मसीह पर ईमान रखने का बयान

ईमान की ख़ासियत और उस की हद पाक कलाम के हर एक वर्क़ में उम्दा अलामात ईमान की बयान की गई हैं। और जो तासीरात उस की गुरु हागर वह ख़ल्क़त ने बयान की हैं वो सब बजा हैं। लेकिन जब बयान बाइबल के मुताबिक़ जब तक मसीह पर ईमान ना हो तब तक फ़िल-हक़ीक़त इंसान ख़ुदा के ग़ज़ब में मुब्तला रहता है। इसी वास्ते हर एक आदमी को मुनासिब

Statement of Faith in Christ

मसीह पर ईमान रखने का बयान

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan Nov 2, 1876

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 2 नवम्बर 1876 ई॰

ईमान की ख़ासियत और उस की हद पाक कलाम के हर एक वर्क़ में उम्दा अलामात ईमान की बयान की गई हैं। और जो तासीरात उस की गुरु हागर वह ख़ल्क़त ने बयान की हैं वो सब बजा हैं। लेकिन जब बयान बाइबल के मुताबिक़ जब तक मसीह पर ईमान ना हो तब तक फ़िल-हक़ीक़त इंसान ख़ुदा के ग़ज़ब में मुब्तला रहता है। इसी वास्ते हर एक आदमी को मुनासिब है कि पाक कलाम में तलाश करे कि ईमान की ख़ासियत क्या है और हद उस की कहाँ तक है। इस की ख़ासियत का बयान इस तरह पर है कि इन्जील-ए-मुक़द्दस में ख़ुदावन्द मसीह ने बाअज़ शख्सों के ईमान की तारीफ़ की और बाज़ों को बेईमानी पर तम्बीहा (ताकीद, नसीहत) जब ये दोनों बातें इंसान की समझ में बख़ूबी आ जाऐं। तो ईमान की ख़ासियत और बेईमानियों की ग़लतीयों से बख़ूबी आगाह हो जाएगा। और बहुत से तरद्दुद (फ़िक्र) और बिदआत (मज़्हब में नई बात निकालना) जिनकी बाबत झगड़े वाक़ेअ होते हैं बिल्कुल दफ़ाअ हो जाऐंगे। पहली मिस्ल जो हम इस वक़्त इन्जील में से तुम्हारे फ़ायदे के लिए ज़िक्र करते हैं। वो सूबादार की हिकायत (कहानी, दास्तान) मत्ती के आठवें बाब में से है। इस सूबेदार के घर में उस के नौकरों में से एक शख़्स बीमार था उस ने उस की बीमारी पर रहम कर के बतौर ग़मख़ारी मसीह की ख़िदमत में आ के इल्तिजा (दरख़्वास्त) की कि आप मेरे नौकर पर रहम करें। और मैं उस को अधरंग की बीमारी में तड़पता छोड़कर आया हूँ। इस सूबेदार के दिल में मसीह की क़ुव्वत-ए-शिफ़ा बख़्शी और रहम पर ऐसा ईमान था। जिससे महरूम होने का शक बिल्कुल दिल में नहीं था। और मसीह के हम नशीन बिल्कुल इन बातों से नावाक़िफ़ थे। ख़ुदावन्द मसीह ने उस को फ़रमाया कि चल में आकर उसे आराम देता हूँ। इस ईमानदार के लिहाज़ ने मंज़ूर ना किया कि ऐसा बड़ा आदमी उस के ग़रीबख़ाना में आए। और ऐसी तक्लीफ़ फ़ुज़ूल अपने आप पर उठाए। इस वास्ते अर्ज़ की कि ऐ ख़ुदावन्द यहीं पर ज़रा ज़बान से कह दे कि मेरा नौकर अच्छा हो जाये और मुझको तेरी क़ुव्वत शिफ़ा-ए-बख़्शी पर इस क़द्र यक़ीन है। जिस क़द्र अपने सिपाहीयों पर हुक्म कर के अपने काम बे रोक-टोक लेने का इख़्तियार है। जब येसू ने उस की ये बातें सुनीं तो ताज्जुब (हैरान) हो कर इस रूमी सूबेदार के ईमान की तारीफ़ की। बावजूद ये कि वो यहूदीयों की नज़र में निहायत हक़ीर (अदना, छोटा) था। उस के ईमान की बड़ाई सब लोगों पर ज़ाहिर करने के लिए और नजात के मुक़द्दमे में इस फ़ज़्ल को क़ियाम बख़्शने के लिए येसू ने अपने शागिर्दों की तरफ़ मुतवज्जोह हो के कहा, कि मैं तुम्हें सच्च सच्च कहता हूँ कि ऐसा बड़ा ईमान मैंने इस्राईलियों में भी नहीं पाया। मैं तुम्हें कहता हूँ कि बहुत लोग पूरब और पक्षिम से ऐसे ही ईमान के ज़रीये से आएँगे। और अब्रहाम और इज़्हाक़ और याक़ूब की गोद में आस्मानी बादशाहत में बैठेंगे। अब ख़याल करो कि इस सूबेदार के ईमान की ख़ासियत क्या थी। अस्ल में इतनी ही बात है कि उस ने अपने दिल में यक़ीन किया कि क़ुव्वत और भलाई मसीह की ऐसी बेहद है जिस पर तवक्कुल (भरोसा) करने से हर काम में इमदाद और हर बला से रिहाई हासिल होती है। पस सच्चे ईमान के भी माअने हैं कि मसीह की क़ुद्रत और उस के मन्सब (ओहदा) पर वास्ते मदद और नजात रुहानी मौत के भरोसा रखे।

यही मसअला एक दूसरी मिस्ल से भी साबित होता है, कि एक औरत ज़ात की कनआनी अपने गर्दो नवाह में मसीह के आने की ख़बर सुन कर दौड़ कर उस के पास आई और चिल्ला के बोली कि ऐ ख़ुदावन्द दाऊद के बेटे मुझ पर रहम कर मेरी बेटी देव के आसेब से तक्लीफ़ शदीद में पड़ी है। मसीह ने उस के चिल्लाने पर जवाब ना दिया बल्कि कहा, कि मुनासिब नहीं कि लड़कों की रोटी छीन कर कुत्तों को डालूं। क्योंकि सारे यहूदी लोग बुत-परस्तों को ख़ुदा की नज़र में नापाक जान कर कुत्ते से भी हक़ीर (ज़लील ख़ार, बेक़द्र) समझते थे। उस औरत ने तसपर (इस के बावजूद) भी मसीह का कहना क़ुबूल किया और कहा कि हाँ ख़ुदावन्द सच्च है लेकिन कुत्ता भी जो उस के मालिक के दस्तर ख़्वान से टुकड़े गिरते हैं खाता है मुझ पर तू वैसा ही रहम कर जैसे कुत्ते अपने मालिक के हाथ से देखते हैं। फ़य्याज़ी के हज़ारों मोअजिज़े तो यहूदीयों में दिखलाए हैं। इसी में से मुझ कमतरीन पर भी ज़रा इनायत फ़र्मा। तब मसीह ने जवाब दिया कि ऐ औरत तेरा ईमान बड़ा है जैसा तू चाहती है तेरे लिए वैसा ही होगा। ये हाल मत्ती के पंद्रहवीं बाब में लिखा है। इस से भी साफ़ मालूम होता है, कि तवक्कुल (भरोसा) में पाएदारी और मदद रिहाई के वास्ते मसीह पर पक्का भरोसा ही कामयाब है। देखिए किस क़द्र यास और ना उम्मीदी की हालत उस औरत पर गुज़री तिसपर भी सब्र कर के अपनी दरख़्वास्त से बाज़ ना आई बल्कि रिहाई की उम्मीद को क़ायम रखा। क्योंकि अपने दिल में जानती थी कि मसीह में क़ुव्वत और रहम कस्रत से है। ग़र्ज़ जैसे पहली हिकायत (कहानी) से मसीह पर ईमान रखने की ख़ासियत मालूम हुई। ऐसे ही इस माजरे से ज़ाहिर होता कि वास्ते मदद और रिहाई के उसी पर तवक्कुल भी हो। यही ईमान और यही सच्चाई अच्छी तरह उन नुक़्सों से साबित होती है जो मसीह ने उन लोगों को जिनके ईमान में क़सूर पाया दिखलाए और तंबीया दी।

 

2. पहले ईमान की तारीफ़ बयान हुई थी। अब बेईमानी की तंबीया का ज़िक्र है। लूक़ा के आठवें बाब में मर्क़ूम है कि एक वक़्त ख़ुदावन्द मसीह कश्ती रवां में सो गए। इसी अर्से में यकायक आंधी आई शागिर्द हत्ता-उल-क़द्र व हिकमतें इस्तिमाल में लाए ताकि कश्ती को सम्भालें पर कुछ फ़ायदा ना हुआ। मौज का पानी कश्ती में आने लगा और डूबने लगी। वो सब बहालत ना उम्मीदी चलाते हुए मसीह के पास आए कि उस्ताद उस्ताद हम हलाक होते हैं। उन की आहट ने उस को जगा दिया उसी वक़्त (मसीह ने) आंधी को डाँटा और दरिया में चेन हो गया। मसीह ने शागिर्दों की तरफ़ मुतवज्जोह हो के उन को तंबीया (नसीहत) की, कि क्यों तुम ऐसे डरे और किस वास्ते तुम में ईमान नहीं। इस मुक़द्दमे से तुमको मालूम होगा कि उन के दिलों में क़िल्लत (कमी) उस तवक्कुल की थी जिसकी तारीफ़ वो आगे कर चुका था। ईमानदारों को चाहिए, कि जब कोई सदमा या बलाए अज़ीम यहां तक भी ग़लबा पाए कि अपने बचने की उम्मीद बाक़ी ना देखें तो भी ख़ुदा की क़ुद्रत और रहम से हरगिज़ ना उम्मीद ना हों। ऐसी नाउम्मीदी बेईमानदारों का फल है। हक़ीक़त में ये बेईमानी उन शागिर्दों में थी क्योंकि उन्हों ने मसीह के मोअजिज़े भी बहुत देखे थे। और उस की क़ुव्वत और भलाई से भी वाक़िफ़ थे ये कौनसी बड़ी बला थी जिससे मसीह के उसी कश्ती में होने के बावजूद उन्हों ने उस पर बचाओ का एतिमाद ना किया। तुम्हारी मलालत (रंज, उदासी) के ख़ौफ़ से मैं सिर्फ एक ही और मिसाल लाता हूँ। जो मर्क़ुस के नौवे बाब में लिखी है। किसी लड़के का बाप अपने बेटे को बीमारी की शिद्दत में लेकर मसीह के शागिर्दों के पास आया और वो उस को अच्छा ना कर सके तब वो दिल में ना उम्मीद हो कर बहालत शक के मसीह के पास आकर यूं कहने लगा कि अगर तुझसे हो सके तो हम पर रहम कर। मसीह ने कहा कि अगर तू ईमान ला सके तो कामिल ईमान से सब कुछ हो सकता है यानी अगर तेरे दिल में मेरी क़ुद्रत और रहम पर मुस्तक़िल तवक्कुल हो तो तेरा बेटा अच्छा हो सकता है। उसी वक़्त उस शख़्स ने चिल्ला कर कहा कि मैं ईमान लाता हूँ मेरी बेईमानियों को माफ़ कर। बहुत मिसालें इस क़िस्म की इन्जील में मौजूद हैं लेकिन जिन चार को हमने दोनों बातों में बयान किया है उन से साफ़ मालूम होगा कि मसीह की क़ुव्वत पर तवक्कुल करना ईमान है। अगर कोई कहे कि वो सूबेदार और कनआनी औरत वास्ते दुनियावी फ़वाइद के ईमान रखते थे। और नजात रुहानी चीज़ है इन दोनों का मुक़ाबला हरगिज़ नहीं हो सकता तो ग़ौर से मालूम करे। कि अगरचे फ़वाइद रुहानी और जिस्मानी अलग अलग हैं पर दोनों के लिए ईमान की हद और ख़ासियत एक ही है। इसी क़िस्म के ईमान से नूह ने कश्ती बनाई इब्राहिम अपने बेटे को क़ुर्बान करने के लिए आमादा हुआ और मूसा ने मिस्र की दौलत और हश्मत से ख़ुदा के लोगों के साथ मुफ़्लिस (गरीब, मुहताज) रहना बेहतर समझा। अगरचे नतीजे उन के अलग अलग हैं दरअस्ल ईमान एक ही है। ख़्वाह मसीह पर इस नीयत से तवक्कुल रखें कि दुनियावी बल्लयात (बुलाऐं, मुसीबतें) से मख़लिसी (रिहाई) बख़्शे ख़्वाह बदें मुराद कि रुहानी आदाद बमअने शैतान दुनिया नफ़्स दोज़ख़ ग़ज़बे इलाही से नजात दे। फ़िल-हक़ीक़त हद ईमान की हमारी हाजत (ज़रूरत) पर मौक़ूफ़ है। जिस क़द्र हमारी हाजात हों उसी क़द्र ईमान की कस्रत हमारे दिलों में होनी चाहिए। पहले हम अपने आमाल को साथ क़ानून फ़र्ज़ के मालूम करें और हर एक हुक्म को जो रुहानी तरह पर है समझ लें जैसे कि मसीह ने मत्ती के पांचवें बाब और छटे और सातवें बाब में तश्रीह की है। ख़ुदा हमारे दिलों में ये ख़याल डालता है कि गुनाह सिर्फ़ निस्यान (نسیان) (भूलना) से ही नहीं बल्कि बहुतेरे गुनाह हम जान-बूझ के और बहुतेरे रोशनी बातिन के बरख़िलाफ़ मग़ुरूर हो के अज़ रूए सरकशी के बरअक्स ख़ुदा के करने हैं। इन गुनाहों से रिहाई पाने की उम्मीद में मसीह पर तवक्कुल वाजिब है। जैसे कि पहले बयान हुआ। उस के कफ़्फ़ारे के ख़ून पर जिसे ख़ुदा ने हमारी मग़्फिरत (नजात, बख़्शिश) के वास्ते मुईन (मुक़र्रर किया गया) किया। बिल्कुल भरोसा करना और ऐसी इस्तिमाल तवक्कुल कफ़्फ़ारे की अदल की गिरफ़्तारी और क़ादिर-ए-मुतलक़ के ग़ज़ब से हमको छुड़ा सकती है। जब कभी हमारा दिल गुनाहों के डर से घबराए तो मसीह के कफ़्फ़ारे पर ग़मगीनी के साथ तवक्कुल करना वाजिब है। अपनी नेकी से आँखें बंद कर के उसी की रास्तबाज़ी से मदद का ख़्वाहां होना चाहिए।

हमारी समझ भी बिगड़ गई जिससे शरीअत का समझना हमारे लिए मुश्किल हुआ। क्योंकि दिल तारीक है इस तारीकी को हटाने और सख़्त दिल को नादानी और सरकशी से बाज़ लाने के वास्ते रोशनी इलाही दरकार है। इस के लिए भी ख़ुदावन्द मसीह पर उसी तरह तवक्कुल ज़रूर है क्योंकि इस में ताक़त है और वो चाहता भी है, कि ईमानदारों के दिलों को रोशन करे और उनको रुहानी समझ बख़्शे और उन ग़लतीयों को जो ख़्याली हैं और बुनियाद उन की ख़ुदा के कलाम में नहीं और सिर्फ इंसान ने अपने ख़ाम ख़यालों से पैदा की हैं सही करे। तुम्हें चाहिए कि इसी तरह मुतवक्किल हो कर उस से दरख़्वास्त करो कि मौत की मलालत और गुनाह की जहालत से तुम्हें रिहाई अता करे। लड़के की तरह उस के क़दमों के तले बैठ कर सीखने की इल्तिजा रखो। और उस की परवरदिगारी और बंदो बस्त से बेदिल ना हो।

नजात के वास्ते जो कुछ मसीह ने सिखलाया और जो रूहुल-क़ुदुस की हिदायत से तुम्हें मालूम हुआ बिल्कुल उसी पर भरोसा रख के ये दुआ करो कि तुमको क़ुव्वत और इस्तिदाद (लियाक़त, क़ाबिलीयत) सीखने की बख़्शे। जैसा अच्छा तालिबे इल्म अपने उस्ताद की नसीहतों को सीखता है एतराज़ नहीं करता तुम भी वैसा ही करो। तुम अपने दिल से जानते हो कि तुम कमज़ोर हो फ़रमांबर्दारी की ताक़त तुम में बिल्कुल नहीं। तुम्हारी जिस्मानी ख़ासियत हमेशा बुराई की तरफ़ राग़िब (ख़्वाहिशमंद) और दिल की ख़्वाहिश हमेशा गुनाह और दुनिया की तरफ़ मुतवज्जोह है। हज़ारों इम्तिहान इस दुनिया में मौजूद हैं जो तुम्हें ख़ुदा की तरफ़ से हटाने पर मुस्तइद (तैयार, मौजूद) हैं और मायूस करने को हमेशा आमादा (तैयार, राज़ी) इस हालत में इसी की इमदाद के शावक (शौक़ीन) हो के रुहानी अहकाम के मानने में तवक्कुल रखो। जितनी अख़्लाक़ी और रुहानी खूबियां तुम में थीं और जिस क़द्र ख़ुदा और आक़िबत (आख़िरत) से जुदा हो कर दुनिया और नफ़्स और शैतान की तरफ़ फिर गई हैं। उन सबको फिर लौटा के ख़ुदा की राह पर लाना अपनी ख़ुशी और बहबूदी के लिए निहायत मतलूब (तलब किया गया) है। पर अपनी ताक़त से तुम ये काम नहीं कर सकते और गुनाहों से पाकीज़गी की तरफ़ वो दिली बाज़गश्त (वापसी) जो ख़ुदा चाहता है तुम्हारी ताक़त से बईद (दूर, अलैहदा) और ख़ुदा के फ़ज़्ल से मुम्किन। इस नेअमत के वास्ते भी तवक्कुल ही दरकार है। ग़र्ज़ ईमान लाना मसीह पर यही है कि सब रुहानी बरकतों के लिए जैसा कि ख़ुदा ने मुक़र्रर किया है उसी पर मदार (गर्दिश की जगह) चाहिए और हर वक़्त उस की आदत डालनी वाजिब है यानी हर-दम अपने नफ़्स का इन्कार करना और अपनी तबीयत के बरख़िलाफ़ चलना और ख़ुदा के फ़र्मान के मुताबिक़ अमल करना और इमदाद सिर्फ़ मसीह की कामिल तसव्वुर करनी लाज़िम है। उनके इस्तिमाल में सुस्त होना ना चाहिए क्योंकि फ़ौज दुश्मनों की ग़ालिब है। और तुम में जुर्आत नहीं। अगर साबित-क़दम रहोगे तो वो क़ादिर-ए-मुतलक़ तुम्हें ताक़त और फ़त्ह दोनों बख़्शेगा।

नजात सिर्फ़ ईमान ही से है

3. मैंने ख़ासियत और हद ईमान की बयान कर दी कि वास्ते बख़्शिश गुनाह के तवक्कुल मसीह और उस की इमदाद पर है। जिससे तुम गुनाह की पाबंदी से छूटो। लेकिन एक अम्र बाक़ी है कि सुकूनत (मस्कन, रहने की जगह) हमारी इस दुनिया में चंद रोज़ा है ये ज़िंदगी जल्दी से ख़त्म होने वाली है और एक नई फ़ील-फ़ौर शुरू होने को जिसकी इंतिहा कोई नहीं जानता। इस में ना-माफ़ गुनाहों की सज़ा हमेशा के लिए सहनी पड़ेगी। और ज़रूरी ख़ुशीयों और ख़ुदा की मुहब्बत को दिल में दख़ल ना होगा। पस हद ईमान की गोया यहां तक पहुँचती है और बड़ा दर्जा रखती है। क्योंकि अबद तक पहुँचती है और हमेशा की ख़ुशी इसी ईमान और तवक्कुल पर मौक़ूफ़ है। ये हमेशा की ख़ुशी और क़ुव्वत और ख़ुदा की मुहब्बत उस वक़्त में भी तुम्हें तसल्ली और तश्फ़ी बख़्शेगी, जिस वक़्त इस दुनिया की चीज़ें और इस जहां की मदद तुम्हारे लिए काम ना आएगी। जो कि साहिब-ए-ईमान ख़ुदा के कलाम पर भी तवक्कुल (यक़ीन) रखता है और यक़ीन जानता है कि अर्वाह हरगिज़ मुजर्रिद (तन्हा) नहीं छोड़ी जाएगी। और आज़ा अगरचे क़ब्र में मिट्टी हो जाते हैं। लेकिन वो भी फिर किसी वक़्त दुबारा क़ायम किए जाऐंगे। और जलाली बदन में जी उठेंगे। और उस मुबारक बादशाहत में जो हकीम बरहक़ और क़ादिर-ए-मुतलक़ ने ख़ुशी व दवाम ख़वास अपनी के लिए मुहय्या की है दख़ल पाएँगे। इस दाइमी ज़िंदगी की उम्मीद पर भी तवक्कुल करना इसी ईमान का फल है जिससे हम जानते हैं। कि ख़ुदावन्द येसू मसीह आप आस्मान पर उरूज कर के हमारे लिए रहनुमा हुआ है। और हम भी उस के पीछे पीछे जाने वाले हैं। ये तश्रीह ईमान की जो हमने इस वक़्त बयान की और जिसका मंशा (इरादा) तवक्कुल है वास्ते नजात और इफ़ज़ाल मुताल्लिक़ा इस के लिए काफ़ी है। इस का समझना बहुत आसान बल्कि इस क़द्र बयान है कि जाहिल मुतलक़ जिनको ज़रा भी इल्म ना हो समझ लेंगे। क्योंकि ईमान की बाबत उलमा में बहुत तकरार पहले भी होते आए हैं और अब भी होते हैं। लेकिन ये ऐसा साफ़ और र सीधा मसअला है कि ईमानदारों को अच्छी तरह मालूम है और सारी तसल्ली इसी पर मौक़ूफ़ है। और लाज़िम है कि ये मसअला सब मसाइल में से साफ़ हो क्योंकि जिस पर रूह की नजात मौक़ूफ़ हो उस का समझना आम और ख़ास को ज़रूरी होता है। भला उस को कौन नहीं समझता कि ईमान इन चीज़ों पर तवक्कुल है यानी दानाई रास्तबाज़ी येसू मसीह की नजात। क्या इस दुनिया में मुफ़्लिस (मुहताज़, ग़रीब) और जाहिल मदद माल और इल्म के लिए उन तोनगरों (दौलतमंदों) और आलिमों पर तवक्कुल नहीं करते जिनकी दौलत और इल्म पर उन को एतबार है। ये किसी आदमी की समझ या दानाई इस से क्या कम होगी कि वो अपने उस्ताद के कहने पर ईमान ना रखे। ख़ुसूसुन जब उस्ताद सब तरह की दानाई और रास्ती में मशहूर हो। अगर ऐसा एतिक़ाद (यक़ीन) ना रखें तो इस्तिफ़ादा (फ़ायदा) कब हो सकता है और बड़ों से इमदाद कब मिल सकती है। कर्ज़दार जब आए क़र्ज़ की अपने आप में ताक़त नहीं देखता तो ज़रूर ज़ामिन (ज़मानत देने वाला) का आसरा तकता है फिर ये क्या मुश्किल है कि आदमी जो जाहिल और नाचार और गुनाहों के क़र्ज़ से दबा हुआ है शैतान से दुश्मन के ज़ुल्म और अपनी बद तबई कैसे मग़्वी (अग़वा करने वाला) के अग़वा से रिहाई पाने के लिए मसीह पर तवक्कुल रखे। पस अगर इन बातों को जो रोज़मर्रा इंसान के जिस्म में हो रही हैं फ़वाइद रुहानी के लिए एक मसीह पर ही डालें तो निहायत आसानी है। और इस से रोज़ बरोज़ एतबार वास्ते मदद के और शुक्र वास्ते फ़वाइद के बढ़ता है।

