की सल्तनत में तीसरी क़िस्म के लोग नहीं या उस के दोस्त या उस के दुश्मन हैं, उस की फ़रमांबर्दार रईयत है या उस के बरख़िलाफ़ बाग़ी और सरकश हैं उस की दावत के क़ुबूल करने वाले उस की रईयत हैं जो इस दावत से ग़ाफ़िल रहते हैं वो ही सरकश हैं। तुम इन दो जमाअतों में से किस में शामिल हो।

उस दिन वो समझेंगे कि कहने वाला मैं ही हूँ

v

उस दिन की बाबत सोचो जब बड़ा सफ़ैद तख़्त क़ायम होगा और इब्न-ए-आदम अपने जलाल में आएगा। और उस तख़्त पर बैठेगा और सारे बशर उस के गिर्द में खड़े होंगे और वो उन को एक दूसरे से अलग करेगा। ईमानदारों को अपने दाहने हाथ पर भेजेगा और हमेशा की ज़िंदगी में दाख़िल करेगा और जो उस की दावत से ग़ाफ़िल रहे उन को बाएं हाथ खड़ा करेगा और हमेशा के अज़ाब में उन को भेजेगा याद रखो वो ही यसूअ मसीह तुमको अब कहता है कि मेरे पास आओ। काश कि तुम कह सको।

“मैं जैसा हूँ त्यूँ आता हूँ  मैं साथ कुछ नहीं लाता हूँ।

मसीह पर आँख उठाता हूँ मसीह में आता हूँ

दिल यूं साफ़ ना होवेगा एक दाग़ भी नहीं खोवेगा

सिर्फ तेरा लहू धोवेगा मसीह मैं आता हूँ।”

मेरे पास आने से क्या मुराद है?

बाअज़ इस दावे को पढ़ कर सवाल करते हैं कि आना किस को कहते हैं। मैं इस सवाल का क्या जवाब दूं सिवाए इस के कि, आना आने को कहते हैं। ये फे़अल ऐसा आम और सरीह (साफ़) है कि हर एक इस को बख़ूबी जानता है इस की ज़्यादा तशरीह करना नामुम्किन और फ़ुज़ूल है तो भी मैं चंद बात इस की निस्बत पेश करता हूँ जो मसाइल को इमदाद पहुंचा सकती हैं।

