मज़्हब का अस्ल काम क्या है?
जैसा हम लोग मज़्हब के नाम से कुछ काम करते या करना चाहते हैं। वैसा ही मज़्हब ख़ुद हमारे लिए कुछ काम करता है। और जहां जानबीन (दोनों जानिब से, फ़रीक़ैन) के काम बराबर हो जाएं वहां कहा जाएगा कि मज़्हब की तक्मील हुई। What is the Purpose of Religion? मज़्हब का अस्ल काम क्या […]
मुहम्मद साहब ने मोअजिज़े किए हैं या नहीं?
अब हम इस बात पर कई एक सवाल करते हैं। सवाल अव़्वल क्या सब मुहम्मदी लोग हदीसों को मानते हैं? नहीं। हर शख़्स को मालूम है कि शीया सब हदीसों को नहीं मानते। सवाल दुवम किया सुन्नी तमाम हदीसों को क़ाबिल-ए-एतिबार समझते हैं कभी नहीं। ये बात साफ़ ज़ाहिर है कि सुन्नी हदीसों को दर्जा […]
मुहम्मद साहब या ख़ुदावन्द मसीह
दुवम, ये अल्फ़ाज़ ऐसो और बनी कतूरह की निस्बत इस्तिमाल नहीं हो सकते। क्योंकि बनी ऐसो और बनी कतूरह बरकत के मालिक नहीं हुए हैं। बनी इस्माईल और बनी-इस्राईल इन दोनों में से अल्फ़ाज़ मज़कूर इस मुक़ाम में बनी-इस्राईल के हक़ में वारिद नहीं हो सकता। क्योंकि यहां हज़रत मूसा बनी-इस्राईल को इकट्ठा कर के […]
मुहम्मद साहब की बशारत का होना तौरेत व इन्जील में?
दूसरी बशारत (ख़ुशी) फ़ारक़लीत (فارقلیط) (हज़रत मुहम्मद का वो नाम जो इन्जील में आया है) की कि ये भी उन्हीं के हक़ में है। और इस की ताईद (हिमायत) में क़ौल डाक्टर गाद फ़्री हेगनस साहब का नक़्ल किया इस मसअले के तहक़ीक़ में लंबे चौड़े मज़्मून की तहरीर इसी अख़्बार में साल गुज़श्ता में […]
मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब का नतीजा
दुनिया में बेशुमार मुख़्तलिफ़ अदयान (दीन की जमा) के राइज होने से है। फ़र्द बशर बख़ूबी वाक़िफ़ है ना सिर्फ वाक़िफ़ बल्कि हर अहले मज़्हब के दिली तास्सुब आपस की अदावत (दुश्मनी), ज़िद, बुग़्ज़ (नफ़रत), हसद, एक दूसरे की ऐब-जोई और नुक़्स गेरी और अपने अपने फ़ख़्र और बड़ाई जताने का क़ाइल (तस्लीम करने वाला, […]
ईसा को ख़ुदा का बेटा कहते हैं
ये सच्च है कि ईसाई ख़ुदावंद ईसा मसीह को ख़ुदा का बेटा कहते और इस कहने पर मुहम्मदी बहुत तकरार (बह्स) करते और लड़ते हैं, कि जो कहे कि मसीह ख़ुदा का बेटा है सो काफ़िर है। बल्कि अगर उनको कुछ क़ुद्रत (इख़्तियार) होतो जान से भी मार डालने पर आमादा (राज़ी) हैं जैसे कि […]
ईसा मिला मसीह नासरी मिला मूसा ने जिसकी दी थी ख़बर वो नबी मिला
कलाम-उल्लाह के मुख़्तलिफ़ 66 किताबों का मुतफ़र्रिक़ मुसन्निफ़ों की मार्फ़त तस्नीफ़ होने और उन में क़िस्म क़िस्म के मज़ामीन मुन्दरज होने से हम दर्याफ़्त कर सकते हैं कि बाअज़ नादान कोताह अंदेशों (कम-इल्म, कम-फ़ह्म) का मह्ज़ किसी एक ही किताब या उस के किसी एक ही मज़्मून से कोई बड़ी और अहम ताअलीम पैदा कर […]
बाअज़ आयात क़ुरआन पर सरसरी रिमार्क्स
साल गुज़श्ता यानी 94 ई॰ के दर्मियानी चंद हफ़्तों के पर्चे अख़्बार नूर-अफ़्शां में एक मज़्मून ब उन्वान “बाअज़ ख़यालात-ए-मुहम्मदी” पर सरसरी रिमार्क्स (राय, क़ौल) दर्ज हुआ। जिसमें मुहम्मदी साहिबान के बाअज़ ख़यालात दीनिया व रूहानिया का ख़ुलासा, जिनको वो अपने तईं अहले-किताब समझ कर क़ुरआन व हदीस के मुवाफ़िक़ Minor Remarks on some verses […]
वो जो मिस्कीन पर ज़ुल्म करता है
ख़ुदा पर ईमान लाना आपस के फ़राइज़ की अदायगी का सर-चशमा है। सुलेमान की निस्बत एक बुज़ुर्ग तर शख़्स ने यही हिदायत अपने उस शागिर्द को दी जो उस की छाती पर तकिया करता था। चुनान्चे वही यूहन्ना अपने मकतूब (ख़त) में लिखता है। और हमने उस से ये हुक्म पाया कि जो कोई ख़ुदा […]
आस्मान की बादशाहत (मत्ती 7:21)
ये मज़्मून इस सबब से तहरीर किया गया है कि जब बाज़ारों में वाज़ किया जाता है तो अक्सर सामईन (सुनने वालों) ने ये एतराज़ किया है, कि अजी ईसाईयों के वास्ते तो हज़रत ईसा ने अपनी जान दे दी। कफ़्फ़ारा हो गए। पस अब ये जो जी चाहे सो करें। चंद रोज़ हुए कि […]
बाअज़ बुत-परस्त मुख़ालिफ़ों की शहादतें
रूमी सिपाही जो उस की क़ब्र के निगहबान मुक़र्रर किए गए थे। और जिनका मसीह की तरफ़ कोई दोस्ताना ख़याल भी ना था। उन्होंने सरदार काहिनों को इत्तिला दी, कि एक ज़लज़ला वाक़ेअ हुआ। और एक अजीब सूरत ज़ाहिर हुई जिसने पत्थर को ढलकाया। मत्ती 28:2, 4 और अगरचे वो ख़ौफ़-ज़दा थे ताहम उन्होंने मालूम […]