बक़ीया मसीह पर ईमान रखने का बयान

4. हम ईमान की ख़ासियत और इस की हद के मुताबिक़ मुन्दरिजा कुतुब-ए- मुक़द्दस जिनमें कस्रत-ए-ईमान की तारीफ़ और क़िल्लत (कमी) की सरज़निश (मलामत, बुरा भला कहना) हुई है। बयान कर चुके कि इस की मुराद दानाई और रास्तबाज़ी और पाकीज़गी और नजात का मसीह पर पुख़्ता तवक्कुल (यक़ीन) है। अब हम इस के फ़वाइद का ज़िक्र करते हैं बसबब ना-वाक़िफ़ी तासीरात ईमान के कई बिदआत (बुराईयां) और ख़राबियां वाक़ेअ हुई हैं। और इंसान ने बाइस ख़ुद-पसंदी के झूठे ईमान का लिबास पहन कर अपने आपको ईमानदार तसव्वुर कर लिया और अपने आपको फ़रेब दिया। और दूसरों को भी ग़लती में डाला। मसलन ख़वांदा (पढ़े लिखे) आदमीयों ने उन पैशन गोईयाँ को जो नबियों की किताबों में बहक मसीह मुन्दरज हैं पढ़के और जैसे कि वो हो बहू वक़ूअ में आई हैं उन पर लिहाज़ कर के और उन मोअजज़ात को जो मसीह ने दिखलाए बतौर दलील (गवाही, सबूत) काफ़ी समझ के वास्ते हराने बेईमानों के एक हथियार जाना और जो लोग कि इन्जील के मुन्किर (इन्कार करने वाले) थे। उन के साथ बह्स करने के लायक़ हुए और ऐसे इल्म को ईमान की जगह तसव्वुर कर के अपने आपको ईमानदार मशहूर किया। और अपने ईमान को कामिल जान कर किसी बात का क़सूर ना समझे। बावजूद ये कि उन के अमल अच्छी तरह ज़ाहिर करते हैं, कि उन के दिलों में बिल्कुल ईमान की तासीर नहीं ऐसे लोगों को इस बात के क़ाबिल करना निहायत मुश्किल है, कि वो ईमानदार नहीं हैं और जो ईमान बरा-ए-नाम रखते है। सो सिर्फ एक ख़्याली अम्र है क्योंकि मसीही मज़्हब के मसाइल से वाक़िफ़ होना और मसीह की तवारीख़ से बख़ूबी आगाही हासिल करनी और क़वाइद नजात को जो मसीह की मौत के ज़रीये से इन्जील में ज़ाहिर हुए हैं इस्तिमाल में लाना ईमान नहीं। नए उमूर सिर्फ़ बह्स और मजलिसी गुफ़्तगु के लायक़ हैं। रूह को इन से कुछ फ़ायदा नहीं पहुंचता। और इस क़िस्म का इल्म ना गुनाहों से नफ़रत देता है और ना उनको क़ाइल करता है और ना उन को तर्क कर सकता है। और ना दिल में पाक होने का शौक़ पैदा करता है। पहले-पहल ग़ैर-क़ौमों में भी जहां मसीह की मुनादी अव़्वल हुई थी इसी ख़याल ने रिवाज पाया और उन्हों ने समझा कि मसीही मज़्हब में रास्तबाज़ी की कुछ ज़रूरत नहीं नजात सिर्फ़ ईमान ही से है दिल की तब्दील और फ़र्मांबरदारी और तवक्कुल जो ईमान के साथ मुताल्लिक़ हैं उन्हों ने कुछ चीज़ ना समझी और वो अपने बातिल (झूट) भरोसे पर ये कहते रहे, कि मसीह की रास्तबाज़ी हमारी रास्तबाज़ी और मसीह की पाकीज़गी हमारी पाकीज़गी है। उन्हों ने आमाल की पैरवी करनी छोड़ दी और हुक्मों को मतरूक (तर्क करना) कर दिया। जहां कहीं सच्चे ईमान की ख़ासियत और हद ना पहचानी जाये वहां ऐसी ऐसी बिदआत ज़रूर ज़हूर (ज़ाहिर होना) पकडती हैं। इस मुक़द्दमे में पौलूस पत्रस यूहन्ना याक़ूब रसूलों के मक्तूबात (ख़ुतूत) पढ़ने से मालूम हो सकता है, कि ईमान बेअमल निकम्मा है बल्कि ईमान का होना ईमानदारों के नेक अमलों से साबित होता है। इंग्लिस्तान और जर्मन में अगले ज़माने के बहुत लोग यही ख़याल रखते थे, कि नजात सिर्फ़ ईमान ही से है। और हक़ीक़त में ऐसा ही है पर अमल को बिल्कुल नाचीज़ जानना बड़ी ग़लती है। ईमान ज़रूर मसीह पर तवक्कुल है जैसे कि बयान हुआ है और ये तवक्कुल वास्ते नजात रूह के आख़िरत में दोज़ख़ से है। लेकिन वैसा ही तवक्कुल वास्ते नजात के शौक़-ए-गुनाह और शहवत और नफ़्स की सरकशी से भी ज़रूरी है। ये कैसे हो सकता है कि आदमी गुनाह के नतीजे से नजात चाहे। और गुनाह की पलीदी से ना बचे और तमन्ना करे कि बाप फ़रिश्तों की सोहबत और ज़िंदगी दवाम (हमेशा) के आराम से हिस्सा पाए। पर जो दिली पाकीज़गी उस सोहबत के लायक़ है और जिस पर सब फ़र्हतें आक़िबत की मौक़ूफ़ हैं ज़िंदगी में हासिल ना करे। तवक्कुल ख़ुद चाहती है कि शब व रोज़ उस ख़ुदावन्द का ख़याल दिल में रहे ताकि मदद और नजात उस से मिले। लेकिन जब गुनाह के ख़याल और शौक़ दिल में भरे रहें तो ख़ुदा और ख़ुदावन्द मसीह के ख़याल ने कब दख़ल पाया। आदमी जिस गुनाह से बचने के लिए मसीह के पास आया उसी गुनाह को किस तरह दिल से प्यार करेगा। ग़र्ज़ ऐसा मुर्दा ईमान जिसमें पाकीज़गी की ज़िंदगी ना हो ईमान नहीं होता।

5 एक ख़राबी और भी फैली है और वो ये है कि लोग बा सबब ताअलीम ख़ुर्द साली के चंद आदात मज़्हबी इख़्तियार कर लेते हैं और उन्हीं को ईमान की जगह में नजात के लिए काफ़ी समझ कर औक़ात बसर करते हैं। मसलन गिरजा में जाके दुआएं मांगने और मज़्हबी किताबों के पढ़ने और मुफ़लिसों पर सख़ावत (बख़्शिश, ख़ैरात) करने और अपने मज़्हब के मुक़द्दमे में कुमुक (मदद) देने और अपना नाम मज़्हबी लोगों के साथ लेने और जहां कहीं मज़्हब के तज़्किरे के लिए जमाअत इकट्ठी हो वहां पर हाज़िर होने को ईमान तसव्वुर करते हैं। लेकिन सच्चे ईमान से जो तवक्कुल मसीह पर वास्ते रास्तबाज़ी और पाकीज़गी और नजात के है। मह्ज़ बे-बहरा हैं ऐसे ज़ाहिर परस्तों को मुनासिब है, कि अपने ख़यालात और सच्चे ईमान से बे-बहरगी (आज़ादी) को समझ के मालूम करें कि उनका ईमान इस बुनियाद पर क़ायम है कि नहीं जो मुवाख़िज़ा (गिरिफ्त, जवाबतलबी) में हरगिज़ जुंबिश ना करे और साबित करें कि ईमान सिर्फ़ ख़्याली ही तो नहीं बल्कि तबकन वास्ते नजात के है। अगर आदमी ऐसी नेक चाल भी रखें कि लोगों की नज़र में कभी बुरे मालूम ना हों और ख़ुदा की रहमत पर भी ऐसा तकिया हो कि वो कमज़ोरीयों की हालत में मदद करे तिसपर (बावजूद इस के) अगर ईमान इन्जील के मुताबिक़ ना हो तो वो ईमान किसी काम का नहीं। इन बातों से तसव्वुर अक़्साम (मुख्तलिफ़ क़िस्में) ईमान के बख़ूबी आ सकते हैं कि बजा कौनसा है और ग़लत कौन।

6. एक और ग़लती ये है कि बाअज़ आदमी बग़ैर तिलावत-ए-कलाम रब्बानी और बदों सेहत ख़याल ईमानी के कहते हैं कि ईमान ने हमारे दिलों में ऐसा ग़लबा किया है कि सब उमूरे मज़्हबी हमारे दिल पर खुल गए हैं और वज्द (दीवानगी) की हालत में आकर अपने आपको सच्चा ईमानदार गिनते हैं और गुनाह की मगफिरत (माफ़ी) और पाकीज़गी की बुनियाद इसी अंदरूनी ख़याल से तस्दीक़ कर लेते हैं ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि उन्होंने गुनाह से तौबा और मसीह पर तवक्कुल जिस पर अफ़व (माफ़ी) गुनाह के वाअदे किए गए हैं अपने दिल के तजुर्बे में पाई है या नहीं। क्योंकि अगरचे ख़ुदा ने बाज़ औक़ात अपनी कमाल रहमत से बाअज़ अश्ख़ास पर अपनी मुहब्बत का पर्तो (रोशनी) आस्मानी तरीक़े से रोशन किया है लेकिन नजात और फ़ज़्ले रब्बानी वास्ते अफ़ु-ए-गुनाह (गुनाह की माफ़ी) अवाम के इस तरीक़ पर ज़ाहिर नहीं हुए। अम्बिया और शुहदा बहालते वज्द (बे-ख़ुदी) आग के शोलों में भी शुक्रगुज़ारी के राग गाये हैं और बहुत तक्लीफ़ की मौत में भी इंतिक़ाम की तबाअ (आदत) पर ग़ालिब आ के अपने दुश्मनों के लिए दुआएं मांगी हैं। लेकिन अवाम को ये बरकात मयस्सर नहीं हैं हर एक इंसान को नहीं चाहिए कि ऐसी आस्मानी नागहानी बरकत हासिल करने की गुमानी इल्तिजा रखे। वज्द में आकर ख़ुदा की रहमत पर इस क़द्र ख़ुश होना कि अपने ज़ाहिरी कामों से बिल्कुल बे-ख़ुद हो जाये और शैय है और मसीह पर वास्ते नजात दोज़ख़ और रिहाई गुनाह और मख़लिसी शैतानी इम्तिहान के तवक्कुल रखना और शैय इन दोनों में ज़मीन और आस्मान का तफ़ावुत (फ़र्क़) है बख़्शिश की गवाही अपनी अपनी तबीयत के वज्द से समझ लेनी एक क़ौल व फ़ेअल का एतबार करे और कोई रहम-दिल आदमी ये नहीं कह सकता कि तुर्क ईसाई रियाया पर हुक्मरानी करने के लायक़ हैं क्योंकि जैसे जैसे ज़ुल्म ब अआनत (मदद) सुल्तान रुम तुर्कों ने ईसाईयों पर किए हैं वो ज़ुल्म किसी सर-ज़मीन पर नहीं हुए। और किसी मज़्हब में ऐसे ज़ुल्म व सितम रवा नहीं रखे गए। चुनान्चे इस हफ्ते में हमने एक अंग्रेज़ी अख़्बार में तुर्कों के अदना ज़ुल्म की एक तस्वीर छपी हुई देखी जिसमें दिखाया गया है, कि चंद ईसाई दरख़्तों से बंधे हुए लटक रहे हैं और नीचे उन के आग जल रही है। पैर उन के जल कर भस्म हो गए हैं चेहरों पर मुर्दाई छा रही है। क़रीब है कि इस तरह तड़प-तड़प कर उन के दम निकल जाएं।

इसी अख़्बार में हमने ये भी देखा कि तुर्क इस से भी ज़्यादा ज़्यादा ज़ुल्म औरतों पर करते हैं। और छोटे छोटे बच्चों के साथ निहायत ही बेरहमी से पेशी आते हैं।

देखो सल्तनत-ए-रूम ने कैसी धोके बाज़ी के साथ हफ़्ता गुज़श्ता में चंद शहरों पर क़ब्ज़ा कर लिया यानी हस्बे फहिमाइश (तल्क़ीन, नसीहत) सलातीन दीगर बाग़ीयों के साथ ये इक़रार किया कि हमको छः माह की मोहलत देनी चाहिए। जिस पर रूस ने जवाब दिया कि नहीं बल्कि बजाय छः माह के छः हफ्ते की मोहलत होनी वाजिब है। सुल्तान रुम ने 28 अक्तूबर को ये अम्र क़ुबूल किया मगर 29, 30 अक्तूबर को बाग़ीयों पर अचानक हमला किया गया और बड़े बड़े दो शहर अपने क़ब्ज़े में कर लिए। ये फ़ेअल शहनशाह रूस को नागवार गुज़रा। फ़ौरन इत्तिला दे गई कि अगर 48 घंटे के अंदर छः हफ्ते की मोहलत मंज़ूर हो तो क़ुबूल करो। वर्ना तमाम ताल्लुक़ात तोड़ दीए जाऐंगे अब इस पर सुल्तान रुम ने फिर इक़रार किया है कि हम दो माह तक जंग नहीं करेंगे।

तार बर्क़ियों से मालूम होता है कि तमाम यूरोप के सफ़ीर रुम में जमा होंगे और मशरिक़ी मुआमलात पर गौर करेंगे। अब हमको यक़ीन-ए-कामिल है कि अगर सुल्तान रुम ने इन सफ़ीरों के बरख़िलाफ़ कुछ भी किया तो सल्तनत-ए-रूम की ख़ैर नहीं और उनके जमा होने से तुर्कों के ज़ुल्म भी साफ़ साफ़ ज़ाहिर हो जाऐंगे।

एक आज़ाद शख़्स कहता है कि सल्तनत-ए-रूम अब बहुत बीमार हो गई है। उस के ईलाज के वास्ते कई सल्तनतों से डाक्टर आएँगे और बीमारी की तशख़ीस करेंगे चुनान्चे सल्तनत इंग्लेंड से जनाब लार्ड सालबरी साहब वज़ीर-ए-आज़म भी बीमार सल्तनत के देखने के वास्ते तशरीफ़ ले जाऐंगे।

हमने इस मुआमले को कि लूदियाना में फ़क़ीर लोगों के बर्तन उठा ले जाते हैं। अच्छे और मोअतबर लोगों से दर्याफ़्त किया बल्कि हमने पुलिस से भी पूछा ये ही जवाब पाया, कि ये बात बिल्कुल झूट है और कोई शख़्स जो हुक्काम से अदावत (दुश्मनी) रखता है ऐसी बातें जिनकी कुछ भी बुनियाद नहीं है ओढ़ता है अब कोरिस्पोंडेंड कोह नूर को जो लूदियाना के हालात लिखता है मुनासिब है कि अपनी तस्दीक़ के वास्ते दो चार जगह का नाम लिख कर बतलाए कि फ़ुलां फ़ुलां जगह से बर्तन फ़क़ीर उठा ले गए हैं। और अगर इस बात का कुछ सबूत नहीं है तो ज़रूर अपने लिखे की तक़्ज़ीब (झुटलाना, झूट बोलने का इल्ज़ाम लगाना) करानी मुनासिब है। वर्ना हुक्काम पुलिस जिनकी इस में ग़फ़लत (लापरवाही) और बे इंतिज़ामी पाई जाती है दाअवा कर के सज़ा दिलवाएंगे।

 

बक़ीया मसीह पर ईमान रखने का बयान

वास्ते अफ़ुगुनाह के मसीह पर तवक्कुल करने का सबब

उस ख़ुदा ने जिसने इब्तिदा में तरीक़ा मग़्फिरत (बख़्शिश, नजात) का मसीह पर ईमान लाने से ज़ाहिर किया। ख़वास और जलाल उस बचाने वाले के भी पाक किताब में मुन्दरज किए जिससे ईमानदारों के दिल में बुनियाद तवक्कुल के सबब क़वी (ताक़तवर, ज़ोर-आवर) पैदा हों। यही ख़ुदा की गवाही मसीह के जलाल और अज़मत पर यसूई ईमान की बुनियाद है। और नजात की बातें ऐसी साफ़ और बाक़ायदा मालूम होती हैं कि किसी जगह उन में इशतिबाह (शक, मुशाबेह होना) की गुंजाइश नहीं। जिस दिन से गुनाह ने दुनिया में दख़ल पाया और इंसान अपने ख़ालिक़ की नज़र में ख़ताकार और ग़सब का सज़ा-वार ठहरा। उसी दिन से नजात का वसीला भी ख़ुदा ने ऐसा ज़ाहिर किया। जिससे आदम और उस की औलाद उस की रहमत से नाउम्मीद और हिरासाँ ना हुए।

बाइबल के मज़्मून से मालूम होता है कि ख़ुदावन्द येसू मसीह सिर्फ़ इंसान ही ना था बल्कि उलूहियत (ख़ुदाई) भी उस में थी। जो कलाम इब्तिदा में था वो कलाम ख़ुदा था और सारी चीज़ें उस से बनीं। और जो सुनें बग़ैर उस के ज़रीये के नहीं बनीं। बसबब इस असली उलूहियत के जब ख़ुदावन्द येसू मसीह ज़मीन पर वास्ते फ़िद्या (ख़ून बहाना) गुनेहगारों के पैदा हुआ। अगरचे वो और तिफ़्लों (बच्चों) की तरह सिर्फ एक तिफ़्ल (बच्चा) था और मर्यम के पेट से पैदा हुआ और बाद पैदाइश तवीला (अस्तबल) में रखा गया। लेकिन उस वक़्त ख़ुदा बाप ने फ़रिश्तों को फ़रमाया कि उस की परस्तिश करें और सारे फ़रिश्तों ने यूं पुकारा कि ख़ुदा को आस्मान पर जलाल और ज़मीन पुर-अम्न और इंसान को रजामंदी।

फिर पैदाइश ख़ुदावन्द मसीह की ख़बर चरवाहों को दी कि ख़ुदा हमारे साथ हो उसी वास्ते इम्मानुएल नाम रखा गया। इस से साफ़ मालूम होता है कि मसीह में उलूहियत भी थी। और इसी वास्ते नजात के लिए इस पर तवक्कुल सारे ताइब (तौबा करने वाला) ईमानदारों के दिलों में मुस्तक़ीम (दुरुस्त, मज़्बूत) है और सब नबियों ने मिस्ल यशायाह और दानयाल की बाबत उलूहियते मसीह के ख़बर दी। और उस के कफ़्फ़ारे में जान देने पर ये बड़ाई की कि उस ने गुनाह को ख़त्म किया और इन्सान को रिहाई बख़्शी। और येसू मसीह की उलूहियत वास्ते कफ़्फ़ारा गुनाह के तवक्कुल की पक्की बुनियाद है। क्योंकि अगर वो ख़ुदा ना होता तो गुनाह बख़्शने का इक़तिदार हरगिज़ ना रखता। इस मुक़द्दमे में ख़ुदा ने ख़ुद फ़रमाया है कि ख़ुदा ने दुनिया पर ऐसा प्यार किया कि अपना इकलौता प्यारा बेटा बख़्शा। ताकि जो कोई उस पर ईमान लाए हमेशा की ज़िंदगी पाए। फ़क़त वह ख़ुदा का बर्रा है जो जहान के गुनाह उठा लिए जाता है उस ने हमारे गुनाह उठा लिए। क्योंकि वो ख़ुदा भी और इंसान भी था।

ग़ौर करो कि अगर ख़ुदा ऐसे शख़्स को जैसा मसीह है मुक़र्रर कर के सिर्फ आस्मान पर रख के गुनेहगारों को इत्तिला देता, कि उस पर ईमान लाओगे तो तुम्हारा शफ़ी (शफ़ाअत करने वाला) होगा। और उस की शफ़ाअत गुनाह की मग़्फिरत के लिए मक़्बूल होगी तो भी हर एक को लाज़िम होता कि उस पर ईमान लाओ। ख़ुदा ने उसे सिर्फ मुक़र्रर ही नहीं किया बल्कि ज़मीन पर भेजा और अपना रहम और अदल दोनों एक जगह में ज़ाहिर किए। अगर मसीह सिर्फ़ इंसान ही होता उस का कफ़्फ़ारा माफ़ी कुल जहान के लिए काफ़ी ना होता। और अगर वो सिर्फ़ उलूहियत में लोगों पर ख़ुदा की जीत ज़ाहिर करता तो अदल पूरा ना हो सकता। इसी वास्ते ख़ुदा और इंसान का मुतवस्सित (औसत दर्जा का, दर्मियानी) हुआ जैसा कलाम में तज़्किरा हुआ है कि ख़ुदावन्द मसीह में उलूहियत थी। जिसे आस्मान के फ़रिश्ते परस्तिश करते थे। ये भी लिखा है कि इंसान गुमराह के बचाने के लिए उस ने आके जान दी।

