अपनी तक़्लीफों पर ग़ौर करो

मज़्मून हज़ा इरसाल-ए-ख़िदमत है। उम्मीद वासिक़ (मज़्बूत, पक्का यक़ीन) है कि अपने अख़्बार गो हर बार के किसी गोशा (हिस्सा, कोना) में दर्ज फ़र्मा कर राक़िम को ममनून व मशकूर (एहसानमंद व शुक्रगुज़ार) फ़रमाएँगे।

Look at you sufferings

अपनी तक़्लीफों पर ग़ौर करो

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan July 15, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 15 जुलाई 1895 ई॰

जनाब एडीटर साहब

तस्लीम

मज़्मून हज़ा इरसाल-ए-ख़िदमत है। उम्मीद वासिक़ (मज़्बूत, पक्का यक़ीन) है कि अपने अख़्बार गो हर बार के किसी गोशा (हिस्सा, कोना) में दर्ज फ़र्मा कर राक़िम को ममनून व मशकूर (एहसानमंद व शुक्रगुज़ार) फ़रमाएँगे।

यूनान की तवारीख़ में एक सिपाही का ज़िक्र है। जो कि एंटी गोंस बादशाह की फ़ौज में भर्ती था। उस के बदन में शिद्दत से दर्द रहता था। जिसके बाइस वो निहायत बेचैन और बेक़रार था। जंग के वक़्त वही सिपाही सब सिपाहीयों से ज़्यादा दिलेरी से लड़ता और बेधड़क दुश्मनों पर हर्बा (दाओ, हमला) करता था। उस का दर्द उस को लड़ाता था क्योंकि जब तक वो सख़्त जंग में मसरूफ़ रहता था। अपने दर्द को भूला रहता था। ये भी उस का ख़याल था, कि ख़्वाह दर्द से ख़्वाह दुश्मन की गोली से उस की मौत क़रीब है।

पस अपनी ज़िंदगी को हीच (कमतर) समझ कर बे-ख़ौफ़ मैदान-ए-जंग में अपने दुश्मनों से मुक़ाबला करता था। एंटी गोंस बादशाह ने उसी सिपाही की बहादुरीयां देखकर उस की क़द्र की और उस का हाल व चाल दर्याफ़्त किया। और जब मालूम हुआ कि वो दर्द में मुब्तला रहता है तो उस को एक होशियार हकीम के सपुर्द किया। ताकि उस का ईलाज किया जाये। बादशाह ने कहा कि ऐसे अच्छे सिपाही को दर्द से रिहा होना चाहिए क्योंकि जब वो दर्द से रिहाई पाएगा तो और भी ज़्यादा कार्रवाई करेगा। पस हकीम ने इस सिपाही का ईलाज किया और उस का दर्द जाता रहा। लेकिन जब वो अच्छा हो गया तो उस की दिलेरी और सिपाही गिरी में फ़र्क़ आ गया। वो अपने आराम की तरफ़ रुजू हुआ। उसने अपने साथीयों से कहा, कि अब मैं क्यों अपनी जान को मैदान-ए-जंग के ख़तरों में डालूं? अब क्यों अपनी ज़िंदगी को खोऊं जब कि तंदरुस्ती, आराम और ख़ुशीयां हैं।

ऐ नाज़रीन मज़्कूर बयान से ज़ेल की नसीहतें हासिल होती हैं जिन पर आपकी तवज्जोह मबज़ूल (तवज्जोह दिलाना) कराना चाहता हूँ।

1. बाअज़ दफ़ाअ ख़ुदा तक़्लीफों के ज़रीये हमको अपने नज़्दीक बुलाता है। तक्लीफ़ व मुसीबत के वक़्त ही ज़्यादा ख़ुदा की तरफ़ देखते, उस पर भरोसा रखते और दिल से उस की ख़िदमत करते हैं।

2. जैसे पानी के सेलाब ने नूह की कश्ती का नुक़्सान ना किया उस को ऊपर उठाया गोया आस्मान के नज़्दीक पहुंचाया वैसे ही मुसीबतें ख़ुदा परस्तों को ऊपर की जानिब उठातीं और ख़ुदा के नज़्दीक पहुंचाती हैं।

3. बाअज़ क़िस्म के पौदे ऐसे होते हैं कि जितना ज़्यादा उन को कुचलो उतना ही ज़्यादा ख़ुशबू देते हैं। यूँही ईमानदार जितना ज़्यादा मुसीबतों से कुचला जाता है उतना ही ज़्यादा ख़ुशबू देता है।

4. दुख हमारे दिल को दुनिया से हटाता और आस्मान के अबदी आराम की तरफ़ रुजू कराता है। रूह अपने बाज़ुओं को फैलाती और आस्मान को उड़ जाने के लिए मुश्ताक़ (ख़्वाहिशमंद) होती है।

5. अक्सर तंदरुस्ती व आराम व ख़ुशीयों के वक़्त दुनिया दिल में घुसी आती है। आदमी दुनिया और उस की चीज़ों के लिए जीता और पैरवी करता और ख़ुदा और उस की चीज़ें दिल से दूर हो जाती हैं। पस ख़ुदा जो कुछ हमारे लिए करता इस में उस की मस्लिहत (नेक सलाह) और हमारी बेहतरी है। लिहाज़ा मज़मूर नवीस के साथ हम-आवाज़ हो कर यूं कहें, कि “भला हुआ कि मैंने दुख पाया ता कि तेरे हुक्मों को सीखूं।” ज़बूर 110:71 आयत

सच्ची दोस्ती

सच्ची दोस्ती का एक बड़ा ख़ास्सा ये है, कि जब कोई अपने दोस्त की निस्बत कोई नामुनासिब बात उस की ग़ैर-हाज़िरी में सुने तो इस मौक़े पर वफ़ादारी ज़ाहिर करे। अक्सर देखा जाता है, कि इन्सान इस क़द्र अपनी तारीक दिली और कमज़ोरी ज़ाहिर करता है, कि अपने ही दोस्तों की निस्बत जिनकी दोस्ती का वो दम भरता है बुरी और

True Friendship

सच्ची दोस्ती

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan August 2, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 2 अगस्त 1895 ई॰

सच्ची दोस्ती का एक बड़ा ख़ास्सा ये है, कि जब कोई अपने दोस्त की निस्बत कोई नामुनासिब बात उस की ग़ैर-हाज़िरी में सुने तो इस मौक़े पर वफ़ादारी ज़ाहिर करे। अक्सर देखा जाता है, कि इन्सान इस क़द्र अपनी तारीक दिली और कमज़ोरी ज़ाहिर करता है, कि अपने ही दोस्तों की निस्बत जिनकी दोस्ती का वो दम भरता है बुरी और नामुनासिब ख़बरें सुन कर राज़ी होता है। क्या ये रोज़ मर्रा की बात नहीं है कि इन्सान का नेचर जब औरों के क़ुसूरों ग़लतीयों या कमियों को दिल लगा कर सुनता है। सुनने से ख़ुश होता है। कम-अज़-कम हमको इस क़द्र तो इक़रार करना पड़ेगा, कि इस तरफ़ इन्सान का बड़ा मीलान (रुझान) है। लेकिन हमको मुनासिब है कि हम दुनिया में मुहब्बत का ऐसा नमूना दिखला दें। जो ऐसी बुरी बातों को सुनकर जो इस को ज़रर (नुक़्सान) पहुंचाती हैं। या उस के नुक़्स और कमियों को ज़ाहिर करती हैं। ख़ुश हूँ हम पर वाजिब (फ़र्ज़) है कि इस से हमारे दिल में रंज (अफ़्सोस) हो।

मसीही मुहब्बत का ये तक़ाज़ा है कि हम अपने दोस्त के चाल चलन के बचाओ में इस क़द्र सरगर्मी ज़ाहिर करें। जैसा कि हम अपनी ख़ातिर किया करते हैं। हम सच-मुच अपने भाई के रखवाले हैं। पौलुस रसूल क्या ही मुहब्बत की तारीफ़ करता है मुहब्बत साबिर है और मुलायम है। मुहब्बत डाह (हसद) नहीं करती, मुहब्बत शेख़ी नहीं मारती। और फूलती नहीं बेमौक़ा काम नहीं करती। ख़ुद-ग़र्ज़ नहीं ग़ुस्सा व रुनाएं बदगुमान (बदज़न, शक्की) नहीं। नारास्ती से ख़ुश नहीं बल्कि रास्ती से ख़ुश है। सब बातों को पी जाती है सब कुछ बावर (यक़ीन) करती है सब चीज़ की उम्मीद रखती है सबकी बर्दाश्त करती है।” अलीख। अगर ये मुहब्बत हमारे दिल में हो और हम इस पर अमल करें तो ग़ौर कीजिए और सोचिए कि किस क़द्र नाइत्तिफ़ाक़ी और आपस का रंज और जुदाईयां और झगड़े और बद इंतिज़ामीयाँ हमारी सोसाइटी हमारी कमवेंटी हमारे मुल्क से जाते रहेंगे और किस क़द्र चेन और आराम और मिलन-सारी और दिली इत्मीनान हम हासिल करेंगे और किस क़द्र ख़ुशी और तसल्ली हमारा बख़रा (हिस्सा) होगी।

नाज़रीन नूर-अफ़्शां को याद होगा कि दो हफ्ते गुज़रे कि हमने एक ख़त का तर्जुमा जो अमरीका के 22 बोर्ड की जानिब से उनकी मुताल्लिक़ा कलीसियाओं के नाम सेल्फ सप्रोट के बारे में ही दर्ज अख़्बार किया था हमारी ग़र्ज़ इस के इंदिराज से ये थी कि हमारे अहले अल-राए मसीही नाज़रीन इस अम्र पर ग़ौर कर के इस मुआमले में अपनी आज़ाद राय दें हमारे ख़याल में ये अम्र हिन्दुस्तान के मसीहियों के लिए बड़ा गौरतलब अम्र है और जिस क़द्र जल्द हो सके अगर हिंद के मसीही इस को अमली तौर पर हल करें तो निहायत ही मुनासिब होगा। हम जानते हैं कि अमली तरीक़े और अमली तदाबीर पेश की जाएं ता कि इस पर अमल-दर-आमद होने लगे।

ज़बूर 119:37

इस आलम में जिधर नज़र डालो आँख के लिए एक दिलकश नज़ारा दिखलाई देता है। इस दुनिया की हर एक शैय इन्सान की नज़र में पसंदीदा मालूम होती है। और इंसान के दिल को फ़रेफ़्ता (आशिक़, दिलदादा) कर देती है। अगरचे ख़ल्क़त की किसी चीज़ को पायदारी नहीं। और जिस शैय को आँख देखकर एक वक़्त हज़ (लुत्फ़, ख़ुशी) उठाती थी वो दम-भर में बिगड़ कर ऐसी बद-शक्ल और घिनौनी

Psalm 119:37

ज़बूर 119:37

By

Allama G L Thakurdas
अल्लामा जी एल ठाकुरदास

Published in Nur-i-Afshan April 12, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 12 अप्रैल 1895 ई॰

मेरी आँखों को फेर दे कि बुतलान (झूट, नाहक़) पर नज़र ना करें। (ज़बूर 119:37)

इस आलम में जिधर नज़र डालो आँख के लिए एक दिलकश नज़ारा दिखलाई देता है। इस दुनिया की हर एक शैय इन्सान की नज़र में पसंदीदा मालूम होती है। और इंसान के दिल को फ़रेफ़्ता (आशिक़, दिलदादा) कर देती है। अगरचे ख़ल्क़त की किसी चीज़ को पायदारी नहीं। और जिस शैय को आँख देखकर एक वक़्त हज़ (लुत्फ़, ख़ुशी) उठाती थी वो दम-भर में बिगड़ कर ऐसी बद-शक्ल और घिनौनी (गहन लगना, रौनक कम होना) हो जाती है कि आँख उस के देखने से बे-ज़ार (अफ़्सुर्दा, नाख़ुश) हो जाती है।

लेकिन मौजूदा हालत में कुछ वक़्त के लिए तो इन्सान अश्या की ज़ाहिरा रौनक और ख़ूबसूरती को देखकर ग़लतां व पेचां (परेशान) हो जाता है। और अपने ख़ालिक़ व मालिक और दीन व उक़बी को बिल्कुल भूल जाता है। और इस तरह पर इस दुनिया की लुभाने वाली चीज़ों पर अपना दिल लगा कर अपनी क़लील (छोटी, कम) ज़िंदगी को ख़तरे में डालता है।

बड़े आलिम और दाना सुलेमान ने जिसका सानी (हम-पल्ला) दुनिया में नहीं हुआ अपना तजुर्बा यूं ज़ाहिर किया है, कि सब कुछ जो मेरी आँखें चाहती हैं मैंने उनसे बाज़ नहीं रखा। मैंने अपने दिल को किसी तरह की ख़ुशी से नहीं रोका क्योंकि मेरा दिल मेरी सारी मुहब्बत से शादमान हुआ। और मेरी सारी मेहनत से मेरा बख़राह (हिस्सा, टुकड़ा) ये ही था। बाद इस के मैंने उन सब कामों पर जो मेरे हाथों ने किए थे। और उस मेहनत पर जो मैंने काम करने में खींची थी नज़र की और देखा कि सब बुतलान (झूट) और हवा की चिरान (निहायत तेज़ चलना) है और आस्मान के तले कुछ फ़ायदा नहीं। (वाइज़ 2:10-11) इसी तजुर्बा पर उस का ये मक़ूला (क़ौल, बात) क़ायम हुआ बुतलानों की बुतलान वाइज़ कहता है। सब बुतलान हैं। वाइज़ 12:8

सुलेमान का तजुर्बा और मक़ूला बिल्कुल दुरुस्त है लेकिन इस दुनिया में आदम की नस्ल से कोई ऐसा इंसान पैदा नहीं हुआ जिसने दुनिया की चीज़ों को देखा और उनमें नहीं उलझा। मगर एक औरत की नस्ल से पैदा हुआ जिसने दुनिया की सारी बादशाहतें और उनकी शान व शौकत देखी लेकिन इन सब दिलफ़रेब (हसीन, ख़ूबसूरत) चीज़ों को बुतलान समझा। मत्ती 4:8, 9, 10 और इबादत इलाही को मुक़द्दम ठहराया।

आयत मुन्दरिजा सदर दाऊद की दुआ का एक फ़िक़्रह है जिसमें दाऊद बादशाह ख़ुदा की दरगाह में मुल्तमिस (अर्ज़ करने वाला) है, कि उस की आँखें फेरी जाएं ताकि वो बुतलान पर नज़र ना करे। अगरचे इन्सान की तबीयत नफ़्सानी और जिस्मानी होने के सबब से अपनी आँखों को दुनिया की बातिल (झूटी) अश्या पर ज़्यादा लगाती है या यूं कहो कि इंसान की तबीयत का मीलान (तवज्जोह, ख़्वाहिश) चीज़ों की तरफ़ ज़्यादा है मगर हो सकता है कि मदद एज़दी (ख़ुदा की तरफ़ मदद) और ताक़त इलाही पा कर इंसान की आँखें इस तरफ़ से घुमाई जाएं और आस्मानी और ग़ैर-फ़ानी चीज़ों की तरफ़ लगाई जाएं। इस के लिए निहायत ज़रूर है कि ख़ुदा से दुआ की जाये जिस तरह कि दाऊद ने की। और ख़ुदा क़ादिर है कि इस ख़राबी से इन्सान को बचाए। और उस को उन आस्मानी और रुहानी नेअमतों के ईमान की आँखों से देखने के लायक़ बनाए। जो इस दुनिया के गुज़र जाने के बाद हमेशा के लिए रहेगी। जिनकी ख़ूबसूरती और रौनक इनके मुक़ाबला में कुछ हक़ीक़त नहीं रखती।

वो ये कहता ही था कि देखो एक नूरानी बदली ने उन पर साया किया और देखो इस बादल से एक आवाज़ इस मज़्मून की आई की ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे मैं ख़ुश हूँ। तुम उस की सुनो। मत्ती 17:5