आने के फे़अल में दो मुस्तअमल हैं :-

(1) उस जगह को छोड़ देना जिसमें आने वाला अब खड़ा या मौजूद है।

(2) उस जगह में पहुंच जाना जहां बुलाने वाला खड़ा या मौजूद है।

सो मेरे प्यारे पढ़ने वालो जब ख़ुदावंद यसूअ मसीह तुमको फ़रमाता है कि मेरे पास आओ तब उस की मुराद ये है कि तुम उस जगह को या पनाहगाह छोड़ दो जिसमें तुम अब मौजूद हो तुम अपने नेक अमलों पर भरोसा मत रखो क्योंकि वो पूरे नहीं हैं और नुक़्स से भरे हुए हैं उन को बिल्कुल छोड़ दो तुम उन लोगों पर या पीरों पर या पैग़म्बरों पर या देव-देवी पर जिन पर अब भरोसा रखते हो उनकी भी पनाह छोड़ो, मसीह फ़रमाता है मेरे पास आओ यानी उस के पास पहुंच जाओ उसी को अपनी पनाहगाह बनाओ और उस में वो आराम हासिल करो जिसकी तलाश में तुम हो। फ़र्ज़ करो ख़ुदावंद यसूअ मसीह इस दुनिया में फिर आए और किसी अँधेरी कोठरी में खड़े हो कर तुमको बुलंद आवाज़ से बुलाए मेरे पास आओ तब तुम क्या करोगे। बेशक अगर तुमको यक़ीन हो कि वह आवाज़ ख़ुदावंद यसूअ मसीह की है और वो तुमको नजात देने के लिए क़ादिर है तुम बेशक सारे दिल और सरगर्मी के साथ उस के पास जाओगे तुम्हारा उस के पास जाना इसी अम्र पर मौक़ूफ़ होगा कि तुम उस पर यक़ीन करो। क्योंकि ज़रूर है जो ख़ुदा की तरफ़ आदमी ये यक़ीन करे कि वो मौजूद है अपने ढूँढने वालों को बदला देता है। तुम्हारे यक़ीन पर मौक़ूफ़ है ख़ुदावंद यसूअ मसीह अब हक़ीक़ी तौर पर तुम्हारे नज़्दीक है गो तुम उस को जिस्मानी आँखों से नहीं देखते हो तो भी वो तुम्हारे नज़्दीक है और गोया किसी अँधेरी कोठड़ी में खड़े हो कर बोलाता है कि मेरे पास आओ अब तुम उस की आवाज़ सुनो मत डरो सिर्फ़ ईमान लाओ और अपने आपको उस के क़दमों पर गिराओ तुम उस की दावत अपने हाथ में लेकर ख़ुदावंद की तरफ़ फिरो और उस से कहो कि सारी बदकारी को दूर कर और मुझे इनायत से क़ुबूल कर तुम यक़ीन जानो कि वो तुमको फ़रमाएगा कि उसे जो मुझ पास आता है हरगिज़ निकाल ना दूँगा।

 

अब उम्मीद है कि तुम्हारा शुबहा दूर हो गया होगा। लेकिन अगर अभी तक कुछ बाक़ी है तो मैं तुमसे इल्तिमास करता हूँ कि किताबे-मुक़द्दस को खोलो और मत्ती की इंजील के आठवें बाब से शुरू कर के चारों इंजील का मुतालआ करो और ग़ौर से देखो कि किस तरह ख़ुदावंद के पास लोग आते रहे किस तरह वो अपने दुख दर्द बताते रहे और किस तरह उन को हटा कर अपने घर चले गए वो जानते थे कि वह किस चीज़ के हाजतमंद हैं और वो ये भी जानते थे कि वो हाजतें क्योंकर मसीह के वसीले से पूरी होती हैं सो वो मसीह के पास दौड़ते हुए आए और अपनी हाजतों को पूरी कर गए तुम भी ऐसा ही करो ख़ुदा की पाक रूह से दुआ करो कि वो तुमको तुम्हारी रुहानी हाजत से वाक़िफ़ कर दे और तुम्हारी आँखें मसीह की तरफ़ रुजू कर दे जो सारी हाजतों को दूर करने वाला है तुम्हारे दिलों से शक व शुब्हा दूर हो जाएगा और तुम बख़ूबी जान लोगे कि आना किस को कहते हैं और मुझको कहोगे कि अब हम फ़क़त तेरे कहने से ईमान नहीं लाते क्योंकि हमने ख़ुद सुना और जानते हैं कि ये फ़िल-हक़ीक़त जहान का नजात देने वाला मसीह है और उस को कहोगे ऐ मेरे ख़ुदावंद और ऐ ख़ुदा।

“मसीहा मुझसे बोलता था, ऐ थके मांदे आ

और आके मेरे सीने पर तकिया कर सुस्ता

मैं जल्द गया ख़्वार लाचार सुस्त मांद और उदास

और मैंने ख़ुश और आराम तब पाया उस के पास”

सब कुछ अभी तैयार है।

अभी आओ देर ना करो अभी आओ ये ख़ुदावंद की दावत और फ़र्मान है। सुस्ती करना, ना-फ़र्मानी है अगर हम अपने लड़के को कहें कि मेरे पास आओ और वो फ़ौरन हमारा कहना ना माने बल्कि देर और सुस्ती करता रहे तो हम इस को नाफ़र्माबर्दार लड़का समझते हैं। इसी तरह ख़ुदावंद भी हमको नाफ़र्मान बंदा जानता है अगर उस की दावत हम फ़ौरन क़ुबूल ना करें लफ़्ज़ अभी से जो दावत में है कल नहीं मुराद है ना दो-घड़ी बाद है बल्कि अभी है ये ही लम्हा या साअ़त जो तुम्हारे हाथ में है। आज अगर तुम उस की आवाज़ सुनो तो अपने दिलों को सख़्त ना करो।