मसीह की पैदाइश से साफ़ ज़ाहिर होता है कि उस में ज़रूर उलूहियत थी क्योंकि उस में लिखा है कि उस ने फ़रिश्ते की सूरत ना पकड़ी बल्कि इब्राहिम की औलाद में पैदा हुआ ताकि गुनेहगारों का नजातदिहंदा हो। इन दोनों ख़ासियत का होना मसीह में ज़रूर था। ताकि वो ख़ुदा हो के ख़ुदा का हक़ पहचाने और इंसान हो के इंसान की कमज़ोरी पर रहम लाए। और यही दोनों ख़ासियत वास्ते तक़वियत (क़ुव्वत, ताक़त) बुनियाद तवक्कुल के पाक किताबों में ज़िक्र हुई हैं। इस जगह में लिखना उनका ज़रूरी नहीं। कलाम के पढ़ने वालों को आप ही मालूम होगा कि मसीह में ये दोनों खासियतें मौजूद थीं। और इसी वास्ते वो हमारे लिए नजातदिहंदा कामिल और वास्ते अफ़व (माफ़ी, बख़्शना बख़्शिश) गुनाह के तवक्कुल उस पर बख़ूबी हो सकता है। यहूदीयों ने मसीह के हक़ में ये ग़लती की कि वो उस को बादशाह साहिब-ए-हलाल उलूहियत से पुर उन को दुश्मनों से छुड़ा ने वाला शुजाअत (बहादुरी, दिलेरी) में बहादुर इंतिज़ार करते थे। और मसीह बरअक्स ख़याल उन के मुफ़्लिस (हाजतमंद) आदमीयों की सूरत में पैदा हुआ। और हर एक क़िस्म की तक्लीफ़ में उस ने अपने आपको डाला। सामने पिलातूस के हाज़िर हुआ गो सारी दुनिया का मुंसिफ़ यानी मसीह उस बुत-परस्त हाकिम के सामने इन्साफ़ के लिए लाया गया क्योंकि ख़ुदा ने हमारे गुनाह उस पर डाले थे। जब दूसरे गुनेहगार वाजिब-उल-क़त्ल ने पिलातूस के हाथ से रिहाई पाई तो उस ने मसीह के हक़ में सलीब का फ़त्वा दिया। ये सख़्त सज़ा जो मसीह पर वारिद हुई। हमारे गुनाहों के सबब थी। फ़िल-हक़ीक़त उदूल हुक्मी ऐसी ही सज़ा का तक़ाज़ा करती है। जिससे सारी दुनिया ग़ारत हो। और यक़ीनन मसीह ने ऐसी ही सज़ा उठाई जिससे सारी दुनिया को नजात मिले। सज़ा का बोझ जो मसीह ने उठाया ऐसा सुबक (हल्का, कम वज़न) नहीं था कि सिर्फ इंसानियत उसे उठा सकती उदूल हुक्मी की सज़ा उन फ़रिश्तों से भी उठाई नहीं गई। जो इंसान से ताक़त और लियाक़त कई दर्जा ज़्यादा रखते थे। इसी सज़ा में वो फ़रिश्ते उम्दा आराम आस्मानी से शैतान की तरह दोज़ख़ के लायक़ हुए। पर ख़ुदावन्द मसीह ने अपने जिस्म में बसबब सँभालने और था मुन्ने उलूहियत के वो आस्मानी ग़ज़ब उठा या। और ख़ुशी से इस को सहा। लेकिन तो भी बोझ उस ग़ज़ब का उस के इंसानी जिस्म पर बख़ूबी मालूम हुआ। और एक बात से जो सारी तक़्लीफों से ज़्यादातर क़वी थी वो घबराया। देखो उस ने पिलातूस के आगे वास्ते रहम के कुछ दरख़्वास्त ना की। और जब यरूशलेम की औरतें उस पर रोने लगीं तो उस ने हुलुम (नर्मी) से उन को कहा, कि अपने फ़रज़न्दों के लिए रोओ मुझ पर ना रोओ। और फिर बखु़शी ख़ुद सलीब को क़ुबूल किया। और जैसे भेड़ बाल कतरने वालों के आगे चुप रहती है वैसे ही सारे दुख सहता रहा। लेकिन जब ख़ुदा का ग़ज़ब उस पर नाज़िल हुआ और ख़ुदा ने अपनी उलुहियत का चेहरा उस से जुदा कर लिया तब मसीह चिल्लाया, कि ऐ मेरे ख़ुदा ऐ मेरे ख़ुदा तू ने मुझे क्यों तर्क (छोड़ना) किया। इस से भी साफ़ मालूम होता है कि मसीह गुनेहगारों को नजात देने में कामिल और तवक्कुल उस पर बजा इस क़द्र साहिबे जलाल हो के ऐसा पस्त बना और ख़ुदा की रहमत से ये भी आशकार (वाज़ेह, ज़ाहिर) है, कि उस ख़ुदा ने हमसे ऐसा प्यार किया कि अपने इकलौते और प्यारे बेटे को भेजा। ताकि गुनेहगार उस के वसीले से नजात पाएं। पस इस कलाम पर तकिया (भरोसा, पूरा एतिमाद) ना करना निहायत गुनाह है अगरचे तुम्हारे गुनाह शुमार में बेहद हैं तो भी मसीह से बख़्शिश के उम्मीदवार हो सकते हो। क्योंकि कोई गुनाह ऐसा नहीं जिसको उस का ख़ून साफ़ ना कर सके। और कोई गुनाह ऐसा नहीं जिसका बदला उस ने ना दिया हो। और कोई सज़ा गुनाह की ऐसी नहीं जो उस ने ना उठाई हो और उस की नजात ख़ुदा की मुक़र्रर की हुई है। पस तवक्कुल करो कि उस ने अदल (इन्साफ़) को पूरा किया और शरीअत को इज़्ज़त दी और रहम को ज़हूर में लाया। और गुनाहों की सज़ा अपने आप पर उठाई।

बक़ीया मसीह पर ईमान रखने का बयान

बल्कि येसू मसीह पर ईमान लाने से रास्तबाज़ गिना जाता है

अब हम वो मदद जो मसीह से हासिल होती है और वो छुटकारा जो मसीह बख़्शता है। और वो क़हर और ग़ज़ब शरीअत का जो उस ने हमारे लिए उठाया। और वो रोशनी फ़हम की जो अपने कलाम के ज़रीये से हमको अता की है बयान कर चुके। लेकिन एक और बात बाक़ी है जिसका ज़िक्र अब करना चाहते हैं और वो नजात के लिए लाज़िम है यानी आदमी बज़ाना दुनिया का ग़ुलाम है और दुनियावी शहवतों (जिन्सी ख़्वाहिश) का लालच और आदात तिफ़लाना (बचपन की आदात) और हसद और तकब्बुर उस के दिल में मौजूद हैं यही नहीं कि उन चीज़ों को सिर्फ रग़बत (ख़्वाहिश, तवज्जोह) से इस्तिमाल ही में लाता हो बल्कि उस के कामों से साफ़ मालूम होता है, कि इन शहवतों के क़ब्ज़े में ऐसा आ रहा है जिससे छूटने की ताक़त नहीं रखता। और जब तक अपनी ताक़त से छूटने का इरादा रखता है, तब तक हरगिज़ छूट भी नहीं सकता। हर एक इम्तिहान में जिसका वो मग़्लूब (आजिज़, हारा हुआ) होता है ये बात उस को सच्च मालूम होती है। अगरचे अपनी नानवानी का इक़रार करने में ज़ाहिरन नदामत (शर्मिंदगी) है लेकिन बचने की राह की तलाश ना करनी ऐन हमाक़त (बेवक़ूफ़ी) है। बाज़ों को बज़ाता और बाज़ों को ताअलीम से कुछ-कुछ नेक आदतें हासिल भी हैं। मगर अंदरूनी बद-अख़्लाकी तिसपर भी वक़्तन फ़-वक़्तन उन के इल्म के बरख़िलाफ़ ग़ालिब हो जाती है और तबीयत को बिल्कुल परागंदा (परेशान, हैरान) और तल्ख़ (सख़्त, नागवार) बनाती है। ये गु़लामी ज़्यादातर ग़म अफ़ज़ा और बर्दाश्त से बाहर होती है। जिस क़द्र ख़ुदा के इन्साफ़ और गुनाह के हालात से इंसान वाक़िफ़ होता है उसी क़द्र उस गु़लामी से छुड़ाने पर मसीह क़ादिर है। इस मख़लिसी के लिए भी ख़ुदा का ये हुक्म है कि मसीह पर तवक्कुल करो। और उसी की क़ुव्वत पर भरोसा रखो। अगले ज़माने के नबियों ने भी मसीह की ख़ासियत को इसी तरह बयान किया है। कि वो गुनाह से छुड़ाने पर क़ादिर और शैतान की जंग में बहादुर है। और उस के क़ब्ज़े से फिर कोई नहीं छुड़ा सकता। मसीह की ज़ाहिरी पस्त हाली पर ख़याल कर के कोई ये ना समझे कि गुनाह की गु़लामी से छुड़ाने पर उस की क़ुव्वत कम है। क्योंकि इन्जील के पढ़ने से मालूम होता है, कि उस ने गूँगे को ज़बान दी और बहरे को कान और लंगड़े को पांव अता किए। और अंधे को आँखें और मुर्दा को ज़िंदगी बख़्शी। और आंधी और दरिया ने उस का हुक्म माना और दरिया की मौजें उस के ख़ौफ़ से थम गईं। आंधी में अगरचे दोज़ख़ की क़ुव्वत है और इंसान पर वो ग़ालिब है। लेकिन मसीह पर ग़ालिब नहीं उस की क़ुद्रत इन सब चीज़ों पर फ़ाइक़ (आला) है। हमारे ईमान और तवक्कुल और उम्मीद की तक़वियत (क़ुव्वत) के वास्ते पाक कलाम में बारहा मज़्कूर हुआ है कि मसीह हमको गुनाह की गु़लामी से आज़ाद करने वाला है। ख़राज लेने वालों को जो गुनेहगारों में बड़े शुमार होते थे। और ज़नान-ए-क़हबा को जो औरतें फ़ाहिशा गिनी जाती थीं मसीह की क़ुव्वत ने शहवतों से रिहाई दी। ग़र्ज़ गुनेहगारों को गुनाह से रिहाई बख़्शने की क़ुव्वत जो मसीह में है इस का तज़्किरा मैं कहाँ तक करूँ सब कलाम-ए-रब्बानी इन्हीं बातों की तवारीख़ है। और सारे मसीह लोग इस कलाम के गवाह हैं देखो उस ख़ूनी को जो मसीह के साथ मस्लूब हुआ था मसीह ने कहा कि तू आज हमारे साथ फ़िर्दोस में होगा। यानी मैं तुझे बहिश्त में इस अम्र की अलामत कर के ले जाऊँगा कि हम शैतान पर ग़ालिब हुए। ऐसा ही जो लोग कि मसीह पर ईमान लाते हैं और दुनिया और नफ़्स और गुनाह पर ग़ालिब होते हैं क़ुव्वत-ए-मसीह की अलामत हैं। गोया कि उस ने उन को शैतान के हाथ से छुड़ा दिया। और जल (पानी) ने तिनके को आग से बचा लिया। हर एक दिल जो मसीह की क़ुव्वत से साफ़ होता है और हर एक तबा (तबीयत, मिज़ाज) जो गुनाह से फिर के ख़ुदा की तरफ़ रुजू होती है। और हर एक गुनेहगार जो गुनाह से तौबा कर के शैतान के मुक़ाबले में खड़ा होता है और मसीह का सिपाही कहलाता है। मसीह की क़ुव्वत का निशान है। ये ख़ासियत मसीह की भी बाइबल में उस के लक़ब के मुताबिक़ है क्योंकि लिखा है कि वो फ़ातेह और दुश्मन पर ग़ालिब होगा। झूट को कुचलेगा और रास्ती को क़ायम करेगा। अगर कोई कहे कि मसीह की मौत और क़ब्र उस की कमज़ोरी पर दलालत करती है। तो ये पाक किताबों की ना-वाक़िफ़ी से है क्योंकि मसीह क़ब्र में इस वास्ते नहीं गया, कि क़ब्र का पाबंद हो बल्कि फ़त्हमंद की मानिंद था। इस वास्ते क़ब्र के बंद को और मौत की सल्तनत को तोड़ के इन दोनों पर ग़ालिब आया। और मर के तीसरे दिन जी उठा। पस उस पर तवक्कुल करना हमेशा की मौत से छुटकारा है। ये मर के जी उठना उस का क़ुव्वते इलाही है, जिसने नबियों के कलाम को पूरा किया और तमाम आदमीयों की उम्मीद का पहला सबब हुआ। और ज़ाहिर कर दिया कि सारी ख़ल्क़ मर के फिर जी उठेगी जैसे कि लिखा है कि जाग और गा ऐ तू जो ख़ाक में बस्ती है। तेरी शबनम और तेरी सबज़ीयां क़ायम हैं कि ज़मीन अपने मुर्दों को निकाल देगी बाब 26 आयत 9 यसअयाह नबी की। पस इन कामों से मसीह की क़ुव्वत साफ़ ज़ाहिर है और हमारी तवक्कुल की बुनियाद वो हमको सिर्फ़ गुनाह की सज़ा ही से नहीं छुड़ाता, बल्कि गुनाह की क़ुव्वत से भी छुड़ाता है पौलुस हवारी (शागिर्द) ने भी लिखा है कि वो साहिबे नजात जो अपने नाम पर तवक्कुल रखने वालों को नजात के दुश्मनों से रिहाई देता है हमारा मियां जी (उस्ताद, मुअल्लिम) मन्सब में ये इक़तिदार रखता है और हमारे सारे दुश्मनों पर ऐसी हुकूमत करता है, कि जब तक मुख़ालिफ़त गुनाह और शैतान और ख़ुदा की मौक़ूफ़ ना हो तब तक इसी मियां जी के तख़्त पर बैठेगा। और वो ख़ुदा के दहने हाथ पर बैठा। ताकि तमाम क़ुव्वतें और सारी रियासतें ना सिर्फ दुनियावी जो मौजूद हैं बल्कि उक़बी (पीछे) की भी उस के क़दम तले की जाएं और कलीसिया की सारी चीज़ों पर मुख़्तार (सरपरस्त) रहेगा। इम्तिहान की तादाद और क़ुव्वत कितनी है तसव्वुर करो और इंसान की कमज़ोरीयों और बद-आदतों और शैतानी फ़रेबों को कितना ही ख़याल करो सब मसीह की क़ुव्वत के नीचे हैं। वो अपने लोगों को पाक करेगा और ख़ास क़ौम बना कर ख़ुदा के हुज़ूर में पहुंचाएगा। मसीह ईमानदारों का बादशाह है कि सब रुहानी ज़ुल्मों और नापाक शहवतों से रिहाई बख़्शता है। अगर कोई शख़्स हुलुम और पाएदारी से मसीह की क़ुव्वत पर तवक्कुल करे तो तजुर्बे से मालूम करेगा कि ये सदा ही खूबियां उस में हैं। और गुनाह की बला में हरगिज़ गिरफ़्तार ना रहेगा। मसीह पर तवक्कुल करने वाले गुनाह पर ज़रूर फ़त्ह पाएँगे वर्ना उन को ख़ुदा के कलाम में शक होगा। जिस क़द्र इस बात में कहा गया उसी क़द्र ईमान में तक़वियत पैदा करने और मसीह पर तवक्कुल की बुनियाद मज़्बूत करने को किफ़ायत करता है। कि वो बचाने वाला वास्ते दानाई और रास्तबाज़ी और पाकीज़गी के काफ़ी है।

मसीह ख़ातिम-उन्नबीय्यीन नहीं

ये कलाम जो पेशानी (काग़ज़ का बालाई हिस्सा जो इबारत से ऊपर ख़ाली छोड़ दिया जाये) पर लिखी गई। आख़िरी हिस्सा मज़्मून मलिक शाह साहब में दर्ज है। और इस की निस्बत उन्होंने ज़ोर व शोर किया है। अगर इस से उनका ये मतलब है कि मसीह आख़िरी नबी नहीं है। यानी नबुव्वत उस पर ख़त्म नहीं हुई बल्कि और नबी उस के पीछे हुए तो इस से हम इन्कार नहीं करते बल्कि तस्लीम करते हैं जिसके दो सबब हैं।

Christ is not the Seal of prophets, Objection by Muslims

मसीह ख़ातिम-उन्नबीय्यीन नहीं

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan July 9-15, 1873

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 9-15 जुलाई 1873 ई॰

ये कलाम जो पेशानी (काग़ज़ का बालाई हिस्सा जो इबारत से ऊपर ख़ाली छोड़ दिया जाये) पर लिखी गई। आख़िरी हिस्सा मज़्मून मलिक शाह साहब में दर्ज है। और इस की निस्बत उन्होंने ज़ोर व शोर किया है। अगर इस से उनका ये मतलब है कि मसीह आख़िरी नबी नहीं है। यानी नबुव्वत उस पर ख़त्म नहीं हुई बल्कि और नबी उस के पीछे हुए तो इस से हम इन्कार नहीं करते बल्कि तस्लीम करते हैं जिसके दो सबब हैं।

अव़्वल ये, कि ख़ुदावन्द येसू मसीह को हम सिर्फ नबी नहीं जानते। क्योंकि नबुव्वत (रिसालत) उस के दूसरे दर्जे का काम था ख़ास काम जिसके लिए वो इस दुनिया में आया ये था, कि अपनी जान देकर गुनाहों का कफ़्फ़ारा (गुनाह धो देने वाला) करे और गुनेहगारों को नजात बख़्शे इसलिए येसू मसीह उस का नाम हुआ। वो कलाम–अल्लाह और इब्ने-अल्लाह है इसलिए और नबियों के साथ उस का मुक़ाबला नहीं किया जा सकता। नबी और पैग़म्बर जो दुनिया के शुरू से हुए सब के सब मसीह की शहादत (सबूत, गवाही) देते रहे। वो तो नबियों की नबुव्वत का मज़्मून था जिस क़द्र नबी गुज़रे वो तमाम बंदगाने ख़ुदा की आँखें उस की तरफ़ रुजू करते रहे। इसलिए उस का नबियों के साथ मुक़ाबला नहीं हो सकता।

दूसरी वजह ये है, कि हम यक़ीनन जानते हैं कि नबुव्वत का कलाम मसीह के बाद मसीही कलीसिया में जारी रहा। चुनान्चे मसीह के बारह हवारी (शागिर्द) इल्हामी और नबी थे। उन के ख़ुतूत और कुतुबे मुसन्निफा में बहुत कलाम-ए-नबुव्वत मौजूद हैं। ख़ुसूसुन मुकाशफ़ा की किताब शुरू से आख़िर तक कलामे नबुव्वत से ममलू (भरा हुआ, पुर) है। बाअज़ जिनमें से पूरे हो गए बाअज़ जिनमें से हो रहे हैं। और बाअज़ जिसमें से होंगे सिवा इस के हम जानते हैं, कि अन्ताकिया की कलीसिया में बहुत से नबी हुए (देखो आमाल की किताब 13 बाब पहली आयत) और आंतकिय की कलीसिया में कई नबी और मुअल्लिम (उस्ताद) थे। और यरूशलेम की जमाअत में भी नबी हुए। (आमाल की किताब 11 आयत) इन्ही दिनों में कई एक नबी यरूशलेम से अन्ताकिया में आए और (इफ़िसियों का ख़त 4 बाब 11, आयत) में पौलूस रसूल यूं फ़रमाता है कि जमाअत पर ख़ुदा ने बाज़ों को रसूल और बाज़ों को नबी मुक़र्रर कर दिया। फिर (पहला ख़त कुरिन्थियों का और इस का 12 बाब और 28 आयत) ख़ुदा ने कलीसिया में कितनों रसूलों को दूसरे नबियों को पहले मुक़र्रर किया, के इन कलामों से साफ़ मालूम होता है। कि पहली सदी की मसीही जमाअतों में ख़ुदा ने बाअज़ अश्ख़ास को नबुव्वत अता की इस वास्ते बमूजब क़ौल मलिक शाह साहब के हम भी मसीह के ख़ातिम-उन-नबियीन होने से इन्कारी नहीं हैं। लेकिन अगर इस कलाम से उनका ये ख़याल हुआ है कि ख़ुदावन्द येसू मसीह का ज़माना आख़िरी ज़माना नहीं। बल्कि उस के पीछे और कोई रसूल आएगा जो इन्जील को मन्सुख (रद्द) कर के नई शरीअत और नया तरीक़ा नजात का जारी करेगा। और मालूम होता है कि उनका मतलब भी ऐसा ही है। तो हम इस बात को तस्लीम नहीं करते। क्योंकि इन्जील में साफ़ बयान है कि किसी दूसरे से नजात नहीं आस्मान के तले आदमीयों को कोई दूसरा नाम नहीं बख़्शा गया। जिससे वो नजात पाएं। (देखो आमाल 4 बाब 12 आयत) और सिवा इस के इन्जील में बयान है कि मसीह का ज़माना आख़िरी ज़माना है। देखो (इब्रानियों का ख़त पहला बाब पहली और आयत) ख़ुदा जिसने अगले ज़माने में नबियों के वसीले बाप दादों से बार-बार और तरह तरह कलाम किया। इन आख़िरी ज़मानों में हमसे बेटे के वसीले बोला जिसने उस को सारी चीज़ों का वारिस ठहराया और जिसके वसीले उस ने आलम बनाया। और (ग़लतीयों का ख़त पहला बाब 9 आयत) जिसमें पौलूस रसूल यूं कहता है कि जैसा हमने आगे कहा वैसा ही अब मैं कहता हूँ। कि अगर कोई तुम्हें किसी दूसरी इन्जील को सिवा उस के जिसे तुमने पाया सुनाए। तो वो मलऊन (लानत किया गया, मर्दूद) है। इस से साफ़ ज़ाहिर है कि सिवाए इन्जील के अगर कोई तुम्हें कोई और इन्जील सुनाए तो वो ख़ुदा के हुज़ूर मलऊन है। और ख़ुदावन्द येसू मसीह ख़ुद फ़रमाता है कि अगर कोई तुमसे कहे। देखो मसीह यहां या वहां है तो यक़ीन ना लाओ। क्योंकि झूटे मसीह और झूटे नबी उठेंगे। निशानीयां और करामात दिखलाएँगे। कि अगर हो सके तो बर्गज़ीदों (चुने हुए) को भी गुमराह (बेदीन) करें। पर तुम ख़बरदार रहो देखो मैंने तुम्हें पहले ही सब कुछ कह दिया है। (मर्क़ुस की इन्जील 13 बाब 21 से 23 आयत) तक इन आयतों में ख़ुदावन्द येसू मसीह शागिर्दों को जताता है कि अगर कोई शख़्स मसीह या नबी होने का दावा कर के तुम्हारे पास आए, मोअजिज़ा और निशानीयां दिखाये तो तुम उन पर यक़ीन ना करना वो झूटे मसीह और झूटे नबी होंगे। पस इस हालत में हम क्योंकर मान सकते हैं कि और किसी नबी का आना इन्जील से साबित है। सो इसलिए ख़ुदावन्द येसू मसीह अपने रसूलों को ये कहता है कि तुम जा कर सब क़ौमों को शागिर्द बनाओ। उन्हें बाप बेटा और रूह-उल-क़ुद्दुस के नाम से बपतिस्मा दो और उन्हें सिखलाओ कि उन सब बातों पर अमल करें जिनका मैंने तुम्हें हुक्म दिया है। और देखो ज़माने के तमाम होने तक मैं तुम्हारे साथ हूँ। इस आयत से साफ़ मालूम होता है कि इन्जील की ताअलीम और नसीहत ज़माने के तमाम होने तक क़ायम रहेगी। और मसीह अपने शागिर्दों के साथ तब तक रहेगा। इस हालत में हम क्योंकर सोच सकते हैं कि और कोई नतीजा नजात का जारी होगा। मसीह ने उस रोज़ जब वो पकड़ा गया अपने शागिर्दों से ईद फ़स्ह खाई और इशाए रब्बानी की ईद उन के बीच मुक़र्रर की। और उनको कहा कि तुम इस तरह मेरी यादगारी करते रहो जब तक कि मैं फिर आऊँ यानी रोज़-ए-क़यामत तुम देखो (पहला ख़त कुरिन्थियों का 11 बाब 26 आयत) जब बयान इस क़द्र सफ़ाई से इन्जील में मिलता है कि जब तक मैं फिर आऊँ तुम मेरी यादगार में इशाए रब्बानी करते रहो। और मेरी हिदायत पर चलो तब क्योंकर ख़याल हो सकता है कि उस की ताअलीम के ख़िलाफ़ कोई और ताअलीम सच्ची होगी। और इन्जील के सिवा कोई और किताब सच्ची और इल्हामी समझी जाएगी। और नजात का तरीक़ा और शरीअत मन्सूख़ (रद्द किया गया) हो कर कोई और तरीक़ा और शरीअत क़ायम होगी इस क़द्र सबूत इस अम्र का कि मसीह का ज़माना आख़िरी ज़माना ही काफ़ी है और इसलिए हम बस करते हैं।

और उन आयात का बयान किया जाता है कि जो मियां मलिक शाह मुहम्मद साहब से मन्सूब (मुताल्लिक़ किया हुआ) करते हैं और कहते हैं कि उन में इनके आने[1]