इस नूरानी बदली (रोशन बदली) में ख़ुदा जल्वा-नुमा हुआ। क्योंकि ख़ुदा नूर है और नूर में रहता है। 1 तमीथीसि 6:16 और उस ने उन शागिर्दों पर ख़ुदावन्द येसू मसीह की क़दरो मंजिलत और इलाही आला दर्जा ज़ाहिर करने के लिए कि जिन पर मसीही मज़्हब की इशाअत और आइन्दा तरक़्क़ी बहुत कुछ मौक़िफ़ व मुन्हसिर (ठहरने की जगह) थी। अपनी आस्मानी आवाज़ से उस राज़ मख्फी (पोशीदा) व इसरार ग़ैबी (ग़ायब) और भेद अज़ली को ज़ाहिर किया। जिसका जानना बनी-इंसान के लिए ज़रूर था। क्योंकि ये कोई अक़्ली मसअला नहीं था कि जिसको इंसान अपनी अक़्ल से दर्याफ़्त कर लेता। इसलिए अगरचे इस से पेश्तर मसीह ख़ुदावन्द ने अपनी ज़बाने मुबारक से अपने आपको ख़ुदा का बेटा कहा था। लेकिन अशद ज़रूरत थी कि आलम-ए-बाला की तरफ़ से आस्मानी आवाज़ इस पर गवाही दे और बनी-आदम को यक़ीन दिलाए ता कि वो उस के मानने में ताम्मुल (शक शुब्हा) ना करें ये वाक़िया शागिर्दों के ईमान के मज़्बूत करने और उन के एतिक़ाद (यक़ीन) को क़ायम करने के लिए ज़रूर था। हम चाहते हैं कि नाज़रीन ज़रा इस पर ग़ौर करें।

मज़्मून आवाज़

ये मेरा प्यारा बेटा है जिससे मैं ख़ुश हूँ। तुम इस की सुनो। इस मज़्मून के दो हिस्से हैं :-

1. ख़ुदावन्द येसू मसीह की इलाही ज़ात को शागिर्दों पर ज़ाहिर करना कि वो ख़ुदा का प्यारा बेटा है।

2. शागिर्दों को मुतवज्जोह करना कि वो सुनें कि ख़ुदा का प्यारा बेटा उन से क्या कहता है।

पहले अम्र की निस्बत हम ये कहते हैं, कि जब से ख़ुदा ने अपने पाक कलाम में जिसको अह्दे-अतीक़ (पुराना-अहद) कहते हैं पहले ईमानदारों को अपने बेटे की ख़बर दी और मुख़्तलिफ़ किनाइयों (मतलब) और इशारों में उस की आमद का मसरदा (ख़ुशख़बरी, बशारत) दिया और फिर अपने कलाम मुक़द्दस में जिसको अह्दे-जदीद (नया-अहद) कहते हैं अपने बेटे के कुल हालात मुश्तहिर (मशहूर) करवाए उस के दुनिया में मुजस्सम हो कर आने से लेकर उस के मस्लूब होने तक के तमाम अहवाल जो बे कम व कासित (बग़ैर कमी बेशी) दर्ज हैं। तब से तमाम मसीही मोमिनों ने इस ईमानी मसअले को बिल्कुल सच्च व हक़ समझा और माना है। और आज तक ऐसा ही मानते चले आए हैं। लेकिन दुनिया के लोगों ने जितनी कि इस मसअला दकी़क़ (नाजुक, बारीक) और राज़ अमीक़ (गहिरा कामिल) से मुख़ालिफ़त की। और इस से ठोकर खाई है किसी और मसअले से नहीं खाई। बल्कि उसने गोया साबित कर दिखलाया कि ख़ुदावन्द येसू मसीह बहुत लोगों के लिए ठोकर खिलाने वाला पत्थर और ठेस दिलाने वाली चट्टान है।

मुहम्मदियों और हिंदुओं ने भी इससे ठोकर खाई जिस तरह कि यहूदीयों ने खाई थी और बहुत अब तक ठोकरें खाते-जाते हैं। लेकिन जब कि ख़ुदा ने इस बात का इज़्हार आस्मानी आवाज़ से किया है हम क्यों इस पर मुख़ालिफ़त करें। और क्यों इस आवाज़ के शुन्वा (सुनने वाले) ना हों जो साफ़-साफ़ लफ़्ज़ों में कह रही है कि मसीह ख़ुदा का प्यारा बेटा है।

लफ़्ज़ बेटा सुनकर फ़ौरन लोगों के दिल में जिस्मानी ख़यालात आ जाते और खिलाफ-ए-तहज़ीब और अक़्ल बातें कहते और बेहूदा बकवास करने पर आमादा हो जाते हैं। लेकिन ये सिर्फ़ इन्सानी अक़्ल की कमज़ोरी है। इलाही भेद में ख़ुदावन्द येसू मसीह जो ख़ुदा का बेटा कहलाता है इलाही ज़ात का दूसरा उकूनुम (जुज़) है और मुजस्सम हो कर दुनिया में आने पर इस बात का इज़्हार हुआ कि वो उस का बेटा भी कहलाता है अब इन्सान की क्या मजाल है कि ख़ुदा की बात को टाले। और अपनी अक़्ल नाक़िस से इस में हुज्जत (बह्स, एतराज़) निकाले। हमारी समझ में जो ख़ुदा के किसी कलाम की मुख़ालिफ़त करता है वो ख़ुदा के साथ गोया मुक़ाबला करता है और ख़ुदा से ज़्यादा दाना ठहरने की कोशिश करता है जो एक बिल्कुल नामुम्किन अम्र और मह्ज़ बेवक़ूफ़ी में दाख़िल है।

दूसरी बात की निस्बत हमें सिर्फ इतना कहना चाहिए हैं कि जो कुछ ख़ुदा के प्यारे बेटे ने क़ौल व फ़ेअल और रफ़्तार व गुफ़तार (बोल-चाल) से कहा और सिखलाया है वो नसीहत व ताअलीम आम पसंद है जिसको ना सिर्फ उस के ईमानदार ही क़ुबूल करते हैं। बल्कि दीगर मज़ाहिब के लोग बिला हुज्जत मान लेते हैं और तस्लीम करते हैं। और ख़ुद मुक़िर (इक़रार करने वाले) हैं, कि ताअलीम बहुत उम्दा है। लेकिन सिर्फ ईमान लाना नागवार (बुरा महसूस होना) है उस के शागिर्द उस के कलाम को सुनते और क़ुबूल करते हैं क्योंकि उसने ख़ुद कहा है कि उस की भेड़ें उस की आवाज़ सुनती हैं। यूहन्ना 10:4

तब येसू ने अपने शागिर्दों से कहा कि अगर कोई चाहे कि मेरे पीछे आए तो अपना इन्कार करे और अपनी सलीब उठा के मेरी पैरवी करे। मत्ती 16:24

मसीही मज़्हब इंसान को पूरी आज़ादगी में छोड़ता है। दो क़िस्म की बातें ये बख़ूबी वाज़ेह कर के इन्सान के रूबरू रख देता है :-

अव़्वल : वो बातें जो उस के गुनेहगार होने और सज़ाए इलाही ठहरने के बारे में हैं। और उस की बुरी और ख़ौफ़नाक हालत का नक़्शा खींच कर बख़ूबी दिखलाता है। और साफ़ तौर से गुनेहगार इन्सान को जताता है कि गुनाह के सबब से इलाही क़ुर्बत (नज़दीकी) जाती रही है। और क़हर इलाही सर पर झूम रहा है और जहन्नम ने अपना मुँह खोला हुआ है और फ़ौरन निगलने को तैयार है।

दुवम : वो बातें मज़्हब इन्सान को बताता है जो इन्सान को उस की बिगड़ी हालत से निकालने वाली और उस को बचाने वाली हैं। ये किसी की हालत में एक मददगार की ज़रूरत बताता और ख़बर देता है कि एक ऐसा मददगार आया है जो ख़ुदा के हुज़ूर गुनेहगार का ज़ामिन (ज़मानत देने वाला) बना है। और अपनी जान की क़ुर्बानी देकर ख़ुदा के अदल (इन्साफ़) के तक़ाज़े को पूरा कर चुका है और अपने ऊपर ईमान लाने वाले को अपनी रास्तबाज़ी और सलामती देता है और उस का ऐलान आम देता और कहता है जो मुझ पर ईमान लाता है हमेशा की ज़िंदगी उसी की है। यूहन्ना 6:47

इन सब बातों का तमाम व कुल बयान कर के मसीही मज़्हब आदमी को उस की मर्ज़ी आज़ादगी पर छोड़ देता है। दीगर मज़ाहिब की तरह से ज़ुल्म और जबर से इस बात का मुक़तज़ी (तक़ाज़ा करना) नहीं कि ज़बरदस्ती लोग इस तरीक़ पर लाए जाएं। पर वो कहता है, अगर कोई चाहे तो आए और राहे नजात को इख़्तियार करे और अगर ना चाहे तो ना आए। ये ज़बरदस्ती से किसी को बहिश्त में नहीं ले जाना चाहता बल्कि इस आज़ाद मर्ज़ी वाले दीनदार को जो उस की ईमानी बातों को क़ुबूल कर के उस का मुरीद बनता है साफ़ कहता है कि मुझ पर ईमान लाने की एक शर्त है अगर क़ुबूल कर सकता है तो समझ सोच कर देख और इस पर क़ायम हो। अपना इन्कार कर। ये शर्त बड़ी भारी है। अपना इन्कार करना आदमी के लिए निहायत मुश्किल है। ख़ुद इंकारी इन्सान के दुनिया की निस्बत मर जाने के बराबर है। लेकिन इस बड़ी शर्त पर मसीह आदमी को अपना शागिर्द बनाता है और अगर कोई मसीह पर ईमान लाया है और उसने अपना इन्कार नहीं किया तो वो हक़ीक़त में मसीह का शागिर्द नहीं बना चाहे वो दुनिया में ज़ाहिरा तौर से मसीही भी कहलाता रहे। लेकिन इस शर्त के बग़ैर मसीह ख़ुदावन्द उस को अपना शागिर्द ना कहेगा। जो लोग ना-वाक़िफ़ी से एतराज़ किया करते और कहते हैं कि अगर सिर्फ मसीह पर ईमान लाने के सबब से नजात है तो इस पर ईमान ला कर फिर जो चाहे इन्सान करे कुछ मज़ाईका (हर्ज) नहीं। उनको सोचना चाहिए कि मसीही ईमान के साथ ख़ुद इंकारी की बड़ी भारी क़ैद है। और अपना इन्कार करने वाला फिर क्योंकर अपने नफ़्स बद (बुरी फ़ित्रत) का मह्कूम (ग़ुलाम) होगा।

मुन्दरिजा बाला आयत में जो शर्त मसीही होने की ख़ुदावन्द येसू ने ठहराई है सिर्फ ख़ुद इंकारी ही पर मुकतफ़ी (काफ़ी होना) नहीं होती बल्कि इस से बढ़ कर मसीही ईमानदार को लाज़िम है कि रोज़ बरोज़ दुख व तक्लीफ़ और लान व तअन जो इस तरीक़ पर होने के सबब से उस की राह में आएं वो उनको बखु़शी उठाए और साबित-क़दम रहे। और आला दर्जे का साबिर बन कर उन सब तक्लीफ़ात की सलीब को उठा कर मसीह की पैरवी करे।

फिर शायद कोई ख़याल करे कि ये तो निहायत मुश्किल बातें हैं और इनका होना दुशवार (मुश्किल) है लेकिन सच्चे मसीही के लिए ये कुछ मुश्किल नहीं क्योंकि सच्चे ईमानदार को रूह की बरकत बख़्शी जाती है जिस नेअमत उज़्मा (बड़ी नेअमत) से वो इस क़िस्म की तमाम मुश्किलात से रिहाई पाने और उन पर ग़ालिब आने की क़ुव्वत और ताक़त पाता है और आख़िरकार नजात-ए-अबदी का मुस्तहिक़ (हक़दार) ठहरता है।

अब जो कोई चाहे मसीह ख़ुदावन्द के पास आए और इस शर्त को क़ुबूल करे। तो वो रूह-उल-क़ूदस का इनाम पाएगा और तमाम मुश्किलात में उस की मदद पाकर और शैतान गुनाह और दुनिया पर ग़ालिब आकर हमेशा की ज़िंदगी का वारिस होगा।

बरकत और लानत के हक़दार

और ख़ुदावन्द ने अबराहाम को कहा था कि तू अपने मुल्क और अपने क़राबतियों (रिश्तेदारों) के दर्मियान से और अपने बाप के घर से उस मुल्क में जो मैं तुझे दिखाऊँगा निकल चल। और मैं तुझे एक बड़ी क़ौम बनाऊँगा और तुझको मुबारक और तेरा नाम बड़ा करूँगा। और तू एक बरकत होगा। और मैं उनको जो तुझे बरकत देते हैं बरकत दूंगा।

Deservers of Blessing and Curse

बरकत और लानत के हक़दार

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan October 11, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 11 अक्तूबर 1895 ई॰

और ख़ुदावन्द ने अबराहाम को कहा था कि तू अपने मुल्क और अपने क़राबतियों (रिश्तेदारों) के दर्मियान से और अपने बाप के घर से उस मुल्क में जो मैं तुझे दिखाऊँगा निकल चल। और मैं तुझे एक बड़ी क़ौम बनाऊँगा और तुझको मुबारक और तेरा नाम बड़ा करूँगा। और तू एक बरकत होगा। और मैं उनको जो तुझे बरकत देते हैं बरकत दूंगा। और उस को जो तुझ पर लानत करता है लानती करूँगा। और दुनिया के सब घराने तुझसे बरकत पाएँगे। पैदाइश 12 बाब 1 से 2 आयत तक।

ख़ुदावन्द ने इज़्हाक़ को कहा, तू इस ही ज़मीन में बूदो बाश (सुकूनत, क़ियाम) कर कि मैं तेरे साथ हूँगा और तुझे बरकत बख्शूंगा। क्योंकि मैं तुझे और तेरी नस्ल को ये सब मुल्क दूंगा। और मैं उस क़सम को जो मैंने तेरे बाप अबराहाम से की है। वफ़ा करूँगा और मैं तेरी औलाद को आस्मान के सितारों की मानिंद वाफ़र (बहुत ज़्यादा) करूँगा। और ये सब मुल्क तेरी नस्ल को दूंगा। और ज़मीन की सब कौमें तेरी नस्ल से बरकत पाएँगी। पैदाइश 26 आयत।

हज़रत इज़्हाक़ ने अपने बेटे याक़ूब को ये बरकत बख़्शी। ख़ुदा आस्मान की ओस और ज़मीन की चिकनाई। और अनाज और मय की ज़्यादती तुझे बख़्शे। कौमें तेरी ख़िदमत करें गिरोहें तेरे आगे झुकें। तू अपने भाईयों का ख़ुदावन्द (आक़ा) हो और तेरी माँ के बेटे तेरे आगे ख़म (झुकना) हों। हर एक जो तुझ पर लानत करे मलऊन (लानती) हो मगर वो जो तेरे लिए बरकत चाहे मुबारक हों। पैदाइश 27 बाब 29, 28 आयत।

हज़रत याक़ूब ने अपने बेटे यहूदाह को ये बरकत बख़्शी थी। ऐ यहूदाह तेरे भाई तेरी मदह (सताइश) करेंगे। तेरा हाथ तेरे बैरियों (दुश्मनों) की गर्दन में होगा। तेरे बाप की औलाद तेरे हुज़ूर झुकेंगी। यहूदाह शेर-ए-बब्बर का बच्चा है। ऐ बेटे तू शिकार पर से उठ चला है। वो शेर बब्बर बल्कि पुराने शेर बब्बर की मानिंद झुकता और बैठता है। कौन उस को छेड़ेगा? यहूदाह से रियासत का असा जुदा ना होगा। और ना हाकिम उस के पांव के दर्मियान से जाता रहेगा। जब तक कि शैल्वा ना आए और कौमें उस के पास इकट्ठी होंगी। पैदाइश 49 आयत।

