मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी का सफ़ैद झूट

अर्से से मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद साहब क़ादियानी ने शोर व शर मचा रखा था कि उन को इल्हाम होता है। पर उन के इल्हाम की कोई हक़ीक़त ना खुली। जितनी दफ़ाअ इल्हाम आपको हुआ वह इल्हाम, इल्हाम ना ठहरा। आजकल आप लूदयाना में फ़िरौकश (मुकाम करना) हैं और इश्तिहार पर इश्तिहार देते हैं। कभी मुहम्मदियों […]

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हमेशा की ज़िंदगी की बातें

शमाउन पतरस ने उसे जवाब दिया कि, “ऐ ख़ुदावंद हम किस के पास जाएं हमेशा की ज़िंदगी की बातें तो तेरे पास हैं। और हम तो ईमान लाए और जान गए हैं कि तू ज़िंदा ख़ुदा का बेटा मसीह है।” (युहन्ना 6:68-69) दरिया-ए-तबरियास के पार जब कि एक बड़ी भीड़ ख़ुदावंद के एजाज़ी कामों की […]

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काइफ़ा और मसीह मस्लूब

बाअज़ अश्ख़ास जाहिलाना मसीहीयों के साथ हुज्जत व बह्स करते और कहते हैं कि गुनाहों की माफ़ी हासिल करने के लिए कुफ़्फ़ारे की ज़रूरत नहीं है। और मसीह के गुनाहगारों के बदले में अपनी जान को क़ुर्बान करने और अपना पाक लहू बहाने पर एतराज़ करते हैं कि ये कहाँ की अदालत थी कि गुनाह […]

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मसीह और अम्बिया साबिक़ीन

नूरअफ़्शां मत्बूआ 3, सितंबर में मुसन्निफ़ तक़्दीस-उल-अम्बिया की इस ग़लतफ़हमी पर, कि ख़ुदावंद मसीह ने अम्बिया-ए-साबक़ीन को (नऊज़-बिल्लाह) चोर और डाकू बतलाया। हमने लिखा था कि “हम समझते थे कि ज़माने की इल्मी तरक़्क़ी के साथ मुसलमानों के मज़्हबी ख़यालात भी पच्चीस तीस साल गुज़श्ता की बनिस्बत अब किसी क़द्र मुबद्दल हो गए होंगे। लेकिन […]

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दिली आराम

ऐ नाज़रीन ये मीठी और शिरीं आवाज़ किस की है? ये बे-आराम दिल को चैन, ग़म-ज़दा को तसल्ली, नाउम्मीद को उम्मीद और बेकस को सहारा देने वाली सदा किस मेहरबान की है? क्या आप के कान में ये फ़हर्त बख्श अवाज़ कभी आई है? अगर आई है, तो क्या आप का दिल उस का शुन्वा […]

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झूटे नबी

सभों को मालूम है कि मिर्ज़ा साहब क़ादियानी मुद्दई मुमासिलत (मिस्ल) मसीह के इल्हाम की तरफ़ से मसीहीयों ने मुतलक़ इल्तिफ़ात (मुतवज्जोह होना, मेहरबानी) ना किया तो भी मालूम नहीं कि हमारे लखनवी हम-अस्र मुहज़्ज़ब ने क्यूँ-कर ऐसा लिखने की जुर्आत की है, कि क़ादियानी साहब के दावे को तस्लीम करने से समझा जाता है, […]

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इस्हाक़ या इस्माईल

दो तीन हफ़्तों से नूर-अफ़्शाँ में बह्स हो रही है कि हज़रत इब्राहीम ने इस्हाक़ को क़ुर्बानी गुज़ाराना या इस्माईल को। ये अम्र गो ग़ैर-मुतनाज़ा (लड़ाई के बग़ैर) है कि तौरेत में हज़रत इस्हाक़ के क़ुर्बानी किए जाने का बहुत मुफ़स्सिल (बयान) मज़्कूर है। रहा क़ुरआन का बयान अगर वह मुताबिक़ तौरेत ना होतो उस […]

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क़ुर्बानी का बर्रा

इब्राहीम ने कहा, कि ऐ मेरे बेटे ख़ुदा आप ही अपने वास्ते सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए बर्रे की तदबीर करेगा। (पैदाइश 12:8) इब्राहीम से उस के बेटे इस्हाक़ का असनाए (दौरान, वक़्फ़ा) राह में ये सवाल करना कि “आग और लकड़ियाँ तोहें पर सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए बर्रा कहाँ” ताज्जुब की बात नहीं लेकिन बाप […]

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अहले इस्लाम और ज़बीह-उल्लाह

अहले इस्लाम का यह ख़याल कि ज़बीह-उल्लाह होने की इज़्ज़त व फ़ज़ीलत इस्माईल को किसी सूरत से हासिल हो। इस अजीब ख़िताब की क़द्र व मन्ज़िलत को ज़ाहिर करता है। क्योंकि सिर्फ उसी के ज़रीये से अहद-ए-बरकत क़ायम व मुस्तहकम हो सकता है। और वही अकेला इस लायक़ है कि “किताब की मोहरों को तोड़े” […]

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मौलवियों के सवालात

कुछ महीनों की बात है कि इतवार को शाम की नमाज़ के लिए मैं इंग्लिश चर्च में था कि एक भाई आए और बोले कि मुनादी के वक़्त एक मौलवी साहब पादरी साहब से आन भिड़े हैं। सो पादरी साहब ने आप को याद किया है। मैंने कहा बहुत इस्लाम कहो और ये कि मुझे […]

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इल्हाम

इस उन्वान का एक मज़्मून अलीगढ़ इंस्टिट्यूट गेज़ेत में और उस से मन्क़ूल औध अख़्बार में शाएअ हुआ है। इल्हाम के इस्तिलाही मअनी और इल्हाम की क़िस्में और उस के नतीजे जो कुछ इस में लिखे हैं। वो सिर्फ़ मुहम्मदी इल्हाम से इलाक़ा रखते हैं। वो सब तख़ैयुलात और तुहमात जो दीवाने-पन से कम नहीं […]

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इब्न आदम सरदार काहिनों के हवाले

मसीह का मरना और जी उठना मत्ती की इन्जील से लेकर मुकाशफ़ात की किताब तक ऐसा साफ़ और मुफ़स्सिल बयान है जो कि इन दोनों में ज़र्रा भर शक व शुब्हा को दख़ल और गुंजाइश नहीं है। इस में शक नहीं सिर्फ इन दो बातों पर ही दीन मसीही का सारा दारोमदार रखा गया है। […]

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