बक़ीया मसीह ख़ातिम-उन्नबीय्यीन नहीं

वो आयात ये हैं (मुकाशफ़ा 2 बाब 17 आयत) जो ग़ालिब (ज़ोर-आवर) होता है मैं उसे मन (आस्मानी ख़ुराक) खाने को दूंगा। और उसे सफ़ैद पत्थर दूंगा। और उस पत्थर पर एक नाम लिखा हुआ दूँगा जिसे उस के पाने वाले के सिवा कोई नहीं जानता। (36 सतर से 28 सतर) जो ग़ालिब होता है और मेरे कामों को आख़िर तक हिफ़्ज़ (हिफ़ाज़त करना) करता है में उसे क़ौमों पर इख़्तियार दूँगा और वो लोहे के असा से उन पर हुकूमत करेगा वो कुम्हार के बर्तनों की मानिंद चकना-चूर हो जाऐंगे। जैसा मैंने अपने बाप से पाया है और उसे सुबह का सितारा दूंगा।

मुझको निहायत ताज्जुब (हैरान) आता है कि इन आयतों से मुहम्मद साहब के आने की ख़बर क्योंकर समझी गई। अगर मलिक शाह साहब सारे बाब को गौर व ताम्मुल (सब्र तहम्मुल) से मुलाहिज़ा फ़र्माते, तो ये ख़याल उनके दिल में कभी ना आता मेरी इल्तिमास है, कि वो सारे बाब को अच्छी तरह देखें इस से मुझे यक़ीन है कि वो अपनी ग़लती पर मुत्ला`अ (बाख़बर) हो कर ख़ुद ही ग़लतफ़हमी के मुकर (इक़रार वाले) होंगे। मैं इस मौक़े पर इन आयात की तफ़्सीर (तश्रीह) नहीं करता बल्कि इस क़द्र दिखाता हूँ, कि ये आयात मुहम्मद साहब से ताल्लुक़ नहीं रखतीं सत्रहवीं आयत का कलाम जो ग़ालिब होता है मैं उसे मन खाने को दूंगा और मैं उसे सफ़ैद पत्थर दूंगा…. अलीख। अव़्वल परगमन की कलीसिया को कहा गया है और सारी मसीही कलीसियाओं को ये वाअदा उन मसीहियों से है जो कि बुराई पर ग़ालिब होंगे। और मुहम्मद साहब पर आइद नहीं होता ग़ौर से साफ़ ज़ाहिर हो सकता है। और 26 सतर से 28 थवातेराह के कलीसिया की निस्बत है। अठारहवीं आयत से पढ़ कर देखो ये आयतें किसी सूरत से मुहम्मद साहब पर आइद नहीं हो सकतीं। क्योंकि उनमें बयान है वो जो ग़ालिब होता और मेरे कामों को आख़िर तक हिफ़्ज़ करता है। मैं उसे क़ौमों पर इख़्तियार दूंगा… अलीख। ये कलाम मसीह का है वो कहता है कि ये बरकतें मैं उस शख़्स को दूंगा जो मेरे कलाम को आख़िर तक हिफ़्ज़ रखता है। भला मलिक शाह साहब ये बातें किस तरह मुहम्मद साहब से मन्सूब हो सकती हैं। ये तो उस की निस्बत हैं जो कि मसीह के कामों को आख़िर तक हिफ़्ज़ रखता है मुहम्मद साहब ने उन के काम की हिफ़ाज़त नहीं की बल्कि उस के ख़िलाफ़ बयान किया। और उस के ख़िलाफ़ ताअलीम की और फिर ग़ौर करना चाहिए इन अल्फ़ाज़ पर वो जो ग़ालिब होता है मैं उसे क़ौमों का इख़्तियार दूंगा। आप इस अम्र का इक़रार करते हैं कि जो कुछ इख़्तियार मुहम्मद साहब को मिला मसीह से मिला और वो सब इक़तिदार मसीह की तरफ़ से था और वो उनके नायब या ताबेदार थे हरगिज़ नहीं इसलिए बेहतर है कि आप नज़ीर इन्साफ़ ये आयतें मुहम्मद साहब से मन्सूब ना करें।

अक्सर ऐसा देखा गया है कि सरगर्म मुहम्मदी मुहम्मद साहब की निस्बत इन्जील की शहादत (गवाही) पेश करते हैं और उस से ऐसी आयतें अख़ज़ कर के मुहम्मद साहब से मन्सूब करते हैं जो कि उन की ज़ात के साथ कुछ ताल्लुक़ नहीं रखतीं बल्कि ख़िलाफ़ उन के होती हैं।

इन साहिबान फ़हम व ज़का की ख़िदमत में इल्तिमास है कि पेश्तर इस के कि वो ज़िक्र करें। इन आयात को बख़ूबी देख लिया करें ताकि उनको पीछे से नदामत (शर्मिंदगी) हासिल ना हो और उनका दाअवा इस शहादत बे-बुनियाद से बातिल (झूट) ना हो जाये।

چرا کاری کند عاقل کہ باز آر و پشیمانی ۔

अब मैं ये तूल व तवील मज़्मून ख़त्म करता हूँ जिस क़द्र कि ज़रूरी था इन्जील से मसीह के ख़ुदा और इब्ने-अल्लाह और कफ़्फ़ारा होने वग़ैरह का सबूत दिया गया ये दलाईल (सबूत) क़तई और सबूत कामिल है जो पेश हुआ। उम्मीद है, कि मोअतरिज़ (एतराज़ करने वाला) क़ाइल होगा और मुत्ला`श्यान की इस से तस्कीन (तसल्ली) होगी। हमको निहायत अफ़्सोस है कि अक्सर लोग बे-बुनियाद और वही एतराज़ करते हैं। जवाब दिया गया और उन की तर्दीद की तरफ़ तवज्जोह नहीं करते और वही नकारह बजाय जाते हैं उन के लिए ज़रूर है कि सच्चाई को निगाह रख के और हर तरह का तास्सुब (मज़्हब की बेजा हिमायत) दिल से दूर कर के ख़ुदा से उस के फ़ज़्ल व करम के ख़्वास्तगार (दरख़्वास्त गार) होएं और फिर इन्जील का।

 


[1] इतलाअ। जवाब ख़त मौलवी इमदाद साहब एडिटर राजपुर ताना अखबार हफ्ता आइन्दा में दर्ज होगा। बमतबअ अमरीकन मिशन लुदियाना बअह्तमाम पादरी वज़ीर साहब के छपा। की बशारत है। बाक़ी हफ्ता आइन्दा।

मसीह इब्ने-अल्लाह ख़ुदा, कफ़्फ़ारा, ख़ातिम-उन-नबिय्यीन है

ये चारों बातें ईसाईयों के अक़ीदे का एक जुज़्व हैं। और बड़ी मुश्किल हैं और इसलिए हिंदू व मुसलमान वग़ैरह इस में लग़्ज़िश (ख़ता, लर्ज़िश) खाते हैं। और इस पर मोअतरिज़ (एतराज़ करने वाले) होते हैं। चंद रोज़ हुए कि अख़्बार मंशूर मुहम्मदी में भी एक मज़्मून इसी बिना पर एक शख़्स मुसम्मा मलिक शाह ने तहरीर फ़रमाया है। जो कि मह्ज़ उन की ना-वाक़िफ़ी और नाफ़हमी का नतीजा है।

The Christ is son of God, God, Atonment and the seal of Prophets

मसीह इब्ने-अल्लाह ख़ुदा, कफ़्फ़ारा, ख़ातिम-उन-नबिय्यीन है

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan July 9-15, 1873

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 9, 15 जनवरी 1873 ई॰

ये चारों बातें ईसाईयों के अक़ीदे का एक जुज़्व हैं। और बड़ी मुश्किल हैं और इसलिए हिंदू व मुसलमान वग़ैरह इस में लग़्ज़िश (ख़ता, लर्ज़िश) खाते हैं। और इस पर मोअतरिज़ (एतराज़ करने वाले) होते हैं। चंद रोज़ हुए कि अख़्बार मंशूर मुहम्मदी में भी एक मज़्मून इसी बिना पर एक शख़्स मुसम्मा मलिक शाह ने तहरीर फ़रमाया है। जो कि मह्ज़ उन की ना-वाक़िफ़ी और नाफ़हमी का नतीजा है।

इस वास्ते मैं इन उमूर पर अपनी अक़्ल ख़ुदादाद के मुवाफ़िक़ तहरीर करता हूँ ताकि मोअतरिज़ (एतराज़ करने वाला) और नीज़ मुत्ला`श्यान (तलाश करने वाला) दीने ईस्वी को इस के समझने में मदद मिले।

मलिक शाह ने अपने मज़्मून का आग़ाज़ यूं किया है, कि इन्जील का हाल नई तवारीख़ की किताबों से मालूम हुआ है कि ये किताबें मुरवज्जाह (राइज) अहले-किताब बिल्कुल फ़ासिद (ख़राब, नाक़िस) और निकम्मी हैं। चुनान्चे मिस्टर कारलायल कहते हैं कि तर्जुमा अंग्रेज़ी में मतलब बिल्कुल फ़ासिद और बाज़ार रास्ती कासिद (नाक़िस, ग़ैर ख़ालिस, खोटा) है। और नूर को ज़ुल्मत में और सच्च को दरोग़ (झूट, बोहतअन) पर फ़ौक़ियत बख़्शते हैं। और उलमाए लिंकन ने बदरख़्वास्त ख़ुद गुज़ारिश बादशाह को किया था कि तर्जुमा अंग्रेज़ी बाइबल का बहुत ख़राब है, कि बाअज़ जगह बढ़ाया गया और बाअज़ जगह घटाया गया और बाअज़ जगह बदला गया। और मिस्टर बरातन ने दरख़्वास्त की थी कि तर्जुमा अंग्रेज़ी बाइबल का मौजूदा इंग्लिस्तान ग़लतीयों से पुर है। और मिस्टर हरजिन ने कहा था कि मैं कमी व बेशी और इख़्फ़ाए मतलब और तब्दील मुद्दआ की क्योंकर सनद दूँ। ग़र्ज़ कि इन्जील मुरव्वजा तमाम तग़य्युर व तबद्दुल (तब्दीलीयां, फ़र्क़) से पुर और तायर (उड़ने वाला) मतलब से बेपर है। फिर ऐसी इन्जील की रु से ईसा को ख़ुदा का बेटा कहना। और उलूहियत उस की साबित करनी और तमाम दुनिया का पैग़म्बर मबऊस (भेजा गया) कहना बातिल व आतिल (झूट, बेअस्ल) है। बल्कि उस में भी पाया सबूत को नहीं पहुंचता। ईसा ने तम्सिलन कहा होगा कि ऐसा अज़ीज़ो बर्गुज़ीदा दरगाह किबरिया (ख़ुदा का एक सिफ़ाती नाम, फ़ख़्र) हूँ कि जैसा बेटा बाप को महबूब और उस की तबअ (तबीयत, मिज़ाज) को मर्ग़ूब (पसंदीदा) होता है।

मलिक शाह साहब मालूम नहीं कि आपने कौनसी तवारीख़ से साबित किया है कि इन्जील फ़ासिद और निकम्मी है इस का हवाला तो दीजिए। ये सबूत और हवाले जो आपने दिए हैं बिल्कुल फ़ासिद और निकम्मे हैं। ऐ जामेअ इल्म-ए-माक़ूल (अक़्ल में लाया गया) बेहतर होता अगर आप आग़ाज़े मुबाहिसा से पहले और शुरू एतराज़ से पेश्तर इल्म-ए-मन्तिक़ (ठीक तौर से सोचने का इल्म) और मुनाज़रा (बह्स व मुबाहिसा) का मुतालआ कर लेते। ताकि आपको एतराज़ करने और सबूत देने और दलील के पेश करने का ढंग याद हो जाता। और इस क़िस्म की फ़ाश (ज़ाहिर, सरीह) ग़लती में गिरफ़्तार ना होते। छोड़ा कहीं था और जा पड़ा कहीं। आपका दाअवा है कि इन्जील फ़ासिद और निकम्मी है और दलील उस की आप ये देते हैं कि मिस्टर कार्लाइल या किसी और के कहने से ये साबित है कि उस का तर्जुमा अंग्रेज़ी बहुत ख़राब है।

वाह साहब वाह आप ही इन्साफ़ फ़रमाएं कि ये दलील इसी क़िस्म की नहीं जैसा कि हम कहें क़ुरआन बिल्कुल फ़ासिद और निकम्मा है। क्योंकि उस का तर्जुमा उर्दू बहुत ख़राब है। आपको मालूम नहीं कि ईसाईयों का एतिक़ाद (यक़ीन) और उनके अक़ीदे की बुनियाद कुछ तर्जुमा अंग्रेज़ी और उर्दू पर नहीं बल्कि असली किताब पर है। और ना कोई ईसाई तर्जुमे को इल्हामी किताब रूह-उल-क़ुद्दुस की लिखाई हुई मानता है हम जो कुछ दाअवा करते हैं वो अस्ल किताब की निस्बत है ना तर्जुमे की निस्बत और तर्जुमे की ख़राबी कुछ अस्ल किताब पर नुक़्स नहीं डालती। तर्जुमा ग़लत है तो ग़लत से इस की पाबंदी और शहादत (गवाही, सबूत) वहीं तक है जहां तक अस्ल किताब को मोअतबर (दुरुस्त) समझा जाएगा।

और इब्ने-अल्लाह वग़ैरह का लफ़्ज़ येसू की निस्बत तर्जुमे में ही मुस्तअमल (इस्तिमाल) नहीं हुआ बल्कि अस्ल किताब में आया है और हम अस्ल इन्जील की रु से ही उस को ख़ुदा का बेटा कहते हैं और इसी से उस की उलूहियत (ख़ुदाई) वग़ैरह साबित करते हैं।

बेशक मुहम्मदी येसू को इब्ने-अल्लाह कहने से नफ़रत करते हैं और इस पर एतराज़ लाते हैं लेकिन ये उनकी ग़लती है।

हम येसू को जिस्मानी तौर पर ख़ुदा का बेटा नहीं कहते जैसा कि उनका ख़याल है बल्कि हमारा ये अक़ीदा है कि ख़ुदा जोरु (बीवी) से और बेटे से पाक हैं और जो शख़्स जिस्मानी तौर पर उस को ख़ुदा का बेटा क़रार देता है वो गुनेहगार और काफिर जहन्नुमी है।

अब इन्साफ़ को मद्द-ए-नज़र और तास्सुब (बेजा हिमायत, तरफ़-दारी) को दूर फ़र्मा कर मुलाहिज़ा फ़रमाएं ताकि आप कोताह फ़हमी (कम इल्मी) से इस ग़लती और धोके में फंसे ना रहें, कि इब्ने-अल्लाह कुल बाइबल में चार अश्ख़ास की निस्बत मुस्तअमल (इस्तिमाल) हुआ है।

1. फ़रिश्तों की निस्बत देखो अय्यूब की किताब पहला बाब 6 आयत जहां लिखा है एक दिन ऐसा हुआ कि बनी अल-राए आए कि ख़ुदा के हुज़ूर हाज़िर हों। फिर 38 बाब 7 आयत किताब सदर जब सुबह के सितारे मिल के गाते थे। और सारे बनी अल्लाह ख़ुशी के मारे ललकारते थे। और इस लफ़्ज़ का इस्तिमाल फ़रिश्तों की निस्बत इस वास्ते हुआ है, कि वो आदमज़ाद की मानिंद ब-तवस्सुल (मिलाप, ज़रीया) माँ और बाप के पैदा नहीं हुए। बल्कि सारे एक ही दफ़ाअ ख़ुदा के हुक्म से मबऊस (भेजे गए) हुए।

2. आदम की निस्बत देखो लूक़ा की इन्जील तीसरा बाब 38 आयत जिसमें आदम को ख़ुदा का बेटा कहा गया है। और इस का सबब भी यही है कि वो बग़ैर माँ और बाप के सिर्फ ख़ुदा क़ादिर-ए-मुतलक़ के हुक्म से पैदा हुआ।

3. ख़ुदा-परस्त लोगों की निस्बत भी ये लफ़्ज़ बाइबल में आया है। जैसे इस्राईल और एफ्राईम बल्कि उन को पहलौठे बेटे कहा गया है। देखो (यर्मियाह नबी 31 बाब 9) आयत और मसीह पर ईमान लाने वालों के लिए ये लफ़्ज़ मुस्तअमल (इस्तिमाल) हुआ है। देखो इन्जील (यूहन्ना पहला बाब 12 आयत) लेकिन जिन्हों ने मसीह को क़ुबूल किया उस ने उन्हें इक़तिदार (इख़्तियार, मर्तबा) बख़्शा कि ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हों। यानी उन्हें जो उस के नाम पर ईमान लाते हैं। फिर यूहन्ना का पहला ख़त तीसरा बाब पहली आयत देखो। कैसी मुहब्बत बाप ने हमसे की कि हम ख़ुदा के फ़र्ज़न्द कहलाए। और रोमीयों का ख़त 8 बाब 14 आयत जितने ख़ुदा की रूह की हिदायत से चलते हैं वही ख़ुदा के बेटे हैं।

इन आयतों से साफ़ मालूम होता है कि ख़ुदा के बंदों को बाइबल में फ़र्ज़ंद-ए-ख़ुदा कहा गया है इस का सबब ये है :-

1. कि उन्होंने ख़ुदा की पाक रूह की तासीर से नया जिस्म हासिल किया है और

2. कि ख़ुदावन्द येसू मसीह पर ईमान लाने से ख़ुदा के ख़ानदान में शामिल हुए जैसा लिखा है, वैसे ना लहू से और ना जिस्म की ख़्वाहिश से ना मर्द की ख़्वाहिश से मगर ख़ुदा से पैदा हुए हैं और फ़रज़न्दों की सी तबीयत और हक़ हासिल किया।

3. ख़ुदावन्द येसू मसीह की निस्बत इब्ने-अल्लाह का लफ़्ज़ बाइबल में आया है। देखो लूक़ा की इन्जील पहला बाब 35 आयत, वो पाक लड़का ख़ुदा का बेटा कहलाएगा। और मर्क़ुस की इन्जील पहला बाब पहली आयत ख़ुदा के बेटे येसू मसीह की इन्जील का शुरू। यूहन्ना की इन्जील पहला बाब 34 आयत, सो मैंने देखा और गवाही दी कि यही ख़ुदा का बेटा है। यूहन्ना की इन्जील 6 बाब 19 आयत, हम तो ईमान लाए और जान गए कि तू ज़िंदा ख़ुदा का बेटा है। और इस तरह कम से कम 45 दफ़ाअ लफ़्ज़ इब्ने-अल्लाह का बाइबल में मसीह की निस्बत आया है लेकिन हम इसी पर इक्तिफ़ा करते हैं। अब ये सवाल है कि ख़ुदावन्द येसू मसीह को इब्ने-अल्लाह क्यों कहा गया है सो इस का जवाब हम इन्जील से ही तहरीर करते हैं।

वाज़ेह हो कि इन्जील मुक़द्दस में येसू मसीह को इब्ने-अल्लाह कहने के दो सबब बयान हुए हैं :-

1. लूक़ा की इन्जील पहला बाब 25 आयत, फ़रिश्ते ने जवाब में उसे यानी मर्यम को कहा कि रूह-उल-क़ुद्दुस तुझ पर उतरेगी और ख़ुदा तआला की क़ुद्रत का साया तुझ पर होगा इस सबब से वो पाक लड़का ख़ुदा का बेटा कहलाएगा।

इस आयत से साफ़ मालूम होता है, कि हमारा ख़ुदावन्द येसू मसीह इब्ने आदम इब्ने मर्यम ख़ुदा का बेटा कहलाया इस वास्ते कि उस की पैदाइश रूह-उल-क़ुद्दुस से और ख़ुदा की क़ुद्रत के साये से बग़ैर बाप के हुई।

यानी वो ख़ुदा की ख़ास क़ुद्रत से पैदा हुआ इस वास्ते ख़ुदा का बेटा कहलाया। दूसरी वजह येसू को इब्ने-अल्लाह कहने की यूहन्ना की इन्जील में मुन्दरज है देखो पहला बाब 14 आयत, और कलाम मुजस्सम हुआ और वो फ़ज़्ल और रास्ती से भरपूर हो के हमारे दर्मियान रहा और हमने उस का ऐसा जलाल देखा, जैसा बाप के इकलौते का जलाल। इस आयत का बयान यूं है कि कलिमतुल्लाह जो इब्तिदा में था। और ख़ुदा के साथ था और ख़ुदा था। यानी इब्ने-अल्लाह जो ज़ाते उलूहियत का दूसरा शख़्स है मुजस्सम हुआ यानी जिस्म इख़्तियार कर के येसू मसीह में रहा और उस का जलाल उस में ऐसा ज़ाहिर हुआ जैसा बाप के इकलौते का जलाल। इस सबब से ख़ुदा के बेटे कहलाए। ये ख़ास सबब इब्नियत (फ़र्ज़ंदी, बेटा होना) का सिर्फ ख़ुदावन्द येसू मसीह में मौजूद था। और वही अकेला इन्सान था। जिसमें उलूहियत (ख़ुदाई) मुजस्सम हुई यानी इब्ने-अल्लाह जो इब्तिदा में था ख़ुदा के साथ ख़ुदा था अकेला उस में रहा। इस वास्ते ख़ुदावन्द येसू मसीह ख़ुदा का इकलौता बेटा कहलाया है।

ना इसलिए जैसा कि मलक शाह साहब ने ये कुफ़्र का कलमा कहा कि ख़ुदा की तीन जोरुएँ थीं और मसीह तीसरी जोरू का इकलौता बेटा था।

ये सारी बातें इल्हामी हैं तक़रीर में नहीं आ सकतीं। इस की सच्चाई उन मोअजज़ात से साबित होती है। जो कि उस से ज़ाहिर हुए और नीज़ इस का समझना मुताल्लिक़ मसअला तस्लीस के ही इन्सान को पूरी समझ इस की जब ही आ सकती उस की सच्चाई इन मोअजज़ात से साबित होती है जो कि उस से ज़ाहिर हुए और नीज़ उस का समझना मुताल्लिक़ मसअला तस्लीस के है इन्सान को पूरी समझ उस की जब ही आ सकती है जब कि बयान तस्लीस को वो बख़ूबी समझ ले।

लेकिन इस जगह इस का बयान मुवाफ़िक़ इन्जील के हुआ कि किस वास्ते येसू को इब्ने-अल्लाह कहा गया है ताकि लोग इस को बख़ूबी समझ लें। झूठी तोहमत ईसाईयों पर ना रखें कि वो जिस्मानी तौर पर ख़ुदा का बेटा है। बाक़ी ये हफ़्ता आइंदा।

मसीह की उलूहियत का बयान

मज़्मून साबिक़ा में ख़ुदावन्द येसू मसीह के इब्ने-अल्लाह होने का ज़िक्र था। इस में उस की उलूहियत (ख़ुदाई) का बयान और उस की दलाईल (सबूत) मुन्दरज हैं। ख़ुदावन्द येसू मसीह ख़ुदा है इस कलाम के समझने के लिए याद रखना चाहिए, कि ख़ुदावन्द येसू मसीह एक शख़्स था जिसमें दो ज़ात मौजूद थीं।