फिर बनी-इस्राईल ने कुच किया और मूआब के मैदानों में नहर यर्दन के उस पार यरीहू के मुक़ाबिल खे़मे खड़े किए। और सफ़ोर के बीते बुलक ने वो सब जो इस्राईल ने अमूरियों से किया देखा तब मूआब उन लोगों से निपट (मुकम्मल तौर से) डरा कि वो बहुत थे। और मूआब बनी-इस्राईल के सबब से परेशान हुआ। और मूआब ने मिद्यान के बुज़ुर्गों से कहा कि अब ये गिरोह उन सबको जो हमारे आस-पास हैं यूं चाट (खा जाना, ख़त्म देना) जाएगी। जैसे बैल मैदान की घास को चाट (खा) लेता है। इस वक़्त सफ़ोर का बेटा बुलक मूआबीयों का बादशाह था। सो उसने बावर के बीते बलआम के पास फ़नूर को जो उस की क़ौम वालों की सर-ज़मीन में नहर के किनारे पर था क़ासिद भेजे ताकि उसे ये कह के बुला लाएं, कि देखो एक क़ौम मिस्र से बाहर आई है देख उनसे ज़मीन की सतह छुप गई है और वो मेरे मुक़ाबिल मुक़ाम करते है। सो अब आईए और मेरी ख़ातिर से उन लोगों के हक़ में बद-दुआ कीजिए कि वो मुझसे बहुत क़वी (ताक़तवर) हैं। शायद कि मैं ग़ालिब (ज़ोर-आवर) आके उन्हें मार सकूँ। और उन्हें इस ज़मीन पर से हटा दूँ। कि मैं यक़ीन जानता हूँ जिसे तू बरकत देता है उसे बरकत होती। और जिस पर तू लानत करता वो लानती हुआ। सो मूआब के मशाइख़ (लोग) और मिद्यान के बुज़ुर्ग जादू की मज़दूरी हाथ में लेकर रवाना हुए। और बलआम के पास आए। और बुलक का पैग़ाम उसे पहुंचाया। उसने उन्हें कहा कि आज रात तुम यहां रहो और जैसा ख़ुदावन्द मुझे फ़रमाएगा। मैं तुम्हें कहूँगा।

चुनान्चे मूआब के अमीरों ने बलआम के यहां क़ियाम किया। तब ख़ुदा बलआम के पास आया और उस से कहा ये कौन आदमी हैं जो तेरे पास हैं। बलआम ने ख़ुदा को जवाब दिया कि सफ़ोर के बेटे बुलक ने जो मूआब का बादशाह है। मेरे पास कहला भेजा है कि देख एक क़ौम है जो मिस्र से निकल आती है और उनसे ज़मीन की सतह छिप गई। तू मेरी ख़ातिर उनके हक़ में बददुआ कर। शायद मैं उन पर ग़ालिब आ सकूं। और उन्हें भगा दूँ। तब ख़ुदा ने बलआम को कहा तू उनके साथ मत जा। तू उन लोगों के हक़ में बद दुआ ना करना। इसलिए कि वो मुबारक हैं। बलआम ने सुबह को उठ कर बुलक के अमीरों से कहा तुम अपनी सर-ज़मीन को जाओ क्योंकि ख़ुदावन्द मुझे तुम्हारे साथ जाने की इजाज़त नहीं देता। और मूआब के सरदार उठे और बुलक के पास गए। और बोले कि बलआम हमारे साथ आने से इन्कार करता है। गिनती 22 बाब 1 से 14 आयत तक।

बुलक ने बलआम को फिर बुलवा भेजा और बड़ी दौलत व इज़्ज़त का वाअदा किया। बलआम लालच के मारे चला गया। मगर ख़ुदा ने जो कुछ उस के मुँह से बनी-इस्राईल के मुबारक होने की बाबत गवाही दिलाई वो ये है :-

पहली दफ़ाअ : तब ख़ुदावन्द ने एक बात बलआम के मुँह में डाली और उसे कहा बुलक के पास जा और उस को यूं कह। सो वो उस के पास फिर आया और क्या देखता है कि वो अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी के नज़्दीक मूआब के सब अमीरों समेत खड़ा है। तब उसने अपनी मिस्ल कहनी शुरू की। मूआब के बादशाह बुलक ने आराम से पूरब के पहाड़ों से मुझको बुलवाया। आओ याक़ूब को मेरी ख़ातिर से बद दुआ करो और आओ इस्राईल को बुरा कहो। मैं क्योंकर उस को ये बद दुआ करूँ जिसको ख़ुदा ने बद दुआ नहीं की। या उस को बुरा कहूँ जिसको ख़ुदा ने बुरा नहीं कहा। क्योंकि चट्टानों की चोटी पर से मैं उस को देखता हूँ और टीलों पर से मैं उसे ताकता हूँ। देख ये लोग अकेले सुकूनत करेंगे। और क़ौमों के दर्मियान वो शुमार ना किए जाऐंगे याक़ूब की गर्द के ज़र्रों को कौन गिन सकता है। और इस्राईल की चौथाई कौन शुमार कर सकता है। काश के मैं सादिकों की मौत मरूँ और मेरी आख़िरत) उस की सी हो। गिनती 23 बाब 5 से 10 आयत तक।

दूसरी दफ़ाअ : तब बुलक ने उस से पूछा ख़ुदावन्द ने क्या फ़रमाया तब बलआम ने अपनी मिस्ल कहनी शुरू की और बोला। उठ ऐ बुलक और सुन ऐ सफ़ोर के बेटे मेरी तरफ़ कान धर ख़ुदा इन्सान नहीं जो झूट बोले ना आदमी ज़ाद है कि पशेमान (शर्मिंदा) होए। क्या उसने जो कुछ कहा है सो बजा ना लाएगा। और जो कुछ फ़रमाया है क्या उसे पूरा ना करेगा। देख मैंने हुक्म पाया कि बरकत दूँ। उसने बरकत दी है मैं उसे बदल नहीं सकता। वो याक़ूब में बदी नहीं पाता। ना इस्राईल में फ़साद (झगड़ा) देखता है। ख़ुदावन्द उस का ख़ुदा उसके साथ है। और बादशाह की धूम उनके दर्मियान है। ख़ुदा उन्हें मिस्र से निकाल लाया। उस का गेंडे का सा ज़ोर है। कोई अफ़्सून (जादू) याक़ूब पर नहीं चलता। कोई बद-ख़्याली इस्राईल के बर-ख़िलाफ़ नहीं। चुनान्चे उसी वक़्त याक़ूब के और इस्राईल के हक़ में ये कहा जाएगा, कि ख़ुदा ने क्या किया। देख ये लोग भारी सिंह (शेर) के तौर से खड़े होंगे। और वो आपको जवान सिंह (शेर) की तरह उठाएगा। वो ना सोएगा जब तक कि शिकार ना खा ले और जब तक कि मार के उस का लहू ना पी ले। गिनती 23 बाब 17 से 24 आयत तक।

तीसरी दफ़ाअ : जब बलआम ने देखा कि इस्राईल को बरकत देना ख़ुदावन्द को ख़ुश आया तो वो अब की बार जैसा आगे शगुन (फ़ाल) के खोज में जाता था ना गया। बल्कि ब्याबान की तरफ़ तवज्जोह की। और बलआम ने अपनी आँखें उठाईं और इस्राईल को देखा कि अपने फ़िर्क़ों (क़बीलों) की तर्तीब पर ठहरा है। तब रूह अल्लाह इस पर नाज़िल हुई। और वो अपनी मिस्ल ले चला और बोला बाऊर का बेटा बलआम कहता है, हाँ वो शख़्स जिसकी आँखें खुल गईं हैं कहता वो जिसने ख़ुदा की बातें सुनीं और क़ादिर-ए-मुतलक़ की रोया को देखा है। सोया पड़ा था। पर उस की आँखें खुली थीं कहता है। क्या ही जो हैं तेरे खे़मे ऐ याकूब और तेरे मस्कन ऐ इस्राईल फैले हुए हैं। वादीयों की तरह से और लबे दरिया के बाग़ों के तूर जैसे ऊद के दरख़्त जो ख़ुदावन्द ने लगाए हों और जैसे देवदार के दरख़्त जो पानी के किनारे हों। और वो अपने मोटों से पानी बहाएगा और उस का बीज बहुत से पानियों में होगा। उस का बादशाह अगाग से बुज़ुर्ग होगा और उस की बादशाहत बुलंद होगी। ख़ुदा उस को मिस्र से बाहर निकाल लाया उस में गेंडे की सी क़ुव्वत है। वो क़ौमों को जो उस के दुश्मन हों खा जाएगा। और उन की हड्डियां तोड़ डालेगा। और अपने नेज़ों से उन्हें छेदेगा। वो झुकता है और सिंह (शेर) की मानिंद बल्कि भारी सिंह (शेर) की तरह बैठ जाता। उस को कौन उठा सकता है। मुबारक है वो जो तुझे मुबारक कहे और मलऊन (लानती) है वह जो तुझ पर लानत करे। गिनती 24 बाब उसे 9 आयत तक।

83 ज़बूर

ऐ ख़ुदा चुप मत हो ख़ामोशी मत कर। और चेन ना ले ऐ ख़ुदा। क्योंकि देख तेरे दुश्मन (इस़्माईली, हाजिरी) वग़ैरह ख़ुदा के दुश्मन धूम मचाते हैं। और उन्होंने जो तेरा कीना (दुश्मनी) रखते हैं सर उठाया है वो चतुराई (चालाकी) से तेरे लोगों (बनी-इस्राईल) पर मन्सूबा बाँधते हैं और तेरे छुपाए हुओं के ख़िलाफ़ मश्वरत करते हैं। वो कहते हैं कि आओ इनको उखाड़ डालें कि उनकी क़ौम ही न रहे। और इस्राईल का नाम फिर ज़िक्र में ना आए। क्योंकि उन्होंने एका कर के जी (दिल) से मश्वरत की है और तेरी मुख़ालिफ़त में अहद बाँधा है। अदूम के अहले-ख़ेमा और मूआबी और हाजिरी (अरब के बाशिंदे) और जबल और अम्मोन और अमालेक और फ़िलिस्तीन और सूर के बाशिंदों समेत मुत्तफ़िक़ हैं। असूर भी उनमें शामिल है। उन्होंने बनी लूत की मदद में अपने हाथ बढ़ाए सलाह। तू (ऐ ख़ुदा) उन से (इस़्माईलियों हाजिरियों वग़ैरह) से ऐसा कर कि जैसा तू ने मिदयानियों, और सेसरा और याबीन से वादी-ए-केसून में किया जो एन दौर में हलाक हुए। वो ज़मीन की खाद हो गए। और बनी-इस्राईल ने मिदयानियों से लड़ाई की जैसा ख़ुदावन्द ने मूसा को फ़रमाया था और सारे मर्दों को क़त्ल किया।

मिद्यान के पाँच बादशाहों को जान से मारा। और बनी-इस्राईल ने मिद्यान की औरतें और उनके बच्चों को असीर (क़ैदी) किया। और उनके मवेशी और भेड़ बक्री और माल व अस्बाब सब कुछ लूट लिया। और उनके सारे शहरों को जिनमें वो रहते थे। और उनके सब क़ल्ओं को फूंक दिया। गिनती 1:3 बाब 7, 8, 9, 10 आयत। तब ख़ुदावन्द ने सेसरा को और उस के सारी रथों और उस के सारे लश्कर को तल्वार की धार से बर्क़ के सामने शिकस्त दी। चुनान्चे सेसरा का सारा लश्कर तल्वार से मांद पड़ा और एक भी ना बचा। तब हेब्रकेनी की जोरू याइल ने खे़मे की एक मेख़ उठाई और एक सेख़ को हाथ में लिया और दबे-पाँव सेसरा पास जा के और मेख़ उस की कनपटी पर धर के ऐसी गाड़ी कि ज़मीन में जा धंसी क्योंकि वो भारी ख्व़ाब में था। और मांदा हो गया था। सो वो मर गया। क़ज़ात 4 बाब 15, 16, 21 आयत। और बनी-इस्राईल के हाथ निहायत ज़ोर पकड़ चले कि कनआन के बादशाह याबीन पर ग़ालिब हुए यहां तक कि उन्हों ने शाह कनआन याबीन को नेस्त कर डाला। (कज़ात 4 बाब 24 आयत) उन्हें (इस़्माईलियों हाजिरियों वग़ैरह) को हाँ उन के अमीरों को औरेब और ज़ईब की मानिंद करो। और उन्होंने मिद्यान को दो सरदारोँ औरेब और ज़ईब को पकड़ा। और औरेब को औरेब की चट्टान पर और ज़ईब को ज़ईब के कोलहू के पास क़त्ल किया और मिद्यान को रगीदा और औरेब और ज़ईब के सरीर दिन के पार जदऊन के पास लाए। कज़ात 7:25 आयत। बल्कि उनके सारे सरदारोँ को ज़िबह और ज़ुल्मना की मानिंद करो। सो जब ज़िबह और ज़ुल्मना भागे तो जदाऊन ने उन्हें रगीदा और उन मिदयानी बादशाहों ने ज़िबह और ज़ुल्मना को पकड़ा और सारे लश्कर को परेशान किया। सो जदाऊन ने उठ के ज़िबह और ज़ुल्मना को क़त्ल किया। (कज़ात 8 बाब 12, 13 आयत) जिन्हों ने कहा है कि आओ ख़ुदा के घरों के (जिनमें बनी-इस्राईल रहते हैं) हम मालिक बनें। ऐ मेरे ख़ुदा तू उन्हें (इस़्माईलियों, हाजिरों वग़ैरह) को गर्द बाद के मानिंद कर। और भूस की मानिंद रुबुर्द हवा के। जिस तरह आग जंगल को जलाती है और जिस तरह शोला पहाड़ों को झुलस देता है। इसी तरह तू अपनी आंधी से उन का पीछा कर और अपने तूफ़ान से उन्हें परेशान कर। ऐ ख़ुदावन्द उनके मुँह को रुस्वाई से भर दे। ताकि लोग तेरे नाम के तालिब हों। ऐ लोगो (इस़्माईली, हाजिरी वग़ैरह) अब तक शर्मिंदा और परेशान हों हाँ वो रुस्वा हों और फ़ना हो जाएं। और लोग जानें कि तू ही अकेला जिसका नाम यहोवा है सारी ज़मीन पर बुलंद व बाला है।

ख़ुदा की तरफ़ से अगर इस़्माईली बरकत का वारिस होता तो हज़रत दाऊद जैसा ख़ुदा का बर्गुज़ीदा (चुना हुआ) शख़्स उस की औलाद को बुत-परस्तों के साथ कर के उन पर ऐसी ऐसी सख़्त नेअमतें ना करता। क्योंकि हज़रत दाऊद ख़ुदा और उस के लोगों की कमाल इज़्ज़त करने वाला आदमी था। साऊल अगरचे ख़ुदा का गुनेहगार और दाऊद की जान का दुश्मन भी बन गया था। मगर हज़रत दाऊद ने उस अदब के सबब से कि साऊल पहले भी एक दफ़ाअ ख़ुदा की तरफ़ से ममसूह हो चुका था। उस को मारने पर हाथ नहीं उठाया। सो दाऊद और अबेशे रात को लश्कर में घुसे और देखो उस वक़्त साऊल अहाते में पड़ा हुआ सोता था। उस का नेज़ा उस के सिरहाने ज़मीन में गड़ा था और अबनीर और अहले लश्कर उस के गिर्द पड़े हुए थे। इस दम अबेशे ने दाऊद को कहा ख़ुदा ने आज के दिन तेरे दुश्मन को तेरे क़ाबू में कर दिया। अब हुक्म हो तो मैं उसे नेज़े से एक ही बार में वारकर के ज़मीन के बीच छेद दूँ और मैं उसे दुबारा ना मारूंगा। सो दाऊद ने अबेशे को कहा उसे जान से मत मार। क्योंकि ख़ुदावन्द के ममसूह पर कौन है जो हाथ उठाए और बेगुनाह ठहरे। और दाऊद ने ये भी कहा कि ज़िंदा ख़ुदा की क़सम ख़ुदावन्द आप उस को मारेगा। या उस का दिन आएगा कि वो अपनी मौत से मरेगा। या वो जंग पर चढ़ेगा। और मारा जाएगा। लेकिन ख़ुदावन्द ना करे कि मैं ख़ुदावन्द के ममसूह पर हाथ चलाऊं। 1 समुएल 26 बाब 7 से 11 तक।

बलआम ने इज़्हाक़ की औलाद परा गरचे लानत की तो ना थी मगर चूँकि लानत करने के इरादे से गया था इस वास्ते ख़ुद मलऊन हुआ। तो मूसा ने उनको लड़ाई पर भेजा। और उन्होंने बाऊर के बेटे बलआम को भी जान से मारा। गिनती1 3 बाब 3 से 8 आयत मगर दाऊद बावजूद ये कि और इस़्माईलियों और हाजिरियों को बुत परस्त क़ौमों के साथ शुमार कर के उन को ख़ुदा के दुश्मन और उस से कीना रखने वाले कहता है। और उन पर सख़्त सख़्त लानतें करता है तो भी वो मलऊन नहीं बल्कि ख़ुदा की तरफ़ से मुबारक है क्योंकि वो हज़रत इज़्हाक़ की औलाद की बरकत का ख़्वाहां है। मैंने अपने बर्गुज़ीदा से एक अहद किया है मैंने अपने बंदे दाऊद से क़सम खाई है मैं तेरी नस्ल को अबद तक क़ायम रखूँगा। और तेरे तख़्त को पुश्त दर पुश्त क़रार बख्शूंगा। 89 ज़बूर 3, 4 आयत।

