मौलवी इस्माईल और शिर्क की ताअलीम

Maulvi Ishmael and Blasphemous Teaching By One Disciple एक शागिर्द Published in Nur-i-Afshan January 15, 1891 नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 15 जनवरी 1891 ई॰ मौलवी इस्माईल साहब देहलवी अपनी किताब तक़वियत-उल-ईमान के सफ़ा 14 में सूरह निसा की आयत 116 :- إنَّ اللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَاءُ وَمَن يُشْرِكْ بِاللَّهِ […]

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नजात नेक-आमाल के साथ नामुम्किन

मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन नमीर, अबी आमिश, अबू सालिह हज़रत अबू हुरैरा रज़ीअल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मियाना Salvation with Works is Impossible? By One Disciple एक शागिर्द Published in Nur-i-Afshan January 15, 1891 नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 15 जनवरी 1891 ई॰ बुख़ारी और मुस्लिम में अबू हुरैरा […]

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सर सय्यद अहमद ख़ान बहादुर की गलतीयां चंद क़ाबिल एतराज़

ये कि फ़िक़्रह का हद ममनू मुंदरजा बाब 3 आयत 22 किताब मुसम्मा बह पैदाइश मूसवी में जुम्ला ममनूअ् के दाख़िल कलिमा नू के मअनी उस यानी ज़मीर वाहिद ग़ायब के भी हो सकते, Some Offensive Objections of Sir Syed Ahamd By Allama Abdullah Athim Masih Published in Nur-i-Afshan April 16, 1891 नूर-अफ़्शाँ मत्बूआ 16 […]

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क्या ईसाई भी हज करते हैं?

हमने नूर-अफ़्शाँ के किसी पर्चे में ज़िक्र किया था, कि एक शख़्स ने सवाल किया था कि जैसा मुहम्मदियों के हाँ मक्का में जाके काअबे का हज व तवाफ़ करना मूजिब सवाब समझा जाता। और हिन्दुओं में हरिद्वार वग़ैरह का तीर्थ करना बाइस नजात ख़्याल किया जाता है, क्या ईसाई भी किसी मुक़ाम के हज […]

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मैं क्योंकर जानूं कि तुम मुझे प्यार करते हो?

मैं क्योंकर जानूं कि तुम मुझे प्यार करते हो? गो हमारे मज़्मून के पढ़ने वाले हमसे बहुत दूर हैं, तो भी हम क़यास की दूरबीन लगाए घर बैठे एक अजीब तमाशा देख रहे हैं, कि उन्वान के जुमले पढ़ कर कई एक के चेहरे तमतमा रहे हैं, आँखें ख़ून की तरह लाल हुई जाती हैं, […]

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इश्तिहार मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद साहब क़ादियानी

जनाब मिर्ज़ा साहब आप ख़्याल फ़रमाईए, कि चंद गुज़रे सालों में आपने इतने इश्तिहार दीए और किताबें लिखीं लेकिन कोई बात भी आपकी बन ना पड़ी। आप हमेशा कहते रहे कि ख़ुदा ने ये बात और वो बात मुझ पर ज़ाहिर की है। मगर वो इश्तिहार नापायदार ठहरते रहे। और साथ ही अपने इस तर्ज़ […]

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मसीही मज़्हब की ताक़त

हक़ीक़त ये है कि उस वाक़ई प्वाईंट पर जहां तमाम इन्सानी मज़्हब के तमाम तरीक़े शिकस्त हो जाते मसीही मज़्हब अपनी ईलाही ताक़त में क़ायम रहता है। उन राज़ों का जो मौत से मुताल्लिक़ हैं वो दिलेराना सामना करता और उन्हें जलाली तौर से ज़ाहिर व मुन्कशिफ़ (ज़ाहिर होना, खुलना) करता है। ख़ुदा की ख़ूबी […]

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रेशनलिज़्म मज़्हब अक़्ली और मोअजज़ात

बुत-परस्त मज़ाहिब आइन्दा हालत की निस्बत सिर्फ एक धुँदली सी पेश ख़बरी रखते थे। आइन्दा ज़िंदगी बनिस्बत एक तासीर बख़्श ईमान व एतिक़ाद के शोअ़रा के लिए एक मज़्मून ही ज़्यादातर था। और ये मसअले फ़ैलसूफ़ों के नज़्दीक भी ऐसा बे-क़याम था कि वो सदाक़त जिसका इज़्हार पाक नविश्ते करते हैं यानी ज़िंदगी और बका […]

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मेला बंदगी साहब सरहिंद

ये मेला एक ख़ानक़ाह पर जो बंदगी साहब की ख़ानक़ाह कहलाती है बमुक़ाम सरहिंद जो एक बड़ा मशहूर शहर हो गुज़रा है हर साल जमा होता है। दूर व नज़्दीक के बेशुमार मुसलमान साहिबान जौक़ दर जौक़ पीर साहब की क़ब्र की ज़ियारत और उस पर नज़रें चढ़ाने के वास्ते चले आते हैं। बताशे रेवड़ी […]

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बहुत मोअजज़े दिखाता है

“ये मर्द बहुत मोअजज़े दिखाता है।” (युहन्ना 11:47) ज़रूर नहीं कि लफ़्ज़ मोअजिज़ा की तशरीह की जाये क्योंकि ये लफ़्ज़ ऐसा आम हो गया है कि हर एक मज़्हब व मिल्लत के लोग बख़ूबी तमाम जानते और समझते हैं कि मोअजिज़ा क्या है। अगरचे मोअजिज़ा को ग़ैर-मुम्किन व मुहाल जानने वाले हर ज़माने और हर […]

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मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी का सफ़ैद झूट

अर्से से मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद साहब क़ादियानी ने शोर व शर मचा रखा था कि उन को इल्हाम होता है। पर उन के इल्हाम की कोई हक़ीक़त ना खुली। जितनी दफ़ाअ इल्हाम आपको हुआ वह इल्हाम, इल्हाम ना ठहरा। आजकल आप लूदयाना में फ़िरौकश (मुकाम करना) हैं और इश्तिहार पर इश्तिहार देते हैं। कभी मुहम्मदियों […]

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हमेशा की ज़िंदगी की बातें

शमाउन पतरस ने उसे जवाब दिया कि, “ऐ ख़ुदावंद हम किस के पास जाएं हमेशा की ज़िंदगी की बातें तो तेरे पास हैं। और हम तो ईमान लाए और जान गए हैं कि तू ज़िंदा ख़ुदा का बेटा मसीह है।” (युहन्ना 6:68-69) दरिया-ए-तबरियास के पार जब कि एक बड़ी भीड़ ख़ुदावंद के एजाज़ी कामों की […]

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