1. इन्सानियत

2. उलूहियत

वो पूरा इन्सान था ऐन इस तरह जैसे और इन्सान हैं जिस्म और रूह से बना हुआ। इस वास्ते वो पैदा हुआ। लड़कपन से परवरिश पाई। और इन्सान के मुवाफ़िक़ खाता पीता रहा और काम व काज करता रहा। और इल्म में भी उसने तरक़्क़ी की और आख़िर मर गया सिर्फ एक बात में वो और इन्सानों से फ़र्क़ रखता था, कि वो बिल्कुल बेगुनाह था और बे-नुक़्स और कामिल इन्सान था और उस में उलूहियत मौजूद थी। ये उलूहियत इन्सानियत से मिलकर यक ज़ात और मुत्तहिद नहीं थी बल्कि अलेहदा (अलग) और हदी थी और मसीह को नजात का काम पूरा करने में हमेशा मदद देती रही। ये उलूहियत उस में इस तरह मौजूद ना थी, जैसा इस मुल्क के वेदाँती लोग ख़याल करते हैं कि हर एक जीव (ज़िंदगी, रूह) में ख़ुदा की ज़ात मौजूद है। जैसा ख़ुदा हर जा (जगह) मौजूद होने के सबब सब जगह और सब जीव में है मसीह में उलूहियत इस तौर पर थी कि उस की उलूहियत और इन्सानियत दोनों मिलकर वो एक शख़्स बना और उस के काम व काज में और ख़याल व गुफ़्तगु में उलूहियत की सिफ़ात ज़ाहिर हुईं जिसका सबूत दिया जाएगा।

मसीह ख़ुदावन्द ख़ुदा मुजस्सम था यानी ख़ुदा इन्सान के पैराया में आया। और इसलिए उस का एक नाम इन्जील में इम्मानुएल है। जिसके मअनी हैं हमारे साथ वो परमेश्वर का अवतार था। यानी इस में पूरा मनुष्य (मर्द, आदमी) का और परमेश्वर का अंस (तवानाई) मौजूद था।

मलिक शाह साहब फ़र्माते हैं कि इन्जील से ये बात साबित नहीं होती, कि ख़ुदा की ज़ात उस में मौजूद थी ये बात ग़लत है। इस का सबूत इन्जील में बेशुमार है कोई शख़्स जो इन्जील से वाक़िफ़ हो इस बात से इन्कार नहीं कर सकता। चुनान्चे इस अम्र का सबूत और दलाईल चार हिस्सों में बयान करता हूँ।

1. इन्जील में ख़ुदा का लफ़्ज़ मसीह की निस्बत इस्तिमाल हुआ है देखो यूहन्ना की इन्जील पहला बाब पहली आयत, “इब्तिदा में कलाम था और कलाम ख़ुदा के साथ था। और कलाम ख़ुदा था। (रोमीयों का ख़त 9 बाब 5 आयत) जिस्म की निस्बत मसीह भी बाप दादों से हुआ जो सब का ख़ुदा हमेशा मुबारक है। (1 तीमुथियुस का 3 आयत) और बिला-इत्तिफाक़ दीनदारी का भेद बड़ा है यानी ख़ुदा जिस्म में ज़ाहिर किया गया। और रूह से रास्त (दुरुस्त, मुवाफ़िक़) ठहराया गया ये कलाम येसू मसीह की निस्बत है। तितुस दूसरा बाब 13 आयत, और बुज़ुर्ग ख़ुदा और अपने बचाने वाले येसू मसीह के ज़हूर (ज़ाहिर होना) जलील (आला) की राह तके। इब्रानियों का ख़त पहला बाब 8 आयत बेटे की बाबत कहता है कि, ऐ ख़ुदा तेरा तख़्त अबद तक है रास्ती का असातीरी बादशाहत का असा है। (यूहन्ना का पहला ख़त 5 बाब 20 आयत) हम उस में जो हक़ ही रहते हैं यानी येसू मसीह में जो उस का बेटा है ख़ुदा-ए-बरहक़ और हमेशा की ज़िंदगी। और यसअयाह नबी की किताब 9 बाब 6 आयत, कि मसीह इस नाम से कहलाता है अजीब मुशीर और ख़ुदा-ए-क़ादिर।

1. अज़लियत दलील उस की उलूहियत (ख़ुदाई) की ये है कि ख़ुदा की सिफ़ात उस की निस्बत बयान हुईं। अव़्वल अज़लियत (यूहन्ना की इन्जील 1 बाब 2 आयत) कलाम इब्तिदा में ख़ुदा के साथ (8 बाब 8 आयत) येसू ने लोगों को कहा कि पेश्तर इस के कि इब्राहिम हो मैं हूँ (मैं ही हूँ) (17 बाब 5 आयत) और ऐ बाप तू मुझे अपने साथ उस जलाल से जो मैं तेरे साथ दुनिया की पैदाइश से पेश्तर रखता था जलाल दे। (मुकाशफ़ा पहला बाब 17, 18 आयत) ख़ुदावन्द यूं फ़रमाता है कि मैं अल्फ़ा और ओमेगा अव़्वल और आख़िर हूँ मैं मुवा (मरा) था और ज़िंदा हूँ मैं अबद तक ज़िंदा हूँ।

2. बेतब्दीली। इब्रानियों का ख़त पहला बाब 11-12 आयत वो नेस्त हो जाऐंगे पर तू बाक़ी है और वो सब पोशाक (लिबास, कपड़े) की मानिंद पुराने होंगे और वो जल जाऐंगे पर तू वही है और तेरे बरस जाते ना रहेंगे पिछ्ला कलाम मसीह की निस्बत,

13 बाब 8 आयत येसू मसीह कल और आज अबद तक यकसाँ है।

3. हर जा (जगह) मौजूद (हाजिर नाज़िर) होना (यूहन्ना की इन्जील 3 बाब 13 आयत) और कोई आस्मान पर नहीं गया सिवाए उस शख़्स के जो आस्मान से उतरा यानी इब्ने आदम जो आस्मान पर है। (मत्ती की इन्जील 28 बाब 20 आयत) मसीह ने अपने रसूलों को कहा देखो मैं ज़माने के तमाम होने तक हर रोज़ तुम्हारे साथ हूँ। (18 बाब 20 आयत) जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे हों वहां मैं उनके बीच हूँ।

4. सब कुछ जानना (यूहन्ना की इन्जील 2 बाब 23 से 25 आयत) लेकिन येसू ने अपने तईं लोगों पर छोड़ा इसलिए कि वो सबको जानता था और मुहताज (हाजतमंद, ज़रूरतमंद) ना था कि कोई इन्सान के हक़ में गवाही दे क्योंकि वो आप जो कुछ इंसान में है जानता है। (मुकाशफ़ा 2 बाब 23 आयत) सारी कलीसियाओं को मालूम होगा कि मैं वही हूँ जो दिलों और गुर्दों का जांचने वाला है। और मैं तुम हर एक को तुम्हारे कामों के मुवाफ़िक़ बदला दूंगाई

5. क़ादिर-ए-मुतलक़ होना (मुकाशफ़ा पहला बाब 8 आयत) ख़ुदावन्द यूं फ़रमाता है कि मैं क़ादिर-ए-मुतलक़ हूँ। (इब्रानियों का ख़त 1 बाब 12 आयत) और वो यानी येसू मसीह ख़ुदा के जलाल की रौनक और उस की माहीयत (अस्ल, हक़ीक़त) का नक़्श हो के सब कुछ अपनी ही क़ुद्रत के कलाम से संभालता है।

(3) (तीसरी) क़िस्म की दलीलों से ये ज़ाहिर है कि उलूहियत (शान-ए-ख़ुदावंदी) के काम मसीह में और मसीह के वसीले से ज़ाहिर हुए।

1. पैदाइश (यूहन्ना की इन्जील 1 बाब 2 आयत) सब चीज़ें उस से मौजूद हुईं। और कोई चीज़ मौजूद ना थी जो बग़ैर उस के हुई (10 आयत और 17 आयत) क्योंकि उस से सारी चीज़ें जो आस्मान और ज़मीन पर हैं देखी और अनदेखी। क्या तख़्त क्या हुकूमतें किया रियासतें क्या मुख्तारीयाँ पैदा की गईं। और सारी चीज़ें उस से और उस के लिए पैदा हुईं। और वो सबसे आगे है और उस से सारी चीज़ें बहाल रहती हैं।

2. परवर्दिगारी का काम मसीह की निस्बत बयान हुआ। (इब्रानियों का ख़त पहला बाब 12 आयत) वो यानी मसीह उस के जलाल की रौनक और उस की माहीयत (अस्ल, जोहर) का नक़्श हो के सब कुछ अपनी ही क़ुद्रत से संभालता है। (क़ुलिस्सियों का ख़त पहला बाब 17 आयत) और वो यानी मसीह सबसे आगे है और उस से सारी चीज़ें बहाल हैं। (मत्ती की इन्जील 28 बाब 18 आयत) और येसू ने उन से कहा कि आस्मान और ज़मीन का सारा इख़्तियार मुझे दिया गया।

3. मौत व ज़िंदगी पर इख़्तियार। (यूहन्ना की इन्जील 5 बाब 2 आयत) जिस तरह बाप मुर्दों को उठाता है और जिलाता है बेटा भी जिन्हें चाहता है जलाता है।

4. इख़्तियार क़ियामत। (दूसरा कुरिन्थियों का ख़त 5 बाब 10 आयत) हम सबको ज़रूर है कि मसीह की मस्नद (तख़्त) अदालत के आगे हाज़िर हों ताकि हर एक जो कुछ हमने किया है क्या भला या बुरा मुवाफ़िक़ उस के पाएं। (मत्ती की इंजील 25:31-32 आयत) जब इब्ने आदम अपने जलाल से आएगा। और सब पाक फ़रिश्ते उस के साथ तब वो अपने जलाल के तख़्त पर बैठेगा। और सब कौमें उस के आगे हाज़िर की जाएँगी। और जिस तरह गडरिया भेड़ों को बकरीयों से जुदा करता है वो एक को दूसरे से जुदा करेगा वग़ैरह।

4. चोथी दलील (गवाही, सबूत) मसीह की उलूहियत की वो है जिससे ये ज़ाहिर है, कि ख़ुदा की बंदगी और इबादत मसीह को देनी वाजिब है और वही की गई है।

(यूहन्ना की इन्जील 8 बाब 23 आयत) सब बेटे की इज़्ज़त करें जिस तरह से बाप की इज़्ज़त करते हैं जो बेटे की इज़्ज़त नहीं करता बाप की जिसे उस ने भेजा है इज़्ज़त नहीं करता। (फिलिप्पियों का ख़त 2 बाब 9 आयत) इस वास्ते ख़ुदा ही ने उसे बहुत सर्फ़राज़ (सर-बुलंद, मुअज़्ज़िज़) किया और उस को ऐसा नाम जो सब नामों से बुज़ुर्ग है बख़्शा ताकि येसू का नाम ले, आस्मानी क्या, ज़मीनी क्या। वो जो ज़मीन के तले हैं घुटने टैकें। (इब्रानियों का ख़त पहला बाब 6 आयत) और जब पहलौठे को यानी येसू मसीह को दुनिया में फिर लाया तो कहा कि ख़ुदा के सब फ़रिश्ते उस को सज्दा करें।

(मत्ती की इन्जील 28 बाब 19 आयत) तुम सब क़ौमों को शागिर्द करो और उन्हें बाप और बेटे और रूहुल-क़ुदुस के नाम से बपतिस्मा दो। और इस हुक्म से मालूम होता है कि बाप बेटा रूह-उल-क़ुद्दुस बराबर हैं। (आमाल की किताब 7 बाब 59 और 60 आयत) स्तिफ़नुस ये कह के दुआ मांगता था कि ऐ ख़ुदावन्द येसू (मेरी रूह को) क़ुबूल कर ऐ ख़ुदावन्द ये गुनाह उनके हिसाब में मत रख। (दूसरा कुरिन्थियों का 12 बाब 14 आयत) ख़ुदावन्द येसू मसीह का फ़ज़्ल और ख़ुदा की मुहब्बत और रूह-उल-क़ुद्दुस की रिफ़ाक़त तुम सभों के साथ हो। इस जगह येसू और रूह-उल-क़ुद्दुस और ख़ुदा से बराबर दुआ मांगी गई।

इन चार किस्मों की दलीलों से साफ़ मालूम होता है कि ख़ुदावन्द येसू मसीह को इन्जील में ख़ुदा कहा गया है। और ख़ुदा की सिफ़तें उस में मौजूद थीं और उलूहियत का काम व काज उस से ज़ाहिर है। कि ख़ुदा की इबादत उस को दी गई अलबत्ता पहली क़िस्म की दलील क़तई नहीं। क्योंकि ख़ुदा का लफ़्ज़ सिवाए येसू के और नबियों और नीज़ हुक्काम और बाअज़ दीगर इन्सानों की निस्बत भी बाइबल में मुस्तअमल हुआ है। देखो (यूहन्ना की इन्जील 10 बाब 35 आयत) जब कि उस ने उन्हें जिनके पास ख़ुदा का कलाम आया ख़ुदा कहा और मुम्किन नहीं कि किताब बातिल (झूट) हो। (ख़ुरूज की किताब 7 बाब 1 आयत) ख़ुदा ने मूसा से कहा कि देख मैंने तुझे फ़िरऔन का सा बनाया। (82 ज़बूर 6 आयत) मैंने तो कहा कि तुम इलाही हो और तुम सब हक़ तआला के फ़र्ज़न्द हो। ये कलाम शैतान की निस्बत भी मुस्तअमल हुआ है। (दूसरा कुरिन्थियों का ख़त 4 बाब 4 आयत) इस जहां के ख़ुदा ने उन की अक़्लों को जो बेईमान हैं तारीक कर दिया। अगर सिर्फ यही दलील मसीह की उलूहियत की बाइबल में होती, तो हम कभी उस को ख़ुदा ना कहते बल्कि हम समझते कि जैसा अगले ज़माने में उन लोगों को ख़ुदा कहा गया जिनके पास ख़ुदा का कलाम आया इसी तरह ख़ुदावन्द येसू मसीह को रसूल-ए-ख़ुदा होने के सबब ख़ुदा कहा गया। लेकिन मसीह की उलूहियत सिर्फ इसी एक के ऊपर मुन्हसिर (इन्हिसार) नहीं। और ना उस की उलूहियत की यही ख़ास दलील है बल्कि ये एक चौथा हिस्सा उस की उलूहियत की दलीलों का है। और उनके साथ मिलकर क़तई हो जाता है हमने बयान किया कि बाइबल में ख़ुदावन्द येसू मसीह को ना सिर्फ ख़ुदा कहा गया है। बल्कि ख़ुदा की सिफ़ात उस में ज़ाहिर हुईं। ये किसी इन्सान में किसी पैग़म्बर में कभी ज़ाहिर नहीं हुईं। और ये भी बयान हुआ कि ख़ुदा के काम यानी वो काम सिर्फ ख़ुदा कर सकता है, जैसा पैदाइश और परवरदिगारी मौत व ज़िंदगी पर इख़्तियार और क़ियामत पर इक़तिदार उसे हासिल था। और सबसे पीछे ये बयान हुआ कि वो बंदगी और इबादत जो सिर्फ ख़ुदा को दी गई और जो उसी को देनी वाजिब थी मसीह को दी गई। और उस की निस्बत वाजिब बयान हुई अब इस हाल में हम क्या कह सकते हैं सिवाए इस के कि बाइबल में जगह जगह उस की उलूहियत का बयान है। और इसलिए हर एक शख़्स पर जो इन्जील को इल्हामी किताब जानता है। उस की उलूहियत का इक़रार करना वाजिब है।

इसलिए मुनासिब है कि मलिक शाह साहब या और कोई हमारा मुहम्मदी दोस्त जो इन्जील के इल्हामी होने का क़ाइल है। पेश्तर इस के कि मसीह की उलूहियत से इन्कार करे इन आयतों को मुलाहिज़ा फ़रमाए या इस के ऊपर सबूत दे कि ये आयतें जो पेश हुईं अस्ल इन्जील में मुन्दरज नहीं हैं। अगर ऐसा ना कर सके तो उनका इल्ज़ाम झूटा और बातिल है और उनको ये कहना मुनासिब नहीं कि मसीह की उलूहियत इन्जील से साबित नहीं होती।

अब मैं मसीह की उलूहियत की गवाही पेश करता हूँ, जो कि उन लोगों पर भी असर करती है जो कि इन्जील के इल्हामी होने के क़ाइल नहीं और सिर्फ इस को तवारीख़ी किताबों के मुवाफ़िक़ समझते हैं। वो ये है कि मसीह ख़ुदावन्द ने उलूहियत का दाअवा किया और अपने कलाम के सबूत में मोअजिज़ा दिखाया। उलूहियत का बयान पेश्तर मुतफ़सिल हो चुका अब सिर्फ बतौर यादाशत के एक दो आयतें बयान की जाती हैं। (मर्क़ुस की इन्जील 2 बाब 5 आयत) येसू ने कहा ऐ बेटे तेरे गुनाह माफ़ हुए ये बात सुनकर लोग कुड़कुड़ाए (ज़ोर से बड़बड़ाए) और बोले कि ख़ुदा के सिवा कौन गुनाह माफ़ कर सकता है?

मसीह ने कहा (10 आयत से 12) तक ताकि तुम जानो कि इब्ने आदम ज़मीन पर गुनाहों के माफ़ करने का इख़्तियार रखता है। मैं तुझे कहता हूँ ऐ मफ़लूज (फ़ालिज का मरीज़) कि उठ और खटोला उठा के अपने घर को जा और फ़ील-फ़ौर (फ़ौरन) वो उठा और अपना खटोला उठा के सब के सामने चला गया सब देखकर दंग (हैरान) हो गए। (मत्ती की इन्जील 18 बाब 20 आयत) क्योंकि जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे हों वहां मैं उनके बीच में हूँ। (यूहन्ना की इन्जील 18 बाब 5, 8 आयत) पेश्तर इस के कि इब्राहिम हो मैं हूँ। (मैं वही हूँ) (17 बाब 5 आयत) ऐ बाप अब तू मुझे अपने साथ उस जलाल से जो मैं दुनिया की पैदाइश से पेश्तर रखता था बुजु़र्गी दे। (तीसरा बाब 13 आयत) कोई शख़्स आस्मान पर नहीं गया सिवाए उस के जो आस्मान पर से उतरा यानी इब्ने आदम जो आस्मान पर है। (यूहन्ना की इन्जील 10 बाब 25 आयत) मैंने तो तुम्हें कहा और तुमने यक़ीन ना किया। जो काम यानी मोअजिज़ा मैं अपने बाप के नाम से करता हूँ ये मेरे गवाह हैं। (5 बाब 26 आयत) ये काम जो मैं करता हूँ ये मेरे गवाह हैं कि बाप ने मुझे भेजा है। (यूहन्ना की इन्जील 10 बाब 20 आयत) मैं और बाप एक हैं ये सुनके यहूदीयों ने कहा कि तो कुफ्र (ख़ुदा को ना मानना, बेदीनी) कहता है। और इन्सान हो के अपने तईं ख़ुदा बनाता है। (33 आयत) इन आयतों से साफ़ मालूम होता है, कि मसीह ने उलूहियत और उस की सिफ़ात का दाअवा किया। और इस के सबूत में मोअजिज़ा दिखाया अब हम जानते हैं, कि ख़ुदा किसी झूटे या फ़रेबी आदमी को मोअजिज़ा करने की ताक़त नहीं देता। इसलिए ज़रूर ख़ुदावन्द येसू मसीह के मोअजिज़े साफ़ इस अम्र को ज़ाहिर करते हैं, कि उस में उलूहियत मौजूद थी और वो उलूहियत (ख़ुदाई, शान-ए-ख़ुदावंदी) की सिफ़ात रखता था। अगर कोई कहे कि वो मोअजिज़ा शैतान की मदद से करता था तो ये निहायत उनकी समझ की ग़लती है क्योंकि शैतान कभी किसी को अपनी बादशाहत दूर करने के लिए मदद नहीं देता। और मसीह के मोअजिज़े इस क़िस्म के थे कि शैतान की बादशाहत को नेस्त व नाबूद (फ़ना कर देना) करते थे। इसलिए हर सूरत से ख़्वाह इन्जील को इल्हामी मानो या उस को तवारीख़ी किताब समझो। साबित है कि ख़ुदावन्द येसू मसीह में ज़ात व सिफ़ात ख़ुदा की मौजूद थीं अब अगर ज़िंदगी बाक़ी है तो आइंदा अख़्बार में उन आयतों का मुलाहिज़ा किया जाएगा जो बाइबल में ज़ाहिरन मसीह की उलूहियत के ख़िलाफ़ मालूम होती हैं।

मसीह गुनेहगारों का कफ़्फ़ारा

मसीह के कफ़्फ़ारा होने का ज़िक्र इन्जील में बहुत जगह है। चुनान्चे मिन-जुम्ला इस की चंद आयतें बयान की जाती हैं इफ़िसियों का ख़त 5 बाब 2, आयत जिसमें पौलूस रसूल यूं लिखता है तुम मुहब्बत से चलो जैसा मसीह ने हमसे मुहब्बत की। और ख़ुशबू के लिए हमारे एवज़ में अपने तईं ख़ुदा के आगे नज़र और क़ुर्बान किया।

The Christ Atonement of Sinners

मसीह गुनेहगारों का कफ़्फ़ारा

By

Kidarnath
केदारनाथद

Published in Nur-i-Afshan Nov 6-12, 1873

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 6 ता 12 नवम्बर 1873 ई॰

पर्चा हाय गुज़श्ता अख़्बार में मसीह की उलूहियत और इंसानियत का बयान हुआ। अब उस के कफ़्फ़ारे होने का सबूत पेश किया जाता है।

1. नबियों के कलाम में मसीह जाबजा कफ़्फ़ारे के तौर पर बयान हुआ है। ख़ासकर यसअयाह नबी की किताब में देखो 53 बाब और इस की 4, 5, 6, 8, आयत इस में यूं बयान है, “यक़ीनन उस ने यानी मसीह ने हमारी मशक्क़तें उठालीं। और हमारे ग़मों का बोझ अपने ऊपर चढ़ाया। पर हमने उस का ये हाल समझा, कि वो ख़ुदा का मारा कूटा और सताया हुआ है। पर वो हमारे गुनाहों के सबब घायल (ज़ख़्मी) किया गया। और हमारी बदकारियों के सबब कुचला गया। हमारी ही सलामती के लिए उस पर सियासत हुई। ताकि उस के मार खाने से हम चंगे हों। हम सब भेड़ों की मानिंद भटक गए और हम में से हर एक अपनी राह से फिरा और ख़ुदावन्द ने हम सभों की बदकारी उस पर लादी एज़ाओं के और उस पर हुक्म कर के वो उसे ले गए। पर कौन उस के ज़माने का बयान करेगा कि वो जिन्दों की ज़मीन से काट डाला गया। मेरे गिरोह के गुनाहों के सबब उस को मार पड़ी। उस की क़ब्र भी शरीरों के दर्मियान ठहराई गई थी। पर अपने मरने के बाद दौलतमंदों के साथ वो हुआ क्योंकि उस ने किसी तरह का ज़ुल्म ना किया। और उस के मुँह में किसी तरह का छल फ़रेब, धोका ना था। लेकिन ख़ुदावन्द को पसंद आया कि उसे कुचले उस ने उसे ग़मगीं किया। जब उस की जान गुनाह के लिए गुज़रानी जाये तो वो अपनी नस्ल को देखेगा और उस की उम्र दराज़ होगी। और ख़ुदा की मर्ज़ी उस के हाथ के वसीले बर आएगी अपनी जान ही का दुख उठा के वो उसे देखेगा और सैर होगा। अपनी ही पहचान से मेरा सादिक़ (सच्चा) बंदा बहुतों को रास्तबाज़ ठहराएगा। क्योंकि वो उनकी बदकारीयाँ अपने ऊपर उठा लेगा।

और दानीएल नबी 6 बाब में पैदाइश मसीह से चार सौ नव्वे (490) बरस पेश्तर यूं कहता है कि, बदकारी की बाबत कफ़्फ़ारा (गुनाह धो देने वाला) किया जाएगा और मसीह क़त्ल किया जाएगा पर ना अपने लिए।