पस जो कोई बलआम की मानिंद बनी इज़्हाक़ के बरख़िलाफ़ किसी और को बरकत देना चाहेगा। या इस्माईलों और हाजिरियों वग़ैरह की मानिंद जिन्हों ने कहा था, कि आओ ख़ुदा के घरों के हम मालिक बनें। और कहा था कि आओ उनको उखाड़ डालें कि क़ौम न रहे और इस्राईल का नाम फिर ज़िक्र में ना आए। बनी इज़्हाक़ की बरकत आप छीनना चाहेगा। लानत का हक़दार होगा। लेकिन जो कोई इज़्हाक़ को जिसकी नस्ल से ख़ुदावन्द येसू मसीह इन्सानी जिस्म में ज़ाहिर हुआ। बरकत देगा। वो आप ख़ुदा से बहुत ही बहुत बरकतें पाएगा।

चाहिए कि तमाम जहान के लोग उमूमन और मुहम्मदी साहिबान ख़ुसूसुन इस बरकत और लानत पर ग़ौर करें। और हर फ़र्द बशर अपने लिए ये दुआ मांगे। काश कि मैं सादिक़ों की मौत मरुँ और मेरी आक़िबत (आख़िरत) मसीह हक़ तआला के लोगों की सी हो। आमीन

अल-सालूस अल-क़ुद्स

गुज़श्ता मज़्मून में हमने मसअला सालूस (ख़ुदा की वहदानियत की तीन शाख़ें, बाप, बेटा, रूह-उल-क़ुद्स) का एक अक़्ली सबूत देने की कोशिश की थी। अब इसी सिलसिले में दूसरी कोशिश की जाती है। याद रहे कि यहां हमारा काम अक़्ले इंसान से है। हम ये दर्याफ़्त कर रहे हैं कि आया अक़्ले इंसान के नज़्दीक तस्लीस

Holy Trinity

अल-सालूस अल-क़ुद्स

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan October 18, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 18 अक्तूबर 1895 ई॰

गुज़श्ता मज़्मून में हमने मसअला सालूस (ख़ुदा की वहदानियत की तीन शाख़ें, बाप, बेटा, रूह-उल-क़ुद्स) का एक अक़्ली सबूत देने की कोशिश की थी। अब इसी सिलसिले में दूसरी कोशिश की जाती है। याद रहे कि यहां हमारा काम अक़्ले इंसान से है। हम ये दर्याफ़्त कर रहे हैं कि आया अक़्ले इंसान के नज़्दीक तस्लीस (तीन हिस्सों में तक़्सीम, बाप, बेटा, रूह-उल-क़ुद्स) का कोई सबूत मुम्किन है या नहीं। ख़ुदा अपने आप में क्या और कैसा है उस को तो अक़्ल कभी पहचान भी नहीं सकती। बह्स ये है कि अक़्ले इंसानी जो ख़यालात उस पाक ज़ात की बाबत रखती है उस में तस्लीस की गुंजाइश है या नहीं। मुख़ालिफ़ान-ए-सालूस उमूमन एक ऐसे यक़ीन और तंग दिमाग़ी के साथ बह्स करते हैं जिससे मालूम होता है, कि गोया ख़ुदा कोई शैय है जो उन्होंने अपनी मुट्ठी में बंद कर रखी है। और जब हम कहते हैं कि तीन अक़ानीम (उक़नूम की जमा, मुक़द्दस तस्लीस के अफ़राद) हैं तो वो अपनी मुट्ठी खोल कर हमें दिखलाते हैं और कहते हैं वाह यहां तो एक ही है। ये मह्ज़ गुस्ताख़ी और दिमाग़ की तंगी है। अगर ख़ुदा वाहिद मह्ज़ है तो हमारी मह्ज़ गुस्ताख़ी और दिमाग़ की तंगी है। अगर ख़ुदा वाहिद मह्ज़ है तो हमारी अक़्ल से बईद (दूर) है। और अगर वो वाहिद फ़ील सलूस है तो हमारी अक़्ल से बईद है। बह्स इस बात से है कि अक़्ले इंसानी अपने तंग दायरे के अंदर और अपनी कोताह कदी (छोटा क़द) से सालूस की तरफ़ इशारा करती है या मह्ज़ तौहीद (ख़ुदा को एक मानना) की तरफ़। और सच्च पूछो तो असली हक़ीक़त एक तिनके की भी हम जान नहीं सकते।

इंसानी अक़्ल और फ़ल्सफ़ा पुकार पुकार कर कह रहा है, कि एक शख़्स जो मह्ज़ वाहिद है अपनी हस्ती से वाक़िफ़ नहीं हो सकता। “मैं” इंसान तभी कह सकता है कि जब “मैं” के मुक़ाबले “मैं” तो मौजूद हो या तू का ख़याल हो। इस की मिसाल यूं अदा हो सकती है। एक आदमी का ख़याल करो जो अंधा बहरा गूँगा यानी बग़ैर हवासे ख़मसा के पैदा हो तो मुम्किन नहीं। कि उस को ये मालूम हो कि मैं हूँ। ये मिसाल हमने इस लिए चुनी है कि हमारा मतलब फ़क़त इसी से अदा हो सकता है। जिस शख़्स में एक भी हिस हो वो दूसरी शैय की मौजूदगी से वाक़िफ़ हो कर अपनी हस्ती से वाक़िफ़ हो सकता है। वर्ना नहीं।

अब हमारा सवाल है कि अगर ख़ुदा अज़ल से मह्ज़ वाहिद है और दुनिया की पैदाइश से पहले उस में अक़ानीमे सलासा मौजूद ना थी तो उस को किस तरह मालूम हुआ कि मैं हूँ। अकेली शैय इंसानी अक़्ल के नज़्दीक नहीं कह सकती कि मैं हूँ। या तो ये मानो कि हमेशा से ख़ुदा के साथ कोई और ग़ैर शैय थी जिसको देख कर वो कह रहा था कि मैं हूँ और ये मानो कि दुनिया की पैदाइश से पहले ख़ुदा ना जानता था कि मैं हूँ। अगर इन दोनों में से एक हालत भी तस्लीम कर ली जाये तो ख़ुदा ख़ुदा नहीं रहता।

अगर कोई इस के जवाब में कहे कि ख़ुदा अपनी ज़ात ही से उस के मुस्तग़नी (आज़ाद) होने का और कोई वसीला नहीं।

एक तीसरी दलील भी हम यहां लिखते हैं। ख़ुदा की सिफ़ात बहुत सी माअनी गई हैं। लेकिन जितनी इंसानी अक़्ल में आई हैं चंद ही हैं। यानी इल्म, मुहब्बत, क़हर, रहम अदल, क़ुद्रत लेकिन जब बनज़र ग़ौर देखते हैं तो ये सिफ़ात दूर रह जाती हैं। यानी इल्म और मुहब्बत, ख़ुदा का क़हर उस की मुहब्बत का एक ख़ास क़िस्म का ज़हूर है। रहम और अदल की भी हालत है और उस की क़ुद्रत भी मुहब्बत ही की क़ुद्रत है।

अब इल्म दूसरी शैय को नहीं चाहता माअनी हुई बात है कि अपना इल्म अपनी ज़ात का पहचानना सबसे आला इल्म है। नौदाई सलफ़ ख़ुदा के इल्म को किसी दूसरी शैय की हाजत (ज़रूरत) नहीं कि उस की मालूम बने। लेकिन मुहब्बत का ये तक़ाज़ा है कि वो दूसरी शैय को चाहती है। अपनी मुहब्बत ख़ुदग़रज़ी है। पस अगर मसअला सालूस दुरुस्त नहीं तो ख़ुदा महबूब कहाँ था।

इस के जवाब में अगर कोई सवाल करे कि ख़ुदा के क़हर का मक़हूर इंसान व शयातीन की पैदाइश से पहले कहाँ था। तो हम जवाब देते हैं कि उस का क़हर तो उस की मुहब्बत ही का एक ख़ास ज़हूर है। वो आदमी की तरह जुनून कर के किसी को मारने या सज़ा देने नहीं दौड़ता। बल्कि उस की मुहब्बत चाहती है कि अगर इंसान नर्मी व रहम से दुरुस्त नहीं हो तो सख़्ती से दुरुस्त किया जाये।

लेकिन अगर कोई कहे कि ज़रूरी नहीं कि अगर किसी शख़्स में कोई ताक़त है तो ज़रूर कोई ऐसी शैय भी उस के पास हो जिस पर वो इस ताक़त को सर्फ करे। हम इस का जवाब ये देते हैं कि क्या अक़्ल में आता है कि ख़ुदा जो ज़माना अज़ल से है सुस्ती के आलम में रहा और सिर्फ जब से उसने दुनिया को ख़ल्क़ किया तब ही से उस की मुख़्तलिफ़ ताक़तें और सिफ़ात काम में आने लगीं। अक़्ल से पूछो क्या जवाब देती है।

एक और दलील भी लिखते हैं। ख़ुदा ग़ैर-महदूद है और उस की सिफ़ात और ताक़तें भी ग़ैर-महदूद हैं। दुनिया महदूद और उस की ताक़तें और क़ाबिलीयतें भी महदूद हैं।

अब हम देखते हैं कि अगर किसी मदरिसे में एक बड़े आलिम को छोटे लड़कों को अलिफ़ बे पढ़ाने को बिठा दिया जाये तो कहा जाता है कि इस आलिम की लियाकतें बे इस्तिमाल पड़ी हैं। पस ये क्योंकर अक़्ले इंसानी में आता है, कि ग़ैर-महदूद ख़ुदा की ग़ैर-महदूद सिफ़ात और क़ुव्वतें सब इस महदूद दुनिया में सर्फ हो रही हैं। और ये नहीं तो ये मानो कि ख़ुदा की सिफ़ात का एक बहुत बड़ा बल्कि ग़ैर-महदूद हिस्सा सुस्त और बेकार पड़ा है। अक़्ले इंसानी के वास्ते ये जानना ज़रा दुशवार (मुश्किल) है। इस से ये मान लेना आसान तर है। कि ज़माना अज़ल से बाप के साथ बेटा मौजूद है जिसमें बाप अपनी माहीयत (हक़ीक़त) का नक़्श देख रहा है। जिसको बाप की बे-इंतिहा सिफ़ात मिली हैं और जिस से बाप की बे-इंतिहा मुहब्बत का तक़ाज़ा पूरा हो रहा है। हम फिर कहते हैं कि मह्ज़ तौहीद की निस्बत तौहीद फ़ी अल-सालूस का मानना और अक़्ल में लाना आसान तर है।

ऐ बोझ से दबे हुए

अगर कोई शख़्स हक़ का तालिब हो कर सवाल करे, कि किस तरह नजात पाऊँगा उस के लिए ये अच्छा और तसल्ली का जवाब है, कि अगर तू सच-मुच फ़ज़्ल का मुहताज और दिल के आराम और हयात-ए-अबदी का आर्ज़ूमंद है, तो जो तू चाहता है सो पा सकता है। मसीह की तरफ़ रुजू कर कि वो बचाने को दुनिया में आया और अपने

O Burdened ones

ऐ बोझ से दबे हुए

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan October 18, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 18 अक्तूबर 1895 ई॰

ऐ मेहनत उठाने वालो और बोझ से दबे हुए लोगो मेरे पास आओ। मैं तुम को आराम दूंगा। मत्ती 11 बाब 28 आयत

अगर कोई शख़्स हक़ का तालिब हो कर सवाल करे, कि किस तरह नजात पाऊँगा उस के लिए ये अच्छा और तसल्ली का जवाब है, कि अगर तू सच-मुच फ़ज़्ल का मुहताज और दिल के आराम और हयात-ए-अबदी का आर्ज़ूमंद है, तो जो तू चाहता है सो पा सकता है। मसीह की तरफ़ रुजू कर कि वो बचाने को दुनिया में आया और अपने कलाम के साबिक़-उल-ज़िक्र आयत में तुझे अपने पास बुलाता तुझसे मुहब्बत रखता और बहुत बहुत चाहता है कि तुझे बचाए और ख़ुदा से मिलाए सो हम इस वक़्त उस के फ़ज़्ल से इस मतलब का बयान करेंगे कि ख़ुदावन्द येसू मसीह हमें नजात देने का बहुत आर्ज़ूमंद है।

इस बड़ी बात के बयान करने में चाहिए कि सबसे पेश्तर उस पर नज़र करें जो इस नसीहत की आयतों में आदमीयों को अपने पास बुलाता और उन्हें आराम देने का वाअदा करता है वो कौन है येसू मसीह ही हयात का सूरज नजात का तारा सच्चाई का चशमा जिसे ख़ुदा ने हमारे लिए हिक्मत और रास्ती और पाकीज़गी ठहराया है। उसने हमारा सच्चा सरदार काहिन हो के अपना ही लहू बहाया और अपनी ही जान दी है ताकि गुनेहगारों के लिए ऐसा कफ़्फ़ारा जो ख़ुदा को मक़्बूल व मंज़ूर हो और हमेशा क़ायम रहे हासिल करे पस ये इस आस्मानी बादशाह से मुराद है जो अपने सब ईमानदार मोअतक़िदों (एतिक़ाद रखने वालों) को बादशाहत ज़ूल-जलाल और ताज लाज़वाल देगा। क्योंकि वो सब चीज़ों का मालिक और सब ख़ूबीयों का बानी और देने वाला है सुनो यह बड़ा बादशाह ये दौलतमंद मालिक ये करीम अल-रहमान ख़ुदावन्द लाचार ख़ाकसार आदमीयों के पास आया कि उन्हें अपने नज़्दीक करे क्योंकि बहुत चाहता है कि उन्हें बचाए और आस्मान का वारिस ठहराए।

सो वो यूं पुकार कर हमें बुलाता है कि इधर मेरे पास आओ उस की मीठी आवाज़ और करीम बुलाहट है वो बेशक हमारी बेहतरी चाहता और हमारी नजात का मुश्ताक़ (मुंतज़िर) है और गोया हाथ फैला कर इस का आर्ज़ूमंद है कि जिस तरह मुर्ग़ी अपने बच्चों को अपने परों तले जमा करती है उसी तरह हमें अपने फ़ज़्ल के साये में पनाह दे। जब मसीह ने पुकार के मज़्कूर बातें कहीं उस वक़्त बहुत बहुत और तरह-तरह के आदमी उस के आगे खड़े थे। उनमें से बाअज़ दौलत मंद बाअज़ ग़रीब कई बुज़ुर्ग कई हक़ीर थे। बल्कि फटे और मैले कपड़े पहने हुए आदमी भी हाज़िर थे। उन सबको पुकार कर कहा, ऐ सब लोगो मेरे पास आओ उसने इस्राईल की सब खोई हुई भेड़ों को अपने पास बुलाया कि उन्हें नजात दे हाँ जहां के सब बाशिंदों पर करम की नज़र कर के उन्हें बुलाया और आज तक बुलाता है और कहता है कि ऐ सब लोगो इधर मेरे कहने पर आओ फिर आइन्दा ज़माने के लोगों को जो आगे पैदा होंगे अपने दाइमी कलाम से पुकार के फ़रमाता है कि आओ सब मेरे पास आओ वो हरगिज़ किसी को अपने फ़ज़्ल से महरूम नहीं करना बल्कि चाहता है कि सब के सब ख़्वाह दौलतमंद ख़्वाह कंगाल चाहे इज़्ज़तदार हों चाहे ख़ाकसार उस के शरीक और शामिल हों। हाँ उनको भी जो सबसे ग़रीब सबसे हक़ीर व फ़क़ीर हैं। अपने पास बुलाता है और उनमें से जो आते हैं कभी किसी को नामंज़ूर नहीं करता बल्कि उन्हें ख़ुशी से क़ुबूल करता है। तुझे भी ऐ पढ़ने वाले बुलाता है। तू भी उसकी पसंद और उस का महबूब व मक़्बूल है किस मर्तबे और दर्जे का आदमी तू क्यों ना हो अगर मसीह की आवाज़ सुन के और मान के उस के पास आए मक़्बूल होगा क्योंकि ख़ुदावन्द उनको जो थके-माँदे और बोझ से दबे हैं बुलाता और वाअदा करता है कि जो कोई आजिज़ हो के मेरे पास आए मैं उसे हरगिज़ नहीं निकालूँगा। यूहन्ना 6 बाब 37 आयत।