मा सिवाए इस के फ़ौरन ना आने से ख़तरा है शायद आज ही रात ख़ुदा तुम्हें अपने पास हिसाब के लिए बुला ले उस का सुमन (हाज़िर अदालत होने का तहरीरी हुक्मनामा) शायद आज ही तुम्हारे पास आए सो आज ही इसी वक़्त मसीह के बेशक़ीमत लहू से इस के साथ मेल करो। कल की बाबत घमंड मत कर क्योंकि तू नहीं जानता है कि कल क्या होगा। शायद कल तुम्हारा दिल ज़्यादा सख़्त हो जाए और रंजीदा रूह जो अब तुमको ख़ुदावंद की तरफ़ उभार रही है अपनी मदद तुम्हारे दिल से उठा ले तब तुम्हारा क्या हाल होगा। वो तवज्जोह जो अब मौजूद है वो भी दूर हो जाएगी तब सख़्त और सुन्न होके ज़िंदगी की नहर में बहते चले जाओगे और आख़िर को समुंद्र में पहुंच कर हलाक होगे।

अभी ख़ुदावंद के पास चले आओ अगर देर करो शायद बीमार हो जाओगे तंदरुस्ती दूर हो जाएगी तक्लीफ़ और बेचैनी तुम पर ग़ालिब होगी तुमको तौबा के लिए फ़ुर्सत ना रहेगी तब आना मुश्किल होगा रूह की बेहतरी का फ़िक्र उस वक़्त हो नहीं सकेगा सो अभी यानी जब तक ताक़त और तंदरुस्ती क़ायम है और तुम्हारे सारे होशो-हवास काम दे रहे हैं तब ख़ुदावंद के पास आओ वो फ़रमाता है। अगरचे तुम्हारे गुनाह क़िरमज़ी हूँ पर बर्फ़ की मानिंद सफ़ैद हो जाएंगे और हर-चंद वो अर्ग़वानी हो जाएं पर इनकी तरह उजले होंगे।

ये शाही दावत ना सिर्फ ख़ुदा बाप और ख़ुदावंद यसूअ मसीह की तरफ़ से है बल्कि रूहुल-क़ुद्दुस की तरफ़ से भी रूह कहती है आ। क्या तुमने कभी ख़्याल किया है कि ख़ुदा की पाक रूह तुमको प्यार करती है और कहती है आ। अगर तुम बे परवाह रहो तो वो रंजीदा होगी और तुमको छोड़कर चली जाएगी रूह की इमदाद तुम्हारे लिए निहायत ज़रूर है क्योंकि बग़ैर उस की मदद के तुम अंदरूनी पाकीज़गी हासिल नहीं कर सकते और बजुज़ अंदरूनी पाकीज़गी के ख़ुदावंद को नहीं देख सकते

 