मसीह के कफ़्फ़ारा होने का ज़िक्र इन्जील में बहुत जगह है। चुनान्चे मिन-जुम्ला इस की चंद आयतें बयान की जाती हैं इफ़िसियों का ख़त 5 बाब 2, आयत जिसमें पौलूस रसूल यूं लिखता है तुम मुहब्बत से चलो जैसा मसीह ने हमसे मुहब्बत की। और ख़ुशबू के लिए हमारे एवज़ में अपने तईं ख़ुदा के आगे नज़र और क़ुर्बान किया। पहला कुरिन्थियों का ख़त 5 बाब 3 आयत, मसीह हमारे गुनाहों के वास्ते मुआ। 1 पतरस दूसरा बाब 24 आयत, वो यानी मसीह आप हमारे गुनाहों को अपने बदन पर उठा के सलीब पर चढ़ गया। ताकि हम गुनाहों के हक़ में मर के रास्तबाज़ी में चलें। उन कोड़ों के सबब जो उस पर पड़े तुम चंगे हुए। पहला ख़त यूहन्ना 2 बाब 2 आयत। और वो यानी मसीह हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा है पर फ़क़त हमारे गुनाहों का नहीं बल्कि तमाम दुनिया के गुनाहों का भी। 2 कुरिन्थियों का ख़त 5 बाब 21, आयत उस ने यानी ख़ुदा ने उस को जो गुनाह से नावाक़िफ़ था। हमारे बदले गुनाह ठहराया ताकि हम उस में शामिल हो के इलाही रास्तबाज़ी ठहरें। रोमीयों का ख़त 5 बाब 10, आयत ख़ुदा ने अपने बेटे की मौत के सबब हमसे मेल किया। मुकाशफ़ात 5 बाब 9 आयत, तूने अपने लहू से हमको हर एक फ़िर्क़ा और अहले ज़बान और उम्मत और क़ौम में से मोल लिया।

और ख़ुदावन्द येसू मसीह ख़ुद फ़रमाता है, कि मैं अपनी जान अपनी भेड़ों के लिए देता हूँ बाप मुझे इसलिए प्यार करता है, कि मैं अपनी जान देता हूँ। ताकि मैं उसे फिर लूँ कोई शख़्स उसे मुझसे नहीं लेता पर मैं उसे आप देता हूँ। मेरा इख़्तियार है कि उसे दूँ। और मेरा इख़्तियार है कि उसे फिर लूं ये हुक्म मैंने बाप से पाया है। इस तरह बाइबल में जाबजा ज़िक्र है कि मसीह गुनाह का कफ़्फ़ारा है।

मैं ताज्जुब करता हूँ कि बावस्फ़ (सलीक़ा) इस के मलक शाह साहब किस तरह से फ़र्माते हैं कि बाइबल से मसीह का कफ़्फ़ारा होना साबित नहीं होता।

हर एक शख़्स इन आयतों से मालूम कर सकता है कि बाइबल से मसीह का कफ़्फ़ारा होना साबित है और नीज़ इन आयतों की किसी और तरह तफ़्सीर नहीं हो सकती जिससे इस के ख़िलाफ़ ख़याल दौड़ सके। इसलिए मुनासिब है कि मलिक शाह साहब इन पर ग़ौर फ़र्मा कर ये इल्ज़ाम ईसाईयों पर से उठालें, कि बाइबल से मसीह का कफ़्फ़ारा होना साबित नहीं।

मलिक शाह साहब के वास्ते तो इतने दलाईल (सबूत) काफ़ी हैं। लेकिन इसलिए कि और लोगों को कफ़्फ़ारा के माने और ख़ासियत मालूम नहीं, मैं इस की निस्बत बयान करता हूँ। और चंद और दलाईल देता हूँ मसीह के कफ़्फ़ारा के माने और ख़ासियत समझने के लिए पहले इन बातों पर ग़ौर करना वाजिब है जिनका ज़िक्र ज़ेल में किया जाता है।

1. सारे इंसान गुनेहगार हैं कोई रास्तबाज़ (सच्चा, ईमानदार) नहीं एक भी नहीं सब गुमराह (बेदीन बिद्अती, मुतकब्बिर) हैं कोई नेकोकार नहीं एक भी नहीं। इस कलाम में महल इंसान शामिल हैं अदना फ़क़ीर अमीर पीर पैग़म्बर नबी मुर्सल ग़र्ज़ कि ये कलाम हर फ़र्दे बशर पर मुहीत (घेरा) है।

और याद रहे कि गुनाह दो क़िस्म के हैं एक अमली दूसरा ख़्याली अमली गुनाह तो वो हैं जो ज़ाहिरी अमल और काम व काज में होते हैं। और जिसको हर एक इंसान देख सकता है। और ख़्याली वो हैं जो सिर्फ ख़याल से ताल्लुक़ रखते हैं। और सिर्फ इंसान के दिल में वसवसा (अंदेशा, डर, शक) अंदाज़ होते हैं जैसा कि लालच, ग़ुस्सा, तमअ (हिर्स, ख़्वाहिश) ख़यालात, फ़ासिद (नाक़िस, बर्बाद, तबाह) और दीगर उमूरात मज़मूम (बुरा, ख़राब) मालूम रहे कि ख़ुदा दिल और गुर्दों का जांचने वाला है। और उस के सामने ख़्याली गुनाह भी वैसा ही है जैसा कि अमली। और ये दोनों उस के हुज़ूर हम पल्ला (बराबर हैं। अगर अनुमानों को इन्सान मद्द-ए-नज़र रखे तो किसी को इस से या राय इन्कार नहीं। कि कोई शख़्स गुनाह से बुरी है क्योंकि अगर ज़ाहिरी गुनाह से अहितराज़ (परहेज़। किनारा-कशी भी किया जाये। ताहम ऐसा कोई फ़र्दे बशर नहीं जो ख़्याली गुनाह से बच जाये। पस इन्जील का वो कलाम कि सारे इंसान गुनेहगार हैं ऐन सच्च है।

2. ख़ुदा हमारा ख़ालिक़ मालिक और परवरदिगार है। उसने हमें बनाया और पैदा किया और जो कुछ हमारे पास है वो उस का है। इस वास्ते हम पर फ़र्ज़ है कि हम उस की बंदगी और फ़रमांबर्दारी करें। और उस की ताबेदारी बजा लाएं। और उस से दिल व जान से मुहब्बत रखें। और उस की मर्ज़ी पूरा करने के लिए कोशिश करें। अगर हम ये फ़र्ज़ अदा ना करें तो हम उस के क़सूरवार और गुनेहगार और फ़र्ज़ के क़र्ज़दार ठहरते हैं। और सज़ा के लायक़ होते हैं इस वास्ते हर एक गुनेहगार उस के हुज़ूर फ़र्ज़ और फ़रमांबर्दारी का देनदार है और सज़ा का सज़ावार है।

3. ये फ़र्ज़ का दीन इंसान तौबा के वसीले से अदा नहीं कर सकता। क्योंकि तौबा हमारी तरफ़ से ख़ुदा की तरफ़ वाजिब है। अगर वाजिब को अदा करें तो पिछ्ला देन साक़ित (निकम्मा, गिरा हुआ, मुस्तर्द) नहीं होता तो ये पिछली चीज़ों पर असर नहीं कर सकती। ये सिर्फ़ आइन्दा से ताल्लुक़ रखती है मसलन एक कर्ज़दार क़र्ज़ उठाने से तौबा करे। और आइंदा बल्कि क़ायम रहता है। हाँ आइंदा[1] को वो इस बोझ से सबकदोश (जिस पर कोई बोझ हो) रहता है। ऐसा ही अगर कोई शख़्स बेवक़ूफ़ी से अपने किसी अज़्व (बदन का टुकड़ा, जिस्म) को काट डाले और आइंदा को ऐसे काम करने से तौबा करे। और एहतियात अमल में लाए। तो इस तोहम करने से वो उस का उज़ू दुरुस्त नहीं हो जाएगा। गो आइंदा को उस के दूसरे उज़ू सलामत और महफ़ूज़ रहें। इसी तरह इंसान गुनेहगार जब अपने गुनाहों से पशेमान (शर्मिंदा) हो के तौबा करता है। और गुनाहों से परहेज़ और कफ़्फ़ारा करके ख़ुदा की तरफ़ मुतवज्जोह होता है, तो इस से उस के गुनाह साबिक़ा ज़ाइल (दूर, कम) नहीं हो जाते। हाँ उस की तौबा का असर उस की आइंदा ज़िंदगी पर ज़रूर पहुंचता है उस के साबिक़ा गुनाहों की माफ़ी के लिए कोई और तरीक़ या कोई और वसीला ज़रूर है लेकिन तौबा ईलाज नाकारा है।

4. एक और सबब है जिससे साबित होता है कि गुनाह तौबा से माफ़ नहीं हो सकता। वो ये है कि ख़ुदा आदिल (इन्साफ़) करने वाला और मुंसिफ़ है। और उस की अदालत उस के हर एक काम में ज़ाहिर होती है अदालत उस की ज़ात का एक हिस्सा है और इस के बग़ैर वो कुछ नहीं कर सकता। और हर एक अम्र (काम, फ़ेअल) में उस को मल्हूज़ (ख़याल, लिहाज़ रखना) रखता है। अदालत इस अम्र की मुक़तज़ी (ख़याल, तक़ाज़ा करने वाला) है, कि हर एक गुनेहगार गुनाह के एवज़ में सज़ा पाए। और हर एक ख़ता (ग़लती) और ग़फ़लत (लापरवाही) के एवज़ में इस पर सज़ा का फ़त्वा सादिर (नाफ़िज़) किया जाये। और वो किसी शख़्स को बरी ज़िम्मा नहीं करते, जब तक कि वो फ़रमांबर्दारी और इताअत (जो उस पर वाजिब है) ख़ुदा की तरफ़ अदा ना हुई हो अलबत्ता ये ज़रूर है कि ख़ुदा बड़ा रहीम है और रहीमी की सिफ़त उस में मौजूद है। लेकिन ये रहम उस का अदल (इन्साफ़, बराबरी) के साथ मिला हुआ है। और जब तक उस की अदालत का हक़ पूरा ना हो तब तक वो रहम गुनेहगारों की बख़्शिश और नजात में ज़ाहिर नहीं होता। पस फिर क्योंकर तौबा गुनाहों की माफ़ी का वसीला हो सकती है।

5. बसूरत हाय मस्बूक़-उल-ज़िक्र यानी जब कि ख़ुदा की बंदगी और फ़रमांबर्दारी और उस के अहकाम और शरीअत की इताअत हम पर[2] फ़र्ज़ और वाजिब (लाज़िमी) है। और हम बाखल्क़त गुनेहगार और मुसीबत परवरदह हैं। और किसी सूरत से हम उस के फ़र्ज़ को अदा नहीं कर सकते। और तौबा हमारी नजात का वसीला नहीं हो सकती और ना हमारे पिछले गुनाहों को मादूम (मिटाया गया, फ़ना) कर सकती है। और उस की अदालत हमारी निस्बत सज़ा का फ़त्वा सादिर (नाफ़िज़) करती है। और हमारे लिए कोई सूरत बरतीत की नहीं। और हम निहायत नाउम्मीदी और यास की हालत में हैं। तो ज़रूर था कि कोई और तरीक़ा हमारी नजात का होता जिससे ख़ुदा का रहम भी ज़ाहिर होता और उस का अदल (इन्साफ़) भी क़ायम और बरक़रार रहता।

पस ख़ुदा ने ऐसे बेहद रहम को काम में लाकर अपनी लातादाद हिक्मत से हमारे लिए एक तरीक़ा नजात का निकाला। जिससे उस की अदालत में भी कुछ फ़र्क़ नहीं आया वो ये है, कि ख़ुदावन्द येसू मसीह को जो इब्ने-अल्लाह था इस दुनिया में भेजा और इस ने पैराये इंसानियत में आकर 33 बरस तक दुनिया में ज़िंदगानी बसर की और आख़िर को उस ने गुनेहगारों का ज़ामिन बन के और उन के एवज़ में आप सज़ा उठा के ख़ुदा की शरीअत को पूरा किया और सारा हक़ उस की अदालत का पहुंचाया। यानी वो पूरी और कामिल फ़रमांबर्दारी जो इंसान पर ख़ुदा की तरफ़ वाजिब (लाज़िमी) थी। येसू मसीह ने इंसान का ज़ामिन (ज़मानत देने वाला) हो कर पूरी की। और आख़िरश (अंजाम-कार) उस ने अपनी जान इंसान के एवज़ में सलीब पर दी। और आप बेगुनाह हो कर उस ने गुनेहगारों की सज़ा अपने सर उठाई।

और यही अम्र यानी येसू का इंसान के एवज़ में ख़ुदा की फ़रमांबर्दारी उठाना और गुनाह की सज़ा का अपने ऊपर बर्दाश्त करना कफ़्फ़ारा कहलाता है जो शख़्स इस कफ़्फ़ारे पर ईमान लाता है वो गुनाह की सज़ा से बच जाता है। क्योंकि वो सज़ा और सियासत जो उस पर लाज़िम थी उस ने पूरी की।

अब अदालत भी बरक़रार रही। और उस का रहम भी बाज़हूर (ज़ाहिर होना) आ गया। और इंसान को नजात की उम्मीद हो गई। यही एक तरीक़ा नजात का है जिसका ज़िक्र ऊपर हुआ और जो इन्जील से ज़ाहिर है।

अब वाज़ेह राय ज़रीन नाज़रीन हो कि इस तरीक़ा नजात यानी कफ़्फ़ारे पर दो एतराज़ लाज़िम आते हैं :-

(अव़्वल ये) कि एक आदमी की मौत से किस तरह बहुतों की माफ़ी हो सकती है। ख़ुदावन्द येसू मसीह अकेला गुनेहगारों के एवज़ में सलीबी मौत उठा कर कफ़्फ़ारा हुआ। इस एक कफ़्फ़ारे से सारी दुनिया की नजात किस तरह हो सकती है एक आदमी के एवज़ में एक ही बच सकता है ना कि कुल दुनिया।

इस का जवाब ये है, कि ख़ुदावन्द येसू मसीह आम इंसानों के मुवाफ़िक़ इंसान नहीं था। बल्कि उस में उलूहियत थी यानी ज़ात व सिफ़ात ख़ुदा के मौजूद थी। और इस उलूहियत के सबब जो कुछ काम व काज उस ने जामा इंसानी में किया। उस में उलूहियत का असर पहुंचा और उस के दर्जा और सिफ़त ने इस में तास्सुर किया। इसलिए जब मसीह ने इंसान के एवज़ में फ़रमांबर्दारी और मौत उठाई। तब उस के अहकाम में भी दर्जा उलूहियत का पहुंचा। इसलिए मसीह की रास्तबाज़ी बेहद रास्तबाज़ी थी। उस की मौत का असर भी बेहद है वो पूरा और कामिल और बे नुक़्स और सबसे बढ़कर इन्सान था या ये कहें कि वो एक बड़ी क़द्र व मंजिलत का इंसान था। और उस में उलूहियत भी मौजूद थी। इसलिए उस की जान गिरामी सारी दुनिया का कफ़्फ़ारा हो सकती है। और उस की एक जान तमाम जहान के एवज़ काफ़ी ख़याल की जा सकती है बल्कि मेरी राय तो ये है कि उस की क़ीमत इस से भी बढ़कर है क्योंकि उस का मर्तबा बेहद है।

(दूसरा एतराज़) इस बयान से बेइंसाफ़ी ज़ाहिर होती है कि गुनाह और इंसानों ने किया और सज़ा मसीह ने उठाई इस से ख़ुदा का इन्साफ़ क़ायम नहीं रहता कि करे कोई और भरे कोई।

इस का पहला जवाब यूं है इस से ख़ुदा की बेइंसाफ़ी ज़ाहिर नहीं होती क्योंकि मसीह ने अपनी मर्ज़ी और अपनी ख़ुशी से ये सज़ा बओज़ गुनेहगारों के अपने ऊपर उठाई। देखो यूहन्ना की इन्जील जिसमें मसीह ख़ुदावन्द ख़ुद फ़रमाता है कि मैं अपनी जान भेड़ों के लिए देता हूँ मैं अपनी ख़ुशी से उसे देता हूँ कोई उसे मुझसे नहीं लेता मुझको इख़्तियार है, कि मैं उसे दूँ या फिर लूँ। वो आप इंसान पर रहम खा कर गुनेहगारों का ज़ामिन बना। और उन के एवज़ में उस ने ख़ुद गुनाह की सज़ा अपने सर पर उठाई इस हाल में क्योंकर ख़ुदा बे इन्साफ़ हो सकता है।

(2) जवाब ये हो सकता है कि एक के एवज़ में दूसरा सज़ा का सज़ावार हो। देखो दुनिया का आम वतिरा (दस्तूर) है कि ज़ामिन अपने अस्ल मुजरिम के एवज़ में माख़ूज़ (अख़ज़ करना) किया जाता है। और ख़ुदा के इंतिज़ाम में तो ये आम है और उस की परवरदिगारी के काम में हम अक्सर देखते हैं, कि एक शख़्स दूसरे के एवज़ जिससे उस का कुछ ताल्लुक़ हो सज़ा उठाता है। देखो बाप हरामकारी करता है और उस की बीमारी का असर बेटे पर पहुंचता है और वो आतिशक (एक जिन्सी बीमारी) की बीमारी से मरता और जलता है। बाप बदकारी में अपने जिस्म को कमज़ोर करता है और इस का अज़ाब उस की नस्ल पर पड़ता है। देखो गुनाह-ए-आदम से बज़हुर आया उस के एवज़ में उस की तमाम नस्ल को बहिश्त से महरूम रखा गया। ताहम हम ख़ुदा को बे इन्साफ़ नहीं कह सकते। ये सब परवरदिगारी के इंतिज़ाम हैं इस में हम नुक़्स नहीं निकाल सकते। पस जब इस में नुक़्स नहीं निकाल सकते तो हम पर वाजिब है, कि हम नजात के काम में भी नुक़्स ना निकालें बल्कि हमें वाजिब है कि हम उस के मुताबिक़ परवरदिगारी के कामों को क़ुबूल लें।

फ़ुर्सत हुई तो आइंदा अख़्बार में मसीह के खातिमुन-न्नबीय्यीन होने की निस्बत बयान होगा।

 


[1] बमतबअ अमरीकन मिशन लुदियाना बएहतमाम पादरी वेरी साहब के छपा। अगर नक़द सौदा लेता रहता है तो उस से उस का पिछला क़र्ज़ जाता नहीं रहता। बाक़ी हफ्ता आइन्दा।

 

[2] खान पर बाबत खेवा के जुर्माना हुआ है जो 1993 तक अदा किया जाएगा।

वो नजात पाएं

नाज़रीन नूर अफ़्शां को मालूम हुआ, कि हम मसीहियों में ये दस्तूर-उल-अमल है। कि नए साल के शुरू में बमाह जनवरी एक हफ़्ता बराबर मुख़्तलिफ़ मक़ासिद व मुतालिब पर ख़ुदा से दुआ मांगें। मसलन अपने गुनाहों का इक़रार।” ख़ुदा की नेअमतों का शुक्रिया, रूहुल-क़ुद्दुस की भर पूरी, उस के कलाम के फैलाए जाने की ख़्वाहिश

They get salvation

वो नजात पाएं

By

Kidarnath
केदारनाथ

Published in Nur-i-Afshan Jan 25, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 25 जनवरी 1895 ई॰

पूरी आयत इस पर है, “ऐ भाईयो मेरी दिल की ख़्वाहिश। और ख़ुदा से मेरी दुआ इस्राईल की बाबत ये है, कि वो नजात पाएं।”

नाज़रीन नूर अफ़्शां को मालूम हुआ, कि हम मसीहियों में ये दस्तूर-उल-अमल है। कि नए साल के शुरू में बमाह जनवरी एक हफ़्ता बराबर मुख़्तलिफ़ मक़ासिद व मुतालिब पर ख़ुदा से दुआ मांगें। मसलन अपने गुनाहों का इक़रार।” ख़ुदा की नेअमतों का शुक्रिया, रूहुल-क़ुद्दुस की भर पूरी, उस के कलाम के फैलाए जाने की ख़्वाहिश, हाकिमों पर बरकत, हिंदू मुसलमानों की नजात वग़ैरह। इसी सिलसिले में ख़ुदा की बर्गुज़ीदा क़ौम बनी-इस्राईल के वास्ते भी दुआएं मांगी जाती हैं। चुनान्चे हमारे यहां फर्रुखाबाद के गिरजाघर में भी बतारीख़ दहुम (10) माह जनवरी 95 ई॰ यही क़रार पाया, कि यहूदीयों के वास्ते दुआ व मुनाजात की जाये। और तारीख़ मुन्दरिजा सदर के वास्ते बंदा क़रार पाया था। लिहाज़ा 4 बजे शाम को मुन्दरिजा उन्वान आयत पर कुछ थोड़ी देर तक बयान हुआ। और ख़त रोमीयों 9 बाब पढ़ा गया। इस बाब की पहली आयत से पढ़ते हुए 5वीं आयत के इस आख़िरी फ़िक़्रह पर, कि “जो सब का ख़ुदा हमेशा मुबारक है।” पहुंचा, तब बंदे को ख़याल हुआ, कि रसूल का इस फ़िक़्रह से क्या मतलब है। और ख़याल पैदा होने का सबब ये था, कि अर्सा से बअवकात मुख़्तलिफ़ एक रिसाला मौसूमा उलूहियत मसीह मअनवता व मोइलफ़ा मिस्टर अकबर मसीह मुख़्तार बांदा बंदा के ज़ेर-ए-नज़र रहता है। रिसाला मज़्कूर में भी सफ़ा 97 पर इसी फ़िक़्रह की बाबत कुछ बह्स है। चूँकि मुख़्तार साहब उलूहियत मसीह के मुन्किर हैं।

लिहाज़ा उन्हों ने अपने ख़याल की ताईद में पौलुस रसूल की अफ़्ज़ल-उल-तफ़सील दलील को, जो बनी-इस्राईल की फ़ज़ीलत और दुनिया की तमाम अक़्वाम पर साबित करती है। बह्स की सूरत में लाना अपना फ़र्ज़ समझा। आपकी मिसाल वही है जो एक हकीम से निकली है। कि जिसने बग़ैर पढ़े और ताअलीम हासिल कएचंद जोहला देहात (अनपढ़ देहाती) को धोखा दे रखा था। एक मर्तबा का ज़िक्र है। कि हकीम मौसूफ़ के पास एक ऐसा मरीज़ लाया गया। जिसकी दवा आपके ज़हन शरीफ़ में ना आ सकी। और ना मर्ज़ की तशख़ीस हो सकी। अब अगर कहते हैं कि और हकीम के पास जाओ। तो पेट का धंदा जाता है। बदनामी होती है। लोग कहेंगे कि पूरे हकीम नहीं हैं। पस कुछ सोच साच कर आएं, बाएं शाएं तीन पुड़ीयां ख़ाक धूल बला की बना कर मरीज़ के हवाले कीं। और फ़रमाया कि इन पुड़यों को इस्तिमाल करते हुए ऊंट का ख़याल ना करना। मतलब ये कि अगर मरीज़ ने कभी ऊंट देखा भी ना हो। तो भी जब इन पुड़यों के खाने का इरादा करेगा, फ़ौरन ऊंट का ख़याल पैदा होगा। ग़र्ज़ ये कि इन पुड़ीयों से मरीज़ को फ़ायदा ना हुआ। इसलिए कि मरीज़ ऊंट के ख़याल को अपने दिमाग़ से बाहर ना कर सका। यही सबब था कि बंदे को विर्द पढ़ते हुए भी मुख़्तार साहब की दलील ना भूली। बल्कि ख़ुद बख़ुद ख़याल सब आ मौजूद हुए। और अच्छा हुआ, कि ऐसे वक़्त में ख़याल पैदा हुआ। क्योंकि चंद सबबों का बयान करना ज़रूरी था। ताकि कुल शुरका इबादत के दिल इस बात पर मुतवज्जोह हो जाएं, कि क्यों बनी इस्राईल के वास्ते आज दुआ चाहीए।