फिर येसू मसीह थके-माँदे और बोझ से दबे लोगों का ज़िक्र इस लिए करता और उन्हें पुकारता है, कि इन लफ़्ज़ों से हमारी तक़्लीफों और ग़मों और दुख दर्दों को ख़्वाह जिस्मानी हों ख़्वाह रुहानी ज़ाहिर करे और शौक़ दिलाए कि सच्चे और हक़ीक़ी ग़रीब परवर यानी ख़ुदा-ए-परवरदिगार के पास आएं और उस की मदद के मुंतज़िर रहें और जो हम लोग अपनी अपनी हालत को ग़ौर से सोचें तो यक़ीनन ये मालूम होता है कि सभों के ऊपर किसी तरह का बोझ है कोई नहीं कह सकता कि मुझ पर बोझ नहीं बल्कि हर एक आदमी अपना ख़ास बूझ रखता है हर एक को किसी ना किसी तरह का ग़म या रंज या दुख है और जो बोझ सबसे भारी और सख़्त है सो गुनाह का है जिससे हम सब लोग दबे हैं। मगर तू ऐ दोस्त इस भारी बात से वाक़िफ़ ना हो या वाक़िफ़ हो, चाहे तू मत कह कि मुझ पर गुनाह का बोझ नहीं बल्कि अपने ख़यालों और बातों और कामों को परख कि उनकी हक़ीक़त को ख़ूब सोच और उस आदिल मुंसिफ़ के हुज़ूर जो दिल के अंदर देखता और पोशीदा (छिपी हुई) बातों से भी वाक़िफ़ है दर्याफ़्त कर कि तू लड़काई (लड़कपन) से अब तक क्या-क्या काम अमल में लाया। तो तू जान जाएगा कि गुनाह का बोझ तुझ पर भी लदा और तुझे भी दबा देता है। और अगरचे शायद इस का दबाना तुझे मालूम ना होए तो भी तुझे दबा लेता है। क्योंकि तेरी नाख़ुशी और बे-आरामी तेरा वो ख़ौफ़ जो कभी-कभी तेरे दिल में मालूम होता है। कहाँ और किस सबब से है क्या ये उस बोझ का जो तेरी गर्दन पर लदा है निशान नहीं। यक़ीनन इसी से है अगर तू माने या ना माने पर गुनाह का बोझ तुझ पर हो के तुझे यहां तक दबाता है, कि तू अपनी आँखें ख़ुदा और आस्मान की तरफ़ नहीं उठा सकता। इलावा इस के और तरह की दुश्वारियां (मुश्किलात) और तकलीफ़ें और आफ़तें हमें कभी ज़ाहिर कभी बातिन (पोशीदा, अंदरूनी हिस्सा) में दबाती हैं। यानी इस दुनिया के सब रोक-टोक, दुख-दर्द वग़ैरह जिनका हर एक आदमजा़द हिस्सेदार है। ग़र्ज़ इस दुनिया की सारी ज़िंदगी एक बोझ है जो सिर्फ मरते वक़्त उतारा जाता है। पस ज़ाहिर और बातिन में ज़ेर-ए-बार (बोझ के नीचे) और बारिदार (फलदार, साहब-ए-औलाद) हो कर आदमी ज़िंदगी गुज़ारते और लाचार (मुहताज, मजबूर) हो कर क़ब्र की तरफ़ जो ख़ुदा की दरगाह और अदालत का दरवाज़ा है चले जाते हैं।

फिर ख़ुदावन्द रहीम हो कर इसलिए इन सब कम्बख़्त मुसाफ़िरों को बुला बुला कर कहता है, कि ऐ सब लोगो जो थके-माँदे और ज़ेर-ए-बार (बोझ के नीचे) हो। मेरे पास आओ कि मैं तुम्हें ताज़ा-दम और आराम बख्शूंगा। और इसलिए ये रुहानी खूबियां और नेअमतें उन्हें दिखलाता और पेश करता है, कि उनके देखने और चखने से उन लाचारों (मजबूरों) के दिलों में मसीह के पास आने का शौक़ पैदा हो। सो ऐ दोस्त कान धर और सुन ले कि तू भी जिसका दिल बे आरामी और ग़म से भरा है। और तू भी जिस पर शरीअत की लानत और सज़ा का हुक्म है। और तू भी जो अपने राहों और तरीक़ों में अबस (फ़ुज़ूल) मदद और रिहाई ढूंढ कर दुनियावी चीज़ों से तसल्ली नहीं पा सकता। और तू भी जिसको उस की ज़िंदगी की आंधीयां और मुख़ालिफ़ों और शैतान के मुक़ाबलों में पनाह नहीं मिलती। और ख़ासकर तू भी जिसके गुनाह का बोझ भारी मालूम देता बुलाया जाता है। हाँ तुम सबको ऐ गुनेहगार और लाचार आदमीयों ख़ुदावन्द येसू मसीह बुलाता तुम्हें ताज़ा करना और चेन देना चाहता है। जैसे कि ओस आस्मान से और मीना बादल से सूखी ज़मीन पर पढ़के उसे तर व ताज़ा करते। और जिस तरह मीठे पानी का कंडावर हरे दरख़्तों का झुण्ड थके और मांदे मुसाफ़िर को ताज़गी देते हैं। वैसे ही रुहानी रिहाई और जानी ताज़गी और दिली आराम येसू मसीह से है।

वो हमें अपनी सलीब और लहू और दुख-दर्द और जाँ-कनी जिनसे हम लोगों के लिए सुलह और ज़िंदगी और ख़ुशी हासिल हुई दिखाता और गोया यूं कहते हुए तसल्ली देता है, कि मैंने तुम्हारे क़र्ज़ अदा किए तुम्हारी सज़ा अपने ज़िम्मे ली सो तुम ख़ुदा से मिल गए और उस के ले पालक बेटे और बेटियां हुए। और अगर मुझ पर सच्चा ईमान लाओ और भरोसा रखो तो तुमको ना दुनिया में ना आख़िरत में ख़ौफ़ व ख़तरा होगा। मैं तरह आदमी का बोझ हल्का, जुआ मुलायम, दिल ताज़ा और ख़ातिरजमा होती है। और ऐसा शख़्स कह सकता है कि मैं तसल्ली का मुहताज था पर तू ने ऐ ख़ुदावन्द मेरी जान फिर ला कर हलाकत से बचाई। क्योंकि तू ने मेरे सारे गुनाह अपनी नज़र से दूर किए ख़ुदा तू मेरी रोशनी और मख़लिसी (नजात) है। पस किस से डरूं वो मेरी ज़िंदगी की क़ुव्वत है किस से ख़ौफ़ करूँ।

इस्लाम पर मुकालमा

ज़ेल का मुकालमा चूँकि आपके मुलाहिज़े के क़ाबिल है लिहाज़ा मैंने चाहा कि इसे एक काग़ज़ पर लिख कर आपके पास ना भेजूँ पस आप भी बराहे मेहरबानी पढ़ कर बज़रीये नूर-अफ़्शां शाएअ फ़र्मा दीजिए। ये मुकालमा माबैन एक मुहम्मदी और एक ईसाई वाइज़ के हुआ है।

Dialogue on Islam

इस्लाम पर मुकालमा

By

Kidarnath Manat
क़ेदारनाथ मिन्नत

Published in Nur-i-Afshan October 11, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 11 अक्तूबर 1895 ई॰

जनाब ऐडीटर साहब

तस्लीम,

ज़ेल का मुकालमा चूँकि आपके मुलाहिज़े के क़ाबिल है लिहाज़ा मैंने चाहा कि इसे एक काग़ज़ पर लिख कर आपके पास ना भेजूँ पस आप भी बराहे मेहरबानी पढ़ कर बज़रीये नूर-अफ़्शां शाएअ फ़र्मा दीजिए। ये मुकालमा माबैन एक मुहम्मदी और एक ईसाई वाइज़ के हुआ है।

मुहम्मदी : क्यों वाइज़ साहब आप मसीह मसीह पुकारते हैं। नाहक़ सर मारते हैं। क्या दीन-ए-इस्लाम के मुक़ाबिल आप की ईसाईयत फ़रोग़ पा सकती है?

वाइज़ : प्यारे भाई ये आपकी ग़लती है, जो कहते हैं कि आपकी ईसाईयत ये ईसाईयत हमारी ईसाईयत नहीं है बल्कि ख़ुदावंद येसू मसीह की ईसाईयत है। ये ना मानने वालों बल्कि ख़ुद येसू मसीह पर मौक़ूफ़ है उसने वाअदा किया है, कि ये तमाम अदयाने बातिला (झूटे मज़ाहिब) पर ग़ालिब आएगी और एक ही गल्ला और एक ही गडरिया (चरवाहा) होगा।

मुहम्मदी : आपने आँख खोल कर सिवाए इन्जील के और कुछ नहीं देखा वर्ना मालूम हो जाता कि ख़ुदावंद तआला सिवाए दीने इस्लाम के और किसी दीन को पसंद नहीं करता है और ना करेगा।

वाइज़ : प्यारे भाई हमने अगर और कुछ नहीं पढ़ा तो क्या मज़ायका (हर्ज) हमारे पास तौरेत ज़बूर कुतुबे अम्बिया और इन्जील शरीफ़ मौजूद है और यही ख़ुदा का कलाम है इस के बाहर नजात की बाबत कुछ नहीं है तो भी हमने क़ुरआन पढ़ा और अरब की अस्ल तवारीख और दीने मुहम्मदी की बुनियाद हमको मालूम है।

मुहम्मदी : क़ुरआन शरीफ़ का पढ़ना बहुत मुश्किल है और इस का तर्जुमा करना हर एक के लिए सनद नहीं है। तो भी जो कुछ इस के बाहर आपने पढ़ लिया वो हमको भी बताएं।

वाइज़ : मुल्क अरब में बुत परस्ती फैली हुई थी और वहां के बुत-परस्त भी सब एक ही अक़ीदे के ना थे। जिस तरह हमारे हिन्दुस्तान में क्योंकि यहां अगरचे मुख़्तलिफ़ फ़िर्क़े हनूद नज़र आते हैं मगर उनमें एक ये बात है कि चार वेद छः शास्त्र हर एक के मुत्तफ़िक़ अलैहि हैं। और वहां के बुत-परस्तों का पाक मुक़ाम जिसको मंदिर कहें मक्का में काअबा था।

मुहम्मदी : काअबा शरीफ़ हज़रत इब्राहिम ख़लील-उल्लाह और उनके फ़र्ज़न्द इस्माईल के हाथों से बना है और आप कहते हैं कि बुत-परस्तों का मुक़ाम ये कैसी बात है।

वाइज़ : हज़रत इब्राहिम ख़लील-उल्लाह की सारी तवारीख़ हज़रत मूसा ने लिख कर हमको दे दी है उनके बुलाए जाने से उनकी वफ़ात तक कुल हाल सिलसिले-वार हमको मिलते है लेकिन काअबा का बनाना कहीं साबित नहीं है।

मुहम्मदी : अगर बाइबल में ये हाल ना हो तो इस से ये नहीं साबित होता कि हज़रत इब्राहिम ने मक्का का काअबा नहीं बनाया।

वाइज़ : भाई साहब हम जानते हैं कि हज़रत इब्राहिम ख़ुदा के बर्गुज़ीदा ईमानदारों के बाप ने ना कोई मज़्हब ईजाद किया और ना कोई परस्तिशगाह मुक़र्रर की सिवाए उस के जो ख़ुदा तआला ने उन्हें इशारा किया और उन्होंने कई मुक़ामात पर क़ुर्बान गाह बनाई और आख़िर को वो ख़ास मुक़ाम जहां हज़रत ने अपने इकलौते फ़र्ज़न्द मौऊद (वाअदा किया हुआ बेटा) इज़्हाक़ को ज़ब्ह करना चाहा और ख़ुदावंद की तरफ़ से उनको फिर ज़िंदा वापिस मिला। उस को ख़ुदा ने मंज़ूर फ़रमाया और आख़िरकार वहीं पर दाऊद के बेटे हज़रत सुलेमान ने हैकल तैयार की और ख़ुदा ने अपनी हुज़ूरी से उसे शर्फ बख़्शा अगर दर-हक़ीक़त इब्राहिम ने कोई काअबा बनाया होता तो ज़रूरत ना थी, कि मुल़्क सुरया में भी खुदा अपने लिए एक इबादत-गाह मंज़ूर करता। हज़रत दाऊद से जो निहायत मुश्ताक़ थे, कि ख़ुदा के लिए एक घर बनाएँ साफ़ कह देता कि तेरे दादे अबराहाम ने मक्का में मेरे लिए एक घर बना दिया है उस में मेरी हुज़ूरी तुझको मिलेगी। चूँकि ऐसा नहीं हुआ पस मुहम्मदियों की रिवायत मह्ज़ गलत है।

मुहम्मदी : अच्छा आगे बयान फ़रमाईए हम मौलवी साहब से दर्याफ़्त कर लेंगे।

वाइज़ : बाद चंद रोज़ के यहूदी लोग जो अपने असली वतन से ख़ारिज हुए और ख़ुदा के बेटे को रद्द करने की हमाक़त में इधर-उधर भगाए गए उनकी हैकल बर्बाद होती तो सीधे मुल्क अरब में पनाहगीर हुए उन्होंने अपनी बिगड़ी हुई यहूदियत को अरब में रिवाज दिया।

मुहम्मदी : इन यहूदीयों को आप बिगड़े हुए यहूदी क्यों कहते हैं।

वाइज़ : हम उनको बिगड़े हुए यहूदी इसलिए कहते हैं कि उन्होंने ख़ुदा के कलाम के समझने में अपनी ही राय को दख़ल दिया और जो कुछ ख़ुदा के नबियों ने उन्हें बार-बार हिदायत की उस पर अमल ना किया। और जब आख़िरी ज़माने में ख़ुदा अपने बेटे के वसीले उनसे बोला तो उन्हों ने और भी सरकशी कर के उसे मार डाला और बड़ी मौत से मारा। और उस पर ईमान ना लाए इस वास्ते अब जो कुछ उनकी राइयों का ज़ख़ीरा उनके पास है वही बिगड़ी हुई यहूदियत है।

मुहम्मदी : ये मालूम हो हक़ीक़त में जब कि येसू वही मसीह है तो उस से इन्कार करना ज़रूर बर्बादी का बाइस है।

वाइज़ : चंद रोज़ के बाद चंद ईसाई बिद्अती फ़िर्क़े जो सच्ची कलीसिया से ख़ारिज किए गए वो भी भाग कर मुल्क अरब में आ बसे और कई एक अरबी अक़्वाम को ईसाई बनाया।

मुहम्मदी : आप उन्हें बिद्अती ईसाई कहते हैं मगर हमारे क़ुरआन में तो उनकी बहुत तारीफ़ है।

वाइज़ : अगर दर-हक़ीक़त क़ुरआन कलाम-ए-इलाही होता तो पहचान लेता कि ये सच्चे ईसाई हैं या बिद्अती मुहम्मद साहब ने धोका खाया और धोका खाने की वजह भी थी। क्योंकि ईसाई हज़ार बिगड़ा हो तो भी बनिस्बत और लोगों के अख़्लाक़ में ब दर्जा ज़्यादा होगा। पस क्या ताज्जुब है कि उन ईसाईयों के चाल चलन से मुहम्मद साहब फ़रेफ़्ता (आशिक़) हो कर क़ुरआन में उनकी तारीफ़ लिख गए।

मुहम्मदी : इस से साबित होता है कि हमारे पैग़म्बर बरहक़ हैं क्योंकि अगर वह सच्चे ना होते तो उन्हें ईसाईयों की तारीफ़ क़ुरआन में दर्ज करने से क्या सरोकार था।

वाइज़ : नहीं जनाब ये सच्चाई की दलील नहीं है बल्कि हक़ीक़त इस की यूं है कि शुरू में मुहम्मद साहब ने उनको अपनी तरफ़ करने में ख़ुशामदाना उनकी तारीफ़ लिख दी और जब देखा कि इस से मतलब पूरा नहीं हुआ तो आख़िरी ज़माने में जब सल्तनत उनकी उरूज पर पहुंची तब खुले ख़ज़ाने ईसाईयों को मुश्रिक काफिर बेदीन कहने लगे।

