किसी दुसरे से नजात नहीं
उन्नीसवीं सदी होने वाली है कि ये कलाम कहा गया। हज़ारों मील हमसे दूर पतरस हवारी की ज़बानी अहले-यहूद की बड़ी कचहरी में क़ैदी की हालत में उन के बड़े बड़े सरदारोँ और बुज़ुर्गों के रूबरू ये अल्फ़ाज़ कहे गए। ज़मानों को तै कर के ये अल्फ़ाज़ समुंद्र और ख़ुश्की का सफ़र कर के हमारे […]
मसीह दाऊद की नस्ल से
इस में शक नहीं, कि यसूअ मसीह जिस्म की निस्बत दाऊद की नस्ल से हुआ। मगर मुक़द्दस रूह की निस्बत क़ुद्रत के साथ अपने जी उठने के बाद ख़ुदा का बेटा साबित हुआ। लेकिन ये अम्र भी क़ाबिल-ए-लिहाज़ और उस की उलुहिय्यत पर दाल (दलालत) है कि वो दाऊद की अस्ल भी है। जैसा कि […]
हज़रत मूसा का जानशीन
जब बनी-इस्राईल मुल्क कन्आन में पहुंच गए। तो वो मन जो वो ब्याबान में खाया करते थे आस्मान से बरसना बंद हो गया। और वो इस मुल्क के उम्दा और नफ़ीस फल और हासिलात (पैदावार) खाने लगे। और आगे बढ़ते बढ़ते यरीहू शहर तक पहुंचे। ये एक बड़ा आलीशान शहर था, जिसकी शहर-पनाह निहायत मज़्बूत […]
हमारी ज़िन्दगी
इंसान की ज़िंदगी में ख़ास तीन हालतें हैं या यूं कहो कि इंसान के आयाम-ए-ज़िंदगी तीन बड़े हिस्सों में मुनक़सिम (तक़्सीम) हैं। बचपन, जवानी, बुढ़ापा। इनमें से उम्र का पहला हिस्सा वालदैन की निगरानी और उस्तादों की सुपुर्दगी (तहवील) में गुज़रता है। और नाबालिग़ होने की सूरत में दूसरों की मर्ज़ी और ख़्वाहिश के मुवाफ़िक़ […]
फ़ुर्सत पाकर तुझे फिर बुलाऊंगा
कुछ अर्से बाद हमें फिर फ़ुर्सत हुई है, कि बमईय्यत नाज़रीन (देखने वालों के साथ) नूर-ए-अफ़्शां फेलिक्स बहादुर के इस जवाब पर, जो एक रूमी हाकिम, तजुर्बेकार और बहुत बरसों से केसरिया की अदालत पर मुतमक्किन (जगह पर क़ायम) था और रूमी मज़्हबी व मुल्की क़वानीन के इलावा क़ौमे यहूद के तरीक़ की बातों से […]
अस्बाब-ए-इत्तिहाद
मसीह ख़ुदावंद की बाबत बहुत सी ग़ैर-इंजीली रिवायत में से एक ये भी है जो मुझको बहुत प्यारी मालूम होती है याद नहीं कि इस का ज़िक्र कहाँ है कहते हैं कि रास्ते पर एक कुत्ता मरा पड़ा था राहगीर बच कर निकल जाते। और तरह तरह से उस पर अपनी नफ़रत ज़ाहिर करते थे […]
खुदा का बर्रा
ये साफ़ शहादत (गवाही) ख़ुदावन्द यसूअ के कफ़्फ़ारा गुनाहाँ (गुनाह की जमा) बनी-आदम होने की निस्बत एक ऐसी बर्गुज़ीदा व मक़्बूल रसूल की है, जिसकी रिसालत यहूदीयों, मसीहों, और मुहम्मदियों के नज़्दीक बिल-इत्तिफ़ाक़ वाजिब Lamb of God खुदा का बर्रा By One Disciple एक शागिर्द Published in Nur-i-Afshan April 27, 1894 नूर-अफ्शाँ मत्बूआ 27 अप्रैल […]
दरवाज़ा मैं हूँ
एक आलिम का क़ौल है, कि “बहिश्त (जन्नत) का दरवाज़ा इतना चौड़ा और कुशादा है, कि अगर तमाम दुनिया के आदमी एक दम से उस में दाख़िल होना चाहें, तो बिला तक्लीफ़ व कश्मकश दाख़िल हो सकते हैं। लेकिन वो इस क़द्र तंग भी है, कि कोई शख़्स एक रत्ती भर गुनाह अपने साथ लेकर […]
दरवाज़ा मैं हूँ
एक आलिम का क़ौल है, कि “बहिश्त (जन्नत) का दरवाज़ा इतना चौड़ा और कुशादा है, कि अगर तमाम दुनिया के आदमी एक दम से उस में दाख़िल होना चाहें, तो बिला तक्लीफ़ व कश्मकश दाख़िल हो सकते हैं। लेकिन वो इस क़द्र तंग भी है, कि कोई शख़्स एक रत्ती भर गुनाह अपने साथ लेकर […]
ज़िंदा ख़ुतूत की ज़रूरत
इस में कोई कलाम नहीं, कि मौजूदा सदी इल्म व हुनर की तरक़्क़ियात की सदी है। लेकिन शायद जिस क़द्र छापे की कुल (मशीन) ने शाइस्ता ममालिक में पांव फैलाए हैं। और सब कलें (मशीन की जमा) मिला कर इस से निस्फ़ काम नहीं करतीं। बल्कि ये कहना कुछ ग़लत ना होगा, कि इस ज़माने […]
साईंस और मसीहिय्यत
ये सवाल फ़ी ज़माना निहायत गौरतलब है। हमारे लोकल हम-अस्र सियोल ऐंड मिल्ट्री न्यूज़ के ख़याल में तो साईंस और उलूम-ए-जदीदा की तरक़्क़ी मसीहिय्यत को ना सिर्फ सदमा पहुंचा सकती है बल्कि बड़ा सदमा पहुंचाया है। वो लिखता है कि “फ़्रांस और अमरीका में 90 फ़ीसद आदमी ऐसे मिलेंगे जो तस्लीस के मुअतक़िद (मानने वाले) […]
ईसाई मज़्हब का फल
ग़ैर-विलायतों में, अव़्वल मुल्क यहूदिया में, इस मज़्हब की बिना मह्ज़ मुहब्बत और हिल्म (नर्मी, फिरोतनी) पर रखी गई है। इस के बानी ने जबकि वो इस छोटे से मुल्क में ज़ाहिर हुआ अवाम की बेहतरी और बहबूदी के दरपे हो कर अपने आराम का ख़याल ना कर के मुहब्बत की राह से हर तरह […]