बल्कि येसू मसीह पर ईमान लाने से रास्तबाज़ गिना जाता है

मिनजुम्ला उन अस्बाब के पहला सबब क़वी (मज़्बूत) ये है, कि वो इस्राईली हैं। और फ़र्ज़ंदी, और जलाल, और ईदें, और शरीअत, और इबादत की रस्में। और वाअदे उन्हीं के हैं। और दूसरा सबब ये है कि बाप दादे उन ही में से हैं। और तीसरा सबब ये है कि जिस्म की निस्बत मसीह भी उन में से हुआ। लेकिन इस तीसरे सबब पर हमको एतराज़ है। अगर जिस्म के मअनी कुछ और ना हों। इस वास्ते कि बाप दादे यानी अबराहाम, इज़्हाक़, याक़ूब वग़ैरह क्या जिस्म नहीं रखते थे? फिर मसीह को बाप दादों से अलैहदा कर के बयान करने में रसूल का क्या मतलब है। मुख़्तार साहब हमको समझा दें। आया वही मतलब है, जो क़ुरआन की सूरह इन्ना अंज़लना के इस फ़िक़्रह में है, “تَنَزَّلُالملايکتہ وَالرُّوح” (उतरते हैं फ़रिश्ते और रूह) अगर रूह से रूहुल-क़ुद्दुस ख़ुदा मुराद नहीं तो क्या है। अगर जिब्राईल का नाम रूह है। तो क्या जिब्राईल फ़रिश्ता नहीं है। और फ़रिश्तों के उतरने में जिब्राईल को उतरा हुआ नहीं समझेंगे। या इस का वो मतलब है, जो क़ुरआन की इन आयतों में है, “فَارَنسَلُناَاِلَيھٰارُوُحنا۔فنَفَخُنَافيھامِن روحِناٰ” (पस फूंक दी हमने उस की तरफ़ अपनी रूह में से) क्या यहां इन दोनों रूहों में कुछ मुग़ाइरत (ना मुवाफ़िक़त, अजनबीयत) है। या नहीं? अगर है तो क़ुरआन से ख़ुदा की रूह की शख़्सियत साबित हो गई। और अगर मुग़ाइरत नहीं है। तो क्या जिब्राईल ने जिब्राईल को फूंक दिया? ये कैसी बात है।

नाज़रीन नाराज़ ना हों। और ना कहें कि इन्जील से मसीह की बह्स में क़ुरआनी दलाईल। और ख़ासकर रूह-उल-क़ुद्दुस की उलूहियत का बयान पेश करना चेह माअनी? जनाब-ए-मन बेमाअनी नहीं, बल्कि ये दिखाना चाहा है, कि युनिटेरियन दलाईल मुहम्मदी दलाईल के सगे भाई हैं। जो वहां है सो यहां है। जो यहां है सो वहां है। लेकिन हमारे एतराज़ का जवाब ख़ुद पौलुस रसूल से हमको ये मिलता है, कि प्यारे भाई, अगरचे ख़ुदावंद मसीह जिस्म की निस्बत बाप दादों से कुछ भी मुग़ाइरत नहीं रखता। (और मेरे दूसरे सबब ही में ये तीसरा सबब भी मिल जाता है) पर तो भी ज़माना आइंदा में मसीह के मुख़ालिफ़ उठेंगे। और लोगों के दिलों में शुब्हा पैदा करेंगे। इस वास्ते मैंने तुमको साफ़ बता दिया, कि जिस्म की निस्बत मसीह भी उन ही में से हुआ। जो सब का ख़ुदा हमेशा मुबारक है। मतलब ये है कि मसीह ख़ुदावन्द जब मुजस्सम हुआ। तब ग़ैर-अक़्वाम में नहीं। बल्कि ख़ुदा की बर्गुज़ीदा क़ौम इस्राईल में। क्योंकि नजात यहूदीयों में से है। और अगर ज़्यादा इत्मीनान ख़ातिर मंज़ूर हो, तो मर्क़ुस की इन्जील में सरदार काहिन से दर्याफ़्त करो। वो तुम्हें बता देगा। क्योंकि 14:61 में सरदार काहिन ने उस से पूछा, कि क्या तो मसीह उस मुबारक का बेटा है? तब 62वीं आयत में येसू ने उस से कहा, मैं वही हूँ

मुख़्तार साहब अगर मसीह में उलूहियत ना थी। तो बाप दादों से बिला-वजह मौजा अलेहदा करना ख़लल-ए-दिमाग़ के सिवा और क्या हो सकता है?। लेकिन मुलहम शख़्स की बाबत ऐसा बदगुमान ना तो आप कर सकते हैं और ना मैं। फिर आपकी ये दलील कि “मुक़द्दस पौलुस ने किसी एक जगह भी मसीह के के हक़ में ये ख़िताब इस्तिमाल नहीं किया” इस का जवाब ये है कि इस आयत में इस्तिमाल किया है। अगर दूसरी जगह भी इन ही अल्फ़ाज़ को इस्तिमाल करता तब आप क्या कहते? और तीसरी जगह भी इस्तिमाल करता। और चौथी जगह भी इस्तिमाल करता तो आप क्या कहते? फिर आप ही तो कहते हैं कि बजिन्सा ये वही फ़िक़्रह है, जो रोमीयों 1-25 में है। और ख़ल्क़ की निस्बत लिखा है। वाह जनाब यही तो दलील है। कि ख़ुदा के कलाम में मसीह के हक़ में अक्सर ख़िताब पाए जाते हैं। जो ख़ुदा की निस्बत हैं। पस बावजूद उन सिफ़ात के जो ख़ुदा की मुअर्रिफ़ (तारीफ़ करने वाला) हैं। मसीह की उलुहिय्यत को रद्द करना किस क़ानून की रु से दुरुस्त है? अब आख़िरी फ़ैसला सुनीए। ख़ुदा बाप की उलुहियत के आप भी क़ाइल हैं। और रूहुल-क़ुद्दुस की उलुहियत क़ुरआन से ज़ाहिर हो चुकी है। और मसीह की उलुहियत इस अफ़्ज़ल-उल-तफ़सील दलील-ए-पौलुस से आपको दिखाई गई। बराहे मेहरबानी तस्लीस की फिर तन्क़ीह (तहक़ीक़) फ़रमाए। और अपने रिसाले का जवाब जल्द छपवाए।

मसीह पर ईमान लाने से रास्तबाज़ गिना जाता है

मसीही मज़्हब और दीगर मज़ाहिब दुनिया में ये एक निहायत अज़ीम फ़र्क़ है। कि वो गुनेहगार इन्सान की मख़लिसी व नजात और हुसूल-ए-क़ुर्बत (नज़दिकी) व रजामंदी इलाही को उस के आमाल हसना का अज्र व जज़ा नहीं ठहराता। बल्कि उस को सिर्फ इलाही फ़ज़्ल व बख़्शिश ज़ाहिर करता है। जबकि दीगर मज़ाहिब ताअलीम देते हैं,

Counted rightous by having faith in Jesus Christ

मसीह पर ईमान लाने से रास्तबाज़ गिना जाता है

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan Jan 11, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 11 जनवरी 1895 ई॰

हम जो पैदाइश से यहूदी हैं। और ग़ैर क़ौमों में से गुनेहगार नहीं। ये जान कर कि आदमी ना शरीअत के कामों से, बल्कि येसू मसीह पर ईमान लाने से रास्तबाज़ गिना जाता है। हम भी येसू मसीह पर ईमान लाए। ताकि मसीह पर ईमान लाने से, ना कि शरीअत के कामों से रास्तबाज़ गिने जाएं। क्योंकि कोई बशर शरीअत के कामों से रास्तबाज़ गिना ना जाएगा। ग़लतीयों 3:16, 15

मसीही मज़्हब और दीगर मज़ाहिब दुनिया में ये एक निहायत अज़ीम फ़र्क़ है। कि वो गुनेहगार इन्सान की मख़लिसी व नजात और हुसूल-ए-क़ुर्बत (नज़दिकी) व रजामंदी इलाही को उस के आमाल हसना का अज्र व जज़ा नहीं ठहराता। बल्कि उस को सिर्फ इलाही फ़ज़्ल व बख़्शिश ज़ाहिर करता है। जबकि दीगर मज़ाहिब ताअलीम देते हैं, कि पहले काम और बाद इनाम। मसीही मज़्हब ताअलीम देता है, कि पहले इनाम और बाद काम। ये ताअलीम गुनेहगार लाचार व ख़्वार इन्सान के लिए, जिसमें नेक काम करने की ताक़त मुर्दा। और क़वाए नफ़्सानी व जिस्मानी ज़िंदा ज़ोर-आवर हैं, कि “तू पहले नेक काम कर तो नजात पाएगा।” कैसी ना-मुम्किन-उल-तामील और सख़्त व ना गवार मालूम होती है। क्या कोई तबीब हाज़िक़ (माहिर डाक्टर) किसी मरीज़ को जो अर्सा-ए-दराज़ से एक मर्ज़ इजानिस्तां (जान को सताने वाला रोग) में मुब्तला रह कर यहां तक नहीफ़ व नातवां (कमज़ोर व लाचार) हो गया हो। कि वो उठने बैठने और चलने फिरने के बिल्कुल ना क़ाबिल हो। क़ब्ल सेहत ये हुक्म दे सकता, कि तो चहलक़दमी किया कर। और तुर्श व बादी अग़्ज़िया (ग़िज़ा की जमा) से मुहतरिज़ (परहेज़ करना) रह? पस वो मज़्हबी हादी व मुअल्लिम जो अपने पैरौओं को, जो मुहताज-ए-नजात हैं। ये ताअलीम देता है कि अगर तुम नेक काम करो तो आख़िर को नजात पाओगे।

उसी तबीब की मानिंद हैं जो मरीज़ को क़ब्ल शिफ़ा याबी हुसूल-ए-ताक़त व तवानाई के लिए चहलक़दमी करने, और तंदुरुस्त रहने के लिए ना-मुवाफ़िक़ व सक़ील अग़्ज़िया (ठोस ग़िज़ा) से परहेज़ करने की सलाह देता है। इस में शक नहीं, कि वो जो बज़रीया-ए-आमाल हुसूल-ए-नजात की ताअलीम देते और जो ऐसी ताअलीम को पसंद और क़ुबूल करते हैं इन्सान की दिली ख़राब हालत। और पैदाइशी बिगड़ी हुई तबइयत से बिल्कुल नावाक़िफ़ और मह्ज़ ना-आश्ना हैं। मगर ये भी सच्च है कि जिन्हों ने कलाम-अल्लाह से बिगड़ी हुई इन्सानियत के हाल को मालूम ना किया हो। वो क्यूँ-कर उस की बुराई को बख़ूबी समझ सकते हैं। क्योंकि कलाम-अल्लाह ही सिर्फ एक ऐसा आईना मुसफ़्फ़ा व मजल्लाई () है, कि जिसमें बिगड़ी हुई इन्सानियत और उस के दिल की सहीह तस्वीर मए उस के उयूब व कबाएह (ऐब व बुराई की जमा) के साफ़ तौर पर खींची और दिखलाई गई हैं। हर चंद कि ख़ुद-पसंद इन्सान ऐसी कर यह-उल-मंज़र (बद-शक्ल) तस्वीर को देखना पसंद नहीं करते। ताहम निहायत ही मुनासिब और ज़रूरी मालूम होता है, कि उन फ़रेब-ख़ुर्दा अश्ख़ास के लिए जो “पहले काम, और पीछे इनाम” की ताअलीम पा कर नजात उख़रवी के उम्मीदवार हैं उस के हर दो तारीक पहलू किसी क़द्र किताब-अल्लाह से दिखलाए जाएं।

बल्कि येसू मसीह पर ईमान लाने से रास्तबाज़ गिना जाता है।

पैदाइश की किताब के 6 बाब 5 आयत में क़ब्ल तूफ़ान यूं लिखा है, कि “ख़ुदावन्द ने देखा कि ज़मीन पर इन्सान की बदी बहुत बढ़ गई। और उस के दिल के तसव्वुर और ख़याल रोज़ बरोज़ सिर्फ बद ही होते हैं।” और ये कि ख़ुदा ने ज़मीन पर नज़र की और देखा कि वो बिगड़ गई। क्योंकि हर एक बशर ने अपने अपने तरीक़ को ज़मीन पर बिगाड़ा था।” पैदाइश 6:12

फिर उसी किताब के 8 बाब 21 आयत में लिखा है, कि “इन्सान के दिल का ख़याल लड़कपन से बुरा है।” अय्यूब की किताब के 15 बाब 14 आयत में मर्क़ूम है, कि “इन्सान कौन है कि पाक हो सके। और वो जो औरत से पैदा हुआ क्या है कि सादिक़ ठहरे।” राक़िम ज़बूर नाक़ील (नक़्ल करना) है, कि “देख मैंने बुराई में सूरत पकड़ी। और गुनाह के साथ मेरी माँ ने मुझे पेट में लिया।” ज़बूर 51:5, फिर वो फ़रमाता है कि “ख़ुदावन्द इन्सान के ख़यालात को जानता है, कि वो बातिल हैं।” ज़बूर 94:11, यर्मियाह नबी ने इन्सानी ख़राब दिल की निस्बत यूं लिखा है, “दिल सब चीज़ों से ज़्यादा हीलेबाज़ है। हाँ वो निहायत फ़ासिद (फ़सादी, बिगड़ा हुआ) है। उस को कौन दर्याफ़्त कर सकता है?” यर्मियाह 14:9, ख़ुदावन्द मसीह ने, जिससे बेहतर इन्सान की माहीयत (असलियत, फ़ित्रत) को जानने वाला कोई नहीं हुआ। यूं फ़रमाया है कि “बुरे ख़याल, ख़ून, ज़िना, हरामकारी, चोरी, झूटी गवाही, कुफ्र, दिल ही से निकलते।” मत्ती 15:19, बिल-आख़िर पौलुस रसूल चौदहवीं ज़बूर की ताईद कर के बवज़ाहत तश्रीह करता और इन्सान के सरापा की यूं तस्वीर खींचता है, कि “कोई रास्तबाज़ नहीं एक भी नहीं। कोई समझने वाला नहीं। कोई ख़ुदा का तालिब नहीं। सब गुमराह हैं। सब के सब निकम्मे हैं कोई नेकोकार नहीं। एक भी नहीं। उनका गला खुली हुई गुरू (क़ब्र) है। उन्हों ने अपनी ज़बान से फ़रेब दिया है। उन के होंटों में साँपों का ज़हर है। उन के मुँह में लानत और कड़वाहट भरी हैं। उन के क़दम ख़ून करने में तेज़ हैं। उन की राहों में तबाही और परेशानी है। और उन्हों ने सलामती की राह नहीं पहचानी। उन की आँखों के सामने ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं।” रोमीयों 3:10 से 18 तक।

इन्सान की निस्बत कुतुब-ए-मुक़द्दसा में ऐसे साफ़ और बेलाग (बेग़र्ज़) बयानात का मज़्कूर होना भी उन के मिंजानिब-अल्लाह होने की एक दलील मिनजुम्ला दीगर दलाईल है। क्योंकि कोई इन्सान अपनी तस्नीफ़ में इन्सानी बुरी हालत और दिली ख़राबी की ऐसी बद-हेइय्यत तस्वीर हरगिज़ नहीं खींच सकता। क्योंकि बक़ौल राक़िम ज़बूर “अपनी भूल चूकों को कौन जान सकता है।” और यही सबब है कि दीगर अहले-मज़ाहिब गुनाह को एक ख़फ़ीफ़ (मामूली) बात जान कर ज़ाहिरी शुस्त व शो (धो कर साफ़ करना) और अदाए रस्मियात व दस्तुरात मज़्हबी के ज़रीये माफ़ व महू हो जाने के ख़याल में मुत्मईन पाए जाते हैं। पस जब कि इन्सान की तबीयत व फ़ित्रत गुनाह के बाइस इस क़द्र बिगड़ गई है, कि बक़ौल यसअयाह नबी तमाम सर बीमार है। और दिल बिल्कुल सुस्त है। तलवे से लेकर चांदी तक उस में कहीं सेहत नहीं बल्कि ज़ख़्म और चोट और सड़े हुए घाओ (ज़ख़्म) हैं। जो ना दबाए गए ना बाँधे गए। ना तेल से नरम किए गए हैं।”

तो उस को आमाल-ए-हुस्ना (नेक काम) के ज़रीये हुसूल-ए-मग़्फिरत व नजात (माफ़ी व रहाई) की ताअलीम देना उस को धोके और उम्मीदे बातिल (झूटी उम्मीद) में रखकर हलाक करने के सिवा और कुछ नहीं है। ज़रूर है कि पहले वो नई पैदाइश जिसको निकुदेमुस जैसा ज़ी इल्म (आलिम) यहूदी ना समझ सका। हासिल करे और एक मुस्तक़ीम (दुरुस्त, रास्त, मज़्बूत) रूह उस के बातिन में नए सिरे से डाली जाये। और एक पाक-दिल उस के अंदर पैदा किया जाये। तब आमाल-ए-हुस्ना के उस से सरज़द होने की उम्मीद हो सकती है। वर्ना बक़ौल अय्यूब “कौन है जो नापाक से पाक निकाले? कोई नहीं।” अय्यूब 14:4 ताहम याद रखना चाहिए कि मौजूदा बिगड़ी हुई और गिरी हुई इन्सानियत के सुधारने। और उस को उठाने के लिए सिर्फ ताअलीम ही काफ़ी नहीं हो सकती। बल्कि एक कामिल नमूने की ज़रूरत है। जिसकी निस्बत फिर लिखेंगे।

मुझसे सीखो

गुज़श्ता ईशू में हमने एक नमूने की ज़रूरत का ज़िक्र किया। जिसको पेश-ए-नज़र रखकर और जिसके नक़्श-ए-क़दम पर चल कर बिगड़ा और गिरा हुआ इन्सान सुधर सके। और इन्सानियत के दर्जा आला पर सर्फ़राज़ हो कर क़ुर्बते इलाही के लायक़ बन सके। लेकिन ऐसे नमूने की तलाश अगर आदम से ताएं दम जिन्स बशर में की जाये,

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मुझसे सीखो

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan Jan 18, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 18 जनवरी 1895 ई॰

मेरा जूवा अपने ऊपर ले लो। और मुझसे सीखो। क्योंकि मैं हलीम और दिल से ख़ाकसार हूँ। तो तुम अपने जी में आराम पाओगे। मत्ती 11:29

गुज़श्ता ईशू में हमने एक नमूने की ज़रूरत का ज़िक्र किया। जिसको पेश-ए-नज़र रखकर और जिसके नक़्श-ए-क़दम पर चल कर बिगड़ा और गिरा हुआ इन्सान सुधर सके। और इन्सानियत के दर्जा आला पर सर्फ़राज़ हो कर क़ुर्बते इलाही के लायक़ बन सके। लेकिन ऐसे नमूने की तलाश अगर आदम से ताएं दम जिन्स बशर में की जाये, तो कोई ना मिलेगा। और बजुज़ मायूसी और कुछ नतीजा तलाश ना निकलेगा। बेशक दुनिया की तवारीख़ क़दीम में बड़े-बड़े जलील-उल-क़द्र और फ़ताह-ए-आज़म बादशाहों और शहंशाहों के नाम पाए जाते हैं। शह ज़ोर पहलवानों और बहादुरों की ख़बर मिलती है। हकीमों, दानाओं और आलिमों का पता लगता है। लेकिन किसी कामिल रास्तबाज़ इन्सान का नाम, जो तमाम बनी-आदम के लिए क़ाबिले नमूना हो, कहीं नहीं मिलता। जो नाक़िस इन्सान से ये कहने की जुर्रत कर सके, कि “तू मेरे हुज़ूर में चल। और कामिल हो।” तू पाक हो। क्योंकि मैं पाक हूँ। तू रास्तबाज़ हो। जैसा कि मैं रास्तबाज़ हूँ। फिर इस बात के मुक़र्रर (दुबारा) कहने की ज़रूरत नहीं, कि मौजूदा ख़राब हालत में इन्सान को सिर्फ ये ताअलीम देना कि तू नेक बन। आमाल-ए-हसना कर। बिल्कुल बेफ़ाइदा है। क्योंकि जब तक कोई नेक व पाक नमूना उस के हम-जिंसों में उस के पेशें नज़र ना हो। वो हरगिज़ नेक व पाक बन नहीं सकता। नमूना नसीहत व ताअलीम से बेहतर है। और हम इस मक़ूला के क़ाइल नहीं, कि اُنظُرالح ما قال   و لا تنظر الیٰ من قال और ना हम ऐसे लोगों को क़ाबिल-ए-नमूना समझ सकते हैं, जो बक़ौल फ़ारसी शायर :-

ترک دنيا بمر دم آموزند+خويشتن سيم وغلہ اندوزند

क्योंकि क़ाएल के अक़्वाल कैसे ही मुफ़ीद व उम्दा क्यों ना हों। कुछ असर पैदा नहीं कर सकते। अगर वो उस के मुताबिक़ ख़ुद आमिल हो कर अपने को एक नमूना दूसरों के लिए ना बना दे।

पस जब कि हम बिगड़े हुए इन्सान किसी कामिल नमूने की तलाश अपने तमाम हम-जिंसों में करते, ता कि उस पर नज़र कर के और उस के नक़्श-ए-क़दम पर चल कर हम सुधर जाएं। और इस तलाश में मायूस व नाकाम हो कर नज़र उठाते हैं। तो एक इब्ने आदम दिखलाई देता है, जो हम में से हर एक को फ़रमाता है, “मेरे पीछे हो ले” और अगर हम उस की पुर मुहब्बत बुलाहट को सुन कर और सभों को छोड़कर सिर्फ उसी की पैरवी करें।

तो बेशक वो हमको बदी और गुनाह से बचा कर नेकी और सलामती की सिराते मुस्तक़ीम (सीधी राह) पर चलाएगा। और तब हम दाऊद के हम-आहंग हो कर नग़मा सरा होंगे, कि “ख़ुदावन्द मेरा चौपान है। मुझको कमी नहीं। वो मुझे हरियाली चरागाहों में बिठाता है। वो राहत के चश्मों की तरफ़ मुझे ले पहुँचाता है। वो मेरी जान फेर लाता है। और अपने नाम की ख़ातिर मुझे सदाक़त की राहों में लिए फिरता है। बल्कि जब मैं मौत के साये की वादी में फिरूँ। तो मुझे ख़ौफ़ व ख़तरा ना होगा। क्योंकि तू मेरे साथ है। तेरी छड़ी और तेरी लाठी ही मेरी तसल्ली के बाइस हैं।” लेकिन अगर हम आमाल-ए-हसना पर भरोसा कर के ऐसी बड़ी नजात से ग़ाफ़िल रहें तो बजुज़ हलाकत व कफ अफ़्सोस मिलने के और कुछ हासिल ना होगा। ख़ुदावन्द के रसूल पौलुस के ये अक़्वाल व सवाल निहायत गौरतलब हैं :-