मुहम्मदी : फिर क्यों हज़ार हा ईसाई हमारे पैग़म्बर पर ईमान लाए।

वाइज़ : हमने पहले ही बयान किया कि बिगड़े हुए बिद्अती ईसाई नादान जो कलाम-उल्लाह से मह्ज़ नाआशना (नावाक़िफ़) थे और साथ ही उस के लूट मार का लालच भी दामगीर (मददगार) होना था बहुतेरे बिद्अती मुहम्मद पर ईमान ले आए।

मुहम्मदी : तब यहूदी क्यों मुहम्मदी बन गए।

वाइज़ : उनका हाल भी वही हो रहा था अपने ख़ुदावंद ज़िंदगी के मालिक को रद्द कर चुके थे। रुहानी तौर पर मुर्दा थे और ख़ुदा को सज़ा देना मंज़ूर थी बहुतेरे क़त्ल हुए और बहुतेरे मुहम्मद पर ईमान ले आए।

मुहम्मदी : हमारे हज़रत ने अर्से तक बैतुल-मुक़द्दस की तरफ़ नमाज़ में रुख किया इस से साबित होता है कि आप सच्चे नबी हैं।

वाइज़ : भाई साहब ये भी यहूदीयों की तालीफ़ क़लूब (दिल की तब्दीली) के लिए ढंग (तरीक़ा) था मगर जब यहूदी इस तरह क़ब्ज़े में ना आए तब वही काअबे की तरफ़ सज्दा शुरू कर दिया। दरां हालेका 360 बुत उस में मौजूद थे।

मुहम्मदी : बुतों को सज्दा करने की नीयत ना थी उनको तो हज़रत ने तोड़ दिया।

वाइज़ : लेकिन अगर कुफ़्फ़ार अरब हज़रत को तंग ना करते और नौबत जंग की ना पहुँचती तो आप यक़ीन कर के जान लें कि काअबा के बुत कभी ना तोड़े जाते हज़रत का तो ये हाल था कि इंतिक़ाम लेते वक़्त उनको कुछ किसी का ख़याल ना रहता था। देखिए मदीना के मुनाफ़िक़ों की बनाई हुई मस्जिद भी हज़रत ने तोड़ दी। वाह तो जो बुतों से नफ़रत रखता क्या आप ही हैकल को लूटता है।

मुहम्मदी : हज़रत ने तमाम मुल्क अरब में अल्लाह की तौहीद को फैलाया ये क्या आपकी पैग़म्बरी का अच्छा सबूत नहीं है।

वाइज़ : हक़ीक़त में मुहम्मद साहब ने एक ख़्याली तौहीद की मुनादी की ना उस तौहीद की जिसकी मुनादी हज़रत मूसा और दीगर अम्बिया ने की। बल्कि इस ख़्याली तौहीद में भी मिलावट कर दी कि अल्लाह के नाम के साथ अपना नाम भी मिला दिया ये गोया कोढ़ में खाज हुई (आफ़त पर आफ़त) ख़ुदा के कलाम से कहीं नहीं वाज़ेह होता है कि किसी नबी ने अल्लाह के नाम के साथ अपना नाम भी मिलाया हो ये सिर्फ़ मुहम्मद ने शिर्क किया है।

मुहम्मदी : मगर इन्जील में तो लिखा है कि तुम ख़ुदा पर ईमान लाते हो मुझ पर भी ईमान लाओ।

वाइज़ : जनाब-ए-मन, ख़ुदावंद येसू मसीह जो ख़ुदा हो कर ख़ुदा के बराबर है वो उसी इक़्तिदार (इख़्तियार) से ये ईमान लोगों से तलब करता है। ना मह्ज़ इन्सान हो कर क्योंकि अगर ख़ुदावंद ईसा मसीह मह्ज़ इन्सान हो तो वो इतना भी नहीं कि हम उस को नेक कहें।

मुहम्मदी : आप लोग सब मानते हैं और हम भी सब नबियों को मानते हैं और हज़रत ईसा को भी हम मानते हैं। फिर आप हमारे हज़रत को क्यों रद्द करते हैं।

वाइज़ : मुहम्मद साहब के मानने में एक बड़ी क़बाहत (बुराई) ये हुई। कि सारे ख़ुदा के पैग़म्बरों को छोड़ना पड़ता है इसलिए कि मुहम्मद ने ये जब ताअलीम दी है कि अगले अम्बिया का हाल जिस क़द्र कि क़ुरआन में ग़लत-सलत दर्ज है वही दुरुस्त है बाक़ी जो ख़ुद उनकी किताबों में या उनकी बाबत और नबियों ने फ़रमाया है वो सब ग़लत है। अब अगर मुहम्मद को मानें तो सारे नबियों को झूट जानें। यही हाल क़ुरआन को सच्चा मान लेने में है। क्योंकि किसी मुहम्मदी को ना देखा होगा कि ईसाईयों की मानिंद अल्लाह के कुल कलाम को पढ़ता हो। जब कोई मुहम्मदी बनता है तो उस को ये मानना फ़र्ज़ हो जाता है कि तौरेत ज़बूर इन्जील मन्सूख़ और मुहर्रिफ़ (तब्दील शूदा) और रद्दी हैं अब ऐसा बेवक़ूफ़ दुनिया में कौन होगा जो ख़ुदा की 66 किताबों को झूटा कह कर एक क़ुरआन को इल्हामी माने और जहन्नम जाये।

मुहम्मदी : तब आप इस्लाम को सिरे से बनावट समझते हैं।

वाइज़ : जी हाँ ना सिर्फ बनावट बल्कि बुत-परस्तों और यहूदीयों और ईसाईयों का बिगाड़ दर बिगाड़। और यही सबब है कि जिस जगह ये मज़्हब जाता है सब कुछ बिगाड़ता है।

मुहम्मदी : मुहम्मदी मज़्हब ने क्या बिगाड़ा फ़रमाईए तो सही।

वाइज़ : इस वक़्त ज़्यादा फ़ुर्सत नहीं कि तफ़्सील-वार बयान करूँ तो भी कुछ अर्ज़ किया जाता है सुनिए! मुहम्मदी मज़्हब इन्सान की अक़्ल को बिगाड़ता है उसे जाहिल बल्कि अजहल बना देता है। ग़ुस्सा पैदा करता है। शहवत को तेज़ करता है यहां तक कि वो जो एक ही जोरु पर क़ानेअ (एक बीवी पर सब्र करना) था मुहम्मदी बन कर चार चार पर भी बस नहीं करता रुहानी बातों का ख़याल भी नहीं रहता सिर्फ़ जिस्मानी चीज़ों पर नज़र रहती है आख़िरत की ख़राबियां ऐसी हैं। जो इस ज़िंदगी में मुहम्मदी शख़्स में असर पज़ीर हो जाती हर वक़्त हूर व ग़िल्माँ शराब क़बाब की यादगारी अज़ाब में रखती है।

अल-ग़र्ज़ इस तमाम मुकालमे से आप पर वाज़ेह हुआ होगा दर-हक़ीक़त इस्लाम क्या है ये बुत-परस्तों और यहूदीयों और ईसाईयों के बिगाड़ का बिगाड़ है इस की सारी ताअलीमात ज़ुलमात की तरफ़ ले जाती हैं। और इस से ये नतीजा निकलता है कि जिस तरह बुत-परस्तों और यहूदीयों और ईसाईयों के बिगड़ने से अरब में इस्लाम फैल गया इसी तरह जिस-जिस मुक़ाम पर बिद्दतें (मज़्हब में नई बात निकालना) बरपा होती हैं और लोग सच्चे ख़ुदा की कलाम से बर्गश्ता (गुमराह) होते हैं वहां इस्लाम ख़ुद बख़ुद उनको सज़ा देने के लिए पैदा हो जाता है। ताकि वो ज़्यादा गंदी शहवतों में पढ़ कर तक्लीफ़ उठाएं। जनाब-ए-मन, ये इस्लाम है। तो इस को सलाम है। काश के ये जो दायरा इस्लाम में आकर अपने किए की सज़ा भुगत रहे हैं जल्द ख़ुदावंद येसू मसीह की बादशाहत में आकर आराम पाएं। आमीन।

बाअज़ बुत-परस्त मुख़ालिफ़ों की शहादतें

रूमी सिपाही जो उस की क़ब्र के निगहबान मुक़र्रर किए गए थे। और जिनका मसीह की तरफ़ कोई दोस्ताना ख़याल भी ना था। उन्होंने सरदार काहिनों को इत्तिला दी, कि एक ज़लज़ला वाक़ेअ हुआ। और एक अजीब सूरत ज़ाहिर हुई जिसने पत्थर को ढलकाया। मत्ती 28:2, 4 और अगरचे वो ख़ौफ़-ज़दा थे ताहम उन्होंने मालूम किया, कि क़ब्र खुल गई और लाश ग़ायब हो गई।

Testimonies of some Pagan Opponents

बाअज़ बुत-परस्त मुख़ालिफ़ों की शहादतें

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan October 25, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 25 अक्तूबर 1895 ई॰

1. एक रूमी सूबेदार जिसने मसीह की मौत के वक़्त अजाइबात देखकर ख़ुदा की तारीफ़ की और कहा बेशक ये आदमी रास्तबाज़ था। लूक़ा 23:47

2. रूमी सिपाही जो उस की क़ब्र के निगहबान मुक़र्रर किए गए थे। और जिनका मसीह की तरफ़ कोई दोस्ताना ख़याल भी ना था। उन्होंने सरदार काहिनों को इत्तिला दी, कि एक ज़लज़ला वाक़ेअ हुआ। और एक अजीब सूरत ज़ाहिर हुई जिसने पत्थर को ढलकाया। मत्ती 28:2, 4 और अगरचे वो ख़ौफ़-ज़दा थे ताहम उन्होंने मालूम किया, कि क़ब्र खुल गई और लाश ग़ायब हो गई। और अगरचे सरदार काहिनों ने उनको रिश्वत देकर इस एजाज़ी (मोजज़ाती) माजरे को पोशीदा करना भी चाहा। 28:1, 15) मगर ये क्योंकर हो सकता। पस एक सूरत वो उस के जी उठने के गवाह हैं।

3. अपबलात जो कनआन का रूमी सरदार था कि जिसके अहद में मसीह सलीब दिया गया। वो अपने रोज़नामचे में जो उसने नेबरीआस रूमी बादशाह की ख़िदमत में रवाना किया इस में दरबाब मोअजज़ाते मसीह और उस के जी उठने की तहरीर करता है। देखो हारून साहब की सुबूती इन्जील जिल्द अव़्वल बाब सोम सफ़ा 178 और 188

4. टरटोलियन साहब जो सदी सोम में ज़िंदा था और कानून-ए-रूमी से बख़ूबी माहिर था वो अपनी तस्नीफ़ में लिखता है कि पिलात ने मसीह के ज़िंदा होने की बाबत लिखा और ये भी कहा कि लोग उस को ख़ुदावन्द मसीह समझते हैं। देखो तारीख़ कलीसिया यूसेबस साहब जिल्द दोम बाब दोम सफ़ा 39 और 40

5. यूसीबस साहब जो अख़ीर सदी सोम और शुरू सदी चहारुम से ज़िंदा था। वो भी अपनी किताब में मसीह की उलूहियत (ख़ुदाई) और उस के मोअजज़ात और उस के जी उठने का बयान करता है। देखो यूसीबस साहब की तवारीख़ कलीसिया किताब अव़्वल, बाब दोम ईज़न शिप्रड साहब की सुबूती इन्जील जिल्द दोम बाब दवाज़धम सफ़ा 276

6. इस्ट्राओस जो एक मुख़ालिफ़ मसीह का था। वो बहालत अपनी मामूली अमदी मुख़ालिफ़त के कहता है कि मसीह का जी उठना। मर्कज़ का मर्कज़ और मसीहिय्यत का हक़ीक़ी दिल है। और बमुशकिल शक हो सकता है कि मसीहिय्यत की सच्चाई इस ही हक़ीक़त के साथ क़ायम रहती या गिर पड़ती है। वग़ैरह। देखो मसीही शहादतों (गवाहियों) के मुशाहदात बाब 5, मसीह का जी उठना सफ़ा 2

7. सऊद मसीह : सूरह अन्निसा आयत 156, ये यक़ीन उस को क़त्ल नहीं किया बल्कि उसे ख़ुदा ने अपनी तरफ़ उठा लिया। अलीख।

अगरचे ख़ुदावन्द मसीह के आस्मान पर सऊद (आस्मान पर चढ़ना) करने की बाबत क़ुरआन इक़रारी है। मगर उस की जाये सऊद की बाबत हनूज़ मुक़र्रीन क़ुरआन (क़ुरआन का इक़रार करने वाले) मुख़्तलिफ़-उल-राए हैं। चुनान्चे मुफ़स्सिर हुसैनी लिखता है, कि जिस मकान में मसीह रहता था। शब-भर उस की पासबानी की मगर मसीह शब ही को सऊद आस्मान कर गए थे। यानी उसी मकान से मगर मुफ़स्सिर फ़त्ह-उल-अज़ीज़ी लिखता है कि वो कोहे ज़ैतून से आस्मान को सऊद फ़र्मा गए बेशक इस आख़िरी क़ौल में सिर्फ उस की जाये सऊद इन्जील के मुवाफ़िक़ दर्ज हुई। मगर इस का मुफ़स्सिल बयान इन्जील-ए-मुक़द्दस में यूं मज़्कूर है। यानी

1. क़ब्ल अज़ सऊद ख़ुदावन्द का रसूलों को ताअलीम व हिदायत और तसल्ली व तश्फ़ी देना

और येसू ने पास आकर उनसे कहा कि आस्मान और ज़मीन का सारा इख़्तियार मुझे दिया गया। इसलिए तुम जा कर सब क़ौमों को शागिर्द करो और उन्हें बाप और बेटे और रूह-उल-क़ुद्स के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सिखलाओ कि उन सब बातों पर जिनका मैंने तुमको हुक्म दिया है अमल करें। और देखो मैं ज़माने के तमाम होने तक हर रोज़ तुम्हारे साथ हूँ। मत्ती 38:18, 20 और उनके साथ एक जा हो के हुक्म दिया कि यरूशलेम से बाहर ना जाओ बल्कि बाप के उस वाअदे की जिसका ज़िक्र तुम मुझसे सुन चुके हो, राह देखो क्योंकि यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया। पर तुम थोड़े दिनों के बाद रूह-उल-क़ुद्स से बपतिस्मा दोगे। तब उन्हों ने जो इकट्ठे थे उस से पूछा कि ऐ ख़ुदावन्द क्या तू इसी वक़्त इस्राईल की बादशाहत को फिर बहाल किया चाहता है। पर उसने उन्हें कहा तुम्हारा काम नहीं कि इन वक़्तों और मौसमों को जिन्हें बाप ने अपने ही इख़्तियार में रखा है जानो लेकिन जब रूह-उल-क़ुद्स तुम पर आएगी। तुम क़ुव्वत पाओगे और यरूशलेम और सारे यहूदिया व सामरिया में बल्कि ज़मीन की हद तक मेरे गवाह होगे। आमाल 1:4, 8

2. स का आस्मान पर उठाया जाना

और वो ये कह के उन के देखते हुए ऊपर उठाया गया और बदली ने उसे उनकी नज़रों से छिपा लिया। 1:9

ग़र्ज़ ख़ुदावन्द उन्हें ऐसा फ़रमाने के बाद आस्मान पर उठाया गया और ख़ुदा के दहने हाथ बैठा। मर्क़ुस 16:19

तब वो उन्हें वहां से बाहर बैत-अन्याह तक ले गया और अपने हाथ उठा के उन्हें बरकत दी। और ऐसा हुआ कि जब वो उन्हें बरकत दे रहा था तो उन से जुदा हुआ और आस्मान पर उठाया गया और उन्होंने उस को सज्दा किया और बड़ी ख़ुशी से यरूशलेम को फिरे। लूक़ा 24:50, 52

3. सऊद आस्मान के बाद दो फ़रिश्तों की स की आमदे सानी पर गवाही

और उस के जाते हुए जब वो आस्मान की तरफ़ तक रहे थे। देखो, दो मर्द सफ़ैद पोशाक पहने उनके पास खड़े थे। और कहने लगे ऐ गलीली मर्दो तुम क्यों खड़े आस्मान की तरफ़ देखते हो। यही येसू जो तुम्हारे पास से आस्मान पर उठाया गया है। उसी तरह जिस तरह तुमने उसे आस्मान को जाते देखा फिर आएगा। आमाल 1:10-11 बाक़ी आइन्दा।

