मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी की बातिल पेशीनगोई

इस क़ौल के मुताबिक़ ही के रस्सी सटर (जल) गई पर वट (बल) ना गया। मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी की पेशीनगोई, मिस्टर अब्दुल्लाह आथम साहब की बाबत, कि “अगर वो हक़ की तरफ़ रुजू ना करेंगे तो 5 जून 1893 ई॰ से 5 सितम्बर 1894 ई॰ तक मर जाऐंगे। 6 सितम्बर 1894 ई॰ को बातिल […]

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बेटा ख़ुदा है और शख़्स है

चूँकि ये जुम्ला कि “जिसे उस ने अपने ही लहू से मोल लिया” मसीह से निस्बत रखता है और यहां पर उस की शान में लफ़्ज़ ख़ुदा आया है। इस मुक़ाम में बाअज़ नुस्ख़ों में लफ़्ज़ ख़ुदा के एवज़ (बजाय) लफ़्ज़ ख़ुदावंद भी पाया जाता है। इसलिए बाअज़ लोग ये एतराज़ करते हैं कि इस […]

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एक किताब

उन्वान मुन्दरिजा बाला पढ़ कर कोई शख़्स ख़याल करेगा, कि ये किताब कौन सी होगी। किस मज़्हब की होगी। और क्या इस का मज़्मून होगा। नाज़रीन को मालूम हो, कि ये किताब ना किसी मज़्हब से इलाक़ा रखती है, और किसी बानी मज़्हब की तरफ़ से है। और ना इस के वर्क़ काग़ज़ के हैं। […]

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मेरा लहू

ये कलिमात नजात-ए-आयात मसीह ख़ुदावंद ने इस क़ाबिल यादगार शाम को, जब कि वो अपने बारह शागिर्दों के साथ रस्म फ़सह अदा करता था फ़रमाए। जो उस की कफ़्फ़ारा आमेज़ मौत पर साफ़ व सरीह (वाज़ेह) दलालत (दलील देना) करते हैं। और किसी शरह व तफ़्सीर के मुहताज नहीं हैं। पौलुस रसूल ने इसी माजरे […]

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जिसकी पैदाइश रुहानी थी

ये बात निहायत हैरत-अफ़्ज़ा है, कि दीन[1] मुहम्मदी, जिसमें बनिस्बत दीगर मज़ाहिब-ए-दुनिया के यहूदियत और मसीहिय्यत की अक्सर सदाक़तें और ताअलीमात पाई जाती हैं। और जो इन मज़ाहिब की कुतुब मक़बूला के मिन जानिब अल्लाह होने का मक़र (क़रार करने वाला) है। और अम्बिया-ए-मस्तूरा बाइबल (बाइबल में लिखे हुए नबी) को मुर्सलीन मिनल्लाह Whom Birth […]

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उलुहिय्यत येसू मसीह की तौज़ीह अज़ किताब मुक़द्दस

उलुहिय्यत येसू मसीह की तौज़ीह अज़ किताब मुक़द्दस यूहन्ना 3:16 वो ख़ुदा का इकलौता बेटा है। यूहन्ना 15:18 उस के दुश्मनों ने उस पर ये तोहमत लगाई कि अपने तईं ख़ुदा के बराबर ठहराता है और मसीह ने इस का इन्कार नहीं किया। यूहन्ना 6:40 मसीह ने दावा किया कि वो आख़िरी दिन मुर्दों को […]

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अक़्वाल-उल-मशाहीर दरबारा दोस्ती

जो दोस्ती दुनियावी अख़्लाक़ के उसूलों पर मबनी है ज़िंदगी के तमाम तग़य्युर व तबद्दुल (तब्दीलीयों) पर ग़ालिब आती है। लेकिन जिस दोस्ती की बिना मज़्हब पर क़ायम है वो ला-इंतिहा अर्सा तक रहेगी। अव़्वल क़िस्म की दोस्ती ख़यालात के रद्दो-बदल और दुनिया के इन्क़िलाब के सदमे के मुक़ाबिल खड़ी रही। दूसरी क़िस्म की Word […]

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मुहब्बत इस में नहीं

इस में शक नहीं, कि जब ख़ुदा-ए-ख़ालिक़ अर्ज़ व समा (आस्मान व ज़मीन को बनाने वाला) ने सब कुछ पैदा और मुहय्या कर के आदम को ख़ल्क़ किया। तो वो अपने ख़ालिक़ व मालिक के सिवा किसी को दोस्त ना रखता था। और सिर्फ उसी के साथ मुहब्बत सादिक़ रखकर उस की Love in not […]

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सग दुनिया

आलमे सफ़ली (दुनिया, ज़मीन) में मौजूदात की तीन क़िस्में हैं। जमादात, नबातात और हैवानात। ये तीनों क़िस्में बजहत (वजह, सबब) हद माअनवी सब में शामिल हैं। और अज्साम-ए-तब्ई (पैदाइशी जिस्म) सबको हासिल हैं। सब यकसाँ हैं। लेकिन बाद अमतंराज अनासिरे Worldly Men सग दुनिया By Ahmad Shah Shaiq अहमद शाह शाईक Published in Nur-i-Afshan Nov […]

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ज़रूर था मसीह दुख उठाए

मसीह का मस्लूब हो कर मारा जाना, और तीसरे दिन जी उठना कोई क़िस्सा कहानी की मस्नूई (खुदसाख्ता) या फ़र्ज़ी बात नहीं। बल्कि एक मोअतबर व मुस्तनद तवारीख़ी (माना हुआ, तस्दीक़ शूदा) माजरा है। फिर ये तवारीख़ी माजरा भी ऐसा है, कि जिसको किसी बुत-परस्त या मुल्हिद व उहद (काफ़िर) मूर्ख ने नहीं, Christ must […]

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रात को जब हम सोते थे

रूमी सिपाही बतमाअ ज़र (पैसे का लालच) और वाअदा हिफ़ाज़त अज़ सियासत इस दरोग़ (झूठ) बे फ़रोग़ को, जो उन की, और उन के सिखलाने वालों की हमाक़त (बेवक़ूफ़ी) मह्ज़ को ज़ाहिर करता था। अवाम में मशहूर करने पर रज़ा मंद हो गए। लेकिन चूँकि कोई ज़माना दाना और अक़्लमंद इन्सानों से ख़ाली नहीं होता। […]

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मसीह ने दुख उठाए

अब हम मसीह के मुर्दों में से जी उठने के मुख़ालिफ़ एक तीसरे क़ियास (ज़हन, सोच बिचार) का ज़िक्र करेंगे। जिसको यूरोप के मशहूर मुल्हिदों (बेदीन, काफ़िर) मिस्ल इस्ट्राओस, रेनन वग़ैरह ने पसंद कर के पेश किया है। और वो ये है कि जी उठे मसीह की रुवैय्यतें (रुयते की जमा, सूरत का नज़र आना) […]

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