क्या ख़ुदा इन्सानी क़ुर्बानी से ख़ुश है?
नाज़रीन ने पढ़ा होगा कि दर नेवला पूना में क्योंकर एक हिंदू ने अपने हमसाये की लड़की को देवता के आगे बलि (क़ुर्बानी) दे दिया। और अब वो अदालत में ज़ेर मुवाख़िज़ा (जवाबतल) है। बनारस में भी, जो अहले हनूद का मुक़द्दस व मुतबर्रिक शहर है। इसी तरह एक लड़के को चंद हिंदूओं ने बलि […]
मर्क़ुस 16 बाब
“बरअक्स इस के जो ईमान लाएँगे उनके साथ अलामतें होंगी, कि वो मेरे नाम से देवों (बद रूहों) को निकालेंगे और नई ज़बान बोलेंगे, साँपों को उठा लेंगे, और अगर कोई हलाक करने वाली चीज़ पियेंगे उन्हें कुछ नुक़्सान ना होगा। वो बीमारों पर हाथ रखेंगे तो चंगे हो जाऐंगे।” Mark Chapter 16 मर्क़ुस 16 […]
मसीहिय्यत दरवेशी नहीं है
ये अक्सर कहा गया है, कि अगर मसीही मज़्हब दरवेशाना तौर से इस मुल्क में रिवाज दिया जाता, तो लोग इस को जल्द क़ुबूल कर लेते। इस ख़याल की वजह ये है, कि शुरू से हिन्दुस्तान के बाशिंदे दरवेशाना ज़िंदगी को एक आला तरीन ज़िंदगी तसव्वुर करते आए हैं। वो समझते हैं कि आबादी में […]
आज ये नविश्ता तुम्हारे सामने पूरा हुआ
उन्नीस सौ बरस के क़रीब गुज़रते हैं कि फ़िक़्रह मुन्दरिजा उन्वान शहर नासरत के इबादतखाने में बरोज़ सबत येसू नासरी की ज़बान-ए-मुबारक से यहूदी जमाअत परस्तारान (परस्तिश करने वाले) के रूबरू निकला था। जिसके हक़ में राक़िम ज़बूर (ज़बूर लिखने वाला) ने लिखा कि “तू हुस्न में बनी-आदम से कहीं ज़्यादा है। तेरे होंटों में […]
मिर्ज़ा की पैशन गोई और अब्दुल्लाह आथम
लो एडीटर साहब। यारों का भी टोटख़ा-ए-क़ियाफ़ा ज़रा गोश-ए-दिल (बड़ी तवज्जोह) से से सुन लीजिए। नऊज़-बिल्लाह (अल्लाह की पनाह) ! मिर्ज़ा साहब को सूली की तो क्या सूझी होगी और मुरम्मत व तज्दीद (दुरुस्ती व नयापन) इस्लाम अगर सूझेगी, तो अपने बेटरे और अपने अंसार की ज़रूर सूझेगी कि अब कौनसी करवट हिक्मत की बदलें। […]
एक बड़ा बख़्शिंदा
किसी शख़्स को उस की मेहनत की उज्रत देना बख़्शिश नहीं है। पर बिला मेहनत और काम के किसी को कुछ देना बख़्शिश है। दुनिया में लोगों को उन की मुलाज़मत, ख़िदमत और मज़दूरी का हक़ मिलता है। लेकिन बाअज़ साहिबे दौलत किसी अपने होशियार और मेहनती कारिंदे (मज़दूर, काम करने वाले) को कभी-कभी कुछ […]
बाअज़ ख़यालात मुहम्मदी पर सरसरी रिमार्क्स
हिंदूओं में भी कई एक तीर्थ मशहूर हैं। मसलन बदरी नाथ, किदार नाथ, द्वार का, बनारस, व प्राग वग़ैरह जहां बाअज़ हिंदू जाना और मूरतों के दर्शन करना और बाअज़ रस्मी बातों का अदा करना ज़रूरी और मूजिब सवाब ख़याल करते हैं। Short Remarks on some thoughts of Muhammad बाअज़ ख़यालात मुहम्मदी पर सरसरी रिमार्क्स […]
जंग मुक़द्दस का ख़ातिमा और अमृतसर में मसीहीयों का इज्लास
नाज़रीन में से हर एक पर वो मशहूर-ए-आलम पेशीनगोई रोशन है, जो मिर्ज़ा क़ादियानी ने मुबाहिसा अमृतसर के इख़्तताम पर की थी कि “डिप्टी अब्दुल्लाह आथम साहब फ़रीक़ सानी 15 माह तक यानी 5 सितम्बर 1894 ई॰ तक बह सराय मौत हाविया (जहन्नम) में डाले जाऐंगे। The End of Holy War and Procession of Christians […]
इब्ने आदम बचाने आया
ये एक मशहूर आलम मक़ूला है, कि “कहने और करने में बड़ा फ़र्क़ है।” और ये किसी हद तक सच्च भी है कि हौसलामंद अश्ख़ास जैसा कहते हैं, वैसा कर नहीं सकते और यूं उन के अक़्वाल व अफ़आल में एक फ़र्क़ अज़ीम वाक़ेअ हो जाता है। मगर हम इस अजीब शख़्स येसू नासरी के […]
मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी की पैशनगोई
हमारे नाज़रीन मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी के नाम-ए-नामी से बख़ूबी वाक़िफ़ होंगे आप इस ज़माने आज़ादी के मसीह मौऊद मह्दी आख़िर-उज़्ज़मान और ख़ुदा जाने क्या क्या हैं और अपने दाअवों के सबूत में इल्हामी पेशीनगोईयां फ़रमाया करते हैं और ये तरीक़ा अवाम और जहां के फांसने के लिए अब तक बहुत कुछ मुफ़ीद साबित हुआ […]
मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी का इल्हाम
बड़ी धूम, बड़ी धाम, बड़ी शौहरत, बड़ा एहतिमाम, मिर्ज़ा क़ादियानी का इल्हाम, लेना लेना, जाने ना पाए, वो मारा चारों शाने चित्त। (کجامیروی باش باش کہ رسیدم ۔ این خیر ماشد) ये आपको क्या हो गया जो लगे बे-तुकी हाँकने। कहीं शैतान ने तो आपको उंगली नहीं दिखाई। लाहौल पढ़ के ज़मीन पर थूक दीजिए। […]
मिर्ज़ा क़ादियानी का बहाना
सब पर रोशन है कि मिर्ज़ा क़ादियानी की वो पेशीनगोई कि जिसके पर्दे में आपने अमृतसरी मुबाहिसा में मसीहीयों की फ़त्हयाबी को बज़अम ख़ुद पंद्रह माह के अर्से तक किसी क़द्र पोशीदा कर के अपनी मुहम्मदियत के बचाओ की सूझी थी सो पंद्रह माह पूरे होने पर वो पेशीनगोई 6 सितम्बर The excuse of Mirza […]