आस्मान की बादशाहत (मत्ती 7:21)

ये मज़्मून इस सबब से तहरीर किया गया है कि जब बाज़ारों में वाज़ किया जाता है तो अक्सर सामईन (सुनने वालों) ने ये एतराज़ किया है, कि अजी ईसाईयों के वास्ते तो हज़रत ईसा ने अपनी जान दे दी। कफ़्फ़ारा हो गए। पस अब ये जो जी चाहे सो करें। चंद रोज़ हुए कि एक साहब ने जिनकी रुहानी आँखों में शायद मोतिया हो रहा था।

The kingdom of heaven

आस्मान की बादशाहत (मत्ती 7:21)

By

John Emmanuel
जान इम्मानुएल

Published in Nur-i-Afshan October 4, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 4 अक्तूबर 1895 ई॰

मक़्सद तहरीर मज़्मून

ये मज़्मून इस सबब से तहरीर किया गया है कि जब बाज़ारों में वाज़ किया जाता है तो अक्सर सामईन (सुनने वालों) ने ये एतराज़ किया है, कि अजी ईसाईयों के वास्ते तो हज़रत ईसा ने अपनी जान दे दी। कफ़्फ़ारा हो गए। पस अब ये जो जी चाहे सो करें। चंद रोज़ हुए कि एक साहब ने जिनकी रुहानी आँखों में शायद मोतिया हो रहा था। अपने लब हाय क़हर बार से यही रतूबत छांटी। अब चूँकि हमारा अख़्बार सदाक़त आसार मनावां व मुबश्शरां मसीही की तरफ़ से डायरेक्टर है यानी अख़्बार फ़र्हत आसार अफ़शा-ए-अनवार मौसूम ब नूर-अफ़्शां, हर हफ़्ता चहारदांग बर्र-ए-आज़म एशीया में मिस्ल आफ़्ताब आलमताब (सूरज की तरह दुनिया को रोशन करने वाला) दवां (भागना, दौड़ना) है। शहर शहर गली गली कूचा कूचा इस का नक़्क़ारा बज रहा (ऐलान होना) है। इस के सपुर्द, ये पुड़ीया सुरमे की, की जाती है ताकि मए इन अनवार-ए-रुहानी के जिनको लेकर ये हज़ारों रुहानी अँधों, चंदाओं, कानों और मोतिया और बग़लगनद (बग़ल की बू जो एक बीमारी है) वालों को बीना करता फिरता है। और सैंकड़ों इस की उम्र दारज़ी के दुआ गो हैं। बाअज़ इन अँधों पर इस को भी आज़माऐ।

शायद कि इस के हाथ से इस नुस्खे के वसीले भी सबको आराम हो जाये आमीन। क्योंकि इस के अक्सर मुरक्कबात-उल-क़ादिर, हकीम-उल-हकमा, शाहज़ादा इम्मानुएल के दारा-अल-शिफ़ा हामराह से लिए गए हैं। शाहज़ादा इम्मानुएल हकीम हाज़िक़ का इश्तिहार रुहानी अँधों के वास्ते ये है। मैं जहां में नूर हो कर आया हूँ ताकि जो कोई मुझ पर ईमान लाए अंधेरे में ना रहे। जो साहिबान मुतबर्रिक (पाक) और लासानी (बेमिस्ल) और ला-जवाब (जिसका जवाब न हो) किताब से जो बाइबल मुक़द्दस कहलाता है, जो कि फ़क़त अकेला और सच्चा कलाम ख़ुदावन्द करीम लातब्दील का है, ना कि अल्लाह माकीरीन का वो ख़ूब वाक़िफ़ हैं कि जब उम्मीद अम्बिया, ज़ात किबरिया (ख़ुदाए तआला का एक सिफ़ाती नाम) ख़ुदावन्द दो-जहाँ मालिके अर्ज़ व समा (ज़मीन व आस्मान का मालिक) सुल्तान शाहाँ नबी आख़िर उल्ज़मान मुनज्जी बनी-नूअ इन्सान इस दारेना पायदार में आफताब-ए-सदाक़त (सच्चाई का सूरज) हो कर जलवागर हुए। ताकि इस की ज़ुल्मत (अंधेरा) और तारीकी को और लश्कर कुफ़्फ़ार और शैतान उनके सरदार को। बरसरदार नाबकार कफ़्फ़ारा हो कर और पाँच ज़रब-ए-शदीद बराए निशान व अलामत आशिक़ सादिक़ लेकर। दाख़िल कुर्रा-ए-नार कर के, अपने बर्गज़ीदों ख़ूँ खरीदों को लूओ लोय आबदार, फ़र्ज़ंद-ए-परवरदिगार (ख़ुदा के बेटे) बल्कि एक उरूस ख़ुश अतवार, नेक किरदार, रश्क-ए-परी व हूर बना कर, आस्मान पर मान फ़िरदौस-ए-बरीं पर उठा ले। एक दफ़ाअ जब अपने हवारियान-ए-मुक़द्दस (जिन पर सिलसिला कश्फ़ वही, व इल्हाम रिसालत व नबुव्वत ता-अबद मौक़ूफ़ हुआ) साथ था। बहुत भीड़, जिनमें बहुत से ख़ूनी ज़ानी अय्यारों (फ़रेबी) का। जो उस के ख़ून-ए-मुक़द्दस के प्यासे थे भी मौजूद थे देखकर एक कोह वाला शिकवा पर चढ़ गए। और ऐसा मालूम होता है कि उनमें ऐसे अहमक़ (बेवक़ूफ़) भी थे कि ये तौरेत और नबियों की किताबों को मन्सूख़ (रद्द) करने आया है। इस मुक़ाम पर ख़ुदावन्द मसीह ने अपनी ज़बाने निजात व हयात व शिफ़ा बख़्श से वो नादिर व लासानी (नायाब व बेमिसाल) वाज़ फ़रमाया। जो अबद तक बर्गज़ीदों (चुने हुए) की नजात के वास्ते काफ़ी व वाफ़ी है। इस में उन्होंने नासिख़ (कातिब, मिटाने वाला) और मन्सूख़ ख़ुदा वालों से यूं फ़रमाया कि ये गुमान मत करो कि मैं तौरेत या नबियों की किताबों को मन्सूख़ (रद्द) करने आया हूँ। मैं मन्सूख़ करने नहीं बल्कि पूरी करने आया हूँ। ग़र्ज़ ईसाई होने से शरीअत मन्सूख़ नहीं होती और ना उदूल (इन्कार) बल्कि कामिल (मुकम्मल) होती है। अब बादब मलमतस (अदब से इल्तिमास) करना हूँ कि नाज़रीन पर तमकीन ब नज़र-ए-इनायत ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से बेदार (जागना, होशियार) हो कर तास्सुब (तरफ़-दारी) की रतूबत अपनी चश्म हाय इन्साफ़ बीन में से साफ़ कर के इन्जील मत्ती बाब 7:21, 23 को बग़ौर पढ़ें। और गोश-ए-होश (होशयारी) से इन आयात पर जो बतौर तश्रीह आयात मज़्कूर गोश हाय सदफ़ वार में गोश गुज़ार हैं मिस्ल लूलूए बे-बहा पिनहां (छिपे हुए मोती) कीजिए। और दरिया-ए-इन्साफ़ में ग़ोता-ज़न हो कर दर सदाक़त (सच्चाई का दरवाज़ा) को हासिल करें उम्मीद है कि साहिबान फ़हम व ज़का (समझदार, अक़्लमंद हज़रात) जो हर हक़ीक़त से बहरावर (ख़ूश क़िस्मत) हों लेकिन वो जिनके ख़ुदा ने उनके दिल पर मुहर कर दी है कि अंधे, बहरे, गूँगे रहें। और अज़ाब दर्द-नाक उनका हिस्सा उनके ख़ुदा ने मुक़र्रर किया है। उनके वास्ते सिवाए अफ़्सोस के चारा नहीं है।

पर हक़ीक़त शनासों को मालूम हो जाएगा, कि मसीही होना ये नहीं कि शरीअत से रिहा हो गए। और गुनाह की इजाज़त दुनिया में और हूर परस्ती जन्नत में जायज़ हो गई। बल्कि तबीयत नफ़्सानी, रुहानी हो जाती, और मसीह में हो कर शरीअत ईमानदार की तबीयत बन जाती है।

आग़ाज़ मज़्मून, मत्ती 7:21 जो मुझसे ऐ ख़ुदावन्द ऐ ख़ुदावन्द कहते हैं उन में से हर एक आस्मान की बादशाही में दाख़िल ना होगा मगर वही जो मेरे आस्मानी बाप की मर्ज़ी पर चलता है।

कलाम में यूं लिखा है कि बग़ैर रूह-उल-क़ुद्स की मदद के कोई ख़ुदावन्द मसीह को ख़ुदावन्द नहीं कह सकता है। पस साफ़ ज़ाहिर है कि ख़ुदावन्द मसीह का ये फ़र्मान उमूमन तमाम बनी-आदम के वास्ते जो ज़बानी या लकड़ी के दानों के वसीले उस के नाम को बेफ़ाइदा लेते हैं। पर दिल दूर हैं। और ख़ुसूसुन अपने शागिर्दों को यानी उन देरीना शागिर्दों को जिनके नाम बर्रे की हयात की किताब में दर्ज हैं। और जिन्हों ने आख़िरी इल्हामी तस्नीफ़ात से जहान पर इल्हाम और वही के दफ़्तर को बंद किया। और सिलसिला नबुव्वत का ख़ुदावन्द मसीह की दूसरी आमद तक बंद हुआ सिवाए जहां के सरदार के यानी शैतान के जिसने शहवत और नफ़्स परस्ती और ख़ूने ग़लाम (लौंडे बाज़ी) को जायज़ फ़रमाया। जो उस के लासानी जमाल (बेमिसाल हुस्न) का जलवा (नज़ारा) हासिल कर रहे थे। ताकि यहूदाह जैसे बवालहूस शागिर्द (लालची, हरीस) और हर ज़माने के मौलवियान ग़ुलाम तास्सुब और पिंड तान हट धरम पर शाद पर वाज़ेह हो जाये, कि मसीहिय्यत का घर दूर है। साएँ का घर दूर है जैसे :-

लंबी खजूर चढ़े तो चाखे प्रेम रस। और गिरे तो चकना-चुर

इस आयत का मज़्मून, हर एक रियाकार ईसाई, और हर एक मुतलाशी (तलाश करने वाला) दीने इलाही यानी मसीही, और नौ मुरीदों, और मुतारज़ां को ताह अंदेश (कम फ़ह्म) एतराज़ करने वाले बद-केश (बेदीन) को हिला हिला कर जगाता, और ख़ौफ़नाक और दर्द-नाक आवाज़ से यूं फ़रमाता है, कि धोका मत खाओ। ख़ुदा ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता।

हरगिज़ हरगिज़ ग़फ़लत (लापरवाही) में मत रहो। और जल्दी से किसी को बहिश्त का वारिस मत जान लो। अगर तुम किसी को देखो कि उसने सरकारी डिग्रियां हासिल कर ली हैं कि वो फ़साहत (ख़ुश-कलामी) और बलाग़त (हसब-ए-मौक़ा गुफ़्तगु) में बाँग दहल ब चर्ख़-ए-बरीं रसीदा है। और उस की ज़ाहिर परस्ती पर बड़े बड़े ख़ुदा तरसों ने धोका खाया है, तो ये आयत यूं फ़रमाती है, ہر پیشہ گمان سرکہ خالیست شاید کہ پلنگ خفتہ باشد इस वक़्त मुनासिब है कि रसूल-ए-मक़्बूल पौलुस का ख़त अव़्वल कुरिन्थियों का बाब 13 का विर्द करें। वो फ़रमाता है अगर मैं आदमी या फ़रिश्तों की ज़बानें बोलूँ और मुहब्बत ना रखूं। तो मैं ठंठनाता पीतल या झनझनाती झांज हूँ और अगर मैं नबुव्वत करूँ और अगर मैं ग़ैब की सब बातें जानू। और सारे इल्म जानू और मेरा ईमान कामिल हो यहां तक कि मैं पहाड़ों को हटा दूं पर मुहब्बत ना रखूं तो मैं कुछ नहीं हूँ। और अगर मैं अपना सारा माल ख़ैरात में दूँ या अगर मैं अपना बदन दूँ, कि जलाया जाये पर मुहब्बत ना रखूं तो मुझे कुछ फ़ायदा नहीं। यही तमाम चीज़ें हैं जो इस दुनिया में दीनदारों और बेदीनों में इम्तियाज़ (फ़र्क़) होने नहीं देती हैं सो रसूल ने एक एक का नाम लेकर उनको बातिल (झूटा) ठहराया।

फिर वो ख़त रोमीयों को बाब 8:1, 10

में यूं फ़रमाता है, पस अब उन पर जो मसीह येसू में हैं और जिस्म के तौर पर नहीं बल्कि रूह के तौर पर चलते सज़ा का हुक्म नहीं। क्योंकि इस रूह-ए-ज़िन्दगी की शरीअत ने जो मसीह येसू में है। मुझे गुनाह और मौत की शरीअत से छुड़ाया। इसलिए कि जो शरीअत से जिस्म की कमज़ोरी के सबब ना हो सका सो ख़ुदा से हुआ, कि उसने अपने बेटे को गुनेहगार जिस्म की सूरत में गुनाह के सबब भेज कर गुनाह पर जिस्म में सज़ा का हुक्म किया। ताकि शरीअत की रास्ती हम में जो जिस्म के तौर पर नहीं बल्कि रूह के तौर पर चलते हैं पूरी हो। क्योंकि वो जो जिस्म के तौर पर हैं उनका मिज़ाज जिस्मानी है। पर वो जो रूह के तौर पर हैं उनका मिज़ाज रुहानी है। जिस्मानी मिज़ाज मौत है पर रुहानी मिज़ाज ज़िंदगानी और सलामती है। इसलिए कि जिस्मानी मिज़ाज ख़ुदा का दुश्मन है क्योंकि ख़ुदा की शरीअत के ताबे नहीं और ना हो सकता है और जो जिस्मानी हैं ख़ुदा को पसंद नहीं आ सकते।

इन आयात में रसूल साफ़ फ़रमाता है कि जिस्मानी मिज़ाज में और रुहानी मिज़ाज में बड़ी मुख़ालिफ़त है। वो यानी जिस्मानी मिज़ाज शरीअत के ताबे नहीं। वो ख़ुदा का दुश्मन है। वो मौत है। जिस्मानी मिज़ाज ख़ुदा की बादशाहत को देख भी नहीं सकता है। पर रूहानी मिज़ाज ज़िंदगानी और सलामती है। और वो ख़ुदावंद मसीह पर सच्चा ईमान लाने से हासिल होता है जब मसीही ख़ुदावन्द मसीह पर ईमान लाता है। अपनी बदियों से वाक़िफ़ और नादिम और पशेमान (शर्मिंदा) और पछताना हो कर तौबा करता तब ख़ुदावन्द मसीह की रूह उसे मिलती है यानी रूह ज़िंदगी।

वो ईमानदार में नई पैदाइश को शुरू करती है। वो ईमानदार को ख़ुदावन्द मसीह में पैवंद (जोड़ना, लगाना) करती है। वो ख़ुदावन्द मसीह में परवरिश पाता है वो नया मख़्लूक़ है वो मर्द-ए-नौ ज़ाद है। वो शरीअत से आज़ाद है। पर शरीअत की आज़ादी को जिस्म के लिए फ़ुर्सत नहीं जानता है। हाँ भाई मोअतरिज़ (एतराज़ करने वाला) अगर कोई मसीही, तुम्हारी मद्द-ए-नज़र हो, जो इस आज़ादगी को जिस्म के वास्ते फ़ुर्सत जानता हो। और अब तक जिस्म हराम की पैरवी करता है। और जराइम संगीन अब तक इस से सरज़द होते हैं, मैं और तुम नहीं बल्कि अगर सारी दुनिया इस से वाक़िफ़ नहीं। पर वो जिसकी आँख ने एकिन का गुनाह देखा, देखती है। वो कहता है कि वो शख़्स मलऊन (लानती) है। देखो ख़त इब्रानियों 10:26 क्योंकि अगर बाद इस के कि हमने सच्चाई की पहचान हासिल की है। जान-बूझ के गुनाह करें तो फिर गुनाहों के लिए कोई क़ुर्बानी बाक़ी नहीं। मगर अदालत का एक होलनाक इंतिज़ार और आतिश ग़ज़ब (ग़ज़ब की आग) जो मुख़ालिफ़ों को खाएगी बाक़ी है।