देखो। तुम उस फ़रमाने वाले से ग़ाफ़िल ना रहो। क्योंकि अगर वो भाग ना निकले। जो उस से जो ज़मीन पर फ़रमाता था ग़ाफ़िल रहे। तो हम भी अगर उस से जो हमें आस्मान पर से फ़रमाता हे मुंह मोड़ें। क्योंकि भाग निकलेंगे? इब्रानियों 12:25

गुनेहगारों को क़ुबूल करता है

अगरचे ख़ुदावन्द येसू मसीह जिस्म की निस्बत क़ौम यहूद में से था। जो अपनी क़ौम के सिवा तमाम आदमजा़द को गुनेहगार, नापाक बल्कि मिस्ल सग (कुत्ते की तरह) समझते थे। मगर चूँकि वो तमाम बनी-आदम का नजातदिहंदा और सारे गुनेहगारों का ख्वाह यहूदी हों या ग़ैर क़ौम बचाने वाला था।

He Accept the Sinners

गुनेहगारों को क़ुबूल करता है

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan Jan 25, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 25 जनवरी 1895 ई॰

और फ़रीसी व फ़क़ीह कुड़कुड़ा कर कहते थे, कि ये शख़्स गुनेहगारों को क़ुबूल करता और और उन के साथ खाता है। लूक़ा 15:2

अगरचे ख़ुदावन्द येसू मसीह जिस्म की निस्बत क़ौम यहूद में से था। जो अपनी क़ौम के सिवा तमाम आदमजा़द को गुनेहगार, नापाक बल्कि मिस्ल सग (कुत्ते की तरह) समझते थे। मगर चूँकि वो तमाम बनी-आदम का नजातदिहंदा और सारे गुनेहगारों का ख्वाह यहूदी हों या ग़ैर क़ौम बचाने वाला था। उस ने यहूदियाना तास्सुब व तनफ़्फ़ुर (बेजा तरफ़-दारी, नफ़रत) के ख़िलाफ़ यूनानियों, रोमीयों, सामरियों, ख़राज गीरों (टैक्स लेने वाले), और ऐसे लोगों के साथ जिन्हें यहूदी गुनेहगार समझते थे। मेल-जोल रखा। और उन्हें नजात की ख़ुशख़बरी पहुंचाने में दरेग़ ना किया। “क्योंकि सभों ने गुनाह किया और ख़ुदा के जलाल से महरूम थे।” मसीह का ग़ैर-यहूदीयों के साथ ऐसा बर्ताव यहूदीयों की समझ में निहायत मज़मूम (बुरा, ख़राब) था। और वो अक्सर ऐसे मौक़ों पर उस पर कुड़कुड़ाते। और इल्ज़ामन कहते थे, कि “ये शख़्स गुनेहगारों को क़ुबूल करता और उन के साथ खाता है।” और बहिक़ारत उस को ख़राजगीरों और गुनेहगारों का दोस्त नाम देते थे। मगर उस ने जो फ़िल-हक़ीक़त गुनेहगारों का दोस्त था। यहूदीयों के ऐसे बेहूदा ख़यालात की कुछ परवाह ना की। और उन्हें हमेशा ये माक़ूल जवाब दिया, कि “भले चंगों को हकीम दरकार नहीं। बल्कि बीमारों को। मैं रास्तबाज़ों को नहीं, बल्कि गुनेहगारों को तौबा के लिए बुलाने आया हूँ।”

इसी उसूल और तबीयत के मुताबिक़ उस के ख़िदमतगुज़ार और दीनदार बंदे हमेशा चलते रहे। और अब भी चलते हैं। और उन लोगों के साथ हम्दर्दी करने और उन्हें नजात की ख़ुशख़बरी सुनाने में जो अहले-दुनिया की नज़र में नीच और नाचीज़ हैं। कोताही करना नहीं चाहते। अगरचे उन की ये कार्रवाई ख़ुद-पसंद और मग़रूर इन्सानों के ख़याल में निहायत बुरी और क़ाबिल-ए-मलामत है। हम देखते हैं कि फ़ी ज़माना हिन्दुस्तान में नीच अक़्वाम के मसीही कलीसिया में शामिल होने पर हिंदू और मुहम्मदी लोग मसीहियों पर कैसी तंज़ करते। और मिशनरी साहिबान के उन के पास जाने, और मेल मिलाप रखने पर किस तरह ज़बान तअन व तशनीअ (बुरा भला कहना) दराज़ करते हैं। मगर ये मसीहियों की बनावटी आदत नहीं। बल्कि मसीहिय्यत की ताअलीम का असर है। क्योंकि जैसा वो ख़ुदा की अबवीयत (बाप) और बनी-आदम की उखुव्वत (भाई चारा) का इज़्हार करती। किसी और मज़्हब में ऐसा इज़्हार नहीं किया गया। और यही सबब है, कि मज़ाहिब मज़्कूर के पैरौ किसी ग़ैर मज़्हब व ग़ैर क़ौम। अपने से कमतर और अदना बनी नूअ इन्सान के साथ हम्दर्दी और मदद-दही में क़ासिर रहते हैं। और ये क़सूर उनका नहीं। बल्कि उन के मक़बूला मज़ाहिब का है। जो बनी-आदम की उखुव्वत और ख़ुदा तआला की अबवीयत की ताअलीम से ख़ाली हैं। और जिनमें बसफ़ाई ये ताअलीम नहीं मिलती, कि “ख़ुदा ने एक ही लहू से आदमीयों की सब क़ौम तमाम ज़मीन पर बसने के लिए पैदा की” आमाल 17:26, और ये कि “एक ख़ुदा है जो सब का बाप, सब के ऊपर और सब के दर्मियान और तुम सब में है।” इफ़िसियों 4:6 पस अदना दर्जे के लोगों से हम-कलाम ना होना। और उन्हें बनज़र हिक़ारत व नफ़रत देखना इस मुल्क के उम्रा ही का ख़ास्सा और निशान नहीं। जैसा कि ब्रह्मा प्रचारक लिखता है। बल्कि तमाम उमरा व गुरबाए अहले हनूद व इस्लाम का यही हाल है। चुनान्चे ब्रह्मा प्रचारक लिखता है, कि “हमारे मुल्क में उमूमन बड़े आदमी या अमीर होने की पहचान है, कि वो अदना दर्जे के आदमीयों से बोलते तक नहीं। और उन्हें नफ़रत की निगाह से देखते हैं। शाज़ोनादर ही कोई अमीर आदमी ऐसा होगा, कि जो किसी मिहतर (बड़ा बुज़ुर्ग) के घर बीमार पुरसी के लिए जाये। लेकिन ऐसी हालत में उस को किसी धर्म पुस्तक (मज़्हबी किताब) का पढ़ कर सुनाना हमारे मुल्क के अमीरों से अगर ना-मुम्किन ना माना जाये। तो प्रले दर्जे का मुश्किल ज़रूर है। मगर दूसरे ममालिक में क्या हाल है।

मिस्टर गिलीड स्टोन साहब साबिक़ वज़ीर-ए-आज़म इंग्लिस्तान के बारे में बयान किया जाता है, कि जब वो गिरजाघर में नमाज़ पढ़ने जाया करते थे। तो रास्ते में उन्हें एक मिहतर (बुज़ुर्ग) फाटक पर मिला करता था। एक दिन हस्ब-ए-मामूल गिरजाघर जाते वक़्त फाटक पर बजाय इस मिहतर के किसी और शख़्स को पाया। और दर्याफ़्त करने से मालूम हुआ, कि वो मिहतर घर में बीमार पड़ा है। मिस्टर गलीड स्टोन ने इस मिहतर के घर का पता पूछ कर पाकेट बुक में लिख लिया और दूसरे दिन इस मिहतर के मकान को तलाश कर के उस के पास गए। उस की बीमार पुरसी की। और तसल्ली दी। और बाइबल पढ़ कर उसे सुनाई।

क़ुरआन क्या है?

कहीए जनाब कैसी दलील सुनाई। लाए मुसाफ़ा (हाथ मिलाना) कीजिए। اللّٰہم صَلِّ पानी पी के लौटा रख दो। खटीया (चारपाई) के तले। मन्तिक़ (दलील) ने नातिक़ा (बोलने की ताक़त) बंद किया। अताए तौबा लकाए तो वाला जवाब दिया। क्या सबब कि तौरेत मूसा से रक़म हुई। ज़बूर दाऊद से ज़ेरे क़लम हुई। सहाईफ़ के मुसन्निफ़ अम्बिया ए मक़्बूल हैं।

What is Quran?

क़ुरआन क्या है?

By

One Disciple
एक शागिर्द

Published in Nur-i-Afshan Jan 25, 1895

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 25 जनवरी 1895 ई॰

 

 

 

प्यारे एडीटर : क्या ही अनोखा सवाल है। आप इसका जवाब तो दीजिए। देखें कोई क्या कहता है। क़िब्ला माफ़ कीजिए। दिल्ली के मुहम्मद शाह को सलीम गड्डा के फोर्ट में ही में सलामत रहने दीजिए। सल्तनत से दस्त बर्दारी ही बेहतर है। सय्यद तख़्त पर पांव धरते ही सर क़लम कर देंगे। ऐ हज़रत ये क्या फ़र्माते हो। मैं तो मज़्हबी बात पूछता हूँ। आप तवारीख़ हिंद सुनाते हो। जनाब मैंने तो आपको आक़िल समझ कर तकफ़ीय-तूल-इशारा पर एमा किया था। मगर अब मालूम हुआ, कि आप निरे निरे इग्नोरेंट ही हैं। माफ़ फ़रमाए। और ज़रा ज़हर क़तरा मामूर बराह इनायत बेग़ाइयत (बे-इंतिहा) अपने इज्माल की तफ़्सील सुनाए। आपने सुना नहीं, कि मौलवी पादरी इमाद-उद्दीन साहब लाहिज़ डी डी ने थोड़े ही दिन गुज़रे, कि इस सवाल का जवाब ना ज़बान से बल्कि हाथों से ऐसा दिया। कि यार लोग अब तक उंगलीयां चाट रहे हैं। बल्कि मुख़ालिफ़ीन तैश में आकर पुश्त-ए-दस्त (हाथ का पिछ्ला हिस्सा) काट रहे हैं। सौ क्यों? इसलिए कि उस अलामत अल-दहर मनशई अतारिद-रक़म ने अपने दहान क़लम (क़लम के मुँह से) से उर्दू तर्जुमा अल-क़ुरआन में वो वो मोती बरसाए। गोया जवाहरात के ढेर लगाए। जिसकी चमक धमक से दुश्मनों की आँखों में पानी उतर आया। और हज़ारहा आँखें अंधे हाफ़िज़ों के मसील नाम नैन-सुख को मोतियाबिंद का आर्ज़िया (मर्ज़) नज़र आया। इस सारी अर्क़ रेज़ि (तहक़ीक़) और खून-ए-जिगर सेज़ी का ख़ूँ-बहा सिवाए तख़वीफ़ हलाकत (मारने की धमकी) के इशाक-ए-क़ुरआन (क़ुरआन के आशिक़) ने और क्या दिया? पर तो भी इस मर्द-ए-मैदान-ए-दिलेरी ने उस्मान जामेअ-उल-क़ुरआन की सूरत فسيکفيھم اللّہ पर भरोसा किया। अब और कुछ सुनना चाहते हो? वाह साहब और कुछ सुनना चाहते हैं। ले सुनीए क़ुरआन अरबी ज़बान में एक किताब है। जो बक़ौल मुहम्मदियान रब-उल-काअबा की तस्नीफ़ नायाब है। कहते हैं कि ये तस्नीफ़ बहुत खरी है। फ़साहत (ख़ुश-बयानी) कूट कूट कर भरी है। पूछो रब-उल-काअबा कौन है? कोई होगा जिसे वो अपना माबूद समझते हैं। और औरों के ख़ुदा या माबूद का नाम सुन कर बहुत उलझते हैं। लेकिन ये तो बतलाए कि क़ादियानी इस्तकरा (तलाश करना, पैरवी) के ख़िलाफ़ क़ुरआन ख़ुदा की तस्नीफ़चेह माअनी दारद? हमने तो आज तक भी सुना था। कि कुतुब इल्हामियाह साबिक़ा मनज्ज़िल मिनल्लाह मुख़्तलिफ़ अश्ख़ास के ज़बान और क़लम से हीता तहरीर में आई हैं। पस अगर क़ुरआनी दलील के मुताबिक़ रसूल-अल्लाह होने को हमेशा मह्ज़ और मुजर्रिद इंसानियत शर्त है। और ख़ुदावंद मसीह जो बा मुहावरा क़ुरआनी कलिमतुल्लाह (کلمتہ اللہ) और रसूल-अल्लाह। और रूह-मिनहु है। ख़ुदा कामिल हो कर रसूल नहीं हो सकता। क्योंकि दलील इस्तकराई के खिलाफ है।

तो ये पाँसा उल्टा पड़ा। बक़ौल नसीम लखनवी :-

पासे की बदी आशकारा

राजा नल सल्तनत है हार

कहीए जनाब कैसी दलील सुनाई। लाए मुसाफ़ा (हाथ मिलाना) कीजिए। اللّٰہم صَلِّ पानी पी के लौटा रख दो। खटीया (चारपाई) के तले। मन्तिक़ (दलील) ने नातिक़ा (बोलने की ताक़त) बंद किया। अताए तौबा लकाए तो वाला जवाब दिया। क्या सबब कि तौरेत मूसा से रक़म हुई। ज़बूर दाऊद से ज़ेरे क़लम हुई। सहाईफ़ के मुसन्निफ़ अम्बिया ए मक़्बूल हैं। और अनाजील व ख़ुतूत वग़ैरह के मुहर्रर (तहरीर करने वाले) ख़ुदावंद येसू के रसूल हैं। मेहरबानी कीजिए। जवाब दीजिए कुल कुतुब-ए-इल्हामियाह की तस्नीफ़ का मूलहमों (इल्हाम रखने वाले) परदार व मदार हो। मगर ताज्जुब है। कि मुहम्मदियों के सरवरे अम्बिया का क़ुरआन के एक हर्फ़ पर भी ना एतबार हो? ये सुन कर तो मेरा सर चक्कर खाता है। कलेजा बाँसों मुंह को आता है। मुझे रुख़्सत फ़रमाए। जाये बक बक कर सर ना खाए बहुत ख़ूब।

राक़िम

شادم کہ ازرقيباں دامن کشاں گذشتم

گو مشت خاک     ماہم    برباد رفتہ  باشد

दुश्मने मसीहियत

सब के सब एक ही से हैं । पस शेख़ अहमद कोईलम नव मुस्लिम का ये क़ौल, कि हम मुसलमान लोग मसीह की हद से ज़्यादा ताज़ीम करते हैं। कई वजह से बातिल (झूट) है। और अंग्रेज़ी हुक्काम को धोखा देने के सिवाए मह्ज़ आतल। अव्वलन, क़ुरआन की मुन्दरिजा बाला ताअलीम के ख़िलाफ़ है।

The Enimeis of the Christiniaty

दुश्मने मसीहियत

By

Kidarnath
केदारनाथ

Published in Nur-i-Afshan Jan 4, 1894

नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 4 जनवरी 1894 ई॰

नाज़रीन नूरअफ़्शाँ : हाथी के दाँत खाने के और होते हैं। और दिखाने के और। मुहम्मदी भाई कितने ही ज़ोर शोर से दावे क्यों ना करें। कि हम ख़ुदावन्द येसू मसीह की हद से ज़्यादा ताज़ीम (इज़्ज़त) करते हैं। लेकिन उन के ऐसे लायानी (फ़ुज़ूल, बेहुदा) दावे को किसी दलील से भी तक़वियत नहीं पहुँचती। अव्वलन क़ुरआन ख़ुद उन को झुटला रहा है। और لا نفرق بين احدہِ यानी नहीं फ़र्क़ करते दर्मियान किसी एक के बतला रहा है। देखिए यहां साफ़ साफ़ कहा जाता है। कि येसू मसीह और मूसा और सुलेमान वग़ैरह नबियों में कोई तफ़ावुत (फ़र्क़) नहीं।

सब के सब एक ही से हैं । पस शेख़ अहमद कोईलम नव मुस्लिम का ये क़ौल, कि हम मुसलमान लोग मसीह की हद से ज़्यादा ताज़ीम करते हैं। कई वजह से बातिल (झूट) है। और अंग्रेज़ी हुक्काम को धोखा देने के सिवाए मह्ज़ आतल। अव्वलन, क़ुरआन की मुन्दरिजा बाला ताअलीम के ख़िलाफ़ है। दोएमन, जुम्ला अहले इस्लाम मुहम्मद को कुल अम्बिया पर फ़ौक़ियत (बरतरी) देते हैं। अगर हम अपने मुहम्मदी भाईयों का इस अम्र में हिंदू भाईयों के साथ मुक़ाबला करते हैं। तो और ही मुआमला नज़र आता है। क्योंकि मुहम्मदी बावजूद ये कि ख़ुदावन्द येसू मसीह को नबी क़रार देते। लेकिन साथ ही उसे झूटा भी ठहराते। लेकिन हिंदू भाई अगरचे उसे नबी नहीं कहते। पर तो भी धर्मात्मा (नेक) कहने में शक नहीं लाते। इस पर तुर्रह (अनोखा) ये है, कि अभी तक मुहम्मदियों को इतना तक मालूम ही नहीं, कि मुहम्मद का नसब नामा इस्माईल तक दुनिया के किसी हिस्से में मौजूद नहीं। ना यूरोप में, न एशिया में, ना अफ़्रीक़ा में, ना अमरीका में। तो फिर किस बरते पर तता पानी मांगा (गर्म-जोशी दिखाना) जाता है? अगरचे ख़ुदा का कलाम हमको डंके की चोट पुकार पुकार कर कह रहा है, कि “लौंडी का बेटा आज़ाद के बेटे के साथ वारिस नहीं हो सकता है। लौंडी और उस के बेटे को घर से निकाल दो।” तो भी अगर किसी सूरत से मुहम्मद साहब को इस का कुछ सहारा कुतुब इल्हामियाह से मिल जाता। उस वक़्त हम इतना मान लेने को तैयार हो जाते। जितना कि अब्रहाम की दूसरी बीवी कतुरह की औलाद को। मगर यहां तो मुत्ला`अ ही साफ़ आता नज़र है।

इस पर हम अपने मुहम्मदी भाईयों को याद दिलाना चाहते हैं कि पण्डित दया शंकर नसीम के शेअर को याद करें :-

भाई थे जोश ख़ूँ कहा जाये

सदमा हुआ दर्द से कहा हाय

क्या मुनादी में सरे बाज़ार बह्स के वक़्त आप लोग हिंदूओं को अपनी तरफ़ नहीं मिला लेते हैं। और उन के तुहमात की ताईद में गुल नहीं मचाते हैं? इस का जवाब अक्सर मुहम्मदियों की ज़बान से ये निकलता है, कि हिंदू मुसलमान भाई भाई हैं। पस मुहम्मदियों ही के इक़रार से इस्लाम ईसाईयत का दुश्मन साबित हो गया। और अगर उलमा-ए-इस्लाम इस को अवाम मुहम्मदियों की जहालत क़रार दें। तो हमारी अर्ज़ ये है कि احل لکم طعام الذين اوتو الکتاب के ख़िलाफ़ कुफ़्फ़ार का (बक़ौल इस्लाम) दूर से दिया हुआ खाना नोशे जान फ़रमाना। बाज़ारी हलवाइयोँ की पुख़्ता पूरी कचौरी खाना। उन के लोटे का पानी चुल्लुओं से पी जाना। और ईसाई की हाथ की दवा तक ना खाना क्यों हिन्दुस्तान के मुहम्मदियों में वबा-ए-हैज़ा की तरह फैला हुआ है? और इस बीमारी का सर चशमा अनपढ़ मुहम्मदी नहीं, बल्कि पढ़े हुए फ़ाज़िल।

चुनाचे मुहम्मदियों के इमाम फ़न मुनाज़रा अबू अल-मंसूर देहलवी अपनी किताब तन्क़ीह-उल-बयान। जवाब तफ़्सीर-उल-क़ुरआन मुसन्निफ़ सर सय्यद अहमद ख़ान साहब सितारा हिंद के सफ़ा 171 की सतर बारहवीं में लिखते हैं, कि “اب طعام الذين اوتو الکتاب  ” की तफ़्सीर मुझसे सुन लीजिए। कि इस आयत में “وصف اوتو الکتاب” इस बात पर दलालत करता है, कि जो खाना बहैसीयत नुज़ूल-ए-किताब उन के इस्तिमाल में है वह खाना तुमको भी हलाल है।” چو کفر از کعبہ برخيزدکجا ماند مسلمانی लेकिन हम मुफ़स्सिर साहब से पूछते हैं, कि कुफ़्फ़ार के हाथ के पके हुए खाने में बहैसीयत नुज़ूल-ए-किताब की शान-ए-नुज़ूल भी बतला दीजिए। लेकिन इस का जवाब शायद आप या और मुहम्मदी भी देंगे। कि हिंदू मुसलमान भाई भाई हैं। अंग्रेज़ों के हम मज़्हब ईसाई हैं। लेकिन अगर शेख़ कोईलम साहब नव मुस्लिम का दिल और ज़बान एक ही है। तो उन बिचारे हिन्दुस्तानी करोड़ों मुसलमानों के कलेजों में हाथ डाल कर ईसाईयत की दुश्मनी को निकालें। और फ़ौरन अमरीका से बइतफ़ाक राय उलमा-ए-मक्का एक फ़त्वा हिन्दुस्तान के मौलवियों के नाम रवाना फ़रमाएं, कि अहले-किताब के साथ खाना खा कर अपने बुग़्ज़ दिली (दिल में हसद) को निकालें। और गर्वनमैंट बर्तानिया की नज़र में साबित कर दिखाएं, कि हम या इस्लाम दुश्मन ईसाईयत नहीं हैं। अब हम क़ुरआन के “लानफ़रक” का जवाब देकर ख़ुदा से दुआ मांगते हैं। कि प्यारे बाप हमारे मुहम्मदी भाईयों के दिलों से इस बुग़्ज़ को, जो तेरे अज़ीज़ फ़र्ज़न्द की तरफ़ से हो दूर कर। आमीन।

अब लानफ़रक का जवाब ये है, कि अगर हक़ीक़त में नबियों के दर्मियान कुछ फ़र्क़ ना करना चाहिए। और अगर ख़ुदावन्द यसू अल-मसीह नबी से बढ़कर ख़ुदा नहीं है। तो हमारी समझ में नहीं आता, कि तरीक़ा मौजूदा के ख़िलाफ़ उस के इन्सानी जिस्म में आने के लिए बाप की ज़रूरत क्यों नहीं हुई। फिर तमाम क़ुरआन में और अम्बिया के गुनाह लिखे हुए। येसू मसीह की कोई भी कमज़ोरी इशारतन या किनायतन क्यों ना लिख दी ना फिर अगर उस की मौत गुनाह का कफ़्फ़ारा ना थी। तो क़ुरआन में “ما قتلوہ و ما صلبوہ” पर क्यों ज़्यादा ज़ोर दिया गया। जब कि और नबियों की क़त्ल व ईज़ा से चंदाँ इन्कार नहीं है।

इन बातों पर लिहाज़ करने से शुब्हा पैदा होता है।

बक़ौल मिर्ज़ा नौशा देहलवी :-

बे-ख़ुदी बेसबब नहीं ग़ालिब

कुछ तो है जिसकी पर्दा-दारी है