इस्लाम पर मुकालमा

ज़ेल का मुकालमा चूँकि आपके मुलाहिज़े के क़ाबिल है लिहाज़ा मैंने चाहा कि इसे एक काग़ज़ पर लिख कर आपके पास ना भेजूँ पस आप भी बराहे मेहरबानी पढ़ कर बज़रीये नूर-अफ़्शां शाएअ फ़र्मा दीजिए। ये मुकालमा माबैन एक मुहम्मदी और एक ईसाई वाइज़ के हुआ है। Dialogue on Islam इस्लाम पर मुकालमा By Kidarnath […]

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ऐ बोझ से दबे हुए

अगर कोई शख़्स हक़ का तालिब हो कर सवाल करे, कि किस तरह नजात पाऊँगा उस के लिए ये अच्छा और तसल्ली का जवाब है, कि अगर तू सच-मुच फ़ज़्ल का मुहताज और दिल के आराम और हयात-ए-अबदी का आर्ज़ूमंद है, तो जो तू चाहता है सो पा सकता है। मसीह की तरफ़ रुजू कर […]

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अल-सालूस अल-क़ुद्स

गुज़श्ता मज़्मून में हमने मसअला सालूस (ख़ुदा की वहदानियत की तीन शाख़ें, बाप, बेटा, रूह-उल-क़ुद्स) का एक अक़्ली सबूत देने की कोशिश की थी। अब इसी सिलसिले में दूसरी कोशिश की जाती है। याद रहे कि यहां हमारा काम अक़्ले इंसान से है। हम ये दर्याफ़्त कर रहे हैं कि आया अक़्ले इंसान के नज़्दीक […]

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बरकत और लानत के हक़दार

और ख़ुदावन्द ने अबराहाम को कहा था कि तू अपने मुल्क और अपने क़राबतियों (रिश्तेदारों) के दर्मियान से और अपने बाप के घर से उस मुल्क में जो मैं तुझे दिखाऊँगा निकल चल। और मैं तुझे एक बड़ी क़ौम बनाऊँगा और तुझको मुबारक और तेरा नाम बड़ा करूँगा। और तू एक बरकत होगा। और मैं […]

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ज़बूर 119:37

इस आलम में जिधर नज़र डालो आँख के लिए एक दिलकश नज़ारा दिखलाई देता है। इस दुनिया की हर एक शैय इन्सान की नज़र में पसंदीदा मालूम होती है। और इंसान के दिल को फ़रेफ़्ता (आशिक़, दिलदादा) कर देती है। अगरचे ख़ल्क़त की किसी चीज़ को पायदारी नहीं। और जिस शैय को आँख देखकर एक […]

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सच्ची दोस्ती

सच्ची दोस्ती का एक बड़ा ख़ास्सा ये है, कि जब कोई अपने दोस्त की निस्बत कोई नामुनासिब बात उस की ग़ैर-हाज़िरी में सुने तो इस मौक़े पर वफ़ादारी ज़ाहिर करे। अक्सर देखा जाता है, कि इन्सान इस क़द्र अपनी तारीक दिली और कमज़ोरी ज़ाहिर करता है, कि अपने ही दोस्तों की निस्बत जिनकी दोस्ती का […]

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अपनी तक़्लीफों पर ग़ौर करो

मज़्मून हज़ा इरसाल-ए-ख़िदमत है। उम्मीद वासिक़ (मज़्बूत, पक्का यक़ीन) है कि अपने अख़्बार गो हर बार के किसी गोशा (हिस्सा, कोना) में दर्ज फ़र्मा कर राक़िम को ममनून व मशकूर (एहसानमंद व शुक्रगुज़ार) फ़रमाएँगे। Look at you sufferings अपनी तक़्लीफों पर ग़ौर करो By One Disciple एक शागिर्द Published in Nur-i-Afshan July 15, 1895 नूर-अफ़्शाँ […]

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मूसा व येसू की मुवाफ़िक़त

कलाम पाक से करे तमीज़ (फ़र्क़) मूसा येसू मसीह का बहुत ही साफ़-साफ़ और खुला हुआ निशान था। चुनान्चे उसने ख़ुद बनी-इस्राईल के सामने अपने को ख़ुदावन्द येसू मसीह से निस्बत दी। जैसा कि इस्तिस्ना 18:15 में मर्क़ूम है। ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे लिए तेरे ही दर्मियान से तेरे भाईयों में से मेरी मानिंद एक […]

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मुक़द्दस तस्लीस

और बेशक यही दोनों बातें मसीही मज़्हब की ख़ास व ज़रूरी बातें, बल्कि आला उसूल हैं। जिन पर इन्सान की नजात का दारो मदार है। और चूँकि वो इसरारे इलाही हैं। इसलिए उनका पूरे तौर पर समझ में आना भी दायरा महदूद अक़्ल-ए-इंसानी से बिल्कुल बाहर और नामुम्किन अम्र है। जब कि हम इन्सान अपनी […]

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मुझे कब मानते हो तुम

नाज़रीन हमारे ख़ुदावन्द येसू अल-मसीह ने इन्जील यूहन्ना 5:46 के मुताबिक़ यहूदीयों के रूबरू इस अम्र का दाअवा किया, कि मूसा ने मेरे हक़ में लिखा है और इसी की ताईद (हिमायत) में पतरस रसूल ने उन लोगों से जो निहायत हैरान हो के उस बर आमदा की तरफ़ जो सुलेमान का कहलाता है। उन […]

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वाइज़ तुम्हारी कमरें बंधी रहें

मसीह कहता है कि मैं नागहानी रात के वक़्त जैसे दूल्हा शादी के लिए आता है तुम शागिर्दों के पास आऊँगा ख़ुदावन्द हम सब मसीहियों को हुक्म देता है कि तुम्हारी कमर बंधी रहे, और तुम्हारा दिया जलता है। Sermon Get dressed for Service वाइज़ तुम्हारी कमरें बंधी रहें By Padri Pram Sukh पादरी परम […]

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तजस्सुम ख़ुदा

इस मसअले पर मुख़ालिफ़ बहुत एतराज़ करते हैं। और बाअज़ सिरे से इस का इन्कार करते हैं और कहते हैं, कि ख़ुदा का मुजस्सम (जिस्मदार) होना बिल्कुल नामुम्किन और अक़्ल के ख़िलाफ़ है। हम इस मज़्मून में साबित करेंगे कि अक़्ल के नज़्दीक ख़ुदा का मुजस्सम होना बिल्कुल मुम्किन है। अक्सर एतराज़ ये होता है, […]

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