पर भाई मोअतरिज़ इन बातों से ठोकर ना खाना चाहिए क्या तुम नहीं जानते हो कि سلح دار خار ست بادشاہ گل शमादान के नीचे हमेशा अंधेरा होता है बादशाही बाग़ में। जंगली पौदे भी होते हैं। गेहूँ के साथ कड़वा दाना भी तो होता है ख़ुदावन्द का हुक्म है दोनों को साथ बढ़ने दो। दरोके वक़्त (फ़स्ल की कटाई) गेहूँ खलियान में। और कड़वा दाना भट्टी में। प्यारे बारे में एक मलऊन (लानती) था।

दोस्त ख़ुदावन्द ने हमको तुमको मुंसिफ़ नहीं ठहराया इन्साफ़ करना उसी का काम है वो ख़ुद फ़रमाता है। उस दिन बहुतेरे मुझे कहेंगे ऐ ख़ुदावन्द, ऐ ख़ुदावन्द क्या हमने तेरे नाम से नबुव्वत नहीं की। और तेरे नाम से बद रूहों को नहीं निकाला। और तेरे नाम से बहुत सी करामात (मोअजिज़े) ज़ाहिर नहीं की उस वक़्त मैं उनसे साफ़ कहूँगा, कि मैं कभी तुमसे वाक़िफ़ ना था। ऐ बदकारो मेरे पास से दूर हो।

पस प्यारे, अब तुमको ख़ूब मालूम हुआ कि ईसा के कफ़्फ़ारे पर ईमान लाना। ये नहीं है ज़िंदगी-भर नफ़्सानियत में कटे ख़ूब दिल के अरमान निकाले और मरते दम कलिमा पढ़ा और जन्नत ले ली। रात-भर ख़ूब पी। सुबह हुई तो तौबा कर ली। रिंद के रिंद रहे जन्नत हाथ से ना दी। देखो मुक़ाम और कलाम इलाही के निहायत क़ाबिल-ए-ग़ौर हैं। देखो ख़त ग़लतीयों 5:19 और जिस्म के काम तो ज़ाहिर हैं यही, ज़िना, हरामकारी, नापाकी, शहवत, बुत-परस्ती, जादूगरी, दुश्मनीयां, कीज़ रश्क, ग़ज़ब, जुदाइयाँ, बिद्दतें (मज़्हब में नई बात निकालना) डाह, (दुश्मनी, हसद) ख़ून, मस्तियाँ, ओबाशीयाँ और जो काम इनकी मानिंद हैं। और इनकी बाबत मैं तुम्हें आगे से जताता हूँ जैसा मैंने उस वक़्त भी आगे से जताया, कि ऐसे काम करने वाले ख़ुदा की बादशाहत के वारिस ना होंगे।

अब मेरी मिन्नत आपसे ये है। आपके उस्ताद ने आपके वास्ते कफ़्फ़ारा दिया। क्या आप गुनाहों से छूट गए? क्या आपके दिल में आस्मानी तसल्ली है? क्या आपके उस्ताद ने कहीं फ़रमाया है, कि ऐ थके और बड़े बोझ के तले दबे हुओ मेरे पास आओ मैं तुम्हें आराम दूंगा। क्या उसने मौत को फ़त्ह किया है कि तुमको भी उठाएगा। क्या वो गुनाह से बरी (आज़ाद) था।

क्या तुम्हारे उस्ताद ने कभी गुनाह की माफ़ी नहीं मांगी। क्या उस का ताल्लुक़ और रिश्ता ख़ुदा से वही था। जो इन्जील येसू नासरी का बताती है। अगर है तो मुबारक हो। अगर नहीं तो रात बहुत गुज़र गई। आफ़्ताब सदाक़त (सच्चाई का सूरज) तुम पर तुलूअ हो चुका है। इस प्यारे की आवाज़ सुनो। अगरचे आज तक तुम उस के मुख़ालिफ़ रहे उस का ठट्ठा किया। उस के नाम पर कुफ़्र बका। उस के एलचियों को हंसी में उड़ाया ख़ैर ग़लती से किया जो कुछ किया। आज नजात का दिन है आज मक़बूलियत का अय्याम (दिन) है बख़्शिश का दरवाज़ा खुला है। वो कहता है दरवाज़ा मैं हूँ। कोई बग़ैर मेरे वसीले बाप के पास जा नहीं सकता। मैं सच्चे अंगूर का दरख़्त हूँ। जो मुझमें क़ायम रहता है वही बहुत मेवा लाता है। मैं ज़िंदा पानी हूँ जो मुझको पीता है कभी प्यासा ना होगा। मैं आस्मानी रोटी हूँ। जो मुझको खाता है कभी भूका ना होगा। और मैं जहां का नूर हूँ। जो मेरी पैरवी करता है अंधेरे में नहीं चलता है जो मेरे पास आता है मैं कभी उस को निकाल ना दूँगा। प्यारे रो-रो कर ख़ुदावन्द से दुआ मांग। इन्जील मुक़द्दस को ले। इस को खोल कर पढ़ दुआ पर दुआ कर ख़ुदावन्द ज़रूर तुझ पर फ़ज़्ल करेगा। सैंकड़ों हज़ारों शहीद और ज़िंदा उस के गवाह में जो तुम्हारे वास्ते दुआ-गो हैं मैं भी और हर एक मसीही नाज़रीन ऐसे किसी के वास्ते दुआ करे।

दुआ

ये तरीक़ा ख़ुदावन्द येसू मसीह की बदौलत आता है वो अपने तख़्त के पास बुलाता है वो बताता है कि किस तरह आना और क्या करना चाहिए। फ़र्ज़ करो हम में से किसी को किसी दुनियावी बादशाह के पास जाने का इत्तिफ़ाक़ हो तो वो बहुत मुज़्तरिब (परेशान) हो जाएगा और दिल में समझेगा कि मैं नहीं जानता कि क्या करना और कहना

Prayer

दुआ

By

Barkat Ali Ashraf
बरकत अली अशरफ़

Published in Nur-i-Afshan October 4, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 4 अक्तूबर 1895 ई॰

ये तरीक़ा ख़ुदावन्द येसू मसीह की बदौलत आता है वो अपने तख़्त के पास बुलाता है वो बताता है कि किस तरह आना और क्या करना चाहिए। फ़र्ज़ करो हम में से किसी को किसी दुनियावी बादशाह के पास जाने का इत्तिफ़ाक़ हो तो वो बहुत मुज़्तरिब (परेशान) हो जाएगा और दिल में समझेगा कि मैं नहीं जानता कि क्या करना और कहना चाहिए लेकिन येसू मसीह हमें सच्चे हम्दर्द कामिल उस्ताद की मानिंद गोया हम सा बन कर अपने फ़ज़्ल के तख़्त के पास आने को कहता है वो बताता कि क्या कहना चाहिए वो सिखाता है कि क्या करना ज़रूर है और वो अपना पाक रूह इनायत करता है जो हम सबको दुआ माँगना सिखलाता है और हर एक कलाम काम में हम सबकी सच्ची राहनुमा होती है।

ख़ुदावन्द ने अपने बंदों के लिए हर तरह से सहूलत की है ताकि वह पशेमान (शर्मिंदा) नादिम ना रहें और बड़े-बड़े मवाक़े और फ़ुर्सत भी अता फ़रमाता है ताकि गुनेहगार भी अपने बुरे कामों से बाज़ आकर उस के आगे सज्दा करें वो हर नूअ (क़िस्म) की नेअमतों से सैर करता है। चुनान्चे इन में से उसने दुआ मांगने की इजाज़त दी है। और ये एक बड़ी उम्दा नेअमत है। ख़ुसूसुन मुसीबत व तंगी के के अय्याम में जब कि सिवाए उस के कोई साथी व सांजी नहीं होता अपने बेगाने दोस्त आश्ना किनारा-कश हो जाते हैं।

तब दुआ निहायत दिलचस्प व मुफ़ीद और शीरीं है जो ये इजाज़त भी ना मिलती तो सच्च है कुछ ना कर सकते पर हज़ार-हा शुक्र है इस अच्छे गडरिया का जो अपनी भेड़ों के लिए अपनी जान देता है। यूहन्ना 10:11 जब हम लोगों के दिल रंज से भर जाते या बीमारी से ज़ईफ़ (कमज़ोर) हो जाते या अपनी मेहनतों का समरा (अज्र, फल) ना मिलते देखकर ग़मगीं और पज़ मुर्दा दिल (मायूस, मुर्दा दिल) होते या कामयाबी की उम्मीद से मायूसी की भंवर (जाल) में आ जाते या ज़माने के इन्क़िलाब में आकर मुफ्लिसी (मोहताजी) में पड़ जाते या जब कि ग़ैर-अक़्वाम के दस्त-ए-तही (ज़ुल्म व सितम वाले हाथ) के हमलों से हरासाँ (ख़ौफ़-ज़दा) हो जाते या किसी और सऊबत (मुसीबत) का पल्ला पड़ता है या अज़ीज़ ख़वेश व अका़रिब (दोस्त रिश्तेदार) वालदैन व औलाद की तरफ़ से नाज़ुक दिल पर भारी सदमे गुज़र जाते हैं तब अगर दुआ ना कर सकते तो क्या परागंदा हालत व परेशान ख़ातिर ना होते। लेकिन उह व आहा बड़ी तस्कीन व तश्फ़ी (तसल्ली) इस से है कि जिस वक़्त ख़ुदा के हुज़ूर में किसी ने अपनी अर्ज़ दुआ की तब ही उस की फ़र्याद सुनी गई और अपनी मुराद को पहुंचा और तसल्ली हासिल हुई।

इसी तरह दूसरे पहलू में एक बूढ़ा उम्र रसीदा दुखिया मायूस बीमारी के बिस्तर पर पड़ा हुआ हाय, हाय हाय करता है जिसके जीने की एक लम्हा भी उम्मीद नहीं है जिसको लोग और डाक्टर भी ये कह कर कर छोड़ बैठे कि “ये नहीं जिएगा” इस वक़्त कुहन साला बूढ़ा (बड़ी उम्र वाला) भी ये सुनकर कहता है। ऐ यहोवा मुझ पर रहम कर क्योंकि मुझ पर तंगी है। ज़बूर 31 आयत 9, तब वो अपने पाक वाअदे के मुताबिक़ आता और इस को बड़ी धीमी और मुलाइमीयत की आवाज़ से इर्शाद फ़रमाता है कि तेरे ईमान ने तुझे चंगा किया सलामत जा, उठ खा पी।

उन माओं को जो अपने बच्चों की तक्लीफ़ को देखकर एक मिनट भी गवारा नहीं कर सकतीं और जिनके गोद में उनके बेज़बान लख़्त-ए-जिगर जांबहक़ होने को हैं वो अपने हाथों का सहारा देकर दुबारा उनको ज़िंदगी बख़्शता और उनके कलेजे में ठंडक पड़ती वो डूबते जहाज़ों को सही व सलामत किनारे पर पहुँचाता भूखों को सैर करता अमीरों को ग़रीब और गदागरों (फ़क़ीरों) को बादशाह बनाता है और अपनी क़ुद्रत का साया सब के ऊपर रखता है और किसी को इस में चूं व चरा की जगह नहीं है वाह-वाह क्या ही अजीब हिक्मत है।

पस ऐ नादान भाई तू जो दुआ को काम में नहीं लाता और नाशुक्र गुज़ारी ज़ाहिर करता है और आदमीयों और मिशनरियों पर भरोसा करने वाला है शर्म खा और आ मसीह तुझे बुलाता है अपने सब दुख और रंज में ख़ुदा के रहम पर भरोसा व आसरा रख और हिम्मत ना हार तकिया कर। उस की रहमत अबदी है वो सब का हाफ़िज़ निगहबान है अगरचे माँ की मुहब्बत लासानी है ताहम ख़ुदा की मुहब्बत की मानिंद नहीं हो सकती वो तेरी सुनेगा और तेरे साथ हम्दर्द होगा और उस की मेहरबानी और फ़ज़्ल से जो जो मुसिबतें और बोझ नज़र आते हैं वही बड़े फ़ायदे का बाइस होंगे। पाक कलाम की तिलावत करने से अज़हर (ज़ाहिर) होता है कि कितनों ने अपनी तंगियों में यहोवा को पुकारा और उसने उनकी सख़्त मुसीबतों और बंधनों, क़ैद और गु़लामी के जूओं (बोझों) से निकाला, छुड़वाया, ख़लासी दिलाई, आज़ाद करवा लिया और ख़ुद हमारे लिए वो नमूना ठहरे कि हम भी उनके हाल पढ़ कर नसीहत हासिल करें उस को पुकारें और उनकी तरह सिदक़ दिली (सच्चे दिल) से दुआ में हमेशा लगे रहें और इस ज़रीये से उस की पाक मर्ज़ी को पूरा करें। और इस ताज आस्मानी को फ़त्हयाबी से लें।

ग़र्ज़ ऐ मसीही भाई और बहनों बूढ़े और जवानो आओ। मसीही क़ौम की बेहतर हालत के लिए और उसकी पायदारी व मज़बूती के वास्ते और अपनी ज़िंदगीयों को दूसरों के फ़ायदे के लिए जिस क़द्र हो सके मुफ़ीद बनाने के लिए जैसा कि ख़ुदावन्द येसू मसीह ने अपनी ज़िंदगी का नक़्शा हम सबको दिया है अपने अपने घरों में दुआएं मांगें अगरचे जिस क़द्र हमारी दुआएं बढ़ती उसी क़द्र हमारी तकलीफ़ें भी ज़्यादा होती जाएं। लेकिन तो भी साबित क़दमी और मुस्तक़िल मिज़ाजी को अमल में लाओ और साबिर रहो हौसला ना हारोगे तो आख़िर को ज़रूर ग़ालिब आओगे उठो जल्द आस्मानी मुल्क-ए-कनआन में दाख़िल होने का सामान तैयार करो ऐसा ना हो कि क़ाफ़िला तैयार हो जाये और हम में से कोई बे सरो सामान उठ कर हमराह हो ले और उन पाँच नादान कुँवारियों की तरह दूसरों का मुहताज बने और फिर पछताना पड़े। याद करो कि ख़ुदावन्द अपने बंदों की दुआएं क़ुबूल करने में इन्कार ना करेगा। बल्कि उन्हें मंज़ूर फ़रमाएगा चेन और राहत व तसल्ली बख़्शेगा और आस्मानी मुल्क कनआन में बग़ैर किसी रुकावट और दिक़्क़त के ख़ुद साथ हो कर दाख़िल करेगा वो अपना वाअदा कर कर चुका है और उसे कभी भी फ़रामोश ना करेगा वो सादिक़ होने के इलावा मुहब्बत से भरा हुआ है और इस मुहब्बत की तासीर बढ़ती रहेगी। यक़ीनन वो हमारी दुआओं को सुनकर रहम फ़रमाएगा बल्कि सुनते ही जवाब देगा शर्त यह है कि हम भी उस ईमानदार औरत की मानिंद होएं जो दामन के छूने से बारह बरस की तक्लीफ़ से शिफ़ायाब हुई और अपनी मुराद को फ़ौरन हासिल कर के शादू राज़ी हुई। काश के हर एक मसीही सच्चे दिल से दुआ गो हो और बाइबल की दुआओं से अपने दिल को तर व ताज़ा मामूर व भरपूर करे और जिसको वो अपनी हिदायत के लिए यानी ख़ुदा के सारे कलाम को फ़ाइदेमंद समझता है मेज़ पर या अलमारी में सजावट के तौर पर ना रख छोड़े बल्कि उस के नमूने को जो ख़ुद नजातदिहंदा ने अपने शागिर्दों को सिखाया। जिसे अक्सर दुआए रब्बानी कहते हैं जो कि हिदायत के लिए एक ख़ास क़ानून है। इस्तिमाल में ला कर ये कह सके जैसा कि ज़बूर में लिखा कि ऐ यहोवा तू अपने नाम के वास्ते मुझे जिलाएगा (मुर्दों से ज़िंदा करना) तू अपनी सदाक़त के साथ मेरी जान को तंगी से निकालेगा। आमीन