हर एक दफ़ाअ जो बाइबल में लफ़्ज़ आ पढ़ते हो बेशक जानो कि ये रूह की तरफ़ से दावत है क्योंकि कुल बाइबल रूह के इल्हाम से दिया गया है और बाइबल में ख़ुदा के मुक़द्दस लोग रूहुल-क़ुद्दुस के बुलाये बोलते हैं हर मर्तबा जब तुम्हारे दिल में कुछ शौक़ इस दावत की तरफ़ पैदा होता है बेशक जानों कि वो रूहुल-क़ुद्दुस की तरफ़ से पैदा होता है हर मर्तबा जब तुम ख़ुदावंद के मुहब्बत आमेज़ कलाम को याद करते हो और इस पर अमल करने के लिए मुतवज्जह होते हो तब बेशक जानो कि ये रूहुल-क़ुद्दुस की तरफ़ से है ख़ुद ख़ुदावंद ने फ़रमाया है कि रूहुल-क़ुद्दुस तुम्हें सब चीज़ें सिखलाएगी और सब बातें जो कुछ कि सुनी है तुम्हें कही हैं तुम्हें याद दिलाएगी। रूहुल-क़ुद्दुस सारी नेकी का चशमा है। सो हर एक नेक ख़्वाहिश या इरादा जो तुम्हारे दिल में उठता है ख़्वाह तुम जागते हो ख़्वाह सोते हो यक़ीनन वो रूहुल-क़ुद्दुस की तरफ़ से है।

जब ख़ुदावंद का कोई ख़ादिम तुमको मसीह की तरफ़ बुलाता है या जब कोई तुम्हारा प्यारा दोस्त तुमको ईमान लाने को कहता है तब वो रूह और दुल्हन की तरफ़ से कहता है मसीही कलीसिया दुल्हन है और मुक़र्ररा वसीला है जिसकी मार्फ़त ख़ुदावंद की दावत निकलती है।

क्यों तुम्हारा दिल कभी-कभी बाइबल की तरफ़ मुतवज्जह होता है और तुम नजात के लिए फ़िक्रमंद होते हो ये रूहुल-क़ुद्दुस की तासीर के सबब से है अगर तुम ख़ुदावंद की आवाज़ सुनो और उस की तरफ़ रुजू हो, तो वो आवाज़ तुम्हारे दिलों को ज़्यादा खींचेगी और तुम उस की तरफ़ मुतवज्जह हो कर उस के पीछे-पीछे जाओगे। रूहुल-क़ुद्दुस तुमको चलने के लिए ताक़त देगी तुम पर ख़ुदावंद की हाजत ज़्यादा ज़ाहिर कर देगी तुम पर ख़ुदावंद की खूबियां आश्कारा करेगी ताकि तुम ज़्यादा रुजू लाओ तुम बिल्कुल लाचार हो, मसीह की आवाज़ सुन नहीं सकते हो इस पर अमल भी नहीं कर सकते हो जब तक ख़ुदावंद की पाक रूह तुमको ताक़त ना बख़्शे सो अपने आपको उस के हाथ में सपुर्द करो ख़ुदा से दुआ करो कि वो तुमको रूहुल-क़ुद्दुस का इनाम बख़्श दे मसीह का फ़र्मान है माँगो और तुमको दिया जाएगा हर एक जो मांगता है पाता है। सो अगर तुम ख़ुदा की रूह से महरूम हो तो तुम्हारा क़सूर है तुम मांगते नहीं इस वास्ते नहीं पाते हो, सो माँगो रूहुल-क़ुद्दुस के लिए दुआ करो और ख़ुदा तुमको बख़्शेगा।

नेक ख़यालों को या ख़्वाहिशों को दबा देना बड़ा गुनाह है क्योंकि ये ख़्याल तुम्हारे दिल की ज़ाती पैदाइश नहीं है ये रूहुल-क़ुद्दुस की आवाज़ से बे परवाह रहो तो ये हमेशा सुनाई नहीं देगी ख़ुदावंद ने कहा है कि मेरी रूह इन्सान के साथ उस की गुमराही में हमेशा मुज़ाहमत ना करेगी। यक़ीन जानो कि ख़ुदा का कलाम सच है उस की रूह हमेशा मुज़ाहमत नहीं करेगी लेकिन अब वो मुज़ाहमत करती है और कहती है कि आज के दिन अगर तुम उस की आवाज़ सुनो तो अपने दिलों को सख़्त ना करो उस का कहना मान लो, अपने आपको उस के सुपुर्द करो।

राक़िम

पादरी के॰ सी॰ चटर्जी